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Romance भंवर (पूर्ण)

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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so aarav tharki hai....
Hmm.... is update ke last mein aur first update ke last joh hua, woh ek ghatna hai bas point of view badal diye gaye hai... so baki bich mein updates aaye woh isliye taki kahani ke kirdaaro baade mein thodi bahot jankari mil jaye...
साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं।
:lol:
waise dar bhagane ke achhi story sunayi saanchi ne lavanee ko.... :D
Khair let's see what happens next
Brilliant update update nainu ji... Great going :applause: :applause:
 

Arv313

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Nice update bahut badhiya bhai
Aap ne aaj to bas enka dar aur chinta hi dikhai h.
Chalo koi nhi do lavaj sun lijiye prem ke:-
Dekhke teri bholi si surat mat gai meri maari,
Kya karu e mrignayani tu hai rampyari,
tu jo hase to khil jaye fulwari, aur roye to barasat ho jaye bhari,
Dekhke tujhko mat gyi meri maari.

Love you bhai nain11ster
Waiting for the next update.
 

ajay reddy

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Mazaaa aa gaya bhai padh kar aur sanchii ki kahani toh ek dum jabajast thi aur true bhi hai ki jitna daroge duniya utna jayada darayegi aur yeh aarav kyu nhi gaya clg bass aise hi darane ke liye bol diya tha kya lavani ko usne aur last mein yeh dono kaha se aa rahe the wapas woh bhi tun ho kar aur yeh dono kaha jaa rahi shayad tun hone jaa rahi hai ho
 

Chutiyadr

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Update:-4


आरव जब थाने से निकला तो वो बस यही सोच रहा था कि आज हुई घटना यदि अपस्यु को पता चली तो ना जाने क्या होगा। इन्हीं उधेड़बुन में जब आरव घर पहुंचा, तब उसने अपस्यु को बालकनी में पाया जो बालकनी से खड़ा हो कर साची को निहार रहा था….

आरव ने जब अपस्यु को बालकनी से खड़े हो कर राजीव के घर में झांकते देखा तो उसे हंसी अा गई और खुद से ही कहने लगा… "लगता है इन पागलों का ड्रामा एक बार और देखने को मिलेगा"… इतना सोचते हुए आरव ने अपस्यु का ध्यान भंग किया और उसे लेे कर कैंटीन चला गया।

इधर साची जब छत पर कपड़े सुखाने अाई तभी उसे आभास हो गया कि सामने की अपार्टमेंट से कोई उसे झांक रहा है। अंतरमन उसका बार-बार यही कह रहा था कि "कहीं ये उसी बदतमीज लड़के का भाई ना निकले"। साची यही सोचती हुई अपना काम जल्दी से समाप्त कर नीचे चली आईं।

नीचे आते ही साची ने लावणी को पकड़ कर अपने कमरे में ले आई और खिड़की से अपस्यु की बालकनी की ओर इशारा करती पूछने लगी…. "तू जानती है क्या इसे"?

लावणी:- हां, ये उसी आरव का भाई है।

साची बिस्तर पर दोनों पाऊं मोड़ कर बैठती हुई अपना सिर पकड़ लेती है और कहती है… "गई भैंस पानी में"

लावणी:- क्या हुआ दी, ऐसे सिर पकड़ कर क्यों बैठ गई?

साची:- तू देख नहीं रही मैं छत से चली आई फिर भी वो किधर देख रहा है।

लावणी:- जाने दो दी, ये दिल्ली है यहां तो हजारों ऐसे लड़के मिलेंगे, ऊपर से आप के लिए तो पूरा दिल्ली ही ऐसे नजरें गड़ाए मिलेगा।

साची अंदर से थोड़ा खुश होती हुई:- चल चल रहने भी दे, तू ये बता कि अपना कॉलेज कैसा है और वहां मस्ती के कैसे-कैसे प्रबंध किए गए हैं?

लावणी:- दीदी कॉलेज जा रहे हैं कोई डिस्को नहीं। मस्ती के प्रबंध….

साची:- अरे यार यही तो दिन है हसने-खेलने के, फिर दोबारा कहां ऐसा मौका मिलने वाला है।

लावणी:- आप की बातें मैं सुनने बैठी ना, फिर तो हो गई मेरी आईआईएम(IIM) की तैयारी। मुझे तो आप माफ़ ही करो।

साची:- किताबी कीड़ा कहीं की। अच्छा ये बता तेरा कोई बॉयफ्रेंड है?

लावणी:- बॉयफ्रेंड, हां !! कहने को मैं दिल्ली में रहती हूं लेकिन घर का माहौल वही बरेली के गांव का है। पापा को भनक भी लगी ना इस बारे में तो काट डालेंगे।

साची:- कितना डरती है रे अपने बाप से। कौन सा मैं उनके सामने तुझे बॉयफ्रेंड के साथ घूमने कह रही हूं। अरे चोरी-छिपे थोड़ी मस्ती हम भी कर लेंगे।

लावणी अपने दोनो हाथ जोड़ती:- लगता है मेरे पिटाई का पूरा इंतजाम कर के आई हो। वैसे बड़े पापा को पता है कि आप यहां बॉयफ्रेंड बनाने अाई हो।

साची:- नाह। ! उन्हें पता है मैं यहां साहित्य पढ़ने अाई हूं।

लावणी:- तो फिर आप लक्ष्य से क्यों भटक रही हैं?

साची:- बाप रे ! लावणी इस छोटी सी उम्र में तू कितना प्रेशर ली हुई है बहन। छोड़ जाने दे मैं भी कहां सिर खपा रही, जब जो होगा देखा जायेगा। तू अभी चल, चल कर कुछ शॉपिंग की जाए।

कुछ देर बाद दोनों बहन तैयार हो कर शॉपिंग करने निकाल गई। जब वो निकाल रही थीं तब भी अपस्यु बालकनी में ही खड़ा था और दोनों को स्कूटी से जाते हुए देख रहा था। लावणी स्कूटी को आगे भगाती हुई कहने लगी… "दीदी काला टीका लगा कर घूमो, लड़के आप को देखने के लिए बालकनी से चिपके खड़े है"। इतना कह कर लावणी हंसने लगी और उसके साथ-साथ सांची भी हंसने लगी।

दोनों बहने मस्ती मजाक के बीच अपने शॉपिंग का लुफ्त उठाते, एक शॉपिंग मॉल से दूसरे शॉपिंग मॉल भ्रमण कर रही थी। यही कोई तकरीबन शाम के 7:00 बज रहे होंगे, दोनों बहने एक बुक स्टोर में थी जिस के ठीक सामने आरव चाय पी रहा था।

आरव की नजर उन दोनों बहनों पर पड़ी और वह भी उस बुक स्टोर में घुस गया। उस वक़्त दोनों बहने अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकें देख रही थी इसी बीच आरव उन दोनों बहनों के सामने जाकर खड़ा हो गया।

जब आरव उनके समीप पहुंचा, साची किसी पुस्तक को अपने हाथ में लिए उसके एक दो पन्ने पलट रही थी और लावणी उस पुस्तक के बारे में कुछ बता रही थी। तभी उन दोनों बहनों को लगा कि कोई उनके करीब आया है और दोनों ने जैसे ही अपनी नजरें ऊपर की सामने आरव खड़ा था। आरव को देखते ही लावणी की हालत ही खराब हो गई, डर से उसके पैर कांपने लगे। किंतु सांची बिल्कुल निडर होकर उसकी आंखों में देखी और लावणी का हाथ पकड़कर कहने लगी "चल लावणी"।

सांची, लावणी की कलाई पकड़ आगे चल रही थी, लावणी उसके पीछे और जैसे ही वो आरव से थोड़ा आगे निकली आरव ने पीछे से लावणी का हाथ पकड़ लिया। लावणी जो बेचारी पहले से कांप रही थी अब तो उसकी हालत ऐसी हो गई थी कि मानो कलेजा मुंह को आ गया। अचानक ही लावणी के कदम रुकते देख सांची पीछे मुड़ी। जब वह पीछे मुड़कर देखी तब पता चलता की आरव, लावणी का हाथ पकड़े खड़ा हैं।

सांची को इतना तेज़ गुस्सा आया कि मानो वो आरव की इस हरकत पर क्या से क्या कर दे। वो लावणी का हाथ पकड़े देख खुद से ही कहने लगी "इसकी इतनी हिम्मत" लेकिन वहां के माहौल को देखते वो कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहती थी, इसलिए शांत मिजाज से कहने लगी… "सुनो हम दोनों यहां काम से आए थे, प्लीज कोई सीन क्रिएट करने की कोशिश नहीं करो"।

आरव एक नजर बड़े ध्यान से सांची को देखते हुए कहने लगा… "तुम्हें देख कर तो कोई भी पागल हो जाए, मेरे भाई ने सही जगह दिल लगाया है"। सांची उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया दिए बिना ही कहती है… "उसका हाथ छोड़ दो हमें घर जाना है"।

इस पर आरव जवाब देते हुए कहने लगा… "इसका हाथ तो छोड़ दूं लेकिन ये जो मेरा दिल लेकर जा रही है उसका मैं क्या करूं"?

इतना सुनते ही लावणी की हालत और खराब हो जाती है। पाऊं तो पहले से कांप रहे थे, कलेजा तो पहले से ही मुंह को आया था अब तो उसकी सासें भी अटकने लगी थी। लेकिन साची ने हिम्मत दिखाती हुई इतना ही कहीं… "ये तुम्हारी फीलिंग है और हमने सुन भी लिया। अब प्लीज हमे परेशान मत करो"

इतना सुनते ही आरव ने लावणी का हाथ छोड़ दिया। हाथ छूटते ही दोनों बड़ी तेजी के साथ वहां से निकलने लगी और उनके पीछे-पीछे आरव भी था। आरव लावणी को सुनाते हुए कहने लगा… "आई लव यू लावणी और हां तुम्हारे पापा और मैं दोनो एक ही जैसे है इसलिए मुझ से नफरत करने के बजाय प्यार करो। वैसे तुम कल से दौलत राम कॉलेज जा रही हो ना, अच्छा है हमारी मुलाकात वही होगी"।

उसकी बात सुन कर लावणी को मानो झटका सा लगा हो। ऐसा लग रहा था मानो कोई उसे डरा कर पूरी तरह से सहमा दिया हो। पूरे रास्ते वो शांत रही और जब वो घर पहुंची तब सीधा अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

इधर अपस्यु उन दोनों बहनों को जाते हुए भी देखा और आते हुए भी देख रहा था। लेकिन इस बार जब साची लौट रही थी तब उसने एक तिरछी नजर अपस्यु के ऊपर भी डाली। इस कातिलाना नजर को देखकर तो अपस्यु घायल ही हो गया और आंख बंद कर गहरी सांस लेते बस उसी क्षण को याद करने लगा।

उस क्षण को याद करते-करते उसके मुख से अपने आप ही बोल फूट पड़े… "एक नजर भर तुझे बस मैं देखता रहूं। बस तुझे ही देखता रहूं, बस तुझे देखता रहूं। ना जाने वो कौन सा जादू है कि तुझे ना देखूं तो लगता है कि मैं पल भर भी जिंदा रह ना सकूं।

इधर लावणी के लिए ये रात बहुत भारी थी, लगभग पूरी रात बीतने के बाद सुबह करीब 3:00 बजे उसे नींद आई और आई भी तो कितनी देर के लिए मात्र 2 घंटे के लिए। और इन 2 घंटो की नींद में भी उसे आरव के ही डरावने सपने आते रहे।

सुबह करीब 5 बजे ही लावणी की आंखें खुल गई और जब उसकी आंखें खुली तब भी वो आरव को ले कर ही परेशान थी। कुछ समय पश्चात साची भी उसके कमरे में आई और उसे गुमसुम बिस्तर पर बैठा देख, उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसका चेहरा देखने लगी।

इतना सांत्वना ही काफी था लावणी की आंखों से आंसू छलकाने के लिए। वो रोती हुई कहने लगी…. "दीदी वह मुझे चैन से जीने नहीं देगा बहुत परेशान करता है"।

लावणी कि इस बात पर सांची को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी बातों से ऐसा लग नहीं रहा था कि आज जो बुक स्टोर में हुआ वह पहली बार हो रहा था…..
combination galat ho gaya :lol1:
aarav ko sanchi aur apsyus ko lavni ke sath hona tha ...
lekin sahi combination ka maja hi kya hai :approve:
maja to tabhi aata hai jab cocktail piya jaye :daru:
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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Update:-5


लावणी कि इस बात पर सांची को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी बातों से ऐसा लग नहीं रहा था कि आज जो बुक स्टोर में हुआ वह पहली बार हो रहा था…..

थोड़ी देर तक साची उसे शांत करती रही, फिर जब उसकी स्तिथि थोड़ी सी समन्या हुई तब साची ने उस से साफ शब्दों में पूछा "कि आखिर उसके और आरव के बीच चल क्या रहा है"

लावणी फिर गहरी सांस लेती हुई कहने लगी…. लगभग 15-20 दिन पहले की बात है, जब ये लोग सामने रहने आए थे। उसके अगले ही दिन जब मैं शाम को टहलने पार्क में गई तभी इस से मुलाकात हुई थी। मैं पार्क के बेंच पर बैठी थी और ये भी मेरे बिल्कुल करीब अा कर बैठ गया। मैं एक दम से चौंक गई, क्योंकि बेंच बिल्कुल खाली थी फिर भी ये मेरे करीब आ कर बैठ गया। इसी बीच जब तक मैं इस से कहती कि पूरी बेंच खाली है थोड़ा उधर खिसक कर बैठो की तब तक…

साची:- तब तक क्या लावणी..

लावणी:- दीदी मेरी बात समाप्त होने से पहले ही इसने मेरे गाल को चूम लिया।

लावणी की ये बात सुन कर साची बिल्कुल हैरान सी हो गई.. फिर से आगे बताने को कही….

लावणी अपनी बात आगे बढ़ाती हुई कहने लगी :- फिर दीदी ये जहां भी मुझ से मिलता मुझे अकेला देख कर उल्टी-सीधी बातें करता..

साची उसे बीच में ही रोकती हुई… "उल्टी-सीधी मतलब किस तरह की, पूरी बात बताओ"

लावणी:- वैसी ही दीदी जिस तरह कि आज किया था। यहीं की तुम से पहली नजर का प्यार है, तुम्हारे ऐसे वैसे सपने आते हैं। तुम्हरे शरीर पर कहां-कहां तिल हैं.. और भी गंदी- गंदी बातें। और जो 3 रात पहले घटना हुई थी ना पापा और इसके बीच। उस रात भी ये मुझे ही धक्का मारने कि कोशिश कर रहा था। अब दी सोचो ना कितना ढीठ है, मैं पापा के साथ थी तब भी ये मुझे धक्के मारने की कोशिश कर रहा था।

साची:- ढीठ तो है ही साथ ही पहुंच वाला भी है तभी तो ये जेल में ना हो कर बाहर घूम रहा है। इस से हमे संभल कर डील करना पड़ेगा। वैसे इसका भाई कैसा हैं।

लावणी:- उसे मैंने कभी इसके साथ नहीं देखा। पहले दिन ही जो इसे अपार्टमेंट के गेट पर देखी थी, उसके बाद आज देख रही हूं, वो भी जब आप ने इसे बालकनी में दिखाया।

साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं। खैर चल तू तैयार हो जा कॉलेज नहीं चलना क्या?

कॉलेज चलने कि बात पर लावणी थोड़े असमंजस में पड़ जाती है। तभी साची एक बार फिर कहती है "अब उठ भी जा, बैठे-बैठे क्या सोच रही है"।…… "दीदी, वो भी कॉलेज अा रहा है। मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं नहीं जाऊंगी कॉलेज"।

साची:- "जानती है लावणी जब मैं सीतापुर में थी ना तब रोज कॉलेज जाते समय, एक कुत्ता, मेरे स्कूटी के पीछे भौंकते हुए दौड़ता। जैसे ही वो भौंकता ना, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जाती और स्कूटी का एक्सेलेरेटर अपने आप ही बहुत तेज हो जाती। उस कुत्ते का डर मेरे दिल में इतना हो गया था कि मुझे उस रास्ते से गुजरने में भी डर लगने लगा"।

"फिर मैंने वो रास्ता ही बदल दीया। लेकिन दूसरा रास्ता मेन रोड से होते हुए, बड़ा घूम कर मेरे कॉलेज पहुंचता, ऊपर से उस रास्ते में जाम लगा रहता सो अलग। तो कभी-कभी मुझे ना चाहते हुए भी उस रास्ते से हो कर जाना पड़ता था। लेकिन आलम ये था कि उस रास्ते पर जाने के नाम से ही, मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ने लगती थी। लगभग 4 महीने तक ऐसा ही चलता रहा"।

"फिर एक दिन मैंने ठान लिया… जो होगा सो देख लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वो कुत्ता मुझे कटेगा ही ना… मैं 14 इंजेक्शन लगवा लूंगी, पर आज तो इसे सबक सिखाए बिना नहीं छोडूंगी"।

"मैंने दृढ़ निश्चय किया। घर से निकलते वक़्त साथ में डंडा भी रखी लेकिन मैं जैसे-जैसे उस गली के ओर बढ़ रही थी, मेरी धड़कने वैसे-वैसे तेज हो रही थी। मैं खुद को हौसला तो देती रही थी कि "जो होगा सो देखा जाएगा".. लेकिन डर था कि जाने का नाम ही नहीं ले। तू विश्वास नहीं करेगी, वो कुत्ता जब मुझ पर भौंक रहा था ना तब वो सब कुछ भूल गई जो सोच कर घर से निकली थी। एक्सेलेरेटर खुद ही इतना तेज हो गया की, जब मैंने अपने डर पर काबू पाया तो पता चला कि मैं उस गली से बहुत दूर निकल आईं हूं"।

"और अगले 2-3 दिन तक ऐसे ही सब कुछ वैसा दोहराता रहा। घर से सोच कर निकलती आज तो मैं इस कुत्ते को सबक सिखा कर रहूंगी और गली तक पहुंचते पहुंचते सारी हिम्मत हवा हो जाती। लेकिन इस प्रक्रिया में जो एक बदलाव मुझ में आया, वो ये था कि मेरी धड़कने अब थोड़ी काबू में रहती थी और स्कूटी नियंत्रण में। और फिर 1-2 दिन बाद वो वक़्त भी आया जब मैं हिम्मत जुटा कर स्कूटी को ठीक उसी वक़्त रोकी जब वो कुत्ता भौंकना शुरू किया। पैर तो मेरे भौंक सुनते ही कांपने लगे थे किंतु हाथ में डंडा लिए मैं अपने स्कूटी से नीचे उतरी। और हुआ क्या, वो कुत्ता जो भौंकते हुए तेज़ी से स्कूटी के ओर दौड़ा चला अा रहा था, जैसे ही मैंने उसे मारने के लिए डंडा उठाया वैसे ही वो दुम दबा कर भाग गया"।

"बस इतनी सी है डर कि कहानी। अब तुम्हे फैसला करना है कि तुम क्या करोगी? क्योंकि आज तुम डर से कॉलेज नहीं जाओगी तो क्या कभी आगे कॉलेज जाओगी ही नहीं? तुम चाहो तो अपना कॉलेज भी बदलवा सकती हो, तो क्या वो उस कॉलेज में नहीं पहुंचेगा? तुम चाहो तो घर बैठ कर पढ़ाई कर लो कोई कॉलेज जाओ ही मत, फिर भी क्या तुम इस घर से कभी बाहर नहीं जाओगी, क्या केवल एक कॉलेज ही बचा है जहां वो तुम्हे परेशान कर सकता है? मैंने अपनी बात पूरी कर दी आगे तुम्हारी मर्जी, मैं जा रही हूं तैयार होने।

लावणी, साची की बात सुन कर हंसती हुई कहती है…. "ये तुम्हारे साथ सच में हुआ था या किसी इंस्पिरेशनल स्टोरी को चेंप दी"..

साची:- इंस्पिरेशनल स्टोरी में इतनी डिटेल नहीं होता है पागल। वहां तो लिख देते हैं डर का सामना करो डर भाग जाएगा लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता है। आप का डर आप पर हमेशा हावी ही रहता है चाहे कितना भी सामना करने का सोच लो। कितना भी सामना करने जाओ फिर भी डर लगता ही है वो तो वक़्त और हमारी आदतो के कारण सामना करते-करते डर बाहर निकल जाता है। अब छोड़ ये सब और चल जा कर तुम भी तैयार हो जाओ।

साची की बातों से लावणी में थोड़ा बदलाव तो आया। वो किसी तरह हिम्मत जुटा कर कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई। दोनों जब बाहर निकाल रही थी तब भी अपस्यु बालकनी में ही खड़ा था। लावणी को तो डर ही इतना लग रहा था कि उसे कुछ सूझ ना रहा था लेकिन साची दबी नजरों से उसे देख लेती है।

वो लावणी का ध्यान भटकाने के लिए कहती भी है कि "आज नहीं बोलेगी कुछ, उस बालकनी वाले लड़के के बारे में"… लेकिन लावणी ने तो जैसे उसकी बात को अनसुना ही कर दिया।

थोड़ी ही देर में दोनों दौलत राम कॉलेज के गेट के बाहर खड़े थे। कॉलेज के गेट पर खड़ी हो कर साची, लावणी से कहती है…… "देखो हम अा गए अपनी मस्ती की पाठशाला में। अब पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ मस्ती भी होगी"

साची की बात सुन कर लावणी एक फीकी मुस्कान दी, जिसमें डर और मुस्कान का मिलजुला संगम था। उसके इस फीकी हसी पर साची, लावणी के कंधे को हिलाती हुई कहने लगी… "चिल मार, इतना डरेगी तो जिएगी कैसे? मैं हूं ना, उस आरव के बच्चे ने यदि आज तुझे छेड़ा तो फिर समझो उसकी शामत आई। और हां प्लीज मैं तेरे पाऊं पड़ती हूं, यहां तू मुझे दीदी मत कहना"।

लावणी, साची की बात पर हां में हां मिलाते हुए अंदर चल देती है। दोनों वहां से अपने-अपने कक्षा के लिए प्रस्थान कर लेती है। लावणी को आरव का डर सता रहा था जो पूरा दिन उस पर हावी रहा, किंतु आरव का कहीं कोई अता-पता नहीं था…

ऐसे ही अगला 2-3 दिन बीता, जब आरव कॉलेज में कहीं नजर नहीं आया और ना ही कॉलोनी में कहीं दिखा। हां अपस्यु भले ही हर वक़्त बालकनी में दिख जाया करता था। असर तो सिर्फ पहले दिन का ही होता है, उसके बात तो सिर्फ रही-सही कहानी रह जाती है। वैसा ही कुछ लावणी के साथ हो रहा था। अब आरव का ख्याल भी उसके मन से निकल चुका था और दोनों बहने नियमित रूप से कॉलेज जाया करती थी…

लगभग महीना बीतने को आया था.. और इतने दिनों में आरव कभी नजर नहीं आया… फिर एक रात करीब डेढ़ बजे दोनों बहाने चुपके से अपने घर के बाहर आईं और रास्ता पकड़ कर नुक्कड़ तक जाने लगी.. दोनों अभी कुछ कदम ही चली होंगी की उधर से आरव अपनी फटफटी लिए सामने से आ रहा था।

आरव अपनी फटफटी दोनों बहनों के सामने रोका और उनसे पूछने लगा… "देर रात दोनों कहां सड़कों पर भटक रही हो, ये दिल्ली है तुम्हारा गांव नहीं" … दोनों बहनों ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना रास्ता बदल कर आगे बढ़ गई। आरव भी अपने रास्ते आगे बढ़ गया और अपार्टमेंट के गेट पर अपस्यु का इंतजार करने लगा।

जब दोनों बहने थोड़ी और आगे बढ़ी तब सामने से उन्हें अपस्यु आता हुआ नजर आया। वो दोनो अपनी ही लय में चलती रही लेकिन अपस्यु के टेढ़े-मेढे लड़खड़ाते कदम धीरे-धीरे स्थिर मुद्रा में अा गए। दोनों बहने बिना कोई ध्यान भटकाए उसके पास से निकल गई और अपस्यु वहीं खड़ा रह गया….
sanchi ne bahut hi sahi udaharan diya :superb:
 

-:AARAV143:-

☑️Prince In Exile..☠️
4,422
4,152
158
Superb update bhai.. :reading: ke baad Pura review deta
 
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