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Adultery तेरे प्यार में .....

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#14

वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.

“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.

ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में

मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ

ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .

मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी

ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं

मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके

ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.

मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे

ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे

मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी

ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न

मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है

ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने

मैं- हाँ ताई.

अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .

मैं- चलते है

ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है

मैं- आ तो सही

जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.

“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो

मैं- हाँ उनकी ही है.

जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.

“अन्दर आजा ” ताई बोली

मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.

“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.

“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे

नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.

“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो

मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को

मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.

मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ

निशा- कहाँ

मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं

निशा- ठीक है

मैं- कैसा रहा प्रोग्राम

निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो

मैं- फिर भी आई नहीं वो

निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.

मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है

निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है

अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.

“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो

मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ

निशा- कैसी किस्मत है न हमारी

मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है

निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न

मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.

निशा- उम्मीद तो है .

मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर

निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है

मैं- अपने दिल से पूछ कर देख

निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं

मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.

निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,

मैं- सो तो है , अब सो जा

निशा- थोड़ी देर और बात कर ले

थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.

“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.

“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा

मंजू- उठ जा घडी देख जरा

मैंने देखा नौ बज रहे थे .

“निशा कहा है ” मैंने कहा

मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये

जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया

“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.

मैं- बस यही तक

जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .

“मैं हु न ” मैंने कहा

निशा- इसी बात का तो डर है मुझे

मैं- चुपचाप बैठी रह फिर

निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .

“उतर ” मैंने कहा

निशा – मुझसे नहीं होगा

मैं- आ तो सही मेरी सरकार.


कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
Emotions :cry2:Nisa ko uske ghar le gaya wo, wada jo kiya tha, aur foji bhai... mera matlab hero ki khasiyat hi yahi hoti hai story me, chahe sutaai ho jaye, per jaana jaroor hai 😁 mind blowing update again :claps:
 

Raj_sharma

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#15

कहते है की दुनिया में सबसे प्यारा नाता भाई-बहन का होता है . चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाये पर भाई बहन कभी एक दुसरे को नहीं भूल सकते. कांपते हाथो से निशा ने अपने भाई के माथे को चूमा

“अन्दर चलो दीदी ” नकुल ने कहा

निशा- तुझे देख लिया बस बहुत है मेरे लिए ,

नकुल- दीदी आज का दिन बहुत खास है, मेरे लिए ही सही अन्दर तो चलो. इतने सालो बाद मेरी दीदी घर आई है मुझे स्वागत तो करने दो

“अरे नकुल कैसा हल्ला हो रहा है बाहर ” तभी निशा की मम्मी चबूतरे पर आयी उसकी नजरे निशा पर ठहर सी गयी थी माँ बेटी बस एक दुसरे को देखे ही जा रही थी.

“मेरी बच्ची ” निशा की माँ ने उसकी बलाइया ली.

“खुश तो हो न तुम लोग ” माँ ने मुझसे कहा

मैं- जी

निशा- कबीर, ये तूने ठीक नहीं किया. जानते हुए भी तू मुझे यहाँ लेकर आया

मैं- यहाँ नहीं आएगी तो कहाँ जाएगी , तेरा घर है .

निशा- ये जानते हुए भी की इसी चोखट पर क्या हुआ था

मैं- तूने ही कहा था न की बात करने से बात बनती है तो बात कर लेते है . नकुल की कलाई आज सूनी तो रहेगी नहीं तू अन्दर जा न जा तेरी मर्जी पर राखी जरुर बाँध इसे. हमारे भाग के दुःख हम इसे तो नहीं दे सकते न, इसका हक़ है ये हक़दार है तेरी राखी का. ये तेरी माँ है दो घडी बात कर ले इस से फिर अपन चल ही देंगे इधर से. हम यहाँ किसी को सफाई देने नहीं आये है , ना मैं कुछ भुला हु .मेरी बस इतनी इच्छा है की एक बहन भाई को राखी जरुर बांधे.

निशा- कबीर , इतना विष भी मत पी लेना की संभले न

मैं- जब तक मेरी सरकार मेरे साथ है मुझे ज़माने की परवाह ना थी ना है ना आगे होगी.

निशा ने नकुल को राखी बाँधी तो बहुत खुश हो गया वो .

“तेरी जिद है बेटी तो तू अन्दर मत आ, पर बेटी- जंवाई आये है तो मुझे दो घडी का इतना हक़ तो दे की मैं जी भर कर देख सकू , क्या मालूम तू कब आएगी. फिर ” माँ ने कहा

निशा कुछ कहती उस से पहले ही मैं बोल पड़ा- माँ, अभी तक हमने शादी नहीं की है . ना ही हम साथ थे, तेरी बेटी बड़ी पुलिस अधिकारी बन गयी है . संजोग ये है की एक बार फिर इस दर पर हम साथ आये है , तेरी बेटी बहुत खुद्दार है , मुझसे ज्यादा इसे बाप की पगड़ी की चिंता है , ज़माने में चाहे सब ये कहे की भाग गयी तेरी बेटी पर माँ सच ये है की आज भी इसे ठाकुर साहब की हाँ का इंतजार है .

“कबीर चल यहाँ से ” निशा ने मेरी बांह पकड़ ली .

मैं- दो बात माँ से कर लू फिर चलते है . माँ, हमेशा गर्व करना जो तुझे ऐसी बेटी मिली. इसने कोई गुनाह नहीं किया, इसकी बस इतनी इच्छा थी की ये अपने पसंदीदा मर्द से शादी करे. ठाकुर साहब कभी न कभी तो समझेंगे इस बात को . मैं सिर्फ नकुल की इच्छा के लिए आया था अब हमें जाना होगा ठाकुर साहब को मालूम होगा तो फिर त्यौहार का रंग फीका हो जायेगा.

मैंने माँ के पांवो में सर रखा और बोला- दुआ देना, इसी चौखट से ज़माने के सामने ले जाऊ अपनी सरकार को .

माँ की भीगे पलके मेरे सीने में दर्द पैदा कर गयी. वापिसी में दिल साला बहुत भारी हो रहा था .

“ठेके पर चल ” निशा ने बिना आँखे खोले कहा . एक के बाद एक बोतले खुलती चली गयी. कभी वो हंसती कभी रोती . परिवार किसी भी इन्सान की शक्ति होती है, मैंने अपने परिवार को खोया अपने कर्मो की वजह से, निशा ने घर छोड़ा मेरी वजह से . नशे में निशा ने अपने तमाम दर्द को ब्यान कर दिया. मैं धैर्यपूर्वक उसे सुनता रहा . वापिसी में गाड़ी मैंने चाचा के घर के पास रोक दी, मेरी कलाई को पूरा विशवास था की छोटी जरुर आएगी राखी बंधने पर शाम रात में बदल गई वो ना आई. उस भाई का क्या ही जीना जिसे उसकी बहन भुला दे. अपना हाल कहे भी तो किसे सो एक बोतल और खोल ली .

“हवेली चलेगी क्या ” मैंने उस से कहा

“ नहीं, फिलहाल मैं बस सोना चाहती हु ” निशा ने कहा तो मैंने उसे बिस्तर पर जाने दिया. मंजू न जाने कहा गयी हुई थी. मैंने दरवाजे को हल्का सा बंद किया और चबूतरे पर बैठ गया. कडवा पानी सीने में जलन पैदा कर रहा था पर अपना दर्द कहे भी तो किस से सुनने वाला कौन ही था . जिसे भी कहना चाहे वो हमसे ज्यादा दुखी था.

“अरे कबीर इधर क्यों बैठा है ” मंजू ने आते हुए पुछा.

मैं- बस ऐसे ही , मन थोडा विचलित था छोटी आई नहीं राखी बंधने

मंजू- माँ चुदाय न आई तो . जब उसे ही परवाह नहीं तू भी छोड़ इन झमेलों को . ये दुनिया वैसी नहीं कबीर जैसी हमने किताबो में पढ़ी थी . यहाँ हर कोई जानवर है , हर कोई शिकार है . जब तक उनको तेरी जरुरत थी तब तक ठीक था . माल माल सब ले गया चाचा तेरा , क्या छोड़ा है तेरे लिए जाके पूछ तो सही . तेरे पिता की मौत के बाद बीमे के सारे पैसे खा गया वो . कितना कुछ दबा क्या तब उन्हें तेरी याद ना आई अब क्या घंटा याद करेंगे वो.

मैं- बात रूपये पैसे की तो है ही नहीं

मंजू- तो फिर क्या बात है .गलती अकेले तेरी तो नहीं थी चाची भी तो बराबर की गुनेहगार थी .

मैं- सुन मैं हवेली जा रहा हूँ अन्दर निशा सोयी पड़ी है. दारू ज्यादा खींची है उसने थोडा देख लेना . मैं थोड़ी देर में आऊंगा

मंजू- अब इस वक्त क्या करेगा तू उधर जाके

मैं- बैग उधर है मेरा बस अभी गया और यूँ आया.

मैंने उसके गाल पर पप्पी ली और हवेली की तरफ चल दिया. बहनचोद गाँव के सरपंच से मिलना पड़ेगा हमारे घर वाले रस्ते पर साली एक भी लाइट नहीं थी .ऊपर से बारिश में कीचड वाला रास्ता , जैसे तैसे मैं दरवाजे तक पहुंचा और मैं चौंक गया दरवाजे को मैं बंद करके गया था जबकि अब उसका पल्ला खुला था , खैर मैं अन्दर गया तो लालटेन की रौशनी थी जो मेरे कमरे से आ रही थी


“तो तुम हो यहाँ ” मैंने जैसे ही कहा उसके चेहरे का रंग बदल गया................
Kabeer ne nisha ki maa ko sach bata diya, and uske chavha ki ladki hi use raakhi bandhne nahi aai? Matlab saaf hai , ab un sab ne bhula hi diya hai usko. :dazed:
Koi
na wo log chaa mudaaye apni :beee:
Awesome update and beautiful writing ✍️
 

Raj_sharma

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#16

“कबीर तुम ” सकपकाते हुए बोली वो .

“मैं नहीं तो और कौन भाभी, जब मैंने इस कमरे को खोला था तभी मैं समझ गया था की वो सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो जो मेरे बाद भी यहाँ आती हो ” मैंने कहा

भाभी- दूर होकर भी यहाँ से दूर नहीं हो पाई.

मैं- उफ्फ्फ ये बाते , क्या रखा है इन बातो में

भाभी- समझो तो बहुत कुछ न समझो तो कुछ भी नहीं

मैं- तुम्ही समझा दो फिर

भाभी- तुम सब जानते हो

मैं- तो बताओ फिर उस रात क्यों मारना चाहती थी मुझे

भाभी के आँखे फैलती चली गयी .

“सब पूछते है मेरे जख्मो के बारे में और झूठ कहता हूँ सबसे की पता नहीं कौन था वो पर हम दोनों जानते है . अब कातिल भी सामने है और शिकार भी यही है तो भाभी बड़ी शिद्दत से जानना चाहता हु मैं मेरी सबसे प्यारी मेरी दुश्मन कैसे हुई. ” मैंने लालटेन की लौ थोड़ी मंदी करते हुए कहा.

“मजबूर थी मैं कबीर , गोलिया चली तुझ पर थी पर छलनी मेरी छाती हुई थी ” भाभी बोली.

मैं- इस राज को राज रखने के लिए हर रोज झूठ बोलता हु मैं भाभी, और तुम कहती हो की मजबूर थी . ये बात बहुत हलकी है भाभी.

भाभी- और कोई रास्ता नहीं था कबीर, मुझे वार करना पड़ा कबीर . मैं दो राहे पर खड़ी थी एक तरफ तुम थे दूसरी तरफ मेरा संसार. चुनाव बहुत मुश्किल था , मैं हार गयी कबीर. मैं हार गयी.

मैं- अब तो सुख में हो न फिर

भाभी- तुम्हे लगता है की सुख मिलेगा हर पल बंदिश में जीती हु . सबसे नाता तोडना पड़ा यहाँ भी बहाने से आती हु की घर संभालना है तुम्हारे भाई ने अपना तो लिया मुझे पर माफ़ नहीं किया

मैं – वो तो है ही लोडू. अपनी कमिया छिपाने के लिए दुसरो को दोष देता है . छोड़ क्यों नहीं देती तुम उसको . अपनी जिन्दगी जी सकती हो तुम

भाभी- अगर मैंने माँ से वादा नहीं किया होता तो मैं ये कदम भी उठा लेती .

मैं – बहुत बढ़िया.

भाभी- तुम्हारी माफ़ी के लायक नहीं हु मैं .

मैं- माफ़ करने भी नहीं वाला मैं .मैं लौट आया हु , अब हर उस कारण की तलाश करूँगा जिसकी वजह से ये सब हुआ और जो भी उसके पीछे हुआ उसकी खाल उतारूंगा. जाकर भाई से भी कह देना की दुश्मन मेरा हो सकता है वो कोई ऐतराज नहीं पर औरतो के पल्लू में न छिपे.

“मुझे जाना चाहिए अब ” भाभी खड़ी हुई.

मैं- अभी मेरी बात ख़त्म नहीं हुई भाभी . ताऊ की मौत कैसे हुई बताओ मुझे

भाभी- किसी को कुछ नहीं पता चला. वैसे भी परिवार बिखरने के बाद सब अलग अलग ही रहते है आपस में संपर्क रखा नहीं किसी ने.

मैं- नंगे लोग , इस गुमान में की कौन कम नंगा है . मुझे नहीं लगता की ताऊ की मौत सामान्य थी मुझे तो अब ये भी नहीं लगता की माँ-पिताजी की मौत सामान्य थी .

भाभी- परिवार में ऐसा कोई नहीं जो अपने ही खून की बर्बादी करे

मैं- अच्छा जी, हमे तो मालूम ही नहीं .

भाभी उठ खड़ी हुई जाने के लिए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहाँ न अभी नहीं , जिस चूत के लिए सीने पर गोलिया खाई उसे ऐसे तो नहीं जाने दूंगा मैं ”मैंने कहा और भाभी की कमर में हाथ डाल कर उसे सीने से लगा लिया.

भाभी- कबीर, पीछे छोड़ आई हूँ मैं इन रास्तो को

मैं- रास्ते कहीं नहीं जाते वो हमेशा वही रहते है जहाँ लोग उन्हें छोड़ जाते है . ऐसे तो नहीं जाने दूंगा.

भाभी- मान जा कबीर, मत शरू कर . अतीत के पन्ने मत पलट

मैं- जिया तो अतीत में ही था मैं अब तो बस सांसे चल रही है.

मैंने भाभी के नाजुक होंठो को अपने होंठो से जोड़ लिया. बरसो बाद इन होंठो का स्वाद महसूस किया था मैंने . कुछ देर चूमने के बाद मैंने भाभी को पलंग के किनारे पर झुका दिया.और उसकी साडी को ऊपर कर दिया. भाभी की गोल गांड जिसका दीवाना किसी ज़माने में हुआ करता था . भाभी की अदा थी की वो कच्छी नहीं पहनती थी . मैंने लंड पर थूक लगाया और भाभी की को थोडा सा और झुकाते हुए चुदाई शुरू कर दी.

“जाने दे कबीर, तेरा भाई इधर आ निकला तो गजब हो जायेगा ” कसमसाते हुए बोली वो.

मैं- वो भी देख लेगा

भाभी की चूत मेरे कुछ ही धक्को में गर्म हो गयी थी .

“पच पच ” की आवाज आ रही थी . भाभी की साँसे भारी होने लगी थी. बेशक किसी भी औरत को मजबूर करके चोदना मेरी फितरत नहीं थी पर मुझे उसे चोदना ही था . थोड़ी देर बाद मैंने उसे गोद में उठा लिया और उपर निचे करने लगा.

“कैसा लग रहा है ” मैंने पुछा

भाभी- बहुत बुरा , तूने उसूल तोड़ दिया कबीर. औरत को उसकी मर्जी के बिना जोर जबरदस्ती करना ठीक नहीं

मैं- उसूल अब बचे ही कहाँ भाभी, जब सब बर्बाद हो गया तो उसूलो का क्या ही करना

भाभी- राख में चिंगारी भड़काई है तूने .

भाभी की बाकी बात अधूरी रह गयी क्योंकि उसने मेरे कान पर काट लिया था चूत टाइट हो गयी थी उसकी हाँफते हुए झड रही थी वो . उसकी चूत ने लंड को इतना कस लिया था की मेरा वीर्य बह ही चला चूत में . मेरी गोद से उतर कर उसने साडी से ही चूत को साफ़ किया और बिना कुछ बोले वो बाहर चली गयी. मैंने लालटेन बुझा दी. मैं उसके पीछे आया वो बड़े दरवाजे तक आ पहुंची थी .

मैं- पिताजी के बीमे पर अधिकार क्यों नहीं जमाया तुम दोनों ने .

भाभी- पैसो का किसे मोह था कबीर.........


भाभी ने बिना मेरी तरफ देखे कहा और अँधेरे में खो गया. पैसे नहीं तो फिर क्या .. मैं वही खड़ा सोचता रहा ....
Ye sale kabeerwa ne to kisi ko nahi choda , bada hi chodu nikla ye to:D
Ant ki line: paisa nahi to fir kya?🤔
Ye sochne wali baat thi manish bhai. Awesome update and superb story 👌🏻 chaa gaye.
 

Raj_sharma

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#17

“पैसे नहीं तो क्या ” पिताजी के सामान को खंगालते हुए मैं बस ये ही सोचता रहा .पिताजी की तमाम किताबे उल्ट-पलट दी पर कुछ नहीं मिला. मैंने कल दिन में जंगल में ही खोजबीन का निर्णय लिया. सुबह सुबह ही मैं शिवाले पहुँच गया . ये कहानी शुरू ही नहीं होती अगर इस शिवाले से प्रेम नहीं होता. जब से होश संभाला था या तो ये था या मैं था ,मेरी भोर यहाँ जल चढाने से शुरू होती मेरी शाम यहाँ माथा टेकने से ख़तम होती, इसने मेरी ख़ुशी भी देखि थी इसने मेरा दर्द भी देखा था . शिवाले की चोखट पर बैठे मैं सामने उस सजे धजे घर को देख रहा था जहाँ दो दिन बाद शादी थी. परिवार के रंडी-रोने साले ख़त्म ही नहीं हो रहे थे , कल रात भाभी को तड़पते देखा पर बहन की लौड़ी वहां रहेगी नहीं. ये किस किस्म का प्यार था इन चुतिया लोगो का की ये साथ भी नहीं रह रहे थे , अलग भी ना हो सके.

सामने से आती निशा को जो देखा , दिल धड़क सा उठा. बरसो पहले उसे ऐसे ही तो देखा था . इसी चोखट पर एक हाथ में लोटा लिए और दुसरे हाथ से जुल्फों को संवारते हुए. सरकारी स्कूल में पढने वाले सब इसी शिवाले में जल चढ़ा कर आगे बढ़ते थे . इस चोखट पर बैठा था मैं . मुस्कुराते हुए निशा अन्दर गयी मैंने दिल को थाम लिया .

“क्या सोचने लगे कबीर ” मेरी पीठ से पीठ लगा कर बैठते हुए पुछा उसने .

मैं- बरसो पहले किसी को यूँ ही देखा था

निशा- देखा क्या था घूर ही रहे थे तुम

मैं- निहार रहा था मैं सरकार

निशा- बड़ी गहरी उतरी तुम्हारी निगाहे दिल में , फिर मैं , मैं नहीं रही .

मैं-कभी कभी सोचता हूँ जिन्दगी तो तभी जी ली मैंने अभी तो बस सांसे चल रही है .

निशा- तो फिर से जिए वो जिन्दगी

मैं- तू साथ है तो जी ही लेंगे.

निशा- कभी कभी मन करता है वो दिन लौट आये , साइकिल उठा कर चल दू उस पगडण्डी पर .

मैं- उसमे क्या है , तू कहे तो चलते है खेतो की तरफ

निशा- वहां से एक रास्ता मेरे घर की तरफ भी जाता है कबीर .

मैं- घर तो घर होता है सरकार, हम चाहे कहीं भी चले जाये हमारे सीनों में घर हमेशा ही रहेगा.

निशा- वक्त आगे बढ़ गया हम वहीँ पर रह गए.

मैं- खेतो पर जाना होगा मुझे, हो सके तो तू दोपहर का खाना लेकर उधर ही आ जाना.

निशा- वहां क्या करेगा तू

मैं- बताया था न तुझे खेतो की हालात ठीक कर रहा हूँ

निशा- ठीक है ,एक बार शहर जाउंगी. फिर खेतो पर आती हु.

थोडा वक्त और उस से बाते करने के बाद मैं खेतो पर आ गया. खेत तो बहाना थे मुझे जंगल में जाना था . बाड को पार करके एक बार फिर मैं झोपडी तक आ पहुंचा था.

“पैसा नहीं तो क्या , पैसा किसे चाहिए था ” इस सवाल ने मुझे पागल किये हुए था. जर, जोरू और जमीन इसके सिवा आखिर क्या हो सकता था . तीनो ही चीजे तो मोजूद थी इस घर की बर्बादी में फिर और क्या बचता था . घूमते घूमते मैं खान की तरफ आ गया , बड़े बड़े पत्थर बिखरे पड़े थे. ख़ामोशी पसरी पड़ी थी. बारिश के मौसम की वजह से उमस बनी पड़ी थी. थोडा सा रास्ता बनाते हुए मैं खान के मुहाने की तरफ चल दिया. पत्थरों और प्रकृति का अद्भुद संगम , झाड़ियो को हटाते हुए मैं मुहाने तक पहुंचा, गहराई के कारण बारिश का पानी जमा हो गया था , उसी के बीच से होते हुए मैं अन्दर की तरफ चला. मार्बल की खुशबु , कुछ सीलन और बरसात का असर . जैसे जैसे मैं अन्दर की तरफ जा रहा था अँधेरा बढ़ने लगा था. पत्थर काटने के औज़ार पड़े देखे मैंने. जब तक की सब कुछ दिखाई देना बंद नहीं हो गया मैं चलता रहा .

“टप टप ” कही से पानी रिस रहा था . खान बहुत ही शांत थी , अक्सर ऐसी जगहों पर शराबी , जुआरी लोग अपना अड्डा बना लेते है पर ये धारणा जम नहीं रही थी जंगल के इस हिस्से में लोगो की आवाजाही ना के बराबर थी . ना ही जंगली जानवरों ने इधर आशियाँ बनाया था जबकि जानवर लोगो को और क्या ही चाहिए. खैर, कब तक रहता उधर , बाहर तो आना ही था.

खेतो पर आकर सोचा की थोड़ी और सफाई कर ली जाए. एक बार फिर गोडी लगाने का काम शुरू कर दिया. ना लायक परिवार की वजह से इतनी उपजाऊ जमीन की माँ चुद गयी थी. दिन ढलने को था निशा शायद भूल ही गयी थी. मैंने ट्रेक्टर छोड़ा और नहाने का सोचा . टीनो के निचे मैंने चारपाई पर अपने कपडे रखे और चला ही था की तभी मेरे पैर में कुछ चुभा. गाली देते हुए मैंने पैर को ऊपर करके देखा तो वो काँटा तो हरगिज नहीं था . बेख्याली में मैंने उस टुकड़े को फेंका , नहा ही रहा था की निशा आ गयी.

“सॉरी, यार. थोडा देर हो गयी, शहर में ज्यादा समय लग गया फिर सोचा तेरी पसंद का कुछ बना लू ” उसने कहा

मैं- तेरी पसंद तो सिर्फ तुम हो सरकार.

निशा- हर टाइम आशिकी ठीक नहीं

मैं- ला परोस दे फिर.

निशा- देख तो ले पहले क्या लाई हु

मैं- दाल चूरमा ही लाइ होगी

निशा- तुझे ना जाने कैसे मालूम हो जाता है हमेशा

मैं- दुनिया में बस दो लोगो के हाथ का चूरमा पसंद रहा है एक तेरा और एक माँ का .

माँ का जिक्र होते ही दिल ने एक आह भरी.

“खेतो का तो हाल बुरा है ” उसने दाल देते हुए कहा.

मैं- इन्ही खेतो में तेरे संग वक्त बिताया था तब क्या था अब क्या हो गया है.

निशा- कोई ना, फिर करेंगे मेहनत .

स्कूल टाइम में निशा इसी रस्ते से आती थी पढने के लिए . कभी खेतो पर मिलते कभी उस चबूतरे पर बैठते. चूरमा अक्सर ही लाती थी वो मेरे लिए.

“भाभी मिली थी आज मुझे ” निशा ने कहा

मैं- क्या बोली

निशा- हाल चाल पूछ रही थी .

मैं- कुछ और नहीं कहा

निशा- पुछा न कबीर कब तक रुकेगा गाँव में

मैं- तुमने क्या कहा

निशा- मैंने कहा पता नहीं उसकी मर्जी है रुके तो रुके ना भी रुके.

मैं- तुम्हे कहना चाहिए था की मिल ले वो मुझसे

निशा- कहा न मैंने. फिर वो टालने लगी. भाभी के हाव भाव अजीब से लगे मुझे

मैं- कैसे

निशा- कबीर, मैं तुम्हारे परिवार में हर किसी को जानती हु. वो भाभी ही थी जिनको सबसे पहले अपने इश्क के बारे में मालूम हुआ . भाभी के व्यवहार में नकलीपन सा लगा मुझे. खोखली बाते

मैं- वक्त बदल गया है

निशा- माना , पर इतना भी नहीं बदला की लोग आँखे चुरा ले कुछ तो हुआ है परिवार में जो मैं नहीं जानती . बताओ कबीर .

मैं- मुझे क्या मालूम

निशा- कबीर पुलिसवाली हु मैं. आदमी यु पहचान लेती हु. और ये तो अपने परिवार की बात है . लोग अक्सर अलग होते है परिवारों में , मैंने बहुत लोगो को देखा है परिवार में लड़ते-झगड़ते हुए बंटवारे के लिए. हिस्सों के लिए पर ये तुम्हारा कैसा परिवार है जो अलग हो गया, एक दुसरे को देखना तक नहीं चाहते और मजे की बात ये है की किसी को कोई लालच नहीं है.


निशा ने मेरी दुखती रग पकड़ ली थी और मेरे पास कोई जवाब नहीं था.........
Ye saala lafda kya hai foji bhaiya? Paisa, power, ya jameen, per yaha to lafda hi kuch alag level ka hai?🤔
Khair nisha kheto me aai hai to kuch nai purani baate to hongi hi😁
Mind blowing update 👌🏻👌🏻👌🏻
 

Raj_sharma

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#18

“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा

निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.

मैं- इतना जल्दी

निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.

मैं- हाँ .

निशा- एक बात और कहनी थी

मैं -हाँ

निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए

मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से

निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.

मैं- कहती तो सही हो .

निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.

मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच

निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ

निशा ने मेरे माथे को चूमा.

“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .

मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता

नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .

“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.

मैं- शमा का नसीब है पिघलना

निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.

ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.

“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.

“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .

“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”

“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”

“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”

“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”

मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.

“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा

“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .

मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .

मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.

आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.

“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा

“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.

चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .

मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है

दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.

“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.

“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.

चाचा- तू ऐसे नही मानेगा

चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.

“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा

मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाची ने दुबारा से मारा मुझे

“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा

तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.

“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी

“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा

“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली

निशा- मंजू, चुप रह तू

मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .

“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली

मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.

“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.

निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.


“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............
:bow::roflbow: Nisabd, gsjab ki likhawat hai foji bhai, kya must sama bandha hai.👌🏻👌🏻
 

Raj_sharma

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मकड़जाल सी लग रही है ये स्टोरी ।
विलन कौन निकलेगा ये तो समय अनुसार पता चल ही जाएगा ।

बहन का भाई से विमुख होना किस और इशारा कर रहा है चाची ने कान भरे हो या चाचा ने या कबीर के छिपे गुनाह !


कबीर पर टिकट लगा देना चाहिए गाव का जिगोलो तो नहीं था पास्ट मैं कहीं ।

निशा सरकार से भी कबीर छिपा रहा है कुछ बातें या सब कुछ यही बातें तो नहीं क़सम से सूतेगी बहुत कबीर को पता चलेगा तो ।


ताऊ की बॉडी का आजतक ना मिलना भी ग़ज़ब है । खेत के पास जंगल मैं जरूर कुछ राज है ।

फ़्लैशबैक का इंतज़ार रहेगा लेकिन ये शिवाले के पास क्या हुआ है ।

आपकी लेखनी बहुत भी सुंदर है भाई कहानी लिखने का अंदाज़ भी लाजवाब है ।
Gaanv ka jigolo :D
 

Raj_sharma

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#२२

चबूतरे पर बैठे ठंडी हवा में चाय की चुसकिया लेते हुए हम दोनों तमाम सम्भावनाये तलाश रहे थे की कैसे क्या हो सकता था , क्या हुआ होगा चाचा के साथ .

“मुझे लगता है की चाची को अपनी गृहस्थी बचानी थी इसलिए वो पलट गयी ” मैंने कहा

मंजू- मैं मानती हूँ की औरत भरोसा तोडती है . चाची का मामला पेचीदा है पर मालूम तो करना ही होगा की उसके मन में कैसे इतना जहर भरा.

मैं- मौका मिलेगा तो अकेले में पूछुंगा उस से . पर मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हु

मंजू- हाँ

मैं- तू कब तक ऐसे धक्के खाएगी , घर बसा ले यार

मंजू- अब तो आदत हो गयी है . साली जिन्दगी में इतना तिरस्कार सहा है न की सम्मान का मोह ख़त्म ही हो गया है . तेरी बात कभी कभी सही लगती है मुझे , परिवार में अपन को कोई चाहता नहीं है बस दिखावा है . वैसे मैं खुश हु कबीर, अकेलापन तंग करता नहीं मुझे.

मैं- समझता हु मंजू , पर फिर भी जिदंगी बहुत लम्बी है साथी रहे तो बेहतर तरीके से कट जाती है.

मंजू- ठीक है मानती हु तेरी बात पर तू बता कौन करेगा मुझसे अब शादी

मैं- कोई क्यों नहीं करेगा. क्या नहीं है तेरे पास, गदराया जोबन, सरकारी नौकरी अरे तू पाल लेगी उसे.

मंजू- गाँव-बस्ती में ये सब नहीं चलता, लोगो को लगता है की छोड़ी हुई औरत ही गलत होती है .

मैं- माँ चुदाने के गाँव को तू , तू अपनी मस्ती में जी न

मंजू- बचपन ही ठीक था यार, ये जवानी बहन की लौड़ी तंग ही कर रही है .

मैंने चाय का कप साइड में रखा और बोला- सुन तू एक काम करियो दिनों में तो तू जाएगी ही वहां पर , पूरी जासूसी करनी है तुझे. देखना कुछ न कुछ तो मिलेगा ही मैं बाहर से कोशिश करूँगा तू घर के अन्दर से करना . वैसे देगी क्या आज

मंजू- शर्म कर ले रे घर में लाश पड़ी है तुझे लेने देने की पड़ी है .

मैं- अब जो है वो है मैं क्या करू ,सुन बकरा बनाते है बहुत दिन हुए

मंजू- अभी तूने सोच ही लिया तो फिर करनी ही है मनमानी

“मनमानी नहीं है , बस अब फर्क नहीं पड़ता है जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की मिल तो सब रहा है पर अब चाहत नहीं है ” मैंने कहा

मंजू- उदास मत हो , करते है मनमानी फिर

मैं मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम वहां बैठे रहे .बचपन की बहुत सी यादे ताजा हो गयी थी . शाम से थोडा पहले हम वापिस गाँव आये , जीप को धोने का सोचा मैंने , सफाई करते समय मुझे कुछ गड्डी पैसो की मिली नोटों पर कालिख जमी थी , सीलन थी . मैंने उन्हें अन्दर रखा और जीप को धोने लगा की तभी मैंने सामने से मामी को आते हुए देखा. एक अरसे के बाद मैं उन्हें देख रहा था. लगा की वक्त जैसे मेरे लिए ठहर सा गया था .सब कुछ मेरे सामने वैसे ही आ रहा था जैसे की मेरी कहानी शूरू होने पर था .

“आप यहाँ कैसे ” मैंने कहा

“किसी ने बताया की तुम इधर मिलोगे तो चली आई ” एक पल को लगा की मामी आगे बढ़ कर गले से लगा लेंगी पर वो रुक गयी.

मैं-कैसी हो

मामी- ठीक हूँ , बरस बीते तुमने तो सब भुला दिया . मामा का घर इन्सान का दूसरा घर होता है ,वो घर भी तुम्हारा ही है पर तुमने ना जाने किस राह पर चलने का फैसला किया की पीछे सब छोड़ गए.

मैं-पहले जैसा कुछ रहा ही नहीं , सब बिखर गया

मामी- कुछ भी नहीं बदला है थोड़ी कोशिश करोगे तो सब तुम्हारा ही है

मैं- चाची सोचती है की मैंने मारा चाचा को

मामी- मैं जानती हु की तुम ऐसा नहीं कर सकते, मैं बात करुँगी उस से पर फिलहाल वक्त ठीक नहीं है

मैं-छोड़ो ये बताओ मामा आये है क्या .

मामी- कल शाम तक पहुँच जायेंगे

मामी की आँखों में मुझे बहुत कुछ दिख रहा था . मामी की जुल्फों में सफेदी झलकने लगी थी बदन थोडा भारी हो गया था , थोड़ी और निखर आई थी वो .

मैंने मामी का हाथ पकड़ा और बोला- समय का पहिया घूम रहा है उम्मीद है की सब सही होगा.

मामी- ऐसा ही होगा . अभी मैं चलती हूँ , ननद को संभालना होगा मिलूंगी तुमसे फिर

मैं- हवेली इंतजार करेगी

मामी के जाने के बाद मैंने मंजू के साथ खाना खाया , वैसे मैं मंजू की लेना चाहता था पर वो चाचा के घर जाना चाहती थी , वहां बैठना ज्यादा जरुरी था. वो चाचा के घर गयी मैं हवेली आ गया. हालाँकि मंजू चाहती थी की मैं उसके घर ही सो जाऊ. एक बार फिर से मैं पिताजी के सामान में अनजाने सच को तलाश रहा था . हर एक किताब को मैं फिर से बार बार देख रहा था की कहीं तो कुछ मिल जाये पर इस बार भी प्रयास व्यर्थ , जो इशारा था वो मुझे शायद उन कागजो में मिल चूका था . न जाने कैसी धुन थी वो , न जाने क्या तलाश रहा था मैं . संदूक में मुझे पिताजी की वर्दी मिली . आँखे छलक पड़ी मेरी, पिताजी को अपनी वर्दी हमेशा प्रेस की हुई चाहिए होती थी , संदूक में निचे उनके काले जूते थे , लगा की अभी पालिश की हो . भावनाओ का ज्वार थामे मैंने वर्दी को सीने से लगाया तो मुझे कुछ महसूस हुआ. वर्दी के अन्दर में एक जेब थी जिसमे एक किताब थी. गुंडा शीर्षक था उसका. मैंने पन्ने पलटने शुरू किये. और मुझे वो मिला जो एक नयी राह दिखा सकती थी.

“कबीर, मैं जानता हु तुम् यहाँ तक जरुर पहुंचोगे , पर सफ़र इधर का नहीं वहां का है जहाँ तुम अँधेरे में उजाला देखोगे. सब कुछ मिटटी है , पर मिटटी जादू है वो जादू जो मुझ पर चला . उजाले से प्यार मत करना अँधेरे में खो मत जाना. वहां पहुंचोगे तो सब जान जाओगे. सबको पहचान जाओगे. रास्ता तुम्हारे दिल से होकर जायेगा.” पिताजी के लिखे ये शब्द मुझे पागल ही कर गए थे. क्या बताना चाहता था बाप सोचते सोचते मैं भन्ना ही गया था .

“कबीर ” हौले से वो फुसफुसाई और मेरे सीने पर हाथ रख दिया. झट से मेरी आँख खुली और मैंने लालटेन की रौशनी में उसे देखा..

“मैं हु कबीर ” बोली वो और मेरी चादर में घुस गयी...........
Nisha laut aayi??🤔 or kabeer ko uska baap kya batana chahta tha? Andhera ujaala? Dimaak hila diya bc :dazed: khair , awesome update again foji bhaiya 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 

HalfbludPrince

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सब कुछ हासिल हो इस जिंदगी में ये मुमकिन तो नहीं..


अधूरी ख्वाहिशें जिंदगी जीने का सहारा देती है ⭐⭐




बहुत लाजवाब updates
फिर भी थोड़ा बहुत तो चाहिए ही जीवन जीने के लिए
 

HalfbludPrince

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Bahut badhiya likh rahe ho Bhai, ab to Niyati bhi aa gai..

कबीरा तेरे देश में बड़े बड़े हैं लोग,,
कुछ तो मादरचोद हैं, कुछ बहुत ही मादरचोद...

बिचारे कबीर ने वफ़ा की तलाश करते करते कई लुगाइयों को चोद दिया..

दुनिया बहुत बहन की लौड़ी है, जो भावुकता में फंस गया, उसने अपना चैन ही खो दिया, बस चूदाई करो और मस्त रहो!
बाकी कुछ ना धरा इस दुनिया में।
Welcome to story bhai
 
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