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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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komaalrani

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छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

भाग १०२ - सुगना और उसके ससुर -सूरजबली सिंह पृष्ठ १०७३

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
Last edited:

Shetan

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Update का इंतजार है कोमलजी.

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Random2022

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C
जब यह कहानी मार्च में रुकी १०० वे भाग के बाद तो उस समय ही मैंने कहा था ये पॉज है, एक अल्पविराम, सौ सीढ़ी चढ़ने के बाद सुस्ताने जैसा

और अब जब फिर यह कहानी कुछ नए मोड़ों के साथ शुरू हो रही है तो मैं यह स्वीकार करना चाहूंगी की १०० वे भाग को ख़ास तौर से कुमुद की वेदना को लिखने के बाद मैं कुछ लिखने की हालत में थी भी नहीं

करुणा मेरे लिए कहानी का एक अंग है, एक आवश्यक अंग और कसौटी, कई बार ऐसे दुःख आते है जब लगता है सांप अपनी गुंजलिका में बाँध कर, कस कस हड्डी हड्डी कड़कड़ा कर तोड़ देता है, लेकिन जिंदगी जब तक जिन्दा हैं तब तक तो चलेगी न,

तो उस पॉज के बाद अब फिर ये कहानी शुरू हो रही है, और इसमें आप सब के प्यार का मनुहार का भी योगदान है, बहुत योगदान है तो अगला भाग होगा भाग १०१
Thanks for resuming the story.
Ab duhra shatak ka wait rahega. 200 page pr next rest
 
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Random2022

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औरत मरद
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जितना कस के इन्होने मुझे दबोचा, उससे ज्यादा कस के मैंने

हम दोनों पागल हो गए थे, जैसे न जाने कब के बिछुड़े मिलें,



जैसे मरद कमा के लौटता है तो माई के लिए साड़ी, बहन के लिए कपडा, सबके लिए कुछ न कुछ, लेकिन औरत तो बस अपना मरद ढूंढती है, और रात में मिलने पर बस कस के भींच लेती है।
मरद परदेस का किस्सा सुनाता है, लेकिन औरत को तो बस उसकी आवाज सुननी होती है, क, ख,ग, घ, बोले तो भी वैसे ही मीठी,... इतने दिन बाद वो आवाज, और फिर प्रेम का रस कूप खोल देती है, जैसे माँ को मालूम होता है बेटे को खाने में क्या क्या अच्छा लगता है वैसे औरत को भी उसके देह का पहाड़ा, ककहरा,



बस एकदम उसी तरह हम दोनों एक दूसरे को भींचे, बिना कुछ किये बड़ी देर तक, फिर पहल मैंने ही की, पहला चुम्मा लेने की


लेकिन बात मैंने जो की बस वही, टर्म्स और कंडीशन अप्लाइड वाली, मन और तन दोनों का मेल हो, और हम दोनों के साथ तो गौने के बहुत पहले से जब मैंने इन्हे पहली बार देखा था, बीड़ा फेंकते समय, उस समय जयमाल का चक्कर तो था नहीं, बस तब से मैं समझ गयी थी



असल में नयी नयी दुल्हन की गंध, रूप, रस, रंग सब अलग ही क्यों लगता है,


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मरद के देह की गंध, .....जब पहली रात ही मरद उसे रौंद देता है, जैसे कुम्हार जब माटी रौंदता है तो माटी फिर ताल पोखरा की न होकर कुम्हार की हो जाती है, कुम्हार की उँगलियों का जादू उसमें रच जाता है बस उसी तरह मरद की देह की गंध, रोम रोम में बसी, नयी दुलहिनिया भी मद में जैसे चूर और उसकी देह से भी मद बरसता रहता है, महकता रहता है।

और उन सबसे बढ़ के मरद की मलाई, गौने के अगले दिन जब मैं नहा रही थी, एक बूँद मलाई मेरे खजाने से लुढ़कती पुढ़कती बाहर निकली, इतना अच्छा लगा देख के, लेकिन अगले ही पल मैंने कस के भींच लिया और बोली,

' पड़ी रह चुप चाप अंदर, मेरे मरद की मलाई है ऐसे ही थोड़े छोड़ दूंगी, "
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और ऊपर से मेरी सास, और बूआ सास, मैं गाँव की औरतें सब, सास ,जेठानी, ननदें, ज्यादातर कुँवारी कुछ तो एकदम बच्चियां, और एक बूँद इनकी मलाई सरक के रेंगते रेंगते, मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी और जब वो लहंगे के नीचे से, मेरे महावर लगे पैरों पे, सबसे पहले बूआ ने देखा तो वो जोर से मुस्करायीं, फिर मेरी जेठानी और बाकी नंदों ने भी, बोला किसी ने कुछ नहीं लेकिन सब जिस तरह से मुस्कायीं,



मेरे चेहरे पे जैसे किसी ने ढेर सारा ईंगुर पोत दिया। एकदम लजा गयी मैं और अब तो ननदों को मौका मिल गया, दो चार तो खिस्स खिस्स



बाद में मेरी सास और बूआ सास ने छेड़ा,

" काहें इतना लजा रही थी अरे सबको मालूम है गौने की रात का होता है " और फिर सास ने ठुड्डी पकड़ के प्यार से बोला,

" अरे नयी दुलहिनिया के तो मांग में सिन्दूर दमकता रहे और बुर में से मलाई छलकती रहे यही तो नयी दुल्हन का असली सिंगार है "।
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" इसका मतलब की मरद कचकचा के प्यार करता है " बूआ सास ने जोड़ा।



उसके बाद से तो मैं नहाते समय खूब ध्यान से, सब सफाई बस ऊपर ऊपर से और बुर की दोनों फांके कस के भींचे रहती थी और अपनी बचपन की सहेली को हड़काती भी थी,

' आएगा न रात को खोलने वाला, फ़ैलाने वाला, तब तक तुम दोनों गलबहिंया डाल के एकदम चिपकी रह "


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और रात का कौन इन्तजार करता है, तिझरिया को ही जेठानी मुझे मेरे कमरे में पहुंचा आयी और थोड़ी देर में अपने देवर को भी भेज दिया, फिर तो,… और एक दो दिन में शादी के मेहमान चले गए तो उसके बाद न दिन देखें न रात,… और ज्यादा देर हो जाए तो मैं खुद ही चकर मकर,… जैसे बछिया हुड़क रही हो, और सब लोग ये नजर पहचानने लगे थे, यहाँ तक की मेरी नौवें में पढ़ने वाली छुटकी की समौरिया ननद आँखे नचा के बोलती,

" भौजी, भेजती हूँ अभी भैया को, "



साल भर करीब हो गया था मुझे इस घर में आये लेकिन मेरे अंदर अभी भी वही हुड़क रहती थी,
Nayi nayi shadi me esi hi tadap hoti hai. Kahi bhi kabhi bhi
 

Random2022

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दुष्ट,,,तड़पाना है तड़पा लो
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और वो रुक गया,

उसने गियर चेंज कर दिया, अब दोनों हाथ दोनों जोबन पर मेरे कस कस के चूँचियाँ निचोड़ी जा रही थीं, मसली जा रही थी और जीभ से सपड़ सपड़ मेरी चूत वो चाट रहा था, कभी क्लिट भी चूस लेता तो कभी जीभ अंदर धकेल देता

अबकी तो मैं दो मिनट में ही झड़ने के किनारे थी की वो फिर रुक गया और उसने मुझे खींच के, अब मेरा चूतड़ एकदम पलंग के किनारे, फिर जितनी तकिया, कुशन थे वो सब मेरे चूतड़ के नीचे, गद्दे से कम से कम एक फ़ुट ऊंचा मेरा चूतड़,

और वह अब फिर रुक गया पर मुझसे नहीं रुका गया

" कर न स्साले "
लेकिन वो जस का तस और मैं समझ गयी ये क्या सुनना चाहता है ,

" स्साले तेरी माँ का, ....पेल न अब काहे को तड़पा रहा है "
पर वो बदमाश, मुझे देखता रहा, मुस्कराता रहा और फिर मेरी कलाई से भी मोटे खूंटे को हाथ से पकड़ के बस कभी मेरी फुदकती फांकों पे रगड़ता तो कभी फूलती पिचकती क्लिट पे और जो वो सुनना चाहता था, मुझसे, उकसा के बोला,

" क्या पेलू, कहाँ पेलू, बोल साफ़ साफ़ "
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" अरे और कौन घर में है, तेरी महतारी तो है नहीं जो उसके भोंसडे में पेलोगे, पेल स्साले अपनी महतारी की बहू की बूर में " जोर से अपनी जाँघे फैलाते मैं बोली,


लेकिन वो आज कुछ ज्यादा ही, मेरी पतली कमर पकड़ के बस वो मूसल मेरे मुहाने पे रगड़ता रहा, और मुझे लगा की मैं दो बार झड़ते झड़ते रुकी हूँ, "तो क्या इसी तरह बाहर बाहर से ही झाड़ देगा, ये स्साला बहनचोद"

उईईई उईईई,... नहीं,..... जान गयी
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मैं जोर से चीखी। मेरा मरद आज ज्यादा ही गरमाया था। जब मैं सोच भी नहीं सकती थी अचानक दोनों अंगूठों से उसने मेरी फांके फैलायीं और हथोड़ा ठोंक दिया। जबरदस्त कमर की ताकत है मेरे सास के पूत में, और मैंने जो महतारी की गारी दे दी उसने और आग में घी का काम किया।

वो धकेलते रहे, ठेलते रहे, मैं चीखती रही चिल्लाती रही, करीब आधा भाला धंसा के ही वो रुके, और प्यार से मेरी ओर देखा। मैंने गुस्से से उनकी ओर देखा, लेकिन उस आदमी पे गुस्सा करना बड़ा मुश्किल था, मैं मुस्करा पड़ी, वो हंस पड़े और झुक के मुझे चूम लिया।

और जब होंठ अलग हुए तो मेरी आँखों में आँखे डाल के उन्होंने पूछा, और अबकी वो सीरियस भी थे कन्सर्न्ड भी

" हे ज्यादा दर्द तो नहीं हुआ "

अबकी मैं सच में गुस्सा हो गयी और उन्हें अपनी बाहों में कस के भींच के, अपने नाख़ून उनके कंधो में गड़ाती बोली,

" स्साले, बहन के भंडुए , मुझे दरद मेरा मरद नहीं देगा तो और कौन देगा, और मेरा मरद मुझे दरद नहीं देगा तो और किसको देगा, …उसकी महतारी का तो ताल पोखरा से भी चौड़ा है, मेरे मरद के मामा ने मायके से ही खोद खोद के, मैंने खुद ऊँगली डाल के देखा है, न बिस्वास हो तो पहर भर बाद आएँगी, डाल के देख लेना । मेरे मरद की मरजी जो चाहे वो करे, समझ ले ये बात हरदम के लिए,… "


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और अपनी बात को और अच्छी तरह समझाने के लिए मैंने उन्हें कस के भींच लिया।

वो सास के पूत थे तो मैं भी उसी सास की दुलारी बहू जिसे उन्होंने अपने सब गुन ढंग सीखा दिए थे। मेरी प्रेम गली ने उस दुष्ट मोटू को जकड़ लिया निचोड़ लिया और मैं अपने जुबना को जिसके वो दीवाने थे, कस कस के उनकी छाती में रगड़ने लगी।


और अबकी चुम्मा मैंने लिया और इस तरह की मेरे सास के पूत की बोलती बंद हो जाए, अपनी जीभ उसके मुंह में ठेलकर और कचकचा के उनके होंठ काट के।

और अबकी धक्का मैंने मारा नीचे से, पूरी ताकत से चूतड़ उछाल के और एक इंच और मेरी रामकली ने अपने मोटू को लील लिया। धक्को का काम उस मरद ने मेरे ऊपर छोड़ दिया और बाकी कामो में लग गया, इतनी लम्बी चौड़ी देह, रोम रोम रस का कूप और सब की सब मेरे पिया की जमींदारी, उसका खेत जब चाहे तब जोते।



लोग कहते हैं मर्दो के एक सेक्स आरगन होता है मेरी सास के इस पूत के कम से कम दस थे।

होंठ निपल चूस रहे थे मेरे

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और दूसरा जोबन मेरे मरद के हाथ कभी सहलाता, कभी निचोड़ता और दूसरा हाथ कभी सांप की तरह कभी बिच्छी की तरह मेरी देह पर डोल रहे थे और वो जहाँ चाहता, कभी सहला के कभी दबा के कभी चिकोटी काट के डंक मारता,…

और मोटा खूंटा तो अंदर घुसा ही था।



कुछ देर में ही हम दोनों देह के इस खेल को खेल रहे थे, कभी ऊपर से वो धक्का मारते, तो कभी नीचे से मैं धक्का मारती, कभी वो मेरी दोनों पतली कोमल कलाइयों को पकड़ के पूरी ताकत से हचक के धक्का मारते, चुरुर मुरुर करती आधी दर्जन चूड़ियां तो दरक ही जातीं। जाँघे फटी पड़ रही थीं, पूरी तरह मैंने फैला रखी थी, और फिर



उन्होंने मुझे दुहरा कर दिया।

बाकी सब बदमाशी बंद, मेरी दोनों टाँगे उनके कंधे पे, उनके दोनों हाथ मेरी पतली कमर पर, और खूंटा आलमोस्ट बाहर निकाल के क्या धक्का मारा उन्होंने , हथौड़ा सीधे बच्चेदानी पे लगा। सुपाड़ा था भी खूब मोटा, मेरी मुट्ठी जैसा और फिर इत्ती ताकत से लगा, मेरी पूरी देह हिल उठी


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और अबकी जब मैंने झड़ना शुरू किया तो झड़ती रही, तूफ़ान में कांपते पत्ते की तरह। और एक बार झड़ चुकने के बाद जैसे एक बार भूकंप आने के बाद भी कुछ दिनों तक झटके आते रहते हैं, मेरी देह भी रुक रुक के कांपती रही, मेरी योनि कभी टाइट होती कभी ढीली होती।

हाँ गनीमत थी , मेरे झड़ते समय वो रुक जाते और थोड़ी देर बाद छोटे छोटे चुम्बन के पग धरते उनके होंठ मेरे उरोजों की नसेनी चढ़ के निपल के शिखर पर कभी जीभ से फ्लिक करते , कभी बस चूम लेते तो कभी जोर से चूसते



और मैं एक बार फिर पागल हो गयी, उन्ही धक्को के लिए, हलके से चूतड़ उठा के मैंने इशारा किया और तूफ़ान फिर चालू हो गया।



लेकिन अगर वो मेरी सास के पूत थे तो मैं भी अपनी सास की बहू थी और बुर टाइट करने की जो तरकीब मेरी सास ने ऊँगली डाल डाल के प्रैक्टिस कराई थी, बस वही, कभी मैं निचोड़ती, कभी छोड़ती और एक बार जब उनका पूरा मूसल अंदर था मैंने कस के चूत को भींच लिया



" स्साले मजा आ रहा है, चोद न,... अब नहीं छोडूंगी " मुस्करा के मैं बोली।

" मजा तो बहुत आ रहा है, और तुझे नहीं चोदुँगा तो किसे चोदुँगा, आखिर मेरी सास ने तुझे भेजा किस लिए मेरे साथ कार में बैठाकर " मुस्करा के सास की दुहाई देते वो बोले ,



लेकिन मेरी पकड़ जबरदस्त थी, पर वो मेरा मरद सिर्फ मेरी सास का पूत नहीं था,अपनी सास का दामाद भी था, और शादी के पहले ही मेरे घर के सब लोगों ने दल बदल कर लिया था, मेरी माँ अब मेरी माँ नहीं इनकी सास थीं, मेरी बहने इनकी साली , और सास और साली ने मिल के मेरे बारे में एक एक छोटी छोटी चीज, मेरी हर कमजोरी, मुझे गुदगुदी बहुत लगती है कहाँ छूने पे सबसे ज्यादा लगती है सब कुछ



और उस लड़के ने गुदगुदी लगानी शुरू कर दी, मैं लाख कहती रही फाउल पर वो मुस्करा कर बोले , " एवरीथिंग इज फेयर इन लव "



और एक बार मेरा हंसना शुरू हुआ तो मेरी पकड़ ढीली और इनके धक्के तेज



दस मिनट तक नान स्टाप चुदाई, धुनिया जैसे रुई धुनता है उस तरह धुन के रख दिया उस बदमाश ने


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पर अबकी हम दोनों साथ साथ झड़े और उनकी सारी मलाई, एक एक बूँद मेरी बिल ने गटक ली। उसके बाद भी मैंने उन्हें बाहों में भींचे रखा, मेरी रामकली ने उस मोटू को निचोड़े रखा। बहुत देर बाद वो हटे और फिर हम दोनों पलंग पर एक साथ लेटे बिन बोले, बतियाते रहे।



कुछ उनसे, कुछ ' उससे'।
Kya tabadtod , palangtod pyar hua hai. Laajawab
 
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छुटकी- जबरदस्त खुश खबरी

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लेकिन मेरी सास फिर बच गयीं, इनकी सास का फोन आ गया।

लेकिन पहली बार समधन लोगों में गाली गलौज नहीं हुयी, और मेरी सास का चेहरा ख़ुशी से चमक गया, और उन्होंने स्पीकर फोन ऑन कर दिया।



और फिर जो खबर सुनाई पड़ी, तो मारे ख़ुशी के मेरी और इनकी दोनों की हालत खराब, मैंने इन्हे कस के दबोच लिया, बहन मेरी थी लेकिन पहले इनकी साली थी।

खबर ही ऐसी थी, साल दो साल पहले छुटकी स्टेट लेवल पे अंडर फिफ्टीन पे बस सेलेक्ट होते होते रह गयी थी, लेकिन उसी समय एक सेलेकटर ने अपनी मज़बूरी बताई थी की कुछ प्रेशर हैं लेकिन जल्दी ही उसका भी नंबर,

माँ ने बोला की छुटकी का कबड्डी की स्टेट टीम में सेलेक्शन हो गया था।
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अभी थोड़ी देर पहले स्कूल से खबर आयी थी, फिर लखनऊ से भी और उसके बाद तो फोन पे फ़ोन।

लेकिन चक्कर ये था की दो दिन के अंदर उसे लखनऊ पहुंचना था, वहां पंद्रह दिन का कैम्प था, के डी सिंह बाबू स्टेडियम में और स्पोर्ट्स हॉस्टल में ही रहना खाना। और उसके बाद टीम को बंगलौर जाना था इंटर स्टेट कैम्प के लिए। डेढ़ दो महीने का चक्कर कम से कम



और उसी समय छुटकी का फोन आया इनके पास, बस जीजू जीजू बोल रही थी।

मैंने डांटा तो आगे की बात बोली,

बंगलौर में ही एक और सेलक्शन होगा, इंटर स्टेट के बाद, नहीं नहीं नेशनल टीम का नहीं।

वो लोग यंग टैलेंट्स, मतलब जिनकी एज कम हों, कभी नेशनल में न रही हों , फर्स्ट या सेकेण्ड टाईम इंटरस्टेट खेल रही हों वैसी २४ लड़कियां चुनते, और उनको ग्रूम करते। अभी नहीं, लेकिन दो चार महीने बाद पटियाला में एक दो तीन महीने की ट्रेनिंग, फिर कई मैच, मतलब वो स्पोर्ट आथारिटी की ही जिम्मेदारी में।



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तो मतलब अभी सिर्फ महीने दो महीने की बात थी,… उसके बाद अगर छुटकी का उस यंग टैलेंट वाले में हो गया तो फिर तीन चार महीने बाद पटियाला जाना पक्का,… लेकिन अभी सिर्फ महीने दो महीने की बात थी।



लेकिन मेरी सास ने अपने पूत को हड़का लिया,


" ऐसे फोनियाते ही रहोगे, या जा के बेटी को ले भी आओगे, समधन बोलीं हैं आज ही निकलना है "


और थोड़ी देर में मेरी बहन अपने जिज्जा की दुचक्की पे पीछे चिपक के बैठी, और जैसे ही छुटकी अन्दर आयी मेरी सास के पास इनकी सास का फोन फिर घनघनाया



दोनों समधन में कुछ देर ही बात हुयी और मेरी सास बोलीं,

" आपका दामाद है किसलिए, खाली होली खेलने के लिए जिज्जा बने हैं, …बस अभी, "



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और पता चला की छुटकी को न सिर्फ घर पहुंचाना था बल्कि अभी अभी लखनऊ से फोन आया था की कल सुबह ही लखनऊ में रिपोर्ट करना है। रात में ११ बजे कोई नाइट बस चलती चलती है, भोर भिन्सारे पहुंचा देगी, तो मामला ये था की छुटकी लखनऊ किसके साथ जाए। माँ मंझली को अकेले छोड़ के जाना नहीं चाहती थीं



तो बस घंटे भर के अन्दर छुटकी निकल के,…



मेरा मन बहुत खदबदा रहा था उसके किस्से सुनने के लिए, क्या रहा अरविन्द और गीता के साथ, कैसे बीते पिछले छह सात दिन

जान बूझ के मैंने लाख चाहते हुए भी अपनी छोटी बहन को पांच दिन तक घर के आस पास भी फटकने नहीं दिया था, मन पर मनो भारी पत्थर रख के, लेकिन घर की इज्जत की बात थी और ननद को गाभिन करने की और मैं नहीं चाहती थी की उसकी कानोकान खबर भी किसी को हो, न वो घर आयी न मैं उससे मिली, न उसके जीजा, और जब ननद हमार गाभिन होक ख़ुशी ख़ुशी अपने ससुरे अपने मर्द के साथ गयीं, पहुँच गयी, होने वाले मुन्ना की दादी और बूआ से मिल ली, उसके बाद ही,



मेरी सास छुटकी को अपने हाथ से खिला रही थीं और वो बस ये बोल पायी की

अरे दी बहुत मजा आया और बैंगलोर से लौट के सीधे यही आउंगी। और सिर्फ गीता दी के साथ नहीं, दो दिन तो मैं नैना दी की ससुराल भी हो आयी और फिर फुलवा की छुटकी बहिनीया के साथ भी,.. एक दिन सब बताउंगी

मैं सास को देख के मुस्करा दी और सास मुझे, बिन बोले हम दोनों समझ गए।

मेरा भोर का सपना सौ फीसदी सच होने वाला है, उस सपने में यही तो था, ननद जी के ससुराल जाने के बाद छुटकी के कबड्डी में स्टेट टीम में सेलेक्शन की खबर आयी और ये छुटकी को ले के, ….और उसके बाद अपनी ससुराल से छुटकी को ले के लखनऊ, ….लेकिन असली बात तो इनके लखनऊ से छुटकी को छोड़ के आने के बाद की थी सपने में,



और अगर अब तक का सपना सच हुआ तो वो भी होगा, ये मेरी सास का पूत, सपने में मेरी सास के साथ, …

सास का पूत सास के सास के साथ,



लेकिन सास ने सपने का अंत बताने नहीं दिया था और हड़का लिया था, " अरे पगलिया, तोहार माई को चुदवा चुदवा ले एक से एक मस्त बिटिया जन्मने से फुरसत मिलती तो समझातीं, अरे भोर क सपना सच होता है, सोलहों आना सच लेकिन बताने से असर कम हो जाता है, तो अकेले में भी कभी मत बोलना की का सपन देखी थी, तू समझ गयी, हम समझ गयी।



और अब मेरी सास भी मान गयी थीं, मन बना लिया था, बहू के सामने, ….बहू के मरद के साथ,… घपाघप, घपाघप, और एक बार नहीं, कभी कभी नहीं रोज

होगा होगा जैसे इनका मिलन इनकी सगी बहिनिया के साथ हुआ, और गाभिन कर के अपने बहनोई के साथ ये भेजे, एकदम उसी तरह से



खूब बिस्तार से बताउंगी, लेकिन वो सुभ घडी आने तो दीजिये, अरे हमरे सामने,…. हमारी सास अपने दामाद के साथ तो इनकी सास के दामाद तो उनहुँ से बीस नहीं पच्चीस हैं,
Intejaar rahega is shubh ghadi ka. Vese mujhe maa bete pr story achhi nhi lagti. Lekin apne jis tarike se story ka context set kiya hai, mujhe bhi intejar hai us waqt ka
 

Random2022

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मेरी ससुरार का गांव -






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घर घर की कहानी
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और फिर गाँव का हर किस्सा, मेरे जमाने का ही नहीं उनके ज़माने का,

यानी उनकी गाँव के रिश्ते की ननदें, मेरी बुआ सास, उनकी जेठानिया, मेरी चचिया सास सब, लेकिन ज्यादातर उनकी ननदों का और एक से एक हॉट किस्से, और गाँव के मर्दो के भी



एक दिन मैंने उन्हें ककोल्ड टाइप कोई बात बतायी, कुछ मरद होते हैं की उनके सामने कोई दूसरा मरद उनकी औरत पे चढ़े तो उन्हें अच्छा लगता है, कई तो अपने हाथ से पकड़ के अपनी मेहरारू की बिल में


मेरी सास हँसते हुए लहालोट, मुझे दबोच के कस के चूमते हुए बोलीं
" अरे तुम तो पढ़ी लिखी, पढ़ी बात कह रही हो, मैं तो आँखों देखी, तुम भी उनको देखी हो मिली हो और जो अपने मरद के सामने दूसरे मर्द के बीज से जुड़वाँ तोहार ननद है उनहू से, "


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और जब उन्होंने नाम बताया तो मेरे तो पैरों से जमीन निकल गयी, दोनों जुड़वा बहने मेरी मंझली की उम्र की, इस साल दोनों का दसवा था

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हम सब भौजाइयां उन दोनों को छुई मुई कहते थे, लजाती इतनी थीं और गुदगुदी भी दोनों को खूब लगती थी, वैसे तो कहीं शहर में , लखनऊ, इलाहाबाद कही, लेकिन दोनों अपने ननिहाल गर्मी की छुट्टी में महीने भर और जाड़े में भी दस पंद्रह दिन, तो सबसे खूब घुली मिली और उसके अलावा, शादी बियाह तीज त्यौहार,



और गाँव हो या शहर, ननदें जितनी छिड़ती हैं, लजाती हैं मजाक से उछलती है भौजाइयां उतनी ही ज्यादा और गाँव में तो और ज्यादा खुल के ही

कोई नाउन कहारीन उन दोनों को देख के चिढ़ा के गाना शुरू कर देती है



" बिन्नो तेरी अरे बिन्नो तेरी भो, बिन्नो तेरी भो, "



और वो दोनों चिढ के अपनी माँ से शिकायत करतीं, ' मम्मी देखिये भौजी छेड़ रही हैं "


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तो कोई भौजाई और आग लगाती , " तो तुम दोनों को मालूम है क्या, भो से क्या, "



और वो कहारिन छेड़ती " अरे अभी से भोंसड़ा हो गया है क्या, जो भो से,... और फिर गाना पूरा कराती



" बिन्नो तेरी भोली सुरतिया, बिन्नो तेरी बू , बिन्नो तेरी बु "

एक बार मैं और पीछे पड़ गयी, मैंने गुलबिया के इशारा किया और उसने फ्राक उठा दी और मैंने चड्ढी पकड़ के, सर सररर , नीचे और गुलाबी दरवाजा दिख गया '

" अरे झूठे तुम लोग भोंसड़ा कह रही थी देख अभी तो झांटे भी ठीक से नहीं आयी हैं " दोनों को चिढ़ाते मैं बोली। ननद तो ननद। ननद की उम्र थोड़े ही देखि जाती है


अगले दिन दोनों शलवार पहन के आयीं तो बस एक भौजाई ने एक हाथ पकड़ा और दूसरे ने दूसरा और आराम से मैंने धीरे धीरे शलवार का नाडा खोल दिया।


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वो बेचारी अपनी माँ से शिकायत करतीं लेकिन हम सब की बुआ सास, उलटे हम सब का साथ देतीं, बोलतीं

" अरे तुम सब क भौजाई बहुत सोझ हैं, हम लोगन क भौजाई तो दो दो ऊँगली एक साथ सीधे अंदर तक डाल के हाल चाल लेती थीं, मलाई चेक करती थीं। तुम सब क भाई रोज तोहरे भौजाई क नाड़ा खोलते हैं,... तो उन सब का भी तो हक़ है "

और रतजगे में हम सब की सास लोग बुआ की खूब, सब से पहले उन्ही का पेटीकोट खुलता था।

लेकिन वो खूब हंसमुख, खुल के मजाक वाली, तो मेरी सास ने उन के कुंवारेपन से लेकर कैसे उनके मरद को दूसरे को उनके ऊपर चढ़ाने का



.....सुनाऊँगी, वो सब किस्सा भी सुनाऊँगी और मेरी सास ने न सिर्फ अपनी ननदों का बल्कि गाँव के मर्दो का भी



एक दिन मैंने उनसे सुगना के ससुर का , हम दोनों सब्जी काट रहे थे, तो एक एक किस्सा और तभी ग्वालिन चाची आ गयीं और गुलबिया की सास तो और, सुगना के ससुर सूरजबली सिंह का जिससे, इमरतिया, उस का भी पूरा किस्सा

तो गाँव के एक एक मरद का, ....पठान टोली के सैय्यद लोगो का भी

मेरी सास के साथ एक बहुत अच्छी बात थी, कोई टोला हो कोई पुरवा, कोई बिरादरी, बरात बिदा करनी हो, दुल्हिन उतारनी हो या बेटी क बिदाई , वो सबसे आगे, और अब उनके साथ मैं भी। भले मैं साल भर पहले की ही गौने की उतरी लेकिन हर जगह, सुख दुःख में सास के साथ मैं भी



और सास की सहेलियां थीं, ग्वालिन चाची, गुलबिया क सास, बड़की नाउन, हों या पंडाइन चची सब पुरवा में , सब से मेरी भी तो सास के सामने वो लोग खुल के बात करतीं, और मुझे भी गाँव भर के मर्दो का औरतों का हाल और पांच दिन में बहुत कुछ पता चला



तो पांच दिन के बाद मेरे सास का बेटा आया और फिर,....



बताउंगी, वो सब किस्सा भी

लेकिन उसके पहले दो बातें एक तो अब तक कहानी काफी कुछ क्रमानुसार चल रही थी एक एक दिन की हाल चाल जैसी लेकिन अब एक प्रकरण शुरू करुँगी तो उसके कुछ हिस्से मेरे गाँव में आने के पहले के होंगे तो कुछ बाद के लेकिन वो सब एक साथ ही और एक किस्सा ख़त्म होने के बाद दूसरा और छुटकी वाला सबसे बाद में जब वो बैंगलोर से लौट आएगी तो



और दूसरी बात


अगला किस्सा होगा सुगना और उनके ससुर का,


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कुछ झलक तो पहले मिल गयी थी बस बात वहीँ से शुरू करुँगी
Intejar rahega agle part ka
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३७, और दंगा नहीं हुआ, पृष्ठ ४१९

अपडेट पोस्टेड,

कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 

komaalrani

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वाह याद आ गई तुझे अपनी वाली रात. खूब रगड़ाई तू तो हम्म्म्म... और ऐसा मौका कौन नांदिया छिनार छोड़ेगी. वही सासु ठीक ही तो बोलती है. मांग मे सिंदूर और दोनों टांगो के बिच मलाई ना हो तो नई दुल्हनिया केसी.

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komaalrani

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अरे पगली. ऐसे तो तेरा पूरा परिवार एक नंबर का चाटोरा है. देखा नहीं तेरा मरद कैसे तेरी नांदिया की लेने से पहले चाट रहा था. जबरदस्त अपडेट.

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बहुत बहुत धन्यवाद

आपके कमेंट पढ़ के लिखने सफल हो जाता है, एक एक लाइन, एक एक शब्द पर आप ध्यान देती हैं और कमेंट भी एकदम सटीक
 

komaalrani

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Welcome back komal ji, Bahut shandar update, ab next update me maa beta aur bahu ka threesome karwaiye please
अगले अपडेट से सुगना और उनके ससुर सूरजबली सिंह का किस्सा शुरू होगा जो शायद आठ दस भागो में कम से कम चलेगा

सुगना भौजी और उनके ससुर के बारे में पहले भी इस कहानी में जिक्र आ चूका है

भाग ८२ पृष्ठ ८३० में

सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था, ... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं, सास थीं नहीं। ननद बियाहिता। घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
ससुर के सामने अभी भी हाथ भर का घूंघट काढती, पर्दा करती, परछाईं तक बेराती। घर में एक काम वालियां रहती हीं, कूटना, पीसना, सबके सामने बहुत सम्हल कर, गांव क रीत रिवाज, तुरंत क गौने उतरी बहुरिया,

लेकिन अब ससुर के सामने वो किसी न किसी बहाने, भले ही परदे में,...

कभी चूड़ी खनकाती, कभी पायल झनकाती, कभी कभी आँचल लहराती।

अंगिया भी उसी डारे पर सूखने के लिए डालती जहाँ ससुर बैठते, और टांगती उतारती भी तभी जब ससुर जी आस पास ही हों.
और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...
" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा
। "
और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता। एक दिन उनके मुंह से निकल गया,
" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".


" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।
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सुगना खुद भी तो सुलग रही थी और ख़ास तौर से जिस दिन माहवारी ख़त्म होती, बाल धोती वो,... और ससुर जी के सामने, वो भी समझ जाते, ...

तो उस दिन वही दिन था, सुगना सुलग रही रही थी सोच रही बहुत हुआ चोर सिपहिया,

और उस दिन ससुर जी की भी हालत ख़राब थी,... बाल धोने के बाद बहू जब आंगन में आयी थी अलग ही रूप छलक रहा था, चेहरे पे कैसी जबरदस्त प्यास थी । उन्हें मालूम नहीं था क्या की जिस दिन औरत की पांच दिन की छुट्टी खतम होती है वो कितना तड़पती है, सुगना की भी वही हालत थी ।
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सुगना और उसके ससुर - सुरजबली सिंह

अगले भाग से इसी सप्ताह
 
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