• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,748
259
Last edited:

B2.

New Member
82
231
33
भाग:–87





दोबारा वो लोग हूटिंग करने लगे। मुझे कंधे पर बिठा लिया। मुझसे वहीं रुकने का आग्रह करने लगे और साथ में शिकार की कुछ ट्रेनिंग भी देने। खैर रुकने और ट्रेनिंग के लिये तो मैं राजी हुआ ही साथ में वुल्फ हाउस और ब्लैक फॉरेस्ट को पूरा मुक्त कराने का क्रेडिट भी शिकारियों को दे दिया। बदले में मैने उनसे वुल्फ हाउस का मालिकाना हक मांग लिया। मैं उस प्रॉपर्टी को नहीं छोड़ना चाहता था, जहां मेरे इवोल्यूशन की कहानी लिखी गयी थी। मैने तो अपना मांग लिया लेकिन बॉब मेरे पीछे अपनी काफी जमा पूंजी उड़ा चुका था, इसलिए उसने 1 लाख यूरो मांग लिया।


बॉब की ख्वाइश तो दुगनी पूरी हुई। शिकारियों ने उसे 2 लाख यूरो दे दिये। मेरे मांग में थोड़ी अर्चन आयी लेकिन मैक्स ने मेरी ख्वाइश पूरी कर दिया। हां लेकिन मुझे वुल्फ हाउस के लिये अलग से 1 लाख यूरो देने पड़े थे। वुल्फ हाउस की पूरी प्रॉपर्टी मेरी हुई। मैं वुल्फ हाउस छोड़ने से पहले अपनी यादें वहां छोड़ना चाहता था, इसलिए मैक्स के प्रस्ताव को मैने स्वीकार कर लिया।


वहां मैं और बॉब कुछ महीनो तक ठहरे। मुझे कुछ यादों को मूर्त रूप देना थे इसलिए जरूरी हो गया था कुछ लोगों की यादें चुराना। फालतू काम था, लेकिन मुझे करना पड़ा। जर्मनी के सबसे बढ़िया शिल्पकार का हमने पता लगाया। पता चला अपना देशी शिल्पकार ही था। राजस्थान का एक शिल्पकार परिवार पलायन करके जर्मनी में बसा था, जिसके पास ऐसा हुनर था कि किसी दुल्हन का घूंघट भी वह पत्थर को तराशकर बनाते थे जो अर्द्ध पारदर्शी होता और घूंघट के पीछे दुल्हन का चेहरा देखा जा सकता था। उसके अलावा मैं एक मेकअप आर्टिस्ट से भी मिला।


दोनो के हुनर मेरे पास थे और दोनो को उसके बदले मैने एक लाख यूरो दिया था। मुझे हुनर सीखाने की कीमत। मेरे और बॉब के बीच की बातें जारी रही साथ में वुल्फ हाउस की बहुत सी यादों को मैं मूर्त रूप दे रहा था। कुछ महीनो में मैने वहां 400 प्रतिमा बना दिया, जिसमे वुल्फ और इंसान दोनो की प्रतिमा थी। पूरी प्रॉपर्टी में प्रतिमा ही नजर आती। पहले दिन की खूनी रस्म से लेकर आखरी दिन की लड़ाई को मैने मूर्त रूप दे दिया था। इसी बीच अमेजन के जंगल की एक अल्फा हीलर फेहरीन के कारनामे की दास्तान बॉब ने शुरू कर दिया। बॉब चाहता था कुछ प्रतिमा जड़ों से ढका रहे। बॉब इकलौता ऐसा था जिसे फेहरीन के एक अप्रतिम कीर्तिमान का ज्ञान था। क्ला को जमीन में घुसाकर जमीन से जड़ों को निकाल देना।


थोड़े दिन की मेहनत और मैं भी फेहरीन की तरह कीर्तिमान स्थापित करने में कामयाब रहा था। कई पत्थरों पर मैने जड़ों को ऐसे फैलाया जैसे सच के कोई इंसान या जानवर खड़े थे। प्रतिमाओं को स्थापित करने के बाद उनके मेकअप का काम मैने शुरू किया। पूरे वुल्फ हाउस को मैने अपनी कल्पना दी थी। प्रतिमाओं के जरिये मैंने शेप शिफ्ट करने की पूरी प्रक्रिया को ही 5–6 प्रतिमाओं में दिखा दिया था। ईडन का बड़ा सा डायनिंग टेबल हॉल के मध्य में बनाया और 80 कुर्सियों पर इंसान और वेयरवॉल्फ को साथ बैठे दिखाया था। कुल मिलाकर मैं अपने इवोल्यूशन की कहानी वहां पूरा दर्शा गया। और अंदर के जंगल में देखने वाले मेहसूस करते की एक वेयरवोल्फ कितना दरिंदे हो सकते थे।


वुल्फ हाउस के दायरे में जितना जंगल पड़ता था, उसमे मैने अपने ऊपर के अत्याचार की कहानी लिखी थी। कई दरिंदे एक असहाय को नोचते हुये। वहां मैने छोटी सी प्रेम कहानी को भी कल्पना की मूर्त रूप दिया था। जिसके आगे मैने एक मतलबी लड़की की कहानी भी दर्शा दिया जिसने मेरे भावनाओं के साथ खेला था। और इन सब चक्र के अंत में मेरा आखरी इवोल्यूशन, एक श्वेत रंग का वेयरवॉल्फ, जो वहां के इंसान और वेयरवॉल्फ के बीच शांति स्थापित करने का कार्य किया था। 6 महीने से ऊपर लगे लेकिन जब मैने पहली बार वुल्फ हाउस का दरवाजा खोलकर लोगों को अंदर आने दिया और वुल्फ हाउस का पूरा प्रांगण घुमाया, तब वह जगह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन गया।


मैक्स और उसकी टीम को जब खबर लगी वो लोग भी पूरे जत्थे के साथ घूमने पहुंचे और वहां के प्रतिमाओं को देखकर कहने लगे... "जो सुपरनैचुरल दुनिया को नही जानते है, उनके लिये भी तुमने जीवंत उदाहरण छोड़ दिया है। वेयरवोल्फ के बदलाव से लेकर उनकी पूरी क्रूरता की कहानी। हां लेकिन एक प्रतिमा को तुमने मसीहा दिखाया है। क्या सुपरनैचुरल की दुनिया में भी अच्छे वुल्फ होते है।"… बस मैक्स का ये एक सवाल पूछना था और बॉब के पास तो वैसे भी कहानियों की कमी नही थी। और हर अच्छे वुल्फ के कहानी की शुरवात वो फेहरीन से ही करता था।


उस दिन जब मैक्स कई सैलानियों के साथ वुल्फ हाउस पहुंचा तब उसने मुझे एक बार और फसा दिया। जैसा ही उसने सबको बताया की ये कलाकृतियां मेरी है। कुछ लड़कियां मर मिटी। वो सामने से चूमने और बहुत कुछ करने को बेकरार थी। मैं उनकी भावना समझ तो रहा था लेकिन किसी स्त्री के साथ संभोग.. शायद इसके लिये मुझे बहुत इंतजार करना था। मेरी हालत पतली और कमीना बॉब मजे ले रहा था। किसी तरह जान बचाकर निकला।


वो जगह जंगल प्रबंधन ने मुझसे लीज पर ले लिया और सैलानियों के मनोरंजन के लिये उसे हमेशा के लिये खोल दिया गया था। मैं भी एक शर्त के साथ राजी हो गया की मुझे इस जगह का कोई लाभ नहीं चाहिए, बस ये संपत्ति हमेशा मेरी रहेगी। उन लोगों ने मेरी शर्त पर सहमति जता दी। जर्मन का काम खत्म करके एक बार फिर मैं और बॉब, बोरीयल, रशिया के जंगलों के ओर रुख कर चुके थे।


बॉब और फेहरीन। जैसे वो फेहरीन का भक्त था। बॉब से बातें करते वक़्त फिर वो पहला जिज्ञासा भी सामने आया जो मुझे नागपुर आने पर मजबूर किया था। बॉब अमेजन के जंगलों की ओर निकला था, क्योंकि गुयाना की एक वेयरवुल्फ अल्फा, नाम फेहरिन, हां तुम्हारी आई रूही उन्हीं की बात कर रहा हूं। बॉब उसी अल्फा हीलर से मिलने गया था। उसमे हील करने की अद्भुत क्षमता थी, शायद मेरे जितनी या मुझ से भी कहीं ज्यादा। लेकिन बॉब जबतक मिल पता, वहां शिकारियों का हमला हो गया। उसके पैक को खत्म कर दिया गया और उसे भारत के सबसे ख़तरनाक शिकारी पकड़कर नागपुर, ले आये थे।


बॉब की जानकारी को मैंने तब अपडेट नहीं किया। मैंने उसे नहीं बताया कि मै जानता हूं महान अल्फा हीलर फेहरीन को कौन शिकारी लेकर गये? मैं नागपुर लौटा क्योंकि मेरे मन में एक ऐसे अल्फा हीलर से मिलने की जिज्ञासा थी, जिसने अपना एक मुकाम हासिल किया था। जब भी बॉब तुम्हारी मां की बात करता ना वो बस यही कहता इंसानियत को ज़िंदा रखने का ज़ज़्बा किसी और मे हो नहीं सकता। एक नहीं फिर फेहरीन के हजार किस्से थे बॉब के पास, और हर बार फेहरीन से जुड़े नये किस्से ही होते। हां लेकिन तब ना तो बॉब को पता था और ना ही मुझे की शिकारी और सरदार खान ने मिलकर उसका क्या हाल किया। यदि उसके बचे 3 बच्चों (रूही, ओजल, इवान) के लिए मै कुछ कर रहा हूं तो ये मेरे लिए गर्व कि बात है।


वहीं मेरी दूसरी जिज्ञासा थी अनंत कीर्ति की किताब। बॉब के किताब संग्रह को मै देख रहा था। उसमें एक पुस्तक थी "रोचक तथ्य"। संस्कृत भाषा की इस पुस्तक में काफी रोचक घटनाएं लिखी हुई थी। जिसमे उल्लेखित कई घटनाएं उन सर्व शक्तिमान सुपरनैचुरल के बारे में थे, जो खुद को भगवान कि श्रेणी में मानते थे और कैसे उन तथा कथित भगवान का शिकार किया गया।


ज्यादातर उसमे बीस्ट अल्फा, इक्छाधरी नाग और विष कन्या का जिक्र था, जो किसी राजा के लिए कातिल का काम करते थे। उसी पुस्तक में वर्णित किया गया था तत्काल भारत में जब छुब्द मानसिकता के मजबूत इंसान, जैसे कि सेनापति, छोटे राज्य के मुखिया, लुटेरों का कबीला, सुपरनैचुरल के साथ मिलकर अपना वर्चस्व कायम करने में लगे थे। तब उन्हें रोका कैसे जाये, इस बात पर गहन चिंतन होने लगी।


रोचक तथ्य के लेखक बताते है कि पहली बार मुगलिया सल्तनत और अन्य राज्य जिन्होंने पुरानी सारी जानकारी की पुस्तक अपने पागलपन में मिटा दी थी, उनके पास इन सुपरनैचुरल को रोकने का कोई उपाय नहीं था और अपने कृत्य के लिए सभी अफ़सोस कर रहे थे। ना केवल भारत में बल्कि विकृति सुपरनैचुरल पूरे पृथ्वी पर कहर बरसा रहे थे। उन विकृति सुपरनैचुरल की पहचान करने और उन पर काबू करने के लिए देश विदेश की बड़ी–बड़ी ताकते एक साथ एक बार फिर नालंदा के ज्ञान भण्डार के ओर रुख कर चुकी थी। तकरीबन भारत के 30 राजा, और विदेश के 200 राजा इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आये थे।


आचार्य श्रीयुत, अचार्य महानंदा के शिष्य थे और महानंदा शिष्य थे अचार्य श्री हरि महाराज के, जिन्होंने एक विकृति रीछ को विदर्व के क्षेत्र में बंधा था, जिसका उल्लेख उसी रोचक तथ्य के पुस्तक में था। पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्ण सिक्षा को आगे बढ़ाने के क्रम में श्री हरि महाराज की सिद्धियां इस वक़्त अचार्य श्रीयुत के पास थी। आचार्य श्रेयुत सभी देशों के मुखिया से मिले और यह कहकर मदद करने से मना कर दिया कि….. "सत्ता और ताकत के नशे में चुड़ राजा खुद ही ऐसे दुर्लभ प्रजाति (सुपरनैचुरल) की मदद लेते है, अपने दुश्मनों के कत्ल के लिये। विषकन्या जैसी कातिलों को तैयार करते हैं। खुद का लगाया वृक्ष जब भूतिया निकल गया तो आज आप सब यहां सभा करने आये है। चले जाएं यहां से।"..


सभी राजा, महराजा, शहंशाह और बादशाह ने जब उनके कतल्ले आम की दास्तां बताई तब अचार्य श्रीयुत का हृदय पिघल गया और उन्होंने आये हुये राजाओं से उनके 10 बुद्धिमान सैनिक मांग लिये। श्रीयुत ने मदद के बदले कुछ शर्तें भी रखी उनके पास। आचार्य श्रीयुत नहीं चाहते कि भविष्य में फिर कोई ऐसी समस्या उत्पन्न हो इसके लिए उनकी शर्त थी….


"वो अपने 12 शिष्यों को दुर्लभ प्रजाति और इंसनो के बीच का द्वारपाल यानी प्रहरी बनाएंगे, जो दोनो दुनिया के बीच में संतुलन स्थापित कर सके।"

"जहां कहीं भी विकृति मानसिकता वाले मनुष्य, विकृति दुर्लभ प्रजाति के साथ मिलकर लोक हानि करेंगे, तो उसे सजा देने मेरे शिष्य या उसके अनुयाई जाएंगे। पहले अनुयाई वो सैनिक होंगे जो आपसे हमने मांगे है। प्रहरी पहुंचेंगे और फिर चाहे दोषी कोई राजा ही क्यों ना हो आप सब को मिलकर उसे सजा देनी होगी।"

"हमारे शिष्य और उसके अनुयाई किसी के भी राज्य में कभी भी छानबीन करने जा सकते है, जिन्हे आपकी राजनीतिक और आर्थिक राज्य नीति में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। वह उस राज्य में दुर्लभ प्रजाति की स्तिथि और विकृति मानसिकता के लोगों का उनके प्रति रुझान देखने जाएंगे। जिसके लिये आप सभी को करार करना होगा की उनकी सुरक्षा, और काम में बाधा ना आने की जिम्मेदारी उस राज्य के शासक की होगी।"

"यदि आप सभी ये प्रस्ताव मंजूर है तो ही मै पहले आपके लोगो को प्रशिक्षित करूंगा, फिर अपने 12 सदस्य शिष्यों को तैयार करूंगा।"


आचार्य श्रीयुत की बात पर सभी शासक काफी तर्क करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि उनकी शर्त जायज है, और भविष्य नीति के तहत एक सुदृढ़ कदम भी। हर राजा ने करार पर हस्ताक्षर करके अपनी मुहर लगा दी। उसके बाद तकरीबन 1 साल तक आचार्य श्रीयूत ने अपने गुरु की पुस्तक "अनंत कीर्ति" के 5 अध्याय का प्रशिक्षण उन सभी को 1 वर्ष तक करवाया और प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरांत उन्होंने सबको वापस भेज दिया।


उसके बाद आचार्य श्रीयूत ने अपने 12 प्रमुख शिष्यों को अनंत कीर्ति के 10 अध्याय तक का प्रशिक्षण दिया। उन्हें लगभग 3 साल तक प्रशिक्षित किया गया और जब उनकी प्रशिक्षण पूर्ण हुई, तत्पश्चात अचार्य श्रीयूत ने उन 12 सदस्य में से वैधायन भारद्वाज को सबका मुखिया बाना दिया, और उन्हें राजाओं द्वारा मिली धन, स्वर्ण मुद्रा और आवंटित जमीन के करार सौंप कर उन्हें दो दुनिया का द्वारपाल बनाकर लोकहित कल्याण के लिए संसार के विभिन्न हिस्सों में जाने और अपने अनुयायि बनाने की अनुमति दे दी।


3 वर्ष बाद ही आचार्य श्रीयूत की अकाल मृत हो गयी। उनकी मृत के पश्चात उनके मुख्य शिष्य वैधायन को उनके अनंत पुस्तक का वारिस बनाया गया। हालांकि अनंत कीर्ति की पुस्तक एक अलौकिक पुस्तक थी, जिसमें 25 अध्याय लिखे गये थे। इस पुस्तक को संरक्षित करने का तो वारिस मिल गया, किन्तु उस पुस्तक को पढ़ने की विधि आचार्य श्रीयूत किसी को बताकर नहीं जा सके।


मना जाता था कि अनंत कीर्ति की पुस्तक में काफी हैरतअंगेज जानकारियां थी, जो पिछले कई हजार वर्षों से आचार्य अपने शिष्यों में आगे बढ़ाते हुये जा रहे थे, जिसका सिलसिला आचार्य श्रीयुत की मौत से टूट गया। पुस्तक को खोलने की एक विधि जो प्रचलित है…

"यदि कोई भी व्यक्ति 25 प्रशिक्षित लोगो से एक साथ 25 तरह के हथियार के विरूद्ध लड़े, और बिना अपने रक्त का एक कतरा बहाये यदि वह ये लड़ाई जीत जाता है, तो वो व्यक्ति उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोल सकता है।"… इसी के साथ रोचक तथ्य का यह अध्याय समाप्त हो गया और मेरे मन की जिज्ञासा शुरू।


मजे की बात यह थी कि रोचक तथ्य में वर्णित इतिहास सच–झूठ का एक अनोखा संगम था, जिसे तत्काल प्रहरी समुदाय के फैलाये झूठ के आधार पर तांत्रिक अध्यात द्वारा लिखा गया था। यही वो किताब जरिया बनी फिर महाजनिका की आजादी का। बहरहाल मुझे उस वक्त भी उस पुस्तक पर पूरा यकीन नही था क्योंकि 25 तरह के हथियार से लड़ने की व्याख्या ही पूरी तरह से गलत थी। हां लेकिन रीछ समुदाय का इतिहास मेरे जहन में था और प्रहरी को तो मैं शुरू से जनता था। इसलिए मेरी दूसरी जिज्ञासा उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को देखने की हुई। जिसे खोल तो नही सकता था लेकिन कम से कम देख तो लेता।


मै बॉब से हंसकर विदा ले रहा था और साथ ही ये कहता चला कि अब भविष्य में उससे दोबारा फिर कभी नहीं मिलूंगा। बॉब से विदा भी ले चुका था एक सामान्य जीवन की पूर्ण इक्छा भी थी, क्योंकि मुझे पहचानने वाला कोई नहीं था। एक गलती करके बुरा फंसा था, वो था सुहोत्र लोपचे की जान बचाना। यदि मर जाने दिया होता तो मेरी सामान्य सी जिंदगी होती। इसी को आधार मानकर मै ये भी तय कर चुका था कि भार में गया मदद करना। मैं भी उस भीड़ का हिस्सा हूं जो पूर्ण जीवन काल में बिना एक भी दुश्मनी किये, बिना किसी लड़ाई झगड़े के जीवन बिता देते है। लेकिन ये इंसानों के जानने की जिज्ञासा... मेरे मन की जिज्ञासा में 2 सवाल घर कर गये थे..


एक सुपर हीलर अल्फा फेहरीन को अमेजन के जंगल से नागपुर क्यों लाया गया? वो अनंत कीर्ति की पुस्तक दिखती कैसी होगी? उसपर हाथ रखने का एहसास क्या होगा और क्या जब मै उसपर अपने हाथ रखूंगा तो अपने बारे में कुछ कहानी बयान करेगी?


मेरे लिए बस 2 छोटे से सवाल थे जिसका जवाब मै जनता था कि कहां है, किंतु मुझे तनिक भी एहसास नहीं था कि इन दोनों सवाल के जवाब ढूंढ़ने के क्रम में इतनी समस्या आ जायेगी... सवाल के जवाब तो कोसो दूर थे उल्टा मै खुद ही कई उलझनों में फंस गया। ये थी एक पूरे दौड़ कि कहानी जब मै गायब हुआ था।



आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।
Shandaar jabarjast lajawab update Bhai ❤️🎉
 

Zoro x

🌹🌹
1,689
5,424
143
भाग:–91





रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। जैसे ही सभी पहुंचे रूही को छोड़कर तीनों टीन वुल्फ एक कमरे में। ओजल, अपने भाई को घूरती हुई… "ये तेरे और अलबेली के बीच क्या चल रहा है?"..


"ये बच्चो के जानने की बातें नहीं है, इसे मै हैंडल करूंगी, अपने तरीके से"… अलबेली, ओजल को आंख मारती हुई कहने लगी। बेचारी ओजल वहां से नीचे आने में अपनी भलाई समझी। वो दोनो को घूरती हुई नीचे लिविंग रूम में आकर रूही के पास बैठ गई।


रूही:- तुझे क्या हुआ, ऐसे मुंह क्यों उतरा हुआ है।


ओजल:- दीदी, तुम्हे नहीं लगता अपने पैक में एक लड़के कि कमी है। बॉस को बोलो ना एक पैक में एक लड़का लेले।


रूही, बड़ी सी आंखें करके उसकी ओर देखती हुई… "मतलब ऊपर वो दोनो।" रूही इतना ही कह पायी फिर कुछ सोचती हुई… "तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रैंड है क्या?"


"छोड़ो, कहीं घूम कर आते है.."… ओजल के चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती थी।


रूही:- क्या हुआ, मुझसे नहीं बताएगी तो तुम्हारी समस्या का समाधान कैसे मिलेगा।


ओजल:- मुझे ना एक लड़का पसंद है।..


रूही:- हां ठीक है तू थोड़ी मायूस है, थोड़ी झिझक भी हो रही है। एक काम कर आंख मूंद और सारी बातें कह दे।


ओजल:- हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते है। वो उसने मुझे किस्स भी किया था, और मुझे काफी अच्छा भी लगा था। फिर..


रूही:- हां अब इतना बता दिया तो आगे भी तो बोल..


ओजल:- फिर क्या, मेरे नाखून उसके कमर से घुसते घुसते रह गए। धड़कन इतनी बढ़ी थी कि मैं वुल्फ में शिफ्ट कर रही थी। और जब खुद को काबू की तो सब मज़ा ही खत्म हो गया। उन दोनों के पास तो ऑप्शन है इसलिए आपस में लग गये। मैं क्या बिना लड़के के ही रह जाऊंगी? क्या मेरा कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं होगा? मेरी भी फीलिंग्स है। मेरा भी कोई ब्वॉयफ्रैंड हो उसके साथ घूमना चाहती हूं, किस्स करना चाहती हूं। और अपनी वर्जिनिटी भी लूज करना चाहती हूं। लेकिन ये शापित जीवन। मैंने कहा था क्या किसी को ऐसा जीवन देने।


रूही, ओजल सर अपने सीने से लगाकर उसके सर पर हाथ फेरती… "समस्या बता दिया ना, अब तुम्हे समाधान भी आराम से मिल जायेगा। शांत रह जरा और अपने जीवन को क्यों कोसती है?"..


ओज़ल:- बोलना आसान है दीदी लेकिन सच्चाई आपको भी पता है। क्या आपके साथ नहीं हुई कभी ये समस्याएं…


रूही:- नही मेरे साथ ऐसी समस्या नही हुई थी क्योंकि मुझे नोचने वाले भेड़ियों की कमी नही था। खैर, मेरी छोड़ और बाकी शेप शिफ्ट पर कंट्रोल किया जा सकता है। प्रैक्टिस मैक्स ए वुमन परफेक्ट।


"प्रैक्टिस मेक्स अ वूमेन परफेक्ट... मुझे भी ये प्रैक्टिस करवा दो ना दीदी।"… मजाकिया अंदाज में ओजल अपनी बात कहकर जोड़-जोड़ से हसने लगी।


रूही उसके सर पर हाथ मारती… "पागल कहीं की, क्या प्रैक्टिस करेगी।"..


"वही जिसकी प्रेक्टिस करके आप परफेक्ट हो गई, सेक्स"… ओजल आंख मारती हुई अपनी बात कही और खी खी करके हंसने लगी।


रूही:- ओय बेशर्म, बी एन इंडियन गर्ल, शादी से पहले नो सेक्स..


ओजल:- हां तो मेरी शादी करवा दो।


रूही:- पागल कहीं की, छोड़ ये सब बॉस नहीं है तो 4-5 दिन नॉन भेज पार्टी हो जाए।


ओजल:- वूहू.. ये हुई ना बात। छोड़ो ये मन को भरमाने वाले टॉपिक। मस्त आज बटर चिकेन और नान खाएंगे।


रूही:- अलबेली बटर चिकन अच्छा पकाती है, उसी को कहती हूं।


ओजल:- रहने दो अभी तो दोनो के बीच इजहार चल रहा होगा। कमिटमेंट चल रहा होगा। कसमे होंगे, वादे होंगे। फिर नजरे मिलेंगी और किस्स होगा। फिर दोनो मुसकुराते हुए बाहर आएंगे और बाहों में बाहें डालकर घूमने निकल जाएंगे। पता ना मेरे लिए कोई लड़का है भी या नहीं… छोड़ो उन नए पंछियों को दीदी, खाना किसी इंडियन रेस्त्रां से मंगवा लेते है।


रूही:- मंगवा क्या लेंगे, चलते है उधर ही। इसी बहाने कुछ लड़के भी ताड़ लेंगे और खाने का आर्डर भी दे देंगे।


दोनो अभी बात कर रही थी कि तेज दरवाजा टूटने की आवाज आयी और फिर नीचे कांच के टेबल के ऊपर इवान आकर गिरा। कांच भी तेज आवाज के साथ टूटा और इवान फ्लोर पर कर्राहते हुए, हाथ हिलाकर रूही और ओजल को हाई कहने लगा।


उसकी हालत देखकर दोनो को हंसी आ गई। तभी ऊपर से अलबेली चिल्लाई.. "मेरे आस पास भी दिखाई दिए ना इवान तो मै तुम्हारा खून पीकर डबल अल्फा बन जाऊंगी। शक्ल मत दिखना अपना।"…. "भाड़ में जाओ अलबेली तुम। दुनिया में लड़की की कमी है क्या?"


रूही अपना हाथ दे कर उसे ऊपर खींचती… "दोनो तो अंदर रोमांस कर रहे थे ना फिर ये एक्शन कहां से चालू हो गया।"..


इवान कुछ नहीं कहा चुपचाप वहां से अपने कमरे में चला गया। रूही और ओजल दोनो उसे देखकर हंस भी रही थी और सोच भी रही थी कि ऐसा हुआ क्या होगा? दोनो नीचे से ही चिंख्ती हुई अलबेली को बुलाने लगी… "क्या है दोनो गला क्यों फाड़ रही हो।"


रूही:- दरवाजा गया, यहां का टेबल गया। मैंने सुना दोनो प्यार करते हो, फिर इतना सीरियस एक्शन क्यों।


अलबेली कुछ देर ख़ामोश रहकर रूही और ओजल को घूरती रही, फिर हाथ के इशारे से पास आने कहीं। सबने जब अपने कान लगा दिए… "बिना मेहनत के मिल गई तो कहता है कि बस मुझे रोक–टोक मत करना। बस फिर क्या था दे दी घूमाकर एक लात। प्यार भी करना और इसे दूसरे लड़कियों को भी ताड़ना है। भगा दिया उसे। जाये करते रहे अपनी मनमानी।"..


ओजल:- ओह मतलब इजहार होने से पहले ही ब्रेकअप हो गया..


अलबेली:- ब्रेकअप हो गया क्या मेरा? अरे यार ये क्या हो गया.. रुको अभी आयी इवान को मानाकर।


रूही आंख दिखती… "झल्ली कहीं की वो लड़का है, वो आयेगा मानाने।"


अलबेली:- रूही बड़ा क्यूट लड़का है, नहीं आया मानाने तो?


रूही:- वो बाद में देखेंगे, तुम बस स्ट्रिक्ट रहना। वरना यदि इन लड़को के पीछे तुम गई तो ज्यादा भाव खाएंगे।


अलबेली:- ये इंडिया थोड़े ना है। यहां अभी ब्रेकअप हुआ और अगले सेकंड नया रिश्ता बन जाता है। तुम लोग के चक्कर में अच्छा लड़का ना हाथ से निकल जाय।


रूही और ओजल दोनों उसे घूरते… "शुरू से प्रकाश डाल जरा कहानी पर, फिर बटर चिकन और नान।"


अलबेली:- "वाउ !!! बताती हूं.. पहली बार, जब इवान तहखाने में था तब ऊपर सबकी बाते हो रही थी और नीचे हम दोनों की नजरें मिल रही थी। फ्लाइट में जब आ रहे थे तब हम दोनों नजरे मिला रहे थे। ऐसे नजरो का खेल बहुत दिनों से चल रहा था। उसके बाद कनाडा की कहानी तो तुम दोनो को ही पता है।"

"लौटकर आये तो कुछ दिन इसी ख्याल ने गुजर गये की कंट्रोल न होने की वजह से फसते–फंसते बचे। लेकिन कब तक इन ख्यालों के कारण न मिल पाते। थोड़ा उसका मन डोला। थोड़ा मेरा मन डोला। थोड़ा वो करीब आया, थोड़ा मैं करीब आयी। ऐसे ही करीब–करीब खेलते कब हम दोनो के होंठ करीब आकर एक दूसरे से चिपक गये पता ही नही चला। किस्स जब खत्म हुई तो वो भी मुस्कुराया मै भी मुस्कुराई। ना वो कुछ कह पाया ना मै कुछ कह पायि। फिर ट्रेनिंग और स्कूल में उलझ गई जिंदगी, लेकिन तब भी हमे किस्स करने के मौके कभी-कभी मिल ही जाते.."


रूही:- और वो कभी कभी कितने दिन में आता था।


अलबेली:- यही हर 2-3 घंटे में।


रूही:- और वो भी हुआ कि नहीं अब तक...


अलबेली अपनी आंखें छोटी करके दोनों को घुरी। फिर एक आंख मारती हुई कहने लगी.… "लड़की ही हो ना। इतने किस्स के बाद कोई आगे बढ़ेगा तो… खैर दोबारा मत पूछना ऐसे सवाल अब चुपचाप सुनो। फिर एक दिन इस इवान के बच्चे ने अपनी कुत्यापा दिखा दिया।"

"इवान किसी लड़की को पूरा सिद्दत से चूम रहा था। ऐसा लगा जाकर उस लड़की का मुंह नोच लूं। मेरे माल पर नजर डाल रही थी। अब क्या बताऊं जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या कहना। हां लेकिन किस्स करते वक़्त अचानक इवान के क्ला निकल आये, और मै जोड़ से चिल्ला दी।"

"अकडू कहीं का, भड़क गया और कहने लगा कि ऐक्सिडेंटली हमारे बीच कुछ अट्रैक्शन हुआ, इसका मतलब ये नहीं तुम मेरी पर्सनल लाइफ में दखल दो। मेरा मुंह छोटा हो गया। रोने जाने से पहले मैं उसे बताती गयी, वो शेप शिफ्ट कर रहा था इसलिए रोकना पड़ा। बस हो गया, उसके बाद ना तो उसने कभी मुझसे उस पर कोई बात की ना कभी सॉरी कहा।"

"उस रात जंगल में अचानक मुझसे इवान ने आई लव यू कह दिया। आह मै खुशी से झूम गई। वो सॉरी क्यों नहीं कहा, क्यों मुझसे बात करना बंद कर दिया, ये सब गम मिट गये। यहां आयी तो सोची वो मुझे प्यार से गले लगाकर अपनी बात रखेगा। हालांकि शुरवात तो प्यार से ही किया था, लेकिन बाद में कहने लगा कि मै उसे रोका टोका ना करूं। पता नहीं मुझे क्या हो गया, ऐसा लगा कि वो कहना चाह रहा हो किसी को भी वो किस्स करे, मै ना टोकुं। बस गुस्सा आ गया और दे दी एक लात घुमाकर।"


ओजल:- हां ठीक तो की। कोई जरूरत नहीं उसके पास जाने की। एक तो इतनी प्यारी लड़की उसे मिलेगी नहीं और गोरी मेम पर लट्टू है कमिना। कर लेने दे उसे अपने मन कि, जब अक्ल ठिकाने आयेगी ना तब तू भी उसे ठेंगा दिखा देना।


अलबेली:- पूरी बात ये सब सुनने के लिए नहीं बतायी। उस अकडू की अकड़ तो मै निकाल दूंगी, उसकी चिंता क्यों करती हो। चलो अब बटर चिकेन और नान कहां है वो बताओ?



रूही:- उसके लिए तो हमे बाहर जाना होगा ना। या तुझे बनना है तो बता दे मै चिकेन मंगवा लेती हूं।


अलबेली:- घर पर ही बना लेते है। आज पेट भर खाने के बाद सीधा बिस्तर की याद आएगी। मुझसे तो रेस्त्रां से लौटा ना जाएगा। ऊपर से बिल भी तो सोचो। जितने में उनका 4 प्लेट आएगा हम यहां आराम से 10-20 चिकेन तो खा ही सकते है।


आर्यमणि के ना रहने पर कुछ और नहीं तो कम से कम खाने की तो पूरी आज़ादी थी ही। अगले दिन स्कूल में जैसे ही ओजल का आगमन हुआ, कुछ लड़के-लड़कियां उसे देखकर घेर लिया। अलबेली और इवान दोनो ही अपनी कार पार्क करके आ रहे थे। स्वाभाविक था इवान और अलबेली दोनों एक दूसरे से कटे हुए थे। लेकिन सामने ओजल का जलवा देखकर दोनो आखें फाड़े थे। कब एक दूसरे के नजदीक पहुंचे उन्हें भी पता नहीं चला। अचानक ही एक दूसरे पर नजर गई और दोनो मुंह फेर कर अपने-अपने क्लास में।


इधर ओजल से शिकायती लहजे में मरकस उसके 3 दिनो तक गायब होने का कारण पूछने लगा। ओजल भी तबियत खराब का बहाना बना दिया। सभी लोग एक साथ मिन्नते करते हुए कहने लगे… "हाई स्कूल चैंपियनशिप में आज तक स्कूल का नाम टॉप 5 में नहीं रहा। प्लीज हमे ज्वाइन कर लो।"..


ओजल:- अगर स्किल सीखना है तो मै एक क्लास खत्म करके आती हूं, वरना स्कूल छोड़ दूंगी।


सभी लड़के लड़कियां छोटा सा मुंह बनाकर… "ठीक है हम इंतजार करेंगे।"..


अलबेली और इवान के क्लास भी साथ में खत्म हुआ था। दोनो को म्यूज़िक क्लास जाना था लेकिन ओजल की अचानक से बढ़ी लोकप्रियता देखकर वो दोनो उसके पीछे चल दिए किन्तु अलग-अलग। ओजल ग्राउंड पर पहुंच चुकी थी और सामने से 30 खिलाड़ी… 15 लड़के और 15 लड़कियां… सबकी नजर ओजल पर…


"ऐसे मत घूरो दोस्तो, मै नर्वस हो जाऊंगी। अच्छा मै जो बताने वाली हूं वो शायद गेम से हटकर अलग स्किल है, मै चाहती हम तुम सब ध्यान दो। जबतक कोई एक काम करो वहां बाहर बैठे मेरे भाई और उसकी गर्लफ्रेंड को यहां बुला लाओ।".. ओजल सबको कहने लगी...


ओजल बाहर बैठे अलबेली और इवान के ओर इशारा करके बुलाने के लिए कह दी। इधर जबतक वो, नजर और बॉडी लैंग्वेज, की सही परिभाषा को सीखाने लगी। कोई किस दिशा में कोई व्यक्ति भागेगा वो उसकी नजर और पाऊं के एक्शन से पता चलता है। इस पर ओजल ने 2 वॉलंटियर को बुलाया और बाहर खड़े लोगों को दूर से बताते रही… जो खिलाड़ी बॉल पकड़े रहते है, वो किस ओर भागने वाला है और एक परफेक्ट थ्रो के लिए एक खिलाड़ी के थ्रो के ठीक पहले, बॉडी लैंग्वेज क्या होती है, इन सब विषयों पर बात करने लगी।


इतने में अलबेली और इवान भी आ गए… "क्या हुआ, हमे क्यों बुलाया।".. दोनो लगभग आगे पीछे करके पूछा और एक दूसरे को देखकर गुस्से का इजहार करते इधर-उधर मुंह फेर लिया।


ओजल:- ऑफ ओ दोनो बाद में गुस्सा कर लेना। अभी अपने स्कूल की इज्जत दाव पर लगी है।


इवान:- मुझे क्या करना होगा?


ओजल:- कोई अपने घर में ना घुस पाए ऐसे स्किल सिखाओ हमारे फुटबाल टीम के डिफेंस को। अलबेली तुम 4 लड़के और चार लड़की को पकड़ो जो लोग थ्रो कर सके, इस पार से उस पार। और एक आदमी जब 4 लोगो से घिरे रहे तब भी सेफली अपना बॉल कैसे कलेक्ट कर सकते है वो सिखाओ। बाकी अटैक लाइन वाले मेरे साथ आईये, हम अटैक करना सीखेंगे।


तीनों को पहली बार कुछ इंट्रेस्टिंग सा काम मिल गया था, ट्रेंड करना। तीनों हू बहू आर्यमणि की बॉडी लैंग्वेज और समझाने का तरीका भी ठीक उसी तरह से, जिस तरह से आर्यमणि प्यार से सिखाया करता था, वो भी बिना इरिटेट हुए।


इधर करीब 3 दिन तक कई सारे किताब को पलटने के बाद आर्यमणि तैयार था अपने दिमाग को कोमा में ले जाने के लिये। ठीक ओशुन के पास ही उसका बेड भी लगा दिया गया। ओशुन के हाथ को आर्यमणि ने थाम लिया। बॉब ने पूरी प्रक्रिया शुरू की और आर्यमणि के दिमाग को धीरे-धीरे माइनस 5⁰ तक ले गया। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और फिर अंत मै वो गहरी नींद में सो गया।


जैसे ही आर्यमणि ने अपनी आंखें खोली चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। ऐसा लग रहा था उस जगह को कभी ना खत्म होने वाले अंधेरे ने घेर रखा हो। चारो ओर अजीब सी बदबू आ रही थी और कहीं दूर से सिसकने की आवाज.… "संभवतः वहां आपकी आत्मा को अपने सबसे बड़े खौफ से सामना करना पड़ेगा और उस खौफ को हराने में आप को कई दशक लग सकते है या फिर आप अपनी जिंदगी वहां हारकर आ सकते है।"…


आर्यमणि पुस्तक "उलझी पहेली" के उन शब्दों को याद कर रहा था कि क्या होता है जब एक हील होती हुई बॉडी के मस्तिष्क को मरने लायक ठंड में रखा जाता है। शरीर की हीलिंग पॉवर दिमाग को मरने नहीं देती और गहरे अंधेरे में उलझी आत्मा वापस शरीर में नही लौटती। उस अंधेरे में आपको जो नजर आने वाला है, वो है आपका सबसे बड़ा खौफ।


अभी तक तो आर्यमणि के दिमाग में केवल किताब की बातें ही थी, लेकिन जो भी लिखा था सत्य लिखा था और जो दिख रहा था वो था आर्यमणि का डर, जो हाल के कुछ सालो के ख्यालों से जन्म लिया था। 4 फर्स्ट अल्फा या यूं कह लें कि 4 बीस्ट वुल्फ ने आर्यमणि को चारो ओर से घेर रखा था।


बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
आर्य पहूंच गया ओशुन के पास एक अंधेरी दुनिया में जहां सिर्फ खौफ हीं खौफ हैं
देखते हैं आर्य किस प्रकार यहां से ओशुन को बचाता हैं नैन भाई
 

The king

Well-Known Member
4,239
15,473
158
भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
Nice update bhai waiting for next update
 

Itachi_Uchiha

अंतःअस्ति प्रारंभः
7,840
27,281
204
भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
Kya mast update diya hai nain11ster bhai maja hi aa gaya. Koma me jane ke baad jaise yaha aakar sub apne life ke sbse bade dar ka samna karte hai wahi haal yaha aarya ke sath bhi ho raha hai. Use bhi apne sbse bade dar ka samna karna pad raha hai. Aur aarya se jude hone ke karan uske marne ka dard alfa pack ko roj roj jhelna padta tha. Ek baat ab mai kah skta hu ki Ruhi such me bahut hi smart hai. Tabhi to wo ye sb mehsoos karne ke baad apna dimak chal kar ye sub smjh payi. Aur ab wo apne sath baki tino ki jaan ko bhi aarya ke liye daaw par laga baithi hai. Sayad wo aisa na karti to aarya kabhi bhi waha se wapas na aa pata. Dekhte hai ab aarya kaise un charo beast wolf ko marta hai aur waha se ja kar osun ko uske Guilt se nikalne me help karta hai ? Aur fir bahar aa kar apne alfa pack ko kaise sahi karta hai ?
 

B2.

New Member
82
231
33
भाग:–88




आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।


आर्यमणि और रूही दोनो ही लगभग खोये से थे, तभी उस माहौल में ताली बजनी शुरू हो जाती है। बॉब उन दोनों का ध्यान अपनी ओर खिंचते… "आर्य सर ने किसी से लगातार 4-5 घाटों तक बातचीत की। सॉरी बातचीत कहां, लगातार अपनी बात कहता रहा, कमाल है।"


रूही बॉब की बात पर हंसती, आर्य के गाल को चूमती हुई कहने लगी… "बड़ी मुश्किल से मेरा दोस्त सुधरा है बॉब, नजर मत लगाओ। वैसे भी इसकी जिंदगी में भूचाल लाने का श्रेय तुम्हे ही जाता है। वरना ये तो नॉर्मल सी लाइफ जीने गया था नागपुर, जहां इसके 2 प्यारे दोस्त और इसकी सब से क्लोज भूमि दीदी रहती है।"..


बॉब:- क्या वाकई में ये अपने सवालों के कारण फसा है। मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ हुआ होगा। सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए इसे ज्यादा अंदर तक घुसने कि जरूरत भी नहीं पड़ती, क्यों आर्य?


आर्य:- हां रूही, बॉब सही कह रहा है। मै तो नागपुर बस जिज्ञासावश और अपने लोगों के पास गया था। लेकिन कोई मुझे पहले से निशाने पर लिया था। कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मै नागपुर में रहूं, इसलिए तो मेरे नागपुर पहुंचने के दूसरे दिन से ही पागलों कि तरह भगाने में लग गये थे।


रूही:- हां और तुम भी जब भागे तो उन लोगों को पूरा उंगली करके भागे।


आर्य:- हाहाहाहा.. हां तो जैसा किया वैसा भोगे। लेकिन इन सबमें तुम लोग मेरे साथ हो, वही मेरे लिये खुशी की बात है। फेहरिन, जिसने ना जाने अपने हीलिंग एबिलिटी से कितनो कि जान बचाई। मदद करना जिसके स्वभाव में था, उसके 3 बच्चों की मदद मै कर रहा हूं। तुम समझ नहीं सकती ये बात मुझे कितना सुकून दे रही है...


बॉब:- और इसी चक्कर मे खतरनाक टीनएजर अल्फा पैक लिए घूम रहे हो आर्य। हां, लेकिन तीनों ही बहुत प्यारे है। काफी बढ़िया प्रशिक्षण दिया है तुमने। अब जरा काम की बात कर ले।


आर्य:- हां बॉब..


रूही:- बॉब रुको तुम। इससे पहले कि एक बार और इस बकड़ी की शक्ल वाली लड़की ओशुन को बचाने के लिये आर्य आगे बढ़े, उस से पहले मैं कौन बनेगा करोड़पति खेलना चाहूंगी... बॉस रेडी...


आर्यमणि के उतरे चेहरे पर बहुत देर के बाद हंसी थी और वो हंसते हुए रूही के गर्दन को दबोचकर उसके गाल को काटते हुए... "हां पूछो"..


रूही:- अव्वववव ! बॉस दूध पीती बच्ची की तरह ट्रीट मत करो। सवाल दागुं पहली…


आर्यमणि:- जी..

रूही:– यूरोप से लौटकर नागपुर किन २ सवालों को लेकर पहुंचे थे?

आर्यमणि:– बता तो चुका हूं...

रूही:– एक बार और

आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक कैसी दिखती है और एक ट्रू अल्फा हीलर फेहरीन के लिये...


रूही:– तुम्हे क्या लगता है बॉस अनंत कीर्ति की पुस्तक उन ढोंगी प्रहरी के हाथ कैसे लगी होगी?


आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक की कहानी इतनी सी है कि उसे कोई अपेक्स सुपरनैचुरल.…


रूही:- बॉस आता हे ( मतलब अब ये) अपेक्स सुपरनैचुरल…


एलियन को एपेक्स सुपरनैचुरल कहना थोड़ा खटक गया इसलिए रूही बीच में ही आर्यमणि को टोक दी।


आर्यमणि:- मान लो ना अभी के लिये की किताब के बारे में जिसने भ्रम फैलाया उसे अपेक्स सुपरनैचुरल कहते है। वरना मैं कैसे समझाउंगा। बॉब के सामने वो शब्द का इस्तमाल नही कर सकता...


(दरअसल बात एलियन कहने की हो रही थी और आर्यमणि ये बात सबके सामने नहीं जाहिर होने देना चाहता था)


रूही:- सॉरी बॉस..


बॉब:– तुम अपने गुरु से बात छिपा रहे। अच्छा ही होता जो तुम्हे काली खाल में रहने देता ..


आर्यमणि, कुछ सोचकर बात को घुमाने के इरादे से... "बॉब मैं नही चाहता की तुम्हे वो सच पता लगे"..


बॉब:– अब इतना सस्पेंस न क्रिएट करो। मैं यदि सस्पेंस क्रिएट करता फिर तुम्हारा क्या होता आर्य...


आर्यमणि:– ठीक है बॉब, मैं बताता हूं, लेकिन तुम खुद को संभालना... फेहरीन को मारने वाले यही एपेक्स सुपरनैचुरल थे। अब चूंकि रूही उसकी बेटी है और उसके मां यानी फेहरीन के कातिलों को एपेक्स कहना उसे अच्छा नहीं लग रहा...


बॉब, आश्चर्य से आंखें बड़ी करते... "क्या तुम्हे फेहरीन के कातिलों के बारे में पता था, और तुमने मुझे बताया नही?"


रूही, बॉब के कंधे पर हाथ रखती.… "बॉब, प्लीज पैनिक न हो। आर्यमणि बस तुम्हे दुखी नही देखना चाहता था। वैसे भी हम तो उनसे हिसाब लेंगे ही, लेकिन अभी हम उन सुपरनैचुरल को पूरी तरह से जानते नही, इसलिए खुद को सक्षम बना रहे।"…


बॉब:– ओह इसलिए आर्य अल्फा पैक लिये घूम रहा और तुम सबको प्रशिक्षण दे रहा।


रूही:– हां बॉब.. अब बॉस को बात पूरी करने दो। चलो एपेक्स सुपरनैचुरल की बात मान ली, आगे...


आर्यमणि:- हां तो अनंत कीर्ति की पुस्तक की सच्चाई इतनी है कि उसके संरक्षक को मारकर वो पुस्तक अपेक्स सुपरनैचुरल के पास पहुंच गयी। उन अपेक्स सुपरनैचुरल ने पूरे प्रहरी सिस्टम को कुछ ऐसे करप्ट किया है, जिनसे वहां काम करने वाले बहुत से अच्छे प्रहरी को लगता है कि वो समाज को सुपरनैचुरल के प्रकोप से बचा रहे है। जबकि सच्चाई ये है कि वो अपेक्स सुपरनैचुरल उनको झांसा देकर अपना निजी मकसद साधने मे लगा है।


रूही:- ओह तो ये बात है। लेकिन बॉस कुछ तो मिसमैच है। आप कुछ और समीक्षा छिपा रहे हो ना... मुझे रोचक तथ्य किताब की बात खटक रही है..


आर्यमणि एक बार फिर मुस्कुराते... "मेरे दादा जी कहते थे कि एक पुस्तक की सच्चाई इस बात पर निर्भर नहीं करती की उसे कितने वर्ष पूर्व लिखा गया है, क्योंकि लिखने वाला कोई ना कोई इंसान ही होता है। आप का बौद्धिक विचार, कल्पना और उस समय के घटनाक्रम की सारी स्थिति को पूर्ण अवलोकन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।"

"सभी आकलन के बाद आपका बौद्धिक विकास एक थेओरी को जन्म देता है और वो थियोरी यदि पूर्ण रूप से उस किताब से मैच कर जाये तो वो किताब आपके लिए तथ्य पूर्ण है। और हां कभी भी उस दौर के मौखिक कथा को नजरंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि बहुत सी अंदरुनी बाते एक बाप अपने बेटे को बताता है और बेटा अपने बेटे को लेकिन वो सभी गुप्त बातें उस पुस्तक में नहीं मिलती..."


रूही:- बॉस मैं इंजिनियरिंग की स्टूडेंट थी, फिलॉस्फी की नहीं। और ना ही मेरा मूड है सोने का। सीधा वो रोचक तथ्य के बारे में बताओ।


आर्यमणि:- "इसलिए मैं किसी से बात नहीं करना चाहता मूर्खों। रोचक तथ्य मेरे हिसाब से एक भरमाने वाली किताब थी। श्रेयुत महाराज एक बड़ा नाम होगा उस दौड़ का, इसलिए उस नाम का या तो इस्तमाल हुआ है या फिर उसकी पूरी पहचान ही चुराकर किताब में अपने हिसाब का प्रहरी समाज लॉन्च किया गया था। जहां मदद मांगने आये हर राजा से कहा गया था कि प्रहरी को उसके शहर का बड़ा व्यावसायिक बनाया जाय, ताकि इनके पास धन की कोई कमी ना रहे।"

"जहां तक मुझे लगता है उस रोचक तथ्य मे इस्तमाल होने वाला नाम ही केवल सच था और कुछ भी नहीं। सरदार खान 400 वर्ष पूर्व का था। वो जिस आचार्य के पास गया वो पहले से सिद्धि वाला था। यानी वो प्रहरी का कोई सिद्ध पुरुष सेवक था या फिर अनंत कीर्ति किताब के मालिक का वंसज। वंसज इसलिए कहा क्योंकि अनंत कीर्ति की पुस्तक 1000 सालों से भी पुरानी है और उसका पहला संरक्षक बैधायन भारद्वाज भी उसी दौड़ का होगा।"

"जब कोई रक्षा संस्था बनता है तो वहां क्षत्रिय को रक्षक चुना जाता है। ये प्रहरी मे केवल विशुद्ध ब्राहमण का कॉन्सेप्ट कहां से आ गया। ये सारे लोचे लापाचे उस रोचक तथ्य के ही फैलाए हुये है। वरना भारतीय इतिहास गवाह है कि ज्ञान किसके जिम्मे था और रक्षा करना किसके जिम्मे। इसलिए शुरू से मुझे पता था कि रोचक तथ्य एक भरमाने की किताब थी। बस संन्यासी शिवम से मिलने से पहले मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये किताब किस उद्देश्य से लिखी गयी है। वैसे एक बात बताओ की इतने सारे सवाल रोचक तथ्य के किताब से ही क्यों? जबकि सतपुरा में ही मैने तुम्हे बताया था कि रोचक तथ्य की पुस्तक में सच झूठ का मिश्रण था।"


रूही:– सत्य... बिलकुल सत्य, लेकिन आपके हर सत्य के बीच एक झूठ शुरू से उजागर हो रहा है? बिलकुल उस रोचक तथ्य के पुस्तक की तरह। कहीं तुम्हे झूठ बोलने का ज्ञान रोचक तथ्य के किताब से तो नहीं मिला।


आर्यमणि:– कौन सा झूठ?


रूही:– "बार–बार इस बात पर जोर देना की तुम केवल 2 छोटे सवाल लेकर नागपुर पहुंचे। मुझे एक बात तुम समझा दो बॉस, जिस किताब रोचक तथ्य पर यकीन ही नहीं था, फिर उसके अंदर की कही हर बात इतने डिटेल में कैसे पता? क्या मात्र 2 जिज्ञासा ही थी, फिर वो रीछ स्त्री का जहां अनुष्ठान हो रहा था वहां कैसे पहुंचे?"

"जब मात्र जिज्ञासा वश पहुंचे, फिर तुम हर बार प्रहरी से एक कदम आगे कैसे रहते थे? तुम तो प्योर अल्फा हो न फिर तुम्हे कैसे पता था कि प्रहरी तुम्हे वेयरवॉल्फ ही समझेंगे, कोई जादूगर अथवा सिद्ध पुरुष नही? तुम्हे पता था कि तुम क्या करने वाले हो और उसका नतीजा क्या होगा इसलिए सेक्स के वक्त भी तुम्हे पूर्ण नियंत्रण चाहिए था ताकि थिया के जैसे न मामला फंस जाये?

अनंत कीर्ति के किताब के बारे में भी तुम्हे पहले से पता थी कि कहां रखी है, वरना सीधा सुकेश के घर में घुसकर चोरी करने की न सोचते। बल्कि पहले पता लगाते की अनंत कीर्ति की किताब रखी कहां है? तुम्हे नागपुर में किसी के बारे में कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं थी, तुम सब पहले से पता लगाकर आये थे। बॉस मात्र २ छोटे से जिज्ञासा के लिये इतना होमवर्क कैसे कर गये?"

"स्वामी का ऊस रात तुम्हारे पास पहुंचाना और झोली में सुकेश के घर का सारा माल डाल देना महज इत्तफाक नहीं हो सकता। आर्म्स एंड एम्यूनेशन का प्रोजेक्ट हवा में नही आया, उसकी पूरी प्लानिंग यूरोप से करके आये थे। किसी के दिमाग की पूरी उपज और उसका प्रोजेक्ट चुराया तुमने।"

"जादूगर का दंश जो सुकेश के घर से गायब हुआ था, वो मुझे कहीं दिख नही रहा, बड़ी सफाई से तुमने उसे कहीं गायब कर दिया। और न ही अपने घर से गायब होने और लौटकर वापस के आने के बीच का लगभग 18 महीना मिल रहा है? क्योंकि जर्मनी पहुंचने से लेकर बॉब के पास से विदा लेने में तुम्हारे 18 महीने लग गये होंगे, जबकि तुम घर से 36 महीने के लिये गायब हुये थे।"

"7–8 साल की उम्र में जो बच्चे ढंग से सुसु – पोट्टी टॉयलेट में नही करने जा सकते, उस उम्र में तुम्हे सच्चा वाला लव हो गया था। अरे लगाव कह लेते तो भी समझ में आता, सीधा सच्चा वाला लव वो भी जंगल में पेड़ के नीचे बैठ कर गोद में सर रखा करते थे। तुम्हे नही लगता की तुम्हारी ये कहानी बहुत ही बचकाना थी, जिसे हजम करना मुश्किल हो सकता है?"

"तुम्हारा पासपोर्ट यूएसए ट्रैवल कर रहा था और तुम वुल्फ हाउस में थे। उस दौड़ में ताजा तरीन मैत्री का केस हुआ था, तब भी तुम किसी को वुल्फ हाउस में नही मिले? एक पिता जो बेटे के लिये तड़प रहा था। भूमि देसाई जो इतनी बड़ी शिकारी थी, और जिसके इतने कनेक्शन, वो सब तुम्हे ढूंढ नही पायी? जबकि मैं होती तो वुल्फ हाउस के पूरे इलाके को ही पहले छान मरती। ये इतनी सी बात मुझे समझ में आ गयी लेकिन तुम्हे ढूंढने वालों को समझ में नहीं आयी? क्या यह जवाब बचकाना नही था कि तुम्हारे घर के लोग तुम्हे ढूंढना नही चाहते थे? किसके घर का 16–17 साल का लड़का किसी लड़की के वियोग में भाग जाये और उसके घर के लोग ढूंढना नही चाहते हो?

"वापस लौटकर सीधा गंगटोक गये और पारीयान की भ्रमित अंगूठी और पुनर्स्थापित पत्थर उठा लाये। तुम्हारा इसपर जवाब था कि जिस दौड़ मे गायब हुय तब तुम्हे पता चला की बहुत से लोग इन समान के पीछे है, लेकिन आज जब तुम कहानी सुना रहे थे तब तो एक आदमी भी इन समान के पीछे नही दिखा।"

"हम दोनो को पता था कि वो डॉक्टर और उसकी पत्नी हमसे झूठ बोल रही है, फिर भी हम दोनो यहां आये। मुझे पक्के से यकीन है कि तुम पहले से ही यहां आने का मन बना चुके थे। तुम्हे पता था कि तुम यहां क्या तलाश करने आ रहे हो बॉस। नाना मैं ओशुन कि बात नही कर रही। ओशुन की जगह यहां कोई भी लड़की लेटी हो सकती थी। लेकिन वो लड़की जिस हालत में लेटी है वो हालात आपके लिये नया नही है। ये किसी प्रकार का अनुष्ठान ही है ना, जिसका ताल्लुक कहीं न कहीं नागपुर से ही है?

"क्या अदाकारी थी। बॉब को फेहरीन के कातिलों के बारे में नही बताना चाहते थे, लेकिन बॉब जो फेहरीन का भक्त था, उसे ये बात जानकर बहुत ज्यादा आश्चर्य नही हुआ। ऐसा लगा जैसे बस खाना पूर्ति हो रही है। बॉस एक बात सच कहूं, मुझे अब आप पर यकीन ही नहीं। तुम्हारा नागपुर आना और बाद में नागपुर से भागना मुझे सब सुनियोजित योजना लगती है लेकिन तुम थोड़े ना कुछ बताओगे? बस गोल–गोल घुमाते रहो। बॉब अब तुम अपने काम में लग सकते हो।"
Wow,
Ye ruhi ne de maara nehle pe dehla,
Arya ki bolti band,😂😂😂😂😂
Ab khulega dabe Raaz ka pitara,

Shandaar jabarjast lajawab update Bhai ❤️🎉
 

@09vk

Member
358
1,324
123
भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
Nice update 👍
 

Zoro x

🌹🌹
1,689
5,424
143
भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
रुही तो बहुत होशियार निकलीं नैन भाई
समय का चक्र एक हीं समय हर रोज मरना
मतलब जर्मनी वाला कांड

इसका तोड़ समय से पहले जगा देना ताकि आगे की रणनीति बनाई जा सकें
बहुत दूर की कोड़ी लाई है रुही

समय से पहले जगना आर्य के लिए फायदेमंद साबित हूआ हैं उसे सोचने के लिए समय मिल गया है इस भ्रमजाल को तोड़ने का मार्ग भी

देखते हैं अगले अपडेट में आर्य चार बीस्ट वुल्फ को कैसे मारता हैं और ओशुन को बचाता हैं नैन भाई
इंतजार अगले एक्शन अपडेट का नैन भाई
 

B2.

New Member
82
231
33
भाग:–89





रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...


रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?


आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…

मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।

रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?

आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।

रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...

आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...

रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?


आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।


बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...


"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"

"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"

"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..


अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?


ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।


इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।


इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..


रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।


आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।


रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...


आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।


रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...


आर्यमणि…..

"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"

"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"

"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"

"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"

"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"

"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"

"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"


"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"

"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"

"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"


"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"

"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"


"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"

"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
Shandaar jabarjast lajawab update Bhai ❤️🎉
 
Top