Update:-39 (A)
कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद अपस्यु अपनी मां में पास आया और उसकी गोद में सर रखकर आखें मूंद लिया। नंदनी उसके बालों में हाथ फेरती हुई सभी लोगों से बात करने लगी। चर्चाओं का विषय आगे बढ़ रहा था इसी क्रम में नंदनी अपस्यु को जगाती हुई पूछने लगी, "क्या ये सच है?"
अपस्यु:- क्या मां मैं समझा नहीं।
अनुपमा:- तुमने हमारी एक भी बात नहीं सुनी क्या?
अपस्यु :- माफ़ कीजियेगा आंटी, मेरी आंख लग गई थी।
राजीव:- सुनकर अनजान बन रहा है। इसने केवल कहानी गढ़ी होगी। साची ने मुझसे कहा था और मैंने आफिस में यह बात उठाई थी। इसलिए सर ने अपने लड़के को उस कॉलेज से निकालकर कहीं और एडमिशन करवा दिया।
सुलेखा:- बिल्कुल सही कहे है जी, ये तो वही बात हो गई करे कोई और, और श्रेय कोई और लूट लेे। वैसे भी वो कहां इतने बड़े आदमी, इन जैसों की सुनेगे।
नंदनी:- हां शायद आप ने सही कहा।
अनुपमा:-:सब आपस में ही बोले जा रहे हैं कोई उसकी भी सुनेगा। बेटा हमे ये जानना है कि तुमने उस होम मिनिस्टर के बेटे को कैसे उस कॉलेज से और हमारे बच्चियों से दूर किया?
अपस्यु :- जाने भी दो ना आंटी, अंकल को अगर लगता है कि उन्होंने अपने ऑफिस में बात करके इस मामले को सुलझा दिया, तो ऐसा ही सही।
राजीव:- नहीं क्या मतलब है तुम्हारा, तुमने ये मामला निपटाया हैं। जानते भी हो वो कौन है। सेंट्रल होम मिनिस्टर। उनका रूतवा, उनकी पॉवर, और पूरे देश पर उनका कितना स्ट्रोंग होल्ड है तुम्हे पता भी है। गली के नेता नहीं है वो समझे।
अपस्यु :-:हां ठीक है ना अंकल मैं कहां कुछ बोल रहा हूं।
सुलेखा:- देखा दीदी कितना चालक बन रहा है ये। अभी इसने बोला था इनको (राजीव को) ताने मार कर, "इन्हे ऐसा लगता है तो यही सही।" कैसे पलटी मार गया अभी। बदतमीज है ये भी।
नंदनी:- अपस्यु चल मुझे बता क्या है पूरा मामला और एक भी शब्द झूट नहीं।
फिर से राजीव कुछ बोलना चाह रहा था इसपर अनुपमा उसे रोकती हुई कहने लगी…. "आप ही आप बोलते रहेंगे देवर जी, तो कैसे बात समझ में आएगी। उसे भी थोड़ा सुनते है। तुम बोलो बेटा।
अपस्यु :- कुछ नहीं आंटी, बस मैंने होम मिनिस्टर सर से एक मुलाकात किया। उन्हें पूरा मामला बताया। बहुत ही सरल और अच्छे इंसान है, उन्होंने भी मेरी बात को सुना और आश्वासन दिया कि अब दोबारा कोई समस्या नहीं होगी। और उन्होंने जो बोला वो किया।
राजीव:- झूट बोल रहा है ये। मै मान ही नहीं सकता।
सुलेखा:- इसे तो वहां के गेट आगे खड़ा ना होने दे, और कहता है मिलकर आया।
राजीव:- अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। बोलो इससे अपनी बात साबित करे।
अपस्यु को हंसी अा गई इस बात पर और वो हंसते हुए कहने लगा…. "जी अंकल मैंने मां लिया, आप सही और मै गलत। यहां कोई अदालत चल रहा है क्या? अब मैं उनसे एक बार मिला हूं और मिलकर ये मामला निपटाया। वो कोई आम इंसान तो है नहीं की अभी के अभी आप को लेकर पहुंच जाऊं या फिर उन्हें कॉल ही लगा कर सच्चाई सामने रख दूं।
नंदनी जो अपने ही घर में शुरू से बेइज्जाती की घूंट पर घूंट पीए जा रही थी, उसको राजीव और सुलेखा का ऐसा रवाय्या बहुत खला। उन्होंने अपस्यु को गुस्से से देखती हुई कहने लगी…. "जब तुम कहते हो कि तुमने ये सब किया है तो फिर साबित करने में क्या परेशानी है?"
राजीव चुटकी लेते हुए…. रहने दीजिए बहन जी ये आज कल के लड़कों की यही समस्या है काम काम और डिंगे ज़्यादा।
अपस्यु:- ठीक है मुझे साबित करना है ना अभी हो जाएगा। राजीव अंकल उन्हीं के ऑफिस में है ना। तो उनसे कहिए कॉल लगाए गृह मंत्री आवास के किसी भी कर्मचारी या अधिकारी से जिनसे इनकी बात होती होगी। इनसे कहिए फोन स्पीकर पर डालकर पूछने… "कुछ दिन पहले कोई लड़का गृह मंत्री आवास में अाकर, होम मिनिस्टर के बेटे को उसी के सामने थप्पड भी लगाया था क्या… कहिए पूछने। लेकिन अभी मै एक बात बता देता हूं, वो होम मिनिस्टर है। और उन्हें यदि पता चला कि उनके बेटे के मार खाने की बात मैंने बाहर बताई है, तो वो मेरी इंक्वायरी करेंगे और मैं राजीव अंकल का नाम बोल दूंगा कि "इन्हे ही यकीन नहीं था और इनको ही कन्फर्मेशन चाहिए था, इसलिए मजबूरन मुझे ये सब बताना पड़ा।"
अनुपमा:- देवर जी अपस्यु कह रहा है मारकर आया है वो आप की बेटी और मेरी बेटी को परेशान करने वाले लड़के को, वो भी उसके बाप के सामने… और आप दोनों मियां बीवी को ये तक यकीन नहीं की वो होम मिनिस्टर से मिला भी है। अब आप की बारी है.. मैं भी आप का कलेजा देख लेती हूं कि आप ये बात उनके घर से पता लगा सकते है या नहीं।
राजीव पूरे विश्वास के साथ अपना फोन निकलते हुए अपस्यु को झूठा कहा और फोन स्पीकर पर डाल कर उसने कॉल लगा दिया। नाम था शुक्ला जी (पी ए)…
"कैसे है मिश्रा जी, बहुत दिनों के बाद याद किए"
"कुछ नहीं शुक्ला जी, मुझे कुछ जानकारी चाहिए थी"
"कैसी जानकारी मिश्रा जी, पूछिए ना। हम तो हमेशा है आप की सेवा में।"
"शुक्ला जी अभी कुछ दिन पहले, वहां सर के निवास पर कोई कांड हुए था क्या?"
"कैसी बात आप कर रहे है मिश्रा जी। सेंट्रल होम मिनिस्टर के दरवाजे तक कोई कांड करने वाला नहीं पहुंच सकता आप तो घर के अंदर के कांड के बारे में पूछ रहे है। आज दिन में ही चढ़ा लिए है क्या?"
राजीव अपस्यु के ओर देखते, जैसे विजई मुस्कान दे रहा हो…. "अरे ऐसी कोई बात नहीं है शुक्ला जी बस ऐसे ही पूछ रहा था। उड़ती-उड़ती खबर थी कि कोई 22-23 साल का लड़का सर के बेटे को उन्हीं के सामने थप्पड मार कर गया है।"
"धीरे बोलिए मिश्रा जी, कहीं किसी ने सुन लिया ना तो सर हम दोनों की नौकरी खा जाएंगे। इस बात को यहीं खत्म कीजिए। दोबारा चर्चा भी नहीं कीजिएगा।"
राजीव की शक्ल देखने लायक थी। खुद की बे इज्जति करवाना किसे कहते हैं उसका प्रत्यक्ष उदहारण सामने था। नंदनी और अनुपमा मंद-मंद मुस्कुरा रही थी और उन्हें जैसे गर्व मेहसूस हो रहा हो… "साबाश बेटा क्या काम किया है।" इधर राजीव और सुलेखा अपना मुंह छिपा रहे थे। राजीव ने तुरंत लावणी और साची को आवाज़ लगाया और बड़े ही प्यार से नंदनी से जाने की इजाज़त भी मांगी।
लावणी तो दौड़ कर चली आई लेकिन साची अब भी कुंजल के साथ शायद बातें कर रही थी। अनुपमा ने राजीव से कहा रहने दो वो अा जाएगी और सब वहां से चलने लगे। जाते-जाते अनुपमा, अपस्यु के बालों में हाथ फेरती उसे दिल से धन्यवाद कहीं और अपने घर लौट आई।
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यूं तो बुरे हम भी नहीं, बस वक़्त बुरा हुआ कुछ इस कदर
अब तो गर रोते भी है तो, उसमें भी ज़हर नजर आता है ।
कुंजल के बढ़ते कदम रुक गए वो पलट कर वापस आयी और साची के पास बैठ गई। थोड़ी देर दोनों के बीच खामोशी रही फिर साची ने बोलना शुरू किया…. "लगता है मुझ से मेरी खुश नाराज हो गई है या फिर मैं ही दिल बहलाने के लिए उसे नाराज समझ रही हूं। क्योंकि अगर कोई नाराज हो तो मनाया भी का सकता है लेकिन मुझ से तो मेरी खुशी ही दूर हो गई है।"
कुंजल:- इतनी मायूस नहीं होते साची वक़्त हर मरहम की दवा है। समय के साथ सब ठीक हो जाता है।
साची:- वक़्त !! हाहाहाहाहा … हर बीते वक़्त के साथ तो मैं उसके लिए कोई आम सी लड़की होती जा रही हूं। एक अनजान जिसके बारे में ना सोचते हैं ना बात करते है। सड़क पर इधर से उधर करते जैसे कई इंसान दिख जाते है जिनके लिए क्या फीलिंग हो।
कुंजल:- क्या हुआ है तुम्हे साची। अभी कुछ देर पहले तो कितनी खिली सी थी बस कुछ ही पल में इतनी डिप्रेस कैसे हो सकती हो।
साची:- उसकी हर अदा निराली है। पास होकर भी मेरे पास नहीं। बात भी करता है और दिल भी नहीं दुखाता, लेकिन फिर भी पिरा दे जाता है। वो मुझ से ना ही नफरत करता है और ना ही प्यार। कोई तो भावना दिखाता। नफरत करता तो नफरत को प्यार में बदलने कि कोशिश करती। प्यार करता तो प्यार की बरिशें ऐसी करती की फिर कोई गिला शिकवा न होता। कुछ तो भावना होती उसकी मेरे लिए…
कुंजल:- साची प्लीज तुम रोना बंद करो और पूरी बात बताओ।
साची, अपने आशु पोछती… "सॉरी कुंजल, मैं शायद भावनाओ में बह गई थी। चलती हूं, सब बाहर इंतजार कर रहे होंगे…
कुंजल अपनी आखें दिखाती….. बैठी रहो चुपचाप। अब आराम से अपनी पूरी बात कहो। कभी-कभी दिल के दर्द को सुना देना चाहिए, अच्छा लगेगा। मुझे लगता नहीं तुम्हारी कोई अच्छी दोस्त यहां है इसलिए तुम्हारी हालत ऐसी है। अब बताओ भी…
साची कुंजल की बात पर अपनी चुप्पी साधे रही… वो बात तो करना चाहती थी लेकिन हाल-ए-दिल साझा करने का मन नहीं था। बहुत पूछने के बाद भी जब साची चुप ही रही। कुंजल को उसकी दशा पर बहुत ही तरस आने लगा। वजह भले अलग हो, लेकिन जिस तरह का तनाव और अकेलापन कभी कुंजल ने झेला था उसे वो साची में देख रही थी।
वो उस मनोदशा को भांप रही थी जिससे कभी कुंजल कभी गुजर चुकी थी। इसलिए कुंजल ने अपनी कहानी उसे बताना शुरू किया। पारिवारिक आंतरिक मामला क्या था वो तो नहीं बताई लेकिन उसके इस तनाव ने किस मोड़ पर उसे लाकर खड़ा कर दिया सब बयां कर गई। साची बड़े ध्यान से कुंजल को सुन रही थी और जैसे-जैसे उसके बारे में पता चलता जा रहा था वो हैरानी से बस कुंजल को ही देखती रही….
पूरी बात सुनने के बाद साची को भी अपना वर्तमान कुंजल के अतीत जैसा लगने लगा। उसने भी अपनी चुप्पी तोड़ी और अपना हाल-ए-दिल बयान करना शुरू किया….
किस्सा मै क्या बताऊं तुम्हे हाल-ए-दिल का
अपने ही नजरिए ने मुझे अपने नजरों में गिरा दिया।
कहां से शुरू करूं पता नहीं, लेकिन जो भी मेरे साथ हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है। मै इसी योग्य हूं। कुछ दिन पहले की ही तो बात है.. मेरे अरमानों के पंख लगने शुरू हुए थे और वो खुले आसमानों में उड़ने को भी तैयार थे।
यह वो दिन था जब मुझे अपस्यु सरप्राइज देने वाला था। इससे पहले हम दोनों यहीं नीचे हॉल में मिला करते थे। कई हसीन लम्हे और कई सारी प्यारी बातें थी। शायद अपस्यु मेरे मन की भावना को जानता था, उसे मेरे दिल का हाल भी पता था। वो जनता था मै उससे पहल कि उम्मीद लगाए बैठी हूं और मेरी भावनाओ को ध्यान में रखकर उसने रात में संदेश भेजा था.. "कल तुम्हारे लिए सरप्राइज है।"
रात आखों में ही बीती, ये शायद मेरी पहली भूल थी क्योंकि ठीक से सोती तो शायद मेरी बुद्धि भी ठीक से काम करती लेकिन दिल के हाथों मजबुर और आने वाले दिन के सरप्राइज को मै अपने दिमाग में संजोने लगी। वो रात बहुत प्यारी थी और अरमान अपने पंख लगाए उड़ रहे थे। मैं अकेले में खुद से ही बात कर रही थी…
कल मुझे बाहों में भर कर वो मेरी आखों में आखें डाल कर मेरे होठों को चूमते हुए सरप्राइज देगा जिसमे आखों से इजहार होगा। या फिर वो थ्री पीस सूट पहने होगा। मैंने तो सूट का रंग भी सोच रखा था गहरे नीले रंग का सूट, अपस्यु के प्रेसनलीटी पर खूब जचता। हाथो में फूलों का गुलदस्ता लिए जिसमे गुलाब मोग्रा और तरह-तरह के फूल होते। वो अपने घुटने पर बैठकर इजहार करता।
प्यार समा था वो भी। सुबह तक सबकुछ प्यारा था। उसमे चार चांद तब लग गया जब पता चला अपस्यु बिल्कुल ठीक है। मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मुझे लगा अब शायद घुटनों पर बैठकर, वाला इजहार होगा। लेकिन तभी दिल में टीस लगी और सोची की ऐसा कुछ माहौल बना तो उसे मै किस वाले सीन में कन्वर्ट करूंगी। अभी-अभी तो उसकी चोट ठीक हुई थी कैसे वो घुटनों पर बैठ जाता।
सुबह का वक़्त नहीं कट रहा था और मै उन्हें रिझाने के लिए दिल से तैयार हो रही थी। यहां तक सब कुछ प्यारा चल रहा था। हमारी सुबह कि मुलाकात हुई और आखों में सपने लिए मैं, अपस्यु के साथ नए उड़ान भरने के लिए तैयार थी। लेकिन पहला ही घटना कॉलेज के मुख्य द्वार पर हो गई।