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Horror Saya. Dobara chudel ki prem kahani (Completed)

dangerlund

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Subah hone vali thi. Sharita ki atma to kabu me aa gai thi. Ek handi me use bandh diya gaya. Par kam to ab bhi baki tha. Pratap se to deel nahi hui thi. Kampar bhi hoah me aa gaya. Aur last nar ke lie man gaya. Ek bar fir vahi viddhi hui. Kampar ke sharir me Pratap ki atma aa gai. Kampar fir ekdam se zan zana uttha. Thoda gurrate hue. Thoda badle ki bhavna me.

Kampar(Pratap) ; (gurrana) hmmm...hmmm... Ab tum mujse kya chahti ho.

Reeta ; me kya chahti hu. Vo bad me bataungi. Tum mujse kya chahte ho???

Kampar(Pratap) ; kya de sakti ho tum.

Reeta ; kab tak bhatakte rahoge. Me tumhe mukti dilva sakti hu. Agar tum muje jo chahiye vo dilva sako to.

Kampar(pratap) ; me mukti lekar kya karunga. Meri bete ki atma bhi to kai shalo se bhatak rahi he. Agar tum use mukti dilva sako to tum jo chahogi me de sakta hu.

Reeta ; kaha he vo???

Kampar(pratap) ; yaha se dur he. Basra gau he. *** Ke pas. Gau se vahar hi meri kotthi he. Vaha ka bacha bacha janta he. Pratap thakur ki haweli. Mera beta tumhe vahi milega. Agar tum use mukt karne ka vada karti ho to tum chahogi me de dunga.

Reeta ; tum jante ho. Is ghar ke andar ek chudeli bal he.

Pratap janta tha. Par usne bhi vachan de diya tha. Uski atma me na to takuro vala ruab gaya tha. Aur na hi bete ka moh.

Kampar(Pratap) ; use chhupane kam sharita ko hi diya tha. Vo Hakim ki khas thi. Ghar ke mukhya dravaje par hi. Jamin ke 7 fut niche. Ek chandi ki chhoti matki he. Par yaad rahe. Usme kai buri atma bhi kaid he.

Ab Reeta ke lie badi mushkil ho gai. Bal bhi chahiye. Lekin vaha to atmao ka bhandar pada huaa tha. Par reeta bhi pichhe hatne valo me se nahi thi

Reeta ; thik he. Ab tum is handi me aa jao.

Kampar ekdam se behosh ho gaya. Din nikal chuka tha. Ab Reeta ke pas 2 esi handi thi. Jisme atma thi. Reeta un sab ko mukti dilana chahti thi. Kampar is bar thoda jaldi hosh me aaya. Reeta ne use bataya. Ghar ke main door ko khoda. Sirf kampar ne hi nahi. Reeta ne bhi khudai ki. Last me jab niche ek chandi ki matki nikli to Reeta ekdam se sambhal gai.

Reeta ; ruko tum mat chhuna. Tum bahar niklo.

Kampar bahar nikla. Khod khod ke bada gadha ho gaya tha. Uske bad Reeta andar kudi. Usne vo chandi ki chhoti matki ko nikalne ke lie sirf tach kiya. Bahot hi bhayanak aavaje uske kano me gunjne lagi. Jese kai sare log fase hue ho. Aur bachane ke lie kisi ko pukar rahe ho. Ye ek bhutiya ambush tha. Chandi ki matki pishajo ko rokne ke lie.
Thandi tahshir vale pishajoko chandi aag ki tarah lagti thi. Koi inshan vo handi kholta to kai sari atmao ka ghar ban jata. Reeta ne vo handi kholi nahi. Par us chandi ki handi ko bahar nikal kar ek kapde me lapeta. Vo upar aai.

Reeta ; kam khatam nahi huaa. Sayad aur wakt lagega. Hame kahi aur jana he.


Kampar aur Reeta ek nae safar ke lie nikal gae.
Nice update
 

Shetan

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Shetan

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किस्सा एक अनहोनी का (Horror story)

कोमल चौधरी वैसे तो अहमदाबाद की रहने वाली थी. पर उसका परिवार यूपी आगरा के पास का था. बाप दादा अहमदाबाद आकर बस गए. कोमल ने अपनी लौ की पढ़ाई अहमदाबाद से ही की थी. कोमल के पिता नरेंद्र चौधरी का देहांत हो चूका था. उसकी माँ जयश्री चौधरी के आलावा उसकी 2 बहने भी थी. दूसरी अपनी माँ के साथ रहकर ही आरोनोटिक इंजीनियरिंग कर रही थी. कोमल के पति पलकेंस एक बिज़नेसमेन थे. दोनों अहमदाबाद मे ही रहे रहे थे.
कोमल जहा 28 साल की थी. वही पलकेंस 29 साल का नौजवान था. कोमल का कोई भाई नहीं था. इस लिए कोमल अपनी मायके के पास की ही कॉलोनी मे अपना घर खरीद रखा था. ताकि अपनी माँ की जरुरत पड़ने पर मदद कर सके. कोमल अहमदाबाद मे ही वकीलात कर रही थी. आगरा मे अपनी चचेरी बहन की शादी के लिए कोमल अहमदाबाद से आगरा निकल पड़ी. फ्लाइट मे बैठे बैठे वो हॉरर स्टोरी पढ़ रही थी. कोमल को भूतिया किस्से पढ़ना बहोत पसंद था. वो जानती थी की अपने गाउ जाते ही उसे दाई माँ से बहोत सारे भूतिया किस्से सुन ने को जरूर मिलेंगे. कोमल का परिवार पहले से ही आगरा पहोच चूका था.

उसके पति पलकेंस विदेश मे होने के कारण शादी मे शामिल नहीं हो सकते थे. आगरा एयरपोर्ट पर कोमल को रिसीव करने के लिए उसके चाचा आए हुए थे.आगरा एयरपोर्ट से निकलते ही कोमल अपने चाचा के साथ अपने गाउ ह्रदया पहोच गई. जो आगरा से 40 किलोमीटर दूर था. वो अपने चाचा नारायण चोधरी, अपनी चाची रूपा. अपने चचेरे भई सनी और खास अपनी चचेरी बहन नेहा से मिली. सब बहोत खुश थे. कोमल के चाचा पेशे से किसान थे. चाची उसकी माँ की तरह ही हाउसवाइफ थी. सनी कॉलेज 1st ईयर मे था.

नेहा की ग्रेजुशन कम्प्लीट हो चुकी थी. नेहा की शादी मे शामिल होने के लिए कोमल और उसका परिवार आगरा आए हुए थे. कोमल परिवार मे सब से मिली. सब बहोत खुश थे. पर उसे सबसे खास जिस से मिलना था. वो थी गाउ की दाई माँ. दाई माँ का नाम तो उस वक्त कोई नहीं जनता था. उम्र से बहोत बूढी दाई माँ को सब दाई माँ के नाम से ही जानते थे. इनकी उम्र तकिरीबन 70 पार कर चुकी थी. सब नोरमल होते ही कोमल ने नेहा से पूछ ही लिया.


कोमल : नेहा दाई माँ केसी हे???

नेहा : (स्माइल) हम्म्म्म... मे सोच ही रही थी. तू आते ही उनका पूछेगी. पर वो यहाँ हे नहीं. पास के गाउ गई हे. वो परसो शादी मे ही लोटेगी.


कोमल ने बस स्माइल ही की. पर उसका मन दाई माँ से मिलने को मचल रहा था. कोमल शादी की बची हुई सारी रस्मो मे शामिल हुई. महेंदी संगीत सब के बाद शादी का दिन भी आ गया. जिसका कोमल को बेसब्री से इंतजार था. शादी का नहीं. बल्कि दाई माँ का. शादी शुरू हो गई. पर कोमल को कही भी दाई माँ नहीं दिखी. कोमल निराश हो गई. सायद दाई माँ आई ही नहीं. ऐसा सोचते वो बस नेहा के फेरे देखने लगी. मंडप मे पंडित के आलावा अपने होने वाले जीजा और नेहा को फेरे लेते देखते हुए मुर्ज़ाए चहेरे से बस उनपर फूल फेक रही थी. तभी अचानक कोमल की नजर सीधा दाई माँ से ही टकराई. शादी का मंडप घर के आंगन मे ही था.

और आंगन मे ही नीम के पेड़ के सहारे दाई माँ बैठी हुई गौर से नेहा को फेरे लेती हुई देख रही थी. कोमल दाई माँ से बहोत प्यार करती थी. वो अपने आप को रोक ही नहीं पाई. और सीधा दाई माँ के पास पहोच गई.


कोमल : लो दाई माँ. मुझे आए 2 दिन हो गए. और आप अब दिख रही हो.


दाई माँ अपनी जगह से खड़ी हुई. और कोमल के कानो के पास अपना मुँह लेजाकर बड़ी धीमे से बोली.


दाई माँ : ससस... दो मिनट डट जा लाली. तोए एक खेल दिखाऊ.
(दो मिनट रुक जा. तुझे एक खेल दिखाती हु.)


दाई माँ धीरे धीरे मंडप के एकदम करीब चली गई. बिलकुल नेहा और उसके होने वाले पति के करीब. दाई माँ के फेस पर स्माइल थी. जैसे नेहा के लिए प्यार उमड़ रहा हो. फेरे लेते नेहा और दाई माँ दोनों की नजरें भी मिली. जैसे ही फेरे लेते नेहा दाई माँ के पास से गुजरी. दाई माँ ने नेहा पर ज़पटा मारा. सारे हैरान हो गए. नेहा के सर का पल्लू लटक कर निचे गिर गया. दाई माँ ने नेहा के पीछे से बाल ही पकड़ लिए. नेहा दर्द से जैसे मचल गई हो.


नेहा : अह्ह्ह ससस.... दाई माँ ससस... ये क्या कर रही हो.. ससस... छोडो मुझे... अह्ह्ह... ससससस दर्द हो रहा है.


सभी देखते रहे गए. किसी को मामला समझ ही नहीं आया. कोमल भी ये सब देख रही थी.


दाई माँ : अरे.... ऐसे कैसे छोड़ दाऊ बाबडचोदी(देहाती गाली ). तू जे बता. को हे तू... कहा से आई है.
(अरे ऐसे कैसे छोड़ दू हरामजादी. तू ये बता कौन है तू?? कहा से आई है)


सभी हैरान तब रहे गए. जब गाउ की बेटी दुल्हनिया नेहा की आवाज मे बदलाव हुआ.


नेहा : अह्ह्ह... ससससस तुम क्या बोल रही हो दाई माँ. (बदली आवाज) छोड़... छोड़ साली बुढ़िया छोड़.


सभी हैरान रहे गए. कइयों के तो रोंगटे खड़े हो गए. सब को समझ आ गया की नेहा मे कोई और है. दाई माँ ने तुरंत आदेश दिया.


दाई माँ : जल्दी अगरबत्ती पजारों(जलाओ) सुई लाओ कोई पेनी.
(जल्दी कोई अगरबत्ती जलाओ. सुई लाओ कोई तीखी)


नेहा बदली हुई आवाज मे छट पटती रही. लेकिन पीछे से दाई माँ ने उसे छोड़ा नहीं.


नेहा : (बदली आवाज) छोड़ साली बुढ़िया. तू मुझे जानती नहीं है.


दाई माँ ने कस के नेहा के बाल खींचे.


दाई माँ : री बाबडचोदी तू मोए(मुझे) ना जाने. पर तू को हे. जे तो तू खुद ही बताबेगी.
(रे हरामजादी. तू मुजे नहीं जानती. पर तू कौन है. ये तो तू खुद ही बताएगी.)


जैसे गाउ के लोग ये सब पहले भी देख चुके हो. जहा दाई माँ हो. वहां ऐसे केस आते ही रहते थे. गाउ वालों को पता ही होता था ऐसे वख्त पर करना क्या हे. गाउ की एक औरत जिसकी उम्र कोमल की मम्मी जयश्री से ज्यादा ही लग रही थी. वो आगे आई और नेहा की खुली बाह पर जलती हुई अगरबत्ती चिपका देती हे. नेहा दर्द से हल्का सा छट पटाई. और अपनी खुद की आवाज मे रोते हुए मिन्नतें करने लगी.


नेहा : अह्ह्ह... ससससस दर्द हो रहा हे. ये आप लोग मेरे साथ क्या कर रहे हो.


दाई माँ भी CID अफसर की तरह जोश मे हो. चोर को पकड़ के ही मानेगी.


दाई माँ : हे या ऐसे ना मानेगी. लगा सुई.
(ये ऐसे नहीं मानेगी.)


उस औरत ने तुरंत ही सुई चुबई.


नेहा : (बदली आवाज) ससस अह्ह्ह... बताती हु. बताती हु.

दाई माँ : हलका मुश्कुराते) हम्म्म्म... मे सब जानू. तेरे जैसी छिनार को मुँह कब खुलेगो. चल बोल अब.
(मै सब जानती हु. तेरे जैसी छिनार का मुँह कब खुलेगा. चल अब बोल)

नेहा : अहह अहह जी हरदी(हल्दी) पोत(लगाकर) के मरेठन(समशान) मे डोल(घूम)रई. मोए(मुझे) जा की खसबू(खुसबू) बढ़िया लगी. तो मे आय गई.
(ये हल्दी पोती हुई शमशान मे घूम रही थी. मुझे इसकी खुसबू बढ़िया लगी. तो मे आ गई.)


दाई माँ और सारे लोग समझ गए की हल्दी लगाने के बाद बाहर घूमने से ये सब हुआ हे. शादी के वक्त हल्दी लगाने का रिवाज़ होता हे. जिस से त्वचा मे निखार आता हे. और भी बहोत से साइंटीफिक कारण हे. लेकिन यही बुरी आत्माओ को अकर्षित भी करता हे. यही कारण हे की दूल्हे को तो तलवार या कटार दी जाती हे. वही दुल्हन को तो बाहर निकालने ही नहीं दिया जाता. 21 साल की नेहा वैसे तो आगरा मे पढ़ी थी. उसकी बोली भी साफ सूत्री हिंदी ही थी.
लेकिन जब उसके शरीर मे किसी बुरी आत्मा ने वास कर लिया तो नेहा एकदम देहाती ब्रज भाषा बोलने लगी. दरसल नेहा का रिस्ता उसी की पसंद के लड़के से हो रहा था. नई नई शादी. नया नया प्रेम. दरअसल सगाई से पहले से ही दोनों प्रेमी जोड़े एक दूसरे से लम्बे लम्बे वक्त तक बाते कर रहे थे. ना दिन दीखता ना रात. प्रेम मे ये भी होश नहीं होता की कहा खड़े हे. खाना पीना सब का कोई होश नहीं.
सभी जानते हे. ऐसे वक्त और आज का जमाना. नेहा की हल्दी की रसम के वक्त बार बार उसके मोबाइल पर कॉल आ रहा था. पर वो उठा नहीं पा रही थी. पर जब हल्दी का कार्यक्रम ख़तम हुआ. नेहा ने तुरंत अपना मोबाइल उठा लिया. उसके होने वाले पति के तक़रीबन 10 से ज्यादा मिस कॉल थे. नेहा ने तुरंत ही कॉल बैक किया. होने वाले पति से माफ़ी मांगी. फिर मिट्ठी मिट्ठी बाते करने लगी. बाते करते हुए वो टहलने लगी. उसकी बाते कोई और ना सुने इस लिए वो टहलते हुए छुपने भी लगी. घर के पीछे एक रास्ता खेतो की तरफ जाता था. शादी की वजह से कोई खेतो मे नहीं जा रहा था.
नेहा अपने होने वाले पति से बाते करती हुई घर के पीछे ही थी. वो उसी रास्ते पर धीरे धीरे चलने लगी. घर मे किसी को मालूम नहीं था की नेहा घर के पीछे से आगे चल पड़ी हे. चलते हुए नेहा को ये ध्यान ही नहीं था की वो काफ़ी आगे निकल गई हे. बिच मे शमशानघट भी था. नेहा मुश्कुराती हुई बाते करते वही खड़ी हो गई. ध्यान तो उसका अपने होने वाली मिट्ठी रशीली बातो पर था.
पर वक्त से पहले मर जाने वाली एक बुरी आत्मा का ध्यान नेहा की खुशबु से खींचने लगा. नई नवेली कावारी दुल्हन. जिसपर से हल्दी और चन्दन की खुसबू आ रही हो. वो आत्मा नेहा से दूर नहीं रहे पाई. उस दोपहर वो आत्मा नेहा पर सवार हो गई. जिसका नेहा को खुद भी पता नहीं चला. फोन की बैटरी डिस हुई तब नेहा जैसे होश मे आई हो. इन बातो को शहर मे पढ़ने वाली नेहा मानती तो नहीं थी. मगर माँ बाप की डांट का डर जरूर था. नेहा तुरंत ही वहां से तेज़ कदम चलते हुए घर पहोच गई. शादी का माहौल. अच्छा बढ़िया खाना नेहा को ज्यादा पसंद ना हो.

लेकिन उस आत्मा को जरूर पसंद आ रहा था. खास कर नए नए कपडे श्रृंगार से आत्मा को बहोत ख़ुशी मिल रही थी. अगर आत्मा किसी कावारी लड़की की हो. तो उसे सात फेरे लेकर शादी करने का मन भी बहोत होता हे. वो आत्मा एक कावारी लड़की की ही थी. उस आत्मा का इरादा भी शादी करने का ही होने लगा था. पर एन्ड वक्त पर दाई माँ ने चोर पकड़ लिया.


दाई माँ : हाआआ.... तोए खुशबु बढ़िया लगी तो का जिंदगी बर्बाद करेंगी याकि??? तू जे बता अब तू गई क्यों ना??? डटी क्यों भई हे. का नाम हे तेरो???.
(तुझे इसकी खुसबू बढ़िया लगी तो क्या इस की जिंदगी बर्बाद करेंगी क्या?? तो फिर तू गई क्यों नहीं?? रुकी क्यों है. और तेरा नाम क्या है??)


सभी उन दोनों के आस पास इखट्टा हो गए. नेहा के माँ बाप भी. दूल्हा और उसके माँ बाप भी सभी. लेकिन कोई ऑब्जेक्शन नहीं. ऐसे किस्से कोमल के सामने हो. तो वो भला कैसे चली जाती. जहा दूसरी कावारी लड़किया भाग कर अपने परिवार के पास दुबक गई. वही कोमल तो खुद ही उनके पास पहोच गई. वो इस भूतिये किस्से को बिना डरे करीब से देख रही थी.


नेहा : (गुरराना) आआ... मे खिल्लो.... मोए कोउ बचाने ना आयो. मर दओ मोए डुबोके.... अब मे काउ ना जा रई. मे तो ब्याह करुँगी... आआ... ब्याह करुँगी... अअअ...
(मै खिल्लो हु. मुझे कोई बचाने नहीं आया. मार दिया मुझे डुबोकर. अब मे कही नहीं जाउंगी. मै तो शादी करुँगी)


खिल्लो पास के ही गाउ की रहने वाली लड़की थी. जो तालाब मे नहाते वक्त डूब के मर गई थी. दो गाउ के बिच एक ही ताकब था. किल्लो 4 साल पहले डूब के मर गई. दोपहर का वक्त था. और उस वक्त वो अकेली थी. उसे तैरते नहीं आता था. पर वो सीखना चाहती थी. अकेले सिखने के चक्कर उसका नादानी भरा कदम. उसकी जान ले बैठा. वो डूब के मर गई. किसी को पता नहीं चला. एक चारवाह जब शाम अपने पशु को पानी पिलाने लाया. तब जाकर गाउ मे सब को पता चला की गाउ की एक कवारी लड़की की मौत हो गई. वैसे तो आत्मा ने किसी को परेशान नहीं किया.
पर कवारी दुल्हन की खुसबू ने उसके मन मे दुल्हन बन ने की तमन्ना जगा दी. पकड़े जाने पर आत्मा अपनी मौत का जिम्मेदार भी सब को बताने लगी. दाई माँ ने बारी बारी सब को देखा. कोमल के चाचा और चाची को भी. दूल्हा तो घबराया हुआ लग रहा था. पर हेरात की बात ये थी की ना वो मंडप से हिला. और ना ही उसके माँ बाप. अमूमन ऐसे वक्त पर लोग रिश्ता तोड़ देते हे. लेकिन वो कोई सज्जन परिवार होगा. जो स्तिति ठीक होने का इंतजार कर रहे थे.


दाई माँ : देख री खिल्लो. तू मारी जमे जी छोरीकिउ गलती ना हे. और नाउ कोई ओरनकी. जाए छोड़ के तू चली जा. वरना तू मोए जानती ना है.
(देख री खिल्लो. तू मारी इसमें लड़की की गलती नहीं है. और नहीं किसी ओरोकी. इसे छोड़ के तू चली जा. वरना तू मुजे जानती नहीं है.)


दाई माँ ने खिलो को समझाया की तेरी मौत का कोई भी जिम्मार नहीं हे. वो नेहा के शरीर को छोड़ कर चली जाए. वरना वो उसे छोड़ेगी नहीं. मगर खिल्लो मन ने को राजी ही नहीं थी. वो गुरराती हुई दाई माँ को ही धमकाने लगी.


नेहा(खिल्लो) : हाआआआ... कई ना जा रई मे हाआआआ... का कर लेगी तू हाआआ...
(मै नहीं जा रही. तू क्या कर लेगी??)


खिल्लो को दाई माँ को लालकरना भरी पड़ गया.


दाई माँ : जे ऐसे ना माने. पकड़ो सब ज्याए.
(ये ऐसे नहीं मानेगी. पकड़ो सब इसे)


दाई माँ के कहते ही नेहा के पापा. दूल्हे के पापा और गाउ के कुछ आदमियों ने दोनों तरफ से नेहा को कश के पकड़ा. दाई माँ ने तो सिर्फ पीछे से सर के बाल ही पकडे थे. मगर इतने आदमी मिलकर भी नेहा जैसी दुबली पतली लड़की संभाल ही नहीं पा रहे थे. जैसे उसमे हाथी की ताकत आ गई हो. पर कोई भी नेहा को छोड़ नहीं रहा था. दाई माँ अपनी करवाई मे जुट गई. जैसे ये स्टिंग ऑपरेशन करने की उसने पहले ही तैयारी कर रखी हो.

एक 18,19 साल का लड़का एक ज़ोला लेकर भागते हुए आया. और दाई माँ को वो झोला दे देता हे. दाई माँ ने निचे बैठ कर सामान निकालना शुरू किया. एक छोटीसी हांडी. एक हरा निम्बू. निम्बू मे 7,8 सुईया घुसी हुई थी. लाल कपड़ा. कोई जानवर की हड्डी. एक इन्शानि हड्डी. कोमल ये सब अपनी ही आँखों से देख रही थी. वो भी भीड़ के आगे आ गइ. वहां के कई मर्द कोमल को पीछे करने की कोसिस करते. पर दाई माँ के एक आँखों के हिसारो से ही कोमल को बाद मे किसी ने छेड़ा नहीं. दाई माँ ने अपनी विधि चालू की. मंत्रो का जाप करने लगी. वो जितना जाप करती. नेहा उतनी ही हिलने दुलने लगती. दाई माँ ने हुकम किया.


दाई माँ : रे कोई चिमटा मँगाओ गरम कर के.
(कोई चिमटा मांगवाओ गरम कर के )


चिमटे का नाम सुनकर तो खिल्लो मानो पागल ही हो गई हो. नेहा तो किसी के संभाले नहीं संभल रही थी. वो बुरी तरीके से हिलने डुलने लगी. दाई माँ को धमकी भी देने लगी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्ला कर) री.... बुढ़िया छोड़ दे मोए. जे छोरी तो अब ना बचेगी. ब्याह तो मे कर के ही रहूंगी.
(बुढ़िया छोड़ दे मुझे. ये लड़की तो अब नहीं बचेगी. शादी तो मै कर के ही रहूंगी.)


पर तब तक एक जवान औरत घूँघट मे आई. और चिमटा दाई माँ की तरफ कर दिया. उस औरत के हाथ कांप रहे थे. दाई माँ को भी डर लगा कही उस औरत के कापते हाथो की वजह से कही वो ना जल जाए.


दाई माँ : री मोए पजारेगी का.
(रे मुझे जलाएगी क्या...)


दाई माँ ने उस औरत को तना मारा और फिर नेहा की तरफ देखने लगी. कोमल भी दाई माँ के पास साइड मे घुटने टेक कर बैठ गई. सभी उन्हें घेर चुके थे. कोई बैठा हुआ था. तो कोई खड़े होकर तमासा देख रहा था.


दाई माँ : हा री खिल्लो. तो बोल. तू जा रही या नही .


दाई माँ ने नेहा के बदन मे घुसी खिल्लो की आत्मा को साफ सीधे लेबजो मे चुनौती दे दी. ज्यादा हिलने डुलने से नेहा का मेकअप तो ख़राब हो ही गया था. बाल भी खुल कर बिखर गए थे. वो सिर्फ गुस्से मे धीरे धीरे ना मे ही अपना सर हिलती हे. बिखरे बालो मे जब अपनी गर्दन झटक झटक चिल्ला रही थी. तब उसके दूल्हे को भी डर लगने लगा. जिसे फोन पर बाते करते वो नेहा की तारीफ करते नहीं थक रहा था. आज वही नेहा उसे खौफनाक लग रही थी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्लाते हुए) नाआआआ.... मे काउ ना जा रहीईई...
(नहीं..... मै कही नहीं जा रही)


दाई माँ ने हांडी को आगे किया. कुछ मंतर पढ़ कर उस हांडी को देखा. जो गरम चिमटा उसके हाथो मे था. उसे नेहा के हाथ पर चिपका दिया. नेहा जोर से चिल्लाई. इतना जोर से की जिन्होंने नेहा को पकड़ नहीं रखा था. उन्होंने तो अपने कानो पर हाथ तक रख दिए.


दाई माँ : बोल तू जा रही या नहीं.


गरम चिमटे से हाथ जल गया. नेहा के अंदर की खिल्लो तड़प उठी. पर दर्द जेलने के बाद भी नेहा का सर ना मे ही हिला.


दाई माँ : तू ऐसे ना मानेगी.


दाई माँ ने तैयारी सायद पहले से करवा रखी थी. दाई माँ ने भीड़ मे से जैसे किसी को देखने की कोसिस की हो.


दाई माँ : रे पप्पू ले आ धांस(मिर्ची का धुँआ).


जो पहले दाई माँ का थैला लाया था. वही लड़का भागते हुए आया. एक थाली मे गोबर के उपले जालाकर उसपे सबूत लाल मीर्चा डाला हुआ पप्पू के हाथो मे था. पास लाते ही सभी चिंकने लगे. पर बेल्ला के अंदर की खिल्लो जोर से चिखी.


नेहा(खिल्लो) : (चिल्ला कर) डट जा.... डट जा री बुढ़िया... मे जा रही हु.. डट जा....
(रुक जा बुढ़िया रुक जा. मै जा रही हु. रुक जा.)


वो मिर्च वाले धुँए से खिल्लो को ऐसा डर लगा की खिल्लो जाने को तैयार हो गई. दाई माँ भी ज़ूमती हुई मुश्कुराई.


दाई माँ : हम्म्म्म... अब आई तू लेन(लाइन) पे. तू जे बता. चाइये का तोए????
(हम्म्म्म.... अब तू लाइन पे आई. तू ये बता तुझे चाहिए क्या???)

नेहा(खिल्लो) : मोए राबड़ी खाबाओ. और मोए दुल्हन को जोड़ा देओ. मे कबउ वापस ना आउ.
(मुझे राबड़ी खिलाओ. और मुझे दुल्हन का जोड़ा दो. मै कभी वापस नहीं आउंगी.)


कोमल को हसीं भी आई. भुत की डिमांड पर. उसे राबड़ी खानी थी. और दुल्हन का जोड़ा समेत सारा सामान चाहिए था. दाई माँ जोर से चीलाई.


दाई माँ : (चिल्ला कर जबरदस्त गुस्सा ) री बात सुन ले बाबड़चोदी. तू मरि बिना ब्याह भए. तोए सिर्फ श्रृंगार मिलेगो. शादी को जोड़ा नई. हा राबड़ी तू जीतती कहेगी तोए पीबा दंगे. बोल मंजूर हे का????
(बात सुन ले हरामजादी. तेरी मौत हुई बिना शादी के. तो तुझे सिर्फ श्रृंगार मिलेगा.
शादी का जोड़ा नहीं. हा राबड़ी तू जितना बोलेगी. उतना पीला देंगे.)


कोमल दाई माँ को एक प्रेत आत्मा से डील करते देख रही थी. दाई माँ कोई मामूली सयानी नहीं थी. वो जानती थी. अगर उस आत्मा ने सात फेरे लेकर शादी कर ली. तो पति पत्नी दोनों के जोड़े को जीवन भर तंग करेंगी. अगर उसे शादी का जोड़ा दे दिया तब वो पीछे पड़ जाएगी की ब्याह करवाओ. वो हर जवारे कड़के को परेशान करेंगी. इसी किए सिर्फ मेकउप का ही सामान उसे देने को राजी हुई. गर्दन हिलाती नेहा के अंदर की खिल्लो ने तुरंत ही हामी भर दी.


नेहा(खिल्लो) : (गुरराना) हम्म्म्म... मंजूर..


चढ़ावे के लिए रेडिमेंट श्रृंगार बाजारों मे मिलता ही हे. ज्यादातर ये सब पूजा के चढ़ावे मे काम आता हे. दाई माँ ऐसा एक छोटा सा पैकेट अपने झोले मे रखती है. उसे निकाल कर तुरंत ही निचे रख दिया.


दाई माँ : जे ले... आय गो तेरो श्रृंगार...
(ये ले. आ गया तेरा श्रृंगार...)


नेहा के अंदर की खिल्लो जैसे ही लेने गई. दाई माँ ने गरम चिमटा उसके हाथ पे चिपका दिया. वो दर्द से चीख उठी.


नेहा(खिल्लो) : आअह्ह्ह.... ससस...


दाई माँ : डट जा. ऐसे तोए कछु ना मिलेगो. तोए खूब खिबा पीबा(खिला पीला) के भेजींगे.
(रुक जा. तुझे ऐसे कुछ नहीं मिलेगा. तुझे खिला पीला के भेजेंगे)


नेहा के सामने एक कटोरी राबड़ी की आ गई. उसे कोमल भी देख रही थी. और उसका होने वाला दूल्हा भी. नेहा ने कटोरी उठाई और एक ही जाटके मे पी गई. हैरान तो सभी रहे गए. उसके सामने दूसरी फिर तीसरी चौथी करते करते 10 कटोरी राबड़ी पीला दे दी गई. दूल्हा तो हैरान था. उसकी होने वाली बीवी 10 कटोरी राबड़ी पी जाए तो हैरान तो वो होगा ही. पर जब नेहा ने ग्यारवी कटोरी उठाई दाई माँ ने हाथ पे तुरंत चिमटा चिपका दिया.


नेहा(खिल्लो) : अह्ह्ह... ससससस... री बुढ़िया खाबे ना देगी का.
(रे बुढ़िया खाने नहीं देगी क्या...)

दाई माँ : बस कर अब. भोत(बहोत) खा लो तूने. अब ले ले श्रृंगार तेरो.
(बस कर अब. बहोत खा लिया तूने. अब ले ले श्रृंगार तेरा.)


दाई माँ को ये पता चल गया की आत्मा परेशान करने के लिए खा ही खा करेंगी. इस लिए उसे रोक दिया. श्रृंगार का वो पैकेट जान बुचकर दाई माँ ने उस छोटी सी हांडी मे डाला. जैसे ही नेहा बेहोश हुई. दाई माँ तुरंत समझ गई की आत्मा हांडी मे आ चुकी हे. दाई माँ ने तुरंत ही लाल कपडे से हांडी ढक दी. हांडी उठाते उसका मुँह एक धागे से भांधने लगी. बांधते हुए सर ऊपर किया और कोमल के चाचा को देखा.


दाई माँ : ललिये होश मे लाओ. और फेरा जल्दी करवाओ. लाली को बखत ढीक ना हे.
(बेटी को होश मे लाओ. और जल्दी शादी करवाओ)


दाई माँ ने हांडी मे खिल्लो की आत्मा तो पकड़ ली. लेकिन वो जानती थी की एक आत्मा अंदर हे तो दूसरी आत्माए भी आस पास भटक रही होंगी. नेहा को मंडप से निचे उतरा तो और आत्मा घुस जाएगी. अगर पता ना चला और दूसरी आत्मा ने नेहा के शरीर मे आकर शादी कर ली तो बहोत बड़ा अनर्थ हो जाएगा. जितनी जल्दी उसके फेरे होकर शादी हो जाए वही अच्छा हे. नेहा को तो होश मे लाकर उसकी शादी कर दी गई. दूल्हा और उसका परिवार सज्जन ही होगा.
जो ऐसे वक्त मे भगा नहीं. और ना ही शादी तोड़ी. नेहा के फेरे तो होने लगे. दाई माँ उस हांडी को लेकर अपनी झोपड़ी की तरफ जाने लगी. तभी नेहा भगति हुई दाई माँ के पास आई. दाई माँ भी उसे देख कर खड़ी हो गई.


कोमल : (स्माइल हाफना एक्साटमेंट) दाई माँ......


दाई माँ ने भी बड़े प्यार से कोमल को देखा. जैसे अपनी शादीशुदा बेटी को देख रही हो.


दाई माँ : (स्माइल भावुक) री बावरी देख तो लाओ तूने. अब का सुनेगी. मे आज ना मिलु काउते. तोए मे कल मिलूंगी.
(बावरी देख तो लिया तूने. अब क्या सुनेगी. मै आज नहीं मिल सकती. तुझे मे कल मिलूंगी.)


बोल कर दाई माँ चल पड़ी. दाई माँ जानती थी की कोमल उस से बहोत प्यार करती हे. उसे भुत प्रेतो से डर नहीं लगता. पर कही कुछ उच नीच हो गई तो कोमल के साथ कुछ गकत ना हो जाए. वो कोमल को बस किस्से सुनाने तक ही सिमित रखना चाहती थी.
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Shetan

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कौमार्य (virginity)

कौमार्य का मतलब तो आप सब समझ ही गए होंगे. एक लड़की का कौमार्य कब भंग होता है. या किसके साथ होता है. ये उसके लिए बहोत महत्व रखता है. किसी दोस्त या प्रेमी से, या फिर अपने पति से. कइयों के नसीब मे तो इन तीनो के आलावा एक और तरीके से भी कौमार्य भंग होता है. बलात्कार. पर मेरा विषय बलात्कार नहीं है. एक महत्व पूर्ण बात ये भी है की कौमार्य भंग कहा होता है. कोई खास जगह. शादी से पहले हुआ तो किसी घर या होटल मे. या फिर कोई खेत या झाडीयों मे.

अपने कौमार्य को बचाकर रखा तो शादी के बाद सुहाग सेज पर. हमारे कल्चर के हिसाब से तो यही बेस्ट जगह है. सुहाग सेज. अब मर्दो की फितरत की बात करें तो मर्द भी एक तमन्ना रखते होंगे की जब उनकी शादी हो. और उनकी पत्नी जब शुहागरात को उनका साथ निभाए तब ही उनका कौमार्य भंग हो. तमन्ना रखना भी वैसे बुरा नहीं है. पर मेरी मानो तो शरीर का कौमार्य भंग हो ना हो. अपनी सोच का कौमार्य भंग होना बहोत जरुरी है.

तो चलिए मुख्य कहानी पर चलते है. सुहाग सेज पर बैठी कविता अपने पति का इंतजार कर रही थी. शादी के बाद पहली रात. घुंघट मे बैठी कविता कभी तो मंद मंद मुश्कुराती. तो कभी गहेरी सोच मे डूब जाती. कविता अपने पति के साथ हुई पहली मुलाक़ात को याद कर रही थी. कुछ 2 साल पहले 22 साल की कविता अपने पिता दया शंकर शुक्ला और माँ सरिता शुक्ला के साथ माता के दर्शन कर के इलाहबाद के लिए ट्रैन मे बैठे हुए थे. 48 साल के दया शंकर शुक्ला PWD मे कार्यरत थे. वही 45 साल की माँ सरिता शुक्ला घरेलु महिला थी. उस वक्त उनकी एक लौती बेटी कविता शुक्ला 22 साल की M.S.C 1st year मे थी.


3rd क्लास के विंडो शीट पर बैठी कविता विंडो से बाहर देख रही थी. अचानक कोई आया. और उसके सामने वाली शीट पर बैठ गया. स्मार्ट हैंडसम गोरा चिट्टे चहेरे वाला वो नौजवान फौजी ही लग रहा था. छोटे छोटे बाल और क्लीन शेव उसकी पहचान बता ही रही थी. कविता ने उसपर नजर डाली. वो अपना बैग शीट के निचे घुसा रहा था. जिसपर टैग लगा हुआ था. टैग पर साफ अंग्रेजी शब्दो मे लिखा हुआ था. सिपाही वीरेंदर पांडे.

साथ मे पेट नेम भी लिखा हुआ था. वीर. कविता के फेस पर तुरंत ही स्माइल आ गई.
तभी वीर की नजर भी कविता पर गई. और वो एक टक कविता को देखता रहे गया. कविता ने अपनी भंवरे चढ़ाकर वीर से हिसारो मे पूछा. क्या देख रहे हो जनाब. वीर बहोत शर्मिला निकला. उसने तुरंत ही अपनी नजरें हटा ली. पर कविता खुद उस से नजर नहीं हटा पा रही थी. ट्रैन चाल पड़ी. ट्रेन के सफर मे अक्सर मुशाफिर दोस्त बन ही जाते है. कविता के माँ बाप ने भी वीर का इंटरव्यू चालू कर दिया. बेटा कहा रहते हो. क्या करते हो. और घर मे कौन कौन है. वगेरा वगेरा........तब कविता को पता चला की जनाब बनारस के है.

मतलब कविता के क्षेत्र के ही रहने वाले. काफ़ी वक्त बीत गया. वीर महाशय जब भी नजर चुरा कर कविता को देखते कविता उन्हें पकड़ ही लेती. सायद वीर जनाब कुछ ज्यादा ही शर्मीले थे. इस लिए वो खड़ा हुआ और वहां से टॉयलेट की तरफ चाल दिया. कुछ मिनट बाद कविता भी टॉयलेट के पास आ गई. और वीर को घेर लिया. डोर के पास ही कविता जब सामने खड़ी हो गई तो वीर का थूक निगलना भी मुश्किल हो गया.


कविता : क्या आप हमें देख रहे थे???


वीर थोडा जैसे घबरा गया हो. शरीफ इंसान अक्सर बदनामी से डरते है. वैसा डर वीर को भी लगने लगा.


वीर : ननन... नहीं तो. आआ आप को सायद गलत फेमि हुई है.


वीर को थोडा सा घभराया देख कविता समझ गई की जनाब शरीफ इंसान है. कविता हस पड़ी.


कविता : (स्माइल) हम जानते है पांडे जी. हम बहोत सुन्दर है. पर ऐसे शर्माइयेगा तो कैसे कम चलेगा. ऐसे तो लड़की हाथ से निकाल जाएगी.


कविता के बोलने का अंदाज़ बड़ा शरारती था. वीर की हालत देख कर कविता को हसीं आने लगी. कविता का ऐसा बोल्ड रूप देख कर वीर की जुबान ही हकला गई.


वीर : हमने... हमने क्या किया????


कविता : अरे यही तो.... यही तो बात है की आप कुछ कर नहीं रहे. अरे कुछ कीजिये पांडे जी. जब लड़की पसब्द है तो उनके पापा से बात कीजिये.


वीर समझ ही नहीं पा रहा था. केसी लड़की है. खुद की शादी की बात खुद ही कर रही है. पर नजाने दोनों मे क्या कॉम्बिनेशन था. वीर को कविता का ये अंदाझ बहोत पसंद भी आ रहा था. लेकिन वीर सच मे बहोत शर्मिला था. वो 10 पास करते ही फौज मे भर्ती हो गया. ट्रैन मे कविता से उस मुलकात के वक्त वो भी 22 साल का ही था. पिता सत्येंद्र पांडे का एक लौता बेटा. सतेंद्र पांडे 49 साल के थे. एक बेटी बबिता 18 साल की. बबिता के वक्त ही उनकी पत्नी उर्मिला का देहांत हो गया. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की. वीर जैसे कविता की बात समझ ना पाया हो. वो कविता को देखते ही रहे गया. कविता ने भी अल्टीमेटम दे दिया.


कविता : देखिये कल दोपहर तक का वक्त है आप के पास. चुप चाप अपने घर का पता फोन नंबर कागज पर लिख के दे दीजिये. हम भी शुक्ला है. समझे.आगे हम संभल लेंगे.


कविता बस वीर की आँखों मे देखते हुए मुश्कुराती वहां से चली गई. रास्ते भर दोनों की नजरों ने एक दूसरे की नजरों से कई बार मिली. रात सोती वक्त भी दोनों ऊपर वाली शीट पर थे. पूरी रात ना वीर सो पाया ना कविता. दोनों ही अपनी अपनी शीट पर एक दूसरे की तरफ करवट किये एक दूसरे को देखते ही रहे. रात मे जब सब सो गए तब दोनों ने बाते भी बहोत की. बाते क्या. कविता पूछती रही और वीर छोटे छोटे जवाब देता गया. शर्मिंले वीर ने बस प्यार का इजहार नहीं किया. पर ये जरूर जाता दिया की उसे भी प्यार है.

पर सुबह मुख्य स्टेशन से पहले जब वीर लखनऊ ही उतरने लगा तो कविता को झटकासा लगा. वीर बनारस का रहने वाला था. पर अपने पिता और बहन के साथ लखनऊ मे बस गया था. शहर राजधानी मे अपना खुद का मकान बना लिया था. कविता का दिल मानो टूट ही गया. जाते वीर से मिलने वो भी डोर तक आ ही गई. दोनों की आंखे जैसे उस जुदाई से दुखी हो. जाते वीर से कविता ने आखरी सवाल पूछ ही लिया. पर इस बार अंदाज़ शरारती नहीं भावुक था.


कविता : कुछ गलती हो जाए तो माफ कीजियेगा पांडे जी. वो क्या है की हम बोलती बहोत ज्यादा ही है. हम बस इतना जानती है की आप हमें बहोत अच्छे लगे. पर आप ने ये नहीं बताया की हम आप को पसंद है या नहीं.


कोमल बड़ी उमीदो से वीर के चहेरे को देख रही थी.


कविता : (भावुक) फ़िक्र मत कीजिये पांडेजी. ये जरुरी तो नहीं की हमें आप पसंद हो तो हम भी आप को पसंद आए होंगे. आप तो बहोत शरीफ हो. (फीकी स्माइल) और हम तो बस ऐसे ही है.


वीर के फेस पर भी स्माइल आ गई. वीर भी ये समझ ही गया की कविता बिंदास है. करेक्टर लेस नहीं. जो दिल मे है. वही जुबान पर. अगर उसका साथ मिला तो जीवन मे खुशियाँ साथ साथ ही रहेगी. हस्ते खेलते जिंदगी बीतेगी. वीर ने बस एक कागज़ कविता की तरफ किया और चल दिया. कविता उसे आँखों से ओझल होने तक देखती ही रही. ओझल होने से पहले वीर रुक कर मुड़ा भी.

और दोनों ने एक दूसरे को बाय भी किया. पर उस वक्त बिछड़ते नहीं तो दोबारा कैसे मिलते. कविता ने जब उस कागज़ को देखा. उसमे सिर्फ गांव का ही नहीं शहर के घर का भी पता लिखा हुआ था.
मोबाइल उस वक्त नहीं हुआ करते थे. पर घर के लैंडलाइन के नंबर समेत रिस्तेदारो के लिंक तक लिखें थे. किस के जरिये कैसे कैसे रिस्ता लेकर वीर के घर आया जाए. अलाबाद के नामचीन पंडित से लेकर बनारस के नामचीन पंडित तक.

रिस्ता पक्का करवाने का पूरा लिंक था. कविता बोलने मे बेबाक मुहफट्टी. वो पीछे मुड़ी सीधा अपनी शीट की तरफ. पर बैठने के बजाय अपने पापा के सामने आकर खड़ी हो गई.



कविता : (शारारत ताना) आप को बेटी की फिकर है या नहीं. घर मे जवान बेटी कवारी बैठी है. और आप हो की तीर्थ यात्रा कर रहे हो.


दयाशंकर बड़ी हेरत से कविता को देखने लगे. देख तो सरिता देवी भी रही थी. मुँह खुला और आंखे बड़ी बड़ी किये. अब ये डायलॉग रोज कई बार दयाशंकर अपनी पत्नी सरिता से सुन रहे थे. पर आज बेटी ने वही डायलॉग अपने ही बाप से बोला तो जोर का झटका जोर से ही लगा.


सरिता : (गुस्सा ताना) मे ना कहती थी. लड़की हाथ से निकले उस से पहले हाथ पिले कर दो. अब भुक्तो.


दयाशंकर अपनी बेटी को अच्छे से जनता भी था. और समझता भी था. भरोसा भी था. पर बेटी के मज़ाक पर ना हसीं आ रही थी ना चुप रहा जा रहा था.


कविता : (सरारत ताना स्माइल) सुन रहे हो शुक्ला जी. सरिता देवी क्या कहे रही है. अब भी देर नहीं हुई. जल्दी बिटिया के हाथ पिले करिये और दफा करिये.


अपनी बेटी के मुँह से अपना नाम सुनकर सरिता देवी तो भड़क ही गई.


सरिता : (गुस्सा ताना) हाय राम.... माँ बाप का नाम तो ऐसे ले रही है. जैसे हम इसके कॉलेज मे पढ़ने वाले दोस्त हो. अब भुक्तो.


सरिता देवी को लगा अब दयाशंकर कविता को डांट लगाएंगे. पर सरिता देवी की बात को दोनों बाप बेटी ने कोई तवजुब नहीं दिया. कविता ने वही कागज़ का टुकड़ा अपने पापा की तरफ बढ़ाया. पापा तो कभी कागज़ को देखते तो कभी कविता को. बाप और बेटी दोनों मे बाप बेटी का रिस्ता कम दोस्ती का रिस्ता ज्यादा था. बेटी रुसवा नहीं हुई और उस छिपे हुए लव को अरेंज मैरिज मे बदल दिया गया.

रीती रीवाज और दान दहेज़ के साथ ही. घुंघट मे बैठी कविता अपने पति से हुई पहली मुलाक़ात को याद कर के घुंघट मे ही मुस्कुरा दी. की तभी डोर खुलने की आवाज आई.
कविता थोड़ी संभल गई. पारदर्शी लाल साड़ी मे से सब धुंधला दिख रहा था. तभी उसे उनकी आवाज सुनाई दी.


वीर : हमें मालूम था. कोई और रोके ना रोके ये चुड़ैल हमारा रास्ता जरूर रोकेगी.


कविता समझ गई की वीर आ गया. और एक पुराने रिवाज़ के तहत प्यारी नांदिया नेक के लिए दरवाजे पर रस्ता रोके खड़ी है. जैसी भाभी वैसी ननंद. अपनी ननंद के साथ कुछ और लड़कियों की भी हसने की आवाज सुनाई दी.


बबिता : चलिए चुप चाप 10 हजार निकाल कर हमारे हाथ मे रखिये . नहीं तो.....


वीर : नेक मांग रही हो या हप्ता. ये लो ...


कविता को भी घुंघट मे हसीं आ गई. पति और ननंद की नोक झोक सुन ने मे माझा बड़ा आया.


बबिता : अह्ह्ह....


कविता ने धुंधला ही सही. पर देखा कैसे वीर ने अंदर आते वक्त बबिता की छोटी खींची. वीर रूम का डोर बंद करने ही वाला था की बबिता फिर बिच मे आ गई.


वीर : अब क्या है???


बबिता गाना गुन गुनाने लगी.


बबिता : (स्माइल) भैया जी के हाथ मे लग गई रूप नगर की चाबी हो भाभी....


वीर ने तुरंत ही बबिता को पीछे धकेला और डोर बंद कर दिया. कविता घुंघट मै बैठी जैसे अपने आप मे सिमट रही हो. वो घुंघट मै ही बैठी मुस्कुरा रही थी. वीर आया और उसके करीब आकर बैठ गया.


वीर : नया रिश्ता मुबारक हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और बड़ी ही धीमी आवाज मे बोली.


कविता : (स्माइल शर्म) आप को भी.


वीर खड़ा हुआ और रूम की एक तरफ चले गया. कविता को थोड़ी हेरत हुई. उसने सर उठाया. चोरी से घुंघट थोडा ऊपर कर के देखा. वीर अलमारी से कुछ निकालने की कोसिस मे था. वीर जैसे मुड़ा कविता ने झट से घुंघट ढका और वापस वैसे ही बैठ गई. वीर एक बार फिर कविता के पास आकर बैठ गया. वो बोलने मे थोडा झीझक रहा था. वीर के हाथ मे एक बॉक्स था. उसने अपना हाथ कविता की तरफ बढ़ाया.


वीर : वो.... मुँह दिखाई के लिए आप का तोफा....


कविता घुंघट मे ही धीमे से हसने लगी. उसकी हसीं की आवाज सुनकर वीर भी मुश्कुराने लगा. कविता बड़ी धीमी आवाज से बोली.


कविता : (स्माइल शरारत) क्यों जनाब आप ने हमें पहले कभी देखा नहीं क्या??


वीर : नहीं..... देखा तो है. मगर.....


जैसे वीर के पास जवाब तो है. पर बता नहीं पा रहा हो. वो चुप हो गया.


कविता : अच्छा उठाइये घुंघट. देख लीजिये हमें.


वीर : ऐसे कैसे उठा दे. आप ने भी तो वादा किया था.


वैसे तो जब उन दोनों को प्यार हुआ. शादी हुई. उस वक्त मोबाइल का जमाना नहीं था. पर घर के लैंडलाइन से बात हो जाती. वो भी बहोत कम. क्यों की वीर के घर के ड्राइंग रूम मे ही फ़ोन था. और वहां सब होते थे. वैसा ही माहौल तो कविता के घर का भी था. बहन बबिता ने अपने भाई वीर की मदद की थी. और दोनों मे बात हुई. तब कविता ने एक वादा किया था की वो शादी की पहेली रात कुछ ऐसा करेंगी. जो पहले कभी किसी दुल्हन ने ना किया हो.

वीर भी ये जान ने को बेताब था. और वो वक्त आ गया था. कविता अपने पाऊ सामने फॉल्ट किये थी. ऐसे ही घुंघट मे भी वो दोनों पाऊ मोड़ के अच्छे से बैठ गई.


कविता : कोई चीटिंग मत करियेगा पांडे जी. आंखे बंद कीजिये और आइये. हमारी गोद मे सर रखिये.


वीर ने स्माइल की. और थोडा आगे होते हुए लेट गया. उसने कविता की गोद मे अपना सर रख दिया. कविता ने अपनी आंखे खोली और मुश्कुराते हुए वीर को देखा. गोरा चहेरा, छोटी छोटी बंद आंखे. शेव की होने के कारण गोरे चहेरे पर थोडा ग्रीन ग्रीन सा लग रहा था. जो कविता को काफ़ी अट्रैक्टिव लग रहा था.बाल भी थोड़े से बड़े हुए थे. कविता ने बहोत प्यार से वीर के सर पर अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे बंद ही थी. कविता ने सच मे कुछ नया किया. वो वीर के सर को पकड़ कर झूक गई. अपने सुर्ख लाल होठो को वीर के हलके गुलाबी होठो से जोड़ दिया.

ये वीर के लिए तो एकदम नया ही एहसास था. उसकी जिंदगी की सबसे पहेली और शानदार किश. कविता ने कुल 1 मिनट ही किस की और वापस घुंघट कर लिया. चहेरा ना दिखे इस लिए पल्लू को सीने मे दबा दिया. मदहोश हुआ वीर जैसे किसी और दुनिया मे पहोच गया हो. कविता वीर की ऐसी हालत देख कर हलका सा हस पड़ी.


कविता : बस अब उठीये पांडेजी. अब बताइये? ऐसा पहले कभी किसी दुल्हन ने किया क्या.


वीर : (स्माइल) अब क्या हम अपनी आंखे खोल सकते है क्या???


कविता खिल खिलाकर फिर हस पड़ी. वो थोडा खुल गई.


कविता : (स्माइल) सब हमसे ही पूछ कर करियेगा क्या. खोल लीजिये आंखे.


वीर ने अपनी आंखे खोली तो ऊपर सामने कविता ही दिखी. पर घुंघट मे.


वीर : पता है कविता जी. हमने पहेली बार किसी की गोद मे अपना सर रखा है.


कविता समझ गई की वीर की माँ बचपन मे ही गुजर गई. वो माँ की ममता से वंचित है. सायद वो उस कमी को दूर कर सके. कविता ने एक बार फिर वीर के बालो मे अपना हाथ घुमाया. वीर की आंखे एक बार फिर बंद हो गई. वो क्या फील कर रहा होगा. ये कविता बखूबी समझ रही थी.


कविता : तो अब हर रोज़ हमारी गोद मे ही अपना सर रखा कीजियेगा. पर पांडेजी. आज हमारी पहेली रात है. घुंघट नहीं उठाइयेगा क्या???


वीर : क्या जरुरी है कविताजी???


कविता : (लम्बी सॉस) हम्म्म्म. फिर रहने दीजिये. हम भी वो पहली दुल्हन होंगी. जिसका चहेरा दूल्हा देखना ही नहीं चाहते.


वीर तुरंत उठ कर बैठ गया. वो घड़ी आ गई. जिसका वीर और कविता दोनों को ही इंतजार था. दोनों की दिलो की धड़कनो ने रफ़्तार पकड़ ली. जब वीर ने कविता का घुंघट आहिस्ता से ऊपर उठाया. वो खूबसूरत चहेरा जिस से वो नजर ही नहीं हटा पा रहा था. ये वही चहेरा था. जिसे पहेली मुलाक़ात ट्रैन मे देखा था. और मन ही मन कई कल्पनाए की थी. और आज सामने श्रृंगार और सोने के जेवरो मे सजधज कर कविता को शादी के लाल जोड़े मे देखा तो वीर कविता की तारीफ किये बगैर नहीं रहे पाया.


वीर : आप बहोत सुन्दर हो कविताजी.


कविता हलका सा हसीं. और आहिस्ता से सर ऊपर कर के वीर की आँखों मे देखा.


कविता : (स्माइल) बस सिर्फ सुन्दर??


वीर दए बाए देखने लगा. जैसे कोई उलझन मे हो. फिर एकदम से कविता की आँखों मे देखा.


वीर : देखिये कविता जी. बहोत कुछ है. जो सायद हम कहे नहीं पा रहे है. पर आप बहोत सुन्दर हो. बहोत बहोत बहोत..... सुन्दर.


कविता शर्मा कर हस पड़ी. वो समझ गई की वीर के दिल दिमाग़ पर सिर्फ कविता ही बसी हुई है. वीर कविता की तारीफ करने के चक्कर मे कविता को मुँह दिखाई का तोफा देना भूल गया था. कविता ने बतियाते हुए ही वीर के हाथो से वो छोटासा बॉक्स खिंच लिया. और बाते करते हुए उसे खोलने लगी.


कविता : (स्माइल) लगता है आप लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करते. कभी कोई दोस्त नहीं बनी क्या???


वीर : नहीं... दरसल हम बॉयज स्कूल मे पढ़े है. वो भी सिर्फ 10th तक. फिर तो फौज मे ही चले गए. अब मन तो था की आप जैसी कोई दोस्त हो. तो भगवान ने आप से मिला दिया.


कविता वीर की बात पर हस दी. वो इंतजार कर रही थी. की वीर भी पूछे. की पहले कोई बॉयफ्रेंड था या नहीं. पर वीर ने पूछा ही नहीं. आगे बात भी नहीं हो पा रही थी. कैसे मामला आगे बढ़ता. कविता ही आगे बढ़ने का सोचती है. पर उसकी नजर उस बेडशीट पर गई. जो बिछी हुई थी.


कविता : ये आफ़ेद चादर कहे बिचाई गई है. ऐसे ख़ुशी के मौके पर तो कोई बढ़िया सी रंग बिरंगी बिछानी चाहिए थी ना .


वीर भी सोच मे पड़ गया. वो बताना चाहता था. पर थोडा हिचक रहा था.


वीर : सायद.... सायद वो खून होता हे ना. वो...


कविता समझ गई की कौमार्य (virginity) जाँचने के लिए ही सफ़ेद चादर बिछाई गई हे. कविता फिर भी जानबुचकर अनजान बनती है.


कविता : पर खून कहे निकलेगा. हम थोड़े ना कोई तलवारबाज़ी कर रहे है.


वीर : (हिचक) वो लड़की को पहेली बार होता है ना.


कविता को जैसे शर्मा आ रही हो. वो अपनी गर्दन निचे कर लेती है.


कविता : (हिचक) देखिये पांडे जी. हमें आप को सायद पहले ही बता देना चाहिए था. हमें प्लीज माफ कर दीजिये. दरसल शादी से पहले हमारा एक बॉयफ्रेंड था. और उसके साथ....


कविता बोल कर चुप हो गई. वो अपना सर ऊपर नहीं उठती.


वीर : तो फिर उस से आपने कहे शादी नहीं की. क्या आप अब भी उस से ही प्यार करती हो???


वीर ने पहली बार सीधा बेहिचक सवाल किया. कविता ने ना मे सर हिलाया.


कविता : नहीं दरसल वो धोखेबाज़ था. उसका कई लड़कियों से चक्कर था. हमने ही उसे छोड़ दिया.


वीर : तो क्या आप हमसे प्यार करती हो???


कविता ने सिर्फ हा मे सर हिलाया. और वो कुछ नहीं बोली.


वीर : कविता जी अगर हम ये कहे की आप पहले किस से प्यार करती थी. करती थी या नहीं. इस से हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आगे आप हमसे किस तरह रिस्ता बना ना चाहती है. हम बस यही जान ना चाहते है .


कविता हेरत मे पड़ गई. वीर का दिल कितना बड़ा है. यही वो सोचने लगी की. पता होने के बावजूद वीर आगे रिस्ता बना ना चाहते है.


कविता : अगर आप हमें उस गलती के लिए माफ करदे. और हमसे प्यार करियेगा. अपनी पत्नी स्वीकार कीजियेगा.. तो हम भी जीवन भर आपको ही अपने मन के मंदिर मे बैठाए रखेंगे पांडेजी. आप ही की पूजा करेंगे. और आप के हर सुख दुख मे आप के भागीदार बनेंगे.


वीर बस इतना सुन. और खड़ा हो गया. वो वापस उसी अलमारी के पास जाकर अलमारी से कुछ खोजने लगा. वो एक कटर लेकर आया. कविता उसे देखती ही रहे गई. वीर ने उस सफ़ेद बेडशीट पर अपना हाथ काट कर खून गिराया. तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बिच की चमड़ी से खून टप टप बहकर उस सफ़ेद बेडशीट पर लाल दाग लगा रहा था. कविता झट से खड़ी हुई. और वीर का हाथ पकड़ लिया. वो खून रोकने की कोसिस करती है.


कविता : (सॉक) क्या फर्स्ट एड बॉक्स है???


वीर ने अलमारी की तरफ ही हिशारा किया. कविता झट से फर्स्ट एड बॉक्स लेकर मरहम पट्टी करने लगी. पट्टी बांधते वक्त वो वीर को बड़ी प्यारी निगाहो से देख भी रही थी. सोच भी रही थी. ये तो देवता है. कविता को वीर पर प्यार भी बहोत आ रहा था. दोनों ही खड़े थे. कविता ने बॉक्स को साइड रखा और झूक कर वीर के पाऊ छुए.


कविता : ये हमारे पति होने के लिए.


वीर भी तुरंत झूक गया. और उसने भी कविता के पाऊ छू लिए.


वीर : (स्माइल) तो ये लो. हमारी पत्नी होने के लिए.


कविता सॉक होकर हसने लगी. वीर को रोकती उस से पहले वीर ने कविता के पाऊ छू लिए थे.


कविता : (स्माइल) अरे नहीं...... अब आप झूकीयेगा नहीं. कभी नहीं. और सीधे खड़े रहिये.


कविता एक बार और वीर के पाऊ छूती है.


कविता : ये इंसान के रूप मे भगवान होने के लिए. आज से आप ही हमारे भगवान है. आप की बहोत सेवा करेंगे हम पांडेजी.


दोनों ही हसने लगे. कविता उस सफ़ेद चादर को खिंच कर समेट लेती है. वो वीर की आँखों मे बड़े प्यार से देखती है.


कविता : (भावुक) पांडेजी. अब ये चादर हमारे लिए सुहाग के जोड़े से भी ज्यादा कीमती है.


कविता उस चादर को फॉल्ट करने लगी तब तक तो वीर ने दूसरी नीली चादर बिछा दी. कविता हसीं और एकदम से रुक गई. पर स्माइल दोनों की बरकरार रही. दोनों ही बेड पर पास पास ही बैठ गए. तब जाकर उस चीज पर ध्यान गया. जिसे दोनों काफ़ी देर से भूल गए थे. मुँह दिखाई का तोफा. कविता वीर से नजरें नहीं मिला पा रही थी. वो मुश्कुराती इधर उधर देखती है. तब उसकी नजर उस बॉक्स पर गई. जो सुन्दर लिफाफे से कवर था.

कविता ने अपना हाथ बढ़ाया और उस बॉक्स को लेकर खोलने लगी. पर बॉक्स खोलते उसे एकदम से झटका लगा. उसमे बहोत सुन्दर पायजेब थी. पर झटका इस लिए लगा क्यों की कवर हटाते बॉक्स पर जिस सुनार का अड्रेस था. वो इलहाबाद का था. और ये वही पायजेब थी जो कविता ने शादी की खरीदारी करते वक्त पसंद की थी. लेकिन सुनार ने उसे वो पायजेब देने से मना कर दिया. क्यों की उस दुकान पर वो लौता एक ही पीस था. और वो भी किसी ने खरीद लिया था. वो बुक थी.

कविता का दिल खुश हो गया. कोनसी प्रेमिका पत्नी खुश ना हो ये जानकर की उसकी पसंद उसका पति प्रेमी बिना कहे ही जनता हो. या फिर पसंद मिलती हो. कविता ने वो पायजेब वीर की तरफ की. अपना पाऊ आगे कर के अपने घाघरे को बस थोड़ासा ऊपर किया. वीर समझ गया की कविता वो पायजेब उसके हाथ से पहेन ना चाहती है. पर कविता का गोरा सुन्दर पाऊ देख कर तो वीर मोहित ही हो गया. गोरा और सुन्दर पाऊ. महावर से रंगा हुआ तलवा. ऊपर महेंदी की जबरदस्त करामात. नाख़ून पर चमकता लाल रंग बहोत आकर्षक था.

वीर ने पायजेब तो पहना दी. पर झूक कर उसके पाऊ को चुम भी लिया. कविता के लिए ये दूसरा झटका था. मानो रोम रोम मे एकदम से गुदगुदी सी मच गई हो. वो तुरंत आंखे मिंचे सिसक पड़ी.


कविता : (आंखे बंद मदहोश) ससससस.....पाण्डेजिह्ह्ह


जब आंखे खुली तो वीर बहोत ही प्यार भरी नजरों से उसे देख रहा था. इस बार बोलना दोनों मे से कोई नहीं चाहता था.
इस बार धीरे धीरे दोनों ही एक दूसरे के करीब हुए. होठो से होठो का मिलन हुआ और दोनों एक दूसरे की बाहो मे समा गए. प्यार के उस खेल मे बहोत ही सख्तई भी महसूस हुई और दर्द भी. पर जीवन के सब से अनोखे सुख को दोनों ने महसूस किया.

वीर जैसा जाबाझ सुन्दर तंदुरस्त मर्द और अति सुन्दर कविता का मिलन हुआ तो मानो दोनों की दुनिया थम ही गई हो. पर जब दोनों अलग हुए. और वीर बैठा तब उसकी नजर कविता की सुन्दर योनि पर गई. गुलाबी चमड़ी वाली सुन्दर सी योनि से एक लाल लकीर निचे की तरफ बनी हुई थी. नीली बेडशीट पर भी कुछ गिला सा महसूस हुआ. वीर सॉक हो गया.


वीर : (सॉक) ये तो खून है.


कविता हस पड़ी और शर्म से अपने चहेरे को अपने एक हाथ से ढक लिया. बुद्धू सज्जन को अब तक तो समझ जाना चाहिए था. वीर को भी समझ आया. और वो भी मुस्कुरा उठा. उसे अब समझ आया की कविता उस से प्यार करने से पहले तक कवारी ही थी.


उसने झूठ कहा था की उसका कोई बॉयफ्रेंड था. पर परीक्षा लेते तो कविता को एहसास हुआ की वीर जैसे इंसान को पाना उसका नशीब है. समाज की रीत के हिसाब से तो पति परमेश्वर होता है. पर यहाँ तो परमेश्वर ही पति निकले. कविता खुश थी की उसका कौमार्य (virginity) सार्थक हुआ.
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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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A

(1)

Hakim ko chain nahi pad raha tha. Bhale hi vo pura swasth ho gaya ho. Par dar esi chij he ki ek sath vo kai bimari peda kar deta he. Jab se use pata chala ki Reeta uske bete ki bali dene vali he. Uski gand fat gai. Hakim ka ek hi to beta tha. Agar vo mara jaega fir. Jawani ke wakt gav me bhi vo reeta(raziya) se thappad kha chuka tha. Jabardasti bhi vo kabhi raziya(Reeta) par kabu nahi pa saka.
Hakim ko mano sadma lag gaya ho. Vo ghabrahat me bad badane bhi laga tha. Uske muh se bar bar ek hi bat nikal rahi thi.

Hakim ; (ghabrahat sadma) vo vo mar dalegi mere bete ko. Aa gai. Badla badla lene ke lie

Vo mar dalegi.

Hakim ko ankhe band karne par seen bhi vese dikh rahe the. Reeta puri nangi bethi hui he. Uski god me Jeet nanga leta huaa he. Jo mara huaa dikh raha he. Reeta uski gardan par dhire dhire chaku chala rahi he. Reeta jeet ki gardan kat te wakt has rahi he. Ese najare bar bar dekhne ke karan vo so hi nahi raha tha. Use dar ke mare peshab bhi bahot lag raha tha. Us rat jab pahela andhera huaa.
Vo bathroom se nikla hi ki samne uske kamini leti hui thi. Badan se pura chipka huaa dress jo kamini ki sundar sudol kaya ke map dand bhi jata raha tha. Khule bal khubshurat chahera. Aur bhabkadar kali ankhe usi ko hi dekh rahi thi.
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Hakim gusse se tilmila gaya

Hakim ; (gussa sock) sali tu.... Tu kisi kam ki nahi. Sali kamini kahiki. Randi... Mere bete ki khabar to kuchh la nahi pa rahi.

Hakim ko darawne shapne bhi kamini hi dikha rahi thi. Use pata tha ki Reeta din se hi Hakim ke ghar uske bal khoj rahi he. Hakim ne Rupali ke jane ke bad Kamini ko kam diya tha. Ki vo Reeta ki khabar lekar aae. Vo kaha he. Aur uska beta jeet he bhi uske sath ya nahi. Halaki jeet ke sath to Reeta ke roop me Jeeyara thi. Reeta us lambe se sofepar bahot kamukh andaz me andai leti he. Muh se bahot hi kamukh aavaj nikalti he.

Kamini ; ahhhhh....ssss pata kiya na mere malik. Ssss aap ka beta bhi usi ke sath he... Dono bahot hi sss...
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Kamini ka sexual hona Hakim ko achha nahi laga. Use to aur jyada gussa aane laga. Kamini ne aadhi hi bat par hi chup ho gai. Hakim gusse me jor se chillaya.

Hakim ; (gussa) aage bolo kya???? Bolo.... Me kaheta hu bolo.

Kamini halka sa hasti hui vese hi sexual andaz me ruk ruk kar bolti he.

Kamini ; (kamukh) ahhhh ssss... Muje to lagta he ki......(hasna) dono me.....sssss bada pyar he ssss
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Hakim soch me pad gaya. Gav me Hakim ne raziya(reeta) ko patane ke lie edi choti ka jor laga diya. Par uske hath bejati ke alava kuchh nahi aaya. Aur uske bete ne raziya(Reeta) ko pata liya. Hakim ek bar to smaile karta he. Par Rupali ki bat yaad aai to vo fir ghabra gaya.

Hakim ; tum jao. Aur us haramjadi ko mar dalo.

Kamini ekdam se utthkar beth gai.

Kamini ; aap jante ho. Me use nahi mar sakti. Aap muje bhi kho doge.
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Hakim ; (gussa) fir sali tere hone ka kya fayda haram jadi.

Kamini ; tum chaho to me dur se unhe tumhe dikha sakti hu.

Hakim ko jese thodi rahat mili ho. Vo taiyar ho gaya.

Hakim ; chalo fir...

Hakim kamini ke sath vaha se nikal gaya. Rat ho chuki thi. Kamini ek black car me Hakim ko lekar chal padi. Vo khud drive kar rahi thi.

Kamini ; (nashili aavaj) kya tumhe vo vakei bahot khubsurat lagti he. Tumhara beta pata nahi kyo uske pichhe.....pagal ho raha he.

Hakim kuchh bola nahi. Par use wakt ko yaad karne laga. Jab raziya(Reeta) nadi me naha rahi hoti. Gore unnat vraksho ko kese apne hatho se mal rahi hoti. Hakim apne bete ki fikar chhod Reeta ke khayalo me pahoch gaya. Bahot wakt ho gaya tha use dekhe. Vo abhi kesi dikhti hogi. Bas yahi khayal uske dimag me chal raha tha.

Kamini ; (shararati smaile) kaha kho gae.

Hakim ne kamini ki taraf dekha. Vo nashili ankho se smaile kiye ek bar Hakim ki taraf dekhti he. Fir samne dekhne lagi.

Kamini ; (nashili aavaj) lagta he tum bhi kabhi uske deewane the. Vese he vo bahot khubsurat.

Kamini janbuchkar Hakim ke dill ki hasrat jagah rahi thi. Jiske lie vo samohan shaktiyo ka bhi prayog kar rahi thi. Reeta ko yaad karate uska jikar aur apni nashili aavaj me bol rahi thi. Hakim ko bar bar Reeta(Raziya) yaad aane lagi. Tabhi car ki breck lagi.
Hakim ekdam se khayalo ki duniya se bahar aaya. Usne samne dekha to ek andhere rode par ek restaurant tha. Bas thodi bahar lighting thi. Vahi Jeet bhi Jeeyara ko Reeta samaz kar uske sath rat ko bahar nikla tha. Darsal vo pyar ka khel khelkar Reeta ko apni taraf karna chahta tha. Par bap bete dono ko kya pata ki jise vo dekh rahe the.
Vo Reeta thi hi nahi. Vo to Jeeyara thi. Hakim dae bae dekhne laga. Use sab jagah koi dikh nahi raha tha. Kuchh thodi si public thi. Jo us restaurant me aa ja rahi thi. Kamini ne restaurant se kuchh 50 mitar dur hi car rok di. Aur light off kar di.

Hakim ; yaha kyo lai ho muje.

Kamini ; (haste hue) tumhari vo mashuka jo andar he.

Hakim ko thodi ghabrahat hone lagi. Vo apni sheet par thoda ucha nicha hone laga. Aur samne dekhta he. Tabhi us restaurant ke door se ek jabardast figar vali ladki nikli. Black hot saree. Bra jesa blouse. Jo deep nack bhi tha. Aur backless hi tha. Samzo ke bra hi thi. Jo black trapharment net saree se puri tarah se dikhai de raha tha. Boobs ka show up bhi jabardast tha. Khubsurat chahera aur khule bal.
Par Hakim heran tab rahe gaya. Jab us khubshurat ladki ka usne chahera dekha. Vo aur koi nahi balki Reeta hi thi.
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Vese to Reeta ki age ke hishab se to Reeta thodi bhari puri ho gai thi. Jim kasharat aur ladhaku Yodha hone ki vajah se fit jarur thi. Par aaj ke wakt ke hishab se sharir bada ho gaya tha. Boobs ka size bhi badh gaya tha. Par Jeeyara ne Kamini ke hukam ke hishab se use 18 ka Reeta ka look lene ko kaha tha. Hakim ki to Reeta ko dekhte hi ahhh nikal gai.

Hakim ; (dhimi aavaj) ssss ahhhh aaj bhi vese hi. Ab to.... Aur bhi jyada khubsurat....ssss...
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Par Kamini apne pishaji kano ki tez sun ne ki shaktiyo se Hakim ke muh se jo bhi nikla sab sun gai. Hakim bahek raha tha. Jise Kamini ne mahesus kar liya. Vahi Reeta(Jeeyara) aur Jeet dono us restaurant paheche tab Jeet car park kar raha tha. Reeta (Jeeyara) sidha andar restaurant me ghus gai thi. Jese vo intjar kar rahi ho. Aur Jeet nahi aaya to dekhne ke bahane vo bahar nikli ho.
Hakikat ye thi ki reeta Jeet ke sath he bas ye Hakim ko show karvana tha. Reet (jeeyara) Jeet ko dekhne ke bahane bahar aai. Vahi Jeet bhi car park kar ke aa raha tha. Reeta(Jeeyara) jeet ki taraf badhti he.

Reeta(Jeeyara) ; (smaile) kitni der kar rahe ho tum.

Reeta(Jeeyara) turant jeet ki baho me chali gai. Dono ek dusre ke baho me. Jeet ka hath Reeta(Jeeyara) ki patli si kamar pe tha. Vo Reeta(Jeeyara) hi hips pe bhi hath ghumata he. Hakim ki shanse hi atak gai. Vo hasrate ek bar fir peda ho chuki thi.
Jeet aur Reeta(Jeeyara) dono ek dusre ki baho me restaurant ke andar chale gae. Hakim aaya to tha apne bete ko Reeta se bachane. Par ek bar vo hasina ka chahera jo samne aaya. Hakim sab bhul gaya. Hakim jal bhun gaya. Vo turant hi Kamini ki taraf dekhta he.

Hakim ; (gussa hadbadat) vo meri he. Sirf meri. Me use mar dalunga.

Kamini khush ho gai. Jo kam vo na kar pai. Vo kam sirf Reeta ke chahere ne kar diya. Hakim apne bete ko bachane aaya tha. Ulta use hi marne ko kahene laga.

Kamini ; (nashili aavaj) lekin vo to tumhare bete se shadi kar rahi he... Kal vo dono...

Hakim ekdam se gusse ho gaya. Apna hath patakne laga.

Hakim ; (gussa) me mar dalunga sale ko. Muje vo chahiye bas.

Reeta ke chahere ka jadu. Bap bete se nafarat karne laga. Darsal Hakim apne ghar jane ka achanak plan na bana le. Is lie Kamini ne jeeyara se milkar ye chal chalvai. Jeeyra sirf apni jan ke badle dushmano se hath mila chuki thi. Tabhi thodi der me Reeta(Jeeyara) bahar nikli. Hakim ekdam se shant ho gaya. Aur muh khole Reeta ko dekhne laga.
Reeta(Jeeyara) ke chahere par vo kamukh mushkan dekh kar Hakim mano stabd hi ho gaya ho.
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Par jab vo puri bahar nikli tab uske pichhe Jeet bhi tha. Dono ne ek dusre ka hath pakada huaa tha. Vo kuchh bate kar rahe the. Hakim fir se jal bhun gaya.

Hakim ; vo kya bate kar rahe he.

Kamini ne Hakim ke sar par hath rakha. Ab Hakim ke kano me Jeet ki aavaj gunjne lagi.

Jeet ; meri jaan. Kal ham shadi karenge to mere kutte bap ka chahera dekhne layak hoga.

Use Reeta ki hasne ki aavaj bhi aai. Kamini ne turant Hakim ke sar apna hath hata liya. Hakim reeta(Jeeyara) dono ko jate hue dekhta raha. Unke jane ke bad Hakim Reeta ki taraf dekhta he. Kamini ne turant hi car start kar di. Hakim afsos se apni ankhe band kar leta he. Sara khel to bas Hakim ko rat bhar ulzae rakhna tha.

Kamini ; kuchh dekhna chahoge???

Hakim turant ankhe khole Kamini ko dekhne laga.

Kamini ; apni ankhe band karo. Tumhe bahot achha lagega.

Kamini darsal Hakim ko ek zuttha shapna dikhana chahti thi. Hakim fir vese hi bethe bethe apni ankhe band kar leta he. Kamini use hakim ki hi marji puchh kar neend ki agosh me le jati he.
Aksar pishaje ya koi bhi bhut jab shapno ke jariye bahekane ya bhatkane ki kosis karte he tab vo sirf esi story dete he. Jese ki darana ho to jo nahi hona chahiye.
Vahi bahekana ho to jo kalpna se bhi pare ho. Hakim ke sath bhi Kamini vahi karti he. Kamini ko kese bhi bas ek rat ke lie use busy rakhna chahti thi. Hakim need ki agosh me kho gaya. Shapne Hakim apne usi ghar ko dekh raha tha. Jisme filhal hakikat me Reeta un atmao se bheed rahi thi.
Par Hakim ne shapne me Reeta ko hi dekha. Reeta uske ghar me akar Hakim ko pukar rahi thi.

Reeta ; Hakim ji.... Hakim ji... Kaha ho aap. Lo me aa gai hu.

Tabhi achanak upar ki taraf sidiyo ke karib use hakim dikhai deta he. Reeta jese Hakim se bahot pyar karti ho. Vo ek najar Hakim ko dekhti hi rahi.
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Hakim jo chahta tha. Jo kalpnae kiya karta tha. Vesa hi shapna kamini dikha rahi thi. Jisme reeta(raziya) us se pyar karti thi. Esi kalpnao me hasin ne khuli ankho se kai shapne dekhe. Reeta se jese Hakim kafa ho. Vo use dekh kar bina kuchh bole vaha se chale gaya. Reeta bhi uske pichhe pichhe jane lagi. Hakim ek room me jakar beth gaya. Reeta bhi us room me aa gai. Aur uske samne akar beth gai.

Reeta ; kya bat he??? Tum naraj kyo ho???
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Hakim ye sab us shapne me dekh raha tha. Us shapne me Hakim Reeta se naraj ho vese Reeta ki bat ka jawab nahi deta. Reeta use uske shapne me gidgidati he.

Reeta ; bolo na. Please.. dekho me tumse milne aai hu aur tum.

Hakim ; (gussa) tum apne pati ko chhod kyo nahi deti???

Reeta uske shapne me bolte hue thoda sharmanti he.

Reeta ; (smaile) are chhod dungi baba. Bhale hi me uski patni hu. Lekin farz to tumse nibha rahi hu.
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Hakim ; to fir ye lo nibhao farz.

Hakim shapne me pura nanga ho gaya. Vo Reeta ke samne nanga hokar apna land laherane laga. Uske shapne me Hakim ka land lamba aur mota bhi tha.
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Hakim ki imagination hi thi ki vo Reeta se chakkar chala raha tha. Jese reeta apne pati ko dhokha de kar uske sath chudai karvati ho. Shapne me Hakim ne Reeta ko dekha kese vo Hakim ke land ko dekh kar machal rahi thi.

Reeta ; uffff ssss tum to muje pagal hi kar doge. Ahhhh....
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Hakim ne apne shapne me Reeta ki khub chudai ki. Par use nahi malum tha ki uski hi kalpnae use ese picture dikha rahi he. Kamini to bas ek story hi de rahi thi. Shaher me car ghumate Kamini ne use ese kai shapne dikhae. Vo bar bar khalit hota bhi raha.
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