• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
29,245
67,539
304
Bhut hi badhiya update Bhai
Suyash or shaifali ke chalte abhi to ye sabhi surkshit hai lekin aage gufao me konsi mushibat inka intezar kar rahi hai ye to aage hi pata chalega
Aur us dragon ke sir se shaifali ko apna pan kyo mahsus ho raha tha
Yahi to raaj hai bhai, dragon 🐉 se apnapan kyu laga, aur uske pighalne per usme se nikal kar kya samaya sheffali ke body me?:?:
Waise aapko bhi yakeen hai ki gufa ke ander kuch to locha milega :roflol:

Thank you very much for your wonderful review and support bhai :thanks:
 

Napster

Well-Known Member
6,271
16,454
188
#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
पुनः एक जबरदस्त लाजवाब और अप्रतिम रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

parkas

Well-Known Member
30,623
65,965
303
#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 
  • Love
Reactions: Raj_sharma

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
29,245
67,539
304
पुनः एक जबरदस्त लाजवाब और अप्रतिम रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Bohot Bohot Dhanbad bhai :thanks:
Paathak ko rachna pasan aaye, har lekhak ki yahi to kaamna hoti hai , aapko pasand aaya, hamari mehnat safal hui:D
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
29,245
67,539
304
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
Thank you very much for your wonderful support and valuable review bhai, sath bane rahiye :thanks:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
29,245
67,539
304
Top