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Adultery उल्टा सीधा

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Arthur Morgan

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Fantastic update Bhai.....


Waiting more

Nice update bro 👍 👍

Mst garma garam update bhai aisehi mjedaar updates likhte rhyea jldi jldii

Ekadam mast update hai

Bot hi hot story hai .

Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki

बहुत ही शानदार रोमांचक अपडेट

Bahut hee shandaar or kamuk update diya hai…

Shandaar update

Gajab update bhai
Maza aa gaya
Waiting for next update

Aj ayega update ?

Next update
धन्यवाद मित्रगण, इस कहानी पर अगला अपडेट जल्दी आयेगा, दूसरी कहानी पर अपडेट दिया है, उसे भी पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें।
 

Arthur Morgan

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अध्याय 24


बारिश की मंद-मंद बूंदें छप्पर की छत पर टपक रही थीं, और रत्ना उसकी ठंडी आहट को सुनते हुए गहरी सोच में डूबी थी। उसका मन उसके हाल के सपनों से भरा हुआ था—सपने जो उसे रातों को पसीने से तर-बतर कर देते थे।
छप्पर के नीचे पुरानी खाट पर बैठी, उसकी उंगलियां अनजाने में अपनी साड़ी के पल्लू को मरोड़ रही थीं। बारिश की हर बूंद उसके अंधविश्वासी स्वभाव को और गहरे में धकेल रही थी। क्या ये सपने कोई संकेत थे? क्या उसके ससुर प्यारेलाल की आत्मा उसे कुछ बताना चाहती थी, जिस रात उसने उनकी मृत्यु से पहले उनके साथ वो अनचाहा पल बिताया था? या फिर ये किसी और गहरे रहस्य की ओर इशारा था, जिसे वो समझ नहीं पा रही थी?
उसके सपनों में भूरा, लल्लू, और छोटू का चेहरा था—उसके बेटे और उसके दोस्त, जो उसे नंगी हालत में चोद रहे थे। फिर वो दृश्य बदलता, और राजू—उसका बड़ा बेटा—उसकी चूत में लंड डाले हुए था, जबकि रानी मां-मां चीख रही थी, और तीन पुरुष उसे घेरे हुए थे। ये सब सोचकर रत्ना का बदन कांप उठता था, और साथ ही उसकी चूत में एक अनचाही गर्मी भी महसूस होती थी। वो जानती थी कि ये सपने इतने अश्लील और निंदनीय थे कि इन्हें किसी से साझा नहीं कर सकती। उसने मन ही मन सोचा, "क्या कोई टोटका है जो इन सपनों को दूर कर सके? क्या केलाबाबा की मदद ली जाए?" लेकिन डर था कि उन्हें कहूंगी क्या? जो देखा वो तो नहीं कह सकती। बारिश की बूंदों के साथ उसकी सोच भी बह रही थी, और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।


दूसरी ओर शाम ढलते-ढलते बारिश की रफ्तार धीमी पड़ गई और आखिरकार थम गई। लता ने घर के लिए ताजी सब्जियां तोड़ने का फैसला किया और खेत की ओर चल पड़ी, जिससे लल्लू और नंदिनी को घर में अकेला समय मिल गया। नंदिनी का मन घबराया हुआ था। रात की घटना—जब लल्लू ने उसे मां-पापा की चुदाई देखते हुए पकड़ा था—उसके दिमाग में चक्कर काट रही थी। वो आंगन में खाट पर बैठी, अपने हाथों को सलवार के किनारे से मरोड़ रही थी, जबकि लल्लू भीतर से बाहर निकला और उसकी ओर देखने लगा।
लल्लू ने सोचा कि अगर वो नंदिनी को डराएगा या जोर-जबरदस्ती करेगा, तो सब बिगड़ सकता है। उसे प्यार से और समझदारी से कदम उठाने थे। वो धीरे से नंदिनी के पास जाकर बैठ गया और बोला, "दीदी, रात जो हुआ, उसके बारे में बात करना चाह रहा हूं, पर समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं।" नंदिनी चुप रही, उसकी नजरें ज़मीन पर गड़ी थीं। लल्लू ने हिम्मत जुटाई और कहा, "वैसे जो तुम महसूस कर रही थी, मुझे भी होता है। कभी-कभी मेरे अंदर ऐसी उत्तेजना और गर्मी बढ़ जाती है कि काबू नहीं रहता।" नंदिनी ने उसकी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं बोली।

लल्लू ने आगे बढ़ते हुए कहा, "मुझे पता है तुम्हारे साथ भी रात वही हुआ होगा, तभी तुम मां-पापा की... चुदाई देख रही थी।" चुदाई शब्द बोलते वक्त उसकी आवाज में हल्की झिझक थी, ताकि नंदिनी की प्रतिक्रिया देख सके। नंदिनी ने उसकी आंखों में देखा और फिर नजरें नीचे कर लीं, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

लल्लू ने बात को और खोला, "शायद ये ही जवानी का जोश है। सच कहूं तो दीदी, मेरा तो हमेशा यही हाल रहता है। हर समय उत्तेजना बदन में महसूस होती है और नीचे तना हुआ रहता है।" उसने अपने लंड की ओर इशारा किया, जो निक्कर में साफ उभार बना रहा था।
नंदिनी ने पहली बार मुंह खोला, "तू इस बारे में किसी को कुछ कहेगा तो नहीं?" लल्लू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई कि नंदिनी ने कुछ कहा।
वो बोला, "अरे नहीं दीदी, तुम्हारी और मेरी बात मैं क्यों कहूंगा किसी से? और हम भाई-बहन एक-दूसरे की परेशानी नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा, क्यों दीदी?"
नंदिनी थोड़ी असमंजस में बोली, "हां... सही कह रहा है।"
लल्लू ने मौके का फायदा उठाया, "अब देखो, मेरी परेशानी तो अब भी सिर उठाए हुए खड़ी है।" उसने अपने निक्कर में बने तंबू की ओर इशारा किया। नंदिनी की नजर उस उभार पर पड़ी, और वो हैरान रह गई। फिर सकुचाकर नजर हटा ली, लेकिन उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई। नंदिनी ने कहा, "तू ये सब क्या बातें कर रहा है? भाई-बहन को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए।" लल्लू जानता था कि नंदिनी को मनाना आसान नहीं होगा।

वो बोला, "अरे दीदी, फिर मैं ऐसी बातें किससे करूं? तुम भी मेरी तरह उत्तेजित थी, तभी तो उस दिन नंगी सो रही थी और फिर रात को मां-पापा को देख रही थी। अब तुमसे अच्छा कौन मेरी परेशानी समझेगा?" नंदिनी उसकी बातें सुनकर सकुचाई, क्योंकि लल्लू ने उसकी गलतियों को याद दिला दिया था और ये भी साफ कर दिया कि अभी उसका पलड़ा भारी था। नंदिनी ने धीरे से कहा, "हां, वो मैं मानती हूं। और तेरी बात समझती हूं।"

लल्लू ने मौका देखते हुए कहा, "अरे दीदी, तुम नहीं समझती, मैं इस वजह से कितना परेशान रहता हूं। लगता है तुम्हें दिखाना पड़ेगा तभी तुम मानोगी।" नंदिनी ने घबराते हुए कहा, "अरे नहीं भाई, उसकी कोई जरूरत न..." लेकिन उसकी बात पूरी होने से पहले लल्लू खड़ा हो गया, अपनी ओर मुंह करके निक्कर नीचे खिसका दिया, और अपना कड़क लंड बाहर निकाल लिया, जो नंदिनी के चेहरे के सामने झूलने लगा।
नंदिनी हैरान रह गई। उसकी नजर लल्लू के लंड पर टिक गई—मोटा आकार, गुलाबी-जामुनी टोपा, पीछे काली खाल, और उभरी हुई नसें। उसके बदन में बिजली दौड़ गई, और टांगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस सुबह की झलक से अलग, आज वो इसे बारीकी से देख रही थी, हर हिस्से को अपनी आंखों में भर रही थी। लेकिन फिर उसे होश आया कि ये उसका भाई है। वो चेहरा घुमा ली और बोली, "ये तू क्या कर रहा है? इसे अंदर कर!"

लल्लू हंसते हुए बोला, "अरे दीदी, इतना शर्माओगी तो कैसे काम चलेगा? हमें भाई-बहन के साथ-साथ दोस्त भी बनना होगा।" नंदिनी ने चेहरा दूसरी ओर कर लिया, मन में द्वंद्व चल रहा था। एक ओर उसकी वासना जाग रही थी—जवान और गरम लड़की के सामने नंगा लंड, और पिछले दिनों सत्तू से दूर होने का असर।

दूसरी ओर सही-गलत का बोध उसे रोक रहा था। एक आवाज कह रही थी, "ये महापाप है, तेरा भाई है, समझदारी दिखाओ।" दूसरी आवाज गूंजी, "नीलम को सीख देती थी, अब खुद क्यों नहीं मानती? मां के साथ सबकुछ करने के बाद अब पाप पुण्य का डर?"
इतने में लल्लू ने उसका एक हाथ पकड़ा और अपने लंड पर रख दिया। उंगलियों पर लंड का स्पर्श होते ही नंदिनी के बदन में करंट दौड़ा। उसकी उत्तेजना कई गुना बढ़ गई। वो चेहरा फिर से लंड की ओर घुमा ली और उसे नशीली आंखों से देखने लगी। लल्लू ने अपना हाथ हटा लिया, लेकिन नंदिनी का हाथ वहीं रहा।
धीरे-धीरे उसने हाथ को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। लल्लू अपनी बहन की उंगलियों के स्पर्श से पागल हो रहा था, आंखें बंद कर आनंद में डूब गया।
नंदिनी ने एक पल लल्लू के आनंदमग्न चेहरे को देखा, और उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान खिल गई। उसकी खुद की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। वो खड़ी हो गई, लेकिन उसका हाथ लंड पर चलता रहा।
लल्लू ने आंखें खोली और अपनी बहन को खड़ी देखा। दोनों की आंखों में वासना साफ झलक रही थी। नंदिनी लल्लू के चेहरे पर बदलते भाव देखकर मन ही मन आनंदित हो रही थी। लल्लू समझ गया कि उसकी योजना कामयाब हो रही है। उसने हिम्मत दिखाई और अपना हाथ बढ़ाकर नंदिनी की कमर पर रख दिया, सूट के ऊपर से ही उसकी कमर और पीठ को सहलाने लगा।

नंदिनी की उत्तेजना हर पल बढ़ रही थी। वो पहली बार लंड को हाथ में ले रही थी। सत्तू के साथ उसके चक्कर थे, लेकिन इतनी दूर तक नहीं पहुंची थी। आज उसके हाथ में अपने सगे छोटे भाई का बड़ा लंड था। ये सोचकर उसकी चूत और गीली हो रही थी—पहले मां, अब भाई। सही-गलत का बोध धीरे-धीरे वासना के बादलों में खो गया। कुछ पल बाद दोनों के होंठ आपस में मिल गए, और उस मिलन की चिंगारी से उत्तेजना की आग जल उठी।
दोनों एक-दूसरे के होंठों को पागलों की तरह चूसने लगे। नंदिनी के चूसने में थोड़ा अनुभव था, जबकि लल्लू का जोश और उत्साह छलक रहा था। लल्लू अपनी बहन के रसीले होंठ चूसते हुए खुद को धन्य महसूस कर रहा था। उसकी उत्तेजना अब सीमा पार कर चुकी थी।
लंड पर नंदिनी का हाथ चल रहा था, और उसके हाथ नंदिनी की कामुक कमर और पीठ पर फिसल रहे थे। इसके लिए ये सब बहुत ज्यादा हो गया। नंदिनी ने अपने हाथ में लंड के ठुमके महसूस किए, और फिर उससे एक के बाद एक पिचकारी निकली—कुछ उसके हाथ को सना गई, कुछ जमीन पर गिरी। हांफते हुए दोनों के होंठ अलग हुए। लल्लू की आंखें बंद थीं, जबकि नंदिनी मुस्कुराते हुए कभी लंड, कभी अपने हाथ को देख रही थी।
कुछ पल बाद दोनों की सांसें सामान्य हुईं। लल्लू कुछ बोलने ही वाला था कि दरवाजे से लता की आवाज आई, "लल्ला, मैं आ गई!" नंदिनी तुरंत बोली, "धत्त, तेरी मां आ गई! जा, तू किवाड़ खोल, मैं ये साफ करती हूं।" लल्लू ने तुरंत अपना निक्कर ऊपर चढ़ाया, थोड़ी हालत सही की, और दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा।



वहीं शहर में भी शाम होते होते आधी के करीब सब्जियां आदि बिक चुकी थी, और अभी सत्तू, उसकी मां झूमरी, छोटू, राजेश और सुभाष सब साथ में बैठ कर चाय की चुस्कियां लगा रहे थे।
सत्तू: पूरे दिन की मेहनत के बाद गरम चाय का मज़ा ही कुछ और है,
सुभाष: सही कहा लल्ला।
छोटू: पापा यहां कब तक का काम रह गया है और,
छोटू ने चाय सुड़कते हुए कहा,
सत्तू: क्यों छोटू उस्ताद एक दिन में ही गांव याद आ गया क्या?
राजेश: हां भैया इसे तो दोपहर में ही आ गया था।
सत्तू: अरे तुमने अभी शहर देखा नहीं है नहीं तो गांव को भूल जाओगे।
राजेश: सही में भैया?
सत्तू: और क्या, अरे चाचा अब कोई काम तो है नहीं तो मैं इन दोनों को घुमा लाता हूं थोड़ा शहर ? पहली बार आए हैं और शहर न देखें तो बेचारे मन ही मन दुखी होंगे।
सुभाष: अरे हां बिल्कुल, घूमेंगे तभी तो शहर के बारे में थोड़ा जानेंगे।
सुभाष ने हंसते हुए कहा, झुमरी भी चाय पीते हुए सबकी बातें सुन मुस्कुरा रही है,
सत्तू: तो क्या कहते हो दोनों चले?
छोटू को भी शहर देखने की उत्सुकता होती है और राजेश और छोटू दोनों साथ में कहते हैं चलो।
सुभाष: चलो तुम लोग घूम आओ तब तक मैं बचे एक दो बोरे अंदर गोदाम में रख दूंगा।
सत्तू: ठीक है चाचा, हम लोग आते हुए कुछ खाने के लिए ले आएंगे।

सत्तू राजेश और छोटू को लेकर निकल जाता है, सुभाष बचे हुए बोरे एक छोटी दुकान जो दो तीन घरों ने मिलकर किराए पर ले रखी थी सामान रखने के लिए उसमें रख देता है, झुमरी उसकी मदद करती है, दूसरी ओर सत्तू राजेश और छोटू को शहर घुमाता है दोनों पहली बार शहर की चकाचौंध देखकर आश्चर्यचकित थे, बड़ी बड़ी गाड़ियां, ऊंचे ऊंचे पक्के मकान, पक्की सड़क, अलग अलग तरह की दुकानें, शहर की औरतें और आदमी जिनकी वेशभूषा उनसे अलग जान पड़ रही थी, सत्तू एक ज्ञानी और अच्छे गुरु की तरह उन्हें सब कुछ बताता जा रहा था, शायद ये भी दिखा रहा था कि वो इस शहर को कितने अच्छे से जानता है।

अंधेरा हो चुका था सत्तू और छोटू और राजेश अभी तक शहर में घूम ही रहे थे वहीं गोदाम में एक अलग दृश्य चल रहा था, गोदाम के एक कोने में खाली बोरे बिछे हुए थे और उन पर सत्तू की मां झुमरी लेटी हुई थी, ब्लाउज़ खुला हुआ था और दोनों मोटी चूचियां ब्रा के बाहर थी जिन पर सुभाष के हाथ चल रहे थे, सुभाष उन्हें मसल रहा था।

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झुमरी भी आंखें बंद कर अपनी चूचियों को मसलवाने का आनन्द ले रही थी और सुभाष के हाथों पर अपने हाथ रख उसका हौसला बढ़ा रही थी।
सुभाष: आह भाभी तुम्हारी इन चूचियों के तो हम हमेशा से ही दीवाने हैं आह इन्हे छूकर ऐसा लगता है मानो मक्खन की पोटलिया हैं।
सुभाष धीरे से फुसफुसाते हुए बोला।
झुमरी: उम्म तुमने ही दबा दबा कर इतनी बड़ी कर दी हैं कि सारे ब्लाउज़ कस के आते हैं।
सुभाष: अब हम मेहनत करें और फसल भी न बड़े तो किस बात के किसान हुए हम।
सुभाष ने हंसते हुए कहा। झुमरी पर इतनी भी जुताई मत करो न कि नई फसल उग जाए। भूलो मत ये खेत किसी और का है।
सुभाष: जानते हैं हमारे स्वर्गीय परम मित्र का है, पर अभी तो हमारे हवाले है, तो अब जुताई करें या बुवाई हमारे हाथ में हैं।
सुभाष ने झुमरी की साड़ी और पेटीकोट को उसकी कमर तक उठा दिया और झुमरी की नंगी गीली चूत उसके सामने आ गई जिसे वो अपनी उंगलियों से सहलाने लगा।
झुमरी: आह उम्म नहीं,
झुमरी उसकी हरकतों से सिसकते हुए बोली।
सुभाष: ऐसे कैसे नहीं भाभी, जुताई से पहले थोड़ा खेत को जांच तो लें कि कैसा हैं।
सुभाष ने अपनी उंगली झुमरी की चूत में उतारते हुए कहा।
झुमरी: आह आराम से,
कुछ पल यूं ही उंगली से झुमरी की चूत को छेड़ने के बाद सुभाष ने अपना पजामा नीचे खिसका कर उतार दिया और झुमरी की टांगों को फैलाते हुए उनके बीच आ गया, और फिर अपने लंड को पकड़ कर झुमरी की चूत पर लगाया तो झुमरी तड़प उठी।
सुभाष: डाल दूं? उसने झुमरी के तड़पते चेहरे को देख कर कहा।
झुमरी: हां जल्दी करो बच्चे आते ही होंगे। न जाने क्या मजा आता है यूं तड़पाने में।
सुभाष: ये ही तो मजा है भाभी, तुम्हारे चेहरे पर लंड की प्यास देख एक अलग सुख मिलता है।
झुमरी: आह जल्दी करो न।
सुभाष: फिर ये लो।
ये कह सुभाष अपना लंड झुमरी की चूत में घुसा देता है, झुमरी के मुंह से आह निकलती है और सुभाष झुमरी के पैरों को थाम कर धक्के लगा कर उसे चोदने लगता है।
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इधर छोटू और सत्तू खाना लेकर चले आ रहे थे, मंडी के बाहर ही उन्हें राजेश मिलता है,
सत्तू: अरे तू गया नहीं अंदर?
राजेश: अरे भैया मैं भूल गया था, किस ओर से आएगी अपनी दुकान और किधर है, तो खो न जाऊं इसलिए रुक गया,
छोटू: अरे यार तू भी इसमें कहां खो जाएगा, बुद्धू, आ चल मैं दिखाता हूं रास्ता।
राजेश कुछ नहीं कहता और कुछ सोचते हुए आगे बढ़ जाता है गोदाम के बाहर ही उन्हें सुभाष और झुमरी मिलते हैं जो बैठ कर बातें कर रहे थे, फिर सब मिलकर खाना खाने लगते हैं, राजेश थोड़ा सोच में होता है।


गांव में अंधेरा होते तक संजय भी पानी लगा कर घर आता है, तब तक औरतों ने भैंसों और खाने पीने का सारा काम निपटा लिया था, संजय अंदर आकर नल पर हाथ पैर धोता है नीलम अपने पापा के लिए नल चलाती है, इसी बीच उसकी नजर एक बार पुष्पा से मिलती है जो चूल्हे के पास बैठी दूध उबाल रही थी, दोनों की नज़र मिलती है वैसे ही दोनों अपनी अपनी नजर फेर लेते हैं दोनों जानते थे आज खेत में जो हुआ वो उनके परिवार के लिए सही नहीं था, पुष्पा के मन में भी बहुत से विचारों का तूफान आया हुआ था एक ओर अपनी बहन जैसी देवरानी जिसके साथ आज उसने वो सब किया था जो कभी सोचा भी नहीं था, और फिर दोपहर में देवर के साथ जो हुआ वो, उसे समझ नहीं आ रहा था वो किसके साथ धोखा कर रही थी, देवरानी सुधा के साथ, देवर संजय के साथ या अपने पति सुभाष के साथ, अपने पति के साथ तो वो तभी धोखा कर चुकी थी जब बेटे के साथ सब कुछ किया था। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके साथ हो क्या रहा है। खैर खाना पीना हो ही रहा था कि तभी रत्ना आई।
सुधा: अरे रत्ना जीजी, आओ आओ बैठो।
रत्ना: और सब काम निपट गए?
पुष्पा: हां सब निपट गया तुम बताओ, सब हो गया।
रत्ना: हां रानी संभाल लेती है अभी तो सब।
फुलवा: चल अच्छा है बिटिया है तो तुझे थोड़ा आराम मिल रहा है।
रत्ना: हां चाची ये तो है, अरे चाची मैं कह रही थी कि आज तुम हमारे यहां सो जाती तो, भूरा के पापा भी नहीं है और राजू खेत पर है, बस भूरा है वो भी अभी बालक है।
फुलवा: हां क्यों नहीं इसमें क्या संकोच की बात, और कोई चिंता की बात तो नहीं है न?
पुष्पा: हां जीजी सब ठीक है न?
रत्ना: हां बस थोड़े अजीब और डरावने सपने आते हैं।
सुधा: कैसे सपने जीजी?
रत्ना सोच कर बोलती है: थोड़े डरावने से आते हैं और अजीब से उन्हें समझाना मुश्किल है।
फुलवा: अच्छा कोई नहीं कल सुबह ही चल मेरे साथ बहू, झाड़ा लगवा लेंगे सब सही हो जाएगा।
रत्ना को भी फुलवा की बात ठीक लगी और सोच कर बोली: ठीक है चाची, कल चलते हैं।
कुछ ही देर में फुलवा रत्ना के साथ चली गई, और घर पर बाकी लोग भी खा पी कर सोने की तैयारी करने लगे,
संजय खाना खा चुका तो सुधा उसकी थाली लेने आई तो संजय बोला: सुनो आज घर पर कोई और नहीं है तो सोच रहा हूं मैं आंगन में सो जाता हूं।
सुधा: ठीक है नीलम भी कह रही थी उसे डर लग रहा है तो वो मेरे साथ कमरे में सो जाएगी।
संजय: भाभी से भी पूछ लो अगर उन्हें डर लगे तो उन्हें भी अपने पास ही सुला लेना।
पुष्पा: पूछा मैंने वो नहीं डरती बिल्कुल, वैसे भी कमरे को खाली नहीं छोड़ सकते।
संजय: हां चलो ठीक है जैसा तुम्हे सही लगे, मेरा बिस्तर ला दो।
सुधा: नीलाम ओह नीलम अपने पापा का बिस्तर लगा दे ज़रा।
नीलम: अभी लाई मां।

सब दूध वगैरह पी कर लेट चुके थे, और कुछ तो सो भी चुके थे, पर संजय की आँखों से नींद गायब थी, उसके सामने बार बार जो कुछ दोपहर को हुआ वो आ रहा था, उसकी भाभी का कामुक बदन, उनके होंठों का रस, उनके पेट का वो मखमली स्वाद ये सोच कर ही उसके बदन में अजीब सी सिहरन हो रही थी, उसका लंड भी अकड़ रहा था, पर साथ ही वो ये भी जानता था कि कोई भी गलत कदम उसके परिवार के लिए कितना बुरा हो सकता था, उसने फिर सोचा क्यों न अपनी गर्मी सुधा पर मिटा ली जाए जब तक जाऊंगा तो ये सब विचार ही नहीं आएंगे। ये सोच वो बिस्तर से उठा और अपने कमरे की ओर बढ़ा, कमरे के दरवाज़े को हल्का सा खोल कर उसने अंदर झांका तो देखा कि नीलम और सुधा दोनों ही सो चुके थे और नीलम अपनी मां से चिपक कर सो रही थी, तो सुधा को जगाने का प्रयास भी करता तो नीलम का जागना तय था।

वो बापिस अपने बिस्तर पर आ गया एक बेचैनी सी उसके मन में हो रही थी, वो फिर से लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा, करीब एक घंटा बीत गया उसे करवट बदलते बदलते पर आज नींद उसकी आंखों से भाग रही थी, बार बार उसकी भाभी का बदन उसे सोने नहीं दे रहा था, वो एक बार फिर से उठा और अपने बिस्तर से उठ खड़ा हुआ, और धीरे धीरे कुछ सोचते हुए कदम बढ़ाने लगा, पद पर इस बार उसके कदम अपनी भाभी के कमरे की ओर बढ़ रहे थे,
धीरे धीरे वो कमरे के बाहर पहुंच गया और उसने हल्का सा दरवाज़ा धकेला तो उसे खुला पाया उसने दरवाज़े को थोड़ा सा और बड़ी सावधानी से खोला उतना की जितने से वो अंदर झांक सके, उसने सिर आगे कर अंदर झांका तो सामने के नज़ारे पर उसकी आँखें जमीं रह गईं,
दिए की हल्की रोशनी में उसने देखा कि उसकी भाभी पुष्पा दरवाज़े की ओर ही करवट लेकर सो रही है, पल्लू एक ओर को ढलका हुआ है जिससे उसका मखमली पेट, गोल गहरी नाभी दिखाई दे रही है, तभी हवा का एक झोंका आता है और पुष्पा के पल्लू को और हटा देता है जिससे उसका पेट और ब्लाउज में कसी बड़ी चूची उजागर हो जाती है,
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वहीं वो उसके चेहरे को देखता है जिस पर कामुक भाव हैं उसका बदन भी ऐसे हिल रहा है ऐसे मचल रहा है जैसे सपने में ज़रूर कुछ कामुक घटना को देख रही है, सोते हुए ही पुष्पा अपने होंठों को हल्का सा काटती है, जिससे संजय को अंदाज़ा हो जाता है कि पुष्पा किस तरह का सपना देख रही है।
संजय दरवाजे से झांकते हुए ये सब देखता रहता है, वो अभी भी वहीं खड़ा है शायद मन में तय कर रहा है आगे क्या करना चाहिए, मन में खयाल आता है अपने बिस्तर पर बापिस चला जाए, पर सामने पुष्पा का बदन उसे जाने से रोक रहा है। संजय फिर से सोच में पड़ जाता है उसके कदम कुछ पीछे होते है पर फिर अगले ही पल वो कमरे के अंदर घुस जाता है और किवाड़ अंदर से बंद कर लेता है सावधानी से, धीरे से वो पुष्पा के पास आता है पुष्पा अभी भी सपनों की दुनिया में खोई हुई है, संजय पास आकर धीरे से है हाथ बढ़ाता है उसका हाथ आगे जाते हुए कांप रहा है थोड़ा आगे बढ़ा कर वो हाथ को बापिस खींच लेता है,
और अपने फैसले पर दोबारा सोचने लगता है, कुछ पल बाद फिर से हाथ बढ़ाता है और बहुत धीरे से पुष्पा का पल्लू पकड़ लेता है और उसके सीने और पेट से हटा देता है एक बार फिर से पुष्पा का पूरा पेट और ब्लाउज़ से झांकती उसकी चूचियां संजय की आंखों के सामने होती हैं वो पुष्पा के बगल में बिस्तर पर बहुत आराम से चढ़ जाता है और धीरे से अपने हाथ को पुष्पा के पेट पर रखता है, उसके पेट का स्पर्श पाते ही मानो संजय के बदन में बिजली दौड़ जाती है उत्तेजना की, वो अगले ही पल सब मर्यादा और डर भूलने लगता है और पुष्पा के ऊपर झुकता चला जाता है, उसके पेट को सहलाते हुए वो चूमने लगता है, और अपनी प्यास को पुष्पा के बदन से मिटाने की कोशिश करने लगत है।

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पुष्पा जो कामुक सपने देख रही थी उसे ये भी सपने का हिस्सा ह
हिस्सा समझती है और संजय पुष्पा की ओर से विरोध न देख इसे आगे के लिए अच्छा संकेत समझता है और उत्तेजित होकर पुष्पा के मखमली पेट और कमर को मसलने लगता है जो पुष्पा की नींद की अवस्था के लिए भी थोड़ा ज़्यादा हो गया और पुष्पा की आंख खुल जाती है, वो चौंक कर देखती है और पाती है कि उसके बदन से कोई खेल रहा है और जैसे ही चेहरा दिखता है वो थोड़ा चौंकती है अपने देवर को देख कर।
वो पल भर के लिए सुन्न रह जाती है और समझ नहीं पाती क्या करे, उसका बदन उसकी उत्तेजना उसके देवर के द्वारा उसके बदन को मसले जाने पर कुछ अलग ही आनंद में मचलने लगते हैं, वो समझ नहीं पाती क्या करूं? रोकूं देवर को या नहीं, दिमाग कहता है रोक ले इस महापाप को होने से, इससे बहुत से रिश्ते पूरा परिवार बिखर सकता है, तो बदन और मन कह रहा था इतने दिनों से जो प्यासी है वो प्यास बुझा ले, कब तक तड़पाएगी खुद को।

पुष्पा कुछ सोच कर अपने हाथ बढ़ाती है और संजय का सिर अपने पेट पर पकड़ लेती है और उसे खींच कर ऊपर लाती है, अपने चेहरे के सामने, संजय पुष्पा को जागते हुए देखता है तो घबरा जाता है उसे सब खराब होता नज़र आने लगता है, पुष्पा उसकी आंखों में देख कर ना में सिर हिलाती है,
पुष्पा: देवर जी नहीं, जाओ यहां से।
संजय: भाभी मैं वो।
पुष्पा: सब के लिए यही अच्छा हो..
पुष्पा इतना ही बोल पाती है कि संजय अपने होंठों को उसके होंठों पर रख देता है और चूसने लगता है, पुष्पा थोड़ा मचलती है पर वो बिना फिक्र के अपनी भाभी के होंठों को चूसने लगता है, कुछ ही पलों में संजय को हैरानी होती है। जब पुष्पा उसका साथ देने लगती है, पुष्पा भी उतनी ही उत्तेजित थी शायद ज़्यादा संजय को रोकने की कोशिश उसकी आखिरी कोशिश साबित होती है खुद को रोकने की भी और अब वो भी खुल कर संजय का साथ दे रही होती है, संजय अपनी भाभी का साथ पाकर और मस्त हो जाता है और उसके रसीले होंठों का रस दोपहर के बाद दोबारा पीने लगता है।
कुछ देर बाद होंठ अलग होते हैं दोनों हाँफ रहे होते हैं पर उत्तेजना कम नहीं होती, संजय पुष्पा की गर्दन को चूमते हुए नीचे सरकता है और पुष्पा के ब्लाउज में से झांकती मोटी चूचियों के बीच अपना मुंह घुसा कर चाटने लगता है।

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पुष्पा: आह देवर जी उम्म आह
संजय: अहम्म भाभी उम्म।
संजय पुष्पा के बदन को लगातार चाटते हुए आहें भरते हुए कहता है, साथ ही उसके हाथ ब्लाउज के ऊपर से ही पुष्पा की मोटी और कोमल चूचियों को दबा रहे थे,
दोनों की उत्तेजना की सीमा नहीं थी, पुष्पा को तो जैसे ऐसा लग रहा था जैसे कितने समय की प्यास आज मिट रही थी, बदन की गर्मी को संजय का साथ मिटा रहा था, वहीं संजय तो अपनी भाभी का बदन पाकर जन्नत में था, और उसके कामुक बदन को भोग रहा था,
चूचियों के बाद संजय नीचे सरकता है और अपने होंठ पुष्पा के पेट पर रख लेता है और पागलों की तरह उसे चाटने चूमने लगता है, उसके हाथ पुष्पा की केले के तने जैसी जांघों पर घूमने लगते हैं और वो धीरे धीरे से पुष्पा की साड़ी और पेटीकोट को ऊपर सरकाने लगता है और घुटनों के ऊपर ले आता है, पुष्पा की गोरी टांगें और जांघों का कुछ हिस्सा दिए की रोशनी में चमकने लगता है, पुष्पा के मुंह से लगातार सिसकियां निकल रही है उसके हाथ लगातार संजय के सिर और पीठ पर चल रहे हैं।
पुष्पा: आह संजय, ओह देवर जी ऐसे ही आह।
संजय तो जैसे सब कुछ भूल चुका था उसे अभी बस अपनी भाभी का कामुक बदन नज़र आ रहा था, जिसका स्वाद वो लेने की हर पूरी कोशिश कर रहा था, कभी उसके पेट को चाटता तो कभी नाभी में जीभ डाल कर चूसता तो कभी उसके पेट की मखमली त्वचा को अपने चेहरे पर महसूस करता।

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उसके नीचे पड़ी पुष्पा उसकी हरकतों से मचल रही थी, संजय की उत्तेजना अब बढ़ती जा रही थी पर वो पुष्पा के बदन को बहुत धीरज के साथ भोग रहा था, मानो उसके एक एक अंग का स्वाद लेना चाहता हो।
पेट को चूसते हुए ही उसके हाथ पुष्पा की साड़ी में चलने लगे और उसने जल्दी ही पुष्पा की साड़ी को बिस्तर के नीचे फेंक दिया अब पुष्पा नीचे सिर्फ पेटीकोट में थी और वो भी उसकी जांघों में इक्कठा हो रखा था।
बाहर दिन में हुईं बारिश के कारण मौसम ठंडा था, ठंडी हवा चल रही थी, पर कमरे के अंदर उतनी ही गर्मी हो रही थी,दोनों बदन मिल कर गर्मी को और बढ़ा रहे थे,
संजय ने हाथ ऊपर की ओर बढ़ाया और खुद भी ऊपर आया और एक बार फिर से पुष्पा के होंठों को चूसने लगा वहीं उसके हाथ पुष्पा के ब्लाउज़ के बटनों को खोलने लगे, जल्दी ही सारे बटन खुल गए तो संजय ने अपने होंठ अलग किए और फिर नीचे सरक कर अपने चेहरे को पुष्पा की छाती के सामने लाया और फिर धीरे से दोनों पाटों को अलग किया तो पुष्पा की मोटी और बड़ी चूचियां उसके सामने आ गईं जिन्हें देख उसकी आँखें चौड़ी हो गईं उसने कुछ ही पलों में ब्लाउज़ को भी उसके बदन से अलग कर नीचे साड़ी के पास फेंक दिया,
पुष्पा के बदन पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी जांघों तक सिमटा हुआ था, पुष्पा के नंगे चूचों को देख कर संजय भूखे की तरह उन पर टूट पड़ा और मसलते हुए उन्हें चूसने लगा, पुष्पा उसकी हर हरकत से मछली की तरह मचल रही थी, कभी चूची को चूसता तो कभी पेट को चाटता वहीं उसके हाथ पुष्पा के पेट से लेकर जांघों और फिर उसकी चूत के आस पास घूम रहे थे जिससे पुष्पा और मचल रही थी।
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पुष्पा के बदन से खेलते हुए ही संजय ने अपने कपड़े निकालने भी शुरू कर दिए और जल्दी ही पूरा नंगा हो गया था, उसका लंड बिलकुल अकड़ कर खड़ा था और पुष्पा के नंगे बदन को देख देख ठुमके मार रहा था, खुद नंगा होकर संजय ने पुष्पा के पेटीकोट को भी उसके बदन से दूर कर दिया, अब दोनों देवर भाभी नंगे थे एक दूसरे के सामने एक ही बिस्तर पर, दोनों के ही साथी इस बात से अनजान थे,
संजय की पत्नी तो उनसे कुछ दूर दूसरे कमरे में आराम से सो रही थी इस बात से बेखबर कि उसका पति और उसकी जेठानी एक ऐसे रास्ते पर थे जो उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल सकता था, वहीं उनसे मीलों दूर पुष्पा का पति सुभाष मंडी में गोदाम के बाहर बोरे बिछा कर सो रहा था उसके साथ उनका बेटा छोटू और संजय का बेटा राजेश भी था, सब लोग कमरे में चल रहे काम के खेल से अनजान हो कर सो रहे थे।
संजय ने फिर अपने लंड को पकड़ा और पुष्पा की टांगों को फैलाकर उनके बीच जगह ली, और अपने लंड को पुष्पा की चूत पर रखा, पुष्पा की गरम गीली चूत पर लंड का स्पर्श होते ही दोनों के मुंह से आह निकल गई,
संजय: आह भाभी मैंने इस पल के बारे में न जाने कितनी बार सोचा है,
पुष्पा: क्या सच में तुम पहले से ये सब करना चाहते थे मेरे साथ?
संजय: हां भाभी जबसे तुम ब्याह के घर में आई तब से ही, पर संस्कारों और मर्यादा के चलते ये सब छुपा कर रखा हमेशा हमेशा खुद को रोक लिया,
संजय अपने लंड को पुष्पा की चूत पर घिसते हुए कहता है।
पुष्पा: अब आह अब रुकने की जरूरत नहीं है देवर जी, आह घुसा दो और पूरी कर लो अपनी इच्छा,
संजय: हां भाभी अब नहीं रुकूंगा।
ये कह संजय क़मर को झटका देता है और उसका लंड पुष्पा की गरम चूत में समा जाता है, दोनोके मुंह से गरम आहें निकलने लगती हैं, दोनों इस अदभुत पल के अहसास को इस आनंद को अपने अंदर समाने लगते हैं, इस अनैतिक संबंध की सोच इस वर्जित संबंध का अहसास उन्हें और उत्तेजित कर रहा था, संजय धीरे धीरे पुष्पा की चूत में धक्के लगाने लगता है पुष्पा हर धक्के पर सिसकने लगती है, हर पल के साथ संजय के धक्कों की गति बढ़ती जाती है, और कुछ ही देर में संजय ताबड़तोड़ धक्कों के साथ अपनी भाभी को चोद रहा था, पुष्पा की लगातार आहें और सिसकियां निकल रही थी
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पुष्पा कभी उत्तेजित होकर अपनी चूचियां मसलती तो कभी संजय का हाथ पकड़ कर उसे थोड़ा धीरे करने को कहती पर संजय तो जैसे एक अलग ही दुनिया में था, इतना उत्तेजित वो कभी नहीं हुआ था, ऐसा आनंद उसे कभी नहीं आया था जो उसे अपनी भाभी की चूत में मिल रहा था, वो चाहता भी तो अब खुद को नहीं रोक सकता था, उसकी कमर मशीन की तरह आगे पीछे हो रही थी और उसका लंड उसकी भाभी की चूत में अंदर बाहर हो रहा था,
शहर में सुभाष और छोटू चैन से सो रहे थे इस बात से बेखबर होकर कि गांव में उनकी पत्नी और मां नंगी होकर, उनके भाई या चाचा से चुद रही थी। शहर में भी ऐसा नहीं था जो हर कोई सो रहा था, संजय जहां गांव में जाग रहा था तो उसका बेटा राजेश भी सो नहीं पा रहा था, उसे नींद नहीं आ रही थी, उसकी आंखों के सामने कुछ दृश्य बार बार आ रहे थे, वो दृश्य पुराने नहीं थे बल्कि आज शाम के ही थे जब वो छोटू और सत्तू शहर घूम कर बापिस आ रहे थे तो सत्तू और छोटू खाना लेने के लिए ढाबे पर रुक गए थे और वो मंडी में चला आया था, उसने इधर उधर देखा तो उसे अपने ताऊ यानि सुभाष और सत्तू की मां झुमरी कहीं नहीं दिखाई दी वो गोदाम के पास पहुंचा तो देखा कि उसके किवाड़ लगे हुए थे, पर उसे अंदर से हल्की हल्की आवाज़ आ रही थी, राजेश ने पास जाकर किवाड़ को ध्यान से देखा तो उसे एक छोटा सा छेद दिखा,उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई की कोई उसे देख तो नहीं रहा और फिर अपनी आंख उस छेद पर लगा दी और जो उसे अंदर दिखा उसे देख वो चौंक गया। अंदर उसके ताऊजी सत्तू की मां को नीचे लिटाकर चोद रहे थे। ये सब देख राजेश तब से सोच में था उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे, क्या किसी को बताए इस बारे में, क्या सत्तू को? नहीं नहीं गड़बड़ हो जाएगी, क्या छोटू को? पर कैसे? साथ ही उसका जवान बदन ये नज़ारा सोच सोच कर उत्तेजित भी हो रहा था।


इधर गांव में संजय के धक्के बिल्कुल लगभग बेकाबू हो गए थे और वो गुर्राते हुए पुष्पा की चूत में झड़ रहा था, पुष्पा भी इस तगड़ी चुदाई के दौरान झड़ चुकी थी, और अभी अपनी चूत में अपने देवर के रस को भरता हुआ महसूस कर रही थी, संजय झड़ने के बाद पुष्पा के ऊपर ही पसर गया और कुछ देर यूं ही लेटा रहा और जब पुष्पा ने उससे कहा वो दब रही है तो वो उसके ऊपर से हटा और उसका लंड भी पुष्पा की चूत से निकल गया, दोनों लेट कर हांफने लगे। धीरे धीरे शांत होने पर दोनों के अब दिमाग में चलने लगा कि उन्होंने अभी क्या किया है, और ग्लानि के भाव आने लगे, अक्सर ऐसा होता है वासना के बादल हटने पर सच्चाई की धूप अक्सर ग्लानि की गर्मी में लोगों को जलाती है। यही दोनों के साथ हो रहा था।
संजय ने पुष्पा की ओर देखा तो वो छत की ओर खुली आंखों से देखे जा रही थी, उसकी मोटी चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रहीं थीं, संजय ने उसकी ओर करवट ली और अपना हाथ उसने पुष्पा के पेट पर रखा, जिसे रखते ही पुष्पा ने उसे अपने ऊपर से झटक दिया, जिससे संजय को हैरानी हुई।
पुष्पा: अब जाओ संजय।

पुष्पा बिना उसकी ओर देखे बोली, संजय को भी यही सही लगा, अभी इस हालत में उसे अकेला ही छोड़ देना सही होगा, संजय उठा और अपने कपड़े पहन कर बाहर से किवाड़ भिड़ा कर चला गया, पुष्पा अभी भी छत की ओर देखे जा रहीथी और फिर अचानक उसके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।
जारी रहेगी।
 
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Arthur Morgan

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Garam garam update thanks guruji

Fantastic update Bhai.....


Waiting more

Nice update bro 👍 👍

Mst garma garam update bhai aisehi mjedaar updates likhte rhyea jldi jldii

Ekadam mast update hai

Bot hi hot story hai .

Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki

बहुत ही शानदार रोमांचक अपडेट

Bahut hee shandaar or kamuk update diya hai…

Shandaar update

Gajab update bhai
Maza aa gaya
Waiting for next update

Aj ayega update ?

Next update

Update pls

Waiting sir

अध्याय 24 पोस्ट कर दिया है पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें बहुत बहुत धन्यवाद।
 
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