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मैं यह देखकर बुरी तरह से हैरान थी कि वो रोशनी मेरे गले के पास से निकल रही है। मैंने जैसे ही हाथ लगाकर चैक किया तो मुझे पता चला कि मेरे गले में सुनहरे रंग के मोटे से धागे में पिरोया गया हरे रंग एक छोटा सा मोती डला हुआ है। जिसमें से यह रोशनी निकल रही है। मैंने आज से पहले उस मोती को कभी नहीं देखा था। इसलिए मैं उसे अपने गले में देखकर बुरी तरह से हैरान थी साथ ही साथ मुझे डर भी लग रहा था। पर फिलहाल यह समय इन सब बातों के बारे में सोचने का नहीं था। इसलिए मैंने उस हरी रोशनी में उस कमरे को अच्छी तरह से चैक करना शूरू कर दिया। वो कमरा बाहर बाले कमरे से से काफी बड़ा था। जो लगभग पूरा खाली था।
लेकिन उस कमरे के एक साईड कोने में मुझे कुछ सामान रखा हुआ दिखाई दिया। इसलिए मैं सरकते हुए जब उसके पास गई तो मुझे वहाँ एक के ऊपर एक रखे कई सारे प्लास्टिक के बॉक्स दिखाई दिए। जिन्हें देखकर मैं तुरंत समझ गई कि उन लोगों ने अपना सारा माल यहीँ इसी कमरे में छिपा कर रखा है। पर अब मेरे सामने एक नई मुशीवत खडी हो गई थी। क्योंकि वो लोग अब अपना माल चैक करने इस कमरे में आने बाले थे। जिसका मतलब था की वो मुझे भी यहाँ देख सकते थे। इसलिए मैं उस कमरे में छिपने की जगह देखने लगी। पर बो कमरा पूरी तरह से खाली था।
उसमें छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। हाँलाकि उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे छिपने की पर्याप्त जगह मौजूद थी। लेकिन मेरे गले में चमकते मोती के कारण मैं तुरंत ही पकडी जा सकती थी। मैं अभी इस बारे में सोच ही रही थी कि तभी मुझे सीक्रेट दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दी, ठीक उसी पल मेरे गले में डला मोती भी चमकना बंद हो गया था। जिस कारण उस कमरे में एक बार फिर से अंधेरा छा गया। अब मेरे पास कुछ भी सोचने समझने का बिल्कुल भी समय नहीं था। इसलिए मैं उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे जाकर छिप गई।
अगले ही पल मुझे उस सीक्रेट कमरे का दरवाजा खुलने के साथ साथ जफर और गनपत के अंदर आने आवाजें सुनाई दीं। उन दोनोें ने आगे की तरफ रखे एक दो बॉक्स खोलकर चैक किए और फिर उस कमरे से बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मुझे जब मुझे सीक्रेट दरवजा बंद होने की आवाज सुनाई दी तो मैं उन बॉक्स के पीछे से बाहर निकल आई और सरकते हुए एक बार फिर दरवाजे के पास जाकर दीबार से टिक कर बैठ गई। ताकि बाहर होती हलचल सुन सकूँ।
गनपत उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद कर गया था। इसलिए मैंने फिर से अंदर बाली मूर्ती को थोडा घुमाकर दीवार के बीच छोटी सी दरार बना ली थी। जिससे ताजी हवा अंदर आ सके। जब काफी देर तक मुझे बाहर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो मैं समझ गई कि जफर और गनपत अब वहाँ से जा चुके हैं। चूँकि गनपत और जफर जब वहाँ आऐ थो तो उस वक्त शाम हो चुकी थी। इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि अब तक रात हो चुकी होगी। फिलहाल मैं इस सीक्रेट कमरे में गनपत और जफर को छोडकर बाकी सभी लोगों और जंगली जानवरों से सुरक्षित थी।
क्योंकि गनपत और जफर के अलावा उस सीक्रेट कमरे के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इतनी सारी भागदौड करने के कारण मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। जिस कारण मैं वहीं जमीन पर लेट गई और जल्द ही थकान और कमजोरी के कारण मुझे नींद आ गई। अचानक आधी रात के करीब मुझे अपने पूरे शरीर में अजीब सी ऐंठन और दर्द महसूस होने लगा। जिस कराण मेरी आँख खुल गई। मैंने देखा कि मेरे गले में डला वह मोती एक बार फिर से ग्लो कर रहा है। यह सब देखकर मैं बहुत ज्यादा डर गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है।
इसलिए मैं उस मोती को अपने गले से निकालने की कोशिश करने लगी। पर पता नहीं कैसे उसका धागा अपने आप सिकुडकर मेरे गले से लगभग चिपक गया था। जिस कारण मैं उसे निकाल ही नहीं पा रही थी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब मैं ना तो उस धागे को तोड पाई और ना ही उसे गले से निकला पाई तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। जैसे ही मैंने उस धागे को अपने गले से निकालने की कोशिश बंद की तो वो फिर से नार्मल साईज का हो गया। जिसे देखकर मैं हैरान रह गई। पर तभी मुझे आईडिया आया कि क्यों ना मैं इस धागे को जला दूँ।
यह सोचते ही मैंने अपना लाईटर जलाया। लेकिन जैसे ही मैंने लाईटर जलाया तो वो मोती ग्लो होना बंद हो गया और वो एक नॉर्मल हरे रंग मोती बन गया। लेकिन मैंने उसपर को ध्यान नहीं दिया और उस धागे को पकडकर उसे लाईटर की फ्लेम से जलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं जला तो मैंने अपना लाईटर बंद कर दिया। लेकिन लाईटर के बंद होते ही वो मोती एक बार फिर से ग्लो करने लगा। यह सब मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, साथ ही साथ डर के कारण मेरी गांड भी फट रही थी।
मुझे लग रहा थी कि जरूर यहाँ कोई भूत है। तभी अचानक से मुझे याद आया कि मैंने सुबह आंगन में एक चाकू डला देखा था जो शायद उन गुण्डों में से किसी का था। चाकू के बारे में याद आते ही मैं तुरंत उस सीक्रेट कमरे का दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गई और आंगन में उस चाकू को तलाश करने लगी। चांदनी रात होने के कारण मुझे उस चाकू को ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी थी। जैसे ही मुझे बो चाकू मिला तो मैं उससे अपने गले का धागा काटने की कोशिश करने लगी, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।
काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं कटा। तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। अब मैं यह सोचकर हैरान थी कि आखिर यह धागा किस चीज से बना है। क्योंक ना तो ये टूट रहा था, ना ही जल रहा था और ना ही कट रहा था। हाँलाकि देखने में तो वह किसी सोने की चैन की तरह दिखाई देता है, पर उसकी साफ्टनेश और लचीलेपन को देखते हुए कोई भी यह कह सकता था वो किसी भी धातू से नहीं बना है। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि उस धागे में कोई ज्वाईंट या गाँठ बगैरह नहीं थी। जिससे उसे खोला जा सके।
आखिरकार थक हार कर मैं बापिस उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे एक बार फिर अपने पूरे शरीर में तेज दर्द और ऐंठन महसूस होने लगी। पर फिलहाल इससे छुटकारा पाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था। इसलिए सारी रात मैं यूँ ही दर्द से तडपती और कराहती रही। मेरा पूरा शरीर पशीने से भीग चुका था और मेरी सांसे भी काफी तेज चल रहीं थी। आखिरकार मैं यह दर्द ज्यादा देर तक बरदास्त नहीं कर पाई और बेहोश हो गई।
अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैं काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का दर्द भी अब लगभग खत्म हो चुका था और मैं अब अपने अंदर पहले से काफी ज्यादा एनर्जी महसूस कर रही थी। ठीक तभी अंजाने में मैंने जैसे ही अपने सिर पर हाथ फेरा तो मैं हैरान रह गई। क्योंकि मेरे बाल फिर से उग आऐ थे और एक ही रात में मेरी गर्दन तक बडे हो गए थे। जिसे देखकर मैं काफी खुश थी। बैसे भी लडकियाँ अपने बालों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसटिव होती हैं।
कुछ देर बाद मैं उस सीक्रेट रूम से बाहर आ गई और उस खण्डहर से बाहर जाने का का रास्ता तलाश करने लगी। इस बार थोडी सी कोशिश करने के बाद ही मैं आसानी से खडी हो गई थी और धीरे धीरे चलते हुए खण्डहर से बाहर जा रही थी। जल्द ही मैं खण्डहर के बाहर खडी हुई थी। वो खण्डहर जंगल के एकदम बीचों बीच था और उससे बाहर जाने के लिए एक कच्चा भी रास्ता बना हुआ था। चूँकि वह खण्डहर काफी ऊँचाई पर था जिस कारण मुझे काफी दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन दूर दूर तक मुझे केवल घना जंगल ही नजर आ रहा था।
कुछ देर बाद मैं उस खण्डहर के चारों तरफ चक्कर लगाकर देखने लगी कि आस पास कोई कुँआ या तलाब बगैरह है या नहीं। क्योंकि मुझे काफी तेज प्यास लग रह थी। तभी मेरी नजर थोडी दूर बने एक छोटे से तालाब पर पडी। हाँलाकि मैं वहाँ अभी तुरंत ही जाना चाहती थी। लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरा पूरा शरीऱ जला हुआ है और मैं इस वक्त बिना कपडों के एक दम नंगी खडी हुई हूँ। चूँकि दिन निकल आया था, जिस कारण जंगल के उस इलाके में किसी भी फारेस्ट ऑफिसर या आस पास के गाँव वाले के मिलने की संभावना थी। इसलिए फिलहाल मैंने उस तालाब पर जाने का प्लान कैंशिल कर दिया और खण्डहर के अंदर बापिस आ गई।
खण्डहर के अंदर आंगन में आते ही मेरी नजर उस टूटे फूटे पत्थर पर पडी। जिसपर एक दिन पहले मैं किसी बेजान लाश की तरह पडी होकर अपनी आखरी सांसे गिन रही थी और अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। ठीक तभी बिजली गिरने से मैं पूरी तरह से जल गई और वो पत्थर टूट कर चकनाचूर हो गया था। पर मैं कैसे बच गई इसका जबाब अब भी मेरे पास नहीं था। तभी मुझे अपनी चोटों की याद आई जिनमें अब मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय सीने के घाव के, जो लोहे की मोटी रॉड घुसने के कारण हुआ था। इसलिए मैंने एक एक करके अपनी सारी पट्टियाँ खोल दीं।
मैं यह देखकर हैरान रह गई कि मेरे सारे घाव अब लगभग ठीक हो चुके हैं और मेरे सीने का घाव भी काफी हद तक भऱ चुका है। पर यह सब कैसे संभव है…. क्योंकि इतनी गहरी चोटों का कुछ ही घंटों मेें ठीक होना लगभग असम्भव बात है। जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया तो मैंने इस सबके बारे में सोचना बंद कर दिया और अपने सीने के घाव पर फिर से पट्टी बांध ली। फिलहाल मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए मैंने उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर फिर से रेस्ट करने का फैसला किया।
लेकिन तभी मुझे खण्डहर के बाहर से कुछ हलचल सुनाई दी। जिसे सुनकर मैं समझ गई कि कुछ लोग उस खण्डहर के अंदर आ रहे हैं। उन लोगों की आवाजों से मैंने अंदाजा लगाया कि मेरे पास सीक्रेट कमरे के अंदर जाने बिल्कुल भी समय नहीं है। इसलिए मैं आंगन के बीचों बीच खडी होकर चारों तरफ देखने लगी। लभी मेरी नजर आंगन के एक कोने में खडी घनी झाडियों पर पडी। जो फिलहाल मेरे छिपने के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी। इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए तेजी से उन झाडियों की तरफ बड गई और उनके पीछे जाकर छिप गई।
उस वक्त मैंने यह भी नहीं सोचा कि वहाँ कोई खतरनाक जंगली जानवर या साँब बगैरह भी छिपा हो सकता है। पर किस्मत से वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। जैसे ही मैं उन झाडियों के पीछे गई तो मुझे उस खण्डहर के अंदर आते कुछ लोग दिखाई दिए। वो लोग शायद वहीँ आस पास के किसी गाँव के रहने बाले थे। जिनके हाथों में पूजा बगैरह का सामान था। उन लोगों के साथ एक बूडा आदमी भी था जो किसी पण्डित की तरह दिखाई दे रहा था। खण्डहर के अंदर आकर जैसे ही उन लोगों की नजर आंगन के बीचों बीच पडे उस पत्थर पर पडी जो अब बिजली गिरने के कारण पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था। तो उनमें से एक आदमी बोला
“हे भगवान… पण्डित जी देखो तो सही ऐ क्या अनर्थ हो गया, किसी ने अमर शिला खण्डित कर दिया है”
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी ने अपने हाथ में पकडा पूजा का सामान एक सुरक्षित स्थान पर ऱखते हुए कहा
पण्डित- नहीं प्रताप यह असंभव है… अमर शिला इतनी मजबूत है कि उसे खण्डित नहीं किया जा सकता है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप नाम का वो व्यक्ति फिर से बोला
प्रताप- तो क्या यह अमर शिला अपने आप खण्डित हो गई है
पण्डित- कुछ कह नहीं सकते, हो सकता है कि दो दिन पहले जो आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उसी दिन आकाशीय बिजली गिहने से यह अमर शिला खण्डित हो गई हो। ध्यान से देखा ,आस पास की मिट्टी भी जलकर काली हो गई है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप ने फिर से कहा
प्रताप- तो क्या अब हम इस अमर शिला की पूजा नहीं कर सकते।
पण्डित- अब जब हम यहाँ तक आ ही गए हैं तो फिर आखिरी बार पूजा करके ही जाऐंगे। लेकिन आज के बाद दोबारा यहाँ आने का अब कोई फायदा नहीं है।
प्रताप- बैसे पण्डित जी इस अमर शिला की आखिर क्या कहानी है और हम लोग क्यों प्रतिवर्ष इस शिला की पूजा करने यहाँ इस घने जंगल में आते हैं।
पण्डित- तो तुम इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हो
पण्डित जी की बात सुनकर एक दूसरा आदमी बोला
आदमी- हाँ पण्डित जी हम सभी लोग इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हैं। हाँलाकि हम सभी लोग प्रतिवर्ष आपके साथ यहाँ पूजा करने कई वर्षों से आते रहे हैं। लेकिन इस अमर शिला की कहानी हम लोगों पता नहीं है। हम लोगों ने कई बार सोचा की आपसे इस बारे में बात करें लेकिन किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। अब हमारे गाँव में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आप ही हो। इसलिए आप ही हमें इसके बारे में बता सकते हैं।
पण्डित- तो फिर ठीक है… एक काम करो पहले सभी के बैठने के लिए आसन लगा तो। जिसके बाद मैं सबसे पहले तुम सबको इस अमर शिला की कहानी सुनाऊँगा और उसके बाद हम सब आखिरी बार इस अमर शिला की पूजा करें।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप और उस दूसरे आदमी ने सभी लोगों के बैठने के लिए नीचे जमीन पर एक चादर बिछा दी और पण्डित जी के लिए एक अलग से आसन लगा दिया।
मैं यह देखकर बुरी तरह से हैरान थी कि वो रोशनी मेरे गले के पास से निकल रही है। मैंने जैसे ही हाथ लगाकर चैक किया तो मुझे पता चला कि मेरे गले में सुनहरे रंग के मोटे से धागे में पिरोया गया हरे रंग एक छोटा सा मोती डला हुआ है। जिसमें से यह रोशनी निकल रही है। मैंने आज से पहले उस मोती को कभी नहीं देखा था। इसलिए मैं उसे अपने गले में देखकर बुरी तरह से हैरान थी साथ ही साथ मुझे डर भी लग रहा था। पर फिलहाल यह समय इन सब बातों के बारे में सोचने का नहीं था। इसलिए मैंने उस हरी रोशनी में उस कमरे को अच्छी तरह से चैक करना शूरू कर दिया। वो कमरा बाहर बाले कमरे से से काफी बड़ा था। जो लगभग पूरा खाली था।
लेकिन उस कमरे के एक साईड कोने में मुझे कुछ सामान रखा हुआ दिखाई दिया। इसलिए मैं सरकते हुए जब उसके पास गई तो मुझे वहाँ एक के ऊपर एक रखे कई सारे प्लास्टिक के बॉक्स दिखाई दिए। जिन्हें देखकर मैं तुरंत समझ गई कि उन लोगों ने अपना सारा माल यहीँ इसी कमरे में छिपा कर रखा है। पर अब मेरे सामने एक नई मुशीवत खडी हो गई थी। क्योंकि वो लोग अब अपना माल चैक करने इस कमरे में आने बाले थे। जिसका मतलब था की वो मुझे भी यहाँ देख सकते थे। इसलिए मैं उस कमरे में छिपने की जगह देखने लगी। पर बो कमरा पूरी तरह से खाली था।
उसमें छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। हाँलाकि उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे छिपने की पर्याप्त जगह मौजूद थी। लेकिन मेरे गले में चमकते मोती के कारण मैं तुरंत ही पकडी जा सकती थी। मैं अभी इस बारे में सोच ही रही थी कि तभी मुझे सीक्रेट दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दी, ठीक उसी पल मेरे गले में डला मोती भी चमकना बंद हो गया था। जिस कारण उस कमरे में एक बार फिर से अंधेरा छा गया। अब मेरे पास कुछ भी सोचने समझने का बिल्कुल भी समय नहीं था। इसलिए मैं उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे जाकर छिप गई।
अगले ही पल मुझे उस सीक्रेट कमरे का दरवाजा खुलने के साथ साथ जफर और गनपत के अंदर आने आवाजें सुनाई दीं। उन दोनोें ने आगे की तरफ रखे एक दो बॉक्स खोलकर चैक किए और फिर उस कमरे से बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मुझे जब मुझे सीक्रेट दरवजा बंद होने की आवाज सुनाई दी तो मैं उन बॉक्स के पीछे से बाहर निकल आई और सरकते हुए एक बार फिर दरवाजे के पास जाकर दीबार से टिक कर बैठ गई। ताकि बाहर होती हलचल सुन सकूँ।
गनपत उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद कर गया था। इसलिए मैंने फिर से अंदर बाली मूर्ती को थोडा घुमाकर दीवार के बीच छोटी सी दरार बना ली थी। जिससे ताजी हवा अंदर आ सके। जब काफी देर तक मुझे बाहर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो मैं समझ गई कि जफर और गनपत अब वहाँ से जा चुके हैं। चूँकि गनपत और जफर जब वहाँ आऐ थो तो उस वक्त शाम हो चुकी थी। इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि अब तक रात हो चुकी होगी। फिलहाल मैं इस सीक्रेट कमरे में गनपत और जफर को छोडकर बाकी सभी लोगों और जंगली जानवरों से सुरक्षित थी।
क्योंकि गनपत और जफर के अलावा उस सीक्रेट कमरे के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इतनी सारी भागदौड करने के कारण मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। जिस कारण मैं वहीं जमीन पर लेट गई और जल्द ही थकान और कमजोरी के कारण मुझे नींद आ गई। अचानक आधी रात के करीब मुझे अपने पूरे शरीर में अजीब सी ऐंठन और दर्द महसूस होने लगा। जिस कराण मेरी आँख खुल गई। मैंने देखा कि मेरे गले में डला वह मोती एक बार फिर से ग्लो कर रहा है। यह सब देखकर मैं बहुत ज्यादा डर गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है।
इसलिए मैं उस मोती को अपने गले से निकालने की कोशिश करने लगी। पर पता नहीं कैसे उसका धागा अपने आप सिकुडकर मेरे गले से लगभग चिपक गया था। जिस कारण मैं उसे निकाल ही नहीं पा रही थी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब मैं ना तो उस धागे को तोड पाई और ना ही उसे गले से निकला पाई तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। जैसे ही मैंने उस धागे को अपने गले से निकालने की कोशिश बंद की तो वो फिर से नार्मल साईज का हो गया। जिसे देखकर मैं हैरान रह गई। पर तभी मुझे आईडिया आया कि क्यों ना मैं इस धागे को जला दूँ।
यह सोचते ही मैंने अपना लाईटर जलाया। लेकिन जैसे ही मैंने लाईटर जलाया तो वो मोती ग्लो होना बंद हो गया और वो एक नॉर्मल हरे रंग मोती बन गया। लेकिन मैंने उसपर को ध्यान नहीं दिया और उस धागे को पकडकर उसे लाईटर की फ्लेम से जलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं जला तो मैंने अपना लाईटर बंद कर दिया। लेकिन लाईटर के बंद होते ही वो मोती एक बार फिर से ग्लो करने लगा। यह सब मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, साथ ही साथ डर के कारण मेरी गांड भी फट रही थी।
मुझे लग रहा थी कि जरूर यहाँ कोई भूत है। तभी अचानक से मुझे याद आया कि मैंने सुबह आंगन में एक चाकू डला देखा था जो शायद उन गुण्डों में से किसी का था। चाकू के बारे में याद आते ही मैं तुरंत उस सीक्रेट कमरे का दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गई और आंगन में उस चाकू को तलाश करने लगी। चांदनी रात होने के कारण मुझे उस चाकू को ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी थी। जैसे ही मुझे बो चाकू मिला तो मैं उससे अपने गले का धागा काटने की कोशिश करने लगी, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।
काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं कटा। तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। अब मैं यह सोचकर हैरान थी कि आखिर यह धागा किस चीज से बना है। क्योंक ना तो ये टूट रहा था, ना ही जल रहा था और ना ही कट रहा था। हाँलाकि देखने में तो वह किसी सोने की चैन की तरह दिखाई देता है, पर उसकी साफ्टनेश और लचीलेपन को देखते हुए कोई भी यह कह सकता था वो किसी भी धातू से नहीं बना है। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि उस धागे में कोई ज्वाईंट या गाँठ बगैरह नहीं थी। जिससे उसे खोला जा सके।
आखिरकार थक हार कर मैं बापिस उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे एक बार फिर अपने पूरे शरीर में तेज दर्द और ऐंठन महसूस होने लगी। पर फिलहाल इससे छुटकारा पाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था। इसलिए सारी रात मैं यूँ ही दर्द से तडपती और कराहती रही। मेरा पूरा शरीर पशीने से भीग चुका था और मेरी सांसे भी काफी तेज चल रहीं थी। आखिरकार मैं यह दर्द ज्यादा देर तक बरदास्त नहीं कर पाई और बेहोश हो गई।
अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैं काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का दर्द भी अब लगभग खत्म हो चुका था और मैं अब अपने अंदर पहले से काफी ज्यादा एनर्जी महसूस कर रही थी। ठीक तभी अंजाने में मैंने जैसे ही अपने सिर पर हाथ फेरा तो मैं हैरान रह गई। क्योंकि मेरे बाल फिर से उग आऐ थे और एक ही रात में मेरी गर्दन तक बडे हो गए थे। जिसे देखकर मैं काफी खुश थी। बैसे भी लडकियाँ अपने बालों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसटिव होती हैं।
कुछ देर बाद मैं उस सीक्रेट रूम से बाहर आ गई और उस खण्डहर से बाहर जाने का का रास्ता तलाश करने लगी। इस बार थोडी सी कोशिश करने के बाद ही मैं आसानी से खडी हो गई थी और धीरे धीरे चलते हुए खण्डहर से बाहर जा रही थी। जल्द ही मैं खण्डहर के बाहर खडी हुई थी। वो खण्डहर जंगल के एकदम बीचों बीच था और उससे बाहर जाने के लिए एक कच्चा भी रास्ता बना हुआ था। चूँकि वह खण्डहर काफी ऊँचाई पर था जिस कारण मुझे काफी दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन दूर दूर तक मुझे केवल घना जंगल ही नजर आ रहा था।
कुछ देर बाद मैं उस खण्डहर के चारों तरफ चक्कर लगाकर देखने लगी कि आस पास कोई कुँआ या तलाब बगैरह है या नहीं। क्योंकि मुझे काफी तेज प्यास लग रह थी। तभी मेरी नजर थोडी दूर बने एक छोटे से तालाब पर पडी। हाँलाकि मैं वहाँ अभी तुरंत ही जाना चाहती थी। लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरा पूरा शरीऱ जला हुआ है और मैं इस वक्त बिना कपडों के एक दम नंगी खडी हुई हूँ। चूँकि दिन निकल आया था, जिस कारण जंगल के उस इलाके में किसी भी फारेस्ट ऑफिसर या आस पास के गाँव वाले के मिलने की संभावना थी। इसलिए फिलहाल मैंने उस तालाब पर जाने का प्लान कैंशिल कर दिया और खण्डहर के अंदर बापिस आ गई।
खण्डहर के अंदर आंगन में आते ही मेरी नजर उस टूटे फूटे पत्थर पर पडी। जिसपर एक दिन पहले मैं किसी बेजान लाश की तरह पडी होकर अपनी आखरी सांसे गिन रही थी और अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। ठीक तभी बिजली गिरने से मैं पूरी तरह से जल गई और वो पत्थर टूट कर चकनाचूर हो गया था। पर मैं कैसे बच गई इसका जबाब अब भी मेरे पास नहीं था। तभी मुझे अपनी चोटों की याद आई जिनमें अब मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय सीने के घाव के, जो लोहे की मोटी रॉड घुसने के कारण हुआ था। इसलिए मैंने एक एक करके अपनी सारी पट्टियाँ खोल दीं।
मैं यह देखकर हैरान रह गई कि मेरे सारे घाव अब लगभग ठीक हो चुके हैं और मेरे सीने का घाव भी काफी हद तक भऱ चुका है। पर यह सब कैसे संभव है…. क्योंकि इतनी गहरी चोटों का कुछ ही घंटों मेें ठीक होना लगभग असम्भव बात है। जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया तो मैंने इस सबके बारे में सोचना बंद कर दिया और अपने सीने के घाव पर फिर से पट्टी बांध ली। फिलहाल मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए मैंने उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर फिर से रेस्ट करने का फैसला किया।
लेकिन तभी मुझे खण्डहर के बाहर से कुछ हलचल सुनाई दी। जिसे सुनकर मैं समझ गई कि कुछ लोग उस खण्डहर के अंदर आ रहे हैं। उन लोगों की आवाजों से मैंने अंदाजा लगाया कि मेरे पास सीक्रेट कमरे के अंदर जाने बिल्कुल भी समय नहीं है। इसलिए मैं आंगन के बीचों बीच खडी होकर चारों तरफ देखने लगी। लभी मेरी नजर आंगन के एक कोने में खडी घनी झाडियों पर पडी। जो फिलहाल मेरे छिपने के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी। इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए तेजी से उन झाडियों की तरफ बड गई और उनके पीछे जाकर छिप गई।
उस वक्त मैंने यह भी नहीं सोचा कि वहाँ कोई खतरनाक जंगली जानवर या साँब बगैरह भी छिपा हो सकता है। पर किस्मत से वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। जैसे ही मैं उन झाडियों के पीछे गई तो मुझे उस खण्डहर के अंदर आते कुछ लोग दिखाई दिए। वो लोग शायद वहीँ आस पास के किसी गाँव के रहने बाले थे। जिनके हाथों में पूजा बगैरह का सामान था। उन लोगों के साथ एक बूडा आदमी भी था जो किसी पण्डित की तरह दिखाई दे रहा था। खण्डहर के अंदर आकर जैसे ही उन लोगों की नजर आंगन के बीचों बीच पडे उस पत्थर पर पडी जो अब बिजली गिरने के कारण पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था। तो उनमें से एक आदमी बोला
“हे भगवान… पण्डित जी देखो तो सही ऐ क्या अनर्थ हो गया, किसी ने अमर शिला खण्डित कर दिया है”
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी ने अपने हाथ में पकडा पूजा का सामान एक सुरक्षित स्थान पर ऱखते हुए कहा
पण्डित- नहीं प्रताप यह असंभव है… अमर शिला इतनी मजबूत है कि उसे खण्डित नहीं किया जा सकता है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप नाम का वो व्यक्ति फिर से बोला
प्रताप- तो क्या यह अमर शिला अपने आप खण्डित हो गई है
पण्डित- कुछ कह नहीं सकते, हो सकता है कि दो दिन पहले जो आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उसी दिन आकाशीय बिजली गिहने से यह अमर शिला खण्डित हो गई हो। ध्यान से देखा ,आस पास की मिट्टी भी जलकर काली हो गई है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप ने फिर से कहा
प्रताप- तो क्या अब हम इस अमर शिला की पूजा नहीं कर सकते।
पण्डित- अब जब हम यहाँ तक आ ही गए हैं तो फिर आखिरी बार पूजा करके ही जाऐंगे। लेकिन आज के बाद दोबारा यहाँ आने का अब कोई फायदा नहीं है।
प्रताप- बैसे पण्डित जी इस अमर शिला की आखिर क्या कहानी है और हम लोग क्यों प्रतिवर्ष इस शिला की पूजा करने यहाँ इस घने जंगल में आते हैं।
पण्डित- तो तुम इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हो
पण्डित जी की बात सुनकर एक दूसरा आदमी बोला
आदमी- हाँ पण्डित जी हम सभी लोग इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हैं। हाँलाकि हम सभी लोग प्रतिवर्ष आपके साथ यहाँ पूजा करने कई वर्षों से आते रहे हैं। लेकिन इस अमर शिला की कहानी हम लोगों पता नहीं है। हम लोगों ने कई बार सोचा की आपसे इस बारे में बात करें लेकिन किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। अब हमारे गाँव में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आप ही हो। इसलिए आप ही हमें इसके बारे में बता सकते हैं।
पण्डित- तो फिर ठीक है… एक काम करो पहले सभी के बैठने के लिए आसन लगा तो। जिसके बाद मैं सबसे पहले तुम सबको इस अमर शिला की कहानी सुनाऊँगा और उसके बाद हम सब आखिरी बार इस अमर शिला की पूजा करें।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप और उस दूसरे आदमी ने सभी लोगों के बैठने के लिए नीचे जमीन पर एक चादर बिछा दी और पण्डित जी के लिए एक अलग से आसन लगा दिया।
मैं यह देखकर बुरी तरह से हैरान थी कि वो रोशनी मेरे गले के पास से निकल रही है। मैंने जैसे ही हाथ लगाकर चैक किया तो मुझे पता चला कि मेरे गले में सुनहरे रंग के मोटे से धागे में पिरोया गया हरे रंग एक छोटा सा मोती डला हुआ है। जिसमें से यह रोशनी निकल रही है। मैंने आज से पहले उस मोती को कभी नहीं देखा था। इसलिए मैं उसे अपने गले में देखकर बुरी तरह से हैरान थी साथ ही साथ मुझे डर भी लग रहा था। पर फिलहाल यह समय इन सब बातों के बारे में सोचने का नहीं था। इसलिए मैंने उस हरी रोशनी में उस कमरे को अच्छी तरह से चैक करना शूरू कर दिया। वो कमरा बाहर बाले कमरे से से काफी बड़ा था। जो लगभग पूरा खाली था।
लेकिन उस कमरे के एक साईड कोने में मुझे कुछ सामान रखा हुआ दिखाई दिया। इसलिए मैं सरकते हुए जब उसके पास गई तो मुझे वहाँ एक के ऊपर एक रखे कई सारे प्लास्टिक के बॉक्स दिखाई दिए। जिन्हें देखकर मैं तुरंत समझ गई कि उन लोगों ने अपना सारा माल यहीँ इसी कमरे में छिपा कर रखा है। पर अब मेरे सामने एक नई मुशीवत खडी हो गई थी। क्योंकि वो लोग अब अपना माल चैक करने इस कमरे में आने बाले थे। जिसका मतलब था की वो मुझे भी यहाँ देख सकते थे। इसलिए मैं उस कमरे में छिपने की जगह देखने लगी। पर बो कमरा पूरी तरह से खाली था।
उसमें छिपने की कोई भी जगह नहीं थी। हाँलाकि उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे छिपने की पर्याप्त जगह मौजूद थी। लेकिन मेरे गले में चमकते मोती के कारण मैं तुरंत ही पकडी जा सकती थी। मैं अभी इस बारे में सोच ही रही थी कि तभी मुझे सीक्रेट दरवाजे के खुलने की आवाज सुनाई दी, ठीक उसी पल मेरे गले में डला मोती भी चमकना बंद हो गया था। जिस कारण उस कमरे में एक बार फिर से अंधेरा छा गया। अब मेरे पास कुछ भी सोचने समझने का बिल्कुल भी समय नहीं था। इसलिए मैं उन प्लास्टिक बॉक्स के पीछे जाकर छिप गई।
अगले ही पल मुझे उस सीक्रेट कमरे का दरवाजा खुलने के साथ साथ जफर और गनपत के अंदर आने आवाजें सुनाई दीं। उन दोनोें ने आगे की तरफ रखे एक दो बॉक्स खोलकर चैक किए और फिर उस कमरे से बाहर निकल गए। कुछ देर बाद मुझे जब मुझे सीक्रेट दरवजा बंद होने की आवाज सुनाई दी तो मैं उन बॉक्स के पीछे से बाहर निकल आई और सरकते हुए एक बार फिर दरवाजे के पास जाकर दीबार से टिक कर बैठ गई। ताकि बाहर होती हलचल सुन सकूँ।
गनपत उस दरवाजे को पूरी तरह से बंद कर गया था। इसलिए मैंने फिर से अंदर बाली मूर्ती को थोडा घुमाकर दीवार के बीच छोटी सी दरार बना ली थी। जिससे ताजी हवा अंदर आ सके। जब काफी देर तक मुझे बाहर से कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो मैं समझ गई कि जफर और गनपत अब वहाँ से जा चुके हैं। चूँकि गनपत और जफर जब वहाँ आऐ थो तो उस वक्त शाम हो चुकी थी। इसलिए मैंने अंदाजा लगाया कि अब तक रात हो चुकी होगी। फिलहाल मैं इस सीक्रेट कमरे में गनपत और जफर को छोडकर बाकी सभी लोगों और जंगली जानवरों से सुरक्षित थी।
क्योंकि गनपत और जफर के अलावा उस सीक्रेट कमरे के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इतनी सारी भागदौड करने के कारण मैं काफी थकान महसूस कर रही थी। जिस कारण मैं वहीं जमीन पर लेट गई और जल्द ही थकान और कमजोरी के कारण मुझे नींद आ गई। अचानक आधी रात के करीब मुझे अपने पूरे शरीर में अजीब सी ऐंठन और दर्द महसूस होने लगा। जिस कराण मेरी आँख खुल गई। मैंने देखा कि मेरे गले में डला वह मोती एक बार फिर से ग्लो कर रहा है। यह सब देखकर मैं बहुत ज्यादा डर गई थी। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है।
इसलिए मैं उस मोती को अपने गले से निकालने की कोशिश करने लगी। पर पता नहीं कैसे उसका धागा अपने आप सिकुडकर मेरे गले से लगभग चिपक गया था। जिस कारण मैं उसे निकाल ही नहीं पा रही थी। काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब मैं ना तो उस धागे को तोड पाई और ना ही उसे गले से निकला पाई तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। जैसे ही मैंने उस धागे को अपने गले से निकालने की कोशिश बंद की तो वो फिर से नार्मल साईज का हो गया। जिसे देखकर मैं हैरान रह गई। पर तभी मुझे आईडिया आया कि क्यों ना मैं इस धागे को जला दूँ।
यह सोचते ही मैंने अपना लाईटर जलाया। लेकिन जैसे ही मैंने लाईटर जलाया तो वो मोती ग्लो होना बंद हो गया और वो एक नॉर्मल हरे रंग मोती बन गया। लेकिन मैंने उसपर को ध्यान नहीं दिया और उस धागे को पकडकर उसे लाईटर की फ्लेम से जलाने की कोशिश करने लगी। लेकिन काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं जला तो मैंने अपना लाईटर बंद कर दिया। लेकिन लाईटर के बंद होते ही वो मोती एक बार फिर से ग्लो करने लगा। यह सब मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, साथ ही साथ डर के कारण मेरी गांड भी फट रही थी।
मुझे लग रहा थी कि जरूर यहाँ कोई भूत है। तभी अचानक से मुझे याद आया कि मैंने सुबह आंगन में एक चाकू डला देखा था जो शायद उन गुण्डों में से किसी का था। चाकू के बारे में याद आते ही मैं तुरंत उस सीक्रेट कमरे का दरवाजे को खोलकर बाहर निकल गई और आंगन में उस चाकू को तलाश करने लगी। चांदनी रात होने के कारण मुझे उस चाकू को ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी थी। जैसे ही मुझे बो चाकू मिला तो मैं उससे अपने गले का धागा काटने की कोशिश करने लगी, लेकिन इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।
काफी देर तक कोशिश करने के बाद भी जब वो धागा नहीं कटा। तो मैंने कोशिश करना बंद कर दिया। अब मैं यह सोचकर हैरान थी कि आखिर यह धागा किस चीज से बना है। क्योंक ना तो ये टूट रहा था, ना ही जल रहा था और ना ही कट रहा था। हाँलाकि देखने में तो वह किसी सोने की चैन की तरह दिखाई देता है, पर उसकी साफ्टनेश और लचीलेपन को देखते हुए कोई भी यह कह सकता था वो किसी भी धातू से नहीं बना है। सबसे हैरत की बात तो यह थी कि उस धागे में कोई ज्वाईंट या गाँठ बगैरह नहीं थी। जिससे उसे खोला जा सके।
आखिरकार थक हार कर मैं बापिस उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर बाद मुझे एक बार फिर अपने पूरे शरीर में तेज दर्द और ऐंठन महसूस होने लगी। पर फिलहाल इससे छुटकारा पाने का मेरे पास कोई उपाय नहीं था। इसलिए सारी रात मैं यूँ ही दर्द से तडपती और कराहती रही। मेरा पूरा शरीर पशीने से भीग चुका था और मेरी सांसे भी काफी तेज चल रहीं थी। आखिरकार मैं यह दर्द ज्यादा देर तक बरदास्त नहीं कर पाई और बेहोश हो गई।
अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो मैं काफी अच्छा महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का दर्द भी अब लगभग खत्म हो चुका था और मैं अब अपने अंदर पहले से काफी ज्यादा एनर्जी महसूस कर रही थी। ठीक तभी अंजाने में मैंने जैसे ही अपने सिर पर हाथ फेरा तो मैं हैरान रह गई। क्योंकि मेरे बाल फिर से उग आऐ थे और एक ही रात में मेरी गर्दन तक बडे हो गए थे। जिसे देखकर मैं काफी खुश थी। बैसे भी लडकियाँ अपने बालों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसटिव होती हैं।
कुछ देर बाद मैं उस सीक्रेट रूम से बाहर आ गई और उस खण्डहर से बाहर जाने का का रास्ता तलाश करने लगी। इस बार थोडी सी कोशिश करने के बाद ही मैं आसानी से खडी हो गई थी और धीरे धीरे चलते हुए खण्डहर से बाहर जा रही थी। जल्द ही मैं खण्डहर के बाहर खडी हुई थी। वो खण्डहर जंगल के एकदम बीचों बीच था और उससे बाहर जाने के लिए एक कच्चा भी रास्ता बना हुआ था। चूँकि वह खण्डहर काफी ऊँचाई पर था जिस कारण मुझे काफी दूर तक साफ साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन दूर दूर तक मुझे केवल घना जंगल ही नजर आ रहा था।
कुछ देर बाद मैं उस खण्डहर के चारों तरफ चक्कर लगाकर देखने लगी कि आस पास कोई कुँआ या तलाब बगैरह है या नहीं। क्योंकि मुझे काफी तेज प्यास लग रह थी। तभी मेरी नजर थोडी दूर बने एक छोटे से तालाब पर पडी। हाँलाकि मैं वहाँ अभी तुरंत ही जाना चाहती थी। लेकिन तभी मुझे याद आया कि मेरा पूरा शरीऱ जला हुआ है और मैं इस वक्त बिना कपडों के एक दम नंगी खडी हुई हूँ। चूँकि दिन निकल आया था, जिस कारण जंगल के उस इलाके में किसी भी फारेस्ट ऑफिसर या आस पास के गाँव वाले के मिलने की संभावना थी। इसलिए फिलहाल मैंने उस तालाब पर जाने का प्लान कैंशिल कर दिया और खण्डहर के अंदर बापिस आ गई।
खण्डहर के अंदर आंगन में आते ही मेरी नजर उस टूटे फूटे पत्थर पर पडी। जिसपर एक दिन पहले मैं किसी बेजान लाश की तरह पडी होकर अपनी आखरी सांसे गिन रही थी और अपनी मौत का इंतजार कर रही थी। ठीक तभी बिजली गिरने से मैं पूरी तरह से जल गई और वो पत्थर टूट कर चकनाचूर हो गया था। पर मैं कैसे बच गई इसका जबाब अब भी मेरे पास नहीं था। तभी मुझे अपनी चोटों की याद आई जिनमें अब मुझे बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं हो रहा था। सिवाय सीने के घाव के, जो लोहे की मोटी रॉड घुसने के कारण हुआ था। इसलिए मैंने एक एक करके अपनी सारी पट्टियाँ खोल दीं।
मैं यह देखकर हैरान रह गई कि मेरे सारे घाव अब लगभग ठीक हो चुके हैं और मेरे सीने का घाव भी काफी हद तक भऱ चुका है। पर यह सब कैसे संभव है…. क्योंकि इतनी गहरी चोटों का कुछ ही घंटों मेें ठीक होना लगभग असम्भव बात है। जब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया तो मैंने इस सबके बारे में सोचना बंद कर दिया और अपने सीने के घाव पर फिर से पट्टी बांध ली। फिलहाल मेरे पास करने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए मैंने उस सीक्रेट रूम के अंदर जाकर फिर से रेस्ट करने का फैसला किया।
लेकिन तभी मुझे खण्डहर के बाहर से कुछ हलचल सुनाई दी। जिसे सुनकर मैं समझ गई कि कुछ लोग उस खण्डहर के अंदर आ रहे हैं। उन लोगों की आवाजों से मैंने अंदाजा लगाया कि मेरे पास सीक्रेट कमरे के अंदर जाने बिल्कुल भी समय नहीं है। इसलिए मैं आंगन के बीचों बीच खडी होकर चारों तरफ देखने लगी। लभी मेरी नजर आंगन के एक कोने में खडी घनी झाडियों पर पडी। जो फिलहाल मेरे छिपने के लिए सबसे अच्छी जगह हो सकती थी। इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए तेजी से उन झाडियों की तरफ बड गई और उनके पीछे जाकर छिप गई।
उस वक्त मैंने यह भी नहीं सोचा कि वहाँ कोई खतरनाक जंगली जानवर या साँब बगैरह भी छिपा हो सकता है। पर किस्मत से वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। जैसे ही मैं उन झाडियों के पीछे गई तो मुझे उस खण्डहर के अंदर आते कुछ लोग दिखाई दिए। वो लोग शायद वहीँ आस पास के किसी गाँव के रहने बाले थे। जिनके हाथों में पूजा बगैरह का सामान था। उन लोगों के साथ एक बूडा आदमी भी था जो किसी पण्डित की तरह दिखाई दे रहा था। खण्डहर के अंदर आकर जैसे ही उन लोगों की नजर आंगन के बीचों बीच पडे उस पत्थर पर पडी जो अब बिजली गिरने के कारण पूरी तरह से चकनाचूर हो गया था। तो उनमें से एक आदमी बोला
“हे भगवान… पण्डित जी देखो तो सही ऐ क्या अनर्थ हो गया, किसी ने अमर शिला खण्डित कर दिया है”
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी ने अपने हाथ में पकडा पूजा का सामान एक सुरक्षित स्थान पर ऱखते हुए कहा
पण्डित- नहीं प्रताप यह असंभव है… अमर शिला इतनी मजबूत है कि उसे खण्डित नहीं किया जा सकता है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप नाम का वो व्यक्ति फिर से बोला
प्रताप- तो क्या यह अमर शिला अपने आप खण्डित हो गई है
पण्डित- कुछ कह नहीं सकते, हो सकता है कि दो दिन पहले जो आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उसी दिन आकाशीय बिजली गिहने से यह अमर शिला खण्डित हो गई हो। ध्यान से देखा ,आस पास की मिट्टी भी जलकर काली हो गई है।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप ने फिर से कहा
प्रताप- तो क्या अब हम इस अमर शिला की पूजा नहीं कर सकते।
पण्डित- अब जब हम यहाँ तक आ ही गए हैं तो फिर आखिरी बार पूजा करके ही जाऐंगे। लेकिन आज के बाद दोबारा यहाँ आने का अब कोई फायदा नहीं है।
प्रताप- बैसे पण्डित जी इस अमर शिला की आखिर क्या कहानी है और हम लोग क्यों प्रतिवर्ष इस शिला की पूजा करने यहाँ इस घने जंगल में आते हैं।
पण्डित- तो तुम इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हो
पण्डित जी की बात सुनकर एक दूसरा आदमी बोला
आदमी- हाँ पण्डित जी हम सभी लोग इस अमर शिला की कहानी जानना चाहते हैं। हाँलाकि हम सभी लोग प्रतिवर्ष आपके साथ यहाँ पूजा करने कई वर्षों से आते रहे हैं। लेकिन इस अमर शिला की कहानी हम लोगों पता नहीं है। हम लोगों ने कई बार सोचा की आपसे इस बारे में बात करें लेकिन किसी की हिम्मत ही नहीं हुई। अब हमारे गाँव में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आप ही हो। इसलिए आप ही हमें इसके बारे में बता सकते हैं।
पण्डित- तो फिर ठीक है… एक काम करो पहले सभी के बैठने के लिए आसन लगा तो। जिसके बाद मैं सबसे पहले तुम सबको इस अमर शिला की कहानी सुनाऊँगा और उसके बाद हम सब आखिरी बार इस अमर शिला की पूजा करें।
पण्डित जी की बात सुनकर प्रताप और उस दूसरे आदमी ने सभी लोगों के बैठने के लिए नीचे जमीन पर एक चादर बिछा दी और पण्डित जी के लिए एक अलग से आसन लगा दिया।
Update 041 -
सभी लोगों के बैठने के बाद पण्डित जी ने कहना शुरू किया
पण्डित- करीब करीब 1000 वर्प पहले यहाँ पर भोजपुर नाम का एक राज्य हुआ करता था। जिसके राजा विश्वजीत की के यहाँ सैकडों वर्षों में एक बार आने बाले दिव्य अमृत योग में एक पुत्री का जन्म हुआ था। जिस कारण उनका नाम अमृता रखा गया। जन्म से ही राजकुमारी अमृता के अंदर कुछ दिव्य शक्तियाँ थीं और वो बहुत होनहार एवं मृदूभाषी थी। उनके अंदर दया, ममता जैसे कई गुण थे और वो हमेशा दूसरों की सहायता किया करती थी। जिस कारण राज्य की पूरी जनता उन्हें बहुत प्यार सम्मान देती थी। युवा होते होते राजकुमारी अमृता सभी कलाओं में पारंगत हो गई थीं। जिस कारण वो उस समय की सबसे सुंदर और प्रतिभावान राजकुमारी के रूप में मैं विख्यात हो चुकी थी। लेकिन उनकी यह सुंदरता ही उनकी सबसे बडी शत्रु बन गई थी।
पण्डित जी की बात सुनकर एक आदमी ने सबाल किया
आदमी- पण्डित जी आखिर किसी की सुंदरता उसकी शत्रू कैसे हो सकती है
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी मुस्कुराकर बोले
पण्डित- क्यों नहीं हो सकती है… अगर किसी की सुंदरता दिव्य हो तो उसे सभी लोग पाना चाहेंगे। असल में राजकुमारी अमृता के पास शक्ति बीज था। जिसने उनकी सुंदरता को और भी ज्यादा निखार कर दिव्य बना दिया था।
इससे पहले पण्डित जी अपनी बात पूरी कर पाते प्रताप ने उन्हें टोकते हुए कहा
प्रताप- पण्डित जी यह शक्ति बीज क्या और वो राजकुमारी अमृता को आखिर कैसे प्राप्त हुआ था।
पण्डित- ऐसा कहा जाता है कि अपने दयालू और दूसरे की सहायता करने बाले स्वभाव के कारण राजकुमारी अमृता ने एक बार अनजाने में ही किसी सिद्ध ऋषी की सहायता की थी। जिस कारण उन्होंने राजकुमारी अमृता को एक दिव्य मोती यानि शक्तिबीज प्रदान किया था। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वो शक्ति बीज राजकुमारी अमृता के पास उनके जन्म के समय से ही था। सच क्या है यह कोई नहीं जनाता। लेकिन उस शक्ति बीज की दिव्य शक्तियों के कारण राजकुमारी अमृता की आयू बडने के बाद भी वो हमेशा युवा बनी रही और उनकी आयू भी सामान्य मनुष्य की अपेक्षा कई गुना ज्यादा लम्बी हो गई थी। जिस कारण कई लोग यह मानने लगे थे की राजकुमारी अमृता तो चिरयौबन और अंतहीन जीवन का बरदान प्राप्त है।
पण्डित जी के चुप होते ही प्रताप ने अगल सबाल किया
प्रताप- फिर क्या हुआ पण्डित जी.. आखिर राजकुमारी अमृता की सुंदरता उनकी शत्रू कैसे बन गई थी और यह अमर शिला कहाँ से आई।
पण्डित- असल में राजा विश्वजीत की दूसरी पत्नि और राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ एक क्रूर और लालची महिला थी। इसलिए वो राजकुमारी अमृता से शक्ति बीज हासिल करने के लिए उन पर दबाब बनाने लगी। लेकिन जब राजकुमारी अमृता ने उन्हें शक्ति बीज देने से मना कर दिया। उसी दौरान राजकुमारी अमृता को पाने के लिए दूसरे राज्य के राजाओं ने भोजपुर पर हमला कर दिया था, इसके साथ साथ इस राज्य के कई बडे मंत्री और दूसरे शक्तिशाली पुरूष भी राजकुमारी अमृता को पाने के लिए षडयंत्र करने लगे थे। जिस कारण राज्य के अंदर भी गृह युद्ध जैस हालत बन गए थे। जिसका लाभ उठाकर राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ ने एक ऐसा चक्रव्यू रचा जिसमें उलझकर राजकुमारी अमृता को नगरबधू यानि बैश्या बनाना पडा। ताकि उन्हें पाने की चाह रखने बाले सभी पुरूष वासना मिटा सकें और भोजपुर राज्य फिर से सुरक्षित हो सके।
इतना बोलकर जब पण्डित जी खामोश हो गए तो एक दूसरे व्यक्ति ने सबाल किया
आदमी- फिर क्या हुआ पण्डित जी
पण्डित- राजकुमारी अमृता के नगर बधू बनने के बाद भी जब जनता का उनके प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ तो उनकी सौतेली माँ ने राजकुमारी अमृता को उनकी माता और भाई बहनों की हत्या करवाने की धमकी देकर वो शक्ति बीज हासिल करने की कोशिश की। तब जाकर राजकुमारी अमृता को इस बात का एहसास हुआ कि शक्ति बीज की दिव्य वास्तव में एक श्राप है। लेकिन वो उस शक्ति बीज को अपनी सौतेली माँ या फिर किसी दूसरे गलत इंशान के हाथों नहीं लगने देना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने उस शक्ति बीज को इस पत्थर के अंदर छिपा दिया और इसी पत्थर पर बैठकर आत्मदाह कर अपने श्रापित जीवन को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। शक्ति बीज के प्रभाव के कारण ही यह पत्थऱ इतना कठोर हो गया कि उसे टोडकर शक्ति बीज हासिल करना असंभव था। इसलिए लोगों ने इस पत्थऱ को अमर शिला का नाम दे दिया तथा लम्बी आयू एवं स्वस्थ जीवन के लिए इसकी पूजा करने लगे। समय के साथ साथ यह स्थान बीरान होता चला गया और यहाँ घना जंगल उग गया। इसलिए धीरे धीरे लोग इस अमर शिला के महत्व को भूल गए। अब बस कुछ गिने चुने लोग ही बचे हैं जो अब भी इस अमर शिला की पूजा करने यहाँ आते हैं।
पण्डित जी के खामोश होते ही प्रताप ने सबाल किया
प्रताप- तो क्या शक्ति बीज अब भी इस अमर शिला में मौजूद है या फिर कोई दूसरा इंसान उसे अपने साथ ले गया है।
पण्डित- फिलहाल इसके बारे कोई भी अंदाजा लगाना जल्दवाजी होगी। लेकिन जहाँ तक मेरी समझ कहती है, उसके हिसाब से दो दिन पहले, जिस दिन आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उस दिन काल गणना के अनुसार रात के समय कुछ पलों के लिए अमृत योग बना था। शायद उसी समय इस अमर शिला पर बिजली भी गिरी हो। जिस कारण तेज आंधी तूफान के समय इस अमर शिला पर पंच तत्वों यानि भूमि, जल, बायू, आकाश एवं अग्नि का एक अदभुद संयोग बना होगा। जिस कारण अमर शिला के खण्डित होने से शक्ति बीज स्वतः ही बाहर आ गया होगा और शायद अब तक उसने अपना उत्तराधिकारी भी चुन लिया होगा। लेकिन वो कौन है, इसके बारे में सही समय आने पर ही पता चल सकता है।
इतना बोलकर पण्डित जी खामोश हो गए। अब किसी के भी पास कोई सबाल नहीं बचा था। इसलिए वो सभी लोग उस खण्डित हो चुकी अमर शिला की पूजा करने में व्यस्त हो गए। करीब एक घण्टे तक विधि विधान से उस अमर शिला की पूजा करने के बाद वो लोग इस खण्डहर से बाहर निकल गए। उन लोगों के उस खण्डहर से बाहर जाते ही मैं झाडियों से बाहर निकल आई और उस पत्थऱ के पास जा पहुँची, जहाँ वो लोग प्रसाद के रूप में कुछ फल और एक छोटे से घडे में थोडा सा पानी छोड गए थे। पिछले दो दिनों से भूखे प्यासे होने के कारण मैंने जल्दी से प्रसाद के रूप में चढाऐ गए उन फलों को उठाकर खाना शुरू कर दिया और मन ही मन सोचने लगी
“यह सब क्या बकवास है... आज के जमाने में कौन इन सब बातों पर यकीन करता है। पता नहीं लोग कैसे अंधविश्वास में आकर गलत रास्ता अपना लेते हैं......”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“एक मिनट कहीं ये सब सच तो नहीं। क्योंकि पण्डित जी के अनुसार इस पत्थर के अंदर एक दिव्य मोती यानि शक्ति बीज छिपा हुआ था, जो शायद अब बाहर आ चुका है। और इस वक्त मेरे गले में भी एक मोती डला हुआ है, जो मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा और ना ही ऐसा कोई मोती अपने गले में डाला था, तो फिर यर मोती आखिर मेरे गले में कैसे आया, और सबसे बडी बात कि मैं उसे अपने गले से निकाल भी नहीं पा रही हूँ, इसके अलावा पता नहीं कैसे यह अपने आप ही ग्लो भी करने लगता, आखिरि यह मोती है क्या जी, कहीँ यही तो शक्ति बीज नहीं… ”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“नहीं नहीं ऐ मैं क्या सोच रही हूँ…. यह साधारण सा मोती आखिर शक्ति बीज कैसे हो सकता है”
अगले ही पल मेरे मन में मेरे पहले सबाल का जबाब देते हुए कहा
“क्यों नहीं हो सकता…. क्या मैंने पहले कभी शक्ति बीज देखा है… नहीं ना… तो फिर मुझे कैसे पता होगा कि शक्ति बीज कैसा दिखता है, हो सकता है कि यही शक्ति बीज हो, क्योंकि दो दिन पहले मेरी जो हालत थी, उसके हिबास से मेरा जिंदा बचना पूरी तरह से असंभव बात है, लेकिन मैं अब भी जिंदा हूँ, और मेरे घाव किसी आम इंशान की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से ठीक भी हो रहे हैं, यहाँ तक कि एक ही रात में ना केवल मेरे सिर के बाल निकल आऐ, बल्कि वो मेरी गर्दन तक बडे भी हो गए हैं, जिससे यह साबित होता है कि मेरे गले में डला यह मोती जरूर चमत्कारी है”
लेकिन तभी मेरे मन में एक नया बिचार आया
“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि, मेरे ऊपर बिजली गिरने के काराण, मेरे शरीर में कुछ ऐसा कैमिकल रिऐक्शन हुआ हो, जिससे मेरे डी.एन.ए. में कुछ परिवर्तन हुआ हो, और जिसने मुझे उस स्थिती में जिंदा बचने में मेरी मदद की हो, साथ ही साथ डी.एन.ए. में परिवर्तन होने के कारण ही मेरे घाव भी इतनी जल्दी ठीक हो रहे हों”
यह सोचने के साथ ही मेरे मन में एक और विचार आया
“हाँ यह हो सकता है। लेकिन फिर मेरे गले में डला यह मोती। इसका क्या.... यह मेरे गले में कैसे आया और आखिर मैं इसे अपने आप से दूर क्यों नहीं कर पा रही हूँ, बैसे भी इस मोती के कुछ चमत्कार तो मैं कल रात को ही देख चुकी हूँ… उफ्फ यार यह सब बहुत कन्फ्यूजिंग है…. मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है। क्या सच है और क्या गलत इसका कुछ पता ही नहीं चल रहा है”
तभी मेरे मन में एक और नए विचार ने जन्म लिया
“तुझे कुछ भी समझने की जरूरत नहीं है। बस यह सोच की तू इतना सब सहने के बाद भी जिंदा है। तुझे एक नई जिंदगी मिली है जीने के लिए। इसलिए अब केवल वही कर जिसमें तुझे खुशी मिलती है। तू इस मोती की बजह से जिंदा है, या बिजली गिरने के बाद डी.एन.ए. चेंजिंग से या फिर किस्मत से। इसका फैसला तो आने वाला वक्त ही करेगा। पर फिलहाल तुझे जो दूसरा मौका मिला है उसके बारे में सोच। सबसे पहले तुझे यहाँ से निकलना है और फिर उन सभी कमीनों से चुन चुन कर अपना बदला भी तो लेना है।”
तभी मेरे मन ने मेरे पहले विचार का समर्थन करते हुए कहा
“हाँ शायद यही ठीक होगा… मुझे अब इस बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं जिंदा कैसे बच गई और मेरे गले में यह मोती कैसे आया। मुझे बस किसी भी तरह से इस जंगल से बाहर निकलना है और अपना बदला लेना है”
यह सब सोचते सोचते मैंने सारे फल खत्म कर दिए, जिसके बाद मैं मटकी में रखा सारा पानी पी गई, हाँलाकि इससे मेरी ना तो भूख मिटी थी और ना ही प्यास, पर अभी जो कुछ भी मिल रहा था, वो मेरे जिंदा बचे रहने के लिए पर्याप्त था। इसके बाद मैं कमरे के अंदर चली गई। क्योंकि दिन चडने लगा था, जिस कारण वहाँ खण्डहर में कोई दूसरा व्यक्ति कभी भी वहाँ आ सकता था। लेकिन कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एक बार अच्छी तरह से पूरे आंगन देखा कि कहीं वहाँ मेरे आने का कोई सबूत तो मौजूद नहीं है। जब मुझे वहाँ कुछ भी नहीं मिला तो मैंने उस कमरे की भी अच्छी तरह से तलाशी लेनी शुरू कर दी। जहाँ मेरे कटे फटे कपडे और मेरा टूटा फुटा मोबाईल डला हुआ था।
जब मैंने अपना मोबाईल उठाकर अच्छी तरह से चैक किया। वो पूरी तरह से डैमेज हो चुका था। जिसे अब किसी भी तरह से रिपेयर किया जाना लगभग असंभव था। लेकिन उसमें डला सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड अब भी सही सलामत थे, जिन्हें मैंने तुरंत निकाल लिया। उसके बाद मैं अपने कपडों को अच्छी तरह से चैक करने लगी। उन कमीनों ने मेरे कपडों को चाकू की सहायता से इतनी बुरी तरह से फाडा था कि वो मेरे अब किसी भी काम के नहीं रह गए थे। लेकिन मुझे अपने जींस की पॉकेट से कुछ पैसे जरूर मिल गए थे। जो मैंने पार्क में जाने से पहले अपने हैंड बैग से निकाल लिए थे।
मैं इस वक्त बिना कपडों के थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड के साथ साथ उन पैसों को कहाँ रखूं, तभी मुझे एक आईडिया आया। मैंने कल रात आंगन में से जो चाकू उठाया था। उसे सीक्रेट कमरे से लेकर आई और अपने जींस के हिप पाकेट बाले हिस्से मैं से एक पाकेट काट लिया और उसके दोनों कार्नर पर चाकू की सहायता से दो छेद करने के बाद मैंने जींस में से एक रिवन के आकार का लम्बा टुकडा काटकर उस पाकेट के दोनों कार्नर पर किसी डोरी की तरह बांध दिया। अब बो पॉकेट एक काम चलाऊ हैंड बैग की तरह हो गया था। जिसे मैंने अपने कंधे पर डाल लिया। फिर मैंने उस पॉकेट के अंदर अपने पैसे और सिमकार्ड बगैरह भी रख दिए।
सभी लोगों के बैठने के बाद पण्डित जी ने कहना शुरू किया
पण्डित- करीब करीब 1000 वर्प पहले यहाँ पर भोजपुर नाम का एक राज्य हुआ करता था। जिसके राजा विश्वजीत की के यहाँ सैकडों वर्षों में एक बार आने बाले दिव्य अमृत योग में एक पुत्री का जन्म हुआ था। जिस कारण उनका नाम अमृता रखा गया। जन्म से ही राजकुमारी अमृता के अंदर कुछ दिव्य शक्तियाँ थीं और वो बहुत होनहार एवं मृदूभाषी थी। उनके अंदर दया, ममता जैसे कई गुण थे और वो हमेशा दूसरों की सहायता किया करती थी। जिस कारण राज्य की पूरी जनता उन्हें बहुत प्यार सम्मान देती थी। युवा होते होते राजकुमारी अमृता सभी कलाओं में पारंगत हो गई थीं। जिस कारण वो उस समय की सबसे सुंदर और प्रतिभावान राजकुमारी के रूप में मैं विख्यात हो चुकी थी। लेकिन उनकी यह सुंदरता ही उनकी सबसे बडी शत्रु बन गई थी।
पण्डित जी की बात सुनकर एक आदमी ने सबाल किया
आदमी- पण्डित जी आखिर किसी की सुंदरता उसकी शत्रू कैसे हो सकती है
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी मुस्कुराकर बोले
पण्डित- क्यों नहीं हो सकती है… अगर किसी की सुंदरता दिव्य हो तो उसे सभी लोग पाना चाहेंगे। असल में राजकुमारी अमृता के पास शक्ति बीज था। जिसने उनकी सुंदरता को और भी ज्यादा निखार कर दिव्य बना दिया था।
इससे पहले पण्डित जी अपनी बात पूरी कर पाते प्रताप ने उन्हें टोकते हुए कहा
प्रताप- पण्डित जी यह शक्ति बीज क्या और वो राजकुमारी अमृता को आखिर कैसे प्राप्त हुआ था।
पण्डित- ऐसा कहा जाता है कि अपने दयालू और दूसरे की सहायता करने बाले स्वभाव के कारण राजकुमारी अमृता ने एक बार अनजाने में ही किसी सिद्ध ऋषी की सहायता की थी। जिस कारण उन्होंने राजकुमारी अमृता को एक दिव्य मोती यानि शक्तिबीज प्रदान किया था। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वो शक्ति बीज राजकुमारी अमृता के पास उनके जन्म के समय से ही था। सच क्या है यह कोई नहीं जनाता। लेकिन उस शक्ति बीज की दिव्य शक्तियों के कारण राजकुमारी अमृता की आयू बडने के बाद भी वो हमेशा युवा बनी रही और उनकी आयू भी सामान्य मनुष्य की अपेक्षा कई गुना ज्यादा लम्बी हो गई थी। जिस कारण कई लोग यह मानने लगे थे की राजकुमारी अमृता तो चिरयौबन और अंतहीन जीवन का बरदान प्राप्त है।
पण्डित जी के चुप होते ही प्रताप ने अगल सबाल किया
प्रताप- फिर क्या हुआ पण्डित जी.. आखिर राजकुमारी अमृता की सुंदरता उनकी शत्रू कैसे बन गई थी और यह अमर शिला कहाँ से आई।
पण्डित- असल में राजा विश्वजीत की दूसरी पत्नि और राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ एक क्रूर और लालची महिला थी। इसलिए वो राजकुमारी अमृता से शक्ति बीज हासिल करने के लिए उन पर दबाब बनाने लगी। लेकिन जब राजकुमारी अमृता ने उन्हें शक्ति बीज देने से मना कर दिया। उसी दौरान राजकुमारी अमृता को पाने के लिए दूसरे राज्य के राजाओं ने भोजपुर पर हमला कर दिया था, इसके साथ साथ इस राज्य के कई बडे मंत्री और दूसरे शक्तिशाली पुरूष भी राजकुमारी अमृता को पाने के लिए षडयंत्र करने लगे थे। जिस कारण राज्य के अंदर भी गृह युद्ध जैस हालत बन गए थे। जिसका लाभ उठाकर राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ ने एक ऐसा चक्रव्यू रचा जिसमें उलझकर राजकुमारी अमृता को नगरबधू यानि बैश्या बनाना पडा। ताकि उन्हें पाने की चाह रखने बाले सभी पुरूष वासना मिटा सकें और भोजपुर राज्य फिर से सुरक्षित हो सके।
इतना बोलकर जब पण्डित जी खामोश हो गए तो एक दूसरे व्यक्ति ने सबाल किया
आदमी- फिर क्या हुआ पण्डित जी
पण्डित- राजकुमारी अमृता के नगर बधू बनने के बाद भी जब जनता का उनके प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ तो उनकी सौतेली माँ ने राजकुमारी अमृता को उनकी माता और भाई बहनों की हत्या करवाने की धमकी देकर वो शक्ति बीज हासिल करने की कोशिश की। तब जाकर राजकुमारी अमृता को इस बात का एहसास हुआ कि शक्ति बीज की दिव्य वास्तव में एक श्राप है। लेकिन वो उस शक्ति बीज को अपनी सौतेली माँ या फिर किसी दूसरे गलत इंशान के हाथों नहीं लगने देना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने उस शक्ति बीज को इस पत्थर के अंदर छिपा दिया और इसी पत्थर पर बैठकर आत्मदाह कर अपने श्रापित जीवन को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। शक्ति बीज के प्रभाव के कारण ही यह पत्थऱ इतना कठोर हो गया कि उसे टोडकर शक्ति बीज हासिल करना असंभव था। इसलिए लोगों ने इस पत्थऱ को अमर शिला का नाम दे दिया तथा लम्बी आयू एवं स्वस्थ जीवन के लिए इसकी पूजा करने लगे। समय के साथ साथ यह स्थान बीरान होता चला गया और यहाँ घना जंगल उग गया। इसलिए धीरे धीरे लोग इस अमर शिला के महत्व को भूल गए। अब बस कुछ गिने चुने लोग ही बचे हैं जो अब भी इस अमर शिला की पूजा करने यहाँ आते हैं।
पण्डित जी के खामोश होते ही प्रताप ने सबाल किया
प्रताप- तो क्या शक्ति बीज अब भी इस अमर शिला में मौजूद है या फिर कोई दूसरा इंसान उसे अपने साथ ले गया है।
पण्डित- फिलहाल इसके बारे कोई भी अंदाजा लगाना जल्दवाजी होगी। लेकिन जहाँ तक मेरी समझ कहती है, उसके हिसाब से दो दिन पहले, जिस दिन आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उस दिन काल गणना के अनुसार रात के समय कुछ पलों के लिए अमृत योग बना था। शायद उसी समय इस अमर शिला पर बिजली भी गिरी हो। जिस कारण तेज आंधी तूफान के समय इस अमर शिला पर पंच तत्वों यानि भूमि, जल, बायू, आकाश एवं अग्नि का एक अदभुद संयोग बना होगा। जिस कारण अमर शिला के खण्डित होने से शक्ति बीज स्वतः ही बाहर आ गया होगा और शायद अब तक उसने अपना उत्तराधिकारी भी चुन लिया होगा। लेकिन वो कौन है, इसके बारे में सही समय आने पर ही पता चल सकता है।
इतना बोलकर पण्डित जी खामोश हो गए। अब किसी के भी पास कोई सबाल नहीं बचा था। इसलिए वो सभी लोग उस खण्डित हो चुकी अमर शिला की पूजा करने में व्यस्त हो गए। करीब एक घण्टे तक विधि विधान से उस अमर शिला की पूजा करने के बाद वो लोग इस खण्डहर से बाहर निकल गए। उन लोगों के उस खण्डहर से बाहर जाते ही मैं झाडियों से बाहर निकल आई और उस पत्थऱ के पास जा पहुँची, जहाँ वो लोग प्रसाद के रूप में कुछ फल और एक छोटे से घडे में थोडा सा पानी छोड गए थे। पिछले दो दिनों से भूखे प्यासे होने के कारण मैंने जल्दी से प्रसाद के रूप में चढाऐ गए उन फलों को उठाकर खाना शुरू कर दिया और मन ही मन सोचने लगी
“यह सब क्या बकवास है... आज के जमाने में कौन इन सब बातों पर यकीन करता है। पता नहीं लोग कैसे अंधविश्वास में आकर गलत रास्ता अपना लेते हैं......”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“एक मिनट कहीं ये सब सच तो नहीं। क्योंकि पण्डित जी के अनुसार इस पत्थर के अंदर एक दिव्य मोती यानि शक्ति बीज छिपा हुआ था, जो शायद अब बाहर आ चुका है। और इस वक्त मेरे गले में भी एक मोती डला हुआ है, जो मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा और ना ही ऐसा कोई मोती अपने गले में डाला था, तो फिर यर मोती आखिर मेरे गले में कैसे आया, और सबसे बडी बात कि मैं उसे अपने गले से निकाल भी नहीं पा रही हूँ, इसके अलावा पता नहीं कैसे यह अपने आप ही ग्लो भी करने लगता, आखिरि यह मोती है क्या जी, कहीँ यही तो शक्ति बीज नहीं… ”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“नहीं नहीं ऐ मैं क्या सोच रही हूँ…. यह साधारण सा मोती आखिर शक्ति बीज कैसे हो सकता है”
अगले ही पल मेरे मन में मेरे पहले सबाल का जबाब देते हुए कहा
“क्यों नहीं हो सकता…. क्या मैंने पहले कभी शक्ति बीज देखा है… नहीं ना… तो फिर मुझे कैसे पता होगा कि शक्ति बीज कैसा दिखता है, हो सकता है कि यही शक्ति बीज हो, क्योंकि दो दिन पहले मेरी जो हालत थी, उसके हिबास से मेरा जिंदा बचना पूरी तरह से असंभव बात है, लेकिन मैं अब भी जिंदा हूँ, और मेरे घाव किसी आम इंशान की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से ठीक भी हो रहे हैं, यहाँ तक कि एक ही रात में ना केवल मेरे सिर के बाल निकल आऐ, बल्कि वो मेरी गर्दन तक बडे भी हो गए हैं, जिससे यह साबित होता है कि मेरे गले में डला यह मोती जरूर चमत्कारी है”
लेकिन तभी मेरे मन में एक नया बिचार आया
“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि, मेरे ऊपर बिजली गिरने के काराण, मेरे शरीर में कुछ ऐसा कैमिकल रिऐक्शन हुआ हो, जिससे मेरे डी.एन.ए. में कुछ परिवर्तन हुआ हो, और जिसने मुझे उस स्थिती में जिंदा बचने में मेरी मदद की हो, साथ ही साथ डी.एन.ए. में परिवर्तन होने के कारण ही मेरे घाव भी इतनी जल्दी ठीक हो रहे हों”
यह सोचने के साथ ही मेरे मन में एक और विचार आया
“हाँ यह हो सकता है। लेकिन फिर मेरे गले में डला यह मोती। इसका क्या.... यह मेरे गले में कैसे आया और आखिर मैं इसे अपने आप से दूर क्यों नहीं कर पा रही हूँ, बैसे भी इस मोती के कुछ चमत्कार तो मैं कल रात को ही देख चुकी हूँ… उफ्फ यार यह सब बहुत कन्फ्यूजिंग है…. मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है। क्या सच है और क्या गलत इसका कुछ पता ही नहीं चल रहा है”
तभी मेरे मन में एक और नए विचार ने जन्म लिया
“तुझे कुछ भी समझने की जरूरत नहीं है। बस यह सोच की तू इतना सब सहने के बाद भी जिंदा है। तुझे एक नई जिंदगी मिली है जीने के लिए। इसलिए अब केवल वही कर जिसमें तुझे खुशी मिलती है। तू इस मोती की बजह से जिंदा है, या बिजली गिरने के बाद डी.एन.ए. चेंजिंग से या फिर किस्मत से। इसका फैसला तो आने वाला वक्त ही करेगा। पर फिलहाल तुझे जो दूसरा मौका मिला है उसके बारे में सोच। सबसे पहले तुझे यहाँ से निकलना है और फिर उन सभी कमीनों से चुन चुन कर अपना बदला भी तो लेना है।”
तभी मेरे मन ने मेरे पहले विचार का समर्थन करते हुए कहा
“हाँ शायद यही ठीक होगा… मुझे अब इस बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं जिंदा कैसे बच गई और मेरे गले में यह मोती कैसे आया। मुझे बस किसी भी तरह से इस जंगल से बाहर निकलना है और अपना बदला लेना है”
यह सब सोचते सोचते मैंने सारे फल खत्म कर दिए, जिसके बाद मैं मटकी में रखा सारा पानी पी गई, हाँलाकि इससे मेरी ना तो भूख मिटी थी और ना ही प्यास, पर अभी जो कुछ भी मिल रहा था, वो मेरे जिंदा बचे रहने के लिए पर्याप्त था। इसके बाद मैं कमरे के अंदर चली गई। क्योंकि दिन चडने लगा था, जिस कारण वहाँ खण्डहर में कोई दूसरा व्यक्ति कभी भी वहाँ आ सकता था। लेकिन कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एक बार अच्छी तरह से पूरे आंगन देखा कि कहीं वहाँ मेरे आने का कोई सबूत तो मौजूद नहीं है। जब मुझे वहाँ कुछ भी नहीं मिला तो मैंने उस कमरे की भी अच्छी तरह से तलाशी लेनी शुरू कर दी। जहाँ मेरे कटे फटे कपडे और मेरा टूटा फुटा मोबाईल डला हुआ था।
जब मैंने अपना मोबाईल उठाकर अच्छी तरह से चैक किया। वो पूरी तरह से डैमेज हो चुका था। जिसे अब किसी भी तरह से रिपेयर किया जाना लगभग असंभव था। लेकिन उसमें डला सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड अब भी सही सलामत थे, जिन्हें मैंने तुरंत निकाल लिया। उसके बाद मैं अपने कपडों को अच्छी तरह से चैक करने लगी। उन कमीनों ने मेरे कपडों को चाकू की सहायता से इतनी बुरी तरह से फाडा था कि वो मेरे अब किसी भी काम के नहीं रह गए थे। लेकिन मुझे अपने जींस की पॉकेट से कुछ पैसे जरूर मिल गए थे। जो मैंने पार्क में जाने से पहले अपने हैंड बैग से निकाल लिए थे।
मैं इस वक्त बिना कपडों के थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड के साथ साथ उन पैसों को कहाँ रखूं, तभी मुझे एक आईडिया आया। मैंने कल रात आंगन में से जो चाकू उठाया था। उसे सीक्रेट कमरे से लेकर आई और अपने जींस के हिप पाकेट बाले हिस्से मैं से एक पाकेट काट लिया और उसके दोनों कार्नर पर चाकू की सहायता से दो छेद करने के बाद मैंने जींस में से एक रिवन के आकार का लम्बा टुकडा काटकर उस पाकेट के दोनों कार्नर पर किसी डोरी की तरह बांध दिया। अब बो पॉकेट एक काम चलाऊ हैंड बैग की तरह हो गया था। जिसे मैंने अपने कंधे पर डाल लिया। फिर मैंने उस पॉकेट के अंदर अपने पैसे और सिमकार्ड बगैरह भी रख दिए।
सभी लोगों के बैठने के बाद पण्डित जी ने कहना शुरू किया
पण्डित- करीब करीब 1000 वर्प पहले यहाँ पर भोजपुर नाम का एक राज्य हुआ करता था। जिसके राजा विश्वजीत की के यहाँ सैकडों वर्षों में एक बार आने बाले दिव्य अमृत योग में एक पुत्री का जन्म हुआ था। जिस कारण उनका नाम अमृता रखा गया। जन्म से ही राजकुमारी अमृता के अंदर कुछ दिव्य शक्तियाँ थीं और वो बहुत होनहार एवं मृदूभाषी थी। उनके अंदर दया, ममता जैसे कई गुण थे और वो हमेशा दूसरों की सहायता किया करती थी। जिस कारण राज्य की पूरी जनता उन्हें बहुत प्यार सम्मान देती थी। युवा होते होते राजकुमारी अमृता सभी कलाओं में पारंगत हो गई थीं। जिस कारण वो उस समय की सबसे सुंदर और प्रतिभावान राजकुमारी के रूप में मैं विख्यात हो चुकी थी। लेकिन उनकी यह सुंदरता ही उनकी सबसे बडी शत्रु बन गई थी।
पण्डित जी की बात सुनकर एक आदमी ने सबाल किया
आदमी- पण्डित जी आखिर किसी की सुंदरता उसकी शत्रू कैसे हो सकती है
उस आदमी की बात सुनकर पण्डित जी मुस्कुराकर बोले
पण्डित- क्यों नहीं हो सकती है… अगर किसी की सुंदरता दिव्य हो तो उसे सभी लोग पाना चाहेंगे। असल में राजकुमारी अमृता के पास शक्ति बीज था। जिसने उनकी सुंदरता को और भी ज्यादा निखार कर दिव्य बना दिया था।
इससे पहले पण्डित जी अपनी बात पूरी कर पाते प्रताप ने उन्हें टोकते हुए कहा
प्रताप- पण्डित जी यह शक्ति बीज क्या और वो राजकुमारी अमृता को आखिर कैसे प्राप्त हुआ था।
पण्डित- ऐसा कहा जाता है कि अपने दयालू और दूसरे की सहायता करने बाले स्वभाव के कारण राजकुमारी अमृता ने एक बार अनजाने में ही किसी सिद्ध ऋषी की सहायता की थी। जिस कारण उन्होंने राजकुमारी अमृता को एक दिव्य मोती यानि शक्तिबीज प्रदान किया था। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वो शक्ति बीज राजकुमारी अमृता के पास उनके जन्म के समय से ही था। सच क्या है यह कोई नहीं जनाता। लेकिन उस शक्ति बीज की दिव्य शक्तियों के कारण राजकुमारी अमृता की आयू बडने के बाद भी वो हमेशा युवा बनी रही और उनकी आयू भी सामान्य मनुष्य की अपेक्षा कई गुना ज्यादा लम्बी हो गई थी। जिस कारण कई लोग यह मानने लगे थे की राजकुमारी अमृता तो चिरयौबन और अंतहीन जीवन का बरदान प्राप्त है।
पण्डित जी के चुप होते ही प्रताप ने अगल सबाल किया
प्रताप- फिर क्या हुआ पण्डित जी.. आखिर राजकुमारी अमृता की सुंदरता उनकी शत्रू कैसे बन गई थी और यह अमर शिला कहाँ से आई।
पण्डित- असल में राजा विश्वजीत की दूसरी पत्नि और राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ एक क्रूर और लालची महिला थी। इसलिए वो राजकुमारी अमृता से शक्ति बीज हासिल करने के लिए उन पर दबाब बनाने लगी। लेकिन जब राजकुमारी अमृता ने उन्हें शक्ति बीज देने से मना कर दिया। उसी दौरान राजकुमारी अमृता को पाने के लिए दूसरे राज्य के राजाओं ने भोजपुर पर हमला कर दिया था, इसके साथ साथ इस राज्य के कई बडे मंत्री और दूसरे शक्तिशाली पुरूष भी राजकुमारी अमृता को पाने के लिए षडयंत्र करने लगे थे। जिस कारण राज्य के अंदर भी गृह युद्ध जैस हालत बन गए थे। जिसका लाभ उठाकर राजकुमारी अमृता की सौतेली माँ ने एक ऐसा चक्रव्यू रचा जिसमें उलझकर राजकुमारी अमृता को नगरबधू यानि बैश्या बनाना पडा। ताकि उन्हें पाने की चाह रखने बाले सभी पुरूष वासना मिटा सकें और भोजपुर राज्य फिर से सुरक्षित हो सके।
इतना बोलकर जब पण्डित जी खामोश हो गए तो एक दूसरे व्यक्ति ने सबाल किया
आदमी- फिर क्या हुआ पण्डित जी
पण्डित- राजकुमारी अमृता के नगर बधू बनने के बाद भी जब जनता का उनके प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ तो उनकी सौतेली माँ ने राजकुमारी अमृता को उनकी माता और भाई बहनों की हत्या करवाने की धमकी देकर वो शक्ति बीज हासिल करने की कोशिश की। तब जाकर राजकुमारी अमृता को इस बात का एहसास हुआ कि शक्ति बीज की दिव्य वास्तव में एक श्राप है। लेकिन वो उस शक्ति बीज को अपनी सौतेली माँ या फिर किसी दूसरे गलत इंशान के हाथों नहीं लगने देना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने उस शक्ति बीज को इस पत्थर के अंदर छिपा दिया और इसी पत्थर पर बैठकर आत्मदाह कर अपने श्रापित जीवन को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। शक्ति बीज के प्रभाव के कारण ही यह पत्थऱ इतना कठोर हो गया कि उसे टोडकर शक्ति बीज हासिल करना असंभव था। इसलिए लोगों ने इस पत्थऱ को अमर शिला का नाम दे दिया तथा लम्बी आयू एवं स्वस्थ जीवन के लिए इसकी पूजा करने लगे। समय के साथ साथ यह स्थान बीरान होता चला गया और यहाँ घना जंगल उग गया। इसलिए धीरे धीरे लोग इस अमर शिला के महत्व को भूल गए। अब बस कुछ गिने चुने लोग ही बचे हैं जो अब भी इस अमर शिला की पूजा करने यहाँ आते हैं।
पण्डित जी के खामोश होते ही प्रताप ने सबाल किया
प्रताप- तो क्या शक्ति बीज अब भी इस अमर शिला में मौजूद है या फिर कोई दूसरा इंसान उसे अपने साथ ले गया है।
पण्डित- फिलहाल इसके बारे कोई भी अंदाजा लगाना जल्दवाजी होगी। लेकिन जहाँ तक मेरी समझ कहती है, उसके हिसाब से दो दिन पहले, जिस दिन आँधी तूफान के साथ बारिस हुई थी, उस दिन काल गणना के अनुसार रात के समय कुछ पलों के लिए अमृत योग बना था। शायद उसी समय इस अमर शिला पर बिजली भी गिरी हो। जिस कारण तेज आंधी तूफान के समय इस अमर शिला पर पंच तत्वों यानि भूमि, जल, बायू, आकाश एवं अग्नि का एक अदभुद संयोग बना होगा। जिस कारण अमर शिला के खण्डित होने से शक्ति बीज स्वतः ही बाहर आ गया होगा और शायद अब तक उसने अपना उत्तराधिकारी भी चुन लिया होगा। लेकिन वो कौन है, इसके बारे में सही समय आने पर ही पता चल सकता है।
इतना बोलकर पण्डित जी खामोश हो गए। अब किसी के भी पास कोई सबाल नहीं बचा था। इसलिए वो सभी लोग उस खण्डित हो चुकी अमर शिला की पूजा करने में व्यस्त हो गए। करीब एक घण्टे तक विधि विधान से उस अमर शिला की पूजा करने के बाद वो लोग इस खण्डहर से बाहर निकल गए। उन लोगों के उस खण्डहर से बाहर जाते ही मैं झाडियों से बाहर निकल आई और उस पत्थऱ के पास जा पहुँची, जहाँ वो लोग प्रसाद के रूप में कुछ फल और एक छोटे से घडे में थोडा सा पानी छोड गए थे। पिछले दो दिनों से भूखे प्यासे होने के कारण मैंने जल्दी से प्रसाद के रूप में चढाऐ गए उन फलों को उठाकर खाना शुरू कर दिया और मन ही मन सोचने लगी
“यह सब क्या बकवास है... आज के जमाने में कौन इन सब बातों पर यकीन करता है। पता नहीं लोग कैसे अंधविश्वास में आकर गलत रास्ता अपना लेते हैं......”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“एक मिनट कहीं ये सब सच तो नहीं। क्योंकि पण्डित जी के अनुसार इस पत्थर के अंदर एक दिव्य मोती यानि शक्ति बीज छिपा हुआ था, जो शायद अब बाहर आ चुका है। और इस वक्त मेरे गले में भी एक मोती डला हुआ है, जो मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा और ना ही ऐसा कोई मोती अपने गले में डाला था, तो फिर यर मोती आखिर मेरे गले में कैसे आया, और सबसे बडी बात कि मैं उसे अपने गले से निकाल भी नहीं पा रही हूँ, इसके अलावा पता नहीं कैसे यह अपने आप ही ग्लो भी करने लगता, आखिरि यह मोती है क्या जी, कहीँ यही तो शक्ति बीज नहीं… ”
तभी मेरे मन में एक दूसरा ख्याल आया
“नहीं नहीं ऐ मैं क्या सोच रही हूँ…. यह साधारण सा मोती आखिर शक्ति बीज कैसे हो सकता है”
अगले ही पल मेरे मन में मेरे पहले सबाल का जबाब देते हुए कहा
“क्यों नहीं हो सकता…. क्या मैंने पहले कभी शक्ति बीज देखा है… नहीं ना… तो फिर मुझे कैसे पता होगा कि शक्ति बीज कैसा दिखता है, हो सकता है कि यही शक्ति बीज हो, क्योंकि दो दिन पहले मेरी जो हालत थी, उसके हिबास से मेरा जिंदा बचना पूरी तरह से असंभव बात है, लेकिन मैं अब भी जिंदा हूँ, और मेरे घाव किसी आम इंशान की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से ठीक भी हो रहे हैं, यहाँ तक कि एक ही रात में ना केवल मेरे सिर के बाल निकल आऐ, बल्कि वो मेरी गर्दन तक बडे भी हो गए हैं, जिससे यह साबित होता है कि मेरे गले में डला यह मोती जरूर चमत्कारी है”
लेकिन तभी मेरे मन में एक नया बिचार आया
“लेकिन यह भी तो हो सकता है कि, मेरे ऊपर बिजली गिरने के काराण, मेरे शरीर में कुछ ऐसा कैमिकल रिऐक्शन हुआ हो, जिससे मेरे डी.एन.ए. में कुछ परिवर्तन हुआ हो, और जिसने मुझे उस स्थिती में जिंदा बचने में मेरी मदद की हो, साथ ही साथ डी.एन.ए. में परिवर्तन होने के कारण ही मेरे घाव भी इतनी जल्दी ठीक हो रहे हों”
यह सोचने के साथ ही मेरे मन में एक और विचार आया
“हाँ यह हो सकता है। लेकिन फिर मेरे गले में डला यह मोती। इसका क्या.... यह मेरे गले में कैसे आया और आखिर मैं इसे अपने आप से दूर क्यों नहीं कर पा रही हूँ, बैसे भी इस मोती के कुछ चमत्कार तो मैं कल रात को ही देख चुकी हूँ… उफ्फ यार यह सब बहुत कन्फ्यूजिंग है…. मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि आखिर मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है। क्या सच है और क्या गलत इसका कुछ पता ही नहीं चल रहा है”
तभी मेरे मन में एक और नए विचार ने जन्म लिया
“तुझे कुछ भी समझने की जरूरत नहीं है। बस यह सोच की तू इतना सब सहने के बाद भी जिंदा है। तुझे एक नई जिंदगी मिली है जीने के लिए। इसलिए अब केवल वही कर जिसमें तुझे खुशी मिलती है। तू इस मोती की बजह से जिंदा है, या बिजली गिरने के बाद डी.एन.ए. चेंजिंग से या फिर किस्मत से। इसका फैसला तो आने वाला वक्त ही करेगा। पर फिलहाल तुझे जो दूसरा मौका मिला है उसके बारे में सोच। सबसे पहले तुझे यहाँ से निकलना है और फिर उन सभी कमीनों से चुन चुन कर अपना बदला भी तो लेना है।”
तभी मेरे मन ने मेरे पहले विचार का समर्थन करते हुए कहा
“हाँ शायद यही ठीक होगा… मुझे अब इस बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि मैं जिंदा कैसे बच गई और मेरे गले में यह मोती कैसे आया। मुझे बस किसी भी तरह से इस जंगल से बाहर निकलना है और अपना बदला लेना है”
यह सब सोचते सोचते मैंने सारे फल खत्म कर दिए, जिसके बाद मैं मटकी में रखा सारा पानी पी गई, हाँलाकि इससे मेरी ना तो भूख मिटी थी और ना ही प्यास, पर अभी जो कुछ भी मिल रहा था, वो मेरे जिंदा बचे रहने के लिए पर्याप्त था। इसके बाद मैं कमरे के अंदर चली गई। क्योंकि दिन चडने लगा था, जिस कारण वहाँ खण्डहर में कोई दूसरा व्यक्ति कभी भी वहाँ आ सकता था। लेकिन कमरे के अंदर जाने से पहले मैंने एक बार अच्छी तरह से पूरे आंगन देखा कि कहीं वहाँ मेरे आने का कोई सबूत तो मौजूद नहीं है। जब मुझे वहाँ कुछ भी नहीं मिला तो मैंने उस कमरे की भी अच्छी तरह से तलाशी लेनी शुरू कर दी। जहाँ मेरे कटे फटे कपडे और मेरा टूटा फुटा मोबाईल डला हुआ था।
जब मैंने अपना मोबाईल उठाकर अच्छी तरह से चैक किया। वो पूरी तरह से डैमेज हो चुका था। जिसे अब किसी भी तरह से रिपेयर किया जाना लगभग असंभव था। लेकिन उसमें डला सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड अब भी सही सलामत थे, जिन्हें मैंने तुरंत निकाल लिया। उसके बाद मैं अपने कपडों को अच्छी तरह से चैक करने लगी। उन कमीनों ने मेरे कपडों को चाकू की सहायता से इतनी बुरी तरह से फाडा था कि वो मेरे अब किसी भी काम के नहीं रह गए थे। लेकिन मुझे अपने जींस की पॉकेट से कुछ पैसे जरूर मिल गए थे। जो मैंने पार्क में जाने से पहले अपने हैंड बैग से निकाल लिए थे।
मैं इस वक्त बिना कपडों के थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं सिमकार्ड और मैमोरी कार्ड के साथ साथ उन पैसों को कहाँ रखूं, तभी मुझे एक आईडिया आया। मैंने कल रात आंगन में से जो चाकू उठाया था। उसे सीक्रेट कमरे से लेकर आई और अपने जींस के हिप पाकेट बाले हिस्से मैं से एक पाकेट काट लिया और उसके दोनों कार्नर पर चाकू की सहायता से दो छेद करने के बाद मैंने जींस में से एक रिवन के आकार का लम्बा टुकडा काटकर उस पाकेट के दोनों कार्नर पर किसी डोरी की तरह बांध दिया। अब बो पॉकेट एक काम चलाऊ हैंड बैग की तरह हो गया था। जिसे मैंने अपने कंधे पर डाल लिया। फिर मैंने उस पॉकेट के अंदर अपने पैसे और सिमकार्ड बगैरह भी रख दिए।