Update 3
रात धीरे-धीरे गहराती जा रही थी। बाहर हवा तेज़ थी, लेकिन कमरे में एक अजीब सी गरमाहट थी। आशा और पिंटू दोनों बिस्तर के किनारे बैठे चाय पी रहे थे। शब्द कम हो चुके थे, लेकिन आँखों का संवाद गहराता जा रहा था।
चाय की प्याली रखकर आशा उठने लगी, तो पिंटू ने धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया।
"रुकिए…" उसकी आवाज़ धीमी लेकिन गूंजती हुई लगी।
आशा ने पलटकर उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में कोई ज़बरदस्ती नहीं थी — सिर्फ एक खामोश जिद, जिसे उसने सालों से महसूस नहीं किया था।
"आपको अच्छा लगता है न… जब मैं पास होता हूँ?" पिंटू ने पूछा।
आशा के चेहरे पर हल्की लाली दौड़ गई। उसने नज़रें फेर लीं।
"मैं कुछ नहीं कह रहा, बस ये महसूस कर रहा हूँ कि... आप अकेली नहीं हैं। मैं हूँ।"
वो धीरे-धीरे उसके और करीब आ गया। आशा की साँसें अब नियंत्रित नहीं थीं। इतने वर्षों की स्थिरता एक ही क्षण में डगमगाने लगी थी।
"पिंटू… ये… गलत है…" उसकी आवाज़ टूटी हुई थी।
"अगर इतना गलत होता… तो इतना सही क्यों लगता है?" पिंटू ने धीरे से उसके चेहरे को छुआ।
आशा ने अपनी आँखें बंद कर लीं। वो प्रतिरोध करना चाहती थी, लेकिन अंदर कहीं कोई दरवाज़ा पहले ही खुल चुका था।
पिंटू ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर धीरे से चूमा — माथे पर, फिर गालों पर। आशा की साँसें तेज़ थीं, शरीर हल्का कांप रहा था। उसने अपनी आंखें नहीं खोलीं।
उसने पहली बार उस शरीर को महसूस किया, जिसे उसने केवल ज़िम्मेदारियों और त्याग में खो दिया था। अब वो सिर्फ "माँ" नहीं थी, वो एक औरत थी — चाही गई, महसूस की गई।
पिंटू ने उसके कंधों को सहलाया, उसके बालों को चूमा, और उसे खुद की बाँहों में कसकर भर लिया।
उस पल में, दोनों ने कुछ नहीं कहा — लेकिन बहुत कुछ हो गया था।
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आशा ने धीरे से खुद को अलग किया, लेकिन विरोध नहीं किया। उसकी आँखों में आँसू थे — मगर कोई पश्चाताप नहीं। शायद सुकून था, या फिर अपने खोए हुए स्त्रीत्व की वापसी का एहसास।
"मुझे अकेले रहने की आदत हो गई थी…" उसने फुसफुसाकर कहा।
"अब आदत बदल जाएगी," पिंटू ने उसके हाथ पर अपने होंठ रख दिए।
अगली सुबह:
आशा उठते ही सबसे पहले आईने में खुद को देखती है। उसके गालों पर हल्की लाली है, आंखों में चमक, और होंठों पर अनकही मुस्कान।
नीचे से पिंटू की आवाज़ आती है, "गुड मॉर्निंग, आशा जी…"
वो चौंकती है
।
"आंटी" का नाम बदल चुका था — और वो बदलाव बहुत कुछ कह गया।
उस दिन रवि ने घर आने से पहले ही फोन कर दिया,
“माँ, आज मैं हॉस्टल में ही रुक जाऊँगा। ग्रुप प्रोजेक्ट सबमिट करना है।”
आशा ने सहजता से कहा, “ठीक है बेटा, ध्यान रखना।”
फोन रखते ही घर की दीवारों ने कुछ और ही कहानियाँ बुननी शुरू कर दीं। आशा ने अपने भीतर उठती हलचल को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की, लेकिन दिल अब उसकी नहीं सुनता था।
पिंटू किचन में आ गया, "आशा जी, आज मैं खाना बनाऊं आपके लिए?"
"क्या बनाएंगे आप?"
"जो आपकी आंखें कहें…"
आशा मुस्करा दी। उसकी हँसी अब खुलने लगी थी, जैसे कोई टूटी खिड़की के पीछे से हवा चलने लगी हो।
रात को दोनों ने एक साथ डिनर किया — हँसी, चुप्पियाँ, और वो नज़रें जो अब रोकने की कोशिश नहीं कर रही थीं।
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रात 11:30 बजे
आशा अपने कमरे में थी। गाउन पहन रखा था, बाल खुले थे। खिड़की से आती चांदनी उसके चेहरे पर गिर रही थी। वो किताब पढ़ने का दिखावा कर रही थी, लेकिन ध्यान हर आवाज़ पर जा रहा था — पिंटू के क़दमों की आहट, उसकी हरकतों की छाया।
दरवाज़ा खटका।
आशा ने धीरे से खोला। सामने पिंटू खड़ा था — हाथ में कुछ नहीं, बस उसकी आँखों में एक विनम्र पर गहरा सवाल था।
"मैं अंदर आ जाऊँ?"
आशा ने नज़रें झुका लीं। कुछ नहीं कहा, बस एक कदम पीछे हट गई।
पिंटू अंदर आ गया। कमरे में सन्नाटा था। सिर्फ खिड़की से आती धीमी हवा, और उनकी तेज़ होती धड़कनों की आवाज़ थी।
"आज मैं आपको महसूस करना चाहता हूँ… पूरी तरह," पिंटू ने धीरे से कहा।
आशा ने उसका चेहरा देखा — उसमें कोई फुहरापन नहीं था, सिर्फ गहराई, समझ और सच्चाई थी।
पिंटू ने आशा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया, और होंठों को चूमा — आशा की आंखें बंद हो गई हैं और आशा ने भी पिंटू के होठों को चूमना शुरू कर दिया
मौका अच्छा देखकर पिंटू ने आशा को गाउन से अलग कर दिया अब आशा पिंटू के सामने एक खिली हुई औरत लग रही थी वो इस समय को गवाना नहीं चाहता था लेकिन वो जल्दीबाजी में कुछ ऐसा नहीं करना चाहता था कि ये आशा हाथ से निकल जाए दोनों आप चादर में लिपट चुके थे ना अब उनके शरीर पर कोई कपड़ा था दोनों के शरीर एक हो चुके थे बस ऊपर से एक चादर थी अंदर दोनों के शरीर आपस में लिपट चुके थे
अब दोनों के बीच से हवा भी पास नहीं हो सकती थी
आशा की साँसें बंध गईं। वो उसकी बाँहों में समा गई।
पलंग की चादरें सरकने लगीं, कपड़े धीरे-धीरे हटते गए। आशा ने कोई विरोध नहीं किया — बरसों से उसके भीतर जो इच्छा दबी थी, आज वो बाहर आ रही थी।
पिंटू अब समझ चुका था अब इसे चोदना ही सही रहेगा और अब ये मना भी नहीं करेगी अब मैं इसे अपने हिसाब से अच्छे से चोदूंगा पूरी रात है अपने पास रवि तो रात आने वाला नहीं है आशा को और गरम करने के लिए पिंटू उसके बूब्स को दोनो हाथ से दबोच कर चूसने लगा जिसका आशा को कोई अंदाजा नहीं था
अब न ही पिंटू को इस बात की टेंशन थी कि रवि उसका दोस्त है और न ही इस समय आशा ये सोच रही थी कि पिंटू उसके बेटे का दोस्त है पिंटू ने बूब्स चूसते हुए आशा की चूत में उंगली अंदर बाहर करने लगा और आशा पूरी गरम हो चुकी थी इस समय उसकी हालत ऐसी थी कि अगर पिंटू अपना लं ड उसकी चूत मे उतार दे तो मना नहीं करेगी
आशा अब पिंटू का पूरा साथ देने लगी गांड़ ऊपर नीचे करके पूरा साथ देने लगी इससे पिंटू को विश्वास हो गया कि अब ये पूरा कंट्रोल में है और फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा के मुंह के सामने कर दिया और देखने लगा कि आशा अब क्या करती है
पिंटू का विशाल ल.ड देखकर आशा सोच में पड़ गई क्योंकि अब उसकी बारी थी पिंटू ने अपना काम कर दिया था वो ये समझ चुकी थी कि आज की रात उसके लिये बहुत ही हसीन रात है आज की रात उसके लाइफ बदल देगी बहुत कुछ सोचने के बाद आशा ने उसे अपने हाथ में लेने को सोचा पर पिंटू के ल.ड की हालत ऐसी हो गई थी कि पूरी नशे टाइट हो गई थी और टाइट था पूराजैसे ही आशा ने उसे हाथ में लिया गोली की तरह फब्बारा निकला
अब पिंटू समझ गया कि आशा उसकी हुई और आशा ने उसे अपने दिल में जगह दे दी पानी निकलने के थोड़ा टाइम के बाद लंद थोड़ा ढीला हो गया उसके बाद पिंटू ने आशा से अब कुछ पूछना उचित नहीं समझा और अपना लण्ङ धीरे से आशा के मुंह मे दे दिया
और आशा पूरी लग्न और शिद्दत से पिंटू का लण्ङ चूस रही थी इस तरह उसने 20 मिनट तक बहुत ही अच्छे से पिंटू का लंद चूसा और अब पिंटू भी उसे सरप्राइज़ देने वाला था उसने अपना लण्ङ आशा के मुंह से निकला और आशा के बेड पे लिटा कर उसकी चूत चूसने लगा इस झटके के लिए आशा तैयार नहीं थी उसकी चूत के रस ने पिंटू को पागल कर दिया और वो पागलों की तरह चूस रहा था
और फिर धीरे धीरे रात को 2 बज गए बस सुबह होने में कुछ ही घंटे बाकी थ पिंटू ने लगभग 25 मिनट चूसा और फिर आशा ने पानी छोड़ दिया उसके बॉडी से 10 % गर्मी बाहर निकल गई थी और पिंटू के बडी से भी 10% गर्मी बाहर आ चुकी थी दोनो के अंदर बराबर गर्मी थी अब इस गर्मी को दोनो का मिलन ही बाहर ला सकता था इस सब m 3 बज गए पूरे 3 घंटे थे दोनो के पास क्योंकि शायद अगली सुबह रवि घर वापस आ सकता था
फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा की चूत पर रख दिया और जैसे ही आशा को महसूस हुआ उसकी आंख खुल गईं वो समझ गई की अब क्या होगा पिंटू भी देखना चाहता था कि आशा कुछ बोलती है या नहीं आशा ने कुछ नहीं बोला तो पिंटू ने उसकी सहमति समझी चूत पुरी तरह से गीली थी तो पिंटू ने अपना होठ आशा के होठ पर रखा और लण्ङ का टोपा चूत पर सेट किया आशा की तो सांस ही अटक गईं उसको जरा भी अंदाजा नहीं था पिंटू क्या करने वाला है पिंटू ने आशा का मुंह अपने मुंह से सटाकर सिल कर दिया चूत इतनी ज्यादा गीली थी कि लण्ङ का टोपा अंदर करते ही पूरा 8 इंच का लण्ङ एक ही बार आराम से अंदर घुस गया
हल्का दर्द हुआ और फिर आराम की सांस ली लेकिन अभी असली जंग तो बाकी था पिंटू का 8 इंच का लण्ङ उसकी चूत की हालत कैसी करने वाला है ये तो उसको अंदाजा ही नहीं है
पिंटू : आशा मैं जब से तुम्हें देखा है मैं तब से तुम्हारे करीब आना चाहता था लेकिन मेरा दोस्त रवि हमारे बीच की दीवार बन रहा था
आशा : मैं भी तुम्हारे करीब आना चाहती थी लेकिन समाज और बेटे की डर की वजह से मैं कुछ बोल नहीं पाई
पिंटू: कोई बात नहीं आशा जब जागो तब सवेरा हमारे लिए तो रात ही अच्छी है
पिंटू आशा पर पूरा कंट्रोल पाकर आशा को डॉगी पोजीशन मे होने का इशारा दिया क्योंकि अब आशा की हालत खराब होने वाली थी आशा डॉगी पोजीशन मे हो गई और फिर पिंटू ने अपना लण्ङ आशा की चूत में उतार दिया और अपना लण्ङ आराम से अंदर बाहर करने लगा आशा पूरा मजा लेने लगी
फिर पिंटू ने आशा के बाल अपने हाथमें पकड़ लिए और लण्ङ की गति बढ़ा दी और लण्ङ फटाफट चूत मे अंदर बाहर होने लगा और आशा चीखने लगी पर पिंटू ने उस पर कोई रहम नहीं क्योंकि वो जानता था थोड़े टाइम के बाद ये दर्द कम हो जाएगा और ये खुद मजे से चुदेगी
20 मिनट दर्द भरी चूदाई के बाद आशा को धीरे धीरे मजा आने लगा और फिर दोनो ने एक दूसरे का साथ दिया और अच्छे से चूदाई का आनंद लिया
मानो ऐसा लग रहा हो जैसे रात भी इस सीन को देखने के लिए रुक गई हो दोनो एक दूसरे का पूरा साथ दे रहे थे
और अलग अलग पोजीशन में पूरी रात चूदाई की और फिर दोनो एक साथ झड़ गए दोनो ने बहुत तेज चीख निकाली
पिंटू: आशा में आने वाला हु
आशा: पिंटू मैं भी आने वाली हूं आह अह अह अह यस
पिंटू आशा की चूत में अपना सारा पानी निकाल दिया लेकिन पानी बाहर नहीं आया क्योंकि चूत पूरा लण्ङ से पैक थी और साथ ही आशा भी झड़ चुकी थी लेकिन दोनो में से किसी का एक बूंद भी पानी नीचे नहीं गिरा जैसा ही पिंटू ने चूत में से अपना लण्ङ निकाला सारा पानी जो चूत में था प्रेशर के साथ बाहर आ गया
दोनों की गर्मी शांत हो गईं थी और दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपट कर सो गए
उसकी पीठ पर पिंटू की उंगलियाँ फिसलीं, होठों ने गर्दन का रास्ता छुआ, और फिर दोनों के जिस्म एक हो गए — गर्म साँसों, गहरी सिसकियों, और उन खामोशियों के साथ जिनमें सब कुछ कह दिया गया था।
उनके बीच अब कोई नाम नहीं था — न माँ, न दोस्त का बेटा — बस दो शरीर थे, दो अधूरी आत्माएँ… जो एक हो रही थीं। की
सुबह
सूरज की किरणें खिड़की से भीतर आ चुकी थीं। आशा अभी तक जग नहीं पाई थी। पिंटू उसकी पीठ को हल्के से सहला रहा था, और मुस्करा रहा था।
"आप अब सिर्फ रवि की माँ नहीं हो… अब आप मेरी भी हैं।"
आशा ने आँखें खोलीं, और बिना कुछ कहे उसकी छाती पर सिर रख दिया
।