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Non-Erotic समाज का बदलता स्वरूप

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Lovely Anand

Love is life
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मेरा मत ये है कि घर के बड़े यदि स्वार्थ त्याग कर सबके लिये सोचें तो आत्मीयता बनी रह सकती है किन्तु कटु सत्य यह भी है की संयुक्त परिवार मेंसर्वाधिक अरुचि औरतों को है और वे सदैव प्रयासरत रहती हैं कि एकल परिवार ही बनायें।
सत्य है
 
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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इस विषय पर बहुत दिनों से लिखने का विचार बना रहा था। समय ही नहीं मिल पाता इसलिए लिखा नहीं। आपको साधुवाद! बहुत अच्छी लेखनी है आपकी। मूर्खतापूर्ण और व्यर्थ का प्रलाप बहुत पढ़ लिया। यह कुछ नया ताज़ा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। सोलह आने सही बात है कि आज कल मनुष्य व्यर्थ के लोगों की तसदीक़ (endorsement) के लिए भूखा रहता है, और जो ज़रूरी लोग हैं, उनको नज़रअंदाज़ करता रहता है।

बात न जाने क्यों एकल/संयुक्त परिवार पर आ कर ठहर गई! लेकिन अब आ ही गई है, तो मैं भी अपने एक दो विचार रख देता हूँ। संयुक्त परिवार इसलिए टूटे क्योंकि यह व्यवस्था केवल मुफ़्तख़ोरी को बढ़ावा देती है। परिवार में एकाध कमाने वाला निकल आता, तो पूरा परिवार उसी व्यक्ति का खून चूसने लगता। मज़े की बात यह भी है कि उस व्यक्ति का आदर तभी तक होता, जब तक उस व्यक्ति में धन दान करने का सामर्थ्य होता। जैसे ही सामर्थ्य ख़तम, वैसे ही जै सिया राम।

और स्त्रियों की तो पूछें ही मत। घर की बहुओं के साथ लौंडी जैसा सलूक होता। पहले पसेरी भर खाना पका कर घर के मर्दों को खिलाओ, फिर जो कुछ बच जाए, उसको खुरच के खा लो।
संभवतः यह भी बर्दाश्त हो बहुओं को। लेकिन जब वो यह देखतीं कि जो धन उनकी संतानों के भविष्य पर ख़र्च हो सकता है, वो केवल इस कारण नहीं हो पाता क्योंकि वह संयुक्त परिवार के बाक़ी के सदस्यों पर ख़र्च हो रहा है। वैसे भी स्त्रियों को संपत्ति में अधिकार बस हाल फिलहाल में ही मिला है। उसके पहले उनकी हालत दयनीय ही थी।

यह सब कोई सुनी सुनाई बात नहीं है। खूब देखा है मैंने संयुक्त परिवार का नंगा नाच। पिता जी का आजीवन शोषण और दोहन खूब देखा है मैंने, और माता जी का भी। और इस सब का उनको मिला क्या? बस एक बड़ा सा ठेंगा। मुसीबत के समय एक भी मुफ़्तख़ोर - जिन पर मेरे माता पिता ने अपना सर्वस्वा स्वाहा कर दिया - दिखाई नहीं देता।

ऐसी व्यवस्था को कोसों दूर से प्रणाम।
 
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Kya yaha bhi kuch post ki ummid ki jaaye.
 
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nain11ster

Prime
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बदलती है ज़िन्दगी आगे बढ़ते है लोग, कल्पना और परिकल्पना के जाल में फसी व्यथा को क्या ही स्वरूप दे। आशय और शंशय की यही विडंबना है, बिन आशय कभी शंश्य ना हो और जहां आशय की ही सद्बुद्धि ना हो फिर व्यर्थ की शंशय ही होए...

सामाजिक मुद्दों में अपना ही नजरिया है। मै आपकी आलेख की प्रसंशा करता हूं, किन्तु इसी आलेख की मै चंद बातें सामने रखना चाहूंगा...

शर्मा जी अधिकारी थे और चौबे जी की मानवीयता को समझे यधपी उनकी इक्छा जरूर शव यात्रा में जाने की जरूर थी किन्तु जा ना सके... एक सोच तो थी जो किसी के जाने के परस्पर संबंधों पर गहन चिंतन मे थी.. स्वरूप तो अब भी वही है.. बदलाव कहां है... ना जाने की आत्मग्लानि ही तो मानवीयता प्रतीक है जबकि संबंध यदि आज के परिवेश में कहा जाए तो हाई हेल्लो वाले थे...

आते हैं अगले भाग में जहां चौबे जी की अंतिम यात्रा थी... कुछ लोग जिनको चौबे जी ने कभी संदेश नहीं भेजा, ना तो वो पहचान वाले थे ना घनिष्ठ और ना ही अति घनिष्ठ किन्तु वो पूरी शक्रियता के साथ लगे हुए थे... क्या इतना ही काफी नहीं की समाज में पूर्ण संतुलन बना हुआ है... और क्या मृत श्या पर लेटा व्यक्ति स्वार्थी नहीं जो केवल अपने काम के लोगों को दिन रात संदेश भेजता रहा लेकिन जब अंतिम वक्त उसकी आत्मा देह त्याग तो वहीं लोग काम आए जिन्हे चौबे जी ने अपने पहचान कि श्रेणी में नहीं रखा था.. निश्चित ही वो लोग मोहल्लेवासी होंगे...

यहां भी मैंने समाज के बदलते स्वरूप को कहां देखा.. शायद मेरी पोस्ट ज्यादा लंबी हो गई.. रामू के किससे मे मन के विकार एक ओर लेकिन बुरे वक्त मे शर्मा जी कुछ तो मदद कर ही आए...

मै अंधेरे को कभी नहीं देखता.. अपने पोस्ट से यह भी नहीं जताना चाहता की आपने कुछ गलत लिखा.. बस केवल इतना कहना चाहता हूं कि हर कहानी के 2 पहलू होते है और हम मार्मिक और हो रहे अन्याय के पीछे चल रही बात पर ज्यादा खींचते है इसलिए हमे कहीं कुछ बुरा हो रहा है ऐसा ही दिखता है...

विश्वास मानिए 10 लोगों के भाव या भावना बदलने से समाज नहीं बदलता। समाज अपनी पूरी संतुलन बनाए है जहां अच्छे और बुरे दोनो लोग पाए जाते है। अंधेरा और उजाला दोनो मिलेगा... तय आपको करना है कि आप क्या देखना पसंद करेंगे..

लंबा चौड़ा पोस्ट लिखने के किए माफी... कुछ भुल हो गई हो तो क्षमा कीजिएगा.. धन्यवाद
 

nain11ster

Prime
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सर्वप्रथम आपको कोटि-कोटि धन्यवाद
मेरे आलेख पर प्रतिक्रिया देख कर मुझे यकीन हो रहा है कि इन परिस्थितियों और दृश्यों को आपने भी अपने आसपास में घटित होते हुए देखा होगा और महसूस किया होगा।
निश्चय ही आशावद, निराशावाद पर विजयी रहेगा पर यदि हम अपने स्वार्थ और सामाजिक कर्तव्यों में सामंजस्य और संतुलन नहीं बैठा पाते हैं और यथास्थिति से संतुष्ट होकर इसे यूँ ही छोड़ देते हैं तो यह समाज धीरे-धीरे पाश्चात्य संस्कृति और एकाकी जीवन की तरफ बढ़ता चला जाएगा वह भी संतुलन बनाते हुए ...

सामाजिक बदलाव की यह दशा भारतीय संस्कृति से निश्चय ही अलग हो रही है हमारे दोस्तों और संबंधियों में परस्पर लगाव कम हो रहा है या नहीं यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है पर मेरा मानना यह है इसमें निश्चय ही कमी आई है
मैं समाज को जागृत कर उसमें बदलाव लाने का अतिइच्छुक नहीं हूं पर यदि हम सब इस बारे में सोचें तो निश्चय ही हम उचित दिशा की तरफ चल पड़ेंगे आखिर मानवीय संवेदनाएं हम सब में बराबर है बस उन्हें जागृत करना है या नजरें फेरकर उन्हें सुसुप्तावस्था में ही छोड़ देना है इसका निर्णय हमें ही करना होगा
मंगल कामना सहित।

आपके विचार पढ़कर एक मुस्कान सी आ रही है... सुदृढ़ समाज और मानवीय भावना के ओर आपका रुझान एक बात तो सुनिश्चित करता है कि आप समझ के प्रति जागृत है।

बहुत सारे विषय एक साथ संलग्न है, जिसमे भारतीय संस्कृति और एकल पारिवारिक संरचना को आपने मुख्य तौर पर उल्लेखित किया है।

आपकी सोच सही दिशा की ओर अग्रसर है, निश्चित तौर पर बढ़ते रहे। मेरी सुभकमनाए.. मै तो इस बात से ही खुश हूं कि लोग संस्कृत और समाज पर चर्चा कर रहे. इस फोरम की छोटी सी दुनिया को छोड़ दे तो पूरे देश मे युवाओं और युवतियों के बीच यह चर्चा का विषय है.. जब तर्क होगा तो निष्कर्ष भी निकलेगा... इन विषयों पर तर्क होते रहना चाहिए।
 
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Aakash.

sᴡᴇᴇᴛ ᴀs ғᴜᴄᴋ
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Hello Everyone :hello:
We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Xforum Staff.

 
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