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Erotica ड्रेगन हार्ट (लव, सेक्स एण्ड क्राईम)

parkas

Well-Known Member
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Update 039 -

जब मेरी आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी। चारों तरफ रोशनी फैल चुकी थी। मुझे अब भी अपने शरीर का कोई अंग महसूस नहीं हो रहा था। पर मैं यह सोचकर हैरान थी कि मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। मैंने जैसे तैसे कोशिश करके अपने सिर को थोडा ऊपर उठाया तो देखा मेरा पूरा शरीर जल कर काला हो गया है और आस पास की मिट्टी भी पूरी तरह से काली पड चुकी है। लेकिन अब आसमान में बादलों का दूर दूर तक कोई नामो निशान नहीं था। मैं वहाँ किसी मुर्दे की तरह पडी हुई बस यही सोच रही थी कि क्या मैं सच में जिंदा हूँ या यह मेरी आत्मा है जो मुझे यह सव दिखा रही है।

मुझे अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर से एक गहरी नींद में चली गई। दोपहर के समय एक बार फिर मेरी आँख खुली। तो मैंने दोबारा अपने आप को उसी हालत में पाया। तब जाकर मुझे यकीन हुआ कि मैं अब तक जिंदा हूँ। पर कैसे इसका मेरे पास कोई जबाब नहीं था। क्योंकि किसी इंशान के पूरे शरीर पर चाकुओं के इतने सारे बार होने और एक लोहे की मोटी रॉड उसके सीने के आर पार होने के बाद, उस इंशान के जिंदा बचने की कोई संभावना हो ही नहीं सकती। ऊपर से मेरे ऊपर आकाशीय बिजली भी गिरी थी।

जो बडी से बडी इमारतों को भी नष्ट कर देती है, अच्छे खासे हरे भरे पेड़ को जला कर राख कर देती है, तो फिर इन सबके बाद मैं अब तक जिंदा कैसे और क्यूँ हूँ। मेरे पास मेरे इन सबालों का कोई जबाब नहीं था। पर अब जब मेरे पास अपने आप को जिंदा रखने और अपना बदला लेने का एक और मौका था, जिसे मैं किसी भी कीमत पर गंबाना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं अपने हाथ पैर हिलाने की कोशिश करने लगी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद, आखिरकार मैं अपने शरीर को हिलाने डुलाने में कामयाब रही। हाँलाकि मेरा पूरा शरीर चल चुका था, जिसे देखकर मुझे काफी बुरा लग रहा था।

ठीक तभी मैंने अचानक से अपने सिर पर हाथ लगाया तो मेरी आँखों से आँशू निकलने लगे। क्योंकि उस हादशे में मेरे बाल भी पूरी तरह से जल चुके हैं। पर फिलहाल इसमें मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने उठने की कोशिश की, लेकिन मेरे पेट में धंसी लोहे की रॉड जो अब भी जमीन में गडी हुई थी। उसके कारण मैं उठ नहीं पा रह थी। क्योंकि बिजली गिरने के कारण वो रॉड पिघल कर किसी मोटे खूँटे की तरह गडी हुई थी। मैंने उसे अपने सीने से निकालने के लिए जैसे ही हाथ लगाया तो वो मुझे अब भी काफी गर्म महसूस हो रही थी। लेकिन अब मुझे दर्द और जलन से कोई फर्क नहीं पड रहा था।

उस रॉड को अपने सीने से निकालने की काफी कोशिश की, पर मैं उस रॉ़ड को हिला तक नहीं पाई। लेकिन मैंने कोशिश करना बंद नहीं की और अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा कर उस रॉड को अपने सीने से निकालने के लिए जोर लगाने लगी। आखिरकार बार बार कोशिश करने पर मेरी मेहनत रंग लाई और वही रॉड धीरे धीरे बाहर आने लगी। रॉड बाहर आते ही मेरे सीने से काले रंग का गाडा खून बाहर निकलने लगा। शायद बिजली गिरने से मेरा खून भी जलकर काला पड गया था।

उस रॉड को अपने सीने से बाहर निकालने के लिए मुझे अपनी पूरी ताकत लगानी पडी थी। इसलिए उस रॉड को वहीं जमीन पर रखकर मैं थोडा रेस्ट करने लगी। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं एक बार फिर उठने की कोशिश करने लगी, लेकिन अब मेरे अंदर उठकर खडे होने की बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी। इसलिए में थोडा थोडा करके सरकते हुए दीवार के पास जाने लगी। जैसे ही मैं दीवार के पास पहूँची, तो मैं एक बार फिर उसके सहारे से खडे होने की कोशिश करने लगी।

कुछ देर यूँ ही मेहनत करने के बाद आखिरकार मैं खडी होने में कामयाब रही। जिसके बाद मैं उसी दीवार का सहारा लेकर धीरे धीरे चलते हुए बापिस उस कमरे की तरफ बड गई जहाँ पर मुझे बाँधकर रखा गया था। मेरा पूरा शरीर बिजली गिरने से जल चुका था। जिस कारण मेरे शरीर पर धूप पडने से मुझे काफी तेज जलन महसूस हो रही थी। उस कमरे में जाकर मैं धूप से बच सकती थी। साथ ही साथ उस कमरे में मेरे फटे हुए कपडे भी पडे हुए थे। जिनसे मैं अपने घाव को बांध सकती थी। कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एकबार पलटकर उस जगह को ध्यान से देखा, जहाँ मैं कुछ देर पहले पडी हुई थी।

तो मेरी नजर उस पत्थर बडे से पत्थर पर गई, जिसपर कुछ देर पहले मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा पडा हुआ था। वो पत्थर अब छोटे छोटे टुकडों में टूट चुका था। जिसका केवल एक ही मतलब की मेरे ऊपर जो बिजली गिरी थी वो वहूत ज्यादा पावरफुल थी। तभी वो पत्थर इस तरह से टूट गया था। खैर यह सब सोचने का फिलहाल मेरे पास कोई समय नहीं था। इसलिए मैं उस कमरे के अंदर चली गई और वहाँ नीचे जमीन पर पडा मेरा फटा हुआ टॉप उठाकर, उस कमरे के अंदर एक कोने में दीवाल के साहारे बैठ गई। जिसके बाद मैं अपने टॉप को फाटकर अपनी चोटों पर बाँधने लगी।

यह सब काम करते करते वक्त मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी और थकान महसूस हो रही थी। क्योंकि पिछले 2 दिनों से मैंने ना तो कुछ खाया था और ना ही कुछ पिया था। जिस कारण मुझे बहुत तेज प्यास भी लग रही थी। तभी मेरी नजर कमरे में मुझेसे थोडी दूर पर पडी एक पानी की बॉटल पर पडी। जिसमें अब भी थोडा पानी बचा हुआ था। उस बॉटल को वहाँ देखते ही मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर जैसे तैसे उस बॉटल के पास पहुँची और एक ही घूँट में सारा पानी पी गई। हालाँकि उस थोडे से पानी से मेरी प्यास नहीं बुझी थी। पर फिर भी मुझे काफी राहत महसूस हो रही थी।

इसके बाद मैं वापिस उस दीवार के पास जाकर नीचे फर्स पर लेट गई। इस वक्त मुझे कुछ भी समझ नहीं का आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ और कैसे इस जगह से बाहर निकलूँ। लेकिन इससे भी बड़ा सबाल मेरे दिमाग में चल रहा था और वो था कि आखिर मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। यह सब सोचते सोचते एक बार फिर मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की दरवाजे आती रोशनी अब बहुत कम हो रही है। जिससे मैंने अंदाजा लगाया कि दिन ढलना शुरू हो गया है। मैं अब भी वहीं उस खण्डहर के कमरे में नीचे फर्स पर लेटकर अपनी मौत का इंतजार कर रही थी।

क्योंकि यह तो तय था कि अगर किस्मत से मैं इतने सारे गहरे घाव और उस आसमानी बिजली से बच भी गई हूँ, तो भी भूख प्यास से पक्का मेरी मौत जाऐगी। ऊपर से मेरे घाव से रिशते खून की खूशवू को सूँघकर जंगली जानवर कभी भी यहाँ आ सकते थे। जो मुझे नोंच नोंच कर खा जाऐंगे। फिलहाल मेरे अंदर उनसे बचने और यहाँ से बापिस शहर तक जाने की बिल्कुल भी ताकत नहीं थी। तभी मेरा हाथ किसी छोटी सी चीज से टकराया। जैसे ही मैंने उसे टटोलकर देखा तो मैं समझ गई कि यह एक लाईटर है, जिसे उन लोगों में से ही कोई यहाँ गलती से छोड गया है। मैंने तुरंत उस लाईटर को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।

क्योंकि यह लाईटर मुझे जंगली जानबरों से बचने और अंधेरे में देखने के बहुत काम आ सकता था। तभी अचानक से मुझे बाहर से कुछ आदमियों की आवाजें सुनाई देने लगीं। जिन्हें सुनकर मैं समझ गई की गनपत और बाकी के लोग यहाँ बापिस आ गए हैं। अगर उन लगों ने मुझे इस हालत में भी जिंदा देख लिया तो पक्का वो मेरे टुकडे टुकडे करके जानबरों को खिला देंगे। अपनी इतनी बुरी हालत होने के बाद भी पता नहीं क्यों मेरे अंदर अब भी जीने की इच्छा बाकी थी। इसलिए मैं उन लोगों से छिपने के लिए उस कमरे में इधर उधर देखने लगी।

वो कमरा एकदम खाली था और वहाँ छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। तभी मेरा पैर उस कमरे के एक कोने में रखी पत्थर की मूर्ती से टकराया। मेरे पैर के टकराने से वो मूर्ती थोडी सी हिल गई थी। ठीक तभी मुझे अपने पास की दीवार सरकने की हल्कि सी आवाज सुनाई दी। जब किसी इंसान को अपनी मौत नजर आती है, तो उसके सभी सेंस तेजी से काम करने लगते हैं। शायद यही सब मेरे साथ भी हो रहा था। इसलिए मैंने दीवार सरकने की उस हल्कि सी आवाज को भी सुन लिया था। जिसे कंफर्म करने के लिए मैंने एक बार फिर से उस मूर्ती में लात मारी।

जैसा की मुझे उम्मीद थी, इस बार फिर से मूर्ती के हिलने पर दीवार में से हल्कि सी आवाज हुई और मुझे दीवार के कोने में हल्की सी दरार भी दिखाई दी। जिसे देखकर मैं तुरंत समझ गई कि यहाँ जरूर कोई कोई सीक्रेट कमरा है। उन लोगों से छिपने के लिए यह सीक्रेट कमरा मेरे काफी काम आ सकता था। इसलिए मैं उस मूर्ती के पास जाकर उसे हिला डुला कर देखने लगी। जल्दी ही मैं समझ गई कि उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाने से उस सीक्रेट कमरे का रास्ता ओपन होता है। इसलिए मैंने तुरंत ही उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाना शूरू कर दिया। कुछ ही देर में उस दीवार में से एक छोटा सा दरवाजा खुल गया। उस दरवाजे के खुलते ही मैं बिना देर किए सरकते हुए उस दरवाजे के अंदर चली गई।

दरवाजे के अंदर जाकर मैंने देखा कि बाहर की तरह ही अंदर भी दरवाजे पास एक पत्थर की मूर्ती रखी हुई है। जिसे मैंने जैसे ही एण्टी क्लॉक बाईज घुमाया तो रास्ता बंद हो गया। ठीक तभी गनपत और जफर उस कमरे के अंदर आ गए, जहाँ कुछ देर पहले मैं मौजूद थी। सीक्रेट कमरे के अंदर पहुँचकर मैं दीवार से कान लगाकर उनकी बातें सुन्ने की कोशिश करने लगी। गनपत और जफऱ के अचानक वहाँ आने के कारण मैं उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद नहीं कर पाई थी। जिस कारण कोने में एक पतली सी दरार रह गई थी। इसलिए मुझे उनकी आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी। तभी मुझे जफर की आवाज सुनाई दी

जफर- गनपत यार मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर वो लड़की गई कहां।

गनपत- अरे यार जफर उसे कहीं जाने लायक हमने छोडा ही कहाँ था। वो तो अब यमराज के यहाँ अपनी हाजरी लगा रही होगी

जफर- तो फिर उसकी लाश तो होनी चाहिए थी यहाँ पर

जफर की बात सुनकर गनपत ने हंसते हुए कहा

गनपत- अरे यार तूने बाहर नहीं देखा क्या… आंगन में जलने के निशान है। यानि रात में यहाँ पक्का बिजली गिरी थी। वो पत्थर भी तो पूरी तरह से चकनाचूर हो गया है। जिसपर वो लड़की पडी हुई थी और वो रॉड जो मैंने उसके पेट में घुसाई थी। उसका हाल भी तो तू देख चुका है। तो फिर उस लड़की का जिंदा बचना नामुमकिन है। ऐसी बिजली गिरने से तो उसकी हड्डियाँ भी जलकर राख हो गईं होंगी। अगर कुछ बचा भी होगा तो वो जंगली जानबर खा गए होंगे।

गनपत की बात सुनकर जफऱ उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला

जफर- शायद तू सही कह रहा है। मैं ही वे बजह यह सब सोच रहा था।

गनपत- चल कोई बात नहीं। अब तो तेरी तसल्ली हो गई ना।

जफर- हाँ हो गई

गनपत- तो फिर बता अब आगे क्या करना है।

जफर- मेरी धनराज से आज सुबह ही बात हुई थी। उसने कहा है कि हमारे बीजा और पासपोर्ट में 1 महिने का समय लगेगा। इसलिए तब तक हमें कहीं छिपना होगा

जफर की बात सुनकर गनपत गुस्से से बिफरते हुए बोला

गनपत- अबे पागल है क्या। मैं यहाँ जंगल के बीचों बीच नहीं रह सकता

जफर- अरे यार तुझे यहाँ रुकने के लिए कौन बोल रहा है। हम आज रात ही दिल्ली निकल रहे हैं। वहाँ मंत्री जी का एक सीक्रेट बंगला है। मेरी उनसे पहले ही बात हो गई है। वहाँ किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी और वहाँ हमें पहचानने बाला भी कोई नहीं होगा। इसलिए वह जगह हमारे लिए सबसे बेस्ट है।

गनपत- तो फिर हम यहाँ क्यों आये हैं

जफर- पहला तो मैं उस लड़की की लाश देख कर कंफर्म करना चाहता था कि वो मरी या नहीं। पर बाहर की हालत देखकर मुझे यकीन हो गया है कि उसका बचना नामुमकिन है और दूसरा मैं एक बार अपने माल पर नजर डालना चाहता था कि वो सुरक्षित है या नहीं। क्योंकि आज के बाद पता नहीं हमारा कब यहाँ आना हो।

गनपत- अबे तो पहले बोलना चाहिए था ना, चल देखते हैं।

मैं उस सीक्रेट कमरे के अंदर से ही उनकी सारी बातें सुन रही थी। उन लोगों की बातें सुनकर मैं समझ गई कि उन्हें मेरी मौत का यकीन हो गया है। पर उनका माल यहाँ पर कहाँ रखा होगा। यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी। मैं इस वक्त जिस कमरे में थी। उसके पूरी तरह से बंद होने के कारण वहाँ एकदम अंधेरा छा गया था। जिस बजह से मैंने अब तक उस कमरे को अच्छी तरह से चैक भी नहीं किया था। मैं अभी अस बारे में सोच ही रही थी कि तभी उस कमरे में हरे रंग की रोशनी फैल गई।


कहानी जारी है......
Bahut hi badhiya update diya hai redhat.ag bhai....
Nice and beautiful update....
 

park

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Update 039 -

जब मेरी आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी। चारों तरफ रोशनी फैल चुकी थी। मुझे अब भी अपने शरीर का कोई अंग महसूस नहीं हो रहा था। पर मैं यह सोचकर हैरान थी कि मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। मैंने जैसे तैसे कोशिश करके अपने सिर को थोडा ऊपर उठाया तो देखा मेरा पूरा शरीर जल कर काला हो गया है और आस पास की मिट्टी भी पूरी तरह से काली पड चुकी है। लेकिन अब आसमान में बादलों का दूर दूर तक कोई नामो निशान नहीं था। मैं वहाँ किसी मुर्दे की तरह पडी हुई बस यही सोच रही थी कि क्या मैं सच में जिंदा हूँ या यह मेरी आत्मा है जो मुझे यह सव दिखा रही है।

मुझे अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर से एक गहरी नींद में चली गई। दोपहर के समय एक बार फिर मेरी आँख खुली। तो मैंने दोबारा अपने आप को उसी हालत में पाया। तब जाकर मुझे यकीन हुआ कि मैं अब तक जिंदा हूँ। पर कैसे इसका मेरे पास कोई जबाब नहीं था। क्योंकि किसी इंशान के पूरे शरीर पर चाकुओं के इतने सारे बार होने और एक लोहे की मोटी रॉड उसके सीने के आर पार होने के बाद, उस इंशान के जिंदा बचने की कोई संभावना हो ही नहीं सकती। ऊपर से मेरे ऊपर आकाशीय बिजली भी गिरी थी।

जो बडी से बडी इमारतों को भी नष्ट कर देती है, अच्छे खासे हरे भरे पेड़ को जला कर राख कर देती है, तो फिर इन सबके बाद मैं अब तक जिंदा कैसे और क्यूँ हूँ। मेरे पास मेरे इन सबालों का कोई जबाब नहीं था। पर अब जब मेरे पास अपने आप को जिंदा रखने और अपना बदला लेने का एक और मौका था, जिसे मैं किसी भी कीमत पर गंबाना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं अपने हाथ पैर हिलाने की कोशिश करने लगी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद, आखिरकार मैं अपने शरीर को हिलाने डुलाने में कामयाब रही। हाँलाकि मेरा पूरा शरीर चल चुका था, जिसे देखकर मुझे काफी बुरा लग रहा था।

ठीक तभी मैंने अचानक से अपने सिर पर हाथ लगाया तो मेरी आँखों से आँशू निकलने लगे। क्योंकि उस हादशे में मेरे बाल भी पूरी तरह से जल चुके हैं। पर फिलहाल इसमें मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने उठने की कोशिश की, लेकिन मेरे पेट में धंसी लोहे की रॉड जो अब भी जमीन में गडी हुई थी। उसके कारण मैं उठ नहीं पा रह थी। क्योंकि बिजली गिरने के कारण वो रॉड पिघल कर किसी मोटे खूँटे की तरह गडी हुई थी। मैंने उसे अपने सीने से निकालने के लिए जैसे ही हाथ लगाया तो वो मुझे अब भी काफी गर्म महसूस हो रही थी। लेकिन अब मुझे दर्द और जलन से कोई फर्क नहीं पड रहा था।

उस रॉड को अपने सीने से निकालने की काफी कोशिश की, पर मैं उस रॉ़ड को हिला तक नहीं पाई। लेकिन मैंने कोशिश करना बंद नहीं की और अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा कर उस रॉड को अपने सीने से निकालने के लिए जोर लगाने लगी। आखिरकार बार बार कोशिश करने पर मेरी मेहनत रंग लाई और वही रॉड धीरे धीरे बाहर आने लगी। रॉड बाहर आते ही मेरे सीने से काले रंग का गाडा खून बाहर निकलने लगा। शायद बिजली गिरने से मेरा खून भी जलकर काला पड गया था।

उस रॉड को अपने सीने से बाहर निकालने के लिए मुझे अपनी पूरी ताकत लगानी पडी थी। इसलिए उस रॉड को वहीं जमीन पर रखकर मैं थोडा रेस्ट करने लगी। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं एक बार फिर उठने की कोशिश करने लगी, लेकिन अब मेरे अंदर उठकर खडे होने की बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी। इसलिए में थोडा थोडा करके सरकते हुए दीवार के पास जाने लगी। जैसे ही मैं दीवार के पास पहूँची, तो मैं एक बार फिर उसके सहारे से खडे होने की कोशिश करने लगी।

कुछ देर यूँ ही मेहनत करने के बाद आखिरकार मैं खडी होने में कामयाब रही। जिसके बाद मैं उसी दीवार का सहारा लेकर धीरे धीरे चलते हुए बापिस उस कमरे की तरफ बड गई जहाँ पर मुझे बाँधकर रखा गया था। मेरा पूरा शरीर बिजली गिरने से जल चुका था। जिस कारण मेरे शरीर पर धूप पडने से मुझे काफी तेज जलन महसूस हो रही थी। उस कमरे में जाकर मैं धूप से बच सकती थी। साथ ही साथ उस कमरे में मेरे फटे हुए कपडे भी पडे हुए थे। जिनसे मैं अपने घाव को बांध सकती थी। कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एकबार पलटकर उस जगह को ध्यान से देखा, जहाँ मैं कुछ देर पहले पडी हुई थी।

तो मेरी नजर उस पत्थर बडे से पत्थर पर गई, जिसपर कुछ देर पहले मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा पडा हुआ था। वो पत्थर अब छोटे छोटे टुकडों में टूट चुका था। जिसका केवल एक ही मतलब की मेरे ऊपर जो बिजली गिरी थी वो वहूत ज्यादा पावरफुल थी। तभी वो पत्थर इस तरह से टूट गया था। खैर यह सब सोचने का फिलहाल मेरे पास कोई समय नहीं था। इसलिए मैं उस कमरे के अंदर चली गई और वहाँ नीचे जमीन पर पडा मेरा फटा हुआ टॉप उठाकर, उस कमरे के अंदर एक कोने में दीवाल के साहारे बैठ गई। जिसके बाद मैं अपने टॉप को फाटकर अपनी चोटों पर बाँधने लगी।

यह सब काम करते करते वक्त मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी और थकान महसूस हो रही थी। क्योंकि पिछले 2 दिनों से मैंने ना तो कुछ खाया था और ना ही कुछ पिया था। जिस कारण मुझे बहुत तेज प्यास भी लग रही थी। तभी मेरी नजर कमरे में मुझेसे थोडी दूर पर पडी एक पानी की बॉटल पर पडी। जिसमें अब भी थोडा पानी बचा हुआ था। उस बॉटल को वहाँ देखते ही मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर जैसे तैसे उस बॉटल के पास पहुँची और एक ही घूँट में सारा पानी पी गई। हालाँकि उस थोडे से पानी से मेरी प्यास नहीं बुझी थी। पर फिर भी मुझे काफी राहत महसूस हो रही थी।

इसके बाद मैं वापिस उस दीवार के पास जाकर नीचे फर्स पर लेट गई। इस वक्त मुझे कुछ भी समझ नहीं का आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ और कैसे इस जगह से बाहर निकलूँ। लेकिन इससे भी बड़ा सबाल मेरे दिमाग में चल रहा था और वो था कि आखिर मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। यह सब सोचते सोचते एक बार फिर मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की दरवाजे आती रोशनी अब बहुत कम हो रही है। जिससे मैंने अंदाजा लगाया कि दिन ढलना शुरू हो गया है। मैं अब भी वहीं उस खण्डहर के कमरे में नीचे फर्स पर लेटकर अपनी मौत का इंतजार कर रही थी।

क्योंकि यह तो तय था कि अगर किस्मत से मैं इतने सारे गहरे घाव और उस आसमानी बिजली से बच भी गई हूँ, तो भी भूख प्यास से पक्का मेरी मौत जाऐगी। ऊपर से मेरे घाव से रिशते खून की खूशवू को सूँघकर जंगली जानवर कभी भी यहाँ आ सकते थे। जो मुझे नोंच नोंच कर खा जाऐंगे। फिलहाल मेरे अंदर उनसे बचने और यहाँ से बापिस शहर तक जाने की बिल्कुल भी ताकत नहीं थी। तभी मेरा हाथ किसी छोटी सी चीज से टकराया। जैसे ही मैंने उसे टटोलकर देखा तो मैं समझ गई कि यह एक लाईटर है, जिसे उन लोगों में से ही कोई यहाँ गलती से छोड गया है। मैंने तुरंत उस लाईटर को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।

क्योंकि यह लाईटर मुझे जंगली जानबरों से बचने और अंधेरे में देखने के बहुत काम आ सकता था। तभी अचानक से मुझे बाहर से कुछ आदमियों की आवाजें सुनाई देने लगीं। जिन्हें सुनकर मैं समझ गई की गनपत और बाकी के लोग यहाँ बापिस आ गए हैं। अगर उन लगों ने मुझे इस हालत में भी जिंदा देख लिया तो पक्का वो मेरे टुकडे टुकडे करके जानबरों को खिला देंगे। अपनी इतनी बुरी हालत होने के बाद भी पता नहीं क्यों मेरे अंदर अब भी जीने की इच्छा बाकी थी। इसलिए मैं उन लोगों से छिपने के लिए उस कमरे में इधर उधर देखने लगी।

वो कमरा एकदम खाली था और वहाँ छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। तभी मेरा पैर उस कमरे के एक कोने में रखी पत्थर की मूर्ती से टकराया। मेरे पैर के टकराने से वो मूर्ती थोडी सी हिल गई थी। ठीक तभी मुझे अपने पास की दीवार सरकने की हल्कि सी आवाज सुनाई दी। जब किसी इंसान को अपनी मौत नजर आती है, तो उसके सभी सेंस तेजी से काम करने लगते हैं। शायद यही सब मेरे साथ भी हो रहा था। इसलिए मैंने दीवार सरकने की उस हल्कि सी आवाज को भी सुन लिया था। जिसे कंफर्म करने के लिए मैंने एक बार फिर से उस मूर्ती में लात मारी।

जैसा की मुझे उम्मीद थी, इस बार फिर से मूर्ती के हिलने पर दीवार में से हल्कि सी आवाज हुई और मुझे दीवार के कोने में हल्की सी दरार भी दिखाई दी। जिसे देखकर मैं तुरंत समझ गई कि यहाँ जरूर कोई कोई सीक्रेट कमरा है। उन लोगों से छिपने के लिए यह सीक्रेट कमरा मेरे काफी काम आ सकता था। इसलिए मैं उस मूर्ती के पास जाकर उसे हिला डुला कर देखने लगी। जल्दी ही मैं समझ गई कि उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाने से उस सीक्रेट कमरे का रास्ता ओपन होता है। इसलिए मैंने तुरंत ही उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाना शूरू कर दिया। कुछ ही देर में उस दीवार में से एक छोटा सा दरवाजा खुल गया। उस दरवाजे के खुलते ही मैं बिना देर किए सरकते हुए उस दरवाजे के अंदर चली गई।

दरवाजे के अंदर जाकर मैंने देखा कि बाहर की तरह ही अंदर भी दरवाजे पास एक पत्थर की मूर्ती रखी हुई है। जिसे मैंने जैसे ही एण्टी क्लॉक बाईज घुमाया तो रास्ता बंद हो गया। ठीक तभी गनपत और जफर उस कमरे के अंदर आ गए, जहाँ कुछ देर पहले मैं मौजूद थी। सीक्रेट कमरे के अंदर पहुँचकर मैं दीवार से कान लगाकर उनकी बातें सुन्ने की कोशिश करने लगी। गनपत और जफऱ के अचानक वहाँ आने के कारण मैं उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद नहीं कर पाई थी। जिस कारण कोने में एक पतली सी दरार रह गई थी। इसलिए मुझे उनकी आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी। तभी मुझे जफर की आवाज सुनाई दी

जफर- गनपत यार मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर वो लड़की गई कहां।

गनपत- अरे यार जफर उसे कहीं जाने लायक हमने छोडा ही कहाँ था। वो तो अब यमराज के यहाँ अपनी हाजरी लगा रही होगी

जफर- तो फिर उसकी लाश तो होनी चाहिए थी यहाँ पर

जफर की बात सुनकर गनपत ने हंसते हुए कहा

गनपत- अरे यार तूने बाहर नहीं देखा क्या… आंगन में जलने के निशान है। यानि रात में यहाँ पक्का बिजली गिरी थी। वो पत्थर भी तो पूरी तरह से चकनाचूर हो गया है। जिसपर वो लड़की पडी हुई थी और वो रॉड जो मैंने उसके पेट में घुसाई थी। उसका हाल भी तो तू देख चुका है। तो फिर उस लड़की का जिंदा बचना नामुमकिन है। ऐसी बिजली गिरने से तो उसकी हड्डियाँ भी जलकर राख हो गईं होंगी। अगर कुछ बचा भी होगा तो वो जंगली जानबर खा गए होंगे।

गनपत की बात सुनकर जफऱ उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला

जफर- शायद तू सही कह रहा है। मैं ही वे बजह यह सब सोच रहा था।

गनपत- चल कोई बात नहीं। अब तो तेरी तसल्ली हो गई ना।

जफर- हाँ हो गई

गनपत- तो फिर बता अब आगे क्या करना है।

जफर- मेरी धनराज से आज सुबह ही बात हुई थी। उसने कहा है कि हमारे बीजा और पासपोर्ट में 1 महिने का समय लगेगा। इसलिए तब तक हमें कहीं छिपना होगा

जफर की बात सुनकर गनपत गुस्से से बिफरते हुए बोला

गनपत- अबे पागल है क्या। मैं यहाँ जंगल के बीचों बीच नहीं रह सकता

जफर- अरे यार तुझे यहाँ रुकने के लिए कौन बोल रहा है। हम आज रात ही दिल्ली निकल रहे हैं। वहाँ मंत्री जी का एक सीक्रेट बंगला है। मेरी उनसे पहले ही बात हो गई है। वहाँ किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी और वहाँ हमें पहचानने बाला भी कोई नहीं होगा। इसलिए वह जगह हमारे लिए सबसे बेस्ट है।

गनपत- तो फिर हम यहाँ क्यों आये हैं

जफर- पहला तो मैं उस लड़की की लाश देख कर कंफर्म करना चाहता था कि वो मरी या नहीं। पर बाहर की हालत देखकर मुझे यकीन हो गया है कि उसका बचना नामुमकिन है और दूसरा मैं एक बार अपने माल पर नजर डालना चाहता था कि वो सुरक्षित है या नहीं। क्योंकि आज के बाद पता नहीं हमारा कब यहाँ आना हो।

गनपत- अबे तो पहले बोलना चाहिए था ना, चल देखते हैं।

मैं उस सीक्रेट कमरे के अंदर से ही उनकी सारी बातें सुन रही थी। उन लोगों की बातें सुनकर मैं समझ गई कि उन्हें मेरी मौत का यकीन हो गया है। पर उनका माल यहाँ पर कहाँ रखा होगा। यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी। मैं इस वक्त जिस कमरे में थी। उसके पूरी तरह से बंद होने के कारण वहाँ एकदम अंधेरा छा गया था। जिस बजह से मैंने अब तक उस कमरे को अच्छी तरह से चैक भी नहीं किया था। मैं अभी अस बारे में सोच ही रही थी कि तभी उस कमरे में हरे रंग की रोशनी फैल गई।


कहानी जारी है......
Nice and superb update....
 

redhat.ag

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Update 040 -

मैं यह देखकर बुरी तरह से हैरान थी कि वो रोशनी मेरे गले के पास से निकल रही है। मैंने जैसे ही हाथ लगाकर चैक किया तो मुझे पता चला कि मेरे गले में सुनहरे रंग के मोटे से धागे में पिरोया गया हरे रंग एक छोटा सा मोती डला हुआ है। जिसमें से यह रोशनी निकल रही है। मैंने आज से पहले उस मोती को कभी नहीं देखा था। इसलिए मैं उसे अपने गले में देखकर बुरी तरह से हैरान थी साथ ही साथ मुझे डर भी लग रहा था। पर फिलहाल यह समय इन सब बातों के बारे में सोचने का नहीं था। इसलिए मैंने उस हरी रोशनी में उस कमरे को अच्छी तरह से चैक करना शूरू कर दिया। वो कमरा बाहर बाले कमरे से से काफी बड़ा था। जो लगभग पूरा खाली था।

लेकिन उस कमरे के एक साईड कोने में मुझे कुछ सामान रखा हुआ दिखाई दिया। इसलिए मैं सरकते हुए जब उसके पास गई तो मुझे वहाँ एक के ऊपर एक रखे कई सारे प्लास्टिक के बॉक्स दिखाई दिए। जिन्हें देखकर मैं तुरंत समझ गई कि उन लोगों ने अपना सारा माल यहीँ इसी कमरे में छिपा कर रखा है। पर अब मेरे सामने एक नई मुशीवत खडी हो गई थी। क्योंकि वो लोग अब अपना माल चैक करने इस कमरे में आने बाले थे। जिसका मतलब था की वो मुझे भी यहाँ देख सकते थे। इसलिए मैं उस कमरे में छिपने की जगह देखने लगी। पर बो कमरा पूरी तरह से खाली था।

उसमें छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। हाँलाकि उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे छिपने की पर्याप्त जगह मौजूद थी। लेकिन मेरे गले में चमकते मोती के कारण मैं तुरंत ही पकडी जा सकती थी। मैं अभी इस बारे में सोच ही रही थी कि तभी मुझे सीक्रेट दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दी, ठीक उसी पल मेरे गले में डला मोती भी चमकना बंद हो गया था। जिस कारण उस कमरे में एक बार फिर से अंधेरा छा गया। अब मेरे पास कुछ भी सोचने समझने का बिल्कुल भी समय नहीं था। इसलिए मैं उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे जाकर छिप गई।

अगले ही पल मुझे उस सीक्रेट कमरे का दरवाजा खुलने के साथ साथ जफर और गनपत के अंदर आने आवाजें सुनाई दीं। उन दोनोें ने आगे की तरफ रखे एक दो बॉक्स खोलकर चैक किए और फिर उस कमरे से बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मुझे जब मुझे सीक्रेट दरवजा बंद होने की आवाज सुनाई दी तो मैं उन बॉक्स के पीछे से बाहर निकल आई और सरकते हुए एक बार फिर दरवाजे के पास जाकर दीबार से टिक कर बैठ गई। ताकि बाहर होती हलचल सुन सकूँ।

गनपत उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद कर गया था। इसलिए मैंने फिर से अंदर बाली मूर्ती को थोडा घुमाकर दीवार के बीच छोटी सी दरार बना ली थी। जिससे ताजी हवा अंदर आ सके। जब काफी देर तक मुझे बाहर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो मैं समझ गई कि जफर और गनपत अब वहाँ से जा चुके हैं। चूँकि गनपत और जफर जब वहाँ आऐ थो तो उस वक्त शाम हो चुकी थी। इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि अब तक रात हो चुकी होगी। फिलहाल मैं इस सीक्रेट कमरे में गनपत और जफर को छोडकर बाकी सभी लोगों और जंगली जानवरों से सुरक्षित थी।

क्योंकि गनपत और जफर के अलावा उस सीक्रेट कमरे के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इतनी सारी भागदौड करने के कारण मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। जिस कारण मैं वहीं जमीन पर लेट गई और जल्द ही थकान और कमजोरी के कारण मुझे नींद आ गई। अचानक आधी रात के करीब मुझे अपने पूरे शरीर में अजीब सी ऐंठन और दर्द महसूस होने लगा। जिस कराण मेरी आँख खुल गई। मैंने देखा कि मेरे गले में डला वह मोती एक बार फिर से ग्लो कर रहा है। यह सब देखकर मैं बहुत ज्यादा डर गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है।

इसलिए मैं उस मोती को अपने गले से निकालने की कोशिश करने लगी। पर पता नहीं कैसे उसका धागा अपने आप सिकुडकर मेरे गले से लगभग चिपक गया था। जिस कारण मैं उसे निकाल ही नहीं पा रही थी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब मैं ना तो उस धागे को तोड पाई और ना ही उसे गले से निकला पाई तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। जैसे ही मैंने उस धागे को अपने गले से निकालने की कोशिश बंद की तो वो फिर से नार्मल साईज का हो गया। जिसे देखकर मैं हैरान रह गई। पर तभी मुझे आईडिया आया कि क्यों ना मैं इस धागे को जला दूँ।

यह सोचते ही मैंने अपना लाईटर जलाया। लेकिन जैसे ही मैंने लाईटर जलाया तो वो मोती ग्लो होना बंद हो गया और वो एक नॉर्मल हरे रंग मोती बन गया। लेकिन मैंने उसपर को ध्यान नहीं दिया और उस धागे को पकडकर उसे लाईटर की फ्लेम से जलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं जला तो मैंने अपना लाईटर बंद कर दिया। लेकिन लाईटर के बंद होते ही वो मोती एक बार फिर से ग्लो करने लगा। यह सब मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, साथ ही साथ डर के कारण मेरी गांड भी फट रही थी।

मुझे लग रहा थी कि जरूर यहाँ कोई भूत है। तभी अचानक से मुझे याद आया कि मैंने सुबह आंगन में एक चाकू डला देखा था जो शायद उन गुण्डों में से किसी का था। चाकू के बारे में याद आते ही मैं तुरंत उस सीक्रेट कमरे का दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गई और आंगन में उस चाकू को तलाश करने लगी। चांदनी रात होने के कारण मुझे उस चाकू को ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी थी। जैसे ही मुझे बो चाकू मिला तो मैं उससे अपने गले का धागा काटने की कोशिश करने लगी, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।

काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं कटा। तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। अब मैं यह सोचकर हैरान थी कि आखिर यह धागा किस चीज से बना है। क्योंक ना तो ये टूट रहा था, ना ही जल रहा था और ना ही कट रहा था। हाँलाकि देखने में तो वह किसी सोने की चैन की तरह दिखाई देता है, पर उसकी साफ्टनेश और लचीलेपन को देखते हुए कोई भी यह कह सकता था वो किसी भी धातू से नहीं बना है। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि उस धागे में कोई ज्वाईंट या गाँठ बगैरह नहीं थी। जिससे उसे खोला जा सके।

आखिरकार थक हार कर मैं बापिस उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे एक बार फिर अपने पूरे शरीर में तेज दर्द और ऐंठन महसूस होने लगी। पर फिलहाल इससे छुटकारा पाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था। इसलिए सारी रात मैं यूँ ही दर्द से तडपती और कराहती रही। मेरा पूरा शरीर पशीने से भीग चुका था और मेरी सांसे भी काफी तेज चल रहीं थी। आखिरकार मैं यह दर्द ज्यादा देर तक बरदास्त नहीं कर पाई और बेहोश हो गई।

अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैं काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का दर्द भी अब लगभग खत्म हो चुका था और मैं अब अपने अंदर पहले से काफी ज्यादा एनर्जी महसूस कर रही थी। ठीक तभी अंजाने में मैंने जैसे ही अपने सिर पर हाथ फेरा तो मैं हैरान रह गई। क्योंकि मेरे बाल फिर से उग आऐ थे और एक ही रात में मेरी गर्दन तक बडे हो गए थे। जिसे देखकर मैं काफी खुश थी। बैसे भी लडकियाँ अपने बालों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसटिव होती हैं।

कुछ देर बाद मैं उस सीक्रेट रूम से बाहर आ गई और उस खण्डहर से बाहर जाने का का रास्ता तलाश करने लगी। इस बार थोडी सी कोशिश करने के बाद ही मैं आसानी से खडी हो गई थी और धीरे धीरे चलते हुए खण्डहर से बाहर जा रही थी। जल्द ही मैं खण्डहर के बाहर खडी हुई थी। वो खण्डहर जंगल के एकदम बीचों बीच था और उससे बाहर जाने के लिए एक कच्चा भी रास्ता बना हुआ था। चूँकि वह खण्डहर काफी ऊँचाई पर था जिस कारण मुझे काफी दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन दूर दूर तक मुझे केवल घना जंगल ही नजर आ रहा था।

कुछ देर बाद मैं उस खण्डहर के चारों तरफ चक्कर लगाकर देखने लगी कि आस पास कोई कुँआ या तलाब बगैरह है या नहीं। क्योंकि मुझे काफी तेज प्यास लग रह थी। तभी मेरी नजर थोडी दूर बने एक छोटे से तालाब पर पडी। हाँलाकि मैं वहाँ अभी तुरंत ही जाना चाहती थी। लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरा पूरा शरीऱ जला हुआ है और मैं इस वक्त बिना कपडों के एक दम नंगी खडी हुई हूँ। चूँकि दिन निकल आया था, जिस कारण जंगल के उस इलाके में किसी भी फारेस्ट ऑफिसर या आस पास के गाँव वाले के मिलने की संभावना थी। इसलिए फिलहाल मैंने उस तालाब पर जाने का प्लान कैंशिल कर दिया और खण्डहर के अंदर बापिस आ गई।

खण्डहर के अंदर आंगन में आते ही मेरी नजर उस टूटे फूटे पत्थर पर पडी। जिसपर एक दिन पहले मैं किसी बेजान लाश की तरह पडी होकर अपनी आखरी सांसे गिन रही थी और अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। ठीक तभी बिजली गिरने से मैं पूरी तरह से जल गई और वो पत्थर टूट कर चकनाचूर हो गया था। पर मैं कैसे बच गई इसका जबाब अब भी मेरे पास नहीं था। तभी मुझे अपनी चोटों की याद आई जिनमें अब मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय सीने के घाव के, जो लोहे की मोटी रॉड घुसने के कारण हुआ था। इसलिए मैंने एक एक करके अपनी सारी पट्टियाँ खोल दीं।

मैं यह देखकर हैरान रह गई कि मेरे सारे घाव अब लगभग ठीक हो चुके हैं और मेरे सीने का घाव भी काफी हद तक भऱ चुका है। पर यह सब कैसे संभव है…. क्योंकि इतनी गहरी चोटों का कुछ ही घंटों मेें ठीक होना लगभग असम्भव बात है। जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया तो मैंने इस सबके बारे में सोचना बंद कर दिया और अपने सीने के घाव पर फिर से पट्टी बांध ली। फिलहाल मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए मैंने उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर फिर से रेस्ट करने का फैसला किया।

लेकिन तभी मुझे खण्डहर के बाहर से कुछ हलचल सुनाई दी। जिसे सुनकर मैं समझ गई कि कुछ लोग उस खण्डहर के अंदर आ रहे हैं। उन लोगों की आवाजों से मैंने अंदाजा लगाया कि मेरे पास सीक्रेट कमरे के अंदर जाने बिल्कुल भी समय नहीं है। इसलिए मैं आंगन के बीचों बीच खडी होकर चारों तरफ देखने लगी। लभी मेरी नजर आंगन के एक कोने में खडी घनी झाडियों पर पडी। जो फिलहाल मेरे छिपने के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी। इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए तेजी से उन झाडियों की तरफ बड गई और उनके पीछे जाकर छिप गई।

उस वक्त मैंने यह भी नहीं सोचा कि वहाँ कोई खतरनाक जंगली जानवर या साँब बगैरह भी छिपा हो सकता है। पर किस्मत से वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। जैसे ही मैं उन झाडियों के पीछे गई तो मुझे उस खण्डहर के अंदर आते कुछ लोग दिखाई दिए। वो लोग शायद वहीँ आस पास के किसी गाँव के रहने बाले थे। जिनके हाथों में पूजा बगैरह का सामान था। उन लोगों के साथ एक बूडा आदमी भी था जो किसी पण्डित की तरह दिखाई दे रहा था। खण्डहर के अंदर आकर जैसे ही उन लोगों की नजर आंगन के बीचों बीच पडे उस पत्थर पर पडी जो अब बिजली गिरने के कारण पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था। तो उनमें से एक आदमी बोला

“हे भगवान… पण्डित जी देखो तो सही ऐ क्या अनर्थ हो गया, किसी ने अमर शिला खण्डित कर दिया है”

उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी ने अपने हाथ में पकडा पूजा का सामान एक सुरक्षित स्थान पर ऱखते हुए कहा

पण्डित- नहीं प्रताप यह असंभव है… अमर शिला इतनी मजबूत है कि उसे खण्डित नहीं किया जा सकता है।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप नाम का वो व्यक्ति फिर से बोला

प्रताप- तो क्या यह अमर शिला अपने आप खण्डित हो गई है

पण्डित- कुछ कह नहीं सकते, हो सकता है कि दो दिन पहले जो आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उसी दिन आकाशीय बिजली गिहने से यह अमर शिला खण्डित हो गई हो। ध्यान से देखा ,आस पास की मिट्टी भी जलकर काली हो गई है।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप ने फिर से कहा

प्रताप- तो क्या अब हम इस अमर शिला की पूजा नहीं कर सकते।

पण्डित- अब जब हम यहाँ तक आ ही गए हैं तो फिर आखिरी बार पूजा करके ही जाऐंगे। लेकिन आज के बाद दोबारा यहाँ आने का अब कोई फायदा नहीं है।

प्रताप- बैसे पण्डित जी इस अमर शिला की आखिर क्या कहानी है और हम लोग क्यों प्रतिवर्ष इस शिला की पूजा करने यहाँ इस घने जंगल में आते हैं।

पण्डित- तो तुम इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हो

पण्डित जी की बात सुनकर एक दूसरा आदमी बोला

आदमी- हाँ पण्डित जी हम सभी लोग इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हैं। हाँलाकि हम सभी लोग प्रतिवर्ष आपके साथ यहाँ पूजा करने कई वर्षों से आते रहे हैं। लेकिन इस अमर शिला की कहानी हम लोगों पता नहीं है। हम लोगों ने कई बार सोचा की आपसे इस बारे में बात करें लेकिन किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। अब हमारे गाँव में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आप ही हो। इसलिए आप ही हमें इसके बारे में बता सकते हैं।

पण्डित- तो फिर ठीक है… एक काम करो पहले सभी के बैठने के लिए आसन लगा तो। जिसके बाद मैं सबसे पहले तुम सबको इस अमर शिला की कहानी सुनाऊँगा और उसके बाद हम सब आखिरी बार इस अमर शिला की पूजा करें।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप और उस दूसरे आदमी ने सभी लोगों के बैठने के लिए नीचे जमीन पर एक चादर बिछा दी और पण्डित जी के लिए एक अलग से आसन लगा दिया।

कहानी जारी है.....
 

kas1709

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Update 039 -

जब मेरी आँख खुली तो सुबह हो चुकी थी। चारों तरफ रोशनी फैल चुकी थी। मुझे अब भी अपने शरीर का कोई अंग महसूस नहीं हो रहा था। पर मैं यह सोचकर हैरान थी कि मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। मैंने जैसे तैसे कोशिश करके अपने सिर को थोडा ऊपर उठाया तो देखा मेरा पूरा शरीर जल कर काला हो गया है और आस पास की मिट्टी भी पूरी तरह से काली पड चुकी है। लेकिन अब आसमान में बादलों का दूर दूर तक कोई नामो निशान नहीं था। मैं वहाँ किसी मुर्दे की तरह पडी हुई बस यही सोच रही थी कि क्या मैं सच में जिंदा हूँ या यह मेरी आत्मा है जो मुझे यह सव दिखा रही है।

मुझे अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं और फिर से एक गहरी नींद में चली गई। दोपहर के समय एक बार फिर मेरी आँख खुली। तो मैंने दोबारा अपने आप को उसी हालत में पाया। तब जाकर मुझे यकीन हुआ कि मैं अब तक जिंदा हूँ। पर कैसे इसका मेरे पास कोई जबाब नहीं था। क्योंकि किसी इंशान के पूरे शरीर पर चाकुओं के इतने सारे बार होने और एक लोहे की मोटी रॉड उसके सीने के आर पार होने के बाद, उस इंशान के जिंदा बचने की कोई संभावना हो ही नहीं सकती। ऊपर से मेरे ऊपर आकाशीय बिजली भी गिरी थी।

जो बडी से बडी इमारतों को भी नष्ट कर देती है, अच्छे खासे हरे भरे पेड़ को जला कर राख कर देती है, तो फिर इन सबके बाद मैं अब तक जिंदा कैसे और क्यूँ हूँ। मेरे पास मेरे इन सबालों का कोई जबाब नहीं था। पर अब जब मेरे पास अपने आप को जिंदा रखने और अपना बदला लेने का एक और मौका था, जिसे मैं किसी भी कीमत पर गंबाना नहीं चाहती थी। इसलिए मैं अपने हाथ पैर हिलाने की कोशिश करने लगी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद, आखिरकार मैं अपने शरीर को हिलाने डुलाने में कामयाब रही। हाँलाकि मेरा पूरा शरीर चल चुका था, जिसे देखकर मुझे काफी बुरा लग रहा था।

ठीक तभी मैंने अचानक से अपने सिर पर हाथ लगाया तो मेरी आँखों से आँशू निकलने लगे। क्योंकि उस हादशे में मेरे बाल भी पूरी तरह से जल चुके हैं। पर फिलहाल इसमें मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। इसलिए मैंने उठने की कोशिश की, लेकिन मेरे पेट में धंसी लोहे की रॉड जो अब भी जमीन में गडी हुई थी। उसके कारण मैं उठ नहीं पा रह थी। क्योंकि बिजली गिरने के कारण वो रॉड पिघल कर किसी मोटे खूँटे की तरह गडी हुई थी। मैंने उसे अपने सीने से निकालने के लिए जैसे ही हाथ लगाया तो वो मुझे अब भी काफी गर्म महसूस हो रही थी। लेकिन अब मुझे दर्द और जलन से कोई फर्क नहीं पड रहा था।

उस रॉड को अपने सीने से निकालने की काफी कोशिश की, पर मैं उस रॉ़ड को हिला तक नहीं पाई। लेकिन मैंने कोशिश करना बंद नहीं की और अपनी बची कुची ताकत इकट्ठा कर उस रॉड को अपने सीने से निकालने के लिए जोर लगाने लगी। आखिरकार बार बार कोशिश करने पर मेरी मेहनत रंग लाई और वही रॉड धीरे धीरे बाहर आने लगी। रॉड बाहर आते ही मेरे सीने से काले रंग का गाडा खून बाहर निकलने लगा। शायद बिजली गिरने से मेरा खून भी जलकर काला पड गया था।

उस रॉड को अपने सीने से बाहर निकालने के लिए मुझे अपनी पूरी ताकत लगानी पडी थी। इसलिए उस रॉड को वहीं जमीन पर रखकर मैं थोडा रेस्ट करने लगी। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं एक बार फिर उठने की कोशिश करने लगी, लेकिन अब मेरे अंदर उठकर खडे होने की बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी। इसलिए में थोडा थोडा करके सरकते हुए दीवार के पास जाने लगी। जैसे ही मैं दीवार के पास पहूँची, तो मैं एक बार फिर उसके सहारे से खडे होने की कोशिश करने लगी।

कुछ देर यूँ ही मेहनत करने के बाद आखिरकार मैं खडी होने में कामयाब रही। जिसके बाद मैं उसी दीवार का सहारा लेकर धीरे धीरे चलते हुए बापिस उस कमरे की तरफ बड गई जहाँ पर मुझे बाँधकर रखा गया था। मेरा पूरा शरीर बिजली गिरने से जल चुका था। जिस कारण मेरे शरीर पर धूप पडने से मुझे काफी तेज जलन महसूस हो रही थी। उस कमरे में जाकर मैं धूप से बच सकती थी। साथ ही साथ उस कमरे में मेरे फटे हुए कपडे भी पडे हुए थे। जिनसे मैं अपने घाव को बांध सकती थी। कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एकबार पलटकर उस जगह को ध्यान से देखा, जहाँ मैं कुछ देर पहले पडी हुई थी।

तो मेरी नजर उस पत्थर बडे से पत्थर पर गई, जिसपर कुछ देर पहले मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा पडा हुआ था। वो पत्थर अब छोटे छोटे टुकडों में टूट चुका था। जिसका केवल एक ही मतलब की मेरे ऊपर जो बिजली गिरी थी वो वहूत ज्यादा पावरफुल थी। तभी वो पत्थर इस तरह से टूट गया था। खैर यह सब सोचने का फिलहाल मेरे पास कोई समय नहीं था। इसलिए मैं उस कमरे के अंदर चली गई और वहाँ नीचे जमीन पर पडा मेरा फटा हुआ टॉप उठाकर, उस कमरे के अंदर एक कोने में दीवाल के साहारे बैठ गई। जिसके बाद मैं अपने टॉप को फाटकर अपनी चोटों पर बाँधने लगी।

यह सब काम करते करते वक्त मुझे बहुत ज्यादा कमजोरी और थकान महसूस हो रही थी। क्योंकि पिछले 2 दिनों से मैंने ना तो कुछ खाया था और ना ही कुछ पिया था। जिस कारण मुझे बहुत तेज प्यास भी लग रही थी। तभी मेरी नजर कमरे में मुझेसे थोडी दूर पर पडी एक पानी की बॉटल पर पडी। जिसमें अब भी थोडा पानी बचा हुआ था। उस बॉटल को वहाँ देखते ही मैं अपनी पूरी ताकत लगाकर जैसे तैसे उस बॉटल के पास पहुँची और एक ही घूँट में सारा पानी पी गई। हालाँकि उस थोडे से पानी से मेरी प्यास नहीं बुझी थी। पर फिर भी मुझे काफी राहत महसूस हो रही थी।

इसके बाद मैं वापिस उस दीवार के पास जाकर नीचे फर्स पर लेट गई। इस वक्त मुझे कुछ भी समझ नहीं का आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ और कैसे इस जगह से बाहर निकलूँ। लेकिन इससे भी बड़ा सबाल मेरे दिमाग में चल रहा था और वो था कि आखिर मैं अब तक जिंदा कैसे हूँ। यह सब सोचते सोचते एक बार फिर मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की दरवाजे आती रोशनी अब बहुत कम हो रही है। जिससे मैंने अंदाजा लगाया कि दिन ढलना शुरू हो गया है। मैं अब भी वहीं उस खण्डहर के कमरे में नीचे फर्स पर लेटकर अपनी मौत का इंतजार कर रही थी।

क्योंकि यह तो तय था कि अगर किस्मत से मैं इतने सारे गहरे घाव और उस आसमानी बिजली से बच भी गई हूँ, तो भी भूख प्यास से पक्का मेरी मौत जाऐगी। ऊपर से मेरे घाव से रिशते खून की खूशवू को सूँघकर जंगली जानवर कभी भी यहाँ आ सकते थे। जो मुझे नोंच नोंच कर खा जाऐंगे। फिलहाल मेरे अंदर उनसे बचने और यहाँ से बापिस शहर तक जाने की बिल्कुल भी ताकत नहीं थी। तभी मेरा हाथ किसी छोटी सी चीज से टकराया। जैसे ही मैंने उसे टटोलकर देखा तो मैं समझ गई कि यह एक लाईटर है, जिसे उन लोगों में से ही कोई यहाँ गलती से छोड गया है। मैंने तुरंत उस लाईटर को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।

क्योंकि यह लाईटर मुझे जंगली जानबरों से बचने और अंधेरे में देखने के बहुत काम आ सकता था। तभी अचानक से मुझे बाहर से कुछ आदमियों की आवाजें सुनाई देने लगीं। जिन्हें सुनकर मैं समझ गई की गनपत और बाकी के लोग यहाँ बापिस आ गए हैं। अगर उन लगों ने मुझे इस हालत में भी जिंदा देख लिया तो पक्का वो मेरे टुकडे टुकडे करके जानबरों को खिला देंगे। अपनी इतनी बुरी हालत होने के बाद भी पता नहीं क्यों मेरे अंदर अब भी जीने की इच्छा बाकी थी। इसलिए मैं उन लोगों से छिपने के लिए उस कमरे में इधर उधर देखने लगी।

वो कमरा एकदम खाली था और वहाँ छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। तभी मेरा पैर उस कमरे के एक कोने में रखी पत्थर की मूर्ती से टकराया। मेरे पैर के टकराने से वो मूर्ती थोडी सी हिल गई थी। ठीक तभी मुझे अपने पास की दीवार सरकने की हल्कि सी आवाज सुनाई दी। जब किसी इंसान को अपनी मौत नजर आती है, तो उसके सभी सेंस तेजी से काम करने लगते हैं। शायद यही सब मेरे साथ भी हो रहा था। इसलिए मैंने दीवार सरकने की उस हल्कि सी आवाज को भी सुन लिया था। जिसे कंफर्म करने के लिए मैंने एक बार फिर से उस मूर्ती में लात मारी।

जैसा की मुझे उम्मीद थी, इस बार फिर से मूर्ती के हिलने पर दीवार में से हल्कि सी आवाज हुई और मुझे दीवार के कोने में हल्की सी दरार भी दिखाई दी। जिसे देखकर मैं तुरंत समझ गई कि यहाँ जरूर कोई कोई सीक्रेट कमरा है। उन लोगों से छिपने के लिए यह सीक्रेट कमरा मेरे काफी काम आ सकता था। इसलिए मैं उस मूर्ती के पास जाकर उसे हिला डुला कर देखने लगी। जल्दी ही मैं समझ गई कि उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाने से उस सीक्रेट कमरे का रास्ता ओपन होता है। इसलिए मैंने तुरंत ही उस मूर्ती को क्लॉक बाईज घुमाना शूरू कर दिया। कुछ ही देर में उस दीवार में से एक छोटा सा दरवाजा खुल गया। उस दरवाजे के खुलते ही मैं बिना देर किए सरकते हुए उस दरवाजे के अंदर चली गई।

दरवाजे के अंदर जाकर मैंने देखा कि बाहर की तरह ही अंदर भी दरवाजे पास एक पत्थर की मूर्ती रखी हुई है। जिसे मैंने जैसे ही एण्टी क्लॉक बाईज घुमाया तो रास्ता बंद हो गया। ठीक तभी गनपत और जफर उस कमरे के अंदर आ गए, जहाँ कुछ देर पहले मैं मौजूद थी। सीक्रेट कमरे के अंदर पहुँचकर मैं दीवार से कान लगाकर उनकी बातें सुन्ने की कोशिश करने लगी। गनपत और जफऱ के अचानक वहाँ आने के कारण मैं उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद नहीं कर पाई थी। जिस कारण कोने में एक पतली सी दरार रह गई थी। इसलिए मुझे उनकी आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी। तभी मुझे जफर की आवाज सुनाई दी

जफर- गनपत यार मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर वो लड़की गई कहां।

गनपत- अरे यार जफर उसे कहीं जाने लायक हमने छोडा ही कहाँ था। वो तो अब यमराज के यहाँ अपनी हाजरी लगा रही होगी

जफर- तो फिर उसकी लाश तो होनी चाहिए थी यहाँ पर

जफर की बात सुनकर गनपत ने हंसते हुए कहा

गनपत- अरे यार तूने बाहर नहीं देखा क्या… आंगन में जलने के निशान है। यानि रात में यहाँ पक्का बिजली गिरी थी। वो पत्थर भी तो पूरी तरह से चकनाचूर हो गया है। जिसपर वो लड़की पडी हुई थी और वो रॉड जो मैंने उसके पेट में घुसाई थी। उसका हाल भी तो तू देख चुका है। तो फिर उस लड़की का जिंदा बचना नामुमकिन है। ऐसी बिजली गिरने से तो उसकी हड्डियाँ भी जलकर राख हो गईं होंगी। अगर कुछ बचा भी होगा तो वो जंगली जानबर खा गए होंगे।

गनपत की बात सुनकर जफऱ उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला

जफर- शायद तू सही कह रहा है। मैं ही वे बजह यह सब सोच रहा था।

गनपत- चल कोई बात नहीं। अब तो तेरी तसल्ली हो गई ना।

जफर- हाँ हो गई

गनपत- तो फिर बता अब आगे क्या करना है।

जफर- मेरी धनराज से आज सुबह ही बात हुई थी। उसने कहा है कि हमारे बीजा और पासपोर्ट में 1 महिने का समय लगेगा। इसलिए तब तक हमें कहीं छिपना होगा

जफर की बात सुनकर गनपत गुस्से से बिफरते हुए बोला

गनपत- अबे पागल है क्या। मैं यहाँ जंगल के बीचों बीच नहीं रह सकता

जफर- अरे यार तुझे यहाँ रुकने के लिए कौन बोल रहा है। हम आज रात ही दिल्ली निकल रहे हैं। वहाँ मंत्री जी का एक सीक्रेट बंगला है। मेरी उनसे पहले ही बात हो गई है। वहाँ किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी और वहाँ हमें पहचानने बाला भी कोई नहीं होगा। इसलिए वह जगह हमारे लिए सबसे बेस्ट है।

गनपत- तो फिर हम यहाँ क्यों आये हैं

जफर- पहला तो मैं उस लड़की की लाश देख कर कंफर्म करना चाहता था कि वो मरी या नहीं। पर बाहर की हालत देखकर मुझे यकीन हो गया है कि उसका बचना नामुमकिन है और दूसरा मैं एक बार अपने माल पर नजर डालना चाहता था कि वो सुरक्षित है या नहीं। क्योंकि आज के बाद पता नहीं हमारा कब यहाँ आना हो।

गनपत- अबे तो पहले बोलना चाहिए था ना, चल देखते हैं।

मैं उस सीक्रेट कमरे के अंदर से ही उनकी सारी बातें सुन रही थी। उन लोगों की बातें सुनकर मैं समझ गई कि उन्हें मेरी मौत का यकीन हो गया है। पर उनका माल यहाँ पर कहाँ रखा होगा। यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी। मैं इस वक्त जिस कमरे में थी। उसके पूरी तरह से बंद होने के कारण वहाँ एकदम अंधेरा छा गया था। जिस बजह से मैंने अब तक उस कमरे को अच्छी तरह से चैक भी नहीं किया था। मैं अभी अस बारे में सोच ही रही थी कि तभी उस कमरे में हरे रंग की रोशनी फैल गई।


कहानी जारी है......
Nice update....
 

kas1709

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मैं यह देखकर बुरी तरह से हैरान थी कि वो रोशनी मेरे गले के पास से निकल रही है। मैंने जैसे ही हाथ लगाकर चैक किया तो मुझे पता चला कि मेरे गले में सुनहरे रंग के मोटे से धागे में पिरोया गया हरे रंग एक छोटा सा मोती डला हुआ है। जिसमें से यह रोशनी निकल रही है। मैंने आज से पहले उस मोती को कभी नहीं देखा था। इसलिए मैं उसे अपने गले में देखकर बुरी तरह से हैरान थी साथ ही साथ मुझे डर भी लग रहा था। पर फिलहाल यह समय इन सब बातों के बारे में सोचने का नहीं था। इसलिए मैंने उस हरी रोशनी में उस कमरे को अच्छी तरह से चैक करना शूरू कर दिया। वो कमरा बाहर बाले कमरे से से काफी बड़ा था। जो लगभग पूरा खाली था।

लेकिन उस कमरे के एक साईड कोने में मुझे कुछ सामान रखा हुआ दिखाई दिया। इसलिए मैं सरकते हुए जब उसके पास गई तो मुझे वहाँ एक के ऊपर एक रखे कई सारे प्लास्टिक के बॉक्स दिखाई दिए। जिन्हें देखकर मैं तुरंत समझ गई कि उन लोगों ने अपना सारा माल यहीँ इसी कमरे में छिपा कर रखा है। पर अब मेरे सामने एक नई मुशीवत खडी हो गई थी। क्योंकि वो लोग अब अपना माल चैक करने इस कमरे में आने बाले थे। जिसका मतलब था की वो मुझे भी यहाँ देख सकते थे। इसलिए मैं उस कमरे में छिपने की जगह देखने लगी। पर बो कमरा पूरी तरह से खाली था।

उसमें छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। हाँलाकि उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे छिपने की पर्याप्त जगह मौजूद थी। लेकिन मेरे गले में चमकते मोती के कारण मैं तुरंत ही पकडी जा सकती थी। मैं अभी इस बारे में सोच ही रही थी कि तभी मुझे सीक्रेट दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दी, ठीक उसी पल मेरे गले में डला मोती भी चमकना बंद हो गया था। जिस कारण उस कमरे में एक बार फिर से अंधेरा छा गया। अब मेरे पास कुछ भी सोचने समझने का बिल्कुल भी समय नहीं था। इसलिए मैं उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे जाकर छिप गई।

अगले ही पल मुझे उस सीक्रेट कमरे का दरवाजा खुलने के साथ साथ जफर और गनपत के अंदर आने आवाजें सुनाई दीं। उन दोनोें ने आगे की तरफ रखे एक दो बॉक्स खोलकर चैक किए और फिर उस कमरे से बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मुझे जब मुझे सीक्रेट दरवजा बंद होने की आवाज सुनाई दी तो मैं उन बॉक्स के पीछे से बाहर निकल आई और सरकते हुए एक बार फिर दरवाजे के पास जाकर दीबार से टिक कर बैठ गई। ताकि बाहर होती हलचल सुन सकूँ।

गनपत उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद कर गया था। इसलिए मैंने फिर से अंदर बाली मूर्ती को थोडा घुमाकर दीवार के बीच छोटी सी दरार बना ली थी। जिससे ताजी हवा अंदर आ सके। जब काफी देर तक मुझे बाहर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो मैं समझ गई कि जफर और गनपत अब वहाँ से जा चुके हैं। चूँकि गनपत और जफर जब वहाँ आऐ थो तो उस वक्त शाम हो चुकी थी। इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि अब तक रात हो चुकी होगी। फिलहाल मैं इस सीक्रेट कमरे में गनपत और जफर को छोडकर बाकी सभी लोगों और जंगली जानवरों से सुरक्षित थी।

क्योंकि गनपत और जफर के अलावा उस सीक्रेट कमरे के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इतनी सारी भागदौड करने के कारण मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। जिस कारण मैं वहीं जमीन पर लेट गई और जल्द ही थकान और कमजोरी के कारण मुझे नींद आ गई। अचानक आधी रात के करीब मुझे अपने पूरे शरीर में अजीब सी ऐंठन और दर्द महसूस होने लगा। जिस कराण मेरी आँख खुल गई। मैंने देखा कि मेरे गले में डला वह मोती एक बार फिर से ग्लो कर रहा है। यह सब देखकर मैं बहुत ज्यादा डर गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है।

इसलिए मैं उस मोती को अपने गले से निकालने की कोशिश करने लगी। पर पता नहीं कैसे उसका धागा अपने आप सिकुडकर मेरे गले से लगभग चिपक गया था। जिस कारण मैं उसे निकाल ही नहीं पा रही थी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब मैं ना तो उस धागे को तोड पाई और ना ही उसे गले से निकला पाई तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। जैसे ही मैंने उस धागे को अपने गले से निकालने की कोशिश बंद की तो वो फिर से नार्मल साईज का हो गया। जिसे देखकर मैं हैरान रह गई। पर तभी मुझे आईडिया आया कि क्यों ना मैं इस धागे को जला दूँ।

यह सोचते ही मैंने अपना लाईटर जलाया। लेकिन जैसे ही मैंने लाईटर जलाया तो वो मोती ग्लो होना बंद हो गया और वो एक नॉर्मल हरे रंग मोती बन गया। लेकिन मैंने उसपर को ध्यान नहीं दिया और उस धागे को पकडकर उसे लाईटर की फ्लेम से जलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं जला तो मैंने अपना लाईटर बंद कर दिया। लेकिन लाईटर के बंद होते ही वो मोती एक बार फिर से ग्लो करने लगा। यह सब मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, साथ ही साथ डर के कारण मेरी गांड भी फट रही थी।

मुझे लग रहा थी कि जरूर यहाँ कोई भूत है। तभी अचानक से मुझे याद आया कि मैंने सुबह आंगन में एक चाकू डला देखा था जो शायद उन गुण्डों में से किसी का था। चाकू के बारे में याद आते ही मैं तुरंत उस सीक्रेट कमरे का दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गई और आंगन में उस चाकू को तलाश करने लगी। चांदनी रात होने के कारण मुझे उस चाकू को ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी थी। जैसे ही मुझे बो चाकू मिला तो मैं उससे अपने गले का धागा काटने की कोशिश करने लगी, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।

काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं कटा। तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। अब मैं यह सोचकर हैरान थी कि आखिर यह धागा किस चीज से बना है। क्योंक ना तो ये टूट रहा था, ना ही जल रहा था और ना ही कट रहा था। हाँलाकि देखने में तो वह किसी सोने की चैन की तरह दिखाई देता है, पर उसकी साफ्टनेश और लचीलेपन को देखते हुए कोई भी यह कह सकता था वो किसी भी धातू से नहीं बना है। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि उस धागे में कोई ज्वाईंट या गाँठ बगैरह नहीं थी। जिससे उसे खोला जा सके।

आखिरकार थक हार कर मैं बापिस उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे एक बार फिर अपने पूरे शरीर में तेज दर्द और ऐंठन महसूस होने लगी। पर फिलहाल इससे छुटकारा पाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था। इसलिए सारी रात मैं यूँ ही दर्द से तडपती और कराहती रही। मेरा पूरा शरीर पशीने से भीग चुका था और मेरी सांसे भी काफी तेज चल रहीं थी। आखिरकार मैं यह दर्द ज्यादा देर तक बरदास्त नहीं कर पाई और बेहोश हो गई।

अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैं काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का दर्द भी अब लगभग खत्म हो चुका था और मैं अब अपने अंदर पहले से काफी ज्यादा एनर्जी महसूस कर रही थी। ठीक तभी अंजाने में मैंने जैसे ही अपने सिर पर हाथ फेरा तो मैं हैरान रह गई। क्योंकि मेरे बाल फिर से उग आऐ थे और एक ही रात में मेरी गर्दन तक बडे हो गए थे। जिसे देखकर मैं काफी खुश थी। बैसे भी लडकियाँ अपने बालों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसटिव होती हैं।

कुछ देर बाद मैं उस सीक्रेट रूम से बाहर आ गई और उस खण्डहर से बाहर जाने का का रास्ता तलाश करने लगी। इस बार थोडी सी कोशिश करने के बाद ही मैं आसानी से खडी हो गई थी और धीरे धीरे चलते हुए खण्डहर से बाहर जा रही थी। जल्द ही मैं खण्डहर के बाहर खडी हुई थी। वो खण्डहर जंगल के एकदम बीचों बीच था और उससे बाहर जाने के लिए एक कच्चा भी रास्ता बना हुआ था। चूँकि वह खण्डहर काफी ऊँचाई पर था जिस कारण मुझे काफी दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन दूर दूर तक मुझे केवल घना जंगल ही नजर आ रहा था।

कुछ देर बाद मैं उस खण्डहर के चारों तरफ चक्कर लगाकर देखने लगी कि आस पास कोई कुँआ या तलाब बगैरह है या नहीं। क्योंकि मुझे काफी तेज प्यास लग रह थी। तभी मेरी नजर थोडी दूर बने एक छोटे से तालाब पर पडी। हाँलाकि मैं वहाँ अभी तुरंत ही जाना चाहती थी। लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरा पूरा शरीऱ जला हुआ है और मैं इस वक्त बिना कपडों के एक दम नंगी खडी हुई हूँ। चूँकि दिन निकल आया था, जिस कारण जंगल के उस इलाके में किसी भी फारेस्ट ऑफिसर या आस पास के गाँव वाले के मिलने की संभावना थी। इसलिए फिलहाल मैंने उस तालाब पर जाने का प्लान कैंशिल कर दिया और खण्डहर के अंदर बापिस आ गई।

खण्डहर के अंदर आंगन में आते ही मेरी नजर उस टूटे फूटे पत्थर पर पडी। जिसपर एक दिन पहले मैं किसी बेजान लाश की तरह पडी होकर अपनी आखरी सांसे गिन रही थी और अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। ठीक तभी बिजली गिरने से मैं पूरी तरह से जल गई और वो पत्थर टूट कर चकनाचूर हो गया था। पर मैं कैसे बच गई इसका जबाब अब भी मेरे पास नहीं था। तभी मुझे अपनी चोटों की याद आई जिनमें अब मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय सीने के घाव के, जो लोहे की मोटी रॉड घुसने के कारण हुआ था। इसलिए मैंने एक एक करके अपनी सारी पट्टियाँ खोल दीं।

मैं यह देखकर हैरान रह गई कि मेरे सारे घाव अब लगभग ठीक हो चुके हैं और मेरे सीने का घाव भी काफी हद तक भऱ चुका है। पर यह सब कैसे संभव है…. क्योंकि इतनी गहरी चोटों का कुछ ही घंटों मेें ठीक होना लगभग असम्भव बात है। जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया तो मैंने इस सबके बारे में सोचना बंद कर दिया और अपने सीने के घाव पर फिर से पट्टी बांध ली। फिलहाल मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए मैंने उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर फिर से रेस्ट करने का फैसला किया।

लेकिन तभी मुझे खण्डहर के बाहर से कुछ हलचल सुनाई दी। जिसे सुनकर मैं समझ गई कि कुछ लोग उस खण्डहर के अंदर आ रहे हैं। उन लोगों की आवाजों से मैंने अंदाजा लगाया कि मेरे पास सीक्रेट कमरे के अंदर जाने बिल्कुल भी समय नहीं है। इसलिए मैं आंगन के बीचों बीच खडी होकर चारों तरफ देखने लगी। लभी मेरी नजर आंगन के एक कोने में खडी घनी झाडियों पर पडी। जो फिलहाल मेरे छिपने के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी। इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए तेजी से उन झाडियों की तरफ बड गई और उनके पीछे जाकर छिप गई।

उस वक्त मैंने यह भी नहीं सोचा कि वहाँ कोई खतरनाक जंगली जानवर या साँब बगैरह भी छिपा हो सकता है। पर किस्मत से वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। जैसे ही मैं उन झाडियों के पीछे गई तो मुझे उस खण्डहर के अंदर आते कुछ लोग दिखाई दिए। वो लोग शायद वहीँ आस पास के किसी गाँव के रहने बाले थे। जिनके हाथों में पूजा बगैरह का सामान था। उन लोगों के साथ एक बूडा आदमी भी था जो किसी पण्डित की तरह दिखाई दे रहा था। खण्डहर के अंदर आकर जैसे ही उन लोगों की नजर आंगन के बीचों बीच पडे उस पत्थर पर पडी जो अब बिजली गिरने के कारण पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था। तो उनमें से एक आदमी बोला

“हे भगवान… पण्डित जी देखो तो सही ऐ क्या अनर्थ हो गया, किसी ने अमर शिला खण्डित कर दिया है”

उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी ने अपने हाथ में पकडा पूजा का सामान एक सुरक्षित स्थान पर ऱखते हुए कहा

पण्डित- नहीं प्रताप यह असंभव है… अमर शिला इतनी मजबूत है कि उसे खण्डित नहीं किया जा सकता है।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप नाम का वो व्यक्ति फिर से बोला

प्रताप- तो क्या यह अमर शिला अपने आप खण्डित हो गई है

पण्डित- कुछ कह नहीं सकते, हो सकता है कि दो दिन पहले जो आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उसी दिन आकाशीय बिजली गिहने से यह अमर शिला खण्डित हो गई हो। ध्यान से देखा ,आस पास की मिट्टी भी जलकर काली हो गई है।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप ने फिर से कहा

प्रताप- तो क्या अब हम इस अमर शिला की पूजा नहीं कर सकते।

पण्डित- अब जब हम यहाँ तक आ ही गए हैं तो फिर आखिरी बार पूजा करके ही जाऐंगे। लेकिन आज के बाद दोबारा यहाँ आने का अब कोई फायदा नहीं है।

प्रताप- बैसे पण्डित जी इस अमर शिला की आखिर क्या कहानी है और हम लोग क्यों प्रतिवर्ष इस शिला की पूजा करने यहाँ इस घने जंगल में आते हैं।

पण्डित- तो तुम इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हो

पण्डित जी की बात सुनकर एक दूसरा आदमी बोला

आदमी- हाँ पण्डित जी हम सभी लोग इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हैं। हाँलाकि हम सभी लोग प्रतिवर्ष आपके साथ यहाँ पूजा करने कई वर्षों से आते रहे हैं। लेकिन इस अमर शिला की कहानी हम लोगों पता नहीं है। हम लोगों ने कई बार सोचा की आपसे इस बारे में बात करें लेकिन किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। अब हमारे गाँव में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आप ही हो। इसलिए आप ही हमें इसके बारे में बता सकते हैं।

पण्डित- तो फिर ठीक है… एक काम करो पहले सभी के बैठने के लिए आसन लगा तो। जिसके बाद मैं सबसे पहले तुम सबको इस अमर शिला की कहानी सुनाऊँगा और उसके बाद हम सब आखिरी बार इस अमर शिला की पूजा करें।

पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप और उस दूसरे आदमी ने सभी लोगों के बैठने के लिए नीचे जमीन पर एक चादर बिछा दी और पण्डित जी के लिए एक अलग से आसन लगा दिया।


कहानी जारी है.....
Nice update.....
 
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