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Incest Mohanpur ( ek chuddakad gaon )

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नानीहाल की सुबह: रसोई में राज़ और बढ़ती भूख का तूफ़ान





"भाई, रात की छत वाली घटना के बाद, मेरे और सनी के दिमाग़ में एक तूफ़ान सा उठ रहा था। मामी प्रेमा को पूरा नंगा नहाते देखना, और फिर एक-दूसरे से अपनी माओं की दबी हुई चाहतों के बारे में खुलकर बात करना... ये सब मेरे 6-इंच कड़क टूल को और कॉन्स्टेंट हंगर वाली आँखों को एक नई ही दिशा दे गया था। नानीहाल की हवा में अब सिर्फ़ रिश्ते नहीं, बल्कि एक अजीब सी गरमाहट, एक अनकही प्यास घुल चुकी थी।"


सुबह हुई, और कमरे में हल्की-हल्की धूप छनकर आ रही थी। मैं और सनी दोनों ही देर तक बिस्तर पर पड़े रहे, रात के दृश्यों और बातों के नशे में चूर। जब आख़िरकार उठे, तो देखा घर में पहले से ही चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। रसोई से आती आवाज़ें और ताज़े नाश्ते की ख़ुशबू ने मुझे और जगा दिया। मैं कपड़े पहनकर नीचे आया, और मेरे क़दम अपने आप रसोई की तरफ़ खिंचे चले गए। मेरा कड़क टूल अंदर ही अंदर जाग चुका था, और मैं जानता था कि यह दिन कुछ नया लेकर आने वाला है।


रसोई में हमेशा की तरह त्योहार जैसा माहौल था। सभ्या माँ, पुष्पा मौसी (निर्मला), प्रेमा मामी, और राधा मामी... सब मिलकर काम कर रही थीं। सबकी 44-38-44 की फिगर या उसके आस-पास की, देसी और भरपूर। उनकी कसी हुई साड़ियाँ और टाइट ब्लाउज़ उनके मोटे बूब्स और भरपूर कूल्हों को हर हरकत के साथ उजागर कर रहे थे। हर स्त्री एक रसभरी फल की तरह लग रही थी, जिसे तोड़ने का मन हो।








रसोई में दहकती नज़दीकी: प्रेमा मामी और राधा मामी का खेल





मैं रसोई के दरवाज़े पर ही खड़ा हो गया, एक शिकारी की तरह सबको निहार रहा था। सभ्या माँ और पुष्पा मौसी एक तरफ़ सब्ज़ियाँ काट रही थीं, और उनके बीच चलती फुसफुसाहटें बता रही थीं कि उनके पास भी कहने को बहुत कुछ है। प्रेमा मामी दूसरी तरफ़ आटा गूँथ रही थीं, उनकी बाहें और कसी हुई कलाईयाँ हर गूंध के साथ हिल रही थीं। राधा मामी पास ही पूरियाँ तल रही थीं, गर्म तेल की कड़ाही से आती आवाज़ और घी की ख़ुशबू पूरे माहौल को और गरमा रही थी। उनकी चाल, उनकी कमर का बल... सब कुछ मेरे अंदर की आग को और भड़का रहा था।


"तभी प्रेमा मामी अपनी जगह से थोड़ा हिलीं और मुझसे टकरा गईं। उनके हाथ आटे से सने थे, और उनकी साड़ी का पल्लू थोड़ा हट गया था, जिससे उनके भरपूर बूब्स और गहरी नाभि साफ़ दिख रही थी, जैसे वह मुझे अपनी तरफ़ बुला रही हो। उन्होंने शरमाते हुए कहा, 'अरे अर्जुन बेटा, ध्यान कहाँ है तुम्हारा? टकरा क्यों गए?' उनकी आवाज़ में थोड़ी घबराहट थी, पर आँखों में एक चमक भी, जैसे वह जानती हों कि मैं उन्हें कल रात देख चुका हूँ।"


मैंने एक हल्की सी मुस्कान दी, वही मेरी परमानेंट टीज़ वाली। "मामी, आपका रूप ही ऐसा है कि नज़र हटती नहीं है। क्या करूँ? आप तो साक्षात् लक्ष्मी का रूप हो," मेरी आवाज़ में शरारत और एक छुपा हुआ इशारा था। प्रेमा मामी के गाल और गहरे लाल हो गए, पर उन्होंने अपनी नज़रें मुझसे हटाई नहीं। उनकी आँखों में एक हल्की सी चमक भी थी, जैसे वह मेरी बातों का मज़ा ले रही हों।








राधा मामी की शरारत: पूरियों का बहाना और हाथों का खेल





जैसे ही प्रेमा मामी थोड़ा पीछे हटीं, राधा मामी मेरे पास आईं। उनके हाथ में गर्म-गर्म पूरियों की टोकरी थी, जिसकी ख़ुशबू ने मेरा पेट और मन दोनों ललचा दिया। "अरे अर्जुन बेटा, आ गए? नाश्ता कर लो। रात को क्या छत पर तारे गिन रहे थे? इतनी देर से जागे हो।" उनकी आवाज़ में मज़ाक था, और उनकी मोटी गांड और भरपूर हिप्स उनके चलने से ऐसे हिल रहे थे कि मेरा कड़क टूल और उत्तेजित हो गया। उनका शरीर पूरी तरह से देसी रसभरी जैसा था, और हर कदम के साथ वह मुझे अपनी तरफ़ खींच रही थीं।


"राधा मामी ने जानबूझकर टोकरी मेरे हाथ में ऐसे दी कि उनका हाथ मेरे हाथ को छू जाए। उनकी गर्म और मुलायम उँगलियों का एहसास होते ही मेरा बदन सिहर उठा, और मेरा कड़क टूल उछल पड़ा। उन्होंने फिर कहा, 'अरे बेटा, तुम्हारे हाथ तो बड़े गर्म हैं। रात को कुछ ज़्यादा ही गर्मी चढ़ गई थी क्या? या किसी ने रात में गर्मी बढ़ा दी थी?'" उनकी आँखों में मसालेदार गॉसिप वाली चमक थी, जो अब एक नई चाहत और जिज्ञासा में बदल गई थी। वह मुझसे कुछ कहना चाहती थीं, कुछ जानना चाहती थीं।


मैं समझ गया, भाई। राधा मामी भी मुझसे एक खेल खेल रही थीं। उनकी बातों में साफ़ पता चल रहा था कि वह भी इस माहौल का पूरा मज़ा ले रही थीं। मैंने एक गहरी साँस ली और उनकी आँखों में देखा, जहाँ अब उत्सुकता और मस्ती दोनों थे।








सनी का आगमन: एक और नज़ारा और आँखों में राज़





ठीक उसी पल, सनी रसोई में आया। वह अपने बालों को ठीक कर रहा था, पर उसकी आँखें सीधी मुझ पर और राधा मामी पर पड़ीं। उसके चेहरे पर एक नॉटी मुस्कान आ गई, और उसने एक आँख मारी। वह समझ गया कि यहाँ भी कुछ ना कुछ चल रहा है। वह सीधा प्रेमा मामी के पास गया, जो अब भी आटा गूँथ रही थीं।


सनी ने जानबूझकर प्रेमा मामी के पीछे से हाथ बढ़ाया ताकि आटा ले सके। उसके हाथ मामी की गोल कमर को छू गए, और उसने हल्का सा दबा भी दिया। प्रेमा मामी एक पल को चौंक गईं, उनका शरीर थरथराया, पर फिर कुछ बोली नहीं। सनी ने मेरी तरफ़ देखा और आँख मारी, जैसे कह रहा हो, 'देख भाई, मैं भी कम नहीं हूँ।' मैंने भी मुस्कुरा दिया, अपनी आँखों से उसे जवाब देते हुए।


यह सुबह, भाई, सिर्फ़ नाश्ते की सुबह नहीं थी। यह नानीहाल में एक नए, बोल्ड खेल की शुरुआत थी। रसोई की गरमाहट, माओं और मामियों की रसभरी फिगर, और हमारी कॉन्स्टेंट हंगर... सब कुछ एक बड़े 'धमाके' की तरफ़ इशारा कर रहा था। नानीहाल की ये दीवारें अब अनकहे राज़ों और दबी हुई इच्छाओं की गवाह बनने वाली थीं। हर कदम, हर नज़र, और हर छुअन, रिश्तों की उन बारीक हदों को पार कर रही थी, जिन्हें समाज ने सदियों से बांध रखा था।
नानीहाल की सुबह: धीमी होती चाल, बढ़ती बेचैनी





"भाई, रसोई की गरमाहट और प्रेमा मामी व राधा मामी के साथ हुए छोटे-मोटे पल मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे। सनी के साथ की रात की बातें, और सभ्या माँ व पुष्पा मौसी की मौजूदगी... सब कुछ एक अजीब सी बेचैनी पैदा कर रहा था। मेरी 6-इंच कड़क टूल अंदर ही अंदर सुलग रही थी, पर आज मैंने ख़ुद को थोड़ा धीमा रखने का फ़ैसला किया था। यह हफ़्ता लंबा था, और मैं किसी भी 'धमाके' को जल्दबाज़ी में नहीं भुनाना चाहता था।"


नाश्ते के बाद, नानीहाल में दिन की धीमी-धीमी शुरुआत हुई। बड़े-बुज़ुर्ग अपने पुराने किस्से सुना रहे थे, बच्चे आँगन में खेल रहे थे, और महिलाएँ घर के कामों में लगी थीं। माहौल में एक अजीब सी शांति थी, लेकिन मेरे अंदर की हलचल साफ़ महसूस हो रही थी।








आँगन की शांति: नज़रें करती इशारा





मैं आँगन में पड़ी एक चारपाई पर बैठ गया। मेरी नज़रें अब भी इधर-उधर घूम रही थीं, हर चेहरे को, हर चाल को स्कैन कर रही थीं। मैंने देखा, सभ्या माँ आँगन के कोने में बैठकर कुछ सुखा रही थीं। उनकी साड़ी का पल्लू उनकी पीठ पर कस रहा था, और उनके भरपूर कूल्हे हर हरकत के साथ झूल रहे थे। उनकी कमर ऐसे लग रही थी जैसे कोई कलाकृति हो। मुझे याद आया, गाड़ी में रणवीर की गोद में उनकी नज़दीकी, और उनके खुले हुए ब्लाउज़ के बटन। मेरे अंदर फिर से एक हल्की सी आग भड़की, पर मैंने उसे दबा लिया।


पास ही, पुष्पा मौसी (निर्मला) कुछ कपड़े धो रही थीं। उनका भारी-भरकम जिस्म पानी में भीगने से और भी ज़्यादा 'रसभरी' लग रहा था। उनके टाइट ब्लाउज़ से उनके मोटे बूब्स की हर हलचल साफ़ दिख रही थी। उन्होंने एक बार मेरी तरफ़ देखा और हल्की सी मुस्कान दी। मेरी आँखों ने उस मुस्कान को पकड़ लिया, जिसमें हमारी पिछली 'मस्ती' की यादें ताज़ा थीं।








सनी और पूजा: एक नया कोण





कुछ देर बाद, सनी भी आँगन में आ गया। उसने मुझे देखा और एक हल्की सी आँख मारी, जैसे रात के राज़ को याद दिला रहा हो। वह सीधा पूजा के पास गया, जो हरिराम मामा की बेटी थी और मेरी बहन वंशिका जैसी ही 38-34-38 फिगर वाली थी। पूजा अपनी 'साइड आई क्वीन' वाली नज़रें अक्सर इधर-उधर घुमाती रहती थी।


सनी और पूजा बातें करने लगे, और मैंने देखा कि सनी बार-बार पूजा की तरफ़ मुड़कर देख रहा था, उसकी आँखों में एक नई चमक थी। पूजा भी थोड़ी शर्मा रही थी, पर उसके चेहरे पर एक उत्सुकता थी। मैं समझ गया, भाई। सनी अब सिर्फ़ अपनी मामी प्रेमा तक ही सीमित नहीं रहने वाला था। इस नानीहाल में हर रिश्ता एक नए दायरे में बंध रहा था।








धीमे क़दमों से आगे बढ़ता दिन





दिन धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। कोई ख़ास घटना नहीं हुई, कोई बड़ा 'धमाका' नहीं। बस, नज़रों का खेल चल रहा था, और दबी हुई इच्छाएँ हवा में घुल रही थीं। प्रेमा मामी और राधा मामी भी घर के कामों में व्यस्त थीं, पर उनकी चाल में, उनकी आँखों में, एक नई जागरूकता थी। शायद, उन्हें भी महसूस हो रहा था कि इस घर में अब कुछ बदल चुका है।


मैं जानता था, भाई, यह सिर्फ़ दिन की शुरुआत थी। नानीहाल का यह एक हफ़्ता अभी बाक़ी था, और यहाँ हर पल एक नया राज़ खुलने वाला था। मेरे अंदर का शिकारी अभी जागा हुआ था, पर वह इंतज़ार कर रहा था सही मौक़े का।

हरतालिका तीज: हरी साड़ी, व्रत और एक गुप्त नज़ारा





"भाई, नानीहाल में दिन धीमी चाल से आगे बढ़ रहा था, पर मेरे अंदर की आग कम नहीं हुई थी। प्रेमा मामी और राधा मामी के साथ रसोई में जो नज़दीकियाँ बढ़ी थीं, और सनी के साथ की रात की बातें, सब मेरे दिमाग़ में घूम रही थीं। मेरी 6-इंच कड़क टूल हर पल कुछ नया ढूँढ रही थी, और मेरी कॉन्स्टेंट हंगर वाली आँखें किसी भी मौक़े को छोड़ने वाली नहीं थीं।"


आज हरतालिका तीज का त्यौहार था। पूरे गाँव में और ख़ासकर नानीहाल में एक अलग ही रौनक थी। सभी महिलाएँ, छोटी बच्चियों से लेकर बड़ी उम्र की औरतों तक, हरे रंग की साड़ियों में सजी हुई थीं। उनके हाथों में मेहंदी लगी थी, माथे पर बिंदिया चमक रही थी, और गले में भारी गहने थे। उन्होंने भगवान शिव और पार्वती का व्रत रखा था, और घर में भजन-कीर्तन का माहौल था।


नारी शक्ति का यह रूप देखकर भी मेरी शिकारी नज़रें शांत नहीं हुईं। मैंने देखा, सभ्या माँ अपनी सबसे ख़ूबसूरत हरी साड़ी में सजी थीं, उनके भरपूर बूब्स और ब्रह्मांड जैसी गांड साड़ी के अंदर से भी साफ़ दिख रही थी। पुष्पा मौसी (निर्मला), प्रेमा मामी, और राधा मामी भी सजी हुई थीं, हर कोई अपनी-अपनी भरपूर देसी फिगर में और भी आकर्षक लग रही थी। उनके बीच वंशिका, रितिका, कोमल, नेहा, पूजा, और स्वीटी जैसी कुंवारी लड़कियाँ भी थीं, जो टाइट सलवार और साड़ियों में अपनी जवानी का जलवा दिखा रही थीं।


दोपहर में, भजन-कीर्तन का दौर शुरू हुआ। सभी महिलाएँ आँगन में एक साथ बैठी थीं, गीत गा रही थीं और पूजा की तैयारियाँ कर रही थीं। माहौल भक्तिमय था, पर मेरे दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था। मैं एक तरफ़ बैठा सब कुछ देख रहा था, मेरी नज़रें हर चेहरे पर, हर चाल पर ठहर रही थीं।








सभ्या माँ की बेचैनी: एक अनदेखा मौक़ा





पूजा का कार्यक्रम चल रहा था और भजन अपनी पूरी गति पर थे। सभी महिलाएँ तन्मयता से गा रही थीं, और उनके चेहरे पर व्रत की थकान के साथ-साथ एक धार्मिक चमक भी थी। तभी मैंने देखा, सभ्या माँ के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी। वह बार-बार करवट बदल रही थीं, उनकी आँखों में एक अजीब सी तड़प थी। मैं समझ गया, भाई, उसे ज़ोर से पेशाब लगी थी। व्रत के कारण उसने पानी भी कम पिया होगा, और अब शरीर को आराम चाहिए था।


वह धीरे से उठीं, और बिना किसी को कुछ बताए, घर के पीछे वाले हिस्से की तरफ़ चल दीं, जहाँ बाथरूम दूर था और अक्सर लोग बाहर ही ज़रूरत पड़ने पर जाते थे। उनकी चाल में तेज़ी थी, और उनके भारी कूल्हे साड़ी के अंदर से और भी ज़्यादा हिल रहे थे।


मैंने तुरंत अपने अंदर की शिकारी प्रवृत्ति को जगाया। यह मौक़ा था, भाई! मुझे पता था कि वह कहाँ जा रही है, और मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था। मैं चुपके से उसके पीछे हो लिया, मेरी साँसें तेज़ हो चुकी थीं। मैं दीवार के पीछे छुप गया, ताकि वह मुझे देख न पाए।








गुप्त नज़ारा: एक पल में खुलते राज़





सभ्या माँ एक कोने में पहुँचीं, जहाँ कुछ घनी झाड़ियाँ थीं। उन्होंने एक बार चारों तरफ़ देखा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई नहीं है। उनकी नज़रें थोड़ी घबराई हुई थीं, पर ज़रूरत इतनी ज़्यादा थी कि वह अब और इंतज़ार नहीं कर सकती थीं।


फिर, भाई, वह पल आया जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था। सभ्या माँ ने धीरे से अपनी हरी साड़ी को ऊपर उठाना शुरू किया। उनकी भरपूर जाँघेंऔर गोरी चमड़ी धीरे-धीरे मेरे सामने आ रही थीं। साड़ी उनके घुटनों से ऊपर उठी, फिर उनकी जाँघों तक पहुँची, और आख़िरकार उनकी मोटी गांड का ऊपरी हिस्सा दिखना शुरू हो गया। उनके शरीर का हर वक्र, हर उभार, अब मेरे सामने था। मेरा 6-इंच कड़क टूल ज़ोर से झटका मारा, जैसे वह इस नज़ारे का इंतज़ार कर रहा हो।


साड़ी को कमर तक उठाने के बाद, सभ्या माँ ने एक गहरी साँस ली। फिर, उन्होंने धीरे से अपनी नीचे पहनी हुई चड्डी को नीचे करना शुरू किया। उनकी मोटी गांड और भरपूर हिप्स चड्डी के नीचे जाने से और भी साफ़ दिख रहे थे। चड्डी उनके घुटनों तक आई, और फिर ज़मीन पर गिर गई। अब वह पूरी तरह से मेरे सामने अधूरी नग्न खड़ी थीं, उनकी साड़ी कमर तक उठी हुई थी, और चड्डी पैरों के पास पड़ी थी। उनकी भरपूर जवानी, जो हमेशा साड़ियों में छुपी रहती थी, अब मेरे सामने खुली थी।


उन्होंने सावधानी से अपनी जगह ली, और धीरे से नीचे बैठ गईं। उनके भारी कूल्हे ज़मीन पर टिके, और उन्होंने राहत की साँस ली। पेशाब की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी, जो मेरे कानों में संगीत की तरह गूँज रही थी। उनकी आँखों में अब सिर्फ़ राहत थी, व्रत की थकान और शरीर की ज़रूरत ने उन्हें किसी और चीज़ के बारे में सोचने का मौक़ा नहीं दिया।


मैं वहाँ खड़ा था, एक पत्थर की मूर्ति की तरह, इस नज़ारे को अपनी आँखों में समेटता हुआ। सभ्या माँ, जो बाहर से पूजा-पाठ वाली माँ थीं, और पतिव्रता की प्रतीक मानी जाती थीं, इस पल में मेरी नज़रों के सामने अपनी सबसे कच्ची अवस्था में थीं। उनके चेहरे पर कोई शर्म नहीं थी, बस शरीर की पुकार का जवाब था।








एक नया अहसास: माँ के लिए बढ़ती चाहत





जब वह पेशाब कर चुकीं, तो उन्होंने धीरे से उठना शुरू किया। पहले उन्होंने अपनी चड्डी ऊपर खींची, फिर साड़ी को नीचे किया। उनकी हर हरकत इतनी धीमी थी कि मैं सब कुछ साफ़ देख पा रहा था। जब वह पूरी तरह से उठ गईं, तो उन्होंने एक आख़िरी बार चारों तरफ़ देखा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई नहीं था। फिर वह धीरे से पूजा के स्थल की तरफ़ वापस चल दीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो।


मैं वहाँ कुछ देर तक खड़ा रहा, इस नज़ारे के प्रभाव में। सभ्या माँ ने अनजाने में ही सही, मुझे एक ऐसा राज़ दिया था, जो अब मेरे अंदर और गहरा उतर गया था। इस घटना ने मेरे अंदर अपनी माँ के लिए एक नई ही तरह की चाहत जगा दी थी। यह सिर्फ़ शारीरिक आकर्षण नहीं था, बल्कि एक ऐसी भावना थी जो रिश्तों की हर मर्यादा को तोड़ने के लिए तैयार थी।


मैं जानता था, भाई, यह हरतालिका तीज का त्यौहार, अब सिर्फ़ व्रत और भजन का त्यौहार नहीं था। यह एक ऐसा पल था जिसने मुझे सभ्या माँके और क़रीब ला दिया था, एक ऐसे रास्ते पर जहाँ वापसी नामुमकिन थी। नानीहाल की ये दीवारें, ये झाड़ियाँ, अब हमारे बीच के इस गुप्त राज़ की गवाह बन चुकी थीं।

हरतालिका तीज की रात: 'मज़बूत इंजन' और दबी इच्छाओं का विस्फोट (अर्जुन की अनुपस्थिति में)





शाम ढल चुकी थी और हरतालिका तीज का व्रत पूरा हो गया था। महिलाओं ने चंद्र दर्शन कर पानी पिया और अपना व्रत खोला। घर में प्रसाद और पकवानों की ख़ुशबू फैल चुकी थी। सब लोग खा-पीकर थक चुके थे। पुरुष एक तरफ़ बैठकर बातें कर रहे थे, और बच्चे आँगन में खेल रहे थे।








कमरे की खामोशी: पुष्पा और सभ्या का एकांत





रात काफ़ी हो चुकी थी। नानीहाल के बड़े घर में, लोग अलग-अलग कमरों में सोने चले गए थे। सभ्या माँ और पुष्पा मौसी (निर्मला) एक कमरे में थीं, जहाँ वे एक साथ रुकने वाली थीं। उन्होंने अपनी हरी साड़ियाँ बदल दी थीं और अब हल्की, ढीली साड़ियों में थीं। कमरे में हल्की रोशनी थी, और हवा में फूलों की भीनी-भीनी ख़ुशबू घुल रही थी।








पतियों पर बातें: 'आज भी सांड' का प्रमाण





सभ्या ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "दीदी, आज तो व्रत करके शरीर टूट गया।"


पुष्पा ने हँसते हुए जवाब दिया, "हाँ, बहन। पर क्या करें? इनकी लंबी उम्र के लिए करना पड़ता है। वैसे, बता, तेरे राघव का इंजन अब कैसा चल रहा है? अभी भी वैसे ही कड़क है या ठंडा पड़ गया है?" उसकी आवाज़ में एक शरारती टोन थी।


सभ्या हल्की सी हँसी। "अरे दीदी, क्या पूछती हो? मेरा राघव तो आज भी वैसे ही सांड है। चाहे जितनी उम्र हो जाए, उनका इंजन कभी धीमा नहीं पड़ता। रोज़ का वही जोश, वही ताक़त।" उसकी आवाज़ में एक गर्व था। "कभी-कभी तो सोचती हूँ, थकते नहीं हैं क्या! अभी भी वो जवानी वाली आग है, वो पागलपन है।"


"हाँ, बिलकुल ठीक कह रही है!" पुष्पा ने भी आह भरते हुए कहा। "मेरे दिनेश का भी वही हाल है। उम्र का असर दिखता ही नहीं इनपर। पहले तो सांड की तरह कूदते थे बिस्तर पर, और आज भी कोई कमी नहीं। बस, अपनी मर्ज़ी से चलते हैं, और वो भी पूरी ताक़त से। मज़ा तो आज भी पूरा आता है!"


दोनों कुछ देर चुप रहीं, अपने पतियों की मर्दानगी पर गर्व करती हुई, पर उनकी आँखों में एक अलग ही दबी हुई चाहत की चमक थी।








जवानी की यादें: पवित्रता का दावा और दबी आग





"याद है दीदी," सभ्या ने आवाज़ में पुरानी यादें भरते हुए कहा, "जब हम कुंवारे थे? वो होली के दिन... गाँव के लड़कों की नज़रें... और वो शरारतें... कितना जोश था तब।"


"अरे मत पूछ, बहन!" पुष्पा ने अचानक उत्तेजित होते हुए कहा। "मुझे तो याद है, जब तू छोटी थी, तो कितनी शरारती थी। और तेरी जवानी तो जैसे आग थी! सब लड़के तेरी तरफ़ देखते थे। तेरे भरपूर कूल्हे और छाती को साड़ियों के ऊपर से घूरते रहते थे। पर हम कितनी पवित्र थीं ना? किसी को छूने तक नहीं दिया।"


"हाँ, दीदी, बिलकुल सही कह रही हो!" सभ्या ने भी मज़ाक में कहा। "और तुम, दीदी! तुम भी कम नहीं थीं। तुम्हारी तो फिगर ही ऐसी थी कि सब देखते रह जाते थे। मुझे याद है, एक बार हम नदी नहाने गए थे, और तुम्हारी वो भरी हुई छाती... सब साफ़ दिख रही थी। गाँव के जवान लड़के तो तुम्हें देख कर पागल हो जाते थे। पर हमने अपनी पहली चुदाई सिर्फ़ अपने पतियों से ही कराई। कितनी सीधी थीं हम।"


दोनों की आवाज़ों में अब एक नई ही तरह की उत्तेजना थी। वे अपनी जवानी, अपनी कामुकता और अपनी 'पवित्रता' को याद कर रही थीं, पर उन बातों के पीछे एक दबी हुई आग थी, जो शायद अब तक शांत नहीं हुई थी।








नज़दीकी बढ़ती हुई: छुअन का पहला कदम





दोनों कुछ देर तक पुरानी बातें करती रहीं, फिर पुष्पा ने करवट बदली और सभ्या के और क़रीब आ गईं। "सभ्या, तेरी बात सुनकर मुझे वो दिन याद आ गए, जब हम लड़कपन में थे। तू मुझे कितनी अच्छी लगती थी, बिलकुल गुड़िया जैसी।"


पुष्पा ने धीरे से अपना हाथ सभ्या की बांह पर रखा। सभ्या के शरीर में एक हल्का सा कंपन हुआ, पर उसने रोका नहीं। पुष्पा का हाथ धीरे-धीरे सभ्या की बांह से ऊपर की तरफ़ बढ़ा, उसके कंधे की तरफ़, और फिर धीरे से उसकी गर्दन को छुआ।


"मुझे याद है, बहन," पुष्पा ने फुसफुसाते हुए कहा, "एक बार तूने मुझे गले लगाया था, और तेरे नरम-नरम स्तन मेरे बदन से छू गए थे... मुझे उस दिन बड़ा अजीब लगा था, पर अच्छा भी लगा था।"


सभ्या की साँसें तेज़ हो गईं। उसने धीरे से अपना हाथ उठाया और पुष्पा की कमर पर रखा। "दीदी... तुम भी तो तब कितनी भरी हुई थीं। तुम्हारी छाती देखकर लगता था जैसे दो तरबूज़ रखे हों।"








समलैंगिक संबंध: पहला कदम और बढ़ती आग





अब माहौल पूरी तरह बदल चुका था। दोनों की आवाज़ों में शरम नहीं, बल्कि एक गहरी चाहत थी। पुष्पा ने हिम्मत की और अपना हाथ सभ्या के ब्लाउज़ के ऊपर से उसके भरपूर स्तन पर रखा। सभ्या ने एक गहरी साँस ली, और उसकी आँखें बंद हो गईं।


"आह... दीदी..." सभ्या ने सिसकते हुए कहा।


पुष्पा ने धीरे से sabhya के स्तन को दबाना शुरू किया। "तेरी ये छाती तो हमेशा से ही ऐसी भरी हुई थी, सभ्या। कितनी रसीली है।"


फिर, पुष्पा ने धीरे से अपना हाथ sabhya की साड़ी के अंदर डाला, और उसके पेट को सहलाया, उसकी मुलायम नाभि को छूते हुए। sabhyaका शरीर पूरी तरह से थरथरा रहा था। उसने भी हिम्मत की और पुष्पा के ब्लाउज़ के अंदर अपना हाथ डाला, और उसके मोटे बूब्स को सहलाने लगी।


"दोनों एक-दूसरे के शरीर को छूने लगीं, उनकी दबी हुई इच्छाएँ बाहर आ रही थीं। पुरानी यादें, और जवानी की अधूरी चाहतें... सब कुछ उन्हें एक-दूसरे की तरफ़ धकेल रहा था। वे दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के और क़रीब आईं, उनके होंठ एक-दूसरे को छूने लगे, और एक लंबी, गहरी किस शुरू हो गई।"


उनके साँसों की आवाज़, उनके जिस्मों के रगड़ने की आवाज़... सब कुछ कमरे की शांति में साफ़ सुनाई दे रहा था। यह सिर्फ़ एक शुरुआत थी। नानीहाल की इस रात में, सभ्या माँ और पुष्पा मौसी ने रिश्तों की हर सीमा को लांघ दिया था। यह समलैंगिक संबंध उनके लिए एक नया अनुभव था, जो उनकी सालों की दबी हुई इच्छाओं का विस्फोट था।


इस रात के बाद, मोहनपुर के रिश्तों की परिभाषा हमेशा के लिए बदल जाएगी।

हरतालिका तीज की रात: देह की प्यास और नई सीमाएं (पार्ट 2)





रात गहरी हो चुकी थी। नानीहाल के उस कमरे में जहाँ सभ्या और पुष्पा लेटी थीं, अब पूरी तरह से खामोशी छा गई थी, लेकिन यह खामोशी उनके अंदर सुलग रही आग का परिणाम थी। पतियों की मर्दानगी पर गर्व भरी बातें करने के बाद, अपनी जवानी की यादें ताज़ा करते हुए, उन्होंने एक-दूसरे में उस अधूरी प्यास को पा लिया था, जो कभी उनके अपने 'सांड' पतियों से भी पूरी नहीं हुई थी।








निर्वस्त्र देह: सीमाएं टूटती हुई





एक गहरी, लंबी किस के बाद, सभ्या और पुष्पा की सांसें तेज़ चल रही थीं। उनके होंठ अलग हुए, लेकिन उनकी आँखें एक-दूसरे में खोई हुई थीं। पुष्पा ने धीरे से अपना हाथ सभ्या के गाल पर रखा।


"सभ्या," पुष्पा की आवाज़ एक फुसफुसाहट में बदल गई, "आज रात... मुझे ऐसा लग रहा है जैसे हम वापस अपनी जवानी में आ गए हैं।"


सभ्या ने अपनी आँखें बंद कर लीं। "मुझे भी, दीदी। ऐसा लग रहा है जैसे मैं सालों से इस पल का इंतज़ार कर रही थी।"


फिर, बिना किसी और शब्द के, पुष्पा ने धीरे से सभ्या की ढीली साड़ी का पल्लू हटाया। सभ्या ने भी अपनी साड़ी का आँचल हटा दिया। उनके ब्लाउज़ अभी भी अपनी जगह पर थे, लेकिन उनकी आँखों में अब एक नया आमंत्रण था।


पुष्पा ने धीरे से सभ्या के ब्लाउज़ के बटन खोलना शुरू किया। एक-एक करके बटन खुलते गए, और सभ्या के भरपूर स्तन धीरे-धीरे सामने आने लगे। उनका टाइट ब्लाउज़ उनके मोटे बूब्स पर कस रहा था, और अब वह पूरी तरह से आज़ाद होने को बेताब थे। जब आख़िरी बटन खुला, तो सभ्या ने गहरी साँस ली, और उसके गोल, कसे हुए स्तन उसकी आँखों के सामने उभर आए, जैसे दो बड़े तरबूज़ हों।


सभ्या ने भी हिम्मत की और पुष्पा के ब्लाउज़ के बटन खोले। पुष्पा की भी 44-38-48 फिगर थी, और उसके भारी बूब्स भी ब्लाउज़ से बाहर आते ही पूरी तरह से फैल गए। दोनों के ब्लाउज़ एक तरफ़ गिरे, और अब वे सिर्फ़ पेटीकोट और साड़ियों में थीं, जो उनकी कमर पर कसकर बंधी थीं।


"दीदी, तुम तो हमेशा से ही इतनी भरी हुई थीं," सभ्या ने फुसफुसाते हुए कहा, और अपना हाथ पुष्पा के एक स्तन पर रखा। उसकी त्वचा नर्म और मुलायम थी।


"और तेरी ये जवानी, सभ्या," पुष्पा ने जवाब दिया, सभ्या के दूसरे स्तन को सहलाते हुए। "मुझे याद है, गाँव के लड़के कैसे तेरी तरफ़ देखते थे।"


दोनों ने एक-दूसरे के स्तनों को धीरे-धीरे सहलाना शुरू किया। उनकी साँसें तेज़ हो चुकी थीं, और उनकी आँखों में अब सिर्फ़ वासना थी। वे अपनी साड़ियों और पेटीकोट को हटाने में अब और देर नहीं करना चाहती थीं।


"चलो, बहन," पुष्पा ने कहा, और धीरे से अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर खींचना शुरू किया। सभ्या ने भी उसका साथ दिया। एक-एक करके कपड़े उनके शरीर से अलग होते गए, और चंद पलों में, दोनों बहनें पूरी तरह से निर्वस्त्र एक-दूसरे के सामने लेटी थीं। कमरे की हल्की रोशनी में उनके भरपूर, रसभरी जिस्म चमक रहे थे। सभ्या की ब्रह्मांड जैसी गांड और पुष्पा के मोटे कूल्हे अब पूरी तरह से खुले थे। उनकी मोटी-मोटी जांघें और गोलेदार पेट अब पूरी तरह से एक-दूसरे के लिए उपलब्ध थे।








देह की प्यास: चुसाई का खेल





अब कोई शर्म नहीं थी, कोई हिचकिचाहट नहीं। वे दोनों अपनी जवानी की अधूरी प्यास बुझाने को तैयार थीं।


पुष्पा ने धीरे से अपना मुँह सभ्या के स्तन के पास लाया और उसके निप्पल को अपने होंठों में ले लिया। सभ्या के मुँह से एक धीमी सी आह निकली। पुष्पा ने धीरे-धीरे सभ्या के निप्पल को चूसना शुरू किया, जैसे कोई बच्चा माँ का दूध पी रहा हो। उसकी जीभ सभ्या के स्तन के चारों ओर घूम रही थी, उसे उत्तेजित कर रही थी।


"आह... दीदी... कितना अच्छा लग रहा है..." सभ्या ने कहा, अपनी आँखें बंद करते हुए।


सभ्या ने भी अपनी बारी ली। उसने अपना मुँह पुष्पा के एक स्तन पर रखा और उसे धीरे से चूसना शुरू किया। पुष्पा के निप्पल तुरंत कड़क हो गए, और उसने भी एक लंबी आह भरी। दोनों बहनें अब एक-दूसरे के स्तनों को पूरी लगन से चूस रही थीं, उनकी जीभें, होंठ और साँसें एक-दूसरे में समा रही थीं।


स्तनों को चूसते हुए, पुष्पा का हाथ धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ा। उसने सभ्या की मुलायम नाभि को छुआ, और फिर अपना हाथ और नीचे ले गई, जहाँ सभ्या की मोटी, गोल योनि थी। उसने धीरे से अपनी उंगलियों से सभ्या की योनि के ऊपरी हिस्से को सहलाया।


"पुष्पा दीदी... आह..." सभ्या ने अपनी टांगें हल्की सी फैला दीं।


पुष्पा ने अपना एक हाथ सभ्या की जांघों के बीच रखा और धीरे से उसकी योनि को छूना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे अंदर जाने की कोशिश कर रही थीं। सभ्या का शरीर पूरी तरह से संवेदनशील हो चुका था, और वह पुष्पा की हर छुअन पर प्रतिक्रिया दे रही थी।


सभ्या ने भी अपना हाथ पुष्पा की योनि की तरफ़ बढ़ाया। पुष्पा की योनि भी काफ़ी भरी हुई और रसीली थी। सभ्या ने धीरे से उसे सहलाना शुरू किया, और फिर अपनी उंगलियों से पुष्पा के योनिद्वार को महसूस किया।


"बहन... आह... सभ्या..." पुष्पा ने अपनी कमर हल्की सी ऊपर उठाई।








गहराई और पागलपन: एक-दूसरे में खोई हुई





दोनों बहनें अब एक-दूसरे को उत्तेजित करने में पूरी तरह से लीन थीं। उनकी आवाज़ें कमरे में गूँज रही थीं, और उनके जिस्मों का मिलन अब एक नए स्तर पर पहुँच रहा था। वे अपनी जवानी के उन दिनों को याद कर रही थीं, जब वे पवित्रता का दावा करती थीं, लेकिन अब उनकी देह की प्यास उन्हें एक-दूसरे में मिल रही थी।


पुष्पा ने सभ्या के स्तनों को चूसते हुए अपनी उंगलियों से उसकी योनि में हल्का दबाव बनाना शुरू किया, जैसे वह उसे अंदर लेना चाहती हो। सभ्या भी पुष्पा की योनि को सहला रही थी, उसकी उंगलियाँ उसके योनिद्वार के चारों ओर घूम रही थीं।


कमरे में सिर्फ़ उनकी साँसों, आहों और जिस्मों के रगड़ने की आवाज़ें थीं। हरतालिका तीज की वो रात, नानीहाल के उस छोटे से कमरे में, दो बहनें अपनी दबी हुई इच्छाओं को पूरी आज़ादी से जी रही थीं। यह सिर्फ़ समलैंगिक संबंध नहीं था, बल्कि दो आत्माओं का मिलन था, जो सालों से एक-दूसरे की तलाश में थीं। उनकी 'पवित्रता' का आवरण अब पूरी तरह से उतर चुका था, और उनकी देह की प्यास ही उनकी सबसे बड़ी सच्चाई थी।
हरतालिका तीज की रात: देह की प्यास और नई सीमाएं (पार्ट 3 - चरम की ओर)





रात अब अपने चरम पर थी। सभ्या और पुष्पा नानीहाल के उस कमरे में पूरी तरह से निर्वस्त्र एक-दूसरे में खोई हुई थीं। स्तनों की चुसाई और योनि को सहलाने के बाद, उनकी देह की प्यास और बढ़ गई थी। उनके पतियों की 'सांड' जैसी मर्दानगी की कहानियाँ अब दूर की कौड़ी लग रही थीं, क्योंकि इस पल में, सिर्फ़ उनकी अपनी इच्छाएँ ही मायने रखती थीं।








69 का खेल: जीभ से गहराइयाँ





पुष्पा ने सभ्या के स्तन को छोड़ दिया, लेकिन उनकी आँखें अभी भी एक-दूसरे में बसी हुई थीं। एक पल को वे दोनों बस लेटी रहीं, अपनी साँसों को नियंत्रित करने की कोशिश करती हुईं। फिर, पुष्पा ने धीरे से एक टांग उठाई और सभ्या के ऊपर से घूमकर दूसरी तरफ़ आ गईं।


"सभ्या," पुष्पा ने फुसफुसाते हुए कहा, उनकी आवाज़ में अब एक नया ही आत्मविश्वास था, "क्या तूने कभी... कुछ और आज़माया है?"


सभ्या ने धीरे से सिर हिलाया, उसकी आँखें चमक रही थीं। "नहीं, दीदी। कभी नहीं।"


"तो आज आज़मा ले," पुष्पा ने कहा, और धीरे से अपनी स्थिति बदलनी शुरू की। उसने अपने शरीर को इस तरह से घुमाया कि उसका मुँह सभ्या की योनि के पास आ गया, और सभ्या का मुँह पुष्पा की योनि के पास। वे दोनों अब 69 की स्थिति में थीं, एक-दूसरे की कामुकता का सामना करती हुईं, निर्वस्त्र और बेताब।


इस स्थिति में आते ही, दोनों के मुँह से एक हल्की सी आह निकली। उनके भरपूर जिस्म एक-दूसरे से पूरी तरह से सटे हुए थे, उनकी मोटी जांघेंएक-दूसरे को छू रही थीं, और उनकी भरपूर छातियाँ ज़मीन पर फैली हुई थीं।








रस की प्यास: जीभों का जादू





पुष्पा ने पहला वार किया। उसने धीरे से अपनी जीभ सभ्या की मोटी, रसीली योनि के ऊपरी हिस्से पर रखी। सभ्या का शरीर झटका खा गया, और उसके मुँह से एक ज़ोरदार आह निकली। पुष्पा ने अपनी जीभ से सभ्या की योनि के क्लिटोरिस को हल्के से सहलाना शुरू किया। सभ्या ने अपनी टांगें और फैला दीं, और उसका शरीर पूरी तरह से पुष्पा की जीभ के इशारों पर नाचने लगा।


"आह... दीदी... और... और तेज़..." सभ्या ने मुँह खोलकर कहा, उसकी साँसें बेक़ाबू हो चुकी थीं।


पुष्पा ने सभ्या की योनि को चूसना शुरू किया, उसकी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी, सभ्या के शरीर से बहने वाले रस को वह पूरा स्वाद ले रही थी। सभ्या का रस मीठा और नमकीन था, और पुष्पा उसे पूरा पी रही थी, जैसे वह अमृत हो। सभ्या की योनि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी, और उसकी गंध पूरे कमरे में फैल रही थी, दोनों को और उत्तेजित कर रही थी।








सभ्या का पलटवार: पुष्पा की प्यास





सभ्या भी पीछे नहीं थी। पुष्पा की योनि उसके मुँह के ठीक सामने थी, भरी हुई और उत्तेजित। सभ्या ने धीरे से अपनी जीभ पुष्पा की रसीली योनिपर रखी। पुष्पा का शरीर भी झटके से उछल पड़ा, और उसके मुँह से एक तीव्र आह निकली। सभ्या ने पुष्पा के क्लिटोरिस को अपनी जीभ से चूसना शुरू किया, धीरे-धीरे, फिर और तेज़।


"बहन... सभ्या... आह... ज़ोर से..." पुष्पा ने कहा, उसकी आँखें बंद थीं और उसका शरीर हवा में उठ रहा था।


सभ्या ने पुष्पा की योनि को पूरी लगन से चूसना शुरू किया। उसकी जीभ पुष्पा के योनिद्वार के अंदर-बाहर हो रही थी, और वह उसके रस को पूरा पी रही थी। पुष्पा का रस भी मीठा और नशीला था, और सभ्या उसे पूरा स्वाद ले रही थी, जैसे वह सालों की प्यास बुझा रही हो। पुष्पा की योनि पूरी तरह से गीली और चिपचिपी हो चुकी थी।


दोनों बहनें अब पूरी तरह से इस 69 के खेल में खोई हुई थीं। उनकी जीभें एक-दूसरे की कामुकता में गोते लगा रही थीं, एक-दूसरे का रस पी रही थीं, और एक-दूसरे को चरम सुख की तरफ़ धकेल रही थीं। उनके शरीर की हर नस, हर कोशिका उत्तेजित हो चुकी थी। उनकी मोटी जांघें हवा में थीं, और उनके भरपूर कूल्हे हर चुसाई के साथ हिल रहे थे।








वासना का चरम: दो आत्माओं का मिलन





कमरे में सिर्फ़ उनकी साँसों की आवाज़ें थीं, उनके होंठों और जीभों के गीले होने की आवाज़, और उनके शरीरों के रगड़ने की आवाज़। वे दोनों अपनी 'पवित्रता' के उन दावों को भूल चुकी थीं, जो उन्होंने अपनी जवानी में किए थे। अब उनकी सच्चाई उनकी देह की प्यास थी, जिसे वे एक-दूसरे के ज़रिए बुझा रही थीं।


पुष्pa ने sabhya की योनि को चूसते हुए अपनी उंगलियों से उसकी मोटी जांघों को सहलाना शुरू किया, उन्हें और फैलाने की कोशिश करती हुई। sabhya भी पुष्pa की योनि को चूसते हुए अपने हाथों से उसकी भरपूर छाती को मसल रही थी, और उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से खींच रही थी।


दोनों ने एक साथ अपनी गति तेज़ की। उनकी जीभें और तेज़ी से एक-दूसरे के अंदर-बाहर हो रही थीं, और उनके मुँह से आहों का शोर और बढ़ गया था। वे अब अपने चरम पर पहुँच रही थीं। एक साथ, दोनों के शरीर में एक तेज़ कंपन हुआ, और वे दोनों एक साथ चरम सुख को प्राप्त हुईं। उनके शरीर में एक तीव्र झटका लगा, और वे दोनों एक-दूसरे पर गिर गईं, थक चुकी थीं, पर पूरी तरह से संतुष्ट।


उनकी साँसें अब भी तेज़ी से चल रही थीं, और उनके शरीर पसीने से भीगे हुए थे। वे थोड़ी देर तक वैसे ही 69 की स्थिति में लेटी रहीं, अपनी जीभों से एक-दूसरे के रस का आख़िरी स्वाद लेती हुईं। यह सिर्फ़ एक समलैंगिक संबंध नहीं था, यह दो बहनों की आत्माओं का मिलन था, जो सालों की अधूरी प्यास के बाद एक-दूसरे में अपना सच्चा सुकून पा चुकी थीं।





क्या यह रात उनके रिश्ते को हमेशा के लिए बदल देगी? और क्या इस 'चरम' सुख के बाद, उनकी ये गुप्त रातें जारी रहेंगी या किसी और मोड़ पर खत्म होंगी?
 
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