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Romance भंवर (पूर्ण)

PARADOX

ଗପ ହେଲେ ବି ସତ
6,068
3,457
189
Update:-39 (A)



कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद अपस्यु अपनी मां में पास आया और उसकी गोद में सर रखकर आखें मूंद लिया। नंदनी उसके बालों में हाथ फेरती हुई सभी लोगों से बात करने लगी। चर्चाओं का विषय आगे बढ़ रहा था इसी क्रम में नंदनी अपस्यु को जगाती हुई पूछने लगी, "क्या ये सच है?"

अपस्यु:- क्या मां मैं समझा नहीं।
अनुपमा:- तुमने हमारी एक भी बात नहीं सुनी क्या?
अपस्यु :- माफ़ कीजियेगा आंटी, मेरी आंख लग गई थी।
राजीव:- सुनकर अनजान बन रहा है। इसने केवल कहानी गढ़ी होगी। साची ने मुझसे कहा था और मैंने आफिस में यह बात उठाई थी। इसलिए सर ने अपने लड़के को उस कॉलेज से निकालकर कहीं और एडमिशन करवा दिया।
सुलेखा:- बिल्कुल सही कहे है जी, ये तो वही बात हो गई करे कोई और, और श्रेय कोई और लूट लेे। वैसे भी वो कहां इतने बड़े आदमी, इन जैसों की सुनेगे।
नंदनी:- हां शायद आप ने सही कहा।

अनुपमा:-:सब आपस में ही बोले जा रहे हैं कोई उसकी भी सुनेगा। बेटा हमे ये जानना है कि तुमने उस होम मिनिस्टर के बेटे को कैसे उस कॉलेज से और हमारे बच्चियों से दूर किया?

अपस्यु :- जाने भी दो ना आंटी, अंकल को अगर लगता है कि उन्होंने अपने ऑफिस में बात करके इस मामले को सुलझा दिया, तो ऐसा ही सही।

राजीव:- नहीं क्या मतलब है तुम्हारा, तुमने ये मामला निपटाया हैं। जानते भी हो वो कौन है। सेंट्रल होम मिनिस्टर। उनका रूतवा, उनकी पॉवर, और पूरे देश पर उनका कितना स्ट्रोंग होल्ड है तुम्हे पता भी है। गली के नेता नहीं है वो समझे।

अपस्यु :-:हां ठीक है ना अंकल मैं कहां कुछ बोल रहा हूं।
सुलेखा:- देखा दीदी कितना चालक बन रहा है ये। अभी इसने बोला था इनको (राजीव को) ताने मार कर, "इन्हे ऐसा लगता है तो यही सही।" कैसे पलटी मार गया अभी। बदतमीज है ये भी।
नंदनी:- अपस्यु चल मुझे बता क्या है पूरा मामला और एक भी शब्द झूट नहीं।

फिर से राजीव कुछ बोलना चाह रहा था इसपर अनुपमा उसे रोकती हुई कहने लगी…. "आप ही आप बोलते रहेंगे देवर जी, तो कैसे बात समझ में आएगी। उसे भी थोड़ा सुनते है। तुम बोलो बेटा।

अपस्यु :- कुछ नहीं आंटी, बस मैंने होम मिनिस्टर सर से एक मुलाकात किया। उन्हें पूरा मामला बताया। बहुत ही सरल और अच्छे इंसान है, उन्होंने भी मेरी बात को सुना और आश्वासन दिया कि अब दोबारा कोई समस्या नहीं होगी। और उन्होंने जो बोला वो किया।

राजीव:- झूट बोल रहा है ये। मै मान ही नहीं सकता।
सुलेखा:- इसे तो वहां के गेट आगे खड़ा ना होने दे, और कहता है मिलकर आया।
राजीव:- अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। बोलो इससे अपनी बात साबित करे।

अपस्यु को हंसी अा गई इस बात पर और वो हंसते हुए कहने लगा…. "जी अंकल मैंने मां लिया, आप सही और मै गलत। यहां कोई अदालत चल रहा है क्या? अब मैं उनसे एक बार मिला हूं और मिलकर ये मामला निपटाया। वो कोई आम इंसान तो है नहीं की अभी के अभी आप को लेकर पहुंच जाऊं या फिर उन्हें कॉल ही लगा कर सच्चाई सामने रख दूं।

नंदनी जो अपने ही घर में शुरू से बेइज्जाती की घूंट पर घूंट पीए जा रही थी, उसको राजीव और सुलेखा का ऐसा रवाय्या बहुत खला। उन्होंने अपस्यु को गुस्से से देखती हुई कहने लगी…. "जब तुम कहते हो कि तुमने ये सब किया है तो फिर साबित करने में क्या परेशानी है?"

राजीव चुटकी लेते हुए…. रहने दीजिए बहन जी ये आज कल के लड़कों की यही समस्या है काम काम और डिंगे ज़्यादा।

अपस्यु:- ठीक है मुझे साबित करना है ना अभी हो जाएगा। राजीव अंकल उन्हीं के ऑफिस में है ना। तो उनसे कहिए कॉल लगाए गृह मंत्री आवास के किसी भी कर्मचारी या अधिकारी से जिनसे इनकी बात होती होगी। इनसे कहिए फोन स्पीकर पर डालकर पूछने… "कुछ दिन पहले कोई लड़का गृह मंत्री आवास में अाकर, होम मिनिस्टर के बेटे को उसी के सामने थप्पड भी लगाया था क्या… कहिए पूछने। लेकिन अभी मै एक बात बता देता हूं, वो होम मिनिस्टर है। और उन्हें यदि पता चला कि उनके बेटे के मार खाने की बात मैंने बाहर बताई है, तो वो मेरी इंक्वायरी करेंगे और मैं राजीव अंकल का नाम बोल दूंगा कि "इन्हे ही यकीन नहीं था और इनको ही कन्फर्मेशन चाहिए था, इसलिए मजबूरन मुझे ये सब बताना पड़ा।"

अनुपमा:- देवर जी अपस्यु कह रहा है मारकर आया है वो आप की बेटी और मेरी बेटी को परेशान करने वाले लड़के को, वो भी उसके बाप के सामने… और आप दोनों मियां बीवी को ये तक यकीन नहीं की वो होम मिनिस्टर से मिला भी है। अब आप की बारी है.. मैं भी आप का कलेजा देख लेती हूं कि आप ये बात उनके घर से पता लगा सकते है या नहीं।

राजीव पूरे विश्वास के साथ अपना फोन निकलते हुए अपस्यु को झूठा कहा और फोन स्पीकर पर डाल कर उसने कॉल लगा दिया। नाम था शुक्ला जी (पी ए)…

"कैसे है मिश्रा जी, बहुत दिनों के बाद याद किए"
"कुछ नहीं शुक्ला जी, मुझे कुछ जानकारी चाहिए थी"
"कैसी जानकारी मिश्रा जी, पूछिए ना। हम तो हमेशा है आप की सेवा में।"
"शुक्ला जी अभी कुछ दिन पहले, वहां सर के निवास पर कोई कांड हुए था क्या?"
"कैसी बात आप कर रहे है मिश्रा जी। सेंट्रल होम मिनिस्टर के दरवाजे तक कोई कांड करने वाला नहीं पहुंच सकता आप तो घर के अंदर के कांड के बारे में पूछ रहे है। आज दिन में ही चढ़ा लिए है क्या?"
राजीव अपस्यु के ओर देखते, जैसे विजई मुस्कान दे रहा हो…. "अरे ऐसी कोई बात नहीं है शुक्ला जी बस ऐसे ही पूछ रहा था। उड़ती-उड़ती खबर थी कि कोई 22-23 साल का लड़का सर के बेटे को उन्हीं के सामने थप्पड मार कर गया है।"
"धीरे बोलिए मिश्रा जी, कहीं किसी ने सुन लिया ना तो सर हम दोनों की नौकरी खा जाएंगे। इस बात को यहीं खत्म कीजिए। दोबारा चर्चा भी नहीं कीजिएगा।"

राजीव की शक्ल देखने लायक थी। खुद की बे इज्जति करवाना किसे कहते हैं उसका प्रत्यक्ष उदहारण सामने था। नंदनी और अनुपमा मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और उन्हें जैसे गर्व मेहसूस हो रहा हो… "साबाश बेटा क्या काम किया है।" इधर राजीव और सुलेखा अपना मुंह छिपा रहे थे। राजीव ने तुरंत लावणी और साची को आवाज़ लगाया और बड़े ही प्यार से नंदनी से जाने की इजाज़त भी मांगी।

लावणी तो दौड़ कर चली आई लेकिन साची अब भी कुंजल के साथ शायद बातें कर रही थी। अनुपमा ने राजीव से कहा रहने दो वो अा जाएगी और सब वहां से चलने लगे। जाते-जाते अनुपमा, अपस्यु के बालों में हाथ फेरती उसे दिल से धन्यवाद कहीं और अपने घर लौट आई।


________________________________________________


यूं तो बुरे हम भी नहीं, बस वक़्त बुरा हुआ कुछ इस कदर
अब तो गर रोते भी है तो, उसमें भी ज़हर नजर आता है ।

कुंजल के बढ़ते कदम रुक गए वो पलट कर वापस आयी और साची के पास बैठ गई। थोड़ी देर दोनों के बीच खामोशी रही फिर साची ने बोलना शुरू किया…. "लगता है मुझ से मेरी खुश नाराज हो गई है या फिर मैं ही दिल बहलाने के लिए उसे नाराज समझ रही हूं। क्योंकि अगर कोई नाराज हो तो मनाया भी का सकता है लेकिन मुझ से तो मेरी खुशी ही दूर हो गई है।"

कुंजल:- इतनी मायूस नहीं होते साची वक़्त हर मरहम की दवा है। समय के साथ सब ठीक हो जाता है।

साची:- वक़्त !! हाहाहाहाहा … हर बीते वक़्त के साथ तो मैं उसके लिए कोई आम सी लड़की होती जा रही हूं। एक अनजान जिसके बारे में ना सोचते हैं ना बात करते है। सड़क पर इधर से उधर करते जैसे कई इंसान दिख जाते है जिनके लिए क्या फीलिंग हो।

कुंजल:- क्या हुआ है तुम्हे साची। अभी कुछ देर पहले तो कितनी खिली सी थी बस कुछ ही पल में इतनी डिप्रेस कैसे हो सकती हो।

साची:- उसकी हर अदा निराली है। पास होकर भी मेरे पास नहीं। बात भी करता है और दिल भी नहीं दुखाता, लेकिन फिर भी पिरा दे जाता है। वो मुझ से ना ही नफरत करता है और ना ही प्यार। कोई तो भावना दिखाता। नफरत करता तो नफरत को प्यार में बदलने कि कोशिश करती। प्यार करता तो प्यार की बरिशें ऐसी करती की फिर कोई गिला शिकवा न होता। कुछ तो भावना होती उसकी मेरे लिए…

कुंजल:- साची प्लीज तुम रोना बंद करो और पूरी बात बताओ।

साची, अपने आशु पोछती… "सॉरी कुंजल, मैं शायद भावनाओ में बह गई थी। चलती हूं, सब बाहर इंतजार कर रहे होंगे…

कुंजल अपनी आखें दिखाती….. बैठी रहो चुपचाप। अब आराम से अपनी पूरी बात कहो। कभी-कभी दिल के दर्द को सुना देना चाहिए, अच्छा लगेगा। मुझे लगता नहीं तुम्हारी कोई अच्छी दोस्त यहां है इसलिए तुम्हारी हालत ऐसी है। अब बताओ भी…

साची कुंजल की बात पर अपनी चुप्पी साधे रही… वो बात तो करना चाहती थी लेकिन हाल-ए-दिल साझा करने का मन नहीं था। बहुत पूछने के बाद भी जब साची चुप ही रही। कुंजल को उसकी दशा पर बहुत ही तरस आने लगा। वजह भले अलग हो, लेकिन जिस तरह का तनाव और अकेलापन कभी कुंजल ने झेला था उसे वो साची में देख रही थी।

वो उस मनोदशा को भांप रही थी जिससे कभी कुंजल कभी गुजर चुकी थी। इसलिए कुंजल ने अपनी कहानी उसे बताना शुरू किया। पारिवारिक आंतरिक मामला क्या था वो तो नहीं बताई लेकिन उसके इस तनाव ने किस मोड़ पर उसे लाकर खड़ा कर दिया सब बयां कर गई। साची बड़े ध्यान से कुंजल को सुन रही थी और जैसे-जैसे उसके बारे में पता चलता जा रहा था वो हैरानी से बस कुंजल को ही देखती रही….

पूरी बात सुनने के बाद साची को भी अपना वर्तमान कुंजल के अतीत जैसा लगने लगा। उसने भी अपनी चुप्पी तोड़ी और अपना हाल-ए-दिल बयान करना शुरू किया….


किस्सा मै क्या बताऊं तुम्हे हाल-ए-दिल का
अपने ही नजरिए ने मुझे अपने नजरों में गिरा दिया।

कहां से शुरू करूं पता नहीं, लेकिन जो भी मेरे साथ हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है। मै इसी योग्य हूं। कुछ दिन पहले की ही तो बात है.. मेरे अरमानों के पंख लगने शुरू हुए थे और वो खुले आसमानों में उड़ने को भी तैयार थे।


यह वो दिन था जब मुझे अपस्यु सरप्राइज देने वाला था। इससे पहले हम दोनों यहीं नीचे हॉल में मिला करते थे। कई हसीन लम्हे और कई सारी प्यारी बातें थी। शायद अपस्यु मेरे मन की भावना को जानता था, उसे मेरे दिल का हाल भी पता था। वो जनता था मै उससे पहल कि उम्मीद लगाए बैठी हूं और मेरी भावनाओ को ध्यान में रखकर उसने रात में संदेश भेजा था.. "कल तुम्हारे लिए सरप्राइज है।"

रात आखों में ही बीती, ये शायद मेरी पहली भूल थी क्योंकि ठीक से सोती तो शायद मेरी बुद्धि भी ठीक से काम करती लेकिन दिल के हाथों मजबुर और आने वाले दिन के सरप्राइज को मै अपने दिमाग में संजोने लगी। वो रात बहुत प्यारी थी और अरमान अपने पंख लगाए उड़ रहे थे। मैं अकेले में खुद से ही बात कर रही थी…

कल मुझे बाहों में भर कर वो मेरी आखों में आखें डाल कर मेरे होठों को चूमते हुए सरप्राइज देगा जिसमे आखों से इजहार होगा। या फिर वो थ्री पीस सूट पहने होगा। मैंने तो सूट का रंग भी सोच रखा था गहरे नीले रंग का सूट, अपस्यु के प्रेसनलीटी पर खूब जचता। हाथो में फूलों का गुलदस्ता लिए जिसमे गुलाब मोग्रा और तरह-तरह के फूल होते। वो अपने घुटने पर बैठकर इजहार करता।

प्यार समा था वो भी। सुबह तक सबकुछ प्यारा था। उसमे चार चांद तब लग गया जब पता चला अपस्यु बिल्कुल ठीक है। मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मुझे लगा अब शायद घुटनों पर बैठकर, वाला इजहार होगा। लेकिन तभी दिल में टीस लगी और सोची की ऐसा कुछ माहौल बना तो उसे मै किस वाले सीन में कन्वर्ट करूंगी। अभी-अभी तो उसकी चोट ठीक हुई थी कैसे वो घुटनों पर बैठ जाता।

सुबह का वक़्त नहीं कट रहा था और मै उन्हें रिझाने के लिए दिल से तैयार हो रही थी। यहां तक सब कुछ प्यारा चल रहा था। हमारी सुबह कि मुलाकात हुई और आखों में सपने लिए मैं, अपस्यु के साथ नए उड़ान भरने के लिए तैयार थी। लेकिन पहला ही घटना कॉलेज के मुख्य द्वार पर हो गई।

ishe kahte hain ghamand ka chur chur hona... khudko khudki najar se itna upar utha dena ki dusron ke aankhen bhi hain unke bhi najriya hai ye tak n khayal karna wakai sharmindigi ki baat hai...

Rajib jee ne sach me apni soch ki parakastha ko achhe se peshkash kiya aur inam ne bohot hi achha samman mila :D

Bichari sachi...

Sajan ki pyar me tadap kar naagmati n ban jaye... itni birah ki pada me jala rahe ho... pata chal raha hai khumari ush pyar ki kis kadar nashili hone vali hai... :hinthint:

wese meri Kunju ki dard bhi kam nahin hai... bas dukh ish baat ki hai main uske paash nahin tha tab aur abb bhi nahin hun.. :verysad:

well aage badhte hain next update ko... :reading:
 

PARADOX

ଗପ ହେଲେ ବି ସତ
6,068
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Update:-39 (B)




अपस्यु की कोई गलती नहीं थी। किसी लड़की ने अाकर उसे टोका, उसने अपस्यु को छलावा दिया और दे भी क्यों ना उसकी बात ही जुदा है। मेरी तरह कोई भी लड़की उसे पहली नजर में देख कर मर मिटे। किंतु मै जलन के मारे अपस्यु को ही उल्टा सीधा सुना दी।

जानती हो कमाल कि बात, इतना सुनने के बाद भी वो मुस्कुराता रहा और चंद शब्द के अलावा उसने बहुत ज्यादा कोशिश भी नहीं की सफाई देने की। वो मुकुरता रहा और मेरी बचपना को वो मेरा प्यार समझकर भूल गया। और एक मैं थी, मुंह फुलाकर बैठी थी इस उम्मीद में कि वो मुझसे माफी मांगे।

क्या करूं लड़की हूं ना दिल के किसी कोने में ऐसी भावना छिपी ही रहती है। ईर्ष्या जो किसी भी अनचाहे मामले में हो जाए और जान-बूझ कर रूठ जाना ताकि कोई हमे भी मानने आए, और बात यहीं से बिगड़ती चली गई। अपस्यु का पूरा फोकस शायद तुम पर था, इसलिए उसने मेहसूस तो किया मेरी भावनाओ को, लेकिन टाल सिर्फ इस वजह से दिया क्योंकि अभी उसे अपने परिवार की चिंता थी।

इसी क्रम में मेरी जलन और अंधी भावना, ये भी ना देख पाई कि अपस्यु किस के पीछे है। वो अपनी बहन को मानने आया था और मै कुछ और ही समझ बैठी। एक बार फिर उसे गलत समझी और अकेले ही फैसला कर लिया की वो मुझे धोका दे रहा है।

अब ये भी तो प्यार की ही भावना थी। उसे खोने के डर ने मुझे इस कदर पागल किया कि मैंने जिसे प्यार किया उसे है गलत समझ बैठी। लेकिन उसे गलत समझते - समझते कब मेरी सोच ही गलत हो गई मुझे खुद भी पता ना चला।

वो पूरी रात मै नफरत में जली, नफरत ने इतना अंधा किया कि मेरे एक दोस्त ने मेरे बताए कुछ तथ्यों के आधार पर अपस्यु को धोखेबाज साबित कर दिया। हालांकि वो भी गलत नहीं था क्योंकि उसे सारी बातें तो मैंने ही बताई थी और उसने अपनी जिम्मेदारी समझी और मुझे सच से अवगत करवाया। लेकिन मैं ही बेवकूफ थी जो केवल एकतरफा बात सोची, उसे सच माना। शायद अपस्यु से पहले बात करती तब उस दोस्त की बातें मेरे दिमाग में घर नहीं करती और ना ही मैं अपस्यु को ऐसा लड़का समझने कि भूल करती जो मेरा केवल इस्तमाल करना चाह रहा था।

लेकिन क्या ही कर सकते हैं, जब अपनी ही बुद्धि पर ताला लगा हो। अगले दिन उसी जली-बुझी भावना के साथ मै अपस्यु से मिली। मेरे दिल और दिमाग में उसकी धोखेबाज वाली छवि ऐसी छाई, की मेरे अंदर का प्यार कहीं मर सा गया और नफरत ही नफरत में, जो जी में आया कहती चली गई। ऐसा भी नहीं था कि उसे मैंने अकेले में सुनाया था। तुम और आरव भी तो थे वहां। उसके साथ-साथ कैंटीन में ना जाने कितने लोगों ने सुना होगा।

वो तब भी मुस्कुराता ही रहा। उसे अंदाजा था शायद मेरी पिरा और जलन का। वो तो यही मान कर चल रहा था कि सरप्राइज वाले दिन मुझे ना समय दे कर पूरा समय तुम्हारे पास लग गया तो कुछ गलतफहमियां मुझे हुई है। जबकि अभी तो बातें हम दोनों के दिल में ही थी, ना कोई इजहार हुआ था और ना ही कोई इनकार, फिर भी वो मुस्कुराता रहा। भरी महफ़िल की बेइज्जती झेलता रहा।

कमाल की बात पता है क्या है। जब उसने परिवार को पा लिया ना तब बीती सारी बातों को, मेरी सारी गलतियों को नज़रंदाज़ करते, मुझे मनाने भी पहुंचा अपस्यु। मेरे पास बैठा, मुझ से बातें करने की कोशिश भी किया। और मैंने क्या किया उसकी कोशिश पर पहला तमाचा मैंने अपने हाथों से मेरा।

इतनी अंधी हो गई की उसको थप्पड मारा। मैंने अपने अपस्यु पर हाथ उठाया। तुम्हे पता है उसका लेवेल हम लोगों जैसा नहीं है, बिल्कुल भी नहीं। वो तो अपने आप में प्रतिष्ठावान है, जिसकी ना तो किसी के साथ तुलना की जा सकती है और ना ही समानता। उसको थप्पड मारना मतलब उसकी आत्मा पर हाथ उठाना है क्योंकि उसका कैरेक्टर ही इतना ऊंचा है। मैंने उसके गाल पर नहीं बल्कि उसके आत्मसम्मान पर थप्पड मारा था।

और जानती हो कुंजल उसने क्या किया, अपने चारो ओर देखा कि कहीं किसी ने देखा तो नहीं और अपमान का ये घूंट पीकर मुस्कुराता रहा। और मैं पागल, मुझे अब भी एहसास नहीं हुआ की मैं ये क्या कर चुकी थी। काश यहां पर भी रुक जाति तो भी वो इतने समझदार है कि मेरे लिए प्यार भी रहता और मुझे एहसास भी करवा जाते की मैंने क्या गलती किया था।

पर मैं रुकने को तैयार कहां थी। भरी महफिल में उनके चेहरे पर काफी फेकी मैंने। ये मेरा गुस्सा नहीं था, ये मेरा अपस्यु को गलत समझकर उठाया गया कदम भी नहीं था। ये मेरा अहंकार था, बस मैं सही हूं और वो धोखेबाज, और धोखेबाज के साथ कुछ भी किया जा सकता है। बस इसी अहंकार ने मुझे बाजारू बनने पर मजबूर कर दिया।

हां सही सुना कुंजल, बाजारू हरकतें। रील लाइफ में चलने वाले नजारे जिसका सभ्य समाज में दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं वो हरकत मै अपस्यु के साथ कर बैठी। मैंने पूरे कैंटीन के सामने उसके मुंह पर कॉफी से भरा कप उड़ेल दिया। इतनी घटिया हरकत।

और मज़े कि बात जानती हो क्या है, ये मेरा वहीं अपस्यु है जो मुझे दिन रात अपने बालकनी से खड़ा देखा करता था। मैं बेवकूफ, अपनी होशियारी दिखाने के लिए एक दिन जानबुझ कर अपस्यु के साथ बाइक में बैठी थी, पता है क्यों। क्योंकि मुझे लगा ये मुझ पर फिदा है तो मैं इसे अपने झासे में फसा कर अपना काम निकलवा लूंगी।

मै बेवकूफ उसे किस कैटिगरी का आंक रही थी और ये भी एक सबूत है मेरे निचले स्तर के सोच का। मैं कितना घटिया सोच रखती थी। और उस दिन भी हुआ क्या था। मैं उसे रिझाने के लिए बातो का जाल बुन रही थी और उसने सीधा पूछ लिया काम क्या है। वो जान रहा था कि मैं बस नखरे कर रही हूं कि, कोई काम नहीं, लेकिन फिर भी जोड़ डालकर पूछता रहा।

मेरे पापा और मेरे चाचा दोनों बहुत बड़े सरकारी अधिकारी हैं। लेकिन मेरे चचा ने जब होम मिनिस्टर के बेटे का नाम सुना तो उनकी कपकपी निकल गई। उन्हें अपने बच्चों के साथ क्या बुरा सुलूक हुआ, वो जानने की कोशिश भी नहीं किए। बस ये चिंता थी कि होम मिनिस्टर से उलझे, तो वो क्या-क्या कर सकता है और इसी डर कि वजह से उन्होंने यहां तक कह दिया कि कॉलेज बदल लो।

वो अपस्यु ही था जिसे मै झांसा देकर होम मिनिस्टर से उलझाने कि कोशिश कर रही थी। ताकि प्यार में पागल एक अंधा मेरे जाल में फसकर बस उससे उलझ जाए और उसका सारा फोकस फिर अपस्यु पर हो और मैं निकल जाऊं। बात एक लड़की के स्वाभिमान की थी इसलिए अपस्यु को इसमें कोई बुराई नहीं लगी जबकि उसे पता था वो किस से भिड़ने को सोच रहा है।

एक ही दिन में सरा मामला सुलझा भी दिया और मुझ से कभी इस बारे में सवाल तक नहीं किया, "की मैं खुद की जान बचाने के लिए किसी को कैसे फसा सकती हूं।" इतना स्वार्थी कोई कैसे हो सकता है। लेकिन उसका जवाब है ना .. वो मैं हूं। जिसने मेरे आत्मसम्मान की रक्षा की उसके है आत्मसम्मान हनन मैंने कर दिया।

थोड़ी अक्ल तब ठिकाने अाई, जब उसने मुझसे कहा…. "कभी कभी हम गलत जगह दिल लगा लेते है।" वो चाहता तो वो मेरे इस बाजारू हरकत पर अच्छे से जवाब दे देता लेकिन उसने इस गम को भी पी लिया।

जानती हो कुंजल जब अपस्यु ने कहा ना "कभी कभी हम गलत जगह दिल लगा लेते हैं।" तब मै इसका मतलब नहीं समझ पाई। मै अब भी अपने ही अहंकार में थी। लेकिन कोई अपने कर्मा से कब तक भाग पाया है, अपस्यु नहीं तमाचा मरेगा तो वो ऊपरवाला तो तमाचा मरेगा ही। और विश्वास मानो कुंजल, वो जब तमाचा मारता है ना तो गाल पर नहीं बल्कि सीधा रूह पर पड़ती है।

पहला तमाचा वहीं के वहीं पड़ा, जब अपस्यु पर मैंने कॉफी फेकी और वो चुपचाप जा रहा था। वहां वो एक लड़की से मिला। काफी खूबसूरत और कुछ खुले गले के कपड़े भी पहन कर अाई थी। अपस्यु की ना तो नजरें बेईमान और ना ही उसकी नज़रों में खोंट। उसकी आंख से आंख मिला कर अपस्यु काम की बात करता रहा। दूसरा तमाचा भी उसी वक़्त पड़ा जब पता चला कि मशहूर वकील सिन्हा अपस्यु को उसके 1 केस का मेहनताना 40 लाख रुपया देते है।

ना तो सिन्हा के पास कोई केस की कमी है और अपस्यु जैसे फोकस इंसान के लिए काम आने कभी कम नहीं वाले। वो एक महंगी कार क्या अपने दम पर 10 मंहगी कर खरीद सकता था।

अब तो जैसे मेरी रूह सिहर रही थी। वहीं पीछे मुड़ कर मैंने कैंटीन को देखा जहां पर सभी स्टूडेंट हमारी वीडियो बना रहे थे… पहली बार पूरा एहसास हुआ, ये मैंने क्या कर दिया। मेरी रूह सिहर गईं। माफी मांगने की कोशिश में लग गई पर किस मुंह से माफी मांगती। हिम्मत ही टूट गई थी।

पछतावा हो रहा था पर पश्चाताप करना अभी बाकी था। इसलिए मैंने सोच लिया था, आज जब कॉलेज जाऊंगी और अपस्यु से बातें करूंगी तो खुद में संयम रखकर, बिना किसी भाव के ये जानने की कोशिश करूंगी, कि अपस्यु मुझसे कितना नाराज हैं? उससे एक बार बात करने के लिए भले ही उसके पीछे मुझे लगना क्यों ना पड़े, लेकिन बात करना ही है।

मै क्लास में थी और अपस्यु को डरती हुई पूछने लगी "हम कहीं बात कर सकते है क्या?" मुझे लगा नाराज है तो घुरेगा थोड़ा चिल्लाएगा और माना कर देगा बात करने से। लेकिन मै फिर गलत थी। बिना किसी भी किंतु-परन्तु के वो राजी हो गया।

अपस्यु और मै बात करने के लिए कॉलेज के बाहर वाले कैंटीन में गए। मेरी विडम्बना देखो कुंजल जिस कॉलेज के कैंटीन में मैंने अपस्यु को इतना अपमानित किया, मुझे डर था कहीं अपस्यु का गुस्सा फूटा तो मुझे वहां कैसा मेहसूस होगा। वाह री इंसानी फितरत और कमाल की सोच। मुझे माफी मांगनी थी, अपनी भूल का पश्चाताप करना था और दिल में ये ख्याल भी साथ चल रहा था कि कहीं अपस्यु वहां बेईज्जत ना कर दे।

मेरी एकतरफा सोच मुझे एक बार फिर झटका देने वाली थी। उस कैंटीन के मुलाकात के बाद तो जैसे लगा की मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। अपस्यु के दिल में मेरे लिए ना तो नफरत थी और ना ही प्यार। कोई भावना ही नहीं बची उसके पास मेरे लिए जो वो मुझे नफरत में या प्यार में याद कर सके। मैं बस उसकी एक क्लासमेट बन कर रह गई। बात करती हूं तो बात कर लेता है और मज़ाक करती हूं तो हंस लेता है। उसके बाद वो अपने रास्ते चल देता है।

उस दिन में बाद जब भी कॉलेज में वो मुझे दिखा, हमेशा हंसते हुए ही दिखा। मैं उसके दिल, दिमाग और जिंदगी से गायब हो चुकी थी। यूं तो वो हंस के ही बात करता है मुझसे, और ना ही कभी भी मुझे घुमा-फिरा कर कभी तना मारा । बस उसके बात करने का ढंग ही बदल गया। पहले जब बात करता तो लगता मैं क्लोज हूं उसके अब सिर्फ अनजान बनकर रह गई हूं।

पिछले 13-14 दिनों में मैं जिस दौड़ से गुजरी हूं शायद वहीं मेरी सजा है। अपने प्यार को अपने नजरों के सामने देखना और उसकी नज़रों में एक मामूली लड़की बनकर रह जाना, जैस कॉलेज की अन्य लड़कियां जिससे वो वैसे ही बात करता है जैसा कि मुझसे।

अभी जो तुम मेरा खिला रूप देख रही थी और अपस्यु के साथ जोड़-जबरदस्ती करना, वो मात्र एक छलावा था। 3-4 दिन पहले भी मैंने ऐसा किया था। अपने रूप से उसे मोहने की कोशिश की थी, हां कुछ पल के लिए अपस्यु भी फिसला था, लेकिन वो प्यार नहीं बल्कि उकसाती भावना की एक वासना थी जिसके मद में वो थोड़ा बहका और मै तो गई ही थी उसी इरादे से।

आज भी मै उसे उकसा ही रही थी। मामला ये नहीं की शारीरिक सुख भोग कर मै आंतरिक प्यार की उम्मीद रख रही हूं। या तो वो मेरे छलावे को समझ कर मुझे बाजारू ही समझ ले और एक थप्पड मार कर निकाल जाए। नहीं तो मुझसे कुछ सूख ही भोग ले, मेरे द्वारा किए गए उसके आत्मसम्मान के ठेस पहुंचने की एक छोटी सी कीमत… फिर मै आराम से कहीं दूर जा सकती हूं । फिर ना तो कोई सिकवा रहेगा और ना ही कोई मलाल।

gum ki baadal aab chhaye hain... ye kya mousam aayi aankhon ko barshat bhaye hain...
Ohh Sach me bura lag raha hai tumhare liye... Itni dard sach me bohot hai pyar ki tadpan me... phir bhi dil ka rafta rafta bikharna lazmi hai... kuchh kand tumne aise bhi kiye hain waqt ka tamacha lagna hi tha...

wese writer sahab ishq ki har pahelu , har eheshas ko khub achhe se explain kar lete ho.... Romance king ho , :D

dekhte hain Apasyu sahab ka kya patikriya hota hai.... :waiting:
 

Rahul

Kingkong
60,514
70,690
354
badhiya update nainu
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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304
"मैं भी कुछ नहीं भूल पा रहा रे। इस देश का टॉप वकील अपने बेटे और पत्नी को इंसाफ नहीं दिला सका.. कुछ नहीं भुला मै। नहीं भुला की कैसे उस आश्रम को आग लगा दिया गया… 120 बच्चे जिंदा जला दिए गए… मेरी पत्नी जलकर मर गई… तुम्हारी मां जलकर मर गई… नन्हा सा था तो मेरा बेटा.. कितनी प्यारी मुस्कान थी… तोतली बोली उसके कानों में अब भी गूंजती है मेरे … सुन.. तू सुन ना।"… सिन्हा जी भावनाओ में बहते चले गए…
Kuch gahri raaz khulne ko the ki is apsyu ke bachhe ne bich mein tang aada diya... :mad2:
bada Gark ho iska...
इधर आरव जो ऐमी की फ्रेंड के साथ नाच रहा था… "जे छोड़ा मुझे छोड़ कर यहां नाच रहा है, इसे तो मै अभी बताता हूं।" अपस्यु, आरव की कुछ फोटो चुपके से खींचने लगा, और साथ ही साथ लावणी के मोबाइल पर भी ट्रांसफर करता जा रहा था"
Yeh toh ghar ka bhedi nikla... :sigh:
सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठ कर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ ने आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..
:lol: :lol: Kajal 1.0: :D
Khair.... atit mein bahot se raaz chupe huye hain.. bas jhalkiya hi dikh rahin hain.
Let's see what happens next
Brilliant update... Great going :applause: :applause:
 

kamdev99008

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बस इतना ही कहूँगा अभी इस कहानी के बारे में...................

लम्हों ने खाता की थी, सदियों ने सज़ा पायी

नंदिनी-कुंजल

अपस्यु-आरव
सिन्हा-एमी
सांची-लावणी

या इन दोनों लड़कियों के कानखजूरे बाप

सबको छोटी-छोटी गलतियों के बड़े परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं..........या भुगतने पड़ेंगे
 

Aakash.

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आज भी मै उसे उकसा ही रही थी। मामला ये नहीं की शारीरिक सुख भोग कर मै आंतरिक प्यार की उम्मीद रख रही हूं। या तो वो मेरे छलावे को समझ कर मुझे बाजारू ही समझ ले और एक थप्पड मार कर निकाल जाए। नहीं तो मुझसे कुछ सूख ही भोग ले, मेरे द्वारा किए गए उसके आत्मसम्मान के ठेस पहुंचने की एक छोटी सी कीमत… फिर मै आराम से कहीं दूर जा सकती हूं । फिर ना तो कोई सिकवा रहेगा और ना ही कोई मलाल।

कुंजल बड़े ही ध्यान से साची को सुन रही थी। वो उसके बात कि गहराई और उसके अंदर छिपी पिरा से जुड़ती चली जा रही थी। साची अपनी पूरी कहानी, अपनी सम्पूर्ण मनोदशा बयां करके खामोश किसी पुतले कि तरह बैठी हुई थी। कुंजल गहरी श्वास लेती उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर किसी दोस्त की तरह उसे सहारा दी…..

"हंसते चेहरे के पीछे कितना गम होता है ये तो अक्सर सुना ही था। लेकिन 2 इंसान जो साथ रहते अच्छे लगते हैं उनके बीच इतना कुछ अंदर ही अंदर चल रहा होगा ये तो सोच के काफी परे है।"

साची:- कोई बात नहीं। इसमें गलती अपस्यु की तो है ही नहीं। कसूरवार तो मै हूं उसने तो अपना रास्ता चुन लिया अब मुझे यहां से अपना रास्ता तय करना है।

कुंजल:- बस रे बाबा बस। आज से तुम्हारे साथ मै भी चल रही हूं। अब जरा चिल हो जाओ और हम चलते हैं शॉपिंग पर।

साची:- मना करूंगी तो मानोगी नहीं, इसलिए चलते हैं। बस एक मिनट।

साची वाशरूम गई वहां से मुंह धो कर बाहर आयी। चेहरे पर पहले जैसी चमक और मुस्कुराहट वापस अा चुकी थी और इसी दिखावे के साथ वह वापस अपने घर लौट आई। कुछ ही देर में दोनों तैयार होकर शॉपिंग के लिए निकल गए।

अपस्यु सबको विदा करने के बाद अाकर मां के गोद में सुकून से लेटा था और नंदनी उसके बालों में हाथ फेर रही थी…. "सोनू इनकी दोनों बच्चियां कितनी प्यारी है ना।"..

अपस्यु:- साची और लावणी ना मां। दोनों समझदार और व्यवाहरिक भी है।

नंदनी:- ओह हो, कॉफी मुंह पर फेक दी तेरे, फिर भी व्यावाहरिक। अच्छा है बेटा तेरे अभी से लक्षण मुझे दिख रहे है।

अपस्यु:- हाहाहाहा… मां ये दाएं बाएं से क्यों घूम कर अा रही हो, दिल में क्या है वो सीधा पूछो ना।

नंदनी:- तुम्हारा सिर दर्द कभी नहीं करता क्या अपस्यु?

अपस्यु:- पहले करता था, जब से आप अाई है और आप का हाथ मेरे सिर पर लगा है अंदर के सारे दर्द अब सुकून और नींद में बदल गए हैं।

नंदनी:- मज़ाक मतकर। ये जो तू हर छोटी-छोटी चीज ऑब्जर्व करते रहता है ना, इसे घर और रिश्तों के मामलों में थोड़ा कम कर दें। अपनी जिम्मेदारियां घटा और अपने उम्र में रहकर जीना सीख।

अपस्यु:- हम्म ! ठीक है मां अब से ऐसा ही करूंगा।

नंदनी:- मैं भी तेरी मां हूं बेटा, मैं भी सब समझ रही हूं, तू ये बिल्कुल भी नहीं करेगा बस मेरा दिल बहला रहा है।

अपस्यु, उठ कर बैठते हुए…. "आप को कौन सी चिंता खाए जा रही है मां, आप खुलकर बोलो।"

नंदनी:- मैं बस इतना समझाना चाह रही हूं कि, हर कोई ना तो तेरी तरह सोचता है और ना ही तेरी तरह इतना परिपक्व (मैच्योर) होता है। खासकर तुमलोग की उम्र में तो बिल्कुल भी नहीं। बाकी तू बहुत समझदार है इस से ज्यादा मै नहीं कहूंगी।

अपस्यु:- ओके माय डियर मम्मा… अभी से ही मै इस बात का खास ख्याल रखूंगा। और कुछ..

नंदनी:- अभी के लिए तो कुछ नहीं क्योंकि मेरी बोलती तुमने बंद कर दी है, लेकिन बेटा मेरी नजर अब तुम पर ही है।

दिन में करीब 2 बज रहे थे। मां चिल्ड्रंस केयर जा चुकी थी, साची और कुंजल शॉपिंग के लिए निकल चुकी थी, भाई आरव लावणी के साथ लगे थे और अपस्यु दोनों भाई के लिए नया सूट तैयार कर रहा था। कुछ ही देर में आरव भी वहां पहुंच गया… "क्या कर रहा है खड़ूस"..

अपस्यु:- मीटिंग शाम 7 बजे.. सिन्हा जी के ऑफिस में।
आरव:- मुद्दा..
अपस्यु:- फ़िरदौस का केस लगता है, इशारों में बोल गए सिन्हा जी, तैयारी पूरी होनी चाहिए।

आरव:- डेंजर लेवल..
अपस्यु:- पता नहीं…

आरव:- मुश्किल घड़ी। बिना फोकस्ड टारगेट के ही हाईलाइट भी हो गए और खतरे का भी अंदाजा नहीं। क्या सोच रहे हो?
अपस्यु:- निजी दुश्मनी ही होगा अभी तो, लेकिन एक बात खटक रही है।
आरव :- क्या?
अपस्यु:- चल चलते हैं वहीं बात पता करने, जरा कुछ लोगों से मिल लिया जाए।

आरव:- फंकी पहनकर निकलते हैं, बिल्कुल कूल डूड की तरह….

अपस्यु:- देखा सच कहा था ना, साला ये जुड़वा होने के अपने ही खामियाजे हैं। फिर चुराई ना मेरी सोच।
आरव:- ईहाहाहा .. अपनी सोच फिर पहले बताने का था ना…

दोनों भाई मस्त अपनी सपोर्ट कार में सवार सीधा पहुंचे एक सरकारी हॉस्पिटल। … "अबे घोंचू ये वही हॉस्पिटल है जहां से तुझे भगाया था। साला वो डॉक्टर देखेगा ना तो हम दोनों को 4 जूते मारेगा।"

"अबे तुझे ये चिंता है जरा ये तो सोच वो मुझे खड़ा देखेगा तो कहीं हार्ट अटैक ना अा जाए।"
"हां ये भी है, लेकिन हम यहां क्यों आए है अपस्यु।"
" किसी सरकारी आदमी को मैंने गोली मारी थी, अब उसे छुट्टी और सरकार से मुआवजा चाहिए तो यहीं आया होगा ना"…

आरव:- ओए पागल क्या हुआ… किस सोच में डूब गया तू।
अपस्यु:- तू अकेला रो रहा था यहां, मेरे कानो में वो चीख अब भी गूंज रही है।

आरव:- छोड़ ना यार, क्या तू मुझे रोतलू साबित करने में लगा है। वैसे सुन लावणी को ये बात बताना नहीं।
अपस्यु:- ठीक है नहीं बताता.. चल जरा चल कर पता लगाते हैं, वो है कहां।

दोनों साथ साथ चल रहे थे, हॉस्पिटल की कहानी याद आते ही आरव भी उसी विषय को आगे बढ़ाता हुआ कहने कहा…. "यार उस वक़्त ना मै पूरी तरह से टूट गया था। तूने तो डरा हिं दिया था मुझे।"

अपस्यु:- पता नहीं मै इतना लापरवाह उस दिन कैसे हो गया। सॉरी मेरे भाई।
आरव:- मुझे पता है तुझे क्या हुआ था… रुक रुक ये वही वार्ड बॉय है इस से पता करते है। … "क्या हाल है हीरो" …

वार्ड बॉय:- अरे सर आप, क्या हुआ फिर यहां कोई एडमिट है।
आरव:- वो छोड़ मुझे एक मरीज की जानकारी चाहिए।

वार्ड बॉय:- मेरे दिमाग की फीडिंग के लिए चार्ज लगेगा फ्री सर्विस के लिए काउंटर पर जाइए।
अपस्यु, 500 का नोट निकलते हुए…. "हाथ में गोली लगा"…

वार्ड बॉय, अपस्यु को बीच में ही रोकते…. "थानेदार है। दूसरी मंजिल सी ब्लॉक रूम नंबर 4, सामने के सीढ़ी से बाएं…

दोनों भाई फिर साथ साथ ऊपर चलते… "अराव, तू कुछ कह रहा था।"
आरव:- मै तो बस कह रहा था तू जब मंत्री जी के घर से निकला तो साची के ख्यालों में डूबा था।

अपस्यु:- हम्मम !!

आरव:- वैसे जानता है तेरी हालत देख कर मै तो टूट ही गया था। मेरा दिमाग काम करना बंद कर चुका था। एक साची ही थी जिसके कंधे पर सर रख कर मै रोया। उस वक़्त मेरे लिए तो वहीं मां थी।

अपस्यु:- हम्मम !!
आरव:- एक बात जानता है..
अपस्यु:- क्या ?
आरव:- तू मेरा बाप और वो मेरी मां, तुम दोनों की जोड़ी ऊपरवाले ने ही बनाकर भेजी है।
अपस्यु:- हम्मम !!

आरव, अपस्यु के ओर मुड़ते हुए… "तुझे हुआ क्या है। ना तो साची का नाम सुनकर तेरी मुस्कान अाई और ना ही कोई प्रतिक्रिया। तुम दोनों का फिर झगड़ा हुआ क्या सुबह।

अपस्यु, वार्ड के अंदर घुसते ही… "कैसे हैं सर जी, पहचाने की नहीं। वैसे अंगूर खाते आप बहुत अच्छे दिख रहे है।"

थानेदार वहां मौजूद अपने बेटे को बाहर इंतजार करने के लिए कहा और उसके जाते ही वो मिन्नतें करता कहने लगा…. "मुझसे उम्र में बहुत छोटे होगे फिर भी कहो तो पाऊं परता हूं, प्लीज उस दिन की बात किसी को बताना मत।"

आरव:- मंगलवार की तो हेडलाइन थे आप सर, द सपरकॉप संजय शर्मा।

थानेदार का ध्यान आरव पर गया…. "ये तुम्हारा भाई है।"

अपस्यु:- देखा आरव इसे कहते है पुलिसवालों कि पारखी नजर। घबराए नहीं सर उस दिन क्या हुआ मुझे नहीं पता बस कुछ सवाल है, उसके जवाब ढूंढते आप के पास आया हूं।

थानेदार:- पूछो

अपस्यु:- उस दिन 5 लड़कों की और भी पिटाई हुई थी। जिनकी अजीब ही हालत हो गई थी।

थानेदार:- जानता हूं, उनमें से 2 लड़के जैश और रिकी भी था। उसकी ही बात तो नहीं कर रहे।

अपस्यु:- बिल्कुल उसी के विषय में बात कर रहा था।

थानेदार:- महेश राठी और पंकज राठी का बेटे जैश और रिकी। बड़े बाप कि बिगड़ी हुई औलादें। न्यूज़ बाहर नहीं अाई लेकिन मारने वाला भी कोई उनके है लेवल का था… एक मिनट वो जो 2 लोग और लिस्ट में है वो क्या यही दोनों थे?

अपस्यु:- बहुत खूब, बहुत ही इंटेलिजेंस ऑफिसर हो आप। वैसे छोटी मुंह बड़ी बात लेकिन इन पैसे वालों के औलादों को बिगाड़ने में पुलिसवालों का भी बहुत बड़ा हाथ होता है।

थानेदार:- क्यों ताने मार रहे हो तुम। जो सोहरत एक ईमानदारी के काम में है ना उसका मुकाबला ये घुस के पैसे कभी नहीं कर सकता, ये बात मुझे समझ में आ गई है। वैसे हम भी क्या करे, सपने तो लेकर हम सिंघम जैसे ही आते है लेकिन बहाली के वक़्त लिया गया घुस आधा सपना वहीं हमारे पिछवाड़े में घुसेड़ देता है और बचा खुचा हमारे साहब लोग। फिर तो ऐसे बेशर्म बन जाते हैं कि मुर्दे का भी मांस नोच खाएं। पर जहां अंधेरा है वहां उजाला भी है.. यदि हम जैसे करप्ट लोग है तो बहुत से ईमानदार भी है, तभी तो सिस्टम बलैंस है।

आरव:- चिल्लर नहीं है वरना इस ज्ञान के लिए अभी लुटा देता। हमारे भी काम का कुछ बताओगे।

थानेदार:- जिन्हे तुमने मारा वो दोनों कजिन है। दोनों के बाप सगे भाई है और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स है। यहीं एनसीआर में उनकी कई फैक्ट्री है और बाहर भी काम फैला है। पॉलिटिकल कनेक्शन अच्छे हैं और हर पार्टी को फंडिंग भी अच्छा करता है।

आरव:- और कुछ…

थानेदार:- और क्या, इन बड़े लोगों की उपरी डीटेल सबको पता होती है, अंदर की डिटेल शायद ही कोई बताए। उसके लिए जुगाड ढूंढना पड़ता है…

अपस्यु और आरव दोनों एक साथ … "हूं हूं.. और वो जुगाड क्या है सर"

3 घंटे की मेहनत के बाद दोनों भाइयों को मीटिंग का मैटर और खतरे का अंदाजा दोनों पता चल चुका था। जैसा कि दोनों ने पहले तय किया था, दोनों ठीक वैसे ही फंकी पहनकर पहुंचे। बिल्कुल स्टाइलिश और कूल।

शाम के 7 बजे दोनों भाई सिन्हा जी के ऑफिस के बाहर पहुंच चुके थे। एक बॉडी बिल्डर गनमैन उनके पास पहुंचा…. "इसकी बॉडी तो पक्का सलमान जैसी है"…. "इसका एटिट्यूड भी तो बॉडीगार्ड जैसा ही है।"… दोनों तंज कसते हुए हसने लगे। उस बॉडीगार्ड ने दोनों को एक बार घुरा और चेक करके अंदर भेज दिया।

दोनों स्टाफ एरिया से होते हुए कॉन्फ्रेंस हॉल पहुंचे। जैसे ही अंदर घुसे, धीमी रौशनी में सामने सिन्हा जी बैठे हुए थे। अपस्यु और अराव को देखकर वो लड़खड़ाते हुए खड़े हुए…. "आओ, मेरे पास तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था मै।"…

"आप ने आज फिर पूरा ड्रिंक किया है सर।" … अपस्यु उनके करीब जाते हुए पूछा।
"जब उसकी याद आती है तो कभी कभी खुद को संभालना मुश्किल हो जाता है।"…. सिन्हा जी दोनों भाई को गौर से देखते हुए बोले।

आरव:- मतलब हमे मीटिंग का झांसा दिया आपने।

सिन्हा:- मीटिंग की उनकी मां की चू… सी सी सी.. सॉरी… मीटिंग क्या होता है। मजाल है मेरे बच्चों पर कोई उंगली उठा ले।

अपस्यु:- मतलब आप मैटर पहले ही सल्टा चुके है। और आज दिन भर हम दोनों भाई बिना मतलब उसकी छान बीन में लगे रहे।

सिन्हा:- कभी कभी सरप्राइज भी जरूरी होता है। जब उन राठी ब्रदर्स को पता चला, मैंने तुम्हारा बेल करवाया है तो पहुंचे थे मेरे पास। साले बहुत उछल रहे थे दोनों भाई। दोनों को मैंने सीधा कह दिया, "वो दोनो मेरे बेटे है, मेरे बेटे। उसे हाथ लगाना मतलब मुझे हाथ लगाना"… सिन्हा जी बोलते बोलते लड़खड़ा गए.. अपस्यु ने संभाला…

"जनता है आज मेरा बेटा होता ना तो वो तेरे (अपस्यु) … ना तू नहीं.. इसके जैसा बिल्कुल होता।"… सिन्हा अपनी भावनाओं में बहते हुए कहने लगा…

अपस्यु:- सर क्यों पुराने जख्म कुरेद रहे है। चलो घर चलो… आरव ऐमी को कॉल लगाकर यहां बुलाओ…

"हाहाहा… याद है जब तू मुझे पहली बार मिला था… "मुकुराइए अंकल यहां आकर मायूस क्यों होते है।"… सिन्हा जी ने अपस्यु को बड़े ध्यान से देखते हुए बोला…

अपस्यु:- हां मुझे अच्छे से याद है। कुछ नहीं भुला हूं मै।

"मैं भी कुछ नहीं भूल पा रहा रे। इस देश का टॉप वकील अपने बेटे और पत्नी को इंसाफ नहीं दिला सका.. कुछ नहीं भुला मै। नहीं भुला की कैसे उस आश्रम को आग लगा दिया गया… 120 बच्चे जिंदा जला दिए गए… मेरी पत्नी जलकर मर गई… तुम्हारी मां जलकर मर गई… नन्हा सा था तो मेरा बेटा.. कितनी प्यारी मुस्कान थी… तोतली बोली उसके कानों में अब भी गूंजती है मेरे … सुन.. तू सुन ना।"… सिन्हा जी भावनाओ में बहते चले गए…
Kunjal will also support Saachi, :hug: let's see how long Apasyu will be able to escape from this trap of love. :derisive: Turn the pain inside Saachi into happiness and you did not say what Apasyu has in mind about Saachi. :dontknow: Mom too has understood everything indirectly, perhaps Mom accepts this. Well Aarav is good and true to heart.:love3:
Money does all the work nowadays, only money should be there. Sanjay is very scared.:lol1: The past is very dangerous and painful, I wanted to know in more detail, it is so understandable that whatever happened was very bad. :angryno:Sinha ji seems like an old lover to me.
आरव:- चिल्लर नहीं है वरना इस ज्ञान के लिए अभी लुटा देता। हमारे भी काम का कुछ बताओगे।
:lol1:

As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story.

Thank You...

???
 

rgcrazyboy

:dazed:
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sare mil kar mu jai ghar kar khade ho lage raho aapas main he :bat:

ab to sab ka number aaye ga ek ek kar ke :evillaugh:
 
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