#18
“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा
निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.
मैं- इतना जल्दी
निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.
मैं- हाँ .
निशा- एक बात और कहनी थी
मैं -हाँ
निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए
मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से
निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.
मैं- कहती तो सही हो .
निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.
मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच
निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ
निशा ने मेरे माथे को चूमा.
“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .
मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता
नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .
“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.
मैं- शमा का नसीब है पिघलना
निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.
ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.
“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.
“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .
“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”
“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”
“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”
“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”
मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.
“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा
“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .
मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .
मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.
आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.
“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा
“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .
मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.
चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .
मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.
चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है
दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.
“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.
“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.
चाचा- तू ऐसे नही मानेगा
चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.
“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.
“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा
मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.
चाची ने दुबारा से मारा मुझे
“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा
तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.
“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी
“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा
“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली
निशा- मंजू, चुप रह तू
मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .
“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली
मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.
“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.
निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.
“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............