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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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ARCEUS ETERNITY

असतो मा सद्गमय ||
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Lets review Begin's
Toh kalika madam ne fourth aur fifth question ke answer bhi dediye aur prakash shakiti ko hasil bhi kiya .
Aur sath mein yaksh maharaj ne ek additional wish bhi diya aur wo wish ek heem shakti ke roop meon kalika ke bache ko diya .

Yaha kalika ke bache ko bhi mention kiya toh samjh aagaya ki kalika ki beti bhi story mein important rahegi .

Then mera yaha question hai ki story ke character ko aise khatarnaak khatarnaak power mil rahi toh kya iss story ka villian itna powerful hai ki usee harane ke liye sare tatv ki shakti ko ikhatha kiya jaraha hai .

Background mein set bahut hogaya
ab real mein ab dheere sare character ki kadiya judne ko dekhne ke liye aatur hu .

Then baat kare suyash ki toh suyash and team har khatre ko paar kar apni manjil ki aur ja rahe hai lekin mujhe inka safar ab todha lamba lagne laga , ek tarah ye nayi musibat mein faste aur fir musibat par kar bach bhi jate hai .
Yaha mujhe lag raha ki inka itni sari musibaat par karna issilye horaha kyuki ye antim yudd ke liye taiyaar ho rahe hai.

Overall update hamesha ki tarah shandaar
Waiting for more
lekin mein yaha story mein small small dhamake ji Jagah ek bada dhamaka jisse sab shock hojaye iss ke intazaar mein hu .
 

Luckyloda

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
बहुत ही सुंदर update....
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Sign in nahi ho raha hai ask staff section mein report kiya hai maine abhi tak koi response nahi aaya hai.
Xf ke Discord server ho kya tum?
Addicted ko pm kar do
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Raj_sharma

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Toh kalika madam ne fourth aur fifth question ke answer bhi dediye aur prakash shakiti ko hasil bhi kiya .
Aur sath mein yaksh maharaj ne ek additional wish bhi diya aur wo wish ek heem shakti ke roop meon kalika ke bache ko diya .

Yaha kalika ke bache ko bhi mention kiya toh samjh aagaya ki kalika ki beti bhi story mein important rahegi .
Kalika ki beti bhi hai, aur story me mahatva bhi rakhti hai, lekin uska jab pata lagega to jankar shok ho jaoge ki wo kon hai:shhhh:
Then mera yaha question hai ki story ke character ko aise khatarnaak khatarnaak power mil rahi toh kya iss story ka villian itna powerful hai ki usee harane ke liye sare tatv ki shakti ko ikhatha kiya jaraha hai .
Ab hiro itne saare ho aur itni power kevsath ho, to villain halka fulka to ho hi nahi sakta:dazed:
Background mein set bahut hogaya
ab real mein ab dheere sare character ki kadiya judne ko dekhne ke liye aatur hu .
Abhi bohot kuch hona baki hai, tilisma ka tootna bhi baaki hai, kaale moti ka milna bhi baaki hai, Ye sab itna aasaan nahi hai dost, ye koi chhoti moti story nahi hai, it will take time, lagbhag 100 updates aur aayenge☺️per ye vishwas dila sakta hu ki aap bore nahi hoge:roll:
Then baat kare suyash ki toh suyash and team har khatre ko paar kar apni manjil ki aur ja rahe hai lekin mujhe inka safar ab todha lamba lagne laga , ek tarah ye nayi musibat mein faste aur fir musibat par kar bach bhi jate hai .
Yaha mujhe lag raha ki inka itni sari musibaat par karna issilye horaha kyuki ye antim yudd ke liye taiyaar ho rahe hai.
Aisa nahi hai dost, aur ye ek sab itni aasani se nahi ho sakta, abhi bohot si cheeje honi baaki hain dost, kahani madhyaanter me hi hai abhi, bohot kuch khona, paana baki hai🤔 is liye jara dheeraj banaye rakhiye:D
Overall update hamesha ki tarah shandaar
Waiting for more
lekin mein yaha story mein small small dhamake ji Jagah ek bada dhamaka jisse sab shock hojaye iss ke intazaar mein hu .
Abhi aage dhamaako ki quality and quantity badhti hi jayegi, Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

KEKIUS MAXIMUS

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romanchak update. kalika ne sabhi sawalo ka sahi jawab diya aur apne buddhi aur sanyam ka parichay dete huye Prakash shakti ko prapt kar liya jisse gyan ka Prakash faila sake ..par uske ladki ka naam nahi pata chal paya jisko himshakti ka vardan diya yaksh ne ..

khunkhar chitiya aur uske baad khooni tejaab ki barish se bach paaye sab sirf jenith ki wajah se ..ab aage aur kya musibat aayegi dekhte hai ..
 

Raj_sharma

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romanchak update. kalika ne sabhi sawalo ka sahi jawab diya aur apne buddhi aur sanyam ka parichay dete huye Prakash shakti ko prapt kar liya jisse gyan ka Prakash faila sake ..par uske ladki ka naam nahi pata chal paya jisko himshakti ka vardan diya yaksh ne ..

khunkhar chitiya aur uske baad khooni tejaab ki barish se bach paaye sab sirf jenith ki wajah se ..ab aage aur kya musibat aayegi dekhte hai ..
Aap agar dimaag per jor daaloge to aapko pata chal jayega ki kalika ki beti kon ho sakti hai, aur kise him shakti di gayi hai :shhhh: iska ek chhota namuna main pesh kar chuka hu:D
Suyash & Co. Ka khatra abhi tala nahi hai dost, jaha wo baarish se bach kar gaye hain waha aur jyada bada khatra hai:declare:
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

kas1709

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#122.

कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।

यहां पर एक ही दरवाजा था और उस दरवाजे पर एक समान सी दिखने वाली तीन स्त्रियों की आदमकद मूर्तियां खड़ीं थीं।

“यह चतुर्थ यक्षद्वार है कलिका। इसके भी पीछे की एक कहानी है।

"एक राजकुमार दूसरे राज्य के भ्रमण पर गया। रास्ते में उसने उस राज्य की राजकुमारी को देखा। राजकुमारी देखने में बहुत सुंदर थी। इसलिये राजकुमार ने उस राजा के सामने उसकी पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। उस राजा की तीन पुत्रियां थीं, जो देखने में बिल्कुल एक जैसी थीं। राजा ने तीनों पुत्रियों को राजकुमार को दिखाया और पूछा कि वह किस से शादी करना चाहते हैं? अब तुम्हें उस राजकुमार के लिये उचित कन्या का चुनाव
करना पड़ेगा।”

यह सुनकर कलिका ने तीनों मूर्तिंयों को ध्यान से देखना शुरु कर दिया, पर 2 घंटे के बाद भी कलिका को तीनों में एक भी असमानता नहीं दिखाई दी।

“ये तो बिल्कुल एक जैसी हैं, इनमें उचित कन्या का चुनाव कैसे सम्भव है?” कलिका अब परेशान होने लगी, पर उसने अभी भी हिम्मत नहीं हारी।

2 घंटे और बीत गये, पर कलिका को कुछ समझ नहीं आया।

आखिरकार थककर उसने मूर्तियों के स्थान पर इधर-उधर देखना शुरु कर दिया।

तभी कलिका की नजर मूर्तियों के पास पड़े 1 फुट लंबे एक धातु के तार पर पड़ी।

“ये तार यहां पर क्यों पड़ा हुआ है? कहीं इसका उपयोग मूर्ति में तो कहीं नहीं होना है?” यह सोच कलिका ने उस धातु के तार को जमीन से उठा लिया और एक बार फिर मूर्तियों को ध्यान से देखने लगी।

तभी कलिका को मूर्ति के कान में तार के बराबर का बारीक छेद दिखाई दिया। कलिका ने उस तार को पहली मूर्ति के कान में डालना शुरु कर दिया।

वह तार थोड़ी ही देर में उस मूर्ति के दूसरे कान से बाहर आ गया।

यह देख कलिका के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी। अब उसने वही तार दूसरी मूर्ति के कान में डाल दिया, इस बार तार दूसरी मूर्ति के मुंह से बाहर आ गया।

कलिका ने इस बार वह तार तीसरी मूर्ति के कान में डाला, इस बार वह तार किसी भी जगह से बाहर नहीं आया।

यह देख कलि का बोल उठी- “यक्षराज, मैंने पहली मूर्ति के कान में तार डाला तो वह दूसरे कान से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी की बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। इसलिये यह राजकुमार के लिये उपयुक्त नहीं होगी।

दूसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर उसके मुंह से बाहर आ गया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को पचा नहीं पाती। ऐसी राजकुमारी अपने घर के भेद को भी दूसरों को बता सकती है।

तीसरी मूर्ति के कान में तार डालने पर तार कहीं से भी बाहर नहीं आया। इसका मतलब यह राजकुमारी किसी भी बात को ध्यान से सुनती है और उसे अपने अंदर आत्मसात कर लेती है। इसलिये तीसरी राजकुमारी ही राजकुमार के लिये उचित चुनाव है।”

“अकल्पनीय! तुमने हर बार की भांति ही इस बार भी सही चुनाव किया है कलिका। यही राजकुमारी, उस राजकुमार के लिये सबसे उचित चुनाव है।” युवान ने कहा।

इसी के साथ वह राजकुमारी की मूर्ति जीवित हो गई, जिसे लेकर कलिका उस द्वार में प्रवेश कर गई।

राजकुमारी को उस राजकुमार से मिलाने के बाद कलिका पांचवे और आखिरी द्वार की ओर बढ़ गयी।

पर कलिका जैसे ही बाहर निकली। इस बार वह आश्चर्य से भर उठी।

इस समय वह एक ऐसे बड़े से मैदान में खड़ी थी, जहां पर 4 ऊंची-ऊंची मूर्तियां लगी थीं। हर मूर्ति के नीचे एक बड़ा सा मटका रखा था। वह मूर्तियां अग्निदेव, सूर्यदेव, चंद्रदेव एवं व्यास ऋषि की थीं।

तभी एक बार फिर युवान की आवाज वातावरण में गूंजी- “यह तुम्हारा पांचवां और आखिरी यक्षद्वार है। अगर तुम यहां सफल हो गयी तो तुम्हें प्रकाश शक्ति मिल जायेगी।

"इस द्वार में तुम्हें इस चीज का चुनाव करना है कि यहां उपस्थित चारो व्यक्तियों में प्रकाश शक्ति किसके पास हो सकती है? तुम्हें जो उत्तर सही लगे, उसे तुम चुन सकती हो, परंतु ये याद रखना कि ये आखिरी द्वार है, अगर तुम यहां गलत हो गयी तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने द्वार को पार किया है? तुम ऐसी स्थिति में भी अनुतीर्ण ही कहलाओगी और अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगी।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

एक बार फिर कलिका का कार्य शुरु हो चुका था। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इस बार कलिका ने अधिक समय नहीं लिया।

“यक्षराज, चंद्रदेव स्वयं सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, इसलिये उनके पास प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती। अब अगर हम अग्निदेव की बात करें तो अग्नि भी बिना किसी सहारे के आगे नहीं बढ़ती है, इसलिये मुझे लगता है कि इनके पास भी प्रकाश शक्ति नहीं हो सकती।

"अब बचे 2 लोग-सूर्यदेव और महर्षि व्यास। सूर्यदेव स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित तो हैं, पर इनका प्रकाश हमें निरंतर प्राप्त नहीं होता है। इसलिये मुझे नहीं लगता कि सूर्यदेव के पास भी प्रकाश शक्ति हो सकती है।

अब बचे सिर्फ महर्षि व्यास। तो अगर हम ध्यान दें तो महर्षि व्यास ने वेदों की रचना की है और वेद ही सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है। यानि ज्ञान के प्रकाश से बढ़कर कुछ हो ही नहीं सकता। ये दिन में, रात में, सुख में, दुख में, आशा में, निराशा में हर पल हमें अपने ऊर्जान्वित करता है। अगर दूसरे प्रकार से देखें, तो वेदों
में इन सभी देवताओं का वर्णन किया गया है। यानि वेदों के द्वारा इन सभी देवताओं को भी ऊर्जा मिली है। इसलिये मुझे लगता है कि प्रकाश शक्ति केवल महर्षि वेद व्यास के पास ही होगी।”

“बिल्कुल सही कहा कलिका, वेदों के प्रकाश से बढ़कर इस ब्रह्मांड में और कोई प्रकाश नहीं है। आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी का चयन करो और प्रकाश शक्ति की स्वामिनी बन जाओ।” युवान ने हर्षित स्वर में कहा।

कलिका ने आगे बढ़कर महर्षि वेद व्यास के सामने रखी मटकी में हाथ डाला। अंदर उसके हाथ का स्पर्श किसी चीज से हुआ। कलिका ने वह चीज मटके से निकाल ली।

वह सुप्रसिद्ध पुस्तक ऋग्वेद थी।

कलिका ने उस पुस्तक का प्रथम पृष्ठ खोला, पुस्तक को खोलते ही, उसमें से एक बहुत तीव्र प्रकाश की किरणें निकलीं और कलिका के शरीर में समा गयीं।

इतनी तेज रोशनी के कारण कलिका की आँखें बंद हो गयीं। जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह यक्षलोक के मुख्य द्वार के पास खड़ी थी।

तभी एक बार पुनः युवान की आवाज उभरी- “प्रकाश शक्ति प्राप्त करने के लिये तुम्हें हार्दिक शुभकामनाएं कलिका। इस प्रकाश शक्ति ने भी तुम्हें चुनकर सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव किया है। वैसे मैं इस यक्षावली के समय अंतराल में तुम्हारे चरित्र और तुम्हारे तर्कों से अति प्रसन्न हुआ, इसलिये जाने से पहले तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकती हो।”

“यक्षराज मैं आपसे स्वयं के लिये नहीं वरन् अपनी पुत्री के लिये कोई ऐसी शक्ति मांगना चाहती हूं, जो उसके पूर्ण जीवनकाल में उसकी सुरक्षा करे।” कलिका ने हाथ जोड़कर कहा।

“बालकों को शक्ति देना, उन्हें उनके मार्ग से भ्रमित करना होता है कलिका। इसलिये मैं तुम्हारी पुत्री को हिमशक्ति दे तो रहा हूं, लेकिन इसका प्रयोग वह 20 वर्ष की आयु के बाद ही कर पायेगी। अब जाओ
कलिका इन वेदों की शक्ति से दुनिया को प्रकाशित करो।”

कलिका ने यक्षराज को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और योग गुफा की ओर चल दी।


खून की बारिश:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 12:40, मायावन, अराका द्वीप)

आर्क वाले द्वार को पार करने के बाद सभी आगे बढ़ते जा रहे थे।

दूसरी ओर का रास्ता भी पथरीला था और छोटे-छोटे पौधों से भरा था। कुछ दूर के बाद बर्फ से ढकी पहाड़ियां नजर आ रहीं थीं।

“पता नहीं किसने इस रहस्यमय जंगल का निर्माण किया है?” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा- “खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है और ऊपर से पूरे रास्ते भर क्या-क्या मुसीबतें डाल रखीं हैं?”

“मैं तो अगर यहां से बच कर निकल गयी तो अगले 20 वर्ष तक जंगल क्या किसी भी पार्क में भी नहीं जाऊंगी?” जेनिथ ने हंसते हुए कहा।

“मुझे तो ये जंगल बहुत अच्छा लग रहा है।” शैफाली ने भी जेनिथ और क्रिस्टी की बातों के बीच में घुसते हुए कहा- “मैंने तो अपने जीवन भर कुछ देखा ही नहीं था, फिर जब मुझे यहां इतनी प्राकृतिक चीजें नजर
आयीं, तो मैं बहुत खुश हो गयी।”

तभी आगे बढ़ते हुए सभी को जमीन में दीमक की बांबियां बनी दिखाई दीं।

“ये लो...अब पता नहीं कौन सी मुसीबत आने वाली है?” सुयश ने कहा- “जब भी कोई नया क्षेत्र शुरु होता है, तो कोई ना कोई मुसीबत जरुर आती है। पता नहीं इन बांबियों से दीमक निकलकर हमारा क्या करेंगे?”

“कैप्टेन हम तो इन 4 बांबियों को ही देखकर डर गये। जरा नजर उठा कर आगे तो देखिये, यहां कुछ दूरी के क्षेत्र में ऐसी हजारों बांबियां हैं।” क्रिस्टी ने आगे के रास्ते पर नजर मारते हुए कहा।

बंबियों के आगे बहुत दूर तक मशरुम के पेड़ भी नजर आ रहे थे। मशरुम आकार में काफी बड़े और चमकदार दिख रहे थे। दूर से देखने पर वह किसी छतरी की भांति नजर आ रहे थे। मशरुम को देख सभी आगे बढकर उन्हें देखने लगे।

“यह मशरुम कुछ जरुरत से ज्यादा बड़े और चमकदार नहीं लग रहे हैं?” जेनिथ ने कहा।

“यह ‘मून लाइट मशरुम’हैं।” सुयश ने उन मशरुम के पेड़ को देखते हुए कहा- “यह जापान में पाये जाते हैं। रात के समय यह बहुत तेज रोशनी बिखेरते हैं और यह अत्यंत जहरीले होते हैं, इसलिये इन्हें खाया
नहीं जाता।”

“सच में यह जंगल बहुत ही विचित्र है।” तौफीक ने कहा- “कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर यहां मौसम एकदम बदल जाता है और यहां पाये जाने वाले पौधे और जीव तो शायद ब्रह्मांड के कोने-कोने से लाकर यहां रखे गये हैं। सब अपने आप में बहुत ही अनोखे और रहस्यमय हैं।”

तभी दीमक वाली बांबियों से लाल रंग की बड़ी-बड़ी चींटियां निकलना शुरु हो गयीं।

“अरे बाप रे, यह तो ‘रेड आंट’हैं, ये तो अफ्रीका के जंगलों में पायी जाती हैं, यह इतनी खतरनाक होती हैं कि अजगर और शेर जैसे जानवर को भी पल भर में खत्म कर देती हैं। सबसे बड़ी मुसीबत इनका संगठित
होना है। यह एक जगह पर लाखों की संख्या में रहती हैं। हमें इनसे अपना बचाव करना पड़ेगा।”

तभी लाल चींटियों ने सबको चारो ओर से घेरना शुरु कर दिया।

“कैप्टेन ... इनसे कैसे बचा जा सकता है?” तौफीक ने पूछा।

“इनसे सिर्फ आग से ही बचा जा सकता है, पर वह हमारे पास यहां पर है नहीं।” शैफाली ने कहा।

तब तक लाल चींटियों ने सभी को चारो ओर से घेर लिया। अब वह किसी सैनिक की तरह उन पर हमला करने के लिये आगे बढ़ने लगी।

वह चींटियां लगातार बांबियों से निकलती ही जा रहीं थीं।

तभी कुछ चींटियों ने जेनिथ के ऊपर हमला कर दिया। जेनिथ चींटियों से बचने के लिये जैसे ही पीछे की ओर बढ़ी, तभी जेनिथ का पैर एक मशरुम के पेड़ से टकराया और जेनिथ जमीन पर गिर पड़ी।

जेनिथ के गिरते ही चींटियां जेनिथ पर झपटीं, तभी जेनिथ ने अपने बचाव में टूटा हुआ मशरुम का टुकड़ा आगे कर दिया।

मशरुम से निकलती रोशनी और खुशबू शायद चींटियों को पसंद नहीं थी। वह उस मशरुम के पेड़ से दूर हटने लगीं।

यह देख जेनिथ ने वह मशरुम का टुकड़ा चींटियों की ओर उछाल दिया। मशरुम का टुकड़ा जिस जगह पर गिरा, चींटियां उस जगह से दूर हट गईं।

यह देखकर जेनिथ ने चीख कर कहा- “कैप्टेन, आप सब लोग अपने हाथों में मशरुम ले लीजिये। ये सारी चींटियां मशरुम से डर रहीं हैं।”

जेनिथ की बात सुन सभी ने मशरुम को तोड़कर अपने हाथों में ले लिया और उसे अपने शरीर से आगे कर चींटियों को पीछे की ओर धकेलने लगे।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी। मशरुम के डर से सारी की सारी चींटियां अपने बिलों में वापस चलीं गईं।

“बाल-बाल बचे।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “अगर जेनिथ को समय रहते यह तरकीब ना पता चलती, तो अब तक चींटियों ने हमें चट कर जाना था।”

“कैप्टेन अगर सही कहें तो यह पहली ऐसी मुसीबत थी जो इतनी आसानी से समाप्त हो गई।” क्रिस्टी ने कहा।

पर वह मुसीबत ही क्या, जो इतनी आसानी से खत्म हो जाए।

चींटियों के अपनी बांबियों में घुसते ही उन बांबियों से गाढ़े लाल रंग का धुआं निकलना शुरु हो गया।

“लीजिये क्रिस्टी दीदी, आपके कहते ही मुसीबत शुरु हो गई।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अब देखते हैं कि यह मुसीबत किस प्रकार की है?”

वह लाल धुंआ धीरे-धीरे पूरे वातावरण में फैलने लगा।

“मेरे हिसाब से हमें यहां रुक कर इस लाल धुंए को देखने की जरुरत नहीं है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “है तो यह किसी प्रकार की मुसीबत ही? इसलिये हमें इस धुंए के फैलने के पहले ही इस स्थान को छोड़ उन बर्फीली पहाड़ियों की ओर जाना होगा।”

सुयश का विचार सभी को सही लगा, इसलिये वह सभी तेजी से सामने दिख रही बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

ऐसा लग रहा था कि उन सुर्ख बादलों ने इन्हें भागते देख लिया हो, अब धुंआ और तेजी से वातावरण में फैलने लगा।

“एक बात और सभी लोग ध्यान रखना।” सुयश ने भागते हुए सभी से कहा- “हम सभी ने कुछ देर पहले विषैले मशरुम को छुआ था, तो जब तक हम अपना हाथ ठीक तरह से साफ ना कर लें, कोई भी इन हाथों से अपने मुंह और आँख को नहीं छुएगा।” सभी ने भागते हुए अपनी सहमति जताई।

तभी भागते हुए तौफीक ने पलटकर पीछे देखा, अब वह धुंआ इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसने अब बादलों के एक गुच्छे का रुप धारण कर लिया था।

अब बादल हवा के बहाव से उन्हीं की ओर आ रहे थे।

“कैप्टेन, सावधान!” तौफीक ने सुयश को चेतावनी देते हुए कहा- “अब वह धुंआ बादलों का रुप धारण करके तेजी से हमारी ओर आ रहा है।”

तौफीक की बात सुनकर सुयश ने भी एक बार पलटकर उन खून से सुर्ख बादलों को देखा और अपने दौड़ने की स्पीड बढ़ा दी।

तभी उन बादलों ने बरसना शुरु कर दिया। लाल रंग के बूंदों की वह बारिश बिल्कुल खून की बारिश जैसी प्रतीत हो रही थी।

तभी शैफाली की निगाह उससे कुछ दूर पर गिरी उन बूंदों पर गयी।

वह खूनी बूंदें जमीन पर जिस जगह गिर रहीं थीं, वहां मिट्टी में बुलबुले उठने के बाद एक छोटा सा गड्ढा हो जा रहा था।

यह देख शैफाली चीख उठी - “और तेज भागो, यह साधारण बारिश नहीं तेजाब की बारिश है, जिस पर भी इसकी बूंद गिरेगी, उसका शरीर गलने लगेगा।”

शैफाली के यह शब्द सुनते ही सभी के पैरों में जैसे पंख लग गये हों, सभी पूरी ताकत से बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

बर्फीली पहाड़ियां अब ज्यादा दूर नहीं रह गयीं थीं, पर खूनी बादल तो अब उनके सिर पर आ गये थे।

तभी खूनी बारिश की कुछ बूंदें जेनिथ के ऊपर गिरीं। जेनिथ के शरीर की त्वचा उस जगह से झुलस गई।

यह देख जेनिथ ने मन में जोर से नक्षत्रा को समय को रोकने को कहा। नक्षत्रा ने तुरंत समय को रोक दिया। समय के रुकते ही सभी के साथ वह खूनी बूंदें भी हवा में ही रुक गईं।

“इस समस्या का हल तुम्हें तुरंत ढूंढना होगा दोस्त।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा- “अगर तुमने ज्यादा समय यहां पर लगा दिया तो आगे किसी दूसरी मुसीबत से मैं तुम्हारी मदद नहीं कर पाऊंगा?”

जेनिथ की नजरें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

उसे किसी ऐसी चीज की तलाश थी, जो उन सभी को इस खूनी बारिश से बचा सके।

उधर नक्षत्रा तेजी से जेनिथ की जली हुई त्वचा को सही करने लगा। काफी देखने के बाद भी जेनिथ को आसपास कुछ नहीं दिखाई दिया।

तभी जेनिथ की नजर अपने आसपास गिरी बूंदों की ओर गईं।

बूंदे जिस जगह गिरीं थीं, उस जगह की हर चीज को उसने जला दिया था, सिवाय एक चीज के....और वह था मून लाइट मशरुम।

जेनिथ के एक सेकेण्ड तक मशरुम की संरचना को ध्यान से देखा और खुश होकर नक्षत्रा को समय को रिलीज करने के लिये बोल दिया।

जैसे ही नक्षत्रा ने समय को रिलीज किया, जेनिथ ने चीखकर सभी से कहा- “सभी लोग तुरंत मशरुम को छतरी की तरह इस्तेमाल करो, मशरुम पर इस खूनी बारिश का कोई असर नहीं हो रहा।

जेनिथ के इतना कहते ही सभी ने एक-एक मशरुम को तोड़कर छतरी की तरह प्रयोग करने लगे।
जेनिथ ने भी एक मशरुम तोड़कर अपने सिर पर लगा लिया। जेनिथ के घाव भी अब भर गये थे।

यहां तक कि किसी को पता भी नहीं चला कि जेनिथ के ऊपर खूनी बूंद गिरी भी थी।

खूनी बूंदें मशरुम पर गिर रहीं थीं, पर अब ये सभी लोग मशरुम के नीचे सुरक्षित थे।

“रुको नहीं... चलते रहो।”सुयश ने सभी को रुके देख चिल्ला कर कहा- “हम इस समय एक विचित्र तिलिस्म में हैं, अगर हम रुके तो ये बादल फिर अपना स्वरुप बदलकर हम पर किसी और रुप में हमला करने लगेंगे। इसलिये जितनी जल्दी हो सके, इस क्षेत्र से बाहर निकलो।”

सुयश के इतना कहते ही सभी फिर बर्फीली पहाड़ियों की ओर भागने लगे।

कुछ ही देर के प्रयास के बाद आखिरकार सभी बर्फीली पहाड़ियों के पास पहुंच ही गये।

खूनी बादलों ने भी अब इनका पीछा छोड़ दिया था।

भागते-भागते सभी इतना थक गये थे कि वहीं जमीन पर लेट गये।

सभी ने अपनी जान बच जाने पर एक बार फिर ईश्वर का धन्यवाद किया और टुकुर-टुकुर आँखों से उस बर्फीले क्षेत्र को देखने लगे, जहां पर
कोई नयी मुसीबत इनका इंतजार कर रही थी।


जारी रहेगा_______:writing:
Nice update....
 

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गोंजालो से युद्ध:

(13 जनवरी 2002, रविवार, 07:10, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

पंचशूल प्राप्त करने के बाद व्योम को उसमें काफी शक्ति का अहसास होने लगा था।

व्योम ने एक नजर फिर उस मूर्ति वाली दिशा की ओर मारी और जंगल में उस दिशा की ओर बढ़ गया।

सुबह का समय था, हवाओं में ठंडक का अहसास था। सामरा घाटी में चारो ओर रंग बिरंगे फूल लगे थे, जो कि उस घाटी की सुंदरता को बहुत ही खूबसूरत बना रहे थे।

रास्ते में लगे पेड़ों से व्योम ने फल खाकर पानी पी लिया था। व्योम को चलते हुए एक घंटा हो गया था।

रास्ते में व्योम को एक साफ पत्थर दिखाई दिया, व्योम कुछ देर के लिये उस पत्थर पर बैठकर इस घाटी के बारे में सोचने लगा।

व्योम को लग रहा था कि इस जंगल में अनेकों खतरों का सामना करना पड़ेगा, पर रास्ते में उसे कोई भी खतरा दिखाई नहीं दिया।

तभी व्योम को सूखे पत्ते के खड़कने की एक आवाज सुनाई दी। उसकी आँखें तुरंत आवाज की दिशा में घूम गईं।

व्योम को दूर से चलकर आता हुआ एक साया दिखाई दिया। ऐसे घने जंगल में किसी को देखकर, व्योम तुरंत एक पेड़ की ओट में छिप गया।

धीरे-धीरे चलता हुआ वह साया व्योम के बगल से गुजरा। वह सामरा राज्य की खूबसूरत राजकुमारी त्रिकाली थी।

त्रिकाली का रंग दूध के समान गोरा और बाल भूरे रंग के थे।

त्रिकाली ने किसी पौराणिक राजकुमारी की तरह पीले रंग की सुंदर सी ड्रेस पहन रखी थी। उसके गले में सोने का हार और हाथों में सोने की चूड़ियां भी पहन रखीं थीं।

त्रिकाली के हाथ में एक सोने की थाली थी, जिसमें कुछ पूजा का सामान रखा था।

त्रिकाली को देखकर व्योम को बहुत आश्चर्य हुआ।

“इतने भयानक जंगल में इतनी सुंदर लड़की अकेले क्यों घूम रही है?” व्योम ने अपने मन में सोचा- “और... इसका पहनावा तो किसी राजकुमारी के जैसा है। इस लड़की के इस प्रकार घूमने में कुछ ना कुछ तो रहस्य अवश्य है?...कहीं यह उन बौनों की राजकुमारी तो नहीं है? मुझे इसका पीछा करके देखना चाहिये।”

यह सोच व्योम दबे कदमों से त्रिकाली के पीछे चल दिया।

त्रिकाली भी उसी दिशा में जा रही थी, जिधर व्योम ने एक ऊंची सी मूर्ति को पहाड़ से देखा था।

कुछ देर तक पीछा करते रहने के बाद व्योम को वह मूर्ति दिखाई देने लगी।

मूर्ति को देख व्योम हैरान रह गया। वह मूर्ति हिं..दू देवी महा…का..ली की थी। मूर्ति में देवी को नरमुंडों की माला पहने और जीभ निकाले दिखाया गया था। देवी ने अपने आठों हाथों में अलग-अलग शस्त्र को धारण कर रखा था।

“देवी की मूर्ति अटलांटिक महासागर के इस रहस्यमय द्वीप के जंगल में कहां से आयी?” व्योम को मूर्ति को देख बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो पा रहा था।

त्रिकाली, मूर्ति के पास जाकर रुक गयी। त्रिकाली ने अपने हाथ में पकड़ी पूजा की थाली को वहीं जमीन पर रख दिया और देवी की मूर्ति के सामने हाथ जो ड़कर अपना सिर झुकाया।

अब त्रिकाली पूजा की थाली से सामान निकालकर देवी की पूजा करने लगी। व्योम अभी भी पेड़ के पीछे छिपा हुआ त्रिकाली को देख रहा था।

तभी व्योम की नजर त्रिकाली की ओर बढ़ रहे एक अजीब से जीव पर पड़ी।

वह जीव कई जानवरों का मिला-जुला रुप दिख रहा था।

उस जानवर का शरीर 6 फुट ऊंची एक विशाल बिल्ली की तरह का दिख रहा था, उसके सिर पर कुछ अजीब से पंखों का ताज जैसा लगा दिखाई दे रहा था। उसके शरीर पर मछली के समान गलफड़ बने थे, जिसे देखकर साफ पता चल रहा था कि वह जीव पानी में भी आसानी से साँस ले सकता है।

उस जानवर की पूंछ पीछे से किसी झाड़ू के समान थी। उसने अपने गले में धातु के लॉकेट में एक पीले रंग का रत्न पहन रखा था।

व्योम ने आज तक किताबों में भी कभी ऐसा जीव नहीं देखा था।

वह जीव दबे पाँव त्रिकाली की ओर बढ़ रहा था।

व्योम देखते ही समझ गया कि यह जीव त्रिकाली पर हमला करने जा रहा है। व्योम ने अपनी जेब से चाकू को निकालकर तुरंत अपने हाथ में पकड़ लिया और धीरे-धीरे उस जीव की ओर बढ़ने लगा।

उस विचित्र जीव का पूरा ध्यान त्रिकाली पर था, इसलिये उसने पीछे से आते व्योम को नहीं देखा।

व्योम ने उस जीव के पास पहुंच, जोर से आवाज की।

इससे पहले कि वह जीव कुछ समझ पाता, व्योम छलांग मारकर उसकी पीठ पर चढ़ गया और अपने दोनों हाथों की कुण्डली बना उस जीव का गला पकड़ लिया।

व्योम की आवाज सुन त्रिकाली ने पीछे पलटकर देखा। त्रिकाली की नजर जैसे ही उस जीव पर पड़ी, वह उस जीव को पहचान गयी।

वह जीव जैगन का सेवक गोंजालो था, जिसमें अनेकों विचित्र शक्तियां थीं।

गोंजालो को देख त्रिकाली डर गयी, क्यों कि वह गोंजालो की शक्तियों से भली-भांति परिचित थी।

तभी त्रिकाली की नजर गोंजालो की पीठ पर बैठे व्योम की ओर गयी, जो एक साधारण चाकू से गोंजालो से भिड़ा हुआ था।

व्योम की हिम्मत और उसके बलिष्ठ शरीर की मसल्स देख त्रिकाली व्योम पर मोहित हो गई।

तभी गोंजालो ने अपनी पीठ को नीचे की ओर सिकोड़ा और फिर बहुत तेजी से ऊपर कर दिया।

व्योम को गोंजालो के इस दाँव का कोई अंदाजा नहीं था, इसलिये व्योम गोंजालो की पीठ से उछलकर एक पेड़ से जा टकराया।

वह टक्कर इतनी प्रभावशाली थी कि वह पेड़ ही अपने स्थान से उखड़ गया।

त्रिकाली को लगा कि इतनी भयानक टक्कर के बाद तो व्योम उठ भी नहीं पायेगा, पर त्रिकाली की आशा के विपरीत व्योम उछलकर खड़ा हुआ और फिर से गोंजालो को घूरने लगा।

अब गोंजालो ने अपने सिर को एक झटका दिया। ऐसा करते ही उसके सिर पर लगे पंखों के ताज से कुछ पंख निकलकर तेजी से व्योम की ओर बढ़े। उन पंखों के आगे के सिरे, काँटों जैसे नुकीले थे।

उन पंखों का निशाना व्योम के दोनों पैरों की ओर था। काँटों को अपनी तरफ बढ़ते देख व्योम तेजी से उछला।

पर जैसे ही व्योम उछला, वह 50 फुट ऊपर तक हवा में चला गया।

यह देख गोंजालो और त्रिकाली को छोड़ो, व्योम स्वयं ही आश्चर्य में पड़ गया। व्योम अब हवा में धीरे-धीरे किसी पतंग की मानिंद लहरा रहा था।

“यह मैं हवा में कैसे लहरा रहा हूं? क्या यह उस पंचशूल की किसी शक्ति का असर है?” व्योम ने सोचा।

तभी गोंजालो की पूंछ तेजी से लंबी हुई और व्योम के पैरों में लिपट गई।
इससे पहले कि व्योम कुछ समझ पाता, गोंजालो ने व्योम को अपनी पूंछ में लपेटकर बिजली की तेजी से एक चट्टान पर पटक दिया।

एक बहुत जोरदार आवाज हुई और चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये, पर व्योम को एक खरोंच भी नहीं आयी।

यह देख त्रिकाली मंत्रमुग्ध हो गई- “वाह! कितना बलशाली पुरुष है, मैं तो इसे साधारण मानव समझ रही थी, पर इसमें तो बहुत सी शक्तियां हैं।”

त्रिकाली को अब इस युद्ध में मजा आने लगा था। वह किसी दर्शक की भांति एक पेड़ के पास खड़ी होकर इस युद्ध का पूर्ण आनन्द उठाने लगी थी।

व्योम भी स्वयं की शक्तियों से आश्चर्य में था।

इस बार व्योम ने गोंजालो की पूंछ को पकड़कर जोर से घुमाया और उसे आसमान में दूर उछाल दिया।

यह व्योम की एक छोटी सी ताकत का नमूना था। गोंजालो आसमान में बहुत ऊंचे तक गया, पर अचानक उसने अपने शरीर को सिकोड़कर अपने वेग को नियंत्रित किया और आसमान से लहराते हुए नीचे की ओर आने लगा।

इस बार गोंजालो के शरीर के मछली वाले भाग से एक बिजली निकलकर कड़कती हुई व्योम की ओर बढ़ी।

वह बिजली व्योम के शरीर से जाकर टकराई।

गोंजालो पूरा निश्चिंत था कि इस बार व्योम के शरीर के चिथड़े उड़ जायेंगे, पर गोंजालो की बिजली का व्योम पर कोई असर नहीं हुआ।

इस बार व्योम ने अपना दाहिना हाथ झटककर गोंजालो की ओर बढ़ाया।
व्योम के दाहिने हाथ में अब पंचशूल नजर आने लगा।

पंचशूल से एक बिजली की लहर निकलकर गोंजालो पर पड़ी और गोंजालो का पूरा जिस्म उस तेज बिजली से झुलस गया।

तभी हवा में एक गोला प्रकट हुआ। गोंजालो उस गोले में समा कर गायब हो गया।

उधर त्रिकाली लगातार व्योम की अद्भुत शक्तियों को देख रही थी। अब उससे रहा ना गया और वह बोल उठी- “तुम कौन हो पराक्रमी? तुम में तो देवताओं जैसी अद्भुत शक्तियां हैं।”

अपना काम करके पंचशूल वापस हवा में विलीन हो गया।

त्रिकाली को अंग्रेजी भाषा में बात करते देख व्योम आश्चर्य से भर उठा।

“मेरा नाम व्योम है, मैं तो एक साधारण इंसान हूं, यह सारी शक्तियां तो मुझे इस रहस्यमय घाटी से प्राप्त हुईं हैं। मैं अभी स्वयं इन्हें समझने की कोशिश कर रहा हूं। पर आप कौन हैं? और इस खतरनाक घाटी में अकेली क्या कर रहीं हैं? और आप इतनी अच्छी अंग्रेजी भाषा कैसे बोल रहीं हैं?”

“मेरा नाम त्रिकाली है। मैं इसी द्वीप की रहने वाली हूं और मुझे अंग्रेजी ही नहीं, और भी कई भाषाएं आती हैं।” त्रिकाली ने कहा- “पर तुम इस द्वीप पर कैसे आ गये? यहां पर तो किसी का भी पहुंचना बिल्कुल
नामुमकिन सा है।”

“इस क्षेत्र में मेरी बोट का एक्सीडेंट हो गया था, जिसके कारण भटककर मैं यहां आ गया।” व्योम ने मुस्कुराते हुए कहा- “वैसे इस द्वीप का नाम क्या है? और यह किस देश के अंतर्गत आता है?”

“इस द्वीप का नाम अराका है और यह एक स्वतंत्र द्वीप है। यह किसी देश की सीमा में नहीं आता और मैं इस द्वीप के राजा कलाट की बेटी हूं। मैं यहां देवी की पूजा के लिये आयी थी। तभी पीछे से उस जीव ने आक्रमण कर दिया था, पर आपने मुझे बचा लिया। इसके लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”

“अच्छा तो आप इस द्वीप की राजकुमारी हैं।” व्योम ने थोड़ा झुककर त्रिकाली को सम्मान देते हुए कहा- “लेकिन आप इतने भयानक जंगल में अकेले यहां क्या कर रहीं हैं? यहां तो हर कदम पर खतरे भरे हुए हैं।”

“मैं पूजा पर हमेशा अकेली ही आती हूं।” त्रिकाली ने कहा- “वैसे मेरे गले में हमेशा रक्षा कवच रहता है, जिसकी वजह से जंगल के कोई भी जानवर मुझ पर आक्रमण नहीं करते हैं, पर आज नहाने के बाद, मैं रक्षा कवच गले में पहनना भूल गई।”

यह कहकर त्रिकाली ने अपने वस्त्रों में छिपा एक काले रंग का मोटा सा धागा निकाला, जिसके नीचे एक लाल रंग का रत्न लगा हुआ था।

“क्या आप यह रक्षा कवच मेरे गले में बांध सकते हैं?” त्रिकाली ने रक्षा कवच को व्योम की आँखों के आगे लहराते हुए कहा।

“जी हां! क्यों नहीं ।” व्योम ने त्रिकाली के हाथों से रक्षा कवच लेकर एक नजर उस पर डाली और फिर उसके पीछे की ओर आ गया।

त्रिकाली ने अपने भूरे बालों को अपने हाथों से आगे की ओर कर लिया। व्योम की नजर त्रिकाली की दूध सी सफेद गोरी गर्दन की ओर गई।

व्योम थोड़ी देर तक त्रिकाली को निहारने लगा, तभी त्रिकाली बोल उठी- “क्या हुआ बंध नहीं रहा है क्या?”

“न...नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...वो...वो...मैं कुछ सोचने लगा था?” व्योम ने घबरा कर कहा और त्रिकाली के गले में उस धागे को बांध दिया।

जब व्योम, त्रिकाली के गले में रक्षा कवच बांध रहा था, तो त्रिकाली ने देवी का..ली को देखते हुए आँख बंद करके होंठो ही होंठो में कोई मंत्र बुदबुदाया, जो व्योम को दिखाई नहीं दिया।

रक्षा कवच गले में बंधते ही त्रिकाली के होंठो पर एक गहरी मुस्कान छा गई।

“ठीक से तो बांधा है ना?” त्रिकाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “कहीं खुल तो नहीं जायेगा?”

“नहीं ... नहीं …. मेरी बांधी गांठ कभी नहीं खुलती।” यह बोलते हुए व्योम के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी।

तभी त्रिकाली ने अपने वस्त्रों में छिपा एक और रक्षा कवच निकाल लिया। व्योम की नजर अब दूसरे रक्षा कवच पर थी, जैसे वह पूछना चाहता हो कि अब इसका क्या?

त्रिकाली व्योम को इस प्रकार देखते पाकर बोल उठी- “अरे यह तुम्हारे लिये है। यहां कदम-कदम पर खतरे भरे पड़े हैं, इसलिये तुम्हारा बचाव भी जरुरी है।”

व्योम पहले तो हिचकिचाया फिर उसने त्रिकाली से रक्षा कवच अपने गले में बंधवा लिया।

रक्षा कवच बांधने के बाद त्रिकाली व्योम से बिना कुछ कहे अपनी अधूरी पूजा को पूरा करने के लिये दोबारा से देवी की मूर्ति के पास बैठ गई।

व्योम ने बीच में कुछ कहना ठीक ना समझा, इसलिये वह भी अपने जूते उतारकर, त्रिकाली के पास वहीं जमीन पर बैठ गया।

व्योम अब आँख बंद किये, हाथ जोड़े बैठी त्रिकाली को अपलक निहार रहा था।

थोड़ी देर पूजा करने के बाद त्रिकाली ने आँखें खोली और व्योम को बगल में बैठा देख मुस्कुरा उठी। फिर त्रिकाली ने देवी के सामने हाथ जोड़कर सिर झुकाया।

“तुम भी देवी के सामने हाथ जोड़ लो।” त्रिकाली ने व्योम से कहा- “देवी सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं।”

व्योम ने कुछ सोचा और फिर उसने भी देवी के सामने सिर झुकाया।

व्योम के सिर झुकाते ही उसके गले में पड़ा रक्षा कवच का लाल रत्न एक बार तेजी से चमका, जिसे चमकते देख त्रिकाली के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान आ गयी।

त्रिकाली अब उठकर खड़ी हो गयी और एक दिशा की ओर चल दी।

“अरे-अरे... कहां जा रही हो आप?” त्रिकाली को जाते देख व्योम बोल उठा- “अभी तो मुझे आपसे बहुत सारे प्रश्नों का जवाब चाहिये।”

“अगर जवाब चाहिये तो मेरे साथ चलना पड़ेगा। मैं यहां पर तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकती।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है मैं चलने के लिये तैयार हूं।” व्योम भी त्रिकाली के पीछे-पीछे चल दिया।

जारी रहेगा_______✍️
राज भाई मुझे तो यह चैप्टर सभी से मजेदार लगा त्रिकाली और व्योम का एक दूसरे को रक्षा सूत्र बांधना
पर बिचारे व्योम को तो मालूम ही नहीं है कि उसने त्रिकाली को जो रक्षा सूत्र बांधा एंव बंधवाया है वह त्रिकाली और व्योम को एक दूसरे से जोड़ दिया है जिसे देवी काली ने भी स्वीकार कर लिया है
 
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