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कुछ देर की खमोशी के बाद जेलर योगेश कुछ सोचते हुए बोला
येगेश- ठीक है….. मुझे मंजूर है। लेकिन अब इस लड़की का क्या करें
प्रकाश राज- मार देते हैं साली को। बैसे भी यह हमारे अब किसी काम की नहीं है।
गनपत- नहीं पहले मैं इसके पूरे मजे लूँगा, उसके बाद तुम लोगों को इसके साथ जो करना है करते रहना
गनपत की बात सुनकर धनराज चिढते हुए बोला
धनराज- ये फिर शूरू हो गया
धनराज की बात सुनकर एस.पी. महेश गनपत को समझाते हुए बोला
महेश- गनपत मुझे जानकारी मिली है कि ये लड़की डी.जी.पी. सर के सीधे कॉन्टेक्ट में है। इसलिए हमें कोई रिस्क नहीं लेना चाहिए। कहीं यह कोई सीक्रेट ऐजेंट हुई तो।
गनपत- तो क्या कर लेगी। बैसे भी इसकी हालत तो देखो। यह कुछ भी करने की हालत में है क्या
महेश- तुझे और भी कई लडकियाँ मिल जाऐंगी। उनके साथ जी भरकर मजे कर लेना। बैसे भी इसकी हालत नहीं है तुझे बरदास्त करने की
गनपत- मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडता। मेरी नजर में तो यह एक दम टंच माल है। मैं इसे नहीं छोडने बाला, बैसे भी यह लडकी मेरे बेटे गगन के मौत की जिम्मेदार है। तो फिर इसे सजा देना तो बनता है। अब अगर तुम भी इसके साथ मजे करना चाहते हो तो रुको, बर्ना यहाँ से जा सकते हो। मजे लेने के बाद मैं इसे ठिकाने लगा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी अपनी लार टपकाता हुआ बोला
जफर- भाई माल तो है यह लडकी। मैं क्या सोच रहा हूँ कि क्यों ना मैं भी वहती गंगा में हाथ धो लूँ
जफर और गनपत की बातें सुनकर मंत्री जी भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले
प्रकाश राज- अरे भई अब जब सबका मन मजे करने का है ही, तो फिर मिलकर मजे करते हैं। देखते हैं कि यह लडकी कब तक हमें बरदास्त कर सकती है।
गनपत- यह भी तुमने ठीक कहा मंत्री जी। आज हम इसे इतना चोदेंगे की ये अपने आप ही मर जाए। बैसे भी यहाँ हम लोगों के अलाबा हमारे कुछ आदमी भी तो हैं यहाँ। वो भी तो मजा लेंगे ना।
गनपत की बात सुनकर सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे। इस वक्त उनकी हंसी मुझे बहुत डरावनी लग रही थी। बैसे भी दर्द के कारण मेरा पहले ही बुरा हाल था। क्योंकि इन लोगों ने जानवरों की तरह मुझे मारा था। ऊपर से ये सब मिलकर मेरी इस हालत में भी मेरा रेप भी करना चाहते थे। जिसके बारे में सोचकर ही मेरा पूरा शरीऱ पशीने से भीग गया था। तभी अचानक मेरा मोबाईल रिंग होने लगा।जिसकी आवाज सुनकर सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे। सबको यूँ मुझे घूरते देखकर मैं बुरी तरह डर से काँपने लगी।
वो लोग मेरे पास आये और एस.पी. ने मेरे जींस की पॉकेट से मेरा मोबाईल निकालकर देखा तो उसमें हरीश अंकल की कॉल आ रही थी। जिसे देखकर एस.पी. बुरी तरह से डरते हुए बोला
महेश- य ये ये तो ड ड डी.जी.पी. सर की कॉल है। मैंने तो पहले ही कहा था कि ये लड़की सीधे उनके कान्टेक्ट में है। अगर उन्हें शक हो गया और इसका मोबाईल ट्रेक करके वो यहाँ आ गए तो
गनपत- अबे एस.पी. मुझे समझ में नहीं आता कि तू आखिर एस.पी. कैसे बन गया। अबे मोबाईल ट्रेक तो तब होगा ना जब कोई कॉल रिसीब होगी।
इतना बोलकर गनपत ने एस.पी. के हाथ से मेरा मोबाईल लेकर जमीन पर पटक दिया और अपने जूते से मसलने हुए बोला
गनपत- लो हो गया इस लड़की के मोबाईल का खेल खत्म। अब इस लड़की की बारी है
इतना बोलकर वो मुझे खोलने लगा तो मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- न नहींहीहीहीं नहीं छ छोड दो मुझे......... म मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूँगी...... प्लीज मुझे जाने दो।
पर किसी पर भी मेरे गिडगिडाने का कोई असर नहीं हो रहा था। जैसे ही गनपत ने मेरे हाथों और पैरों की रस्सियाँ खोली। पता नहीं कहाँ से मुझ में ताकत आ गई और मैं अपना सारा दर्द भूलकर उसे धक्का देकर वहाँ से भागने लगी। मुझे यूँ भगता देखकर मंत्री जी ने मुझे पकडने की कोशिश की, तभी मेरे टॉप का एक हिस्सा उनके हाथों में आ गया था। जिस कारण मेरे भागने की बजह से मेरा टॉप चररररर की आबाज के साथ फट कर उनके हाथ में आ गया।
अब मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर मात्र ब्रा रह गई थी। टॉप फटने के बजह से मेरे शरीर का काफी ज्यादा हिस्सा दिखाई दे रहा था जो उन लोगों की मार-पीट की बजह से हरा नीला पड गया था। पर मेरे पास अभी अपने शरीर की हालत देखने का बिल्कुल भी समय नहीं था। मैं बस किसी भी तरह उन लोगों से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी।
पर यहाँ भी मेरी किस्मत मुझे धोखा दे गई। क्योंकी उस कमरे के बाहर उन लोगों के कई सारे आदमी खडे हुए थे। जिस कारण मैं जैसे ही बाहर की तरफ भागी उन लगों ने रास्ता बंद कर लिया। तब तक गनपत और बाकी लोग भी मरे पास आ गए थे। तभी गनपत ने मेरे बालों को पकडा और मेरे गाल पर एक जोरदार उस थप्पड मारा
चचटटटटाटाटाटाक
उस थप्पड की आबाज काफी तेज थी। थप्पड पडने से मेरे मूँह से खून भी निकल आया था। पर गनपत को मुझ पर बिल्कुल भी दया नहीं आई। वो मेरे बालों को पकडे हुए मुझे खींच कर अंदर ले आया और मुझे धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। मैं उसके इरादे अच्छी तरह समझ गई थी, इसलिए मैं उसके सामने गिडगिडाते हुए बोली
निशा- न नहीं प्लीज छोड दो मुझे
लेकिन मेरे गिडगिडाने का उन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। उल्टा बो सभी मुझ पर हंसने लगे थे। तभी गनपत ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और घुटनों के बल मेरे पास बैठकर अपने चाकू को मेरी ब्रा के ऊपर हल्के से चालाने लगा। मैं लगातार चीख रही थी पर उनपर कोई असर नहीं हो रहा था। बो तो सभी लोग मेरे साथ खिलबाड कर रहे थे
निशा- नहीं नहीं छोडो मुझे
गनपत- ऐसे कैसे छोड दें मेरी जान, अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं। बैसे तेरे मम्मे बडे मस्त हैं। इन्हें कैद क्यों कर रखा है साली
जफर- तू है ना आजाद करने के लिए। कर दे आजाद…. जरा हम भी तो देखें कैसे हैं इसके मम्मे
जफऱ की बात सुनकर गनपत ने मेरी ब्रा के स्ट्रिप नें चाकू फंसाया और एक झटके में मेरी ब्रा की स्ट्रिप काट दी और फिर अगले ही पल उसने दूसरी स्ट्रिप भी काट दी थी। जिसके बाद वो चाकू को मेरे दोनों बूब्स के बीच में रखकर मेरी ब्रा को काटने लगा। उसका चाकू काफी ज्यादा धारदार था। जिस कारण थोडा सा हिलने पर मेरे दाऐं बूब्स में एक कट लग गया था। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ और मैं चीख पडी। मेरे चीखने पर गनपत हंसते हुए बोला
गनपत- देख साली ज्यादा नखऱे कर रही थी ना। अब देख तेरे मम्मे पर कट लग गया ना। अब दूसरे पर भी कट लगाना पडेगा। वर्ना एक साईड अच्छा नहीं लगेगा
गनपत की बात सुनकर तो मेरे होश ही उड गए थे। मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- नहीं नहीं नहीं प्लीज मत करो आआआआहहहहहहहह
गनपत पर मेरे रोने धोने का कोई असर नहीं पडा और उसने मेरे दूसरे बूब्स पर भी कट लगा दिया। जिसके बाद उसने मेरी ब्रा पूरी तरह से काटकर मेरे सीने से अलग कर दी। अब मैं ऊपर से पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी। गनपत बेरहमी से मेरे बूब्स को मसलते हुए बोला
गनपत- बडे मस्त मम्मे हैं इसके। माँ कसम आज तो मजा ही आ गया
प्रकाश राज- अब ज्यादा समय क्यों खराब कर रहा है। जल्दी से इसके बाकी के कपडे भी निकाल। हम भी तो देखें इस साली ने कपडों के अंदर कौन सा खजाना छिपा रखा है।
मंत्री की बात सुनकर गनपत अपने चाकू को मेरे पेट पर फेराते हुए मेरी कमर तक ले आया। जैसे ही वो मेरे जींस का बटन खोलने लगा तो मैंने अपने हाथों से उसे रोकते हुए कहा
निशा- प्लीज मत निकालो इसे। मेरे पीरिय़ड शुरू हो गए हैं।
मेरी बात सुनकर सभी लोग हंसने लगे। क्योंकि वे लोग मेरे जींस पर मेरी गाँड और चूत के पास लगे खून को पहले ही देख चुके थे। कुछ देर हंसने के बाद गनपत बोला
गनपत- साली बहनचोद राण्ड…. तेरे पीरियड से हमें क्या हमें तो तेरी चूत में लण्ड घुसाने से मतलब है।
इतना बोलकर गनपत जबरदस्ती मेरा जींस उतारने लगा। जब मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो मंत्री प्रकाश राज और जफर ने मेरे हाथ पकड लिए। जिसके बाद गनपत ने मुझे जबरदस्ती पूरी तरह से नंगा कर दिया। मेरे सारे कपडे उतारने के बाद मंत्री और जफर ने मुझे छोड दिया। पर गनपत मेरी कमर के पास ही बैठा रहा और मेरे पूरे शरीर को बासना भरी नजर से देखने लगा। मैंने अपने हाथों से अपने शरीर को छुपाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं था।
हालाँकि में पहले ही कई मर्दों के साथ सेक्स कर चुकी थी और उनके सामने अपने सारे कपडे उतारकर नंगी भी हो चुकी थी। पर वो सब मैंने अपनी मर्जी से किया था। अब तक किसी ने जबरदस्ती मेरे साथ यह सब नहीं किया था। बैसे भी पीरियड के दौरान लडकियाँ कुछ ज्यादा ही सेंसटिव हो जाती हैं और अपने प्रायवेट पार्टस को किसी को दिखाने में उन्हें बहुत ज्यादा शर्म महसूस होती है।
पिछले 20-22 दिनों से मैं एक कॉलगर्ल की जिंदगी जी रही थी। इस दौरान मुझे कभी भी इतनी शर्म महसूस नहीं हूई थी, जितनी आज हो रही थी और ना ही आज तक किसी ने मुझ इस तरह ह्यूमिलेट किया था। मेरे शरीर को वासना भरी नजर से देखने के बाद गनपत ने अपने कपडे उतारने शूरू कर दिए। मैं उसके सामने हाथ जोडकर गिडगिडाती रही पर उसपर कोई असर नहीं हुआ। वो अपने कपडे उतार कर मेरे ऊपर सबार हो गया और बेरहमी से मेरे बुब्स को मसलने लगा।
साथ ही साथ वो मेरे गालों पर और गर्दन पर काट भी रहा था। जिस कारण मुझे बहुत दर्द हो रहा था। मेरे आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर मुझे दर्द में तडपते देखकर उन लोगों को मजा आ रहा था। अचानक से गनपत ने मेरे होंठों को चूमना और काटना शूरू कर दिया जिस कराण मेरी आवाज मेरे गले के अंदर ही घुटकर रह गई। ठीक तभी उसने अपना किसी जानबर जैसा बड़ा और मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया।
पीरियड शूरू होने के कारण मेरी चूत में से पहले से ही खून रिश रहा था और उसमें हल्की सी सूजन भी आ गई थी। गनपत के मोटे और बडे लण्ड के अंदर जाने से मेरी चूत अंदर से बुरी तरह फट गई। जिस कारण मुझे अपनी चूत में बहुत तेज दर्द महसूस होने लगा था। पर मैं चीख भी नहीं पा रही थी। मेरी चूत से और भी तेजी से खून निकलने लगा था। मैं उस जनबर के नीचे दर्द के कारण बुरी तरह तडप रही थी और उससे छूटने की कोशिश कर रही थी। पर मेरी सारी कोशिश बेकार जा रहीं थी।
गनपत ने मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाते ही मेरी चुदाई शुरू कर दी थी। आज पहली बार मुझे चुदाई करवाने में बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा था। बल्कि मुझे इस सबसे नफरत हो रही थी। पर किसी को भी मेरी इस फीलिंग से कोई फर्क नहीं पड रहा था। गनपत किसी जानबर की तरह मुझे लगातार चोद रहा था और बाकी सब मुझे तडपता हुआ देखकर मेरे मजे ले रहे थे। गनपत काफी देर तक मुझे यूं ही जानबरों की तरह चोदता रहा और फिर वो मेरी चूत में ही ठण्डा हो गया।
गनपत के अलग होते ही जफर भी मुझपर किसी भूखे भेडिए की तरह टूट पडा। मैं रोती गिडगिडाती रही पर किसी पर भी कोई फर्क नहीं पडा और सभी लोग एक एक कर के जानबरों की तरह मुझे नोचते रहे। जब वो सभी लोग मेरा मजा लूट चुके तो मुझे छोड कर अलग हो गए और अपने अपने कपडे पहनने लगे। मेरे पूरे शरीर में तेज दर्द हो रहा था और मुझे अपनी कमर से नीचे का हिस्सा अब बिल्कुल भी महसूस नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे कमर के नीचे का हिस्सा है ही नहीं।
उनके अलग होते ही मैंने हिम्मत करके खडे होने की कोशिश की, लेकिन दर्द के कारण मैं खडी नहीं हो पा रही थी। वो लोग मुझे ऐसा करते देख हंसने लगे। जिस कारण मुझे उनकी हंसी अब और भी ज्यादा भयानक लग रही थी। जब कई बार कोशिश करने के बाद भी मैं खडी नहीं हो पाई, तो मैं जैसे तैसे घुटनों के बल होकर किसी कुतिया की तरह चलते हुए बाहर जाने की कोशिश करने लगी। मैं बस किसी भी तरह उन सबसे दूर भागना चाहती थी। मुझे यह भी होश नहीं था कि इस वक्त मेरे शरीर पर कपडे का एक रेशा तक मौजूद नहीं है।
मुझे ऐसे बाहर जाते देख एस.पी. बोला
महेश- इस लड़की में अब भी इतनी जान बची है कि ये यहाँ से भागने की कोशिश कर रही है
योगेश- अरे जायेगी कहाँ…. बाहर भी तो हमारे ही आदमी खडे हैं। उन्हें भी मजे करने दो। देखते हैं है ये कब तक और बरदास्त कर पाती है।
अब मुझे उनकी किसी भी बात से कोई मतलब नहीं था और ना ही किसी बात का कोई डर मेरे अंदर रह गया था। इतना दर्द और यातना झेलने के बाद मुझे अपनी मौत अपनी आँखों के सामने दिखने लगी थी। मैं मन ही मन उस दिन को कोश रही थी। जिस दिन मैंने अपना काम खत्म होने के बाद भी यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला किया था और उस दिन को भी जिस दिन मैंने गगन से उलझने की भूल की थी।
मैं ना तो यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला करती, ना कभी मेरी गगन से मुलाकात होती और ना ही आज मेरी यह हालत होती। पर अब कुछ नहीं हो सकता था। ऐसा नहीं था कि मेरे अंदर पैसों का लालच था, जिस कारण मैंने उस सोने और हीरों के बारे में इन सब को नहीं बताया। बल्कि मैं यह बात अच्छी तरह जानती थी कि अगर मैं सब सच बता भी देती, तो भी ये लोग मेरे साथ यह सब करते।
कुछ देर की खमोशी के बाद जेलर योगेश कुछ सोचते हुए बोला
येगेश- ठीक है….. मुझे मंजूर है। लेकिन अब इस लड़की का क्या करें
प्रकाश राज- मार देते हैं साली को। बैसे भी यह हमारे अब किसी काम की नहीं है।
गनपत- नहीं पहले मैं इसके पूरे मजे लूँगा, उसके बाद तुम लोगों को इसके साथ जो करना है करते रहना
गनपत की बात सुनकर धनराज चिढते हुए बोला
धनराज- ये फिर शूरू हो गया
धनराज की बात सुनकर एस.पी. महेश गनपत को समझाते हुए बोला
महेश- गनपत मुझे जानकारी मिली है कि ये लड़की डी.जी.पी. सर के सीधे कॉन्टेक्ट में है। इसलिए हमें कोई रिस्क नहीं लेना चाहिए। कहीं यह कोई सीक्रेट ऐजेंट हुई तो।
गनपत- तो क्या कर लेगी। बैसे भी इसकी हालत तो देखो। यह कुछ भी करने की हालत में है क्या
महेश- तुझे और भी कई लडकियाँ मिल जाऐंगी। उनके साथ जी भरकर मजे कर लेना। बैसे भी इसकी हालत नहीं है तुझे बरदास्त करने की
गनपत- मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडता। मेरी नजर में तो यह एक दम टंच माल है। मैं इसे नहीं छोडने बाला, बैसे भी यह लडकी मेरे बेटे गगन के मौत की जिम्मेदार है। तो फिर इसे सजा देना तो बनता है। अब अगर तुम भी इसके साथ मजे करना चाहते हो तो रुको, बर्ना यहाँ से जा सकते हो। मजे लेने के बाद मैं इसे ठिकाने लगा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी अपनी लार टपकाता हुआ बोला
जफर- भाई माल तो है यह लडकी। मैं क्या सोच रहा हूँ कि क्यों ना मैं भी वहती गंगा में हाथ धो लूँ
जफर और गनपत की बातें सुनकर मंत्री जी भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले
प्रकाश राज- अरे भई अब जब सबका मन मजे करने का है ही, तो फिर मिलकर मजे करते हैं। देखते हैं कि यह लडकी कब तक हमें बरदास्त कर सकती है।
गनपत- यह भी तुमने ठीक कहा मंत्री जी। आज हम इसे इतना चोदेंगे की ये अपने आप ही मर जाए। बैसे भी यहाँ हम लोगों के अलाबा हमारे कुछ आदमी भी तो हैं यहाँ। वो भी तो मजा लेंगे ना।
गनपत की बात सुनकर सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे। इस वक्त उनकी हंसी मुझे बहुत डरावनी लग रही थी। बैसे भी दर्द के कारण मेरा पहले ही बुरा हाल था। क्योंकि इन लोगों ने जानवरों की तरह मुझे मारा था। ऊपर से ये सब मिलकर मेरी इस हालत में भी मेरा रेप भी करना चाहते थे। जिसके बारे में सोचकर ही मेरा पूरा शरीऱ पशीने से भीग गया था। तभी अचानक मेरा मोबाईल रिंग होने लगा।जिसकी आवाज सुनकर सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे। सबको यूँ मुझे घूरते देखकर मैं बुरी तरह डर से काँपने लगी।
वो लोग मेरे पास आये और एस.पी. ने मेरे जींस की पॉकेट से मेरा मोबाईल निकालकर देखा तो उसमें हरीश अंकल की कॉल आ रही थी। जिसे देखकर एस.पी. बुरी तरह से डरते हुए बोला
महेश- य ये ये तो ड ड डी.जी.पी. सर की कॉल है। मैंने तो पहले ही कहा था कि ये लड़की सीधे उनके कान्टेक्ट में है। अगर उन्हें शक हो गया और इसका मोबाईल ट्रेक करके वो यहाँ आ गए तो
गनपत- अबे एस.पी. मुझे समझ में नहीं आता कि तू आखिर एस.पी. कैसे बन गया। अबे मोबाईल ट्रेक तो तब होगा ना जब कोई कॉल रिसीब होगी।
इतना बोलकर गनपत ने एस.पी. के हाथ से मेरा मोबाईल लेकर जमीन पर पटक दिया और अपने जूते से मसलने हुए बोला
गनपत- लो हो गया इस लड़की के मोबाईल का खेल खत्म। अब इस लड़की की बारी है
इतना बोलकर वो मुझे खोलने लगा तो मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- न नहींहीहीहीं नहीं छ छोड दो मुझे......... म मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूँगी...... प्लीज मुझे जाने दो।
पर किसी पर भी मेरे गिडगिडाने का कोई असर नहीं हो रहा था। जैसे ही गनपत ने मेरे हाथों और पैरों की रस्सियाँ खोली। पता नहीं कहाँ से मुझ में ताकत आ गई और मैं अपना सारा दर्द भूलकर उसे धक्का देकर वहाँ से भागने लगी। मुझे यूँ भगता देखकर मंत्री जी ने मुझे पकडने की कोशिश की, तभी मेरे टॉप का एक हिस्सा उनके हाथों में आ गया था। जिस कारण मेरे भागने की बजह से मेरा टॉप चररररर की आबाज के साथ फट कर उनके हाथ में आ गया।
अब मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर मात्र ब्रा रह गई थी। टॉप फटने के बजह से मेरे शरीर का काफी ज्यादा हिस्सा दिखाई दे रहा था जो उन लोगों की मार-पीट की बजह से हरा नीला पड गया था। पर मेरे पास अभी अपने शरीर की हालत देखने का बिल्कुल भी समय नहीं था। मैं बस किसी भी तरह उन लोगों से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी।
पर यहाँ भी मेरी किस्मत मुझे धोखा दे गई। क्योंकी उस कमरे के बाहर उन लोगों के कई सारे आदमी खडे हुए थे। जिस कारण मैं जैसे ही बाहर की तरफ भागी उन लगों ने रास्ता बंद कर लिया। तब तक गनपत और बाकी लोग भी मरे पास आ गए थे। तभी गनपत ने मेरे बालों को पकडा और मेरे गाल पर एक जोरदार उस थप्पड मारा
चचटटटटाटाटाटाक
उस थप्पड की आबाज काफी तेज थी। थप्पड पडने से मेरे मूँह से खून भी निकल आया था। पर गनपत को मुझ पर बिल्कुल भी दया नहीं आई। वो मेरे बालों को पकडे हुए मुझे खींच कर अंदर ले आया और मुझे धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। मैं उसके इरादे अच्छी तरह समझ गई थी, इसलिए मैं उसके सामने गिडगिडाते हुए बोली
निशा- न नहीं प्लीज छोड दो मुझे
लेकिन मेरे गिडगिडाने का उन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। उल्टा बो सभी मुझ पर हंसने लगे थे। तभी गनपत ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और घुटनों के बल मेरे पास बैठकर अपने चाकू को मेरी ब्रा के ऊपर हल्के से चालाने लगा। मैं लगातार चीख रही थी पर उनपर कोई असर नहीं हो रहा था। बो तो सभी लोग मेरे साथ खिलबाड कर रहे थे
निशा- नहीं नहीं छोडो मुझे
गनपत- ऐसे कैसे छोड दें मेरी जान, अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं। बैसे तेरे मम्मे बडे मस्त हैं। इन्हें कैद क्यों कर रखा है साली
जफर- तू है ना आजाद करने के लिए। कर दे आजाद…. जरा हम भी तो देखें कैसे हैं इसके मम्मे
जफऱ की बात सुनकर गनपत ने मेरी ब्रा के स्ट्रिप नें चाकू फंसाया और एक झटके में मेरी ब्रा की स्ट्रिप काट दी और फिर अगले ही पल उसने दूसरी स्ट्रिप भी काट दी थी। जिसके बाद वो चाकू को मेरे दोनों बूब्स के बीच में रखकर मेरी ब्रा को काटने लगा। उसका चाकू काफी ज्यादा धारदार था। जिस कारण थोडा सा हिलने पर मेरे दाऐं बूब्स में एक कट लग गया था। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ और मैं चीख पडी। मेरे चीखने पर गनपत हंसते हुए बोला
गनपत- देख साली ज्यादा नखऱे कर रही थी ना। अब देख तेरे मम्मे पर कट लग गया ना। अब दूसरे पर भी कट लगाना पडेगा। वर्ना एक साईड अच्छा नहीं लगेगा
गनपत की बात सुनकर तो मेरे होश ही उड गए थे। मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- नहीं नहीं नहीं प्लीज मत करो आआआआहहहहहहहह
गनपत पर मेरे रोने धोने का कोई असर नहीं पडा और उसने मेरे दूसरे बूब्स पर भी कट लगा दिया। जिसके बाद उसने मेरी ब्रा पूरी तरह से काटकर मेरे सीने से अलग कर दी। अब मैं ऊपर से पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी। गनपत बेरहमी से मेरे बूब्स को मसलते हुए बोला
गनपत- बडे मस्त मम्मे हैं इसके। माँ कसम आज तो मजा ही आ गया
प्रकाश राज- अब ज्यादा समय क्यों खराब कर रहा है। जल्दी से इसके बाकी के कपडे भी निकाल। हम भी तो देखें इस साली ने कपडों के अंदर कौन सा खजाना छिपा रखा है।
मंत्री की बात सुनकर गनपत अपने चाकू को मेरे पेट पर फेराते हुए मेरी कमर तक ले आया। जैसे ही वो मेरे जींस का बटन खोलने लगा तो मैंने अपने हाथों से उसे रोकते हुए कहा
निशा- प्लीज मत निकालो इसे। मेरे पीरिय़ड शुरू हो गए हैं।
मेरी बात सुनकर सभी लोग हंसने लगे। क्योंकि वे लोग मेरे जींस पर मेरी गाँड और चूत के पास लगे खून को पहले ही देख चुके थे। कुछ देर हंसने के बाद गनपत बोला
गनपत- साली बहनचोद राण्ड…. तेरे पीरियड से हमें क्या हमें तो तेरी चूत में लण्ड घुसाने से मतलब है।
इतना बोलकर गनपत जबरदस्ती मेरा जींस उतारने लगा। जब मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो मंत्री प्रकाश राज और जफर ने मेरे हाथ पकड लिए। जिसके बाद गनपत ने मुझे जबरदस्ती पूरी तरह से नंगा कर दिया। मेरे सारे कपडे उतारने के बाद मंत्री और जफर ने मुझे छोड दिया। पर गनपत मेरी कमर के पास ही बैठा रहा और मेरे पूरे शरीर को बासना भरी नजर से देखने लगा। मैंने अपने हाथों से अपने शरीर को छुपाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं था।
हालाँकि में पहले ही कई मर्दों के साथ सेक्स कर चुकी थी और उनके सामने अपने सारे कपडे उतारकर नंगी भी हो चुकी थी। पर वो सब मैंने अपनी मर्जी से किया था। अब तक किसी ने जबरदस्ती मेरे साथ यह सब नहीं किया था। बैसे भी पीरियड के दौरान लडकियाँ कुछ ज्यादा ही सेंसटिव हो जाती हैं और अपने प्रायवेट पार्टस को किसी को दिखाने में उन्हें बहुत ज्यादा शर्म महसूस होती है।
पिछले 20-22 दिनों से मैं एक कॉलगर्ल की जिंदगी जी रही थी। इस दौरान मुझे कभी भी इतनी शर्म महसूस नहीं हूई थी, जितनी आज हो रही थी और ना ही आज तक किसी ने मुझ इस तरह ह्यूमिलेट किया था। मेरे शरीर को वासना भरी नजर से देखने के बाद गनपत ने अपने कपडे उतारने शूरू कर दिए। मैं उसके सामने हाथ जोडकर गिडगिडाती रही पर उसपर कोई असर नहीं हुआ। वो अपने कपडे उतार कर मेरे ऊपर सबार हो गया और बेरहमी से मेरे बुब्स को मसलने लगा।
साथ ही साथ वो मेरे गालों पर और गर्दन पर काट भी रहा था। जिस कारण मुझे बहुत दर्द हो रहा था। मेरे आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर मुझे दर्द में तडपते देखकर उन लोगों को मजा आ रहा था। अचानक से गनपत ने मेरे होंठों को चूमना और काटना शूरू कर दिया जिस कराण मेरी आवाज मेरे गले के अंदर ही घुटकर रह गई। ठीक तभी उसने अपना किसी जानबर जैसा बड़ा और मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया।
पीरियड शूरू होने के कारण मेरी चूत में से पहले से ही खून रिश रहा था और उसमें हल्की सी सूजन भी आ गई थी। गनपत के मोटे और बडे लण्ड के अंदर जाने से मेरी चूत अंदर से बुरी तरह फट गई। जिस कारण मुझे अपनी चूत में बहुत तेज दर्द महसूस होने लगा था। पर मैं चीख भी नहीं पा रही थी। मेरी चूत से और भी तेजी से खून निकलने लगा था। मैं उस जनबर के नीचे दर्द के कारण बुरी तरह तडप रही थी और उससे छूटने की कोशिश कर रही थी। पर मेरी सारी कोशिश बेकार जा रहीं थी।
गनपत ने मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाते ही मेरी चुदाई शुरू कर दी थी। आज पहली बार मुझे चुदाई करवाने में बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा था। बल्कि मुझे इस सबसे नफरत हो रही थी। पर किसी को भी मेरी इस फीलिंग से कोई फर्क नहीं पड रहा था। गनपत किसी जानबर की तरह मुझे लगातार चोद रहा था और बाकी सब मुझे तडपता हुआ देखकर मेरे मजे ले रहे थे। गनपत काफी देर तक मुझे यूं ही जानबरों की तरह चोदता रहा और फिर वो मेरी चूत में ही ठण्डा हो गया।
गनपत के अलग होते ही जफर भी मुझपर किसी भूखे भेडिए की तरह टूट पडा। मैं रोती गिडगिडाती रही पर किसी पर भी कोई फर्क नहीं पडा और सभी लोग एक एक कर के जानबरों की तरह मुझे नोचते रहे। जब वो सभी लोग मेरा मजा लूट चुके तो मुझे छोड कर अलग हो गए और अपने अपने कपडे पहनने लगे। मेरे पूरे शरीर में तेज दर्द हो रहा था और मुझे अपनी कमर से नीचे का हिस्सा अब बिल्कुल भी महसूस नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे कमर के नीचे का हिस्सा है ही नहीं।
उनके अलग होते ही मैंने हिम्मत करके खडे होने की कोशिश की, लेकिन दर्द के कारण मैं खडी नहीं हो पा रही थी। वो लोग मुझे ऐसा करते देख हंसने लगे। जिस कारण मुझे उनकी हंसी अब और भी ज्यादा भयानक लग रही थी। जब कई बार कोशिश करने के बाद भी मैं खडी नहीं हो पाई, तो मैं जैसे तैसे घुटनों के बल होकर किसी कुतिया की तरह चलते हुए बाहर जाने की कोशिश करने लगी। मैं बस किसी भी तरह उन सबसे दूर भागना चाहती थी। मुझे यह भी होश नहीं था कि इस वक्त मेरे शरीर पर कपडे का एक रेशा तक मौजूद नहीं है।
मुझे ऐसे बाहर जाते देख एस.पी. बोला
महेश- इस लड़की में अब भी इतनी जान बची है कि ये यहाँ से भागने की कोशिश कर रही है
योगेश- अरे जायेगी कहाँ…. बाहर भी तो हमारे ही आदमी खडे हैं। उन्हें भी मजे करने दो। देखते हैं है ये कब तक और बरदास्त कर पाती है।
अब मुझे उनकी किसी भी बात से कोई मतलब नहीं था और ना ही किसी बात का कोई डर मेरे अंदर रह गया था। इतना दर्द और यातना झेलने के बाद मुझे अपनी मौत अपनी आँखों के सामने दिखने लगी थी। मैं मन ही मन उस दिन को कोश रही थी। जिस दिन मैंने अपना काम खत्म होने के बाद भी यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला किया था और उस दिन को भी जिस दिन मैंने गगन से उलझने की भूल की थी।
मैं ना तो यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला करती, ना कभी मेरी गगन से मुलाकात होती और ना ही आज मेरी यह हालत होती। पर अब कुछ नहीं हो सकता था। ऐसा नहीं था कि मेरे अंदर पैसों का लालच था, जिस कारण मैंने उस सोने और हीरों के बारे में इन सब को नहीं बताया। बल्कि मैं यह बात अच्छी तरह जानती थी कि अगर मैं सब सच बता भी देती, तो भी ये लोग मेरे साथ यह सब करते।
कुछ देर की खमोशी के बाद जेलर योगेश कुछ सोचते हुए बोला
येगेश- ठीक है….. मुझे मंजूर है। लेकिन अब इस लड़की का क्या करें
प्रकाश राज- मार देते हैं साली को। बैसे भी यह हमारे अब किसी काम की नहीं है।
गनपत- नहीं पहले मैं इसके पूरे मजे लूँगा, उसके बाद तुम लोगों को इसके साथ जो करना है करते रहना
गनपत की बात सुनकर धनराज चिढते हुए बोला
धनराज- ये फिर शूरू हो गया
धनराज की बात सुनकर एस.पी. महेश गनपत को समझाते हुए बोला
महेश- गनपत मुझे जानकारी मिली है कि ये लड़की डी.जी.पी. सर के सीधे कॉन्टेक्ट में है। इसलिए हमें कोई रिस्क नहीं लेना चाहिए। कहीं यह कोई सीक्रेट ऐजेंट हुई तो।
गनपत- तो क्या कर लेगी। बैसे भी इसकी हालत तो देखो। यह कुछ भी करने की हालत में है क्या
महेश- तुझे और भी कई लडकियाँ मिल जाऐंगी। उनके साथ जी भरकर मजे कर लेना। बैसे भी इसकी हालत नहीं है तुझे बरदास्त करने की
गनपत- मुझे इससे कोई फर्क नहीं पडता। मेरी नजर में तो यह एक दम टंच माल है। मैं इसे नहीं छोडने बाला, बैसे भी यह लडकी मेरे बेटे गगन के मौत की जिम्मेदार है। तो फिर इसे सजा देना तो बनता है। अब अगर तुम भी इसके साथ मजे करना चाहते हो तो रुको, बर्ना यहाँ से जा सकते हो। मजे लेने के बाद मैं इसे ठिकाने लगा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी अपनी लार टपकाता हुआ बोला
जफर- भाई माल तो है यह लडकी। मैं क्या सोच रहा हूँ कि क्यों ना मैं भी वहती गंगा में हाथ धो लूँ
जफर और गनपत की बातें सुनकर मंत्री जी भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले
प्रकाश राज- अरे भई अब जब सबका मन मजे करने का है ही, तो फिर मिलकर मजे करते हैं। देखते हैं कि यह लडकी कब तक हमें बरदास्त कर सकती है।
गनपत- यह भी तुमने ठीक कहा मंत्री जी। आज हम इसे इतना चोदेंगे की ये अपने आप ही मर जाए। बैसे भी यहाँ हम लोगों के अलाबा हमारे कुछ आदमी भी तो हैं यहाँ। वो भी तो मजा लेंगे ना।
गनपत की बात सुनकर सभी लोग जोर जोर से हंसने लगे। इस वक्त उनकी हंसी मुझे बहुत डरावनी लग रही थी। बैसे भी दर्द के कारण मेरा पहले ही बुरा हाल था। क्योंकि इन लोगों ने जानवरों की तरह मुझे मारा था। ऊपर से ये सब मिलकर मेरी इस हालत में भी मेरा रेप भी करना चाहते थे। जिसके बारे में सोचकर ही मेरा पूरा शरीऱ पशीने से भीग गया था। तभी अचानक मेरा मोबाईल रिंग होने लगा।जिसकी आवाज सुनकर सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे। सबको यूँ मुझे घूरते देखकर मैं बुरी तरह डर से काँपने लगी।
वो लोग मेरे पास आये और एस.पी. ने मेरे जींस की पॉकेट से मेरा मोबाईल निकालकर देखा तो उसमें हरीश अंकल की कॉल आ रही थी। जिसे देखकर एस.पी. बुरी तरह से डरते हुए बोला
महेश- य ये ये तो ड ड डी.जी.पी. सर की कॉल है। मैंने तो पहले ही कहा था कि ये लड़की सीधे उनके कान्टेक्ट में है। अगर उन्हें शक हो गया और इसका मोबाईल ट्रेक करके वो यहाँ आ गए तो
गनपत- अबे एस.पी. मुझे समझ में नहीं आता कि तू आखिर एस.पी. कैसे बन गया। अबे मोबाईल ट्रेक तो तब होगा ना जब कोई कॉल रिसीब होगी।
इतना बोलकर गनपत ने एस.पी. के हाथ से मेरा मोबाईल लेकर जमीन पर पटक दिया और अपने जूते से मसलने हुए बोला
गनपत- लो हो गया इस लड़की के मोबाईल का खेल खत्म। अब इस लड़की की बारी है
इतना बोलकर वो मुझे खोलने लगा तो मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- न नहींहीहीहीं नहीं छ छोड दो मुझे......... म मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूँगी...... प्लीज मुझे जाने दो।
पर किसी पर भी मेरे गिडगिडाने का कोई असर नहीं हो रहा था। जैसे ही गनपत ने मेरे हाथों और पैरों की रस्सियाँ खोली। पता नहीं कहाँ से मुझ में ताकत आ गई और मैं अपना सारा दर्द भूलकर उसे धक्का देकर वहाँ से भागने लगी। मुझे यूँ भगता देखकर मंत्री जी ने मुझे पकडने की कोशिश की, तभी मेरे टॉप का एक हिस्सा उनके हाथों में आ गया था। जिस कारण मेरे भागने की बजह से मेरा टॉप चररररर की आबाज के साथ फट कर उनके हाथ में आ गया।
अब मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर मात्र ब्रा रह गई थी। टॉप फटने के बजह से मेरे शरीर का काफी ज्यादा हिस्सा दिखाई दे रहा था जो उन लोगों की मार-पीट की बजह से हरा नीला पड गया था। पर मेरे पास अभी अपने शरीर की हालत देखने का बिल्कुल भी समय नहीं था। मैं बस किसी भी तरह उन लोगों से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी।
पर यहाँ भी मेरी किस्मत मुझे धोखा दे गई। क्योंकी उस कमरे के बाहर उन लोगों के कई सारे आदमी खडे हुए थे। जिस कारण मैं जैसे ही बाहर की तरफ भागी उन लगों ने रास्ता बंद कर लिया। तब तक गनपत और बाकी लोग भी मरे पास आ गए थे। तभी गनपत ने मेरे बालों को पकडा और मेरे गाल पर एक जोरदार उस थप्पड मारा
चचटटटटाटाटाटाक
उस थप्पड की आबाज काफी तेज थी। थप्पड पडने से मेरे मूँह से खून भी निकल आया था। पर गनपत को मुझ पर बिल्कुल भी दया नहीं आई। वो मेरे बालों को पकडे हुए मुझे खींच कर अंदर ले आया और मुझे धक्का देकर जमीन पर पटक दिया। मैं उसके इरादे अच्छी तरह समझ गई थी, इसलिए मैं उसके सामने गिडगिडाते हुए बोली
निशा- न नहीं प्लीज छोड दो मुझे
लेकिन मेरे गिडगिडाने का उन लोगों पर कोई असर नहीं हुआ। उल्टा बो सभी मुझ पर हंसने लगे थे। तभी गनपत ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और घुटनों के बल मेरे पास बैठकर अपने चाकू को मेरी ब्रा के ऊपर हल्के से चालाने लगा। मैं लगातार चीख रही थी पर उनपर कोई असर नहीं हो रहा था। बो तो सभी लोग मेरे साथ खिलबाड कर रहे थे
निशा- नहीं नहीं छोडो मुझे
गनपत- ऐसे कैसे छोड दें मेरी जान, अभी तो हमने कुछ किया ही नहीं। बैसे तेरे मम्मे बडे मस्त हैं। इन्हें कैद क्यों कर रखा है साली
जफर- तू है ना आजाद करने के लिए। कर दे आजाद…. जरा हम भी तो देखें कैसे हैं इसके मम्मे
जफऱ की बात सुनकर गनपत ने मेरी ब्रा के स्ट्रिप नें चाकू फंसाया और एक झटके में मेरी ब्रा की स्ट्रिप काट दी और फिर अगले ही पल उसने दूसरी स्ट्रिप भी काट दी थी। जिसके बाद वो चाकू को मेरे दोनों बूब्स के बीच में रखकर मेरी ब्रा को काटने लगा। उसका चाकू काफी ज्यादा धारदार था। जिस कारण थोडा सा हिलने पर मेरे दाऐं बूब्स में एक कट लग गया था। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ और मैं चीख पडी। मेरे चीखने पर गनपत हंसते हुए बोला
गनपत- देख साली ज्यादा नखऱे कर रही थी ना। अब देख तेरे मम्मे पर कट लग गया ना। अब दूसरे पर भी कट लगाना पडेगा। वर्ना एक साईड अच्छा नहीं लगेगा
गनपत की बात सुनकर तो मेरे होश ही उड गए थे। मैं डर के कारण चीखते हुए बोली
निशा- नहीं नहीं नहीं प्लीज मत करो आआआआहहहहहहहह
गनपत पर मेरे रोने धोने का कोई असर नहीं पडा और उसने मेरे दूसरे बूब्स पर भी कट लगा दिया। जिसके बाद उसने मेरी ब्रा पूरी तरह से काटकर मेरे सीने से अलग कर दी। अब मैं ऊपर से पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी। गनपत बेरहमी से मेरे बूब्स को मसलते हुए बोला
गनपत- बडे मस्त मम्मे हैं इसके। माँ कसम आज तो मजा ही आ गया
प्रकाश राज- अब ज्यादा समय क्यों खराब कर रहा है। जल्दी से इसके बाकी के कपडे भी निकाल। हम भी तो देखें इस साली ने कपडों के अंदर कौन सा खजाना छिपा रखा है।
मंत्री की बात सुनकर गनपत अपने चाकू को मेरे पेट पर फेराते हुए मेरी कमर तक ले आया। जैसे ही वो मेरे जींस का बटन खोलने लगा तो मैंने अपने हाथों से उसे रोकते हुए कहा
निशा- प्लीज मत निकालो इसे। मेरे पीरिय़ड शुरू हो गए हैं।
मेरी बात सुनकर सभी लोग हंसने लगे। क्योंकि वे लोग मेरे जींस पर मेरी गाँड और चूत के पास लगे खून को पहले ही देख चुके थे। कुछ देर हंसने के बाद गनपत बोला
गनपत- साली बहनचोद राण्ड…. तेरे पीरियड से हमें क्या हमें तो तेरी चूत में लण्ड घुसाने से मतलब है।
इतना बोलकर गनपत जबरदस्ती मेरा जींस उतारने लगा। जब मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो मंत्री प्रकाश राज और जफर ने मेरे हाथ पकड लिए। जिसके बाद गनपत ने मुझे जबरदस्ती पूरी तरह से नंगा कर दिया। मेरे सारे कपडे उतारने के बाद मंत्री और जफर ने मुझे छोड दिया। पर गनपत मेरी कमर के पास ही बैठा रहा और मेरे पूरे शरीर को बासना भरी नजर से देखने लगा। मैंने अपने हाथों से अपने शरीर को छुपाने की कोशिश की, पर कोई फायदा नहीं था।
हालाँकि में पहले ही कई मर्दों के साथ सेक्स कर चुकी थी और उनके सामने अपने सारे कपडे उतारकर नंगी भी हो चुकी थी। पर वो सब मैंने अपनी मर्जी से किया था। अब तक किसी ने जबरदस्ती मेरे साथ यह सब नहीं किया था। बैसे भी पीरियड के दौरान लडकियाँ कुछ ज्यादा ही सेंसटिव हो जाती हैं और अपने प्रायवेट पार्टस को किसी को दिखाने में उन्हें बहुत ज्यादा शर्म महसूस होती है।
पिछले 20-22 दिनों से मैं एक कॉलगर्ल की जिंदगी जी रही थी। इस दौरान मुझे कभी भी इतनी शर्म महसूस नहीं हूई थी, जितनी आज हो रही थी और ना ही आज तक किसी ने मुझ इस तरह ह्यूमिलेट किया था। मेरे शरीर को वासना भरी नजर से देखने के बाद गनपत ने अपने कपडे उतारने शूरू कर दिए। मैं उसके सामने हाथ जोडकर गिडगिडाती रही पर उसपर कोई असर नहीं हुआ। वो अपने कपडे उतार कर मेरे ऊपर सबार हो गया और बेरहमी से मेरे बुब्स को मसलने लगा।
साथ ही साथ वो मेरे गालों पर और गर्दन पर काट भी रहा था। जिस कारण मुझे बहुत दर्द हो रहा था। मेरे आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर मुझे दर्द में तडपते देखकर उन लोगों को मजा आ रहा था। अचानक से गनपत ने मेरे होंठों को चूमना और काटना शूरू कर दिया जिस कराण मेरी आवाज मेरे गले के अंदर ही घुटकर रह गई। ठीक तभी उसने अपना किसी जानबर जैसा बड़ा और मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया।
पीरियड शूरू होने के कारण मेरी चूत में से पहले से ही खून रिश रहा था और उसमें हल्की सी सूजन भी आ गई थी। गनपत के मोटे और बडे लण्ड के अंदर जाने से मेरी चूत अंदर से बुरी तरह फट गई। जिस कारण मुझे अपनी चूत में बहुत तेज दर्द महसूस होने लगा था। पर मैं चीख भी नहीं पा रही थी। मेरी चूत से और भी तेजी से खून निकलने लगा था। मैं उस जनबर के नीचे दर्द के कारण बुरी तरह तडप रही थी और उससे छूटने की कोशिश कर रही थी। पर मेरी सारी कोशिश बेकार जा रहीं थी।
गनपत ने मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाते ही मेरी चुदाई शुरू कर दी थी। आज पहली बार मुझे चुदाई करवाने में बिल्कुल भी मजा नहीं आ रहा था। बल्कि मुझे इस सबसे नफरत हो रही थी। पर किसी को भी मेरी इस फीलिंग से कोई फर्क नहीं पड रहा था। गनपत किसी जानबर की तरह मुझे लगातार चोद रहा था और बाकी सब मुझे तडपता हुआ देखकर मेरे मजे ले रहे थे। गनपत काफी देर तक मुझे यूं ही जानबरों की तरह चोदता रहा और फिर वो मेरी चूत में ही ठण्डा हो गया।
गनपत के अलग होते ही जफर भी मुझपर किसी भूखे भेडिए की तरह टूट पडा। मैं रोती गिडगिडाती रही पर किसी पर भी कोई फर्क नहीं पडा और सभी लोग एक एक कर के जानबरों की तरह मुझे नोचते रहे। जब वो सभी लोग मेरा मजा लूट चुके तो मुझे छोड कर अलग हो गए और अपने अपने कपडे पहनने लगे। मेरे पूरे शरीर में तेज दर्द हो रहा था और मुझे अपनी कमर से नीचे का हिस्सा अब बिल्कुल भी महसूस नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे कमर के नीचे का हिस्सा है ही नहीं।
उनके अलग होते ही मैंने हिम्मत करके खडे होने की कोशिश की, लेकिन दर्द के कारण मैं खडी नहीं हो पा रही थी। वो लोग मुझे ऐसा करते देख हंसने लगे। जिस कारण मुझे उनकी हंसी अब और भी ज्यादा भयानक लग रही थी। जब कई बार कोशिश करने के बाद भी मैं खडी नहीं हो पाई, तो मैं जैसे तैसे घुटनों के बल होकर किसी कुतिया की तरह चलते हुए बाहर जाने की कोशिश करने लगी। मैं बस किसी भी तरह उन सबसे दूर भागना चाहती थी। मुझे यह भी होश नहीं था कि इस वक्त मेरे शरीर पर कपडे का एक रेशा तक मौजूद नहीं है।
मुझे ऐसे बाहर जाते देख एस.पी. बोला
महेश- इस लड़की में अब भी इतनी जान बची है कि ये यहाँ से भागने की कोशिश कर रही है
योगेश- अरे जायेगी कहाँ…. बाहर भी तो हमारे ही आदमी खडे हैं। उन्हें भी मजे करने दो। देखते हैं है ये कब तक और बरदास्त कर पाती है।
अब मुझे उनकी किसी भी बात से कोई मतलब नहीं था और ना ही किसी बात का कोई डर मेरे अंदर रह गया था। इतना दर्द और यातना झेलने के बाद मुझे अपनी मौत अपनी आँखों के सामने दिखने लगी थी। मैं मन ही मन उस दिन को कोश रही थी। जिस दिन मैंने अपना काम खत्म होने के बाद भी यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला किया था और उस दिन को भी जिस दिन मैंने गगन से उलझने की भूल की थी।
मैं ना तो यहाँ भोपाल में रुकने का फैसला करती, ना कभी मेरी गगन से मुलाकात होती और ना ही आज मेरी यह हालत होती। पर अब कुछ नहीं हो सकता था। ऐसा नहीं था कि मेरे अंदर पैसों का लालच था, जिस कारण मैंने उस सोने और हीरों के बारे में इन सब को नहीं बताया। बल्कि मैं यह बात अच्छी तरह जानती थी कि अगर मैं सब सच बता भी देती, तो भी ये लोग मेरे साथ यह सब करते।
Update 038 -
इतना सब होने के बाद भी मैं जीना चाहती थी। इसलिए मैं जैसे तैसे उस कमरे से बाहर निकली। कमरे के बाहर खण्डहर के आँगन में करीब 15-16 आदमी खडे हुए थे। मुझे इस हालत में देखते ही वो मेरे चारों तरफ इकट्ठा हो गए। तभी अंदर से बाकी लोग भी बाहर आ गए। बाहर खडे सभी लोग बासना भरी नजर से मुझे घूरे जा रहे थे। पर मैं उन सबकी परवाह किये बिना किसी कुतिया की तरह चलती हुई उस खण्डहर से बाहर की तरफ जा रही थी तभी मुझे गनपत की आवाज सुनाई दी
गनपत- अरे तमाशा क्या देख रहे हो। ये कुतिया तुम सबके सामने है मजे करो
गनपत की आवाज सुनते ही वो लोग कुत्तों की तरह मुझे चोदने के लिए आपस में झगडने लगे। इसी बीच एक आदमी ने मेरी पीठ पर अपना एक पैर रख दिया। मुझमें अब इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसके पैर को हटा सकूँ और आगे बड सकूं। तभी एक दूसरा आदमी मेरे ठीक पीछे आकर घुठनो के बल बैठ गया और फिर उसने अपना पैंट खोलकर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। जैसे ही उसका लण्ड मेरी चूत में गया तो मेरे मूँह से चीख निकल गई।
आआआआहहहहहहह
पर मेरी चीख से किसी को कोई फर्क नहीं पडा। उल्टे बाकी के लोग अपस में लडना छोडकर मुझपर हंसने लगे। जो आदमी मेरी चुदाई कर रहा था उसने मजबूती के साथ मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकडा हुआ था। कुछ देर चुदाई करने के बाद वो अपने हाथों से मेरी गाँड पर थप्पड मारने लगा। जिस कारण लगातार मेरी चीखें निकलने लगी। मेरी दर्द भरी चीखें सुनकर उन सबको सुकून मिल रहा था।
उस आदमी के हटने ही दूसरा शूरू हो गया। मैं समझ गई कि ये सभी अब मुझे यूँ ही छोडने बाले नहीं हैं। धीरे धीरे मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा था और मुझे अपनी मौत साफ साफ नजर आ रही थी। दर्द थकान और कमजोरी के कारण मेरे हाथ पैर बुरी तरह से काँप रहे थे। जिस कराण मैंने अपने हालातों से समझोता करते हुए अपने दोनों हाथ जमीन पर रख दिए और उनके ऊपर अपना सिर रख कर अपनी धीमी लेकिन दर्दनाक मौत का इंतजार करने लगी।
एक के बाद एक आदमी मेरे पीछे आकर मुझे चोदते रहे। कोई मेरी चूत मारता तो कोई मेरी गांड में अपना लण्ड घुसा कर मजे लेता। इस बीच दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई। पर मेरे बेहोश होने के बाद भी वो लोग नहीं रुके। जब मुझे होश आया तो रात हो चुकी थी। मुझे नहीं पता कि अब तक कितने लोग मुझे चोद चुके थे और कितने बाकी थे और ना ही समय का अब मुझे कोई अंदाजा था। मैं अब बस इस सबसे छुटकारा चाहती थी।
जब सभी लोगों का मन मुझसे भर गया तो वो मुझे छोडकर अलग हो गए। मैं वहां जमीन पर किसी बेजान लाश की तरह पडी रही। कुछ देर बाद वहाँ गनपत और बाकी लोग भी आ गए। शायद वो लोग मुझे अपने आदमियों के हवाले करके किसी दूसरे काम के लिए चले गए थे। जब वो बापिस आये तो मैं जमीन पर किसी मुर्दे की तरह पडी हुई थी। उन्हें लगा कि शायद मैं मर गई हूँ। इसलिए जफऱ बोला
जफर- अरे मूर्खों इस लाश को ठिकाने क्यों नहीं लगाया अब तक
जफऱ की बात सुनकर उन लोगों में से एक बोला
“बॉस ये लड़की अभी जिंदा है”
उस आदमी की बात सुनकर गनपत हैरान होते हुए बोला
गनपत- क्या अभी तक जिंदा है। कमाल है… यह लडकी तुम सबको भी झेल गई। बडी सख्त जान है यह तो…..
महेश- गनपत अब और कोई तमाशा मत करो और जल्दी से इसे ठिकाने लगा दो
गनपत- ऐसे कैसे ठिकाने लगा दूँ। तुमने देखा नहीं कि इतनी मार खाने और हम सबको बरदास्त करने के बाद भी यह जिंदा है। मतलब कि ये जीना चाहती है। कम से कम इसे जीने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए। क्यों दोस्तों क्या कहते हो
गनपत की बात सुनकर जफर बोला
जफर- हाँ सही कहा गनपत तूने
इतना बोलकर जफर मेरे आया और मेरी गाँड पर एक जोरदार लात मारते हुए बोला
जफर- सुन वे बहनचोद राण्ड… जा तू आजाद है। तेरे पास पूरे 10 मिनट हैं। इस खण्डहर से बाहर जाने के लिए, अगर 10 मिनट के अंदर तू इस खण्डहर से बाहर निकल गई तो फिर हम तुम्हें कुछ भी नहीं करें। लेकिन अगर तू 10 मिनट के अंदर इस खण्डहर से बाहर नहीं निकल पाई, तो तेरी मौत पक्की
जफर की बात सुनकर जैसे मेरे अंदर जान आ गई थी। मुझे जिंदा बचने की एक उम्मीद दिखने लगी थी। इसलिए मैं अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा करके उठने की कोशिश करने लगी, पर मेरा पूरा शरीऱ बेजान हो गया था। मैं चाहकर भी खडी नहीं हो पा रही थी। मुझे बार बार उठने की कोशिश करता देख ,वहाँ खड़ा हर एक इंसान मुझपर हंस रहा था। पर किसी को मुझ पर दया नहीं आई और ना ही किसी ने मेरी मदद की। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर किसी को इस्से कोई फर्क नहीं पड रहा था। आखिरकार मैंने हार मान ली और कोशिश करना बंद कर दिया। तो मंत्री मेरे पास आकर बोला
प्रकाश राज- ये कौन सी बात हुई जफर, तुम्हें दिख नहीं रहा कि इसकी हालत कितनी खराब है, कम से कम इसे सहारा देख खड़ा तो कर दो
इतना बोलकर मंत्री जी ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया। पर अगले ही पल मुझे छोडकर दूर हट गए। जिस कारण मैं किसी कटे पेड़ की तरह नीचे जमीन पर जा गिरी। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ। पर उस दर्द ने मेरे लिए दवा का काम किया। क्योंकि इतने तेज दर्द के कारण मुझे अपने शरीर का बाकी हिस्सा महसूस होने लगा था। मैं अपना सारा दर्द भूल गई और बस किसी भी तरह जिंदा बचने के लिए किसी घायल सांप की तरह सरकते हुए खण्डहर के बाहर जाने की कोशिश करने लगी।
कुछ दूर सरकने के बाद मैं एक दीवार के पास जा पहूंची। जिसके बाद मैं उस दीवार का सहारा लेकर खडे होने की कोशिश करने लगी। करीब 2-3 बार कोशिश करने के बाद मैं जैसे तैसे खडी हो गई थी और फिर मैं उस दीवार का सहारा लेकर चलने की कोशिश करने लगी। मैं धीरे धीरे चलते हुए उन सभी लोगों से दूर जा रही थी। शायद यह मेरे जिंदा बच निकलने का आखिरी प्रयास था। पर तभी अचानक से जफर मेरे पास आ गया और एक शैतानी हंसी हंसते हुए बोला बोला
जफर- हा हा हा…. सॉरी मेरी जान तुम्हारे 10 मिनट तो कब के खत्म हो गए हैं। अब तुम यहाँ से जिंदा बाहर नहीं जा सकती
इससे पहले मैं कुछ समझ पाती जफर ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और मेरी दोनों जाँघों पर कट लगा दिऐ। घाव काफी गहरे थे। जिस कराण मुझे बहुत दर्द हो रहा था और खून भी काफी ज्यादा निकल रहा था। इसलिए मैं खडी ना रह सकी और धडाम से नीचे जमीन पर जा गिरी। मेरे नीचे गिरते ही जफर मेरे बालों को पकडकर मुझे घसीटते हुआ आंगन के बीचों बीच ले आया, जहाँ जमीन पर एक काले रंग का बड़ा सा पत्थर पडा हुआ था। शायद वो कभी इसी खण्डहर का हिस्सा रहा था।
कुछ देर पहले ही मैं उसी पत्थर के पास किसी कुतिया की तरह खडी होकर चुद रही थी। जफर ने मुझे घसीटते हुए उसी पत्थर पर ले जाकर पटक दिया। जिस कारण मेरा आधा शरीर उस बडे से पत्थर पर और आधा जमीन पर पडा हुआ था। मुझे उस पत्थर पर किसी लाश की तरह पटकने के बाद वो सभी 6 पार्टनर्स एक एक करके मुझ पर चाकूओं से हमला करने लगे, मुझे नहीं पता कि किसने मुझ पर कितने बार किये थे और मेरे शरीर के किस हिस्से पर किसने बार किया था। मेरे शरीर पर होने बाला प्रत्यके बार मुझे मौत और ज्यादा करीब ले जा रहा था। मेरे मूँह से अब खून की उल्टियाँ होने लगी थीं, साथ ही साथ मुझे अब किसी भी प्रकार को कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था।
असल में मुझे इस वक्त अपना शरीर ही महसूस नहीं हो रहा था। बस किसी तरह मेरी सांसे चल रही थी और मेरे चारों तरफ मुझे इंसानी भेष में खडे जानबर दिखाई दे रहे थे। जो अपने शिकार को तडपा तडपा कर मार रहे थे। तभी अचानक से मौसम बदलने लगा। देखते ही देखते आसमान में काले बादल छा गए। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। क्योंकि कुछ देर पहले तो आसमान एकदम साफ था। फिर ये बादल कैसे आ गए। तभी अचानक तेज हावा चलने लगी और बादल गरजने लगे। यह सब देखकर मंत्री बोला
प्रकाश राज- लगता है मौसम खराब हो रहा है और कभी भी आँधी तूफान आ सकता है। इसलिए हमें यहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहिए, वर्ना आँधी तूफान में जंगल से निकलना मुश्किल हो जाऐगा
योगेश- मंत्री जी सही कह रहे हैं गनपत, चलो निकलते हैं यहाँ से। बैसे भी अब ये लड़की बचने बाली नहीं है। जंगल के इस इलाके में बैसे भी कोई इंशान आता जाता नहीं है। इसलिए एक दो दिन में ही जंगली जानवर इसे नोच कर खा जाऐंगे।
पर गनपत तो कुछ और ही सोच रहा था। उसने आस पास देखा तो उसे पास ही जमीन पर पडी एक लोहे की बडी सी रॉड दिखाई दी। उन लोगों ने अब तक मेरे साथ जो कुछ किया था, वो शायद गनपत के लिए काफी नहीं था, जिस कारण गनपत ने उस रॉड को उठा लिया और उसका नुकीला सिरा मेरी तरफ करके एक ही झटके में वो रॉड मेरे सीने के आर पार कर दी। गनपत ने वह बार इतना जोरदार और ताकत के साथ किया गया था कि वो रॉड मेरे सीने को चीरती हुई नीचे जमीन में जा धंसी थी। जिस कारण मेरे सीने से खून की तेज धार निकलने लगी और ठीक तभी आकाश में बिजली चमकने लगी और अचानक से तेज बारिस भी होने लगी।
मौसम में अचानक आऐ इस परिवर्तन से वो लोग बुरी तरह से हैरान थे और अब वो इस जगह पर रुकने खतरा नहीं उठाना चाहते थे। जिस कारण वो सभी लोग उस खण्डहर से तुरंत बाहर निकल गए। मुझे उस आँधी और बारिस में भी गाडियों के वहाँ से जाने की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी। कुछ ही देर में वहाँ सन्नाटा झा गया। अब उस सुनसान खण्डहर में मैं अकेली थी। जंगल से जानबरों के चिल्लाने की अजीब अजीब आवाजें आ रहीं थीं। जो उस आंधी और तूफान में भी साफ साफ सुनाई दे रही थी। आंधी तूफान और बिजली कडकने के कारण माहौल एक दम भयानक और डरावना हो गया था।
मैंने जिंदगी में कभी भी ऐसे मंजर का सामना नहीं किया था। पर आज जब मैं अपनी आखिरी सांसे ले रही थी तो जिंदगी मुझे प्रकृति का यह भयानक रूप भी दिखा रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और मैं जिंदगी और मौत के इस संघर्ष में बुरी तरह से हार चुकी थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा अंत इतना भयानक होगा। बस कुछ पलों की बात थी और मेरी जिंदगी समाप्त होने बाली थी। अब तक मेरे सारे एहसास पूरी तरह से खत्म हो गए थे।
मुझे अब कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। ना दर्द का कोई एहसास था और ना ही कोई गम था। मुझे अपनी जिंदगी के इन अंतिम झणों में अपनी सारी जिंदगी की झलक दिखाई दे रही थी। वो समय जब मैं काफी दुखी थी, वो समय जब मैं बहुत खुश थी, मेरी शादी का दिन, मेरी माँ की मौत का दिन, मेरा स्कूल का समय और मेरे ग्रेजुऐशन का समय, नौकरी करते हुए संघर्ष करने का समय, पति के द्वारा उपेक्षा का समय, अपनी मेहनत और लगन से प्रमोशन पाने का समय और भोपाल आने के बाद बिताया अपना हर एक पल मेरी आँखों के सामने था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी अगर सबसे ज्यादा खुश रही थी तो वो बस वही 20-22 दिन थे जो मैंने भोपाल में बिताऐ थे और अब मैं यहीँ पर अपनी अंतिम सांसे भी ले रही थी। भोपाल में बिताए अपनी आजादी के उन दिनों को याद करके पता नहीं कैसे पर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी। अब मुझे अपने मरने का कोई दुख नहीं था। इस वक्त मेरे चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। भोपाल में इन 20-22 दिनों में ही मैंने अपनी सारी जिंदगी जी ली थी। तभी मेरे मन में दबी हुई आखरी इच्छा जाग उठी। काश मैं इन 20-22 दिनों की तरह ही अपनी सारी जिंदगी बिता पाती।
यह सोचते ही मेरे चेहरे की मुस्कान और भी ज्यादा बडी हो गई ठीक थी। मेेरे शरीर पर हुए अनगिनत घाव से लगातार खून बहने के कारण मेरा शरीर हर पल बेजान हो रहा था और मेरी आंखों के सामने धीरे धीरे अंधेरा छा रहा था। ठीक तभी एक तेज गडगडाहट के साथ आकाश में चमकती बिजली मेरे सीने में धंसे उस लोहे के रॉड पर आ गिरी। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने मुझे खौलते हुए लावा में फेंक दिया हो। मेरा पूरा शरीर बुरी तरह चल रहा था और एक तेज रोशनी मेरी आँखों के सामने झा गई थी। लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने एक बार फिर अंधेरा छाने और मैं एक गहरी नींद में चली गई। शायद यही मेरा अंत था
इतना सब होने के बाद भी मैं जीना चाहती थी। इसलिए मैं जैसे तैसे उस कमरे से बाहर निकली। कमरे के बाहर खण्डहर के आँगन में करीब 15-16 आदमी खडे हुए थे। मुझे इस हालत में देखते ही वो मेरे चारों तरफ इकट्ठा हो गए। तभी अंदर से बाकी लोग भी बाहर आ गए। बाहर खडे सभी लोग बासना भरी नजर से मुझे घूरे जा रहे थे। पर मैं उन सबकी परवाह किये बिना किसी कुतिया की तरह चलती हुई उस खण्डहर से बाहर की तरफ जा रही थी तभी मुझे गनपत की आवाज सुनाई दी
गनपत- अरे तमाशा क्या देख रहे हो। ये कुतिया तुम सबके सामने है मजे करो
गनपत की आवाज सुनते ही वो लोग कुत्तों की तरह मुझे चोदने के लिए आपस में झगडने लगे। इसी बीच एक आदमी ने मेरी पीठ पर अपना एक पैर रख दिया। मुझमें अब इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसके पैर को हटा सकूँ और आगे बड सकूं। तभी एक दूसरा आदमी मेरे ठीक पीछे आकर घुठनो के बल बैठ गया और फिर उसने अपना पैंट खोलकर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। जैसे ही उसका लण्ड मेरी चूत में गया तो मेरे मूँह से चीख निकल गई।
आआआआहहहहहहह
पर मेरी चीख से किसी को कोई फर्क नहीं पडा। उल्टे बाकी के लोग अपस में लडना छोडकर मुझपर हंसने लगे। जो आदमी मेरी चुदाई कर रहा था उसने मजबूती के साथ मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकडा हुआ था। कुछ देर चुदाई करने के बाद वो अपने हाथों से मेरी गाँड पर थप्पड मारने लगा। जिस कारण लगातार मेरी चीखें निकलने लगी। मेरी दर्द भरी चीखें सुनकर उन सबको सुकून मिल रहा था।
उस आदमी के हटने ही दूसरा शूरू हो गया। मैं समझ गई कि ये सभी अब मुझे यूँ ही छोडने बाले नहीं हैं। धीरे धीरे मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा था और मुझे अपनी मौत साफ साफ नजर आ रही थी। दर्द थकान और कमजोरी के कारण मेरे हाथ पैर बुरी तरह से काँप रहे थे। जिस कराण मैंने अपने हालातों से समझोता करते हुए अपने दोनों हाथ जमीन पर रख दिए और उनके ऊपर अपना सिर रख कर अपनी धीमी लेकिन दर्दनाक मौत का इंतजार करने लगी।
एक के बाद एक आदमी मेरे पीछे आकर मुझे चोदते रहे। कोई मेरी चूत मारता तो कोई मेरी गांड में अपना लण्ड घुसा कर मजे लेता। इस बीच दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई। पर मेरे बेहोश होने के बाद भी वो लोग नहीं रुके। जब मुझे होश आया तो रात हो चुकी थी। मुझे नहीं पता कि अब तक कितने लोग मुझे चोद चुके थे और कितने बाकी थे और ना ही समय का अब मुझे कोई अंदाजा था। मैं अब बस इस सबसे छुटकारा चाहती थी।
जब सभी लोगों का मन मुझसे भर गया तो वो मुझे छोडकर अलग हो गए। मैं वहां जमीन पर किसी बेजान लाश की तरह पडी रही। कुछ देर बाद वहाँ गनपत और बाकी लोग भी आ गए। शायद वो लोग मुझे अपने आदमियों के हवाले करके किसी दूसरे काम के लिए चले गए थे। जब वो बापिस आये तो मैं जमीन पर किसी मुर्दे की तरह पडी हुई थी। उन्हें लगा कि शायद मैं मर गई हूँ। इसलिए जफऱ बोला
जफर- अरे मूर्खों इस लाश को ठिकाने क्यों नहीं लगाया अब तक
जफऱ की बात सुनकर उन लोगों में से एक बोला
“बॉस ये लड़की अभी जिंदा है”
उस आदमी की बात सुनकर गनपत हैरान होते हुए बोला
गनपत- क्या अभी तक जिंदा है। कमाल है… यह लडकी तुम सबको भी झेल गई। बडी सख्त जान है यह तो…..
महेश- गनपत अब और कोई तमाशा मत करो और जल्दी से इसे ठिकाने लगा दो
गनपत- ऐसे कैसे ठिकाने लगा दूँ। तुमने देखा नहीं कि इतनी मार खाने और हम सबको बरदास्त करने के बाद भी यह जिंदा है। मतलब कि ये जीना चाहती है। कम से कम इसे जीने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए। क्यों दोस्तों क्या कहते हो
गनपत की बात सुनकर जफर बोला
जफर- हाँ सही कहा गनपत तूने
इतना बोलकर जफर मेरे आया और मेरी गाँड पर एक जोरदार लात मारते हुए बोला
जफर- सुन वे बहनचोद राण्ड… जा तू आजाद है। तेरे पास पूरे 10 मिनट हैं। इस खण्डहर से बाहर जाने के लिए, अगर 10 मिनट के अंदर तू इस खण्डहर से बाहर निकल गई तो फिर हम तुम्हें कुछ भी नहीं करें। लेकिन अगर तू 10 मिनट के अंदर इस खण्डहर से बाहर नहीं निकल पाई, तो तेरी मौत पक्की
जफर की बात सुनकर जैसे मेरे अंदर जान आ गई थी। मुझे जिंदा बचने की एक उम्मीद दिखने लगी थी। इसलिए मैं अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा करके उठने की कोशिश करने लगी, पर मेरा पूरा शरीऱ बेजान हो गया था। मैं चाहकर भी खडी नहीं हो पा रही थी। मुझे बार बार उठने की कोशिश करता देख ,वहाँ खड़ा हर एक इंसान मुझपर हंस रहा था। पर किसी को मुझ पर दया नहीं आई और ना ही किसी ने मेरी मदद की। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर किसी को इस्से कोई फर्क नहीं पड रहा था। आखिरकार मैंने हार मान ली और कोशिश करना बंद कर दिया। तो मंत्री मेरे पास आकर बोला
प्रकाश राज- ये कौन सी बात हुई जफर, तुम्हें दिख नहीं रहा कि इसकी हालत कितनी खराब है, कम से कम इसे सहारा देख खड़ा तो कर दो
इतना बोलकर मंत्री जी ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया। पर अगले ही पल मुझे छोडकर दूर हट गए। जिस कारण मैं किसी कटे पेड़ की तरह नीचे जमीन पर जा गिरी। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ। पर उस दर्द ने मेरे लिए दवा का काम किया। क्योंकि इतने तेज दर्द के कारण मुझे अपने शरीर का बाकी हिस्सा महसूस होने लगा था। मैं अपना सारा दर्द भूल गई और बस किसी भी तरह जिंदा बचने के लिए किसी घायल सांप की तरह सरकते हुए खण्डहर के बाहर जाने की कोशिश करने लगी।
कुछ दूर सरकने के बाद मैं एक दीवार के पास जा पहूंची। जिसके बाद मैं उस दीवार का सहारा लेकर खडे होने की कोशिश करने लगी। करीब 2-3 बार कोशिश करने के बाद मैं जैसे तैसे खडी हो गई थी और फिर मैं उस दीवार का सहारा लेकर चलने की कोशिश करने लगी। मैं धीरे धीरे चलते हुए उन सभी लोगों से दूर जा रही थी। शायद यह मेरे जिंदा बच निकलने का आखिरी प्रयास था। पर तभी अचानक से जफर मेरे पास आ गया और एक शैतानी हंसी हंसते हुए बोला बोला
जफर- हा हा हा…. सॉरी मेरी जान तुम्हारे 10 मिनट तो कब के खत्म हो गए हैं। अब तुम यहाँ से जिंदा बाहर नहीं जा सकती
इससे पहले मैं कुछ समझ पाती जफर ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और मेरी दोनों जाँघों पर कट लगा दिऐ। घाव काफी गहरे थे। जिस कराण मुझे बहुत दर्द हो रहा था और खून भी काफी ज्यादा निकल रहा था। इसलिए मैं खडी ना रह सकी और धडाम से नीचे जमीन पर जा गिरी। मेरे नीचे गिरते ही जफर मेरे बालों को पकडकर मुझे घसीटते हुआ आंगन के बीचों बीच ले आया, जहाँ जमीन पर एक काले रंग का बड़ा सा पत्थर पडा हुआ था। शायद वो कभी इसी खण्डहर का हिस्सा रहा था।
कुछ देर पहले ही मैं उसी पत्थर के पास किसी कुतिया की तरह खडी होकर चुद रही थी। जफर ने मुझे घसीटते हुए उसी पत्थर पर ले जाकर पटक दिया। जिस कारण मेरा आधा शरीर उस बडे से पत्थर पर और आधा जमीन पर पडा हुआ था। मुझे उस पत्थर पर किसी लाश की तरह पटकने के बाद वो सभी 6 पार्टनर्स एक एक करके मुझ पर चाकूओं से हमला करने लगे, मुझे नहीं पता कि किसने मुझ पर कितने बार किये थे और मेरे शरीर के किस हिस्से पर किसने बार किया था। मेरे शरीर पर होने बाला प्रत्यके बार मुझे मौत और ज्यादा करीब ले जा रहा था। मेरे मूँह से अब खून की उल्टियाँ होने लगी थीं, साथ ही साथ मुझे अब किसी भी प्रकार को कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था।
असल में मुझे इस वक्त अपना शरीर ही महसूस नहीं हो रहा था। बस किसी तरह मेरी सांसे चल रही थी और मेरे चारों तरफ मुझे इंसानी भेष में खडे जानबर दिखाई दे रहे थे। जो अपने शिकार को तडपा तडपा कर मार रहे थे। तभी अचानक से मौसम बदलने लगा। देखते ही देखते आसमान में काले बादल छा गए। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। क्योंकि कुछ देर पहले तो आसमान एकदम साफ था। फिर ये बादल कैसे आ गए। तभी अचानक तेज हावा चलने लगी और बादल गरजने लगे। यह सब देखकर मंत्री बोला
प्रकाश राज- लगता है मौसम खराब हो रहा है और कभी भी आँधी तूफान आ सकता है। इसलिए हमें यहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहिए, वर्ना आँधी तूफान में जंगल से निकलना मुश्किल हो जाऐगा
योगेश- मंत्री जी सही कह रहे हैं गनपत, चलो निकलते हैं यहाँ से। बैसे भी अब ये लड़की बचने बाली नहीं है। जंगल के इस इलाके में बैसे भी कोई इंशान आता जाता नहीं है। इसलिए एक दो दिन में ही जंगली जानवर इसे नोच कर खा जाऐंगे।
पर गनपत तो कुछ और ही सोच रहा था। उसने आस पास देखा तो उसे पास ही जमीन पर पडी एक लोहे की बडी सी रॉड दिखाई दी। उन लोगों ने अब तक मेरे साथ जो कुछ किया था, वो शायद गनपत के लिए काफी नहीं था, जिस कारण गनपत ने उस रॉड को उठा लिया और उसका नुकीला सिरा मेरी तरफ करके एक ही झटके में वो रॉड मेरे सीने के आर पार कर दी। गनपत ने वह बार इतना जोरदार और ताकत के साथ किया गया था कि वो रॉड मेरे सीने को चीरती हुई नीचे जमीन में जा धंसी थी। जिस कारण मेरे सीने से खून की तेज धार निकलने लगी और ठीक तभी आकाश में बिजली चमकने लगी और अचानक से तेज बारिस भी होने लगी।
मौसम में अचानक आऐ इस परिवर्तन से वो लोग बुरी तरह से हैरान थे और अब वो इस जगह पर रुकने खतरा नहीं उठाना चाहते थे। जिस कारण वो सभी लोग उस खण्डहर से तुरंत बाहर निकल गए। मुझे उस आँधी और बारिस में भी गाडियों के वहाँ से जाने की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी। कुछ ही देर में वहाँ सन्नाटा झा गया। अब उस सुनसान खण्डहर में मैं अकेली थी। जंगल से जानबरों के चिल्लाने की अजीब अजीब आवाजें आ रहीं थीं। जो उस आंधी और तूफान में भी साफ साफ सुनाई दे रही थी। आंधी तूफान और बिजली कडकने के कारण माहौल एक दम भयानक और डरावना हो गया था।
मैंने जिंदगी में कभी भी ऐसे मंजर का सामना नहीं किया था। पर आज जब मैं अपनी आखिरी सांसे ले रही थी तो जिंदगी मुझे प्रकृति का यह भयानक रूप भी दिखा रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और मैं जिंदगी और मौत के इस संघर्ष में बुरी तरह से हार चुकी थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा अंत इतना भयानक होगा। बस कुछ पलों की बात थी और मेरी जिंदगी समाप्त होने बाली थी। अब तक मेरे सारे एहसास पूरी तरह से खत्म हो गए थे।
मुझे अब कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। ना दर्द का कोई एहसास था और ना ही कोई गम था। मुझे अपनी जिंदगी के इन अंतिम झणों में अपनी सारी जिंदगी की झलक दिखाई दे रही थी। वो समय जब मैं काफी दुखी थी, वो समय जब मैं बहुत खुश थी, मेरी शादी का दिन, मेरी माँ की मौत का दिन, मेरा स्कूल का समय और मेरे ग्रेजुऐशन का समय, नौकरी करते हुए संघर्ष करने का समय, पति के द्वारा उपेक्षा का समय, अपनी मेहनत और लगन से प्रमोशन पाने का समय और भोपाल आने के बाद बिताया अपना हर एक पल मेरी आँखों के सामने था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी अगर सबसे ज्यादा खुश रही थी तो वो बस वही 20-22 दिन थे जो मैंने भोपाल में बिताऐ थे और अब मैं यहीँ पर अपनी अंतिम सांसे भी ले रही थी। भोपाल में बिताए अपनी आजादी के उन दिनों को याद करके पता नहीं कैसे पर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी। अब मुझे अपने मरने का कोई दुख नहीं था। इस वक्त मेरे चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। भोपाल में इन 20-22 दिनों में ही मैंने अपनी सारी जिंदगी जी ली थी। तभी मेरे मन में दबी हुई आखरी इच्छा जाग उठी। काश मैं इन 20-22 दिनों की तरह ही अपनी सारी जिंदगी बिता पाती।
यह सोचते ही मेरे चेहरे की मुस्कान और भी ज्यादा बडी हो गई ठीक थी। मेेरे शरीर पर हुए अनगिनत घाव से लगातार खून बहने के कारण मेरा शरीर हर पल बेजान हो रहा था और मेरी आंखों के सामने धीरे धीरे अंधेरा छा रहा था। ठीक तभी एक तेज गडगडाहट के साथ आकाश में चमकती बिजली मेरे सीने में धंसे उस लोहे के रॉड पर आ गिरी। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने मुझे खौलते हुए लावा में फेंक दिया हो। मेरा पूरा शरीर बुरी तरह चल रहा था और एक तेज रोशनी मेरी आँखों के सामने झा गई थी। लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने एक बार फिर अंधेरा छाने और मैं एक गहरी नींद में चली गई। शायद यही मेरा अंत था
इतना सब होने के बाद भी मैं जीना चाहती थी। इसलिए मैं जैसे तैसे उस कमरे से बाहर निकली। कमरे के बाहर खण्डहर के आँगन में करीब 15-16 आदमी खडे हुए थे। मुझे इस हालत में देखते ही वो मेरे चारों तरफ इकट्ठा हो गए। तभी अंदर से बाकी लोग भी बाहर आ गए। बाहर खडे सभी लोग बासना भरी नजर से मुझे घूरे जा रहे थे। पर मैं उन सबकी परवाह किये बिना किसी कुतिया की तरह चलती हुई उस खण्डहर से बाहर की तरफ जा रही थी तभी मुझे गनपत की आवाज सुनाई दी
गनपत- अरे तमाशा क्या देख रहे हो। ये कुतिया तुम सबके सामने है मजे करो
गनपत की आवाज सुनते ही वो लोग कुत्तों की तरह मुझे चोदने के लिए आपस में झगडने लगे। इसी बीच एक आदमी ने मेरी पीठ पर अपना एक पैर रख दिया। मुझमें अब इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसके पैर को हटा सकूँ और आगे बड सकूं। तभी एक दूसरा आदमी मेरे ठीक पीछे आकर घुठनो के बल बैठ गया और फिर उसने अपना पैंट खोलकर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। जैसे ही उसका लण्ड मेरी चूत में गया तो मेरे मूँह से चीख निकल गई।
आआआआहहहहहहह
पर मेरी चीख से किसी को कोई फर्क नहीं पडा। उल्टे बाकी के लोग अपस में लडना छोडकर मुझपर हंसने लगे। जो आदमी मेरी चुदाई कर रहा था उसने मजबूती के साथ मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकडा हुआ था। कुछ देर चुदाई करने के बाद वो अपने हाथों से मेरी गाँड पर थप्पड मारने लगा। जिस कारण लगातार मेरी चीखें निकलने लगी। मेरी दर्द भरी चीखें सुनकर उन सबको सुकून मिल रहा था।
उस आदमी के हटने ही दूसरा शूरू हो गया। मैं समझ गई कि ये सभी अब मुझे यूँ ही छोडने बाले नहीं हैं। धीरे धीरे मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा था और मुझे अपनी मौत साफ साफ नजर आ रही थी। दर्द थकान और कमजोरी के कारण मेरे हाथ पैर बुरी तरह से काँप रहे थे। जिस कराण मैंने अपने हालातों से समझोता करते हुए अपने दोनों हाथ जमीन पर रख दिए और उनके ऊपर अपना सिर रख कर अपनी धीमी लेकिन दर्दनाक मौत का इंतजार करने लगी।
एक के बाद एक आदमी मेरे पीछे आकर मुझे चोदते रहे। कोई मेरी चूत मारता तो कोई मेरी गांड में अपना लण्ड घुसा कर मजे लेता। इस बीच दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई। पर मेरे बेहोश होने के बाद भी वो लोग नहीं रुके। जब मुझे होश आया तो रात हो चुकी थी। मुझे नहीं पता कि अब तक कितने लोग मुझे चोद चुके थे और कितने बाकी थे और ना ही समय का अब मुझे कोई अंदाजा था। मैं अब बस इस सबसे छुटकारा चाहती थी।
जब सभी लोगों का मन मुझसे भर गया तो वो मुझे छोडकर अलग हो गए। मैं वहां जमीन पर किसी बेजान लाश की तरह पडी रही। कुछ देर बाद वहाँ गनपत और बाकी लोग भी आ गए। शायद वो लोग मुझे अपने आदमियों के हवाले करके किसी दूसरे काम के लिए चले गए थे। जब वो बापिस आये तो मैं जमीन पर किसी मुर्दे की तरह पडी हुई थी। उन्हें लगा कि शायद मैं मर गई हूँ। इसलिए जफऱ बोला
जफर- अरे मूर्खों इस लाश को ठिकाने क्यों नहीं लगाया अब तक
जफऱ की बात सुनकर उन लोगों में से एक बोला
“बॉस ये लड़की अभी जिंदा है”
उस आदमी की बात सुनकर गनपत हैरान होते हुए बोला
गनपत- क्या अभी तक जिंदा है। कमाल है… यह लडकी तुम सबको भी झेल गई। बडी सख्त जान है यह तो…..
महेश- गनपत अब और कोई तमाशा मत करो और जल्दी से इसे ठिकाने लगा दो
गनपत- ऐसे कैसे ठिकाने लगा दूँ। तुमने देखा नहीं कि इतनी मार खाने और हम सबको बरदास्त करने के बाद भी यह जिंदा है। मतलब कि ये जीना चाहती है। कम से कम इसे जीने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए। क्यों दोस्तों क्या कहते हो
गनपत की बात सुनकर जफर बोला
जफर- हाँ सही कहा गनपत तूने
इतना बोलकर जफर मेरे आया और मेरी गाँड पर एक जोरदार लात मारते हुए बोला
जफर- सुन वे बहनचोद राण्ड… जा तू आजाद है। तेरे पास पूरे 10 मिनट हैं। इस खण्डहर से बाहर जाने के लिए, अगर 10 मिनट के अंदर तू इस खण्डहर से बाहर निकल गई तो फिर हम तुम्हें कुछ भी नहीं करें। लेकिन अगर तू 10 मिनट के अंदर इस खण्डहर से बाहर नहीं निकल पाई, तो तेरी मौत पक्की
जफर की बात सुनकर जैसे मेरे अंदर जान आ गई थी। मुझे जिंदा बचने की एक उम्मीद दिखने लगी थी। इसलिए मैं अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा करके उठने की कोशिश करने लगी, पर मेरा पूरा शरीऱ बेजान हो गया था। मैं चाहकर भी खडी नहीं हो पा रही थी। मुझे बार बार उठने की कोशिश करता देख ,वहाँ खड़ा हर एक इंसान मुझपर हंस रहा था। पर किसी को मुझ पर दया नहीं आई और ना ही किसी ने मेरी मदद की। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर किसी को इस्से कोई फर्क नहीं पड रहा था। आखिरकार मैंने हार मान ली और कोशिश करना बंद कर दिया। तो मंत्री मेरे पास आकर बोला
प्रकाश राज- ये कौन सी बात हुई जफर, तुम्हें दिख नहीं रहा कि इसकी हालत कितनी खराब है, कम से कम इसे सहारा देख खड़ा तो कर दो
इतना बोलकर मंत्री जी ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया। पर अगले ही पल मुझे छोडकर दूर हट गए। जिस कारण मैं किसी कटे पेड़ की तरह नीचे जमीन पर जा गिरी। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ। पर उस दर्द ने मेरे लिए दवा का काम किया। क्योंकि इतने तेज दर्द के कारण मुझे अपने शरीर का बाकी हिस्सा महसूस होने लगा था। मैं अपना सारा दर्द भूल गई और बस किसी भी तरह जिंदा बचने के लिए किसी घायल सांप की तरह सरकते हुए खण्डहर के बाहर जाने की कोशिश करने लगी।
कुछ दूर सरकने के बाद मैं एक दीवार के पास जा पहूंची। जिसके बाद मैं उस दीवार का सहारा लेकर खडे होने की कोशिश करने लगी। करीब 2-3 बार कोशिश करने के बाद मैं जैसे तैसे खडी हो गई थी और फिर मैं उस दीवार का सहारा लेकर चलने की कोशिश करने लगी। मैं धीरे धीरे चलते हुए उन सभी लोगों से दूर जा रही थी। शायद यह मेरे जिंदा बच निकलने का आखिरी प्रयास था। पर तभी अचानक से जफर मेरे पास आ गया और एक शैतानी हंसी हंसते हुए बोला बोला
जफर- हा हा हा…. सॉरी मेरी जान तुम्हारे 10 मिनट तो कब के खत्म हो गए हैं। अब तुम यहाँ से जिंदा बाहर नहीं जा सकती
इससे पहले मैं कुछ समझ पाती जफर ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और मेरी दोनों जाँघों पर कट लगा दिऐ। घाव काफी गहरे थे। जिस कराण मुझे बहुत दर्द हो रहा था और खून भी काफी ज्यादा निकल रहा था। इसलिए मैं खडी ना रह सकी और धडाम से नीचे जमीन पर जा गिरी। मेरे नीचे गिरते ही जफर मेरे बालों को पकडकर मुझे घसीटते हुआ आंगन के बीचों बीच ले आया, जहाँ जमीन पर एक काले रंग का बड़ा सा पत्थर पडा हुआ था। शायद वो कभी इसी खण्डहर का हिस्सा रहा था।
कुछ देर पहले ही मैं उसी पत्थर के पास किसी कुतिया की तरह खडी होकर चुद रही थी। जफर ने मुझे घसीटते हुए उसी पत्थर पर ले जाकर पटक दिया। जिस कारण मेरा आधा शरीर उस बडे से पत्थर पर और आधा जमीन पर पडा हुआ था। मुझे उस पत्थर पर किसी लाश की तरह पटकने के बाद वो सभी 6 पार्टनर्स एक एक करके मुझ पर चाकूओं से हमला करने लगे, मुझे नहीं पता कि किसने मुझ पर कितने बार किये थे और मेरे शरीर के किस हिस्से पर किसने बार किया था। मेरे शरीर पर होने बाला प्रत्यके बार मुझे मौत और ज्यादा करीब ले जा रहा था। मेरे मूँह से अब खून की उल्टियाँ होने लगी थीं, साथ ही साथ मुझे अब किसी भी प्रकार को कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था।
असल में मुझे इस वक्त अपना शरीर ही महसूस नहीं हो रहा था। बस किसी तरह मेरी सांसे चल रही थी और मेरे चारों तरफ मुझे इंसानी भेष में खडे जानबर दिखाई दे रहे थे। जो अपने शिकार को तडपा तडपा कर मार रहे थे। तभी अचानक से मौसम बदलने लगा। देखते ही देखते आसमान में काले बादल छा गए। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। क्योंकि कुछ देर पहले तो आसमान एकदम साफ था। फिर ये बादल कैसे आ गए। तभी अचानक तेज हावा चलने लगी और बादल गरजने लगे। यह सब देखकर मंत्री बोला
प्रकाश राज- लगता है मौसम खराब हो रहा है और कभी भी आँधी तूफान आ सकता है। इसलिए हमें यहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहिए, वर्ना आँधी तूफान में जंगल से निकलना मुश्किल हो जाऐगा
योगेश- मंत्री जी सही कह रहे हैं गनपत, चलो निकलते हैं यहाँ से। बैसे भी अब ये लड़की बचने बाली नहीं है। जंगल के इस इलाके में बैसे भी कोई इंशान आता जाता नहीं है। इसलिए एक दो दिन में ही जंगली जानवर इसे नोच कर खा जाऐंगे।
पर गनपत तो कुछ और ही सोच रहा था। उसने आस पास देखा तो उसे पास ही जमीन पर पडी एक लोहे की बडी सी रॉड दिखाई दी। उन लोगों ने अब तक मेरे साथ जो कुछ किया था, वो शायद गनपत के लिए काफी नहीं था, जिस कारण गनपत ने उस रॉड को उठा लिया और उसका नुकीला सिरा मेरी तरफ करके एक ही झटके में वो रॉड मेरे सीने के आर पार कर दी। गनपत ने वह बार इतना जोरदार और ताकत के साथ किया गया था कि वो रॉड मेरे सीने को चीरती हुई नीचे जमीन में जा धंसी थी। जिस कारण मेरे सीने से खून की तेज धार निकलने लगी और ठीक तभी आकाश में बिजली चमकने लगी और अचानक से तेज बारिस भी होने लगी।
मौसम में अचानक आऐ इस परिवर्तन से वो लोग बुरी तरह से हैरान थे और अब वो इस जगह पर रुकने खतरा नहीं उठाना चाहते थे। जिस कारण वो सभी लोग उस खण्डहर से तुरंत बाहर निकल गए। मुझे उस आँधी और बारिस में भी गाडियों के वहाँ से जाने की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी। कुछ ही देर में वहाँ सन्नाटा झा गया। अब उस सुनसान खण्डहर में मैं अकेली थी। जंगल से जानबरों के चिल्लाने की अजीब अजीब आवाजें आ रहीं थीं। जो उस आंधी और तूफान में भी साफ साफ सुनाई दे रही थी। आंधी तूफान और बिजली कडकने के कारण माहौल एक दम भयानक और डरावना हो गया था।
मैंने जिंदगी में कभी भी ऐसे मंजर का सामना नहीं किया था। पर आज जब मैं अपनी आखिरी सांसे ले रही थी तो जिंदगी मुझे प्रकृति का यह भयानक रूप भी दिखा रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और मैं जिंदगी और मौत के इस संघर्ष में बुरी तरह से हार चुकी थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा अंत इतना भयानक होगा। बस कुछ पलों की बात थी और मेरी जिंदगी समाप्त होने बाली थी। अब तक मेरे सारे एहसास पूरी तरह से खत्म हो गए थे।
मुझे अब कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। ना दर्द का कोई एहसास था और ना ही कोई गम था। मुझे अपनी जिंदगी के इन अंतिम झणों में अपनी सारी जिंदगी की झलक दिखाई दे रही थी। वो समय जब मैं काफी दुखी थी, वो समय जब मैं बहुत खुश थी, मेरी शादी का दिन, मेरी माँ की मौत का दिन, मेरा स्कूल का समय और मेरे ग्रेजुऐशन का समय, नौकरी करते हुए संघर्ष करने का समय, पति के द्वारा उपेक्षा का समय, अपनी मेहनत और लगन से प्रमोशन पाने का समय और भोपाल आने के बाद बिताया अपना हर एक पल मेरी आँखों के सामने था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी अगर सबसे ज्यादा खुश रही थी तो वो बस वही 20-22 दिन थे जो मैंने भोपाल में बिताऐ थे और अब मैं यहीँ पर अपनी अंतिम सांसे भी ले रही थी। भोपाल में बिताए अपनी आजादी के उन दिनों को याद करके पता नहीं कैसे पर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी। अब मुझे अपने मरने का कोई दुख नहीं था। इस वक्त मेरे चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। भोपाल में इन 20-22 दिनों में ही मैंने अपनी सारी जिंदगी जी ली थी। तभी मेरे मन में दबी हुई आखरी इच्छा जाग उठी। काश मैं इन 20-22 दिनों की तरह ही अपनी सारी जिंदगी बिता पाती।
यह सोचते ही मेरे चेहरे की मुस्कान और भी ज्यादा बडी हो गई ठीक थी। मेेरे शरीर पर हुए अनगिनत घाव से लगातार खून बहने के कारण मेरा शरीर हर पल बेजान हो रहा था और मेरी आंखों के सामने धीरे धीरे अंधेरा छा रहा था। ठीक तभी एक तेज गडगडाहट के साथ आकाश में चमकती बिजली मेरे सीने में धंसे उस लोहे के रॉड पर आ गिरी। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने मुझे खौलते हुए लावा में फेंक दिया हो। मेरा पूरा शरीर बुरी तरह चल रहा था और एक तेज रोशनी मेरी आँखों के सामने झा गई थी। लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने एक बार फिर अंधेरा छाने और मैं एक गहरी नींद में चली गई। शायद यही मेरा अंत था
इतना सब होने के बाद भी मैं जीना चाहती थी। इसलिए मैं जैसे तैसे उस कमरे से बाहर निकली। कमरे के बाहर खण्डहर के आँगन में करीब 15-16 आदमी खडे हुए थे। मुझे इस हालत में देखते ही वो मेरे चारों तरफ इकट्ठा हो गए। तभी अंदर से बाकी लोग भी बाहर आ गए। बाहर खडे सभी लोग बासना भरी नजर से मुझे घूरे जा रहे थे। पर मैं उन सबकी परवाह किये बिना किसी कुतिया की तरह चलती हुई उस खण्डहर से बाहर की तरफ जा रही थी तभी मुझे गनपत की आवाज सुनाई दी
गनपत- अरे तमाशा क्या देख रहे हो। ये कुतिया तुम सबके सामने है मजे करो
गनपत की आवाज सुनते ही वो लोग कुत्तों की तरह मुझे चोदने के लिए आपस में झगडने लगे। इसी बीच एक आदमी ने मेरी पीठ पर अपना एक पैर रख दिया। मुझमें अब इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसके पैर को हटा सकूँ और आगे बड सकूं। तभी एक दूसरा आदमी मेरे ठीक पीछे आकर घुठनो के बल बैठ गया और फिर उसने अपना पैंट खोलकर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। जैसे ही उसका लण्ड मेरी चूत में गया तो मेरे मूँह से चीख निकल गई।
आआआआहहहहहहह
पर मेरी चीख से किसी को कोई फर्क नहीं पडा। उल्टे बाकी के लोग अपस में लडना छोडकर मुझपर हंसने लगे। जो आदमी मेरी चुदाई कर रहा था उसने मजबूती के साथ मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकडा हुआ था। कुछ देर चुदाई करने के बाद वो अपने हाथों से मेरी गाँड पर थप्पड मारने लगा। जिस कारण लगातार मेरी चीखें निकलने लगी। मेरी दर्द भरी चीखें सुनकर उन सबको सुकून मिल रहा था।
उस आदमी के हटने ही दूसरा शूरू हो गया। मैं समझ गई कि ये सभी अब मुझे यूँ ही छोडने बाले नहीं हैं। धीरे धीरे मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा था और मुझे अपनी मौत साफ साफ नजर आ रही थी। दर्द थकान और कमजोरी के कारण मेरे हाथ पैर बुरी तरह से काँप रहे थे। जिस कराण मैंने अपने हालातों से समझोता करते हुए अपने दोनों हाथ जमीन पर रख दिए और उनके ऊपर अपना सिर रख कर अपनी धीमी लेकिन दर्दनाक मौत का इंतजार करने लगी।
एक के बाद एक आदमी मेरे पीछे आकर मुझे चोदते रहे। कोई मेरी चूत मारता तो कोई मेरी गांड में अपना लण्ड घुसा कर मजे लेता। इस बीच दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई। पर मेरे बेहोश होने के बाद भी वो लोग नहीं रुके। जब मुझे होश आया तो रात हो चुकी थी। मुझे नहीं पता कि अब तक कितने लोग मुझे चोद चुके थे और कितने बाकी थे और ना ही समय का अब मुझे कोई अंदाजा था। मैं अब बस इस सबसे छुटकारा चाहती थी।
जब सभी लोगों का मन मुझसे भर गया तो वो मुझे छोडकर अलग हो गए। मैं वहां जमीन पर किसी बेजान लाश की तरह पडी रही। कुछ देर बाद वहाँ गनपत और बाकी लोग भी आ गए। शायद वो लोग मुझे अपने आदमियों के हवाले करके किसी दूसरे काम के लिए चले गए थे। जब वो बापिस आये तो मैं जमीन पर किसी मुर्दे की तरह पडी हुई थी। उन्हें लगा कि शायद मैं मर गई हूँ। इसलिए जफऱ बोला
जफर- अरे मूर्खों इस लाश को ठिकाने क्यों नहीं लगाया अब तक
जफऱ की बात सुनकर उन लोगों में से एक बोला
“बॉस ये लड़की अभी जिंदा है”
उस आदमी की बात सुनकर गनपत हैरान होते हुए बोला
गनपत- क्या अभी तक जिंदा है। कमाल है… यह लडकी तुम सबको भी झेल गई। बडी सख्त जान है यह तो…..
महेश- गनपत अब और कोई तमाशा मत करो और जल्दी से इसे ठिकाने लगा दो
गनपत- ऐसे कैसे ठिकाने लगा दूँ। तुमने देखा नहीं कि इतनी मार खाने और हम सबको बरदास्त करने के बाद भी यह जिंदा है। मतलब कि ये जीना चाहती है। कम से कम इसे जीने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए। क्यों दोस्तों क्या कहते हो
गनपत की बात सुनकर जफर बोला
जफर- हाँ सही कहा गनपत तूने
इतना बोलकर जफर मेरे आया और मेरी गाँड पर एक जोरदार लात मारते हुए बोला
जफर- सुन वे बहनचोद राण्ड… जा तू आजाद है। तेरे पास पूरे 10 मिनट हैं। इस खण्डहर से बाहर जाने के लिए, अगर 10 मिनट के अंदर तू इस खण्डहर से बाहर निकल गई तो फिर हम तुम्हें कुछ भी नहीं करें। लेकिन अगर तू 10 मिनट के अंदर इस खण्डहर से बाहर नहीं निकल पाई, तो तेरी मौत पक्की
जफर की बात सुनकर जैसे मेरे अंदर जान आ गई थी। मुझे जिंदा बचने की एक उम्मीद दिखने लगी थी। इसलिए मैं अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा करके उठने की कोशिश करने लगी, पर मेरा पूरा शरीऱ बेजान हो गया था। मैं चाहकर भी खडी नहीं हो पा रही थी। मुझे बार बार उठने की कोशिश करता देख ,वहाँ खड़ा हर एक इंसान मुझपर हंस रहा था। पर किसी को मुझ पर दया नहीं आई और ना ही किसी ने मेरी मदद की। दर्द के कारण मेरी आँखों से आँशू निकल रहे थे। पर किसी को इस्से कोई फर्क नहीं पड रहा था। आखिरकार मैंने हार मान ली और कोशिश करना बंद कर दिया। तो मंत्री मेरे पास आकर बोला
प्रकाश राज- ये कौन सी बात हुई जफर, तुम्हें दिख नहीं रहा कि इसकी हालत कितनी खराब है, कम से कम इसे सहारा देख खड़ा तो कर दो
इतना बोलकर मंत्री जी ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया। पर अगले ही पल मुझे छोडकर दूर हट गए। जिस कारण मैं किसी कटे पेड़ की तरह नीचे जमीन पर जा गिरी। जिससे मुझे काफी तेज दर्द हुआ। पर उस दर्द ने मेरे लिए दवा का काम किया। क्योंकि इतने तेज दर्द के कारण मुझे अपने शरीर का बाकी हिस्सा महसूस होने लगा था। मैं अपना सारा दर्द भूल गई और बस किसी भी तरह जिंदा बचने के लिए किसी घायल सांप की तरह सरकते हुए खण्डहर के बाहर जाने की कोशिश करने लगी।
कुछ दूर सरकने के बाद मैं एक दीवार के पास जा पहूंची। जिसके बाद मैं उस दीवार का सहारा लेकर खडे होने की कोशिश करने लगी। करीब 2-3 बार कोशिश करने के बाद मैं जैसे तैसे खडी हो गई थी और फिर मैं उस दीवार का सहारा लेकर चलने की कोशिश करने लगी। मैं धीरे धीरे चलते हुए उन सभी लोगों से दूर जा रही थी। शायद यह मेरे जिंदा बच निकलने का आखिरी प्रयास था। पर तभी अचानक से जफर मेरे पास आ गया और एक शैतानी हंसी हंसते हुए बोला बोला
जफर- हा हा हा…. सॉरी मेरी जान तुम्हारे 10 मिनट तो कब के खत्म हो गए हैं। अब तुम यहाँ से जिंदा बाहर नहीं जा सकती
इससे पहले मैं कुछ समझ पाती जफर ने अपनी जेव से एक चाकू निकाला और मेरी दोनों जाँघों पर कट लगा दिऐ। घाव काफी गहरे थे। जिस कराण मुझे बहुत दर्द हो रहा था और खून भी काफी ज्यादा निकल रहा था। इसलिए मैं खडी ना रह सकी और धडाम से नीचे जमीन पर जा गिरी। मेरे नीचे गिरते ही जफर मेरे बालों को पकडकर मुझे घसीटते हुआ आंगन के बीचों बीच ले आया, जहाँ जमीन पर एक काले रंग का बड़ा सा पत्थर पडा हुआ था। शायद वो कभी इसी खण्डहर का हिस्सा रहा था।
कुछ देर पहले ही मैं उसी पत्थर के पास किसी कुतिया की तरह खडी होकर चुद रही थी। जफर ने मुझे घसीटते हुए उसी पत्थर पर ले जाकर पटक दिया। जिस कारण मेरा आधा शरीर उस बडे से पत्थर पर और आधा जमीन पर पडा हुआ था। मुझे उस पत्थर पर किसी लाश की तरह पटकने के बाद वो सभी 6 पार्टनर्स एक एक करके मुझ पर चाकूओं से हमला करने लगे, मुझे नहीं पता कि किसने मुझ पर कितने बार किये थे और मेरे शरीर के किस हिस्से पर किसने बार किया था। मेरे शरीर पर होने बाला प्रत्यके बार मुझे मौत और ज्यादा करीब ले जा रहा था। मेरे मूँह से अब खून की उल्टियाँ होने लगी थीं, साथ ही साथ मुझे अब किसी भी प्रकार को कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था।
असल में मुझे इस वक्त अपना शरीर ही महसूस नहीं हो रहा था। बस किसी तरह मेरी सांसे चल रही थी और मेरे चारों तरफ मुझे इंसानी भेष में खडे जानबर दिखाई दे रहे थे। जो अपने शिकार को तडपा तडपा कर मार रहे थे। तभी अचानक से मौसम बदलने लगा। देखते ही देखते आसमान में काले बादल छा गए। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। क्योंकि कुछ देर पहले तो आसमान एकदम साफ था। फिर ये बादल कैसे आ गए। तभी अचानक तेज हावा चलने लगी और बादल गरजने लगे। यह सब देखकर मंत्री बोला
प्रकाश राज- लगता है मौसम खराब हो रहा है और कभी भी आँधी तूफान आ सकता है। इसलिए हमें यहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहिए, वर्ना आँधी तूफान में जंगल से निकलना मुश्किल हो जाऐगा
योगेश- मंत्री जी सही कह रहे हैं गनपत, चलो निकलते हैं यहाँ से। बैसे भी अब ये लड़की बचने बाली नहीं है। जंगल के इस इलाके में बैसे भी कोई इंशान आता जाता नहीं है। इसलिए एक दो दिन में ही जंगली जानवर इसे नोच कर खा जाऐंगे।
पर गनपत तो कुछ और ही सोच रहा था। उसने आस पास देखा तो उसे पास ही जमीन पर पडी एक लोहे की बडी सी रॉड दिखाई दी। उन लोगों ने अब तक मेरे साथ जो कुछ किया था, वो शायद गनपत के लिए काफी नहीं था, जिस कारण गनपत ने उस रॉड को उठा लिया और उसका नुकीला सिरा मेरी तरफ करके एक ही झटके में वो रॉड मेरे सीने के आर पार कर दी। गनपत ने वह बार इतना जोरदार और ताकत के साथ किया गया था कि वो रॉड मेरे सीने को चीरती हुई नीचे जमीन में जा धंसी थी। जिस कारण मेरे सीने से खून की तेज धार निकलने लगी और ठीक तभी आकाश में बिजली चमकने लगी और अचानक से तेज बारिस भी होने लगी।
मौसम में अचानक आऐ इस परिवर्तन से वो लोग बुरी तरह से हैरान थे और अब वो इस जगह पर रुकने खतरा नहीं उठाना चाहते थे। जिस कारण वो सभी लोग उस खण्डहर से तुरंत बाहर निकल गए। मुझे उस आँधी और बारिस में भी गाडियों के वहाँ से जाने की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी। कुछ ही देर में वहाँ सन्नाटा झा गया। अब उस सुनसान खण्डहर में मैं अकेली थी। जंगल से जानबरों के चिल्लाने की अजीब अजीब आवाजें आ रहीं थीं। जो उस आंधी और तूफान में भी साफ साफ सुनाई दे रही थी। आंधी तूफान और बिजली कडकने के कारण माहौल एक दम भयानक और डरावना हो गया था।
मैंने जिंदगी में कभी भी ऐसे मंजर का सामना नहीं किया था। पर आज जब मैं अपनी आखिरी सांसे ले रही थी तो जिंदगी मुझे प्रकृति का यह भयानक रूप भी दिखा रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी और मैं जिंदगी और मौत के इस संघर्ष में बुरी तरह से हार चुकी थी। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा अंत इतना भयानक होगा। बस कुछ पलों की बात थी और मेरी जिंदगी समाप्त होने बाली थी। अब तक मेरे सारे एहसास पूरी तरह से खत्म हो गए थे।
मुझे अब कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। ना दर्द का कोई एहसास था और ना ही कोई गम था। मुझे अपनी जिंदगी के इन अंतिम झणों में अपनी सारी जिंदगी की झलक दिखाई दे रही थी। वो समय जब मैं काफी दुखी थी, वो समय जब मैं बहुत खुश थी, मेरी शादी का दिन, मेरी माँ की मौत का दिन, मेरा स्कूल का समय और मेरे ग्रेजुऐशन का समय, नौकरी करते हुए संघर्ष करने का समय, पति के द्वारा उपेक्षा का समय, अपनी मेहनत और लगन से प्रमोशन पाने का समय और भोपाल आने के बाद बिताया अपना हर एक पल मेरी आँखों के सामने था।
मैं अपनी पूरी जिंदगी अगर सबसे ज्यादा खुश रही थी तो वो बस वही 20-22 दिन थे जो मैंने भोपाल में बिताऐ थे और अब मैं यहीँ पर अपनी अंतिम सांसे भी ले रही थी। भोपाल में बिताए अपनी आजादी के उन दिनों को याद करके पता नहीं कैसे पर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी। अब मुझे अपने मरने का कोई दुख नहीं था। इस वक्त मेरे चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। भोपाल में इन 20-22 दिनों में ही मैंने अपनी सारी जिंदगी जी ली थी। तभी मेरे मन में दबी हुई आखरी इच्छा जाग उठी। काश मैं इन 20-22 दिनों की तरह ही अपनी सारी जिंदगी बिता पाती।
यह सोचते ही मेरे चेहरे की मुस्कान और भी ज्यादा बडी हो गई ठीक थी। मेेरे शरीर पर हुए अनगिनत घाव से लगातार खून बहने के कारण मेरा शरीर हर पल बेजान हो रहा था और मेरी आंखों के सामने धीरे धीरे अंधेरा छा रहा था। ठीक तभी एक तेज गडगडाहट के साथ आकाश में चमकती बिजली मेरे सीने में धंसे उस लोहे के रॉड पर आ गिरी। उस पल मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने मुझे खौलते हुए लावा में फेंक दिया हो। मेरा पूरा शरीर बुरी तरह चल रहा था और एक तेज रोशनी मेरी आँखों के सामने झा गई थी। लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों के सामने एक बार फिर अंधेरा छाने और मैं एक गहरी नींद में चली गई। शायद यही मेरा अंत था