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Romance भंवर (पूर्ण)

nain11ster

Prime
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Masaledar update bhidu
Arav bhaisahab bhi pyar me hai
Lekin ladki to badi dar rahi hai
Itna kahe pareshan karna bechari ko
Bada ajeeb tarah kya scene chal raha ladki ko bata raha tumhare papa aur me ek jaisa hu
अपस्यु to nayi duniya banake jeene ki taiyari me hai sapno ki duniya use bhi bahar lao
An sachi kya karegi lavni ke liye kuch na kuch to karegi jarur

Wo ladki ko bata raha hai ki wo भी उसके पापा कि तरह है तो तुम्हे कहे मिर्ची लग रही :slap: Bura lag raha hai jo usne nahi Kaha ki main bilkul फटीचर sorry fighter jaisa hin...

Abhi June do use wahin Kuch din bad sochte hain.. abhi storyline me bahut kuch hai use tab tak aage le aate hain...
 

nain11ster

Prime
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o bhai kya pratikriya doon mai iss kahani pe samjh nhi aata bol na mil rhe mujhe toh (maafi ek review miss karne ke liye)

ek update mai feelings badal di, jazbaat badal diye

-:AARAV143:- bhai thoda control karo kyun APSYU ki kashti mai ched kar rhe ho abhi toh usse iss ishq ke dariya ko paar bhi karna hai :D

SANCHI ka kirdaar khule mijaz ka hai aur bindass bhi jo usse aur bhi acha bnata hai jiss tarah se usne ARAV ke sath hui book store mai situation ko handle kiya kaafi acha tha magar ARAV tedhi kheer malum hoti hai

yeh ishq marva kar manega
idhar kahan SANCHI dua kar rhi thi ki APSYU ARAV ka bhai na nikle matkab uske dil mai bhi kuch tha aur kon jaane kya tha magar book store mai hui ghatna uski feelings badal sakti hain aur jiss trah se usne APSYU ko dekha andaja ho jaata hai ki shayad SHAYAD feelings badal gayi hain magar APSYU toh bas ghayal hua padha hai uss tirchi najar mai

LAVNI ka kya scene hai ARAV ke sath thoda samjhna padega mujhe kyunki LAVNI ki condition dekh kar aisa lag rha hai ki yeh pyaar ARAV thop rha hai uss par aur kon jaane kiss liye thop rha hai ek toh LAVNI ka aise darrra hua rehna ARAV ko bura sa sabit karta hai magar aisa ho yeh jaruri nhi
kya pta LAVNI apne parivaar ke chalte hi iss pyaar vyaar ke chakar mai na padh rhi ho khair jo bhi ho aage pta chal hi jayega

kahani mai twist bahut bhadia hain aur yeh twist jo interest bnate hain vo toh lajvab hai bhai sahab

ek trah se SANCHI ka pura parivar hi ARAV aur APSYU se khfa hai toh aise mahol mai APSYU aur SANCHI ki kahani kaise chalti hai yeh dekhna kaafi romanchit hoga

KEEP WRITING
KEEP UPDATING

YOUR REGULAR READER
...MATHUR

Jab nahi samjh me aaya tab aisi pratikriya... Jab samjh me aata tab kaisi pratikriya dete :yikes: aur mujhe to ye soch kar dar lag raha hai ki... Yadi update kharab aaye aur aap ne bina soche pratikriya diya to kahin main :banned: na ho jaun... Khatarnak type wali situation hai :dar:

Sari ghatnayen kuch na kuch visham paristhithi hi paida kar rahi hain lekin abhi to surwat hai.. bahut kuch aaana baki hai0... Tab tak itna hi kahunga...

Comment likhne ke liye kuch samjh me aaye ki na aaye fir bhi comment jaroor karte jaye... Aur kuch na sujhe to 5000 words me meri tarif hi chhap dena... Wo kya hai na I am tarif ka bhukha people ;)
 

nain11ster

Prime
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Update:-5


लावणी कि इस बात पर सांची को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी बातों से ऐसा लग नहीं रहा था कि आज जो बुक स्टोर में हुआ वह पहली बार हो रहा था…..

थोड़ी देर तक साची उसे शांत करती रही, फिर जब उसकी स्तिथि थोड़ी सी समन्या हुई तब साची ने उस से साफ शब्दों में पूछा "कि आखिर उसके और आरव के बीच चल क्या रहा है"

लावणी फिर गहरी सांस लेती हुई कहने लगी…. लगभग 15-20 दिन पहले की बात है, जब ये लोग सामने रहने आए थे। उसके अगले ही दिन जब मैं शाम को टहलने पार्क में गई तभी इस से मुलाकात हुई थी। मैं पार्क के बेंच पर बैठी थी और ये भी मेरे बिल्कुल करीब अा कर बैठ गया। मैं एक दम से चौंक गई, क्योंकि बेंच बिल्कुल खाली थी फिर भी ये मेरे करीब आ कर बैठ गया। इसी बीच जब तक मैं इस से कहती कि पूरी बेंच खाली है थोड़ा उधर खिसक कर बैठो की तब तक…

साची:- तब तक क्या लावणी..

लावणी:- दीदी मेरी बात समाप्त होने से पहले ही इसने मेरे गाल को चूम लिया।

लावणी की ये बात सुन कर साची बिल्कुल हैरान सी हो गई.. फिर से आगे बताने को कही….

लावणी अपनी बात आगे बढ़ाती हुई कहने लगी :- फिर दीदी ये जहां भी मुझ से मिलता मुझे अकेला देख कर उल्टी-सीधी बातें करता..

साची उसे बीच में ही रोकती हुई… "उल्टी-सीधी मतलब किस तरह की, पूरी बात बताओ"

लावणी:- वैसी ही दीदी जिस तरह कि आज किया था। यहीं की तुम से पहली नजर का प्यार है, तुम्हारे ऐसे वैसे सपने आते हैं। तुम्हरे शरीर पर कहां-कहां तिल हैं.. और भी गंदी- गंदी बातें। और जो 3 रात पहले घटना हुई थी ना पापा और इसके बीच। उस रात भी ये मुझे ही धक्का मारने कि कोशिश कर रहा था। अब दी सोचो ना कितना ढीठ है, मैं पापा के साथ थी तब भी ये मुझे धक्के मारने की कोशिश कर रहा था।

साची:- ढीठ तो है ही साथ ही पहुंच वाला भी है तभी तो ये जेल में ना हो कर बाहर घूम रहा है। इस से हमे संभल कर डील करना पड़ेगा। वैसे इसका भाई कैसा हैं।

लावणी:- उसे मैंने कभी इसके साथ नहीं देखा। पहले दिन ही जो इसे अपार्टमेंट के गेट पर देखी थी, उसके बाद आज देख रही हूं, वो भी जब आप ने इसे बालकनी में दिखाया।

साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं। खैर चल तू तैयार हो जा कॉलेज नहीं चलना क्या?

कॉलेज चलने कि बात पर लावणी थोड़े असमंजस में पड़ जाती है। तभी साची एक बार फिर कहती है "अब उठ भी जा, बैठे-बैठे क्या सोच रही है"।…… "दीदी, वो भी कॉलेज अा रहा है। मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं नहीं जाऊंगी कॉलेज"।

साची:- "जानती है लावणी जब मैं सीतापुर में थी ना तब रोज कॉलेज जाते समय, एक कुत्ता, मेरे स्कूटी के पीछे भौंकते हुए दौड़ता। जैसे ही वो भौंकता ना, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जाती और स्कूटी का एक्सेलेरेटर अपने आप ही बहुत तेज हो जाती। उस कुत्ते का डर मेरे दिल में इतना हो गया था कि मुझे उस रास्ते से गुजरने में भी डर लगने लगा"।

"फिर मैंने वो रास्ता ही बदल दीया। लेकिन दूसरा रास्ता मेन रोड से होते हुए, बड़ा घूम कर मेरे कॉलेज पहुंचता, ऊपर से उस रास्ते में जाम लगा रहता सो अलग। तो कभी-कभी मुझे ना चाहते हुए भी उस रास्ते से हो कर जाना पड़ता था। लेकिन आलम ये था कि उस रास्ते पर जाने के नाम से ही, मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ने लगती थी। लगभग 4 महीने तक ऐसा ही चलता रहा"।

"फिर एक दिन मैंने ठान लिया… जो होगा सो देख लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वो कुत्ता मुझे कटेगा ही ना… मैं 14 इंजेक्शन लगवा लूंगी, पर आज तो इसे सबक सिखाए बिना नहीं छोडूंगी"।

"मैंने दृढ़ निश्चय किया। घर से निकलते वक़्त साथ में डंडा भी रखी लेकिन मैं जैसे-जैसे उस गली के ओर बढ़ रही थी, मेरी धड़कने वैसे-वैसे तेज हो रही थी। मैं खुद को हौसला तो देती रही थी कि "जो होगा सो देखा जाएगा".. लेकिन डर था कि जाने का नाम ही नहीं ले। तू विश्वास नहीं करेगी, वो कुत्ता जब मुझ पर भौंक रहा था ना तब वो सब कुछ भूल गई जो सोच कर घर से निकली थी। एक्सेलेरेटर खुद ही इतना तेज हो गया की, जब मैंने अपने डर पर काबू पाया तो पता चला कि मैं उस गली से बहुत दूर निकल आईं हूं"।

"और अगले 2-3 दिन तक ऐसे ही सब कुछ वैसा दोहराता रहा। घर से सोच कर निकलती आज तो मैं इस कुत्ते को सबक सिखा कर रहूंगी और गली तक पहुंचते पहुंचते सारी हिम्मत हवा हो जाती। लेकिन इस प्रक्रिया में जो एक बदलाव मुझ में आया, वो ये था कि मेरी धड़कने अब थोड़ी काबू में रहती थी और स्कूटी नियंत्रण में। और फिर 1-2 दिन बाद वो वक़्त भी आया जब मैं हिम्मत जुटा कर स्कूटी को ठीक उसी वक़्त रोकी जब वो कुत्ता भौंकना शुरू किया। पैर तो मेरे भौंक सुनते ही कांपने लगे थे किंतु हाथ में डंडा लिए मैं अपने स्कूटी से नीचे उतरी। और हुआ क्या, वो कुत्ता जो भौंकते हुए तेज़ी से स्कूटी के ओर दौड़ा चला अा रहा था, जैसे ही मैंने उसे मारने के लिए डंडा उठाया वैसे ही वो दुम दबा कर भाग गया"।

"बस इतनी सी है डर कि कहानी। अब तुम्हे फैसला करना है कि तुम क्या करोगी? क्योंकि आज तुम डर से कॉलेज नहीं जाओगी तो क्या कभी आगे कॉलेज जाओगी ही नहीं? तुम चाहो तो अपना कॉलेज भी बदलवा सकती हो, तो क्या वो उस कॉलेज में नहीं पहुंचेगा? तुम चाहो तो घर बैठ कर पढ़ाई कर लो कोई कॉलेज जाओ ही मत, फिर भी क्या तुम इस घर से कभी बाहर नहीं जाओगी, क्या केवल एक कॉलेज ही बचा है जहां वो तुम्हे परेशान कर सकता है? मैंने अपनी बात पूरी कर दी आगे तुम्हारी मर्जी, मैं जा रही हूं तैयार होने।

लावणी, साची की बात सुन कर हंसती हुई कहती है…. "ये तुम्हारे साथ सच में हुआ था या किसी इंस्पिरेशनल स्टोरी को चेंप दी"..

साची:- इंस्पिरेशनल स्टोरी में इतनी डिटेल नहीं होता है पागल। वहां तो लिख देते हैं डर का सामना करो डर भाग जाएगा लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता है। आप का डर आप पर हमेशा हावी ही रहता है चाहे कितना भी सामना करने का सोच लो। कितना भी सामना करने जाओ फिर भी डर लगता ही है वो तो वक़्त और हमारी आदतो के कारण सामना करते-करते डर बाहर निकल जाता है। अब छोड़ ये सब और चल जा कर तुम भी तैयार हो जाओ।

साची की बातों से लावणी में थोड़ा बदलाव तो आया। वो किसी तरह हिम्मत जुटा कर कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई। दोनों जब बाहर निकाल रही थी तब भी अपस्यु बालकनी में ही खड़ा था। लावणी को तो डर ही इतना लग रहा था कि उसे कुछ सूझ ना रहा था लेकिन साची दबी नजरों से उसे देख लेती है।

वो लावणी का ध्यान भटकाने के लिए कहती भी है कि "आज नहीं बोलेगी कुछ, उस बालकनी वाले लड़के के बारे में"… लेकिन लावणी ने तो जैसे उसकी बात को अनसुना ही कर दिया।

थोड़ी ही देर में दोनों दौलत राम कॉलेज के गेट के बाहर खड़े थे। कॉलेज के गेट पर खड़ी हो कर साची, लावणी से कहती है…… "देखो हम अा गए अपनी मस्ती की पाठशाला में। अब पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ मस्ती भी होगी"

साची की बात सुन कर लावणी एक फीकी मुस्कान दी, जिसमें डर और मुस्कान का मिलजुला संगम था। उसके इस फीकी हसी पर साची, लावणी के कंधे को हिलाती हुई कहने लगी… "चिल मार, इतना डरेगी तो जिएगी कैसे? मैं हूं ना, उस आरव के बच्चे ने यदि आज तुझे छेड़ा तो फिर समझो उसकी शामत आई। और हां प्लीज मैं तेरे पाऊं पड़ती हूं, यहां तू मुझे दीदी मत कहना"।

लावणी, साची की बात पर हां में हां मिलाते हुए अंदर चल देती है। दोनों वहां से अपने-अपने कक्षा के लिए प्रस्थान कर लेती है। लावणी को आरव का डर सता रहा था जो पूरा दिन उस पर हावी रहा, किंतु आरव का कहीं कोई अता-पता नहीं था…

ऐसे ही अगला 2-3 दिन बीता, जब आरव कॉलेज में कहीं नजर नहीं आया और ना ही कॉलोनी में कहीं दिखा। हां अपस्यु भले ही हर वक़्त बालकनी में दिख जाया करता था। असर तो सिर्फ पहले दिन का ही होता है, उसके बात तो सिर्फ रही-सही कहानी रह जाती है। वैसा ही कुछ लावणी के साथ हो रहा था। अब आरव का ख्याल भी उसके मन से निकल चुका था और दोनों बहने नियमित रूप से कॉलेज जाया करती थी…

लगभग महीना बीतने को आया था.. और इतने दिनों में आरव कभी नजर नहीं आया… फिर एक रात करीब डेढ़ बजे दोनों बहाने चुपके से अपने घर के बाहर आईं और रास्ता पकड़ कर नुक्कड़ तक जाने लगी.. दोनों अभी कुछ कदम ही चली होंगी की उधर से आरव अपनी फटफटी लिए सामने से आ रहा था।

आरव अपनी फटफटी दोनों बहनों के सामने रोका और उनसे पूछने लगा… "देर रात दोनों कहां सड़कों पर भटक रही हो, ये दिल्ली है तुम्हारा गांव नहीं" … दोनों बहनों ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना रास्ता बदल कर आगे बढ़ गई। आरव भी अपने रास्ते आगे बढ़ गया और अपार्टमेंट के गेट पर अपस्यु का इंतजार करने लगा।

जब दोनों बहने थोड़ी और आगे बढ़ी तब सामने से उन्हें अपस्यु आता हुआ नजर आया। वो दोनो अपनी ही लय में चलती रही लेकिन अपस्यु के टेढ़े-मेढे लड़खड़ाते कदम धीरे-धीरे स्थिर मुद्रा में अा गए। दोनों बहने बिना कोई ध्यान भटकाए उसके पास से निकल गई और अपस्यु वहीं खड़ा रह गया….
 
Last edited:

rgcrazyboy

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lo ab store vapis se dusre update ki taraf aai :doh:
is liye kahata hu ek satha updates do to kuch samaj main bhi aaye par tum to pure dhith nikale :ohno:
mere ko kuch samaj main nhi aaya abhi bhi :bat:
 

rgcrazyboy

:dazed:
Prime
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:( मैं अब डरा सहमा सा हूं... प्लीज मुझे माफ़ कर दो... कोशिश ही कर सकता हूं अब तो...:डर:
:haha: jalidi jaldi se do fear updates
vese bhi koshish karne valo ki kabhi har nhi hoti.
muje tum par rati bhar bhi bharo sa na hai ki tum bhul kar bhi koshish karo ge :lotpot:
 

rgcrazyboy

:dazed:
Prime
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Apasyu के बारे में क्या ही बताऊं वो बिल्कुल मेरी तरह गाय है गाय... बिल्कुल सीधा और सच्चा... बताता हूं उसके बारे में भी



ज्यादा हो गया तो एडजस्ट कर ले ... इतना भी नहीं कर सकते क्या :girlslap:
ye or bhi jada hogaya ab :doh:
 

Aakash.

ɪ'ᴍ ᴜꜱᴇᴅ ᴛᴏ ʙᴇ ꜱᴡᴇᴇᴛ ᴀꜱ ꜰᴜᴄᴋ, ɴᴏᴡ ɪᴛ'ꜱ ꜰᴜᴄᴋ & ꜰᴜᴄᴋ
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Apsue only stares at Saachi from the window. What's on his mind, does he like Saachi or wants to befriend her. Whatever be the image of brothers in Saachi's eyes, I am glad that at least Saachi's attention was towards Apsue. Today's update revealed the slightly open nature of Saachi.
Sometimes I feel that Aarav will spoil the work created but in the meantime Aarav also conveyed his brother's message.
"एक नजर भर तुझे बस मैं देखता रहूं।
बस तुझे ही देखता रहूं, बस तुझे देखता रहूं।
ना जाने वो कौन सा जादू है कि तुझे ना देखूं तो लगता है कि
मैं पल भर भी जिंदा रह ना सकूं।

Wow!

I won't be able to say much about Lavani's character, She is like normal girls. It seems from Lavani's talk, something has happened with her earlier.
Real fun will come in college. By the way, today I felt bad that I want to say that if you do not mind, I did not like that Aarav held Lavani's hand in front of everyone.
As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story.

Thank You....
???
 

Aakash.

ɪ'ᴍ ᴜꜱᴇᴅ ᴛᴏ ʙᴇ ꜱᴡᴇᴇᴛ ᴀꜱ ꜰᴜᴄᴋ, ɴᴏᴡ ɪᴛ'ꜱ ꜰᴜᴄᴋ & ꜰᴜᴄᴋ
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Update:-5


लावणी कि इस बात पर सांची को थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी बातों से ऐसा लग नहीं रहा था कि आज जो बुक स्टोर में हुआ वह पहली बार हो रहा था…..

थोड़ी देर तक साची उसे शांत करती रही, फिर जब उसकी स्तिथि थोड़ी सी समन्या हुई तब साची ने उस से साफ शब्दों में पूछा "कि आखिर उसके और आरव के बीच चल क्या रहा है"

लावणी फिर गहरी सांस लेती हुई कहने लगी…. लगभग 15-20 दिन पहले की बात है, जब ये लोग सामने रहने आए थे। उसके अगले ही दिन जब मैं शाम को टहलने पार्क में गई तभी इस से मुलाकात हुई थी। मैं पार्क के बेंच पर बैठी थी और ये भी मेरे बिल्कुल करीब अा कर बैठ गया। मैं एक दम से चौंक गई, क्योंकि बेंच बिल्कुल खाली थी फिर भी ये मेरे करीब आ कर बैठ गया। इसी बीच जब तक मैं इस से कहती कि पूरी बेंच खाली है थोड़ा उधर खिसक कर बैठो की तब तक…

साची:- तब तक क्या लावणी..

लावणी:- दीदी मेरी बात समाप्त होने से पहले ही इसने मेरे गाल को चूम लिया।

लावणी की ये बात सुन कर साची बिल्कुल हैरान सी हो गई.. फिर से आगे बताने को कही….

लावणी अपनी बात आगे बढ़ाती हुई कहने लगी :- फिर दीदी ये जहां भी मुझ से मिलता मुझे अकेला देख कर उल्टी-सीधी बातें करता..

साची उसे बीच में ही रोकती हुई… "उल्टी-सीधी मतलब किस तरह की, पूरी बात बताओ"

लावणी:- वैसी ही दीदी जिस तरह कि आज किया था। यहीं की तुम से पहली नजर का प्यार है, तुम्हारे ऐसे वैसे सपने आते हैं। तुम्हरे शरीर पर कहां-कहां तिल हैं.. और भी गंदी- गंदी बातें। और जो 3 रात पहले घटना हुई थी ना पापा और इसके बीच। उस रात भी ये मुझे ही धक्का मारने कि कोशिश कर रहा था। अब दी सोचो ना कितना ढीठ है, मैं पापा के साथ थी तब भी ये मुझे धक्के मारने की कोशिश कर रहा था।

साची:- ढीठ तो है ही साथ ही पहुंच वाला भी है तभी तो ये जेल में ना हो कर बाहर घूम रहा है। इस से हमे संभल कर डील करना पड़ेगा। वैसे इसका भाई कैसा हैं।

लावणी:- उसे मैंने कभी इसके साथ नहीं देखा। पहले दिन ही जो इसे अपार्टमेंट के गेट पर देखी थी, उसके बाद आज देख रही हूं, वो भी जब आप ने इसे बालकनी में दिखाया।

साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं। खैर चल तू तैयार हो जा कॉलेज नहीं चलना क्या?

कॉलेज चलने कि बात पर लावणी थोड़े असमंजस में पड़ जाती है। तभी साची एक बार फिर कहती है "अब उठ भी जा, बैठे-बैठे क्या सोच रही है"।…… "दीदी, वो भी कॉलेज अा रहा है। मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं नहीं जाऊंगी कॉलेज"।

साची:- "जानती है लावणी जब मैं सीतापुर में थी ना तब रोज कॉलेज जाते समय, एक कुत्ता, मेरे स्कूटी के पीछे भौंकते हुए दौड़ता। जैसे ही वो भौंकता ना, मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जाती और स्कूटी का एक्सेलेरेटर अपने आप ही बहुत तेज हो जाती। उस कुत्ते का डर मेरे दिल में इतना हो गया था कि मुझे उस रास्ते से गुजरने में भी डर लगने लगा"।

"फिर मैंने वो रास्ता ही बदल दीया। लेकिन दूसरा रास्ता मेन रोड से होते हुए, बड़ा घूम कर मेरे कॉलेज पहुंचता, ऊपर से उस रास्ते में जाम लगा रहता सो अलग। तो कभी-कभी मुझे ना चाहते हुए भी उस रास्ते से हो कर जाना पड़ता था। लेकिन आलम ये था कि उस रास्ते पर जाने के नाम से ही, मेरे चेहरे की हवाइयां उड़ने लगती थी। लगभग 4 महीने तक ऐसा ही चलता रहा"।

"फिर एक दिन मैंने ठान लिया… जो होगा सो देख लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, वो कुत्ता मुझे कटेगा ही ना… मैं 14 इंजेक्शन लगवा लूंगी, पर आज तो इसे सबक सिखाए बिना नहीं छोडूंगी"।

"मैंने दृढ़ निश्चय किया। घर से निकलते वक़्त साथ में डंडा भी रखी लेकिन मैं जैसे-जैसे उस गली के ओर बढ़ रही थी, मेरी धड़कने वैसे-वैसे तेज हो रही थी। मैं खुद को हौसला तो देती रही थी कि "जो होगा सो देखा जाएगा".. लेकिन डर था कि जाने का नाम ही नहीं ले। तू विश्वास नहीं करेगी, वो कुत्ता जब मुझ पर भौंक रहा था ना तब वो सब कुछ भूल गई जो सोच कर घर से निकली थी। एक्सेलेरेटर खुद ही इतना तेज हो गया की, जब मैंने अपने डर पर काबू पाया तो पता चला कि मैं उस गली से बहुत दूर निकल आईं हूं"।

"और अगले 2-3 दिन तक ऐसे ही सब कुछ वैसा दोहराता रहा। घर से सोच कर निकलती आज तो मैं इस कुत्ते को सबक सिखा कर रहूंगी और गली तक पहुंचते पहुंचते सारी हिम्मत हवा हो जाती। लेकिन इस प्रक्रिया में जो एक बदलाव मुझ में आया, वो ये था कि मेरी धड़कने अब थोड़ी काबू में रहती थी और स्कूटी नियंत्रण में। और फिर 1-2 दिन बाद वो वक़्त भी आया जब मैं हिम्मत जुटा कर स्कूटी को ठीक उसी वक़्त रोकी जब वो कुत्ता भौंकना शुरू किया। पैर तो मेरे भौंक सुनते ही कांपने लगे थे किंतु हाथ में डंडा लिए मैं अपने स्कूटी से नीचे उतरी। और हुआ क्या, वो कुत्ता जो भौंकते हुए तेज़ी से स्कूटी के ओर दौड़ा चला अा रहा था, जैसे ही मैंने उसे मारने के लिए डंडा उठाया वैसे ही वो दुम दबा कर भाग गया"।

"बस इतनी सी है डर कि कहानी। अब तुम्हे फैसला करना है कि तुम क्या करोगी? क्योंकि आज तुम डर से कॉलेज नहीं जाओगी तो क्या कभी आगे कॉलेज जाओगी ही नहीं? तुम चाहो तो अपना कॉलेज भी बदलवा सकती हो, तो क्या वो उस कॉलेज में नहीं पहुंचेगा? तुम चाहो तो घर बैठ कर पढ़ाई कर लो कोई कॉलेज जाओ ही मत, फिर भी क्या तुम इस घर से कभी बाहर नहीं जाओगी, क्या केवल एक कॉलेज ही बचा है जहां वो तुम्हे परेशान कर सकता है? मैंने अपनी बात पूरी कर दी आगे तुम्हारी मर्जी, मैं जा रही हूं तैयार होने।

लावणी, साची की बात सुन कर हंसती हुई कहती है…. "ये तुम्हारे साथ सच में हुआ था या किसी इंस्पिरेशनल स्टोरी को चेंप दी"..

साची:- इंस्पिरेशनल स्टोरी में इतनी डिटेल नहीं होता है पागल। वहां तो लिख देते हैं डर का सामना करो डर भाग जाएगा लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता है। आप का डर आप पर हमेशा हावी ही रहता है चाहे कितना भी सामना करने का सोच लो। कितना भी सामना करने जाओ फिर भी डर लगता ही है वो तो वक़्त और हमारी आदतो के कारण सामना करते-करते डर बाहर निकल जाता है। अब छोड़ ये सब और चल जा कर तुम भी तैयार हो जाओ।

साची की बातों से लावणी में थोड़ा बदलाव तो आया। वो किसी तरह हिम्मत जुटा कर कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गई। दोनों जब बाहर निकाल रही थी तब भी अपस्यु बालकनी में ही खड़ा था। लावणी को तो डर ही इतना लग रहा था कि उसे कुछ सूझ ना रहा था लेकिन साची दबी नजरों से उसे देख लेती है।

वो लावणी का ध्यान भटकाने के लिए कहती भी है कि "आज नहीं बोलेगी कुछ, उस बालकनी वाले लड़के के बारे में"… लेकिन लावणी ने तो जैसे उसकी बात को अनसुना ही कर दिया।

थोड़ी ही देर में दोनों दौलत राम कॉलेज के गेट के बाहर खड़े थे। कॉलेज के गेट पर खड़ी हो कर साची, लावणी से कहती है…… "देखो हम अा गए अपनी मस्ती की पाठशाला में। अब पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ मस्ती भी होगी"

साची की बात सुन कर लावणी एक फीकी मुस्कान दी, जिसमें डर और मुस्कान का मिलजुला संगम था। उसके इस फीकी हसी पर साची, लावणी के कंधे को हिलाती हुई कहने लगी… "चिल मार, इतना डरेगी तो जिएगी कैसे? मैं हूं ना, उस आरव के बच्चे ने यदि आज तुझे छेड़ा तो फिर समझो उसकी शामत आई। और हां प्लीज मैं तेरे पाऊं पड़ती हूं, यहां तू मुझे दीदी मत कहना"।

लावणी, साची की बात पर हां में हां मिलाते हुए अंदर चल देती है। दोनों वहां से अपने-अपने कक्षा के लिए प्रस्थान कर लेती है। लावणी को आरव का डर सता रहा था जो पूरा दिन उस पर हावी रहा, किंतु आरव का कहीं कोई अता-पता नहीं था…

ऐसे ही अगला 2-3 दिन बीता, जब आरव कॉलेज में कहीं नजर नहीं आया और ना ही कॉलोनी में कहीं दिखा। हां अपस्यु भले ही हर वक़्त बालकनी में दिख जाया करता था। असर तो सिर्फ पहले दिन का ही होता है, उसके बात तो सिर्फ रही-सही कहानी रह जाती है। वैसा ही कुछ लावणी के साथ हो रहा था। अब आरव का ख्याल भी उसके मन से निकल चुका था और दोनों बहने नियमित रूप से कॉलेज जाया करती थी…

लगभग महीना बीतने को आया था.. और इतने दिनों में आरव कभी नजर नहीं आया… फिर एक रात करीब डेढ़ बजे दोनों बहाने चुपके से अपने घर के बाहर आईं और रास्ता पकड़ कर नुक्कड़ तक जाने लगी.. दोनों अभी कुछ कदम ही चली होंगी की उधर से आरव अपनी फटफटी लिए सामने से आ रहा था।

आरव अपनी फटफटी दोनों बहनों के सामने रोका और उनसे पूछने लगा… "देर रात दोनों कहां सड़कों पर भटक रही हो, ये दिल्ली है तुम्हारा गांव नहीं" … दोनों बहनों ने कोई जवाब नहीं दिया और अपना रास्ता बदल कर आगे बढ़ गई। आरव भी अपने रास्ते आगे बढ़ गया और अपार्टमेंट के गेट पर अपस्यु का इंतजार करने लगा।

जब दोनों बहने थोड़ी और आगे बढ़ी तब सामने से उन्हें अपस्यु आता हुआ नजर आया। वो दोनो अपनी ही लय में चलती रही लेकिन अपस्यु के टेढ़े-मेढे लड़खड़ाते कदम धीरे-धीरे स्थिर मुद्रा में अा गए। दोनों बहने बिना कोई ध्यान भटकाए उसके पास से निकल गई और अपस्यु वहीं खड़ा रह गया….
Aarav is a little daring boy what comes to his mind, he does. Apsue's nature is definitely different and better than Aarav's, I guess the rest will be revealed later.
साची:- एक भाई उचक्का है तो दूसरा ताका-झांकी वाला है। दोनों ही मुझे आवारा लगते हैं। खैर चल तू तैयार हो जा कॉलेज नहीं चलना क्या?
:lotpot:


Lavani is scared of Aarav's antics. It could also be that Aarav looks like something from outside and something else from inside. Apsue's character is becoming mysterious.

As always the update was great, You are writing very well, Now let's see what happens next, Till then waiting for the next part of the story.
Thank You...
???
 
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