ये एक रियल स्टोरी है। मेरा नाम बनवारी जाटव है, और मैं एक सरकारी प्रोफेसर हूँ। मेरी शादी हाल ही में काजल से हुई है, जो बेहद खूबसूरत है। वो बहुत मॉडर्न लड़की है। उसकी मुस्कान, उसकी आँखों की चमक, और उसका सौम्य स्वभाव मुझे हर पल उसकी ओर खींचता है। हमने शहर में एक नया घर बनाया है, जो हमारी नई शुरुआत का प्रतीक है। हमारा घर आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है।
पिछली रात की बात है, हमने अपने दोस्तों के साथ एक छोटी-सी पार्टी की थी। मेरे करीबी दोस्त मुकेश, जो पास की दुकान चलाता है, भी आया था। काजल और मुकेश की अच्छी बनती थी, और वो दोनों खूब हँसी-मजाक कर रहे थे। उनकी यह नजदीकी मुझे थोड़ा असुरक्षित कर रही थी, हालाँकि मैं जानता था कि यह सिर्फ दोस्ती है। फिर भी, मेरे मन में एक अजीब-सी जलन थी। हमने खूब हँसी-मजाक किया, खाना खाया, और देर रात तक गपशप चली। लेकिन मेरे दिमाग में काजल की खूबसूरती और उसकी साड़ी में वो अद्भुत अंदाज़ बार-बार घूम रहा था। रात को जब सब चले गए, तो मेरे मन में एक अजीब-सी उत्तेजना थी, शायद काजल की खूबसूरती और मुकेश के साथ उसकी हँसी-मजाक की वजह से।
काजल की खूबसूरती देखते ही बनती थी, मानो वो किसी चित्रकार की कृति हो। उसकी कमर पतली और लचकदार थी, लगभग 28 इंच की, जिस पर उसका गहरा नाभि और छोटा-सा तिल हर किसी का ध्यान खींचता था। उसके कूल्हे गोल और भरे हुए थे, करीब 36 इंच के, जो उसकी साड़ी या टाइट लेगिंग्स में और भी आकर्षक लगते थे। काजल के मम्मे सुडौल और उभरे हुए थे, लगभग 34 इंच के, जो उसकी टाइट टीशर्ट या ब्लाउज़ में हर धक्के के साथ लयबद्ध ढंग से हिलते थे, और उसके निप्पल्स तने हुए आसमान की ओर इशारा करते थे। उसकी छाती चौड़ी और आकर्षक थी, जो उसकी साँसों के साथ हर बार उभरकर और मादक लगती थी। काजल का चेहरा गोरा और नशीला था
सुबह जब मैं उठा, तो काजल पहले ही रसोई में चाय बना रही थी। मैं ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। बाहर हल्की बारिश की फुहारें थीं, और मौसम में ठंडक थी
ऑफिस में काम करते वक्त मेरा ध्यान बार-बार भटक रहा था। मैं सोच रहा था कि क्या काजल भी वैसी ही उत्तेजना महसूस कर रही होगी, जैसी मैं रात से महसूस कर रहा हूँ? मेरे दिमाग में बार-बार एक खयाल आ रहा था कि कहीं मुकेश, जो हमारा करीबी दोस्त है, आज सुबह घर तो नहीं गया? क्या वो और काजल... नहीं, नहीं, मैंने अपने दिमाग को झटका। ये सब सिर्फ मेरी असुरक्षा की वजह से थी। फिर भी, मन की बेचैनी कम नहीं हो रही थी।
आखिरकार, जब काम में मन नहीं लगा, तो मैंने मुकेश को फोन लगाया।
पहली बार में उसने फोन नहीं उठाया। मेरे दिमाग में फिर वही खयाल आया—कहीं वो घर तो नहीं गया? कहीं काजल के साथ...? मैंने खुद को शांत किया और फिर से फोन लगाया।
मुकेश: "हाँ भाई, कैसे याद किया?"
मैं: "कहाँ है तू?"
मुकेश: "अरे, दुकान पर हूँ। आज सुबह से थोड़ा व्यस्त हूँ। तू बता, सब ठीक?"
मैं: (राहत की साँस लेते हुए) "हाँ, बस यूँ ही। तूने तो रात को खूब मस्ती की थी!"
मुकेश: (हँसते हुए) "अरे, वो तो बनता है! काजल भाभी ने भी तो खूब खाना खिलाया। तू लकी है भाई, ऐसी बीवी मिली!"
मैंने फोन रख दिया, लेकिन मन अभी भी पूरी तरह शांत नहीं था। काजल और मुकेश की दोस्ती मेरे दिमाग में बार-बार आ रही थी। मैंने सोचा, जल्दी घर जाकर काजल से बात करूँगा।

शाम को जब मैं घर लौटा, तो काजल दरवाजे पर थी।
काजल: (मुस्कुराते हुए) "आ गए आप? चलिए, मैं चाय बनाती हूँ।"
मैं फ्रेश होकर बेड पर बैठ गया और टीवी ऑन कर लिया। लेकिन मेरा ध्यान टीवी पर नहीं था। मेरा हाथ अनायास ही मेरी चड्डी में चला गया, और मैं सोचने लगा कि कैसे रात को काजल और मैं एक-दूसरे के करीब थे। मेरे मन में फिर वही उत्तेजना जागने लगी, लेकिन साथ ही मुकेश के साथ उसकी दोस्ती का खयाल भी आ रहा था। मैंने चड्डी नीचे खींची और धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरा लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि कैसे काजल की साड़ी में वो इतनी खूबसूरत लग रही थी, और मेरे दिमाग में रात की सारी बातें घूम रही थीं।
तभी काजल चाय लेकर कमरे में आई।
काजल: (हल्के से चौंककर, फिर हँसते हुए) "अरे! ये क्या कर रहे हो?"
मैं: (थोड़ा घबराते हुए) "अरे, तू... तू कब आ गई?"
काजल: (मुस्कुराते हुए, चाय का कप मेरी ओर बढ़ाते हुए) "लो, चाय पियो। इतनी फीलिंग आ रही है आज आपको?"
मेरा लंड अभी भी बाहर था, और धीरे-धीरे बैठ रहा था। काजल उसे देख रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारत भरी चमक थी। हम दोनों ने चाय पी, और मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया।
मैं: "काजल, ज़रा इसे सहला ना।"
काजल ने हल्के से हँसते हुए मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी।
काजल: (मुस्कुराते हुए) "अरे, आज क्या हो गया आपको? इतनी जल्दी फीलिंग?"
मैं: (हँसते हुए) "क्या बताऊँ, तू आज इतनी सेक्सी लग रही है। मन मचल रहा है।"
काजल हँसने लगी, और उसने मेरे लंड को और प्यार से सहलाया। उसकी उंगलियों का स्पर्श मुझे और उत्तेजित कर रहा था। लेकिन मेरे दिमाग में फिर वही असुरक्षा का खयाल आया—काजल और मुकेश की दोस्ती। मैंने उसे और करीब खींचा, जैसे उसे अपने पास रखकर अपनी सारी शंकाएँ दूर करना चाहता था।
काजल: (हल्के से शरमाते हुए) " दिन का समय है। कोई आ गया तो?"
मैं: (उसके गाल पर चूमते हुए) "कोई नहीं आएगा, मेरी जान। बस तू और मैं हैं।"
काजल की साड़ी धीरे-धीरे खुलने लगी, और उसकी खूबसूरती मेरे सामने और निखर आई। उस पल में, मेरे दिमाग की सारी बेचैनी और असुरक्षा गायब हो गई।
पिछली रात की बात है, हमने अपने दोस्तों के साथ एक छोटी-सी पार्टी की थी। मेरे करीबी दोस्त मुकेश, जो पास की दुकान चलाता है, भी आया था। काजल और मुकेश की अच्छी बनती थी, और वो दोनों खूब हँसी-मजाक कर रहे थे। उनकी यह नजदीकी मुझे थोड़ा असुरक्षित कर रही थी, हालाँकि मैं जानता था कि यह सिर्फ दोस्ती है। फिर भी, मेरे मन में एक अजीब-सी जलन थी। हमने खूब हँसी-मजाक किया, खाना खाया, और देर रात तक गपशप चली। लेकिन मेरे दिमाग में काजल की खूबसूरती और उसकी साड़ी में वो अद्भुत अंदाज़ बार-बार घूम रहा था। रात को जब सब चले गए, तो मेरे मन में एक अजीब-सी उत्तेजना थी, शायद काजल की खूबसूरती और मुकेश के साथ उसकी हँसी-मजाक की वजह से।
काजल की खूबसूरती देखते ही बनती थी, मानो वो किसी चित्रकार की कृति हो। उसकी कमर पतली और लचकदार थी, लगभग 28 इंच की, जिस पर उसका गहरा नाभि और छोटा-सा तिल हर किसी का ध्यान खींचता था। उसके कूल्हे गोल और भरे हुए थे, करीब 36 इंच के, जो उसकी साड़ी या टाइट लेगिंग्स में और भी आकर्षक लगते थे। काजल के मम्मे सुडौल और उभरे हुए थे, लगभग 34 इंच के, जो उसकी टाइट टीशर्ट या ब्लाउज़ में हर धक्के के साथ लयबद्ध ढंग से हिलते थे, और उसके निप्पल्स तने हुए आसमान की ओर इशारा करते थे। उसकी छाती चौड़ी और आकर्षक थी, जो उसकी साँसों के साथ हर बार उभरकर और मादक लगती थी। काजल का चेहरा गोरा और नशीला था
सुबह का माहौल
सुबह जब मैं उठा, तो काजल पहले ही रसोई में चाय बना रही थी। मैं ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। बाहर हल्की बारिश की फुहारें थीं, और मौसम में ठंडक थी
ऑफिस में काम करते वक्त मेरा ध्यान बार-बार भटक रहा था। मैं सोच रहा था कि क्या काजल भी वैसी ही उत्तेजना महसूस कर रही होगी, जैसी मैं रात से महसूस कर रहा हूँ? मेरे दिमाग में बार-बार एक खयाल आ रहा था कि कहीं मुकेश, जो हमारा करीबी दोस्त है, आज सुबह घर तो नहीं गया? क्या वो और काजल... नहीं, नहीं, मैंने अपने दिमाग को झटका। ये सब सिर्फ मेरी असुरक्षा की वजह से थी। फिर भी, मन की बेचैनी कम नहीं हो रही थी।
आखिरकार, जब काम में मन नहीं लगा, तो मैंने मुकेश को फोन लगाया।
पहली बार में उसने फोन नहीं उठाया। मेरे दिमाग में फिर वही खयाल आया—कहीं वो घर तो नहीं गया? कहीं काजल के साथ...? मैंने खुद को शांत किया और फिर से फोन लगाया।
मुकेश: "हाँ भाई, कैसे याद किया?"
मैं: "कहाँ है तू?"
मुकेश: "अरे, दुकान पर हूँ। आज सुबह से थोड़ा व्यस्त हूँ। तू बता, सब ठीक?"
मैं: (राहत की साँस लेते हुए) "हाँ, बस यूँ ही। तूने तो रात को खूब मस्ती की थी!"
मुकेश: (हँसते हुए) "अरे, वो तो बनता है! काजल भाभी ने भी तो खूब खाना खिलाया। तू लकी है भाई, ऐसी बीवी मिली!"
मैंने फोन रख दिया, लेकिन मन अभी भी पूरी तरह शांत नहीं था। काजल और मुकेश की दोस्ती मेरे दिमाग में बार-बार आ रही थी। मैंने सोचा, जल्दी घर जाकर काजल से बात करूँगा।

घर वापसी
शाम को जब मैं घर लौटा, तो काजल दरवाजे पर थी।
काजल: (मुस्कुराते हुए) "आ गए आप? चलिए, मैं चाय बनाती हूँ।"
मैं फ्रेश होकर बेड पर बैठ गया और टीवी ऑन कर लिया। लेकिन मेरा ध्यान टीवी पर नहीं था। मेरा हाथ अनायास ही मेरी चड्डी में चला गया, और मैं सोचने लगा कि कैसे रात को काजल और मैं एक-दूसरे के करीब थे। मेरे मन में फिर वही उत्तेजना जागने लगी, लेकिन साथ ही मुकेश के साथ उसकी दोस्ती का खयाल भी आ रहा था। मैंने चड्डी नीचे खींची और धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरा लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। मैं सोच रहा था कि कैसे काजल की साड़ी में वो इतनी खूबसूरत लग रही थी, और मेरे दिमाग में रात की सारी बातें घूम रही थीं।
तभी काजल चाय लेकर कमरे में आई।
काजल: (हल्के से चौंककर, फिर हँसते हुए) "अरे! ये क्या कर रहे हो?"
मैं: (थोड़ा घबराते हुए) "अरे, तू... तू कब आ गई?"
काजल: (मुस्कुराते हुए, चाय का कप मेरी ओर बढ़ाते हुए) "लो, चाय पियो। इतनी फीलिंग आ रही है आज आपको?"
मेरा लंड अभी भी बाहर था, और धीरे-धीरे बैठ रहा था। काजल उसे देख रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारत भरी चमक थी। हम दोनों ने चाय पी, और मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया।
मैं: "काजल, ज़रा इसे सहला ना।"
काजल ने हल्के से हँसते हुए मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगी।
काजल: (मुस्कुराते हुए) "अरे, आज क्या हो गया आपको? इतनी जल्दी फीलिंग?"
मैं: (हँसते हुए) "क्या बताऊँ, तू आज इतनी सेक्सी लग रही है। मन मचल रहा है।"
काजल हँसने लगी, और उसने मेरे लंड को और प्यार से सहलाया। उसकी उंगलियों का स्पर्श मुझे और उत्तेजित कर रहा था। लेकिन मेरे दिमाग में फिर वही असुरक्षा का खयाल आया—काजल और मुकेश की दोस्ती। मैंने उसे और करीब खींचा, जैसे उसे अपने पास रखकर अपनी सारी शंकाएँ दूर करना चाहता था।
काजल: (हल्के से शरमाते हुए) " दिन का समय है। कोई आ गया तो?"
मैं: (उसके गाल पर चूमते हुए) "कोई नहीं आएगा, मेरी जान। बस तू और मैं हैं।"
काजल की साड़ी धीरे-धीरे खुलने लगी, और उसकी खूबसूरती मेरे सामने और निखर आई। उस पल में, मेरे दिमाग की सारी बेचैनी और असुरक्षा गायब हो गई।
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