जब यह कहानी मार्च में रुकी १०० वे भाग के बाद तो उस समय ही मैंने कहा था ये पॉज है, एक अल्पविराम, सौ सीढ़ी चढ़ने के बाद सुस्ताने जैसा
और अब जब फिर यह कहानी कुछ नए मोड़ों के साथ शुरू हो रही है तो मैं यह स्वीकार करना चाहूंगी की १०० वे भाग को ख़ास तौर से कुमुद की वेदना को लिखने के बाद मैं कुछ लिखने की हालत में थी भी नहीं
करुणा मेरे लिए कहानी का एक अंग है, एक आवश्यक अंग और कसौटी, कई बार ऐसे दुःख आते है जब लगता है सांप अपनी गुंजलिका में बाँध कर, कस कस हड्डी हड्डी कड़कड़ा कर तोड़ देता है, लेकिन जिंदगी जब तक जिन्दा हैं तब तक तो चलेगी न,
तो उस पॉज के बाद अब फिर ये कहानी शुरू हो रही है, और इसमें आप सब के प्यार का मनुहार का भी योगदान है, बहुत योगदान है तो अगला भाग होगा भाग १०१