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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में भाग १०३ इमरतिया पृष्ठ १०७६
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Lagta hai mayi ne bhumika baandh di hai Suraj ke liyeभाग १०३ इमरतिया
२५,६२,२०३
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इमरतिया इस कहानी में कई बार आयी और फिर कई बार आएगी तो शुरू से कुछ बातें और फिर कहानी जहाँ छोड़ी थीं वहीं से धागे पकडूंगीं, यानी जब सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर की शादी की तैयारी चल रही थी, लेकिन पहले इस कहानी में मतलब, हमारे गाँव में जब गौने के बाद सुगना आयी थी लेकिन उसके साथ ही सबसे पहले मेरे गाँव के नाऊ ठाकुर लोगों के बारे में।
दस बारह घर थे, और पूरे बाईसपुरवा में सब की जजमानी, जो बड़े काश्तकार थे उन लोगो ने कुछ कुछ जमीन दे रखी थी, और कुछ फसल काटने पर, बाकी सब काम काज, प्रयोजन में मिलता ही था। गुलबिया का परिवार हम लोगों की पट्टी का काम देखता था और सुगना वाली पट्टी का इमरतिया का खानदान, वैसे ही बाकी दस बारह परिवारों में बटा था सब काम धाम। नाउन तो घर का एकदम हिस्सा होती थी, कोई काम उसके बिना हो ही नहीं सकता था।
तो बात इमरतिया की।
बात करीब साल भर पहले की थी, सूरज बली सिंह की शादी से करीब साल भर पहले। और जब उतरी तो परछन करने वालियों में सबसे आगे, सूरज बली सिंह की माँ, आखिर उनके नाउन की बहू थी , और उसका रूप जोबन आँख में उतर गया सबके।
सींक सलाई नहीं, भरी भरी देह, खूब गदराता जोबन, गोरा रंग, उमर में सूरज बली सिंह से साल दो साल छोटी ही होगी या समौरिया, लेकिन गाँव के रिश्ते से भौजी तो रिश्ता पहले दिन से ही भौजी का हो गया।
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मरद भी उसका कड़क जवान था लेकिन जैसा गाँव की और गाँव की नयी नई दुल्हनों की किस्मत, महीना भर नहीं गुजरा था, पंजाब में कटाई का काम चालू हो गया और वो ट्रेन पकड़ के, ….
अब एक की जगह दो परानी, खेती किसानी से इतना तो मिलता नहीं और नाउन के बिना तो अभी कुछ नहीं होता लेकिन नाऊ का रोज का काम तो रेजर और सैलून ने ले लिया।
इमरतिया को उसके मर्द के जाने के हफ्ते दस दिन बाद सूरजबली सिंह की माई ने बुलाया। उदास, पहले की परछाई सी आके जमीन पे बैठ गयी , बिन बोले टपटपाती आँखे सब कह रही थीं।
माथे पे हाथ फेर के सूरजबली सिंह की माई बोलीं, " अरे आय जाया करो, तनो हमार हाथ गोड़ मीज दिया करो, कउनो बात हो तो बोलो।
बारिश की धूप की तरह वो बहुत दिन बाद इमरतिया मुस्काई और सूरजबली सिंह की माई भी और हंस के बोलीं,
" अब लग रही हो नई बहुरिया की तरह, "
फिर आंगन में दाना चुगती दो चार गौरेया की ओर इशारा करके बोलीं,
" देखो हम गाँव क औरतों क जिन्नगी एही तरह, सुख के दो चार दाने इधर उधर बिखरे रहते हैं, बस वही चुग के काम चलाना पड़ता है। आय जाय करो, हमार तोहार दोनों क मन बहल जाएगा, कोई बात हो बताना जरूर। "
फिर धीमे से उसकी ठुड्डी उठा के बोली,
" समझ रही हूँ, भूख यह उमर में पेट से ज्यादा पेट से बित्ते भर नीचे वाले गड्ढे में लगती है , तो मरद तो किसके घर के नहीं चले जाते, और ससुरे लौट के भी नहीं जल्दी आते, बहुत हुआ तो चिट्ठी, मनीआर्डर लेकिन मरद न हो, देवर की कमी है क्या । जब तक देवरानी नहीं आती भौजी का जिम्मेदारी, "
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तबतक सुरजबली सिंह अखाड़े से लौटे लेकिन इमरतिया को देख के हलके से ठिठके पर उनकी माँ ने हड़काया,
" अरे तोहार भौजी हैं हैं नयकी भउजी, "
इमरतिया ने हड़बड़ा के उठने की कोशिश की, बड़के घर क लड़का, लेकिन सूरजबली सिंह की माई ने हड़का लिया
" अरे बैठों, छोट देवर हैं,… उनसे कौन "
सूरजबली सिंह एक पल के लिए रुके मुस्कराये, लेकिन फिर तुरंत ही अपने कमरे की ओर, पर वो मुस्कराहट न उनकी माई से छुपी न इमरतिया से।
Lagta hai ganne ka ras nichod hi legi Imratiaभउजी- देवर
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फिर तो दो चार दिन बाद से छुटकी नाउन, इमरतिया भउजी की बुलाहट शुरू हो गयी, कभी अचार डालना होता था तो कभी बड़ी बनानी होती थी, हफ्ते में दो तीन बार तो कम से कम और कभी वैसे भी आ गयी तो नयको तनी सर में तेल लगा दो, तो कभी गोड़ दबा दो और घंटो सूरजबली सिंह की माई उससे गप्प लड़ाती और अक्सर बात एकदम खुल के शुरू हो जाती
और उसे बुलाने के लिए जाते सूरजबली सिंह ही,
" भउजी माई बुलाई हैं " और एक दो बार के बाद इमरतिया भी समझ गयी देवर कुछ ज्यादा ही सोझ है, एकदम लजाधुर तो बिना चिढ़ाए छोड़ती नहीं
" अरे हमार गोड़ पिरात बा, ….ऐसे न आईब, कोरा में ले चला " और खिस्स से मुस्करा देती
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और सुरजू देवर झेंप जाते भौजाई क बदमाशी समझ के।
कभी खुद खींच के घने गन्ने के खेत के बीच में से ले जाती, पगडण्डी, पगडंडी ये बोल के कि जल्दी पहुँच जाएंगे और रस्ते में देह से देह रगड़ते बोलती
" हे देवर कभी अपने खेत क गन्ना खिलाओ न, सुना है बहुत मोटा, रसीला लम्बा होता है "
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बेचारे सूरजबली सिंह, झोंके में बोल जाते एकदम
" भउजी, इतना रस किसी गन्ने में नहीं निकलता,जितना हमरे गन्ने में है, और देखो मोट केतना है दस बीस गाँव में अइसन गन्ना न मिली "
लेकिन फिर समझ के भउजी किस गन्ने की बात कर रही हैं फिर से झेंप जाते, और इमरतिया और रगड़ती,गाँव की किसी लड़की का नाम लेकर जो उनकी रिश्ते में बहन लगती,
" बिन्नो को खिलाये हो आपन गन्ना,... बेचारी बैगन से काम चला रही है "
जब गाँव की भौजाइयों की छेड़खानी से बचने के लिए सूरजबली सिंह ने बँसवाड़ी के पीछे अपना डंड पेलने का अड्डा बनाया तो उसकी महक सबसे पहले इमरतिया को लगी, और वो अक्सर, आते जाते अब उधर से ही, सबेरे सबरे, एक दिन वो लंगोट कसरत के पहले बाँध रहे थे की इमरतिया की नजर पड़ गयी और वो दहल के रह गयी
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एकदम कड़ियल नाग, फनफनाता
इमरतिया ब्याहता थी, कितनी बार उसने देखा था, पकड़ा था अंदर लिया था, दबोच के उसका जहर निकाला था लेकिन ये तो एकदम अलग
बित्ते भर से कम का नहीं होगा, और मोटा कितना,सोच भी नहीं सकती थी, किसी मरद का ऐसा भी हो सकता है,... कईसे कोई लेगा इसे अंदर
सूरजबली सिंह की माई की सगी क्या कोई चचेरी बहू भी नहीं थी, उनके ससुर भी एक भाई और लड़का भी एक ही
और बेटा खेत खलिहान या अखाडा, दंगल
तो इमरतिया सच में बहू की तरह और सूरजबली सिंह की बड़की भउजी की तरह
तो अब थोड़ा फ़ास्ट फारवर्ड