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Adultery दिलवाले

VillaNn00

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#३९

दरोगा कुछ दिनों से थाने में आया ही नहीं था , पर फिर वो कहाँ था .उसके सरकारी क्वार्टर पर भी ताला लगा था और पुलिस अधिकारी के घर का ताला तोडना किसी भी लिहाज से उचित नहीं था . शतरंज की इस बिसात पर मेरे पास चलने को कोई चाल नहीं थी , मैं खुद को किसी प्यादे सा महसूस करने लगा था . उस रात को कौन औरत हो सकती थी दरोगा के साथ , आवाज को पहचान नहीं सका मैं फुसफुसाहट भरी बातो से अंदाजा लगाना मुश्किल था. कुछ ना कुछ तो करना ही था वर्ना ये मेरी घुटन मार डालने वाली थी मुझे. पर मैं क्या जानता था दरोगा के बारे में कुछ भी तो नहीं सिवाय उसके नाम के.

एक बार फिर मेरी चाहत मुझे हवेली के दरवाजे पर ले आई थी,इसकी ख़ामोशी मुझे इतना परेशान कर रही थी की मैं पागल हो रहा था . एक बार फिर मैं हवेली में छिपे हुए सच को तलाश करने में जुट गया था . पिताजी के सामान को बार बार खंगाल रहा था मैं पर शायद अब कुछ नहीं था मेरे लिए. मैंने हवेली के दुसरे बंद पड़े कमरे को खोला जो चाचा का होता था , वहां कुछ नहीं था पूरी तरह से खाली कमरा था वो . एक एक करके हवेली के सब लोग इसे छोड़ गए, क्या मनहूसियत थी घर चाहे जैसा भी हो घर तो घर ही होता है . पांच साल पुराने इतिहास को कैसे जोडू आज से सोचते सोचते मैं हद से ज्यादा परेशान हो चूका था .

अचानक ही मेरी नजर पिताजी की तस्वीर पर पड़ी, जंगल में खिंची गयी तस्वीर जिसमे वो शान से खड़े थे . वन दरोगा और जंगल में खान. जंगल में वन चौकी और खान का बंद होना कुछ तो कनेक्शन था और शायद इसका जवाब हवेली में नहीं जंगल में ही था. बिना देर किये मैं वहां के लिए चल दिया. कुछ समय बाद मैं उस बंद पड़ी चौकी के सामने खड़ा था. मौसम और वक्त की मार से उसकी हालत जर्जर हो गयी थी. लोहे का दरवाजा जंग खा चूका था . झाड-झंखाड़ और गहरी काई से लिपटी वो चौकी की ईमारत इन्सान के मतलबी होने का सबूत थी.

बड़ी मशक्कत के बाद मैंने दरवाजे को खोला और अन्दर दाखिल हुआ, हाल बुरा था अन्दर का. छत टपक रही थी जिसकी वजह से अन्दर भी हालत बुरे हो गए थे . कोने में एक अलमारी रखी थी जिसके ऊपर रखे कागजो को दीमक चाट गयी थी . दीवारों पर फटे पुराने कलेंडर थे जो बरसो बाद हवा को महसूस करके फडफडा रहे थे. मैंने अलमारी को खोला कुछ फाइलें थी जिन पर धुल मिटटी और दीमक का कब्ज़ा था . मैंने उस मेज-कुर्सी को सहलाया जिस पर कभी पिताजी बैठते थे . धीरे से मैंने दराज को खोला वहां कुछ फाइल पड़ी थी जिनमे मुझे एक तस्वीर मिली जिसे मैं उसके धुंधलेपन के बावजूद भी पहचान सकता था , क्योंकि वो तस्वीर मेरी थी , वो तस्वीर जिसमे मैं और मेरा भाई था . कांपते हाथो से छुटी उस तस्वीर को जब मैं उठा रहा था तो उसके पिछले भाग पर पेन से बनी रेखाओ पर मेरी नजर पड़ी उंगलियों से मैंने उसे रगडा और मैं हैरान रह गया . तस्वीर के पीछे हीरो की छाया बनी हुई थी .खान और इस चौकी का आपस में कोई कनेक्शन जरुर था और मुझे बस इसी के बारे में मालूम करना था .एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था .ढलती शाम में सूरज की रौशनी से इसके पत्थर जैसे चमक रहे थे.



“क्या छिपाए हुए हो तुम. क्या है वो वजह जिसने सब को बर्बाद कर दिया. “कहते हुए मैं अन्दर की तरफ चल दिया. मेरे कदमो को अच्छे से मालूम था की कहाँ जाना है, जैसे जैसे मैं अन्दर जा रहा था रौशनी कम हो रही थी . धीरे धीरे मैं हीरो को पार करके मैं पानी में डूबता जा रहा था , सांसे कम होने लगी थी पर इस बार मेरे हाथ उस दरवाजे तक पहुँच ही गए थे और जैसे ही मैंने वो दरवाजा खोला मेरी समझ से बाहर हो गया सब कुछ . आँखों को यकीं नहीं हो रहा था .

“कबीर तुम ” उसकी आँखे हैरानी से फटी के फटी रह गयी.

“सोचा नहीं था की यहाँ ऐसे मिलेंगे ”मैंने कहा

“कबीर, मेरी बात सुनो . मैं समझाती हु ” कपडे पहनते हुए बोली वो .

मैं- तो रात को इस दरोगा के साथ तुम थी वहां चबूतरे वाले पेड़ के पास . दोनों मिलकर मुझे चुतिया बना रहे थे .

“कबीर, हमारी बात सुनोगे तभी तो समझ पाओगे ” दरोगा ने धीमी आवाज में कहा

मैं- क्यों छिपाया मुझसे ये अब अगर चल ही रहा था तो क्यों किया ये नाटक

“मैं क्या करती कबीर . तुम यूँ गायब हो गए थे सब कुछ रूठ गया था मुझे . बड़ी मुश्किल से संभाला मैंने खुद को फिर मेरी जिन्दगी में विक्रम आ गया . जीवन की गाडी पटरी पर आई ही थी की तुम लौट आये कबीर. समझ ही नहीं आया की क्या करू.

“इतना तो हक़ था तुम्हारा मुझ पर की कह सकती थी . ये नाटक करने की क्या जरूरत थी ” मैंने कहा .

वो नजरे चुराने लगी.

मैं- तो अब जब सब कुछ सामने है , हम तुम सब लोग यहाँ है तो कुछ सवालो के जवाब तो बनते है .तुम्हे इस जगह के बारे में कैसे मालूम हुआ . क्या तुम इस बात से इंकार करोगे की हीरो को तुम दोनों ही बेचते थे रत्ना को .

“तुम्हारे पिता लाये थे मुझे इस जगह पर कबीर ” हौले से बोली वो .

मैं- तुम्हे पर क्यों .

“उन्होंने मुझे कहा था की भविष्य में ये जगह तुम्हारे काम आएगी ” उसने जवाब दिया.

मैं- रत्ना के सम्पर्क में कैसे आई तुम

“रत्ना से हमारा कोई लेना देना नहीं कबीर ” दरोगा ने कहा

मैं- कैसे मान लू मैं इस बात को . सब कुछ तो शीशे की तरह साफ़ है

दरोगा- क्योंकि सच यही है कबीर. हमने कभी भी हीरो का लालच नहीं किया. बल्कि हमने तो ............

इसके आगे दरोगा कुछ नहीं बोल पाया .

“धान्य ” एक आवाज आई और दरोगा लहरा कर गिर गया.

“विक्रम ” चीखी वो और दरोगा की तरफ बढ़ी ही थी की अगली गोली से उसके कदम डगमगा गए. ...............
इस अपडेट ने अगले अपडेट की उत्सुकता को बढ़ा दिया है। कितना सस्पेंस है इसमें मारने वाला कौन, मरने वाला कौन, और इस खान का राज।
क्या गोली कबीर को भी लगेगी
 

Sanju@

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#३

करने को कुछ था नहीं तो मैं भी वापिस मुड गया . पैदल चलते हुए बरसो बाद मैंने अपने सीने में ताज़ी हवा को महसूस किया .

“कई साल से कुछ खबर नहीं कहाँ दिन गुजरा कहाँ रात की , ना जी भर के देखा ना कुछ बात की बड़ी आरजू थी मुलाकात की ” सड़क किनारे उस छोटे से चाय के अड्डे पर बजते गाने ने मेरे कदमो को रोक लिया. धुंए में लिपटी चाय की महक में एक लम्हे के लिए मैं खो सा ही तो गया था .

“चाय पिला दे यार ” मैंने दूकान वाले से कहा .

“साहब , अन्दर आ जाओ . मैं किवाड़ लगा दू बाजार बंद का हुकुम है ” उसने कहा तो मैं अन्दर बैठ गया .

उसने मुझे प्याला दिया पांच बरस बाद आज मेरे होंठो ने तपते कप को छुआ था . उस घूँट की मिठास होंठो को जलाते हुए सीधा दिल में ही तो उतर ही गयी . “माई ” मेरे होंठो रुक ना सके, ना ही मेरे आंसू .

“क्या हुआ साहब चाय ठीक नहीं लगी क्या ” दूकान वाले ने पुछा.

मैंने एक घूँट भरी और जेब के तमाम पैसे उसको दे दिए.

“चाय तो बस दस रूपये की है ”बोला वो

मैं- रख ले यारा, बरसो बाद घर की याद आई है .मेरी माँ भी ऐसी ही चा बनाती थी .

इस से पहले की मैं रो ही पड़ता, मैं हाथ में प्याले को लिए बाहर आ गया.

“ना जी भर के देखा ना कुछ बात की ” बहुत देर तक मैं इस लाइन को महसूस करते रहा . सोकर उठा तो मौसम पूरा बदल चूका था , हाथ में जाम लिए मैं छत पर गया तो देखा मकानमालकिन बारिश में नहा रही थी ,भीगे बदन पर नजर जो पड़ी तो ठहर सी ही गयी.

“ये बारिशे क्यों पसंद है तुम्हे ”

“बरिशे तो बहाना है दिल तो बस इन बूंदों को तुम्हारे गालो पर देखना चाहता है . बारिश तो बहाना तेरे भीगे आँचल को चेहरे से लगाने का बारिश तो बहाना है सरकार . यूँ तो तमाम बंदिशे है मुझ पर तुझ पर पर इस बारिश में तेरा हाथ थाम कर इस पगडण्डी पर चलने का जो सुख है बस मैं जानता हु ”

तभी बिजली की गरज हुई और मैं यादो के भंवर से बाहर आया तो देखा की मकानमालकिन मुझे ही देखे जा रही थी .



“कितनी बार कहा है तुमसे , मत पियो ये शराब कुछ नहीं देगी तुम्हे ये बर्बादी के सिवाय ” बोली वो

मैं- मैं नहीं पीता इसे , पर ये पीती है मुझे



“इधर दो इस गिलास को ” उसने मेरे हाथ से गिलास झटका , मैं कुछ कदम पीछे सरका. वो थोडा आगे बढ़ी .उसकी सुडौल छातिया मेरे सीने से आ लगी और अगले ही पल उसके गर्म होंठ मेरे होंठो से आकर जुड़ गए. भरी बरसात में उसके तपते होंठो का स्पर्श मेरे तन को महका गया पर अगले ही पल मैंने उसे अपने से दूर कर दिया.

“ये ठीक नहीं है रत्ना ” मैंने कहा

“गलत भी तो नहीं है न , ”रत्ना ने फिर से मेरे पास आते हुए कहा

मैं- तुम नहीं समझोगी

रत्ना- यही तो बार बार मैं पूछती हूँ, क्या हुआ है तू बताता भी तो नहीं. काम पर जाता है आते ही ये जाम उठा लेता है , जिदंगी की कीमत समझ तो सही .

मैं- जिदंगी जी ही तो रहा हूँ रत्ना.

रत्ना- ऐसे नहीं जी जाती जिन्दगी. नजर उठा कर तो देख तेरे आसपास लोग है , परिवार है , यार दोस्त है बस एक तू बेगाना है . ना जाने किस बात का गम लिए बैठा है तू

बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी . रत्ना के गालो से टपकती बारिश की बूंदे मेरे मन में हलचल मचा रही थी , रत्ना ३८ साल की बेहद गदराई औरत थी शानदार ठोस उभार ४२ इंच की गाद्देदार गोल मटोल गांड पांच फूट की लम्बाई के सांचे में ढली बेहद ही दिलकश औरत .

रत्ना ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर रख दिया और बोली- मौसम बहुत अच्छा है करने दे मुझे मनमानी .

जानता था मानेगी नहीं अब ये , मैंने रचना को दिवार से लगाया और उसकी भीगी साडी को ऊपर उठाने लगा. उफ्फ्फ क्या ठोस जांघे थी उसकी. निचे बैठ कर मैंने उसकी कच्छी को निचे उतारा और उसके कुलहो को हाथो से फैलाते हुए अपने होंठो को उसकी दहकती हुई चूत से लगा लिया.

“उफ्फ्फ ” कांप सी गयी वो और अपनी गांड को और खोल दिया. बारिश में भीगी तपती चूत से बहता कामरस मेरे बदन में शोले भड़काने लगा था.

“अन्दर तक ले जा जीभ को ” उन्माद से भरी रत्ना बोली . मैं खुल कर उसकी चूत को पीने लगा. बहुत दिनों बाद रत्ना आज मेरे साथ सोने वाली थी . जब जब वो अपनी गांड को हिलाती मेरी नाक उसके गुदा द्वार से टकराती.

“चोद अब, रहा नहीं जा रहा अह्ह्ह्हह ” रत्ना मद्मास्त हो चुकी थी .

मैंने पेंट खोली और लंड को चिकनी चूत पर रख दिया. रत्ना अपना हाथ निचे ले गयी और लंड को चूत पर रगड़ने लगी.

“उफ्फ्फ, कितना गरम है तेरा लंड ” आगे वो बोल नहीं पायी क्योंकि लंड उसकी चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर जा चूका था . रत्ना को चूत पर धक्के लगाते हुए मैं उसके गालो को चूमने लगा था.

“बहुत गर्म है तू ” मैंने उसके कान को दांतों से चबाते हुए कहा

रत्ना- फिर भी तू नहीं चढ़ता मुझ पर .

मैं- आज तेरी इच्छा पूरी करूँगा, आज की रात तू कभी नहीं भूलेगी.

रत्ना- मार ले मेरी चूत


कुछ देर तक रत्ना को खड़े खड़े छोड़ने के बाद मैंने लंड को बाहर निकाला रत्ना ने तुरंत अपने कपडे उतार दिए और फर्श पर ही घोड़ी बन गयी . उफ्फ्फ रत्ना की गांड का उभार , कसम से क्या ही कहना . चौड़े कुल्हे को थामते हुए एक बार फिर से लंड उसकी चूत की सवारी करने लगा. रत्ना अड़तीस साल की गदराई विधवा औरत अपना हाथ निचे ले जाकर मेरी गोलियों को सहलाने लगी. उसकी इसी अदा का मैं कायल था .बारिश अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी थी और हमारी चुदाई भी . रत्ना की गांड बहुत जोर से हिलने लगी थी मेरे हाथ बार बार उसकी कमर से फिसल रहे थे . बदन में तरंग चढ़ने लगी थी. तभी रत्ना की चूत ने लंड पर दबाव बना दिया रत्ना सिस्कारिया भरते हुए झड़ने लगी और ठीक उसी पल मेरे वीर्य की बौछार उसकी चूत में गिरने लगी..................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है कुछ पुरानी यादें कुछ खुशमिजाज मौसम आखिर मौसम की बारिश हो ही गई रत्ना के खेत में
 

Sanju@

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#४

बिना परवाह किये की निचे से नंगा हु मैंने बचे हुए जाम को उठाया और मुंडेर पर खड़ा होकर बारिश को देखने लगा.

“याद आती है न तुम्हे उसकी ” रत्ना ने मेरे पास आकर कहा

मैं- मुझे किसी की याद नहीं आती

रत्ना- मुझसे तो झूठ बोल सकता है पर अपने आप से नहीं , कितनी ही रातो को रोते हुए देखा है तुझे, चीखता तू है बेबसी मैं महसूस करती हु. सयाने कह गए की कहने से दिल का बोझ हल्का हो जाता है

मैं- ऐसा कुछ भी नहीं है रत्ना

रत्ना थोड़ी देर बाद निचे चली गयी मैं रह गया , बस मैं रह गया मन तो साला दूर कही खेतो में घूम रहा था . रात को फिर से रत्ना मेरे साथ थी, कहने को मकानमालिकिन थी पर उसने इस शहर में बहुत मदद की थी मेरी, बदले में कभी कुछ नहीं माँगा .अगले दिन मैं कालेज के पास से गुजर रहा था की ग्राउंड के पास भीड़ देख कर रुक गया. बीस तीस गाडिया तो होंगी ही जिन्होंने रास्ता रोक रखा था उत्सुकतावश मैं भी ग्राउंड में पहुँच गया.वहां पर मैंने पहली बार जहाँगीर लाला को देखा. गंजा सर , पचपन-साठ की उम्र चेहरे पर घहरी दाढ़ी बेहद ही महंगे कपडे पहने वो बीचोबीच खड़ा था और उसके साथ जोनी बाबा का वो ही दोस्त था जिसे मैंने जाने दिया था .

मुझे उम्मीद थी की ये सब होगा पर इतनी जल्दी ये नहीं . खास परवाह तो नहीं थी मुझे पर मैंने महसूस किया की वो लड़की इसी कालेज की है जोनी के दोस्त ने उसे पहचान लिया तो बात बहुत बढ़ जाएगी.

“जिसने भी जोनी पर हाथ उठाया उसका अंजाम पूरा शहर देखेगा ”जहाँगीर लाला के शब्द बहुत देर तक मेरे जेहन में थे. खैर, मैं कालेज के अन्दर गया और उसी लड़की को तलाशने लगा. पर वो नहीं मिली. शायद नहीं आई होगी कालेज में . सेठ ने मुझे घर पर बुलाया था वहां पहुंचा तो पहले से कुछ मावली लोग मोजूद थे .सेठ मुझे अन्दर ले गया .

सेठ- बेटे बड़ी मुसीबत में फंस गया हु . करार एक हफ्ते का हुआ था और ये लोग आज ही आ गए .

“मैं देखता हु बात करके ” मैंने कहा और बैठक में आ गया.

“किस चीज के पैसे मांगने आये हो तुम लोग ” मैंने कहा

“तू कौन बे शाने , ” उनमे से एक ने पान की पीक कालीन पर थूकते हुए कहा

मैं- पैसे नहीं मिलेंगे

“क्या बोला रे , जानता है न किसको मना कर रहा है ” उसने फिर से पीक थूकी

मैंने उसके कान पर एक थप्पड़ दे मारा और बोला- अब ठीक से सुनेगा तुझे . पैसे नहीं मिलेंगे .

“तेरी तो साले ” अगले ही पल मारपीट शरू हो गयी . मैंने दो लोगो को घसीट कर सीढियों से निचे की तरफ फेंका और पान वाले को बेल्ट से मारते हुए गली में ले आया.

“बहनचोद तेरा बाप छोड़ के गया था पैसे जो मन में आये तब आ जाते हो मांगने. ” जब तक बेल्ट टूट नहीं गयी तब तक मैंने रेल बनाई उन लोगो को

“तू गया साले , महंगा पड़ेगा तू रुक इधर ही ” जाते जाते वो धमकी देता गया .

सेठ की शकल मरे हुए चूहे जैसी हो गयी थी , आनन फानन में सेठ अपने परिवार को लेकर भाग गया. मैने सोचा बहनचोद इन चुतियो का क्या ही भला करना. शहर में किसी ने इतनी जुर्रत नहीं की थी की ऐसे लाला के आदमियों को कुत्ते की तरह सड़क पर पीटा गया हो. दूसरा लाला के पोते का हाथ उखाड़ दिया गया था . पता नहीं किस खुमार में मैं उस दुश्मनी की तरफ बढ़ रहा था जिसका अंजाम क्या ही हो.

घर आकर नलके पर हाथ मुह धो ही रहा था की रत्ना आ गयी . अस्त व्यस्त कपड़ो को देख कर बोली- क्या करके आया तू

मैं- जहाँगीर लाला के आदमियों को पीट कर

रत्ना के चेहरे की रौनक तुरंत ही गायब हो गयी,मुर्दानगी ही तो छा गयी. वो तुरंत अन्दर गयी और एक बैग और कुछ पैसे लेकर आई-“तू निकल, अभी के अभी शहर छोड़ दे ये , बाबा रे बाबा क्या करके आया है तू ये ”

मैं- वो जो मेरे से पहले किसी को तो कर ही देना चाहिए था

रत्ना- येडा है तू ये तो जानती थी पर इतना होगा आज जान लिया. मरने से बचना है तो चला जा यहाँ से कही दूर.

मैं-गलत को गलत कहना गलत तो नहीं

रत्ना- ये बाते फ़िल्मी रे, तू कोई हीरो नहीं न जिन्दगी फिलम . क्या जाने क्या होगा रे. पुलिस तक लाला के पैर छूती

मैं- तू मत घबरा

रत्ना ने मेरा हाथ पकड़ा और अन्दर ले आई

“ये देख मेरा मर्द , कभी तुझे बताया नहीं कैसे मरा ये . पुलिस में था ये . इसको भी तेरे जैसे समाज का भला करने का कीड़ा था . एक दिन मारा गया . सबको मालूम किसने मारा पर कुछ हुआ नहीं . ये मुर्दों का शाहर है , यहाँ ये सब ऐसे ही जीते है . तू मत कर रे किसी का भला मत कर ” रत्ना भावुक हो गयी. मैंने रत्ना को उस रात की पूरी बात बताई की क्या हुआ था .

“मैं फिर भी यही कहूँगी की तू वापिस लौट जा लड़ाई में कोई गारंटी नहीं की जीत अपनी ही हो खासकर जब दुश्मन भी ऐसा चुना तूने. ” रत्ना बोली और मेरे पास उसकी बात का जवाब नहीं था .

“तेरे पास जवाब क्यों नहीं मेरी बात का ”

“तू ही बता क्या करूँ मैं नहीं है मुझमे इतनी हिम्मत की ये सब झेल सकू ”


अतीत की बाते एक बार फिर से मेरे मन में आने लगी . यादो को झटक पाता उस से पहले ही घर के बाहर एक जीप आकर रुकी .......................
बहुत ही शानदार अपडेट है एक्शन शुरू हो गया है हीरो ने पहले लाला के पोते को और अब लाला के आदमियों को बुरी तरह मारा है उसने ऐसा काम किया है जिसको करने की हिम्मत वहां किसी में नहीं थी लगता है लाला के आदमी आ गए हैं
 

Sanju@

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#५

जीप में से सेठ का मेनेजर उतरा. उसके माथे का पसीना और अस्त व्यस्त हालत देख कर ही मैं समझ गया था की अच्छी खबर तो लाया नहीं होगा ये.

“तुम्हे चलना होगा मेरे साथ ” देवीलाल ने कहा

मैं- क्या हुआ

देवीलाल- सेठ को मार दिया लाला के गुंडों ने, शहर छोड़ कर भागना चाहता था था सेठ पर मुमकिन नहीं हो सका.

खबर सुनकर झटका सा लगा मुझे. सेठ के अहसान थे मुझ पर इस अजनबी शहर में काम दिया था उसने .

“और सेठानी. ” बड़ी मुस्किल से बोल सका मैं.

“मेरे साथ आओ ” देवीलाल ने कहा तो मैं जीप में बैठ गया. बहुत तेजी से गाडी चला रहा था वो और मेरा दिमाग जैसे एक जगह रुक गया था . मन जैसे सुन्न हो गया था . दिल में एक बोझ सा आ गया था , मन उचाट हो गया मैं अपने आप को गलत समझने लगा. अगर मैं लाला के गुंडों को नहीं पीटता तो शायद सेठ जिन्दा होता. आँखों के किसी कोने से आंसू बह पड़े. होश जब आया, जब गाड़ी के ब्रेक कानो से टकराए.

सेठ के घर की बस्ती थी ये , सेठ के घर के पास बहुत भीड़ जमा थी , कांपते हुए दिल को लिए मैंने कदम आगे बढ़ाये. भीड़ हटने लगी थी , घर के निचे मैंने गाड़ी के काले बोनट पर बैठे उसे देखा जो शान से सिगार का धुंआ उड़ा रहा था .

“ले आया शोएब बाबा मैं इसे, मुझे माफी दो ” दौड़ते हुए देवीलाल उसकी तरफ भागा पर पहुँच नहीं पाया क्योंकि शोएब की गोली ने उसके कदम रोक दिए.

“माफ़ी के लायक नहीं तू, धोखेबाज सिर्फ गोली खाते है.” बोनट पर बैठे बैठे ही बोला वो.

सेठ मर गया था, देवीलाल का जिस्म तडप रहा था . तभी मेरी नजर कोने में सर झुकाए सेठानी पर पड़ी जो निर्वस्त्र थी . सौ लोग तो होंगे ही वहां पर और उनके बीच में एक नारी नंगी बैठी थी . कांपती धडकन चीख कर कहने लगी थी की उस औरत की लाज नहीं बची थी.

“शोएब , ये ठीक नहीं किया तूने अंजाम भुगतेगा इसका. ” चिल्ला पड़ा मैं .

उसने बेफिक्री से सिगार का कश खींचा और उतर कर मेरे पास आया, इतने पास की सांसो का निकलना भी मुश्किल हो. उसने बन्दूक मेरे सर पर लगा दी और बोला- सिर्फ एक गोली और सब ख़तम पर ये तो आसान मौत होगी. अगर तुझे आसान मौत दी फिर खौफ क्या ही होगा शाहर के लोगो में . तुझे तड़पना होगा तेरी तड़प ही इस शहर को बता सकती है की हमारे सामने सर उठाने वालो का अंजाम क्या होता है .

“किस्मत बड़ी ख़राब है तेरी शोएब ,किस्मत सबको एक मौका देती है तूने गँवा दिया अपना मौका . सेठ की मौत के लिए तुझे शायद माफ़ी भी मिल जाती पर इस अबला औरत पर तूने जो जुल्म किया है न तू कोसेगा उस पल को जब तूने इसकी अस्मत लूटी. जिस मर्दानगी का गुमान है न तुझे, तू रोयेगा की तेरी माँ ने तुझे मर्द पैदा ही क्यों किया.कमजोरो पर वार करने वाले कभी मर्द नहीं होते,तेरी नसों में मर्द का खून बह रहा है तो आज और दिखा तेरा जोर मुझे .” कहते हुए मैंने खींच कर एक मुक्का शोएब के चेहरे पर जड़ दिया. दो कदम पीछे हुआ वो और अपने चेहरे को सहलाने लगा.

उस एक मुक्के ने जैसे आग ही तो लगा दी थी .

“अब साले ”शोएब के गुंडे मेरी तरफ आगे बढ़े पर शोएब ने अपना हाथ उठाते हुए उन्हें रोक दिया .

शोएब- दूर हो जाओ सब , जिदंगी में पहली बार कोई मिला है मजा आ गया. गोली मारी तो तौहीन होगी आ साले आया , देखे जरा , तुझे मार कर इसको फिर से चोदुंगा तेरी लाश पर लिटा कर

“जहाँगीर लाला को खबर कर दो जनाजे की तैयारी करे. उसके बेटा मरने वाला है ” मैंने जोर से बोला और हम जुट गए. शोएब हवा में उछला और मेरे कंधे पर वार किया. लगा की जैसे पत्थर ही तो दे मारा हो किसी ने . पीछे छोड़ आया था मैं ये सब पर आज नियति शायद ये ही चाहती थी की पाप का अंत हो जाये.

शोएब के कुछ वार मैंने रोके, कुछ उसने रोके. ताकत में वो कम नहीं था . उसने मेरे घुटने पर लात मारी .

“उठ , अभी से थक गया ” हँसते हुए बोला वो

मेरी नजर सेठानी पर पड़ी जिसकी मूक आँखे मुझ पर ही जमी थी . मैंने शोएब के हाथ को पकड़ा अपने कंधे को उसकी बगल से ले जाते हुए उसे उठा कर पटका वो गाड़ी के अगले हिस्से पर जाकर गिरा. “आह ” जिस तरह उसने अपनी पसलियों पर हाथ रखा मैं तभी समझ गया था की चोट गहरी लगी है , तुरंत मैंने उसी जगह पर लात जड़ दी.

“आह ” कराह पड़ा वो दोनों हाथ पसलियों पर रख लिए पर इतना आसान कहाँ था उसका निपट जाना. मेरे अगले वार को रोक कर उसने हवा में उछाल दिया मुझे उठ ही रहा था वो की मैंने उसके कुलहो पर लात मारी इस से पहले की वो संभलता मैंने पुरे जोर से उसे खिड़की पर दे मारा. शीशा तिडक गया. मैंने शोएब के हाथ को गाड़ी से लगाया और उसकी बीच वाली ऊँगली को तोड़ दिया.

“आहीईईईईई ” इस बार वो बुरी तरह चीखा जिन्दगी में पहली बार उसने दर्द महसूस किया .

“लाला को खबर हुई के नहीं, खबर करो पर अब ये कहना की जनाजे की तयारी ना करे, यही आ जाये इसकी लाश को कंधा देने जनाजे लायक कुछ बचेगा नहीं. ” चीखते हुए मैंने उसके सर को ऊपर किया और अगली ऊँगली तोड़ दी.

“गौर से देख शोएब ये गली तेरी , ये मोहल्ला तेरा, ये बाजार तेरा तेरे ही शहर में तेरी गांड तोड़ रहा हूँ मैं क्या बोला था तू मेरी लाश पर लिटा के चोदेगा सेठानी को तू . तुझे वास्ता है तेरी माँ की उस चूत का जिस से तू निकला है दम मत तोडियो . दर्द क्या होता है है आज जानेगा तू ” मैंने उसके सर को घुमाया और उसकी पीठ पर मुक्के मारने लगा.

“क्या कह रहा था तू भोसड़ी के, इस शहर को तेरा खौफ होना चाहिए, बहन के लंड मुझे गौर से देख, तेरे बेटे की गांड इसी तरह तोड़ी थी मैंने , उसकी आँखे और गांड दोनों एक साथ फट गयी थी जब मैंने उसके हाथ को उखाड़ा था . वो इतनी अकड़ में था की साला समझ ही नहीं रहा था मैंने बहुत कहा की टाल ले इस घडी को पर साले को चुल थी की शहर उसके बाप का है और देख उसके बाप की गांड भी तोड़ रहा हूँ . ” थोडा सा उसे आगे किया और फिर से एक लात मारी वो दर्द से बिलबिलाते हुए गाड़ी के दरवाजे से टकराया. मैंने उसकी बेल्ट खोल ली और उसकी गले में पहना दी.

“देख , तेरे ही शहर में कुत्ता बना दिया तुझे. कहाँ रह गया इसका बाप लाला, मर्द नहीं है क्या वो साला छुप गया क्या किसी के भोसड़े में जाकर. खबर करो उसे इस से पहले की मैं इसे मार दू लाला चाहिए मुझे यहाँ ” मैंने शोएब के हाथ को उठाया और एक झटके में तोड़ दिया.

“आअहीईईईइ ” उसकी सुलगती चीखे बहुत सकून दे रही थी . बस्ती के लोग, शोअब के गुंडे सबको जैसे लकवा मार गया था . मैंने उसे उठाया और गाड़ी में बोनट पर लिटाया. पेंट निचे सरकाई उसकी , उसके नंगे चुतड हवा में उठ गया.

“बहुत लोगो को नंगा किया तूने, आज ये दुनिया तेरी औकात और तेरी गांड देखेगी. तुझे मालूम है शोएब जब किसी औरत को जबरदस्ती चोदा जाता है तो कितना दर्द महसस करती है वो . तू अभी जान जायेगा. एक मिनट रुक बस एक मिनट तू भी देख साले गांड में कुछ जाता है तो कैसा दर्द होता है ” मैंने गाड़ी के वाईपर को उखाड़ा और शोएब की गांड में घुसा दिया.

“महसूस हुआ ” मैंने वाईपर को घुमाया शोएब के कुल्हे टाइट हो गए दर्द से ऐंठने लगा वो .

सांस अटकने लगी थी उसकी बदन झटके खा रहा था मैंने उसकी शर्ट को फाड़ दिया गाडी में मुझे नुकीली फरसी दिखी मैंने शोएब की पीठ पर कट लगाया इतना की मेरी उंगलिया उसके मांस में धंस सके.


“महसूस कर इस दर्द को , इस डर को की कोई था जो आया और तेरे सारे खौफ को तेरी गांड में घुसा के चला गया. ” चुन चुन कर मैं उसके मांस को हड्डियों से अलग करता रहा , बहुत दिनों बाद सुख महसूस किया था मैंने. और तारुफ़ देखिये इधर मैंने उसकी अंतिम हड्डी को मांस से अलग किया की ठीक तभी जहाँगीर लाला और पुलिस की गाडिया वहां आ पहुंची.......
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है शोएब का पाला आज एक मर्द से पड़ा है शोएब की वो हालत कर दी कि उसको पैदा होने पर अफसोस हो रहा होगा कहते हैं ना कि वक्त का पहिया कभी भी घूम सकता है हीरो ने आग में घी डाल दिया है जिसकी तप्त लाला तक पहुंच गई है
 

Iron Man

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dhparikh

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#३९

दरोगा कुछ दिनों से थाने में आया ही नहीं था , पर फिर वो कहाँ था .उसके सरकारी क्वार्टर पर भी ताला लगा था और पुलिस अधिकारी के घर का ताला तोडना किसी भी लिहाज से उचित नहीं था . शतरंज की इस बिसात पर मेरे पास चलने को कोई चाल नहीं थी , मैं खुद को किसी प्यादे सा महसूस करने लगा था . उस रात को कौन औरत हो सकती थी दरोगा के साथ , आवाज को पहचान नहीं सका मैं फुसफुसाहट भरी बातो से अंदाजा लगाना मुश्किल था. कुछ ना कुछ तो करना ही था वर्ना ये मेरी घुटन मार डालने वाली थी मुझे. पर मैं क्या जानता था दरोगा के बारे में कुछ भी तो नहीं सिवाय उसके नाम के.

एक बार फिर मेरी चाहत मुझे हवेली के दरवाजे पर ले आई थी,इसकी ख़ामोशी मुझे इतना परेशान कर रही थी की मैं पागल हो रहा था . एक बार फिर मैं हवेली में छिपे हुए सच को तलाश करने में जुट गया था . पिताजी के सामान को बार बार खंगाल रहा था मैं पर शायद अब कुछ नहीं था मेरे लिए. मैंने हवेली के दुसरे बंद पड़े कमरे को खोला जो चाचा का होता था , वहां कुछ नहीं था पूरी तरह से खाली कमरा था वो . एक एक करके हवेली के सब लोग इसे छोड़ गए, क्या मनहूसियत थी घर चाहे जैसा भी हो घर तो घर ही होता है . पांच साल पुराने इतिहास को कैसे जोडू आज से सोचते सोचते मैं हद से ज्यादा परेशान हो चूका था .

अचानक ही मेरी नजर पिताजी की तस्वीर पर पड़ी, जंगल में खिंची गयी तस्वीर जिसमे वो शान से खड़े थे . वन दरोगा और जंगल में खान. जंगल में वन चौकी और खान का बंद होना कुछ तो कनेक्शन था और शायद इसका जवाब हवेली में नहीं जंगल में ही था. बिना देर किये मैं वहां के लिए चल दिया. कुछ समय बाद मैं उस बंद पड़ी चौकी के सामने खड़ा था. मौसम और वक्त की मार से उसकी हालत जर्जर हो गयी थी. लोहे का दरवाजा जंग खा चूका था . झाड-झंखाड़ और गहरी काई से लिपटी वो चौकी की ईमारत इन्सान के मतलबी होने का सबूत थी.

बड़ी मशक्कत के बाद मैंने दरवाजे को खोला और अन्दर दाखिल हुआ, हाल बुरा था अन्दर का. छत टपक रही थी जिसकी वजह से अन्दर भी हालत बुरे हो गए थे . कोने में एक अलमारी रखी थी जिसके ऊपर रखे कागजो को दीमक चाट गयी थी . दीवारों पर फटे पुराने कलेंडर थे जो बरसो बाद हवा को महसूस करके फडफडा रहे थे. मैंने अलमारी को खोला कुछ फाइलें थी जिन पर धुल मिटटी और दीमक का कब्ज़ा था . मैंने उस मेज-कुर्सी को सहलाया जिस पर कभी पिताजी बैठते थे . धीरे से मैंने दराज को खोला वहां कुछ फाइल पड़ी थी जिनमे मुझे एक तस्वीर मिली जिसे मैं उसके धुंधलेपन के बावजूद भी पहचान सकता था , क्योंकि वो तस्वीर मेरी थी , वो तस्वीर जिसमे मैं और मेरा भाई था . कांपते हाथो से छुटी उस तस्वीर को जब मैं उठा रहा था तो उसके पिछले भाग पर पेन से बनी रेखाओ पर मेरी नजर पड़ी उंगलियों से मैंने उसे रगडा और मैं हैरान रह गया . तस्वीर के पीछे हीरो की छाया बनी हुई थी .खान और इस चौकी का आपस में कोई कनेक्शन जरुर था और मुझे बस इसी के बारे में मालूम करना था .एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था .ढलती शाम में सूरज की रौशनी से इसके पत्थर जैसे चमक रहे थे.



“क्या छिपाए हुए हो तुम. क्या है वो वजह जिसने सब को बर्बाद कर दिया. “कहते हुए मैं अन्दर की तरफ चल दिया. मेरे कदमो को अच्छे से मालूम था की कहाँ जाना है, जैसे जैसे मैं अन्दर जा रहा था रौशनी कम हो रही थी . धीरे धीरे मैं हीरो को पार करके मैं पानी में डूबता जा रहा था , सांसे कम होने लगी थी पर इस बार मेरे हाथ उस दरवाजे तक पहुँच ही गए थे और जैसे ही मैंने वो दरवाजा खोला मेरी समझ से बाहर हो गया सब कुछ . आँखों को यकीं नहीं हो रहा था .

“कबीर तुम ” उसकी आँखे हैरानी से फटी के फटी रह गयी.

“सोचा नहीं था की यहाँ ऐसे मिलेंगे ”मैंने कहा

“कबीर, मेरी बात सुनो . मैं समझाती हु ” कपडे पहनते हुए बोली वो .

मैं- तो रात को इस दरोगा के साथ तुम थी वहां चबूतरे वाले पेड़ के पास . दोनों मिलकर मुझे चुतिया बना रहे थे .

“कबीर, हमारी बात सुनोगे तभी तो समझ पाओगे ” दरोगा ने धीमी आवाज में कहा

मैं- क्यों छिपाया मुझसे ये अब अगर चल ही रहा था तो क्यों किया ये नाटक

“मैं क्या करती कबीर . तुम यूँ गायब हो गए थे सब कुछ रूठ गया था मुझे . बड़ी मुश्किल से संभाला मैंने खुद को फिर मेरी जिन्दगी में विक्रम आ गया . जीवन की गाडी पटरी पर आई ही थी की तुम लौट आये कबीर. समझ ही नहीं आया की क्या करू.

“इतना तो हक़ था तुम्हारा मुझ पर की कह सकती थी . ये नाटक करने की क्या जरूरत थी ” मैंने कहा .

वो नजरे चुराने लगी.

मैं- तो अब जब सब कुछ सामने है , हम तुम सब लोग यहाँ है तो कुछ सवालो के जवाब तो बनते है .तुम्हे इस जगह के बारे में कैसे मालूम हुआ . क्या तुम इस बात से इंकार करोगे की हीरो को तुम दोनों ही बेचते थे रत्ना को .

“तुम्हारे पिता लाये थे मुझे इस जगह पर कबीर ” हौले से बोली वो .

मैं- तुम्हे पर क्यों .

“उन्होंने मुझे कहा था की भविष्य में ये जगह तुम्हारे काम आएगी ” उसने जवाब दिया.

मैं- रत्ना के सम्पर्क में कैसे आई तुम

“रत्ना से हमारा कोई लेना देना नहीं कबीर ” दरोगा ने कहा

मैं- कैसे मान लू मैं इस बात को . सब कुछ तो शीशे की तरह साफ़ है

दरोगा- क्योंकि सच यही है कबीर. हमने कभी भी हीरो का लालच नहीं किया. बल्कि हमने तो ............

इसके आगे दरोगा कुछ नहीं बोल पाया .

“धान्य ” एक आवाज आई और दरोगा लहरा कर गिर गया.

“विक्रम ” चीखी वो और दरोगा की तरफ बढ़ी ही थी की अगली गोली से उसके कदम डगमगा गए. ...............
Nice update....
 

Luckyloda

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#३९

दरोगा कुछ दिनों से थाने में आया ही नहीं था , पर फिर वो कहाँ था .उसके सरकारी क्वार्टर पर भी ताला लगा था और पुलिस अधिकारी के घर का ताला तोडना किसी भी लिहाज से उचित नहीं था . शतरंज की इस बिसात पर मेरे पास चलने को कोई चाल नहीं थी , मैं खुद को किसी प्यादे सा महसूस करने लगा था . उस रात को कौन औरत हो सकती थी दरोगा के साथ , आवाज को पहचान नहीं सका मैं फुसफुसाहट भरी बातो से अंदाजा लगाना मुश्किल था. कुछ ना कुछ तो करना ही था वर्ना ये मेरी घुटन मार डालने वाली थी मुझे. पर मैं क्या जानता था दरोगा के बारे में कुछ भी तो नहीं सिवाय उसके नाम के.

एक बार फिर मेरी चाहत मुझे हवेली के दरवाजे पर ले आई थी,इसकी ख़ामोशी मुझे इतना परेशान कर रही थी की मैं पागल हो रहा था . एक बार फिर मैं हवेली में छिपे हुए सच को तलाश करने में जुट गया था . पिताजी के सामान को बार बार खंगाल रहा था मैं पर शायद अब कुछ नहीं था मेरे लिए. मैंने हवेली के दुसरे बंद पड़े कमरे को खोला जो चाचा का होता था , वहां कुछ नहीं था पूरी तरह से खाली कमरा था वो . एक एक करके हवेली के सब लोग इसे छोड़ गए, क्या मनहूसियत थी घर चाहे जैसा भी हो घर तो घर ही होता है . पांच साल पुराने इतिहास को कैसे जोडू आज से सोचते सोचते मैं हद से ज्यादा परेशान हो चूका था .

अचानक ही मेरी नजर पिताजी की तस्वीर पर पड़ी, जंगल में खिंची गयी तस्वीर जिसमे वो शान से खड़े थे . वन दरोगा और जंगल में खान. जंगल में वन चौकी और खान का बंद होना कुछ तो कनेक्शन था और शायद इसका जवाब हवेली में नहीं जंगल में ही था. बिना देर किये मैं वहां के लिए चल दिया. कुछ समय बाद मैं उस बंद पड़ी चौकी के सामने खड़ा था. मौसम और वक्त की मार से उसकी हालत जर्जर हो गयी थी. लोहे का दरवाजा जंग खा चूका था . झाड-झंखाड़ और गहरी काई से लिपटी वो चौकी की ईमारत इन्सान के मतलबी होने का सबूत थी.

बड़ी मशक्कत के बाद मैंने दरवाजे को खोला और अन्दर दाखिल हुआ, हाल बुरा था अन्दर का. छत टपक रही थी जिसकी वजह से अन्दर भी हालत बुरे हो गए थे . कोने में एक अलमारी रखी थी जिसके ऊपर रखे कागजो को दीमक चाट गयी थी . दीवारों पर फटे पुराने कलेंडर थे जो बरसो बाद हवा को महसूस करके फडफडा रहे थे. मैंने अलमारी को खोला कुछ फाइलें थी जिन पर धुल मिटटी और दीमक का कब्ज़ा था . मैंने उस मेज-कुर्सी को सहलाया जिस पर कभी पिताजी बैठते थे . धीरे से मैंने दराज को खोला वहां कुछ फाइल पड़ी थी जिनमे मुझे एक तस्वीर मिली जिसे मैं उसके धुंधलेपन के बावजूद भी पहचान सकता था , क्योंकि वो तस्वीर मेरी थी , वो तस्वीर जिसमे मैं और मेरा भाई था . कांपते हाथो से छुटी उस तस्वीर को जब मैं उठा रहा था तो उसके पिछले भाग पर पेन से बनी रेखाओ पर मेरी नजर पड़ी उंगलियों से मैंने उसे रगडा और मैं हैरान रह गया . तस्वीर के पीछे हीरो की छाया बनी हुई थी .खान और इस चौकी का आपस में कोई कनेक्शन जरुर था और मुझे बस इसी के बारे में मालूम करना था .एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था .ढलती शाम में सूरज की रौशनी से इसके पत्थर जैसे चमक रहे थे.



“क्या छिपाए हुए हो तुम. क्या है वो वजह जिसने सब को बर्बाद कर दिया. “कहते हुए मैं अन्दर की तरफ चल दिया. मेरे कदमो को अच्छे से मालूम था की कहाँ जाना है, जैसे जैसे मैं अन्दर जा रहा था रौशनी कम हो रही थी . धीरे धीरे मैं हीरो को पार करके मैं पानी में डूबता जा रहा था , सांसे कम होने लगी थी पर इस बार मेरे हाथ उस दरवाजे तक पहुँच ही गए थे और जैसे ही मैंने वो दरवाजा खोला मेरी समझ से बाहर हो गया सब कुछ . आँखों को यकीं नहीं हो रहा था .

“कबीर तुम ” उसकी आँखे हैरानी से फटी के फटी रह गयी.

“सोचा नहीं था की यहाँ ऐसे मिलेंगे ”मैंने कहा

“कबीर, मेरी बात सुनो . मैं समझाती हु ” कपडे पहनते हुए बोली वो .

मैं- तो रात को इस दरोगा के साथ तुम थी वहां चबूतरे वाले पेड़ के पास . दोनों मिलकर मुझे चुतिया बना रहे थे .

“कबीर, हमारी बात सुनोगे तभी तो समझ पाओगे ” दरोगा ने धीमी आवाज में कहा

मैं- क्यों छिपाया मुझसे ये अब अगर चल ही रहा था तो क्यों किया ये नाटक

“मैं क्या करती कबीर . तुम यूँ गायब हो गए थे सब कुछ रूठ गया था मुझे . बड़ी मुश्किल से संभाला मैंने खुद को फिर मेरी जिन्दगी में विक्रम आ गया . जीवन की गाडी पटरी पर आई ही थी की तुम लौट आये कबीर. समझ ही नहीं आया की क्या करू.

“इतना तो हक़ था तुम्हारा मुझ पर की कह सकती थी . ये नाटक करने की क्या जरूरत थी ” मैंने कहा .

वो नजरे चुराने लगी.

मैं- तो अब जब सब कुछ सामने है , हम तुम सब लोग यहाँ है तो कुछ सवालो के जवाब तो बनते है .तुम्हे इस जगह के बारे में कैसे मालूम हुआ . क्या तुम इस बात से इंकार करोगे की हीरो को तुम दोनों ही बेचते थे रत्ना को .

“तुम्हारे पिता लाये थे मुझे इस जगह पर कबीर ” हौले से बोली वो .

मैं- तुम्हे पर क्यों .

“उन्होंने मुझे कहा था की भविष्य में ये जगह तुम्हारे काम आएगी ” उसने जवाब दिया.

मैं- रत्ना के सम्पर्क में कैसे आई तुम

“रत्ना से हमारा कोई लेना देना नहीं कबीर ” दरोगा ने कहा

मैं- कैसे मान लू मैं इस बात को . सब कुछ तो शीशे की तरह साफ़ है

दरोगा- क्योंकि सच यही है कबीर. हमने कभी भी हीरो का लालच नहीं किया. बल्कि हमने तो ............

इसके आगे दरोगा कुछ नहीं बोल पाया .

“धान्य ” एक आवाज आई और दरोगा लहरा कर गिर गया.

“विक्रम ” चीखी वो और दरोगा की तरफ बढ़ी ही थी की अगली गोली से उसके कदम डगमगा गए. ...............


Are wah..... daroga bhi dher kar diya uska jawab dene se pahle hi....


Aur ye ladki to manju lag rahi hai..... baki फौजी भाई की मर्जी किससे मिलवा दे....
 

Sushil@10

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#३९

दरोगा कुछ दिनों से थाने में आया ही नहीं था , पर फिर वो कहाँ था .उसके सरकारी क्वार्टर पर भी ताला लगा था और पुलिस अधिकारी के घर का ताला तोडना किसी भी लिहाज से उचित नहीं था . शतरंज की इस बिसात पर मेरे पास चलने को कोई चाल नहीं थी , मैं खुद को किसी प्यादे सा महसूस करने लगा था . उस रात को कौन औरत हो सकती थी दरोगा के साथ , आवाज को पहचान नहीं सका मैं फुसफुसाहट भरी बातो से अंदाजा लगाना मुश्किल था. कुछ ना कुछ तो करना ही था वर्ना ये मेरी घुटन मार डालने वाली थी मुझे. पर मैं क्या जानता था दरोगा के बारे में कुछ भी तो नहीं सिवाय उसके नाम के.

एक बार फिर मेरी चाहत मुझे हवेली के दरवाजे पर ले आई थी,इसकी ख़ामोशी मुझे इतना परेशान कर रही थी की मैं पागल हो रहा था . एक बार फिर मैं हवेली में छिपे हुए सच को तलाश करने में जुट गया था . पिताजी के सामान को बार बार खंगाल रहा था मैं पर शायद अब कुछ नहीं था मेरे लिए. मैंने हवेली के दुसरे बंद पड़े कमरे को खोला जो चाचा का होता था , वहां कुछ नहीं था पूरी तरह से खाली कमरा था वो . एक एक करके हवेली के सब लोग इसे छोड़ गए, क्या मनहूसियत थी घर चाहे जैसा भी हो घर तो घर ही होता है . पांच साल पुराने इतिहास को कैसे जोडू आज से सोचते सोचते मैं हद से ज्यादा परेशान हो चूका था .

अचानक ही मेरी नजर पिताजी की तस्वीर पर पड़ी, जंगल में खिंची गयी तस्वीर जिसमे वो शान से खड़े थे . वन दरोगा और जंगल में खान. जंगल में वन चौकी और खान का बंद होना कुछ तो कनेक्शन था और शायद इसका जवाब हवेली में नहीं जंगल में ही था. बिना देर किये मैं वहां के लिए चल दिया. कुछ समय बाद मैं उस बंद पड़ी चौकी के सामने खड़ा था. मौसम और वक्त की मार से उसकी हालत जर्जर हो गयी थी. लोहे का दरवाजा जंग खा चूका था . झाड-झंखाड़ और गहरी काई से लिपटी वो चौकी की ईमारत इन्सान के मतलबी होने का सबूत थी.

बड़ी मशक्कत के बाद मैंने दरवाजे को खोला और अन्दर दाखिल हुआ, हाल बुरा था अन्दर का. छत टपक रही थी जिसकी वजह से अन्दर भी हालत बुरे हो गए थे . कोने में एक अलमारी रखी थी जिसके ऊपर रखे कागजो को दीमक चाट गयी थी . दीवारों पर फटे पुराने कलेंडर थे जो बरसो बाद हवा को महसूस करके फडफडा रहे थे. मैंने अलमारी को खोला कुछ फाइलें थी जिन पर धुल मिटटी और दीमक का कब्ज़ा था . मैंने उस मेज-कुर्सी को सहलाया जिस पर कभी पिताजी बैठते थे . धीरे से मैंने दराज को खोला वहां कुछ फाइल पड़ी थी जिनमे मुझे एक तस्वीर मिली जिसे मैं उसके धुंधलेपन के बावजूद भी पहचान सकता था , क्योंकि वो तस्वीर मेरी थी , वो तस्वीर जिसमे मैं और मेरा भाई था . कांपते हाथो से छुटी उस तस्वीर को जब मैं उठा रहा था तो उसके पिछले भाग पर पेन से बनी रेखाओ पर मेरी नजर पड़ी उंगलियों से मैंने उसे रगडा और मैं हैरान रह गया . तस्वीर के पीछे हीरो की छाया बनी हुई थी .खान और इस चौकी का आपस में कोई कनेक्शन जरुर था और मुझे बस इसी के बारे में मालूम करना था .एक बार फिर मैं खान के मुहाने पर खड़ा था .ढलती शाम में सूरज की रौशनी से इसके पत्थर जैसे चमक रहे थे.



“क्या छिपाए हुए हो तुम. क्या है वो वजह जिसने सब को बर्बाद कर दिया. “कहते हुए मैं अन्दर की तरफ चल दिया. मेरे कदमो को अच्छे से मालूम था की कहाँ जाना है, जैसे जैसे मैं अन्दर जा रहा था रौशनी कम हो रही थी . धीरे धीरे मैं हीरो को पार करके मैं पानी में डूबता जा रहा था , सांसे कम होने लगी थी पर इस बार मेरे हाथ उस दरवाजे तक पहुँच ही गए थे और जैसे ही मैंने वो दरवाजा खोला मेरी समझ से बाहर हो गया सब कुछ . आँखों को यकीं नहीं हो रहा था .

“कबीर तुम ” उसकी आँखे हैरानी से फटी के फटी रह गयी.

“सोचा नहीं था की यहाँ ऐसे मिलेंगे ”मैंने कहा

“कबीर, मेरी बात सुनो . मैं समझाती हु ” कपडे पहनते हुए बोली वो .

मैं- तो रात को इस दरोगा के साथ तुम थी वहां चबूतरे वाले पेड़ के पास . दोनों मिलकर मुझे चुतिया बना रहे थे .

“कबीर, हमारी बात सुनोगे तभी तो समझ पाओगे ” दरोगा ने धीमी आवाज में कहा

मैं- क्यों छिपाया मुझसे ये अब अगर चल ही रहा था तो क्यों किया ये नाटक

“मैं क्या करती कबीर . तुम यूँ गायब हो गए थे सब कुछ रूठ गया था मुझे . बड़ी मुश्किल से संभाला मैंने खुद को फिर मेरी जिन्दगी में विक्रम आ गया . जीवन की गाडी पटरी पर आई ही थी की तुम लौट आये कबीर. समझ ही नहीं आया की क्या करू.

“इतना तो हक़ था तुम्हारा मुझ पर की कह सकती थी . ये नाटक करने की क्या जरूरत थी ” मैंने कहा .

वो नजरे चुराने लगी.

मैं- तो अब जब सब कुछ सामने है , हम तुम सब लोग यहाँ है तो कुछ सवालो के जवाब तो बनते है .तुम्हे इस जगह के बारे में कैसे मालूम हुआ . क्या तुम इस बात से इंकार करोगे की हीरो को तुम दोनों ही बेचते थे रत्ना को .

“तुम्हारे पिता लाये थे मुझे इस जगह पर कबीर ” हौले से बोली वो .

मैं- तुम्हे पर क्यों .

“उन्होंने मुझे कहा था की भविष्य में ये जगह तुम्हारे काम आएगी ” उसने जवाब दिया.

मैं- रत्ना के सम्पर्क में कैसे आई तुम

“रत्ना से हमारा कोई लेना देना नहीं कबीर ” दरोगा ने कहा

मैं- कैसे मान लू मैं इस बात को . सब कुछ तो शीशे की तरह साफ़ है

दरोगा- क्योंकि सच यही है कबीर. हमने कभी भी हीरो का लालच नहीं किया. बल्कि हमने तो ............

इसके आगे दरोगा कुछ नहीं बोल पाया .

“धान्य ” एक आवाज आई और दरोगा लहरा कर गिर गया.

“विक्रम ” चीखी वो और दरोगा की तरफ बढ़ी ही थी की अगली गोली से उसके कदम डगमगा गए. ...............
Dhamakedaar update and awesome story
 
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