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जबरदस्त होलीननद भौजाई -होली में रगड़ाई
घर की बेटी, घर की मान मर्यादा, घर का गुरूर होती है। ऐसे में अगर उसके कदम जवानी की दहलीज पर डगमगाते हैं तो घर की इज़्ज़त भी जाती है। बेटी की जवानी से जब पराया मर्द खेलता है तो, केवल वो नंगी नहीं होती बल्कि उसकी घर की मान मर्यादा भी बिस्तर में कुचल दी जाती है। काम- सुख की लालसा में अक्सर लड़कियां/औरतें अपने माँ बाप को भूल लुटने को बेताब होती है। हालांकि, वो आनंद कुछ क्षण का होता है, पर उस चरमसुख के आगे वो अपनी और परिवार की इज़्ज़त नीलाम कर आती है। आजतक कोई भी सामान्य मर्द ऐसा नहीं हुआ, जिसे मौका मिले तो वो ऐसे सुनहरे अवसर को जाने दे। एक तो स्त्री से समागम का अनूठा सुख और जब वो सामने से चलके बिस्तर में समाए तब तो रुकना पुरुष धर्म के विरुद्ध है।
मीरा तेज कदमों से राजू के कमरे की ओर बढ़ रही थी। थोड़ी देर में वो राजू के बिस्तर के सामने खड़ी थी। मीरा ने अपनी आने से पहले एक घाघरा चोली पहन लिया था, जो वो कई सालों से नहीं पहनी थी। होली में अक्सर निम्न माध्यम वर्ग के लोग पुराने कपड़े पहन कर रंग खेलते है ताकि नए कपड़ों का नुकसान न हो। मीरा का घाघरा तंग था, जोकि घुटनों से ऊपर ही खत्म हो जा रहा था। उसकी चोली भी काफी तंग थी, जिसमें उसकी चुच्चियाँ समाने के लिए आपस में ही द्वंद्व करती नज़र आ रही थी। उसकी ढोढ़ी से लेकर उसकी चोली तक का हिस्सा पूरा खुला था। उसकी गर्दन से लेकर कमर तक का हिस्सा लगभग नंगा था। क्योंकि पीछे सिर्फ चोली के धागे बंधे हुए थे जो अपने कसाव के दबाव की वजह से उसकी त्वचा को उभार रहे थे। पीले रंग की उस जोड़े में वो बेहद आकर्षक लग रही थी। राजू अपने बिस्तर में करवट डालके सोया था।
मीरा राजू की ओर जाकर खड़ी हो गयी और मुस्कुराते हुए बोली," राजू जी उठी, देखि भोर हो गइल बा।"
राजू गहरी नींद में था, उसने कुछ भी नहीं सुना। मीरा को शरारत सूझी उसने पास रखे लोटे का पानी राजू के चेहरे पर उड़ेल दिया। राजू हड़बड़ा कर उठा और चिड़चिड़ा हो उसकी ओर लपका। वो पीछे हटी पर राजू के हाथ सीधा उसकी चोली पर थम गए। राजू ने थप्पड़ मारने के लिए उठाया ही था, तो मीरा अपने दोनों हाथ ऊपर कर खुद को बचाने को हुई। राजू ने जब देखा वो मीरा थी तो फिर हाथ रोक लिया और बोला," मीरा, तू अइसे काहे कइलु?
मीरा उसकी ओर देख बोली," रउवा के गुस्सा बड़ी तेज आवेला। औरत पर सच्चा मरद हाथ न उठावेला। आज होली बा, एहीसे रउवा साथ होली खेले आइनि ह।"
राजू," हाँ, गुस्सा त बहुत आवेला जब केहू सुतल आदमी पर ठंढा पानी गिरावेला। लेकिन होली के दिन बा अउर तू दीदी के ननद ठहरलु त तहरा सब माफ बा।"
मीरा," अच्छा, त हमार चोली त छोड़ दी, जाने कब फट के रउवा के हाथ में आ जाई।"
राजू ने हंसते हुए उसकी चोली छोड़ दी। मीरा राजू की कमीज पकड़ उसे कोने में ले गयी और उसकी आँखों में देखते हुए बोली," आज हमरा साथ, रउवा के होली खेले के पड़ी।"
राजू," कइसे?
मीरा," पहिले रंग अउर गुलाल से। ओकर बाद हमरा साथ रंगरेली मनाई के।"
राजू," लेकिन घर में कइसे रंगरेली मनाइबू, केहू आ जाइ त।"
मीरा," भैया अउर बाबूजी गांव के चौपाल पर बारे। उंहे मरद सब होली खेलेला अउर फगुआ गावेला। माई के घुटना में दरद बा पिछला दु दिन से, उ बिस्तर न छोड़ि। रउवा खातिर कउनु रुकावट नइखे।"
राजू," अउर दीदी?
मीरा," उ तहरा खातिर तहार पसंद के चीज बनावत बिया। हमरा संग होली खेलबु बोला न।"
राजू बोला," लेकिन हमरा इँहा सब अलगे होली खेलेला। हमरा संग होली खेलबु त वसही खेले के पड़ी।"
मीरा," कइसे होली खेलेली रउवा लोकन?
राजू," हमनी के सामने वाला के कपड़ा फाड़ देत जानि जा।"
मीरा," त का रउवा हमार ई चोली अउर घाघरा भी फाड़बु?
राजू," अउर न त का। ओकर बाद सगरो देहिया के गह गह में रंग पोतब, रानी।"
मीरा उसकी आँखों में देख बोली," लइकी के लंगटी करे में रउवा के अच्छा बुझाई का? अउर रंगबा का चीज़ से?
राजू," लइकी के लंगटी करे में बड़ा मजा आवेला। आपन दुनु हाथ से रंगब तहरा।"
मीरा उसकी आँखों में बेशर्मी से देखते बोली," खाली हाथ से, तहरा लंग पिचकारी नइखे का?
राजू मीरा की गाँड़ मसलते हुए बोला," अइसन पिचकारी बा, जउन में रंग कभू खतम न होखेला। ओकर साइज देखबु त तहार आँखिया फट जाई। उ पिचकारी से तहरा रंगाबे में खूब मजा आयी।"
मीरा," एतना गुमान बा तहरा आपन पिचकारी पर, त देखाबा।"
राजू ने अपनी अंडरवियर उतार कर उसके सामने अपना लंबा काला लण्ड बाहर निकाला, जो मीरा की शान में सलामी दे रहा था। मीरा उस विकराल लण्ड को जैसे देखी उसकी आंखें बड़ी हो गयी और मुँह खुला का खुला रह गया। राजू ने उसे देखा तो उसकी हंसी छूट गयी। उसने मीरा की ओर देख बोला," का भईल रानी, पसंद बा पिचकारी कि ना? हमके त बुझाता तहार आंख फट के गिर जाइ, साथ साथ बुझाता कि तहार गांड़ियाँ भी फट गईल।" उसने मीरा के गाँड़ के छेद को छेड़ते हुए कहा। मीरा उसकी ओर देख बोली," राजा राउर पिचकारी त एकदम बम पिलाट बा। हम तहार ई पिचकारी से खेलब त हमार हालत खराबे न बर्बाद हो जाइब।"
राजू ने मीरा से कहा," इहे बर्बादी में त लईकी सबके मज़ा आवेला। तू भी त बर्बाद हुए खातिर आइलु न।"
मीरा," हाँ, तू आपन पिचकरिया से हमार रंग के डिबिया खोल द।"
राजू," उ त होबे करि रानी, लेकिन उसे पहिले होली खेलल जाउ।"
मीरा," इँहा कमरा में रंग डालबु त गीला गीला हो जाई। हमनी घर के पिछवाड़ा में होली खेलेलि। ऊंहा चले के।"
राजू मान गया। राजू नीचे झुक अपनी चड्डी उठानी चाही, तभी मीरा ने अपनी चोली के भीतर छुपाया गुलाल निकाला और राजू के ऊपर डालकर हंसते हुए तेजी से कमरे से भाग गयी। राजू उसके पीछे भागा। मीरा कमरे से निकल छत पर भागी। राजू उसके पीछे भाग रहा था। छत पर पहुंच मीरा एक पुराने से कमरे में घुस गई, जिसका दरवाजा टूटा हुआ था। राजू भी उसके पीछे पीछे पहुंच गया। मीरा दरवाजे के दोनों पल्लों को थामे खड़ी थी। वो लगातार हंस रही थी।
मीरा," हा.... हा.. हा... बड़का पिचकारी से का होई, अगर डिबिया न मिली रंग वाला। बड़ा आईल रहे होली खेले। बुरबक.... उल्लू...हा.. हा...
राजू," साली तू एक बेर हाथ आजो, तब बताईब तहरा। आजके होली तहरा याद रही। चुहिया कहीं के।"
मीरा," अच्छा पहिले पकड़ त ले। ई चुहिया आसानी से हाथ न आई। हा... हा... हा।"
राजू अपने मन में बोला," ई साली के आज सबक सिखाबे के पड़ी। अबतक त दीदी के खातिर एकरा चोदे के रहल, लेकिन अब एकरा चोद के खुद के संतोष देबे के पड़ी।"
मीरा की हंसी सुन वो उत्तेजित हो रहा था। इतने में जोर का धक्का लगा तो दरवाजा खुल गया, मीरा अंदर भागी और राजू फिर उसके पीछे गया। अब मीरा उस कमरे में दीवार से लग खड़ी थी। राजू उसके करीब आया, और उसे दबोच लिया। मीरा के माथे, होठों के आसपास पसीने की बूंदे थी। राजू ने उसकी चोली सामने से पकड़ ली, और दूसरे हाथ से उसे जकड़े हुआ था। मीरा वो चोली फटने से बचाने के लिए उससे संघर्षरत थी। दोनों एक दूसरे पर जोर आज़मा रहे थे। इसी क्रम में दोनों फर्श पर गिर गए। उसके फर्श पर गिरते ही, राजू उसके ऊपर आ गया और उसकी चोली पर दोनों हाथों से पकड़ बना पूरी ताकत से खींचा, मीरा की चोली फटके उसके हाथों में आ गयी। मीरा की चोली में छुपा गुलाल की पुड़िया भी खुल गयी। वो सारा रंग मीरा के चूचियों, चेहरे और गले पर गिरा। राजू खुश हुआ और मुस्कुराते हुए उसकी नंगी चूचियों पर रंग दोनों हाथों से फैलाने लगा। मीरा उसकी ओर देख रही थी। उसे अपनी नंगी चूचियों पर राजू के मर्दाना हाथों का मर्दन अच्छा लग रहा था।
मीरा बोली," हो गइल मन खुश इहे करे चाहत रहलु न, फाड़ के चोली कर देलु हमके लंगटी।"
राजू," अभी त आधा भईल रानी, अभी तहार घाघरा भी फाड़ब।"
मीरा," ना, मत फाड़अ, केहू फाटल घाघरा देखी त का सोची। छोड़ द।"
राजू उसका घाघरा पकड़ बोला," रानी अब तू कुछो बोल, घाघरा त तहार फट के रही।" ऐसा बोल राजू ने उसका घाघरा उठाया और उसे कोने से पकड़, जोर से फाड़ दिया। एक लंबा चीड़ा नीचे से ऊपर तक घाघरा पर लग गया। पर वो कमर से नहीं फटा।
मीरा," ना फटी, तहरा से हमार घाघरा, देख लेनी तहरा में केतना दम बा।"
राजू ने एक एक करके चार पांच चीड़े नीचे से ऊपर तक लगाया, पर कमर में फट नहीं रहा था। मीरा अपने दोनों हाथों से अपने चुलबुले कबूतरों को थामे, हंस रही थी। ये हंसी राजू को चिढ़ा रही थी। फिर राजू ने उसकी कमर पर बंधी डोरी को खोल दिया और अलग किया। इसके बाद राजू ने कमर से घाघरा को पकड़ा और कसके खींचा, तो आधा घाघरा ऊपर से फटके उसके हाथों में आ गया। घाघरा का निचला हिस्सा, मीरा की गाँड़ की वजन से वहीं पड़ा था। अब राजू के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। उसने मीरा के घाघरा के चीथड़ों को फेंक दिया और उसकी रेशमी बालों से घिरी बहती कुंवारी बूर को देख बोला,"देखलु हमार दम मीरा, अब तू हो गईलु पूरा लंगटी। बड़ा हँसत रहलु, अब हँस ना साली। हा.... हा.. हा..चल, अब रंग लगाएब तहरा रानी।" राजू ने पूरा गुलाल उठाया और उसके बूर पर गिरा मल दिया। राजू ने खूब अच्छे से उसकी बूर फैला फैला कर उसे रंग लगाया। मीरा को अजीब सा सुकून मिल रहा था। राजू ने उसके पेट, जांघों, ढोढ़ी और बूर पर खूब रंग मला। मीरा अब शांत पड़ी रंग लगवा रही थी। राजू ने अच्छे से रंग मल उसकी ओर देख बोला," आईल, मज़ा रानी।"
मीरा उसकी बनियान पकड़ बोली," अभी त हाथ से लगेलु, पिचकारी से रंगबु तब मज़ा आई।"
राजू," मीरा, सच में तहरा में ढ़ेर गर्मी बा। अब का करि बोला।"
मीरा," खाली आगे रंग लगेलु, हमार पीछे त खालिये बा।"
राजू हल्का उठा, जब मीरा ने उसे उठने का इशारा किया। फिर वो वहीं उठ खड़ी हुई। दीवार पर दोनों हाथ रख वो अपनी नंगी जवानी, राजू को पीछे से दिखा बोली," राजू, हमके पिछवा भी रंग लगाबा।"
राजू उठा और दोनों हाथों में रंग लगा उसकी गर्दन,पीठ,कमर और गाँड़ पर भर भर के गुलाबी रंग पोत दिया। राजू उसके भारी चूतड़ों और उनके बीच की दरार में हाथ घुसा घुसा के रंग लगा रहा था। वो रंग मलते हुए मीरा के गुप्तांगों का पूरा एहसास ले रहा था। मीरा अब कोई प्रतिरोध नहीं कर रही थी। राजू उसकी जांघों और पैरों में भी रंग मल चुका था। मीरा की गाँड़ और बूर के बीच भी वो खूब रंग लगाया। मीरा का सिसयाना उसकी तीव्र उत्तेजना का प्रतीक था। तभी राजू ने मीरा को अपनी ओर घुमा बोला," अब का प्लान बा, मीरा जी।"
मीरा," अब, असली होली खेले के राजू। तहार पिचकारी और हमार गीला रंग के डिबिया।" ऐसा बोल मीरा उसका लण्ड थाम उसके आगे झुक कर उसकी चड्डी उतार दी। राजू के लंबे काले लण्ड को बेहद नजदीक से ऊपर से नीचे तक देख रही थी। राजू उसके चेहरे पर कामुकता की झलक साफ देख सकता था। राजू उसके माथे को सहलाते हुए बोला," का भईल?
मीरा उसकी ओर देख बोली," ई आज हमके लइकी से औरत बना दी। बहुत परेशान भइनी, एकरा खातिर।"
राजू," तहरा आज महसूस होई कि, का मज़ा आवेला असली होली में। तहार अंग अंग आज जवानी के सब रंग में लिपट के मस्त हो जाई।"
मीरा," राजू, तू लइका लोग एकरा का कहेलु?
राजू," काहे तू न जानेलु एकरा का कहेला?
मीरा," ल..लां..लांड...।"
राजू," बहुत बढ़िया तू त बुझेलु, लेकिन तू संकोच काहे करेलु, खुल के बोल, बिंदास होके।"
मीरा पर भाँग का नशा चढ़ चुका था। इसीलिए तो वो अपने कपड़े राजू से फड़वाई थी। वो बोली," राजू आज हम न संकोच करब, न लजाइब। आज खुलके हमके आपन लांड से चोद दअ। एतना बढ़िया मजबूत लांड के हम लइकी सब लौड़ा कहेनी। लौड़ा के बात ही कुछ अउर बा राजा।" ऐसा बोल उसने उसके लण्ड के सुपाड़े को अपने कोमल होठों का स्पर्श कर चुम्मा दिया। राजू ने देखा कि वो पूरी शिद्दत से उसके सुपाड़े पर चुम्बन की बौछाड़ कर रही है, ये देख राजू की मर्दानगी अब पूरे उफान पर आ गयी। रंगबिरंगी मीरा राजू के लण्ड को चूमते हुए कब चूसने और चाटने लगी पता ही नहीं चला। मीरा को ऐसा करते देख, राजू को काफी संतुष्टि मिल रही थी। राजू को अपने चूसे जा रहे लण्ड पर मीरा के मुंह की गर्माहट, उसके जीभ की गुदगुदी, उसके वासनामयी आंखों में अपने लण्ड के समतुल्य उसकी गरिमा व गौरव देख अलग ही आनंद आ रहा था। मीरा लण्ड चूसने का काम बहुत अच्छे से कर रही थी। मीरा लण्ड को अपने पूरे चेहरे पर रख उसकी नपाई कर रही थी। उसका लण्ड उसके चेहरे जितना या उससे थोड़ा ज्यादा ही होगा। मीरा उसके लण्ड को मुठियाते हुए बोली," राजू, जी रउवा सच में असली मरद हईं। एतना कड़ा, लंबा, मोटा, लांड कउनु नसीब वाली के मिली। उ त निहाल हो जाई, जेकरा से तहार बियाह होई। उम्म्म्म्म.... उम्म्म्म्म... ऊ..उ उ ।"
राजू उसके बालों को सहलाते हुए बोला," तू त बहुत बढ़िया लांड चुसेलु। पहिले केकरो चुसले बारू का।"
मीरा," न, राउर लांड हमार हाथ में बा हम एकर कसम खाके बोलेली। हम तहरा सिवा केहू अउर के लांड न हाथ में लेनी।"
राजू ने उसके खुले मुँह में थूक दिया और बोला," हमार थूक पी ले, अउर कसम खो कि तू केहू अउर के लांड न देखलु।" मीरा ने हंसते हुए थूक निगल लिया और बोली," तहार थूक चाट के बोलत हईं, हम केहू अउर के लांड न छूनी ह।" राजू ने उसे फिर आगे लण्ड चूसने का इशारा किया। मीरा वापिस लण्ड चूसने लगी। राजू ने अपने आंड़ चटवाने के लिए लण्ड उठा उसे दोनों आंड़ उसके मुंह के करीब लाया। मीरा उसके आंड़ को बिल्कुल लण्ड की तरह चाट रही थी। मीरा उसके लण्ड के साथ साथ उसके झांटों को भी जीभ से चाट के पूरा गीला कर दी। राजू को उसका समर्पण और कामुकता दोनों ही काफी प्रभावित कर रहा था। मीरा की बूर अब काफी बह रही थी। वो रह रहके राजू से अपनी खुजलाती बेचैन बूर में लण्ड घुसाने को कह रही थी। हालांकि वो भाँग के नशे में थी, और लण्ड चूसने को छोड़ना भी नहीं चाहती थी। आखिर राजू ने उसे लड़की से औरत बनाने के लिए अपने आगे घोड़ी बनने को बोला। मीरा फौरन अपनी गाँड़ उठा, अपने दोनों हाथों और पैरों पर घोड़ी जैसी हो गयी। राजू ने बोला," रानी तेल न लेलु तहार बूर कसाईल होई, एतना मोटका लांड घुसी आसानी से न घुसी।"
मीरा," अब तेल कहाँ लावे जाई अइसे, थूक लगाके डाल द न।"
राजू ," लेकिन मीरा तहार पहिल चुदाई बा, बूर के झिल्ली फाटि, दरद होई।"
मीरा," दरद होई त हमरा होई ना, असहु हम आज भाँग के नशा में बानि, लागत बा बूर में चुट्टी रेंगत बा। लांड घुसाबा अउर शांत कर दे।"
राजू," जइसन तहार मर्ज़ी बाद में हमरा कुछ न कहिया।"
मीरा," न कुछ न बोलब, तू एक बार में पूरा लांड हमार बूर में समा द।"
राजू ने लण्ड को थूक से गीला किया, थोड़ा थूक उसने मीरा की पहले से गीली बूर में लेप दिया। उसने पहले लण्ड का सुपाड़ा उसके बूर के फांकों में समा दिया और बूर के छेद पर टिकाया। बिना देर किये उसने एक ही झटके में मीरा की बूर में लण्ड जोर से ठेल दिया। लण्ड मजबूत और उत्तेजित था। मीरा की बूर की झिल्ली राजू के तीरनुमा सुपाड़े के झटके से क्षत विक्षत हो अंदर बूर में घुस गई, जैसे पुरानी फिल्मों में हीरोइन की इज्जत लूटने गुंडे दरवाजा तोड़ अंदर घुस जाते थे। मीरा को नशे की वजह से दर्द महसूस नहीं हुआ, उसे बस ऐसा लगा किसीने उसे कोई सुई चुभोई हो। आखिर राजू की पिचकारी मीरा के रंग की डिबिया खोल दी। मीरा की बूर से खून बहने लगा। राजू ये देख हंसा। मीरा उसकी ओर देख बोली," काहे हँसेलु?
राजू," पिचकारी रंग के डिबिया खोल देले बा। हमार लांड तहार बूर के खोल दिहलस। लेकिन तू बहुत बहादुर बाड़ि, एकदम से लांड झेल लेलु। अब तहार बूर खुल गईल बा, अउर तहरा दरद भी जादे न भईल, तहरा अब खूब चोदब रानी। न त लइकी सब पहिल बेर लांड लेवेली त कानेली। रुके पड़ेला चुदाई करे खातिर।"
मीरा," अच्छा, त अब कर द न चुदाई, आपन दीदी के ननदिया के। हम इज्जत लुटाबे खातिर बेकरार बानि।"
राजू ने उसके चूतड़ों पर चमाटे मार, उसके कमर को थाम बूर में लण्ड अंदर तक ठेल उसे चोदने लगा। मीरा भी भाँग के नशे में चुदबाने में मगन हो गयी। वो अपनी कमर आगे पीछे कर, राजू के झटकों से ताल मेल बिठा गयी। अब राजू का लण्ड मीरा की बूर की गहराईयों में समा चुका था। दोनों कामसुख के सागर में संग संग तैर रहे थे। राजू उसे हौले हौले तो कभी तेज धक्कों से चोद रहा था। मीरा की सिसकती आँहें पूरे कमरे में गूंज रही थी। मीरा को जाने क्या हुआ था, वो कामुकता में डूबी अपने अंग अंग को राजू से मिसवा रही थी। कभी मीरा की गाँड़ तो कभी उसकी चुच्ची राजू के पंजों में मिसती थी। राजू एक हाथ से उसके बाल पकड़ उसे ऐसे चोद रहा था जैसे घोड़ी की सवारी कर रहा हो। मीरा की मांसल व गद्देदार बूर में उसके लण्ड का बार बार घुसना और निकलना उस यौन क्रीड़ा का मूलभूत आधार था, परंतु मीरा को ये अनुभव ऐसा लग रहा था जैसे वो उड़ रही हो। राजू के झटकों से उसकी हिलती चूचियाँ, थिरकते चूतड़ और मुंह से निकलती थरथराती आंहे इस बात के प्रमाण थे। मीरा ने अचानक राजू को बोला," अब तू लेट जो अउर हमके ऊपर आबे दअ।"
राजू लेट गया और मीरा उसके लण्ड पर बूर को टिका बैठने लगी। लण्ड वापिस से उसकी बूर में माखन की तरह समा गया। मीरा ने राजू के हाथ पकड़ अपने दोनों चूचियों को थमा दिया और लण्ड पर उछलते हुए बोली," राजू, हमार दुनु चुचिया के रगड़ के मिज द। ई दुनु के गाड़ी के हॉर्न जइसन दबावा। तू ड्राइवर बारू अउर हम गाड़ी। नीचे से ठेलआ अउर ऊपर हॉर्न दबावा। गाड़ी आज रुकी न, देखे के बा कि ड्राइवर में केतना दम बा।"
राजू," तू भी साली एक नंबर के छिनार बारू। एतना बेशर्म बारू, कि खुदके चुदाई के मशीन अउर हमके आपन ड्रेबर बनेलु। रंडी साली, मादरचोद।"
मीरा," का करि तहरा सामने बिना बेशरम बने काम न चली। चुदाई में बेशर्मी औरत खातिर जरूरी बा। तू गाली देवेलु त मज़ा आवेला। हमके गाली दे द, हम बुरा न मानब। हमके रंडी, छिनार, कुत्ती जे मन करे बुलावा।"
राजू," हरामजादी, तू सच में रखैल बने लायक बारू। तहरा कपड़ा फाड़ के हम ठीक कइनी।"
मीरा हँस कर बोली," तू फाड़ लू न, उ हम जान के फड़बैनी हो। तू इज्जत लूट लेलु ई घर के, काहे कि हम लुटाबे चाहत रहनि।"
राजू," अइसन बेचैन रहलु त काहे न धंधा करेलु, पइसा भी मिली।"
मीरा," तहरे से शुरू करि का, हमार पहिल ग्राहक बन जो।"
राजू," काहे न, लेकिन ई बात त चुदाई से पहिले करे के रहल।"
मीरा," अब कर ल, नया बूर बा तुहि खोललु। बोलआ केतना देबु।"
राजू," आज तहार नथ उतारी बा, अउर हम पहिला ग्राहक। हम तहरा दु हज़ार देब त चली न।"
मीरा," दु हज़ार, अइसन टंच माल के। कम से कम दस हज़ार लागी। लोग कुंवारी लइकी के त बहुत पइसा देवेला।"
राजू," न दस हज़ार बहुत ज्यादा बा, एक काम कर तू तीन हज़ार ले ल।"
मीरा," चिल्लर कहीं के, अइसन माल के तीन हज़ार में बूर भी देखे न मिली। चल साढ़े सात हजार दे द।"
राजू," अच्छा न तहार न हमार साढ़े चार में फाइनल कर।"
मीरा," अच्छा, चल पांच हज़ार में डील फाइनल कर।"
राजू," ठीक बा, लेकिन पूरा दिन तू हमार रहबु।"
दोनों चुदाई करते हुए इसी तरह गंदी गंदी बातें कर रहे थे। राजू उसे अलग अलग पोज़ में पिछले डेढ़ घंटे से चोद रहा था, पर मीरा थी जो संतुष्ट ही नहीं हो रही थी। ऐसी भयानक चुदाई कोई कुंवारी लड़की शायद ही झेल पाती है, ये तो भाँग की वजह से मीरा चुदवाए जा रही थी। मीरा को वो जितना चोद रहा था, वो हंसते हुए चुद रही थी। राजू लेकिन कम नहीं था, उसने आखिर कर मीरा को झड़ने पर मजबूर कर दिया। मीरा वहीं थक के लेट गयी। दोनों पसीने पसीने थे। मीरा थोड़ी देर के लिए गहरी नींद में जैसे चली गयी। राजू उठा और पसीना झाड़ते हुए बोला," गुड्डी दीदी के बदला हो गइल पूरा, एकरा साथ त होली हो गइल अब गुड्डी दीदी संग होली खेले के बा।"
मीरा को वहीं छोड़, उसने चड्डी और बनियान में अपनी दीदी को खोजता हुआ रसोई में पहुंचा।
गुड्डी रसोई में नहीं थी, फिर वो उसके कमरे में गया वो वहां भी नहीं मिली। तभी उसकी नज़र बिस्तर पर पड़े एक पर्ची पर पड़ी। उसने पर्ची उठायी तो उसमें लिखा था," राजू, घर के पीछे हम सारा व्यवस्था कइले बानि, तू कुछ अउर लाबे चाहिले त ले आवा। हम तहार इंतज़ार में बानि, तहरा खातिर मुर्गा बना रहल बानि।"
राजू का मन बल्लियां उछलने लगा। उसने कमरे से सिगरेट का पैकेट उठाया, एक सिगरेट जलाई और माचिस रख घर के पीछे बने छोटे बगीचे की ओर चला गया।"
राजू जब वहां पहुंचा तो देखा गुड्डी मेज़ पर खाने पीने का सामान सज़ा रही है। वहां चारों ओर पेड़ लगे थे, और चहारदीवारी काफी ऊंची थी। आम, लीची, कटहल के पेड़ एक दूसरे के काफी करीब थे।
पास ही बोरवेल लगा था, जिसमें से उनकी सिंचाई होती थी। हरी घास की मोटी चादर बिछी हुई थी। मौसम भी काफी सुहाना था। राजू को ये माहौल काफी अच्छा लगा। उसने गुड्डी के करीब जाकर उसे पीछे से पकड़ उसके गर्दन पर चूम लिया। गुड्डी हंसती हुई बोली," ले लअ मज़ा कुंवारी बूर के।"
राजू सिगरेट का कस छोड़ते हुए बोला," हां, बिल्कुल जइसे तू कहले रहलु, तहार बदला ले लेनी। लेकिन बहिन के बूर के आगे कुंवारी बूर के कउनु औकात नइखे।"
गुड्डी," राजू, तू थक गईल होबे, ई सिगरेट छोड़ द।" उसने भाँग की ठंढई राजू को देते हुए कहा," ई लअ, एकरा पिय तहार थकान दूर हो जाई।"
राजू ने गुड्डी की ओर देख बोला," सिगरेट पिबु, एक बेर पीके देख न।"
गुड्डी बोली," न हम न पियब। ई बढ़िया चीज़ नइखे।"
राजू," त का ई भाँग बढ़िया चीज़ बा। चल पी।" राजू ने गुड्डी के होठों में सिगरेट लगा दी। गुड्डी ने एक कस खींचा तो, गले से उतरे धुंए को बर्दाश्त नहीं कर पाई और खांसने लगी। गुड्डी उसे मुँह से निकाल फेंक दी। राजू हंसने लगा। राजू ने ठंढई का गिलास मुँह से लगाते ही खाली कर दिया। राजू उसकी ओर खाली गिलास दिखा बोला," देख हम पूरा गिलास खाली कर देनी, तू एक कस भी न मार पाइलु।" गुड्डी उसकी ओर भवें तान देख रही थी, उसकी जुल्फें हवा में लहरा रही थी। जमीन पर पड़ी सिगरेट अभी भी सुलग रही थी। गुड्डी ने उसे उठाया और एक लंबी कस ले धुंआ छोड़ा। उसने एक एक कर तीन चार कस लिए और फिर सिगरेट को फेंक अपनी चप्पल से बुझा दिया। राजू ने मोबाइल पर भोजपुरी गाने बजा दिए थे।
राजू," गुड्डी दीदी, आज तहरा अंदर एगो अलग अंदाज बुझा रहल बा।"
गुड्डी," राजू, आज तहार गुड्डी दीदी के रोकिहा न, काहे आज हम होली खाली खेलब न बल्कि होली जियब।"
राजू," उ कइसे?
गुड्डी," आज हम भाँग भी पियब, अउर नाचब जुगिरा गाके। सब तैयारी हो गइल बा।"
राजू," लेकिन केहू आ जाई तब ?
गुड्डी," अगर आई त देखल जाई।" ऐसा बोल वो बड़े मटके में गिलास डाल भाँग की ठंढई निकाल ली। इसके बाद उसने साड़ी को कमर से बांधा।
गुड्डी भाँग वाली ठंढई का बड़ा गिलास उठा गटागट पी गयी। फिर अपने बाल को खोल फैला दी। इसके बाद आंगन में बजते भोजपूरी गाने पर कदमों की ताल बिठा नाचना शुरू कर दी।
गुड्डी ने जोर का जुगिरा पढ़ा," मकई के रोटी साथे बुझाला निम्मन सरसों के साग, भाई के लांड से बुझेला बहिनिया के बूर के आग...... बोला सारा रररर ररर"
राजू बोला," बिलया में तहार घुसी जब हमार ई नाग, लांड के पानी से बुझी तहार बूरिया के आग.....बोला सारा र्रर्रर्रर"
गुड्डी हंसते हुए बोली," फगुआ में फनफनाता हमार दुनु आम चोली में, चूस के भैया हल्का क द काम होली में...
राजू," बहिनिया चिंता मत कर मिल जाई चैन, चूस के हल्का कर देब आम चाहे दिन रहे या रैन.....
गुड्डी फिर गाँड़ सहलाते हुए बोली," कभू आगे कभू पाछे गाड़ी चलाबे में आवेला मज़ा बड़ा, पहाड़ी के बीच गाड़ी घुसाके चलाई होता बड़ा कड़ा.....
राजू," पाछे गियर डालके गाड़ी चलाबे में बानि नंबर वन,
पहाड़ के बीच घुसाके रानी गाड़ी चली दनादन.....
गुड्डी आंखे झुका बोली," अच्छा गड्ढा में उतारे पड़ी गाड़ी, गड्ढा बा तनिये सा घुसी ना काम बा भारी.....
राजू," गड्ढा में त जरूर उतार देब गाड़ी, तनि होई तकलीफ तनि चिल्लाई सवारी......
राजू ने गुड्डी को गोद में उठा लिया और उसे उठा गोल गोल घूमने लगा। गुड्डी मुँह में गुझिया दबाए राजू की ओर झुकी हुई थी। राजू ने लपक कर उस गुझिया को आधा अपने मुंह में भर लिया। दोनों की गर्म सांसें और सुलगते होठ आपस मे टकरा गए। दोनों की जीभ आपस में मिल गए। वो गुझिया टुकड़े टुकड़े होकर दोनों के मुंह में घुलने लगी। राजू के मुँह में गुड्डी ने जीभ ठूस ठूस कर उसे गुझिया के साथ अपनी हवस का भी स्वाद चखाया। राजू ने गुड्डी को नीचे उतार दिया और एक हाथ उसके पीठ से सरकाते हुए कपड़ों के अंदर सीधा कच्छी में घुसा दिया और दूसरा हाथ सीधा उसके ब्लाउज के अंदर। राजू एक हाथ से उसकी गाँड़ के दरार में उंगली रगड़ रहा था और दूसरे से उसकी चुच्ची की गोलाई का अंदाज़ लेकर उसके भूरे चूचक को छेड़ रहा था। गुड्डी भी राजू से कहां पीछे रहने वाली थी। उसने राजू के पैंट के अंदर हाथ घुसा उसका लण्ड सहलाने लगी।
गुड्डी राजू की आंखों में कामुकता से देख बोली," राजू, कपड़ा उतार के हमके लंगटी करबु का?
राजू," काहे बहुत जल्दी बा लंगटी होखे के?
गुड्डी उसका लण्ड दबा बोली," हां, तहरा सामने जाने का हो जाता, जब तू हमके लंगटी करेला न, हमार एक एक कपड़ा उतार के हमके कामुक नज़र से देखेलु अउर ओकर बाद हमके तब तक एक्को कपड़ा न पेन्हे देवेलु जब तलिक तहरा मन न भर जावेला हमके बहुत अच्छा बुझाता।"
राजू," तहरा काम वासना चढ़ेला त तहरा के अपना पर काबू न रहेला। अइसे में तहरा मन भर चुदाई न मिली त शांत कइसे हो पईबु।"
गुड्डी अपनी चूचियाँ राजू की छातियों से रगड़ते हुए बोली," हमार काम वासना भड़क गईल बा। अब त तहरा कुछ करे के पड़ी।"
राजू उसकी हवस देख, बोला," इँहा खुला में करबु, केहू आ जायीं त?
गुड्डी," सब भाँग पीके लोटल होइन्हे। तहरा हमरा अउर मीरा के अलावा सांझ तलिक केहू न रहि। अउर उ बुढ़िया त घर से निकली न।"
राजू," मीरा कहाँ बिया?
गुड्डी," उ तहरा से चुदाबे के बाद, आराम कइलस अब रसोई में तहरा खातिर स्पेशल मीट बना रहल बिया।"
राजू," उ साली के बूर के सील तोड़े में मज़ा आईल। बेचारी के बूर से ढ़ेर खून बहल। पहिला बेर चुदौलस, लेकिन मज़ा खूब लेलस।"
गुड्डी उसकी आँखों में देख बोली," हमार ननद के चोद तू हमार अपमान के बदला लेलु। ओकर माई हमके दिन रात ताने मारत रहल। बच्चा खातिर। जइसे तू कहत रहलु हम तहार जीजा के बोलत रहनि कि हमके बच्चा चाही। पहिले त ओकरा कुछ न बुझाईल। लेकिन अब उ तहरा साथ हमके चुदाई के छूट दे देले बा। अउर तहरा साथ बच्चा करे के भी पूरा छूट देले बा। उ बच्चा के आपन नाम देवे खातिर भी तैयार बा, काहे से एसे ओकर नामर्दगी के बारे में केहू जानी न। अब त हमनी के पूरा खुलल मैदान बा।"
राजू," ई बतिया तू कब करलु?
गुड्डी," उहे दिन जब हमनी गया गईल रहनि। उसे पहिले से हर रात हम इहे बतिया ओकरा से कइके खूब परेशान कइनी, कि सासु रोज़ खड़ी खोटी सुनावेली। एतना दिन हो गइल बच्चा न ठहरल। उ भी सुनत रहल अचानक उ अपने कहलस कि तू आपन भाई से ही बच्चा कर ले, लेकिन सावधानी से केहू के पता न चले। उ दिन पहिल बेर उ हमके बढ़िया बुझाईल।"
राजू," लेकिन उ हमके कुछ न कहलस। हम उम्मीद कइले रहनि कि उ हमरा पास आके ई बतिया बोली कि तहरा हम चोद के बच्चा दी।"
गुड्डी," उ गांडू बा, ओकरा हिम्मत नइखे तहरा पास आके ई बात बोले के। तहरा पास आई त कहीं तहार लांड लेवे के प्रयास में लग जायीं।"
राजू," गुड्डी दीदी मज़ा तब आयी जब उ हमके तहरा चोदे के निवेदन करे, ताकि तू हमार बच्चा के माँ बनके दुनिया के सामने ओकरा बाप बने के सुख दी।"
गुड्डी," उ इच्छा भी पूरा कर देब, तू हमार एतना बड़का काम कइलु, त हम भी उ सब करब जउन से तहरा खुशी मिले। आज त उ आयी न उ आज जाने कहाँ भाँग पीके गाँड़ मरवात होई।"
राजू," तब त आज तहरा चैन न मिली। ई घर में आज तहार सिसकारी गूंजी।"
तभी राजू ने ठंढई का एक और गिलास पी गुड्डी के कपड़े फाड़ने लगा। गुड्डी की ब्लाउज फाड़ उसने अलग कर दी। फिर उसकी साड़ी को उतारने लगा। गुड्डी वहीं खड़ी हुई साड़ी उतरवा रही थी। राजू ने फिर उसकी पेटीकोट नीचे से पकड़ फाड़ दी और उसे खींचके फेंक दिया। गुड्डी के बदन पर छोटी कच्छी को मजबूती से पकड़ राजू ने उसे भी फाड़ दिया। गुड्डी को कभी उसने इस तरह निर्वस्त्र नहीं किया था। गुड्डी को काम और भाँग के नशे में और होली के माहौल में ये सब कुछ स्वाभाविक लग रहा था। वो औपचारिक विरोध करती रही, पर उसमें उसे खुद मज़ा आ रहा था।अगले ही पल वो राजू के सामने निर्वस्त्र हो चुकी थी। राजू ने उसे अपनी जांघ पर बैठने के लिए इशारा करते हुए जांघ पर थाप मारी। राजू के पास आकर गुड्डी उसके जांघ पर अपने चूतड़ टिका बैठ गयी। फिर राजू ने गुड्डी के उन्नत चूचियों पर एक गहरी कामुक नज़र डाली और बोला," जब तू माँ बनबु, हम भी ई चुच्ची के दूध पियब।"
गुड्डी उसके गाल सहलाते बोली," काहे न उ दूध तहरा वजह से ही आयी। उ पियाके हमके भी अच्छा बुझाई।"
राजू ने गुड्डी के होठों से ठंढई लगा दिया, जिससे गुड्डी ने एक चुस्की ली, फिर गुड्डी ने वो गिलास पकड़ राजू के होठ से लगाया और राजू ने ठंढई पिया। फिर गुड्डी ने एक चुस्की ली और फिर राजू ने। गुड्डी ने इस बीच में उसका लण्ड बाहर निकाल लिया, और उसे अपनी गाँड़ की दरार के बीच रख उस पर बैठ गयी। वो अपने चूतड़ों से उसका लण्ड मसल रही थी। राजू ने गुड्डी की चूचियों को थाम उनका जबरदस्त मर्दन कर रहा था। गुड्डी अब राजू की ओर मुँह कर उसके गोद में बैठी थी। उसकी सिसकारी अनायास उसके मुँह से निकल रही थी।
गुड्डी," आह... राजू आ... सी.... अउर ठंढई पिबु।"
राजू," गुड्डी दीदी, अब कुछ खिया द।"
गुड्डी," का खाई हमार राजा भैया, पकोड़ा, दही बड़ा, मालपुआ, मिठाई, गुझिया बोल ना?
राजू," गुड्डी दीदी, मीठा के साथ नमकीन खिया द।"
गुड्डी," गुझिया लेबु कि रस वाला मिठाई साथ में पकोड़ा दे दी का?
राजू गुड्डी के आंखों में देख बोला," गुझिया पर नमकीन रस लगा द।"
गुड्डी," इँहा नमकीन रस कहां से लाई। पनीर के सब्जी के रस में डूबा दी का?
राजू बोला," तहार बूर के रस भी त नमकीन बा गुड्डी दीदी। आपन बूर में गुझिया के नमकीन रस लगा द।"
गुड्डी उसकी ओर देख बोली," अच्छा उ नमकीन रस चाही तहरा के, रुक एक मिनट।" गुड्डी ने गुझिया उठाके अपनी कमर उठा गीली बूर के पानी से गुझिया को गीला कर दिया। गुड्डी बूर की दरार के अंदर गुझिया रगड़ रही थी। राजू उसकी ये छिनार वाली हरकत देख रहा था। फिर वो राजू के होठों के करीब गुझिया लेकर आई। राजू को उसके बूर के पानी की मादक गंध मिलने लगी। राजू ने उसे गुझिया को लपककर मुँह में ले लिया। गुड्डी राजू को ऐसा करते देख मुस्कुराई। फिर राजू से बोली," का बताबा, कइसन बा स्पेशल गुझिया?
राजू बोला," अइसन स्वादिष्ट गुझिया हो न सकेला। बहिन के बूर के रस में डूबल, जउन वासना के भड़काई।"
गुड्डी," अच्छा, ई गुझिया तहरा पर उधार रहल। हम भी अइसन मज़ा लेब।"
गुड्डी राजू के करीब आकर बोली," राजू कुछ अउर मजेदार करि का?"
राजू," काहे न, तू बताबा का करे चाहेलु।"
गुड्डी," आज स्पेशल प्लेट में खाना खियायब तहरा।"
राजू," अच्छा कहाँ बा उ स्पेशल प्लेट।"
गुड्डी," बताईब लेकिन पहिले तू हमके उ टेबल तक ले चल।"
राजू ने गुड्डी को गोद में उठा वहां ले गया। गुड्डी वहाँ लेट पीठ के बल लेट गयी। फिर राजू को अपनी फटी हुई ब्लाउज और साया लाने बोली। राजू वो ले आया। गुड्डी उसके आगे अपने हाथ ऊपर कर बोली," हमार हाथ अउर पैर बांध द।"
राजू को कुछ समझ नहीं आया, पर उसने दीदी की आज्ञा का पालन किया और उसके हाथ आपस में फटी ब्लाउज से बांध दिया और पैर उसकी फटी हुई साया से। गुड्डी अपने हाथ ऊपर करके लेट गयी।
राजू बोला," हाथ पैर तू बंधवा लेलु, अब प्लेट कइसे निकलबु।"
गुड्डी मुस्कुराते हुए बोली," बुद्धू, हमहि तहार स्पेशल प्लेट बानि। अब तू हमार ई निर्वस्त्र देह पर जउन मन करे उ रख के खा सकेलु।"
राजू," ओह.... वाह... का बात बा गुड्डी दीदी। लेकिन तू हाथ पैर काहे बंधवा लेलु?
गुड्डी," काहे कि जब तू खाईबु त हमके गुदगुदी होई, हाथ पैर बंधल रही त स्थिर रहब। हम स्वेच्छा से तहरा आपन स्वतंत्रता दे रहल बानि, तू चाहे जइसे हमके इस्तेमाल कर।"
राजू," तहरा ई बंधन में अच्छा लागी?
गुड्डी," औरत हर रंग में जिये चाहेली। कभू मजबूर होखेलि त कभू मजबूर होखे चाहेली त कभू मजबूर होखे के नाटक करेली। ई बतिया त बड़ बड़ ज्ञानी न बूझ पईलस, त तू कहाँ बुझबू। बुड़बक कहीं के।"
राजू समझ गया कि गुड्डी आज सीमाहीन हो चुकी है। राजू ने गुड्डी की ओर देख बोला," अगर ई बात बा, त हम तहरा आज जे भी कहब उ माने के पड़ी। आज हम वासना के चक्रव्यूह रचब, जेमे से तू निकल न पईबु।"
गुड्डी अपनी जीभ बाहर निकाल बोली," हम त उ चक्रव्यूह में डूबे चाहेनि।"
अपने सामने नंगी लेटी हुई अपनी सगी दीदी को देख राजू ने उसके चुच्चियों को कसके थाम लिया और उन भूरे चुचकों को पकड़ ऊपर की ओर खींचने लगा। वो गुड्डी को उसके चुचकों को खींच और ऐंठकर मज़े और दर्द का सटीक संतुलन बनाये हुए था। गुड्डी अपना मुँह खोल सिसिया रही थी। उसके चेहरे पर खुद के चुचकों का कामुक इस्तेमाल का संतोष साफ झलक रहा था। वो राजू को ऐसे देख रही थी मानो कह रही हो कि वो उसकी काम सेविका है और उसकी कामेच्छाओं की पूर्ति के लिए समर्पित है। तभी राजू झुका और गुड्डी के होंठों पर अपनी उंगली फिराने लगा। गुड्डी उत्तेजना में उसकी उंगली चूसने लगी मानो उसका लण्ड चूसना चाह रही हो। राजू उसकी ये परिस्थिति देख उत्तेजित हो उठा। इतने में उसने गुड्डी की बूर का जायजा लिया। गुड्डी की बूर की फांक पूरी तरह तर थी। उसकी बूर से उत्तेजना के मारे लगातार पानी बह रही थी। उसके बूर का दाना उत्तेजना के मारे तना हुआ था। राजू का बांया हाथ उसके बूर की फांक का जायजा ऊपर से लेके नीचे तक ले रहा था। वही सामने गुड्डी के द्वारा बनाये गए पकवान रखे हुए थे। राजू ने पहले गुलाब जामुन उठाया और उसमें उंगली से हल्का छेद किया, फिर उसे गुड्डी के कड़े चुचकों पर अटका दिया। फिर दही बड़ा लेकर उसकी ढोढ़ी पर रख दिया। फिर उसके आसपास जलेबियाँ डाल दी। इसके बाद उसने मालपुआ उठाया और उसे गोल घुमा के उसकी बूर में घुसा दिया। राजू ने दूसरा मालपुआ उठाया और उसे भी बूर में घुसा दिया। इसके बाद राजू ने गुड्डी के मुँह में खीर भर दी। उसने गुड्डी के नाक में अंगूर के दाने डाल दिये। गुड्डी के आंखों पर खजूर सजा दिए। उसके माथे पर तंदूरी मुर्गे की टांग को टिका दिया। राजू की स्पेशल थाली सज चुकी थी।
उसने सबसे पहले गुड्डी की मोबाइल से तस्वीर ली। इसके बाद उसने सबसे पहले गुड्डी के नाक के अंगूर बारी बारी से अपने मुंह से निकाल कर खा लिए। फिर उसने आंखों पर रखे खजूर खाये। फिर उंगलियों से गुड्डी के मुँह में पड़ी खीर निकालकर खाई और उसके बाद उसके मुँह से मुँह लगा जीभ से उसके अंदर बची खुची खीर चट कर दी। फिर उसने गुड्डी के ढोढ़ी पर रखे दही बड़े को बिना हाथ लगाए मुँह से खाने लगा। गुड्डी को गुदगुदी और उत्तेजना का आभास एक साथ हो रहा था। वो मुस्कुराते हुए कामुक सिसकारी भर रही थी। राजू ने दही बड़े को पूरा खा लिया और दही जो उसकी ढोढ़ी पर रह गया था उसे चाट चाट के साफ कर दिया। फिर उसने गुड्डी के पेट पर रखी जलेबियाँ खाई। गुड्डी के चूचक पर टिके गुलाब जामुन और कामुक लग रहे थे। राजू ने गुड्डी के चुचकों पर मुँह लगाया और चुचकों पर रखे गुलाब जामुन को खा गया। गुड्डी को इसमें बहुत मज़ा आ रहा रहा था। उसकी गूंजती आँहें इस बात का सबूत थी। इसके बाद उसने गुड्डी के माथे पर रखी मुर्गे की टांग को उठाया और गुड्डी के मुँह में घुसा बोला," एमे तनि आपन थूक के चासनी लपेट द।" गुड्डी ने उसे अपने मुख रस से भिगो दिया। राजू ने फिर उसे चाव लेकर खाया और उसके बाद उसने गुड्डी की बूर की ओर रुख किया, जहाँ मालपुए उसके बूर के रस में भीग फूल रहे थे। राजू को अपनी बूर की ओर बढ़ता देख बोली," राजू संभाल के, मालपुआ के चक्कर में हमार जोबन के मालपुआ न भकोस जहिया।"
राजू मुस्कुराया और गुड्डी की बूर से मुँह से मालपुआ निकाल लिया। अपनी बहन की जवान बूर की रस रूपी चासनी से गीले हो चुके उस व्यंजन का स्वाद ही अनूठा था। उस मीठे मालपुए पर गुड्डी की नमकीन बूर के रस का पानी राजू की कामुकता और वासना की भूख बढ़ा रहा था। राजू ने दूसरा मालपुआ भी गुड्डी के आंखों के सामने खत्म किया।
राजू और गुड्डी दोनों काफी उत्तेजित थे। तभी गुड्डी ने उसकी गर्दन को अपने हाथों में फंसा अपने ऊपर ले ली। गुड्डी उसके होठों को चूम बोली," आईल मज़ा ई स्पेशल प्लेट में खाई के।"
राजू," ह्हम्म.... बहुत लेकिन अभी होली खेले के बा। तहरा संग रंग खेले के बा। तब अउर मज़ा आयी। तहार भी तहार ननद जइसन हाल करब।"
गुड्डी राजू के इशारे से उठ घुटनों पर बैठ गयी। उसके हाथ और पैर बंधे थे, पर राजू की मदद से उठ बैठी। गुड्डी बोली," का हाल कइलस उ बेचारी के?
राजू," पूरा डेढ़ घंटा रगड़ के चोदनी साली के। तहार बदला चुन चुन के लेनी हअ।"
गुड्डी," भाई हो त अइसन। लेकिन उ बेचारी के बूर में तहार लांड डेढ़ घंटा त पूरा तबाही मचेने होई। पहिल चुदाई में ही बूर बर्बाद हो गइल होई।"
राजू," गुड्डी दीदी छोड़ न ओकरा, अब तू अउर हम होली के पूरा मज़ा लेब।"
गुड्डी," बहिन के सगरो लंगटी कर देले बारू। उ ड्राम में हम रंग घोर के रखले बानि। लाबा अउर खूब रंग लगाबा, आपन छिनरी दीदी के।"
राजू पूरी बाल्टी भर के रंग ले आया। उसने गुड्डी को पिचकारी से भरके रंगना शुरू कर दिया। गुड्डी राजू के सामने अपने हाथ ऊपर करके और टांग फैलाके खड़ी थी। राजू की पिचकारी से गिरते गाढ़े गुलाबी रंग में गुड्डी का गोरा नंगा बदन चमकने लगा। राजू ने पहले गुड्डी के दोनों उन्नत उभरी तनी चूचियों पर निशाना लगाया। गुड्डी किसी तराशी हुई मूर्ति की भांति अपनी चूचियाँ आगे की ओर उठाये थी। पानी की ठंडक की वजह से उसके चूचक कड़े हो गए थे। गुड्डी कूद कूद कर अपनी चूचियों को फुदका रही थी। उसकी ऊपर नीचे उछलती चूचियाँ राजू का ध्यान अपनी ओर खींच रही थी। राजू ने खुद पर थोड़ा नियंत्रण दिखाया, और अपनी नंगी बहन को उसकी पेट, ढोढ़ी, कमर पर रंग रहा था।
गुड्डी," राजू, बड़ा मजा आ रहल बा, होली खेले में। अउर रंग लगाबअ न राजा।"
राजू उसकी बूर पर निशाना लगा बोला," ई ले रंडी साली, तहार बूर के रंग देत हईं।" ऐसा बोल उसने गुड्डी की झांटों भरी बूर पर हरे रंग की बौछार कर दी। गुड्डी बेशर्म बनके मुस्कुरा रही थी। वो अपनी टांगे चौड़ी कर बूर आगे कर बोली," आह... पहिल बेर केहू होली में हमार बूर रंग रहल बा। उफ़्फ़फ़... बूर पर ई रंगीन पानी आग लगा रहल बा। राजू बहिनिया के बूर से चिंगारी फूटत बा।"
राजू उसकी बूर और जांघों को रंग चुका था, इसके बाद वो चारों ओर घूम के गुड्डी के नंगे बदन को लाल, गुलाबी हरे रंग से ढ़क दिया। गुड्डी भाँग के नशे में इस हरकत का पूरा आनंद ले रही थी। राजू ने पूरी बाल्टी खाली कर दी, गुड्डी को रंगने में। गुड्डी सर से पाँव तक रंग बिरंगी गीली हो चुकी थी। उसका चेहरा अभी भी लेकिन थोड़ा साफ था। राजू उसके करीब आया और अपने हाथों में सूखे रंग को लगा उसके चेहरे को पोत दिया। उसने गहरा हरा रंग इस्तेमाल किया था। गुड्डी का पूरा चेहरा काला सा हो गया। जब राजू ने गुड्डी को छोड़ा तो उसके चेहरे पर आँखे और दाँते दिख रहे थे। राजू ने फिर और रंग हाथों में लगा गुड्डी की बूर पर लगाया। गुड्डी सिसिया उठी और बोल उठी," हम पे ये किसने हरा रंग डाला, खुशी ने हमारी हमें मार डाला....।"
राजू और गुड्डी दोनों हँसे। इसके बाद राजू ने उसके गाँड़ और नंगी पीठ पर चुन चुन के रंग लगाया। गाँड़ की दरार, उसके भारी चूतड़ सब राजू की रंगभरी हथेली से पुत गए। अब राजू ने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों में कैद कर, खूब मसलते हुए रंग लगाया। गुड्डी सिसिया उठी और बूर से बहता पानी दुगना हो गया। गुड्डी को अब पहचानना मुश्किल था।
गुड्डी उसकी ओर अपनी रंगी हुई पलकें उठा सफेद आंखों से बोली," अब हमके खोल दे।"
राजू ने उसके हाथ पैर खोल दिये। इसके बाद उसने राजू को रंग लगाया, उसके सीने पर हाथ फेरते हुए, उसकी मजबूत बांहों पर। गुड्डी ने उसे पूरा नंगा कर दिया। सजे बाद उसने भी जी भर के राजू को चेहरे से लेकर पाँव तक खूब रंग लगाया। उसने राजू के आंड और लांड दोनों पर रंग मल दिया। दोनों अब पूरी तरह रंग चुके थे।
गुड्डी फिर उसका लण्ड पकड़ अपने साथ पेड़ों के बीच ले गयी, जहां राजू से बोली," हम दुनु भाई बहिन पूरा दुनिया में अजूबा बानि। दुनु एक दोसर के जिस्म के पियासल बानि। आवा आज के दिन, होली में एक दोसर के यौवन के रंग में रंग जाई, मोर राजा...आह।" गुड्डी ने उसे गले लगा लिया।
राजू उसे चूमते हुए बोला," गुड्डी दीदी आज सच में तहरा रंग के अद्भुत आनंद आईल। अब बर्दाश्त नइखे होत, आजा मोर लंगटी रानी।"
ऐसा बोल उसने गुड्डी को वहीं जमीन पर लिटा के उसकी बूर पर अपनी मिसाइल नुमा लण्ड छोड़ दिया। गुड्डी राजू के लण्ड की अभ्यस्त तो थी ही, साथ ही पनियाई बूर ने उसका काम आसान कर दिया। दोनों भाई बहन घास की मोटी चादर पर काम सुख में लीन हो गए।
राजू धक्कम पेल लण्ड को उसकी बूर की गहराईयों में उतार रहा था। गुड्डी भी प्यासी रांड के जैसे लण्ड को लेने की बेक़रारी में कमर उछाल कर बूर में लण्ड लेने की भरपूर चेष्टा कर रही थी। दोनों एक दूसरे के यौनांगों और काम क्रीड़ा में समर्पित हो चुके थे। गुड्डी अपनी दोनों टांगे हवा में उठा चुदवा रही थी। उसकी बूर इतनी गीली थी कि बूर से पानी टपक टपक के गिर लण्ड को स्नान करा रहे थे। ये तो साफ था कि दोनों की काम वासना जल्दी समाप्त नहीं होने वाली थी और ये काम क्रीड़ा भाँग के नशे की वजह से काफी तीव्र व प्रचंड होने वाला था।
गुड्डी अपनी बूर को छितराये हुए लण्ड और अंदर लीलने को व्याकुल थी। उधर राजू भी आज भाँग के नशे में चूर गुड्डी की मासूम बूर को राहत नहीं देना चाहता था। अपने अंदर बूर के रास्ते बच्चेदानी से टकराते लण्ड को महसूस कर गुड्डी, उत्तेजना में सिसयाते हुए कामुक आँहें तेजी से भर रही थी। ये भाई बहन का अद्भुत कामुक होली का त्योहार था। गुड्डी ने अपने भाई को अपनी चूचियों को थमा कहा," उफ़्फ़फ़ राजू केहू जानी त का कही, एगो भाई आपन बहिन के ओकरे ससुरारि में छिनार के तरह पेल रहल बा।"
राजू," पेल ना चोद रहल बा, आपन सगी बहिनिया के बूर चोदत बानि।"
गुड्डी," राजू, ई गलत बा न। कउन भाई आपन बहिन के होली दिन चोद के मज़ा लेला। उफ़्फ़फ़.... आह।"
राजू," जब बहिन अइसन पियासल रांड बा, त भाई त चोदबे न करि ओकरा के। रंडी बुरचोदी कहीं के।"
गुड्डी," आह.....केतना अच्छा लागेला जब तू हमके गाली देके चोद रहल बारू। उफ़्फ़फ़.... अपने भाई के मुंह से गारी सुने में मीठा लागत बा।"
राजू," गुड्डी रंडी साली, हमके भी त गाली दे। हम बहिन के चोदेबाला ....?
गुड्डी," बहनचोद, तू बहनचोद बारू। काश के हर जन्म हम तहार बहिन बनी अउर तू हमार भाई अउर हर बेर तू बहनचोद बन।"
राजू," हाँ दीदी, हम तहरा जइसन बहिन खातिर हर जन्म बहनचोद बनब। तू लेकिन ई हरा रंग में बहुत जबरदस्त लग रहल बारू। लावा तहार दांतिया भी रंग दी।"
गुड्डी के बाल से कुछ रंग इकट्ठा कर, उसके दांतो पर रगड़ दिया। गुड्डी अपने दाँते निपोड़ कर, मंजन की तरह रंग लगवा रही थी। अब उसके दांत भी हरे हो गए थे। गुड्डी अब मुँह खोल हंस रही थी। जिसे देख राजू को भी हंसी आयी।
इसके बाद गुड्डी अचानक उठी और राजू का हाथ पकड़ उसे पेड़ पर चढ़ने को कहा। दोनों पेड़ की मध्यम ऊंची मजबूत डाल पर चढ़ गए। राजू वहां बैठ गया और गुड्डी उसके गोद में बैठ अपने दोनों हाथ से ऊपर की डाल पकड़ ली। उसने लण्ड बिना देर किए बूर में घुसा लिया। राजू उसकी कमर पकड़ गुड्डी को चोदने लगा।
गुड्डी," ई पेड़ के डाल पर चुदाबे के मज़ा ही कुछ अउर बा...आह...आह...आ।"
राजू," सच में दीदी, बहुत मज़ा आ रहल बा। तहार काँखिया देख मन चाटे के होता।"
गुड्डी अपनी काँख उसके आगे दे बोली," पूछ न राजू, हुकुम कर आपन रंडी बहिन के।"
राजू उसकी पसीने से भरी काँख चाटने लगा। गुड्डी को गुदगुदी भी हो रही थी, पर अधिक कामुकता से उसकी सिसकारियां ही निकल रही थी। तभी गुड्डी को जोर की पेशाब आ गयी। गुड्डी राजू से बोली," राजू पेशाब आईल बा, तहार लांड पर ही मूत दी का?
राजू," नेकी अउर पूछ पूछ जल्दी से आपन पवित्र बूर से अमृत धारा बहा हमार लांड के धन्य कर दे।"
गुड्डी जोर से हंसते हुए बोली," आह...कुत्ता कहीं के। बहुत हरामी बा तू मादरचोद.... ई ले।" और गुड्डी छुल छुल कर बूर के फांकों से मूत की मोटी धार बहा दी। गुड्डी राहत की सांस लेते हुए मूत रही थी। राजू उसकी गर्म मूत की धार महसूस और उसकी मीठी आवाज़ सुन मुग्ध था। गुड्डी मूतती रही, और उसकी धार राजू के लण्ड से होते हुए नीचे डाल से टपक रहा था। राजू ने उसकी मूत इकट्ठे कर पहले तो पिया फिर उसे अपने और गुड्डी के देह में मल दिया। गुड्डी भी उसे पूरी हंसी के साथ लगवा रही थी।इसके बाद फिर से गुड्डी चुदवाने के लिए राजू को गले से लगा लिया औरराजु उसकी चूचियों में खोया उसकी बूर के प्रति फ़र्ज़ निभा रहा था। राजू उसे लगभग दो घंटे तक चोदता रहा, पर दोनों ही शांत होने का नाम नहीं ले रहे थे।
गुड्डी बोली," राजू, लागत बा तू थक गईलु, चल चलके एक एक ठंढई पियल जाउ। हमके भी बूर में कुछ खास बुझा न रहल बा।"
राजू," हाँ, गुड्डी दीदी अभी त दस बजल होई, अभी त पूरा दिन बा।"
दोनों डाल से उतरे और ठंढई की ओर बढ़े। वास्तव में दोनों आदि मानव की जोड़ी लग रहे थे। गुड्डी के बाल बिखड़े हुए थे, उसकी चूड़ियां टूट गयी थी। पूरा बदन होली के रंग से पुता हुआ था। दोनों हाथ में हाथ डाले नंग धरंग चले आ रहे थे। तभी उनदोनों को सामने से आते किसी ने देख लिया। वो दोनों इस बात से बेखबर खाने के पास आ एक दूसरे को रोमांस के साथ ठंढई पिला रहे थे और मीठा खिला रहे थे। गुड्डी राजू के अंतरंग पलों के दर्शन कोई तीसरा कर रहा था।