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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Kahtro ke sath sath upay bhi mil hi jata he apni paltan ko............

Keep rocking Bro
Maje le rahe ho, abhi update to daala hi nahi :D
Chalo koi baat nahi, abhi daal deta hu:shy:
 

Raj_sharma

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Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

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Keep rocking Bro
Got it, aap update 31. Ki baat kar rahe hoge, thank you very much for your valuable review and support bhai, :thanks:

khatra to abhi baaki hai, aaj aane wale update me dikh jaayega😁
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
 

Raj_sharma

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चौदह वर्ष पूर्व कलिका - जो दिल्ली के एक मैग्जीन की संपादक थी - ने यक्षलोक के प्रहरी युवान के कठिन सवालों का जो जवाब दिया वह बिल्कुल महाभारत के एक प्रसंग ( युधिष्ठिर और यक्ष संवाद ) की तरह था ।
क्या ही कठिन सवाल थे और क्या ही अद्भुत जवाब थे ! यह सब कैसे कर लेते है आप शर्मा जी ! पहले तो दिमाग मे कठिन सवाल लाना और फिर उस सवाल का जवाब ढूंढना , यह कैसे कर लेते है आप !
यह वाकई मे अद्भुत था । इस अपडेट के लिए आप की जितनी तारीफ की जाए कम है ।

शायद सम्राट शिप से चौदह साल पहले जो शिप बरमूडा ट्राइंगल मे डुब गया था , उस शिप मे ही कलिका की बेटी सफर कर रही होगी । वह लड़की आकृति हो सकती है । वह आकृति जो शलाका का क्लोन धारण कर रखी है ।

दूसरी तरफ सामरा प्रदेश मे व्योम साहब पर कुदरत बहुत ही अधिक मेहरबान हो रखा है । वगैर मांगे छप्पर फाड़ कर कृपा बरसा रहा है । पहले अमृत की प्राप्ति हुई और अब राजकुमारी त्रिकाली का दिल उनपर धड़क गया है ।
मंदिर मे जिस तरह दोनो ने एक दूसरे को रक्षा सूत्र पहनाया , उससे लगता है यह रक्षा सूत्र नही विवाह सूत्र की प्रक्रिया थी ।


इन दो घटनाक्रम के बाद तीसरी तरफ कैस्पर का दिल भी मैग्ना पर मचल उठा है और खास यह है कि यह धड़कन हजारों वर्ष बाद हुआ है । लेकिन सवाल यह है कि मैग्ना है कहां !
कहीं शैफाली ही मैग्ना तो नही ! शैफाली कहीं मैग्ना का पुनर्जन्म तो नही !

कुकुरमुत्ता को छाते की तरह इस्तेमाल करते हुए सुयश साहब और उनकी टीम का तेजाबी बारिश से खुद को रक्षा करना एक और खुबसूरत अपडेट था । पांच लोग बचे हुए हैं और एलेक्स को मिला दिया जाए तो छ लोग । तौफिक साहब की जान जाते जाते बची , लेकिन लगता नही है यह साहब अधिक दिन तक जीवित रह पायेंगे ।
कुछ मिलाकर पांच प्राणी ही सम्राट शिप के जीवित बचेंगे , बशर्ते राइटर साहब ने कुछ खुराफाती न सोच रखा हो ।
ये मिश्रित पांडव जीवित रहने चाहिए पंडित जी ! :D

सभी अपडेट बेहद खुबसूरत थे ।
रोमांच से भरपूर ।
एक अलग तरह की कहानी , एक अद्भुत कहानी ।
और आउटस्टैंडिंग राइटिंग ।

Ye ulka pind ka kya locha hai guru ji??? Waise fir se ek baar gajab ka Update diya hai :bow:

Kamaal ka update tha brother.
Taufiq ko shayad kuchh kuchh samajh jana chahiye ki Jenith ko uss par doubt ho gaya hai aise usse baat na karne ka koi dusra reason nahi hai.

Isse inkar nahi kiya ja sakta hai ki Shefali sabhi chizo ko bahut hi carefully observe karti hai.

Out of station tha bhai kaam ki wajah se !

सुयश और शलाका का 5000 वर्ष बाद मिलन
शेफाली की शरारती मांग
अच्छा और चटपटा अपडेट

#123
ये कैस्पर मायावन का कोई प्रहरी है क्या? कई पाठक मित्रों ने अपने मत दिए हैं कि शेफाली मैग्ना हो सकती है। ज़रूर हो सकती है। राज यूनिवर्स में कुछ भी अजीबोगरीब बात संभव है। वैसे भी पेंगुईन ने शेफाली को देख कर मैग्ना लिखा था बर्फ़ पर। (वैसे बहुत पढ़ा लिखा था वो पेंगुईन -- अपनी “स्त्री” जैसा)

कैस्पर का यह कथन, “और वैसे भी मेरा कृत्रिम स्वरुप तिलिस्मा के हर प्रकार के निर्माण में सक्षम है” -- क्या तिलिस्मा एक adaptive simulation है? क्योंकि मानवों से यह अपेक्षित था कि वो तिलिस्मा को तोड़ें। अगर यह adaptive हो जाएगा, तो आने वाली हर बाधा पहले वाली बाधा से और कठिन हो जायेगी। वैसे सही में - अब ये नक्षत्रलोक क्या बला है?

क्रिस्टी का कहना सही है - हर स्टेज की बाधा का समाधान वहीं उसी स्टेज में उपलब्ध है।

#124
“यह जंगल बनाने वाले ने इतना बड़ा प्रोजेक्ट बनाया...अरे एक शॉपिंग मॉल भी खोल देता, तो उसका क्या जाता?” -- हा हा हा हा हा! 😂 😂 😂 👏
सही है! मरना है, तो कम से कम स्टाइल से मरें!

शेफाली के पास उस ड्रेस के रूप में एक और शक्ति आ गई है। इतना तो तय लग रहा है कि शेफ़ाली तिलिस्मा के अंत तक जाएगी। जेनिथ और सुयश भी। क्रिस्टी अपनी तार्किकता का इस्तेमाल कर के इसका पार पा सकती है। तौफ़ीक़ का कुछ कह नहीं सकते। हाँलाकि काम का आदमी है वो।

“वेगू डार्लिंग” -- हा हा हा हा हा! 😂😂👍
अच्छा है -- कहानी में अगर हास्य न हो, तो बहुत सीरियस बन जाती है। good job!!

वेगा के मुँह से अपने लिए ‘बड़ी बहन’ सम्बोधन सुन कर धरा का हृदय परिवर्तन हो गया। उधर वीनस सीनोर की राजकुमारी निकली।
बेचारा वेगा हर तरफ़ से दुश्मन शक्तियों से घिरा हुआ था। लेकिन प्रेम की भाषा सुन कर ‘अहिंसक’ अंगुलिमाल की ही तरह सभी का हृदय परिवर्तन हो गया।

ये लुफ़ासा बहुत लम्पट है। बहन की ख़ुशी बर्दाश्त नहीं हो रही है उससे!

#125
उल्कापिण्ड -- ये नई वाली बला क्या है? ये प्राकृतिक रूप से आया है या किसी ने भेजा है? अगर दूसरा ऑप्शन सही है, तो किसने भेजा है?
वैसे ऐसा उल्कापिण्ड जिसके पृथ्वी के वातावरण में आने से भूकंप आने लगे, जब वो पृथ्वी से टकराएगा तो लोग ऐसे सामान्य नहीं रह सकते। उस टक्कर का भारी परिणाम होता है। अतः, यह उल्कापिण्ड नहीं -- कोई यान होगा।

“बच्चों ! आपको जहां जाना हो जाओ, जिस चीज से खेलना हो खेलो, जो तोड़ने का मन करे तोड़ दो, सिवाय अपने मन के। किसी चीज पर कोई पाबंदी नहीं है। आप जिस चीज को तोड़ोगे, वह अपने आप पुनः जुड़ जायेगी। इसलिये कोई डरने की जरुरत नहीं है।” : बच्चों पर हम नाहक ही ढेरों पाबंदियाँ लगा देते हैं। अक्सर ये पाबंदियाँ हम अपनी सुविधा के लिए लगाते हैं (जैसे, शोर मत मचाओ --- जिससे हम आराम से सो सकें), उनको कुछ सिखाने या उनकी कल्पनाशक्ति बढ़ाने के लिए नहीं! भारतीय बच्चे इसीलिए critical and independent thinking, problem solving, सृजनात्मकता, खेल कूद, इत्यादि में फ़िसड्डी रहते हैं।

हाँ, जहाँ रटने और रट कर उगलने की आवश्यकता आती है, वो वहाँ अपनी दक्षता दिखा देते हैं।

#126
चलो, अंत में किसी को जेनिथ के व्यवहार में परिवर्तन महसूस हो ही गया। और अच्छी बात है कि उसने सभी को नक्षत्रा के बारे में बता भी दिया। कम से कम सभी को आश्वासन रहेगा कि एक और चमत्कारिक शक्तिओं की मालकिन उनके संग है।
“ले लो मजा... दबालो और बटन को....” -- हा हा हा हा! 😂

वो रहस्यमई वस्तु, हैरी पॉटर के क्विडिच खेलों वाली “स्निच” के जैसी है।
वैसे ध्वनि की गति जो आपने बताई है, वो केवल हवा में होती है। पानी, या अन्य ठोस धातुओं में उसकी गति भिन्न और तेज़ होती है। उसी तरह प्रकाश की गति भी निर्वात में ही सबसे तेज़ होती है। अन्य माध्यमों में वो धीरे चलता है।

वैसे “फेंकूचंद” नाम से मुझे एक महामानव की याद आ गई! हा हा हा हा हा!!! 😂😂😂😂😂😂😂
अपने चोपड़ा साहब उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं फेंक पाते, और उतने में ही उनको ओलिंपिक के स्वर्ण/रजत पदक मिल जाते हैं!

#127
विष्णु भगवान के छः हथियारों का बढ़िया वर्णन किया है और वो भी उनके नामों के साथ! वाह भाई! 👏👏👏👏👍
बहुत ही बढ़िया। पाठकों का सामान्य ज्ञान बढ़ेगा यह अंक पढ़ कर!! वैसे सांकेतिक रूप से देखें, तो -- सुदर्शन चक्र, समय और धर्म का चक्र है, जो अधर्म को नष्ट करता है; कौमोदकी गदा अज्ञानता को नष्ट करने वाली शक्ति है; शारंग धनुष लक्ष्य साधने की शक्ति है; नंदक खड्ग ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है; और पाञ्चजन्य शंख सृजन और शुभ स्थितियों की ध्वनि! अंत में पद्म - वो तो पवित्रता, करुणा, सौंदर्य, शांति और समृद्धि का प्रतीक है।

वैसे त्रिषाल था कौन? उसको ध्वनि शक्ति क्यों चाहिए थी?

#128
“मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।” -- यह दण्ड कहीं मैग्ना को तो नहीं दे रहा था कोई?

“पर ये तो देवी नहीं आंटी निकलीं।” -- हा हा हा हा हा! 😂😂

अंत में आकृति और शलाका आमने सामने आ ही गईं। वैसे आकृति भी तो मजबूरी ही में शलाका वाला स्वाँग कर रही है, नहीं तो उसकी जान खुद की खतरे में आ जानी है।

#129
जब 'वेदांत रहस्यम' खुद सुयश ने लिखी है, तो उसको पढ़ने से क्यों रोक रही है शलाका? आइंस्टीन से ज्यादा जानती है क्या वो?
ये औरतें भी न -- मान न मान, मैं तेरी अम्मा वाले रोल में आ जाती है, न जाने क्यों! हो सकता है कि उस किताब को पढ़ कर उसकी स्मरण शक्ति / स्मृति वापस आ जाए!

भाई भाई! ये दोनों प्रेमी नहीं, बल्कि पति पत्नी निकले! पिज़्ज़ा नहीं, लड्डू, बर्फ़ी, इमरती, रसगुल्ले, मालपुए… ये सब मँगाने चाहिए थे! अब भाई क्रिस्टी वाला भी दिलवा दो उसको! 👏👏😂



Raj_sharma भाई - यह कहानी कालजई है! बहुत ही बढ़िया।
यह फ़ोरम इतनी उत्कृष्ट कृति के योग्य नहीं। अति उत्तम!
अति उत्तम! 👏♥️

Superb update

Jabardast Romanchak Update 👌

Nice update bro

Raj_sharma bhai next update kab tak aayega?

nice update

ये कहानी (उपन्यास) ख़तम होने वाली है क्या?
मुझको तो ऐसा लगता नहीं... लेकिन अगर हाँ, तो अपनी पसंद की ही विषय-वस्तु पर लिखो।
यहाँ के चम्पक चूतिया पाठकों के भरोसे न रहो... उनको बस एक लाइन लिख के दे दो कि 'मैंने कैसे अपनी म** को च**', वो उतने में ही तर हो जाएँगे।


Wonderful update brother.
Akriti ka bhala ho kyunki ab Artemis hath dhokar uske pichhe padne wali hai.
Ek kahawat hai ab jitna khatra se bachne ka prayash karoge khatra utna hi aapke paas aa jati hai.

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
ये आकृती किस उद्देश से सुनहरी हिरणी को पकडने आयी थी और अपने उद्देश में सफल भी हो गई लेकीन देवी आर्टेमिस की प्रिय सुनहरी हिरणी को आकृती उडा ले गयी तो ऑंखों में अंगारे लिये वो ओलंपस पर्वत पर जा कर क्या करेगी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

मैने तिलिस्म पर और भी कई स्टोरी पढ़ हैं ,सभी एक से बढ़कर एक हैं तिलिस्म के जादुई संसार की एक विस्तृत संरचना करना असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन है।
राज भाई आप इस स्टोरी को पोकेट एफएम पर शेयर कर सकते हैं।
इस स्टोरी में कोई भी अश्लील शीन नहीं है ( मुझे ध्यान नहीं अगर कोई हो तो)
रोमांचक अपडेट

Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

Excellent update

Bahut hi adventures update bhai

Awesome update👌👌

Bhut hi badhiya update Bhai
To suyash and company ne is jwalamukhi vali samasya ko bhi par kar liya
Ab dhekte hai aage konsi mushibat inka intezar kar rahi hai

romanchak update.. suyash ki baat sahi hai ki wo punarjanm me vishwas nahi karta.... jab koi aise situation me jayega tab hi vishwas karta hai jaise ye sab log .
taufik thoda naraj lag raha hai kyunki uske paas koi power nahi hai ..shefali ne hausla badhaya ye achchi baat hai ,warna aise musibat ki jagah par aatmvishwas khona sahi baat nahi hai taufik ke liye ...

jwalamukhi se bachne ka koi rasta na nakshatra ke paas hai na kisi ko koi idea par waqt par shefali ne apne suit ki power ka sahi istemal kiya ..inke saath aisa hua ki aasman se gire aur khajur me atke 😅..
par jenith ne suyash ko shalaka ki baato ki yaad dila di jisse suyash me hausla aa gaya ..aur aakhirkar sab safely kuwe se bahar aa gaye ..

Nice update....

Radhe Radhe guruji,, break pe chala gya tha uske baad is id ka password issue ho gya tha so sign in nahi tha itne time se ab wapas aaya hu to dubara se updates ki demand rakhunga...waise stock to abhi full hai kuch time ke liye so read karta hu

Aisa konsa Raj samne aane wala hai .

Toh next badha ko par karne ke baad ye part end hojayega .



Ye apne sare writer mention kabhi acha samay mila Toh inki bhi kahaniya read karunga .

Nice update.....

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Kahtro ke sath sath upay bhi mil hi jata he apni paltan ko............

Keep rocking Bro

Update Posted friends :check:
 

Sushil@10

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#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
Superb update and nice story
 

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चैपटर-10: ज्वालामुखी

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 10:25, मायावन, अराका द्वीप)

शलाका से मिलने के बाद सभी की रात बहुत अच्छी बीती थी।

उन्हें इस बात की कुछ देर के लिये चिंता जरुर हुई थी कि वह अभी भी घर नहीं जा सकते, परंतु शलाका के उत्साहपूर्ण शब्दों को सुनकर सभी में आशा की एक नयी किरण अवश्य जगी थी।

एक नयी सुबह हो चुकी थी, सभी नित्य कर्मों से निवृत हो कर पुनः आगे की ओर बढ़ चले।

कुछ दूरी पर उन्हें एक ऊंचा सा पहाड़ नजर आ रहा था और पहाड़ की चढ़ाई शुरु हो गयी थी।

पहाड़ के रास्ते में कोई भी पेड़ नहीं लगा था और ना ही कहीं कोई छांव दिखाई दे रही थी, पर सुबह का समय होने की वजह से मौसम थोड़ा सुहाना था।

“तुमने सही कहा था शैफाली, कि यहां पर आना हम लोगों की नियति थी, जहाज का रास्ता भटकना तो एक निमित्त मात्र था।” सुयश ने शैफाली को देखते हुए कहा।

“आपको तो यहां आकर खुश होना चाहिये कैप्टेन अंकल।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “अगर आप यहां नहीं आते, तो आपकी जिंदगी एक साधारण मनुष्य की भांति समाप्त हो जाती और आपको अपने इस दुनिया में आने का उद्देश्य भी नहीं पता चल पाता।”

“सही कहा शैफाली। अगर यहां आने के पहले मुझसे कोई पूर्वजन्म की बातें करता तो मैं उसे कोरी गप्प समझ कर टाल देता, परंतु यहां आने के बाद तो जैसे जिंदगी के मायने ही बदल गये।” सुयश की आवाज में एक ठहराव था।

“मुझे लगता है कैप्टेन कि अब जल्द ही शैफाली की जिंदगी का राज भी खुलने वाला है।” क्रिस्टी ने चलते-चलते कहा।

“ईऽऽऽऽऽऽ! मैं तो पूर्वजन्म में भी किसी से प्यार नहीं करती होंगी। ऐसा मेरा विश्वास है।” शैफाली ने अपना मुंह बनाते हुए कहा।

“मेरी जिंदगी तो जैसे हर जन्म में कोरा कागज ही थी।” इस बार तौफीक ने भी बातों में शामिल होते हुए कहा।

“ऐसा नहीं है तौफीक अंकल, अगर आप अभी तक हम लोगों के साथ जीवित हैं, तो तिलिस्मा में प्रवेश करने का कोई ना कोई उद्देश्य तो आपके पास भी होगा।” शैफाली ने उदास तौफीक का हाथ पकड़ते हुए
कहा।

“सिर्फ उद्देश्य होना ही जरुरी नहीं है, उद्देश्य का बेहतर होना भी जरुरी नहीं है।” जेनिथ के मुंह से जल्दबाजी में तौफीक के प्रति कटाक्ष निकल गया, जिसे तौफीक ने ध्यान से सुना, पर उस पर कोई रिएक्शन नहीं दिया।

“कैप्टेन अंकल!” शैफाली ने कहा- “अचानक से गर्मी कुछ बढ़ गयी लग रही है। प्यास भी बार-बार लग रही है।”

शैफाली की बात पर सभी ने अपनी सहमति जताई क्यों कि सभी हर थोड़ी देर बाद पानी पी रहे थे।

बर्फ के क्षेत्र से निकलने के बाद अचानक से गर्मी का बढ़ जाना किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था।

तभी जमीन धीरे-धीरे थरथराने लगी।

“यह जमीन क्यों कांप रही है?” क्रिस्टी ने चारो ओर देखते हुए कहा- “कैप्टेन क्या भूकंप आ रहा है?”

तभी सुयश को पहाड़ की चोटी से धुंआ निकलता हुआ दिखाई दिया।

यह देख सुयश ने चीख कर कहा- “हम पर्वत की ओर नहीं बल्कि एक ज्वालामुखी की ओर बढ़ रहे हैं और वह फटने वाला है।”


सुयश के शब्द सुनकर सभी भयभीत हो गये क्यों कि दूर-दूर तक ज्वाला मुखी से बचने के लिये उनके पास ना तो कोई सुरक्षित स्थान था और ना ही ज्वालामुखी से बचने का कोई साधन।

जमीन की थरथराहट बढ़ती जा रही थी। जमीन के थरथराने की वजह से पहाड़ से कई बड़ी चट्टानें लुढ़ककर इनके अगल बगल से गुजरने लगीं।

“अब क्या करें कैप्टेन? क्या हम सब यहीं मारे जायेंगे?” क्रिस्टी ने घबराते हुए सुयश से कहा।

“नक्षत्रा ! क्या कोई हमारे बचाव का साधन है तुम्हारे पास?” जेनिथ ने नक्षत्रा से पूछा।

“तुम्हें पता है जेनिथ, कल बर्फ के ड्रैगन से बचने में पूरा समय जा चुका है और अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए हैं, इसलिये मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। हां अगर तुम्हारे ऊपर कोई पत्थर गिरा तो मैं तुम्हारी चोट को सही कर दूंगा, पर बाकी लोगों के लिये मैं वह भी नहीं कर सकता।”

नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ का चेहरा उतर गया।

आसपास का तापमान अब बहुत ज्यादा बढ़ गया था।

तभी एक कान फाड़ देने वाला भयानक धमाका हुआ और ज्वालामुखी से हजारों टन लावा निकलकर आसमान में बिखर गया।

कुछ लावा के गोले इनके बिल्कुल बगल से निकले।

लावा की गर्मी अब सभी को साफ महसूस होने लगी थी।

तभी ज्वालामुखी का मैग्मा बहकर इन्हें अपनी ओर आता दिखाई दिया, मैग्मा के पास आने की स्पीड बहुत तेज थी।

किसी के पास अब भाग निकलने का भी समय नहीं बचा था। चारो ओर धुंआ और राख वातावरण में फैल गयी थी।

“सभी लोग मेरा हाथ पकड़ लें।” तभी शैफाली ने चीखकर कहा।

शैफाली की बात सुन सभी ने जल्दी से शैफाली का हाथ पकड़ लिया।

जैसे ही सभी ने शैफाली का हाथ थामा, शैफाली के चारो ओर एक पारदर्शी रबर का बुलबुला बन गया।

तभी मैग्मा आकर बुलबुले से छू गया, पर मैग्मा से बुलबुले पर कोई असर नहीं हुआ।

यह देखकर सभी ने राहत की साँस ली। वह बुलबुला उन्हें किसी कवच की तरह से सुरक्षित रखे हुआ था।

“बाल-बाल बचे।” क्रिस्टी ने अपने दिल की धड़कनों पर काबू पाते हुए कहा- “अगर शैफाली 1 सेकेण्ड की भी देरी कर देती, तो हमारा बचना नामुमकिन था।”

“पर शैफाली अब हम इससे निकलेंगे कैसे? क्यों कि लावा इतनी जल्दी तो ठंडा नहीं होता, फिर हम कब तक इस बुलबुले में बंद रहेंगे।” जेनिथ ने शैफाली से आगे का प्लान पूछा।

“अभी आगे के बारे में तो मुझे भी कुछ नहीं पता, मुझे तो अभी जो कुछ समझ में आया, वो मैने कर लिया। अब लावा थोड़ा ठंडा हो तो हम इससे निकलने की सोचें।” शैफाली ने कहा।

“ज्वालामुखी से निकले लावा की ऊपरी परत को ठंडा होने में कुछ ही घंटे लगते हैं, पर लावा की अंदर की परत को ठंडा होने में 3 महीने से भी ज्यादा का समय लगता है।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा-

“और हम इस समय ज्वालामुखी की ढलान पर खड़े हैं, जहां पर लावा रुक ही नहीं सकता, यहां पर तब तक नया लावा आता रहेगा, जब तक ज्वालामुखी से लावा निकल रहा है।

"हम ये भी नहीं कह सकते कि
ज्वालामुखी से लावा कितने समय तक निकलेगा। यह लावा कुछ महीने तक भी निकल सकता है। यानि की किसी भी तरह से अब हम इस जगह पर कई महीनें तक खड़े होने के लिये तैयार हो जाएं।”

“यानि हम लावा से मरें या ना मरें, भूख और प्यास से अवश्य मर जायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“कैप्टेन अगर हम इस बुलबुले को लुढ़काकर यहां से दूर ले चलें तो?” जेनिथ ने सुझाव दिया- “ज्यादा से ज्यादा कुछ घंटों में हम इसे लुढ़काकर ज्वालामुखी की पहुंच से दूर जा सकते हैं।”

जेनिथ का विचार वाकई काबिले तारीफ था।

अभी ये लोग बुलबुले को लुढ़काने के बारे में सोच ही रहे थे, कि यह काम स्वयं ज्वालामुखी ने कर दिया।

हवा में उड़ता हुआ एक पत्थर का काला टुकड़ा आया और बुलबुले से टकरा गया।

जिसकी वजह से बुलबुला लुढकता हुआ ज्वाला मुखी से नीचे की ओर चल दिया।

कोई भी इसके लिये तैयार नहीं था, इसलिये सभी के सिर और शरीर आपस में टकरा गये।

फिर भी सभी खुश थे क्यों कि वह बिना मेहनत ज्वाला मुखी से दूर जा रहे थे।

कुछ ही देर में बुलबुले के घूमने के हिसाब से सभी ने अपने शरीर को एडजेस्ट कर लिया।

जेनिथ की तरकीब काम कर गयी थी। पर वह मुसीबत ही क्या जो इतनी आसानी से चली जाये।

लुढ़कता हुआ उनका बुलबुला एक बड़े से सूखे कुंए में जा गिरा और इससे पहले कि कोई कुंए से निकलने के बारे में सोच पाता, उस कुंए में उनके पीछे से लावा भरने लगा।

कुछ ही देर में लावा किसी सैंडविच की तरह से इनके बुलबुले के चारो ओर फैल गया। अब बुलबुला लुढ़कना तो छोड़ो, हिल भी नहीं सकता था।

यह देख सभी हक्का -बक्का रह गये।

“हां तो जेनिथ तुम क्या कह रही थी?” सुयश ने आशा के विपरीत मुस्कुराते हुए जेनिथ से पूछा- “इसको लुढ़का कर कहीं ले चलें... लो अब लुढ़का लो इसे।”

सुयश को मुस्कुराते देख पहले तो सभी आश्चर्यचकित हो गये फिर उन्हें लगा कि सच में दुखी होने से कौन सा हम इस मुसीबत से बच जायेंगे, इसलिये सभी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी।

“मुझे तो ऐसा लगता है कैप्टेन, कि इस द्वीप का निर्माता हम पर लगातार नजर रखता है, इसलिये जैसे ही हम कोई उपाय सोचते हैं, वह हमारी सोच के विरुद्ध जाकर एक नयी मुसीबत खड़ी कर देता है।” जेनिथ ने कहा।

सभी ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई।

“अब क्या करें कैप्टेन? क्या सच में 3 महीने का इंतजार करना पड़ेगा यहां से निकलने के लिये?” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं...अब हमें बिल्कुल इंतजार नहीं करना पड़ेगा।” सुयश ने कहा- “यह शब्द मैंने ढलान पर खड़े होकर बोले थे, पर अब हम एक कुंए में हैं। अब अगर मैग्मा सूखा तो वह चट्टान में बदल जायेगा और फिर उस
चट्टान के अंदर हमारी जीते जी ही समाधि बन जायेगी।”

सुयश का यह विचार तो बिल्कुल डराने वाला था।

“यानि की हम यहां जितनी ज्यादा देर फंसे रहेंगे, उतना जिंदा रहने की संभावना खोते जायेंगे।” क्रिस्टी ने पूछा।

“जी हां, मैं बिल्कुल यही कहना चाहता हूं।”सुयश ने कहा- “अब चुपचाप सभी लोग बैठ जाओ और शांति से यहां से निकलने के बारे में सोचो।”

सभी को बैठे-बैठे आधा घंटा बीत गया, पर किसी के भी दिमाग में कोई प्लान नहीं आया।

“कैप्टेन ... देवी शलाका ने हमें कहा था कि जब तक आप हमारे साथ हो, हम नहीं हार सकते।” जेनिथ ने सुयश को याद दिलाते हुए कहा-

“सोचो...आप सुयश नहीं आर्यन बनकर सोचो...आप कोई ना कोई
उपाय अवश्य निकाल सकते हो? तिलिस्मा ने यूं ही नहीं आपको चुना है, कुछ तो है आपमें...जो हम सबसे अलग है।”

जेनिथ की बात सुनते ही सुयश को जोश आ गया और वह तेज-तेज बड़बड़ा ने लगा- “अगर मेरी जगह आर्यन होता तो वह क्या करता? ....हमारे पास भी कुछ नहीं है...इस कुंए में भी कुछ नहीं है?”

तभी सुयश की नजर बैठी हुई शैफाली पर पड़ी- “तुम बैठने के बाद तौफीक के बराबर कैसे दिख रही हो शैफाली?”

सभी सुयश की यह अजीब सी बात सुनकर शैफाली की ओर देखने लगे, जो कि सच में बैठकर तौफीक के बराबर दिख रही थी।

“अरे कैप्टेन अंकल....कुंए में नीचे की ओर कुछ है, मैं उस पर ही बैठी हुई हूं।” शैफाली ने हंसते हुए कहा।

“क्या है कुंए के नीचे?” सुयश ने हैरान होते हुए शैफाली को उस जगह से हटा दिया और टटोलकर उस चीज को देखने लगा, पर उसे समझ नहीं आया कि वह चीज क्या है?

“आप हटिये कैप्टेन अंकल, मैं छूकर आप से ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकती हूं कि कुंए में नीचे क्या है?” यह कहकर शैफाली सुयश को हटाकर उस चीज को छूकर देखने लगी।

थोड़ी देर के बाद शैफाली ने कहा- “कैप्टेन अंकल, यह चीज कोई धातु की बनी लीवर जैसी लग रही है।”

“लीवर...।” सुयश बुदबुदाता हुआ कुंए की बनावट को ध्यान से देखने लगा और फिर खुशी से चिल्लाया- “मिल गया उपाय, बाहर निकलने का।”

सुयश के शब्द सुन सभी भौचक्के से खड़े सुयश को देखने लगे।

सुयश ने सभी को अपनी ओर देखते हुए पा कर कहा - “दरअसल हम जिसे कुंआ समझ रहे हैं, वह एक पुराने समय का फव्वारा है, जो जमीन के अंदर से इस कुंए जैसी जगह पर जोड़ा गया है। पुराने समय में ज्वालामुखी के पास रहने वाले जमीन के तापमान का नियंत्रण करने के लिये एक हाई प्रेशर वाला फव्वारा बनवाते थे। जिससे जब जमीन का तापमान बढ़ता था, तो वह फव्वारा चलाकर आस-पास की जमीन पर पानी का छिड़काव करते थे। ये वैसा ही एक फव्वारा है। अब अगर हम इस फव्वारे को किसी भी प्रकार से चला दें, तो यहां से पानी बहुत हाई प्रेशर के साथ बाहर आयेगा और इसी हाई प्रेशर से हम भी बुलबुले सहित बाहर निकल जायेंगे।”

“कैप्टेन...पर ये फव्वारा चलेगा कैसे?” क्रिस्टी ने पूछा।

“शैफाली ने जिस लीवर को छुआ, वह अवश्य ही इसी फव्वारे को चलाने वाला लीवर होगा और ऐसे लीवर हमेशा नीचे की ओर दबा कर चलाये जाते हैं।”

यह कहकर सुयश शैफाली की ओर घूमा- “शैफाली क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारा यह बुलबुला कितना प्रेशर झेल सकता है?”

“कैप्टेन यह एक चमत्कारी शक्ति से बना बुलबुला है, जो बुलबुला हजारों डिग्री का तापमान सह सकता है, मुझे नहीं लगता कि वह किसी भी शक्ति से टूट सकता है।” शैफाली के शब्दों में गजब का विश्वास दिख रहा था।

“फिर ठीक है...आप लोग जरा एक दूसरे को कसकर पकड़ लें, हम बस उड़ान भरने ही वाले हैं।” यह कहकर सुयश उस लीवर के ऊपर खड़ा हो गया और उछलकर जोर से लीवर पर कूदा।

परंतु वह लीवर टस से मस नहीं हुआ।

यह देख सुयश ने तौफीक को भी अपने पास बुलाया- “तुम्हें भी मेरे साथ इस लीवर पर कूदना होगा तौफीक...काफी समय से ना चलाये जाने की वजह से शायद लीवर जाम
हो गया होगा।”

तौफीक ने धीरे से सिर हिलाया।

अब सुयश ने गिनती गिनना शुरु कर दिया- “3....2.....1।”

सुयश के 1 बोलते ही सुयश और तौफीक दोनों पूरी ताकत से लीवर पर कूद पड़े।

दोनों की सम्मिलित शक्ति से लीवर एक बार में ही नीचे हो गया। 10 सेकेण्ड तक सभी ने इंतजार किया, परंतु कुछ नहीं हुआ।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था, सबके चेहरे लटकते जा रहे थे क्यों कि यह तरीका शायद उन सबकी आखिरी उम्मीद थी।

तभी कुंए के नीचे से कुछ खट-पट की आवाज आनी शुरु हो गयी। सुयश सहित सभी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

तभी बहुत ताकत से बुलबुले के नीचे से पानी की फुहार बुलबुले पर पड़ी, जिसकी वजह से बुलबुला कुंए से निकलकर आसमान में बहुत ऊंचे तक चला गया।

वहां से तो ज्वालामुखी भी नीचे लगने लगा था।

यह देख सभी ने जोर का जयकारा लगाया- “तो इसी बात पर बोलो कैप्टेन सुयश जिंदाबाद।”

सभी खुशी से चीख रहे थे। इतनी ऊंचाई से उन्हें पोसाइडन पर्वत भी दिखाई दे गया।

तभी बुलबुला अधिकतम ऊंचाई तक पहुंचकर हवा में धीरे-धीरे किसी पैराशूट की तरह नीचे आने लगा।

हवा में इस तरह नीचे आना भी अपने आप में किसी एडवेंचर से कम नहीं था। सभी के चेहरे खुशी से भरे हुए थे।

उनके चेहरों पर सुयश के लिये सम्मान के भाव नजर आ रहे थे।


जारी रहेगा
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Dhakad boy

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#132.

“कैप्टेन...आपको क्या लगता है कि मुसीबत अब खत्म हो गई?” जेनिथ के शब्द सुन सभी ने उधर देखा, जिधर जेनिथ देख रही थी।

उधर देखते ही उनकी साँसें फिर से अटक गयीं क्यों कि हवा में तैरता हुआ वह बुलबुला अब ज्वालामुखी के अंदर गिरने वाला था।

“आसमान से गिरे...खजूर में अटके तो सुना था, पर कुंए से निकले और ज्वालामुखी में लटके नहीं सुना था।” क्रिस्टी के शब्दों में फिर निराशा झलकने लगी।

बुलबुला अब सीधे ज्वालामुखी के अंदर, उसके लावे में जाकर गिरा था। जहां से निकलना अब शायद ही संभव हो पाता।

सभी की नजरें ज्वालामुखी के अंदर की ओर गई।

प्रेशर कम हो जाने की वजह से लावा अब ज्वालामुखी के ऊपर से होकर नहीं बह रहा था।

ज्वालामुखी के लावे की सतह अब काफी कम होकर ज्वालामुखी के अंदर ही सीमित हो गई थी।

लग रहा था कि जैसे द्वीप की तरह वह ज्वालामुखी भी कृत्रिम है। क्योंकि ज्वालामुखी के अंदर वह लावा, पत्थरों से बने एक विशाल बैल के मुख से निकल रहा था।

सभी एक बार फिर लावे के जाल में फंस गये थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे लावा उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

ज्वालामुखी की दीवारें भी सपाट थीं और अंदर कोई ऐसा स्थान नहीं था, जहां वह बुलबुले से निकलकर खड़े हो सकें।

“अब क्या करें कैप्टेन?...हम एक बार फिर फंस गये।” जेनिथ ने कहा।

तभी सुयश को ज्वालामुखी का सारा लावा, ज्वालामुखी के अंदर ही एक दिशा की ओर बहकर जाता दिखाई दिया।

“शायद उस तरफ से कोई रास्ता मिल जाये?” सुयश ने सभी को लावा के बहने वाली दिशा में इशारा करते हुए कहा।

“पर कैप्टेन...यह भी तो हो सकता है कि उधर से वह लावा वापस पृथ्वी की कोर में जा रहा हो?”

तौफीक ने कहा- “और अगर ऐसा हुआ तो हम पाताल में चले जायेंगे, जहां से हमारे निकलने के आसार बिल्कुल खत्म हो जायेंगे।”

“हमारे पास उस रास्ते के सिवा और कोई रास्ता भी नहीं है तौफीक।”

सुयश ने तौफीक को समझाते हुए कहा- “ये भी तो हो सकता है कि उधर से हमें बचकर निकलने का कोई रास्ता मिल जाये?”

तौफीक ने एक गहरी साँस भरी और सुयश के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी।

अब सभी बुलबुले को धकेलकर उस दिशा में ले आये, जिधर से बहकर लावा पहाड़ों के अंदर कहीं जा रहा था।

बुलबुला अब लावे के साथ स्वतः ही तैरने लगा।

पहाड़ की ढलान लावे को गति दे रही थी। कुछ देर बाद वह लावा, आगे जा रहे एक लावे के झरने में गिरता दिखाई दिया।

लावा का झरना देखकर सभी और भयभीत हो गये।

तभी सुयश को झरने के पहले एक जगह पर कुछ खाली स्थान दिखाई दिया। जिसके ऊपर की ओर कुछ गुफा जैसे छेद दिखाई दे रहे थे।

वह स्थान थोड़ा ऊंचा होने के कारण लावा उस ओर नहीं जा रहा था।

“हमें अपने बुलबुले को उस खाली स्थान की ओर ले जाना होगा।” सुयश ने सभी को वह खाली स्थान दिखाते हुए कहा।

सभी अपने शरीर को मोड़ते हुए उस बुलबुले को खाली स्थान तक ले आये।

“यहां से आगे लावा का झरना है, जो कि पृथ्वी की कोर तक जाता हुआ हो सकता है, इसलिये हमें इस स्थान से ऊपर बने उन गुफाओं की ओर जाना होगा। शायद उससे हमें कहीं आगे निकलने का मार्ग दिखाई दे जाये। पर बुलबुले के अंदर रहकर हम उन गुफाओं तक नहीं जा सकते, इसलिये हमें अब बुलबुले से निकलना ही पड़ेगा।” सुयश ने सबको समझाते हुए कहा।

“पर कैप्टेन, हम लोग इस समय एक जीवित ज्वालामुखी के अंदर हैं, अगर यहां तापमान ज्यादा हुआ, तो बुलबुले से निकलते ही हम मारे जायेंगे।” जेनिथ ने कहा।

“तुम ठीक कह रही हो जेनिथ, पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। क्यों कि यह एक बनाया गया कृत्रिम ज्वालामुखी है। यह ज्वालामुखी की तरह व्यवहार कर सकता है, पर ज्वालामुखी जितना तापमान नहीं बना सकता। इसलिये मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि हम बाहर सुरक्षित रहेंगे।”

यह कहकर सुयश ने शैफाली को बुलबुले को हटाने का आदेश दे दिया।

हर बार की तरह सुयश इस बार भी सही था। उस स्थान पर गर्मी ज्यादा थी, पर इतनी गर्मी नहीं थी कि वह सहन नहीं कर पायें।

सभी को गर्मी की वजह से पसीना आने लगा था, पर शैफाली के शरीर का तापमान अभी भी नार्मल था।

शायद उसकी ड्रेस में कुछ ऐसा था जो उसे तापमान का अहसास ही नहीं होने दे रहा था।

अभी सब उन गुफाओं तक पहुंचने के बारे में सोच ही रहे थे कि तभी शैफाली को कुछ दूरी पर कोई सुनहरी चमकती हुई चीज दिखाई दी।

शैफाली बिना किसी से बोले उस दिशा की ओर बढ़ गयी।

सभी शैफाली को उस दिशा में जाते देख, उसके पीछे-पीछे चल दिये।

वह चमक लावे की राख में दबी, किसी सोने की धातु वाली वस्तु से आ रही थी।

शैफाली ने आगे बढ़कर उस वस्तु पर से राख को साफ करना शुरु कर दिया।

शैफाली को ऐसा करते देख, सभी उस वस्तु को साफ करने लगे।

सभी के प्रयासों के बाद वह वस्तु अब साफ-साफ नजर आने लगी थी। वह एक विशाल ड्रैगन का सोने का सिर था।

सभी हतप्रभ से खड़े उस विशाल ड्रैगन के सिर को देखने लगे।

“यह ज्वालामुखी के अंदर सोने का बना सिर कहां से आया।” तौफीक ने कहा- “यह तो पुरातन कला का अद्भुत नमूना लग रहा है।”

“यह नमूना नहीं है।” पता नहीं क्या हुआ कि अचानक शैफाली बहुत ज्यादा गुस्से में दिखने लगी।

शैफाली का यह प्रचंड रुप देख सभी डर गये।

“क्या हुआ शैफाली?” सुयश ने शैफाली के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- “तुम ठीक तो होना?”

“हां कैप्टेन अंकल मैं ठीक हूं।” शैफाली ने नार्मल तरीके से कहा- “पता नहीं क्यों मुझे इस ड्रैगन के सिर को छूकर बहुत अपनापन महसूस हो रहा है।”

इस बार शैफाली के शब्द ने सबको डरा दिया। शैफाली अभी भी उस ड्रैगन के सिर को धीरे-धीरे सहला रही थी।

तभी भावनाओं में बहकर शैफाली की आँख से आँसू निकलने लगे।

वह आँसू उस ड्रैगन के सिर पर जा गिरे।

शैफाली के आँसुओं में जाने कौन सी शक्ति थी कि शैफाली के आँसू ड्रैगन के सिर पर पड़ते ही ड्रैगन के सिर से तेज रोशनी निकलकर शैफाली में समा गई और इसके बाद वह सोने का सिर धीरे-धीरे पिघलने लगा।

यह देख सुयश ने शैफाली को चेतावनी दी- “शैफाली तुम्हारे हाथ में मौजूद ड्रैगन का सिर पिघलने लगा है, अगर तुम उसे ज्यादा देर तक पकड़े रही तो तापमान की वजह से तुम्हारा हाथ भी पिघल सकता है। इसलिये उसे अपने हाथ से छोड़ दो।”

पर सुयश की चेतावनी का शैफाली पर कोई असर नहीं हुआ, वह उस ड्रैगन के सिर की आखिरी बूंद के पिघलने तक उसे पकड़े रही।

धीरे-धीरे ड्रैगन का पूरा सिर पिघलकर ज्वालामुखी के लावे में समा गया।

थोड़ी देर तक शैफाली वहां खड़ी रही, फिर सुयश के साथ उन गुफाओं के छेद की ओर चढ़ने लगी।

सभी समझ रहे थे कि शैफाली के दिमाग में कुछ उथल-पुथल चल रहा है, पर किसी की हिम्मत अभी उससे कुछ पूछने की नहीं हो रही थी।


राक्षसलोक:
(14 साल पहले.....14 जनवरी 1988, गुरुवार, 08:30, योग गुफा, हिमालय)

त्रिशाल को कलिका का इंतजार करते हुए योग गुफा में बैठे आज 8 दिन बीत गये थे। तभी किसी के पैरों की धमक से त्रिशाल का ध्यान भंग हुआ।

त्रिशाल ने आँख खोलकर देखा। सामने हनुका खड़ा त्रिशाल को निहार रहा था।

“यति राज को त्रिशाल का प्रणाम।” त्रिशाल ने हनुका को देखकर हाथ जोड़कर अभिवादन किया।

“सदैव प्रसन्न रहो।” हनुका ने अपने हाथों को खोलकर आशीर्वाद देते हुए कहा- “लग रहा है देवी कलिका, यहां पर अभी तक नहीं पहुंची।”

“पिछले 8 दिन से मैं उनकी यहां पर प्रतीक्षा कर रहा हूं, पता नहीं कैसे उन्हें आने में देर हो रही है?” त्रिशाल ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा।

तभी एक दिशा से कलिका की आवाज आयी- “अब आपकी प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ त्रिशाल, मैं आ गयी।”

कलिका को सकुशल आते देख त्रिशाल खुश हो गया।

“आपके चेहरे पर फैली मुस्कान बता रही है कि प्रकाश शक्ति आपको मिल गयी है।” त्रिशाल ने कलिका के चेहरे को देखते हुए कहा।

कलिका ने त्रिशाल की बात सुन धीरे से सिर हिलाया।

“तो फिर ‘राक्षसलोक’ चलने की तैयारी करें। अब ‘कालबाहु’ के अंत का समय निकट आ चुका है।” त्रिशाल ने जोर से हुंकार भरी।

हनुका ने दोनों को आशीर्वाद दिया और फिर आकाश मार्ग से उड़कर कहीं गायब हो गया।

त्रिशाल और कलिका अब राक्षसताल की ओर चल दिये थे।

राक्षसताल मानसरोवर झील के बगल में ही था। वह योग गुफा से ज्यादा दूरी पर नहीं था, इसलिये त्रिशाल और कलिका कुछ ही देर में राक्षसताल तक पहुंच गये।

राक्षसताल का आकार चंद्रमा के समान प्रतीत हो रहा था।

दोपहर का समय था, जिसके कारण पानी की स्वच्छता दूर से ही नजर आ रही थी।

त्रिशाल और कलिका धीरे से राक्षसताल के पानी में उतर गये। राक्षसताल का पानी, बिल्कुल खारा था।

कुछ ही देर में दोनों राक्षसताल की तली तक पहुंच गये।

राक्षसताल की तली के अंदर एक पर्वत श्रृंखला डूबी हुई थी।

तभी त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच एक पतला सा रास्ता दिखाई दिया, जिसके दूसरी ओर से कुछ चमक सी आती हुई प्रतीत हो रही थी।

त्रिशाल और कलिका उस पतले रास्ते पर चल पड़े। कुछ आगे उन्हें पानी के अंदर, पहाड़ में बनी एक गुफा नजर आयी।

गुफा किसी विशाल राक्षस के मुंह जैसी प्रतीत हो रही थी। वह चमक उसी गुफा के अंदर से आ रही थी।

वैसे तो वह गुफा राक्षस के मुंह की सिर्फ आकृति मात्र थी, पर उसकी पत्थर पर बनी बड़ी-बड़ी आँखें और विशाल दाँत किसी भी मनुष्य को डराने के लिये काफी थे।

“क्या इसी रास्ते से होकर हमें राक्षस लोक जाना है?” त्रिशाल ने कलिका से पूछा।

“लग तो ऐसा ही रहा है....पर जरा एक मिनट ठहरिये...पहले मुझे पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने दीजिये।” कलिका ने कहा और ध्यान से उस गुफा को देखने लगी।

तभी गुफा को ध्यान से देख रही कलिका को राक्षस की आँख की पुतली कुछ हिलती नजर आयी।

यह देख कलिका चीखकर बोली- “रुक जाइये त्रिशाल, यह राक्षसलोक का मार्ग नहीं है, यह स्वयं कोई राक्षस है, जो विशाल गुफा का भेष धारण करके यहां पर बैठा है। मैं अभी इसका सच बाहर लाती हूं।”

यह कहकर कलिका ने अपने सीधे हाथ को उस राक्षस की आँख की ओर करके एक झटका दिया।

कलिका के हाथ को झटका देते ही, उसके हाथ से सफेद रंग की तेज रोशनी निकलकर उस राक्षस की आँख पर पड़ी।

वह सफेद रोशनी इतनी तेज थी, कि उस गुफा बने राक्षस ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर ली।

त्रिशाल को समझने के लिये इतना काफी था। वह जान गया कि यह सच का कोई राक्षस है।

“चलो राक्षसलोक पहुंचने से पहले अपनी शक्तियों के प्रदर्शन का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।” त्रिशाल ने कहा- “तो दोनों में से कौन करेगा इस राक्षस का अंत?”

“आप ज्यादा उतावले नजर आ रहे हो, आप ही कर लो पहले प्रयोग। मैं जब तक इस चट्टान पर बैठकर आराम कर रही हूं।”

यह कहकर कलिका सच में आराम से एक चट्टान पर जा कर बैठ गयी।


जारी रहेगा_______✍️
Bhut hi badhiya update Bhai
Suyash or shaifali ke chalte abhi to ye sabhi surkshit hai lekin aage gufao me konsi mushibat inka intezar kar rahi hai ye to aage hi pata chalega
Aur us dragon ke sir se shaifali ko apna pan kyo mahsus ho raha tha
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट है भाई मजा आ गया
Thank you very much for your valuable review bhai :thanks:
Agla update bhi post kar diya hai:shy:
 
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