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Fantasy छुपे रिश्तों की सरगर्मियाँ

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माँ: आशा
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बेटा: रवि
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बेटे का दोस्त: पिंटू

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Update 1 Introduction
🔷 1. आशा (Asha) – माँ, लेकिन एक अधूरी औरत भी

उम्र: 39 वर्ष

स्थिति: विधवा

रहती हैं: दिल्ली के एक पुराने लेकिन साफ-सुथरे मोहल्ले में

व्यक्तित्व: शांत, सहनशील, ममतामयी लेकिन भीतर से अकेली और संवेदनशील

आशा ने अपने पति की मृत्यु के बाद अकेले ही अपने बेटे की परवरिश की है। समाज के लिए वो एक आदर्श माँ है, लेकिन उसकी अंदरूनी इच्छाएँ और भावनाएँ वर्षों से दबकर रह गई हैं। वह एक वफादार पत्नी थी, लेकिन पति के जाने के बाद वह एक औरत के रूप में भूख महसूस करने लगी — भावनात्मक और शारीरिक दोनों रूपों में।

कहानी में भूमिका:
आशा सिर्फ एक माँ नहीं, एक ऐसी औरत है जो अब रिश्तों की बंदिशों से परे जाकर जीवन, प्यार और स्पर्श को महसूस करना चाहती है। वह सबसे जटिल किरदार है — समाज, मातृत्व और अपनी औरत होने की पहचान के बीच झूलती हुई।



🔷 2. रवि (Ravi) – वफादार बेटा,

उम्र: 21 वर्ष

स्थिति: कॉलेज स्टूडेंट + पार्ट-टाइम नौकरी

व्यक्तित्व: समझदार, मेहनती, माँ का आदर करने वाला

रवि अपने पिता को बचपन में ही खो चुका है। उसने अपनी माँ को कभी दूसरी शादी या किसी और रिश्ते में नहीं देखा, इसलिए उसके लिए माँ एक आदर्श, त्याग की मूर्ति है।


🔷 3. पिंटू (Pintu) – दोस्त, प्रेमी और एक अमीर पर अकेला लड़का

उम्र: 22 वर्ष

स्थिति: रवि का करीबी कॉलेज फ्रेंड

पारिवारिक स्थिति: अमीर घर का इकलौता बेटा, लेकिन भावनात्मक रूप से उपेक्षित

व्यक्तित्व: आत्मविश्वासी, चतुर, बोलने में आकर्षक, और देखने में स्मार्ट

पिंटू के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। उसके पापा एक बड़े बिज़नेसमैन हैं, लेकिन घर में उसे सिर्फ चीज़ें मिलीं — प्यार और अपनापन नहीं।
 

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Update-2

दिल्ली की उस शांत दोपहर में जब सारी गलियों में सन्नाटा पसरा था, एक पुरानी सी इमारत के दूसरे माले पर हल्की सी खिड़की खुली हुई थी। उस खिड़की से सफेद परदा लहराता हुआ कभी अंदर आता, कभी बाहर जाता। यही खिड़की थी आशा के कमरे की — और शायद यही एक रास्ता था उसकी दुनिया में झाँकने का।

आशा 39 वर्ष की थी — एक साधारण लेकिन बेहद आत्मसम्मान से भरी औरत। विधवा होने के बाद उसने अपने बेटे रवि को अकेले ही पाल-पोस कर बड़ा किया था। पति के गुजरने के बाद उसने ना किसी से नज़दीकी बढ़ाई, ना कोई सहारा ढूँढा। वो जानती थी कि ज़िंदगी सिर्फ जिम्मेदारी होती है, अगर आप माँ हैं — और विधवा भी।

रवि उसका बेटा, अब 21 साल का हो गया था। कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ वो पार्ट-टाइम जॉब भी करता था ताकि माँ पर बोझ ना पड़े। रवि अपनी माँ की इज्जत करता था — लेकिन शायद कभी उसकी अकेलेपन की गहराई को समझ नहीं पाया था।

उस रोज़ दोपहर में रवि घर आया और चाय पीते हुए बोला,
"माँ, एक बात कहनी थी। मेरा दोस्त है, पिंटू… बहुत अच्छा लड़का है। उसके घर में पेंटिंग वगैरह का काम चल रहा है, तो दो हफ्ते हमारे साथ रह सकता है क्या?"

आशा ने चाय की प्याली रखते हुए पूछा, "कितने दिन?"

"बस दस-बारह दिन। बहुत शरीफ लड़का है माँ, आपसे बद्तमीज़ी नहीं करेगा। और वैसे भी आप दिन भर अकेली रहती हैं, थोड़ा रौनक हो जाएगा।"

आशा ने हल्के मुस्कान के साथ सिर हिलाया। वो रौनक नहीं चाहती थी, लेकिन बेटे की बात में सच्चाई थी। पिछले कई सालों से उसका जीवन सिरे से खाली चल रहा था। एक और शख्स का होना शायद थोड़ी हलचल लेकर आए।


---

तीन दिन बाद

डोरबेल बजी तो आशा ने दरवाज़ा खोला। सामने जो खड़ा था, वह उसकी कल्पना से अलग था। लंबा, छरहरा, गोरा, करीने से कटे बाल, गहरे भूरे रंग की टी-शर्ट, और हल्की मुस्कान — पिंटू था।

"नमस्ते आंटी," उसने झुककर कहा और बैग ज़मीन पर रखा।

आशा थोड़ी देर तक देखती रह गई। उसकी आँखों में शराफत थी, लेकिन कहीं गहराई में एक तेज़ी भी।

"आओ बेटा, अंदर आओ," आशा ने कहा।

पिंटू ने आगे बढ़कर उसके पैर छुए। आशा को थोड़ी झिझक हुई। अब कई वर्षों से किसी ने उसके पैर नहीं छुए थे। उसकी आंखों में अचानक एक पुरानी छुअन की याद लौट आई — जिसे उसने भुला दिया था।

रवि पीछे से आ गया, "आ गया मेरा भाई! माँ, ये पिंटू है… और पिंटू, ये मेरी सुपरवुमन माँ।"

तीनों ने हँसते हुए बातचीत की। आशा ने खाना परोसा, और पिंटू ने हर चीज़ की तारीफ की — खाना, सफाई, घर की सादगी।

"आपका घर बहुत प्यारा है आंटी… और आप…" पिंटू कुछ कहते-कहते रुक गया।

"क्या?" आशा ने मुस्कराकर पूछा।

"आप भी बहुत प्यारी हैं।"

आशा को जैसे किसी ने अंदर से छुआ हो। उसने तुरंत निगाहें फेर लीं।


---

अगले दो दिन

पिंटू ने खुद को घर में बहुत सहज बना लिया था। वो आशा की छोटी-छोटी बातों को नोटिस करता — जैसे उसकी चाय बनाते वक्त आँखों का झुकना, या कपड़े सुखाते समय पसीने की बूँदें। रवि तो रोज़ कॉलेज और काम में लगा रहता था, लेकिन पिंटू… वो अब आशा की मौजूदगी को महसूस करने लगा था।

एक दोपहर जब आशा लॉन में कपड़े सुखा रही थी, पिंटू उसके पास आ गया।

"आंटी, आपकी तबीयत ठीक है?"

"हाँ बेटा, बस थोड़ी गर्मी लग रही है।"

"तो आप बैठिए, मैं ये कपड़े टांग देता हूँ।"

"नहीं, रहने दो," आशा ने कहा, लेकिन पिंटू ने झुककर टोकनी उठा ली। जब उसने कपड़े टांगते हुए उसकी साड़ी के पल्लू से निकली महक को महसूस किया, तो उसकी नज़रें कुछ पल के लिए टिकी रह गईं।

आशा ने देखा, तो तुरंत नजरें चुराईं। लेकिन कुछ देर बाद वो खुद सोचने
लगी — क्या उस लड़के की नज़र में सिर्फ सम्मान है… या कुछ और?
पिंटू को इस घर में रहते अभी तीन दिन ही हुए थे, लेकिन वह जैसे वर्षों से इस माहौल का हिस्सा हो। रवि दिनभर कॉलेज और जॉब के बीच उलझा रहता, और ऐसे में आशा और पिंटू के बीच संवाद धीरे-धीरे गहराने लगा।

पिंटू बातों में बहुत सहज था। उसका आत्मविश्वास, उसकी मुस्कराहट, और सबसे अहम — उसकी नजरें। वो हर बात को गौर से सुनता, और बीच-बीच में ऐसे देखता मानो सामने वाले के मन की बात पढ़ रहा हो।

आशा के लिए यह सब नया था। इतनी उम्र में किसी का ध्यान, किसी की दिलचस्पी, और वो भी इतने सम्मान के साथ — यह उसे अंदर से हिला देता था।


---

एक शाम की बात है।

आशा ड्राइंग रूम की खिड़की के पास बैठी थी। हल्की धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी। उस
ने आज हलका नीला सूती सलवार-सूट पहना था। बाल खुले हुए थे। उसकी आंखों में एक थकावट थी, लेकिन साथ में एक अजीब सी शांति भी।
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पिंटू ने जैसे ही उसे देखा, वो बिना कुछ कहे पास आ गया।

"थकी लग रही हैं आप," उसने कहा।

"हां… शायद ज़िंदगी अब आदत बन चुकी है," आशा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

"आदतें इंसान को खोखला बना देती हैं, आंटी। उन्हें कभी-कभी तोड़ना चाहिए।"

आशा ने उसकी ओर देखा। पहली बार उसकी आंखें टिक गईं — पिंटू की आंखों में सिर्फ बात नहीं, एक मौन आमंत्रण था।

"तुम्हें बहुत बातें करना आता है," उसने धीमे से कहा।

"और सुनना भी," पिंटू मुस्कराया।


---

अगली सुबह

आशा रसोई में थी, चाय बना रही थी। पिंटू पीछे से आया।

"मैं आपकी मदद करूं?" उसने पूछा।

"नहीं, सब हो गया है।" आशा ने बिना पीछे देखे कहा।

लेकिन जब वो मुड़ी, तो उसका पल्लू अचानक पिंटू के हाथ से टकरा गया। एक क्षण के लिए दोनों एक-दूसरे के बेहद करीब आ गए। इतना करीब कि एक-दूसरे की सांसें महसूस होने लगीं।

आशा ने घबरा कर खुद को पीछे किया, "सॉरी…"

"नहीं, मुझे माफ कीजिए। मैं… बस…"

वो रुक गया।

दोनों ने महसूस किया — कुछ ऐसा घटा जो शब्दों से परे था।


---

उस दिन दोपहर

रवि ने फोन किया कि उसे प्रोजेक्ट के सिलसिले में बाहर ही रुकना पड़ेगा। आशा ने जैसे ही फोन काटा, उसे एक हल्की चिंता हुई… लेकिन कहीं न कहीं मन में एक बेचैनी भी थी — एक अजीब सी उम्मीद, जो खुद से डराती भी थी।

शाम होते ही पिंटू ने आशा से पूछा, "आज कुछ खास बनाएं खाने में?"

"तुम्हें क्या पसंद है?" आशा ने पहली बार सवाल किया।

"आप जो बनाएं, वही मेरी पसंद बन जाती है," पिंटू की नजरें बहुत कुछ कह रही थीं।

रात का खाना साथ खाया गया — हल्का-फुल्का हँसी-मज़ाक, लेकिन उस सबके पीछे एक अलिखित तनाव था, जो दोनों को एक-दूसरे की तरफ खींच रहा था।


---

रात — अकेली खामोशी

आशा अपने कमरे में आई तो खिड़की से हवा के साथ पत्तों की आवाज़ आ रही थी। वो बिस्तर पर बैठी ही थी कि दरवाज़ा धीरे से खटका।

वो चौकी, लेकिन डर नहीं था — बस तेज़ धड़कन थी।

पिंटू बाहर खड़ा था, हाथ में एक ट्रे — उसमें चाय के दो कप थे।

"मैंने सोचा… आप अकेली होंगी… तो चाय पी लें साथ में…"

आशा कुछ पल उसे देखती रही, फिर दरवाज़ा खोल दिया।

वो दोनों बिस्तर के किनारे बैठकर चाय पीने लगे। कुछ देर तक सिर्फ खामोशी थी।

फिर पिंटू ने कहा, "कभी-कभी कोई बात किए बिना ही बहुत कुछ कह जाता है… जैसे अभी…"

आशा
ने उसकी तरफ देखा… और फिर पहली बार कुछ नहीं कहा।

उसकी चुप्पी ही उसकी स्वीकृति थी।
 
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Update 3

रात धीरे-धीरे गहराती जा रही थी। बाहर हवा तेज़ थी, लेकिन कमरे में एक अजीब सी गरमाहट थी। आशा और पिंटू दोनों बिस्तर के किनारे बैठे चाय पी रहे थे। शब्द कम हो चुके थे, लेकिन आँखों का संवाद गहराता जा रहा था।

चाय की प्याली रखकर आशा उठने लगी, तो पिंटू ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया।

"रुकिए…" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन गूंजती हुई लगी।

आशा ने पलटकर उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में कोई ज़बरदस्ती नहीं थी — सिर्फ एक खामोश जिद, जिसे उसने सालों से महसूस नहीं किया था।

"आपको अच्छा लगता है न… जब मैं पास होता हूँ?" पिंटू ने पूछा।

आशा के चेहरे पर हल्की लाली दौड़ गई। उसने नज़रें फेर लीं।

"मैं कुछ नहीं कह रहा, बस ये महसूस कर रहा हूँ कि... आप अकेली नहीं हैं। मैं हूँ।"

वो धीरे-धीरे उसके और करीब आ गया। आशा की साँसें अब नियंत्रित नहीं थीं। इतने वर्षों की स्थिरता एक ही क्षण में डगमगाने लगी थी।

"पिंटू… ये… गलत है…" उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।

"अगर इतना गलत होता… तो इतना सही क्यों लगता है?" पिंटू ने धीरे से उसके चेहरे को छुआ।

आशा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वो प्रतिरोध करना चाहती थी, लेकिन अंदर कहीं कोई दरवाज़ा पहले ही खुल चुका था।


पिंटू ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर धीरे से चूमा — माथे पर, फिर गालों पर। आशा की साँसें तेज़ थीं, शरीर हल्का कांप रहा था। उसने अपनी आंखें नहीं खोलीं।

उसने पहली बार उस शरीर को महसूस किया, जिसे उसने केवल ज़िम्मेदारियों और त्याग में खो दिया था। अब वो सिर्फ "माँ" नहीं थी, वो एक औरत थी — चाही गई, महसूस की गई।

पिंटू ने उसके कंधों को सहलाया, उसके बालों को चूमा, और उसे खुद की बाँहों में कसकर भर लिया।
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उस पल में, दोनों ने कुछ नहीं कहा — लेकिन बहुत कुछ हो गया था।


---

आशा ने धीरे से खुद को अलग किया, लेकिन विरोध नहीं किया। उसकी आँखों में आँसू थे — मगर कोई पश्चाताप नहीं। शायद सुकून था, या फिर अपने खोए हुए स्त्रीत्व की वापसी का एहसास।

"मुझे अकेले रहने की आदत हो गई थी…" उसने फुसफुसाकर कहा।

"अब आदत बदल जाएगी," पिंटू ने उसके हाथ पर अपने होंठ रख दिए।


अगली सुबह:

आशा उठते ही सबसे पहले आईने में खुद को देखती है। उसके गालों पर हल्की लाली है, आंखों में चमक, और होंठों पर अनकही मुस्कान।

नीचे से पिंटू की आवाज़ आती है, "गुड मॉर्निंग, आशा जी…"

वो चौंकती है

"आंटी" का नाम बदल चुका था — और वो बदलाव बहुत कुछ कह गया।


उस दिन रवि ने घर आने से पहले ही फोन कर दिया,
“माँ, आज मैं हॉस्टल में ही रुक जाऊँगा। ग्रुप प्रोजेक्ट सबमिट करना है।”

आशा ने सहजता से कहा, “ठीक है बेटा, ध्यान रखना।”

फोन रखते ही घर की दीवारों ने कुछ और ही कहानियाँ बुननी शुरू कर दीं। आशा ने अपने भीतर उठती हलचल को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, लेकिन दिल अब उसकी नहीं सुनता था।

पिंटू किचन में आ गया, "आशा जी, आज मैं खाना बनाऊं आपके लिए?"

"क्या बनाएंगे आप?"

"जो आपकी आंखें कहें…"

आशा मुस्करा दी। उसकी हँसी अब खुलने लगी थी, जैसे कोई टूटी खिड़की के पीछे से हवा चलने लगी हो।

रात को दोनों ने एक साथ डिनर किया — हँसी, चुप्पियाँ, और वो नज़रें जो अब रोकने की कोशिश नहीं कर रही थीं।


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रात 11:30 बजे

आशा अपने कमरे में थी। गाउन पहन रखा था, बाल खुले थे। खिड़की से आती चांदनी उसके चेहरे पर गिर रही थी। वो किताब पढ़ने का दिखावा कर रही थी, लेकिन ध्यान हर आवाज़ पर जा रहा था — पिंटू के क़दमों की आहट, उसकी हरकतों की छाया।

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दरवाज़ा खटका।

आशा ने धीरे से खोला। सामने पिंटू खड़ा था — हाथ में कुछ नहीं, बस उसकी आँखों में एक विनम्र पर गहरा सवाल था।

"मैं अंदर आ जाऊँ?"

आशा ने नज़रें झुका लीं। कुछ नहीं कहा, बस एक कदम पीछे हट गई।

पिंटू अंदर आ गया। कमरे में सन्नाटा था। सिर्फ खिड़की से आती धीमी हवा, और उनकी तेज़ होती धड़कनों की आवाज़ थी।

"आज मैं आपको महसूस करना चाहता हूँ… पूरी तरह," पिंटू ने धीरे से कहा।

आशा ने उसका चेहरा देखा — उसमें कोई फुहरापन नहीं था, सिर्फ गहराई, समझ और सच्चाई थी।

पिंटू ने आशा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया, और होंठों को चूमा — आशा की आंखें बंद हो गई हैं और आशा ने भी पिंटू के होठों को चूमना शुरू कर दिया


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मौका अच्छा देखकर पिंटू ने आशा को गाउन से अलग कर दिया अब आशा पिंटू के सामने एक खिली हुई औरत लग रही थी वो इस समय को गवाना नहीं चाहता था लेकिन वो जल्दीबाजी में कुछ ऐसा नहीं करना चाहता था कि ये आशा हाथ से निकल जाए दोनों आप चादर में लिपट चुके थे ना अब उनके शरीर पर कोई कपड़ा था दोनों के शरीर एक हो चुके थे बस ऊपर से एक चादर थी अंदर दोनों के शरीर आपस में लिपट चुके थे
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अब दोनों के बीच से हवा भी पास नहीं हो सकती थी

आशा की साँसें बंध गईं। वो उसकी बाँहों में समा गई।
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पलंग की चादरें सरकने लगीं, कपड़े धीरे-धीरे हटते गए। आशा ने कोई विरोध नहीं किया — बरसों से उसके भीतर जो इच्छा दबी थी, आज वो बाहर आ रही थी।
पिंटू अब समझ चुका था अब इसे चोदना ही सही रहेगा और अब ये मना भी नहीं करेगी अब मैं इसे अपने हिसाब से अच्छे से चोदूंगा पूरी रात है अपने पास रवि तो रात आने वाला नहीं है आशा को और गरम करने के लिए पिंटू उसके बूब्स को दोनो हाथ से दबोच कर चूसने लगा जिसका आशा को कोई अंदाजा नहीं था
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अब न ही पिंटू को इस बात की टेंशन थी कि रवि उसका दोस्त है और न ही इस समय आशा ये सोच रही थी कि पिंटू उसके बेटे का दोस्त है पिंटू ने बूब्स चूसते हुए आशा की चूत में उंगली अंदर बाहर करने लगा और आशा पूरी गरम हो चुकी थी इस समय उसकी हालत ऐसी थी कि अगर पिंटू अपना लं ड उसकी चूत मे उतार दे तो मना नहीं करेगी


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आशा अब पिंटू का पूरा साथ देने लगी गांड़ ऊपर नीचे करके पूरा साथ देने लगी इससे पिंटू को विश्वास हो गया कि अब ये पूरा कंट्रोल में है और फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा के मुंह के सामने कर दिया और देखने लगा कि आशा अब क्या करती है

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पिंटू का विशाल ल.ड देखकर आशा सोच में पड़ गई क्योंकि अब उसकी बारी थी पिंटू ने अपना काम कर दिया था वो ये समझ चुकी थी कि आज की रात उसके लिये बहुत ही हसीन रात है आज की रात उसके लाइफ बदल देगी बहुत कुछ सोचने के बाद आशा ने उसे अपने हाथ में लेने को सोचा पर पिंटू के ल.ड की हालत ऐसी हो गई थी कि पूरी नशे टाइट हो गई थी और टाइट था पूराजैसे ही आशा ने उसे हाथ में लिया गोली की तरह फब्बारा निकला

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अब पिंटू समझ गया कि आशा उसकी हुई और आशा ने उसे अपने दिल में जगह दे दी पानी निकलने के थोड़ा टाइम के बाद लंद थोड़ा ढीला हो गया उसके बाद पिंटू ने आशा से अब कुछ पूछना उचित नहीं समझा और अपना लण्ङ धीरे से आशा के मुंह मे दे दिया
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और आशा पूरी लग्न और शिद्दत से पिंटू का लण्ङ चूस रही थी इस तरह उसने 20 मिनट तक बहुत ही अच्छे से पिंटू का लंद चूसा और अब पिंटू भी उसे सरप्राइज़ देने वाला था उसने अपना लण्ङ आशा के मुंह से निकला और आशा के बेड पे लिटा कर उसकी चूत चूसने लगा इस झटके के लिए आशा तैयार नहीं थी उसकी चूत के रस ने पिंटू को पागल कर दिया और वो पागलों की तरह चूस रहा था
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और फिर धीरे धीरे रात को 2 बज गए बस सुबह होने में कुछ ही घंटे बाकी थ पिंटू ने लगभग 25 मिनट चूसा और फिर आशा ने पानी छोड़ दिया उसके बॉडी से 10 % गर्मी बाहर निकल गई थी और पिंटू के बडी से भी 10% गर्मी बाहर आ चुकी थी दोनो के अंदर बराबर गर्मी थी अब इस गर्मी को दोनो का मिलन ही बाहर ला सकता था इस सब m 3 बज गए पूरे 3 घंटे थे दोनो के पास क्योंकि शायद अगली सुबह रवि घर वापस आ सकता था
फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा की चूत पर रख दिया और जैसे ही आशा को महसूस हुआ उसकी आंख खुल गईं वो समझ गई की अब क्या होगा पिंटू भी देखना चाहता था कि आशा कुछ बोलती है या नहीं आशा ने कुछ नहीं बोला तो पिंटू ने उसकी सहमति समझी चूत पुरी तरह से गीली थी तो पिंटू ने अपना होठ आशा के होठ पर रखा और लण्ङ का टोपा चूत पर सेट किया आशा की तो सांस ही अटक गईं उसको जरा भी अंदाजा नहीं था पिंटू क्या करने वाला है पिंटू ने आशा का मुंह अपने मुंह से सटाकर सिल कर दिया चूत इतनी ज्यादा गीली थी कि लण्ङ का टोपा अंदर करते ही पूरा 8 इंच का लण्ङ एक ही बार आराम से अंदर घुस गया

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हल्का दर्द हुआ और फिर आराम की सांस ली लेकिन अभी असली जंग तो बाकी था पिंटू का 8 इंच का लण्ङ उसकी चूत की हालत कैसी करने वाला है ये तो उसको अंदाजा ही नहीं है
पिंटू : आशा मैं जब से तुम्हें देखा है मैं तब से तुम्हारे करीब आना चाहता था लेकिन मेरा दोस्त रवि हमारे बीच की दीवार बन रहा था
आशा : मैं भी तुम्हारे करीब आना चाहती थी लेकिन समाज और बेटे की डर की वजह से मैं कुछ बोल नहीं पाई
पिंटू: कोई बात नहीं आशा जब जागो तब सवेरा हमारे लिए तो रात ही अच्छी है
पिंटू आशा पर पूरा कंट्रोल पाकर आशा को डॉगी पोजीशन मे होने का इशारा दिया क्योंकि अब आशा की हालत खराब होने वाली थी आशा डॉगी पोजीशन मे हो गई और फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा की चूत में उतार दिया और अपना लण्ङ आराम से अंदर बाहर करने लगा आशा पूरा मजा लेने लगी
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फिर पिंटू ने आशा के बाल अपने हाथमें पकड़ लिए और लण्ङ की गति बढ़ा दी और लण्ङ फटाफट चूत मे अंदर बाहर होने लगा और आशा चीखने लगी पर पिंटू ने उस पर कोई रहम नहीं क्योंकि वो जानता था थोड़े टाइम के बाद ये दर्द कम हो जाएगा और ये खुद मजे से चुदेगी

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20 मिनट दर्द भरी चूदाई के बाद आशा को धीरे धीरे मजा आने लगा और फिर दोनो ने एक दूसरे का साथ दिया और अच्छे से चूदाई का आनंद लिया
मानो ऐसा लग रहा हो जैसे रात भी इस सीन को देखने के लिए रुक गई हो दोनो एक दूसरे का पूरा साथ दे रहे थे
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और अलग अलग पोजीशन में पूरी रात चूदाई की और फिर दोनो एक साथ झड़ गए दोनो ने बहुत तेज चीख निकाली
पिंटू: आशा में आने वाला हु
आशा: पिंटू मैं भी आने वाली हूं आह अह अह अह यस
पिंटू आशा की चूत में अपना सारा पानी निकाल दिया लेकिन पानी बाहर नहीं आया क्योंकि चूत पूरा लण्ङ से पैक थी और साथ ही आशा भी झड़ चुकी थी लेकिन दोनो में से किसी का एक बूंद भी पानी नीचे नहीं गिरा जैसा ही पिंटू ने चूत में से अपना लण्ङ निकाला सारा पानी जो चूत में था प्रेशर के साथ बाहर आ गया

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दोनों की गर्मी शांत हो गईं थी और दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गए


उसकी पीठ पर पिंटू की उंगलियाँ फिसलीं, होठों ने गर्दन का रास्ता छुआ, और फिर दोनों के जिस्म एक हो गए — गर्म साँसों, गहरी सिसकियों, और उन खामोशियों के साथ जिनमें सब कुछ कह दिया गया था।

उनके बीच अब कोई नाम नहीं था — न माँ, न दोस्त का बेटा — बस दो शरीर थे, दो अधूरी आत्माएँ… जो एक हो रही थीं। की

सुबह

सूरज की किरणें खिड़की से भीतर आ चुकी थीं। आशा अभी तक जग नहीं पाई थी। पिंटू उसकी पीठ को हल्के से सहला रहा था, और मुस्करा रहा था।



"आप अब सिर्फ रवि की माँ नहीं हो… अब आप मेरी भी हैं।"



आशा ने आँखें खोलीं, और बिना कुछ कहे उसकी छाती पर सिर रख दिया
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सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से फर्श पर उतर रही थी। बिस्तर अभी भी बिखरा था — तकिए एक तरफ गिरे हुए, चादर आधी लिपटी हुई। आशा आँखें बंद किए लेटी थी, जबकि पिंटू उसके पास बैठा धीरे-धीरे उसके बालों में उंगलियाँ फेर रहा था।

"आपको अच्छा लगा?" पिंटू ने धीरे से पूछा।

आशा ने आँखें खोले बिना सिर हिलाया।

"मैं डर रही हूँ," उसने फुसफुसाया।

"किससे?"

"खुद से। इस उम्र में… इस रिश्ते में… रवि से… समाज से…"

पिंटू ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया। "मुझे फर्क नहीं पड़ता दुनिया क्या कहेगी। आपने मुझे अपनाया, यही काफी है।"


---

थोड़ी देर बाद आशा उठी। उसने खुद को आईने में देखा। उसका चेहरा शांत था, लेकिन आंखों में भावों का तूफ़ान साफ दिखता था।

उसने गाउन पहना, बाल बाँधे और जल्दी से बिस्तर ठीक करने लगी — जैसे हर निशान मिटा देना चाहती हो।

पिंटू मुस्करा रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की चिंता भी थी। "आप ऐसे क्यों कर रही हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं?"

"क्योंकि कुछ हुआ… जो किसी को पता नहीं चलना चाहिए।"

"मुझे शर्मिंदा मत करिए, आशा जी," पिंटू ने नर्म आवाज़ में कहा।

"मैं शर्मिंदा नहीं हूँ… सिर्फ डरी हुई हूँ।"


---

उसी समय दरवाज़े की घंटी बजी।

आशा जैसे चौंक गई। उसने दरवाज़े की ओर देखा, और एक सेकंड में समझ गई — रवि लौट आया है।

"तुम जल्दी अपने कमरे में जाओ," उसने फुसफुसाकर कहा।

पिंटू जल्दी से उठकर कमरे से निकल गया। आशा ने खुद को संयमित किया, चेहरे पर हल्की मुस्कान लाई और दरवाज़ा खोला।

"रवि!" आशा बोली, "तू तो कल रात रुकने वाला था न?"

"हाँ माँ, पर काम जल्दी खत्म हो गया, तो सोचा सरप्राइज दूँ।"

आशा मुस्करा दी, लेकिन उसका दिल बहुत तेज़ धड़क रहा था।


---

किचन में

रवि फ्रेश हो गया था और चाय पी रहा था। पिंटू भी वहीं आ गया — अब पूरी तरह सामान्य बने हुए।

"कैसा रहा प्रोजेक्ट?" पिंटू ने पूछा।

"ठीक था, थोड़ा थक गया हूँ बस," रवि बोला, फिर माँ की तरफ देखा, "माँ, तू कुछ बुझी-बुझी लग रही है, ठीक हो?"

आशा थोड़ा चौंकी। "नहीं… नहीं, बस नींद पूरी नहीं हुई शायद।"

रवि ने हल्के शक से माँ को देखा, लेकिन कुछ नहीं बोला।


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दोपहर

रवि अपने कमरे में आराम कर रहा था। पिंटू और आशा की नज़रें फिर मिलीं, लेकिन अब बीच में एक दीवार थी — रवि की मौजूदगी।

पिंटू ने धीरे से पूछा, "अब क्या होगा?"

"अब कुछ भी आसान नहीं है," आशा ने गंभीरता से कहा।

"पर मैं पीछे नहीं हटूँगा," पिंटू ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, लेकिन आशा ने धीरे से पीछे खींच लिया।

"जब रवि घर में हो, तब हम सिर्फ वही रहेंगे जो दुनिया समझती है।"

"और जब वो ना हो?"

आशा कुछ नहीं बोली। उसकी आँखों में फिर से वही चुप स्वीकृति थी।
रवि घर में था, लेकिन अब उसका व्यवहार थोड़ा अलग लगने लगा था। वो अपनी माँ की आँखों में कुछ ढूँढने लगा था — कुछ जो पहले कभी नहीं था। और शायद, माँ की निगाहें भी अब उससे खुलकर नहीं मिलती थीं।

रात का समय था। आशा रसोई में थी और पिंटू उसके पास आ गया।

"आज रवि को क्या हुआ है?" उसने धीरे से पूछा।

"मुझे भी अजीब लगा है… शायद कुछ महसूस कर लिया है," आशा ने बर्तनों को धोते हुए जवाब दिया।

"तो क्या हम अब बात भी नहीं कर सकते?" पिंटू ने हल्का कटाक्ष किया।

"नज़रें बहुत कुछ कह देती हैं, पिंटू। हम दोनों अब चुप भी रहें तो भी ये रिश्ता छुप नहीं सकता…"

पिंटू खामोश हो गया। आशा ने उसकी तरफ देखा — उसका चेहरा अब शांत नहीं था। वो चाह रहा था, माँग रहा था, लेकिन खुद को रोक रहा था।

"जब रवि सो जाएगा… मैं छत पर आऊँगा," पिंटू ने कहा।

आशा कुछ नहीं बोली। उसकी आँखों में हाँ थी, लेकिन शब्दों में दूरी।


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रात के 11:45 बजे

रवि अपने कमरे में सो चुका था। घर की लाइटें बुझ चुकी थीं। आशा धीरे से अपने कमरे से बाहर निकली और सीढ़ियों से ऊपर छत की ओर गई।

छत पर हवा तेज़ थी, लेकिन पिंटू पहले से वहाँ खड़ा था। उसकी आँखें इंतज़ार कर रही थीं — और जब आशा की परछाई पास आई, तो उसके चेहरे पर एक राहत सी दौड़ गई।


"मुझे तुम्हारी ज़रूरत है," पिंटू ने बिना भूमिका के कहा।

"ये ज़रूरत… डर भी देती है," आशा ने धीमे से कहा।

"मैं कोई बच्चा नहीं हूँ आशा जी। आप मेरी उम्र देखती हैं, मैं आपकी आँखें देखता हूँ।"

ये शब्द सीधे उसकी आत्मा को छू गए।

पिंटू ने आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया। उसकी उंगलियाँ आशा की हथेलियों में फिसलीं, और उसने उसे धीरे-धीरे अपने पास खींचा।

"ये रात बहुत कुछ कह रही है… और हम दोनों सुन भी रहे हैं।"


छत की दीवार के पास, हवा की गूंज और चाँदनी के नीचे, पिंटू ने आशा को बाँहों में भरा। उसके होंठ उसकी गर्दन पर उतरे, और आशा ने आँखें बंद कर लीं।
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चादर नहीं थी, सिर्फ चाँद की रोशनी थी जो उनके शरीरों को धीरे-धीरे एक कर रही थी। आशा का गाउन पिंटू के हाथों से फिसलता गया, और उसके बाद दोनों के जिस्म फिर से एक हो गए।


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दोनों अब ये भूल गए कि रवि नीचे रूम में सो रहा है अब आशा और पिंटू का हाल ऐसा था कि दोनो एक दूसरे के बिना नहीं रह पा रहे थे समय बहुत ज्यादा नहीं था और तड़प और आग दोनो के अंदर बराबर थी फिर पिंटू ने आशा को आराम से छत की दिवाल पर झुका दिया और धीरे से अपना लण्ङ आशा की चूत पर सेट करके आराम से अंदर घुसा दिया क्योंकि नीचे रवि सो रहा था
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और आराम से चोदने लगा और आशा भी मजे से चुदने लगी दोनो का अपनी अपनी आग बुझा कर वापस नीचे जाना था फिर थोड़ा टाइम के बाद दोनो ने पानी छोड़ दिया
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पानी निकलने के बाद पिंटू ने अपना विशाल लण्ङ चूत से बाहर निकला और चूत से पानी बाहर आ गया फिर दोनो ने अपने कपड़े पहने और अपने अपने बेडरूम में जाकर सो गए

सुबह

आशा फिर से अकेली उठी — लेकिन इस बार चेहरे पर सुकून था। वो जानती थी कि अब वो वापस नहीं जा सकती — ना अपने पुराने रूप में, ना रिश्तों की पुरानी परिभाषाओं में।

रसोई में काम करते समय रवि आया।

"माँ, मैं कुछ पूछूँ?"

"हाँ बेटा?"

"तू… और पिंटू… सब ठीक है न?"

आशा के हाथ थम गए। उसका दिल एक पल को रुक गया।

"हां बेटा… सब ठीक है," उसने धीरे से जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ अब उतनी स्थिर नहीं थी।

रवि ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आँखें अब सब कुछ महसूस करने लगी थीं।
रवि की आदत थी कि सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करता था। उस दिन जब वो किचन में चाय बना रहा था, उसकी निगाह आशा पर पड़ी — जो पिछले कुछ दिनों से थोड़ी बदली हुई लग रही थी।

आज आशा की चाल में थकान थी, लेकिन चेहरा अजीब तरीके से चमक रहा था। बाल बिखरे थे, आँखें हल्की-सी लाल थीं… और सबसे अजीब बात — गले के पास उसका दुपट्टा कुछ ज्यादा ही टिका हुआ था, जैसे कुछ छिपा रही हो।

रवि ने कुछ नहीं कहा, लेकिन मन में कुछ खटका।

"माँ, रात ठीक से सोई?" उसने पूछ लिया।

"हाँ बेटा," आशा ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "बस हवा तेज़ थी… नींद बार-बार टूट रही थी।"

रवि ने सिर हिलाया, लेकिन वो निगाहें माँ के चेहरे से हट नहीं रही थीं।


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पिंटू की एंट्री

पिंटू भी उठ चुका था। वो हल्की मुस्कान के साथ बाहर आया और हमेशा की तरह चाय माँगी।

रवि ने ध्यान दिया कि उसकी नजरें आशा पर कुछ ज्यादा ही देर तक ठहरी थीं — और आशा ने भी हल्की-सी मुस्कराहट से जवाब दिया, जो रवि को असामान्य लगी।

जब आशा अंदर चली गई, रवि ने पिंटू से पूछा,
"भाई, तू माँ के साथ बहुत फ्रैंक हो गया है अब…"

पिंटू थोड़ा चौंका, लेकिन हँसते हुए बोला,
"अरे यार, तू तो जानता है… तुम्हारी माँ बहुत प्यारी हैं। अपना सा लगता है सब।"

"हूँ…" रवि ने बिना हँसे जवाब दिया। अब शक उसकी आँखों में उतर आया था।


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दोपहर का समय

रवि बाहर से वापस लौटा, तो देखा कि माँ और पिंटू दोनों रसोई में साथ थे — एक प्लेट में पकौड़े रखे जा रहे थे, और दोनों हँस रहे थे… वो भी कुछ ज़्यादा पास खड़े होकर।

उसने दूर से ही ये दृश्य देखा — लेकिन अब मन में सवाल पक्का हो चुका था।

वो सोचने लगा,
"पिंटू अब ज़रूरत से ज़्यादा घर का हिस्सा बन चुका है… माँ उससे खुलकर बातें करने लगी हैं… और उनका चेहरा… बदल चुका है। क्या मैं कुछ अनदेखा कर रहा हूँ?"


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रात को रवि का कमरा

रवि अकेले बैठा था। उसके मन में बेचैनी थी। वो सोच रहा था कि क्या उसका शक सही है?
क्यों माँ अब ज़्यादा सजी-संवरी रहती हैं?
क्यों वो अब कुछ छिपा रही हैं?

वो अपने लैपटॉप पर बैठा था, तभी उसे याद आया — कल रात उसने गलती से पिंटू का फोन चार्जिंग पर लगाया था। उस फोन में उसकी माँ की तस्वीरें थीं — और एक selfie, जो आशा के कमरे में ली गई थी, और वो भी रात में।

वो तस्वीरें सामान्य थीं, लेकिन समय और जगह ने सब कुछ संदिग्ध बना दिया।

उसका दिल धड़कने लगा।


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आशा का कमरा

आशा बिस्तर पर लेटी थी, लेकिन आँखें बंद नहीं कर पा रही थी। उसे एहसास हो रहा था कि रवि अब बदलने लगा है। वो नज़रें, वो सवाल — सब सामने आने लगे हैं।

पिंटू ने कमरे में आकर पूछा,
"आप ठीक हैं?"

"नहीं… अब डर लग रहा है।"

"अगर रवि को पता चल गया तो?" पिंटू ने भी पहली बार सीधा सवाल किया।

"वो टूट जाएगा… और शायद मैं भी।"

"तो क्या हम रुक जाएँ?"

आशा ने उसकी ओर देखा — उसकी आंखें भर आईं।

"रुकना अब मुमकिन नहीं… पर छुपाना ज़रूरी है।"
 
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