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Adultery लौट आओ राधा (complete)

Lutgaya

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Lutgaya

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Incestlala

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लौट आओ राधा
इस इन्सानी दुनिया से खौफ़नाक और कोई दूसरी क्रूर दुनिया नहीं है। आप ठीक कहते है, जी हाँ ! एक दूसरी दुनिया भी है पर वहाँ के भी कुछ अपने ही नियम है, जो सिर्फ़ अपने नियम पर चलते हैं। यहाँ तो इन्सान खुद ही नियम बनाते हैं और फिर उन्हें तोड़ने के लिये तत्पर भी रहते हैं।

ऐसा क्यूँ होता है?

शास्त्रों में लिखा है तू जो आज करेगा, तुझे उसका सात नहीं सत्तर गुना पलट कर दिया जायेगा। चाहे वो भला हो या बुरा। आज आपको कुछ ऐसी ही दुनिया के कारनामे हाजिर करता हूँ।

एक गाँव था हीरापुर ! जैसा कि हर जगह ऐसा होता है कि कमजोर वर्ग के मध्य एक घराना वर्ग ताकतवर निकल ही जाता है जिसे हम जमींदार के नाम से पुकारने लगते है। इस गाँव में भी एक चौधरी परिवार पैसे वाला बन कर उभर आया था, जिसने पैसे के दम पर वहाँ की अधिकतर जमीन खरीद रखी थी। उसका काम गाँव के कमजोर वर्ग के लोगों को पैसा ब्याज पर देना और दुगना, तीन गुना वसूली करना था या एवज में उनकी जमीन और यहाँ तक कि उनका मकान तक पर कब्जा कर लेना था। राम सिंह चौधरी का उसका एक बेटा दीना राम सिंह और एक एक बेटी श्यामला सिंह थी।

कहानी अरम्भ होती है माधोराम से… गाँव के एक अध्यापक का पुत्र माधो राम बाहरवीं कक्षा में पढ़ता था। उसी गाँव की एक लड़की जो माधो राम के साथ ही पढ़ा करती थी, एक गरीब किसान की पुत्री थी राधा नाम था उसका।

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दोनों एक दूसरे को बहुत ही पसन्द करते थे। माधो तो मन ही मन में उससे बहुत प्यार करता था। दोनों एक दूसरे से प्यार तो करते थे, पर मन की कभी कह नहीं पाते थे।

एक रात को माधो बाहर से अपने घर आ रहा था। रात के ग्यारह बज रहे थे… सारा गाँव अन्धकार में डूबा हुआ था, बस गाँव के बाहर उसी चौधरी के घर के बाहर की एक बत्ती कुछ दूर तक अंधियारे को मिटाने की कोशिश करती नजर आती थी। तभी माधो की नजर उसी रोशनी से कुछ दूरी पर पीपल के पेड़ के नीचे जा ठहरी। वो उत्सुकतावश वहाँ पहुँच गया।

अरे राधा, तू…?

वो कचरा फ़ेंकने आई थी…

अच्छा चल… साथ चलें, तुझे डर नहीं लगा जरा भी ऐसी रात में…

तू जो है ना… डर कैसा? माधो का मन यह सुन कर थोड़ा सा विचलित हुआ। एक जगह अन्धेरा देख कर माधो ने अपने मन की बात कह दी।

“राधा, देख बुरा मत मानना, एक बात कहूँ?”

राधा कुछ कुछ समझ चुकी थी, वो रुक गई… और उसे देखने लगी…

“अच्छा… बाद में सही…!” माधो को एकाएक शर्म सी आ गई।

“बोल ना माधो…”

वो… बात यह है कि तू मुझे अच्छी लगने लगी है…”

“माधो… सच बता ना… अच्छा तो तू भी मुझे लगता है…”

राधा माधो के और पास आ गई… माधो के चेहरे पर पसीना छलक आया, उसने अपना सर झुका कर धीरे से कहा- राधा… मुझे तुझ से प्यार हो गया है… देख राधा… कोई बात नहीं, यदि ना कहना है तो ना कह दे…

“अरे हाँ… हाँ… माधो हाँ… तूने पहले क्यों नहीं कहा… कितना तड़पाया है तूने मुझे… ओह माधो… मेरे माधो…!”

राधा माधो से लता की तरह लिपट गई। पराई स्त्री का तन स्पर्श का सुख उसे पहली बार हुआ। गर्म गर्म सा शरीर… एक सिरहन सी महसूस हुई।

उसके सीधे तने उरोज उसकी छाती को छेदने लगे। धीरे से दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमा और फिर दोनों ही शरमा गये।

“माधो जाती हूँ…!”

“फिर कल कहाँ मिलोगी…?”

“यहीं … इसी समय… हाय राम…!” कहती हुई वो भाग खड़ी हुई।

माधो और राधा अब रोज ही रात को उसी पीपल के वृक्ष के नीचे मिलने लगे। पहले कुछ दिनों तक तो बस वो चूमा-चाटी तक ही रहे थे। पर अब वो उसके छोटे छोटे कबूतरों पर भी हाथ डालने लगा था बल्कि यूँ कहिये कि राधा ही ने अपने मम्मे उससे दबवा लिये थे। माधो को भी उसके सख्त और मुलायम से उरोज दबाने से बहुत अच्छा लगा था। आज तो माधो ने राधा के चूतड़ के गोलों को भी सहला कर खूब दबाया था। उफ़्फ़ ! जवानी इसे कहते हैं… राधा ने भी उसके लण्ड को ऊपर से हाथ से दबा कर देखा था। लोहे की तरह सख्त लण्ड राधा के सीने में सांप की तरह लोट गया। एक तरह से दोनों की मन की दीवारें भी अब हटने लगी थी। रोज का उनका मिलना एक दिन चौधरी राम सिंह को पता चल गया। वो रोज छुप छुप कर उन्हें देखता भी रहता था पर माधो की उपस्थिति से वो डरता था।

राधा और माधो के मन में अब चुदाई की चाह भी फ़ूटने लगी थी। रोज रोज वो माधो का लण्ड पकड़ती… उसका मन चुदवाने मचल उठता था। माधो का भी रात को उसके लण्ड से वीर्य निकल पड़ता था। राधा भी रात को अपनी कोमल चूत को दबा दबा कर यौन रस निकाल देती थी।

एक दिन माधो को दूसरे गाँव जाना पड़ा। उसके रिश्तेदार में कोई बीमार था। राधा को वो बता भी ना पाया था। राधा हमेशा की तरह रात को पीपल के वृक्ष के नीचे माधो का इन्तज़ार कर रही थी। जब राम सिंह ने उसे अकेली पाया तो वो भोली भाली राधा को फ़ुसला कर अपने पीछे वाले कमरे में ले गया।

“चाचा, यह अच्छी जगह है, हम तो रोज यहीं मिल लिया करेंगे।”

राधा राम सिंह को चाचा कहा करती थी। राधा खुशी से नर्म बिस्तर पर बैठ कर अपने पैर हिलाने लगी।

राम सिंह ने बहुत प्यार से उसे लेटा दिया… “अब लेटे लेटे इन्तजार करो… लो यह शर्बत पी लो, मैं तो चलता हूँ…!”

“जाओ तो यह कुण्डी लगा देना।”

उसने शर्बत बड़े ही चाव से पी लिया। कुछ ही देर में उसे नशा सा हो गया, उसे नींद सी आने लगी। तब राम सिंह ने अपने कपड़े उतारे और नंगा हो कर उसके सामने आ गया। उसका लण्ड तन्नाया हुआ था। उसने आराम से राधा के कपड़े उतारे और उसे नंगी कर दिया। वो नशे में कुलबुला रही थी… उसे लग रहा था कि जैसे उसके हाथ पैर में जान ही ना हो।

राम सिंह ने उसके पैर चौड़े किये और अपना सख्त लण्ड उसकी नरम चूत में घुसेड़ दिया। धीरे धीरे उसे चोदने लगा। राधा नशे की हालत में मस्ती में झूम उठी और राम सिंह को माधो समझ कर उससे लिपट गई। बहुत बेताबी से राधा ने राम सिंह से चुदवाया। राधा ने जो गाँव के लड़के-लड़कियों से गालियाँ सीखी थी… वो जोश जोश में बोलती भी जा रही थी।

पर राम सिंह को भी शायद पता ना था कि वो नशा तो अधिक देर का नहीं था। उसने राधा को उल्टी करके उसकी गाण्ड में जैसे ही लण्ड घुसाया कि राधा चीख सी पड़ी- माधो… जरा धीरे… धीरे…


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उसे अपनी कोमल गाण्ड में मोटा सा लण्ड का अब अहसास होने लगा था। वो जैसे जैसे अन्दर घुसता वो तड़प उठती। उसने विनती करने के लिये ज्योंही पीछे मुड़ कर देखा। तो वो डर के मारे दहशत से चीख उठी।

“अरे चाचा… तुम…?”

पुलिस को दूसरे दिन राधा की छिन्न भिन्न लाश एक झाड़ी में मिली। पुलिस उसको कपड़े में लपेट कर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिये ले गई। जांच के बाद केस को जंगली जानवर का हमला समझ कर केस बन्द कर दिया गया। लाश को राधा के नाम से पहचाना गया। चौधरी परिवार तीन चार दिन बाद ही मुम्बई चला गया।

माधो के शाम को लौटने पर रोज की तरह वो रात को चौधरी के घर के पीछे चला आया। बहुत देर तक उसने राधा की प्रतीक्षा की। जाते समय उसने देखा कि राधा उसके पीछे खड़े उसे पुकार रही है।

माधो खुश हो गया और कुछ देर तक गिले शिकवे की बातें करने के बाद वो उसे चौधरी के धर के पिछवाड़े में ले आई। उस कमरे में अभी भी बिस्तर लगा हुआ था। वो बहुत देर तक उससे गप्पें मारता रहा। उसे अपने प्यार भरे आलिंगन में भर कर उसकी चूत में कभी अपना लण्ड दबाता तो कभी तड़प कर उसे खूब चूमता। राधा खूब खिलखिला कर हंसती।

दूसरे दिन उसे उड़ती उड़ती खबर सुनाई दी कि राधा को तो किसी जानवर ने मार दिया। माधो तुरन्त भाग कर राधा के पिता से मिलने गया। वो सवेरे उठ कर बस खेत पर जाने की तैयारी ही कर रहा था।

“मंगलू चाचा… राधा कहाँ है?”

“वो… वो… गाँव गई है…!”

“कब…?”

“अरे अभी सुबह ही तो…!”

मंगलू का चेहरा सूखा सा मुरझाया साफ़ बता रहा था कि वो झूठ बोल रहा है।

“पर गाँव वाले तो कह रहे थे कि…?”

“अरे आ जायेगी… परीक्षा भी तो नजदीक है…!”

माधो ने उसके पिता की मानी… क्योंकि पिछली रात को ही तो उससे मिला था। मंगलू अपनी सूनी आँखें लिये खेत की तरफ़ चल दिया। शाम को उसका मिलना राधा से जारी रहा। उसका तो वो चौधरी वाला कमरा तो जैसे जन्नत ही बन गया था। वहाँ उसे कोई डर नहीं। आज तो माधो ने सोच ही लिया था कि राधा को जरूर चोद देगा।

बड़ी उमंगें लिये हुये… वो दोनों रात को मिले।

माधो ने राधा को चूमते हुये कहा- अब बहुत हो गया… आज तो तुम्हें चोदने का मन हो रहा है… !

“सच… माधो… तो फिर इतने दिन तक क्यों चुप रहा…?”

“मैंने सोचा कि तू तो अपनी ही है ना… बहुत आनन्द के साथ तुझे चोदूँगा… तेरी चूचियाँ चूसूँगा… गाण्ड मारूँगा…”

“और मैं तो तड़प गई थी तेरा लण्ड चूसने को… इस भोसड़े को चुदवाने के लिये… ओह मेरे भोले पंछी… !” राधा जोश में अपनी गाँव की बोली बोलने लगी।

राधा ने उसका लण्ड पकड़ लिया और नीचे बैठ गई… उसका लण्ड बाहर निकाला और बड़ी बेताबी से उसे चूसने लगी।

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माधो तो मानो तड़प उठा। ऐसा चूसना… उसके साथ पहली बार हो रहा था। बहुत जी जान से वो लण्ड को चूस रही थी।

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‘बस कर राधा… भेनचोद, मेरा माल निकल जायेगा…!”

“तो निकाल दे मेरे माधो…!”

उसने उसके लण्ड को दबा कर चूसना जारी रखा। माधो तड़प उठा था… और फिर वो झुक सा गया।

“अरे भोसड़ी की… मार डाला ना मुझे…!”

फिर उसके लण्ड से ढेर सारा वीर्य निकल पड़ा… राधा ने उसे प्यार से पी लिया।

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वो पलंग पर धम से लुढ़क गया।

“मैंने तो सोचा था कि आज तेरी भोसड़ी को चोद डालूँगा… पर यार तूने तो…?”

“चोद देना ना… अभी तो रात ही क्या हुई है…!”

“ओ… मार डाला… मरी ! तेरा बापू तेरी बाट देख रहा होगा…!”

“भूल जा रे बापू को… आज तो तू ही मेरा सब कुछ है…”

“तो फिर खा लेना मार… देख मेरा नाम ना लेना…”

माधो ने उसे अपने पास गिरा कर उसके ऊपर चढ़ गया। उसने राधा का ब्लाउज खोला और उसकी छोटी छोटी चूचियाँ सहलाने लगा, दाबने लगा। राधा के मुख से प्यारी सी सिसकारियाँ निकलने लगी। माधो ने उसका घाघरा उठा कर उसकी चूत नंगी कर ली।

“उफ़्फ़्फ़… माधो… आज तो तुझे पा ही लूँगी…”

उसका मोटा सख्त लण्ड उसकी चूत में रगड़ खाने लगा। राधा की मीठी सिसकारियाँ कमरे में उभरने लगी। फिर माधो का लण्ड उसकी गर्म चूत में घुस पड़ा।



“उईईईईई मां… इस्स्स्स्स्स…।”

राधा के मुख से सुख की आह निकल पड़ी। उसका लण्ड चूत में जगह बनाता हुआ अन्दर की ओर चल पड़ा।

“माधो…!”

“हाँ रानी…?”

“कितना मजा आ रहा है… चूत का भोसड़ा बना दे… इह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … जरा जोर से…”

“मेरी रानी… कितने दिनों से तुम्हें चोदने का सपना देख रहा था…”

“पूरा हो गया ना मेरे राजा… कोई दूसरा चोद जाये… इससे अच्छा है मेरे मन के मीत से चुदा चुदा कर मन भर लूँ…”

माधो को ऐसा सुख पहली बार नसीब हुआ था… सो बड़े ही आनन्द से धक्के मार मार कर चुदाई का रस ले रहा था। तभी उस लगा कि राधा झड़ने लगी है।

“अरे रुक मत, चोदे जा… साली को फ़ाड़ दे यार…”

“अरे फ़ाड़ूंगा तो मैं अब तेरी गाण्ड को… मेरी प्यारी राधा… तैयार है ना?”

“ओह मेरे माधो… तू मेरी गाण्ड मारेगा तो तेरी कसम… मेरी तो रही सही कसर पूरी हो जायेगी।”

फिर पलटते हुये घोड़ी सी बन गई। गाण्ड को उसने ऊपर उभार ली। माधो ने अपने तने हुये लण्ड को उसकी गाण्ड के छेद से सटा कर जोर लगाया। उधर राधा ने भी अपनी गाण्ड को लण्ड पर दबा दिया। बिना किसी आवाज के लण्ड गाण्ड में उतरता चला गया।

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“ओह्ह्ह्ह मेरे राजा… प्यार से घुसता है लण्ड तो बात ही कुछ ओर आनन्द की होती है… दुगना आनन्द आ जाता है…”

“तुम मेरी रानी हो, तो प्यार से ही तो चोदूँगा ना !”

माधो का लण्ड अब सटासट चलने लगा था। जमाने भर की मिठास उसके लण्ड में भरी जा रही थी। फिर तो जैसे बांध टूट गया हो… लण्ड धीरे से बाहर निकाल कर उसने एक तेज वीर्य की धार छोड़ दी… बार बार उसका लण्ड पिचक पिचक कर वीर्य की धार निकालता रहा। फिर एक तरफ़ लुढ़क सा गया।

राधा धीरे से उठी…- मेरे माधो… मेरे दिल की इच्छा पूरी हो गई… अब मैं चलूँ… बहुत से काम बाकी हैं अभी।

“अरे जा रही हो ? रुक जाओ ना…”

“माधो… मैं तो कब की जा चुकी हूँ…”

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।

अगला भाग आपके कमेन्टस के बाद
Superb update Nice start
 

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भाग -2
राधा धीरे से उठी…- मेरे माधो… मेरे दिल की इच्छा पूरी हो गई… अब मैं चलूँ… बहुत से काम बाकी हैं अभी।

“अरे जा रही हो ? रुक जाओ ना…”

“माधो… मैं तो कब की जा चुकी हूँ… बस तेरा प्यार पाना था, उसे ही निभाने आई थी… कहीं मेरा प्यार, मेरा माधो प्यासा ना रह जाये…!”

“यह तुम कहाँ जा रही हो?”

“मेरी इज्जत तो राम सिंह ने लूट ली थी… फिर उसने मुझे मार कर झाड़ियों में फ़ेंक दिया था। रात भर मुझे भेड़ियों और जंगली जानवरों ने मुझे नोच-नोच कर मेरे चीथड़े तक उड़ा दिये थे। हो सके तो मेरी याद में पीपल के नीचे कभी कभी आ जाया करना।”

माधो की आँखें फ़टी की फ़टी रह गई। उसकी चीख उस कमरे में गूंज गई। राधा जा चुकी थी। वो जोर जोर से फ़ूट फ़ूट कर रोया उस दिन। वो लगभग घिसटते हुये अपने घर की चला आया। माधो का मन राम सिंह को चीर डालने को हो रहा था। एक नफ़रत की आग उसके सीने में जल उठी।

गाँव में आज खासी चहल पहल थी। राम सिंह चौधरी आज मुम्बई से लौट आया था। माधो राधा की याद में रोज पीपल के पेड़ के नीचे जाता था। तथाकथित राधा का साया उससे नियम से मिलने आता था। उन दोनों ने मिल कर एक सुन्दर सी गुड़िया बनाई। खूबसूरत सी… रोज रात को वो दोनों उसका कभी तो छोटा सा घर बनाते और कभी तो बड़ा सा घर बनाते। कभी कभी उसके घर के आस पास फ़ूलों के पौधे भी लगाते थे। गाँव वालो ने देखा कि पीपल के नीचे एक गुड़िया है और अब उसके आस पास सुन्दर से फ़ूल लग आये है… तो बात चल पड़ी थी।

माधो रोज सुबह पीपल के वृक्ष के नीचे जाता था और उसे संवारता था। गाँव वालों के पूछने पर वो कहता था… राधा का भी तो स्मारक चाहिये।उसने वहां एक कुटिया बना दी राधा के शयन कक्ष सहित ।

अब गाँव के लोग वहाँ पर आने लगे थे। पर वो उस राधा के लिये नहीं आते थे…

एक वर्ष बीत गया। अमावस्या की रात थी। दीना राम सिंह रात को कुटिया की देखभाल करने निकला तो वो माधो से टकरा गया।

राम राम छोटे चौधरी…

घर जा रहे हो… चाबी दे जाओ कुटिया की… दीना ने उससे चाबी मांग ली।

माधो ने कुटिया की चाबी उसे दे दी और घर चला आया। दीना राम अन्दर गया तो उसे लगा कि कोई अन्दर है। वो सावधान हो गया। पर उसे तब बहुत आश्चर्य हुआ कि अन्दर एक सुन्दर सी युवती अपने शयन कक्ष का पोंछा लगा रही थी।

“ऐ… कौन है रे तू… अन्दर कैसे घुस आई?

“यह घर मेरा है… मैं राधा रानी हूँ…”

“झूठ बोलती है साली… चल निकल यहाँ से…”

राधा ने उसे देख कर एक प्यारी सी मुस्कराहट दी- बड़े जालिम हो ! मुझे देख कर तुम्हे रहम नहीं आता है…?

दीना ने यहाँ वहाँ देखा, फिर धीरे से बोला- तुझे देख कर तो प्यार आता है… चल रात को यहीं सो जाना… सुबह चली जाना… कितना लेगी…

“मैं… तो पूरा लूंगी… कितना लम्बा है?”

“ओये… चुप कोई सुन लेगा… चल चल अन्दर चल…”

“मेरे कमरे में चलें… महकदार है… बड़ी सी खाट है… पूरा लेने में आनन्द आयेगा।”

दीना का तो खुशी के मारे बुरा हाल था। वो जल्दी से कमरे में घुस गया।


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“अरे तूने कपड़े कब उतारे…?” राधा को नंगी देख कर वो बोला।

“जब पूरा अन्दर घुसेड़ना हो तो तैयार रहना चाहिये ना… चल जल्दी कर तू भी !”

दीना ने भी जल्दी से कपड़े उतार लिये… उसका लण्ड तो खुशी के मारे उफ़न रहा था।

“पहले गाण्ड मारेगा या चूत पेलेगा?”

“दोनों मस्त हैं… पहले गाण्ड का मजा लूँगा।”

दीना ने उसे घोड़ी बना कर उसकी गाण्ड में लण्ड घुसा दिया।

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जैसे ही उसका लण्ड राधा की गाण्ड में घुसा वो दर्द से चिल्ला सा उठा- अरे क्या कांटे भरे हुये हैं अन्दर… साली रण्डी !

“कभी किसी की गाण्ड मारी है… या यूँ ही मर्द बने फ़िरते हो…?”

राधा के ताने से दीना का मर्दानापन फिर से जाग गया। उसने तो फिर दर्द की परवाह ना करते हुये गाण्ड मारी। पर दर्द के मारे उसका स्खलन नहीं हुआ। उसका लण्ड लहूलुहान हो गया था।

“अरे ये क्या हो गया? लग गई क्या? कच्चे खिलाड़ी हो… चूत क्या खाकर चोदोगे…” राधा हंस पड़ी।

राधा अपनी टांगें खोल कर लेट गई।

“यह नरम, प्यारी सी चूत तुम्हारे किस्मत नहीं है !”

“अरे जा छिनाल, तुझे चोद चोद कर रण्डी ना बना दूँ तो कहना…!”

“तो आजा… मेरी जान… लग जा ना…!”

वो उछल कर उसकी दोनों टांगों के मध्य आकर बैठ गया और अपना दर्द सहता हुआ लण्ड एक बार तो उसकी चूत में घुसा ही दिया।

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उसके लण्ड को भीतर घुसते ही ठण्डक मिली … दर्द गायब सा हो गया। दीना ने जोर जोर से शॉट पर शॉट लगा कर चोदने लगा। तभी राधा ने उसका लण्ड अपनी चूत में कस लिया।

“अरे क्या मजाक करती है… मजा नहीं आ रहा है क्या?”

“हाय मां! जब लण्ड चूत में घुसा हो तो आनन्द ही आनन्द है… है ना…?”

तभी दीना चीख उठा… अरे जालिम ये क्या? छोड़ दे…

राधा का रूप बदलने लगा था। उसके चेहरे पर नाखून की खरोंचों के निशान उभरने लगे थे। वो भयानक सी लगने लगी थी… उसके दांत एक एक करके गिरने लगे थे… बाल टूट कर बिखरने लगे थे। आंखों की जगह बस छेद नजर आ रहा था। एक भयंकर हंसी उभरने लगी थी।

मेरा ऐसा हाल तेरे बाप ने किया था दीना…

बाहर तेज हवा चलने लगी थी… जैसे अंधड़ के रूप में हवा सीटियाँ बजा कर चल रही हो। दीना चीखता हुआ अपना लण्ड उसके पंजर में से निकालने की कोशिश करने लगा था। तभी उसकी चीख ने कमरा जैसे हिला कर रख दिया था। उसका लण्ड जड़ से उखड़ कर शरीर से बाहर आ गया था। खून का एक तेज फ़व्वारा निकल पड़ा…।

पुलिस कुटिया के बाहर छानबीन कर रही थी। मर्दाना लाश जान पड़ रही थी। लाश जंगली जानवरों ने उसे उधेड़ कर रख दी थी। लाश ठीक वही थी जहाँ पर राधा की लाश पाई गई थी। पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिये अस्पताल भेज दी थी।

सबने समझ लिया था कि दीना जंगली जानवरों का शिकार हो गया है।

रात को राधा ने माधो को दीना के बारे में बताया तो माधो के दिल में एक शान्ति सी हुई। उस दिन रात को माधो और राधा ने खूब प्यार किया।

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फिर एक दिन राम सिंह उस कुटिया में गया तो राधा ने उसे भी अपने चपेट में ले लिया। वो उसके तन में चुपके से समा गई।

राधा के पास वो मौका भी आ गया जिसका उसे इन्तजार था। राम सिंह ने खूब पी ली और वो हाथ में शराब की बोतल लिए अपनी विधवा बहू गौरी के कमरे में चला आया। राधा की आत्मा आज राम सिंह को सबकी नजरों में गिराना चाहती थी।

“ओह, बाबू जी आप…?”

“दीना को गए बहुत दिन हो गए तेरी जवानी का क्या होगा अब? तन की आग तो मर्द के पानी से ही बुझती है ना !”

गौरी ये सुन कर तो सन्न रह गई। एकबारगी उसकी आँखें झुक गई और धीरे से बोली- बाबू जी…! मैं आपकी बेटी जैसी हूँ !

राम सिंह ने उसे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़ गये। गौरी चीखी तो उसकी आवाज के कारण राम सिंह की पत्नी, गौरी की सास अपने कमरे से बाहर आई, उसे गौरी के कमरे से आवाजें आती प्रतीत हुई वो दबे कदमों से चल कर वहाँ गई। धीरे से दरवाजा ठेला तो अन्दर जो देखा तो वो सन्न सी रह गई। उसने अपने पति को गौरी के ऊपर से खींचा तो वो उठ कर खड़ा हुआ, उसके अन्दर की राधा बोली- राम सिंह ने मुझे बर्बाद किया था, मैं इसे बर्बाद कर दूंगी। दीना को मैंने मारा था !

इतने में गौरी ने वहीं पड़ी शराब की बोतल उठाई और दोनों हाथों से पूरे जोर से राम सिंह के सिर पर दे मारी। बोतल टूट गई और राम सिंह पीछे पलटा, तो इतने में गौरी ने टूटी बोतल उसे पेट में घुसेड़ दी।

राम सिंह जमीन पर गिर परा और राधा की रूह राम सिंह के शरीर से निकल कर गौरी की काया में प्रवेश कर गई।

राधा गौरी के मुख से बोली- आज मेरा बदला पूरा हुआ !

तेज चीखें सुन आसपास के लोग वहाँ आ गए।

गौरी की सास बोली- बहू ! यह क्या किया तूने और तू क्या बोल रही है? कैसा बदला?

” मैं तेरी बहू गौरी नहीं राधा हूँ ! वही राधा जो डेढ़ साल पहले मर गई थी। मुझे जंगली जानवरों ने नहीं तेरे पति राम सिंह ने मारा था।”

राम सिंह अपनी आखिरी सांसें लेता हुआ यह सब सुन रहा था ! उसकी आंखों के सामने वो सारा दृश्य चलचित्र की भाँति घूम गया।

” मैंने ही तेरे बेटे दीना को मारा था ! अब यह कमीना राम सिंह मर रहा है ! मेरा बदला पूरा हुआ, मैं जा रही हूँ !

अगले दिन सारे गाँव में राम सिंह की करतूत का पता चल गया और यह भी राधा ने अपना बदला राम सिंह और उसके बेटे को मार कर ले लिया।

अब उस कुटिया में कोई नहीं आता जाता है… वहाँ जाता है तो बस वो माधो… वो अब भी अपनी राधा को उस जंगल में खोजता फ़िरता है।

पर राधा की आत्मा को शान्ति मिल चुकी थी… भले ही माधो अब राधा से ना मिल पाता हो… पर उसे उस कुटिया में आकर बहुत शान्ति मिलती है।
समाप्त

कमेन्टस का इन्तजार रहेगा
कहानी कैसी लगी अवश्य बताएं
 
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Lutgaya

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बहुत खूब, लुटगया भाई… शॉर्ट एँड स्वीट…
धन्यवाद मित्र
 
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