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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
तो आर्य फिर से ब्लैक फॉरेस्ट वाले चक्र में फंस चुका था मगर ब्लड ओथ की वजह से उसकी पीड़ा पूरा पैक महसूस कर पा रहा था। जब कुछ समझ नही आया तो सब वापस आर्य के पास आ गए।

रूही सच में आर्य की सखी बन चुकी है। सखी, एक ऐसा शब्द जिसको मान और प्रसिद्धि दिलाई श्री कृष्ण जी ने द्रोपदी के लिए प्रयोग करके। एक ऐसा रिश्ता जो प्रेम और रक्त से हर रिश्ते से बड़ा है। इसीलिए रूही ना सिर्फ आर्य की बातो का मतलब अच्छे से समझ जाती है वहीं अनकहे शब्दो को भी समझ जाती है, शायद इसीलिए मित्र, सखा या सखी इन रिश्तों को हर रिश्ते से ऊपर माना जाता है।

पता नही ये अनुमान सही है या गलत मगर nain11ster नैनू भाई की हर कहानी के मुख्य किरदार प्रेम के रिश्ते में बंधने से पहले सखा या सखी ही रहे है।

रूही ने सही अनुमान लगाया और आर्य के चक्र को ठीक वैसे ही तोड़ा जैसे ओशुन ने किया था मगर अंतर इतना हैं की इस बार आर्य को जगाने के लिए पूरा पैक अपनी जान देने को तैयार है। हां वो सब ब्लड ओथ से बंधे है मगर जो वो कर रहे है वो किसी पैक, शक्ति या अन्य किसी लालच से परे एक ऐसे इंसान को बचाने की जद्दोजहद है जिसने बिना किसी स्वार्थ के ना सिर्फ उन सबको एक अच्छा जीवन दिया बल्कि अच्छा जीवन जीने का सही मार्ग दर्शन भी किया।

सबका निवार्थ त्याग सफल रहा है अभी तक और अब आर्य अपने उस वर्षो के डर, पीड़ा और अपमान का मुकाबला करने को तैयार है और जब आर्य शांत चित्त के साथ रणभूमि में उतरा हो तो शत्रु कोई भी हो, मुकाबला जबरदस्त हो होता है। बहुत ही प्यारा अपडेट nain11ster नैनू भाई
 

Tiger 786

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भाग:–91





रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। जैसे ही सभी पहुंचे रूही को छोड़कर तीनों टीन वुल्फ एक कमरे में। ओजल, अपने भाई को घूरती हुई… "ये तेरे और अलबेली के बीच क्या चल रहा है?"..


"ये बच्चो के जानने की बातें नहीं है, इसे मै हैंडल करूंगी, अपने तरीके से"… अलबेली, ओजल को आंख मारती हुई कहने लगी। बेचारी ओजल वहां से नीचे आने में अपनी भलाई समझी। वो दोनो को घूरती हुई नीचे लिविंग रूम में आकर रूही के पास बैठ गई।


रूही:- तुझे क्या हुआ, ऐसे मुंह क्यों उतरा हुआ है।


ओजल:- दीदी, तुम्हे नहीं लगता अपने पैक में एक लड़के कि कमी है। बॉस को बोलो ना एक पैक में एक लड़का लेले।


रूही, बड़ी सी आंखें करके उसकी ओर देखती हुई… "मतलब ऊपर वो दोनो।" रूही इतना ही कह पायी फिर कुछ सोचती हुई… "तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रैंड है क्या?"


"छोड़ो, कहीं घूम कर आते है.."… ओजल के चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती थी।


रूही:- क्या हुआ, मुझसे नहीं बताएगी तो तुम्हारी समस्या का समाधान कैसे मिलेगा।


ओजल:- मुझे ना एक लड़का पसंद है।..


रूही:- हां ठीक है तू थोड़ी मायूस है, थोड़ी झिझक भी हो रही है। एक काम कर आंख मूंद और सारी बातें कह दे।


ओजल:- हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते है। वो उसने मुझे किस्स भी किया था, और मुझे काफी अच्छा भी लगा था। फिर..


रूही:- हां अब इतना बता दिया तो आगे भी तो बोल..


ओजल:- फिर क्या, मेरे नाखून उसके कमर से घुसते घुसते रह गए। धड़कन इतनी बढ़ी थी कि मैं वुल्फ में शिफ्ट कर रही थी। और जब खुद को काबू की तो सब मज़ा ही खत्म हो गया। उन दोनों के पास तो ऑप्शन है इसलिए आपस में लग गये। मैं क्या बिना लड़के के ही रह जाऊंगी? क्या मेरा कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं होगा? मेरी भी फीलिंग्स है। मेरा भी कोई ब्वॉयफ्रैंड हो उसके साथ घूमना चाहती हूं, किस्स करना चाहती हूं। और अपनी वर्जिनिटी भी लूज करना चाहती हूं। लेकिन ये शापित जीवन। मैंने कहा था क्या किसी को ऐसा जीवन देने।


रूही, ओजल सर अपने सीने से लगाकर उसके सर पर हाथ फेरती… "समस्या बता दिया ना, अब तुम्हे समाधान भी आराम से मिल जायेगा। शांत रह जरा और अपने जीवन को क्यों कोसती है?"..


ओज़ल:- बोलना आसान है दीदी लेकिन सच्चाई आपको भी पता है। क्या आपके साथ नहीं हुई कभी ये समस्याएं…


रूही:- नही मेरे साथ ऐसी समस्या नही हुई थी क्योंकि मुझे नोचने वाले भेड़ियों की कमी नही था। खैर, मेरी छोड़ और बाकी शेप शिफ्ट पर कंट्रोल किया जा सकता है। प्रैक्टिस मैक्स ए वुमन परफेक्ट।


"प्रैक्टिस मेक्स अ वूमेन परफेक्ट... मुझे भी ये प्रैक्टिस करवा दो ना दीदी।"… मजाकिया अंदाज में ओजल अपनी बात कहकर जोड़-जोड़ से हसने लगी।


रूही उसके सर पर हाथ मारती… "पागल कहीं की, क्या प्रैक्टिस करेगी।"..


"वही जिसकी प्रेक्टिस करके आप परफेक्ट हो गई, सेक्स"… ओजल आंख मारती हुई अपनी बात कही और खी खी करके हंसने लगी।


रूही:- ओय बेशर्म, बी एन इंडियन गर्ल, शादी से पहले नो सेक्स..


ओजल:- हां तो मेरी शादी करवा दो।


रूही:- पागल कहीं की, छोड़ ये सब बॉस नहीं है तो 4-5 दिन नॉन भेज पार्टी हो जाए।


ओजल:- वूहू.. ये हुई ना बात। छोड़ो ये मन को भरमाने वाले टॉपिक। मस्त आज बटर चिकेन और नान खाएंगे।


रूही:- अलबेली बटर चिकन अच्छा पकाती है, उसी को कहती हूं।


ओजल:- रहने दो अभी तो दोनो के बीच इजहार चल रहा होगा। कमिटमेंट चल रहा होगा। कसमे होंगे, वादे होंगे। फिर नजरे मिलेंगी और किस्स होगा। फिर दोनो मुसकुराते हुए बाहर आएंगे और बाहों में बाहें डालकर घूमने निकल जाएंगे। पता ना मेरे लिए कोई लड़का है भी या नहीं… छोड़ो उन नए पंछियों को दीदी, खाना किसी इंडियन रेस्त्रां से मंगवा लेते है।


रूही:- मंगवा क्या लेंगे, चलते है उधर ही। इसी बहाने कुछ लड़के भी ताड़ लेंगे और खाने का आर्डर भी दे देंगे।


दोनो अभी बात कर रही थी कि तेज दरवाजा टूटने की आवाज आयी और फिर नीचे कांच के टेबल के ऊपर इवान आकर गिरा। कांच भी तेज आवाज के साथ टूटा और इवान फ्लोर पर कर्राहते हुए, हाथ हिलाकर रूही और ओजल को हाई कहने लगा।


उसकी हालत देखकर दोनो को हंसी आ गई। तभी ऊपर से अलबेली चिल्लाई.. "मेरे आस पास भी दिखाई दिए ना इवान तो मै तुम्हारा खून पीकर डबल अल्फा बन जाऊंगी। शक्ल मत दिखना अपना।"…. "भाड़ में जाओ अलबेली तुम। दुनिया में लड़की की कमी है क्या?"


रूही अपना हाथ दे कर उसे ऊपर खींचती… "दोनो तो अंदर रोमांस कर रहे थे ना फिर ये एक्शन कहां से चालू हो गया।"..


इवान कुछ नहीं कहा चुपचाप वहां से अपने कमरे में चला गया। रूही और ओजल दोनो उसे देखकर हंस भी रही थी और सोच भी रही थी कि ऐसा हुआ क्या होगा? दोनो नीचे से ही चिंख्ती हुई अलबेली को बुलाने लगी… "क्या है दोनो गला क्यों फाड़ रही हो।"


रूही:- दरवाजा गया, यहां का टेबल गया। मैंने सुना दोनो प्यार करते हो, फिर इतना सीरियस एक्शन क्यों।


अलबेली कुछ देर ख़ामोश रहकर रूही और ओजल को घूरती रही, फिर हाथ के इशारे से पास आने कहीं। सबने जब अपने कान लगा दिए… "बिना मेहनत के मिल गई तो कहता है कि बस मुझे रोक–टोक मत करना। बस फिर क्या था दे दी घूमाकर एक लात। प्यार भी करना और इसे दूसरे लड़कियों को भी ताड़ना है। भगा दिया उसे। जाये करते रहे अपनी मनमानी।"..


ओजल:- ओह मतलब इजहार होने से पहले ही ब्रेकअप हो गया..


अलबेली:- ब्रेकअप हो गया क्या मेरा? अरे यार ये क्या हो गया.. रुको अभी आयी इवान को मानाकर।


रूही आंख दिखती… "झल्ली कहीं की वो लड़का है, वो आयेगा मानाने।"


अलबेली:- रूही बड़ा क्यूट लड़का है, नहीं आया मानाने तो?


रूही:- वो बाद में देखेंगे, तुम बस स्ट्रिक्ट रहना। वरना यदि इन लड़को के पीछे तुम गई तो ज्यादा भाव खाएंगे।


अलबेली:- ये इंडिया थोड़े ना है। यहां अभी ब्रेकअप हुआ और अगले सेकंड नया रिश्ता बन जाता है। तुम लोग के चक्कर में अच्छा लड़का ना हाथ से निकल जाय।


रूही और ओजल दोनों उसे घूरते… "शुरू से प्रकाश डाल जरा कहानी पर, फिर बटर चिकन और नान।"


अलबेली:- "वाउ !!! बताती हूं.. पहली बार, जब इवान तहखाने में था तब ऊपर सबकी बाते हो रही थी और नीचे हम दोनों की नजरें मिल रही थी। फ्लाइट में जब आ रहे थे तब हम दोनों नजरे मिला रहे थे। ऐसे नजरो का खेल बहुत दिनों से चल रहा था। उसके बाद कनाडा की कहानी तो तुम दोनो को ही पता है।"

"लौटकर आये तो कुछ दिन इसी ख्याल ने गुजर गये की कंट्रोल न होने की वजह से फसते–फंसते बचे। लेकिन कब तक इन ख्यालों के कारण न मिल पाते। थोड़ा उसका मन डोला। थोड़ा मेरा मन डोला। थोड़ा वो करीब आया, थोड़ा मैं करीब आयी। ऐसे ही करीब–करीब खेलते कब हम दोनो के होंठ करीब आकर एक दूसरे से चिपक गये पता ही नही चला। किस्स जब खत्म हुई तो वो भी मुस्कुराया मै भी मुस्कुराई। ना वो कुछ कह पाया ना मै कुछ कह पायि। फिर ट्रेनिंग और स्कूल में उलझ गई जिंदगी, लेकिन तब भी हमे किस्स करने के मौके कभी-कभी मिल ही जाते.."


रूही:- और वो कभी कभी कितने दिन में आता था।


अलबेली:- यही हर 2-3 घंटे में।


रूही:- और वो भी हुआ कि नहीं अब तक...


अलबेली अपनी आंखें छोटी करके दोनों को घुरी। फिर एक आंख मारती हुई कहने लगी.… "लड़की ही हो ना। इतने किस्स के बाद कोई आगे बढ़ेगा तो… खैर दोबारा मत पूछना ऐसे सवाल अब चुपचाप सुनो। फिर एक दिन इस इवान के बच्चे ने अपनी कुत्यापा दिखा दिया।"

"इवान किसी लड़की को पूरा सिद्दत से चूम रहा था। ऐसा लगा जाकर उस लड़की का मुंह नोच लूं। मेरे माल पर नजर डाल रही थी। अब क्या बताऊं जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या कहना। हां लेकिन किस्स करते वक़्त अचानक इवान के क्ला निकल आये, और मै जोड़ से चिल्ला दी।"

"अकडू कहीं का, भड़क गया और कहने लगा कि ऐक्सिडेंटली हमारे बीच कुछ अट्रैक्शन हुआ, इसका मतलब ये नहीं तुम मेरी पर्सनल लाइफ में दखल दो। मेरा मुंह छोटा हो गया। रोने जाने से पहले मैं उसे बताती गयी, वो शेप शिफ्ट कर रहा था इसलिए रोकना पड़ा। बस हो गया, उसके बाद ना तो उसने कभी मुझसे उस पर कोई बात की ना कभी सॉरी कहा।"

"उस रात जंगल में अचानक मुझसे इवान ने आई लव यू कह दिया। आह मै खुशी से झूम गई। वो सॉरी क्यों नहीं कहा, क्यों मुझसे बात करना बंद कर दिया, ये सब गम मिट गये। यहां आयी तो सोची वो मुझे प्यार से गले लगाकर अपनी बात रखेगा। हालांकि शुरवात तो प्यार से ही किया था, लेकिन बाद में कहने लगा कि मै उसे रोका टोका ना करूं। पता नहीं मुझे क्या हो गया, ऐसा लगा कि वो कहना चाह रहा हो किसी को भी वो किस्स करे, मै ना टोकुं। बस गुस्सा आ गया और दे दी एक लात घुमाकर।"


ओजल:- हां ठीक तो की। कोई जरूरत नहीं उसके पास जाने की। एक तो इतनी प्यारी लड़की उसे मिलेगी नहीं और गोरी मेम पर लट्टू है कमिना। कर लेने दे उसे अपने मन कि, जब अक्ल ठिकाने आयेगी ना तब तू भी उसे ठेंगा दिखा देना।


अलबेली:- पूरी बात ये सब सुनने के लिए नहीं बतायी। उस अकडू की अकड़ तो मै निकाल दूंगी, उसकी चिंता क्यों करती हो। चलो अब बटर चिकेन और नान कहां है वो बताओ?



रूही:- उसके लिए तो हमे बाहर जाना होगा ना। या तुझे बनना है तो बता दे मै चिकेन मंगवा लेती हूं।


अलबेली:- घर पर ही बना लेते है। आज पेट भर खाने के बाद सीधा बिस्तर की याद आएगी। मुझसे तो रेस्त्रां से लौटा ना जाएगा। ऊपर से बिल भी तो सोचो। जितने में उनका 4 प्लेट आएगा हम यहां आराम से 10-20 चिकेन तो खा ही सकते है।


आर्यमणि के ना रहने पर कुछ और नहीं तो कम से कम खाने की तो पूरी आज़ादी थी ही। अगले दिन स्कूल में जैसे ही ओजल का आगमन हुआ, कुछ लड़के-लड़कियां उसे देखकर घेर लिया। अलबेली और इवान दोनो ही अपनी कार पार्क करके आ रहे थे। स्वाभाविक था इवान और अलबेली दोनों एक दूसरे से कटे हुए थे। लेकिन सामने ओजल का जलवा देखकर दोनो आखें फाड़े थे। कब एक दूसरे के नजदीक पहुंचे उन्हें भी पता नहीं चला। अचानक ही एक दूसरे पर नजर गई और दोनो मुंह फेर कर अपने-अपने क्लास में।


इधर ओजल से शिकायती लहजे में मरकस उसके 3 दिनो तक गायब होने का कारण पूछने लगा। ओजल भी तबियत खराब का बहाना बना दिया। सभी लोग एक साथ मिन्नते करते हुए कहने लगे… "हाई स्कूल चैंपियनशिप में आज तक स्कूल का नाम टॉप 5 में नहीं रहा। प्लीज हमे ज्वाइन कर लो।"..


ओजल:- अगर स्किल सीखना है तो मै एक क्लास खत्म करके आती हूं, वरना स्कूल छोड़ दूंगी।


सभी लड़के लड़कियां छोटा सा मुंह बनाकर… "ठीक है हम इंतजार करेंगे।"..


अलबेली और इवान के क्लास भी साथ में खत्म हुआ था। दोनो को म्यूज़िक क्लास जाना था लेकिन ओजल की अचानक से बढ़ी लोकप्रियता देखकर वो दोनो उसके पीछे चल दिए किन्तु अलग-अलग। ओजल ग्राउंड पर पहुंच चुकी थी और सामने से 30 खिलाड़ी… 15 लड़के और 15 लड़कियां… सबकी नजर ओजल पर…


"ऐसे मत घूरो दोस्तो, मै नर्वस हो जाऊंगी। अच्छा मै जो बताने वाली हूं वो शायद गेम से हटकर अलग स्किल है, मै चाहती हम तुम सब ध्यान दो। जबतक कोई एक काम करो वहां बाहर बैठे मेरे भाई और उसकी गर्लफ्रेंड को यहां बुला लाओ।".. ओजल सबको कहने लगी...


ओजल बाहर बैठे अलबेली और इवान के ओर इशारा करके बुलाने के लिए कह दी। इधर जबतक वो, नजर और बॉडी लैंग्वेज, की सही परिभाषा को सीखाने लगी। कोई किस दिशा में कोई व्यक्ति भागेगा वो उसकी नजर और पाऊं के एक्शन से पता चलता है। इस पर ओजल ने 2 वॉलंटियर को बुलाया और बाहर खड़े लोगों को दूर से बताते रही… जो खिलाड़ी बॉल पकड़े रहते है, वो किस ओर भागने वाला है और एक परफेक्ट थ्रो के लिए एक खिलाड़ी के थ्रो के ठीक पहले, बॉडी लैंग्वेज क्या होती है, इन सब विषयों पर बात करने लगी।


इतने में अलबेली और इवान भी आ गए… "क्या हुआ, हमे क्यों बुलाया।".. दोनो लगभग आगे पीछे करके पूछा और एक दूसरे को देखकर गुस्से का इजहार करते इधर-उधर मुंह फेर लिया।


ओजल:- ऑफ ओ दोनो बाद में गुस्सा कर लेना। अभी अपने स्कूल की इज्जत दाव पर लगी है।


इवान:- मुझे क्या करना होगा?


ओजल:- कोई अपने घर में ना घुस पाए ऐसे स्किल सिखाओ हमारे फुटबाल टीम के डिफेंस को। अलबेली तुम 4 लड़के और चार लड़की को पकड़ो जो लोग थ्रो कर सके, इस पार से उस पार। और एक आदमी जब 4 लोगो से घिरे रहे तब भी सेफली अपना बॉल कैसे कलेक्ट कर सकते है वो सिखाओ। बाकी अटैक लाइन वाले मेरे साथ आईये, हम अटैक करना सीखेंगे।


तीनों को पहली बार कुछ इंट्रेस्टिंग सा काम मिल गया था, ट्रेंड करना। तीनों हू बहू आर्यमणि की बॉडी लैंग्वेज और समझाने का तरीका भी ठीक उसी तरह से, जिस तरह से आर्यमणि प्यार से सिखाया करता था, वो भी बिना इरिटेट हुए।


इधर करीब 3 दिन तक कई सारे किताब को पलटने के बाद आर्यमणि तैयार था अपने दिमाग को कोमा में ले जाने के लिये। ठीक ओशुन के पास ही उसका बेड भी लगा दिया गया। ओशुन के हाथ को आर्यमणि ने थाम लिया। बॉब ने पूरी प्रक्रिया शुरू की और आर्यमणि के दिमाग को धीरे-धीरे माइनस 5⁰ तक ले गया। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और फिर अंत मै वो गहरी नींद में सो गया।


जैसे ही आर्यमणि ने अपनी आंखें खोली चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। ऐसा लग रहा था उस जगह को कभी ना खत्म होने वाले अंधेरे ने घेर रखा हो। चारो ओर अजीब सी बदबू आ रही थी और कहीं दूर से सिसकने की आवाज.… "संभवतः वहां आपकी आत्मा को अपने सबसे बड़े खौफ से सामना करना पड़ेगा और उस खौफ को हराने में आप को कई दशक लग सकते है या फिर आप अपनी जिंदगी वहां हारकर आ सकते है।"…


आर्यमणि पुस्तक "उलझी पहेली" के उन शब्दों को याद कर रहा था कि क्या होता है जब एक हील होती हुई बॉडी के मस्तिष्क को मरने लायक ठंड में रखा जाता है। शरीर की हीलिंग पॉवर दिमाग को मरने नहीं देती और गहरे अंधेरे में उलझी आत्मा वापस शरीर में नही लौटती। उस अंधेरे में आपको जो नजर आने वाला है, वो है आपका सबसे बड़ा खौफ।


अभी तक तो आर्यमणि के दिमाग में केवल किताब की बातें ही थी, लेकिन जो भी लिखा था सत्य लिखा था और जो दिख रहा था वो था आर्यमणि का डर, जो हाल के कुछ सालो के ख्यालों से जन्म लिया था। 4 फर्स्ट अल्फा या यूं कह लें कि 4 बीस्ट वुल्फ ने आर्यमणि को चारो ओर से घेर रखा था।


बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।
Oshun ka vapis Lana itna aasaan bi nahi.
Aarya ko kafi mushkilo ka samna karna padega

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भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
Ruhi ka aarya ke liye lagaaw kuch alag hi hai bhai

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Kala Nag

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भाग:–92





बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।


रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।


रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…


रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..


बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..


रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..


बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..


बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।


रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।


बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।


अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।


ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…


रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।


चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।


वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"


फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?


आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।


लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।


हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…


"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"

"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…


ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"


बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।


रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?


बॉब:- हां कर तो सकता है..


रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?


बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?


रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?


बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।


रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।


बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।


रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।


बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...


रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।


साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।


कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।


"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…


दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?


जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?


पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।



"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..


अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।


चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
वाव मजा आ गया
रूही बहुत ही तेज दिमाग की है और आर्य की हमदर्द व हमसाया है
आर्य जिस चक्रव्यूह में फंसा हुआ था उसी की तोड़ को रूही ने आर्य का रास्ता बना दिया
 

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भाग:–89





रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...


रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?


आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…

मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।

रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?

आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।

रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...

आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...

रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?


आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।


बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...


"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"

"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"

"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..


अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?


ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।


इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।


इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..


रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।


आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।


रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...


आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।


रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...


आर्यमणि…..

"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"

"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"

"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"

"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"

"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"

"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"

"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"


"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"

"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"

"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"


"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"

"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"


"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"

"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
रुही ने हर राज से पर्दा उठाने को बोल दिया आर्य को
आर्य का जन्म नो नक्षत्र के विलोम पर हूआ लेकिन इस बात का आर्य का बाय बर्थ वुल्फ होने का क्या लिंक हैं नैन भाई

वैसे आर्य गुरु निशी से मिलने के बाद नागपुर आया और इतने बखेड़े खड़े कर दिए भाई
 

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भाग:–89





रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...


रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?


आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…

मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।

रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?

आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।

रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...

आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...

रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?


आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।


बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...


"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"

"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"

"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..


अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?


ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।


इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।


इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..


रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।


आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।


रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...


आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।


रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...


आर्यमणि…..

"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"

"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"

"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"

"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"

"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"

"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"

"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"


"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"

"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"

"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"


"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"

"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"


"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"

"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
रुही ने हर राज से पर्दा उठाने को बोल दिया आर्य को
आर्य का जन्म नो नक्षत्र के विलोम पर हूआ लेकिन इस बात का आर्य का बाय बर्थ वुल्फ होने का क्या लिंक हैं नैन भाई

वैसे आर्य गुरु निशी से मिलने के बाद नागपुर आया और इतने बखेड़े खड़े कर दिए भाई
भाग:–90




"आध्यत को जैसे ही यह ज्ञात हुआ की सात्विक आश्रम के गुरु ने रीछ स्त्री को ढूंढ निकाला, उसके होश उड़ गये थे। वह आध्यत ही था जिसने फिर एलियन प्रहरी तक यह संदेश पहुंचाया था कि गुरु निशी वाकई एक सिद्धि प्राप्त सात्विक आश्रम के गुरु है, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक के पीछे है और वर्धराज कुलकर्णी भी इसी गुरु निशी का अनुयाई है। बात खुल चुकी थी और अब किसी को भी जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं था। हां लेकिन गुरु निशी और मेरे दादा जी दोनो इस बात से बेखबर थे कि आश्रम के दुश्मनों तक उनकी खबर पहुंच चुकी थी।"

"एलियन प्रहरी मेरे दादा जी के नजरों में एक अलग प्रकार के सुपरनैचुरल थे, जो अपनी असलियत छिपा कर रहते थे। उन्हे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये वही लोग थे जो सदियों से सिद्ध पुरुष का शिकार करते आये है। नित्या को भी सतपुरा के जंगल में रहने की सजा इसी वजह से मिली थी। उसके कारण एलियन का भेद लगभग खुलने ही वाला था।"

"एक ही वक्त में थोड़ा आगे पीछे चारो ओर से इतनी कहानियां चल रही थी। जब मैंने सुहोत्र लोपचे का पाऊं तोड़ा तब वह हील नही हुआ। एक साढ़े 8 साल के लड़के ने 12–13 साल के टीनएजर वुल्फ को मारकर घायल कर दिया, फिर ये एलियन प्रहरी के नजर में आना ही था। उन्हे शक हो गया था कि 7 सालों में मेरे दादा ने मुझे कोई सुद्ध ज्ञान दिया गया है। शुद्ध ज्ञान एक प्रकार का विशेष ज्ञान होता है, जिसे गर्भ में पल रहे शिशु को दिया जाता है। मैं एलियन के शक के घेरे में आ गया और राकेश नाईक इन सब विषय की जानकारी देने में विफल रहा था, इसलिए जाल बुना गया। प्रहरियों का जाल।"

"उसी रात लोपचे कॉटेज को आग लगा दिया गया और लोपचे से सुरक्षा के नाम पर तेजस हमारे साथ करीब 2 महीने रुक था। जिस दिन तेजस गंगटोक छोड़कर गया, ऊसके तीसरे दिन मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु हो गयी। चूंकि मुझे शुद्ध ज्ञान दिया गया था इसलिए जब गुरु निशी मरे तब जाते–जाते मेरे लिये कुछ छोड़ गये थे, जो मुझे उस वक्त मिला जब मैं खुद के दिमाग में झांक रहा था। अतीत की गड़ी यादों ने मुझे झकझोर दिया। शायद दादा जी की तरह मेरे लिये भी एलियन प्रहरी कोई अलग प्रकार सुपरनेचुरल ही रहता। किंतु गुरु निशी अपने मृत्यु के पूर्व के महीने दिन की स्मृति मुझे भेज चुके थे, और उन स्मृति में मुझे एक चेहरा दिख गया, जो काफी चौकाने वाला था। वहां गुरु निशी के आश्रम में पलक थी।"

"न्यूरो सर्जन के दिमाग ने जैसे मेरे दिमाग के परदे खोल दिये थे। बॉब से विदा लेने के बाद मैं सीधा भारत ही आया था। लेकिन जिन डेढ़ साल का हिसाब तुम्हे नही मिला, उस अवधि में मैं अपने स्किल को निखारता रहा और अपने अंदर टॉक्सिक को भरता रहा। मैने बचे डेढ़ साल में तकरीबन रोजाना 150 से 200 पेड़ों को हील करता था। मेरे लिये पेड़ कम न पड़ जाये इसलिए मैं पूर्वी भारत के घने जंगलों में अपना अभ्यास करता रहा। मेरे पास कुछ घातक स्किल थे और मैं अपने उन सभी स्किल को पूरी ऊंचाई देने में लगा हुआ था। एक ड्रग देकर बॉब मेरा शेप शिफ्ट करवा चुका था, इसलिए खुद पर न जाने मैने कितने ड्रग के टेस्ट किये थे और उनसे पार पाना सीखा था।"

बीते वक्त की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह भी थी कि नागपुर पहुंचने से पहले मेरे पास कोई भी डेटा नही था। मुझे नही पता था कि मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु एक कत्ल थी। मुझे नही पता था कि गुरु निशी के कत्ल में प्रहरी का हाथ था। मुझे तांत्रिक आध्यत और उसके साजिसों के बारे में भी नही पता था। मुझे पता था तो बस मेरा पूरा परिवार किन कारणों से नागपुर छोड़ा। फेहरीन के पैक को खत्म करके ले जाने वाले कभी अच्छे समुदाय नही हो सकते। एक अज्ञात प्रकार का सुपरनैचुरल के नागपुर में होने की संभावना थी, इसलिए मैंने अपने स्किल को नई ऊंचाई दी थी। और जो मैं सही में पता लगाने आया था वह था गुरु निशी की स्मृति में पलक का दिखना, विकृत रीछ स्त्री का स्थान और दादा जी के साथ गुरु निशी का अनंत कीर्ति पुस्तक पर चर्चा करते हुये यह बताना की पुस्तक सुकेश के घर पर है।"

"मेरे लिये सबसे पहला टारगेट पलक ही थी। मैं उस से बस जानना चाह रहा था की आखिर वो गुरु निशी के आश्रम में कर क्या रही थी? मुझे कॉलेज के रैगिंग के दौरान यह पता करने का मौका भी मिला, जब पलक अकेले में मुझसे रैगिंग को लेकर बात करने पहुंची। मैने बॉब की ही ट्रिक को अपनाया और ड्रग को हवा में उड़ा दिया। लेकिन मेरे लिये यह घोर आश्चर्य का विषय हो गया, जब पलक पर उस ड्रग का असर ही नही हुआ। और भेद खुल न जाये इसलिए मैं बेहोश हो गया।"

"नागपुर मेरे लिये किसी उलझे पहली जैसा था, जहां मेरे पहला ट्रिक इतनी बुरी तरह से विफल रहा की मुझे सोचने पर मजबूर कर गया... "यहां चल क्या रहा है।" खैर चलते रैगिंग को मैने छेड़–छाड़ नही किया और उसे चलने दिया, क्योंकि मुझे दूसरा मौका चाहिए था। मैं पलक और अपने दोस्तों के आस पास रहना छोड़कर सहानुभूति बटोरने लगा। मेरे लिये आश्चर्य का सबब यह भी था कि पलक खुद मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही थी। खैर मेरे लिये इस सवाल का जवाब जरूरी नहीं था कि पलक नजदीकियां क्यों बढ़ा रही, क्योंकि आज न कल तो मैं पता लगा ही लेता। लेकिन जरूरी था यह पता लगाना की वह आश्रम में क्या कर रही थी? और मेरे पास पता लगाने का अपना ही तरीका था।"

"सुरक्षित तरीके से पलक के गले में मुझे क्ला घुसाने का मौका भी मिला। और जब मैने उसके गले में क्ला घुसाया फिर पता चला की मेरे दादा जी जिस सुपरनैचुरल नित्या को पकड़े थे, प्रहरी समुदाय में उन जैसों की भरमार थी। पलक के गर्दन में क्ला घुसाते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी करेंट सप्लाई के अंदर अपने क्ला को घुसा दिया, जो मेरे नाखून तक में करंट प्रवाह कर रहे थे। दरअसल वो करेंट प्रवाह हाई न्यूरो ट्रामिशन का नतीजा था, जो किसी विंडो फायर वॉल की तरह काम करते हुये पलक के दिमाग का एक भी डेटा नही लेने दे रहा था। जो तकनीकी और मेडिकल की भाषा नही जानते उनके लिये बस इतना ही की मैं पलक के दिमाग में नही झांक सकता था। मुझे पता चल चुका था कि पलक एक सुपरनैचुरल है, लेकिन उसके जैसे और कितने थे, ये पता लगाने में मुझे कोई देर न लगी।"

"ये इन एलियन का ब्रेन मोटर फंक्शन ही था जो इनके शरीर के गंध को मार रहा था। इनकी भावनाओ को पढ़ने से रोक रहा था। और एक बार जब इस बात खुलासा हुआ फिर तो मुझे एलियन को छांटने में कोई परेशानी ही नही हुई। रैगिंग के मामले से मुझे कोई फायदा नही मिला और मुझे पूरी बात का पता लगाने के लिये एलियन प्रहरी के बीच रहना अत्यंत आवश्यक हो चुका था, इसलिए बिना देर किये मैने पलक को प्रपोज कर दिया। मैं जानता था कि जिस हिसाब से पलक मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही है वह भी मेरे प्रस्ताव को नही ठुकराती। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।"

"किंतु केवल पलक की नजदीकियों के वजह से मुझे सभी सवालों का जवाब नही मिलता इसलिए मैं बस मौके की तलाश में था। खैर, केवल नागपुर में एक ही काम तो नही था इसलिए मैंने सभी कामों पर अपना ध्यान लगाया। न सिर्फ अनंत कीर्ति की पुस्तक तक पहुंचना बल्कि रीछ स्त्री का भी पता लगाना। एक बात जो कोई नही जानता वो मैं बता दूं, मेरे क्ला ही काफी है जमीन में दफन किसी भी चीज का पता लगाने के लिये।"

"फिर रीछ स्त्री का जब मामला उठा तब इस एक मामले के कारण मैं प्रहरी में इतना अंदर घुसा की इन एलियन की करतूत छिपी नही रही। मैं न सिर्फ प्रहरी मुख्यालय पहुंच चुका था बल्कि सुकेश के सीक्रेट चेंबर में भी घुस चुका था। फिर मुझे पता लगाने के लिये न तो किसी कमरे का दरवाजा तोड़ना था और न ही प्रहरी मुख्यालय में चोरी से घुसने की जरूरत पड़ी। मुझे जगह का ज्ञान हो गया और वहां पर क्या सब रखा है वह मुझे जड़ों की रेशों से पता चल गया। हां सही सुना... मैं जो रेशे फैलता हूं वह जिस चीज को भी छूते है उन्हे मैं देख सकता हूं।"

"एक के बाद एक सभी राज पर से पर्दा उठता चला गया और रही सही कसर स्वामी के लूट ने कर दिया। तुमने सही थी रूही। स्वामी का मेरे पास आना कोई संयोग नहीं था बल्कि उसके दिमाग से मैने ही छेड़–छाड़ की थी। एक बार नही बल्कि कई बार। पहले मैंने ही स्वामी के दिमाग के अंदर यह ख्याल डाले की यदि अनंत कीर्ति किताब गायब तो सुकेश खत्म। वहीं मैने दूसरा ख्याल भी डाल दिया की अनंत कीर्ति की किताब के सबसे ज्यादा करीबी आर्यमणि ही है। मुझे लगा अनंत कीर्ति की किताब तो स्वामी को मिलेगी नही इसलिए स्वामी, सुकेश के सीक्रेट चेंबर की दूसरी रखी किताब जरूर चोरी करेगा। दूसरी किताबे चोरी करने के बाद स्वामी अनंत कीर्ति की किताब का पता लगाने मेरे पास जरूर पहुंचेगा और वहीं से मैं सुकेश के सीक्रेट चेंबर के सारे किताब ले उडूंगा।"


"सुकेश के सीक्रेट चेंबर में किताब का होना ही मुझे खटक रहा था क्योंकि बाहर एक बड़ा सा लाइब्रेरी होने के बावजूद उन किताबों को छिपाकर क्यों रखा था? मन में जिज्ञासा तो जाग ही चुकी थी और मुझे सभी किताब को इत्मीनान से पढ़ना था। लेकिन स्वामी ने तो जैसे कुबेर का खजाना ही लूट लिया था। प्रहरी के बारे में बहुत कुछ मैं पता कर चुका था, रही सही कसर तब मिट गई जब मैं इनकी क्लासिफिकेशन की किताब देख रहा था। मुझे तभी समझ में आ गया की ये लोग पृथ्वी के कोई सुपरनेचुरल नही बल्कि किसी दूसरे ग्रह के इंसान है।"

"लूट के 2 समान जादूगर का दंश और एक पतला अनोखा चेन को मैने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में जमीन के अंदर दफन करके रखा है। उसपर हम साथ मिलकर अभ्यास करेंगे। अभी मैं बस उन दोनो वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहा हूं। पलक के दिमाग में जिस दिन क्ला घुसाया था उसी दिन मैने सोच लिया की मुझे क्या करना है? अभी ये एलियन सुपरनैचुरल मेरे लिये टेढ़ी खीर थे। मुझे जिस दुश्मन के बारे में पता ही नही उस से मैं लडूंगा कैसे? इसलिए मैं सोच चुका था कुछ बड़ा डंडा करके निकलूंगा ताकि ये लोग मेरे पीछे आने पर मजबूर हो जाये। वर्धराज के पोते को मारने का उतावलापन देखकर इनकी बुद्धि तो समझ में आ चुकी थी, अब बस इनकी शक्तियों का पता लगाना था।"

"मैं अपने कैलिफोर्निया पहुंचने तक का प्लान पहले से बना चुका था। मैने हर पॉइंट पर इतने जाल फैलाये थे की मुझे पता है कि इन एलियन की टीम मेरी जानकारी जुटाने कहां–कहां पहुंच रहे होंगे। मैने उनके चोरी के समान को भी एक जाल के तहत गायब किया था। बस थोड़ा इंतजार करो फिर हम वहां चलेंगे जहां ये हमारा पता लगाने पहुंचे होंगे। वहीं इन एलियन की छोटी–छोटी टुकड़ी से भिरकर उनके शक्तियों का पता लगाएंगे।"

"तो ये थी नागपुर की पूरी कहानी। अब मैं किसको क्या बताता की मैं नागपुर क्यों पहुंचा? ये मेरे लिये काफी उलझाने वाला सवाल था। क्योंकि गुरु निशी ने मुझे 3 हिंट दिये थे। पूरी बात बताने का मतलब होता की पहले अपने क्ला की शक्ति बताओ। उस शक्ति से मैने खुद के दिमाग में झांका और अतीत के पन्नो से गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी को ढूंढ निकाला ये बताता। फिर मुझे गुरु निशी की तीन यादें बतानी होती जो मरने से पहले उन्होंने मेरे दिमाग तक पहुंचाया था। उन तीन यादों के तहत मैंने इंसानियत और आश्रम के बहुत पुराने दोषी एक एलियन प्रहरी को ढूंढ निकाला। नागपुर आने की सच्चाई मैं किसी को चाहकर भी एक्सप्लेन नही कर सकता था इसलिए बस टालने के इरादे से झूठ बोलता था, और कोई बड़ी वजह नही थी। उम्मीद है तुम्हे सब समझ में आ गया होगा।"


रूही:– उफ्फ क्या मकड़जाल में तुम खुद ही उलझे थे बॉस। खैर कहानी तो पूरी समझ में आ गयी बस घटना क्रमबद्ध नही था इसलिए थोड़ी उलझन है। तो बॉस तुम ये कहना चाह रहे हो की तुम वाकई कुछ सवालों के साथ आये थे, लेकिन वह सभी सवाल प्रहरी से जुड़े थे। नागपुर आने से पहले तुम्हारे नजरों में प्रहरी एक करप्ट संस्था थी, बस इतना ज्ञान था?


आर्यमणि:– नही एक खास प्रकार का सुपरनेचुरल भी मिलेगा नागपुर में, यह बात भी दिमाग में थी। सच्चाई पता लगने के बाद कड़ियां जुड़ती चली गयी। फिर अतीत से लेकर वर्तमान की हर कड़ी जैसे मेरे नजरों के सामने थी।


रूही:– मतलब वो मैत्री के दादा मिकू लोपचे और उसकी पत्नी का कत्ल जिसमे दोषी प्रहरी थे, वो भी तुम्हे नागपुर आने के बाद पता चला...


आर्यमणि:– हां बिलकुल सही...


रूही:– फिर पलक जो गुरु निशी के आश्रम में थी, क्या वो अपस्यु के बारे में जानती थी, या अपस्यु उसके बारे में?


आर्यमणि:– नही पलक छोटी थी, यानी जब अपस्यु आश्रम पहुंचा होगा तब पलक गुरु निशी के बारे में पता करके निकल चुकी होगी। प्रहरी पर शक न हो इसलिए पलक के निकलने के कई साल बाद गुरु निशी को मारा गया था।


रूही:– सात्विक आश्रम के लोग तुम्हारे पीछे आये, ये महज इत्तीफाक था या उसमे भी तुम्हारी करस्तनी है।


आर्यमणि:– सात्विक आश्रम का मेरे साथ होना बस किस्मत की बात थी जो रीछ स्त्री के पीछे जाने से मेरी उनसे मुलाकात हो गयी। वह आश्रम तो खुद टूटा था और जोड़ने की यात्रा में उनकी पूरी टीम लगी थी। बस यात्रा के दौरान ही हम बिछड़े मिले। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं।


रूही:– सारी बातों में आर्म्स फैक्ट्री की बात कहां गोल कर गये? वो भी बता दो.…


आर्यमणि:– वो तो बॉब ही बतायेगा...


बॉब:– मुझे मत घसीटो... तुम ही कह दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। वैसे भी कुछ तो किस्मत तुम लेकर आये हो आर्य.…


आर्यमणि:– अच्छा... लेकिन ये न कबूल करो की बोरियाल, रसिया का जंगल में कई गैर कानूनी काम होते है। और उन्ही गैर कानूनी काम में से एक था इलीगल वेपन फैक्ट्री, जिसे एक होनहार क्रिमिनल चला रहा था। हम कुछ नया ट्राई करते हुये अपनी जगह से काफी दूर निकल आये थे और वेपन फैक्ट्री में काम कर रहे क्रिमिनल ने हमे घर दबोचा था। बस फिर क्या होना था, पूरी फैक्ट्री किसी भूतिया लताओं में फंस गयी और सारे क्रिमिनल्स आर्मी के हत्थे चढ़ गये। हां लेकिन इस बीच मैंने उनका सारा प्रोजेक्ट चुरा लिया।


रूही:– चलो, सच्चाई जानकर अब कुछ अच्छा लग रहा है। वाकई नागपुर क्यों पहुंचे उसका जवाब देना तुम्हारे लिये काफी मुश्किल होता बॉस। खैर, बॉस हमारा एक्शन टाइम कब आयेगा? कब हम उन एलियन प्रहरी के टीम के पीछे जायेंगे?


आर्यमणि:– बहुत जल्द... उसके लिये ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा.…


रूही:– और बॉस आपके और बॉब के बीच क्या चल रहा है? इतने दिनो बाद मिल रहे थे और कोई गर्मजोशी नही।


बॉब:– "आर्यमणि मुझसे मिल चुका है। हम दोनो मिलने की गर्म जोशी भी दिखा चुके। तुम्हारा कहना सही था कि ये जगह आर्यमणि लिये नया नही था। जिस विकृत रीछ स्त्री के आत्मा को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था उसके द्वार यहीं से खोले गये थे। करीब 3 महीने पहले ही आर्यमणि से जब मेरी बात हुई थी तभी उसने मुझे इस जगह का कॉर्डिनेट्स भेजा था। इसके क्ला क्या–क्या कारनामे कर सकते है, शायद ही कोई जानता हो।"

"वहां की मिट्टी में क्ला डालकर आर्यमणि ने इस जगह का कनेक्शन ढूंढा था। इसी जगह से विपरीत दुनिया का द्वार खोलकर महाजनिका के आत्मा को खींचा गया था। 3 महीने के परिश्रम के बाद मैं अंदर तक घुसा और यहां ओशुन को देखकर काफी हैरान रह गया। मैने आर्य को ओशुन के बारे में नही बताया। यहां आने की प्लानिंग भी हो चुकी थी। उस रात तुम दोनो यूं ही नहीं रात में घूमने निकले थे बल्कि उस डॉक्टर के प्राण बचाने की योजना के कारण ही घूमने निकले थे। सामने जो ओशुन पड़ी हुई है, उसके जिम्मेदार भी कहीं ना कहीं वही प्रहरी है... अब मै ओशुन को लेकर तुमसे कुछ बोल सकता हूं आर्य...


आर्यमणि:- हां बॉब...


बॉब:- ओशुन भी तुम्हे चाहने लगी थी बस वो तुम्हे कैसे फेस करती जब वो अपनी सच्चाई तुम्हे बताती। इसलिए वो तुमसे नहीं मिली। प्लीज उसे माफ कर दो।


आर्य:- मै उसकी परेशानी समझ सकता हूं। खैर छोड़ो भी इस बात को, और ओशुन को जगाया कैसे जाए उसपर बात करते है।


बॉब:- ये कोई ब्लैक मैजिक है आर्य। ये बात तो अब तक तुम्हे भी पता चल चुका होगा। जबतक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते जहां ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच कैद है, इसे जगाया नहीं जा सकता।


आर्यमणि:- इसके लिए मुझे क्या करना होगा?


बॉब:- ओशुन की तरह तुम्हे भी मरना होगा और उसकी आत्मा जहां फसी है वहां से उसे खींचकर लाना होगा। बाकी अंदर वहां क्या चल रहा है और किन हालातों से सामना होता है, वो वहां पहुंचने पर ही पता चलेगा।


रूही:- ये कैसी बहकी–बहकी बातें कर रहे हो बॉब।


आर्यमणि:- मुझे कुछ नहीं होगा रूही, तुम चिंता मत करो। मुझे यहां कुछ दिन वक़्त लग जाएगा इसलिए तुम अलबेली और ट्विंस को लेकर निकल जाओ। बाकी यहां बॉब और लॉस्की (लॉस्की पहला मिला वो वेयरवुल्फ जो मैक्सिको में इस फार्म में शिकारियों के साथ था) रुक रहे है।


रूही:- और यहां के फंसे वेयरवुल्फ?


आर्यमणि:- रूही तुम लॉस्की को बोलो सभी फंसे वेयरवुल्फ को सुरक्षित वापस भेज दे। यहां मै और बॉब पहले कुछ दिनों तक किताब की खाक छान कर देखेंगे और सोचेंगे की ओशुन को कैसे जगाया जाये।


बॉब:- मैंने पहले ही सारी पुस्तक अलग कर ली है। तुम इन सब को देखना शुरू करो, जबतक मै तुम्हारे पैक को वापस भेजता हूं।


आर्यमणि:- रुको बॉब अभी नहीं। क्या तुम हम दोनों (रूही और आर्यमणि) को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दोगे, हमे कुछ बातें करनी है।


बॉब मुस्कुराकर वहां से चला गया। उसके जाते ही आर्यमणि रूही का हाथ थामते… "मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी आई के बारे में बहुत कुछ पता होते हुए भी मैंने तुमसे छिपाया। नागपुर की पूरी सच्चाई नही बताई।"


रूही:- जबसे तुमसे मिली हूं ना आर्य, बीते दिनों का दर्द और गुस्सा दिल से कहीं गायब हो गया है। बस तुम यहां अपना ध्यान रखना और जल्दी लौटने कि कोशिश करना। वैसे भी जल्द से जल्द एक्शन करने के लिये बेकरार हूं।


आर्यमणि:- अभी ही कर लो, इतनी भी बेकरारी क्यों?


रूही:- तुम तो घर के माल हो बॉस, तुम्हारे साथ तो कभी भी एक्शन कर सकती हूं, फिलहाल तो तड़प उन एलियन के लिये है। चलो अब मै चलती हूं। तुम यहां पुरा फोकस करो जब तक मै उन मुसीबतों को संभालती हूं।


रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। और इधर आर्यमणि ओशुन को छुड़ाने के काम में लग गया।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
गुरु नीशी ओर वर्धराज की हत्या के पीछे अध्यात था महाजनिका को बचाने के लिए

ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच फंसी है भाई
अनन्तकिर्ती की किताब के खुलने का समय आ गया है नैन भाई
 

B2.

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भाग:–86




कुछ भी कहो बॉब एक जीनियस से कम नही। उसी ने सबसे पहले लुथिरिया वोलुपिनी के साइड इफेक्ट को एक उपचार के रूप में प्रयोग किया था और वो सफल भी रहा। लूथरिया वुलुपिनी न सिर्फ वेयरवोल्फ के लिये एक जहर है बल्कि दावा का काम भी करता है। यदि एंटीडॉट है तो लुथीरिया वुलुपिनि से किसी भी वुल्फ को कंट्रोल किया जा सकता है, खासकर न्यू वेयरवोल्फ को। एंटीडोट है तो लुथीरिया वुलुपिनी का इस्तमाल फेंग और क्ला से घायल इंसान को ठीक करने तथा वेयरवोल्फ में न तब्दील होने के लिये भी कर सकते है। बॉब ने वुल्फ के जितने भी मारने के तरीके थे, उन सब से बचने के उपाय मुझे बताया था।


खैर बॉब टेस्ट के लिये तैयार था और मैं क्ला घुसाकर उसकी यादें लेना शुरू किया। उसके ताज़ा यादों में ही मुझे ओशुन दिख गयी। ओशुन का चेहरा सामने आते ही मैं ख्यालों की गहराई में चला गया। एक–एक करके उसके साथ बिताये हर पल की तस्वीर दिखने लगी। फिर मुझे बॉब का ध्यान आया और मैंने उसकी याद वापस देखन शुरू किया। उसके बाद मैं न तो रुका और न ही भटका। 10 मिनट में उसकी पूरी याद खंगालने के बाद अपना क्ला बाहर निकाला।


बॉब ने आंख खोलते ही सबसे पहले समय देखा और मुझसे, अपने बचपन के बारे में कुछ पूछा। उसे मैंने बता दिया। फिर बॉब ने थिया के बारे में कुछ पूछा। वो भी मैने बता दिया। फिर बॉब ने एनिमल बिहेवियर से संबंधित एक जटिल प्रश्न किया, जिसका जवाब मैं नही दे सका। इतनी पूछताछ के बाद बॉब ने मुझसे कहा... "जैसे टीवी पर कोई मूवी देखने के बाद कुछ अच्छे चीजें दिमाग में छप जाति है और बहुत से चलचित्र पर हम जैसे ध्यान नहीं देते ठीक वैसा ही याद देखने का अनुभव होता है। मेरे जिंदगी की कुछ खास घटना तुम्हे याद है लेकिन पूरी याद देखने के बाद तुम्हे मेरे जिंदगी की सारी घटना याद नहीं। अब तुम ओशुन के बारे में मुझसे कुछ कुछ पूछो?"


मैं, भद्दा सा चेहरा बनाते... "उसकी बात नही करनी।"


बॉब:– अच्छा इसलिए ओशुन की सारी विजुअल इमेज मेरे दिमाग में डाल दिये। तुम्हारे दिमाग में ओशुन से जुड़ी जितनी भी याद है उसे मेरे दिमाग में ऐसे छाप दिये की वो मेरी जिंदगी का हिस्सा लग रहा है।


मैं:– क्या मतलब मैने ओशुन के विजुअल इमेज तुम्हारे दिमाग में डाले...


फिर बॉब ने मुझे हर वो बात बताई जिसे मैं क्ला घुसने के बाद सोचा था। मैं अचंभित और बॉब तो मुझसे भी कई गुणा ज्यादा अचंभित। यादों के साथ ऐसी छेड़–छाड़ न तो कहीं वर्णित था और न ही किसी मौखिक दंत कथाओं में उल्लेख मिलता था। हम दोनो ही इस विषय में और ज्यादा जानने के लिये उत्साहित थे। इस शक्ति के बारे में पता चलते ही फिर बॉब रुका ही नहीं।


आगे यादों से छेड़–छाड़ पर प्रयोग शुरू करने से पहले बॉब बेतुकी सी जिद पर बैठ गया। दुनिया के बेस्ट न्यूरो सर्जन की यादों को ध्यान से देखना। मुझे तो कभी–कभी ऐसा भी लगता था कि बॉब के दिमाग में कहीं चोट लगी थी और कभी–कभी दिमागी संतुलन उसका हिल जाता है। न्यूरो सर्जन की याद देखना? खैर उसकी बात न कैसे मानता। मैं भी राजी हो ही गया।


हमलोग वहां से सीधा पहुंचे स्पेन। स्पेन दुनिया में सबसे बेहतरीन न्यूरोसर्जन देने के लिये काफी प्रसिद्ध देश है। हम लोग दुनिया के सबसे चर्चित और टॉप क्लास नंबर 1 न्यूरोसर्जन का पता लगाया। काफी व्यस्त मानस था और पहले कभी भी किसी मरीज को नहीं देखता। पहले उसके चेले इलाज के लिये आते और जब केस नही संभालता तब शीर्ष वाला डॉक्टर। ऊपर से उनकी फी। आम लोग खुद को बेचकर भी उनकी फी पूरी न दे पाये।


जैसा की बॉब के विषय में मैं पहले भी बता चुका हूं, था तो वो बहुत बड़ा कमिना। उसने पेड़ और पौधों से लिये टॉक्सिक को ब्रेन की नसों में दौड़ाने के लिये कहने लगा। कह तो ऐसे रहा था जैसे सामने हलवा परोस कर खाने कह रहा हो। मुझसे हुआ ही नहीं। एक हफ्ते लग गये टॉक्सिक फ्लो को इच्छा अनुसार बहाव देने में। अभी तो इच्छा अनुसार बहाव दिया था। इसके बाद तो जैसे बॉब का मैं कोई साइंस प्रोजेक्ट हूं। पहले उसने सिखाया टॉक्सिक को ब्लड के साथ बहने दो। मैने ध्यान लगाया और टॉक्सिक को ब्लड का हिस्सा समझा। कमाल हो गया, रगों में टॉक्सिक बहने लगा। हां वो अलग बात थी की मेरा हर वेन शरीर से कुछ सेंटीमीटर उभरा हुआ नजर आता।


इसके बाद बॉब ने जैसे न्यूरोसर्जन को पागल करने की ठान रखी हो। उसने फिर टॉक्सिक को किसी न्यूरो ट्रैमिशन की तरह पूरे शरीर में फैलाने के लिये कहने लगा। अब न्यूरो ट्रासमिशन होता क्या है उसे समझने में पूरा एक दिन गुजर गया। उसके बाद ये काम भी मैने बॉब की मदद से किया। जब मैं न्यूरो ट्रांसमिशन से टॉक्सिक को अपने शरीर में फैला रहा था तब मानो मेरे पूरे शरीर पर नर्व के जाल खुली आंखों से दिख रहा था। मेरा शरीर कोई देख ले तो ऐसा लगता जैसे किसी ने मेरे ऊपर की चमरी को छीलकर हटा दिया और अंदर के पूरे नर्व को दिखा रहा, जो टॉक्सिक के बहाव के कारण दिखने में बिलकुल काला था।


बॉब को पता था कि फ्री में उस डॉक्टर तक कैसे पहुंचना है। हम गये स्पेन के सरकारी हॉस्पिटल। वहां मैने दिमाग से संबंधित दिक्कत बताया। उन लोगों ने ब्लड सैंपल लेकर मुझे एमआरआई (MRI) के लिये भेज दिया। एमआरआई हुआ और डॉक्टर पागल। एमआरआई कर रहे डॉक्टर ने तुरंत एक मेडिकल टीम बुलवा लिया। वो लोग भी मेरा दिमाग देखकर चक्कर खा गये। दिमाग की नशों में खून की जगह जैसे ट्यूमर बह रहा हो। और ये बहाव केवल दिमाग की नशों में ही था बल्कि न्यूरो ट्रांसमिशन देखकर तो जैसे पसीने ही आ गये।


सरकारी हॉस्पिटल का ये केस सीधा पहुंच गया दुनिया के नंबर 1 न्यूरो सर्जन की टीम के पास। उनकी पूरी टीम और शीर्ष पर बैठा डॉक्टर चैलेंज लेने पहुंच गया। उनकी दिमाग की नशों को और भी ज्यादा हिलाने के लिये बॉब ने खास प्रबंध कर रखा था। हर मिनट पर मेरी बीमारी पूरी तरह से ठीक और फिर पूरी तरह से वापस आ जाती। मैं उनके बीच चर्चा का विषय बन गया और मुझ पर एक्सपेरिमेंट करने के लिये उन्होंने मुझे 50 हजार यूरो में साइन कर लिया। हां वो अलग बात है कि पहले मुझे भयभीत किया गया। मरने का डर दिखाया गया। और बाद में उनके मदद के बदले मेरे परिवार के लिये उन्होंने 50 हजार यूरो मुझे दिये।


मुझे क्या करना था मैं भी उनके रिसर्च का हिस्सा बन गया। जिस दिन मैं उनके हॉस्पिटल पहुंचा। उसी दिन से सब काम पर लग गये। टेस्ट के नाम पर मेरे शरीर से न जाने क्या–क्या निकाल लिये, लेकिन कहीं कोई बीमारी निकल ही नहीं रही थी। एक ही टेस्ट को स्पेन के 10 लैब से इन लोगों ने करवाया। सबका नतीजा एक जैसा। जबकि एमआरआई की रिपोर्ट उन्हे चकराने पर मजबूर कर देते। अंत में शीर्ष पर खड़ा टॉप न्यूरोसर्जन अपनी टीम के साथ मेरी सर्जरी का प्लान बनाया।


यहां तक तो सब कुछ मेरे और बॉब के सोच अनुसार ही हुआ। लेकिन आगे जो होने वाला था, उसके बारे में मैं कुछ नही जानता था। पर बॉब से भी चूक हो गयी। हमने सोचा था ऑपरेशन थिएटर में जाने के बाद सभी डॉक्टर को बेहोश करके मैं न्यूरोसर्जन के दिमाग में क्ला घुसा दूंगा। लेकिन वो प्लान ही क्या जो आखरी समय में फेल न हो जाये। सालो ने ऐसा ऑपरेशन थिएटर चुना जिसे देखकर मैने माथा पीट लिया। उस ऑपरेशन थिएटर के ऊपर का छत.…


ये सबसे ज्यादा कमाल का था क्योंकि उसके ऊपर कोई छत ही नही था। आंख उठाकर ऊपर देखो तो सीधा सेकंड फ्लोर का छत नजर आता था और फर्स्ट फ्लोर के छत की जगह बालकोनी टाइप थोड़ा सा छज्जा चारो ओर से निकाले थे। छज्जे के किनारे से 4 फिट की स्टील रॉड की प्यारी सी फेंसिंग थी, जिसे पकड़कर नीचे ऑपरेशन का पूरा नजारा एचडी में खुली आंखों से ले सकते थे। और जिन्हे 12–13 फिट नीचे देख कर कुछ समझ में न आये, उनके लिये 60 इंच का स्क्रीन लगाया गया था। जहां दिमाग का छोटा सा पुर्जा भी 10 इंच से कम का न दिखता। लाइव क्रिकेट मैच जैसे पूरी वयवस्था थी।



ऊपर से तकरीबन 50–60 आमंत्रित डॉक्टर देख रहे थे और नीचे पूरी टीम मेरा ऑपरेशन करने के लिये मरी जा रही थी। मैं करूं तो क्या करूं। बॉब भी साथ में नही था, उसे तो प्रतीक्षालय में इंतजार करने कहा गया था। मैं बड़ी दुविधा में। ऊपर से इन डॉक्टर्स ने एक छोटा बटन दबाया नही की पूरा स्टाफ ओटी में पहुंच जाता। मुझे कुछ सूझ नही रहा था और ये लोग इंजेक्शन लगाकर मुझे बेहोश करने वाले थे।


जब समझदारी काम न आये तब बेवकूफ बनने में ही ज्यादा समझदारी है। ऊपर से मुझे तो वैसे भी दिमागी बीमारी लगी थी। सो मैंने आव देखा न ताव सीधा बेड से कूद गया। मेरे बदन पर न जाने कितने वायर लगे थे और नब्ज में नीडल। सबको नोच खरोच कर गिराते मैं ऑपरेशन थिएटर से बाहर भागा। मेरे पीछे कुछ जूनियर डॉक्टर और नर्स की टीम भागी। मैं तो ओटी के बाहर चला आया और कुछ ही देर में पूरा हॉस्पिटल प्रबंधन मेरे पीछे दौड़ रहा था।


5 मिनट तक इधर–उधर भागने के बाद मैं थोड़ा तेजी दिखाते हुये वापस ऑपरेशन थिएटर में भागा। ऑपरेशन थिएटर में कम से कम 15 लोग रहे होंगे। हां। लेकिन शुक्र था कि कोई ऊपर खड़ा नही था। मुझे कुछ नही सूझा इसलिए मैंने एक बेडशीट में आग लगाकर उसके ऊपर गीला बेडशीट डाल दिया। चारो ओर तेज धुवां उठा और उस धुवां की आड़ में नंबर 1 न्यूरो सर्जन को लूथरिया वुलुपिनी का इंजेक्शन देकर उसके गर्दन में क्ला घुसा दिया।


जब मैंने उस डॉक्टर की यादों में झांका फिर मुझे पता चला की बॉब इस डॉक्टर की यादें देखने के लिये क्यों इतना जोर दे रहा था। किसी की यादें खुद के दिमाग में लेना। दूसरों के दिमाग में यादें डालने तथा भ्रम और सच्चाई बीच की लकीर के बीच कैसे उलझन पैदा करनी है। कौन सी यादें कहां मिलेगी। भूली यादें कहां होती है। यादों को एक दिमाग में कितने तरह से डाला जा सकता है। यादों को किस प्रकार से मिटाया जा सकता है। या फिर अपनी काल्पनिक याद को किसी के दिमाग के अंदर कैसे वास्तविक बना सकते है, मुझे सब पता चल चुका था। मुझे पता चल चुका था कि कहां ध्यान लगाने से क्या सब हो सकता है। मैं दिमाग और नर्वस सिस्टम से जुड़े इतने बातों को समझ चुका था की मैं किसी के दिमाग से यादों का कोई खास हिस्सा बिना किसी परेशानी के उठा सकता था।


फिर तो धुएं की आड़ में मैने बचे 14 लोगों की यादें भी देख ली। सबकी यादें काम की नही थी, इसलिए उन्हे स्टोर नही किया सिवाय 3 और लोगों के। जिसमे से एक प्लास्टिक सर्जन था तो दूसरा कॉस्मेटिक सर्जन। ये दोनो उस न्यूरो सर्जन के दोस्त थे और कई मामलों में न्यूरो सर्जन को सलाह भी दिया करते थे। आखरी में था एनेस्थीसिया। मैने न्यूरो सर्जन के साथ उन तीनो को भी लपेट लिया। सभी डॉक्टर के कुछ देर पहले की यादें मिटा दी और मैं जाकर आराम से लेट गया।


उन डॉक्टर में से जिसकी आंख पहले खुली हो। उसने जाकर दरवाजा खोला। कई लोग अंदर पहुंचे। ऑपरेशन थिएटर को खाली करवाया गया और फिर मुझे लेकर एक प्राइवेट रूम में सुला दिया गया। उस दिन ऑपरेशन होने से रहा और अगली बार ऑपरेशन हो, ऐसा मौका मैने दिया ही नहीं। मेरे जितने भी टेस्ट हुये सबके परिणाम पोस्टिव आये। चूंकि मैं एक एक्सपेरिमेंट सब्जेक्ट था और मेडिकल काउंसिल के लोग मेरी रिपोर्ट्स देख रहे थे, इसलिए मुझे डिस्चार्ज करने के अलावा उनके पास और कोई ऑप्शन ही नही था।


हम फिर यूरोप भ्रमण के लिये निकले। हां लेकिन हमारे पास पैसों की काफी तंगी हो चुकी थी, इसलिए वुल्फ हाउस को लूटने के इरादे से हम दोनो सबसे पहले जर्मनी ही पहुंचे। बॉब, मैक्स और बाकी रेंजर को वुल्फ हाउस की दास्तान सुनाने निकल गया और मैं वुल्फ हाउस चला आया। दरवाजे पर ईडन के मांस का लोथड़ा तो नही था लेकिन खून के दाग वैसे ही लगे हुये थे। अंदर घुसते ही बड़ा सा हॉल अब भी लड़ाई की दास्तान सुना रहा था। लाशें एक भी नही थी, लेकिन खून के धब्बे और गंदी सी बदबू चारो ओर थी।


वुल्फ हाउस में मैने अपना काम शुरू कर दिया। पैसों का पता लगाते मैं ईडन के तहखाने पहुंच गया, जहां पर पैसों और बाउंड का भंडार छिपा था। कुल संपत्ति लगभग 50 मिलियन यूरो थी। मैने ईडन का पूरा लॉकर ही साफ कर दिया। पूरे पैसे, बैंक लॉकर की चाबियां, कुछ बॉन्ड्स और शेयर अपने बैग में समेटकर डाल लिया। मैं जब तक वापस हॉल में पहुंचा, बॉब कुछ लोगों को लेकर वुल्फ हाउस पहुंच चुका था। ब्लैक फॉरेस्ट का रेंजर मैक्स और उसकी बीवी थिया को देखकर मैं खुश हो गया। हां लेकिन थिया मुझे देखकर जरा भी खुश न थी। उसने भरी सभा में जोर से चिंखते हुये मुझे वेयरवोल्फ पुकार रही थी।


मामला ठन गया। थिया की बातों पर किसी को यकीन नही हुआ, लेकिन सभी शिकारियों की संतुष्टि के लिये मेरा टेस्ट लिया गया। पहला करेंट और दूसरा वोल्फबेन। मैं दोनो ही टेस्ट 100% मार्क के साथ पास कर गया। थिया को लेकिन जरा भी यकीन नहीं था और वो मुझे पूरी तरह से फसाने का ठान चुकी थी। उसे सेक्स टेस्ट चाहिए था। सबके सामने उसने कह दिया, यदि मैं वुल्फ नही तो किसी स्त्री के साथ सबके सामने संबंध बनाये।


मैं फंसा। थिया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान और मैं चिंता में। सभी शिकारी हंसते हुये थिया को ही कपड़े उतारने कह दिये। मैक्स भी उनमें से एक था जो इस अजीब सी शर्त की मेजबानी थिया को करने ही कह दिया। कामिनी औरत मुझे पूरी तरह से फसा चुकी थी। वह उसी वक्त अपने ऊपर के कपड़े को फर्श पर गिराकर अंतः वस्त्र में खड़ी हो गयी और मेरे पास कोई रास्ता ही नही छोड़ी। बॉब ने मुख्य दरवाजा बंद किया और मैंने आतंक मचाने शुरू किया। बॉब के पास जानवरों को लिटाने वाले कई तरह के साधन थे। उन्ही साधनों को संसाधन में बदलकर सबको बेहोश किया और उनके जहन से मेरे वेयरवोल्फ होने की पूरी कहानी ही गायब करनी पड़ी।


उन्हे जब होश आया तब सभी अलग–अलग कमरों में लेटे थे। शाम के खाने की दावत पर सबको जगाया गया और पूरे रेंजर एक साथ जमा होकर बस ईडन के बारे में जानने के लिये उत्सुक थे। जब उन्हें पता चला की मैने अकेले ईडन का सफाया कर दिया और उसके साथ बाकी के अल्फा का भी, उनका चेहरा देखने लायक था। कुछ देर आश्चर्य से मौन रहे फिर जाम से जाम लहराते हूटिंग करने लगे। मैक्स ने मुझसे पूछा की आखिर मैं कैसे कामयाब रहा। तब मैने बॉब के बारे जिक्र करते कहा की बॉब ने माउंटेन ऐश और वुल्फ मारने का हथियार दिया। मैने उन सभी को ट्रैप करके मार डाला। और बचे हुये जो बीटा भागे उनका फिर पिछा नही किया।
Super se upper update Bhai ❤️🎉
 
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