Update:-41 (A)
सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठकर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ में आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..
अपस्यु, झटके के साथ बिस्तर पर लेटते हुए पूछने लगा…. "रात में कितने बजे आया मै इधर।"
साची बिस्तर से अपने कपड़े उठाकर पहनती हुई… "मुझे क्या पता, मैं तो गहरी नींद में थी, सुबह जब उठी तो पास में तुम सो रहे थे।
अपस्यु:- मुझे पता है तुम झूठ कह रही हो। अब बता भी दो…
साची की प्यारी हंसी वहां गूंजती हुई…. "एक किस दोगे तो बताती हूं।"
अपस्यु:- मैं लेटा हूं अाकर ले लो।
साची:- सर अपस्यु कब से इतना सबमेसिव हो गए।
अपस्यु बिस्तर से उठा और साची का हाथ मड़ोर कर उसे उल्टा घुमाते हुए, उसके कानों में कहने लगा….. "आज और कल की साची में बहुत फर्क दिख रहा है। यह एक अच्छी बात है। लेकिन सवाल अब भी वही है कल रात मै कितने बजे आया?"
साची हंसती हुई…. शर्म नहीं आती मुझे ऐसी हालत में जकड़ रखे हो।
अपस्यु:- मैं हालत पर नहीं हालातों पर ध्यान देता हूं। और जितनी शरारत तुम्हारी आखों में नजर आ रही है, वो सब मेरे भाई की करतूत है। अब बताओ रात को मैं कितने बजे यहां आया और हमदोनों के बीच क्या बात हुई।
साची:- हाथ छोड़ो ना, दुखता है।
अपस्यु, हाथ छोड़ते:- अब बताओ कल हमारे बीच क्या बात हुई।
साची खुलकर और खिल-खिलाकर हंसती, अपने हाथ हिलती हुई कहने लगी…. "जाओ नहीं बताती क्या कर लोगे"…
अपस्यु, कुछ सोच ही रहा था कि तभी साची उसके सामने आती हुई कहने लगी… "खुला बदन इतना ही पसंद अा रहा है तो क्या पूरा ही खोलकर दिखा दूं?"
अपस्यु:- बावली कहीं की, नहाने के बाद इतना समय लगता है क्या कोई कपड़े पहनने में। कॉलेज के लिए तैयार हो ना जल्दी वरना अनुपमा मिश्रा आती ही होगी। तब से खुद ब्रा-पैंटी में मंडरा रही हो और मुझे बेशर्म कह रही।
साची:- अच्छा दिल जल रहा है क्या इन कपड़ो में देखकर।
अपस्यु:- साची थोड़ा सा मज़ाक अच्छा लगता है। लेकिन लगातार एक ही बात पर मज़ाक करती रहोगी तो बातें इरिटेटिंग हो जाएगी।
साची:- अच्छा ठीक है मैं तैयार होती हूं।
अपस्यु, नींबू जूस पीते हुए पूछने लगा…. "रात की सभी बात को तुम सस्पेंस ही रखने वाली हो ना।"
साची:- हां बिल्कुल… कितने स्वीट हो तुम जानेमन।
अपस्यु:- हम्मम !!! अच्छा बस एक रिक्वेस्ट पूरी करोगी।
साची:- हाए । ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो। …
अपस्यु:- कल रात की बात मैंने कहां से शुरवात की थी वो बस बता दो।
साची:- मुझे याद नहीं।
अपस्यु:- कुछ ही समय पूर्व तो कह रही थी "ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो।" ….. अभी मुकड़ रही अपनी बातों से।
साची:- जान चाहिए तो ले लो कुछ ना कहूंगी। लेकिन यह नहीं बता सकती, कुछ और पूछो।
अपस्यु:- ठीक है कोई एक बात ही साझा कर दो।
साची:- ज़िन्दगी में थोड़ा टफ भी बनाना पड़ता है।
अपस्यु:- बहुत खूब, अब बताओ यहां से मै जाऊं कैसे।
"अब तक सो रही है क्या… कॉलेज नहीं जाना।"….. "तैयार हो रही हूं मम्मी, अभी अाई बाहर"… दरवाजे पर खड़ी होकर अनुपमा चिल्लाई जिसका जवाब साची ने दिया।
साची, अपस्यु के ओर देखती…. "सुबह का वक़्त और सब के सामने से निकालना… सोचिए अपस्यु जी सोचिए।
अपस्यु, आरव को कॉल लगाते हुए…. "मुझे यहां से अभी बाहर निकाल"
आरव:- तू वहीं अच्छा है… लावणी से मेरा झगड़ा करवाया ना .. अब तू वहीं फसा रह कमिने।
अपस्यु, आरव का कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद बहुत ही सोच में पर गया। कुछ देर सोचने के बाद वो उठकर खिड़की के पास गया और खिड़की को ध्यान से देखने लगा।… "नहीं यहां से निकालना संभव नहीं है जाना… सॉरी साची माफ़ करना"
साची आइने के सामने बैठकर अपनी बाल बना रही थी। उसे बातों मै उलझाकर अपस्यु ने सामने पड़े पीन को चुपचाप उठा लिया और अचानक से पूरा पीन साची के कंधे में घुसा दिया। साची की तेज चीख निकल गई।
उसकी आवाज़ काम करने वाली बाई ने सुनी और फिर सुनते-सुनते पूरे घर ने सुन लिया। अपस्यु वहीं दरवाजे के किनारे खड़ा हो गया। दौड़े-दौड़े सभी घरवाले "क्या हुआ, क्या हुआ" करते साची के कमरे पहुंच गए। सबने दरवाजा खोला और सीधा अंदर।
साची के आखों से आशु बह रहे थे और वो पिरा में अपने हाथ पीछे करके पीन निकालने की कोशिश कर रही थी। सब "क्या हुआ, क्या हुआ' कर रहे थे और सबसे पीछे अपस्यु खड़ा होकर वो भी "क्या हुआ, क्या हुआ" करने लगा।
साची:- पीठ में पीन चुभ गया।
अपस्यु चिंता जाहिर करते हुए, सबको किनारे करते आगे आया और झटके से पीन को बाहर निकलते हुए कहने लगा…. "अरे फौरन इलाज ना हुए तो टेटनस के साथ साथ सेप्टिक भी हो जाएगा। लावणी तुम इसके कॉपी-किताब लेकर कॉलेज चली आना। मैं इसे डॉक्टर से दिखा कर वहीं कॉलेज लेे आऊंगा।
अपस्यु साची का हाथ पकड़कर, उसके पूरे परिवार के बीच से उसे लेकर गया। … और सब देखते रह गए…. "ये कब आया"… लावणी के मुख से अनायास ही निकला, जिसे अनुपमा ने सुन लिया।
अनुपमा अपने मन में विचार करती…. "कब आया, हुलिया तो अजीब ही था। बाल बिखरे, ऐसा की रात में ठीक से सोया भी ना हो…. (धक धक, धक धक)… नहीं मै ही पागल हूं, ऐसा नहीं होगा, वो अपने घर से ही आया होगा। लेकिन ये तो सुबह 4 बजे उठ जाता है फिर इसका ये हुलिया.. कहीं ये रात में चोरी से यहां… नहीं-नहीं मैं भी ये क्या सोच रही हूं। लेकिन तब भी दोनों, जवान लड़की और जवान लड़का है।"
"बड़ी मां क्या हुआ, कहां खोई है।"… लावणी अनुपमा को हिलाती हुई पूछने लगी।
अनुपमा:- कुछ नहीं। तू साची के बुक्स लेे जा।
लावणी, साची का सरा सामान उठाने लगी, तभी बिस्तर पर अपस्यु का वॉलेट उसे परा मिल गया। वो चौंककर एक बार पीछे देखी फिर बड़ी सफाई से उसे किताब के बीच छिपाकर लेे जाने लगी…
"ऐ भूटकि सुन"… लावणी हड़बड़ा कर पीछे मुड़ी… "हां बड़ी मां"
अनुपमा उसके चेहरे के भाव को पढ़ती हुई… "क्या हुआ इतना घबराई क्यों है।"
लावणी:- वो बड़ी मां मै सोच रही थी, यदि दी को सैप्टिक हो गया तो बहुत परेशानी होगी ना।
(इसे कुछ तो पता है, मुझसे कुछ तो छिपा रही है ये)……. "तू इतना घबराई क्यों है, थोड़ी देर पहले तो नहीं घबराई थी".. अनुपमा थोड़े कड़े लहजे में जवाब तलब करती हुई।
लावणी:- बड़ी मां चिंता जब शुरू होगी तभी तो घबराहट आएगी।
अनुपमा:- हम्मम ! अच्छा साची को कॉल लगाकर पूछ किस हॉस्पिटल में गई है?
लावणी, साची से संपर्क करने के बाद…. "बड़ी मां वो लालजी हॉस्पिटल गए हैं।"
अनुपमा:- तू अपना फोन मुझे दे जरा…
लावणी ने जैसे ही अनुपमा को फोन दी, वो झट से अपने पास रखती हुई कहने लगी…. "5 मिनट रुक मै भी तुम्हारे साथ कॉलेज चल रही हूं।"
"इसपर तो आज पूरा काल मंडरा रहा है। भगवान थोड़ी नजर उधर भी डाल देना".. लावणी अपने मन में सोचती हुई चुपचाप वहां से निकल गई।
इधर साची का हाथ पकड़कर जब अपस्यु उसे लेे जा रहा था, वह उसकी हिम्मत और सूझ-बुझ की दीवानी हुई जा रही थी। अपार्टमेंट की पार्किंग में पहुंचकर अपस्यु ने साची को कार में कुछ समय इंतजार करने के लिए कहा और भागकर घर में पहुंचा।
नंदनी, अपस्यु को देखते ही गुस्से मै पूछने लगी… "रात भर कहां थे।"
अपस्यु:- मां लौटकर बताता हूं। अभी मै आप से ही मिलने आया था। अाकर पूरी बात बताता हूं।
अपस्यु, नंदनी से लिपटकर अपनी बात कहकर भागने लगा… नंदनी उसे पीछे से कुछ खा कर निकालने के लिए कहती रही लेकिन वो बाहर खाने का बोलकर निकल गया।
अपस्यु, साची को लेकर सिन्हा जी के बंगलो पहुंचा। सिन्हा जी दरवाजे पर ही कार में मिल गए। वो भी सुबह-सुबह किसी केस के सिलसिले में ऑफिस निकल रहे थे। कुछ औपचारिक बात होने के बाद सिन्हा जी ऑफिस निकल गए और अपस्यु साची को लेकर बंगलो के अंदर घुस गया।
"हम यहां क्यों आए हैं अपस्यु, मुझे लगा हम कहीं घूमने निकलेंगे। या फिर कोई रोमांटिक सफर होगा।" … साची मुस्कुराती हुई अपनी बात कही और अपस्यु को आंख भी मार दी।
अपस्यु:- साची वादा करो अभी, की आज तुम पूरा दिन मेरे साथ रहोगी, जबतक मै तुमसे ये ना कह दूं .. ये है पूरी कहानी।
साची, अपस्यु के गले में हाथ डालते बिल्कुल उस से चिपकती हुई कहने लगी… "मै तो पूरी उम्र तुम्हारे साथ रहूंगी और एक पूरी कहानी सुनने के बाद फिर से कोई नई कहानी बनाएंगे और ये सिलसिला पूरी उम्र चलता रहेगा।"
अपस्यु:- अच्छी बात है। लेकिन आज के लिए जो वादा मांग रहा हूं, उसके लिए तो हां कह कर स्वीकृति दे दो।
साची:- मतलब इतना कहने के बाद भी केवल आज के पीछे पड़े हो, ठीक है बाबा वादा किया। और कुछ ..
अपस्यु:- हां ! बस इतना ही की आगे जो भी होगा, उसपर ओवर रिएक्ट मत करना मैं सारी बातें समझा दूंगा।
साची, अपस्यु की इस आखरी बात पर कुछ देर तक सोचती रही, फिर उस बंगलो को ध्यान से देखने लगी… उसका खिला चेहरा थोड़े चिंता में डूबा नजर आने लगा। और साची अपनी इसी चिंता को जाहिर करती हुई कहने लगी….
"जबसे मुझसे गलतियां हुई है मैंने ये एक काम तो सबसे पहले छोड़ दिया है, वो है ओवर रिएक्ट करना। लेकिन बात क्या है अपस्यु, तुम मुझे यहां क्यों लाए हो? कहीं इनका बंगलो खाली हैं ये सोच कर तो नहीं लाए। सुनो शायद कुछ गलतफहमियां हुई है जिन्हे अभी बात करके दूर करनी होगी।"
"कल रात तुम मेरे पास जब आए, तब नशे कि हालत में मुझ से वो सब कह गए जो तुम्हारे दिल में मेरे लिए था। यहीं एक वजह है कि कल और आज की साची में तुम्हे बहुत फर्क नजर आया होगा। रही बात तुम्हारे पास आना और मेरा खुला व्यवहार करना तो आज के पहले कि कहानी कुछ और ही थी जिसका शायद तुम्हे कोई ज्ञान नहीं, और आज तो मै तुम्हे केवल चिढ़ा रही थी क्योंकि तुम पर मुझे पूरा यकीन जो है।"
"अगर तुम सुबह की बात सोचकर इस खाली बंगलो में लाए हो तो मै क्या कहूं इसपर। बस इतना ही कहना चाहूंगी, मेरे अंदर के संस्कार मुझे कभी इस बात की इजाज़त नहीं देगी। फिर भी तुम यदि इसी में खुश हो तो फिर मै गलत साबित हो जाऊंगी… आगे तुम्हारी मर्जी.. मै साथ हूं।"
"सो नाइस ऑफ यूं… बस अपनी बात याद रखना कोई ओवर रिएक्शन नहीं।".. अपस्यु अपनी बात कहकर इधर-उधर देखने लगा और साची अपस्यु को देखकर समझने कि कोशिश कर रही थी कि ये चाहता क्या है?