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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#168.

चैपटर-10
शरद ऋतु: (
तिलिस्मा 4.1)

सुयश के साथ सभी अब एक विशाल कमरे में निकले। इस कमरे में एक किनारे पर 15 फुट ऊंचा, एक पृथ्वी का ग्लोब रखा था, जिसे नचाया भी जा सकता था।

उस ग्लोब के आगे एक 12 इंच की त्रिज्या का, सुनहरी धातु का रिंग रखा था, जिसके आगे एक धातु की पट्टी पर, अंग्रेजी के कैपिटल अक्षरों से RING लिखा था। इस रिंग के बगल में एक छोटी सी ट्रे रखी थी, जिसमें 4 रंग के छोटे फ्लैग रखे थे।

उस कमरे की पूरी जमीन काँच की बनी थी, जिस पर पूरे विश्व का मानचित्र बना था।

मानचित्र में विश्व के सभी देशों को 4 अलग-अलग रंगों से दर्शाया गया था। एक जगह पर उन 4 रंगों का वर्गीकरण किया गया था।

जहां लाल रंग ग्रीष्म ऋतु का, नीला रंग शीत ऋतु का, नारंगी रंग शरद ऋतु का और हरा रंग वसंत ऋतु के प्रतीक के रुप में दर्शाया गया था।

“कैप्टेन, इस कमरे को देख कर तो लग रहा है कि यहां पर विश्व के अलग-अलग देशों को, वहां पायी जाने वाली ऋतुओं के हिसाब से वर्गीकृत किया गया है और उसे ग्लोब और मानचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है।” जेनिथ ने सुयश को देखते हुए कहा।

“तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो जेनिथ।” सुयश ने कमरे में चारो ओर देखते हुए कहा- “पर अब हमें यह देखना है कि हमें यहां करना क्या है? क्यों कि उसको जाने बिना हम इस द्वार को नहीं पार कर पायेंगे?”

“कैप्टेन मैंने एक चीज गौर की है कि जमीन पर बने मानचित्र में भी 4 रंगों को दर्शाया गया है और यहां टेबल पर रखी ट्रे में मौजूद फ्लैग भी उन्हीं 4 रंग के हैं, इसका मतलब इनमें आपस में कोई ना कोई सम्बन्ध तो जरुर है?” ऐलेक्स ने कहा।

“दरअसल विश्व के अधिकतर देशों में 4 ऋतुओं को ही प्रधानता दी गई है, इसलिये यहां उन्हीं 4 ऋतुओं को मानचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है।” सुयश ने कहा।

“कैप्टेन अंकल, मुझे तो इस कमरे में सबकुछ एक ही थीम पर आधारित लग रहा है, बस यह रिंग यहां पर कुछ अजीब सा लग रहा है क्यों कि ऋतुओं या विश्व के मानचित्र में रिंग का कहीं उल्लेख नहीं है।” शैफाली ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा।

“बात तो तुम्हारी सही है शैफाली, तो फिर चलो पहले इसी पर ध्यान देते हैं।” यह कहकर सुयश उस रिंग के पास आकर खड़ा हो गया और ध्यान से उसे देखने लगा।

“कैप्टेन एक बात और है।” तौफीक ने कहा- “यह रिंग हमारे सामने रखा है और हम इसे देखकर पहचान सकते हैं कि यह एक रिंग है, फिर इसके पास यह नेम प्लेट लगा कर रिंग लिखा क्यों गया है?” मुझे यह बात थोड़ी अजीब सी लग रही है।”

इधर सभी बातें कर रहे थे, उधर ऐलेक्स ग्लोब के पास खड़ा होकर ग्लोब को नचा रहा था। जैसे ही ग्लोब रुक जाता, ऐलेक्स उसे फिर नचा देता।

कुछ देर तक ऐसे ही करते रहने के बाद ऐलेक्स ने इस बार जैसे ही ग्लोब को नचाना चाहा, उसके हाथों पर किसी चीज का स्पर्श हुआ।

यह अहसास होते ही ऐलेक्स ध्यान से उस स्थान को देखने लगा। ध्यान से देखने पर ऐलेक्स को इंडिया वाले स्थान पर एक उभरी हुई बिन्दी चिपकी दिखाई दी।

“कैप्टेन, जरा एक बार इसे देखिये।” ऐलेक्स ने सुयश को वहां आने का इशारा करते हुए कहा- “यहां ग्लोब में इंडिया वाले स्थान पर उभरी हुई बिन्दी चिपकी है। क्या इसका कोई मतलब हो सकता है?”

ऐलेक्स की आवाज सुन सुयश सहित, सभी उस ग्लो ब के पास आ गये और छूकर उस बिन्दी को देखने लगे।

“इस बिन्दी का कोई रंग नहीं है, यह पूर्णतया पारदर्शी है।” सुयश ने कहा- “यानि कि इसे छुए बिना इसके बारे में नहीं जाना जा सकता था, अब ऐसी चीज कैश्वर ने यूं ही तो नहीं लगाई होगी? इसकी कुछ ना कुछ तो अर्थ निकलता ही होगा?”

“ऐलेक्स भैया, एक बार पूरा ग्लोब ध्यान से देखिये। क्या ग्लोब पर और भी ऐसी ही बिन्दियां हैं?” शैफाली ने ऐलेक्स से कहा।

शैफाली की बात सुन कर ऐलेक्स, अपने हाथों के स्पर्श से ग्लोब पर और भी बिन्दियों को ढूंढने में लग गया। कुछ ही देर में ऐलेक्स ने पूरा ग्लोब ध्यान से चेक कर लिया।

“इस ग्लोब पर इंडिया के अलावा रुस, ग्रीनलैंड और न्यूजीलैंड के स्थान पर भी पारदर्शी बिन्दियां भी मौजूद हैं।” ऐलेक्स ने शैफाली से कहा।

यह सुनकर शैफाली मुस्कुरा दी और उठकर ऐलेक्स के गले लगते हुए बोली- “वाह ऐलेक्स भैया, आपने तो इतनी बड़ी समस्या को आसानी से सुलझा दिया।”

पर ऐलेक्स को तो स्वयं नहीं समझ में आया कि उसने कौन सी समस्या को अंजाने में सुलझा दिया, इसलिये वह प्रश्नवाचक नजरों से शैफाली की ओर देखने लगा।

“कैप्टेन अंकल, यहां पर लिखा RING शब्द 4 अक्षर R, I, N और G से बना है, जबकि ग्लोब पर जिन देशों के आगे पारदर्शी बिन्दियां चिपकी हुई हैं, उनके नाम का पहला अक्षर भी यही है। यानि कि Russia का R, India का I, New Zealand का N और Greenland का G....अब मुझे लग रहा है कि हमें ट्रे में मौजूद इन फ्लैग्स को ग्लोब के ऊपर लगाना होगा? पर ध्यान रहे कि जिस देश की ऋतु का रंग जो मानचित्र बता रहा है, फ्लैग हमें उसी ढंग से लगाना होगा।”

शैफाली ने तो एक झटके से पूरी गुत्थी ही सुलझा दी। सभी के चेहरे पर अब खुशी साफ नजर आने लगी थी।

तुरंत तौफीक ने जमीन पर बने मानचित्र पर सबसे पहले रुस देश का रंग देखा, जो कि नारंगी था।

अब ऐलेक्स ने ट्रे से नारंगी रंग का फ्लैग निकालकर उसे ग्लोब के उसी पारदर्शी बिन्दी पर लगा दिया।

जैसे ही ऐलेक्स ने फ्लैग को रुस के स्थान पर लगाया, वातावरण में एक तेज ‘बजर’ की आवाज सुनाई देने लगी।

सभी वह आवाज सुन डर गये। तभी उनकी नजर जमीन पर गई, अब पूरी जमीन पर सिर्फ रुस का ही मानचित्र दिख रहा था और रुस की राजधानी मास्को के स्थान पर एक लाल रंग की लाइट जोर से ब्लिंक
करती हुई दिखाई दी।

“यह सब क्या हो रहा है कैप्टेन?” क्रिस्टी ने सुयश से पूछा।

“मुझे लगता है कि हम जहां खड़े है, वह तिलिस्म नहीं है, बल्कि अब हमें तिलिस्म में प्रवेश करना है और यह बजर हमें इसी का संकेत दे रही है।” सुयश ने कहा- “मुझे लगता है कि तिलिस्म का अगला द्वार मास्को में हमारा इंतजार कर रहा है।” यह कहकर सुयश आगे बढ़कर मास्को के उस स्थान पर खड़ा हो गया, जहां पर लाइट ब्लिंक कर रही थी।

सुयश जैसे ही वहां पर खड़ा हुआ, वह उस स्थान से गायब हो गया। यह देख सभी उस स्थान पर पहुंच कर खड़े हो गये और इसी के साथ सभी गायब हो कर मास्को के एक पार्क में जा पहुंचे। सुयश वहां पहले से ही खड़ा था।

“यह तो मास्को का एक पार्क है।” ऐलेक्स ने चारो ओर देखते हुए कहा- “यहां तो मैं रोज घूमने आता था, यहां से मेरा घर ज्यादा दूर नहीं है।”

“अच्छा तो ब्वॉयफ्रेंड जी, कहीं आप हमको छोड़ कर अपने घर जाने की तो नहीं सोच रहे?” क्रिस्टी ने एक बार फिर से ऐलेक्स को छेड़ते हुए कहा।

“ये लो कर लो बात।” ऐलेक्स ने क्रिस्टी की आँखों में झांकते हुए कहा- “अरे तुम्हारे लिये तो मैं दुनिया छोड़ दूं, तुम्हारे सामने घर की बिसात ही क्या है। और वैसे भी मुझे पता है कि यह कैश्वर का बनाया एक सेट है, असली मास्को नहीं। लेकिन एक बात तो इससे कंफर्म हो गई कि कैश्वर किसी प्रकार से हमारे दिमाग को पढ़ रहा है और उसके बाद ही इन दरवाजों की रचना कर रहा है।”

ऐलेक्स की बात सुन सुयश भी सोच में पड़ गया क्यों कि ऐलेक्स कह तो सही रहा था, इस तिलिस्मा में ऐसी चीजों का ही निर्माण हुआ था, जो कहीं ना कहीं उनके दिमाग में थीं।

“चलिये कैप्टेन, अब इस पार्क को भी देख लें कि यहां पर क्या-क्या है?” तौफीक की आवाज ने सुयश का ध्यान भंग कर दिया और वह अपनी सोच की दुनिया से बाहर आ गया।

सभी अब पार्क में घूमकर वहां मौजूद एक-एक चीज को देखने लगे।

उस पार्क में सबसे पहले एक देवी की मूर्ति मौजूद थी, जो अपने हाथ में ‘सैंड वॉच’ लिये थी।

“क्या कोई बता सकता है कि यह कौन सी देवी हैं?” सुयश ने सभी की ओर देखते हुए पूछा।

“हां, मैं जानती हूं इनके बारे में।” क्रिस्टी ने जवाब दिया- “यह देवी ‘कार्पो’ हैं, ग्रीक माइथालोजी में इन्हें शरद ऋतु (Autumn Season) की देवी कहा जाता है, यानि कि ये देवी बारिश के बाद, प्रकृति में बड़ा बदलाव करते हुए, सभी पेड़ों के पुराने वस्त्रों, यानि कि उनके पत्तों को उनके शरीर से गिरा देती हैं। इसी लिये इस मौसम को पतझड़ भी कहते हैं। यह सबकुछ समय के द्वारा नियंत्रित करती हैं।”

“हमने वहां मानचित्र में भी नारंगी रंग को शरद ऋतु के प्रतीक के रुप में देखा था, यानि तिलिस्मा के चौथे द्वार में इस बार हमारा पाला ऋतुओं से पड़ा है और उसी के फलस्वरुप हम पहली ऋतु का सामना करने के लिये मास्को आये हैं।” जेनिथ ने कहा।

जैसे ही जेनिथ ने यह कहा अचानक से मूर्ति ने अपने हाथ में पकड़ी ‘सैंड वॉच’ को उल्टा कर दिया।

यह देख सभी आश्चर्य से मूर्ति की ओर देखने लगे।

तभी उनके आसपास के वातावरण में बदलाव शुरु हो गये और वहां मौजूद सैकड़ों ‘मैपल’ के पेड़ों की पत्तियों ने अपना रंग बदलना शुरु कर दिया।

अब सभी मैपल की पत्तियां हरे से लाल रंग में परिवर्तित होने लगी। हवा भी अब थोड़ी शुष्क हो चली थी।

“कैप्टेन अंकल, देवी कार्पो के सैंड वॉच के चलते ही मौसम में शरद ऋतु के समान बदलाव होने लगे हैं.... इसी के साथ देवी का सैंड वॉच यह भी बता रहा है कि हमें जो भी करना है, उसके लिये हमारे पास बस 2 घंटे का ही समय है...पर हमें करना क्या है? यह हमें अभी तक नहीं पता।” शैफाली ने पार्क में चारो ओर देखते हुए कहा- “इसलिये हमें सबसे पहले अपना कार्य पहचानना होगा, तभी हम उसे समय रहते पूरा कर पायेंगे।”

शैफाली की बात बिल्कुल सही थी, इसलिये बिना देर किये सभी पार्क के चारो ओर घूमकर वहां मौजूद चीजों से अपना कार्य ढूंढने की चेष्टा करने लगे।

तभी उन्हें पार्क के बीचो बीच एक हरा-भरा पेड़ दिखाई दिया, जो अपनी ग्रीनरी के कारण सभी पेड़ों से अलग ही नजर आ रहा था।

“यह क्या? जहां सभी मैपल के पेड़ों के पत्ते धीरे-धीरे लाल होने लगे है, वहां यह पेड़ अभी भी इतना हरा-भरा कैसे नजर आ रहा है?” तौफीक ने कहा।

“शायद इस पेड़ पर देवी कार्पो और शरद ऋतु का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा?” शैफाली ने कहा- “और मुझे लग रहा है कि यही हमारा कार्य है। हमें इस पेड़ पर भी शरद ऋतु का प्रभाव डालना ही होगा, नहीं तो यह
प्रकृति के विरुद्ध होगा और इसका दुष्परिणाम हमें भुगतना होगा।”

शैफाली की बात से सभी सहमत थे। पर जैसे ही ऐलेक्स ने आगे बढ़कर पेड़ के पास जाने की सोची, किसी अदृश्य दीवार ने ऐलेक्स का रास्ता रोक लिया।

“कैप्टेन, यहां पर कोई अदृश्य दीवार है, जो मुझे आगे जाने नहीं दे रही है।” ऐलेक्स ने सुयश से कहा- “अब अगर आगे जायेंगे ही नही, तो इस पेड़ की परेशानी को दूर कैसे करेंगे?”

ऐलेक्स के शब्द सुनकर सभी ने पेड़ के पास जाने की कोशिश की, पर सभी पेड़ के पास पहुंचने में असफल रहे।

“हमें पेड़ के पास पहुंचने का कोई ना कोई तरीका तो ढूंढना ही होगा?” जेनिथ ने कहा और अपने आसपास कुछ ढूंढने लगी।

पर पार्क में उस जगह पर एक बेंच के सिवा कुछ नहीं था। समय धीरे-धीरे बीत रहा था, पार्क के बाकी पेड़ों की पत्तियां पूरी लाल हो चुकीं थीं, पर सामने खड़ा वह पेड़ अपनी हरी पत्तियों को दिखाकर मानो सबको चिढ़ा रहा था।

सुयश अब थककर पेड़ की ओर देख रहा था, कि तभी सुयश को पेड़ के पास, एक छोटे से बिल से एक चूहा झांकता नजर आया, जो कि सुयश को अपनी ओर देखता पाकर वापस बिल में घुस गया।

चूहे को देखकर अचानक सुयश के मस्तिष्क में एक आइडिया आ गया।

“दोस्तों, मैंने अभी इस पेड़ के पास एक चूहा घूमता देखा, तो मुझे लग रहा है कि यदि हम जमीन के अंदर-अंदर, इस पेड़ तक एक सुरंग खोदें तो उस पर इस अदृश्य दीवार का असर नहीं होगा।”

“पर कैप्टेन, हमारे पास समय बहुत कम है, ऐसे में बिना किसी फावड़े या कुदाल के हम इतनी जल्दी इतनी बड़ी सुरंग कैसे खोद पायेंगे?” जेनिथ ने कहा।

“पहली बात है कि हमें सुरंग को पेड़ तक नहीं खोदना है, हमें बस उसे 2 फुट ही खोदना है, जिससे कि हम बस इस अदृश्य दीवार को पार कर जायें। दूसरी बात जिस पेड़ के पास चूहों ने अपना घर बनाया होता है, उस पेड़ के पास की जमीन वैसे ही अंदर से नर्म होती है, इसलिये हमें ज्यादा मुश्किल नहीं आयेगी।” सुयश ने कहा।

तभी ऐलेक्स भागकर सामने पड़ी बेंच की ओर आ गया। वह कुछ देर तक बेंच को देखता रहा और फिर उसने बेंच के हत्थे को खींचकर बेंच से निकाल लिया।

बेंच का वह हत्था बिल्कुल किसी कुदाल के अगले भाग की तरह था, उसके बीच में लकड़ी लगाने के लिये छेद भी था।

ऐलेक्स की नजरें अब बेंच के लकड़ी के एक पाये की ओर गई। इस बार ऐलेक्स ने बेंच से लकड़ी का वह पाया भी अलग कर लिया।

ऐलेक्स ने लकड़ी के उस पाये को कुदाल के अगले भाग में फंसा दिया। इसके बाद जमीन पर थोड़ा ठोंकते ही कुदाल ने पूरा आकार ले लिया।

अब ऐलेक्स ने भागकर वह कुदाल सुयश को पकड़ा दी। सुयश आश्चर्य से ऐलेक्स को देख रहा था, उसे तो समझ में भी नहीं आया कि ऐलेक्स यह कुदाल ले कहां से आया?

“ऐलेक्स ने तो इस काम को बहुत आसान कर दिया। चलो दोस्तों अब थोड़ा मेहनत भी कर ली जाए।” यह कहकर सुयश तेजी से कुदाल से अदृश्य दीवार के आगे के हिस्से को खोदने लगा।

बाकी के लोग खुदी हुई मिट्टी को दूर करने में लगे थे। सुयश का कहना सही था, चूहों ने पेड़ के आस पास की मिट्टी को भुरभुरा बना दिया था। इसलिये एक छोटी सुरंग तैयार करने में मात्र 15 मिनटं की मेहनत ही करनी पड़ी।

सुरंग बनते ही सुयश और तौफीक तेजी से उस सुरंग में घुसकर पेड़ के पास पहुंच गये और कुछ ना समझ में आते देख पेड़ की पत्तियों को उखाड़ना शुरु कर दिया।

पर सुयश और तौफीक जितनी पत्तियां तोड़ रहे थे, उतनी ही पत्तियां पेड़ पर फिर से आ जा रहीं थीं।

“कैप्टेन अंकल, रुक जाइये।” शैफाली ने सुयश को रुकने का इशारा किया- “आप लोग जितनी पत्तियां तोड़ रहे हैं, उतनी ही पेड़ पर फिर उग रहीं हैं, इसलिये मुझे नहीं लगता कि यह सही तरीका है पेड़ के बदलाव का। हमें कुछ और ही सोचना होगा?”

शैफाली की बात सुन सुयश के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं क्यों कि लगभग 1.5 घंटा बीत चुका था, अब सिर्फ आधा घंटा ही शेष था। आसपास के बाकी पेड़ की पत्तियां लगभग झड़ चुकीं थीं।

“जो भी सोचना है जल्दी सोचो शैफाली, क्यों कि हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचा है और पेड़ के बारे में तुमसे बेहतर हममें से कोई नहीं सोच सकता।” सुयश ने शैफाली की तारीफ करते हुए उसका उत्साह बढ़ाया।

सुयश के शब्दों को सुन शैफाली जोर-जोर से बड़बड़ा कर सोचने लगी- “मैपल के पेड़ की पत्तियां गर्मियों में हरी होती है, पर जैसे ही शरद ऋतु आती है, वह लाल होने लगती हैं। शरद ऋतु में सूर्य की प्रकाश ज्यादा पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता, इसका मतलब कि इस पेड़ को भी, कहीं से सूर्य का प्रकाश ज्यादा मिल रहा है, जिसकी वजह से यह इस मौसम में भी अच्छे से क्लोरोफिल बना रहा है, यानि हमें इसका हरा पन रोकने के लिये, सूर्य के प्रकाश के स्रोत का पता लगाना होगा?”

शैफाली की बात सुन ऐलेक्स ने एक बार फिर ध्यान लगा कर पेड़ को देखना शुरु कर दिया, अब उसे प्रकाश की एक किरण किसी ओर से आकर उस पेड़ पर पड़ती दिखाई दी।

“सब लोग मेरे पीछे आओ, मुझे एक प्रकाश की किरण कहीं से आकर इस पेड़ पर पड़ती हुई दिख रही है।” यह कहकर ऐलेक्स पार्क में एक दिशा की ओर भागा।

तब तक सुयश और तौफीक भी सुरंग के रास्ते वापस बाहर निकल आये थे। सभी अब ऐलेक्स के पीछे भागे।

ऐलेक्स भागकर पार्क में मौजूद एक दूसरी मूर्ति के पास पहुंच गया। यह मूर्ति 20 फुट ऊंची थी। उस मूर्ति ने अपने हाथ में एक गोला उठाया हुआ था, जो कि नारंगी रंग का चमक रहा था। वह प्रकाश उसी गोले से आ रहा था।

“यह मूर्ति ग्रीक देवता हीलीयस की है, इन्हें सूर्य के देवता के रुप में जाना जाता है।” क्रिस्टी ने मूर्ति को देखते हुए कहा- “और इन्होंने सूर्य को ही अपने हाथों में उठा रखा है।”

“इसका मतलब इसी सूर्य की किरणों से वह पेड़ अब भी हरा है।” शैफाली ने कहा- “हमें कैसे भी इन किरणों को उस पेड़ तक पहुंचने से रोकना होगा?”

“पर इन किरणों को रोका कैसे जा सकता है?” क्रिस्टी ने दिमाग लगाते हुए कहा।

कुछ सोचने के बाद सुयश ने अपनी बदन पर मौजूद लेदर की जैकेट को उछालकर हीलीयस के हाथ में पकड़े सूर्य पर टांग दिया, पर एक मिनट से भी कम समय में वह जैकेट जलकर राख हो गई और इसी के साथ सुयश के शरीर पर बिल्कुल वैसी ही एक नयी जैकेट आ गई।

“यह प्लान तो काम नहीं करेगा।” सुयश ने कहा- “हम इस सूर्य को किसी भी चीज से ढक नहीं सकते। कुछ और ही सोचना पड़ेगा?”

यह सुनकर सभी इधर-उधर देखने लगे कि शायद यहां कोई और ऐसी चीज हो, जिससे सूर्य की रोशनी को रोका जा सके।

तभी क्रिस्टी की निगाह मूर्ति के पीछे की ओर गई और उसने चिल्ला कर सुयश का ध्यान अपनी ओर कराया- “कैप्टेन, कुछ ढूंढने की जरुरत नहीं है, सूर्य का ग्लोब पीछे की ओर से आधा काला है, इसका साफ मतलब है कि हमें इसके सामने कुछ नहीं रखना, बल्कि इसे घुमाकर इसका पिछला हिस्सा आगे की ओर कर देना है।”

“यह काम मैं करता हूं।” यह कहकर ऐलेक्स तेजी से मूर्ति के ऊपर चढ़ने लगा।

कुछ ही देर में ऐलेक्स मूर्ति के ऊपर था, अब वह सूर्य के ग्लोब को घुमाने की कोशिश करने लगा, पर ऐलेक्स के पूरी ताकत लगा देने के बाद भी वह सूर्य का ग्लोब टस से मस नहीं हुआ।

यह देख ऐलेक्स ने ऊपर से चिल्ला कर कहा- “कैप्टेन यह ग्लोब घूम नहीं रहा है, आप नीचे से देखो, हो सकता है कि मूर्ति को घुमाया जा सके।”

ऐलेक्स की बात सुन सुयश नीचे से मूर्ति को घुमाने की कोशिश करने लगा, पर उस मूर्ति में भी घूमने का कोई ऑप्शन दिखाई नहीं दिया।

अब सच में सबके लिये चिंता की बात थी, क्यों कि अब मात्र 5 मिनट
का ही समय बचा था।

“कैप्टेन, मुझे लगता है कि अब हम इस द्वार को नहीं पार कर पायेंगे, क्यों कि अब हमारे पास सिर्फ और सिर्फ 5 मिनट ही बचा है।” जेनिथ ने निराश होने वाले अंदाज में कहा।

“हमें अंतिम दम तक हार नहीं माननी चाहिये। जिंदगी में कभी-कभी हम उस स्थान से हारकर वापस आ जाते हैं, जो समस्या के समाधान से बिल्कुल करीब होता है। इसलिये अपनी ओर से सभी लोग आखिरी सेकेण्ड तक कोशिश जारी रखो, बाकी सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दो।”

सुयश के शब्द बिल्कुल जादू से भरे थे। इन शब्दों ने सभी में एक बार फिर से जोश का संचार कर दिया था।

सुयश के शब्द सुन ऐलेक्स के कान में गूंजने लगे- “सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दो....यही कहा है कैप्टेन ने.... पर मेरे पास तो देवता हीलीयस के सिवा इस समय कोई नहीं है, चलो इन्हीं पर ध्यान लगाता हूं।” यह सोच ऐलेक्स हीलीयस की मूर्ति को ध्यान से देखने लगा, तभी ऐलेक्स को मूर्ति की गर्दन और सिर के बीच कुछ गैप दिखाई दिया।

कुछ सोच ऐलेक्स ने मूर्ति के सिर को घुमाने की कोशिश की। ऐलेक्स की जरा सी कोशिश से ही मूर्ति का सिर पीछे की ओर घूम गया।

और जैसे ही मूर्ति का सिर पीछे की ओर हुआ, मूर्ति का शरीर भी स्वतः पीछे की ओर घूम गया।

इसी के साथ सूर्य की ग्लोब का अंधेरे वाला हिस्सा आगे की ओर आ गया और उस पेड़ को सूर्य की रोशनी मिलनी बंद हो गई।

इसी के साथ उस पेड़ के पत्तों का रंग भी लाल हो गया। यह देख सब खुशी से चिल्लाये। पर सुयश की निगाह अब देवी कार्पो के हाथ में थमी सैंड वॉच पर थी।

उस सैंड वॉच में अब बहुत थोड़ी सी रेत ही बची थी। अब सुयश कभी मैपल के पेड़ के पत्तों को, तो कभी सैंड वॉच में बची सैंड को देख रहा था।

पेड़ के पत्ते अब पूरे लाल होकर झड़ना शुरु हो गये थे, पर रेत भी बिल्कुल समाप्ति की ओर आ पहुंची थी।

सभी की साँसें इस प्रकार रुकी थीं, मानों विश्व कप फुटबाल के फाइनल के मैच में दोनों टीमें बराबरी पर हों और आखि री 60 सेकेण्ड का टाइमर चल रहा हो।

पेड़ के सारे पत्ते झड़ गये, पर एक अखिरी पत्ता अभी भी डाल पर मौजूद था और सैंड वॉच में सिर्फ 5 सेकेण्ड की रेत ही बची थी......5....4.....3 तभी तौफीक के हाथ में चाकू नजर आया और वह बिजली की तेजी से उस आखिरी पत्ते की ओर झपटा -2..........1 पर आखिरी मिली सेकेण्ड में चाकू ने उस पत्ते को पेड़ से गिरा दिया और इसी के साथ वह द्वार भी पार हो गया।

इससे पहले कि सभी खुशी मना पाते कि रोशनी के एक तेज झमाके के साथ सभी वापस उस कमरे में आ गये, जहां पृथ्वी का ग्लोब रखा था।

तौफीक पर नजर पड़ते ही जेनिथ को छोड़, सभी दौड़कर तौफीक के गले लग गये।

तौफीक की निगाह दूर खड़ी जेनिथ की ओर थी, पर इस समय जेनिथ की आँख में भी, तौफीक के लिये तारीफ के भाव थे।

“अपने मन को इतना व्यथित मत करो जेनिथ।” नक्षत्रा ने कहा- “जो चला गया, उसे जाने दो....तुम्हारे भाग्य में शायद उससे भी बेहतर कुछ लिखा हो?”

नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ ने स्वयं के भावों को एक बार फिर से कंट्रोल किया और बोली- “तुमको बड़ा पता है मेरे भाग्य के बारे में। ...एक तो वैसे ही यहां तिलिस्मा में तुम मुझसे कम बात करते हो और ऊपर से ज्ञान और दे रहे हो।”

“मैं क्या करुं जेनिथ, यहां एक कार्य अभी सही से खत्म भी नहीं होता कि दूसरा शुरु हो जाता है, बात करने का समय ही कहां मिल पा रहा? कैश्वर ने तो सबको रोबोट से भी बदतर बना दिया। अब वो देखो सभी फिर से अगले द्वार में जाने की तैयारी कर रहे हैं...जाओ अब तुम भी उनके पास...जब तक मैं कुछ नई खोज करता हूं।”

“तुम्हारे पास खोज करने के लिये लैब तो है ही नहीं, फिर तुम ये खोज करते कहां हो?” जेनिथ ने नक्षत्रा से पूछा।

“क्यों तुम्हारा दिमाग की प्रयोगशाला, किसी नक्षत्रशाला से कम है क्या? बस इसी में एक टेबल डालकर बैठा हूं। पर तुम चिंता मत करो, तुम्हारे दिमाग में होने वाले सारे प्रयोग पर बस तुम्हारा ही अधिकार होगा।” नक्षत्रा ने कहा।

“सिर्फ तुम्हारे प्रयोग पर ही नहीं तुम पर भी मेरा सारा अधिकार है, आखिर मैं ही तो सिखा रही हूं तुम्हें नयी -नयी चीजें।” जेनिथ ने कहा।

“अच्छा जी, कल तक तो दोस्त बता रही थी और आज अधिकार जताने लगी।” नक्षत्रा ने मजा लेते हुए कहा - “चलो माना तुम्हारा अधिकार स्वयं पर...पर देखता हूं कि जब कोई मुझे तुम से अलग करने आयेगा, तो उसका सामना कैसे करोगी?”

“कौन अलग करने आयेगा?...क्या तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो नक्षत्रा?” जेनिथ यह बात सुन थोड़ा परेशान दिखने लगी।

“नहीं...नहीं...मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था। तुम कुछ अलग ही अर्थ निकालने लगी।” नक्षत्रा ने अपनी बात को संशोधित करते हुए कहा- “और जल्दी से उधर जाओ, देखो सारे लोग तैयार हैं, अगले द्वार में
जाने के लिये।”

नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ ने सबकी ओर देखा, सच में ऐलेक्स लाल रंग का फ्लैग हाथ में लिये, इंडिया के स्थान पर लगाने के लिये तैयार खड़ा था।

जेनिथ तुरंत सबके पास पहुंच गई। उसे पास आता देख ऐलेक्स ने लाल रंग के फ्लैग को इंडिया वाले स्थान पर, पृथ्वी के ग्लोब में लगा दिया।

इस बार जमीन पर बने मानचित्र में इंडिया का मैप बड़ा होकर आ गया और उस पर खड़े होते ही सभी एक बार फिर उस मानचित्र में समा गये।


जारी रहेगा______✍️
Wonderful update brother! Tilism ke iss dwar ko todne ke inhe 4 countries ki journey karni hai jisme se sabne 1 paar kar liya phir bhi abhi 3 baki hai, let's see aage inki journey kaisi hoti hai.
 

dhparikh

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#169.

कस्तूरी मृग:
(17.01.02, गुरुवार, 09:30, सीनोर महल, अराका द्वीप)

सनूरा ने सुर्वया और मेलाइट को एक कमरे में ठहरा दिया था और रोजर को दूसरा कमरा दिया था।

लुफासा के कहे अनुसार सनूरा ने मेलाइट को वापस जाने का भी आग्रह किया था, पर मेलाइट ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था।

इस समय मेलाइट और सुर्वया अपने कमरे में बैठीं थीं कि तभी सनूरा की आवाज ने दोनों का ध्यान भंग किया- “क्या हम अंदर आ सकते हैं?”

“हां-हां आइये ना।” मेलाइट ने विनम्र लहजे में कहा- “आपका ही महल है, आपको पूछने की आवश्यकता नहीं है।”

“जब एक कमरे में 2 राजकुमारियां बैठीं हों, तो सेनापति को हमेशा पूछ कर ही कमरे में जाना चाहिये।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

सनूरा की बात सुन मेलाइट और सुर्वया मुस्कुरा दीं। सनूरा अब उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।

“आप दोनों को यहां रहते हुए आज 2 दिन बीत गये हैं, उम्मीद है कि अब आप दोनों थोड़ा सहज महसूस करने लगी होंगी, इसलिये मैंने सोचा कि आप लोगों से आपकी पूरी कहानी सुन लूं, क्यों कि उस दिन लुफासा के जाने के बाद, हमें एक दूसरे से कुछ ज्यादा पूछने का समय नहीं मिला। ऊपर से आप लोग, उस दिन थोड़ा असहज भी दिख रहीं थीं, इसलिये मैंने 2 दिन तक आप लोगों से बात भी नहीं की।” सनूरा ने दोनों को देखते हुए कहा।

“बिल्कुल सही कहा आपने।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा- “उस दिन हम लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि आप लोग सही हैं या गलत? इसलिये आपसे बहुत सोच-समझकर बात कर रहे थे। पर आज
हम आपके सामने बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसलिये अपनी कहानी बताने को तैयार हैं।”

“एक मिनट-एक मिनट।” मेलाइट ने बीच में ही सुर्वया को टोकते हुए कहा- “क्या हमें रोजर को भी इस समय यहां बुला लेना चाहिये? उसे भी तो जानना होगा, हम सबके बारे में।”

मेलाइट की बात सुन सुर्वया मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें रोजर की बहुत याद आ रही है ....सबकुछ ठीक तो है ना?”

सुर्वया के शब्दों में एक अर्थ छिपा था, जिसे मेलाइट तो समझ गई, पर सनूरा को कुछ समझ नहीं आया।

“क्या मैं जान सकती हूं कि आप दोनों रोजर की बात सुनकर इतना मुस्कुरा क्यों रहीं हैं?” सनूरा ने आश्चर्य से दोनों को देखते हुए कहा।

“एक मिनट रुकिये सनूरा, बस आपको अभी पता चल जायेगा ....जरा दरवाजे की ओर देखिये।” सुर्वया ने मुस्कुराते हुए सनूरा को दरवाजे की ओर देखने का इशारा किया।

सनूरा ने कमरे के दरवाजे की ओर देखा, पर उसे कुछ नजर नहीं आया।

तभी कमरे के दरवाजे से रोजर भागता हुआ कमरे में प्रविष्ठ हुआ।
उसकी साँसें बहुत तेज चल रहीं थीं।

रोजर की कमर पर इस समय सिर्फ एक तौलिया लिपटा हुआ था, जिसने उसके निचले बदन को ढंक रखा था।

रोजर की नाभि से इस समय एक तीव्र सुनहरा प्रकाश निकल रहा था, उस प्रकाश से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी।

“कोई बतायेगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?” रोजर ने घबराए अंदाज में सबको देखते हुए कहा- “यह मेरे शरीर से कैसा प्रकाश निकल रहा है? कहीं यह आप दोनों की कोई शरारत तो नहीं?”

सनूरा भी आश्चर्य से रोजर के शरीर से निकलते प्रकाश को देख रही थी, उसे भी इस प्रकाश का स्रोत समझ में नहीं आया, पर सुर्वया के हल्के से इशारे से सनूरा चुपचाप बैठी रही।

रोजर की बात सुन मेलाइट अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और चलती हुई रोजर के पास जा पहुंची।

“क्या तुम्हें लगता है रोजी...आई मीन रोजर...कि यह हम दोनों की कोई शरारत है?” मेलाइट ने भोलेपन से जवाब दिया।

“हां , लगता है....2 दिन से आप दोनों मुझे अलग-अलग तरह से परेशान कर रही हो।” रोजर ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

“हम दोनों?....नहीं-नहीं रोजर.... इसमें सुर्वया का कोई हाथ नहीं। वह तो सिर्फ मेरे साथ थी....तुम्हें तो परेशान तो मैं कर रही थी....आई मीन...हम तुम्हें परेशान क्यों करेंगे। दरअसल हमें तो पता भी नहीं कि
यह रोशनी कहां से आ रही है? पर ....पर इसकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही है रोजर....कहां से लाते हो तुम इतनी खुशबू?” यह कहकर मेलाइट बेहोश होने का नाटक कर लहरा कर गिरने लगी।

मेलाइट को गिरते देख रोजर ने बीच में ही उसे थाम लिया। अब रोजर मेलाइट की बंद आँखों को निहार रहा था।

तभी मेलाइट ने अपनी आँखें खोल दीं और अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहा- “ये तुमने मुझे अपनी बाहों में क्यों भर रखा है? क्या तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? और...और ये तुम बिना कपड़ों के हमारे कमरे में क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि इस कमरे में 3 लड़कियां हैं? अगर तुम्हारा यह तौलिया अपने स्थान से खिसक गया तो। अगर तुम ऐसी हरकत करोगे, तो मैं देवी आर्टेमिस से तुम्हारी शिकायत करुंगी।”

मेलाइट की बात सुन रोजर ने घबराकर मेलाइट को छोड़ दिया।

अब रोजर की नाभि से सुनहरी रोशनी निकलना बंद हो चुकी थी, यह देख रोजर ने एक नजर सब पर मारी और फिर वहां से जान छुड़ाकर
ऐसे भागा, जैसे कि उसके पीछे भूत पड़े हों।

रोजर के जाने के बाद, मेलाइट अपने स्थान पर आकर पुनः बैठ गई, पर इस समय मेलाइट, सुर्वया और सनूरा तीनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान थी।

“हां, तो हम कहां थे? आई मीन क्या बात कर रहे थे?” मेलाइट ने सनूरा से पूछा।

“हां...हम एक-दूसरे से अपनी कहानियां सुनाने की बात कर रहे थे।” सनूरा ने कहा- “पर अब सबसे पहले मैं मेलाइट की कहानी जानना चाहती हूं, क्यों कि ये जो अभी कुछ देर पहले हुआ, ये मुझे काफी रोचक
लगा।”

सनूरा की बात सुन मेलाइट के चेहरे पर फैली मुस्कान और गहरी हो गई और वह बोल उठी- “हम 5 बहनें दक्षिण ग्रीस के, सीरीनिया नामक जंगल के बीच की, एक सुंदर सी झील में रहते थे। हम सभी स्वच्छ जल में रहने वाली अप्सराएं थीं... और आप तो जानती ही हैं कि पुराने समय में अप्सराओं का जीवन कितना विचित्र होता था, अप्सराओं की सुंदरता ही उनके लिये अभिशाप बन जाती थी। जब भी किसी देवता या शक्तिशाली मनुष्य की निगाह सुंदर अप्सराओं पर पड़ती थी, तो वह जबरन उसे उठा ले जाते थे।

“इस प्रकार की किसी भी घटना से बचने के लिये अप्सराओं के देवता ने, हर अप्सरा को किसी जीव में बदल जाने की शक्ति दी, जिससे वह अपने घर से बाहर निकलते समय उस जीव में परिवर्तित हो जाती थीं। कुछ ऐसी ही शक्ति के तहत हम सभी बहनें भी सुनहरी हिरनी का रुप धारण कर लेते थे। एक दिन जब हम सीरीनिया के जंगल में सुनहरी हिरनी बनकर घूम रहे थे, तो शिकार की देवी आर्टेमिस ने हमें देख लिया, पर वह हमारी सुंदरता से मुग्ध हो गईं, इसलिये उन्होंने हमें मारा नहीं। मेरी 4 बहनों ने अपनी इच्छा से देवी आर्टेमिस का रथ खींचने का कार्यभार संभाल लिया। परंतु मैंने देवी आर्टेमिस की बात नहीं मानी।”

“क्यों? मैं जानना चाहती हूं कि तुमने देवी आर्टेमिस की बात क्यों नहीं मानी?” सनूरा ने बीच में ही मेलाइट को टोकते हुए कहा।

“क्यों कि देवी आर्टेमिस कुंवारी थीं इसलिये उनका रथ खींचने वाली सभी हिरनिओं को आजीवन कौमार्य व्रत धारण करना पड़ता और मुझे ये मंजूर नहीं था। मैं विवाह करके गृहस्थ जीवन जीना चाहती थी।” मेलाइट ने कहा- “आर्टेमिस ने मुझे इसकी इजाजत दे दी। अब मुझे तलाश थी किसी ऐसे योद्धा की, जिसके साथ रहने पर मुझे लगाव महसूस हो सके।

“आखिरकार एक दिन मुझे वह योद्धा मिल ही गया और वह योद्धा था- हरक्यूलिस, जो कि राजा यूरीस्थियस के कहे अनुसार अपने 12 कार्यों को पूरा करने निकला था। हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक मुझे पकड़कर ले जाना भी था। यूरीस्थियस नहीं चाहता था कि हरक्यूलिस अपने कार्य में सफल हो, इसलिये उसने मुझे पकड़ने का कार्य दिया था।

“उसे पता था कि जब हरक्यूलिस मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा, तो देवी आर्टेमिस उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगी। इसी कार्य के तहत हरक्यूलिस ने मुझे पकड़ लिया। मुझे हरक्यूलिस की वीरता और साहस से प्यार हो गया। मैंने बाद में हरक्यूलिस के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर हरक्यूलिस तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरे लिये ‘कोई और’ बना है।

“जब मैंने हरक्यूलिस से उस ‘कोई और’ के बारे में पूछा, तो उसने मुझे एक सुनहरी कस्तूरी दी और मुझसे कहा कि जब कभी मुझे, कोई भी पुरुष पहली बार स्पर्श करेगा, तो यह सुनहरी कस्तूरी उसकी नाभि में प्रवेश कर जायेगी। इस सुनहरी कस्तूरी की वजह से वह पुरुष एक सुनहरे मृग में भी परिवर्तित हो सकेगा और उसमें बहुत सी अदृश्य शक्तियां भी आ जायेंगी। वही पुरुष मेरा ‘कोई और’....मेरा मतलब है कि मेरा जीवन साथी बनेगा। बस तब से आज तक मैं उस ‘कोई और’ को ढूंढ रहीं हूं।” इतना कहकर मेलाइट चुप हो गई।

“अच्छा, अब मुझे समझ में आया कि तुम यहां से क्यों नहीं जाना चाहती।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा- “दरअसल तुम्हें यहां ‘कोई और’ मिल गया है, जो कि तौलिये में ‘किसी और’ के सामने घूम रहा है।”
सनूरा के यह शब्द सुन तीनों ही जोर से हंस दिये।

“अच्छा, एक बात तो बताओ मेलाइट? कि वह रोजर के शरीर से निकल रहा सुनहरा प्रकाश अपने आप बंद कैसे हो गया?” सनूरा ने अब किसी दोस्त की भांति मेलाइट से पूछा।

“जब भी मेरे मन में प्रेम की कोपलें फूटेंगी, उसके शरीर से प्रकाश प्रस्फुटित होने लगेगा, पर जैसे ही वह मुझे स्पर्श करेगा, उसके शरीर का प्रकाश स्वतः बंद हो जायेगा।” मेलाइट ने किसी जादूगर की भांति खड़े होकर अपना हाथ हवा में लहराते हुए अपने विचार प्रकट किये।

“ओ...होऽऽऽऽऽ जादू भरी प्रेम कहानी।....अद्भुत....पर बेचारा रोशनी का देवता....उसे तो अपनी ही प्रेम कहानी मालूम नहीं है।” सुर्वया ने आह भरते हुए मेलाइट को चिढ़ाया।

“तो ‘कोई और’ की कहानी तो पूरी हो गई।” सनूरा ने टॉपिक बदलते हुए, सुर्वया की ओर देखा- “अब आपकी कहानी में भी ‘कोई और’ तो नहीं।”

सनूरा ने अपने शब्दों से सुर्वया को अपनी कहानी सुनाने का इशारा किया था।

सनूरा की बात सुन सुर्वया ने गहरी साँस भरी और बोलना शुरु कर दिया- “काश...मेरी भी कहानी में कोई और होता?....मेरी कहानी में जादू तो है, पर ‘कोई और’ नहीं.... बस आकृति है...एक ऐसी आकृति, जिसकी आकृति मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं।...बात आज से लगभग 5,015 वर्ष पहले कि है जब आकृति और आर्यन वेदालय के एक कार्य के चलते, सिंहलोक से ‘चतुर्मुख सिंहराज’ को लेने आये थे।”

“एक मिनट, यह आर्यन कौन है? वेदालय क्या है? और यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ क्या था? जरा खुलकर समझाओगी क्यों कि मैं इसके बारे में नहीं जानती।” सनूरा ने बीच में ही टोकते हुए कहा।

“आज से 20,000 वर्ष पहले हि..न्दू दे..ओं ने, भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा के लिये ब्रह्मांड रक्षकों को बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये उन्हें कुछ अजेय मनुष्यों की जरुरत थी, जो कि देव-शक्तियों के द्वारा छिपकर, पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इस कार्य के तहत महागुरु नीलाभ और उनकी पत्नि माया को दे..ताओं ने 15 लोकों का निर्माण करने को कहा। इन 15 लोकों में देओं ने 30 देव शक्तियों को छिपा दिया। फिर इसके बाद एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना की गई।

“जिसमें पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ 13 बच्चों का चुनाव किया गया। इस वेदालय की पढ़ाई पूरे 10 वर्षों तक चलनी थी और इन 10 वर्षों में उन सभी बच्चों को वेदालय में ही रहकर इन सभी 30 देव शक्तियों को ढूंढना था। आकृति और आर्यन इन्हीं 13 बच्चों में से 2 थे। हमारा सिंहलोक भी इन्हीं 15 लोकों में से एक था, जहां पर 2 देव शक्तियां छिपी थीं- पहली थी ‘चतुर्मुख सिंहराज’ और दूसरी थी- ‘शुभार्जना’। दरअसल इन 2 शक्तियों की वजह से ही हमारा लोक एक प्रकार से अमर था। ‘चतुर्मुख सिंहराज’ एक 4 सिर वाली सिंह की प्रतिमा थी, जिसे राज्य के द्वार पर लगाया गया था।

“कहते थे कि यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ जिस राज्य के द्वार पर रहेगा, वहां कभी भी मृत्यु के देवता ‘यम’ प्रविष्ठ नहीं हो सकते। हमारे लोक की दूसरी शक्ति थी- शुभार्जना। शुभार्जना, एक छोटी सी डिबिया में बंद एक सिंह की गर्जना थी, जिसका 3 बार प्रयोग कर, किसी भी 3 मृत इंसान को जीवित किया जा सकता था। हां... तो अब आते हैं ‘चतुर्मुख सिंहराज’ पर, जो कि आर्यन और आकृति हमारे लोक लेने के लिये आये थे।

“यहां मेरी दोस्ती आकृति से हो गई, जिससे आकृति को मेरी कायांतरण और दिव्यदृष्टि का पता चल गया।
कायांतरण के द्वारा मैं किसी का भी चेहरा 24 घंटे के लिये बदल सकती थी और दिव्यदृष्टि के द्वारा किसी भी जीव को, जो जमीन पर हो, ढूंढ सकती थी।.....एक बार वेदालय की पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद आकृति मेरे पास आयी और उसने मुझसे अपने चेहरे पर शलाका का चेहरा लगाने को कहा। मुझे नहीं पता था कि वह इसके माध्यम से क्या करना चाहती है? इसलिये मैंने वैसा ही किया, जैसा कि वह चाहती थी।

“आकृति शलाका का चेहरा लगवा कर वहां से चली गई। 2 दिन बाद ही वह मेरे पास वापस आ गई, पर उसका चेहरा 24 घंटे के बाद भी शलाका का ही था। यह देख मुझे भी आश्चर्य हुआ कि मेरी कायांतरण शक्ति सही काम क्यों नहीं कर रही? बाद में मुझे पता चला कि आकृति ने शलाका के वेश में अमृतपान कर लिया था और अमृतपान का यह नियम था कि उसे जिस वेश में पिया जाता, वह वेश सदा के लिये पीने वाले को धारण करना पड़ता। यानि कि अब आकृति चाहकर भी, अपना चेहरा नहीं पा सकती थी। आकृति ने गुस्सा होकर मुझे एक जादुई दर्पण में बंद कर दिया और उस दर्पण को एक अंधेरे कमरे में रख दिया।

“मैं बिना प्रकाश के अपनी दिव्यदृष्टि का प्रयोग नहीं कर सकती थी। अब मैं सदा के लिये अंधेरे कमरे में, उस जादुई दर्पण में बंद हो गई। लगभग 10 महीने के बाद आकृति ने मुझे अंधेरे कमरे से निकाला और मुझे उसके पुत्र को ढूंढने के लिये कहा।

"उसने कहा कि अगर मैं उसके पुत्र को ढूंढ दूंगी, तो वह मुझे कैद से आजाद कर देगी। मैंने आकृति के पुत्र को ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर वह मुझे नहीं मिला...शायद आर्यन ने उसे किसी ऐसी जगह रखा था, जहां मेरी दिव्यदृष्टि नहीं पहुंच पा रही थी। फिर अचानक एक दिन आर्यन और शलाका दोनों ही मेरी दिव्यदृष्टि से ओझल हो गये। यह सुनकर आकृति और ज्यादा गुस्सा
गई और उसने मुझे फिर कभी भी अपनी कैद से नहीं छोड़ा।” यह कहकर सुर्वया शांत हो गई।

“हम्...तुम्हारी कहानी तो काफी दर्द भरी थी।” मेलाइट ने कहा- “पर तुमने यह नहीं बताया कि तुम सिंहलोक में कैसे पहुंची? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन था? और तुम्हारे बाद सिंहलोक का क्या हुआ?”

“वह कहानी बहुत लंबी है...उसे मैं फिर कभी सुनाऊंगी।” सुर्वया ने मुस्कुराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा।

सुर्वया के चेहरे के भाव देख मेलाइट और सनूरा ने सुर्वया को और नहीं कुरेदा, पर वो समझ गये कि सुर्वया की जिंदगी का अभी एक और पन्ना खुलना बाकी है, जो कि समय आने पर ही खुलेगा।

“अब तुम अपने बारे में बताओ सनूरा।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा।

लेकिन इससे पहले कि सनूरा अपने बारे में कुछ बोल पाती, कि तभी महल में, किसी बड़े से ढोल की आवाज गूंजने लगी, वह आवाज सुन सनूरा डर गई।

“यह तो खतरे का सिग्नल है, क्या सीनोर राज्य पर कोई खतरा मंडरा रहा है?” सनूरा ने कहा।

“रुको मैं देखती हूं।” यह कहकर सुर्वया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब सुर्वया के माथे पर एक लाल रंग का प्रकाशपुंज दिखाई देने लगा।

“नहीं...नहीं...मुझे धुंधला दिखाई दे रहा है...शायद खतरा अभी भी पानी के अंदर है...रुको...मुझे समुद्र की लहरों पर एक धुंधली सी विशाल आकृति दिख रही है...क्या...क्या यह कोई राक्षस है या फिर कोई बड़ा सा अंतरिक्ष यान?” सुर्वया ने इतना देखकर अपनी आँखें खोल दीं- “जब तक वह समुद्र की लहरों पर है, तब तक मैं उसे साफ नहीं देख सकती।”

सुर्वया के शब्द सुन सनूरा तेजी से बाहर की ओर भागी।

सनूरा को बाहर जाते देख मेलाइट और सुर्वया ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर वह भी सनूरा के पीछे भाग लीं।

आखिर वह सब अब एक अच्छी दोस्त थीं।


जारी रहेगा______✍️
Nice update.....
 

parkas

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कस्तूरी मृग:
(17.01.02, गुरुवार, 09:30, सीनोर महल, अराका द्वीप)

सनूरा ने सुर्वया और मेलाइट को एक कमरे में ठहरा दिया था और रोजर को दूसरा कमरा दिया था।

लुफासा के कहे अनुसार सनूरा ने मेलाइट को वापस जाने का भी आग्रह किया था, पर मेलाइट ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था।

इस समय मेलाइट और सुर्वया अपने कमरे में बैठीं थीं कि तभी सनूरा की आवाज ने दोनों का ध्यान भंग किया- “क्या हम अंदर आ सकते हैं?”

“हां-हां आइये ना।” मेलाइट ने विनम्र लहजे में कहा- “आपका ही महल है, आपको पूछने की आवश्यकता नहीं है।”

“जब एक कमरे में 2 राजकुमारियां बैठीं हों, तो सेनापति को हमेशा पूछ कर ही कमरे में जाना चाहिये।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

सनूरा की बात सुन मेलाइट और सुर्वया मुस्कुरा दीं। सनूरा अब उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।

“आप दोनों को यहां रहते हुए आज 2 दिन बीत गये हैं, उम्मीद है कि अब आप दोनों थोड़ा सहज महसूस करने लगी होंगी, इसलिये मैंने सोचा कि आप लोगों से आपकी पूरी कहानी सुन लूं, क्यों कि उस दिन लुफासा के जाने के बाद, हमें एक दूसरे से कुछ ज्यादा पूछने का समय नहीं मिला। ऊपर से आप लोग, उस दिन थोड़ा असहज भी दिख रहीं थीं, इसलिये मैंने 2 दिन तक आप लोगों से बात भी नहीं की।” सनूरा ने दोनों को देखते हुए कहा।

“बिल्कुल सही कहा आपने।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा- “उस दिन हम लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि आप लोग सही हैं या गलत? इसलिये आपसे बहुत सोच-समझकर बात कर रहे थे। पर आज
हम आपके सामने बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसलिये अपनी कहानी बताने को तैयार हैं।”

“एक मिनट-एक मिनट।” मेलाइट ने बीच में ही सुर्वया को टोकते हुए कहा- “क्या हमें रोजर को भी इस समय यहां बुला लेना चाहिये? उसे भी तो जानना होगा, हम सबके बारे में।”

मेलाइट की बात सुन सुर्वया मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें रोजर की बहुत याद आ रही है ....सबकुछ ठीक तो है ना?”

सुर्वया के शब्दों में एक अर्थ छिपा था, जिसे मेलाइट तो समझ गई, पर सनूरा को कुछ समझ नहीं आया।

“क्या मैं जान सकती हूं कि आप दोनों रोजर की बात सुनकर इतना मुस्कुरा क्यों रहीं हैं?” सनूरा ने आश्चर्य से दोनों को देखते हुए कहा।

“एक मिनट रुकिये सनूरा, बस आपको अभी पता चल जायेगा ....जरा दरवाजे की ओर देखिये।” सुर्वया ने मुस्कुराते हुए सनूरा को दरवाजे की ओर देखने का इशारा किया।

सनूरा ने कमरे के दरवाजे की ओर देखा, पर उसे कुछ नजर नहीं आया।

तभी कमरे के दरवाजे से रोजर भागता हुआ कमरे में प्रविष्ठ हुआ।
उसकी साँसें बहुत तेज चल रहीं थीं।

रोजर की कमर पर इस समय सिर्फ एक तौलिया लिपटा हुआ था, जिसने उसके निचले बदन को ढंक रखा था।

रोजर की नाभि से इस समय एक तीव्र सुनहरा प्रकाश निकल रहा था, उस प्रकाश से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी।

“कोई बतायेगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?” रोजर ने घबराए अंदाज में सबको देखते हुए कहा- “यह मेरे शरीर से कैसा प्रकाश निकल रहा है? कहीं यह आप दोनों की कोई शरारत तो नहीं?”

सनूरा भी आश्चर्य से रोजर के शरीर से निकलते प्रकाश को देख रही थी, उसे भी इस प्रकाश का स्रोत समझ में नहीं आया, पर सुर्वया के हल्के से इशारे से सनूरा चुपचाप बैठी रही।

रोजर की बात सुन मेलाइट अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और चलती हुई रोजर के पास जा पहुंची।

“क्या तुम्हें लगता है रोजी...आई मीन रोजर...कि यह हम दोनों की कोई शरारत है?” मेलाइट ने भोलेपन से जवाब दिया।

“हां , लगता है....2 दिन से आप दोनों मुझे अलग-अलग तरह से परेशान कर रही हो।” रोजर ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

“हम दोनों?....नहीं-नहीं रोजर.... इसमें सुर्वया का कोई हाथ नहीं। वह तो सिर्फ मेरे साथ थी....तुम्हें तो परेशान तो मैं कर रही थी....आई मीन...हम तुम्हें परेशान क्यों करेंगे। दरअसल हमें तो पता भी नहीं कि
यह रोशनी कहां से आ रही है? पर ....पर इसकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही है रोजर....कहां से लाते हो तुम इतनी खुशबू?” यह कहकर मेलाइट बेहोश होने का नाटक कर लहरा कर गिरने लगी।

मेलाइट को गिरते देख रोजर ने बीच में ही उसे थाम लिया। अब रोजर मेलाइट की बंद आँखों को निहार रहा था।

तभी मेलाइट ने अपनी आँखें खोल दीं और अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहा- “ये तुमने मुझे अपनी बाहों में क्यों भर रखा है? क्या तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? और...और ये तुम बिना कपड़ों के हमारे कमरे में क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि इस कमरे में 3 लड़कियां हैं? अगर तुम्हारा यह तौलिया अपने स्थान से खिसक गया तो। अगर तुम ऐसी हरकत करोगे, तो मैं देवी आर्टेमिस से तुम्हारी शिकायत करुंगी।”

मेलाइट की बात सुन रोजर ने घबराकर मेलाइट को छोड़ दिया।

अब रोजर की नाभि से सुनहरी रोशनी निकलना बंद हो चुकी थी, यह देख रोजर ने एक नजर सब पर मारी और फिर वहां से जान छुड़ाकर
ऐसे भागा, जैसे कि उसके पीछे भूत पड़े हों।

रोजर के जाने के बाद, मेलाइट अपने स्थान पर आकर पुनः बैठ गई, पर इस समय मेलाइट, सुर्वया और सनूरा तीनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान थी।

“हां, तो हम कहां थे? आई मीन क्या बात कर रहे थे?” मेलाइट ने सनूरा से पूछा।

“हां...हम एक-दूसरे से अपनी कहानियां सुनाने की बात कर रहे थे।” सनूरा ने कहा- “पर अब सबसे पहले मैं मेलाइट की कहानी जानना चाहती हूं, क्यों कि ये जो अभी कुछ देर पहले हुआ, ये मुझे काफी रोचक
लगा।”

सनूरा की बात सुन मेलाइट के चेहरे पर फैली मुस्कान और गहरी हो गई और वह बोल उठी- “हम 5 बहनें दक्षिण ग्रीस के, सीरीनिया नामक जंगल के बीच की, एक सुंदर सी झील में रहते थे। हम सभी स्वच्छ जल में रहने वाली अप्सराएं थीं... और आप तो जानती ही हैं कि पुराने समय में अप्सराओं का जीवन कितना विचित्र होता था, अप्सराओं की सुंदरता ही उनके लिये अभिशाप बन जाती थी। जब भी किसी देवता या शक्तिशाली मनुष्य की निगाह सुंदर अप्सराओं पर पड़ती थी, तो वह जबरन उसे उठा ले जाते थे।

“इस प्रकार की किसी भी घटना से बचने के लिये अप्सराओं के देवता ने, हर अप्सरा को किसी जीव में बदल जाने की शक्ति दी, जिससे वह अपने घर से बाहर निकलते समय उस जीव में परिवर्तित हो जाती थीं। कुछ ऐसी ही शक्ति के तहत हम सभी बहनें भी सुनहरी हिरनी का रुप धारण कर लेते थे। एक दिन जब हम सीरीनिया के जंगल में सुनहरी हिरनी बनकर घूम रहे थे, तो शिकार की देवी आर्टेमिस ने हमें देख लिया, पर वह हमारी सुंदरता से मुग्ध हो गईं, इसलिये उन्होंने हमें मारा नहीं। मेरी 4 बहनों ने अपनी इच्छा से देवी आर्टेमिस का रथ खींचने का कार्यभार संभाल लिया। परंतु मैंने देवी आर्टेमिस की बात नहीं मानी।”

“क्यों? मैं जानना चाहती हूं कि तुमने देवी आर्टेमिस की बात क्यों नहीं मानी?” सनूरा ने बीच में ही मेलाइट को टोकते हुए कहा।

“क्यों कि देवी आर्टेमिस कुंवारी थीं इसलिये उनका रथ खींचने वाली सभी हिरनिओं को आजीवन कौमार्य व्रत धारण करना पड़ता और मुझे ये मंजूर नहीं था। मैं विवाह करके गृहस्थ जीवन जीना चाहती थी।” मेलाइट ने कहा- “आर्टेमिस ने मुझे इसकी इजाजत दे दी। अब मुझे तलाश थी किसी ऐसे योद्धा की, जिसके साथ रहने पर मुझे लगाव महसूस हो सके।

“आखिरकार एक दिन मुझे वह योद्धा मिल ही गया और वह योद्धा था- हरक्यूलिस, जो कि राजा यूरीस्थियस के कहे अनुसार अपने 12 कार्यों को पूरा करने निकला था। हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक मुझे पकड़कर ले जाना भी था। यूरीस्थियस नहीं चाहता था कि हरक्यूलिस अपने कार्य में सफल हो, इसलिये उसने मुझे पकड़ने का कार्य दिया था।

“उसे पता था कि जब हरक्यूलिस मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा, तो देवी आर्टेमिस उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगी। इसी कार्य के तहत हरक्यूलिस ने मुझे पकड़ लिया। मुझे हरक्यूलिस की वीरता और साहस से प्यार हो गया। मैंने बाद में हरक्यूलिस के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर हरक्यूलिस तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरे लिये ‘कोई और’ बना है।

“जब मैंने हरक्यूलिस से उस ‘कोई और’ के बारे में पूछा, तो उसने मुझे एक सुनहरी कस्तूरी दी और मुझसे कहा कि जब कभी मुझे, कोई भी पुरुष पहली बार स्पर्श करेगा, तो यह सुनहरी कस्तूरी उसकी नाभि में प्रवेश कर जायेगी। इस सुनहरी कस्तूरी की वजह से वह पुरुष एक सुनहरे मृग में भी परिवर्तित हो सकेगा और उसमें बहुत सी अदृश्य शक्तियां भी आ जायेंगी। वही पुरुष मेरा ‘कोई और’....मेरा मतलब है कि मेरा जीवन साथी बनेगा। बस तब से आज तक मैं उस ‘कोई और’ को ढूंढ रहीं हूं।” इतना कहकर मेलाइट चुप हो गई।

“अच्छा, अब मुझे समझ में आया कि तुम यहां से क्यों नहीं जाना चाहती।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा- “दरअसल तुम्हें यहां ‘कोई और’ मिल गया है, जो कि तौलिये में ‘किसी और’ के सामने घूम रहा है।”
सनूरा के यह शब्द सुन तीनों ही जोर से हंस दिये।

“अच्छा, एक बात तो बताओ मेलाइट? कि वह रोजर के शरीर से निकल रहा सुनहरा प्रकाश अपने आप बंद कैसे हो गया?” सनूरा ने अब किसी दोस्त की भांति मेलाइट से पूछा।

“जब भी मेरे मन में प्रेम की कोपलें फूटेंगी, उसके शरीर से प्रकाश प्रस्फुटित होने लगेगा, पर जैसे ही वह मुझे स्पर्श करेगा, उसके शरीर का प्रकाश स्वतः बंद हो जायेगा।” मेलाइट ने किसी जादूगर की भांति खड़े होकर अपना हाथ हवा में लहराते हुए अपने विचार प्रकट किये।

“ओ...होऽऽऽऽऽ जादू भरी प्रेम कहानी।....अद्भुत....पर बेचारा रोशनी का देवता....उसे तो अपनी ही प्रेम कहानी मालूम नहीं है।” सुर्वया ने आह भरते हुए मेलाइट को चिढ़ाया।

“तो ‘कोई और’ की कहानी तो पूरी हो गई।” सनूरा ने टॉपिक बदलते हुए, सुर्वया की ओर देखा- “अब आपकी कहानी में भी ‘कोई और’ तो नहीं।”

सनूरा ने अपने शब्दों से सुर्वया को अपनी कहानी सुनाने का इशारा किया था।

सनूरा की बात सुन सुर्वया ने गहरी साँस भरी और बोलना शुरु कर दिया- “काश...मेरी भी कहानी में कोई और होता?....मेरी कहानी में जादू तो है, पर ‘कोई और’ नहीं.... बस आकृति है...एक ऐसी आकृति, जिसकी आकृति मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं।...बात आज से लगभग 5,015 वर्ष पहले कि है जब आकृति और आर्यन वेदालय के एक कार्य के चलते, सिंहलोक से ‘चतुर्मुख सिंहराज’ को लेने आये थे।”

“एक मिनट, यह आर्यन कौन है? वेदालय क्या है? और यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ क्या था? जरा खुलकर समझाओगी क्यों कि मैं इसके बारे में नहीं जानती।” सनूरा ने बीच में ही टोकते हुए कहा।

“आज से 20,000 वर्ष पहले हि..न्दू दे..ओं ने, भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा के लिये ब्रह्मांड रक्षकों को बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये उन्हें कुछ अजेय मनुष्यों की जरुरत थी, जो कि देव-शक्तियों के द्वारा छिपकर, पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इस कार्य के तहत महागुरु नीलाभ और उनकी पत्नि माया को दे..ताओं ने 15 लोकों का निर्माण करने को कहा। इन 15 लोकों में देओं ने 30 देव शक्तियों को छिपा दिया। फिर इसके बाद एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना की गई।

“जिसमें पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ 13 बच्चों का चुनाव किया गया। इस वेदालय की पढ़ाई पूरे 10 वर्षों तक चलनी थी और इन 10 वर्षों में उन सभी बच्चों को वेदालय में ही रहकर इन सभी 30 देव शक्तियों को ढूंढना था। आकृति और आर्यन इन्हीं 13 बच्चों में से 2 थे। हमारा सिंहलोक भी इन्हीं 15 लोकों में से एक था, जहां पर 2 देव शक्तियां छिपी थीं- पहली थी ‘चतुर्मुख सिंहराज’ और दूसरी थी- ‘शुभार्जना’। दरअसल इन 2 शक्तियों की वजह से ही हमारा लोक एक प्रकार से अमर था। ‘चतुर्मुख सिंहराज’ एक 4 सिर वाली सिंह की प्रतिमा थी, जिसे राज्य के द्वार पर लगाया गया था।

“कहते थे कि यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ जिस राज्य के द्वार पर रहेगा, वहां कभी भी मृत्यु के देवता ‘यम’ प्रविष्ठ नहीं हो सकते। हमारे लोक की दूसरी शक्ति थी- शुभार्जना। शुभार्जना, एक छोटी सी डिबिया में बंद एक सिंह की गर्जना थी, जिसका 3 बार प्रयोग कर, किसी भी 3 मृत इंसान को जीवित किया जा सकता था। हां... तो अब आते हैं ‘चतुर्मुख सिंहराज’ पर, जो कि आर्यन और आकृति हमारे लोक लेने के लिये आये थे।

“यहां मेरी दोस्ती आकृति से हो गई, जिससे आकृति को मेरी कायांतरण और दिव्यदृष्टि का पता चल गया।
कायांतरण के द्वारा मैं किसी का भी चेहरा 24 घंटे के लिये बदल सकती थी और दिव्यदृष्टि के द्वारा किसी भी जीव को, जो जमीन पर हो, ढूंढ सकती थी।.....एक बार वेदालय की पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद आकृति मेरे पास आयी और उसने मुझसे अपने चेहरे पर शलाका का चेहरा लगाने को कहा। मुझे नहीं पता था कि वह इसके माध्यम से क्या करना चाहती है? इसलिये मैंने वैसा ही किया, जैसा कि वह चाहती थी।

“आकृति शलाका का चेहरा लगवा कर वहां से चली गई। 2 दिन बाद ही वह मेरे पास वापस आ गई, पर उसका चेहरा 24 घंटे के बाद भी शलाका का ही था। यह देख मुझे भी आश्चर्य हुआ कि मेरी कायांतरण शक्ति सही काम क्यों नहीं कर रही? बाद में मुझे पता चला कि आकृति ने शलाका के वेश में अमृतपान कर लिया था और अमृतपान का यह नियम था कि उसे जिस वेश में पिया जाता, वह वेश सदा के लिये पीने वाले को धारण करना पड़ता। यानि कि अब आकृति चाहकर भी, अपना चेहरा नहीं पा सकती थी। आकृति ने गुस्सा होकर मुझे एक जादुई दर्पण में बंद कर दिया और उस दर्पण को एक अंधेरे कमरे में रख दिया।

“मैं बिना प्रकाश के अपनी दिव्यदृष्टि का प्रयोग नहीं कर सकती थी। अब मैं सदा के लिये अंधेरे कमरे में, उस जादुई दर्पण में बंद हो गई। लगभग 10 महीने के बाद आकृति ने मुझे अंधेरे कमरे से निकाला और मुझे उसके पुत्र को ढूंढने के लिये कहा।

"उसने कहा कि अगर मैं उसके पुत्र को ढूंढ दूंगी, तो वह मुझे कैद से आजाद कर देगी। मैंने आकृति के पुत्र को ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर वह मुझे नहीं मिला...शायद आर्यन ने उसे किसी ऐसी जगह रखा था, जहां मेरी दिव्यदृष्टि नहीं पहुंच पा रही थी। फिर अचानक एक दिन आर्यन और शलाका दोनों ही मेरी दिव्यदृष्टि से ओझल हो गये। यह सुनकर आकृति और ज्यादा गुस्सा
गई और उसने मुझे फिर कभी भी अपनी कैद से नहीं छोड़ा।” यह कहकर सुर्वया शांत हो गई।

“हम्...तुम्हारी कहानी तो काफी दर्द भरी थी।” मेलाइट ने कहा- “पर तुमने यह नहीं बताया कि तुम सिंहलोक में कैसे पहुंची? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन था? और तुम्हारे बाद सिंहलोक का क्या हुआ?”

“वह कहानी बहुत लंबी है...उसे मैं फिर कभी सुनाऊंगी।” सुर्वया ने मुस्कुराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा।

सुर्वया के चेहरे के भाव देख मेलाइट और सनूरा ने सुर्वया को और नहीं कुरेदा, पर वो समझ गये कि सुर्वया की जिंदगी का अभी एक और पन्ना खुलना बाकी है, जो कि समय आने पर ही खुलेगा।

“अब तुम अपने बारे में बताओ सनूरा।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा।

लेकिन इससे पहले कि सनूरा अपने बारे में कुछ बोल पाती, कि तभी महल में, किसी बड़े से ढोल की आवाज गूंजने लगी, वह आवाज सुन सनूरा डर गई।

“यह तो खतरे का सिग्नल है, क्या सीनोर राज्य पर कोई खतरा मंडरा रहा है?” सनूरा ने कहा।

“रुको मैं देखती हूं।” यह कहकर सुर्वया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब सुर्वया के माथे पर एक लाल रंग का प्रकाशपुंज दिखाई देने लगा।

“नहीं...नहीं...मुझे धुंधला दिखाई दे रहा है...शायद खतरा अभी भी पानी के अंदर है...रुको...मुझे समुद्र की लहरों पर एक धुंधली सी विशाल आकृति दिख रही है...क्या...क्या यह कोई राक्षस है या फिर कोई बड़ा सा अंतरिक्ष यान?” सुर्वया ने इतना देखकर अपनी आँखें खोल दीं- “जब तक वह समुद्र की लहरों पर है, तब तक मैं उसे साफ नहीं देख सकती।”

सुर्वया के शब्द सुन सनूरा तेजी से बाहर की ओर भागी।

सनूरा को बाहर जाते देख मेलाइट और सुर्वया ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर वह भी सनूरा के पीछे भाग लीं।

आखिर वह सब अब एक अच्छी दोस्त थीं।


जारी रहेगा______✍️
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
 

Avaran

एवरन
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रिव्यू की शुरुआत की जाए।

हम लोग ऋतु संसार में आ गए हैं।
ऑटम सीज़न की चुनौती थोड़ी मुश्किल थी, पर अंत में तौफ़िक ने बचा लिया, वरना खेल ख़त्म था।

देवी कॉपर हम् हम्—ग्रीक देवता भी इस बहाने इंट्रोड्यूस हो रहे हैं। पहले आर्टेमिस, अब कॉपर। इनका भी कुछ न कुछ आगे सीन आएगा, जहाँ तक मुझे लग रहा है।

अब आगे मुझे जहाँ तक लगता है, इंडिया में वैसे तो सारे ऋतु होते हैं, लेकिन हमारे यहाँ ग्रीष्म ऋतु के चांस ज़्यादा हैं। न्यूज़ीलैंड में स्प्रिंग, ग्रीनलैंड में सर्दियाँ होंगी।

गौर करने वाली बात यह है कि ज़ेनिथ के साथ नक्षत्र के समावेश ने यह कन्फ़र्म किया कि एंड्रोस के फ़ॉरेन ग्रह वाले उस लोकेट को प्राप्त करने ज़रूर तिलिस्म में आएँगे।

दूसरा, ज़ेनिथ और तौफ़िक की जोड़ी में यह संकेत था कि ज़ेनिथ का दिल पिघल जाए और वह तौफ़िक को माफ़ कर आगे बढ़ जाए।
मिलाकर शानदार अपडेट।
अगले अपडेट की प्रतीक्षा।
 
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Avaran

एवरन
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रिव्यू की शुरुआत की जाए।

मेरा आंकलन सही था, रॉजर ही मेगालाइट का सुनहरी हिरण है। किस्मत हो तो रॉजर जैसी जहाँ मरने तक की बात आ गई थी, वह अब मैजिकल पावर का स्वामी है।

क्या मैंने यह सवाल पूछा था या नहीं पहले कि सुनारा ये सब, ये मकोटा को धोखा क्यों दे रही है? शायद लुफासा के कहने पर, या सुनारा को मकोटा के इरादों का ज्ञात हो गया, इसलिए उसने दल बदल लिया।

एक राज़ की बात बताऊँ मुझे अब पता चला कि सुनारा फीमेल है, वरना मैं इसको मेल ही समझता था।

ये आर्टेमिस क्यों बार-बार इधर बातचीत में आती है? मुझे लग रहा है आर्टेमिस की स्टोरी में एक अहम भूमिका है। उसका एक सब प्लॉट तैयार किया जा रहा है, जिसमें उसका नाम बार-बार आ रहा है।

यूरिस्थिस्यास एक और नया कैरेक्टर आया है, जो कि हरक्यूलिस को ऑर्डर देता है। मतलब ये बहुत पहुँची हुई चीज़ है, वरना हरक्यूलिस को फँसाने वाला कोई साधारण तो होने वाला नहीं। देखना होगा कि यूरिस्थिस्यास के पीछे क्या बैक-स्टोरी है।

यूरिस्थिस्यास की हरक्यूलिस के साथ क्या दुश्मनी है, वो भी देखना होगा, क्योंकि बिना मतलब क्यों यूरिस्थिस्यास ऐसी चाल चलेगा।

एक और बात मुझे अभी पता चली लड़ाई सिर्फ उस काले मोती की नहीं है, वो 30 देव शक्तियों को हासिल करने की भी होगी। वरना धरा, मयूर, कौस्तुभ, रुद्रांश ये लोग स्टोरी में महत्व क्यों रखते।

शायद कुछ वो शक्तियाँ अभी तक खोजी भी नहीं गई हों। जैसे कुछ शक्तियाँ तो किसी न किसी कपल को मिल गई होंगी, जैसे वो धरा कांड।

शतुरभुज सिंहाराज और शुभरंजना इनका यहाँ ज़िक्र आया, मतलब ये महत्वपूर्ण हैं। कहीं न कहीं ये शक्तियाँ हमें देखने को मिलेंगी। शायद सुयश ने इन्हें हासिल किया भी हो। अभी चीज़ें साफ़ तो नहीं हैं, लेकिन अंदेशा है कि उसके पास ये शक्तियाँ हों।

ये खतरे का सिग्नल कैसा? तारीख़ के हिसाब से देखें तो वेगा के वहाँ और यहाँ समय एक जैसा है। मकोटा का खेल या एंडोर्स के वो अणम और उसके साथी का जलवा तो नहीं?

इधर खतरा मतलब उधर समारा राज्य में भी बिगुल बज गया है।

कुल मिलाकर शानदार अपडेट।
अगले अपडेट की प्रतीक्षा।

Raj_sharma देख ले ये वाला बड़ा रिव्यू, क्योंकि इसमें मुझे बहुत से पॉइंट मिल गए हैं।

इधर का कोटा पूरा होगया कुछ नहीं बचा अब |
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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रिव्यू की शुरुआत की जाए।

मेरा आंकलन सही था, रॉजर ही मेगालाइट का सुनहरी हिरण है। किस्मत हो तो रॉजर जैसी जहाँ मरने तक की बात आ गई थी, वह अब मैजिकल पावर का स्वामी है।

क्या मैंने यह सवाल पूछा था या नहीं पहले कि सुनारा ये सब, ये मकोटा को धोखा क्यों दे रही है? शायद लुफासा के कहने पर, या सुनारा को मकोटा के इरादों का ज्ञात हो गया, इसलिए उसने दल बदल लिया।

एक राज़ की बात बताऊँ मुझे अब पता चला कि सुनारा फीमेल है, वरना मैं इसको मेल ही समझता था।

ये आर्टेमिस क्यों बार-बार इधर बातचीत में आती है? मुझे लग रहा है आर्टेमिस की स्टोरी में एक अहम भूमिका है। उसका एक सब प्लॉट तैयार किया जा रहा है, जिसमें उसका नाम बार-बार आ रहा है।

यूरिस्थिस्यास एक और नया कैरेक्टर आया है, जो कि हरक्यूलिस को ऑर्डर देता है। मतलब ये बहुत पहुँची हुई चीज़ है, वरना हरक्यूलिस को फँसाने वाला कोई साधारण तो होने वाला नहीं। देखना होगा कि यूरिस्थिस्यास के पीछे क्या बैक-स्टोरी है।

यूरिस्थिस्यास की हरक्यूलिस के साथ क्या दुश्मनी है, वो भी देखना होगा, क्योंकि बिना मतलब क्यों यूरिस्थिस्यास ऐसी चाल चलेगा।

एक और बात मुझे अभी पता चली लड़ाई सिर्फ उस काले मोती की नहीं है, वो 30 देव शक्तियों को हासिल करने की भी होगी। वरना धरा, मयूर, कौस्तुभ, रुद्रांश ये लोग स्टोरी में महत्व क्यों रखते।

शायद कुछ वो शक्तियाँ अभी तक खोजी भी नहीं गई हों। जैसे कुछ शक्तियाँ तो किसी न किसी कपल को मिल गई होंगी, जैसे वो धरा कांड।

शतुरभुज सिंहाराज और शुभरंजना इनका यहाँ ज़िक्र आया, मतलब ये महत्वपूर्ण हैं। कहीं न कहीं ये शक्तियाँ हमें देखने को मिलेंगी। शायद सुयश ने इन्हें हासिल किया भी हो। अभी चीज़ें साफ़ तो नहीं हैं, लेकिन अंदेशा है कि उसके पास ये शक्तियाँ हों।

ये खतरे का सिग्नल कैसा? तारीख़ के हिसाब से देखें तो वेगा के वहाँ और यहाँ समय एक जैसा है। मकोटा का खेल या एंडोर्स के वो अणम और उसके साथी का जलवा तो नहीं?

इधर खतरा मतलब उधर समारा राज्य में भी बिगुल बज गया है।

कुल मिलाकर शानदार अपडेट।
अगले अपडेट की प्रतीक्षा।

Raj_sharma देख ले ये वाला बड़ा रिव्यू, क्योंकि इसमें मुझे बहुत से पॉइंट मिल गए हैं।


इधर का कोटा पूरा होगया कुछ नहीं बचा अब |
Waah....point should be noted :D
 
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Try and fail. But never give up trying
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Shaandar update
 

Gaurav1969

\\\“मनो बुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहम्”///
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#116.

त्रिशक्ति: (
12 जनवरी 2002, शनिवार, 13:25, वाशिंगटन डी.सी., अमेरिका)

वेगा अचानक से अपने ऊपर हो रहे हमलों से परेशान हो गया था। वह अपनी बातें अपने भाई युगाका से शेयर भी नहीं कर सकता था, नहीं तो युगाका डरकर उसे अराका द्वीप पर बुला लेता।

वेगा के जन्मदिन को बीते आज 3 दिन हो गये थे। इन तीन दिनों में वेगा ना तो वीनस से मिला था और ना ही कहीं घर से बाहर निकला था। पर वेगा घर में बैठे-बैठे बिल्कुल बोर हो गया था। इसलिये आज उसने घर से निकलने का प्लान कर ही लिया।

वेगा ने आज अपने क्लब जाकर स्वीमिंग करने का प्लान कर लिया।

यह सोच वेगा कार की चाबी ले, घर से बाहर निकल गया, पर वह भैया की दी हुई जोडियाक वॉच पहनना नहीं भूला।

कुछ ही देर में ड्राइव करते हुए वेगा अपने स्वीमिंग क्लब तक पहुंच गया। वेगा ने चेंजिंग रुम में जा कर अपने कपड़े चेन्ज किये और स्वीमिंग पूल के पास पहुंच गया।

स्वीमिंग पूल में सिर्फ 2 लोग ही और स्वीमिंग कर रहे थे। वेगा ने डाइविंग बोर्ड पर खड़े होकर पानी में डाइव मार दी।

नीले रंग के स्वीमिंग पूल का पानी बेहद साफ सुथरा दिख रहा था। स्वीमिंग हमेशा से ही वेगा का फेवरेट शुगल रहा था।

वेगा जब भी पानी में उतरता, वह अपने आप को बहुत फ्रेश महसूस करने लगता था। चूंकि वेगा एक अटलांटियन था, इसलिये उसे पानी में भी साँस लेना आता था, पर वह दुनिया को दिखाने के लिये हर कुछ देर में पानी से बाहर आकर साँस लेने का नाटक करता था।

डाइव लगाने के बाद वेगा पानी के अंदर ही अंदर, स्वीमिंग पूल के एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर चल दिया।

तभी वेगा को पानी में एक बहुत छोटी सी मछली दिखाई दी। वह मछली 2 सेमी छोटी थी।

वह मछली बिल्कुल पारदर्शी थी। अगर उसकी आँखें काली ना होतीं तो शायद वेगा उसे देख भी नहीं पाता।

“ये तो ‘टैबियस’ मछली है, यह तो झील के फ्रेश वॉटर में पायी जाती है, यह यहां स्वीमिंग पूल के पानी में कैसे आ गयी? वेगा अभी उस नन्हीं मछली को देख ही रहा था कि तभी वह नन्हीं मछली एक ‘इलेक्ट्रिक ईल मछली’ में बदल गई और इससे पहले कि वेगा अपना बचाव कर पाता, उस ईल मछली ने वेगा को छूकर करंट का एक तेज झटका दिया।

वेगा का पूरा शरीर पानी में झनझना गया। वह करंट कम से कम 600 वॉट का तो जरुर रहा होगा।

वेगा के शरीर का आधा करंट उसकी जोडियाक वॉच ने खींच लिया, नहीं तो वेगा इतने तेज करंट से मर भी
सकता था।

वेगा ने पलटकर ईल मछली को देखा, वह पानी में तैरती हुई फिर उसकी ओर बढ़ रही थी।

वेगा यह देख तेजी से पानी से निकलने के लिये, किनारे की ओर तैरने लगा। तभी पीछे से आकर ईल ने वेगा को फिर एक बार करंट लगा दिया।

वेगा को इस बार पिछले वाले से भी ज्यादा करंट महसूस हुआ। वह समझ गया कि अब अगर एक बार भी ईल ने उसे और करंट मारा, तो वह मर जायेगा।

यह सोच वेगा ने अपनी पूरी शक्ति एक बार फिर एकत्रित की और किनारे की ओर तेजी से तैरने लगा।
इससे पहले कि ईल दोबारा पलट कर आती वेगा स्वीमिंग पूल से बाहर निकल गया।

वेगा अब किनारे पर लेटा हुआ, पानी में घूम रही ईल मछली को देख रहा था।

वेगा के साथ जो कुछ भी हुआ, वह वहां तैर रहे बाकी दोनों लड़को ने नहीं देखा था। वह अभी भी पानी में मस्ती कर रहे थे।

तभी वेगा के देखते ही देखते वह ईल पानी में गायब हो गई।

यह देख वेगा की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। वेगा क्लब में और कोई हंगामा होते नहीं देखना चाहता था। इसलिये चेंजिंग रुम में जा कर कपड़े बदले और अपनी कार की ओर चल पड़ा।

वेगा की कार आउटडोर खड़ी थी, इसलिये वह बाहर की ओर चल दिया।

रास्ते में एक छोटा सा फव्वारा बना था, जिसमें पानी के फव्वारे चारो ओर पानी छीट रहे थे।

उस फव्वारे के दूसरी साइड एक बड़ी सी किसी अप्सरा की मूर्ति बनी थी, जो एक बड़ी सी मटकी अपने सिर पर रखे हुई थी।

जैसे ही वेगा उस फव्वारे के बगल से निकला, एक 10 फुट लंबा काला नाग उस फव्वारे वाले स्थान से निकलकर वेगा के पैर से लिपट गया।

वेगा यह देखकर हैरान हो गया। उसे क्लब जैसी जगह पर इतने खतरनाक नाग के होने का अंदेशा भी नहीं था।

नाग अपना पूरा फन फैला कर वेगा को काटने चला, पर वेगा का भी पूरा बचपन जंगल में ही बीता था। उसे नाग से बचना अच्छी तरह से आता था।

इससे पहले कि नाग वेगा को कोई नुकसान पहुंचा पाता, वेगा ने नाग के फन को, अपने सीधे हाथ से जोर से पकड़ लिया।

वेगा के द्वारा फन पकड़ लिये जाने पर नाग वेगा को काट नहीं पा रहा था, तभी उसने अपनी पूंछ से वेगा के पैर को जोर से उमेठना शुरु कर दिया।

नाग के ताकत बहुत ज्यादा थी, वेगा बांये हाथ से नाग की पूंछ को अपने पैर से छुड़ाने की कोशिश तो कर रहा था, पर एक हाथ से वह सफल नहीं हो पा रहा था।

इसी प्रयास में वेगा जमीन पर गिर पड़ा, पर गिरने के बाद भी वेगा ने नाग के फन को नहीं छोड़ा था।
तभी वेगा को उस अप्सरा की मूर्ति के नीचे, झाड़ी काटने वाली एक बड़ी सी कैंची दिखाई दी।

अब वेगा जमीन पर सरक कर धीरे-धीरे उस कैंची की ओर बढ़ने लगा।

तभी खतरा देख वेगा की जोडियाक वॉच स्वतः हरकत में आ गयी। उससे निकलकर धरा-कण मूर्ति के सिर पर रखी मटकी में समा गया।

उधर वेगा घिसटता हुआ मूर्ति के नीचे पहुंच गया। वेगा ने जमीन पर पड़ी कैंची की ओर अपना बांया हाथ बढ़ाया।

वेगा को कैंची की ओर हाथ बढ़ाते देख नाग ने पूरी ताकत लगा कर अपना फन वेगा के हाथ से छुड़ा लिया।

अब नाग वेगा के शरीर को छोड़कर उसके सामने आ गया। वेगा अभी भी गिरा पड़ा हुआ था। वेगा अचानक से उस नाग की आक्रामकता देख कर हैरान रह गया।

नाग ने अपना फन जोर से फैलाया और वेगा को काटने चला। वेगा के पास अब स्वयं को बचाने का बिल्कुल भी समय नहीं था।

तभी मूर्ति के सिर पर रखा मटका तेजी से हवा में लहराया और नाग के फन पर आकर जोर से गिरा। इतने भारी मटके के नीचे दबकर नाग मारा गया।

वेगा के देखते ही देखते नाग का शरीर वहां से धुंआ बनकर उड़ गया। वेगा की आँखें एक बार फिर सिकुड़ गयीं।

अब वेगा को पूर्ण विश्वास हो गया था कि उस पर बार-बार हो रहे यह हमले एक इत्तेफाक नहीं थे, इसके पीछे अवश्य ही कोई गहरा राज था? वेगा तुरंत कार में बैठकर अपने घर की ओर चल दिया।

वेगा कार को ड्राइव करके भीड़ भरे रास्ते से अपने घर की ओर जा रहा था, पर अब एक कार उसकी कार का पीछा कर रही थी।

वेगा का पीछा कर रही कार में धरा और मयूर बैठे थे।

“यह तो एक साधारण बालक लग रहा है।” धरा ने मयूर से कहा-“इसके पास हमारी धरा शक्ति कैसे पहुंची?”

“उसने धरा शक्ति के हमारे कण को किसी आधुनिक तरीके से बनी एक घड़ी में डाल रखा है और वह घड़ी राशियों का रुप लेकर इसे बचा रही है।” मयूर ने कहा- “पर एक बात कहूं मुझे लगता है कि इस बालक को भी धरा शक्ति के बारे में कुछ भी पता नहीं है?”

“सही कहा मयूर, पर हमें इस लड़के को अपने अधिकार में लेकर उससे यह तो पूछना ही पड़ेगा कि उसे यह घड़ी किसने दी?”

धरा ने कार को ड्राइव करते हुए कहा- “और हम इस तरह से किसी मनुष्य को इतनी बड़ी धरा शक्ति का अधिकार भी नहीं दे सकते, हमें इससे वह घड़ी छीननी ही पड़ेगी। लेकिन इसके लिये हमें इस लड़के के किसी एकांत जगह में जाने का इंतजार करना होगा क्यों कि हम अपनी शक्तियों का प्रयोग मनुष्यों के सामने नहीं कर सकते।”

तभी वेगा की कार एक ऐसी रोड पर आ गयी, जहां पर ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी।

वेगा ने एक जगह पर कार को रोका और कार से उतरकर एक फल की दुकान की ओर बढ़ गया।

यह देख मयूर ने धरा को इशारा किया।

धरा ने अपनी कार को वेगा की कार से कुछ दूरी पर रोका और कार से उतरकर वेगा की ओर बढ़ने लगी।

मयूर कार में ही बैठकर धरा को देख रहा था। धरा अब फल खरीद रहे वेगा के बिल्कुल पीछे पहुंच गयी, तभी जाने कहां से एक पागल सांड अनियंत्रित हो कर वेगा की ओर दौड़ पड़ा।

अनियंत्रित सांड अपने रास्ते में आ रही हर चीज को हटाता जा रहा था।

चूंकि धरा और मयूर का ध्यान पूरी तरह से वेगा की ओर था, इसलिये वेगा की ओर तेजी से बढ़ रहा सांड उन्हें भी दिखाई नहीं दिया। और इससे पहले कि धरा वेगा का कुछ भी कर पाती, पागल सांड जा कर तेजी से धरा से जा टकराया।

सांड की टक्कर इतनी प्रभावशाली थी कि धरा उछलकर काफी दूर जा गिरी और उसका सिर एक कंक्रीट की दीवार से टकराने की वजह से, उसकी चेतना भी लुप्त हो गयी।

धरा को टक्कर मारने के बाद सांड वेगा की झपटा, पर वेगा की नजर इस जोरदार आवाज की वजह से सांड पर पड़ गयी थी।

वेगा ने तेजी से अपने शरीर को एक ओर गिरा कर स्वयं को बचा लिया।

सांड अपनी झोंक में वेगा के पीछे मौजूद एक बड़े से पेड़ से जा टकराया। सांड गुस्सा कर पलटा और वेगा को अपनी लाल-लाल आँखों से घूरने लगा।

उधर मयूर ने जैसे ही धरा को गिरते देखा, गुस्साकर कार से बाहर आया और गिरी पड़ी धरा की ओर भागा। मयूर ने धरा को हिलाया, पर धरा बेहोश थी।

गुस्साकर मयूर ने उस सांड की ओर देखा, सांड पेड़ के नीचे खड़ा गुस्से से फुंफकारता हुआ खूनी नजरों से वेगा की ओर देख रहा था।

यह देख मयूर ने गुस्से से जमीन को धीरे से थपथपाया। तभी सांड के पीछे खड़े, उस पेड़ की जड़ों के पास की धरती में कुछ परिवर्तन होना शुरु हो गया।

मयूर के थपथपाते ही पेड़ की जड़ के पास की मिट्टी जमीन में समाने लगी, जिसकी वजह से 1 सेकेण्ड में ही पेड़ की जड़ें मिट्टी के बाहर दिखाई देने लगीं और इससे पहले कि वेगा को कुछ समझ आता, वह पेड़ एक चरचराहट की आवाज के साथ उस सांड के ऊपर आ गिरा।

सांड उस बड़े से पेड़ के नीचे पूरी तरह से दब गया।

वेगा को लगा कि पेड़ सांड की टक्कर की वजह से कमजोर हो गया था, इसलिये ही वह गिर पड़ा।

अब वेगा का ध्यान बेहोश पड़ी धरा की ओर गया, जिसे उसके पास बैठा मयूर हिला कर उठाने की कोशिश कर रहा था। वेगा भागकर धरा के पास पहुंच गया।

“इन्हें तो काफी चोट आयी लगती है, जल्दी चलिये मैं आपको हॉस्पिटल छोड़ देता हूं।” वेगा ने मयूर को देखते हुए कहा।

“नहीं...नहीं...इसे कुछ नहीं हुआ है, बस यह डर की वजह से बेहोश है, यह अपने आप सही हो जायेगी।
हमें हॉस्पिटल जाने की कोई जरुरत नहीं है।” हॉस्पिटल का नाम सुनते ही मयूर थोड़ा डर सा गया।

“पर ये बेहोश हैं और मैंने देखा, उस सांड की सीधी टक्कर इन्हें लगी थी, ऐसे में इन्हें अंदरुनी चोट आयी हो सकती है, हमें इन्हें किसी ना किसी डॉक्टर को दिखाना जरुरी है।” वेगा ने धरा को देखते हुए अपनी सलाह
दी।

“देखिये ये हॉस्पिटल के नाम पर बहुत पैनिक हो जाती हैं, इसलिये मैं इन्हें हॉस्पिटल तो किसी भी कीमत पर नहीं ले जा सकता।” मयूर ने भी बहाना बनाते हुए कहा।

“तो फिर ठीक है, आप इन्हें मेरे घर पर ले चलिये, मैं वहीं पर किसी डॉक्टर को कॉल करके बुला लूंगा।” वेगा ने सॉल्यूशन निकालते हुए कहा- “और मेरा घर भी यहां से बिल्कुल पास में ही है।”

मयूर को वेगा का यह सुझाव बहुत अच्छा लगा, उसने सोचा कि इसी बहाने वेगा के घर का भी पता चल जायेगा।

“ठीक है, हम आपके घर चल सकते हैं।” मयूर ने अपनी स्वीकृति दे दी।

मयूर की बात सुनते ही वेगा अपनी कार की ओर भागा। मयूर ने अपनी कार वहीं खड़ी छोड़ी और धरा को लेकर वेगा की कार की पिछली सीट पर बैठ गया।

मयूर, धरा के लिये ज्यादा चिंतित नहीं था, उसे पता था कि धरा को कैसी भी चोट लगी हो, उसके अंदर मौजूद धरा शक्ति कुछ ही देर में धरा को सही कर देगी।

अंजाने में वेगा, उन्हें ही अपने घर ले जा रहा था, जो कि उसे ही मारने वाशिंगटन डी.सी. आये थे।


जारी रहेगा_______
✍️
Nice update ...lambe gap ke karan thoda confusion hai kuch ...lekhak mahodaya ho sake to iska answer dijiyega ...
Gurutva shakti
 

kas1709

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213
#169.

कस्तूरी मृग:
(17.01.02, गुरुवार, 09:30, सीनोर महल, अराका द्वीप)

सनूरा ने सुर्वया और मेलाइट को एक कमरे में ठहरा दिया था और रोजर को दूसरा कमरा दिया था।

लुफासा के कहे अनुसार सनूरा ने मेलाइट को वापस जाने का भी आग्रह किया था, पर मेलाइट ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था।

इस समय मेलाइट और सुर्वया अपने कमरे में बैठीं थीं कि तभी सनूरा की आवाज ने दोनों का ध्यान भंग किया- “क्या हम अंदर आ सकते हैं?”

“हां-हां आइये ना।” मेलाइट ने विनम्र लहजे में कहा- “आपका ही महल है, आपको पूछने की आवश्यकता नहीं है।”

“जब एक कमरे में 2 राजकुमारियां बैठीं हों, तो सेनापति को हमेशा पूछ कर ही कमरे में जाना चाहिये।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

सनूरा की बात सुन मेलाइट और सुर्वया मुस्कुरा दीं। सनूरा अब उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।

“आप दोनों को यहां रहते हुए आज 2 दिन बीत गये हैं, उम्मीद है कि अब आप दोनों थोड़ा सहज महसूस करने लगी होंगी, इसलिये मैंने सोचा कि आप लोगों से आपकी पूरी कहानी सुन लूं, क्यों कि उस दिन लुफासा के जाने के बाद, हमें एक दूसरे से कुछ ज्यादा पूछने का समय नहीं मिला। ऊपर से आप लोग, उस दिन थोड़ा असहज भी दिख रहीं थीं, इसलिये मैंने 2 दिन तक आप लोगों से बात भी नहीं की।” सनूरा ने दोनों को देखते हुए कहा।

“बिल्कुल सही कहा आपने।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा- “उस दिन हम लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि आप लोग सही हैं या गलत? इसलिये आपसे बहुत सोच-समझकर बात कर रहे थे। पर आज
हम आपके सामने बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसलिये अपनी कहानी बताने को तैयार हैं।”

“एक मिनट-एक मिनट।” मेलाइट ने बीच में ही सुर्वया को टोकते हुए कहा- “क्या हमें रोजर को भी इस समय यहां बुला लेना चाहिये? उसे भी तो जानना होगा, हम सबके बारे में।”

मेलाइट की बात सुन सुर्वया मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें रोजर की बहुत याद आ रही है ....सबकुछ ठीक तो है ना?”

सुर्वया के शब्दों में एक अर्थ छिपा था, जिसे मेलाइट तो समझ गई, पर सनूरा को कुछ समझ नहीं आया।

“क्या मैं जान सकती हूं कि आप दोनों रोजर की बात सुनकर इतना मुस्कुरा क्यों रहीं हैं?” सनूरा ने आश्चर्य से दोनों को देखते हुए कहा।

“एक मिनट रुकिये सनूरा, बस आपको अभी पता चल जायेगा ....जरा दरवाजे की ओर देखिये।” सुर्वया ने मुस्कुराते हुए सनूरा को दरवाजे की ओर देखने का इशारा किया।

सनूरा ने कमरे के दरवाजे की ओर देखा, पर उसे कुछ नजर नहीं आया।

तभी कमरे के दरवाजे से रोजर भागता हुआ कमरे में प्रविष्ठ हुआ।
उसकी साँसें बहुत तेज चल रहीं थीं।

रोजर की कमर पर इस समय सिर्फ एक तौलिया लिपटा हुआ था, जिसने उसके निचले बदन को ढंक रखा था।

रोजर की नाभि से इस समय एक तीव्र सुनहरा प्रकाश निकल रहा था, उस प्रकाश से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी।

“कोई बतायेगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?” रोजर ने घबराए अंदाज में सबको देखते हुए कहा- “यह मेरे शरीर से कैसा प्रकाश निकल रहा है? कहीं यह आप दोनों की कोई शरारत तो नहीं?”

सनूरा भी आश्चर्य से रोजर के शरीर से निकलते प्रकाश को देख रही थी, उसे भी इस प्रकाश का स्रोत समझ में नहीं आया, पर सुर्वया के हल्के से इशारे से सनूरा चुपचाप बैठी रही।

रोजर की बात सुन मेलाइट अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और चलती हुई रोजर के पास जा पहुंची।

“क्या तुम्हें लगता है रोजी...आई मीन रोजर...कि यह हम दोनों की कोई शरारत है?” मेलाइट ने भोलेपन से जवाब दिया।

“हां , लगता है....2 दिन से आप दोनों मुझे अलग-अलग तरह से परेशान कर रही हो।” रोजर ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

“हम दोनों?....नहीं-नहीं रोजर.... इसमें सुर्वया का कोई हाथ नहीं। वह तो सिर्फ मेरे साथ थी....तुम्हें तो परेशान तो मैं कर रही थी....आई मीन...हम तुम्हें परेशान क्यों करेंगे। दरअसल हमें तो पता भी नहीं कि
यह रोशनी कहां से आ रही है? पर ....पर इसकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही है रोजर....कहां से लाते हो तुम इतनी खुशबू?” यह कहकर मेलाइट बेहोश होने का नाटक कर लहरा कर गिरने लगी।

मेलाइट को गिरते देख रोजर ने बीच में ही उसे थाम लिया। अब रोजर मेलाइट की बंद आँखों को निहार रहा था।

तभी मेलाइट ने अपनी आँखें खोल दीं और अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहा- “ये तुमने मुझे अपनी बाहों में क्यों भर रखा है? क्या तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? और...और ये तुम बिना कपड़ों के हमारे कमरे में क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि इस कमरे में 3 लड़कियां हैं? अगर तुम्हारा यह तौलिया अपने स्थान से खिसक गया तो। अगर तुम ऐसी हरकत करोगे, तो मैं देवी आर्टेमिस से तुम्हारी शिकायत करुंगी।”

मेलाइट की बात सुन रोजर ने घबराकर मेलाइट को छोड़ दिया।

अब रोजर की नाभि से सुनहरी रोशनी निकलना बंद हो चुकी थी, यह देख रोजर ने एक नजर सब पर मारी और फिर वहां से जान छुड़ाकर
ऐसे भागा, जैसे कि उसके पीछे भूत पड़े हों।

रोजर के जाने के बाद, मेलाइट अपने स्थान पर आकर पुनः बैठ गई, पर इस समय मेलाइट, सुर्वया और सनूरा तीनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान थी।

“हां, तो हम कहां थे? आई मीन क्या बात कर रहे थे?” मेलाइट ने सनूरा से पूछा।

“हां...हम एक-दूसरे से अपनी कहानियां सुनाने की बात कर रहे थे।” सनूरा ने कहा- “पर अब सबसे पहले मैं मेलाइट की कहानी जानना चाहती हूं, क्यों कि ये जो अभी कुछ देर पहले हुआ, ये मुझे काफी रोचक
लगा।”

सनूरा की बात सुन मेलाइट के चेहरे पर फैली मुस्कान और गहरी हो गई और वह बोल उठी- “हम 5 बहनें दक्षिण ग्रीस के, सीरीनिया नामक जंगल के बीच की, एक सुंदर सी झील में रहते थे। हम सभी स्वच्छ जल में रहने वाली अप्सराएं थीं... और आप तो जानती ही हैं कि पुराने समय में अप्सराओं का जीवन कितना विचित्र होता था, अप्सराओं की सुंदरता ही उनके लिये अभिशाप बन जाती थी। जब भी किसी देवता या शक्तिशाली मनुष्य की निगाह सुंदर अप्सराओं पर पड़ती थी, तो वह जबरन उसे उठा ले जाते थे।

“इस प्रकार की किसी भी घटना से बचने के लिये अप्सराओं के देवता ने, हर अप्सरा को किसी जीव में बदल जाने की शक्ति दी, जिससे वह अपने घर से बाहर निकलते समय उस जीव में परिवर्तित हो जाती थीं। कुछ ऐसी ही शक्ति के तहत हम सभी बहनें भी सुनहरी हिरनी का रुप धारण कर लेते थे। एक दिन जब हम सीरीनिया के जंगल में सुनहरी हिरनी बनकर घूम रहे थे, तो शिकार की देवी आर्टेमिस ने हमें देख लिया, पर वह हमारी सुंदरता से मुग्ध हो गईं, इसलिये उन्होंने हमें मारा नहीं। मेरी 4 बहनों ने अपनी इच्छा से देवी आर्टेमिस का रथ खींचने का कार्यभार संभाल लिया। परंतु मैंने देवी आर्टेमिस की बात नहीं मानी।”

“क्यों? मैं जानना चाहती हूं कि तुमने देवी आर्टेमिस की बात क्यों नहीं मानी?” सनूरा ने बीच में ही मेलाइट को टोकते हुए कहा।

“क्यों कि देवी आर्टेमिस कुंवारी थीं इसलिये उनका रथ खींचने वाली सभी हिरनिओं को आजीवन कौमार्य व्रत धारण करना पड़ता और मुझे ये मंजूर नहीं था। मैं विवाह करके गृहस्थ जीवन जीना चाहती थी।” मेलाइट ने कहा- “आर्टेमिस ने मुझे इसकी इजाजत दे दी। अब मुझे तलाश थी किसी ऐसे योद्धा की, जिसके साथ रहने पर मुझे लगाव महसूस हो सके।

“आखिरकार एक दिन मुझे वह योद्धा मिल ही गया और वह योद्धा था- हरक्यूलिस, जो कि राजा यूरीस्थियस के कहे अनुसार अपने 12 कार्यों को पूरा करने निकला था। हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक मुझे पकड़कर ले जाना भी था। यूरीस्थियस नहीं चाहता था कि हरक्यूलिस अपने कार्य में सफल हो, इसलिये उसने मुझे पकड़ने का कार्य दिया था।

“उसे पता था कि जब हरक्यूलिस मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा, तो देवी आर्टेमिस उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगी। इसी कार्य के तहत हरक्यूलिस ने मुझे पकड़ लिया। मुझे हरक्यूलिस की वीरता और साहस से प्यार हो गया। मैंने बाद में हरक्यूलिस के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर हरक्यूलिस तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरे लिये ‘कोई और’ बना है।

“जब मैंने हरक्यूलिस से उस ‘कोई और’ के बारे में पूछा, तो उसने मुझे एक सुनहरी कस्तूरी दी और मुझसे कहा कि जब कभी मुझे, कोई भी पुरुष पहली बार स्पर्श करेगा, तो यह सुनहरी कस्तूरी उसकी नाभि में प्रवेश कर जायेगी। इस सुनहरी कस्तूरी की वजह से वह पुरुष एक सुनहरे मृग में भी परिवर्तित हो सकेगा और उसमें बहुत सी अदृश्य शक्तियां भी आ जायेंगी। वही पुरुष मेरा ‘कोई और’....मेरा मतलब है कि मेरा जीवन साथी बनेगा। बस तब से आज तक मैं उस ‘कोई और’ को ढूंढ रहीं हूं।” इतना कहकर मेलाइट चुप हो गई।

“अच्छा, अब मुझे समझ में आया कि तुम यहां से क्यों नहीं जाना चाहती।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा- “दरअसल तुम्हें यहां ‘कोई और’ मिल गया है, जो कि तौलिये में ‘किसी और’ के सामने घूम रहा है।”
सनूरा के यह शब्द सुन तीनों ही जोर से हंस दिये।

“अच्छा, एक बात तो बताओ मेलाइट? कि वह रोजर के शरीर से निकल रहा सुनहरा प्रकाश अपने आप बंद कैसे हो गया?” सनूरा ने अब किसी दोस्त की भांति मेलाइट से पूछा।

“जब भी मेरे मन में प्रेम की कोपलें फूटेंगी, उसके शरीर से प्रकाश प्रस्फुटित होने लगेगा, पर जैसे ही वह मुझे स्पर्श करेगा, उसके शरीर का प्रकाश स्वतः बंद हो जायेगा।” मेलाइट ने किसी जादूगर की भांति खड़े होकर अपना हाथ हवा में लहराते हुए अपने विचार प्रकट किये।

“ओ...होऽऽऽऽऽ जादू भरी प्रेम कहानी।....अद्भुत....पर बेचारा रोशनी का देवता....उसे तो अपनी ही प्रेम कहानी मालूम नहीं है।” सुर्वया ने आह भरते हुए मेलाइट को चिढ़ाया।

“तो ‘कोई और’ की कहानी तो पूरी हो गई।” सनूरा ने टॉपिक बदलते हुए, सुर्वया की ओर देखा- “अब आपकी कहानी में भी ‘कोई और’ तो नहीं।”

सनूरा ने अपने शब्दों से सुर्वया को अपनी कहानी सुनाने का इशारा किया था।

सनूरा की बात सुन सुर्वया ने गहरी साँस भरी और बोलना शुरु कर दिया- “काश...मेरी भी कहानी में कोई और होता?....मेरी कहानी में जादू तो है, पर ‘कोई और’ नहीं.... बस आकृति है...एक ऐसी आकृति, जिसकी आकृति मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं।...बात आज से लगभग 5,015 वर्ष पहले कि है जब आकृति और आर्यन वेदालय के एक कार्य के चलते, सिंहलोक से ‘चतुर्मुख सिंहराज’ को लेने आये थे।”

“एक मिनट, यह आर्यन कौन है? वेदालय क्या है? और यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ क्या था? जरा खुलकर समझाओगी क्यों कि मैं इसके बारे में नहीं जानती।” सनूरा ने बीच में ही टोकते हुए कहा।

“आज से 20,000 वर्ष पहले हि..न्दू दे..ओं ने, भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा के लिये ब्रह्मांड रक्षकों को बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये उन्हें कुछ अजेय मनुष्यों की जरुरत थी, जो कि देव-शक्तियों के द्वारा छिपकर, पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इस कार्य के तहत महागुरु नीलाभ और उनकी पत्नि माया को दे..ताओं ने 15 लोकों का निर्माण करने को कहा। इन 15 लोकों में देओं ने 30 देव शक्तियों को छिपा दिया। फिर इसके बाद एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना की गई।

“जिसमें पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ 13 बच्चों का चुनाव किया गया। इस वेदालय की पढ़ाई पूरे 10 वर्षों तक चलनी थी और इन 10 वर्षों में उन सभी बच्चों को वेदालय में ही रहकर इन सभी 30 देव शक्तियों को ढूंढना था। आकृति और आर्यन इन्हीं 13 बच्चों में से 2 थे। हमारा सिंहलोक भी इन्हीं 15 लोकों में से एक था, जहां पर 2 देव शक्तियां छिपी थीं- पहली थी ‘चतुर्मुख सिंहराज’ और दूसरी थी- ‘शुभार्जना’। दरअसल इन 2 शक्तियों की वजह से ही हमारा लोक एक प्रकार से अमर था। ‘चतुर्मुख सिंहराज’ एक 4 सिर वाली सिंह की प्रतिमा थी, जिसे राज्य के द्वार पर लगाया गया था।

“कहते थे कि यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ जिस राज्य के द्वार पर रहेगा, वहां कभी भी मृत्यु के देवता ‘यम’ प्रविष्ठ नहीं हो सकते। हमारे लोक की दूसरी शक्ति थी- शुभार्जना। शुभार्जना, एक छोटी सी डिबिया में बंद एक सिंह की गर्जना थी, जिसका 3 बार प्रयोग कर, किसी भी 3 मृत इंसान को जीवित किया जा सकता था। हां... तो अब आते हैं ‘चतुर्मुख सिंहराज’ पर, जो कि आर्यन और आकृति हमारे लोक लेने के लिये आये थे।

“यहां मेरी दोस्ती आकृति से हो गई, जिससे आकृति को मेरी कायांतरण और दिव्यदृष्टि का पता चल गया।
कायांतरण के द्वारा मैं किसी का भी चेहरा 24 घंटे के लिये बदल सकती थी और दिव्यदृष्टि के द्वारा किसी भी जीव को, जो जमीन पर हो, ढूंढ सकती थी।.....एक बार वेदालय की पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद आकृति मेरे पास आयी और उसने मुझसे अपने चेहरे पर शलाका का चेहरा लगाने को कहा। मुझे नहीं पता था कि वह इसके माध्यम से क्या करना चाहती है? इसलिये मैंने वैसा ही किया, जैसा कि वह चाहती थी।

“आकृति शलाका का चेहरा लगवा कर वहां से चली गई। 2 दिन बाद ही वह मेरे पास वापस आ गई, पर उसका चेहरा 24 घंटे के बाद भी शलाका का ही था। यह देख मुझे भी आश्चर्य हुआ कि मेरी कायांतरण शक्ति सही काम क्यों नहीं कर रही? बाद में मुझे पता चला कि आकृति ने शलाका के वेश में अमृतपान कर लिया था और अमृतपान का यह नियम था कि उसे जिस वेश में पिया जाता, वह वेश सदा के लिये पीने वाले को धारण करना पड़ता। यानि कि अब आकृति चाहकर भी, अपना चेहरा नहीं पा सकती थी। आकृति ने गुस्सा होकर मुझे एक जादुई दर्पण में बंद कर दिया और उस दर्पण को एक अंधेरे कमरे में रख दिया।

“मैं बिना प्रकाश के अपनी दिव्यदृष्टि का प्रयोग नहीं कर सकती थी। अब मैं सदा के लिये अंधेरे कमरे में, उस जादुई दर्पण में बंद हो गई। लगभग 10 महीने के बाद आकृति ने मुझे अंधेरे कमरे से निकाला और मुझे उसके पुत्र को ढूंढने के लिये कहा।

"उसने कहा कि अगर मैं उसके पुत्र को ढूंढ दूंगी, तो वह मुझे कैद से आजाद कर देगी। मैंने आकृति के पुत्र को ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर वह मुझे नहीं मिला...शायद आर्यन ने उसे किसी ऐसी जगह रखा था, जहां मेरी दिव्यदृष्टि नहीं पहुंच पा रही थी। फिर अचानक एक दिन आर्यन और शलाका दोनों ही मेरी दिव्यदृष्टि से ओझल हो गये। यह सुनकर आकृति और ज्यादा गुस्सा
गई और उसने मुझे फिर कभी भी अपनी कैद से नहीं छोड़ा।” यह कहकर सुर्वया शांत हो गई।

“हम्...तुम्हारी कहानी तो काफी दर्द भरी थी।” मेलाइट ने कहा- “पर तुमने यह नहीं बताया कि तुम सिंहलोक में कैसे पहुंची? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन था? और तुम्हारे बाद सिंहलोक का क्या हुआ?”

“वह कहानी बहुत लंबी है...उसे मैं फिर कभी सुनाऊंगी।” सुर्वया ने मुस्कुराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा।

सुर्वया के चेहरे के भाव देख मेलाइट और सनूरा ने सुर्वया को और नहीं कुरेदा, पर वो समझ गये कि सुर्वया की जिंदगी का अभी एक और पन्ना खुलना बाकी है, जो कि समय आने पर ही खुलेगा।

“अब तुम अपने बारे में बताओ सनूरा।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा।

लेकिन इससे पहले कि सनूरा अपने बारे में कुछ बोल पाती, कि तभी महल में, किसी बड़े से ढोल की आवाज गूंजने लगी, वह आवाज सुन सनूरा डर गई।

“यह तो खतरे का सिग्नल है, क्या सीनोर राज्य पर कोई खतरा मंडरा रहा है?” सनूरा ने कहा।

“रुको मैं देखती हूं।” यह कहकर सुर्वया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब सुर्वया के माथे पर एक लाल रंग का प्रकाशपुंज दिखाई देने लगा।

“नहीं...नहीं...मुझे धुंधला दिखाई दे रहा है...शायद खतरा अभी भी पानी के अंदर है...रुको...मुझे समुद्र की लहरों पर एक धुंधली सी विशाल आकृति दिख रही है...क्या...क्या यह कोई राक्षस है या फिर कोई बड़ा सा अंतरिक्ष यान?” सुर्वया ने इतना देखकर अपनी आँखें खोल दीं- “जब तक वह समुद्र की लहरों पर है, तब तक मैं उसे साफ नहीं देख सकती।”

सुर्वया के शब्द सुन सनूरा तेजी से बाहर की ओर भागी।

सनूरा को बाहर जाते देख मेलाइट और सुर्वया ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर वह भी सनूरा के पीछे भाग लीं।

आखिर वह सब अब एक अच्छी दोस्त थीं।


जारी रहेगा______✍️
Nice update....
 

Luckyloda

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कस्तूरी मृग:
(17.01.02, गुरुवार, 09:30, सीनोर महल, अराका द्वीप)

सनूरा ने सुर्वया और मेलाइट को एक कमरे में ठहरा दिया था और रोजर को दूसरा कमरा दिया था।

लुफासा के कहे अनुसार सनूरा ने मेलाइट को वापस जाने का भी आग्रह किया था, पर मेलाइट ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था।

इस समय मेलाइट और सुर्वया अपने कमरे में बैठीं थीं कि तभी सनूरा की आवाज ने दोनों का ध्यान भंग किया- “क्या हम अंदर आ सकते हैं?”

“हां-हां आइये ना।” मेलाइट ने विनम्र लहजे में कहा- “आपका ही महल है, आपको पूछने की आवश्यकता नहीं है।”

“जब एक कमरे में 2 राजकुमारियां बैठीं हों, तो सेनापति को हमेशा पूछ कर ही कमरे में जाना चाहिये।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा।

सनूरा की बात सुन मेलाइट और सुर्वया मुस्कुरा दीं। सनूरा अब उनके सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।

“आप दोनों को यहां रहते हुए आज 2 दिन बीत गये हैं, उम्मीद है कि अब आप दोनों थोड़ा सहज महसूस करने लगी होंगी, इसलिये मैंने सोचा कि आप लोगों से आपकी पूरी कहानी सुन लूं, क्यों कि उस दिन लुफासा के जाने के बाद, हमें एक दूसरे से कुछ ज्यादा पूछने का समय नहीं मिला। ऊपर से आप लोग, उस दिन थोड़ा असहज भी दिख रहीं थीं, इसलिये मैंने 2 दिन तक आप लोगों से बात भी नहीं की।” सनूरा ने दोनों को देखते हुए कहा।

“बिल्कुल सही कहा आपने।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा- “उस दिन हम लोग यही नहीं समझ पा रहे थे कि आप लोग सही हैं या गलत? इसलिये आपसे बहुत सोच-समझकर बात कर रहे थे। पर आज
हम आपके सामने बेहतर महसूस कर रहे हैं। इसलिये अपनी कहानी बताने को तैयार हैं।”

“एक मिनट-एक मिनट।” मेलाइट ने बीच में ही सुर्वया को टोकते हुए कहा- “क्या हमें रोजर को भी इस समय यहां बुला लेना चाहिये? उसे भी तो जानना होगा, हम सबके बारे में।”

मेलाइट की बात सुन सुर्वया मुस्कुराते हुए बोली- “तुम्हें रोजर की बहुत याद आ रही है ....सबकुछ ठीक तो है ना?”

सुर्वया के शब्दों में एक अर्थ छिपा था, जिसे मेलाइट तो समझ गई, पर सनूरा को कुछ समझ नहीं आया।

“क्या मैं जान सकती हूं कि आप दोनों रोजर की बात सुनकर इतना मुस्कुरा क्यों रहीं हैं?” सनूरा ने आश्चर्य से दोनों को देखते हुए कहा।

“एक मिनट रुकिये सनूरा, बस आपको अभी पता चल जायेगा ....जरा दरवाजे की ओर देखिये।” सुर्वया ने मुस्कुराते हुए सनूरा को दरवाजे की ओर देखने का इशारा किया।

सनूरा ने कमरे के दरवाजे की ओर देखा, पर उसे कुछ नजर नहीं आया।

तभी कमरे के दरवाजे से रोजर भागता हुआ कमरे में प्रविष्ठ हुआ।
उसकी साँसें बहुत तेज चल रहीं थीं।

रोजर की कमर पर इस समय सिर्फ एक तौलिया लिपटा हुआ था, जिसने उसके निचले बदन को ढंक रखा था।

रोजर की नाभि से इस समय एक तीव्र सुनहरा प्रकाश निकल रहा था, उस प्रकाश से बहुत अच्छी खुशबू भी आ रही थी।

“कोई बतायेगा कि यह मेरे साथ क्या हो रहा है?” रोजर ने घबराए अंदाज में सबको देखते हुए कहा- “यह मेरे शरीर से कैसा प्रकाश निकल रहा है? कहीं यह आप दोनों की कोई शरारत तो नहीं?”

सनूरा भी आश्चर्य से रोजर के शरीर से निकलते प्रकाश को देख रही थी, उसे भी इस प्रकाश का स्रोत समझ में नहीं आया, पर सुर्वया के हल्के से इशारे से सनूरा चुपचाप बैठी रही।

रोजर की बात सुन मेलाइट अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और चलती हुई रोजर के पास जा पहुंची।

“क्या तुम्हें लगता है रोजी...आई मीन रोजर...कि यह हम दोनों की कोई शरारत है?” मेलाइट ने भोलेपन से जवाब दिया।

“हां , लगता है....2 दिन से आप दोनों मुझे अलग-अलग तरह से परेशान कर रही हो।” रोजर ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

“हम दोनों?....नहीं-नहीं रोजर.... इसमें सुर्वया का कोई हाथ नहीं। वह तो सिर्फ मेरे साथ थी....तुम्हें तो परेशान तो मैं कर रही थी....आई मीन...हम तुम्हें परेशान क्यों करेंगे। दरअसल हमें तो पता भी नहीं कि
यह रोशनी कहां से आ रही है? पर ....पर इसकी खुशबू मुझे मदहोश कर रही है रोजर....कहां से लाते हो तुम इतनी खुशबू?” यह कहकर मेलाइट बेहोश होने का नाटक कर लहरा कर गिरने लगी।

मेलाइट को गिरते देख रोजर ने बीच में ही उसे थाम लिया। अब रोजर मेलाइट की बंद आँखों को निहार रहा था।

तभी मेलाइट ने अपनी आँखें खोल दीं और अपने चेहरे पर बनावटी गुस्सा लाते हुए कहा- “ये तुमने मुझे अपनी बाहों में क्यों भर रखा है? क्या तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? और...और ये तुम बिना कपड़ों के हमारे कमरे में क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें पता नहीं कि इस कमरे में 3 लड़कियां हैं? अगर तुम्हारा यह तौलिया अपने स्थान से खिसक गया तो। अगर तुम ऐसी हरकत करोगे, तो मैं देवी आर्टेमिस से तुम्हारी शिकायत करुंगी।”

मेलाइट की बात सुन रोजर ने घबराकर मेलाइट को छोड़ दिया।

अब रोजर की नाभि से सुनहरी रोशनी निकलना बंद हो चुकी थी, यह देख रोजर ने एक नजर सब पर मारी और फिर वहां से जान छुड़ाकर
ऐसे भागा, जैसे कि उसके पीछे भूत पड़े हों।

रोजर के जाने के बाद, मेलाइट अपने स्थान पर आकर पुनः बैठ गई, पर इस समय मेलाइट, सुर्वया और सनूरा तीनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान थी।

“हां, तो हम कहां थे? आई मीन क्या बात कर रहे थे?” मेलाइट ने सनूरा से पूछा।

“हां...हम एक-दूसरे से अपनी कहानियां सुनाने की बात कर रहे थे।” सनूरा ने कहा- “पर अब सबसे पहले मैं मेलाइट की कहानी जानना चाहती हूं, क्यों कि ये जो अभी कुछ देर पहले हुआ, ये मुझे काफी रोचक
लगा।”

सनूरा की बात सुन मेलाइट के चेहरे पर फैली मुस्कान और गहरी हो गई और वह बोल उठी- “हम 5 बहनें दक्षिण ग्रीस के, सीरीनिया नामक जंगल के बीच की, एक सुंदर सी झील में रहते थे। हम सभी स्वच्छ जल में रहने वाली अप्सराएं थीं... और आप तो जानती ही हैं कि पुराने समय में अप्सराओं का जीवन कितना विचित्र होता था, अप्सराओं की सुंदरता ही उनके लिये अभिशाप बन जाती थी। जब भी किसी देवता या शक्तिशाली मनुष्य की निगाह सुंदर अप्सराओं पर पड़ती थी, तो वह जबरन उसे उठा ले जाते थे।

“इस प्रकार की किसी भी घटना से बचने के लिये अप्सराओं के देवता ने, हर अप्सरा को किसी जीव में बदल जाने की शक्ति दी, जिससे वह अपने घर से बाहर निकलते समय उस जीव में परिवर्तित हो जाती थीं। कुछ ऐसी ही शक्ति के तहत हम सभी बहनें भी सुनहरी हिरनी का रुप धारण कर लेते थे। एक दिन जब हम सीरीनिया के जंगल में सुनहरी हिरनी बनकर घूम रहे थे, तो शिकार की देवी आर्टेमिस ने हमें देख लिया, पर वह हमारी सुंदरता से मुग्ध हो गईं, इसलिये उन्होंने हमें मारा नहीं। मेरी 4 बहनों ने अपनी इच्छा से देवी आर्टेमिस का रथ खींचने का कार्यभार संभाल लिया। परंतु मैंने देवी आर्टेमिस की बात नहीं मानी।”

“क्यों? मैं जानना चाहती हूं कि तुमने देवी आर्टेमिस की बात क्यों नहीं मानी?” सनूरा ने बीच में ही मेलाइट को टोकते हुए कहा।

“क्यों कि देवी आर्टेमिस कुंवारी थीं इसलिये उनका रथ खींचने वाली सभी हिरनिओं को आजीवन कौमार्य व्रत धारण करना पड़ता और मुझे ये मंजूर नहीं था। मैं विवाह करके गृहस्थ जीवन जीना चाहती थी।” मेलाइट ने कहा- “आर्टेमिस ने मुझे इसकी इजाजत दे दी। अब मुझे तलाश थी किसी ऐसे योद्धा की, जिसके साथ रहने पर मुझे लगाव महसूस हो सके।

“आखिरकार एक दिन मुझे वह योद्धा मिल ही गया और वह योद्धा था- हरक्यूलिस, जो कि राजा यूरीस्थियस के कहे अनुसार अपने 12 कार्यों को पूरा करने निकला था। हरक्यूलिस को दिये गये 12 कार्यों में से एक मुझे पकड़कर ले जाना भी था। यूरीस्थियस नहीं चाहता था कि हरक्यूलिस अपने कार्य में सफल हो, इसलिये उसने मुझे पकड़ने का कार्य दिया था।

“उसे पता था कि जब हरक्यूलिस मुझे पकड़ने की कोशिश करेगा, तो देवी आर्टेमिस उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगी। इसी कार्य के तहत हरक्यूलिस ने मुझे पकड़ लिया। मुझे हरक्यूलिस की वीरता और साहस से प्यार हो गया। मैंने बाद में हरक्यूलिस के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर हरक्यूलिस तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरे लिये ‘कोई और’ बना है।

“जब मैंने हरक्यूलिस से उस ‘कोई और’ के बारे में पूछा, तो उसने मुझे एक सुनहरी कस्तूरी दी और मुझसे कहा कि जब कभी मुझे, कोई भी पुरुष पहली बार स्पर्श करेगा, तो यह सुनहरी कस्तूरी उसकी नाभि में प्रवेश कर जायेगी। इस सुनहरी कस्तूरी की वजह से वह पुरुष एक सुनहरे मृग में भी परिवर्तित हो सकेगा और उसमें बहुत सी अदृश्य शक्तियां भी आ जायेंगी। वही पुरुष मेरा ‘कोई और’....मेरा मतलब है कि मेरा जीवन साथी बनेगा। बस तब से आज तक मैं उस ‘कोई और’ को ढूंढ रहीं हूं।” इतना कहकर मेलाइट चुप हो गई।

“अच्छा, अब मुझे समझ में आया कि तुम यहां से क्यों नहीं जाना चाहती।” सनूरा ने मुस्कुराते हुए कहा- “दरअसल तुम्हें यहां ‘कोई और’ मिल गया है, जो कि तौलिये में ‘किसी और’ के सामने घूम रहा है।”
सनूरा के यह शब्द सुन तीनों ही जोर से हंस दिये।

“अच्छा, एक बात तो बताओ मेलाइट? कि वह रोजर के शरीर से निकल रहा सुनहरा प्रकाश अपने आप बंद कैसे हो गया?” सनूरा ने अब किसी दोस्त की भांति मेलाइट से पूछा।

“जब भी मेरे मन में प्रेम की कोपलें फूटेंगी, उसके शरीर से प्रकाश प्रस्फुटित होने लगेगा, पर जैसे ही वह मुझे स्पर्श करेगा, उसके शरीर का प्रकाश स्वतः बंद हो जायेगा।” मेलाइट ने किसी जादूगर की भांति खड़े होकर अपना हाथ हवा में लहराते हुए अपने विचार प्रकट किये।

“ओ...होऽऽऽऽऽ जादू भरी प्रेम कहानी।....अद्भुत....पर बेचारा रोशनी का देवता....उसे तो अपनी ही प्रेम कहानी मालूम नहीं है।” सुर्वया ने आह भरते हुए मेलाइट को चिढ़ाया।

“तो ‘कोई और’ की कहानी तो पूरी हो गई।” सनूरा ने टॉपिक बदलते हुए, सुर्वया की ओर देखा- “अब आपकी कहानी में भी ‘कोई और’ तो नहीं।”

सनूरा ने अपने शब्दों से सुर्वया को अपनी कहानी सुनाने का इशारा किया था।

सनूरा की बात सुन सुर्वया ने गहरी साँस भरी और बोलना शुरु कर दिया- “काश...मेरी भी कहानी में कोई और होता?....मेरी कहानी में जादू तो है, पर ‘कोई और’ नहीं.... बस आकृति है...एक ऐसी आकृति, जिसकी आकृति मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं।...बात आज से लगभग 5,015 वर्ष पहले कि है जब आकृति और आर्यन वेदालय के एक कार्य के चलते, सिंहलोक से ‘चतुर्मुख सिंहराज’ को लेने आये थे।”

“एक मिनट, यह आर्यन कौन है? वेदालय क्या है? और यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ क्या था? जरा खुलकर समझाओगी क्यों कि मैं इसके बारे में नहीं जानती।” सनूरा ने बीच में ही टोकते हुए कहा।

“आज से 20,000 वर्ष पहले हि..न्दू दे..ओं ने, भविष्य में पृथ्वी की सुरक्षा के लिये ब्रह्मांड रक्षकों को बनाने का निर्णय लिया। इसके लिये उन्हें कुछ अजेय मनुष्यों की जरुरत थी, जो कि देव-शक्तियों के द्वारा छिपकर, पृथ्वी की रक्षा कर सकें। इस कार्य के तहत महागुरु नीलाभ और उनकी पत्नि माया को दे..ताओं ने 15 लोकों का निर्माण करने को कहा। इन 15 लोकों में देओं ने 30 देव शक्तियों को छिपा दिया। फिर इसके बाद एक रहस्यमयी विद्यालय ‘वेदालय’ की रचना की गई।

“जिसमें पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ 13 बच्चों का चुनाव किया गया। इस वेदालय की पढ़ाई पूरे 10 वर्षों तक चलनी थी और इन 10 वर्षों में उन सभी बच्चों को वेदालय में ही रहकर इन सभी 30 देव शक्तियों को ढूंढना था। आकृति और आर्यन इन्हीं 13 बच्चों में से 2 थे। हमारा सिंहलोक भी इन्हीं 15 लोकों में से एक था, जहां पर 2 देव शक्तियां छिपी थीं- पहली थी ‘चतुर्मुख सिंहराज’ और दूसरी थी- ‘शुभार्जना’। दरअसल इन 2 शक्तियों की वजह से ही हमारा लोक एक प्रकार से अमर था। ‘चतुर्मुख सिंहराज’ एक 4 सिर वाली सिंह की प्रतिमा थी, जिसे राज्य के द्वार पर लगाया गया था।

“कहते थे कि यह ‘चतुर्मुख सिंहराज’ जिस राज्य के द्वार पर रहेगा, वहां कभी भी मृत्यु के देवता ‘यम’ प्रविष्ठ नहीं हो सकते। हमारे लोक की दूसरी शक्ति थी- शुभार्जना। शुभार्जना, एक छोटी सी डिबिया में बंद एक सिंह की गर्जना थी, जिसका 3 बार प्रयोग कर, किसी भी 3 मृत इंसान को जीवित किया जा सकता था। हां... तो अब आते हैं ‘चतुर्मुख सिंहराज’ पर, जो कि आर्यन और आकृति हमारे लोक लेने के लिये आये थे।

“यहां मेरी दोस्ती आकृति से हो गई, जिससे आकृति को मेरी कायांतरण और दिव्यदृष्टि का पता चल गया।
कायांतरण के द्वारा मैं किसी का भी चेहरा 24 घंटे के लिये बदल सकती थी और दिव्यदृष्टि के द्वारा किसी भी जीव को, जो जमीन पर हो, ढूंढ सकती थी।.....एक बार वेदालय की पढ़ाई खत्म हो जाने के बाद आकृति मेरे पास आयी और उसने मुझसे अपने चेहरे पर शलाका का चेहरा लगाने को कहा। मुझे नहीं पता था कि वह इसके माध्यम से क्या करना चाहती है? इसलिये मैंने वैसा ही किया, जैसा कि वह चाहती थी।

“आकृति शलाका का चेहरा लगवा कर वहां से चली गई। 2 दिन बाद ही वह मेरे पास वापस आ गई, पर उसका चेहरा 24 घंटे के बाद भी शलाका का ही था। यह देख मुझे भी आश्चर्य हुआ कि मेरी कायांतरण शक्ति सही काम क्यों नहीं कर रही? बाद में मुझे पता चला कि आकृति ने शलाका के वेश में अमृतपान कर लिया था और अमृतपान का यह नियम था कि उसे जिस वेश में पिया जाता, वह वेश सदा के लिये पीने वाले को धारण करना पड़ता। यानि कि अब आकृति चाहकर भी, अपना चेहरा नहीं पा सकती थी। आकृति ने गुस्सा होकर मुझे एक जादुई दर्पण में बंद कर दिया और उस दर्पण को एक अंधेरे कमरे में रख दिया।

“मैं बिना प्रकाश के अपनी दिव्यदृष्टि का प्रयोग नहीं कर सकती थी। अब मैं सदा के लिये अंधेरे कमरे में, उस जादुई दर्पण में बंद हो गई। लगभग 10 महीने के बाद आकृति ने मुझे अंधेरे कमरे से निकाला और मुझे उसके पुत्र को ढूंढने के लिये कहा।

"उसने कहा कि अगर मैं उसके पुत्र को ढूंढ दूंगी, तो वह मुझे कैद से आजाद कर देगी। मैंने आकृति के पुत्र को ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर वह मुझे नहीं मिला...शायद आर्यन ने उसे किसी ऐसी जगह रखा था, जहां मेरी दिव्यदृष्टि नहीं पहुंच पा रही थी। फिर अचानक एक दिन आर्यन और शलाका दोनों ही मेरी दिव्यदृष्टि से ओझल हो गये। यह सुनकर आकृति और ज्यादा गुस्सा
गई और उसने मुझे फिर कभी भी अपनी कैद से नहीं छोड़ा।” यह कहकर सुर्वया शांत हो गई।

“हम्...तुम्हारी कहानी तो काफी दर्द भरी थी।” मेलाइट ने कहा- “पर तुमने यह नहीं बताया कि तुम सिंहलोक में कैसे पहुंची? तुम्हारे परिवार में कौन-कौन था? और तुम्हारे बाद सिंहलोक का क्या हुआ?”

“वह कहानी बहुत लंबी है...उसे मैं फिर कभी सुनाऊंगी।” सुर्वया ने मुस्कुराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा।

सुर्वया के चेहरे के भाव देख मेलाइट और सनूरा ने सुर्वया को और नहीं कुरेदा, पर वो समझ गये कि सुर्वया की जिंदगी का अभी एक और पन्ना खुलना बाकी है, जो कि समय आने पर ही खुलेगा।

“अब तुम अपने बारे में बताओ सनूरा।” सुर्वया ने सनूरा की ओर देखते हुए कहा।

लेकिन इससे पहले कि सनूरा अपने बारे में कुछ बोल पाती, कि तभी महल में, किसी बड़े से ढोल की आवाज गूंजने लगी, वह आवाज सुन सनूरा डर गई।

“यह तो खतरे का सिग्नल है, क्या सीनोर राज्य पर कोई खतरा मंडरा रहा है?” सनूरा ने कहा।

“रुको मैं देखती हूं।” यह कहकर सुर्वया ने अपनी आँखें बंद कर लीं। अब सुर्वया के माथे पर एक लाल रंग का प्रकाशपुंज दिखाई देने लगा।

“नहीं...नहीं...मुझे धुंधला दिखाई दे रहा है...शायद खतरा अभी भी पानी के अंदर है...रुको...मुझे समुद्र की लहरों पर एक धुंधली सी विशाल आकृति दिख रही है...क्या...क्या यह कोई राक्षस है या फिर कोई बड़ा सा अंतरिक्ष यान?” सुर्वया ने इतना देखकर अपनी आँखें खोल दीं- “जब तक वह समुद्र की लहरों पर है, तब तक मैं उसे साफ नहीं देख सकती।”

सुर्वया के शब्द सुन सनूरा तेजी से बाहर की ओर भागी।

सनूरा को बाहर जाते देख मेलाइट और सुर्वया ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर वह भी सनूरा के पीछे भाग लीं।

आखिर वह सब अब एक अच्छी दोस्त थीं।


जारी रहेगा______✍️
समझ आया आकृति के चेहरा नहीं बदल पाने के कारण.... इसलिए आर्यन भी जल्दी नहीं पहचान पाया उसको....


बहुत ही सुंदर अपडेट
 
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