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वाह कोमल मैमबुच्ची-..... फूफेरी बहन …सुमन
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और एक बार बियाह तय हो जाये तो घर का रंग बदल जाता है, महीने भर पहले से गेंहू, और अंजाज साफ़ करना, कूटना, पीसना और सब घर काम करने वालियों से भरा रहता था, कुछ मेहमान भी
और दर्जन भर काम करने वालियां, कहीं गेहूं सुखाया जा रहा है, पछोरा जा रहा है, पीसा जा रहा है, कहीं चक्की चल रही है, और साथ में जांते का गाना, बिना गाये काम सपड़ता नहीं और थोड़ी देर में गाना असली गारी में, जो सामने पड़ा, उसी पे
और सबसे ज्यादा दूल्हे की माँ, सूरजबली सिंह की महतारी, और वो खुद ही काम वालियों को उकसाती, कोई गाँव के रिश्ते से ननद लगती, कोई बहू, और उन्ही के साथ सूरजबली सिंह के एक रिश्ते की फूफेरी बहन, नाम तो सुमन था लेकिन सब लोग बुच्ची कहते थे। तो दूल्हे की बहन तो गरियाई ही जायेगी,
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बुच्ची के पीछे पड़ने का एक और कारण था, वो चिढ़ती बहुत थी। और अगर कोई ननद चिढ़े तो फिर तो भौजाइयां उसे, और गाँव का मजाक गाने तक नहीं रहता सीधे देह तक पहुँच जाता
और ऊपर से सूरजबली सिंह की माँ, और उन काम वालियों का साथ देतीं, बुच्ची को बचाने के बहाने,
' अरे बेचारी ये छिनार है तो इसका का दोष, एकर महतारी तो खानदानी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार, झांट आने के पहले गाँव भर के लौंडों का स्वाद चख ली थी, ( सूरज बली सिंह के फुफेरी बहन की महतारी, मतलब उनकी बूवा यानी उनकी माँ की ननद,... तो फिर तो गरियाने वाला रिश्ता हुआ ही )।
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और कोई नाउन कहारिन सूरजबली सिंह की महतारी क सह पाके और बोलती,
" हे बुच्ची, तोहार भैया लंगोट में बांध के रखे हैं, सबसे पहले तोहें खिलाएंगे, ....झांट वांट साफ़ कर के तैयार रहा "
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तो फिर सूरजबली सिंह की माई, मजा लेते बोलतीं,
" तो का हुआ, यह गाँव क तो रीत है, स्साली कुल लड़कियां भाई चोद हैं, सब अपने भाई को सीखा के पक्का कर देती हैं, बियाह के पहले तो इहो अपने भैया के साथे गुल्ली डंडा खेल लेगी, "
लेकिन मामला गाँव में एकतरफा नहीं रहता, जांता पीसती गाँव की कोई लड़की ( जो सूरज बली सिंह की माई की ननद लगती ) चटक के बोलती,
" अरे भौजी, ननद लोगन का बड़ाई करा, की भाई लोगन क सिखा पढ़ा के, अरे तभी तो कुल दूर दूर से हमार भौजाई लोग आती है , उनकी महतारी भेजती हैं गुल्ली डंडा खेलने के लिए। ....और लंगोट खोलवाने का काम काम तो देवर के भौजाई लोगन क भी है "
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और सूरजबली सिंह की माई पाला बदल के अपनी गाँव की बहुओं को ललकारतीं,
" हे देखा,.... इतनी भौजाई बैठी हैं, हमको तो कुछ नहीं है हम तो सास है। महीना भर बाद तोहार देवरानी उतरी तोहीं लोगन क कोसी,.... की ये जेठानी लोग कुछ गुन ढंग अपने देवर को नहीं सिखाई, इतने दिन में लगोट भी नहीं खोल पायीं अपने देवर का "
और बात सही भी थी, गाँव में कोई भी ऐसा लड़का नहीं था जो शादी के पहले कम से कम दस बारह, और दस बारह बार नहीं, दस बारह से,गन्ने के खेत में तो, कोई छोड़ता नहीं था, ... बस पेटीकोट उठा, पाजामा सरका और निहुरा के गपागप गपागप
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और उनमे भी ज्यादातर खूब खेली खायी काम करने वाली, तो कोई और शादी शुदा, लेकिन सूरजबली सिंह का लंगोट,....
मुझसे नहीं रहा गया और मैं अपनी सासों की गोल में पूछ बैठी, " तो सूरज बली सिंह का लंगोट खोला किसने"
अब तो वो हंसी का दौर पड़ा, बड़ी मुश्किल से सब लोग चुप हुए फिर ग्वालिन चाची ने बड़की नाउन ( गुलबिया की सास ) की ओर इशारा करके बोला
" इनकी देवरानी ने, .....इमरतिया। "
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Super dupr gazab update
Ab agar Imratia ne langot khol liya hai toh kabhi na kabhi Sugna bhi kholegi hi
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Thanks so much for your support and comments![]()
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Bahoot bahoot dhanyvaad aur sugna ka kissa to abhi shuru hua hai aage aage dekhiye hota hai kyaAre baap re .... u hi nahi apki kahaniyon ka intejar rehta hai.
Sandaar ...lajabaab....jabardast...Bahoot
आगे आगे देखिये होता है क्या,वाह कोमल मैम
प्रकरण की शुरुआत तो शानदार है और लगता है कि इमारतिया का मामला कुछ - कुछ इसी कहानी के एक पहलवान देवर से होली खेलने जैसा होगा।
खैर जो भी हो, पाठकों के मन को आप से ज्यादा कौन जनता हैं इसलिए लगता है आगे कहानी बहुत रोमांचकारी होने जा रही है।
अपडेट के इंतजार में।
सादर
Wonderful update. We all had been waiting to read Suguna's story. Time has come now.भाग १०२ - सुगना और उसके ससुर -सूरजबली सिंह
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सुगना की कहानी सुनानी तो है लेकिन बात कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा।
सुगना इस कहानी में आ चुकी है, पायल खनकाते, बिछुए बजाते, उनके और उनके ससुर सूरजबली सिंह की जिक्र भी थोड़ा बहुत लेकिन उसी समय मैंने आप मित्रों से वायदा किया था की सुगना और उनके ससुर का हवाल सुनाऊँगी पूरे विस्तार से, और उसी बीच मेरी मित्र आरुषि जी ने एक अच्छी लम्बी कविता चित्रों भरी ससुर और बहू पर पोस्ट कर दी।
उस समय भी मैंने वायदा किया था की ससुर बहू के इस रिश्ते पर मैं भी ट्राई करुँगी। इन्सेस्ट लिखना मुझे आता नहीं लेकिन सब मित्रों के कहने पर इस कहानी में कई प्रसंग जैसे पहली बार सगे भाई बहन का किस्सा अरविन्द और गीता के किस्से के रूप में आया,।
तो चलिए बहुत इधर उधर की बात हो गयी, अब आती हूँ मुद्दे पे लेकिन फिर वही बात, बात शुरू कहाँ से शुरू करूँ, और मैंने पहले ही बोल दिया था की अब काल क्रम से नहीं बल्कि एक एक बात पकड़ के, तो छुटकी के कबड्डी कैम्प में जाने के बाद याद नहीं पन्दरह दिन या महीने भर के बाद मैं गयी सुगना भौजी के यहाँ, शायद महीना भर हो ही गया था, तो सुगना भौजी खूब खुश।
बड़े आदर के साथ मुझे पलंग पे बैठाने लगीं, सिरहाने
" अरे नर्क भेजेंगी का , आपकी देवरानी हूँ , पहले आप बैठिये, आप गोड़ नहीं छुलवातीं, छोटी बहन की तरह रखती हैं लेकिन मेरा भी तो "मैं हाथ छुड़ाते बोली। पक्की सहेली, छोटी बहन की तरह, मानती थीं लेकिन थीं तो मेरी जेठानी ही न
लेकिन सुगना भौजी हाथ जोड़ के " आपकी, छाया की मदद से मेरी जिन्नगी लौटी है मैं तो तोहार गोड़ जिन्नगी भर धोऊंगी'
उस समय कुछ समझ में नहीं आया लेकिन बाद में पता चला की उनके ससुर ठीक हो गए हैं बल्कि पहले से भी तगड़े, एकदम जैसे जवानी वापस लौट आयी है और उनके साथ सुगना की ख़ुशी भी,
बताया तो था, जब ये किस्सा पहले आया था भाग ८२ प्रृष्ठ ८३० में ससुर उनके कमर के नीचे एकदम बेकार हो गए थे, छह महीने से, और वैसे भी तबियत नहीं ठीक रहती थी, सूरजबली सिंह ने पलंग पकड़ लिया था, बिस्तर से उठना मुहाल था, बस सब कुछ सुगना के जिम्मे, लड़का तो कतर में था, और गाँव में सूरज बली सिंह की देखभाल हो या सैकड़ो बीघा खेत बाग़ सब सुगना, लेकिन इतना ख्याल करती थीं बीमारी में ससुर का
लेकिन अब वो एकदम ठीक थे, बल्कि पहले से भी अधिक तगड़े हो के बिस्तर छोड़ा था उन्होंने,
बताउंगी सब बात, लेकिन अभी तो शुरू से, शुरू से मतलब एकदम शुरू से
पर या सब बाते बाद की है अभी से बताने से सब गड्डमगड्ड हो जाएगा।
पांच दिन जो मैं और सास मेरी साथ थे उस में सुगना के ससुर के बारे में बहुत कुछ तो मेरी सास ने बताया,.... लेकिन उनसे ज्यादा बड़की नाउन जो उम्र में मेरी सास से भी पांच दस साल ज्यादा ही थीं, गुलबिया की सास ने वो सुगना के घर की भी नाउन थीं और उनके ससुर के शादी भी कराने में वही,
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और ग्वालिन चाची ने भी, .....उन्होंने देखा तो नहीं था लेकिन सुना था उनके ससुर के शादी के पहले के दिन के बारे में ,.... सुगना की सास के बारे में
तो वही सब जोड़ जोड़ के,
और ये बात जितनी सुगना भौजी की है उतनी ही बाबू सूरजबली सिंह की भी है। वैसे तो ससुर बहू के किस्से में बस उम्र का अंतर, मौका और जवान माल को देखे के ललचाने का एक दो सीन और ससुर का घोड़े जैसा और बहू, लेकिन उसके पीछे का किस्सा भी तो होता है तो जो जो सुना है और कुछ बिना ज्यादा मिर्च मसाला के पता लगा बस वो सब सोच के आपके सामने,....
तो पहले सुगना भौजी के बारे में, पहले भी लिख चुकी हूँ एक बार फिर से लिख देती हूँ , उनके रूप जोबन का बखान और सब सच्चा
Ufffff Suguna.सुगना
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सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था,
सुगना ऐसी रसीली भौजाई पूरे गाँव बल्कि पूरे बाइस पुरवा में नहीं थीं।
... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं,... सास थीं नहीं।
घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
सुगना क जोबन जैसे गुड़ क डली, कोई नयी बियाही साल दो साल पहले गौने से उतरी, और जेकर मरद चार पांच महीने बाद चला गया हो,... अभिन लड़कोर न हो, जोबन चोली में टनाटन कसमसात हों, और वो जो जुबना उभार के छोट छोट चोली में,...
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तो का होगा जैसे गुड पे चींटे लगते हैं उसी तरह,... लेकिन सुगना जानती थी ये चोली के अंदर वाली दोनों गुड़ की डली गाँव क लौंडन क ललचाने के लिए तो ठीक हैं, लेकिन उसके आगे ज्यादा नहीं,.. हाँ देह उसकी गुड़ की जलेबी की तरह मीठी रसीली, भारी भारी कूल्हे और चोली फाड़ते जोबना क देख के , और ये जानते हुए की इन्हे दबाने मीसने वाला साल डेढ़ साल से बाहर है, कब आएगा, पता नहीं,... ऊपर से घर में टोकने वाली न सास न जेठान, आग लगाने वाली न कोई छोट ननद न बड़ी, और घर में सेंध लगाने वाला देवर भी नहीं
सुगना का,मस्त जोबन... सब लौंडो का पजामा टाइट रहता है. का पता भौजी कब केकरे आगे लहंगा पसार दें,., चटक चांदनी की तरह रूप के साथ सुगना की मिठास शहद ऐसी बोली में थी, ... और जो उससे चिपक गया, चाहे लड़का या लड़की वो छूट नहीं सकता था।
तो जब सुगना गौने उतरी, तो एक दो रिश्ते की सूरजबली सिंह की भौजाईयो ने मजाक में पूछा भी,
" ये उजरिया अस बहुरिया केकरे लिए लाये हो अपने लिए की,... बेटवा के लिए. "
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तो चलिए कुछ बातें सुगना के ससुर सूरजबली सिंह के बारे में भी