#169.
कस्तूरी मृग: (17.01.02, गुरुवार, 09:30, सीनोर महल, अराका द्वीप)
सनूरा ने सुर्वया और मेलाइट को एक कमरे में ठहरा दिया था और रोजर को दूसरा कमरा दिया था।
लुफासा के कहे अनुसार सनूरा ने मेलाइट को वापस जाने का भी आग्रह किया था, पर मेलाइट ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था।
इस समय मेलाइट और सुर्वया अपने कमरे में बैठीं थीं कि तभी सनूरा की आवाज ने दोनों का ध्यान भंग किया- “क्या हम अंदर आ सकते हैं?”
“हां-हां आइये ना।” मेलाइट ने विनम्र लहजे में कहा- “आपका ही महल है, आपको पूछने की आवश्यकता नहीं है।”
“जब एक कमरे में 2 राजकुमारियां बैठीं हों, तो सेनापति को हमेशा पूछ कर ही कमरे में जाना चाहिये।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।
सनूरा की बात सुन मेलाइट और सुर्वया मुस्कुरा दीं। सनूरा अब उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।
“आप दोनों को यहां रहते हुए आज 2 दिन बीत गये हैं, उम्मीद है कि अब आप दोनों थोड़ा सहज महसूस करने लगी होंगी, इसलिये मैंने सोचा कि आप लोगों से आपकी पूरी कहानी सुन लूं, क्यों कि उस दिन लुफासा के जाने के बाद, हमें एक दूसरे से कुछ ज्यादा पूछने का समय नहीं मिला। ऊपर से आप लोग, उस दिन थोड़ा असहज भी दिख रहीं थीं, इसलिये मैंने 2 दिन तक आप लोगों से बात भी नहीं की।” सनूरा ने दोनों को देखते हुए कहा।
“बिल्कुल सही कहा आपने।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा- “उस दिन हम लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि आप लोग सही हैं या गलत? इसलिये आपसे बहुत सोच-समझकर बात कर रहे थे। पर आज
हम आपके सामने बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसलिये अपनी कहानी बताने को तैयार हैं।”
“एक मिनट-एक मिनट।” मेलाइट ने बीच में ही सुर्वया को टोकते हुए कहा- “क्या हमें रोजर को भी इस समय यहां बुला लेना चाहिये? उसे भी तो जानना होगा, हम सबके बारे में।”
मेलाइट की बात सुन सुर्वया मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें रोजर की बहुत याद आ रही है ....सबकुछ ठीक तो है ना?”
सुर्वया के शब्दों में एक अर्थ छिपा था, जिसे मेलाइट तो समझ गई, पर सनूरा को कुछ समझ नहीं आया।
“क्या मैं जान सकती हूं कि आप दोनों रोजर की बात सुनकर इतना मुस्कुरा क्यों रहीं हैं?” सनूरा ने आश्चर्य से दोनों को देखते हुए कहा।
“एक मिनट रुकिये सनूरा, बस आपको अभी पता चल जायेगा ....जरा दरवाजे की ओर देखिये।” सुर्वया ने मुस्कुराते हुए सनूरा को दरवाजे की ओर देखने का इशारा किया।
सनूरा ने कमरे के दरवाजे की ओर देखा, पर उसे कुछ नजर नहीं आया।
तभी कमरे के दरवाजे से रोजर भागता हुआ कमरे में प्रविष्ठ हुआ।
उसकी साँसें बहुत तेज चल रहीं थीं।
रोजर की कमर पर इस समय सिर्फ एक तौलिया लिपटा हुआ था, जिसने उसके निचले बदन को ढंक रखा था।
रोजर की नाभि से इस समय एक तीव्र सुनहरा प्रकाश निकल रहा था, उस प्रकाश से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी।
“कोई बतायेगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?” रोजर ने घबराए अंदाज में सबको देखते हुए कहा- “यह मेरे शरीर से कैसा प्रकाश निकल रहा है? कहीं यह आप दोनों की कोई शरारत तो नहीं?”
सनूरा भी आश्चर्य से रोजर के शरीर से निकलते प्रकाश को देख रही थी, उसे भी इस प्रकाश का स्रोत समझ में नहीं आया, पर सुर्वया के हल्के से इशारे से सनूरा चुपचाप बैठी रही।
रोजर की बात सुन मेलाइट अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और चलती हुई रोजर के पास जा पहुंची।
“क्या तुम्हें लगता है रोजी...आई मीन रोजर...कि यह हम दोनों की कोई शरारत है?” मेलाइट ने भोलेपन से जवाब दिया।
“हां , लगता है....2 दिन से आप दोनों मुझे अलग-अलग तरह से परेशान कर रही हो।” रोजर ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।
“हम दोनों?....नहीं-नहीं रोजर.... इसमें सुर्वया का कोई हाथ नहीं। वह तो सिर्फ मेरे साथ थी....तुम्हें तो परेशान तो मैं कर रही थी....आई मीन...हम तुम्हें परेशान क्यों करेंगे। दरअसल हमें तो पता भी नहीं कि
यह रोशनी कहां से आ रही है? पर ....पर इसकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही है रोजर....कहां से लाते हो तुम इतनी खुशबू?” यह कहकर मेलाइट बेहोश होने का नाटक कर लहरा कर गिरने लगी।
मेलाइट को गिरते देख रोजर ने बीच में ही उसे थाम लिया। अब रोजर मेलाइट की बंद आँखों को निहार रहा था।
तभी मेलाइट ने अपनी आँखें खोल दीं और अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहा- “ये तुमने मुझे अपनी बाहों में क्यों भर रखा है? क्या तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? और...और ये तुम बिना कपड़ों के हमारे कमरे में क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि इस कमरे में 3 लड़कियां हैं? अगर तुम्हारा यह तौलिया अपने स्थान से खिसक गया तो। अगर तुम ऐसी हरकत करोगे, तो मैं देवी आर्टेमिस से तुम्हारी शिकायत करुंगी।”
मेलाइट की बात सुन रोजर ने घबराकर मेलाइट को छोड़ दिया।
अब रोजर की नाभि से सुनहरी रोशनी निकलना बंद हो चुकी थी, यह देख रोजर ने एक नजर सब पर मारी और फिर वहां से जान छुड़ाकर
ऐसे भागा, जैसे कि उसके पीछे भूत पड़े हों।
रोजर के जाने के बाद, मेलाइट अपने स्थान पर आकर पुनः बैठ गई, पर इस समय मेलाइट, सुर्वया और सनूरा तीनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान थी।
“हां, तो हम कहां थे? आई मीन क्या बात कर रहे थे?” मेलाइट ने सनूरा से पूछा।
“हां...हम एक-दूसरे से अपनी कहानियां सुनाने की बात कर रहे थे।” सनूरा ने कहा- “पर अब सबसे पहले मैं मेलाइट की कहानी जानना चाहती हूं, क्यों कि ये जो अभी कुछ देर पहले हुआ, ये मुझे काफी रोचक
लगा।”
सनूरा की बात सुन मेलाइट के चेहरे पर फैली मुस्कान और गहरी हो गई और वह बोल उठी- “हम 5 बहनें दक्षिण ग्रीस के, सीरीनिया नामक जंगल के बीच की, एक सुंदर सी झील में रहते थे। हम सभी स्वच्छ जल में रहने वाली अप्सराएं थीं... और आप तो जानती ही हैं कि पुराने समय में अप्सराओं का जीवन कितना विचित्र होता था, अप्सराओं की सुंदरता ही उनके लिये अभिशाप बन जाती थी। जब भी किसी देवता या शक्तिशाली मनुष्य की निगाह सुंदर अप्सराओं पर पड़ती थी, तो वह जबरन उसे उठा ले जाते थे।
“इस प्रकार की किसी भी घटना से बचने के लिये अप्सराओं के देवता ने, हर अप्सरा को किसी जीव में बदल जाने की शक्ति दी, जिससे वह अपने घर से बाहर निकलते समय उस जीव में परिवर्तित हो जाती थीं। कुछ ऐसी ही शक्ति के तहत हम सभी बहनें भी सुनहरी हिरनी का रुप धारण कर लेते थे। एक दिन जब हम सीरीनिया के जंगल में सुनहरी हिरनी बनकर घूम रहे थे, तो शिकार की देवी आर्टेमिस ने हमें देख लिया, पर वह हमारी सुंदरता से मुग्ध हो गईं, इसलिये उन्होंने हमें मारा नहीं। मेरी 4 बहनों ने अपनी इच्छा से देवी आर्टेमिस का रथ खींचने का कार्यभार संभाल लिया। परंतु मैंने देवी आर्टेमिस की बात नहीं मानी।”
“क्यों? मैं जानना चाहती हूं कि तुमने देवी आर्टेमिस की बात क्यों नहीं मानी?” सनूरा ने बीच में ही मेलाइट को टोकते हुए कहा।
“क्यों कि देवी आर्टेमिस कुंवारी थीं इसलिये उनका रथ खींचने वाली सभी हिरनिओं को आजीवन कौमार्य व्रत धारण करना पड़ता और मुझे ये मंजूर नहीं था। मैं विवाह करके गृहस्थ जीवन जीना चाहती थी।” मेलाइट ने कहा- “आर्टेमिस ने मुझे इसकी इजाजत दे दी। अब मुझे तलाश थी किसी ऐसे योद्धा की, जिसके साथ रहने पर मुझे लगाव महसूस हो सके।
“आखिरकार एक दिन मुझे वह योद्धा मिल ही गया और वह योद्धा था- हरक्यूलिस, जो कि राजा यूरीस्थियस के कहे अनुसार अपने 12 कार्यों को पूरा करने निकला था। हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक मुझे पकड़कर ले जाना भी था। यूरीस्थियस नहीं चाहता था कि हरक्यूलिस अपने कार्य में सफल हो, इसलिये उसने मुझे पकड़ने का कार्य दिया था।
“उसे पता था कि जब हरक्यूलिस मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा, तो देवी आर्टेमिस उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगी। इसी कार्य के तहत हरक्यूलिस ने मुझे पकड़ लिया। मुझे हरक्यूलिस की वीरता और साहस से प्यार हो गया। मैंने बाद में हरक्यूलिस के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर हरक्यूलिस तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरे लिये ‘कोई और’ बना है।
“जब मैंने हरक्यूलिस से उस ‘कोई और’ के बारे में पूछा, तो उसने मुझे एक सुनहरी कस्तूरी दी और मुझसे कहा कि जब कभी मुझे, कोई भी पुरुष पहली बार स्पर्श करेगा, तो यह सुनहरी कस्तूरी उसकी नाभि में प्रवेश कर जायेगी। इस सुनहरी कस्तूरी की वजह से वह पुरुष एक सुनहरे मृग में भी परिवर्तित हो सकेगा और उसमें बहुत सी अदृश्य शक्तियां भी आ जायेंगी। वही पुरुष मेरा ‘कोई और’....मेरा मतलब है कि मेरा जीवन साथी बनेगा। बस तब से आज तक मैं उस ‘कोई और’ को ढूंढ रहीं हूं।” इतना कहकर मेलाइट चुप हो गई।
“अच्छा, अब मुझे समझ में आया कि तुम यहां से क्यों नहीं जाना चाहती।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा- “दरअसल तुम्हें यहां ‘कोई और’ मिल गया है, जो कि तौलिये में ‘किसी और’ के सामने घूम रहा है।”
सनूरा के यह शब्द सुन तीनों ही जोर से हंस दिये।
“अच्छा, एक बात तो बताओ मेलाइट? कि वह रोजर के शरीर से निकल रहा सुनहरा प्रकाश अपने आप बंद कैसे हो गया?” सनूरा ने अब किसी दोस्त की भांति मेलाइट से पूछा।
“जब भी मेरे मन में प्रेम की कोपलें फूटेंगी, उसके शरीर से प्रकाश प्रस्फुटित होने लगेगा, पर जैसे ही वह मुझे स्पर्श करेगा, उसके शरीर का प्रकाश स्वतः बंद हो जायेगा।” मेलाइट ने किसी जादूगर की भांति खड़े होकर अपना हाथ हवा में लहराते हुए अपने विचार प्रकट किये।
“ओ...होऽऽऽऽऽ जादू भरी प्रेम कहानी।....अद्भुत....पर बेचारा रोशनी का देवता....उसे तो अपनी ही प्रेम कहानी मालूम नहीं है।” सुर्वया ने आह भरते हुए मेलाइट को चिढ़ाया।
“तो ‘कोई और’ की कहानी तो पूरी हो गई।” सनूरा ने टॉपिक बदलते हुए, सुर्वया की ओर देखा- “अब आपकी कहानी में भी ‘कोई और’ तो नहीं।”
सनूरा ने अपने शब्दों से सुर्वया को अपनी कहानी सुनाने का इशारा किया था।
सनूरा की बात सुन सुर्वया ने गहरी साँस भरी और बोलना शुरु कर दिया- “काश...मेरी भी कहानी में कोई और होता?....मेरी कहानी में जादू तो है, पर ‘कोई और’ नहीं.... बस आकृति है...एक ऐसी आकृति, जिसकी आकृति मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं।...बात आज से लगभग 5,015 वर्ष पहले कि है जब आकृति और आर्यन वेदालय के एक कार्य के चलते, सिंहलोक से ‘चतुर्मुख सिंहराज’ को लेने आये थे।”
“एक मिनट, यह आर्यन कौन है? वेदालय क्या है? और यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ क्या था? जरा खुलकर समझाओगी क्यों कि मैं इसके बारे में नहीं जानती।” सनूरा ने बीच में ही टोकते हुए कहा।
“आज से 20,000 वर्ष पहले हि..न्दू दे..ओं ने, भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा के लिये ब्रह्मांड रक्षकों को बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये उन्हें कुछ अजेय मनुष्यों की जरुरत थी, जो कि देव-शक्तियों के द्वारा छिपकर, पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इस कार्य के तहत महागुरु नीलाभ और उनकी पत्नि माया को दे..ताओं ने 15 लोकों का निर्माण करने को कहा। इन 15 लोकों में देओं ने 30 देव शक्तियों को छिपा दिया। फिर इसके बाद एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना की गई।
“जिसमें पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ 13 बच्चों का चुनाव किया गया। इस वेदालय की पढ़ाई पूरे 10 वर्षों तक चलनी थी और इन 10 वर्षों में उन सभी बच्चों को वेदालय में ही रहकर इन सभी 30 देव शक्तियों को ढूंढना था। आकृति और आर्यन इन्हीं 13 बच्चों में से 2 थे। हमारा सिंहलोक भी इन्हीं 15 लोकों में से एक था, जहां पर 2 देव शक्तियां छिपी थीं- पहली थी ‘चतुर्मुख सिंहराज’ और दूसरी थी- ‘शुभार्जना’। दरअसल इन 2 शक्तियों की वजह से ही हमारा लोक एक प्रकार से अमर था। ‘चतुर्मुख सिंहराज’ एक 4 सिर वाली सिंह की प्रतिमा थी, जिसे राज्य के द्वार पर लगाया गया था।
“कहते थे कि यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ जिस राज्य के द्वार पर रहेगा, वहां कभी भी मृत्यु के देवता ‘यम’ प्रविष्ठ नहीं हो सकते। हमारे लोक की दूसरी शक्ति थी- शुभार्जना। शुभार्जना, एक छोटी सी डिबिया में बंद एक सिंह की गर्जना थी, जिसका 3 बार प्रयोग कर, किसी भी 3 मृत इंसान को जीवित किया जा सकता था। हां... तो अब आते हैं ‘चतुर्मुख सिंहराज’ पर, जो कि आर्यन और आकृति हमारे लोक लेने के लिये आये थे।
“यहां मेरी दोस्ती आकृति से हो गई, जिससे आकृति को मेरी कायांतरण और दिव्यदृष्टि का पता चल गया।
कायांतरण के द्वारा मैं किसी का भी चेहरा 24 घंटे के लिये बदल सकती थी और दिव्यदृष्टि के द्वारा किसी भी जीव को, जो जमीन पर हो, ढूंढ सकती थी।.....एक बार वेदालय की पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद आकृति मेरे पास आयी और उसने मुझसे अपने चेहरे पर शलाका का चेहरा लगाने को कहा। मुझे नहीं पता था कि वह इसके माध्यम से क्या करना चाहती है? इसलिये मैंने वैसा ही किया, जैसा कि वह चाहती थी।
“आकृति शलाका का चेहरा लगवा कर वहां से चली गई। 2 दिन बाद ही वह मेरे पास वापस आ गई, पर उसका चेहरा 24 घंटे के बाद भी शलाका का ही था। यह देख मुझे भी आश्चर्य हुआ कि मेरी कायांतरण शक्ति सही काम क्यों नहीं कर रही? बाद में मुझे पता चला कि आकृति ने शलाका के वेश में अमृतपान कर लिया था और अमृतपान का यह नियम था कि उसे जिस वेश में पिया जाता, वह वेश सदा के लिये पीने वाले को धारण करना पड़ता। यानि कि अब आकृति चाहकर भी, अपना चेहरा नहीं पा सकती थी। आकृति ने गुस्सा होकर मुझे एक जादुई दर्पण में बंद कर दिया और उस दर्पण को एक अंधेरे कमरे में रख दिया।
“मैं बिना प्रकाश के अपनी दिव्यदृष्टि का प्रयोग नहीं कर सकती थी। अब मैं सदा के लिये अंधेरे कमरे में, उस जादुई दर्पण में बंद हो गई। लगभग 10 महीने के बाद आकृति ने मुझे अंधेरे कमरे से निकाला और मुझे उसके पुत्र को ढूंढने के लिये कहा।
"उसने कहा कि अगर मैं उसके पुत्र को ढूंढ दूंगी, तो वह मुझे कैद से आजाद कर देगी। मैंने आकृति के पुत्र को ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर वह मुझे नहीं मिला...शायद आर्यन ने उसे किसी ऐसी जगह रखा था, जहां मेरी दिव्यदृष्टि नहीं पहुंच पा रही थी। फिर अचानक एक दिन आर्यन और शलाका दोनों ही मेरी दिव्यदृष्टि से ओझल हो गये। यह सुनकर आकृति और ज्यादा गुस्सा
गई और उसने मुझे फिर कभी भी अपनी कैद से नहीं छोड़ा।” यह कहकर सुर्वया शांत हो गई।
“हम्...तुम्हारी कहानी तो काफी दर्द भरी थी।” मेलाइट ने कहा- “पर तुमने यह नहीं बताया कि तुम सिंहलोक में कैसे पहुंची? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन था? और तुम्हारे बाद सिंहलोक का क्या हुआ?”
“वह कहानी बहुत लंबी है...उसे मैं फिर कभी सुनाऊंगी।” सुर्वया ने मुस्कुराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा।
सुर्वया के चेहरे के भाव देख मेलाइट और सनूरा ने सुर्वया को और नहीं कुरेदा, पर वो समझ गये कि सुर्वया की जिंदगी का अभी एक और पन्ना खुलना बाकी है, जो कि समय आने पर ही खुलेगा।
“अब तुम अपने बारे में बताओ सनूरा।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा।
लेकिन इससे पहले कि सनूरा अपने बारे में कुछ बोल पाती, कि तभी महल में, किसी बड़े से ढोल की आवाज गूंजने लगी, वह आवाज सुन सनूरा डर गई।
“यह तो खतरे का सिग्नल है, क्या सीनोर राज्य पर कोई खतरा मंडरा रहा है?” सनूरा ने कहा।
“रुको मैं देखती हूं।” यह कहकर सुर्वया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब सुर्वया के माथे पर एक लाल रंग का प्रकाशपुंज दिखाई देने लगा।
“नहीं...नहीं...मुझे धुंधला दिखाई दे रहा है...शायद खतरा अभी भी पानी के अंदर है...रुको...मुझे समुद्र की लहरों पर एक धुंधली सी विशाल आकृति दिख रही है...क्या...क्या यह कोई राक्षस है या फिर कोई बड़ा सा अंतरिक्ष यान?” सुर्वया ने इतना देखकर अपनी आँखें खोल दीं- “जब तक वह समुद्र की लहरों पर है, तब तक मैं उसे साफ नहीं देख सकती।”
सुर्वया के शब्द सुन सनूरा तेजी से बाहर की ओर भागी।
सनूरा को बाहर जाते देख मेलाइट और सुर्वया ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर वह भी सनूरा के पीछे भाग लीं।
आखिर वह सब अब एक अच्छी दोस्त थीं।
जारी रहेगा______
Har ek update ki alag kahani hai, har chepter apne aap me khas, aur har ek patra ki alag hi story, bhai waah, kya kahne is kahani ke, jitna bolo kam hi hai.

to aakhir kasturi mrig mil gaya, aur wo koi aur nahi balki apna Roger hi nikla, waise wo singhraaj aur subharjna shaktiyo ki jhalak kab dikha rahe ho guru dev??

Awesome update again and again














