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Adultery दिलवाले

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#18

“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा

निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.

मैं- इतना जल्दी

निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.

मैं- हाँ .

निशा- एक बात और कहनी थी

मैं -हाँ

निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए

मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से

निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.

मैं- कहती तो सही हो .

निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.

मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच

निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ

निशा ने मेरे माथे को चूमा.

“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .

मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता

नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .

“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.

मैं- शमा का नसीब है पिघलना

निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.

ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.

“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.

“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .

“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”

“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”

“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”

“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”

मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.

“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा

“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .

मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .

मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.

आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.

“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा

“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.

चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .

मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है

दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.

“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.

“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.

चाचा- तू ऐसे नही मानेगा

चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.

“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा

मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाची ने दुबारा से मारा मुझे

“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा

तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.

“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी

“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा

“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली

निशा- मंजू, चुप रह तू

मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .

“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली

मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.

“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.

निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.

“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............
 

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#18

“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा

निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.

मैं- इतना जल्दी

निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.

मैं- हाँ .

निशा- एक बात और कहनी थी

मैं -हाँ

निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए

मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से

निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.

मैं- कहती तो सही हो .

निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.

मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच

निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ

निशा ने मेरे माथे को चूमा.

“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .

मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता

नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .

“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.

मैं- शमा का नसीब है पिघलना

निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.

ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.

“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.

“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .

“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”

“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”

“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”

“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”

मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.

“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा

“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .

मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .

मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.

आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.

“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा

“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.

चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .

मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है

दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.

“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.

“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.

चाचा- तू ऐसे नही मानेगा

चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.

“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा

मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाची ने दुबारा से मारा मुझे

“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा

तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.

“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी

“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा

“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली

निशा- मंजू, चुप रह तू

मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .

“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली

मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.

“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.

निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.

“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............
बहुत ही अप्रतिम सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सबके सब भावना विहीन हो गये है
जिस बहन को मिलने आया था कबीर वो भी
खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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#17

“पैसे नहीं तो क्या ” पिताजी के सामान को खंगालते हुए मैं बस ये ही सोचता रहा .पिताजी की तमाम किताबे उल्ट-पलट दी पर कुछ नहीं मिला. मैंने कल दिन में जंगल में ही खोजबीन का निर्णय लिया. सुबह सुबह ही मैं शिवाले पहुँच गया . ये कहानी शुरू ही नहीं होती अगर इस शिवाले से प्रेम नहीं होता. जब से होश संभाला था या तो ये था या मैं था ,मेरी भोर यहाँ जल चढाने से शुरू होती मेरी शाम यहाँ माथा टेकने से ख़तम होती, इसने मेरी ख़ुशी भी देखि थी इसने मेरा दर्द भी देखा था . शिवाले की चोखट पर बैठे मैं सामने उस सजे धजे घर को देख रहा था जहाँ दो दिन बाद शादी थी. परिवार के रंडी-रोने साले ख़त्म ही नहीं हो रहे थे , कल रात भाभी को तड़पते देखा पर बहन की लौड़ी वहां रहेगी नहीं. ये किस किस्म का प्यार था इन चुतिया लोगो का की ये साथ भी नहीं रह रहे थे , अलग भी ना हो सके.

सामने से आती निशा को जो देखा , दिल धड़क सा उठा. बरसो पहले उसे ऐसे ही तो देखा था . इसी चोखट पर एक हाथ में लोटा लिए और दुसरे हाथ से जुल्फों को संवारते हुए. सरकारी स्कूल में पढने वाले सब इसी शिवाले में जल चढ़ा कर आगे बढ़ते थे . इस चोखट पर बैठा था मैं . मुस्कुराते हुए निशा अन्दर गयी मैंने दिल को थाम लिया .

“क्या सोचने लगे कबीर ” मेरी पीठ से पीठ लगा कर बैठते हुए पुछा उसने .

मैं- बरसो पहले किसी को यूँ ही देखा था

निशा- देखा क्या था घूर ही रहे थे तुम

मैं- निहार रहा था मैं सरकार

निशा- बड़ी गहरी उतरी तुम्हारी निगाहे दिल में , फिर मैं , मैं नहीं रही .

मैं-कभी कभी सोचता हूँ जिन्दगी तो तभी जी ली मैंने अभी तो बस सांसे चल रही है .

निशा- तो फिर से जिए वो जिन्दगी

मैं- तू साथ है तो जी ही लेंगे.

निशा- कभी कभी मन करता है वो दिन लौट आये , साइकिल उठा कर चल दू उस पगडण्डी पर .

मैं- उसमे क्या है , तू कहे तो चलते है खेतो की तरफ

निशा- वहां से एक रास्ता मेरे घर की तरफ भी जाता है कबीर .

मैं- घर तो घर होता है सरकार, हम चाहे कहीं भी चले जाये हमारे सीनों में घर हमेशा ही रहेगा.

निशा- वक्त आगे बढ़ गया हम वहीँ पर रह गए.

मैं- खेतो पर जाना होगा मुझे, हो सके तो तू दोपहर का खाना लेकर उधर ही आ जाना.

निशा- वहां क्या करेगा तू

मैं- बताया था न तुझे खेतो की हालात ठीक कर रहा हूँ

निशा- ठीक है ,एक बार शहर जाउंगी. फिर खेतो पर आती हु.

थोडा वक्त और उस से बाते करने के बाद मैं खेतो पर आ गया. खेत तो बहाना थे मुझे जंगल में जाना था . बाड को पार करके एक बार फिर मैं झोपडी तक आ पहुंचा था.

“पैसा नहीं तो क्या , पैसा किसे चाहिए था ” इस सवाल ने मुझे पागल किये हुए था. जर, जोरू और जमीन इसके सिवा आखिर क्या हो सकता था . तीनो ही चीजे तो मोजूद थी इस घर की बर्बादी में फिर और क्या बचता था . घूमते घूमते मैं खान की तरफ आ गया , बड़े बड़े पत्थर बिखरे पड़े थे. ख़ामोशी पसरी पड़ी थी. बारिश के मौसम की वजह से उमस बनी पड़ी थी. थोडा सा रास्ता बनाते हुए मैं खान के मुहाने की तरफ चल दिया. पत्थरों और प्रकृति का अद्भुद संगम , झाड़ियो को हटाते हुए मैं मुहाने तक पहुंचा, गहराई के कारण बारिश का पानी जमा हो गया था , उसी के बीच से होते हुए मैं अन्दर की तरफ चला. मार्बल की खुशबु , कुछ सीलन और बरसात का असर . जैसे जैसे मैं अन्दर की तरफ जा रहा था अँधेरा बढ़ने लगा था. पत्थर काटने के औज़ार पड़े देखे मैंने. जब तक की सब कुछ दिखाई देना बंद नहीं हो गया मैं चलता रहा .

“टप टप ” कही से पानी रिस रहा था . खान बहुत ही शांत थी , अक्सर ऐसी जगहों पर शराबी , जुआरी लोग अपना अड्डा बना लेते है पर ये धारणा जम नहीं रही थी जंगल के इस हिस्से में लोगो की आवाजाही ना के बराबर थी . ना ही जंगली जानवरों ने इधर आशियाँ बनाया था जबकि जानवर लोगो को और क्या ही चाहिए. खैर, कब तक रहता उधर , बाहर तो आना ही था.

खेतो पर आकर सोचा की थोड़ी और सफाई कर ली जाए. एक बार फिर गोडी लगाने का काम शुरू कर दिया. ना लायक परिवार की वजह से इतनी उपजाऊ जमीन की माँ चुद गयी थी. दिन ढलने को था निशा शायद भूल ही गयी थी. मैंने ट्रेक्टर छोड़ा और नहाने का सोचा . टीनो के निचे मैंने चारपाई पर अपने कपडे रखे और चला ही था की तभी मेरे पैर में कुछ चुभा. गाली देते हुए मैंने पैर को ऊपर करके देखा तो वो काँटा तो हरगिज नहीं था . बेख्याली में मैंने उस टुकड़े को फेंका , नहा ही रहा था की निशा आ गयी.

“सॉरी, यार. थोडा देर हो गयी, शहर में ज्यादा समय लग गया फिर सोचा तेरी पसंद का कुछ बना लू ” उसने कहा

मैं- तेरी पसंद तो सिर्फ तुम हो सरकार.

निशा- हर टाइम आशिकी ठीक नहीं

मैं- ला परोस दे फिर.

निशा- देख तो ले पहले क्या लाई हु

मैं- दाल चूरमा ही लाइ होगी

निशा- तुझे ना जाने कैसे मालूम हो जाता है हमेशा

मैं- दुनिया में बस दो लोगो के हाथ का चूरमा पसंद रहा है एक तेरा और एक माँ का .

माँ का जिक्र होते ही दिल ने एक आह भरी.

“खेतो का तो हाल बुरा है ” उसने दाल देते हुए कहा.

मैं- इन्ही खेतो में तेरे संग वक्त बिताया था तब क्या था अब क्या हो गया है.

निशा- कोई ना, फिर करेंगे मेहनत .

स्कूल टाइम में निशा इसी रस्ते से आती थी पढने के लिए . कभी खेतो पर मिलते कभी उस चबूतरे पर बैठते. चूरमा अक्सर ही लाती थी वो मेरे लिए.

“भाभी मिली थी आज मुझे ” निशा ने कहा

मैं- क्या बोली

निशा- हाल चाल पूछ रही थी .

मैं- कुछ और नहीं कहा

निशा- पुछा न कबीर कब तक रुकेगा गाँव में

मैं- तुमने क्या कहा

निशा- मैंने कहा पता नहीं उसकी मर्जी है रुके तो रुके ना भी रुके.

मैं- तुम्हे कहना चाहिए था की मिल ले वो मुझसे

निशा- कहा न मैंने. फिर वो टालने लगी. भाभी के हाव भाव अजीब से लगे मुझे

मैं- कैसे

निशा- कबीर, मैं तुम्हारे परिवार में हर किसी को जानती हु. वो भाभी ही थी जिनको सबसे पहले अपने इश्क के बारे में मालूम हुआ . भाभी के व्यवहार में नकलीपन सा लगा मुझे. खोखली बाते

मैं- वक्त बदल गया है

निशा- माना , पर इतना भी नहीं बदला की लोग आँखे चुरा ले कुछ तो हुआ है परिवार में जो मैं नहीं जानती . बताओ कबीर .

मैं- मुझे क्या मालूम

निशा- कबीर पुलिसवाली हु मैं. आदमी यु पहचान लेती हु. और ये तो अपने परिवार की बात है . लोग अक्सर अलग होते है परिवारों में , मैंने बहुत लोगो को देखा है परिवार में लड़ते-झगड़ते हुए बंटवारे के लिए. हिस्सों के लिए पर ये तुम्हारा कैसा परिवार है जो अलग हो गया, एक दुसरे को देखना तक नहीं चाहते और मजे की बात ये है की किसी को कोई लालच नहीं है.


निशा ने मेरी दुखती रग पकड़ ली थी और मेरे पास कोई जवाब नहीं था.........
Mind-blowing update
 

Tiger 786

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“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा

निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.

मैं- इतना जल्दी

निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.

मैं- हाँ .

निशा- एक बात और कहनी थी

मैं -हाँ

निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए

मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से

निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.

मैं- कहती तो सही हो .

निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.

मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच

निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ

निशा ने मेरे माथे को चूमा.

“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .

मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता

नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .

“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.

मैं- शमा का नसीब है पिघलना

निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.

ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.

“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.

“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .

“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”

“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”

“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”

“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”

मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.

“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा

“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .

मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .

मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.

आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.

“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा

“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.

चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .

मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है

दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.

“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.

“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.

चाचा- तू ऐसे नही मानेगा

चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.

“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा

मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाची ने दुबारा से मारा मुझे

“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा

तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.

“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी

“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा

“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली

निशा- मंजू, चुप रह तू

मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .

“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली

मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.

“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.

निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.


“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............
Bohot hi emotional update
 

dhparikh

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#18

“मैं मालूम कर लूँगा इस नफरत की वजह ” मैंने कहा

निशा- बेशक , कल छोटी की शादी निपट जाये तो परसों सुबह मैं वापिस चली जाउंगी.

मैं- इतना जल्दी

निशा- नौकरी भी तो करनी है . उधर जो खड्डे खोद कर आये हो सहज ही नहीं भर जायेंगे. पर मैं जल्दी ही आउंगी और ना आ सकी तो तुम आ जाना.

मैं- हाँ .

निशा- एक बात और कहनी थी

मैं -हाँ

निशा- मंजू अपनी साथी है , सब कुछ होते हुए भी दुःख में ही जीवन है उसका.उसे भी उसके हिस्से का सुख मिलना चाहिए

मैं- हाँ, उसे दूसरी शादी करनी चाहिए . मैं बात करता हु उस से

निशा- मैंने बात की थी पर वो न कहती है. उम्र ऐसे तो नहीं काट सकती वो.

मैं- कहती तो सही हो .

निशा- कबीर, कोशिश करो उसके माँ-बाप भाई-भाभी से सुलह हो जाये तो थोडा सहारा मिले उसे.

मैं- पूरी शिद्दत से कोशिश करूँगा. सबका सोचती है थोडा अपने बारे में भी सोच

निशा- मेरा क्या है , मेरा तो कुछ भी नहीं . एक दिल था वो भी तेरा हुआ

निशा ने मेरे माथे को चूमा.

“तुझे देखती हूँ तो लगता है ऐसा मुझे मेरा जहाँ मिल गया. कमीने, तू जब नहीं था हर आहट मैंने बस तुझे सोचा. ” बोली वो .

मैं- तू इस दिल से कभी गयी ही नहीं तो याद क्या करता

नागन सी लिपट गयी वो . इतना करार , अब तो आदत थी ही नहीं . मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होंठ उसके होंठो से लगा लिया. पहली बूंदों की कीमत सिर्फ प्यासी जमीन ही जानती है .

“बस , वर्ना पिघल जाउंगी मैं ” निशा ने मुझसे दूर होते हुए कहा.

मैं- शमा का नसीब है पिघलना

निशा- परवाने को समझना होगा अभी वो घडी नहीं आई.

ढलती शाम में , खुली हवा में उसका हाथ पकडे नंगे पैर मैं गीली जमीं पर चल रहा था . अल्हड जवानी के दिन सामने आकर खड़े हो गए थे . निशा की महक मुझे राहत दे रही थी . निशा की उंगलिया मेरी उंगलियों में उलझी थी. वापस जाने को कोई इरादा नही था पर रात को करते भी क्या इधर. रात आँखों आँखों में कट गयी . सुबह से ही थोड़ी बेचैनी थी , छोटी का ब्याह था आज. मन में हजार ख्याल . माना की वक्त ख़राब चल रहा था, जमाना बदल रहा था पर कबीर के दिल में आज भी धडकन थी. एक भाई की सबसे बड़ी ख़ुशी बहन को दुल्हन के जोड़े में देखना ही तो होती है. इतनी ख़ुशी का हक़दार तो था मैं. मैं बस एक बार उसे अपने सीने से लगाकर बताना चाहता था की उसका एक भाई और है जो जिन्दा है अभी.

“बात करना से बात बनती है कबीर, एक कदम बढ़ा तो सही कबीर ” निशा की बात मेरे मन में बार बार आ रही थी.

“मेरा क्या है भैया ” छोटी की कही बात याद आ रही थी .

“सब कुछ तेरा मेरी बहन सब कुछ तेरा ”

“मैं जो कहूँगी वो लाकर दोगे न भैया ”

“तू कह तो सही , आसमान झुका देगा तेरा भाई ”

“मुझे तो बस मेरे भाई की छाँव चाहिए ”

मेरे दिल का दर्द बढ़ता जा रहा रहा था . आंसुओ को आस्तीन से पोंछा और चाचा के घर की तरफ चल पड़ा. कदम कांप रहे थे धडकने बेकाबू थी.

“कन्यादान लिखवाना था ” मैंने कहा

“हाँ बताओ कितना लिखू ” लिखने वाले ने बिना मेरी तरफ देखे कहा .

मैं- एक हवेली, बीस एकड़ जमीन . और ये गहने .

मैंने गहनों का बक्सा मेज पर रखा.

आसपास के लोग मेरी तरफ देखने लगे.

“इतना तो हक़ है मेरी बहन का ” मैंने कहा

“हक़ की बात तू तो कर ही मत, और तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी दहलीज पर कदम रखने की ” चाचा ने मेरे पास आते हुए कहा .

मैं- मुझे तुझसे कोई वास्ता नहीं चाचा , मुझे मेरा काम करने दे मैं छोटी को देख लू एक दफा फिर मैं चला जाऊंगा.

चाचा- यहाँ तेरा कोई नहीं इस से पहले की धक्के मार कर बाहर फिंकवा दू लौट जा . मेरी बेटी का ब्याह है तमाशा नहीं चाहता .

मैं-छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाचा- अरे बाहर करो इस गंद को. बारात आने वाली है और भी काम है

दो लड़के आगे बढ़ कर मुझे बाहर धकेलने लगे.

“गाँव छोड़ा है , नाम मिटा नहीं है मेरा हाथ लगाने से पहले सोच लेना. अभी जिन्दा है कबीर ” मैंने कहा तो वो लड़के दूर हो गये.

“और तू बहन के लंड चाचा किस बात का गुरुर है तुझे . अरे माना तेरा गुनेह्गर हूँ , गलती की मैंने पर अकेला मैं तो गुनेह्गर नहीं न. और तू तो हमेशा से ही काले पेट का था . घटिया, नीच किस्म का. बहुत भागो वाली रात है ये , हंसी ख़ुशी की रात है मुझे सिर्फ छोटी से मिलने दे इतनी चाहत है मेरी. ” मैंने गुस्से से कहा.

चाचा- तू ऐसे नही मानेगा

चाचा मुझे मारने को आगे बढ़ा , मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“बचपन में तेरी मार खा ली, वो दौर और था .तुझे नफरत देखनी है न तेरी इच्छा कर दूंगा पूरी. पर आज नहीं . तू तो क्या पुरे गाँव की गांड में इतना दम नहीं की मुझे रोक सके ”मैंने चाचा को धक्का दिया और घर के अन्दर की तरफ बढ़ चला. दरवाजे तक पहुंचा ही था की एक थप्पड़ मेरे गाल को सुजा गया. सामने गुस्से से तमतमाती चाची खड़ी थी.

“इससे पहले की कुछ उल्टा-सीधा हो जाये चला जा यहाँ से ” चाची ने गुस्से से कहा

मैं- छोटी से मिले बिना तो नहीं जाऊंगा.

चाची ने दुबारा से मारा मुझे

“हमारे मेहमान आये हुए है , तमाशा मत कर पहले क्या कम तमाशा हुआ है बेटी का ब्याह है राजी ख़ुशी होने दे ” चाची ने झुंझलाते हुए कहा

तभी अन्दर से निशा और मंजू आ गयी.

“कबीर , तू मेरे साथ आ ” निशा ने मेरी बाह पकड़ी

“बस एक बार बहन को देख लू फिर चला जाऊंगा , तेरी कसम चला जाऊंगा ” मैंने निशा से कहा

“यहाँ कोई तेरी बहन नहीं है कबीर ,यहाँ बस मुखोटे है , लालच के , स्वार्थ के ” मंजू बोली

निशा- मंजू, चुप रह तू

मंजू- नहीं निशा आज बोलने दे . कबीर जिन रिश्तो की तू बाट देख रहा है मर गए है वो रिश्ते . छोटी अब इतनी बड़ी ह गयी है की उसकी आँखे देख नहीं पा रही की वो क्या खो रही है .

“कबीर तू चल न मत सुन इसकी ” निशा बोली

मैं- ठीक ही तो कहती है मंजू. दोष मेरा ही है, ज़माने के दस्तूर को समझ नहीं पाया. अरे कल तक जिनकी जुबान मेरा नाम लेते नहीं थकती थी आज साले चोर हो गए. ज़माने को जीतने की हिम्मत इन सालो ने तोड़ दी. मैं ही पागल था जो लौट आया . इसलिए मैं इस गाँव से इस घर से दूर था , निशा घर तो बचा ही नहीं .अरे बहन-भाई चाहे कितने बड़े बन जाये. बड़े अफसर बन जाये पर बड़े भाई के लिए तो बच्चे ही रहते है . मेरी ऊँगली पकड़ कर जिस बहन ने चलना सीखा. जो कभी कहती थी की भाई की छाया बनूँगी आज मुह छिपा कर बैठी है. बेशक मुह मोड़ ले, कबीर को क्या फर्क पड़ेगा , इतने रिश्ते छुट गए एक और सही . अपमान का मोह नहीं मुझे , ये मेरा हक़ था की अपनी बहन के सर पर हाथ रखु, पर तेरी बदनसीबी बहन , मैं तो फिर भी यही कहूँगा की खुश रहे, आबाद रहे. अच्छा हुआ माँ-पिताजी पहले ही मर गए नहीं तो आज मर जाते.

“निशा , इसे लेजा यहाँ से , बारात द्वार पर आने वाली है ले जा इसे ” चाची ने फुफकारते हुए कहा.

निशा की पकड़ मेरी बाजु पर और मजबूत हो गयी . हम टेंट से निकल ही रहे थे की मेरी नजर सामने से आती बारात पर पड़ी.


“एक मिनट बस ” मैं घोड़ी के पास गया और जेब से गड्डी निकाल कर दुल्हे पर वार दी. “मेरी बहन को सदा खुश रखना ” मैंने बस इतना कहा और कदम अँधेरे की तरफ बढ़ा दिए..............
Nice update....
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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भाभी जी भी कबीर के साथ मस्ती करती थी अतीत में....


भाभी ने ही मारा... ऐसे कैसे हो गया....



भाभी चाची ताई..निशा मंजू..... और कोन कोन है जिसने बेचारे कबीर का यौन शोषण किया हैं???🤣🤣🤣🤣



बहुत ही सुंदर updates....


Wait for next update
कबीर का अतीत क्या था कबीर क्या छुपाये हुए है ये जब जानोगे तो सोचने पर मजबूर हो जाओगे
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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आखिर इस कहानी की सूत्रधार.... भाभी सामने आ ही गई
मुझे बहुत इन्तज़ार था .... फौजी की तरह ही :D
अभी तो सामने ही आयी है आगे देखो क्या जलवे रहते हैं
 
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