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Adultery उल्टा सीधा

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insotter

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रानी: अरे मां क्या हुआ, उठ जाओ सुबह हो गई, देखो कबसे आवाज लगा रही हूं।
रत्ना: हां आवाज क्या,
रत्ना को तब समझ आता है वो सपना देख रही थी।
रानी: लो मां चाय पिलो नींद खुल जाएगी
रत्ना: हां दे।

वो उठ कर चाय पीते हुए अपने सपनो के बारे में सोचने लगी।


अध्याय 23
रत्ना चाय पीते हुए अपने अजीब और अश्लील सपनों के बारे में सोच रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसे सपने वो भी सुबह सुबह उसने क्यों देखे, उसका अंदविश्वासी स्वभाव उसे कुछ गलत की ओर इशारा कर रहा था वो इन सपनों को किसी अनहोनी का संकेत मान रही थी, और उससे कैसे बचा जाए वो सोच रही थी।
चाय खत्म कर वो बिस्तर से उठी और अपना ध्यान घर के कामों में लगाने की कोशिश करने लगी।

दूसरी ओर नाव वाले रात को ही निकल गए थे और भोर होते होते वो शहर के करीब पहुंच गए थे, सुभाष की नाव में थोड़ा सामान और सब आदमी लोग थे वहीं सत्तू की नाव में भी सब्जियां थी साथ ही सत्तू, उसकी मां झुमरी, राजेश और छोटू थे, राजेश और सत्तू मिलकर पतवार चला रहे थे वहीं छोटू नाव के किनारे लेटकर सो रहा था,

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सत्तू: इसे देखो हमारी बाजू दुख गई चप्पू चलाते हुए और ये सेठ जी मजे की नींद ले रहे हैं।
रजनी: अरे सोने दे ना अब बस पहुंच ही गई।
राजेश: तभी तो ताई इसे उठाना पड़ेगा नहीं तो आलसी सोता ही रहेगा। ए छोटू उठ,
सत्तू: ये ऐसे नहीं उठेगा,
सत्तू ने फिर थोड़ा पानी हाथ में लिया और छोटू के ऊपर फेंका तो छोटू हड़बड़ा के उठा उसका चेहरा देख सत्तू और राजेश हंसने लगे।
कुछ ही देर में नाव शहर पहुंच चुकी थी, उन्हें अच्छे से बांध कर सारा सामान उतारा गया, अस्थियों को सिराने वाले जो लोग थे वो वहीं से बस अड्डे की ओर निकल गए बाकी लोग सब्जियों को बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी में भरकर मंडी की ओर चल पड़े,
मंडी में पहुंच कर सामान उतार कर अपनी अपनी दुकान सजाई गई, और फिर तब तक ग्राहकों का आना शुरू हो गया, सत्तू ने अपनी मां को दुकान पर बैठा दिया था और वो सब्जी तोलना, कट्टे खोलना आदि काम कर रहा था, वहीं सुभाष अपनी दुकान पर था और छोटू और राजेश दूसरे काम कर रहे थे।
सत्तू की दुकान पर थोड़ी भीड़ ज्यादा लग रही थी, कारण थी झुमरी, लोग झुमरी के भरे कामुक बदन को देख उसकी दुकान से सब्जियां खरीद रहे थे।

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सत्तू भी खूब मेहनत कर जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था, दूसरी ओर सुभाष की भी अच्छी बिक्री हो रही थी, छोटू और राजेश उसका पूरा साथ दे रहे थे। बीच बीच में छुपकर सुभाष और झुमरी की आंख मिचौली भी चल रही थी, दोनों के बीच बने इस अनैतिक संबंध को करीब 2 वर्ष हो चले थे, सुभाष और झुमरी के पति अच्छे मित्र थे, झुमरी के पति के देहांत के बाद सुभाष ने जितनी हो सकी थी उतनी मदद की थी झुमरी और सत्तू की, झुमरी को भी धीरे धीरे सुभाष का सहारा भाने लगा था, झुमरी को जीवन में मर्द की कमी महसूस होने लगी तो उसने सबसे पहले सुभाष को खड़ा पाया और फिर धीरे धीरे दोनों करीब आने लगे और फिर एक दिन दोनों के बदन भी मिल गए। इस राज को दोनों के अलावा और कोई नहीं जानता था।

दूसरी ओर गांव में संजय खेत में पानी लगा रहा था सुबह से ही बादल छाए हुए थे, दोपहर का समय हो चला था, घर पर सुधा और पुष्पा ही थीं फुलवा सो रही थी,
सुधा: अरे जीजी किसी बालक को बुलाना पड़ेगा इनके लिए खाना पहुंचाना है।
पुष्पा: अरे हां, देवर जी भूखे होंगे,
सुधा: मैं देखती हूं भूरा या लल्लू हो तो बुला लाती हूं।
पुष्पा: अरे रहने दे जब तक उन्हें बुलाने जाएगी तब तक मैं ही दे आऊंगी। वैसे भी बादल हो रहे हैं।
सुधा: कह तो सही रही हो जीजी, तुम ही चली जाओ।

पुष्पा तुरंत एक पोटली में खाना बांधती है और घर से निकल जाती है आधे से ज्यादा रास्ता पर कर जाती है अब खेत बस दो खेत पार ही था लेकिन तभी अचानक बारिश आ जाती है बड़ी बड़ी बूंदें उसे भिगाने लगती हैं और कुछ ही कदम में वो भीग जाती है,
पुष्पा: अरे लो पूरी भीग गई बारिश भी थोड़ी देर बाद नहीं हो सकती थी क्या?
उसकी साड़ी पूरी गीली होकर उसके बदन से चिपक जाती है और वो किसी तरह से कपड़े और पोटली संभालते हुए मेढ़ पर आगे बढ़ती जाती है,
खेत पर पहुंच कर उसे संजय दिखता है जो, फावड़े से मेड काट रहा था, वो भी पूरा गीला था और सिर्फ अपने निक्कर को पहने हुए था, पुष्पा उसे देख उसकी ओर बढ़ जाती है, पुष्पा पास पहुंचने वाली होती है तो संजय उसे देखता है,
संजय: अरे भाभी तुम यहां क्या कर रही हो,
संजय उसे देखते हुए कहता है, पूरा बदन तर है, पल्लू गीला होकर एक ओर चिपक गया है जिससे उसका मांसल गोरा पेट और गहरी नाभी, और ब्लाउज़ के बीच से चूचियों की दरार दिख रही थी,
पुष्पा: अरे तुम्हारा खाना लेकर आई थी, पर रास्ते में ही मुई बारिश आ गई।
पुष्पा पास आते हुए कहती है, और फिर संजय के बगल की मेढ़ पर धम से बैठ कर हांफने लगती है,
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संजय: अरे भाभी तुम भी न क्या ज़रूरत थी, किसी बच्चे के हाथों भेज देती या नहीं भी खाता तो क्या हो जाता आज।
संजय अपनी भाभी को देखते हुए बोला पर उसकी नजरें अपनी भाभी के बदन पर फिसल कर अपने आप जा रहीं थीं, पुष्पा का गोरा पेट, ब्लाउज में कसी हुई बड़ी बड़ी चूचियां, साड़ी में आकार दिखाती मोटी जांघें संजय के बदन में बारिश में भी गर्मी बढ़ाने लगे। वो ये तो हमेशा से देखता आया था कि उसकी भाभी सुंदर और कामुक हैं और अपनी शादी से पहले कई बार संजय ने पुष्पा के बारे में सोच कर हिलाया भी था पर शादी के बाद से उसने इन खयालों को मन से निकाल दिया था। क्योंकि उसे रिश्तों की और सम्मान की चिंता थी। पर आज पुष्पा को यूं देख उसके खयाल बापिस आ रहे थे।
पुष्पा: अरे नहीं सुबह से लगे हुए हो, भूख तो लगी होगी, और बादल हो रहे थे तो मैने सोचा मैं ही जल्दी दे आती हूं इसलिए आ गई।
संजय चलो कोई नहीं तुम उधर कोने के पेड़ के पास बैठो भाभी मैं अभी आया, संजय जैसे ही मुड़ता है, तो चौंक जाता है,
संजय: अरे तेरी, भाभी तुम यहीं रुकना और इस मेड को रोकना आगे मेढ़ कट गई है मैं बांधता हूं पर भाभी ध्यान से यहां से पानी न जा पाए आगे नहीं तो दूसरी फसल खराब हो जाएगी।
संजय ने आगे भागते हुए कहा, पुष्पा तुंरत फावड़े से मिट्टी दबाने लगी ताकि पानी उसे काट न सके, पर पानी का दबाव बढ़ता जा रहा था और मिट्टी कटती जा रही थी, पुष्पा ने फावड़ा छोड़ और हाथों से मिट्टी लगाने लगी पर उसके लगाते ही पानी तुरंत उसे बहा ले जाता ओर अगले पल ही सारी मिट्टी बह चली और पानी आगे बढ़ने लगा, पुष्पा ने सोचा देवर जी ने तो कहा था कि पानी आगे न जा पाए, अब क्या करूं, उसके दिमाग में एक उपाय आया और वो तुरंत आगे होकर खुद पानी के रास्ते में बैठ गई, उसके चौड़े चूतड़ों और भरे बदन ने रस्ते को घेर लिया और पानी रुक गया,

पुष्पा ने मन ही मन सोचा चलो पानी तो रुका कम से कम, थोड़ी देर में ही संजय आया और उसने पुष्पा को खुद को मेढ़ के बीच बैठे देखा तो हंसने लगा।
संजय: अरे भाभी तुम तो खुद ही बांध बन गई,
पुष्पा: क्या करती पानी रुक ही नहीं रहा था, तुमने ही कहा था पानी आगे न जा पाए।
संजय: चलो अच्छा किया अब उठ जाओ मैने आगे मेढ़ बांध दी है,

पुष्पा उठती है और मेढ़ से निकलने के लिए उसके किनारे पर पैर रखती है, पर उसका पैर फिसल जाता है और वो आगे की ओर गिरती है संजय उसे पकड़ने के लिए आगे कदम बढ़ाता है पर उसका पैर भी फिसल जाता है, अगले ही पल दोनों खेत में गिर जाते हैं, संजय नीचे होता है पुष्पा उसके ऊपर, दोनों के चेहरे बिल्कुल एक दूसरे के सामने, संजय के हाथ पुष्पा की नंगी कमर पर पुष्पा का बदन संजय के नंगे बदन पर, कुछ पल यूं ही रहता है दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं, पुष्पा को अपने देवर के बदन से चिपक कर बारिश में भी अपने बदन में गर्मी का एहसास होता है, संजय की भी उत्तेजना बढ़ने लगती है अपनी भाभी के बदन के एहसास से,
पुष्पा को जैसे होश आता है वो संजय के ऊपर से उठती है, दोनों ही थोड़ा असहज महसूस करते हैं
तुम्हारी साड़ी और कपड़े सब पर कीचड़ लग गया भाभी, संजय उठते हुए कहता है,
पुष्पा: देख लो सब तुम्हारे लिए खाना लाने का फल है, पुष्पा थोड़ा हंसकर असहजता को हटाने का प्रयास करती है,
संजय: इस मेहनत का फल तुम्हें जरूर मिलेगा, चलो मैं खाना खा लूंगा तुम अब घर जाकर नहा लेना नहीं तो बेकार में जाड़ा लग जाएगा।
संजय हंसते हुए मुड़ कर आगे की ओर बढ़ते हुए कहता है, और पोटली लेकर चलने लगता है,
पुष्पा: हां अब मेरे भी बस की नहीं है यहां रुकना।
पुष्पा हंसते हुए कहती है और घर की ओर बढ़ने लगती है,
संजय कोने वाले पेड़ की ओर जाने लगता है ताकि उसके नीचे बैठ कर कुछ खा सके, की तभी उसे अचानक से पुष्पा की चीख सुनाई देती है, वो पोटली और फावड़े को छोड़ भागता है अपने खेत के कोने में जाकर देखता है तो उसकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं वो देखता है उसकी भाभी नीचे जमीन पर गिरी हुई है पूरी कीचड़ में सनी हुई, और दर्द की आहें भर रही है और फिर उठने की कोशिश करती है।

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संजय एक पल को तो बस ज्यों का त्यों रह जाता है, पर फिर तुरंत आगे बढ़ता है और पुष्पा को सहारा देकर उठाया। संजय का एक हाथ पुष्पा के हाथ पर था तो दूसरा उसके मखमली पेट पर।
संजय: अरे भाभी आराम से, लगी तो नहीं?
पुष्पा: नहीं ज़्यादा तो नहीं बस फिसल गई इसलिए चीख निकल गई।
संजय: अच्छा हुआ कि लगी नहीं, आओ चलो मेढ़ पर पानी से साफ कर लो खुद को,
संजय ने उसे आगे सहारा देते हुए कहा, उसका हाथ पुष्पा के मखमली पेट पर था और संजय को वो एहसास बहुत अच्छा लग रहा था उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी उसका लंड भी सख़्त होने लगा था, पुष्पा को भी देवर के गठीले बदन का एहसास उत्तेजित कर रहा था, कुछ पल बाद दोनों ही मेढ़ के पास थे, संजय उसे सहारा देकर मेढ़ के बीच घुसा देता है, पुष्पा अपनी साड़ी और पेटीकोट को घुटनों तक उठाकर वहीं घुटनों पर बैठ जाती है और खुद को धोने लगती है,
संजय खड़ा होकर अपनी भाभी को देखता है, पुष्पा के गदराए बदन को, उसके मखमली मांसल पेट को, जिस पर वो पानी डालकर उसे साफ करती है, उसकी गोल गहरी कामुक नाभी को, ब्लाउज़ में से झांकता चूचियों की लकीर को, ये सब देख उसका लंड तन जाता है।
पुष्पा खुद को साफ कर लेती है और फिर बैठे हुए ही संजय की ओर देखती है और पाती है वो भी उसे टकटकी लगाए देख रहा है

unnamed-32पुष्पा को उसका देखना थोड़ा अलग लगता है, कुछ देर तक दोनों ही एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं फिर पुष्पा खड़ी होती है, और संजय उसे हाथ देकर मेढ़ से बाहर निकालता है, दोनों कुछ नहीं बोलते, पुष्पा नीचे उतर कर अपने पल्लू को सही करती है और सीने पर डालती है, दोनों आगे चलने लगते हैं दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी है, चलते हुए पुष्पा का पैर एक बार फिर हल्का सा फिसलता है पर संजय तुरंत उसे पकड़ लेता है, संजय के हाथ उसके पेट और पीठ पर आ जाते हैं।
संजय: भाभी संभल के।
संजय उसकी आंखों में देखते हुए कहता है, पुष्पा भी उसकी आंखों में देख सिर हिलाती है, संजय अभी भी उसे ऐसे ही पकड़े हुए है, उसका हाथ अभी पुष्पा के पेट पर है, संजय को अचानक मन ही मन कुछ विचार आता है और वो अपना चेहरा आगे कर पुष्पा के होठों को अपने होंठों में भर लेता है और चूसने लगता है।
पुष्पा को संजय के इस कदम से झटका लगता है वो पीछे होने की कौशिश करती है पर संजय के हाथ उसकी पीठ और पेट पर कस जाते हैं एक हाथ उसके पेट की मखमली त्वचा को सहलाने लगता है, पुष्पा जो काफी दिनों से प्यासी थी, संजय की लगाई हुई इस चिंगारी से सुलगने लगती है और फिर अगले ही पल संजय का साथ देने लगती है, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगते हैं संजय के हाथ पुष्पा की पीठ और पेट को मसलने लगते हैं, कुछ देर होंठो को चूसने के बाद दोनों के होंठ अलग होते हैं पर आग बढ़ चुकी होती है, संजय उत्तेजना से पागल हो कर पुष्पा के बदन को चूमने लगता है, पुष्पा भी उत्तेजना में सिहरने लगती है,
पुष्पा: आह देवर जी ओह हम्म
संजय होंठो के बाद चेहरे को और फिर गर्दन को चूमते हुए नीचे बढ़ता है, वो पल्लू को सीने से हटा कर नीचे कर देता है, और सीने को चूमने लगता है, फिर ब्लाउज़ के ऊपर से ही चूचियों को चूमते हुए नीचे बैठ जाता है, और फिर पुष्पा के मखमली पेट को चाटने चूमने लगता है और पुष्पा इस एहसास इस गर्मी से पिघलने लगती हैं,

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पुष्पा: ओह आह देवर जीईईईई ओह।
संजय भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पुष्पा के मखमली बदन का स्वाद लेने से, पुष्पा की चूचियां उत्तेजित होकर ब्लाउज में तन गई थीं और ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं थी,
संजय ने पुष्पा का पेट और कमर मसलते और चूमते हुए अपने हाथ ऊपर बढ़ाए और पुष्पा के ब्लाउज़ पर रख दिए और फिर धीरे से एक हुक खोल दिया और अगला खोलने लगा कि दोनों को दूसरे खेतों से आवाज़ सी आई किसी की तो दोनों तुरंत दूर हो गए, पुष्पा ने तुरंत अपना पल्लू ठीक से डाला और संजय भी इधर उधर देखने लगा, पुष्पा फिर तुरंत खेत से बिना कुछ बोले चल दी,
रास्ते भर पुष्पा के मन में जो कुछ हुआ उसके खयाल चल रहे थे उसकी चूत नम थी उसका बदन उत्तेजना में जल रहा था पर साथ ही वो जो हुआ उसके परिणाम और सही गलत सोच रही थी,
एक मन कह रहा था अच्छा हुआ जो वो लोग रुक गए और पाप नहीं हुआ, दूसरा मन कहता अपने बेटे से चुदने से बड़ा पाप क्या होगा, उसके मन में द्वंद चल रहा था। जल्दी ही वो घर पहुंच गई तो सुधा ने उसे गीला देखा और बोली: अरे जीजी तुम तो पूरी तर हो चलो जल्दी से खुद को सुखा लो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी, चलो मैं सूखे कपड़े निकलती हूं तब तक तुम ये सब उतार दो, सुधा ने उसकी साथ कमरे में चलते हुए कहा, घर पर सिर्फ वो दोनों ही थीं, नंदिनी सिलाई सीखने गई थी और फुलवा रत्ना के यहां थी।
पुष्पा ने जल्दी से अपने गीले कपड़े उतारे और पूरी नंगी हो गई, और खुद को सूखे अंगोछे से पोंछने लगी, सुधा कपड़े निकाल कर अपनी जेठानी के नंगे बदन को देखने लगी, उसे देख उसे भी कुछ कुछ होने लगा,
पुष्पा ने भी सुधा को ऐसे देखते हुए पाया और बोली: क्या देख रही है, ऐसे?
सुधा के मन में भी न जाने क्या आया कि उसने भी आगे बढ़ कर पुष्पा के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, पुष्पा हैरान रह गई ये सब बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे अभी उसके और सुधा के बीच खेत में हुआ था, पहले पति और अब पत्नी, पुष्पा के मन में कई खयाल थे पर अभी सुधा के चुम्बन ने उन खयालों पर ध्यान ही नहीं देने दिया और वो भी सुधा के होंठों को उसका साथ देते हुए चूसने लगी।

सुधा के हाथ जेठानी के नंगे और हल्के गीले बदन पर फिरने लगे, उनके होंठ आपस में जुड़े हुए थे, पुष्पा भी अब जोश में थी और होंठों को चूसते हुए उसने सुधा के पल्लू को नीचे गिरा कर उसके ब्लाउज़ के हुक खोल दिए थे, कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए पर गर्मी कम नहीं थी, होंठ अलग होते ही पुष्पा ने सुधा के ब्लाउज़ को उतार कर अलग फेंक दिया अब सुधा ऊपर से नंगी थी पर सुधा ने खुद अपनी साड़ी भी उतार दी उसके बदन पर बस एक पेटीकोट रह गया, सुधा पुष्पा के पीछे आई और पीछे से उसके चूचों को पकड़ कर मसलने लगी उनसे खेलने लगी,
पुष्पा के मुंह से सिसकियां निकलने लगी। सुधा चूचियों को मसलते हुए फिर से पुष्पा के आगे आई और फिर से दोनों के होंठ मिले,

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दोनों फिर से एक दूसरे के होंठो को चूमने लगी और फिर थोड़ी देर बाद अलग होकर सुधा नीचे सरकने लगी और पुष्पा की मोटी चूचियों को मसलने और चूसने लगी,
पुष्पा: अह सुधा आह, ओह अच्छा लग रहा है,
पुष्पा उसके सिर को सहलाते हुए बोली,
सुधा तो भूखों की तरह अपनी जेठानी की चूचियों को चूस रही थी।
और पुष्पा जिसकी प्यास पहले ही बड़ी हुई थी और बढ़ रही थी।
चूचियों को जी भर के चूसने के बाद सुधा और नीचे सरकी और पुष्पा के पेट को चाटने लगी, पुष्पा को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले यही पेट उसका पति चाट रहा था और अब पत्नी चाट रही है, ये सोच कर उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी, वहीं सुधा तो चाहती थी कि पुष्पा के बदन का कोई भी हिस्सा न रह जाए जिसे वो चाट न पाए, पुष्पा की नाभी में जीभ घुसाकर चूसने में सुधा को जैसे एक असीम आनंद मिला वहीं पुष्पा का बदन कांप कर रह गया,
सुधा: जीजी तुम्हारा बदन तो मक्खन है, इतना स्वाद है कि मन करता है चाटते जाओ,
सुधा ने उसकी नाभि से जीभ हटाते हुए कहा।
पुष्पा: आह तो खा जा ना आह,
पुष्पा ने अपनी टांगों को आपस में घिसते हुए कहा उसकी चूत गरम हो कर रस बहा रही थी, साथ ही बहुत खुजा रही थी अब उसकी चूत को भी कुछ सुकून चाहिए था, पुष्पा के लिए ये सहना मुश्किल होता जा रहा था, इसलिए वो अनजाने ही सुधा के सिर को पकड़कर नीचे अपनी टांगों के बीच ले जाने लगी, कुछ पल बाद सुधा का मुंह उसकी जेठानी की गीली चूत सामने था, सुधा जेठानी की चूत को ध्यान से देखने लगी और उसे चूत का गीलापन, उसके होंठों की चिकना हट अच्छी लगी, इससे आगे वो कुछ सोचती या करती, पुष्पा ने उसका मुंह अपनी चूत में घुसा दिया या यूं कहें कि अपनी चूत को सुधा के होंठों पर घिसने लगी। सुधा को अचानक झटका लगा उसके होंठों पर उसकी जेठानी की चूत का स्वाद आ रहा था, पर उसे जैसे इससे कोई परेशानी नहीं थी, जितनी गर्मी पुष्पा में थी उतनी ही सुधा में भी थी, सुधा ने भी स्वाभाविक ही अपनी जीभ निकाली और अपनी जेठानी की चूत चाटने लगी,


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पुष्पा तो मानो जन्नत में पहुंच गई उसकी कमर और बदन मचल रहा था, वहीं सुधा को अपनी जेठानी की चूत मानो रस से भरा हुआ कोई फल लग रही थी जिस तरह वो उसे चाट रही थी,
पुष्पा: आह सुधा आह ऐसे ही चूस, खा जा मेरी चूत को, आह बहुत खुजली है इसमें।

पुष्पा की बातों ने सुधा का उत्साह और बढ़ा दिया और सुधा और लगन से अपनी जेठानी की सेवा करने लगी। और सेवा का फल भी उसे रस के रूप में जल्दी ही अपने मुंह में प्राप्त हुआ, पर सुधा उसे भी मलाई मान कर गटक गई, सुधा आज खुद को भी हैरान कर रही थी उसे भी नहीं पता था कि वो अंदर से इतनी प्यासी और उत्तेजना में जल रही है कि अपनी जेठानी की चूत से निकला रस भी उसने पी लिया,
पुष्पा बेजान सी होकर पीछे लेटी हुई थी और तेज तेज हाफ रही थी, सुधा भी उसके बगल में लेट गई, कुछ पल बाद पुष्पा को होश आया तो उसने बगल में लेटी अपनी देवरानी को देखा और उसे याद आया कि उसने कितनी अच्छी तरह अभी उसकी सेवा की थी, पुष्पा ने आगे बढ़ कर सुधा के होंठों को चूम लिया और बोली: आह आज तक ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी।
सुधा: ऐसे कैसे जीजी, तुम्हारी जान में तो हमारी जान बसती है,
पुष्पा: अब मेरी बारी मैं भी तो स्वाद चख कर देखूं अपनी देवरानी का,
ये सुन कर सुधा के चेहरे की मुस्कान और बढ़ी हो गई, और उसके कुछ देर बाद ही

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पुष्पा की जीभ सुधा की चूत पर चल रही थी या कहूं कि सुधा अपनी चूत को पुष्पा के मुंह पर घुस रही थी। और कुछ ही पलों में झड़ रही थी, उसका बदन अकड़ा और फिर वो भी थक कर नीचे गिर गई, तभी उन्हें दरवाज़े पर दस्तक सुनाई दी।

कुछ देर बाद दोनों आंगन में थी और बिल्कुल साधारण संस्कारी बहुएं लग रही थीं, फुलवा और नंदिनी घर आ चुके थे, सुधा चूल्हे पर चाय चढ़ा रही थी तो फुलवा रात के लिए चावल बीन रही थी, चाय लेकर सुधा भी पुष्पा के साथ बैठ गई दोनों के बीच एक रहस्य भरी मुस्कान तैर गई,
पुष्पा: क्यों मुस्कुरा रही हो देवरानी जी।
सुधा: कुछ सोच कर जेठानी जी?
पुष्पा: क्या सोच कर?
सुधा: यही कि इस चाय का स्वाद तुम्हारे रस जैसा नहीं है,
ये सुन पुष्पा शर्मा गई और बोली: वैसे ये बात तो मैं तेरे लिए भी कह सकती हूं।
पुष्पा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा,
सुधा: अच्छा जीजी एक बात थोड़ी अजीब है।
पुष्पा: क्या?
सुधा: वैसे ये चूत को मूत्र द्वार कहते हैं और सब इसे गंदी और गलत चीज मानते हैं, पर आज चाटते हुए मुझे एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं कुछ गलत या गंदा कर रहीं हूं।
पुष्पा: हां मेरे मन में भी एक भी बार जरा भी नहीं आया ये, शायद ये सब गलत हो।
सुधा: अब चाहे गलत हो या सही मैं तो तुम्हारा स्वाद चखती रहूंगी।
पुष्पा: तू भी मुझसे बच के नहीं रहेगी।
दोनों आपस में फुसफुसाते हुए खिल खिला रही थी।

दिन में लल्लू आंगन में बैठ कर रात के बारे में सोच रहा था कि कैसे उसने अपने मां पापा की चुदाई देखी थी साथ ही अपनी बहन को भी देखते हुए पकड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस बारे में अपनी बहन से बात करे जिससे उसे कुछ फायदा हो,
इतने में उसकी मां लता बाहर से आई और बोली: लल्ला बैठा है देख नहीं रहा बूंदे पड़ रही हैं कपड़े उतार ले,
और खुद आंगन में सूख रहे कपड़े उतारने लगती है, कपड़े उतारते हुए लता का पल्लू एक ओर को सरक जाता है जिससे उसका मांसल गोरा पेट उसकी नाभी और ब्लाउज़ में बंद बड़ी बड़ी चूचियां लल्लू के सामने आ जाती हैं,

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लल्लू का लंड ये नज़ारा देख कड़क होने लगता है,
लता: अब बैठा क्या देख रहा है ले ये कपड़े ले जा और रख दे कमरे में,
लल्लू उठ कर जल्दी से कपड़े लेता है, और कमरे के अंदर जाता है दौड़ कर रख आता है, और बाहर आकर देखता है उसकी मां अभी भी आंगन में खड़ी है।
लल्लू: अरे मां क्यों वहां क्यों खड़ी हो भीग जाओगी आओ अंदर।
लता: अरे कितनी अच्छी बारिश हो रही है आज नहाऊंगी मैं तो बारिश में,
लल्लू: अरे वाह मां, फिर तो मैं भी नहाऊंगा,
लल्लू भी अपनी कमीज़ उतारते हुए बोला, लता ने भी अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया था और कुछ ही पलों में एक ओर टांग दिया, अब लता लल्लू के सामने पेटीकोट और ब्लाउज़ में खड़ी थी,

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लता या गांव की कोई भी औरत ब्रा तो कभी कभी ही पहनती थी तो उस कारण से उसका ब्लाउज़ गीला होकर हल्का पारदर्शी हो गया था और उसकी चूचियों की हल्की झलक दिखा रहा था, ये देख तो लल्लू का और बुरा हाल हो रहा था।
वो सोचने लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मां के करीब आने का अभी घर पर भी कोई नहीं है, सिवाय हम दोनों के, और जब तक बारिश होगी कोई आने से भी रहा, ये सोचते हुए और बस एक निक्कर में लल्लू भी आंगन में जाकर बारिश में भीगने लगा, पर उसकी नजर अपनी मां के बदन पर बनी हुई थी,
लल्लू: मज़ा आ रहा है न मां बारिश में नहा कर।
लता: हां लल्ला मुझे बारिश हमेशा से ही पसंद रही है, बचपन में तो मैं बारिश में भीगते हुए खूब नाचती थी,
लल्लू: सच में मां तुम्हे इतना मज़ा आता है बारिश में?
लता: हां सच्ची।
लल्लू: तो मां अब भी नाचो न देखो कितनी अच्छी बारिश है।
लता: अभी न बाबा न अब इस उम्र में नाचना नहीं होगा, किसी ने देखा तो गांव भर में मजाक उड़ जाएगा।
लल्लू: अरे मां कौन उड़ाएगा मजाक हमारे अलावा कोई है यहां, और नाचने का उम्र से क्या लेना देना।
लता: अरे नहीं फिर भी अब नाचना नहीं होगा।
लल्लू: अरे क्यों नहीं होगा, मां नाचो न मैं भी साथ दूंगा तुम्हारा, नाचो ना, नाचो न।
लल्लू जिद करते हुए कहता है साथ ही लता जी कमर और पेट पकड़ कर उसे हिलाने लगता है।
लता: अरे लल्ला गिर जाऊंगी मैं आराम से तू तो बिल्कुल बावरा हो गया है अच्छा छोड़ मुझे करती हूं।
लल्लू अब भी उसे पकड़े हुए था और न चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ता है।
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लता भी अपने बचपन की याद करके धीरे धीरे बदन हिलाने लगती है उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था भले ही लल्लू की ज़िद की वजह से पर वो अपने बचपन की याद को ताज़ा कर पा रही थी, वहीं लल्लू को अपनी मां का थिरकता बदन देख एक अलग ही आनंद आ रहा था, उसका लंड उसके निक्कर में कड़क हो चुका था जिसे उसने नीचे करके किसी तरह से छुपाया हुआ था
और लंड कड़क होने का कारण भी था उसकी मां अपने भरे बदन को जो पूरी तरह गीला था उसे उसके सामने थिरका रही थी,
लल्लू को लग रहा था जैसे वो किसी भरे बदन की फिल्मी हीरोइन को नाचते देख रहा है, सबसे बड़ी बात ये हीरोइन उसकी मां थी जिसे सिर्फ अभी वो ही देख रहा था, लल्लू को ये सोच बहुत अच्छा लग रहा था, वहीं लता लगातार नाच रही थी

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लल्लू को अपनी मां का ये रूप बहुत भा रहा था कुछ देर और यूं ही नाचने के बाद लता हंसते हुए रुक कर बैठ गई।
लता: आह मैं तो थक गई, आखिर तूने अपनी ज़िद पूरी करवा ही ली।
लल्लू: जिद तो पूरी कराई मां। पर ये बताओ तुम्हे मज़ा आया कि नहीं?
लता: सच कहूं तो मज़ा तो आया, बचपन याद आ गया।
लल्लू: इसीलिए तो ज़िद की थी मां,
लता: हाय मेरा लल्ला कितनी फिकर करता है अपनी मां की, पर अब चल, और कपड़े बदल लेते हैं नहीं तो तबियत बिगड़ जाएगी

लल्लू: क्या इतनी जल्दी? थोड़ी देर और रुकते हैं न.
लता: हां अब बहुत हो गया, मैने तेरी बात मानी अब तू मेरी मान।

लल्लू: ठीक है मां चलते हैं, छप्पर के अंदर आकर लता लल्लू से कहती है तू ले ये अंगोछे से खुद को पौंछ कर साफ कर मैं तब तक कमरे से तेरी पेंट निकाल कर देती हूं।
लल्लू: ठीक है मां,
लता कमरे में चली जाती है और लल्लू अंगोछे से अपने बदन को पोंछने लगता है, वो अपने गीले निक्कर को उतारता है जिसके उतरते ही उसका खड़ा लंड उछल कर बाहर आ जाता है वो अपने निक्कर को पैरों से निकाल कर उतार देता है,
उसी समय लता उसके लिए सूखा पेंट लेकर कमरे के दरवाज़े तक आई थी, और उसकी नजर अंदर से ही बाहर पड़ती है सबसे पहले अपने बेटे के कड़क लंड पर, लता लल्लू का कड़क लंड देख कर ज्यों का त्यों रुक जाती है, वो देखती है उसके बेटे का लंड कितना मोटा और कड़क है, हाय मेरा लल्ला कितना बड़ा हो गया है बेटा भी और उसका लंड भी, उसे देख उसे अपनी जांघों के बीच एक हल्की सी खुजली महसूस होती है।
पर वो खुद के सिर को झटकती है और पीछे हो जाती है और आवाज़ देती है: लल्लू ले लल्ला अपनी पेंट,
और फिर कुछ पल बाद लल्लू की आवाज़ आती है,: लाओ मां,
लता कमरे से बाहर आती है तो देखती है लल्लू ने वो अंगोछा अपनी कमर पर बांध लिया था पर अब भी वो उसके उभार को अंगोछे के बीच साफ महसूद कर पा रही थी। लल्लू ने उसके हाथ से पैंट लिया और मूड कर जाते हुए लता ने एक बार फिर से उसके उभार पर नजर डाली और अंदर चली गई।
लता के मन में एक साथ कई विचार चल रहे थे, ये लल्लू का लंड कड़क क्यों था क्या वो उत्तेजित था पर अभी उत्तेजित क्यों घर में तो सिर्फ मैं और वो ही थे, क्या वो मुझे देख कर उत्तेजित हो रहा था, क्या अपनी मां को? लता अपना ब्लाउज़ खोलते हुए ये सोच रही थी, ब्लाउज उतार कर नीचे गिरा दिया और अपनी नंगी चूचियों को पौंछते हुए सोचने लगी, आखिर अपनी मां में मुझ बुढ़िया में उसे क्या मिलेगा ऐसा जो वो गर्म होगा मुझे देख कर, उसके हाथ उसकी चूचियां सुखाने की जगह दबाने लगे थे उसके बदन की गर्मी बढ़ रही थी, उसे अपनी चूत में भी खुजली हो रही थी,
क्या हो रहा है मुझे टांगों के बीच भी खुजली हो रही है जबकि रात को ही इसके पापा ने अच्छे से शांत की थी वो भी अपने बेटे के बारे में सोच कर, पहले छोटू के साथ वो सब और नंदिनी के साथ तो सारी हदें पार हो गई, और अब लल्लू, ये कहां जा रही हैं मैं, किस पाप के दलदल में गिरती जा रही हूं पर बदन को जैसे ये ही भा रहा है, गलत होकर भी अच्छा लग रहा है सब।
लल्लू: मां बारिश रुक गई।
लल्लू की आवाज़ ने उसे खयालों से निकाला और फिर सूखे कपड़े पहन कर वो कमरे से बाहर निकली, तो देखा लल्लू चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था,
लल्लू: मां चाय पियोगी आज मेरे हाथ की।
लता: हां बिल्कुल, बनाएगा तो क्यों नहीं।

लता ने लल्लू को देखते हुए कहा उसकी नजर अपने बेटे के लिए अब बदल चुकी थी।


जारी रहेगी।
Nice update bro 👍 👍
 

raj453

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रानी: अरे मां क्या हुआ, उठ जाओ सुबह हो गई, देखो कबसे आवाज लगा रही हूं।
रत्ना: हां आवाज क्या,
रत्ना को तब समझ आता है वो सपना देख रही थी।
रानी: लो मां चाय पिलो नींद खुल जाएगी
रत्ना: हां दे।

वो उठ कर चाय पीते हुए अपने सपनो के बारे में सोचने लगी।


अध्याय 23
रत्ना चाय पीते हुए अपने अजीब और अश्लील सपनों के बारे में सोच रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसे सपने वो भी सुबह सुबह उसने क्यों देखे, उसका अंदविश्वासी स्वभाव उसे कुछ गलत की ओर इशारा कर रहा था वो इन सपनों को किसी अनहोनी का संकेत मान रही थी, और उससे कैसे बचा जाए वो सोच रही थी।
चाय खत्म कर वो बिस्तर से उठी और अपना ध्यान घर के कामों में लगाने की कोशिश करने लगी।

दूसरी ओर नाव वाले रात को ही निकल गए थे और भोर होते होते वो शहर के करीब पहुंच गए थे, सुभाष की नाव में थोड़ा सामान और सब आदमी लोग थे वहीं सत्तू की नाव में भी सब्जियां थी साथ ही सत्तू, उसकी मां झुमरी, राजेश और छोटू थे, राजेश और सत्तू मिलकर पतवार चला रहे थे वहीं छोटू नाव के किनारे लेटकर सो रहा था,

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सत्तू: इसे देखो हमारी बाजू दुख गई चप्पू चलाते हुए और ये सेठ जी मजे की नींद ले रहे हैं।
रजनी: अरे सोने दे ना अब बस पहुंच ही गई।
राजेश: तभी तो ताई इसे उठाना पड़ेगा नहीं तो आलसी सोता ही रहेगा। ए छोटू उठ,
सत्तू: ये ऐसे नहीं उठेगा,
सत्तू ने फिर थोड़ा पानी हाथ में लिया और छोटू के ऊपर फेंका तो छोटू हड़बड़ा के उठा उसका चेहरा देख सत्तू और राजेश हंसने लगे।
कुछ ही देर में नाव शहर पहुंच चुकी थी, उन्हें अच्छे से बांध कर सारा सामान उतारा गया, अस्थियों को सिराने वाले जो लोग थे वो वहीं से बस अड्डे की ओर निकल गए बाकी लोग सब्जियों को बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी में भरकर मंडी की ओर चल पड़े,
मंडी में पहुंच कर सामान उतार कर अपनी अपनी दुकान सजाई गई, और फिर तब तक ग्राहकों का आना शुरू हो गया, सत्तू ने अपनी मां को दुकान पर बैठा दिया था और वो सब्जी तोलना, कट्टे खोलना आदि काम कर रहा था, वहीं सुभाष अपनी दुकान पर था और छोटू और राजेश दूसरे काम कर रहे थे।
सत्तू की दुकान पर थोड़ी भीड़ ज्यादा लग रही थी, कारण थी झुमरी, लोग झुमरी के भरे कामुक बदन को देख उसकी दुकान से सब्जियां खरीद रहे थे।

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सत्तू भी खूब मेहनत कर जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था, दूसरी ओर सुभाष की भी अच्छी बिक्री हो रही थी, छोटू और राजेश उसका पूरा साथ दे रहे थे। बीच बीच में छुपकर सुभाष और झुमरी की आंख मिचौली भी चल रही थी, दोनों के बीच बने इस अनैतिक संबंध को करीब 2 वर्ष हो चले थे, सुभाष और झुमरी के पति अच्छे मित्र थे, झुमरी के पति के देहांत के बाद सुभाष ने जितनी हो सकी थी उतनी मदद की थी झुमरी और सत्तू की, झुमरी को भी धीरे धीरे सुभाष का सहारा भाने लगा था, झुमरी को जीवन में मर्द की कमी महसूस होने लगी तो उसने सबसे पहले सुभाष को खड़ा पाया और फिर धीरे धीरे दोनों करीब आने लगे और फिर एक दिन दोनों के बदन भी मिल गए। इस राज को दोनों के अलावा और कोई नहीं जानता था।

दूसरी ओर गांव में संजय खेत में पानी लगा रहा था सुबह से ही बादल छाए हुए थे, दोपहर का समय हो चला था, घर पर सुधा और पुष्पा ही थीं फुलवा सो रही थी,
सुधा: अरे जीजी किसी बालक को बुलाना पड़ेगा इनके लिए खाना पहुंचाना है।
पुष्पा: अरे हां, देवर जी भूखे होंगे,
सुधा: मैं देखती हूं भूरा या लल्लू हो तो बुला लाती हूं।
पुष्पा: अरे रहने दे जब तक उन्हें बुलाने जाएगी तब तक मैं ही दे आऊंगी। वैसे भी बादल हो रहे हैं।
सुधा: कह तो सही रही हो जीजी, तुम ही चली जाओ।

पुष्पा तुरंत एक पोटली में खाना बांधती है और घर से निकल जाती है आधे से ज्यादा रास्ता पर कर जाती है अब खेत बस दो खेत पार ही था लेकिन तभी अचानक बारिश आ जाती है बड़ी बड़ी बूंदें उसे भिगाने लगती हैं और कुछ ही कदम में वो भीग जाती है,
पुष्पा: अरे लो पूरी भीग गई बारिश भी थोड़ी देर बाद नहीं हो सकती थी क्या?
उसकी साड़ी पूरी गीली होकर उसके बदन से चिपक जाती है और वो किसी तरह से कपड़े और पोटली संभालते हुए मेढ़ पर आगे बढ़ती जाती है,
खेत पर पहुंच कर उसे संजय दिखता है जो, फावड़े से मेड काट रहा था, वो भी पूरा गीला था और सिर्फ अपने निक्कर को पहने हुए था, पुष्पा उसे देख उसकी ओर बढ़ जाती है, पुष्पा पास पहुंचने वाली होती है तो संजय उसे देखता है,
संजय: अरे भाभी तुम यहां क्या कर रही हो,
संजय उसे देखते हुए कहता है, पूरा बदन तर है, पल्लू गीला होकर एक ओर चिपक गया है जिससे उसका मांसल गोरा पेट और गहरी नाभी, और ब्लाउज़ के बीच से चूचियों की दरार दिख रही थी,
पुष्पा: अरे तुम्हारा खाना लेकर आई थी, पर रास्ते में ही मुई बारिश आ गई।
पुष्पा पास आते हुए कहती है, और फिर संजय के बगल की मेढ़ पर धम से बैठ कर हांफने लगती है,
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संजय: अरे भाभी तुम भी न क्या ज़रूरत थी, किसी बच्चे के हाथों भेज देती या नहीं भी खाता तो क्या हो जाता आज।
संजय अपनी भाभी को देखते हुए बोला पर उसकी नजरें अपनी भाभी के बदन पर फिसल कर अपने आप जा रहीं थीं, पुष्पा का गोरा पेट, ब्लाउज में कसी हुई बड़ी बड़ी चूचियां, साड़ी में आकार दिखाती मोटी जांघें संजय के बदन में बारिश में भी गर्मी बढ़ाने लगे। वो ये तो हमेशा से देखता आया था कि उसकी भाभी सुंदर और कामुक हैं और अपनी शादी से पहले कई बार संजय ने पुष्पा के बारे में सोच कर हिलाया भी था पर शादी के बाद से उसने इन खयालों को मन से निकाल दिया था। क्योंकि उसे रिश्तों की और सम्मान की चिंता थी। पर आज पुष्पा को यूं देख उसके खयाल बापिस आ रहे थे।
पुष्पा: अरे नहीं सुबह से लगे हुए हो, भूख तो लगी होगी, और बादल हो रहे थे तो मैने सोचा मैं ही जल्दी दे आती हूं इसलिए आ गई।
संजय चलो कोई नहीं तुम उधर कोने के पेड़ के पास बैठो भाभी मैं अभी आया, संजय जैसे ही मुड़ता है, तो चौंक जाता है,
संजय: अरे तेरी, भाभी तुम यहीं रुकना और इस मेड को रोकना आगे मेढ़ कट गई है मैं बांधता हूं पर भाभी ध्यान से यहां से पानी न जा पाए आगे नहीं तो दूसरी फसल खराब हो जाएगी।
संजय ने आगे भागते हुए कहा, पुष्पा तुंरत फावड़े से मिट्टी दबाने लगी ताकि पानी उसे काट न सके, पर पानी का दबाव बढ़ता जा रहा था और मिट्टी कटती जा रही थी, पुष्पा ने फावड़ा छोड़ और हाथों से मिट्टी लगाने लगी पर उसके लगाते ही पानी तुरंत उसे बहा ले जाता ओर अगले पल ही सारी मिट्टी बह चली और पानी आगे बढ़ने लगा, पुष्पा ने सोचा देवर जी ने तो कहा था कि पानी आगे न जा पाए, अब क्या करूं, उसके दिमाग में एक उपाय आया और वो तुरंत आगे होकर खुद पानी के रास्ते में बैठ गई, उसके चौड़े चूतड़ों और भरे बदन ने रस्ते को घेर लिया और पानी रुक गया,

पुष्पा ने मन ही मन सोचा चलो पानी तो रुका कम से कम, थोड़ी देर में ही संजय आया और उसने पुष्पा को खुद को मेढ़ के बीच बैठे देखा तो हंसने लगा।
संजय: अरे भाभी तुम तो खुद ही बांध बन गई,
पुष्पा: क्या करती पानी रुक ही नहीं रहा था, तुमने ही कहा था पानी आगे न जा पाए।
संजय: चलो अच्छा किया अब उठ जाओ मैने आगे मेढ़ बांध दी है,

पुष्पा उठती है और मेढ़ से निकलने के लिए उसके किनारे पर पैर रखती है, पर उसका पैर फिसल जाता है और वो आगे की ओर गिरती है संजय उसे पकड़ने के लिए आगे कदम बढ़ाता है पर उसका पैर भी फिसल जाता है, अगले ही पल दोनों खेत में गिर जाते हैं, संजय नीचे होता है पुष्पा उसके ऊपर, दोनों के चेहरे बिल्कुल एक दूसरे के सामने, संजय के हाथ पुष्पा की नंगी कमर पर पुष्पा का बदन संजय के नंगे बदन पर, कुछ पल यूं ही रहता है दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं, पुष्पा को अपने देवर के बदन से चिपक कर बारिश में भी अपने बदन में गर्मी का एहसास होता है, संजय की भी उत्तेजना बढ़ने लगती है अपनी भाभी के बदन के एहसास से,
पुष्पा को जैसे होश आता है वो संजय के ऊपर से उठती है, दोनों ही थोड़ा असहज महसूस करते हैं
तुम्हारी साड़ी और कपड़े सब पर कीचड़ लग गया भाभी, संजय उठते हुए कहता है,
पुष्पा: देख लो सब तुम्हारे लिए खाना लाने का फल है, पुष्पा थोड़ा हंसकर असहजता को हटाने का प्रयास करती है,
संजय: इस मेहनत का फल तुम्हें जरूर मिलेगा, चलो मैं खाना खा लूंगा तुम अब घर जाकर नहा लेना नहीं तो बेकार में जाड़ा लग जाएगा।
संजय हंसते हुए मुड़ कर आगे की ओर बढ़ते हुए कहता है, और पोटली लेकर चलने लगता है,
पुष्पा: हां अब मेरे भी बस की नहीं है यहां रुकना।
पुष्पा हंसते हुए कहती है और घर की ओर बढ़ने लगती है,
संजय कोने वाले पेड़ की ओर जाने लगता है ताकि उसके नीचे बैठ कर कुछ खा सके, की तभी उसे अचानक से पुष्पा की चीख सुनाई देती है, वो पोटली और फावड़े को छोड़ भागता है अपने खेत के कोने में जाकर देखता है तो उसकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं वो देखता है उसकी भाभी नीचे जमीन पर गिरी हुई है पूरी कीचड़ में सनी हुई, और दर्द की आहें भर रही है और फिर उठने की कोशिश करती है।

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संजय एक पल को तो बस ज्यों का त्यों रह जाता है, पर फिर तुरंत आगे बढ़ता है और पुष्पा को सहारा देकर उठाया। संजय का एक हाथ पुष्पा के हाथ पर था तो दूसरा उसके मखमली पेट पर।
संजय: अरे भाभी आराम से, लगी तो नहीं?
पुष्पा: नहीं ज़्यादा तो नहीं बस फिसल गई इसलिए चीख निकल गई।
संजय: अच्छा हुआ कि लगी नहीं, आओ चलो मेढ़ पर पानी से साफ कर लो खुद को,
संजय ने उसे आगे सहारा देते हुए कहा, उसका हाथ पुष्पा के मखमली पेट पर था और संजय को वो एहसास बहुत अच्छा लग रहा था उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी उसका लंड भी सख़्त होने लगा था, पुष्पा को भी देवर के गठीले बदन का एहसास उत्तेजित कर रहा था, कुछ पल बाद दोनों ही मेढ़ के पास थे, संजय उसे सहारा देकर मेढ़ के बीच घुसा देता है, पुष्पा अपनी साड़ी और पेटीकोट को घुटनों तक उठाकर वहीं घुटनों पर बैठ जाती है और खुद को धोने लगती है,
संजय खड़ा होकर अपनी भाभी को देखता है, पुष्पा के गदराए बदन को, उसके मखमली मांसल पेट को, जिस पर वो पानी डालकर उसे साफ करती है, उसकी गोल गहरी कामुक नाभी को, ब्लाउज़ में से झांकता चूचियों की लकीर को, ये सब देख उसका लंड तन जाता है।
पुष्पा खुद को साफ कर लेती है और फिर बैठे हुए ही संजय की ओर देखती है और पाती है वो भी उसे टकटकी लगाए देख रहा है

unnamed-32पुष्पा को उसका देखना थोड़ा अलग लगता है, कुछ देर तक दोनों ही एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं फिर पुष्पा खड़ी होती है, और संजय उसे हाथ देकर मेढ़ से बाहर निकालता है, दोनों कुछ नहीं बोलते, पुष्पा नीचे उतर कर अपने पल्लू को सही करती है और सीने पर डालती है, दोनों आगे चलने लगते हैं दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी है, चलते हुए पुष्पा का पैर एक बार फिर हल्का सा फिसलता है पर संजय तुरंत उसे पकड़ लेता है, संजय के हाथ उसके पेट और पीठ पर आ जाते हैं।
संजय: भाभी संभल के।
संजय उसकी आंखों में देखते हुए कहता है, पुष्पा भी उसकी आंखों में देख सिर हिलाती है, संजय अभी भी उसे ऐसे ही पकड़े हुए है, उसका हाथ अभी पुष्पा के पेट पर है, संजय को अचानक मन ही मन कुछ विचार आता है और वो अपना चेहरा आगे कर पुष्पा के होठों को अपने होंठों में भर लेता है और चूसने लगता है।
पुष्पा को संजय के इस कदम से झटका लगता है वो पीछे होने की कौशिश करती है पर संजय के हाथ उसकी पीठ और पेट पर कस जाते हैं एक हाथ उसके पेट की मखमली त्वचा को सहलाने लगता है, पुष्पा जो काफी दिनों से प्यासी थी, संजय की लगाई हुई इस चिंगारी से सुलगने लगती है और फिर अगले ही पल संजय का साथ देने लगती है, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगते हैं संजय के हाथ पुष्पा की पीठ और पेट को मसलने लगते हैं, कुछ देर होंठो को चूसने के बाद दोनों के होंठ अलग होते हैं पर आग बढ़ चुकी होती है, संजय उत्तेजना से पागल हो कर पुष्पा के बदन को चूमने लगता है, पुष्पा भी उत्तेजना में सिहरने लगती है,
पुष्पा: आह देवर जी ओह हम्म
संजय होंठो के बाद चेहरे को और फिर गर्दन को चूमते हुए नीचे बढ़ता है, वो पल्लू को सीने से हटा कर नीचे कर देता है, और सीने को चूमने लगता है, फिर ब्लाउज़ के ऊपर से ही चूचियों को चूमते हुए नीचे बैठ जाता है, और फिर पुष्पा के मखमली पेट को चाटने चूमने लगता है और पुष्पा इस एहसास इस गर्मी से पिघलने लगती हैं,

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पुष्पा: ओह आह देवर जीईईईई ओह।
संजय भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पुष्पा के मखमली बदन का स्वाद लेने से, पुष्पा की चूचियां उत्तेजित होकर ब्लाउज में तन गई थीं और ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं थी,
संजय ने पुष्पा का पेट और कमर मसलते और चूमते हुए अपने हाथ ऊपर बढ़ाए और पुष्पा के ब्लाउज़ पर रख दिए और फिर धीरे से एक हुक खोल दिया और अगला खोलने लगा कि दोनों को दूसरे खेतों से आवाज़ सी आई किसी की तो दोनों तुरंत दूर हो गए, पुष्पा ने तुरंत अपना पल्लू ठीक से डाला और संजय भी इधर उधर देखने लगा, पुष्पा फिर तुरंत खेत से बिना कुछ बोले चल दी,
रास्ते भर पुष्पा के मन में जो कुछ हुआ उसके खयाल चल रहे थे उसकी चूत नम थी उसका बदन उत्तेजना में जल रहा था पर साथ ही वो जो हुआ उसके परिणाम और सही गलत सोच रही थी,
एक मन कह रहा था अच्छा हुआ जो वो लोग रुक गए और पाप नहीं हुआ, दूसरा मन कहता अपने बेटे से चुदने से बड़ा पाप क्या होगा, उसके मन में द्वंद चल रहा था। जल्दी ही वो घर पहुंच गई तो सुधा ने उसे गीला देखा और बोली: अरे जीजी तुम तो पूरी तर हो चलो जल्दी से खुद को सुखा लो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी, चलो मैं सूखे कपड़े निकलती हूं तब तक तुम ये सब उतार दो, सुधा ने उसकी साथ कमरे में चलते हुए कहा, घर पर सिर्फ वो दोनों ही थीं, नंदिनी सिलाई सीखने गई थी और फुलवा रत्ना के यहां थी।
पुष्पा ने जल्दी से अपने गीले कपड़े उतारे और पूरी नंगी हो गई, और खुद को सूखे अंगोछे से पोंछने लगी, सुधा कपड़े निकाल कर अपनी जेठानी के नंगे बदन को देखने लगी, उसे देख उसे भी कुछ कुछ होने लगा,
पुष्पा ने भी सुधा को ऐसे देखते हुए पाया और बोली: क्या देख रही है, ऐसे?
सुधा के मन में भी न जाने क्या आया कि उसने भी आगे बढ़ कर पुष्पा के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, पुष्पा हैरान रह गई ये सब बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे अभी उसके और सुधा के बीच खेत में हुआ था, पहले पति और अब पत्नी, पुष्पा के मन में कई खयाल थे पर अभी सुधा के चुम्बन ने उन खयालों पर ध्यान ही नहीं देने दिया और वो भी सुधा के होंठों को उसका साथ देते हुए चूसने लगी।

सुधा के हाथ जेठानी के नंगे और हल्के गीले बदन पर फिरने लगे, उनके होंठ आपस में जुड़े हुए थे, पुष्पा भी अब जोश में थी और होंठों को चूसते हुए उसने सुधा के पल्लू को नीचे गिरा कर उसके ब्लाउज़ के हुक खोल दिए थे, कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए पर गर्मी कम नहीं थी, होंठ अलग होते ही पुष्पा ने सुधा के ब्लाउज़ को उतार कर अलग फेंक दिया अब सुधा ऊपर से नंगी थी पर सुधा ने खुद अपनी साड़ी भी उतार दी उसके बदन पर बस एक पेटीकोट रह गया, सुधा पुष्पा के पीछे आई और पीछे से उसके चूचों को पकड़ कर मसलने लगी उनसे खेलने लगी,
पुष्पा के मुंह से सिसकियां निकलने लगी। सुधा चूचियों को मसलते हुए फिर से पुष्पा के आगे आई और फिर से दोनों के होंठ मिले,

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दोनों फिर से एक दूसरे के होंठो को चूमने लगी और फिर थोड़ी देर बाद अलग होकर सुधा नीचे सरकने लगी और पुष्पा की मोटी चूचियों को मसलने और चूसने लगी,
पुष्पा: अह सुधा आह, ओह अच्छा लग रहा है,
पुष्पा उसके सिर को सहलाते हुए बोली,
सुधा तो भूखों की तरह अपनी जेठानी की चूचियों को चूस रही थी।
और पुष्पा जिसकी प्यास पहले ही बड़ी हुई थी और बढ़ रही थी।
चूचियों को जी भर के चूसने के बाद सुधा और नीचे सरकी और पुष्पा के पेट को चाटने लगी, पुष्पा को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले यही पेट उसका पति चाट रहा था और अब पत्नी चाट रही है, ये सोच कर उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी, वहीं सुधा तो चाहती थी कि पुष्पा के बदन का कोई भी हिस्सा न रह जाए जिसे वो चाट न पाए, पुष्पा की नाभी में जीभ घुसाकर चूसने में सुधा को जैसे एक असीम आनंद मिला वहीं पुष्पा का बदन कांप कर रह गया,
सुधा: जीजी तुम्हारा बदन तो मक्खन है, इतना स्वाद है कि मन करता है चाटते जाओ,
सुधा ने उसकी नाभि से जीभ हटाते हुए कहा।
पुष्पा: आह तो खा जा ना आह,
पुष्पा ने अपनी टांगों को आपस में घिसते हुए कहा उसकी चूत गरम हो कर रस बहा रही थी, साथ ही बहुत खुजा रही थी अब उसकी चूत को भी कुछ सुकून चाहिए था, पुष्पा के लिए ये सहना मुश्किल होता जा रहा था, इसलिए वो अनजाने ही सुधा के सिर को पकड़कर नीचे अपनी टांगों के बीच ले जाने लगी, कुछ पल बाद सुधा का मुंह उसकी जेठानी की गीली चूत सामने था, सुधा जेठानी की चूत को ध्यान से देखने लगी और उसे चूत का गीलापन, उसके होंठों की चिकना हट अच्छी लगी, इससे आगे वो कुछ सोचती या करती, पुष्पा ने उसका मुंह अपनी चूत में घुसा दिया या यूं कहें कि अपनी चूत को सुधा के होंठों पर घिसने लगी। सुधा को अचानक झटका लगा उसके होंठों पर उसकी जेठानी की चूत का स्वाद आ रहा था, पर उसे जैसे इससे कोई परेशानी नहीं थी, जितनी गर्मी पुष्पा में थी उतनी ही सुधा में भी थी, सुधा ने भी स्वाभाविक ही अपनी जीभ निकाली और अपनी जेठानी की चूत चाटने लगी,


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पुष्पा तो मानो जन्नत में पहुंच गई उसकी कमर और बदन मचल रहा था, वहीं सुधा को अपनी जेठानी की चूत मानो रस से भरा हुआ कोई फल लग रही थी जिस तरह वो उसे चाट रही थी,
पुष्पा: आह सुधा आह ऐसे ही चूस, खा जा मेरी चूत को, आह बहुत खुजली है इसमें।

पुष्पा की बातों ने सुधा का उत्साह और बढ़ा दिया और सुधा और लगन से अपनी जेठानी की सेवा करने लगी। और सेवा का फल भी उसे रस के रूप में जल्दी ही अपने मुंह में प्राप्त हुआ, पर सुधा उसे भी मलाई मान कर गटक गई, सुधा आज खुद को भी हैरान कर रही थी उसे भी नहीं पता था कि वो अंदर से इतनी प्यासी और उत्तेजना में जल रही है कि अपनी जेठानी की चूत से निकला रस भी उसने पी लिया,
पुष्पा बेजान सी होकर पीछे लेटी हुई थी और तेज तेज हाफ रही थी, सुधा भी उसके बगल में लेट गई, कुछ पल बाद पुष्पा को होश आया तो उसने बगल में लेटी अपनी देवरानी को देखा और उसे याद आया कि उसने कितनी अच्छी तरह अभी उसकी सेवा की थी, पुष्पा ने आगे बढ़ कर सुधा के होंठों को चूम लिया और बोली: आह आज तक ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी।
सुधा: ऐसे कैसे जीजी, तुम्हारी जान में तो हमारी जान बसती है,
पुष्पा: अब मेरी बारी मैं भी तो स्वाद चख कर देखूं अपनी देवरानी का,
ये सुन कर सुधा के चेहरे की मुस्कान और बढ़ी हो गई, और उसके कुछ देर बाद ही

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पुष्पा की जीभ सुधा की चूत पर चल रही थी या कहूं कि सुधा अपनी चूत को पुष्पा के मुंह पर घुस रही थी। और कुछ ही पलों में झड़ रही थी, उसका बदन अकड़ा और फिर वो भी थक कर नीचे गिर गई, तभी उन्हें दरवाज़े पर दस्तक सुनाई दी।

कुछ देर बाद दोनों आंगन में थी और बिल्कुल साधारण संस्कारी बहुएं लग रही थीं, फुलवा और नंदिनी घर आ चुके थे, सुधा चूल्हे पर चाय चढ़ा रही थी तो फुलवा रात के लिए चावल बीन रही थी, चाय लेकर सुधा भी पुष्पा के साथ बैठ गई दोनों के बीच एक रहस्य भरी मुस्कान तैर गई,
पुष्पा: क्यों मुस्कुरा रही हो देवरानी जी।
सुधा: कुछ सोच कर जेठानी जी?
पुष्पा: क्या सोच कर?
सुधा: यही कि इस चाय का स्वाद तुम्हारे रस जैसा नहीं है,
ये सुन पुष्पा शर्मा गई और बोली: वैसे ये बात तो मैं तेरे लिए भी कह सकती हूं।
पुष्पा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा,
सुधा: अच्छा जीजी एक बात थोड़ी अजीब है।
पुष्पा: क्या?
सुधा: वैसे ये चूत को मूत्र द्वार कहते हैं और सब इसे गंदी और गलत चीज मानते हैं, पर आज चाटते हुए मुझे एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं कुछ गलत या गंदा कर रहीं हूं।
पुष्पा: हां मेरे मन में भी एक भी बार जरा भी नहीं आया ये, शायद ये सब गलत हो।
सुधा: अब चाहे गलत हो या सही मैं तो तुम्हारा स्वाद चखती रहूंगी।
पुष्पा: तू भी मुझसे बच के नहीं रहेगी।
दोनों आपस में फुसफुसाते हुए खिल खिला रही थी।

दिन में लल्लू आंगन में बैठ कर रात के बारे में सोच रहा था कि कैसे उसने अपने मां पापा की चुदाई देखी थी साथ ही अपनी बहन को भी देखते हुए पकड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस बारे में अपनी बहन से बात करे जिससे उसे कुछ फायदा हो,
इतने में उसकी मां लता बाहर से आई और बोली: लल्ला बैठा है देख नहीं रहा बूंदे पड़ रही हैं कपड़े उतार ले,
और खुद आंगन में सूख रहे कपड़े उतारने लगती है, कपड़े उतारते हुए लता का पल्लू एक ओर को सरक जाता है जिससे उसका मांसल गोरा पेट उसकी नाभी और ब्लाउज़ में बंद बड़ी बड़ी चूचियां लल्लू के सामने आ जाती हैं,

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लल्लू का लंड ये नज़ारा देख कड़क होने लगता है,
लता: अब बैठा क्या देख रहा है ले ये कपड़े ले जा और रख दे कमरे में,
लल्लू उठ कर जल्दी से कपड़े लेता है, और कमरे के अंदर जाता है दौड़ कर रख आता है, और बाहर आकर देखता है उसकी मां अभी भी आंगन में खड़ी है।
लल्लू: अरे मां क्यों वहां क्यों खड़ी हो भीग जाओगी आओ अंदर।
लता: अरे कितनी अच्छी बारिश हो रही है आज नहाऊंगी मैं तो बारिश में,
लल्लू: अरे वाह मां, फिर तो मैं भी नहाऊंगा,
लल्लू भी अपनी कमीज़ उतारते हुए बोला, लता ने भी अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया था और कुछ ही पलों में एक ओर टांग दिया, अब लता लल्लू के सामने पेटीकोट और ब्लाउज़ में खड़ी थी,

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लता या गांव की कोई भी औरत ब्रा तो कभी कभी ही पहनती थी तो उस कारण से उसका ब्लाउज़ गीला होकर हल्का पारदर्शी हो गया था और उसकी चूचियों की हल्की झलक दिखा रहा था, ये देख तो लल्लू का और बुरा हाल हो रहा था।
वो सोचने लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मां के करीब आने का अभी घर पर भी कोई नहीं है, सिवाय हम दोनों के, और जब तक बारिश होगी कोई आने से भी रहा, ये सोचते हुए और बस एक निक्कर में लल्लू भी आंगन में जाकर बारिश में भीगने लगा, पर उसकी नजर अपनी मां के बदन पर बनी हुई थी,
लल्लू: मज़ा आ रहा है न मां बारिश में नहा कर।
लता: हां लल्ला मुझे बारिश हमेशा से ही पसंद रही है, बचपन में तो मैं बारिश में भीगते हुए खूब नाचती थी,
लल्लू: सच में मां तुम्हे इतना मज़ा आता है बारिश में?
लता: हां सच्ची।
लल्लू: तो मां अब भी नाचो न देखो कितनी अच्छी बारिश है।
लता: अभी न बाबा न अब इस उम्र में नाचना नहीं होगा, किसी ने देखा तो गांव भर में मजाक उड़ जाएगा।
लल्लू: अरे मां कौन उड़ाएगा मजाक हमारे अलावा कोई है यहां, और नाचने का उम्र से क्या लेना देना।
लता: अरे नहीं फिर भी अब नाचना नहीं होगा।
लल्लू: अरे क्यों नहीं होगा, मां नाचो न मैं भी साथ दूंगा तुम्हारा, नाचो ना, नाचो न।
लल्लू जिद करते हुए कहता है साथ ही लता जी कमर और पेट पकड़ कर उसे हिलाने लगता है।
लता: अरे लल्ला गिर जाऊंगी मैं आराम से तू तो बिल्कुल बावरा हो गया है अच्छा छोड़ मुझे करती हूं।
लल्लू अब भी उसे पकड़े हुए था और न चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ता है।
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लता भी अपने बचपन की याद करके धीरे धीरे बदन हिलाने लगती है उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था भले ही लल्लू की ज़िद की वजह से पर वो अपने बचपन की याद को ताज़ा कर पा रही थी, वहीं लल्लू को अपनी मां का थिरकता बदन देख एक अलग ही आनंद आ रहा था, उसका लंड उसके निक्कर में कड़क हो चुका था जिसे उसने नीचे करके किसी तरह से छुपाया हुआ था
और लंड कड़क होने का कारण भी था उसकी मां अपने भरे बदन को जो पूरी तरह गीला था उसे उसके सामने थिरका रही थी,
लल्लू को लग रहा था जैसे वो किसी भरे बदन की फिल्मी हीरोइन को नाचते देख रहा है, सबसे बड़ी बात ये हीरोइन उसकी मां थी जिसे सिर्फ अभी वो ही देख रहा था, लल्लू को ये सोच बहुत अच्छा लग रहा था, वहीं लता लगातार नाच रही थी

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लल्लू को अपनी मां का ये रूप बहुत भा रहा था कुछ देर और यूं ही नाचने के बाद लता हंसते हुए रुक कर बैठ गई।
लता: आह मैं तो थक गई, आखिर तूने अपनी ज़िद पूरी करवा ही ली।
लल्लू: जिद तो पूरी कराई मां। पर ये बताओ तुम्हे मज़ा आया कि नहीं?
लता: सच कहूं तो मज़ा तो आया, बचपन याद आ गया।
लल्लू: इसीलिए तो ज़िद की थी मां,
लता: हाय मेरा लल्ला कितनी फिकर करता है अपनी मां की, पर अब चल, और कपड़े बदल लेते हैं नहीं तो तबियत बिगड़ जाएगी

लल्लू: क्या इतनी जल्दी? थोड़ी देर और रुकते हैं न.
लता: हां अब बहुत हो गया, मैने तेरी बात मानी अब तू मेरी मान।

लल्लू: ठीक है मां चलते हैं, छप्पर के अंदर आकर लता लल्लू से कहती है तू ले ये अंगोछे से खुद को पौंछ कर साफ कर मैं तब तक कमरे से तेरी पेंट निकाल कर देती हूं।
लल्लू: ठीक है मां,
लता कमरे में चली जाती है और लल्लू अंगोछे से अपने बदन को पोंछने लगता है, वो अपने गीले निक्कर को उतारता है जिसके उतरते ही उसका खड़ा लंड उछल कर बाहर आ जाता है वो अपने निक्कर को पैरों से निकाल कर उतार देता है,
उसी समय लता उसके लिए सूखा पेंट लेकर कमरे के दरवाज़े तक आई थी, और उसकी नजर अंदर से ही बाहर पड़ती है सबसे पहले अपने बेटे के कड़क लंड पर, लता लल्लू का कड़क लंड देख कर ज्यों का त्यों रुक जाती है, वो देखती है उसके बेटे का लंड कितना मोटा और कड़क है, हाय मेरा लल्ला कितना बड़ा हो गया है बेटा भी और उसका लंड भी, उसे देख उसे अपनी जांघों के बीच एक हल्की सी खुजली महसूस होती है।
पर वो खुद के सिर को झटकती है और पीछे हो जाती है और आवाज़ देती है: लल्लू ले लल्ला अपनी पेंट,
और फिर कुछ पल बाद लल्लू की आवाज़ आती है,: लाओ मां,
लता कमरे से बाहर आती है तो देखती है लल्लू ने वो अंगोछा अपनी कमर पर बांध लिया था पर अब भी वो उसके उभार को अंगोछे के बीच साफ महसूद कर पा रही थी। लल्लू ने उसके हाथ से पैंट लिया और मूड कर जाते हुए लता ने एक बार फिर से उसके उभार पर नजर डाली और अंदर चली गई।
लता के मन में एक साथ कई विचार चल रहे थे, ये लल्लू का लंड कड़क क्यों था क्या वो उत्तेजित था पर अभी उत्तेजित क्यों घर में तो सिर्फ मैं और वो ही थे, क्या वो मुझे देख कर उत्तेजित हो रहा था, क्या अपनी मां को? लता अपना ब्लाउज़ खोलते हुए ये सोच रही थी, ब्लाउज उतार कर नीचे गिरा दिया और अपनी नंगी चूचियों को पौंछते हुए सोचने लगी, आखिर अपनी मां में मुझ बुढ़िया में उसे क्या मिलेगा ऐसा जो वो गर्म होगा मुझे देख कर, उसके हाथ उसकी चूचियां सुखाने की जगह दबाने लगे थे उसके बदन की गर्मी बढ़ रही थी, उसे अपनी चूत में भी खुजली हो रही थी,
क्या हो रहा है मुझे टांगों के बीच भी खुजली हो रही है जबकि रात को ही इसके पापा ने अच्छे से शांत की थी वो भी अपने बेटे के बारे में सोच कर, पहले छोटू के साथ वो सब और नंदिनी के साथ तो सारी हदें पार हो गई, और अब लल्लू, ये कहां जा रही हैं मैं, किस पाप के दलदल में गिरती जा रही हूं पर बदन को जैसे ये ही भा रहा है, गलत होकर भी अच्छा लग रहा है सब।
लल्लू: मां बारिश रुक गई।
लल्लू की आवाज़ ने उसे खयालों से निकाला और फिर सूखे कपड़े पहन कर वो कमरे से बाहर निकली, तो देखा लल्लू चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था,
लल्लू: मां चाय पियोगी आज मेरे हाथ की।
लता: हां बिल्कुल, बनाएगा तो क्यों नहीं।

लता ने लल्लू को देखते हुए कहा उसकी नजर अपने बेटे के लिए अब बदल चुकी थी।


जारी रहेगी।
Mst garma garam update bhai aisehi mjedaar updates likhte rhyea jldi jldii
 
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sunoanuj

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Bahut hee shandaar or kamuk update diya hai…
 
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Ek number

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रानी: अरे मां क्या हुआ, उठ जाओ सुबह हो गई, देखो कबसे आवाज लगा रही हूं।
रत्ना: हां आवाज क्या,
रत्ना को तब समझ आता है वो सपना देख रही थी।
रानी: लो मां चाय पिलो नींद खुल जाएगी
रत्ना: हां दे।

वो उठ कर चाय पीते हुए अपने सपनो के बारे में सोचने लगी।


अध्याय 23
रत्ना चाय पीते हुए अपने अजीब और अश्लील सपनों के बारे में सोच रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसे सपने वो भी सुबह सुबह उसने क्यों देखे, उसका अंदविश्वासी स्वभाव उसे कुछ गलत की ओर इशारा कर रहा था वो इन सपनों को किसी अनहोनी का संकेत मान रही थी, और उससे कैसे बचा जाए वो सोच रही थी।
चाय खत्म कर वो बिस्तर से उठी और अपना ध्यान घर के कामों में लगाने की कोशिश करने लगी।

दूसरी ओर नाव वाले रात को ही निकल गए थे और भोर होते होते वो शहर के करीब पहुंच गए थे, सुभाष की नाव में थोड़ा सामान और सब आदमी लोग थे वहीं सत्तू की नाव में भी सब्जियां थी साथ ही सत्तू, उसकी मां झुमरी, राजेश और छोटू थे, राजेश और सत्तू मिलकर पतवार चला रहे थे वहीं छोटू नाव के किनारे लेटकर सो रहा था,

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सत्तू: इसे देखो हमारी बाजू दुख गई चप्पू चलाते हुए और ये सेठ जी मजे की नींद ले रहे हैं।
रजनी: अरे सोने दे ना अब बस पहुंच ही गई।
राजेश: तभी तो ताई इसे उठाना पड़ेगा नहीं तो आलसी सोता ही रहेगा। ए छोटू उठ,
सत्तू: ये ऐसे नहीं उठेगा,
सत्तू ने फिर थोड़ा पानी हाथ में लिया और छोटू के ऊपर फेंका तो छोटू हड़बड़ा के उठा उसका चेहरा देख सत्तू और राजेश हंसने लगे।
कुछ ही देर में नाव शहर पहुंच चुकी थी, उन्हें अच्छे से बांध कर सारा सामान उतारा गया, अस्थियों को सिराने वाले जो लोग थे वो वहीं से बस अड्डे की ओर निकल गए बाकी लोग सब्जियों को बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी में भरकर मंडी की ओर चल पड़े,
मंडी में पहुंच कर सामान उतार कर अपनी अपनी दुकान सजाई गई, और फिर तब तक ग्राहकों का आना शुरू हो गया, सत्तू ने अपनी मां को दुकान पर बैठा दिया था और वो सब्जी तोलना, कट्टे खोलना आदि काम कर रहा था, वहीं सुभाष अपनी दुकान पर था और छोटू और राजेश दूसरे काम कर रहे थे।
सत्तू की दुकान पर थोड़ी भीड़ ज्यादा लग रही थी, कारण थी झुमरी, लोग झुमरी के भरे कामुक बदन को देख उसकी दुकान से सब्जियां खरीद रहे थे।

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सत्तू भी खूब मेहनत कर जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था, दूसरी ओर सुभाष की भी अच्छी बिक्री हो रही थी, छोटू और राजेश उसका पूरा साथ दे रहे थे। बीच बीच में छुपकर सुभाष और झुमरी की आंख मिचौली भी चल रही थी, दोनों के बीच बने इस अनैतिक संबंध को करीब 2 वर्ष हो चले थे, सुभाष और झुमरी के पति अच्छे मित्र थे, झुमरी के पति के देहांत के बाद सुभाष ने जितनी हो सकी थी उतनी मदद की थी झुमरी और सत्तू की, झुमरी को भी धीरे धीरे सुभाष का सहारा भाने लगा था, झुमरी को जीवन में मर्द की कमी महसूस होने लगी तो उसने सबसे पहले सुभाष को खड़ा पाया और फिर धीरे धीरे दोनों करीब आने लगे और फिर एक दिन दोनों के बदन भी मिल गए। इस राज को दोनों के अलावा और कोई नहीं जानता था।

दूसरी ओर गांव में संजय खेत में पानी लगा रहा था सुबह से ही बादल छाए हुए थे, दोपहर का समय हो चला था, घर पर सुधा और पुष्पा ही थीं फुलवा सो रही थी,
सुधा: अरे जीजी किसी बालक को बुलाना पड़ेगा इनके लिए खाना पहुंचाना है।
पुष्पा: अरे हां, देवर जी भूखे होंगे,
सुधा: मैं देखती हूं भूरा या लल्लू हो तो बुला लाती हूं।
पुष्पा: अरे रहने दे जब तक उन्हें बुलाने जाएगी तब तक मैं ही दे आऊंगी। वैसे भी बादल हो रहे हैं।
सुधा: कह तो सही रही हो जीजी, तुम ही चली जाओ।

पुष्पा तुरंत एक पोटली में खाना बांधती है और घर से निकल जाती है आधे से ज्यादा रास्ता पर कर जाती है अब खेत बस दो खेत पार ही था लेकिन तभी अचानक बारिश आ जाती है बड़ी बड़ी बूंदें उसे भिगाने लगती हैं और कुछ ही कदम में वो भीग जाती है,
पुष्पा: अरे लो पूरी भीग गई बारिश भी थोड़ी देर बाद नहीं हो सकती थी क्या?
उसकी साड़ी पूरी गीली होकर उसके बदन से चिपक जाती है और वो किसी तरह से कपड़े और पोटली संभालते हुए मेढ़ पर आगे बढ़ती जाती है,
खेत पर पहुंच कर उसे संजय दिखता है जो, फावड़े से मेड काट रहा था, वो भी पूरा गीला था और सिर्फ अपने निक्कर को पहने हुए था, पुष्पा उसे देख उसकी ओर बढ़ जाती है, पुष्पा पास पहुंचने वाली होती है तो संजय उसे देखता है,
संजय: अरे भाभी तुम यहां क्या कर रही हो,
संजय उसे देखते हुए कहता है, पूरा बदन तर है, पल्लू गीला होकर एक ओर चिपक गया है जिससे उसका मांसल गोरा पेट और गहरी नाभी, और ब्लाउज़ के बीच से चूचियों की दरार दिख रही थी,
पुष्पा: अरे तुम्हारा खाना लेकर आई थी, पर रास्ते में ही मुई बारिश आ गई।
पुष्पा पास आते हुए कहती है, और फिर संजय के बगल की मेढ़ पर धम से बैठ कर हांफने लगती है,
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संजय: अरे भाभी तुम भी न क्या ज़रूरत थी, किसी बच्चे के हाथों भेज देती या नहीं भी खाता तो क्या हो जाता आज।
संजय अपनी भाभी को देखते हुए बोला पर उसकी नजरें अपनी भाभी के बदन पर फिसल कर अपने आप जा रहीं थीं, पुष्पा का गोरा पेट, ब्लाउज में कसी हुई बड़ी बड़ी चूचियां, साड़ी में आकार दिखाती मोटी जांघें संजय के बदन में बारिश में भी गर्मी बढ़ाने लगे। वो ये तो हमेशा से देखता आया था कि उसकी भाभी सुंदर और कामुक हैं और अपनी शादी से पहले कई बार संजय ने पुष्पा के बारे में सोच कर हिलाया भी था पर शादी के बाद से उसने इन खयालों को मन से निकाल दिया था। क्योंकि उसे रिश्तों की और सम्मान की चिंता थी। पर आज पुष्पा को यूं देख उसके खयाल बापिस आ रहे थे।
पुष्पा: अरे नहीं सुबह से लगे हुए हो, भूख तो लगी होगी, और बादल हो रहे थे तो मैने सोचा मैं ही जल्दी दे आती हूं इसलिए आ गई।
संजय चलो कोई नहीं तुम उधर कोने के पेड़ के पास बैठो भाभी मैं अभी आया, संजय जैसे ही मुड़ता है, तो चौंक जाता है,
संजय: अरे तेरी, भाभी तुम यहीं रुकना और इस मेड को रोकना आगे मेढ़ कट गई है मैं बांधता हूं पर भाभी ध्यान से यहां से पानी न जा पाए आगे नहीं तो दूसरी फसल खराब हो जाएगी।
संजय ने आगे भागते हुए कहा, पुष्पा तुंरत फावड़े से मिट्टी दबाने लगी ताकि पानी उसे काट न सके, पर पानी का दबाव बढ़ता जा रहा था और मिट्टी कटती जा रही थी, पुष्पा ने फावड़ा छोड़ और हाथों से मिट्टी लगाने लगी पर उसके लगाते ही पानी तुरंत उसे बहा ले जाता ओर अगले पल ही सारी मिट्टी बह चली और पानी आगे बढ़ने लगा, पुष्पा ने सोचा देवर जी ने तो कहा था कि पानी आगे न जा पाए, अब क्या करूं, उसके दिमाग में एक उपाय आया और वो तुरंत आगे होकर खुद पानी के रास्ते में बैठ गई, उसके चौड़े चूतड़ों और भरे बदन ने रस्ते को घेर लिया और पानी रुक गया,

पुष्पा ने मन ही मन सोचा चलो पानी तो रुका कम से कम, थोड़ी देर में ही संजय आया और उसने पुष्पा को खुद को मेढ़ के बीच बैठे देखा तो हंसने लगा।
संजय: अरे भाभी तुम तो खुद ही बांध बन गई,
पुष्पा: क्या करती पानी रुक ही नहीं रहा था, तुमने ही कहा था पानी आगे न जा पाए।
संजय: चलो अच्छा किया अब उठ जाओ मैने आगे मेढ़ बांध दी है,

पुष्पा उठती है और मेढ़ से निकलने के लिए उसके किनारे पर पैर रखती है, पर उसका पैर फिसल जाता है और वो आगे की ओर गिरती है संजय उसे पकड़ने के लिए आगे कदम बढ़ाता है पर उसका पैर भी फिसल जाता है, अगले ही पल दोनों खेत में गिर जाते हैं, संजय नीचे होता है पुष्पा उसके ऊपर, दोनों के चेहरे बिल्कुल एक दूसरे के सामने, संजय के हाथ पुष्पा की नंगी कमर पर पुष्पा का बदन संजय के नंगे बदन पर, कुछ पल यूं ही रहता है दोनों एक दूसरे की आंखों में देखते हैं, पुष्पा को अपने देवर के बदन से चिपक कर बारिश में भी अपने बदन में गर्मी का एहसास होता है, संजय की भी उत्तेजना बढ़ने लगती है अपनी भाभी के बदन के एहसास से,
पुष्पा को जैसे होश आता है वो संजय के ऊपर से उठती है, दोनों ही थोड़ा असहज महसूस करते हैं
तुम्हारी साड़ी और कपड़े सब पर कीचड़ लग गया भाभी, संजय उठते हुए कहता है,
पुष्पा: देख लो सब तुम्हारे लिए खाना लाने का फल है, पुष्पा थोड़ा हंसकर असहजता को हटाने का प्रयास करती है,
संजय: इस मेहनत का फल तुम्हें जरूर मिलेगा, चलो मैं खाना खा लूंगा तुम अब घर जाकर नहा लेना नहीं तो बेकार में जाड़ा लग जाएगा।
संजय हंसते हुए मुड़ कर आगे की ओर बढ़ते हुए कहता है, और पोटली लेकर चलने लगता है,
पुष्पा: हां अब मेरे भी बस की नहीं है यहां रुकना।
पुष्पा हंसते हुए कहती है और घर की ओर बढ़ने लगती है,
संजय कोने वाले पेड़ की ओर जाने लगता है ताकि उसके नीचे बैठ कर कुछ खा सके, की तभी उसे अचानक से पुष्पा की चीख सुनाई देती है, वो पोटली और फावड़े को छोड़ भागता है अपने खेत के कोने में जाकर देखता है तो उसकी आँखें चौड़ी हो जाती हैं वो देखता है उसकी भाभी नीचे जमीन पर गिरी हुई है पूरी कीचड़ में सनी हुई, और दर्द की आहें भर रही है और फिर उठने की कोशिश करती है।

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संजय एक पल को तो बस ज्यों का त्यों रह जाता है, पर फिर तुरंत आगे बढ़ता है और पुष्पा को सहारा देकर उठाया। संजय का एक हाथ पुष्पा के हाथ पर था तो दूसरा उसके मखमली पेट पर।
संजय: अरे भाभी आराम से, लगी तो नहीं?
पुष्पा: नहीं ज़्यादा तो नहीं बस फिसल गई इसलिए चीख निकल गई।
संजय: अच्छा हुआ कि लगी नहीं, आओ चलो मेढ़ पर पानी से साफ कर लो खुद को,
संजय ने उसे आगे सहारा देते हुए कहा, उसका हाथ पुष्पा के मखमली पेट पर था और संजय को वो एहसास बहुत अच्छा लग रहा था उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी उसका लंड भी सख़्त होने लगा था, पुष्पा को भी देवर के गठीले बदन का एहसास उत्तेजित कर रहा था, कुछ पल बाद दोनों ही मेढ़ के पास थे, संजय उसे सहारा देकर मेढ़ के बीच घुसा देता है, पुष्पा अपनी साड़ी और पेटीकोट को घुटनों तक उठाकर वहीं घुटनों पर बैठ जाती है और खुद को धोने लगती है,
संजय खड़ा होकर अपनी भाभी को देखता है, पुष्पा के गदराए बदन को, उसके मखमली मांसल पेट को, जिस पर वो पानी डालकर उसे साफ करती है, उसकी गोल गहरी कामुक नाभी को, ब्लाउज़ में से झांकता चूचियों की लकीर को, ये सब देख उसका लंड तन जाता है।
पुष्पा खुद को साफ कर लेती है और फिर बैठे हुए ही संजय की ओर देखती है और पाती है वो भी उसे टकटकी लगाए देख रहा है

unnamed-32पुष्पा को उसका देखना थोड़ा अलग लगता है, कुछ देर तक दोनों ही एक दूसरे की आंखों में देखते रहते हैं फिर पुष्पा खड़ी होती है, और संजय उसे हाथ देकर मेढ़ से बाहर निकालता है, दोनों कुछ नहीं बोलते, पुष्पा नीचे उतर कर अपने पल्लू को सही करती है और सीने पर डालती है, दोनों आगे चलने लगते हैं दोनों के बीच एक अजीब सी खामोशी है, चलते हुए पुष्पा का पैर एक बार फिर हल्का सा फिसलता है पर संजय तुरंत उसे पकड़ लेता है, संजय के हाथ उसके पेट और पीठ पर आ जाते हैं।
संजय: भाभी संभल के।
संजय उसकी आंखों में देखते हुए कहता है, पुष्पा भी उसकी आंखों में देख सिर हिलाती है, संजय अभी भी उसे ऐसे ही पकड़े हुए है, उसका हाथ अभी पुष्पा के पेट पर है, संजय को अचानक मन ही मन कुछ विचार आता है और वो अपना चेहरा आगे कर पुष्पा के होठों को अपने होंठों में भर लेता है और चूसने लगता है।
पुष्पा को संजय के इस कदम से झटका लगता है वो पीछे होने की कौशिश करती है पर संजय के हाथ उसकी पीठ और पेट पर कस जाते हैं एक हाथ उसके पेट की मखमली त्वचा को सहलाने लगता है, पुष्पा जो काफी दिनों से प्यासी थी, संजय की लगाई हुई इस चिंगारी से सुलगने लगती है और फिर अगले ही पल संजय का साथ देने लगती है, दोनों एक दूसरे के होंठो को चूसने लगते हैं संजय के हाथ पुष्पा की पीठ और पेट को मसलने लगते हैं, कुछ देर होंठो को चूसने के बाद दोनों के होंठ अलग होते हैं पर आग बढ़ चुकी होती है, संजय उत्तेजना से पागल हो कर पुष्पा के बदन को चूमने लगता है, पुष्पा भी उत्तेजना में सिहरने लगती है,
पुष्पा: आह देवर जी ओह हम्म
संजय होंठो के बाद चेहरे को और फिर गर्दन को चूमते हुए नीचे बढ़ता है, वो पल्लू को सीने से हटा कर नीचे कर देता है, और सीने को चूमने लगता है, फिर ब्लाउज़ के ऊपर से ही चूचियों को चूमते हुए नीचे बैठ जाता है, और फिर पुष्पा के मखमली पेट को चाटने चूमने लगता है और पुष्पा इस एहसास इस गर्मी से पिघलने लगती हैं,

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पुष्पा: ओह आह देवर जीईईईई ओह।
संजय भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पुष्पा के मखमली बदन का स्वाद लेने से, पुष्पा की चूचियां उत्तेजित होकर ब्लाउज में तन गई थीं और ब्लाउज के ऊपर से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं थी,
संजय ने पुष्पा का पेट और कमर मसलते और चूमते हुए अपने हाथ ऊपर बढ़ाए और पुष्पा के ब्लाउज़ पर रख दिए और फिर धीरे से एक हुक खोल दिया और अगला खोलने लगा कि दोनों को दूसरे खेतों से आवाज़ सी आई किसी की तो दोनों तुरंत दूर हो गए, पुष्पा ने तुरंत अपना पल्लू ठीक से डाला और संजय भी इधर उधर देखने लगा, पुष्पा फिर तुरंत खेत से बिना कुछ बोले चल दी,
रास्ते भर पुष्पा के मन में जो कुछ हुआ उसके खयाल चल रहे थे उसकी चूत नम थी उसका बदन उत्तेजना में जल रहा था पर साथ ही वो जो हुआ उसके परिणाम और सही गलत सोच रही थी,
एक मन कह रहा था अच्छा हुआ जो वो लोग रुक गए और पाप नहीं हुआ, दूसरा मन कहता अपने बेटे से चुदने से बड़ा पाप क्या होगा, उसके मन में द्वंद चल रहा था। जल्दी ही वो घर पहुंच गई तो सुधा ने उसे गीला देखा और बोली: अरे जीजी तुम तो पूरी तर हो चलो जल्दी से खुद को सुखा लो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी, चलो मैं सूखे कपड़े निकलती हूं तब तक तुम ये सब उतार दो, सुधा ने उसकी साथ कमरे में चलते हुए कहा, घर पर सिर्फ वो दोनों ही थीं, नंदिनी सिलाई सीखने गई थी और फुलवा रत्ना के यहां थी।
पुष्पा ने जल्दी से अपने गीले कपड़े उतारे और पूरी नंगी हो गई, और खुद को सूखे अंगोछे से पोंछने लगी, सुधा कपड़े निकाल कर अपनी जेठानी के नंगे बदन को देखने लगी, उसे देख उसे भी कुछ कुछ होने लगा,
पुष्पा ने भी सुधा को ऐसे देखते हुए पाया और बोली: क्या देख रही है, ऐसे?
सुधा के मन में भी न जाने क्या आया कि उसने भी आगे बढ़ कर पुष्पा के होंठो को चूसना शुरू कर दिया, पुष्पा हैरान रह गई ये सब बिलकुल वैसे ही हुआ जैसे अभी उसके और सुधा के बीच खेत में हुआ था, पहले पति और अब पत्नी, पुष्पा के मन में कई खयाल थे पर अभी सुधा के चुम्बन ने उन खयालों पर ध्यान ही नहीं देने दिया और वो भी सुधा के होंठों को उसका साथ देते हुए चूसने लगी।

सुधा के हाथ जेठानी के नंगे और हल्के गीले बदन पर फिरने लगे, उनके होंठ आपस में जुड़े हुए थे, पुष्पा भी अब जोश में थी और होंठों को चूसते हुए उसने सुधा के पल्लू को नीचे गिरा कर उसके ब्लाउज़ के हुक खोल दिए थे, कुछ पल बाद दोनों के होंठ अलग हुए पर गर्मी कम नहीं थी, होंठ अलग होते ही पुष्पा ने सुधा के ब्लाउज़ को उतार कर अलग फेंक दिया अब सुधा ऊपर से नंगी थी पर सुधा ने खुद अपनी साड़ी भी उतार दी उसके बदन पर बस एक पेटीकोट रह गया, सुधा पुष्पा के पीछे आई और पीछे से उसके चूचों को पकड़ कर मसलने लगी उनसे खेलने लगी,
पुष्पा के मुंह से सिसकियां निकलने लगी। सुधा चूचियों को मसलते हुए फिर से पुष्पा के आगे आई और फिर से दोनों के होंठ मिले,

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दोनों फिर से एक दूसरे के होंठो को चूमने लगी और फिर थोड़ी देर बाद अलग होकर सुधा नीचे सरकने लगी और पुष्पा की मोटी चूचियों को मसलने और चूसने लगी,
पुष्पा: अह सुधा आह, ओह अच्छा लग रहा है,
पुष्पा उसके सिर को सहलाते हुए बोली,
सुधा तो भूखों की तरह अपनी जेठानी की चूचियों को चूस रही थी।
और पुष्पा जिसकी प्यास पहले ही बड़ी हुई थी और बढ़ रही थी।
चूचियों को जी भर के चूसने के बाद सुधा और नीचे सरकी और पुष्पा के पेट को चाटने लगी, पुष्पा को यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले यही पेट उसका पति चाट रहा था और अब पत्नी चाट रही है, ये सोच कर उसकी उत्तेजना बढ़ रही थी, वहीं सुधा तो चाहती थी कि पुष्पा के बदन का कोई भी हिस्सा न रह जाए जिसे वो चाट न पाए, पुष्पा की नाभी में जीभ घुसाकर चूसने में सुधा को जैसे एक असीम आनंद मिला वहीं पुष्पा का बदन कांप कर रह गया,
सुधा: जीजी तुम्हारा बदन तो मक्खन है, इतना स्वाद है कि मन करता है चाटते जाओ,
सुधा ने उसकी नाभि से जीभ हटाते हुए कहा।
पुष्पा: आह तो खा जा ना आह,
पुष्पा ने अपनी टांगों को आपस में घिसते हुए कहा उसकी चूत गरम हो कर रस बहा रही थी, साथ ही बहुत खुजा रही थी अब उसकी चूत को भी कुछ सुकून चाहिए था, पुष्पा के लिए ये सहना मुश्किल होता जा रहा था, इसलिए वो अनजाने ही सुधा के सिर को पकड़कर नीचे अपनी टांगों के बीच ले जाने लगी, कुछ पल बाद सुधा का मुंह उसकी जेठानी की गीली चूत सामने था, सुधा जेठानी की चूत को ध्यान से देखने लगी और उसे चूत का गीलापन, उसके होंठों की चिकना हट अच्छी लगी, इससे आगे वो कुछ सोचती या करती, पुष्पा ने उसका मुंह अपनी चूत में घुसा दिया या यूं कहें कि अपनी चूत को सुधा के होंठों पर घिसने लगी। सुधा को अचानक झटका लगा उसके होंठों पर उसकी जेठानी की चूत का स्वाद आ रहा था, पर उसे जैसे इससे कोई परेशानी नहीं थी, जितनी गर्मी पुष्पा में थी उतनी ही सुधा में भी थी, सुधा ने भी स्वाभाविक ही अपनी जीभ निकाली और अपनी जेठानी की चूत चाटने लगी,


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पुष्पा तो मानो जन्नत में पहुंच गई उसकी कमर और बदन मचल रहा था, वहीं सुधा को अपनी जेठानी की चूत मानो रस से भरा हुआ कोई फल लग रही थी जिस तरह वो उसे चाट रही थी,
पुष्पा: आह सुधा आह ऐसे ही चूस, खा जा मेरी चूत को, आह बहुत खुजली है इसमें।

पुष्पा की बातों ने सुधा का उत्साह और बढ़ा दिया और सुधा और लगन से अपनी जेठानी की सेवा करने लगी। और सेवा का फल भी उसे रस के रूप में जल्दी ही अपने मुंह में प्राप्त हुआ, पर सुधा उसे भी मलाई मान कर गटक गई, सुधा आज खुद को भी हैरान कर रही थी उसे भी नहीं पता था कि वो अंदर से इतनी प्यासी और उत्तेजना में जल रही है कि अपनी जेठानी की चूत से निकला रस भी उसने पी लिया,
पुष्पा बेजान सी होकर पीछे लेटी हुई थी और तेज तेज हाफ रही थी, सुधा भी उसके बगल में लेट गई, कुछ पल बाद पुष्पा को होश आया तो उसने बगल में लेटी अपनी देवरानी को देखा और उसे याद आया कि उसने कितनी अच्छी तरह अभी उसकी सेवा की थी, पुष्पा ने आगे बढ़ कर सुधा के होंठों को चूम लिया और बोली: आह आज तक ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ तूने तो मेरी जान ही निकाल दी थी।
सुधा: ऐसे कैसे जीजी, तुम्हारी जान में तो हमारी जान बसती है,
पुष्पा: अब मेरी बारी मैं भी तो स्वाद चख कर देखूं अपनी देवरानी का,
ये सुन कर सुधा के चेहरे की मुस्कान और बढ़ी हो गई, और उसके कुछ देर बाद ही

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पुष्पा की जीभ सुधा की चूत पर चल रही थी या कहूं कि सुधा अपनी चूत को पुष्पा के मुंह पर घुस रही थी। और कुछ ही पलों में झड़ रही थी, उसका बदन अकड़ा और फिर वो भी थक कर नीचे गिर गई, तभी उन्हें दरवाज़े पर दस्तक सुनाई दी।

कुछ देर बाद दोनों आंगन में थी और बिल्कुल साधारण संस्कारी बहुएं लग रही थीं, फुलवा और नंदिनी घर आ चुके थे, सुधा चूल्हे पर चाय चढ़ा रही थी तो फुलवा रात के लिए चावल बीन रही थी, चाय लेकर सुधा भी पुष्पा के साथ बैठ गई दोनों के बीच एक रहस्य भरी मुस्कान तैर गई,
पुष्पा: क्यों मुस्कुरा रही हो देवरानी जी।
सुधा: कुछ सोच कर जेठानी जी?
पुष्पा: क्या सोच कर?
सुधा: यही कि इस चाय का स्वाद तुम्हारे रस जैसा नहीं है,
ये सुन पुष्पा शर्मा गई और बोली: वैसे ये बात तो मैं तेरे लिए भी कह सकती हूं।
पुष्पा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा,
सुधा: अच्छा जीजी एक बात थोड़ी अजीब है।
पुष्पा: क्या?
सुधा: वैसे ये चूत को मूत्र द्वार कहते हैं और सब इसे गंदी और गलत चीज मानते हैं, पर आज चाटते हुए मुझे एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि मैं कुछ गलत या गंदा कर रहीं हूं।
पुष्पा: हां मेरे मन में भी एक भी बार जरा भी नहीं आया ये, शायद ये सब गलत हो।
सुधा: अब चाहे गलत हो या सही मैं तो तुम्हारा स्वाद चखती रहूंगी।
पुष्पा: तू भी मुझसे बच के नहीं रहेगी।
दोनों आपस में फुसफुसाते हुए खिल खिला रही थी।

दिन में लल्लू आंगन में बैठ कर रात के बारे में सोच रहा था कि कैसे उसने अपने मां पापा की चुदाई देखी थी साथ ही अपनी बहन को भी देखते हुए पकड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इस बारे में अपनी बहन से बात करे जिससे उसे कुछ फायदा हो,
इतने में उसकी मां लता बाहर से आई और बोली: लल्ला बैठा है देख नहीं रहा बूंदे पड़ रही हैं कपड़े उतार ले,
और खुद आंगन में सूख रहे कपड़े उतारने लगती है, कपड़े उतारते हुए लता का पल्लू एक ओर को सरक जाता है जिससे उसका मांसल गोरा पेट उसकी नाभी और ब्लाउज़ में बंद बड़ी बड़ी चूचियां लल्लू के सामने आ जाती हैं,

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लल्लू का लंड ये नज़ारा देख कड़क होने लगता है,
लता: अब बैठा क्या देख रहा है ले ये कपड़े ले जा और रख दे कमरे में,
लल्लू उठ कर जल्दी से कपड़े लेता है, और कमरे के अंदर जाता है दौड़ कर रख आता है, और बाहर आकर देखता है उसकी मां अभी भी आंगन में खड़ी है।
लल्लू: अरे मां क्यों वहां क्यों खड़ी हो भीग जाओगी आओ अंदर।
लता: अरे कितनी अच्छी बारिश हो रही है आज नहाऊंगी मैं तो बारिश में,
लल्लू: अरे वाह मां, फिर तो मैं भी नहाऊंगा,
लल्लू भी अपनी कमीज़ उतारते हुए बोला, लता ने भी अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया था और कुछ ही पलों में एक ओर टांग दिया, अब लता लल्लू के सामने पेटीकोट और ब्लाउज़ में खड़ी थी,

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लता या गांव की कोई भी औरत ब्रा तो कभी कभी ही पहनती थी तो उस कारण से उसका ब्लाउज़ गीला होकर हल्का पारदर्शी हो गया था और उसकी चूचियों की हल्की झलक दिखा रहा था, ये देख तो लल्लू का और बुरा हाल हो रहा था।
वो सोचने लगा इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा मां के करीब आने का अभी घर पर भी कोई नहीं है, सिवाय हम दोनों के, और जब तक बारिश होगी कोई आने से भी रहा, ये सोचते हुए और बस एक निक्कर में लल्लू भी आंगन में जाकर बारिश में भीगने लगा, पर उसकी नजर अपनी मां के बदन पर बनी हुई थी,
लल्लू: मज़ा आ रहा है न मां बारिश में नहा कर।
लता: हां लल्ला मुझे बारिश हमेशा से ही पसंद रही है, बचपन में तो मैं बारिश में भीगते हुए खूब नाचती थी,
लल्लू: सच में मां तुम्हे इतना मज़ा आता है बारिश में?
लता: हां सच्ची।
लल्लू: तो मां अब भी नाचो न देखो कितनी अच्छी बारिश है।
लता: अभी न बाबा न अब इस उम्र में नाचना नहीं होगा, किसी ने देखा तो गांव भर में मजाक उड़ जाएगा।
लल्लू: अरे मां कौन उड़ाएगा मजाक हमारे अलावा कोई है यहां, और नाचने का उम्र से क्या लेना देना।
लता: अरे नहीं फिर भी अब नाचना नहीं होगा।
लल्लू: अरे क्यों नहीं होगा, मां नाचो न मैं भी साथ दूंगा तुम्हारा, नाचो ना, नाचो न।
लल्लू जिद करते हुए कहता है साथ ही लता जी कमर और पेट पकड़ कर उसे हिलाने लगता है।
लता: अरे लल्ला गिर जाऊंगी मैं आराम से तू तो बिल्कुल बावरा हो गया है अच्छा छोड़ मुझे करती हूं।
लल्लू अब भी उसे पकड़े हुए था और न चाहते हुए भी उसे छोड़ना पड़ता है।
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लता भी अपने बचपन की याद करके धीरे धीरे बदन हिलाने लगती है उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था भले ही लल्लू की ज़िद की वजह से पर वो अपने बचपन की याद को ताज़ा कर पा रही थी, वहीं लल्लू को अपनी मां का थिरकता बदन देख एक अलग ही आनंद आ रहा था, उसका लंड उसके निक्कर में कड़क हो चुका था जिसे उसने नीचे करके किसी तरह से छुपाया हुआ था
और लंड कड़क होने का कारण भी था उसकी मां अपने भरे बदन को जो पूरी तरह गीला था उसे उसके सामने थिरका रही थी,
लल्लू को लग रहा था जैसे वो किसी भरे बदन की फिल्मी हीरोइन को नाचते देख रहा है, सबसे बड़ी बात ये हीरोइन उसकी मां थी जिसे सिर्फ अभी वो ही देख रहा था, लल्लू को ये सोच बहुत अच्छा लग रहा था, वहीं लता लगातार नाच रही थी

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लल्लू को अपनी मां का ये रूप बहुत भा रहा था कुछ देर और यूं ही नाचने के बाद लता हंसते हुए रुक कर बैठ गई।
लता: आह मैं तो थक गई, आखिर तूने अपनी ज़िद पूरी करवा ही ली।
लल्लू: जिद तो पूरी कराई मां। पर ये बताओ तुम्हे मज़ा आया कि नहीं?
लता: सच कहूं तो मज़ा तो आया, बचपन याद आ गया।
लल्लू: इसीलिए तो ज़िद की थी मां,
लता: हाय मेरा लल्ला कितनी फिकर करता है अपनी मां की, पर अब चल, और कपड़े बदल लेते हैं नहीं तो तबियत बिगड़ जाएगी

लल्लू: क्या इतनी जल्दी? थोड़ी देर और रुकते हैं न.
लता: हां अब बहुत हो गया, मैने तेरी बात मानी अब तू मेरी मान।

लल्लू: ठीक है मां चलते हैं, छप्पर के अंदर आकर लता लल्लू से कहती है तू ले ये अंगोछे से खुद को पौंछ कर साफ कर मैं तब तक कमरे से तेरी पेंट निकाल कर देती हूं।
लल्लू: ठीक है मां,
लता कमरे में चली जाती है और लल्लू अंगोछे से अपने बदन को पोंछने लगता है, वो अपने गीले निक्कर को उतारता है जिसके उतरते ही उसका खड़ा लंड उछल कर बाहर आ जाता है वो अपने निक्कर को पैरों से निकाल कर उतार देता है,
उसी समय लता उसके लिए सूखा पेंट लेकर कमरे के दरवाज़े तक आई थी, और उसकी नजर अंदर से ही बाहर पड़ती है सबसे पहले अपने बेटे के कड़क लंड पर, लता लल्लू का कड़क लंड देख कर ज्यों का त्यों रुक जाती है, वो देखती है उसके बेटे का लंड कितना मोटा और कड़क है, हाय मेरा लल्ला कितना बड़ा हो गया है बेटा भी और उसका लंड भी, उसे देख उसे अपनी जांघों के बीच एक हल्की सी खुजली महसूस होती है।
पर वो खुद के सिर को झटकती है और पीछे हो जाती है और आवाज़ देती है: लल्लू ले लल्ला अपनी पेंट,
और फिर कुछ पल बाद लल्लू की आवाज़ आती है,: लाओ मां,
लता कमरे से बाहर आती है तो देखती है लल्लू ने वो अंगोछा अपनी कमर पर बांध लिया था पर अब भी वो उसके उभार को अंगोछे के बीच साफ महसूद कर पा रही थी। लल्लू ने उसके हाथ से पैंट लिया और मूड कर जाते हुए लता ने एक बार फिर से उसके उभार पर नजर डाली और अंदर चली गई।
लता के मन में एक साथ कई विचार चल रहे थे, ये लल्लू का लंड कड़क क्यों था क्या वो उत्तेजित था पर अभी उत्तेजित क्यों घर में तो सिर्फ मैं और वो ही थे, क्या वो मुझे देख कर उत्तेजित हो रहा था, क्या अपनी मां को? लता अपना ब्लाउज़ खोलते हुए ये सोच रही थी, ब्लाउज उतार कर नीचे गिरा दिया और अपनी नंगी चूचियों को पौंछते हुए सोचने लगी, आखिर अपनी मां में मुझ बुढ़िया में उसे क्या मिलेगा ऐसा जो वो गर्म होगा मुझे देख कर, उसके हाथ उसकी चूचियां सुखाने की जगह दबाने लगे थे उसके बदन की गर्मी बढ़ रही थी, उसे अपनी चूत में भी खुजली हो रही थी,
क्या हो रहा है मुझे टांगों के बीच भी खुजली हो रही है जबकि रात को ही इसके पापा ने अच्छे से शांत की थी वो भी अपने बेटे के बारे में सोच कर, पहले छोटू के साथ वो सब और नंदिनी के साथ तो सारी हदें पार हो गई, और अब लल्लू, ये कहां जा रही हैं मैं, किस पाप के दलदल में गिरती जा रही हूं पर बदन को जैसे ये ही भा रहा है, गलत होकर भी अच्छा लग रहा है सब।
लल्लू: मां बारिश रुक गई।
लल्लू की आवाज़ ने उसे खयालों से निकाला और फिर सूखे कपड़े पहन कर वो कमरे से बाहर निकली, तो देखा लल्लू चूल्हे पर चाय चढ़ा रहा था,
लल्लू: मां चाय पियोगी आज मेरे हाथ की।
लता: हां बिल्कुल, बनाएगा तो क्यों नहीं।

लता ने लल्लू को देखते हुए कहा उसकी नजर अपने बेटे के लिए अब बदल चुकी थी।


जारी रहेगी।
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