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Romance भंवर (पूर्ण)

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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main pura sidha hun ji .. samjh hi nahi paya :dazed:
Illusion :listen:

nana ye thode na tha .. wo saiyyan ji se aaj maine break up kar liya ye wala song :declare:
ju aise duplicate gane bhi sunte hai :sigh:
sunni hai toh apsyu aur saachi ki duet suniye... Chan se joh toote koi sapna, Jag soona soona lage, Jag soona soona lage
Koi rahe na jab apna, Jag soona soona lage
Jag soona soona lage hai , Yeh kyun hota hai, Jab yeh dil rota hai, Roye sisak sisak ke hawayein, Jag soona lage.......... :lollypop:
 

nain11ster

Prime
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Update:-41 (A)



सुबह-सुबह का वक़्त…. अपस्यु सिर पर अपना हाथ रखे उठकर बैठा। "ओह बहुत ज्यादा हो गई रात को।"…. "इसे पी लीजिए थोड़ा आराम मिलेगा"… अपस्यु थैंक्स बोलकर ग्लास हाथ में ले लिया। केवल और केवल नींबू निचोड़ा हुआ जूस था वो। एक सिप में ही दिमाग फ्रेश हो गया। डकार आने शुरू हो गए। साथ में आंख भी थोड़ी खुली… हैरानी से चारो ओर वो देखने लगा और कुछ ही दूर बिस्तर के आगे केवल टॉवेल में साची खड़ी थी और नीचे बिस्तर पर उसके कपड़े फैले पड़े थे…..

अपस्यु, झटके के साथ बिस्तर पर लेटते हुए पूछने लगा…. "रात में कितने बजे आया मै इधर।"

साची बिस्तर से अपने कपड़े उठाकर पहनती हुई… "मुझे क्या पता, मैं तो गहरी नींद में थी, सुबह जब उठी तो पास में तुम सो रहे थे।

अपस्यु:- मुझे पता है तुम झूठ कह रही हो। अब बता भी दो…

साची की प्यारी हंसी वहां गूंजती हुई…. "एक किस दोगे तो बताती हूं।"

अपस्यु:- मैं लेटा हूं अाकर ले लो।

साची:- सर अपस्यु कब से इतना सबमेसिव हो गए।

अपस्यु बिस्तर से उठा और साची का हाथ मड़ोर कर उसे उल्टा घुमाते हुए, उसके कानों में कहने लगा….. "आज और कल की साची में बहुत फर्क दिख रहा है। यह एक अच्छी बात है। लेकिन सवाल अब भी वही है कल रात मै कितने बजे आया?"

साची हंसती हुई…. शर्म नहीं आती मुझे ऐसी हालत में जकड़ रखे हो।

अपस्यु:- मैं हालत पर नहीं हालातों पर ध्यान देता हूं। और जितनी शरारत तुम्हारी आखों में नजर आ रही है, वो सब मेरे भाई की करतूत है। अब बताओ रात को मैं कितने बजे यहां आया और हमदोनों के बीच क्या बात हुई।

साची:- हाथ छोड़ो ना, दुखता है।

अपस्यु, हाथ छोड़ते:- अब बताओ कल हमारे बीच क्या बात हुई।

साची खुलकर और खिल-खिलाकर हंसती, अपने हाथ हिलती हुई कहने लगी…. "जाओ नहीं बताती क्या कर लोगे"…

अपस्यु, कुछ सोच ही रहा था कि तभी साची उसके सामने आती हुई कहने लगी… "खुला बदन इतना ही पसंद अा रहा है तो क्या पूरा ही खोलकर दिखा दूं?"

अपस्यु:- बावली कहीं की, नहाने के बाद इतना समय लगता है क्या कोई कपड़े पहनने में। कॉलेज के लिए तैयार हो ना जल्दी वरना अनुपमा मिश्रा आती ही होगी। तब से खुद ब्रा-पैंटी में मंडरा रही हो और मुझे बेशर्म कह रही।

साची:- अच्छा दिल जल रहा है क्या इन कपड़ो में देखकर।

अपस्यु:- साची थोड़ा सा मज़ाक अच्छा लगता है। लेकिन लगातार एक ही बात पर मज़ाक करती रहोगी तो बातें इरिटेटिंग हो जाएगी।

साची:- अच्छा ठीक है मैं तैयार होती हूं।

अपस्यु, नींबू जूस पीते हुए पूछने लगा…. "रात की सभी बात को तुम सस्पेंस ही रखने वाली हो ना।"

साची:- हां बिल्कुल… कितने स्वीट हो तुम जानेमन।

अपस्यु:- हम्मम !!! अच्छा बस एक रिक्वेस्ट पूरी करोगी।

साची:- हाए । ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो। …

अपस्यु:- कल रात की बात मैंने कहां से शुरवात की थी वो बस बता दो।

साची:- मुझे याद नहीं।

अपस्यु:- कुछ ही समय पूर्व तो कह रही थी "ऐसे रिक्वेस्ट पर तो जान ले लो।" ….. अभी मुकड़ रही अपनी बातों से।

साची:- जान चाहिए तो ले लो कुछ ना कहूंगी। लेकिन यह नहीं बता सकती, कुछ और पूछो।

अपस्यु:- ठीक है कोई एक बात ही साझा कर दो।

साची:- ज़िन्दगी में थोड़ा टफ भी बनाना पड़ता है।

अपस्यु:- बहुत खूब, अब बताओ यहां से मै जाऊं कैसे।

"अब तक सो रही है क्या… कॉलेज नहीं जाना।"….. "तैयार हो रही हूं मम्मी, अभी अाई बाहर"… दरवाजे पर खड़ी होकर अनुपमा चिल्लाई जिसका जवाब साची ने दिया।

साची, अपस्यु के ओर देखती…. "सुबह का वक़्त और सब के सामने से निकालना… सोचिए अपस्यु जी सोचिए।

अपस्यु, आरव को कॉल लगाते हुए…. "मुझे यहां से अभी बाहर निकाल"

आरव:- तू वहीं अच्छा है… लावणी से मेरा झगड़ा करवाया ना .. अब तू वहीं फसा रह कमिने।

अपस्यु, आरव का कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद बहुत ही सोच में पर गया। कुछ देर सोचने के बाद वो उठकर खिड़की के पास गया और खिड़की को ध्यान से देखने लगा।… "नहीं यहां से निकालना संभव नहीं है जाना… सॉरी साची माफ़ करना"

साची आइने के सामने बैठकर अपनी बाल बना रही थी। उसे बातों मै उलझाकर अपस्यु ने सामने पड़े पीन को चुपचाप उठा लिया और अचानक से पूरा पीन साची के कंधे में घुसा दिया। साची की तेज चीख निकल गई।

उसकी आवाज़ काम करने वाली बाई ने सुनी और फिर सुनते-सुनते पूरे घर ने सुन लिया। अपस्यु वहीं दरवाजे के किनारे खड़ा हो गया। दौड़े-दौड़े सभी घरवाले "क्या हुआ, क्या हुआ" करते साची के कमरे पहुंच गए। सबने दरवाजा खोला और सीधा अंदर।

साची के आखों से आशु बह रहे थे और वो पिरा में अपने हाथ पीछे करके पीन निकालने की कोशिश कर रही थी। सब "क्या हुआ, क्या हुआ' कर रहे थे और सबसे पीछे अपस्यु खड़ा होकर वो भी "क्या हुआ, क्या हुआ" करने लगा।

साची:- पीठ में पीन चुभ गया।

अपस्यु चिंता जाहिर करते हुए, सबको किनारे करते आगे आया और झटके से पीन को बाहर निकलते हुए कहने लगा…. "अरे फौरन इलाज ना हुए तो टेटनस के साथ साथ सेप्टिक भी हो जाएगा। लावणी तुम इसके कॉपी-किताब लेकर कॉलेज चली आना। मैं इसे डॉक्टर से दिखा कर वहीं कॉलेज लेे आऊंगा।

अपस्यु साची का हाथ पकड़कर, उसके पूरे परिवार के बीच से उसे लेकर गया। … और सब देखते रह गए…. "ये कब आया"… लावणी के मुख से अनायास ही निकला, जिसे अनुपमा ने सुन लिया।

अनुपमा अपने मन में विचार करती…. "कब आया, हुलिया तो अजीब ही था। बाल बिखरे, ऐसा की रात में ठीक से सोया भी ना हो…. (धक धक, धक धक)… नहीं मै ही पागल हूं, ऐसा नहीं होगा, वो अपने घर से ही आया होगा। लेकिन ये तो सुबह 4 बजे उठ जाता है फिर इसका ये हुलिया.. कहीं ये रात में चोरी से यहां… नहीं-नहीं मैं भी ये क्या सोच रही हूं। लेकिन तब भी दोनों, जवान लड़की और जवान लड़का है।"

"बड़ी मां क्या हुआ, कहां खोई है।"… लावणी अनुपमा को हिलाती हुई पूछने लगी।

अनुपमा:- कुछ नहीं। तू साची के बुक्स लेे जा।

लावणी, साची का सरा सामान उठाने लगी, तभी बिस्तर पर अपस्यु का वॉलेट उसे परा मिल गया। वो चौंककर एक बार पीछे देखी फिर बड़ी सफाई से उसे किताब के बीच छिपाकर लेे जाने लगी…

"ऐ भूटकि सुन"… लावणी हड़बड़ा कर पीछे मुड़ी… "हां बड़ी मां"

अनुपमा उसके चेहरे के भाव को पढ़ती हुई… "क्या हुआ इतना घबराई क्यों है।"

लावणी:- वो बड़ी मां मै सोच रही थी, यदि दी को सैप्टिक हो गया तो बहुत परेशानी होगी ना।

(इसे कुछ तो पता है, मुझसे कुछ तो छिपा रही है ये)……. "तू इतना घबराई क्यों है, थोड़ी देर पहले तो नहीं घबराई थी".. अनुपमा थोड़े कड़े लहजे में जवाब तलब करती हुई।

लावणी:- बड़ी मां चिंता जब शुरू होगी तभी तो घबराहट आएगी।

अनुपमा:- हम्मम ! अच्छा साची को कॉल लगाकर पूछ किस हॉस्पिटल में गई है?

लावणी, साची से संपर्क करने के बाद…. "बड़ी मां वो लालजी हॉस्पिटल गए हैं।"

अनुपमा:- तू अपना फोन मुझे दे जरा…

लावणी ने जैसे ही अनुपमा को फोन दी, वो झट से अपने पास रखती हुई कहने लगी…. "5 मिनट रुक मै भी तुम्हारे साथ कॉलेज चल रही हूं।"

"इसपर तो आज पूरा काल मंडरा रहा है। भगवान थोड़ी नजर उधर भी डाल देना".. लावणी अपने मन में सोचती हुई चुपचाप वहां से निकल गई।

इधर साची का हाथ पकड़कर जब अपस्यु उसे लेे जा रहा था, वह उसकी हिम्मत और सूझ-बुझ की दीवानी हुई जा रही थी। अपार्टमेंट की पार्किंग में पहुंचकर अपस्यु ने साची को कार में कुछ समय इंतजार करने के लिए कहा और भागकर घर में पहुंचा।

नंदनी, अपस्यु को देखते ही गुस्से मै पूछने लगी… "रात भर कहां थे।"

अपस्यु:- मां लौटकर बताता हूं। अभी मै आप से ही मिलने आया था। अाकर पूरी बात बताता हूं।

अपस्यु, नंदनी से लिपटकर अपनी बात कहकर भागने लगा… नंदनी उसे पीछे से कुछ खा कर निकालने के लिए कहती रही लेकिन वो बाहर खाने का बोलकर निकल गया।

अपस्यु, साची को लेकर सिन्हा जी के बंगलो पहुंचा। सिन्हा जी दरवाजे पर ही कार में मिल गए। वो भी सुबह-सुबह किसी केस के सिलसिले में ऑफिस निकल रहे थे। कुछ औपचारिक बात होने के बाद सिन्हा जी ऑफिस निकल गए और अपस्यु साची को लेकर बंगलो के अंदर घुस गया।

"हम यहां क्यों आए हैं अपस्यु, मुझे लगा हम कहीं घूमने निकलेंगे। या फिर कोई रोमांटिक सफर होगा।" … साची मुस्कुराती हुई अपनी बात कही और अपस्यु को आंख भी मार दी।

अपस्यु:- साची वादा करो अभी, की आज तुम पूरा दिन मेरे साथ रहोगी, जबतक मै तुमसे ये ना कह दूं .. ये है पूरी कहानी।

साची, अपस्यु के गले में हाथ डालते बिल्कुल उस से चिपकती हुई कहने लगी… "मै तो पूरी उम्र तुम्हारे साथ रहूंगी और एक पूरी कहानी सुनने के बाद फिर से कोई नई कहानी बनाएंगे और ये सिलसिला पूरी उम्र चलता रहेगा।"

अपस्यु:- अच्छी बात है। लेकिन आज के लिए जो वादा मांग रहा हूं, उसके लिए तो हां कह कर स्वीकृति दे दो।

साची:- मतलब इतना कहने के बाद भी केवल आज के पीछे पड़े हो, ठीक है बाबा वादा किया। और कुछ ..

अपस्यु:- हां ! बस इतना ही की आगे जो भी होगा, उसपर ओवर रिएक्ट मत करना मैं सारी बातें समझा दूंगा।

साची, अपस्यु की इस आखरी बात पर कुछ देर तक सोचती रही, फिर उस बंगलो को ध्यान से देखने लगी… उसका खिला चेहरा थोड़े चिंता में डूबा नजर आने लगा। और साची अपनी इसी चिंता को जाहिर करती हुई कहने लगी….

"जबसे मुझसे गलतियां हुई है मैंने ये एक काम तो सबसे पहले छोड़ दिया है, वो है ओवर रिएक्ट करना। लेकिन बात क्या है अपस्यु, तुम मुझे यहां क्यों लाए हो? कहीं इनका बंगलो खाली हैं ये सोच कर तो नहीं लाए। सुनो शायद कुछ गलतफहमियां हुई है जिन्हे अभी बात करके दूर करनी होगी।"
"कल रात तुम मेरे पास जब आए, तब नशे कि हालत में मुझ से वो सब कह गए जो तुम्हारे दिल में मेरे लिए था। यहीं एक वजह है कि कल और आज की साची में तुम्हे बहुत फर्क नजर आया होगा। रही बात तुम्हारे पास आना और मेरा खुला व्यवहार करना तो आज के पहले कि कहानी कुछ और ही थी जिसका शायद तुम्हे कोई ज्ञान नहीं, और आज तो मै तुम्हे केवल चिढ़ा रही थी क्योंकि तुम पर मुझे पूरा यकीन जो है।"
"अगर तुम सुबह की बात सोचकर इस खाली बंगलो में लाए हो तो मै क्या कहूं इसपर। बस इतना ही कहना चाहूंगी, मेरे अंदर के संस्कार मुझे कभी इस बात की इजाज़त नहीं देगी। फिर भी तुम यदि इसी में खुश हो तो फिर मै गलत साबित हो जाऊंगी… आगे तुम्हारी मर्जी.. मै साथ हूं।"

"सो नाइस ऑफ यूं… बस अपनी बात याद रखना कोई ओवर रिएक्शन नहीं।".. अपस्यु अपनी बात कहकर इधर-उधर देखने लगा और साची अपस्यु को देखकर समझने कि कोशिश कर रही थी कि ये चाहता क्या है?
 

nain11ster

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Update:-41 (B)



अपस्यु ने घर के नौकर से पता किया ऐमी कहां है? पता चला वो अभी तक सो रही थी। अपस्यु साची को लेकर सीधा उसके कमरे की ओर बढ़ा। साची को कुछ भी समझ में नहीं अा रहा था, अपस्यु करना क्या चाह रहा है। वो कुछ पूछना शुरू करती तो अपस्यु उसे इतना ही कहता बस देखती जाओ।

दोनों साथ-साथ उसके कमरे में पहुंचे, साची को सामने एक लड़की चादर ताने सोई हुई दिखी। ऐमी गहरी नींद में लेटि थी। अपस्यु कमरे में लगे चेयर पर साची को बैठने का इशारा किया। साची उसके इशारे पर बैठ तो गई लेकिन उसके दिमाग में अब काफी हलचल सी मच रही थी, फिर से एक भावना जो उसके अंदर कौंध रही थी लेकिन अपने सभी भावनाओ पर वो काबू रखती बस अपस्यु को ही देख रही थी।

अपस्यु, ऐमी के बिस्तर पर चढ़ गया। उसके कमर के दोनों ओर पाऊं रखकर बैठते हुए, उसके गर्दन पकड़कर जोड़-जोड़ से हिलाने लगा…. "आओओ … इतनी सुबह-सुबह क्यों पहुंचे। प्लीज अभी लैक्चर नहीं"..

अपस्यु उसके होंठ से होंठ लगा कर ऐमी को चूमते हुए… "उसपर बाद में बात करेंगे। उठ जाओ तुम्हारे कमरे में कोई गेस्ट है।"… इतना कहकर अपस्यु उसके ऊपर से हटा और अलमीरा से अपने कपड़े निकालकर सीधा बाथरूम में घुस गया।

ऐमी अंगड़ाई लेती उठकर बैठी, जब उसके शरीर के ऊपर से चादर हटा और अंगड़ाई लेकर वो उठ रही थी… साची उसे पहली बार करीब से पूरा देख रही थी। जब वो उठकर बिस्तर से बाहर आयी तब तो उसकी आंखें और भी फैल गई क्योंकि इस तरह की लुभावनी लिंगरी में वो किसी लड़की को पहली बार देख रही थी।

साची के ठीक सामने आएन था, जिसमे वो अपने पूरे बदन पर गौर कर रही थी और खुद को ऐमी से तुलना करके देख रही थी। … "क्या हुआ तुम मुझे इस तरह से घूर क्यों रही हो। कहीं तुम लेस्बियन तो नहीं।"... साची ना में अपना सिर हिलाती उसपर से अपनी नजरें हटा ली।

अजीब ही उलझन में साची थी। दिल तो खैर टूटा ही था, साथ ही साथ इतने सारे सवाल एक साथ उसके मन में अा रहे थे जिन्हें वर्णित करना संभव नहीं। क्या उस मनोदशा की भी कल्पना की जा सकती थी, जब अपने ही प्यार को किसी दूसरी लड़की के साथ चूमते पकड़ो। लेकिन यहां तो चूमते पकड़ा भी नहीं था उल्टा खुद अपस्यु उसे ये सब दिखा रहा था।

"ज्यादा मत सोचो वो खुद ही सारी बातें क्लियर कर देगा"… ऐमी अपने ऊपर कपड़े डालती हुई कहने लगी।

साची:- तुम..

ऐमी:- मैं ऐमी हूं, और तुम साची हो ना।

साची:- तुम मुझे जानती हो?

ऐमी:- हां बिल्कुल.. चाय लोगी या कॉफी..

साची:- एक सुकून की नींद, जो ना जाने कितनी रातों से मैं सोई नहीं और ना जाने कितनी रातो तक आए नहीं।

ऐमी:- विरह के सोक अवस्था। कीप इट अप डार्लिंग।

ऐमी के ऐसे रिप्लाई पर साची उसे ऐसी घुरी मानो वो उसका मुंह अभी नोच ले। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया देख कर ऐमी को हंसी अा गई। वह हंसती हुई कहने लगी…. "सॉरी यार, हम बेफिक्रे लोग है, जो मुंह में आया बक देते है। तुम्हारी भावना को ठेस पहुंचाना मेरा बिल्कुल भी मकसद नहीं था।"

इतने में अपस्यु भी तैयार होकर बाहर अा गया… "चले साची"..

अपस्यु, के ऐसे पूछने पर मानो उसके बदन में आग सी लग गई हो… वो अचानक ही फट पड़ी… लेकिन शायद अपनी अभिव्यक्ति के लिए उसे ज्यादा शब्द नहीं मिल रहे थे इसलिए वो धोखेबाज, स्काउंद्रल, और चंद शब्द बोल कर चिल्लाए जा रही थी। उसे भी थोड़े ना समझ में आ रहा था कि वो क्या भावना व्यक्त करे।

फिर शुरू हुई समझाने कि कोशिश, लेकिन क्या ऐसी स्तिथि में किसी भी लड़की को समझाया या चुप करवाया जा सकता था, कभी नहीं। अपस्यु को इस स्तिथि का अंदाज़ा था इसलिए अपस्यु और ऐमी ने मिलकर उसके मुंह पर टेप लगा दिया और हाथ-पाऊं बांध कर उसे गाड़ी में बिठा दिया।

कार जैसे ही उस बंगलो से आगे बढ़ी, अपस्यु अपना हाथ पीछे बढ़ाकर उसके हाथ कि रस्सियां खोल दिया। हाथ की रस्सी खुलते ही, साची ने सबसे पहले खुद को कैद से आजाद करवाया। फिर कुछ देर तक तक अंदर ही चिल्लाती रही फिर चिल्ला-चिल्ला कर खुद ही चुप हो गई।

उसके चुप होने के 2 मिनट बाद अपस्यु उससे कहने लगा… "मैंने कल तुम्हारी और कुंजल की लगभग बातें सुनी थी। तुम्हे बहुत सी बातें बतानी है लेकिन जबतक तुम कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं होगी तबतक मैं कुछ भी कर लूं तुम्हे समझा नहीं सकता।

साची, फिर से चिंख़ती हुई कहने लगी….. "इसमें समझना क्या है, तुम दोनों का अफेयर है और मेरे साथ तुम एक्स्ट्रा अफेयर कर रहे थे। सच ही कहा क्रेज़ी ने तुम धोखेबाज हो।

अपस्यु:- ठीक है तुम अपनी राय बनाए रखो। मै किसी तरह का उसमे छेड़-छाड़ नहीं करूंगा। बस एक ही बात कहता हूं.. मै धोखेबाज होता तो तुमने मुझे सामने से कई मौके दिए थे। इसके अलावा मै खुद तुम्हे ऐमी से मिलवाने लेे गया। आगे तुम्हारी सोच। आज का एक दिन तुमसे क्यों मांगा जरा इस बात पर भी गौर करना। तुम चाहो तो मुझे धोखेबाज समझ सकती हो या नहीं तो मै कैंटीन में मिल जाऊंगा। उतारो हम पहुंच चुके हैं।

साची कार से नीचे उतरकर कुछ कदम आगे चली और कुछ सोचकर वापस अपस्यु के पास पहुंची…. "एक बात बताओ, तुम किससे प्यार करते हो।

अपस्यु:- तुमसे

साची को एक बार फिर गुस्सा अा गई…. "और जो सुबह-सुबह तुम दोनों मुंह से मुंह चिपकाकर कर रहे थे वो भी बिना ब्रश किए यक्क .. वो क्या था फिर"..

अपस्यु:- हमारा कैज़ुअल रिलेशन…

"क्या……. कौन सा रिलेशन"… अपस्यु अपनी बात कहकर आगे निकल चुका था और साची उसे पीछे से पूछने लगी।

अपस्यु चलते चलते…. "अपनी क्लास खत्म करके कैंटीन अा जाना आज का पूरा दिन केवल तुम्हारे लिए रखा है। बाकी आना ना आना तुम्हारी मर्जी"

अपस्यु वहां से चला गया और साची, सिर्फ 5 मिनट पहले जिसके दिमाग में बॉम्ब फुट रहे थे, वो केवल इतना ही सोचने में लगी रही…. "जीवन में तरह-तरह के रिलेशन के बारे में सुनी, ये कैज़ुअल रिलेशन क्या होता है।"

दूसरी ओर अनुपमा भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो चुकी थी। लावणी पहले से अपनी स्कूटी को तैयार करके खड़ी थी। अनुपमा को देखती ही कहने लगी…. "बड़ी मां अब मै समझी आप 5 मिनट बोल कर आधा घंटे बाद क्यों अाई। खूबसूरत दिख रही है।"…

अनुपमा उसे एक थप्पड लगाती हुई कहने लगी… "हम कार से चलेंगे".. लावणी अपने गाल पर हाथ रखकर उसके पीछे चल दी।…

दोनों कार में बैठ चुके थे। लावणी अब भी अपने गाल पर हाथ रखे, सोचने लगी…. "मिर्गी उन दोनों को अाई है और बड़ी मां गुस्सा मुझ पर निकाल रही"..

"कुछ पूछ रही हूं बोलती क्यों नहीं"… अनुपमा लावणी को डांटती हुई पूछने लगी।

लावणी:- क्या पूछ रही थी बड़ी मां।

अनुपमा:- ना जाने कहां खोई रहती है ये लड़की। सपना गार्डन (वहीं गार्डन जहां से साची, अपस्यु से मिलने लालजी हॉस्पिटल आयी थी) और अपने घर के रास्ते में लालजी हॉस्पिटल पड़ता है क्या?

लावणी:- नहीं बड़ी मां, दोनों अलग डायरेक्शन में है।

"ओह मतलब उस रात भी ये तबीयत खराब का बहाना करके उसी से मिलने गई थी। इसके तो पड़ मै आज कतरूंगी।"… अनुपमा मन में ख्याल लाती।

लावणी:- बड़ी मां फोन दो ना।

अनुपमा ने लावणी को उसका फोन दे दी। लावणी ने जैसे ही अपना फोन चालू की स्क्रीन पर व्हाट्स ऐप मसेंजर खुला हुआ। ऐप को जब उसने मिनिमाइज किया तब पता चला, अनुपमा ने उसका पूरा फोन खंगाल लिया था। मन ही मन वो अपस्यु को धन्यवाद कर रही थी। कल रात यदि उसने वो फोटो नहीं भेजी होती, तो ना ही वो आरव से झगड़ा करती और ना ही वो उसके सभी मैसेज और फोटो डिलीट करके उसे ब्लॉक करती।

पहली जांच पड़ताल लालजी हॉस्पिटल। यहां वो दोनों आए थे। दूसरी जांच पड़ताल कॉलेज में। क्लास में बैठकर साची पढ़ रही थी। यहां भी सब कुछ क्लियर। इसी बीच जब अनुपमा लौट रही थी तब उसकी नजर अपस्यु पर पड़ी… अनुपमा ने अपना रास्ता बदल लिया और वो अपस्यु से बात करने उसके पास पहुंची…

अपस्यु जहां खड़ा था वहां के चारो ओर का माहौल देखकर लावणी का दिल डीजे के बूफर जैसे धड़कने लगा, लेकिन अब वो कर भी क्या सकती थी, बस अपस्यु ही सामने खड़ा दिख रहा था और वहीं उसका इकलौता सहारा था।

अपस्यु ने जब अनुपमा के साथ-साथ लावणी को भी आते देखा, तो लावणी के चेहरे का उड़ा रंग देखकर उसे हंसी आने लगी। खैर वो अपने हंसी पर काबू किया और अनुपमा को नमस्ते करते हुए कहने लगा, सुबह साची को डॉक्टर से दिखाना जरूरी लगा इसलिए आप लोगों से बिना पूछे उसे साथ ले आया। सॉरी आंटी।

अनुपमा:- कोई बात नहीं है बेटा, तुम उसके साथी हो और ये तो बड़ी खुशी की बात है कि तुम्हे भी उसकी चिंता है। थैंक यू सो मच…

(झूठी, पूरे रास्ते इंक्वायरी करती अाई है ये, अब सामने है तो थैंक यूं बोल रही).. लावणी

अपस्यु:- अरे इसमें थैंक्स जैसा क्या है, हम पड़ोसी है। एक ही कॉलेज में है। और आप की तो मेरी मां से अच्छी दोस्ती भी हैं। अब इन सबके बदले मैंने कुछ कर दिया तो इसमें थैंक्स जैसा क्या है।

(हां फेकू, बिस्तर पर वाला वॉलेट हाथ लग जाता ना तब ये सफाई देते। चार चप्पल लगाती बड़ी मां) लावणी..

अनुपमा:- बेटा तुम क्लास में नहीं हो। तुम और साची तो एक ही विषय पढ़ते हो ना।

अपस्यु:- अरे आंटी वो सुबह साची से एक नोट्स लेकर बस एक झलक देखना था, तो सोचा वो लेेकर देख लूं फिर आराम से तैयार होकर जाऊंगा कॉलेज, और इतने में ही ये सरा कांड हो गया… इसलिए साची को यहां छोड़ कर फिर तैयार होने गया था।

अनुपमा:- घर से तैयार होकर इतनी जल्दी अा भी गए।

अपस्यु:- अच्छा मज़ाक कर लेती है आंटी। नहीं मै घर नहीं गया था यहीं अपने दोस्त के पास जाकर उसके कपड़े उधार मांग लिए और वहीं तैयार हो गया।

(ओ पागल बस कर, तू भी जा इन्हे भी जाने दे। क्यों पकड़े है इन्हे। एक बार जाने दो बड़ी मां को फिर उस आरव को बताती हूं मै)

अनुपमा:- कितने सरल हो तुम अपस्यु। चलो बाय बेटा।

(शुक्र है.. बला टली).. लावणी

अपस्यु:- अरे कहां आंटी… आप पहली बार कॉलेज अाई है, एक चाय तो पीती जाइए।

(ओ बावरा, जाने दे ना बड़ी मां को… पागल कहीं का।)

अनुपमा:- नहीं बेटा जाने दो। चाय तुम्हारे घर पर कभी पिएंगे। चलो अब मै चलती हूं।

(हे ऊपरवाले तेरा लाख लाख शुक्रिया, बच गई आज तू लावणी)..

जैसे ही अनुपमा जाने लगी, अपस्यु लावणी को देखकर कहने लगा…. "अरे लावणी तुम यहीं थी। कबसे तुम्हे ही ढूंढ़ रहा था। ये देखो किसी ने यहां क्या लिखा है"…

लावणी तो पहले ही देख चुकी थी अब बारी थी अनुपमा की, जो ऊपर नजर उठा कर बड़े-बड़े बैनर में लिखा पढ़ रही थी…. "लावणी आई एम् सॉरी…. किसिंग इमोजी… आई लवयू बेबी ….. किसिंग इमोजी…. प्लीज मुझसे लाइब्रेरी के पास मिलो, तुम्हारे सारे गीले शिकवे दूर कर दूंगा।"

(बैनचो चुटिया कहीं का… फसा दिया साले ने)…. लावणी
 

Chutiyadr

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अपनी इस महान राय के पीछे, क्रेजी बॉय की मनसा क्या थी, वो तो वहीं जाने लेकिन बम कि सुतली में तो उसने आग लगा ही दिया था, अब बस उसे फटना बाकी था।

जश्न मानकर जब तीनों भाई बहन वापस लौटे, तबतक नंदनी ने सबके लिए खाना बना कर रखा था। ना जाने कितने सालों बाद दोनों भाइयों ने ऐसा खाना खाया था। खाते-खाते दोनों कि आखें डबडबा गई, फिर नंदनी ने दोनों को संभाला और प्यार से, अपने हाथ से कुछ निवाले भी खिलाए।

रात को तीनों भाई बहन वहीं नीचे हॉल में अपना बिस्तर लगा लिए और पड़े-पड़े बात करने लगे। कुंजल ने फिर एक-एक कर के वो सब बताने लगी जो उसने 2007 से लेकर अब तक झेला था। कैसे कनाडा कि हर चीज नीलाम हो गई। हालात ऐसी हो गई थी कि वहां कोई काम नहीं मिल रहा था ऊपर से वहां के खर्चे। भारत वापस आने के लिए जेवर बेचना पड़ गया लेकिन वहां के ऊंची-ऊंची सोशियाटी में कम्युनिटी बना कर रह रहे किसी लोगों ने हाल तक नहीं पूछा… बात करते-करते फिर वो उठकर बैठ गई और कहने लगी….

"भाई मेरे सीने में कहीं जलन सी हो रही है। काश मुझे पता चल जाता की किसने मेरे पापा को मारा, उसे तो मैं अपने हाथ से मारती। उस कमिने कि वजह से मुझे और मां को बहुत दर्द झेलने पड़े हैं।"

"अपने गुस्से को बचा कर रखो, सीने की आग सुलगने दो और इंतजार करो सही वक़्त का। क्योंकि वो भगवान है ना सबको एक मौका देता है। बस वो मौका चूकना नहीं। अब सो जाओ और जिस पल में हो, उस पल को खुशी से जीने की कोशिश करो"…. अपस्यु उसके माथे को चूमते कुंजल को लिटा दिया।

कुछ देर तक बात करते-करते अराव और कुंजल दोनों सो गए। अपस्यु की आखों से नींद कोसों दूर था। वो बगल के अपने फ्लैट में गया, कुछ पल अपनी बालकनी में खड़े होकर साची के घर की ओर निहारने लगा और मुस्कुराते हुए कहा…. "कल तुम्हारे साथ रियूनियन होगा।"… बालकनी से नीच हॉल में अाकर, वो कुछ वर्कआउट करने लगा और साथ ही साथ अपनी नजर फोन पर भी बनाए हुए था।

रात के करीब 1 बजे….

"बीप बीप".. मैसेज टोन बजा.. अपस्यु ने तुरंत अपना संदेश खोला और संदेश देखकर वो मुस्कुराते हुए जवाब दिया… "बहुत देर से इंतजार कर रहा था"… उधर से फिर संदेश आया… "प्राइवेट लाइन कनेक्ट करो"

अपस्यु ने तुरंत ही प्राइवेट लाइन कनेक्ट किया… थोड़ी देर इंतजार के बाद….

"कहां लगा है आज कल मेरा चेला"… उधर से आवाज़ अाई..

"गॉडफादर कहां हो आप, मिलकर बात करनी है".. अपस्यु ने जवाब दिया..

"फिलहाल कुछ काम है तो वो बताओ, हम दोनों एक मिशन के बीच में है।"… उधर से गॉडफादर ने जवाब दिया..

"ठीक है, जब दिल्ली आना तो बात करना, बहुत जरूरी है।"…. अपस्यु मायूस होते जवाब दिया।

"ले तू पहले पल्लवी से बात कर, तभी तेरा लटका थोपरा ठीक होगा"… गॉडफादर ने अपस्यु के मन को टटोलते हुए जवाब दिया।

"नहीं उस हवाशी शक्ति कपूर से मुझे ना बात करनी"… अपस्यु इधर से चिल्लाया..

"तू बेटा कितना भी चिल्ला लेे, इस बार 1 महीने के लिए दिल्ली अा रही हूं.. तेरी वर्जिनिटी तो गई समझ लेे। वैसे अब तक कोई पोर्न भी देखे कि नहीं"… उधर से गॉडफादर की पत्नी पल्लवी अपस्यु के मज़े लेती पूछने लगी…

"पहले ही कहा था उस हवशी को फोन मत देना। मैं कॉल डिस्कनेक्ट कर रहा हूं।"… अपस्यु नाराज होता कहने लगा।

"तू कहां तक भागेगा अपस्यु, तू तो "Me & My Husband Series" का छोटा ही सही लेकिन एक हिस्सा है।".... अपस्यु के चिढ़ का पल्लवी ने हंसते हुए जवाब दिया।

"हद है तेरा भी अपस्यु, तेरे नखरे तो छोड़ियों से भी ज्यादा है। काश मुझे ऐसा ऑफर मिला होता तो मैं कब का वर्जिनिटी लूज कर लेता".. इस बार गॉडफादर ने भी मज़े ले लिए।

"वहां केस सॉल्व करने गए हो तो उसपर ध्यान दो ना। यहां जब आओगे तब बात करते हैं।"… अपस्यु फिर चिढ़ते हुए जवाब दिया।

"रुक मेरी बात ध्यान से सुन।"… गॉडफादर थोड़े गंभीर होते हुए बोले…

"हां कहिए ना, मैं लाइन पर ही हूं"… अपस्यु अपना पूरा ध्यान केंद्रित करता…

"सुन हमारे पास उदयपुर हत्याकांड की फाइल पहुंच चुकी है, इस मर्डर मिस्ट्री के बाद उसी केस पर काम करना है, और हां इसे खुद सेंट्रल होम मिनिस्ट्री मॉनिटर करेगी। अधिकारियों के नाम नहीं बता सकता बस जबतक मैं ना आऊं कोई स्टेप मत लेना।"…. गॉडफादर मुद्दे कि बात बताकर उसे चेतावनी देते कहने लगे।

"हम्मम !! ठीक है। वैसे एक खबर मेरे पास भी है। 15 जून 2007, भूषण रघुवंशी और मानस रघुवंशी का गला घोट कर हत्या।"

"अरे …. ये क्या कह रहा है"… गॉडफादर पूरे अचंभित होते हुए..

"जी हां, मैं जब आंटी से मिला तब उधर की कहानी पता चली"… अपस्यु ने अपनी बात रखी।

"बैन चो…. मुझसे इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई। अब मिलना ज्यादा जरूरी हो गया है। ठीक है इस केस को निपटा कर मिलते हैं। तबतक अपनी आंटी का जितना डेटा है मुझे भेज। इसपर काम पहले शुरू करना है।"

अपस्यु अपने गॉडफादर , जुगल किशोर उर्फ जेके से बात करने के बाद कुछ राहत मेहसूस कर रहा था, लेकिन दिमाग के अंदर अब भी उस रात की कहानी चल रही थी जब उसके आखों के सामने उसका पिता दम तोड़ रहा था।

सुबह का वक़्त…

कोई अपने प्रियसी के रिएक्शन के बारे ने सोच कर तैयार हो रहा था कि "कैसा वो फील करेगी जब उसे पता चलेगा कि मेरा भी परिवार है"… तो कोई अपने अंदर नफरत कि आग सीने ने दबाए बस इतना ही प्लान कर रही थी "किसी भी तरह 2-4 थप्पड मार लूं तो उस कुत्ते को पता चल जाए कि वो किसको धोका देने कि सोच रहा था।"

दोनों भाई तो कल अपनी फटफटी कॉलेज के पार्किंग में ही छोड़ आए थे। इसलिए तय यह हुआ कि कुंजल आज लंबोर्गिनी लेे जाएगी और साथ में अराव जाएगा और अपस्यु कुंजल की स्कूटी से कॉलेज जाएगा।

अपार्टमेंट से पहली गाड़ी अपस्यु की निकली। गेट पर स्कूटी खड़ी कर वो सामने साची को देख अपना हाथ हिलाया, लेकिन साची अजीब सी प्रतिक्रिया दी और ऐटिट्यूड दिखाती अपने बैग से सन ग्लासेस निकाल कर बड़े शान से पहनने लगी।

इतने में सन ग्लासेस हाथ से छूटकर, नीचे सड़क पर गिर गई। साची बेचारी स्कूटी लगाकर उसे उठाने का मन में विचार बना ही रही थी, कि इतने मे कुंजल ने उसपर से लंबोर्गिनी चढ़ा कर कॉलेज कि लिए निकल गई।

"कैसा रहा ये एक्शन मोनू"… कुंजल अपनी हाथ अराव के ओर बढ़ती।

अराव भी ताली देता… "एक्शन तूने किया रिएक्शन उधर निकल रहा होगा।"

"चेहरा देखा था उसका, कैसा ऐटिट्यूड से भड़ा हुआ था। बड़ी अाई मेरे भाई को ऐटिट्यूड दिखाने वाली"…. कुंजल थोड़ा नाराजगी दिखाते बोली।

"ओ पागल तेरी भाभी है वो, और हां दिल की भी बहुत अच्छी है। हसी मज़ाक ठीक है लेकिन उसके लिए दिल में कोई बैर नहीं"… अराव समझाते हुए बोला।

"हां ठीक है समझ गई।".. कुंजल बात टालती हुई गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। इधर जैसे ही कार साची के सन ग्लासेस को रौंद कर गई, अपस्यु ने अपना सर पिट लिया। साची एक बार उस चलती कार को घुरी, फिर अपस्यु को घूरती उसने गुस्से में अपना नाक सिकोड़ ली और लावणी के साथ कॉलेज के लिए निकल गई।

"ये दोनों भी पागल ही है, बेकार में बेचारी को चिढ़ा दी"… अपस्यु भी आगे का सोच कर साची के पीछे-पीछे कॉलेज निकला। पूरे दिन टॉम एंड जेरी का खेल चलता रहा। अपस्यु क्लास में उसके साथ बैठा तो वो उठकर, वहां से दूसरी जगह चली गई। बात करने के लिए मुंह खोला तो वो गर्ल्स कॉमन रूम में चली गई।

साची के पीछे-पीछे जब वो कैंटीन जाने लगा तब साची ने अपना रास्ता बदलकर कैंटीन से कहीं और चली गईं। लगभग पूरा दिन वो अपस्यु को दौड़ती ही रही। अपस्यु बस समझ नहीं पा रहा था कि…..

"आखिर साची को हुआ क्या है। कल की कुछ छोटी सी गलतफहमी ही तो थी बस। क्या उसे दिख नहीं रहा था कि कुंजल उसके साथ है? कितने अरमान थे कि अपनी बहन से मिलवाएगा, अपनी फैमिली के बारे में बताएगा.. लेकिन ये थी कि चूहे बिल्ली का खेल शुरू किए हुए थी।"

दिन बीत गया लेकिन बिगड़ती बात बनते हुए नजर नहीं आई। घर लौटकर अपस्यु ने साची को सिर्फ इतना ही संदेश भेजा कि "बात कर लो बस थोड़ी सी गलतफहमी है।".. फिर क्या था साची ने उसे हर जगह से ही ब्लॉक कर दिया।

घर भी अब पहले की तरह नहीं रह चुका था। जबतक तीनों भाई-बहन घर वापस लौटकर आते, दोनों फ्लैट के बीच की हॉल कि दीवार हटा दी गई थीं। कचरे साफ हो गए थे और दोनों भाइयों को यह भी निर्देश मिल चुका था कि अपने कबाड़खाना को रेनोवेट करके उसे ढंग से घिरवा दे।

बेचारे अपस्यु को साची को देखने के लिए अब बालकनी में 3-4 किताब लेकर जानी पड़ी, ताकि दिखा सके कि वो पढ़ रहा है। लेकिन बालकनी से भी कोई फायदा ना मिल रहा था। वो तो एक बार भी झांकने तक नहीं आई।

पहला दिन गुस्सा ज्यादा होता है। दूसरा दिन गुस्से के तापमान में अपने आप ही थोड़ी कमी अा जाती है, बस यही सोच अपस्यु ने अपनी अगली सुबह की शुरवात की, लेकिन उसकी सोच ही गलत साबित हो गईं। आज तो तापमान इतना बढ़ा था कि, साची ने जो बीते काल की सुबह तय कि थी, वो आज पूरी कर ली। यानी कि अपस्यु गाल पर एक चिपका दी। थप्पड खाकर भी अपस्यु बस आजू-बाजू ये देखने में लगा था कि किसी ने उसे थप्पड खाते देखा तो नहीं।

इसी बीच एक उम्मीद किरण तब जागृत हुई जब कैंटीन में लावणी को पता चला कि कुंजल उन दोनों की बहन है। हालांकि ये बात पता चलते ही लावणी को अपने आप में बुरा सा अनुभव होने लगा। लेकिन वो माफी भी नहीं मांग सकती थी क्योंकि उसे माफी का कारण बताना पड़ता जो शायद वो बता नहीं पाती।

अराव, कुंजल और लावणी की बात चल ही रही थी कि लावणी को ढूंढते हुए साची भी वहां पहुंच गई। साची ने जब लावणी को उनके बीच पाया तो वो गुस्से में अपनी आखें लावणी को दिखाती हुई कहने लगी… "तुम्हे क्या कह कर फसाया इन झूठे लोगों ने"…

साची की बात सुनकर कुंजल पलटी लेकिन अराव उसका हाथ पकड़ कर आखों से बस बैठे रहने का इशारा किया। …. "नहीं दी, तुम जैसा सोच रही हो वैसी बात नहीं है। इनसे मिलो ये कुंजल है, अराव और अपस्यु की सिस्टर".. लावणी, साची को समझते हुई बोली।

"15 दिन पहले जब इसका एक्सिडेंट हुआ था तब इसका भाई अराव छाती पीट-पीट कर कह रहा था कि मैं अनाथ हूं। और जरा देखो, 15 दिन में इतनी बड़ी बहन भी पैदा हो गई। इन लोगों के शक्ल पर ही फरेबी लिखा है। अब तो मुझे पक्का यकीन हो गया है कि इसका वो ऐक्सिडेंट भी एक नाटक था, केवल सिंपैथी बटोरने कि कोशिश। तू यहां बैठे-बैठे क्या पूरी कहानी सुनेगी… उठा ना"… साची गुस्से में अंधी होकर जो जी में आया बोलती चली गई।

"इस से पहले की मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूं, भागो यहां से"… गुस्से से निकली कुंजल की ये आवाज़। जब उसने पूरे जोड़ से दोनो हाथ टेबल पर पटक कर अपना तेवर दिखाई तो पूरा माहौल ही शांत हो गया।

अपस्यु कैंटीन के गेट से, ये सारा तमाशा होते देख रहा था। कुंजल जब अपना गुस्सा दिखाई तो अपस्यु सामने देख कर इतना ही सोचा… "एक तरफ प्यार तो दूसरी तरफ परिवार। तू तो पीस गया बेटा।"
:lol1:
ise kahte hai drama kamdev99008 bhaiya kuchh najar farmaiye aur kuchh drama apne story me bhi daliye usme in sabka bahut scope hai :approve:
 

Chutiyadr

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kya kare kuch inherit gun hote hain .. kitni bhi practics karwa do nahi jane :D..

btw :welcome: dr sahab .. ummid hai kahani ke kuch bhag pasand aaye hinge :)
are kyo welcome kar rahe ho nainu bhai main to shuru se story par hu :doh:
bas abhi kuchh dino se padh nahi paa raha tha :declare:
 

Naina

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acha to sab mile huai ho.
to aap ye bhi bata di jiye panaga lena chahe hai ya patli gali pakad ke nikal jana chahe hai :?:
chane ke jhad pe chadhake, jad sahit kaat dun :D...na rahega baans, na bajegi bansuri.. kissa hi khatam kar deni hai :D
 
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