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DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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बिन भौजी होली बेकार

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UPDATE 18 पेज नंबर 61 पर पोस्ट कर दिया है
पढ़ कर लाइक कमेंट जरूर करें
इन्तजार रहेगा
 
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Deepaksoni

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UPDATE 18



बुआ के हटते ही पापा की नजर मम्मी पर गई और उनकी नजर जैसे ही पापा से मिली मम्मी लाज से अपनी नंगी छातियां ढक ली , लेकिन नजारा अभी आर पार था , कसा कसी में मम्मी के निप्पल कड़े और तने हुए थे

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आंखों ही आंखों में दोनों के कुछ इशारे हुए और पापा मम्मी की ओर बढ़े , मम्मी खिलखिलाती हुई दूसरे कमरे की ओर भागी और इधर पापा उनके पीछे , काफी देर तक मम्मी की खिलखिलाहट और सिसकिया आती रही ।
बबली दीदी , मम्मी का हाल देख कर शर्म से हट गई वहां से लेकिन मै जमा रह गया और दबे पाव बुआ जिस कमरे में गई थी उनकी ओर गया
बाहर से अंदर झांका तो आंखे सन्न बुआ की मोटी मोटी चूचियां अबीर से सराबोर सनी हुई ब्लाउज से बाहर थी और बुआ बस चुपचाप मुस्कुरा कर कान बगल वाले कमरे की ओर लगाए खड़ी थी


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मैने भी मम्मी की सिसकिया सुनी साफ था पापा मम्मी को अच्छे से मसल रहे थे , लेकिन मम्मी की शरारतें कहा रुकने वाली थी वो भी होली के दिन

" अह्ह्ह्ह सीईईईईई अब क्या अपने दीदी जितना बड़ा करके ही छोड़ोगे क्या हीहीही "
" तू न बहुत बोलती है , आज आई है हाथ जम के मसलूंगा इन्हें अह्ह्ह्ह्ह"
" ओह्ह्ह्ह दीदी के पिछवाड़े में रगड़ रगड़ खड़ा किए हो और बदला मुझसे , ये तो गलत है न रोहन के पापा अह्ह्ह्ह हीही उम्मम अंदर नहीं अह्ह्ह्ह , साड़ी बिगड़ जाएगी ओह्ह्ह सीईईई "

पापा मम्मी की रसदार बातें सुनकर बुआ को हंसी आ रही थी और उनके कड़े हुए रंगीन निप्पल देख कर मेरा लंड अकड़ गया था

" तो अब क्या बदला दीदी से लेने जाऊ उम्मम ओह्ह्ह्ह कुसुम कितने मुलायम है अह्ह्ह्ह "
" हीही धत् गंदे अह्ह्ह्ह छोड़ो न जाकर अपनी दीदी का पिछवाड़ा रंगो , मेरे से ज्यादा बड़े और मुलायम हीहीही "

मम्मी की बात सुनकर बुआ शर्म से आंखे बंद कर हसने लगी और शायद वो भी इस पर मेरी तरह पापा की बात सुनना चाहती थी कि अब पापा क्या कहेंगे
" पहले तू तो लगवा ले मेरी जान जैसे उनकी छाती रंगवाई है तुझसे पकड़ कर , वैसे चूतड़ भी रंगवा दूंगा तुझसे ओह्ह्ह्ह "
" अब बस भी करो अह्ह्ह् उम्ममम सीईईई नहीं रखो न उसको अंदर क्या आप भी इतना जल्दी "
" कर दे न कुसुम "

पापा के रिरिकने की आवाज आई और बुआ की आंखे बड़ी होने लगी , हम दोनो समझ रहे थे कि पापा की डिमांड क्या होने वाली है
" धत्त नहीं, जाओ उससे कहो जिसने इसे खड़ा आह्ह्ह्ह नहीं रोहन के पापा उम्ममम कितना गर्म है ओह्ह्ह्ह उम्ममम "

इधर बुआ के निप्पल और कड़े हो गए और उन्हें सिहरन सी होने लगी और मेरा लंड एकदम टाइट
" अब उनसे कैसे कहूं कि दीदी चूस दो , पागल है क्या सीईईई कर दे न कुसुम बस थोड़ा सा "
" बस थोड़ा न ... हीही , लेकिन एक शर्त है ? "
" क्या ? "
" अपने दीदी के दूध में रंग लगाना पड़ेगा हीही "
" तू पागल है क्या अह्ह्ह्ह कुसुम ओह्ह्ह्ह उम्ममम कितना नर्म होठ है तेरे ओह्ह्ह्ह आराम से ओह्ह्ह्ह "

अब तो मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने बुआ वाले कमरे से लपक कर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा क्योंकि आज ये नजारा नहीं छोड़ने वाला था

कमरे का दरवाजा थोड़ा ही खुला था लेकिन सारे कांड दरवाजे की आड़ में दूसरी तरफ हो रहे थे , पापा की सिसकिया तेज थी और मेरा लंड लोई में एक अकड़ा हुआ था , उनकी उफनाती सांसों की बेचैनी साफ साफ पता चल रही थी

मै और देर रुकता लेकिन शायद बुआ भी अपने आप को बहुत देर तक कमरे में रोक नहीं पाई थी और जैसे ही उनके कमरे से बाहर आने की आहट हुई मै वहा से घूम गया बाथरूम की ओर

सच कहूं तो एकदम से फट ही गई थी

बुआ ने भी मुझे देखा और मै थोड़ा देर बाथरूम में पानी चालू करके राह देख रहा था कि क्या करु , कही बुआ कोई सवाल जवाब न करें

लेकिन शायद आज किस्मत मेहरबान थी और हाल में कुछ चहल पहल होने लगी , कुछ औरतों की खिलखिलाहट और हसने की आवाज आने लगी , जरूर मुहल्ले की औरतें रही होगी

बुआ ने मम्मी को आवाज दी और मम्मी ने वापस आवाज दी
मैने बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर देखा और हल्की गुलाबी साड़ी में एक रंगों से नहाई औरत को देखते ही मेरी हिक्की बंध गई और उसने भी इधर उधर देख कर मुझे ही खोजा था शायद , उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और शरारती तेज आंखों की रडार से बचने का एक ही तरीका था कि खुद को बाथरूम में क्वारन्टिन कर लिया है

एक लंबी गहरी सांस
" उफ्फ बहिन चोद , ये तो नीतू भाभी है , ये यहां क्या कर रही है "

नीतू भाभी


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मै क्या मुहल्ले के लगभग सभी कोरे लौंडो की एक तरह से फटती थी उनसे , वजह वो नहीं बल्कि उनकी सास थी , मेरे घर के पीछे के मुहल्ले में विमला काकी की पतोह थी । पेशे और जात से विमला काकी नाउन थी , शादी ब्याह कथा वार्ता में मुहल्ले का शायद ही कोई घर उन्हें न बुलाए । एकदम फूहड़ औरत , याद है मुझे 10वीं के बोर्ड के समय जब पड़ोस के एक घर में शादी थी और तिलक लेकर लड़की वाले आए थे , विमला काकी ने जो सारे तिलकहरुओ की मां बहन की थी पूछो मत , एक एक निवाले पर सबकी मां बहनों पर 20 20 गदहे और घोड़े चढ़वाई थी वो , उसी समय पहली बार अपनी छत से आंगन में विमला काकी के पतोह नीतू भाभी की झलक देखी थी ।
पतली कमर चर्बीदार कूल्हे , गुदाज पेट और नारियल जैसे कड़क चूचे और घूंघट में झांकती मोती जैसे दांतों वाली मीठी सी मुस्कान , पहली बार अपनी सास का हाथ बटाने आई थी गांव से । सबने बड़ी तारीफ की और जब गाने बैठी तो क्या गीत गाया , विमला काकी का पर्स छोटा पड़ गया लेकिन विदाई भरपूर मिली । फिर तो आस पास के मुहल्ले के लोगों ने भी डिमांड कर दी कि बहु को जरूर ले आए
कुछ ही महीनों में फेमस हो गई और याद है जब मैने 12वीं की परीक्षा पास की थी और मेरे घर में एक पूजन का आयोजन रखा गया था । मम्मी ने भी जिद कर दी थी कि नीतू भाभी आएंगी और बिना उनके गीत गाने के कार्यक्रम शुरू नहीं होगा
विमला काकी ने मुझसे कहा कि जाऊ और उनकी पतोह को बुला लाऊ घर से ।
निकल पड़ा था मै तेजी से उनके घर की ओर , जिस रोज से उन्हें देखा था नजरे फेरने जी नहीं चाहता था , वो गोरा पेट और पल्लू के नीचे झांकती चर्बीदार नाभि , ब्लाउज में तने हुए नुकीले दूध और मीठी सी मुस्कान


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कभी कभी मै राह देखता था और उन्हें देखने के लिए बाजार जाने के उनके मुहल्ले से रास्ता बदल कर जाता था ।
झलक मिलती भी तो नजरे उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी , बदलते वक्त ने उनकी कूल्हे की चौड़ाई और गोद में साल भर की बच्ची आने से रसीले मम्में तो अब फूल कर खरबूजे हो गए थे । वजन भी बढ़ गया था थोड़ा डिलेवरी के बाद से जिससे चेहरे का निखार और भी दूधिया हो गया था । कितनी दफा उनके चर्बीदार चूतड़ों की मादक थिरकन देख कर मैने आह भरी थी लेकिन कभी हिम्मत करके सामने से बात नहीं कर पाया , वो भी कम चतुर औरत नहीं थी कितनी बार मुझे अपने चौखट से गुजरते देखा और मुझसे आंखे मिली थी । मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थी वो भी ।
लेकिन उस रोज मुखातिब होने का मौका भी था और दस्तूर भी
बरामदा खाली था , मुहल्ले में भी शांति थी क्योंकि ज्यादातर औरतें मेरे घर ही जमा हुई थी । बरामदे के साइड में गलियारे से मै अंदर चला गया
अजीब सी महक थोड़ी थोड़ी तेल वाली , जैसे अभी अभी बच्चे की मालिश की गई हो
मैने एक बार आवाज लगाई भाभी कह कर और आंगन में दाखिल हो गया , सामने फर्श पर देखा तो आंखे जम गई । नीतू भाभी अपने ब्लाउज खोलकर अपनी गोद में ली हुई बच्ची को दूध पिला रही थी ।


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एकदम से चौक कर वो हड़बड़ाई और मैने भी नजरे फेरी और जल्दी से उन्हें घर आने का बोलकर निकल गया तेजी से अपने घर , रास्ते भर लंड अंगड़ाई लेता रहा उनके रसीले मम्मे को सोच , जब वो आई घर तो भी मैने उनसे कतराता और छिपता रहा लेकिन जब पूजन खत्म होने के बाद आरती लेने की बारी आई तो आमना सामना हो गया , फिर वो जो मुस्कुराई और मै खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया । फिर वो हल्की से अपने होठों से बुदबुदाई
" छीनरूं "
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा कि अभी अभी वो गाली देकर गई थी और फिर कुछ देर बाद मुझे देर कर फूट कर हंसी । मै चुप हो गया अच्छा नहीं लगा उस रोज ये शब्द मुझे , फिर तो कुछ हफ्ते तक मै उनके मुहल्ले में घुसा भी नहीं था ... एक रोज ऐसे ही बाजार में उनसे भेंट हो गई और उनकी सब्जी का झोला भारी था ।

" अरे सुनो रोहन बाबू , घर चल रहे हो क्या "
" जी कहिए " , नजरे मिला कर फिर नजरे चुराने लगा । कारण वो साफ जानती थी लेकिन उनकी मुस्कुराहट रुकने वाली नहीं थी
" थोड़ा हेल्प करेंगे .... अम्मा गांव गई है और मुझे अकेले आना पड़ा आज "

मैने भी झोला उठा दिया और साथ में चल दिया , बाजार से निकल कर जब हम दोनो उनके गलियारे में आए तो भरे सन्नाटे में उन्होंने सवाल कर ही लिया
" ये रास्ता भूल गए क्या अब , दिखते नहीं "
मन में गुलगुले फूटे कि चलो कम से कम आंखों के गड़ा हो हूं याद तो हूं , लेखी अगले पल वो गाली " छीनरू" याद आई और मन फीका सा हो गया ।
" अच्छा ठीक है उस रोज के लिए सॉरी "
मन पिघल गया मेरा चलो कम से कम गलती तो याद है
" अरे दादा अब क्या पैर पकड़ लूं "
" हीही नहीं भाभी वो.. "
" हंसते भी हो ! , मुझे लगा सिर्फ आंखों से ही बात करना आता है तुम्हे , आओ चलो अंदर "
" अंदर ? " , हलक सूखने लगा और वो यादें ताजा होने लगी जब फर्श पर उस रोज उन्हें अपनी बच्ची को दूध पिलाते देखा था
" हा और क्या ? नहीं तो सेठानी कहेंगी मेरे बेटे को दूह ली और एक कप चाय भी नहीं पूछा मैने , आओ अंदर "
मै मुस्कुरा कर चल दिया , आंगन में आते ही सामने नजर फर्श पर गई और उन्होंने भी मुझे उसे घूरते देखा फिर मुस्कुराई

मै शर्मा गया और उसी एक सोफे पर जगह बैठ गया
वो पानी लाई और फिर चाय रखने लगी , आंगन में अरगन पर लहराती उनकी साड़ी ब्लाउज देख कर मेरी चंचल निगाहों के पूरे घर का मुआयना कर उनकी ब्रा पैंटी खोजने लगी , तभी नजरे बाथरूम पर गई , बारिश का मौसम था पेशाब भी लगी थी
वो चाय बनाने में लगी थी और मै लपक कर बिना बोले बाथरूम में घुस गया
लंबी मोटी धार के साथ एक लंबी गहरी आह आंखे खोला तो सामने वाल हैंगर पर मैचिंग ब्रा पैंटी, रोक नहीं पाया ब्रा का लेबल पढ़ने से 36DD उफ्फ कितनी फूली हुई चुची है इनकी पैंटी भी 38 नंबर की थी ।

बाहर से आवाज आई और मैने झटके में उनकी मुलायम पैंटी को छोड़ कर लंड झाड़ कर फ्लश दबा कर बाहर आया
सामने वो चाय की ट्रे लेकर खड़ी ... और नजरे उसकी सीधे मेरे पैंट पर गई रॉड जैसा टाइट लंड पैंट में उभर आया


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" इतना अंधेरा था तो बत्ती जला लेते , इतनी बड़ी टॉर्च लेकर जाने की क्या जरूरत थी "

उनका निशाना अचूक , समझ गया कि तेज औरत है बस पर्दे का लिहाज है और मुस्कुरा कर सोफे पर बैठ गया

चाय ट्रे से उठाई और एक सीप लिया ही था कि उसने टोका
: हाय दैय्या, गलती हो गई
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा
: अरे वो वाली मेरी जूठी थी
मेरी हिक्की बंध गई और चाय तो अबतक गले से उतर नीचे और उसने एक शरारत भरी मुस्कुराहट पास की , मैने भी मुस्कुरा कर चाय की सीप लेने लगा । चाय खत्म कर मै उठा और जाने लगा

" अच्छा सुनो " , रोका उन्होने.
" हा कहिए "
वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर चुप होकर आंखे मलका कर मुझे देखा , मैने भी उनकी बातों की राह देखी और फिर उन्होंने पूछ ही लिया : उस दिन जो देखा किसी को कहा तो नहीं

मेरी सांसे अटक गई कि ये सवाल क्यों ?
" नहीं तो ? "
" नहीं तुम लड़कों का क्या भरोसा , शेखी बघार लो अपने दोस्तों में"
" बक्क मै ये सब नहीं करता और उस रोज भी मै बस गलती से .... "
" अच्छा ठीक है ... कौन सा मेरे छोटे हो गए जो तुमने देख लिए हीही .... लेकिन आना जाना तो मत छोड़ो "
" क्यों ? मेरा क्या काम "
" काम रहेगा तभी आओगे क्या " वो मेरी आंखों में देखी और मेरी ओर बढ़ी , मेरी धड़कने तेज होने लगी और उनकी आंखों में गजब का जादू था बस अपनी ओर खींच रही थी , एक महक जो उनके जिस्म से आ रही थी मैने मेरे होठ भी फड़कने लगे और वो झुकने लगी मेरी ओर , मेरी सांसे गर्माने लगी
फिर एक किस उन्होंने मेरे होठों पर किया और पूरे बदन में बिजली दौड़ गई , पूरा बदन कांप उठा मेरा
बाहर बारिश शुरू हो गई थी और आंगन में भी छींटे पड़ने लगे थे क्योंकि छत की जाली से पानी की बौछार आ रही थी
पानी के छींटे से उनकी ब्लाउज भीगने लगी और दूधिया मोटे मोटे चूचे गिले होने लगे , मेरी नजर उनपर गई और उन्होंने मेरी चोरी पकड़ी
मुस्कुरा पर हौले से पल्लू को खींच कर एक दूध को दिखाया , बिना ब्रा के ब्लाउज में पूरा भरा हुआ मोटा खरबूजे जैसा , जैसे कितना रस भरा हो उनमें । मन ललचा रहा था
: लेना है ?
मैने थूक हलक से गटक कर उन्हें देखा
: वैसे आज इसी का चाय बनाई थी
उफ्फ मेरी लंड की कसावट बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने पेंट में एकदम बियर की कैन रखी हो ऐसी स्थिति थी मेरी
एक नजर उन्होंने लपक कर गलियारे में देखा और नीचे से ब्लाउज खींच कर एक चुची पूरी बाहर , निप्पल पूरे तने हुए जैसे पानी में फूल हुए मुनक्के जैसे भूरे और उनकी सतहों पर दूध की बूंदे ऊभर आई थी


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अच्छे से वो नजारा देख पाता कि उन्होंने मेरा सर अपनी चुची पर दबा दिया और मम्मी के बाद मेरे होश में शायद ये दूसरी चूची थी जिसके दूध स्वाद मैं ले रहा है , होठों से निचोड़ निचोड़ कर उनके निप्पल को सुरकने लगा और वो सिसकने लगी
: अह्ह्ह्ह सीई आराम से बहिनचोद ओह्ह्ह उम्ममम सीईईई पी लो उम्ममम अह्ह्ह्ह


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फिर से गाली लेकिन इस बार उन्होंने मेरा मुंह बंद कर रखा था , ना जवाब दे पा रहा था न गुस्सा जाहिर कर पा रहा था , मैने भी बदला लेते हुए कचकचा कर निप्पल को मुझे लेकर पूरी ताकत से निचोड़ और वो एड़ियों के बल होने लगी और शरीर ढीला करने लगा

बात आगे बढ़ती कि बाहर बरामदे में हरकत हुई , विमला काकी आई हुई थी भीगते हुए और भाभी को आवाज दे रही थी
झटपट हम अलग हुए और मैने अपना मुंह पोछा और उनके साथ बाहर आ गया , भाभी ने बात संभाल ली क्योंकि काकी की नजर में तब भी बच्चा था । मै निकल गया उस रोज और फिर हर रोज लगभग मै चक्कर काटने लगा , लेकिन बात नहीं बन पाई । वो भी एक तय समय पर दरवाजे पर खड़ी मेरी राह देखती , आंखों से इशारे होते लेकिन वो मना कर देती ।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी और मैं कुछ जुगाड़ कर उनका मोबाइल नंबर पता किया और मौका देख कर एक रोज मम्मी के छोटे वाले फोन से काल घुमाया
बात हुई और फिर कई रोज तक हमने सही मौके की तलाश की , मम्मी के फोन पर रात में छिप कर मै उनसे गर्म बातें करता , उनके चूतड़ों और दूध के बारे में और महीने भर बाद उनका प्लान बना, रात में आने के लिए उन्होंने सारी योजना बनाई, किसी तरह से मैने कंडोम का जुगाड़ भी कर लिया और ठीक रात 08 बजे से पहले ही मूसलाधार बारिश होने लगी और उन रोज पापा भी घर आए थे तो बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था । बना बनाया प्लान बिगड़ गया और रात में उन्होंने मुझे बहुत कोसा ... मा बहन की गाली दी । शायद मैने उनके अरमानों पर कुछ ज्यादा ही बारिश करवा दी थी । अगले ही हफ्ते मुझे मेरे इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए निकलना पड़ा , फिर दुबारा से कभी उनसे बात नहीं हुई । आमना सामना हुआ भी कभी तो उनका पिनका हुआ मुंह और बुदबुदाहट वाली गाली ही मिलती ।
वो दिन था और आज का दिन मै उनसे बचता फिरता रहा हूं


तभी बाथरूम के दरवाजे पर आहट हुई , तेजी से किसी ने बाथरूम का अल्युमिनियम वाला हलका दरवाजा थपथपाया और बाहर से बत्ती भी बंद हो गई
" अरे रोहन बाबू बत्ती चली गई बाहर आ जाओ " , कोई औरत खिलखिला कर बोली , आवाज जानी पहचानी थी लेकिन चेहरा ध्यान में नहीं आ रहा था ।
" अरे रोहन बाबू के पास अपनी लंबी वाली टॉर्च है हीहीही ", ये वही थी ....नीतू भाभी

कबतक राह निहारा जाय

कबतक संघर्ष को टाला जाय
अब रण से भाग मत प्यारे
फेंक जहां तक भाला जाय


एक लंबी गहरी सांस और मैने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया ......


जारी रहेगी
( जानता हूं छोटी , लेकिन समय के अभाव में जितना किया जा सकता था किया गया ... प्रेम और स्नेह में कोई कसर नहीं छूटेगी तो अच्छा लगेगा )
Jabardast update diya bhai maza aa gya neelu bhabhi to rohan ko nichod kr hi rahegi lag rha
 
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Sanskari Larka

Sᴀk†Lᴀน𝖓da
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Bhai Kafi samay lag gya new update aane me..
Khair der aaye durust aaye..
Lagta hai past me v Rohan babu bahut se kand kiye huye hain..
Jiska fal chakhne ka samay ab aane Wala h
 
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malikarman

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UPDATE 18



बुआ के हटते ही पापा की नजर मम्मी पर गई और उनकी नजर जैसे ही पापा से मिली मम्मी लाज से अपनी नंगी छातियां ढक ली , लेकिन नजारा अभी आर पार था , कसा कसी में मम्मी के निप्पल कड़े और तने हुए थे

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आंखों ही आंखों में दोनों के कुछ इशारे हुए और पापा मम्मी की ओर बढ़े , मम्मी खिलखिलाती हुई दूसरे कमरे की ओर भागी और इधर पापा उनके पीछे , काफी देर तक मम्मी की खिलखिलाहट और सिसकिया आती रही ।
बबली दीदी , मम्मी का हाल देख कर शर्म से हट गई वहां से लेकिन मै जमा रह गया और दबे पाव बुआ जिस कमरे में गई थी उनकी ओर गया
बाहर से अंदर झांका तो आंखे सन्न बुआ की मोटी मोटी चूचियां अबीर से सराबोर सनी हुई ब्लाउज से बाहर थी और बुआ बस चुपचाप मुस्कुरा कर कान बगल वाले कमरे की ओर लगाए खड़ी थी


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मैने भी मम्मी की सिसकिया सुनी साफ था पापा मम्मी को अच्छे से मसल रहे थे , लेकिन मम्मी की शरारतें कहा रुकने वाली थी वो भी होली के दिन

" अह्ह्ह्ह सीईईईईई अब क्या अपने दीदी जितना बड़ा करके ही छोड़ोगे क्या हीहीही "
" तू न बहुत बोलती है , आज आई है हाथ जम के मसलूंगा इन्हें अह्ह्ह्ह्ह"
" ओह्ह्ह्ह दीदी के पिछवाड़े में रगड़ रगड़ खड़ा किए हो और बदला मुझसे , ये तो गलत है न रोहन के पापा अह्ह्ह्ह हीही उम्मम अंदर नहीं अह्ह्ह्ह , साड़ी बिगड़ जाएगी ओह्ह्ह सीईईई "

पापा मम्मी की रसदार बातें सुनकर बुआ को हंसी आ रही थी और उनके कड़े हुए रंगीन निप्पल देख कर मेरा लंड अकड़ गया था

" तो अब क्या बदला दीदी से लेने जाऊ उम्मम ओह्ह्ह्ह कुसुम कितने मुलायम है अह्ह्ह्ह "
" हीही धत् गंदे अह्ह्ह्ह छोड़ो न जाकर अपनी दीदी का पिछवाड़ा रंगो , मेरे से ज्यादा बड़े और मुलायम हीहीही "

मम्मी की बात सुनकर बुआ शर्म से आंखे बंद कर हसने लगी और शायद वो भी इस पर मेरी तरह पापा की बात सुनना चाहती थी कि अब पापा क्या कहेंगे
" पहले तू तो लगवा ले मेरी जान जैसे उनकी छाती रंगवाई है तुझसे पकड़ कर , वैसे चूतड़ भी रंगवा दूंगा तुझसे ओह्ह्ह्ह "
" अब बस भी करो अह्ह्ह् उम्ममम सीईईई नहीं रखो न उसको अंदर क्या आप भी इतना जल्दी "
" कर दे न कुसुम "

पापा के रिरिकने की आवाज आई और बुआ की आंखे बड़ी होने लगी , हम दोनो समझ रहे थे कि पापा की डिमांड क्या होने वाली है
" धत्त नहीं, जाओ उससे कहो जिसने इसे खड़ा आह्ह्ह्ह नहीं रोहन के पापा उम्ममम कितना गर्म है ओह्ह्ह्ह उम्ममम "

इधर बुआ के निप्पल और कड़े हो गए और उन्हें सिहरन सी होने लगी और मेरा लंड एकदम टाइट
" अब उनसे कैसे कहूं कि दीदी चूस दो , पागल है क्या सीईईई कर दे न कुसुम बस थोड़ा सा "
" बस थोड़ा न ... हीही , लेकिन एक शर्त है ? "
" क्या ? "
" अपने दीदी के दूध में रंग लगाना पड़ेगा हीही "
" तू पागल है क्या अह्ह्ह्ह कुसुम ओह्ह्ह्ह उम्ममम कितना नर्म होठ है तेरे ओह्ह्ह्ह आराम से ओह्ह्ह्ह "

अब तो मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने बुआ वाले कमरे से लपक कर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा क्योंकि आज ये नजारा नहीं छोड़ने वाला था

कमरे का दरवाजा थोड़ा ही खुला था लेकिन सारे कांड दरवाजे की आड़ में दूसरी तरफ हो रहे थे , पापा की सिसकिया तेज थी और मेरा लंड लोई में एक अकड़ा हुआ था , उनकी उफनाती सांसों की बेचैनी साफ साफ पता चल रही थी

मै और देर रुकता लेकिन शायद बुआ भी अपने आप को बहुत देर तक कमरे में रोक नहीं पाई थी और जैसे ही उनके कमरे से बाहर आने की आहट हुई मै वहा से घूम गया बाथरूम की ओर

सच कहूं तो एकदम से फट ही गई थी

बुआ ने भी मुझे देखा और मै थोड़ा देर बाथरूम में पानी चालू करके राह देख रहा था कि क्या करु , कही बुआ कोई सवाल जवाब न करें

लेकिन शायद आज किस्मत मेहरबान थी और हाल में कुछ चहल पहल होने लगी , कुछ औरतों की खिलखिलाहट और हसने की आवाज आने लगी , जरूर मुहल्ले की औरतें रही होगी

बुआ ने मम्मी को आवाज दी और मम्मी ने वापस आवाज दी
मैने बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर देखा और हल्की गुलाबी साड़ी में एक रंगों से नहाई औरत को देखते ही मेरी हिक्की बंध गई और उसने भी इधर उधर देख कर मुझे ही खोजा था शायद , उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और शरारती तेज आंखों की रडार से बचने का एक ही तरीका था कि खुद को बाथरूम में क्वारन्टिन कर लिया है

एक लंबी गहरी सांस
" उफ्फ बहिन चोद , ये तो नीतू भाभी है , ये यहां क्या कर रही है "

नीतू भाभी


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मै क्या मुहल्ले के लगभग सभी कोरे लौंडो की एक तरह से फटती थी उनसे , वजह वो नहीं बल्कि उनकी सास थी , मेरे घर के पीछे के मुहल्ले में विमला काकी की पतोह थी । पेशे और जात से विमला काकी नाउन थी , शादी ब्याह कथा वार्ता में मुहल्ले का शायद ही कोई घर उन्हें न बुलाए । एकदम फूहड़ औरत , याद है मुझे 10वीं के बोर्ड के समय जब पड़ोस के एक घर में शादी थी और तिलक लेकर लड़की वाले आए थे , विमला काकी ने जो सारे तिलकहरुओ की मां बहन की थी पूछो मत , एक एक निवाले पर सबकी मां बहनों पर 20 20 गदहे और घोड़े चढ़वाई थी वो , उसी समय पहली बार अपनी छत से आंगन में विमला काकी के पतोह नीतू भाभी की झलक देखी थी ।
पतली कमर चर्बीदार कूल्हे , गुदाज पेट और नारियल जैसे कड़क चूचे और घूंघट में झांकती मोती जैसे दांतों वाली मीठी सी मुस्कान , पहली बार अपनी सास का हाथ बटाने आई थी गांव से । सबने बड़ी तारीफ की और जब गाने बैठी तो क्या गीत गाया , विमला काकी का पर्स छोटा पड़ गया लेकिन विदाई भरपूर मिली । फिर तो आस पास के मुहल्ले के लोगों ने भी डिमांड कर दी कि बहु को जरूर ले आए
कुछ ही महीनों में फेमस हो गई और याद है जब मैने 12वीं की परीक्षा पास की थी और मेरे घर में एक पूजन का आयोजन रखा गया था । मम्मी ने भी जिद कर दी थी कि नीतू भाभी आएंगी और बिना उनके गीत गाने के कार्यक्रम शुरू नहीं होगा
विमला काकी ने मुझसे कहा कि जाऊ और उनकी पतोह को बुला लाऊ घर से ।
निकल पड़ा था मै तेजी से उनके घर की ओर , जिस रोज से उन्हें देखा था नजरे फेरने जी नहीं चाहता था , वो गोरा पेट और पल्लू के नीचे झांकती चर्बीदार नाभि , ब्लाउज में तने हुए नुकीले दूध और मीठी सी मुस्कान


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कभी कभी मै राह देखता था और उन्हें देखने के लिए बाजार जाने के उनके मुहल्ले से रास्ता बदल कर जाता था ।
झलक मिलती भी तो नजरे उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी , बदलते वक्त ने उनकी कूल्हे की चौड़ाई और गोद में साल भर की बच्ची आने से रसीले मम्में तो अब फूल कर खरबूजे हो गए थे । वजन भी बढ़ गया था थोड़ा डिलेवरी के बाद से जिससे चेहरे का निखार और भी दूधिया हो गया था । कितनी दफा उनके चर्बीदार चूतड़ों की मादक थिरकन देख कर मैने आह भरी थी लेकिन कभी हिम्मत करके सामने से बात नहीं कर पाया , वो भी कम चतुर औरत नहीं थी कितनी बार मुझे अपने चौखट से गुजरते देखा और मुझसे आंखे मिली थी । मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थी वो भी ।
लेकिन उस रोज मुखातिब होने का मौका भी था और दस्तूर भी
बरामदा खाली था , मुहल्ले में भी शांति थी क्योंकि ज्यादातर औरतें मेरे घर ही जमा हुई थी । बरामदे के साइड में गलियारे से मै अंदर चला गया
अजीब सी महक थोड़ी थोड़ी तेल वाली , जैसे अभी अभी बच्चे की मालिश की गई हो
मैने एक बार आवाज लगाई भाभी कह कर और आंगन में दाखिल हो गया , सामने फर्श पर देखा तो आंखे जम गई । नीतू भाभी अपने ब्लाउज खोलकर अपनी गोद में ली हुई बच्ची को दूध पिला रही थी ।


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एकदम से चौक कर वो हड़बड़ाई और मैने भी नजरे फेरी और जल्दी से उन्हें घर आने का बोलकर निकल गया तेजी से अपने घर , रास्ते भर लंड अंगड़ाई लेता रहा उनके रसीले मम्मे को सोच , जब वो आई घर तो भी मैने उनसे कतराता और छिपता रहा लेकिन जब पूजन खत्म होने के बाद आरती लेने की बारी आई तो आमना सामना हो गया , फिर वो जो मुस्कुराई और मै खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया । फिर वो हल्की से अपने होठों से बुदबुदाई
" छीनरूं "
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा कि अभी अभी वो गाली देकर गई थी और फिर कुछ देर बाद मुझे देर कर फूट कर हंसी । मै चुप हो गया अच्छा नहीं लगा उस रोज ये शब्द मुझे , फिर तो कुछ हफ्ते तक मै उनके मुहल्ले में घुसा भी नहीं था ... एक रोज ऐसे ही बाजार में उनसे भेंट हो गई और उनकी सब्जी का झोला भारी था ।

" अरे सुनो रोहन बाबू , घर चल रहे हो क्या "
" जी कहिए " , नजरे मिला कर फिर नजरे चुराने लगा । कारण वो साफ जानती थी लेकिन उनकी मुस्कुराहट रुकने वाली नहीं थी
" थोड़ा हेल्प करेंगे .... अम्मा गांव गई है और मुझे अकेले आना पड़ा आज "

मैने भी झोला उठा दिया और साथ में चल दिया , बाजार से निकल कर जब हम दोनो उनके गलियारे में आए तो भरे सन्नाटे में उन्होंने सवाल कर ही लिया
" ये रास्ता भूल गए क्या अब , दिखते नहीं "
मन में गुलगुले फूटे कि चलो कम से कम आंखों के गड़ा हो हूं याद तो हूं , लेखी अगले पल वो गाली " छीनरू" याद आई और मन फीका सा हो गया ।
" अच्छा ठीक है उस रोज के लिए सॉरी "
मन पिघल गया मेरा चलो कम से कम गलती तो याद है
" अरे दादा अब क्या पैर पकड़ लूं "
" हीही नहीं भाभी वो.. "
" हंसते भी हो ! , मुझे लगा सिर्फ आंखों से ही बात करना आता है तुम्हे , आओ चलो अंदर "
" अंदर ? " , हलक सूखने लगा और वो यादें ताजा होने लगी जब फर्श पर उस रोज उन्हें अपनी बच्ची को दूध पिलाते देखा था
" हा और क्या ? नहीं तो सेठानी कहेंगी मेरे बेटे को दूह ली और एक कप चाय भी नहीं पूछा मैने , आओ अंदर "
मै मुस्कुरा कर चल दिया , आंगन में आते ही सामने नजर फर्श पर गई और उन्होंने भी मुझे उसे घूरते देखा फिर मुस्कुराई

मै शर्मा गया और उसी एक सोफे पर जगह बैठ गया
वो पानी लाई और फिर चाय रखने लगी , आंगन में अरगन पर लहराती उनकी साड़ी ब्लाउज देख कर मेरी चंचल निगाहों के पूरे घर का मुआयना कर उनकी ब्रा पैंटी खोजने लगी , तभी नजरे बाथरूम पर गई , बारिश का मौसम था पेशाब भी लगी थी
वो चाय बनाने में लगी थी और मै लपक कर बिना बोले बाथरूम में घुस गया
लंबी मोटी धार के साथ एक लंबी गहरी आह आंखे खोला तो सामने वाल हैंगर पर मैचिंग ब्रा पैंटी, रोक नहीं पाया ब्रा का लेबल पढ़ने से 36DD उफ्फ कितनी फूली हुई चुची है इनकी पैंटी भी 38 नंबर की थी ।

बाहर से आवाज आई और मैने झटके में उनकी मुलायम पैंटी को छोड़ कर लंड झाड़ कर फ्लश दबा कर बाहर आया
सामने वो चाय की ट्रे लेकर खड़ी ... और नजरे उसकी सीधे मेरे पैंट पर गई रॉड जैसा टाइट लंड पैंट में उभर आया


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" इतना अंधेरा था तो बत्ती जला लेते , इतनी बड़ी टॉर्च लेकर जाने की क्या जरूरत थी "

उनका निशाना अचूक , समझ गया कि तेज औरत है बस पर्दे का लिहाज है और मुस्कुरा कर सोफे पर बैठ गया

चाय ट्रे से उठाई और एक सीप लिया ही था कि उसने टोका
: हाय दैय्या, गलती हो गई
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा
: अरे वो वाली मेरी जूठी थी
मेरी हिक्की बंध गई और चाय तो अबतक गले से उतर नीचे और उसने एक शरारत भरी मुस्कुराहट पास की , मैने भी मुस्कुरा कर चाय की सीप लेने लगा । चाय खत्म कर मै उठा और जाने लगा

" अच्छा सुनो " , रोका उन्होने.
" हा कहिए "
वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर चुप होकर आंखे मलका कर मुझे देखा , मैने भी उनकी बातों की राह देखी और फिर उन्होंने पूछ ही लिया : उस दिन जो देखा किसी को कहा तो नहीं

मेरी सांसे अटक गई कि ये सवाल क्यों ?
" नहीं तो ? "
" नहीं तुम लड़कों का क्या भरोसा , शेखी बघार लो अपने दोस्तों में"
" बक्क मै ये सब नहीं करता और उस रोज भी मै बस गलती से .... "
" अच्छा ठीक है ... कौन सा मेरे छोटे हो गए जो तुमने देख लिए हीही .... लेकिन आना जाना तो मत छोड़ो "
" क्यों ? मेरा क्या काम "
" काम रहेगा तभी आओगे क्या " वो मेरी आंखों में देखी और मेरी ओर बढ़ी , मेरी धड़कने तेज होने लगी और उनकी आंखों में गजब का जादू था बस अपनी ओर खींच रही थी , एक महक जो उनके जिस्म से आ रही थी मैने मेरे होठ भी फड़कने लगे और वो झुकने लगी मेरी ओर , मेरी सांसे गर्माने लगी
फिर एक किस उन्होंने मेरे होठों पर किया और पूरे बदन में बिजली दौड़ गई , पूरा बदन कांप उठा मेरा
बाहर बारिश शुरू हो गई थी और आंगन में भी छींटे पड़ने लगे थे क्योंकि छत की जाली से पानी की बौछार आ रही थी
पानी के छींटे से उनकी ब्लाउज भीगने लगी और दूधिया मोटे मोटे चूचे गिले होने लगे , मेरी नजर उनपर गई और उन्होंने मेरी चोरी पकड़ी
मुस्कुरा पर हौले से पल्लू को खींच कर एक दूध को दिखाया , बिना ब्रा के ब्लाउज में पूरा भरा हुआ मोटा खरबूजे जैसा , जैसे कितना रस भरा हो उनमें । मन ललचा रहा था
: लेना है ?
मैने थूक हलक से गटक कर उन्हें देखा
: वैसे आज इसी का चाय बनाई थी
उफ्फ मेरी लंड की कसावट बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने पेंट में एकदम बियर की कैन रखी हो ऐसी स्थिति थी मेरी
एक नजर उन्होंने लपक कर गलियारे में देखा और नीचे से ब्लाउज खींच कर एक चुची पूरी बाहर , निप्पल पूरे तने हुए जैसे पानी में फूल हुए मुनक्के जैसे भूरे और उनकी सतहों पर दूध की बूंदे ऊभर आई थी


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अच्छे से वो नजारा देख पाता कि उन्होंने मेरा सर अपनी चुची पर दबा दिया और मम्मी के बाद मेरे होश में शायद ये दूसरी चूची थी जिसके दूध स्वाद मैं ले रहा है , होठों से निचोड़ निचोड़ कर उनके निप्पल को सुरकने लगा और वो सिसकने लगी
: अह्ह्ह्ह सीई आराम से बहिनचोद ओह्ह्ह उम्ममम सीईईई पी लो उम्ममम अह्ह्ह्ह


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फिर से गाली लेकिन इस बार उन्होंने मेरा मुंह बंद कर रखा था , ना जवाब दे पा रहा था न गुस्सा जाहिर कर पा रहा था , मैने भी बदला लेते हुए कचकचा कर निप्पल को मुझे लेकर पूरी ताकत से निचोड़ और वो एड़ियों के बल होने लगी और शरीर ढीला करने लगा

बात आगे बढ़ती कि बाहर बरामदे में हरकत हुई , विमला काकी आई हुई थी भीगते हुए और भाभी को आवाज दे रही थी
झटपट हम अलग हुए और मैने अपना मुंह पोछा और उनके साथ बाहर आ गया , भाभी ने बात संभाल ली क्योंकि काकी की नजर में तब भी बच्चा था । मै निकल गया उस रोज और फिर हर रोज लगभग मै चक्कर काटने लगा , लेकिन बात नहीं बन पाई । वो भी एक तय समय पर दरवाजे पर खड़ी मेरी राह देखती , आंखों से इशारे होते लेकिन वो मना कर देती ।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी और मैं कुछ जुगाड़ कर उनका मोबाइल नंबर पता किया और मौका देख कर एक रोज मम्मी के छोटे वाले फोन से काल घुमाया
बात हुई और फिर कई रोज तक हमने सही मौके की तलाश की , मम्मी के फोन पर रात में छिप कर मै उनसे गर्म बातें करता , उनके चूतड़ों और दूध के बारे में और महीने भर बाद उनका प्लान बना, रात में आने के लिए उन्होंने सारी योजना बनाई, किसी तरह से मैने कंडोम का जुगाड़ भी कर लिया और ठीक रात 08 बजे से पहले ही मूसलाधार बारिश होने लगी और उन रोज पापा भी घर आए थे तो बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था । बना बनाया प्लान बिगड़ गया और रात में उन्होंने मुझे बहुत कोसा ... मा बहन की गाली दी । शायद मैने उनके अरमानों पर कुछ ज्यादा ही बारिश करवा दी थी । अगले ही हफ्ते मुझे मेरे इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए निकलना पड़ा , फिर दुबारा से कभी उनसे बात नहीं हुई । आमना सामना हुआ भी कभी तो उनका पिनका हुआ मुंह और बुदबुदाहट वाली गाली ही मिलती ।
वो दिन था और आज का दिन मै उनसे बचता फिरता रहा हूं


तभी बाथरूम के दरवाजे पर आहट हुई , तेजी से किसी ने बाथरूम का अल्युमिनियम वाला हलका दरवाजा थपथपाया और बाहर से बत्ती भी बंद हो गई
" अरे रोहन बाबू बत्ती चली गई बाहर आ जाओ " , कोई औरत खिलखिला कर बोली , आवाज जानी पहचानी थी लेकिन चेहरा ध्यान में नहीं आ रहा था ।
" अरे रोहन बाबू के पास अपनी लंबी वाली टॉर्च है हीहीही ", ये वही थी ....नीतू भाभी

कबतक राह निहारा जाय

कबतक संघर्ष को टाला जाय
अब रण से भाग मत प्यारे
फेंक जहां तक भाला जाय


एक लंबी गहरी सांस और मैने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया ......


जारी रहेगी
( जानता हूं छोटी , लेकिन समय के अभाव में जितना किया जा सकता था किया गया ... प्रेम और स्नेह में कोई कसर नहीं छूटेगी तो अच्छा लगेगा )
Maza to aaya
Baki agle update ka intezar rahega
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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" At least blood is better than tears "
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UPDATE 004


Kabhi kabhi samajh nahi aata ke kuch anchahe log kab aur kaise aapki zindagi mein aa jaate hain aur aapko bhnak tak nahi hoti.
Beete waqt mein unki ki hui anjaani si madad ka bojh liye aap dho te chle jaate ho aur waqt ke saath woh bojh baat-cheet aur mulakaton se bandhanon ke roop mein aa jata hai. Ek lambey waqt tak jab aap kisi ke saath sharaafat ka dikhawa karte hue chle aao to ek waqt ke baad samne wale ki kuch ajeeb badtameezion ko bhi sehne ke aap aadi ho jaate ho. Kyunki beete waqt mein uske kiye hue upkaar ka karz aapne utara nahi hota aur waqt ke saath unse kuch rishta sa ban jaye to aapke liye bada mushkil ho jata hai ke aap unse kuch asahaj baatein keh kar peecha chhuda lo.

Kuch aisa hi ek upkaar se shuru hua rishta tha mera aur Priya ka.
Saal 2018, baarish ka mausam aur main apne armaan sajaye hue taiyaari ke liye pehli baar utra tha Prayagraj station pe.
Ek e-rickshaw book karke gali gali sasta aur aaramdayak jagah dhundne ke liye shaam ho gayi. Kahin bhi single ladke ke liye kamra available nahi mila, shayad the bhi to meri pahunch se door the aur maine rickshaw wale ko uska 500 ka bhada dekar wapas station chhodne ko bol diya tha.
Raat ke lagbhag 8 baje the aur baarish se sadke sunsaan thi, na raaste ka pata tha na manzil ka. Wahi ek sadak ke kinare ek ladki dikhi bheegne se bachne ki koshish karti hui aur woh awaaz de rahi thi hume, matlab rickshaw wale ko.

: Bhaiya, agar kaho to us didi ko bitha loon, raat hai, savari nahi milegi.
Main subah se thaka tha aur mood bhi kuch khaas nahi tha. Apna thikana na sahi, kisi ko uski manzil mil jaye.
Maine haan mein sar hila diya aur woh e-rickshaw leke waha pahuncha.
Waha ek nahi, do the.
Jhat se woh andar aa gayi apne chhote se bhai ke saath.

: Oh sorry, reserve hai kya? (usne poocha)
: Koi baat nahi, baith jao, yeh chhod denge .
: Thank you (bheegi hui, usne tasalli bhari muskaan ke saath bola).
Maine dhyan nahi diya.

: Bhaiya, Teliyarganj chhod denge.
Usne e-rickshaw wale se kaha. Jagah ka naam suna suna sa laga, lekin man ab bhari ho chala tha, cheezein utni dhyan mein nahi thi. Bhookh bhi lagi thi aur baarish se thoda bohot main bhi bheeg gaya tha.

: Didi, yeh bhaiya kaha ja rahe hain?
Us chhote se bacche ki masoomiyat pe maine ek dheemi si muskaan ke saath usse dekha aur woh thodi asahaj dikhne lagi.
: Babu, yeh apne ghar ja rahe hain, na? (usne mujhe dekh kar sawaal jaisa poocha).
Main bolta usse pehle e-rickshaw wala bol pada: Nahi didi, bhaiya to aaj subah hi Ilahabad aaye hain aur kisi ko jaante bhi nahi. Subah se main inko kai jagah ghuma chuka hoon, koi akela ladka ko kamra nahi de raha. Bahut pareshan hain, abhi to yeh aapke mohalle se nikal kar hi aaye hain.

Woh bade dhyan se sun rahi thi aur main apni nakaami se jhuki nazron ko hata kar bahar dekh raha tha. Woh chup thi.

: Bas yeh wali gali mein chaliye, thoda aur aage (woh e-rickshaw wale ko ghar ka address bata rahi thi).
: Bas bas yahi wala hai, rok dijiye.
Usne paise diye aur apne chhote bhai ke saath utar gayi.
: Bye bye bhaiya! (us masoom ne haath utha kar mujhe greet kiya aur maine ek dheemi si muskaan ke saath usse dekha, pal bhar ke liye nazrein usse mili aur man udaas ho gaya).

E-rickshaw wale ne gaadi ghumayi aur hum 10 meter aage aaye hi the ke usne peeche se awaaz di.
Aur bhagti hui aayi:
: Suno, mere yaha ek kamra hai, lekin usme kitchen nahi hai aur bathroom bhi common hai. Chaho to dekh lo.

Chahiye kya tha? Doobte ko tinke ka sahara.

" Hyy Rohan! "

: Haan Priya, hi! (muskurakar maine usse dekha).
Woh badi excited dikh rahi thi.
Maine usse khush dekh kar uski vibe mein ghulte hue muskaan ke saath: Kya hua?
: Tumne kuch notice nahi kiya?
: Kya? (hairat se maine kaha).
: Meri dress, hehehe, kaisi hai?


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: Ohhh, yeh, mast lag rahi hai!
: Thank you, hehe! (uski yeh chahakna mere liye common sa tha).

Koi nayi dress ho jo woh pehenti, kuch khaas jo woh banati, mere paas zaroor serve hota tha.
Maine apni taraf se kabhi bhi rishta nahi banaya, main bas ek sharaafat wala kirayedar tha do saal se, lekin uske liye main bohot khaas tha.
Shayad ek casual dost se bhi zyaada. Uski papa army mein the. Chunki ghar pe woh, uski mummy aur chhota bhai hi tha, isliye woh kiraye pe kamre nahi dete the. Lekin niyati thi meri ke beete do saal se is ghar mein main hi akela kirayedar tha.
Priya ki mummy ne kabhi bhi mujhe ya hum dono ke casual milne ko shak ki nazar se nahi dekha. Lekin ek waqt ke baad main bore hone laga tha.
Uska dakhla mere niji kamre ke saath saath meri niji zindagi mein bhi.

Kai baar man hua kamra badal loon, lekin coaching mein doosre ladkon se unke makaan malikon ke manmaani aur samay se aane jaane ke pabandiyon ke baare mein sun kar man badal jata.
Phir parikshaayein bhi aane wali thi.

: Main madad karoon?
: Nahi, ho jayega.
: Achha theek hai, kaam kar lo aur mummy ne kaha hai ke raat ko khana mat banana.
Samajh gaya woh jhooth bol rahi hai, lekin kya kar sakta tha? Samne wale se bas pyar hi mil raha tha, phir main khud ko ek bandhan mein paa raha tha.
Woh chali gayi.
Maine apna kamra saaf kiya aur thak kar chauki pe lage bistar pe fail gaya.

Mobile nikala to dekha meri sukoon ka message aaya tha.
Madam coaching se ghar aa gayi thi aur dinner ki taiyaari mein thi.
Maine bhi room pe aane ka message daala aur fresh hoke nikal gaya bazaar ke liye.
Ilahabad ki shaam har mausam mein suhaani aur jagmag hoti hai, aur jab baat sardiyon ki ho to kya kehna.
Aam taur pe yaha khana peena bohot sasta tha.
Maine bhi sabziya pack karwayi aur tehelte hue kamre pe wapas.

Jeene se upar ja raha tha ke ek fussfussahat mere kaan mein aayi aur Priya ka chhota bhai aa gaya bulane:
: Bhaiya, aao chai pi lo.
Samajh gaya usi ne kehlwaya hai.
Main muskurakar uske saath andar aa gaya.
Hall mein uski mummy baithi thi aur kitchen se masale ki khushboo aa rahi thi.
: Namaste aunty!
: Namaste beta, baitho, aur batao ghar pe sab theek hai?

Humara haal chaal ho raha tha aur woh chai leke aayi aur apni mummy ke paas khadi ho gayi, jaise main koi mehmaan hoon unke ghar.

Ekdum se uski nazar meri sabziyon ki theli pe gayi aur usne mujhe ghoor ke dekha.
Oh, yaha main batana bhool gaya, humare Ilahabad mein ek badi gazab ki baat hai, yaha log roz sabziya kharidte hain, matlab aaj raat kya banega usi ki kharidaari hoti thi.
Chunki main kaafi dino se nahi tha, toh maine kuch main sabziya, pyaaz, lahsun ke saath agle din ke liye bhi sabzi le li thi, lekin usko laga main uske yaha khana nahi khaunga.

Tabhi mera mobile bajne laga.
Meri nazar ghadi ki sui pe gayi.
8 bajne mein 5 minute kam the, matlab madam ke call ka due time aane wala tha lekin pehle hi aa gaya.
Maine jhat se chai khatam ki aur last ring se pehle call utha liya, phir sabzi utha kar:
: Aunty, khana ho jaye to bata dijiyega, mujhe ek bohot zaroori lecture attend karna hai.

Main waha se nikal gaya aur jeene pe aate hi phone kaan pe lagaya:

: Haan!
: Oho, toh aaj lecture attend hoga, hmmm? (usne mazak liya).
: Kya yaar, aap bhi! Aur batao, kaisi ho? (main muskurakar bola).
: Bilkul achhi nahi hoon, kyun chale itna door? (woh rone ka drama karti hui boli) Pata hai meri saheli bol rahi thi ke aapke dost ke ghar parso chauth leke chale ke liye, socha aapse mil lungi. Aap kyun chale gaye, uhu mummy!
: Kya, sach mein aane wale the?
: Ab nahi jaungi, ha nahi to, kitna rona aa raha hai mujhe. Mujhe apko dekhna hai, apko to meri yaad bhi nahi aati, video call bhi nahi karte, sab mujhe kehna padega tab samjhoge kya?

Uff, do dino ke shikayaton ki lambi list leke baith gayi meri sherni aur mujhe hasi aayi.
Maine apna neckband connect kiya aur usko video call kiya:

: Arre, ro rahe ho?
: Toh kya nachun, itna door chale gaye, agar mujhe apki dhadkan feel nahi hui to?
Hasi aayi mujhe uski baccho jaisi baaton pe.
: Door kaha, yun kaho aur bhi paas aa gaya (main bistar pe let kar mobile apne aage rakhta hua).
: Woh kaise?
: Yaha kisi se chhupna thodi hai, jab chahu tab apse baatein kar sakta hoon, jitna chahu utna.
: Puri raat bhi? (usne poocha).
: Haan, puri raat (maine dheere se kaha aur woh sharma gayi).

Phir hum ek doosre ko mobile screen pe dekhne lage.
Maine usse apne paas aane ko kaha, woh thodi sharmai aur muskurakar na mein sar hilaya aur kambal se muh chhupane lagi.


meow-meow
: Bakka, aao na!
: Nahi, aise nahi, voice call pe aao.
: Arre, main to meri sukoon ka pyara sa chehra dekhunga bas.
: Pakka na? (usne warning di).

Usne mobile ko pillow se tek laga kar khada kiya aur pet ke bal uske samne let kar dono haath age karke upar apna chehra tika kar usse dekhne lagi


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: Mat dekho na aise!
: Kyun? (maine usse dekhte hue kaha).
: Mujhe sharm aa rahi hai (woh muh pe haath rakh kar boli aur muskurane lagi).
Maine koi jawab nahi diya, bas usse dekhta raha aur woh bhi shaant si ho gayi.
Hum phir se ek doosre mein khone lage aur maine jhat se lapak kar mobile screen pe uske lips ko chum liya.


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: Ah, dhatt, gande ho aap (woh muh par hath rakh kar sharamaati hui ghum gayi ).
Main khilkhila kar hasne laga.
: I love you (maine bola aur woh shaant ho gayi aur usne mujhe dekha).
Maine bhauhein utha kar usse ishara kiya aur woh phir sharmai.
: Bolo na, bakk
: Kya? (woh muh pe haath rakh kar sharma muskurati hui).
: Wahi!
: Kya?
: I love you bolo!
: Nahi bolungi, zabardasti hai kya?
: Haan! (maine bhi hak jataaya).
: Aaunga na to…
: Aao hi hi! (usne wapas chidhaaya).
: Kissi dogi na, aaunga tab?
: Hmmm, aao (aankhon se usne mujhe bulaya).
: Pakka na?
Woh asahaj ho gayi aur na mein sar hilaya.
: Itna bhi kya darna kisi se (khilkhila kar maine uske maze liye).
: Ab to pakka kuch nahi dungi, rakho tum, ha nahi to, bye!

Usne chidh kar phone kaat diya aur main hasne laga.

Aur mujhe ek pyara sa gaana yaad aa gaya.
Maine haste hue uske WhatsApp pe message type karke bheja:

O mere sona re sona re sona re,

De dunga jaan, juda mat hona re,
Main tujhe zara der mein jaana,
Hua kusoor khafa mat hona re.


: O meri sona maan jaao na
Agla pal uska reply aaya:
: Pagalu, mummy ne bulaya hai, abhi baat karti hu 😘

Main khush ho gaya aur thodi der apni padhai dekhne laga. Thodi der baad Priya ka bhai upar aaya khane pe bulane. Maine meri jaan ko ek message daal kar mobile charge pe lagaya aur neeche chala gaya khana khane.

Jaise maine bataya ke woh aksar khaas khana mere liye seekhti aur banati thi, toh aaj ka khana bhi achha tha.
Chunki aaj mera man khush tha meri sukoon se baat karke, toh masti sujh rahi thi aur maine Priya ke bajay uski mummy ki tareef ki:

: Sach mein aunty, aapke haath ki sevai itni achchi hai na
: Aur chahiye to le lo beta (woh has ke boli).
: Nahi aunty, pet bhar gaya aur thank you, sach mein aaj thak sa gaya tha aur shayad khana banata bhi nahi.

Maine dekha wahi kitchen mein koi apne liye faisle pe itra raha tha aur main uth kar haath dhulne kitchen mein chala gaya.
: Chaho to ek thank you mujhe bhi bol sakte ho, sabzi maine hi banai thi (tunak kar woh boli, haath bandh kar mere peeche khadi hui).
Mujhe hasi aayi kulli karte hue lekin maine apni bhavnayein chhupai.
: siiiii ahhh , taba hi sochu kisne badla lene ke liye mirchi zyaada daali thi, fooo ahhh (jeebh nikaal kar maine naatak kiya to woh mera gala pakadne daudi).
Main bachne ki koshish karta hua khilkhilaya aur woh bhi muskurate hue: Tum na, mummy hai nahi to batati achhe se.

Main muskurakar apna collar sahi karta hua usko chidhaata hua jaanbujh kar jeebh se siskaare lete hue nikal gaya aur woh chidh kar reh gayi.

Thodi der baad upar aaya to dekha 4 miss call aaye the.
Maine apne kamre ka darwaza band kiya aur call back karte hue bistar mein:

: Oho, koi mujhe miss you badly bhi likh sakta tha itna phone karne ke bajay (maine usse chheda).
: Huh, kisne bola miss kar rahi thi (woh tunki).
: Bas feel hua khaate waqt hichki aa rahi thi (abhi bhi main neeche wale floor ke flow mein hi tha).
: Huh, pata nahi logon ko kya kya bhram ho rahe hain (bhigo ke diya usne mujhe aur meri masti furr).
: Hmmm, lekin main to meri sona ko miss kar raha tha.
: Achha, sach mein?
: Hmmm, woh to meri saanson mein bas gayi.
: Oho!
: Haan, aur pata hai woh na?
: Hmmm (usne jataya ke woh gaur se sun rahi hai).
: Woh na meri jaan hai, mera sukoon hai.
: Pagal, I love you.
: Love you meri sona.

Uski kunmunahat bhari hasi aayi aur ek flash notification pop up hua screen pe, usne video call ki request di thi.

Maine pick ki aur phir hum ek doosre ko dekhne lage.
Maine mobile ko diwal se laga diya aur karwat lekar kambal mein se usse dekhne laga.

Woh mujhe muskurati thi aur main usse.
Kitna kuch ankhaha sa pyar tha uski aankhon mein jo woh keh nahi pa rahi thi.
: Bolo na.
: Kya (usne muskurakar poocha).
: Wahi jo aankhon mein liye baithe ho.
: Kaise samajh jaate ho ap (woh thodi sharmai).
: Jaan ho n ap meri (maine pyar se kaha aur usne mobile pakad kar apna screen chum liya).
Aankhein band kar maine us pal ko mehsoos kiya aur phir se samne thi.
: So jao (sukoon bhari muskaan se woh boli).
: Nahi, aise raho na (maine kaha aur woh maan gayi).
Phir maine ek flying kiss bheji hothon se aur woh muskurakar waisi hi leti rahi phone ke aage.
Aur dekhte hi dekhte usne aankhein band kar li.


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Is pal ko to kayanant se chura loon itni masoom lag rahi thi meri jaan, pyari si gudiya meri, meri lado, mera sona, mera sukoon.

Jaari rahegi

Kripya padh kar apne vichaar jrur sajha kren , taaki mai vichaar kar sakun ki mujhe ise aage continue Krna hai ya meri dusari story par hi dhyaan dena hai .
Bhai sach keh raha hun yeh story padhke mere pichwade se kala dhuan nikal raha pata nahin kyun :bhoi:
 
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UPDATE 18



बुआ के हटते ही पापा की नजर मम्मी पर गई और उनकी नजर जैसे ही पापा से मिली मम्मी लाज से अपनी नंगी छातियां ढक ली , लेकिन नजारा अभी आर पार था , कसा कसी में मम्मी के निप्पल कड़े और तने हुए थे

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आंखों ही आंखों में दोनों के कुछ इशारे हुए और पापा मम्मी की ओर बढ़े , मम्मी खिलखिलाती हुई दूसरे कमरे की ओर भागी और इधर पापा उनके पीछे , काफी देर तक मम्मी की खिलखिलाहट और सिसकिया आती रही ।
बबली दीदी , मम्मी का हाल देख कर शर्म से हट गई वहां से लेकिन मै जमा रह गया और दबे पाव बुआ जिस कमरे में गई थी उनकी ओर गया
बाहर से अंदर झांका तो आंखे सन्न बुआ की मोटी मोटी चूचियां अबीर से सराबोर सनी हुई ब्लाउज से बाहर थी और बुआ बस चुपचाप मुस्कुरा कर कान बगल वाले कमरे की ओर लगाए खड़ी थी


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मैने भी मम्मी की सिसकिया सुनी साफ था पापा मम्मी को अच्छे से मसल रहे थे , लेकिन मम्मी की शरारतें कहा रुकने वाली थी वो भी होली के दिन

" अह्ह्ह्ह सीईईईईई अब क्या अपने दीदी जितना बड़ा करके ही छोड़ोगे क्या हीहीही "
" तू न बहुत बोलती है , आज आई है हाथ जम के मसलूंगा इन्हें अह्ह्ह्ह्ह"
" ओह्ह्ह्ह दीदी के पिछवाड़े में रगड़ रगड़ खड़ा किए हो और बदला मुझसे , ये तो गलत है न रोहन के पापा अह्ह्ह्ह हीही उम्मम अंदर नहीं अह्ह्ह्ह , साड़ी बिगड़ जाएगी ओह्ह्ह सीईईई "

पापा मम्मी की रसदार बातें सुनकर बुआ को हंसी आ रही थी और उनके कड़े हुए रंगीन निप्पल देख कर मेरा लंड अकड़ गया था

" तो अब क्या बदला दीदी से लेने जाऊ उम्मम ओह्ह्ह्ह कुसुम कितने मुलायम है अह्ह्ह्ह "
" हीही धत् गंदे अह्ह्ह्ह छोड़ो न जाकर अपनी दीदी का पिछवाड़ा रंगो , मेरे से ज्यादा बड़े और मुलायम हीहीही "

मम्मी की बात सुनकर बुआ शर्म से आंखे बंद कर हसने लगी और शायद वो भी इस पर मेरी तरह पापा की बात सुनना चाहती थी कि अब पापा क्या कहेंगे
" पहले तू तो लगवा ले मेरी जान जैसे उनकी छाती रंगवाई है तुझसे पकड़ कर , वैसे चूतड़ भी रंगवा दूंगा तुझसे ओह्ह्ह्ह "
" अब बस भी करो अह्ह्ह् उम्ममम सीईईई नहीं रखो न उसको अंदर क्या आप भी इतना जल्दी "
" कर दे न कुसुम "

पापा के रिरिकने की आवाज आई और बुआ की आंखे बड़ी होने लगी , हम दोनो समझ रहे थे कि पापा की डिमांड क्या होने वाली है
" धत्त नहीं, जाओ उससे कहो जिसने इसे खड़ा आह्ह्ह्ह नहीं रोहन के पापा उम्ममम कितना गर्म है ओह्ह्ह्ह उम्ममम "

इधर बुआ के निप्पल और कड़े हो गए और उन्हें सिहरन सी होने लगी और मेरा लंड एकदम टाइट
" अब उनसे कैसे कहूं कि दीदी चूस दो , पागल है क्या सीईईई कर दे न कुसुम बस थोड़ा सा "
" बस थोड़ा न ... हीही , लेकिन एक शर्त है ? "
" क्या ? "
" अपने दीदी के दूध में रंग लगाना पड़ेगा हीही "
" तू पागल है क्या अह्ह्ह्ह कुसुम ओह्ह्ह्ह उम्ममम कितना नर्म होठ है तेरे ओह्ह्ह्ह आराम से ओह्ह्ह्ह "

अब तो मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने बुआ वाले कमरे से लपक कर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा क्योंकि आज ये नजारा नहीं छोड़ने वाला था

कमरे का दरवाजा थोड़ा ही खुला था लेकिन सारे कांड दरवाजे की आड़ में दूसरी तरफ हो रहे थे , पापा की सिसकिया तेज थी और मेरा लंड लोई में एक अकड़ा हुआ था , उनकी उफनाती सांसों की बेचैनी साफ साफ पता चल रही थी

मै और देर रुकता लेकिन शायद बुआ भी अपने आप को बहुत देर तक कमरे में रोक नहीं पाई थी और जैसे ही उनके कमरे से बाहर आने की आहट हुई मै वहा से घूम गया बाथरूम की ओर

सच कहूं तो एकदम से फट ही गई थी

बुआ ने भी मुझे देखा और मै थोड़ा देर बाथरूम में पानी चालू करके राह देख रहा था कि क्या करु , कही बुआ कोई सवाल जवाब न करें

लेकिन शायद आज किस्मत मेहरबान थी और हाल में कुछ चहल पहल होने लगी , कुछ औरतों की खिलखिलाहट और हसने की आवाज आने लगी , जरूर मुहल्ले की औरतें रही होगी

बुआ ने मम्मी को आवाज दी और मम्मी ने वापस आवाज दी
मैने बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर देखा और हल्की गुलाबी साड़ी में एक रंगों से नहाई औरत को देखते ही मेरी हिक्की बंध गई और उसने भी इधर उधर देख कर मुझे ही खोजा था शायद , उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और शरारती तेज आंखों की रडार से बचने का एक ही तरीका था कि खुद को बाथरूम में क्वारन्टिन कर लिया है

एक लंबी गहरी सांस
" उफ्फ बहिन चोद , ये तो नीतू भाभी है , ये यहां क्या कर रही है "

नीतू भाभी


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मै क्या मुहल्ले के लगभग सभी कोरे लौंडो की एक तरह से फटती थी उनसे , वजह वो नहीं बल्कि उनकी सास थी , मेरे घर के पीछे के मुहल्ले में विमला काकी की पतोह थी । पेशे और जात से विमला काकी नाउन थी , शादी ब्याह कथा वार्ता में मुहल्ले का शायद ही कोई घर उन्हें न बुलाए । एकदम फूहड़ औरत , याद है मुझे 10वीं के बोर्ड के समय जब पड़ोस के एक घर में शादी थी और तिलक लेकर लड़की वाले आए थे , विमला काकी ने जो सारे तिलकहरुओ की मां बहन की थी पूछो मत , एक एक निवाले पर सबकी मां बहनों पर 20 20 गदहे और घोड़े चढ़वाई थी वो , उसी समय पहली बार अपनी छत से आंगन में विमला काकी के पतोह नीतू भाभी की झलक देखी थी ।
पतली कमर चर्बीदार कूल्हे , गुदाज पेट और नारियल जैसे कड़क चूचे और घूंघट में झांकती मोती जैसे दांतों वाली मीठी सी मुस्कान , पहली बार अपनी सास का हाथ बटाने आई थी गांव से । सबने बड़ी तारीफ की और जब गाने बैठी तो क्या गीत गाया , विमला काकी का पर्स छोटा पड़ गया लेकिन विदाई भरपूर मिली । फिर तो आस पास के मुहल्ले के लोगों ने भी डिमांड कर दी कि बहु को जरूर ले आए
कुछ ही महीनों में फेमस हो गई और याद है जब मैने 12वीं की परीक्षा पास की थी और मेरे घर में एक पूजन का आयोजन रखा गया था । मम्मी ने भी जिद कर दी थी कि नीतू भाभी आएंगी और बिना उनके गीत गाने के कार्यक्रम शुरू नहीं होगा
विमला काकी ने मुझसे कहा कि जाऊ और उनकी पतोह को बुला लाऊ घर से ।
निकल पड़ा था मै तेजी से उनके घर की ओर , जिस रोज से उन्हें देखा था नजरे फेरने जी नहीं चाहता था , वो गोरा पेट और पल्लू के नीचे झांकती चर्बीदार नाभि , ब्लाउज में तने हुए नुकीले दूध और मीठी सी मुस्कान


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कभी कभी मै राह देखता था और उन्हें देखने के लिए बाजार जाने के उनके मुहल्ले से रास्ता बदल कर जाता था ।
झलक मिलती भी तो नजरे उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी , बदलते वक्त ने उनकी कूल्हे की चौड़ाई और गोद में साल भर की बच्ची आने से रसीले मम्में तो अब फूल कर खरबूजे हो गए थे । वजन भी बढ़ गया था थोड़ा डिलेवरी के बाद से जिससे चेहरे का निखार और भी दूधिया हो गया था । कितनी दफा उनके चर्बीदार चूतड़ों की मादक थिरकन देख कर मैने आह भरी थी लेकिन कभी हिम्मत करके सामने से बात नहीं कर पाया , वो भी कम चतुर औरत नहीं थी कितनी बार मुझे अपने चौखट से गुजरते देखा और मुझसे आंखे मिली थी । मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थी वो भी ।
लेकिन उस रोज मुखातिब होने का मौका भी था और दस्तूर भी
बरामदा खाली था , मुहल्ले में भी शांति थी क्योंकि ज्यादातर औरतें मेरे घर ही जमा हुई थी । बरामदे के साइड में गलियारे से मै अंदर चला गया
अजीब सी महक थोड़ी थोड़ी तेल वाली , जैसे अभी अभी बच्चे की मालिश की गई हो
मैने एक बार आवाज लगाई भाभी कह कर और आंगन में दाखिल हो गया , सामने फर्श पर देखा तो आंखे जम गई । नीतू भाभी अपने ब्लाउज खोलकर अपनी गोद में ली हुई बच्ची को दूध पिला रही थी ।


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एकदम से चौक कर वो हड़बड़ाई और मैने भी नजरे फेरी और जल्दी से उन्हें घर आने का बोलकर निकल गया तेजी से अपने घर , रास्ते भर लंड अंगड़ाई लेता रहा उनके रसीले मम्मे को सोच , जब वो आई घर तो भी मैने उनसे कतराता और छिपता रहा लेकिन जब पूजन खत्म होने के बाद आरती लेने की बारी आई तो आमना सामना हो गया , फिर वो जो मुस्कुराई और मै खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया । फिर वो हल्की से अपने होठों से बुदबुदाई
" छीनरूं "
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा कि अभी अभी वो गाली देकर गई थी और फिर कुछ देर बाद मुझे देर कर फूट कर हंसी । मै चुप हो गया अच्छा नहीं लगा उस रोज ये शब्द मुझे , फिर तो कुछ हफ्ते तक मै उनके मुहल्ले में घुसा भी नहीं था ... एक रोज ऐसे ही बाजार में उनसे भेंट हो गई और उनकी सब्जी का झोला भारी था ।

" अरे सुनो रोहन बाबू , घर चल रहे हो क्या "
" जी कहिए " , नजरे मिला कर फिर नजरे चुराने लगा । कारण वो साफ जानती थी लेकिन उनकी मुस्कुराहट रुकने वाली नहीं थी
" थोड़ा हेल्प करेंगे .... अम्मा गांव गई है और मुझे अकेले आना पड़ा आज "

मैने भी झोला उठा दिया और साथ में चल दिया , बाजार से निकल कर जब हम दोनो उनके गलियारे में आए तो भरे सन्नाटे में उन्होंने सवाल कर ही लिया
" ये रास्ता भूल गए क्या अब , दिखते नहीं "
मन में गुलगुले फूटे कि चलो कम से कम आंखों के गड़ा हो हूं याद तो हूं , लेखी अगले पल वो गाली " छीनरू" याद आई और मन फीका सा हो गया ।
" अच्छा ठीक है उस रोज के लिए सॉरी "
मन पिघल गया मेरा चलो कम से कम गलती तो याद है
" अरे दादा अब क्या पैर पकड़ लूं "
" हीही नहीं भाभी वो.. "
" हंसते भी हो ! , मुझे लगा सिर्फ आंखों से ही बात करना आता है तुम्हे , आओ चलो अंदर "
" अंदर ? " , हलक सूखने लगा और वो यादें ताजा होने लगी जब फर्श पर उस रोज उन्हें अपनी बच्ची को दूध पिलाते देखा था
" हा और क्या ? नहीं तो सेठानी कहेंगी मेरे बेटे को दूह ली और एक कप चाय भी नहीं पूछा मैने , आओ अंदर "
मै मुस्कुरा कर चल दिया , आंगन में आते ही सामने नजर फर्श पर गई और उन्होंने भी मुझे उसे घूरते देखा फिर मुस्कुराई

मै शर्मा गया और उसी एक सोफे पर जगह बैठ गया
वो पानी लाई और फिर चाय रखने लगी , आंगन में अरगन पर लहराती उनकी साड़ी ब्लाउज देख कर मेरी चंचल निगाहों के पूरे घर का मुआयना कर उनकी ब्रा पैंटी खोजने लगी , तभी नजरे बाथरूम पर गई , बारिश का मौसम था पेशाब भी लगी थी
वो चाय बनाने में लगी थी और मै लपक कर बिना बोले बाथरूम में घुस गया
लंबी मोटी धार के साथ एक लंबी गहरी आह आंखे खोला तो सामने वाल हैंगर पर मैचिंग ब्रा पैंटी, रोक नहीं पाया ब्रा का लेबल पढ़ने से 36DD उफ्फ कितनी फूली हुई चुची है इनकी पैंटी भी 38 नंबर की थी ।

बाहर से आवाज आई और मैने झटके में उनकी मुलायम पैंटी को छोड़ कर लंड झाड़ कर फ्लश दबा कर बाहर आया
सामने वो चाय की ट्रे लेकर खड़ी ... और नजरे उसकी सीधे मेरे पैंट पर गई रॉड जैसा टाइट लंड पैंट में उभर आया


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" इतना अंधेरा था तो बत्ती जला लेते , इतनी बड़ी टॉर्च लेकर जाने की क्या जरूरत थी "

उनका निशाना अचूक , समझ गया कि तेज औरत है बस पर्दे का लिहाज है और मुस्कुरा कर सोफे पर बैठ गया

चाय ट्रे से उठाई और एक सीप लिया ही था कि उसने टोका
: हाय दैय्या, गलती हो गई
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा
: अरे वो वाली मेरी जूठी थी
मेरी हिक्की बंध गई और चाय तो अबतक गले से उतर नीचे और उसने एक शरारत भरी मुस्कुराहट पास की , मैने भी मुस्कुरा कर चाय की सीप लेने लगा । चाय खत्म कर मै उठा और जाने लगा

" अच्छा सुनो " , रोका उन्होने.
" हा कहिए "
वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर चुप होकर आंखे मलका कर मुझे देखा , मैने भी उनकी बातों की राह देखी और फिर उन्होंने पूछ ही लिया : उस दिन जो देखा किसी को कहा तो नहीं

मेरी सांसे अटक गई कि ये सवाल क्यों ?
" नहीं तो ? "
" नहीं तुम लड़कों का क्या भरोसा , शेखी बघार लो अपने दोस्तों में"
" बक्क मै ये सब नहीं करता और उस रोज भी मै बस गलती से .... "
" अच्छा ठीक है ... कौन सा मेरे छोटे हो गए जो तुमने देख लिए हीही .... लेकिन आना जाना तो मत छोड़ो "
" क्यों ? मेरा क्या काम "
" काम रहेगा तभी आओगे क्या " वो मेरी आंखों में देखी और मेरी ओर बढ़ी , मेरी धड़कने तेज होने लगी और उनकी आंखों में गजब का जादू था बस अपनी ओर खींच रही थी , एक महक जो उनके जिस्म से आ रही थी मैने मेरे होठ भी फड़कने लगे और वो झुकने लगी मेरी ओर , मेरी सांसे गर्माने लगी
फिर एक किस उन्होंने मेरे होठों पर किया और पूरे बदन में बिजली दौड़ गई , पूरा बदन कांप उठा मेरा
बाहर बारिश शुरू हो गई थी और आंगन में भी छींटे पड़ने लगे थे क्योंकि छत की जाली से पानी की बौछार आ रही थी
पानी के छींटे से उनकी ब्लाउज भीगने लगी और दूधिया मोटे मोटे चूचे गिले होने लगे , मेरी नजर उनपर गई और उन्होंने मेरी चोरी पकड़ी
मुस्कुरा पर हौले से पल्लू को खींच कर एक दूध को दिखाया , बिना ब्रा के ब्लाउज में पूरा भरा हुआ मोटा खरबूजे जैसा , जैसे कितना रस भरा हो उनमें । मन ललचा रहा था
: लेना है ?
मैने थूक हलक से गटक कर उन्हें देखा
: वैसे आज इसी का चाय बनाई थी
उफ्फ मेरी लंड की कसावट बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने पेंट में एकदम बियर की कैन रखी हो ऐसी स्थिति थी मेरी
एक नजर उन्होंने लपक कर गलियारे में देखा और नीचे से ब्लाउज खींच कर एक चुची पूरी बाहर , निप्पल पूरे तने हुए जैसे पानी में फूल हुए मुनक्के जैसे भूरे और उनकी सतहों पर दूध की बूंदे ऊभर आई थी


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अच्छे से वो नजारा देख पाता कि उन्होंने मेरा सर अपनी चुची पर दबा दिया और मम्मी के बाद मेरे होश में शायद ये दूसरी चूची थी जिसके दूध स्वाद मैं ले रहा है , होठों से निचोड़ निचोड़ कर उनके निप्पल को सुरकने लगा और वो सिसकने लगी
: अह्ह्ह्ह सीई आराम से बहिनचोद ओह्ह्ह उम्ममम सीईईई पी लो उम्ममम अह्ह्ह्ह


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फिर से गाली लेकिन इस बार उन्होंने मेरा मुंह बंद कर रखा था , ना जवाब दे पा रहा था न गुस्सा जाहिर कर पा रहा था , मैने भी बदला लेते हुए कचकचा कर निप्पल को मुझे लेकर पूरी ताकत से निचोड़ और वो एड़ियों के बल होने लगी और शरीर ढीला करने लगा

बात आगे बढ़ती कि बाहर बरामदे में हरकत हुई , विमला काकी आई हुई थी भीगते हुए और भाभी को आवाज दे रही थी
झटपट हम अलग हुए और मैने अपना मुंह पोछा और उनके साथ बाहर आ गया , भाभी ने बात संभाल ली क्योंकि काकी की नजर में तब भी बच्चा था । मै निकल गया उस रोज और फिर हर रोज लगभग मै चक्कर काटने लगा , लेकिन बात नहीं बन पाई । वो भी एक तय समय पर दरवाजे पर खड़ी मेरी राह देखती , आंखों से इशारे होते लेकिन वो मना कर देती ।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी और मैं कुछ जुगाड़ कर उनका मोबाइल नंबर पता किया और मौका देख कर एक रोज मम्मी के छोटे वाले फोन से काल घुमाया
बात हुई और फिर कई रोज तक हमने सही मौके की तलाश की , मम्मी के फोन पर रात में छिप कर मै उनसे गर्म बातें करता , उनके चूतड़ों और दूध के बारे में और महीने भर बाद उनका प्लान बना, रात में आने के लिए उन्होंने सारी योजना बनाई, किसी तरह से मैने कंडोम का जुगाड़ भी कर लिया और ठीक रात 08 बजे से पहले ही मूसलाधार बारिश होने लगी और उन रोज पापा भी घर आए थे तो बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था । बना बनाया प्लान बिगड़ गया और रात में उन्होंने मुझे बहुत कोसा ... मा बहन की गाली दी । शायद मैने उनके अरमानों पर कुछ ज्यादा ही बारिश करवा दी थी । अगले ही हफ्ते मुझे मेरे इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए निकलना पड़ा , फिर दुबारा से कभी उनसे बात नहीं हुई । आमना सामना हुआ भी कभी तो उनका पिनका हुआ मुंह और बुदबुदाहट वाली गाली ही मिलती ।
वो दिन था और आज का दिन मै उनसे बचता फिरता रहा हूं


तभी बाथरूम के दरवाजे पर आहट हुई , तेजी से किसी ने बाथरूम का अल्युमिनियम वाला हलका दरवाजा थपथपाया और बाहर से बत्ती भी बंद हो गई
" अरे रोहन बाबू बत्ती चली गई बाहर आ जाओ " , कोई औरत खिलखिला कर बोली , आवाज जानी पहचानी थी लेकिन चेहरा ध्यान में नहीं आ रहा था ।
" अरे रोहन बाबू के पास अपनी लंबी वाली टॉर्च है हीहीही ", ये वही थी ....नीतू भाभी

कबतक राह निहारा जाय

कबतक संघर्ष को टाला जाय
अब रण से भाग मत प्यारे
फेंक जहां तक भाला जाय


एक लंबी गहरी सांस और मैने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया ......


जारी रहेगी
( जानता हूं छोटी , लेकिन समय के अभाव में जितना किया जा सकता था किया गया ... प्रेम और स्नेह में कोई कसर नहीं छूटेगी तो अच्छा लगेगा )
बहुत ही शानदार लाजवाब और जानदार मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
होली के त्योंहार में रोहन के मम्मी और पापा की बुआ के बारें में बातचीत बडी ही मजेदार और मादकता से भरी हैं
वहीं निशा भाभी और रोहन की कहानी बडी ही शानदार और मदमस्त हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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UPDATE 18



बुआ के हटते ही पापा की नजर मम्मी पर गई और उनकी नजर जैसे ही पापा से मिली मम्मी लाज से अपनी नंगी छातियां ढक ली , लेकिन नजारा अभी आर पार था , कसा कसी में मम्मी के निप्पल कड़े और तने हुए थे

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आंखों ही आंखों में दोनों के कुछ इशारे हुए और पापा मम्मी की ओर बढ़े , मम्मी खिलखिलाती हुई दूसरे कमरे की ओर भागी और इधर पापा उनके पीछे , काफी देर तक मम्मी की खिलखिलाहट और सिसकिया आती रही ।
बबली दीदी , मम्मी का हाल देख कर शर्म से हट गई वहां से लेकिन मै जमा रह गया और दबे पाव बुआ जिस कमरे में गई थी उनकी ओर गया
बाहर से अंदर झांका तो आंखे सन्न बुआ की मोटी मोटी चूचियां अबीर से सराबोर सनी हुई ब्लाउज से बाहर थी और बुआ बस चुपचाप मुस्कुरा कर कान बगल वाले कमरे की ओर लगाए खड़ी थी


Fq9dcy-OXg-AEv-Ep1
मैने भी मम्मी की सिसकिया सुनी साफ था पापा मम्मी को अच्छे से मसल रहे थे , लेकिन मम्मी की शरारतें कहा रुकने वाली थी वो भी होली के दिन

" अह्ह्ह्ह सीईईईईई अब क्या अपने दीदी जितना बड़ा करके ही छोड़ोगे क्या हीहीही "
" तू न बहुत बोलती है , आज आई है हाथ जम के मसलूंगा इन्हें अह्ह्ह्ह्ह"
" ओह्ह्ह्ह दीदी के पिछवाड़े में रगड़ रगड़ खड़ा किए हो और बदला मुझसे , ये तो गलत है न रोहन के पापा अह्ह्ह्ह हीही उम्मम अंदर नहीं अह्ह्ह्ह , साड़ी बिगड़ जाएगी ओह्ह्ह सीईईई "

पापा मम्मी की रसदार बातें सुनकर बुआ को हंसी आ रही थी और उनके कड़े हुए रंगीन निप्पल देख कर मेरा लंड अकड़ गया था

" तो अब क्या बदला दीदी से लेने जाऊ उम्मम ओह्ह्ह्ह कुसुम कितने मुलायम है अह्ह्ह्ह "
" हीही धत् गंदे अह्ह्ह्ह छोड़ो न जाकर अपनी दीदी का पिछवाड़ा रंगो , मेरे से ज्यादा बड़े और मुलायम हीहीही "

मम्मी की बात सुनकर बुआ शर्म से आंखे बंद कर हसने लगी और शायद वो भी इस पर मेरी तरह पापा की बात सुनना चाहती थी कि अब पापा क्या कहेंगे
" पहले तू तो लगवा ले मेरी जान जैसे उनकी छाती रंगवाई है तुझसे पकड़ कर , वैसे चूतड़ भी रंगवा दूंगा तुझसे ओह्ह्ह्ह "
" अब बस भी करो अह्ह्ह् उम्ममम सीईईई नहीं रखो न उसको अंदर क्या आप भी इतना जल्दी "
" कर दे न कुसुम "

पापा के रिरिकने की आवाज आई और बुआ की आंखे बड़ी होने लगी , हम दोनो समझ रहे थे कि पापा की डिमांड क्या होने वाली है
" धत्त नहीं, जाओ उससे कहो जिसने इसे खड़ा आह्ह्ह्ह नहीं रोहन के पापा उम्ममम कितना गर्म है ओह्ह्ह्ह उम्ममम "

इधर बुआ के निप्पल और कड़े हो गए और उन्हें सिहरन सी होने लगी और मेरा लंड एकदम टाइट
" अब उनसे कैसे कहूं कि दीदी चूस दो , पागल है क्या सीईईई कर दे न कुसुम बस थोड़ा सा "
" बस थोड़ा न ... हीही , लेकिन एक शर्त है ? "
" क्या ? "
" अपने दीदी के दूध में रंग लगाना पड़ेगा हीही "
" तू पागल है क्या अह्ह्ह्ह कुसुम ओह्ह्ह्ह उम्ममम कितना नर्म होठ है तेरे ओह्ह्ह्ह आराम से ओह्ह्ह्ह "

अब तो मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने बुआ वाले कमरे से लपक कर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा क्योंकि आज ये नजारा नहीं छोड़ने वाला था

कमरे का दरवाजा थोड़ा ही खुला था लेकिन सारे कांड दरवाजे की आड़ में दूसरी तरफ हो रहे थे , पापा की सिसकिया तेज थी और मेरा लंड लोई में एक अकड़ा हुआ था , उनकी उफनाती सांसों की बेचैनी साफ साफ पता चल रही थी

मै और देर रुकता लेकिन शायद बुआ भी अपने आप को बहुत देर तक कमरे में रोक नहीं पाई थी और जैसे ही उनके कमरे से बाहर आने की आहट हुई मै वहा से घूम गया बाथरूम की ओर

सच कहूं तो एकदम से फट ही गई थी

बुआ ने भी मुझे देखा और मै थोड़ा देर बाथरूम में पानी चालू करके राह देख रहा था कि क्या करु , कही बुआ कोई सवाल जवाब न करें

लेकिन शायद आज किस्मत मेहरबान थी और हाल में कुछ चहल पहल होने लगी , कुछ औरतों की खिलखिलाहट और हसने की आवाज आने लगी , जरूर मुहल्ले की औरतें रही होगी

बुआ ने मम्मी को आवाज दी और मम्मी ने वापस आवाज दी
मैने बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर देखा और हल्की गुलाबी साड़ी में एक रंगों से नहाई औरत को देखते ही मेरी हिक्की बंध गई और उसने भी इधर उधर देख कर मुझे ही खोजा था शायद , उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और शरारती तेज आंखों की रडार से बचने का एक ही तरीका था कि खुद को बाथरूम में क्वारन्टिन कर लिया है

एक लंबी गहरी सांस
" उफ्फ बहिन चोद , ये तो नीतू भाभी है , ये यहां क्या कर रही है "

नीतू भाभी


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मै क्या मुहल्ले के लगभग सभी कोरे लौंडो की एक तरह से फटती थी उनसे , वजह वो नहीं बल्कि उनकी सास थी , मेरे घर के पीछे के मुहल्ले में विमला काकी की पतोह थी । पेशे और जात से विमला काकी नाउन थी , शादी ब्याह कथा वार्ता में मुहल्ले का शायद ही कोई घर उन्हें न बुलाए । एकदम फूहड़ औरत , याद है मुझे 10वीं के बोर्ड के समय जब पड़ोस के एक घर में शादी थी और तिलक लेकर लड़की वाले आए थे , विमला काकी ने जो सारे तिलकहरुओ की मां बहन की थी पूछो मत , एक एक निवाले पर सबकी मां बहनों पर 20 20 गदहे और घोड़े चढ़वाई थी वो , उसी समय पहली बार अपनी छत से आंगन में विमला काकी के पतोह नीतू भाभी की झलक देखी थी ।
पतली कमर चर्बीदार कूल्हे , गुदाज पेट और नारियल जैसे कड़क चूचे और घूंघट में झांकती मोती जैसे दांतों वाली मीठी सी मुस्कान , पहली बार अपनी सास का हाथ बटाने आई थी गांव से । सबने बड़ी तारीफ की और जब गाने बैठी तो क्या गीत गाया , विमला काकी का पर्स छोटा पड़ गया लेकिन विदाई भरपूर मिली । फिर तो आस पास के मुहल्ले के लोगों ने भी डिमांड कर दी कि बहु को जरूर ले आए
कुछ ही महीनों में फेमस हो गई और याद है जब मैने 12वीं की परीक्षा पास की थी और मेरे घर में एक पूजन का आयोजन रखा गया था । मम्मी ने भी जिद कर दी थी कि नीतू भाभी आएंगी और बिना उनके गीत गाने के कार्यक्रम शुरू नहीं होगा
विमला काकी ने मुझसे कहा कि जाऊ और उनकी पतोह को बुला लाऊ घर से ।
निकल पड़ा था मै तेजी से उनके घर की ओर , जिस रोज से उन्हें देखा था नजरे फेरने जी नहीं चाहता था , वो गोरा पेट और पल्लू के नीचे झांकती चर्बीदार नाभि , ब्लाउज में तने हुए नुकीले दूध और मीठी सी मुस्कान


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कभी कभी मै राह देखता था और उन्हें देखने के लिए बाजार जाने के उनके मुहल्ले से रास्ता बदल कर जाता था ।
झलक मिलती भी तो नजरे उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी , बदलते वक्त ने उनकी कूल्हे की चौड़ाई और गोद में साल भर की बच्ची आने से रसीले मम्में तो अब फूल कर खरबूजे हो गए थे । वजन भी बढ़ गया था थोड़ा डिलेवरी के बाद से जिससे चेहरे का निखार और भी दूधिया हो गया था । कितनी दफा उनके चर्बीदार चूतड़ों की मादक थिरकन देख कर मैने आह भरी थी लेकिन कभी हिम्मत करके सामने से बात नहीं कर पाया , वो भी कम चतुर औरत नहीं थी कितनी बार मुझे अपने चौखट से गुजरते देखा और मुझसे आंखे मिली थी । मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थी वो भी ।
लेकिन उस रोज मुखातिब होने का मौका भी था और दस्तूर भी
बरामदा खाली था , मुहल्ले में भी शांति थी क्योंकि ज्यादातर औरतें मेरे घर ही जमा हुई थी । बरामदे के साइड में गलियारे से मै अंदर चला गया
अजीब सी महक थोड़ी थोड़ी तेल वाली , जैसे अभी अभी बच्चे की मालिश की गई हो
मैने एक बार आवाज लगाई भाभी कह कर और आंगन में दाखिल हो गया , सामने फर्श पर देखा तो आंखे जम गई । नीतू भाभी अपने ब्लाउज खोलकर अपनी गोद में ली हुई बच्ची को दूध पिला रही थी ।


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एकदम से चौक कर वो हड़बड़ाई और मैने भी नजरे फेरी और जल्दी से उन्हें घर आने का बोलकर निकल गया तेजी से अपने घर , रास्ते भर लंड अंगड़ाई लेता रहा उनके रसीले मम्मे को सोच , जब वो आई घर तो भी मैने उनसे कतराता और छिपता रहा लेकिन जब पूजन खत्म होने के बाद आरती लेने की बारी आई तो आमना सामना हो गया , फिर वो जो मुस्कुराई और मै खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया । फिर वो हल्की से अपने होठों से बुदबुदाई
" छीनरूं "
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा कि अभी अभी वो गाली देकर गई थी और फिर कुछ देर बाद मुझे देर कर फूट कर हंसी । मै चुप हो गया अच्छा नहीं लगा उस रोज ये शब्द मुझे , फिर तो कुछ हफ्ते तक मै उनके मुहल्ले में घुसा भी नहीं था ... एक रोज ऐसे ही बाजार में उनसे भेंट हो गई और उनकी सब्जी का झोला भारी था ।

" अरे सुनो रोहन बाबू , घर चल रहे हो क्या "
" जी कहिए " , नजरे मिला कर फिर नजरे चुराने लगा । कारण वो साफ जानती थी लेकिन उनकी मुस्कुराहट रुकने वाली नहीं थी
" थोड़ा हेल्प करेंगे .... अम्मा गांव गई है और मुझे अकेले आना पड़ा आज "

मैने भी झोला उठा दिया और साथ में चल दिया , बाजार से निकल कर जब हम दोनो उनके गलियारे में आए तो भरे सन्नाटे में उन्होंने सवाल कर ही लिया
" ये रास्ता भूल गए क्या अब , दिखते नहीं "
मन में गुलगुले फूटे कि चलो कम से कम आंखों के गड़ा हो हूं याद तो हूं , लेखी अगले पल वो गाली " छीनरू" याद आई और मन फीका सा हो गया ।
" अच्छा ठीक है उस रोज के लिए सॉरी "
मन पिघल गया मेरा चलो कम से कम गलती तो याद है
" अरे दादा अब क्या पैर पकड़ लूं "
" हीही नहीं भाभी वो.. "
" हंसते भी हो ! , मुझे लगा सिर्फ आंखों से ही बात करना आता है तुम्हे , आओ चलो अंदर "
" अंदर ? " , हलक सूखने लगा और वो यादें ताजा होने लगी जब फर्श पर उस रोज उन्हें अपनी बच्ची को दूध पिलाते देखा था
" हा और क्या ? नहीं तो सेठानी कहेंगी मेरे बेटे को दूह ली और एक कप चाय भी नहीं पूछा मैने , आओ अंदर "
मै मुस्कुरा कर चल दिया , आंगन में आते ही सामने नजर फर्श पर गई और उन्होंने भी मुझे उसे घूरते देखा फिर मुस्कुराई

मै शर्मा गया और उसी एक सोफे पर जगह बैठ गया
वो पानी लाई और फिर चाय रखने लगी , आंगन में अरगन पर लहराती उनकी साड़ी ब्लाउज देख कर मेरी चंचल निगाहों के पूरे घर का मुआयना कर उनकी ब्रा पैंटी खोजने लगी , तभी नजरे बाथरूम पर गई , बारिश का मौसम था पेशाब भी लगी थी
वो चाय बनाने में लगी थी और मै लपक कर बिना बोले बाथरूम में घुस गया
लंबी मोटी धार के साथ एक लंबी गहरी आह आंखे खोला तो सामने वाल हैंगर पर मैचिंग ब्रा पैंटी, रोक नहीं पाया ब्रा का लेबल पढ़ने से 36DD उफ्फ कितनी फूली हुई चुची है इनकी पैंटी भी 38 नंबर की थी ।

बाहर से आवाज आई और मैने झटके में उनकी मुलायम पैंटी को छोड़ कर लंड झाड़ कर फ्लश दबा कर बाहर आया
सामने वो चाय की ट्रे लेकर खड़ी ... और नजरे उसकी सीधे मेरे पैंट पर गई रॉड जैसा टाइट लंड पैंट में उभर आया


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" इतना अंधेरा था तो बत्ती जला लेते , इतनी बड़ी टॉर्च लेकर जाने की क्या जरूरत थी "

उनका निशाना अचूक , समझ गया कि तेज औरत है बस पर्दे का लिहाज है और मुस्कुरा कर सोफे पर बैठ गया

चाय ट्रे से उठाई और एक सीप लिया ही था कि उसने टोका
: हाय दैय्या, गलती हो गई
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा
: अरे वो वाली मेरी जूठी थी
मेरी हिक्की बंध गई और चाय तो अबतक गले से उतर नीचे और उसने एक शरारत भरी मुस्कुराहट पास की , मैने भी मुस्कुरा कर चाय की सीप लेने लगा । चाय खत्म कर मै उठा और जाने लगा

" अच्छा सुनो " , रोका उन्होने.
" हा कहिए "
वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर चुप होकर आंखे मलका कर मुझे देखा , मैने भी उनकी बातों की राह देखी और फिर उन्होंने पूछ ही लिया : उस दिन जो देखा किसी को कहा तो नहीं

मेरी सांसे अटक गई कि ये सवाल क्यों ?
" नहीं तो ? "
" नहीं तुम लड़कों का क्या भरोसा , शेखी बघार लो अपने दोस्तों में"
" बक्क मै ये सब नहीं करता और उस रोज भी मै बस गलती से .... "
" अच्छा ठीक है ... कौन सा मेरे छोटे हो गए जो तुमने देख लिए हीही .... लेकिन आना जाना तो मत छोड़ो "
" क्यों ? मेरा क्या काम "
" काम रहेगा तभी आओगे क्या " वो मेरी आंखों में देखी और मेरी ओर बढ़ी , मेरी धड़कने तेज होने लगी और उनकी आंखों में गजब का जादू था बस अपनी ओर खींच रही थी , एक महक जो उनके जिस्म से आ रही थी मैने मेरे होठ भी फड़कने लगे और वो झुकने लगी मेरी ओर , मेरी सांसे गर्माने लगी
फिर एक किस उन्होंने मेरे होठों पर किया और पूरे बदन में बिजली दौड़ गई , पूरा बदन कांप उठा मेरा
बाहर बारिश शुरू हो गई थी और आंगन में भी छींटे पड़ने लगे थे क्योंकि छत की जाली से पानी की बौछार आ रही थी
पानी के छींटे से उनकी ब्लाउज भीगने लगी और दूधिया मोटे मोटे चूचे गिले होने लगे , मेरी नजर उनपर गई और उन्होंने मेरी चोरी पकड़ी
मुस्कुरा पर हौले से पल्लू को खींच कर एक दूध को दिखाया , बिना ब्रा के ब्लाउज में पूरा भरा हुआ मोटा खरबूजे जैसा , जैसे कितना रस भरा हो उनमें । मन ललचा रहा था
: लेना है ?
मैने थूक हलक से गटक कर उन्हें देखा
: वैसे आज इसी का चाय बनाई थी
उफ्फ मेरी लंड की कसावट बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने पेंट में एकदम बियर की कैन रखी हो ऐसी स्थिति थी मेरी
एक नजर उन्होंने लपक कर गलियारे में देखा और नीचे से ब्लाउज खींच कर एक चुची पूरी बाहर , निप्पल पूरे तने हुए जैसे पानी में फूल हुए मुनक्के जैसे भूरे और उनकी सतहों पर दूध की बूंदे ऊभर आई थी


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अच्छे से वो नजारा देख पाता कि उन्होंने मेरा सर अपनी चुची पर दबा दिया और मम्मी के बाद मेरे होश में शायद ये दूसरी चूची थी जिसके दूध स्वाद मैं ले रहा है , होठों से निचोड़ निचोड़ कर उनके निप्पल को सुरकने लगा और वो सिसकने लगी
: अह्ह्ह्ह सीई आराम से बहिनचोद ओह्ह्ह उम्ममम सीईईई पी लो उम्ममम अह्ह्ह्ह


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फिर से गाली लेकिन इस बार उन्होंने मेरा मुंह बंद कर रखा था , ना जवाब दे पा रहा था न गुस्सा जाहिर कर पा रहा था , मैने भी बदला लेते हुए कचकचा कर निप्पल को मुझे लेकर पूरी ताकत से निचोड़ और वो एड़ियों के बल होने लगी और शरीर ढीला करने लगा

बात आगे बढ़ती कि बाहर बरामदे में हरकत हुई , विमला काकी आई हुई थी भीगते हुए और भाभी को आवाज दे रही थी
झटपट हम अलग हुए और मैने अपना मुंह पोछा और उनके साथ बाहर आ गया , भाभी ने बात संभाल ली क्योंकि काकी की नजर में तब भी बच्चा था । मै निकल गया उस रोज और फिर हर रोज लगभग मै चक्कर काटने लगा , लेकिन बात नहीं बन पाई । वो भी एक तय समय पर दरवाजे पर खड़ी मेरी राह देखती , आंखों से इशारे होते लेकिन वो मना कर देती ।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी और मैं कुछ जुगाड़ कर उनका मोबाइल नंबर पता किया और मौका देख कर एक रोज मम्मी के छोटे वाले फोन से काल घुमाया
बात हुई और फिर कई रोज तक हमने सही मौके की तलाश की , मम्मी के फोन पर रात में छिप कर मै उनसे गर्म बातें करता , उनके चूतड़ों और दूध के बारे में और महीने भर बाद उनका प्लान बना, रात में आने के लिए उन्होंने सारी योजना बनाई, किसी तरह से मैने कंडोम का जुगाड़ भी कर लिया और ठीक रात 08 बजे से पहले ही मूसलाधार बारिश होने लगी और उन रोज पापा भी घर आए थे तो बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था । बना बनाया प्लान बिगड़ गया और रात में उन्होंने मुझे बहुत कोसा ... मा बहन की गाली दी । शायद मैने उनके अरमानों पर कुछ ज्यादा ही बारिश करवा दी थी । अगले ही हफ्ते मुझे मेरे इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए निकलना पड़ा , फिर दुबारा से कभी उनसे बात नहीं हुई । आमना सामना हुआ भी कभी तो उनका पिनका हुआ मुंह और बुदबुदाहट वाली गाली ही मिलती ।
वो दिन था और आज का दिन मै उनसे बचता फिरता रहा हूं


तभी बाथरूम के दरवाजे पर आहट हुई , तेजी से किसी ने बाथरूम का अल्युमिनियम वाला हलका दरवाजा थपथपाया और बाहर से बत्ती भी बंद हो गई
" अरे रोहन बाबू बत्ती चली गई बाहर आ जाओ " , कोई औरत खिलखिला कर बोली , आवाज जानी पहचानी थी लेकिन चेहरा ध्यान में नहीं आ रहा था ।
" अरे रोहन बाबू के पास अपनी लंबी वाली टॉर्च है हीहीही ", ये वही थी ....नीतू भाभी

कबतक राह निहारा जाय

कबतक संघर्ष को टाला जाय
अब रण से भाग मत प्यारे
फेंक जहां तक भाला जाय


एक लंबी गहरी सांस और मैने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया ......


जारी रहेगी
( जानता हूं छोटी , लेकिन समय के अभाव में जितना किया जा सकता था किया गया ... प्रेम और स्नेह में कोई कसर नहीं छूटेगी तो अच्छा लगेगा )
Bhut shandaar update....


Lag rha hai babli se pahle bhabhi hi na nichod le... Iss ladle ko....


Gajab update
 

Unknownmunda436

New Member
30
68
18
UPDATE 18



बुआ के हटते ही पापा की नजर मम्मी पर गई और उनकी नजर जैसे ही पापा से मिली मम्मी लाज से अपनी नंगी छातियां ढक ली , लेकिन नजारा अभी आर पार था , कसा कसी में मम्मी के निप्पल कड़े और तने हुए थे

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आंखों ही आंखों में दोनों के कुछ इशारे हुए और पापा मम्मी की ओर बढ़े , मम्मी खिलखिलाती हुई दूसरे कमरे की ओर भागी और इधर पापा उनके पीछे , काफी देर तक मम्मी की खिलखिलाहट और सिसकिया आती रही ।
बबली दीदी , मम्मी का हाल देख कर शर्म से हट गई वहां से लेकिन मै जमा रह गया और दबे पाव बुआ जिस कमरे में गई थी उनकी ओर गया
बाहर से अंदर झांका तो आंखे सन्न बुआ की मोटी मोटी चूचियां अबीर से सराबोर सनी हुई ब्लाउज से बाहर थी और बुआ बस चुपचाप मुस्कुरा कर कान बगल वाले कमरे की ओर लगाए खड़ी थी


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मैने भी मम्मी की सिसकिया सुनी साफ था पापा मम्मी को अच्छे से मसल रहे थे , लेकिन मम्मी की शरारतें कहा रुकने वाली थी वो भी होली के दिन

" अह्ह्ह्ह सीईईईईई अब क्या अपने दीदी जितना बड़ा करके ही छोड़ोगे क्या हीहीही "
" तू न बहुत बोलती है , आज आई है हाथ जम के मसलूंगा इन्हें अह्ह्ह्ह्ह"
" ओह्ह्ह्ह दीदी के पिछवाड़े में रगड़ रगड़ खड़ा किए हो और बदला मुझसे , ये तो गलत है न रोहन के पापा अह्ह्ह्ह हीही उम्मम अंदर नहीं अह्ह्ह्ह , साड़ी बिगड़ जाएगी ओह्ह्ह सीईईई "

पापा मम्मी की रसदार बातें सुनकर बुआ को हंसी आ रही थी और उनके कड़े हुए रंगीन निप्पल देख कर मेरा लंड अकड़ गया था

" तो अब क्या बदला दीदी से लेने जाऊ उम्मम ओह्ह्ह्ह कुसुम कितने मुलायम है अह्ह्ह्ह "
" हीही धत् गंदे अह्ह्ह्ह छोड़ो न जाकर अपनी दीदी का पिछवाड़ा रंगो , मेरे से ज्यादा बड़े और मुलायम हीहीही "

मम्मी की बात सुनकर बुआ शर्म से आंखे बंद कर हसने लगी और शायद वो भी इस पर मेरी तरह पापा की बात सुनना चाहती थी कि अब पापा क्या कहेंगे
" पहले तू तो लगवा ले मेरी जान जैसे उनकी छाती रंगवाई है तुझसे पकड़ कर , वैसे चूतड़ भी रंगवा दूंगा तुझसे ओह्ह्ह्ह "
" अब बस भी करो अह्ह्ह् उम्ममम सीईईई नहीं रखो न उसको अंदर क्या आप भी इतना जल्दी "
" कर दे न कुसुम "

पापा के रिरिकने की आवाज आई और बुआ की आंखे बड़ी होने लगी , हम दोनो समझ रहे थे कि पापा की डिमांड क्या होने वाली है
" धत्त नहीं, जाओ उससे कहो जिसने इसे खड़ा आह्ह्ह्ह नहीं रोहन के पापा उम्ममम कितना गर्म है ओह्ह्ह्ह उम्ममम "

इधर बुआ के निप्पल और कड़े हो गए और उन्हें सिहरन सी होने लगी और मेरा लंड एकदम टाइट
" अब उनसे कैसे कहूं कि दीदी चूस दो , पागल है क्या सीईईई कर दे न कुसुम बस थोड़ा सा "
" बस थोड़ा न ... हीही , लेकिन एक शर्त है ? "
" क्या ? "
" अपने दीदी के दूध में रंग लगाना पड़ेगा हीही "
" तू पागल है क्या अह्ह्ह्ह कुसुम ओह्ह्ह्ह उम्ममम कितना नर्म होठ है तेरे ओह्ह्ह्ह आराम से ओह्ह्ह्ह "

अब तो मुझसे रहा नहीं जा रहा था और मैने बुआ वाले कमरे से लपक कर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा क्योंकि आज ये नजारा नहीं छोड़ने वाला था

कमरे का दरवाजा थोड़ा ही खुला था लेकिन सारे कांड दरवाजे की आड़ में दूसरी तरफ हो रहे थे , पापा की सिसकिया तेज थी और मेरा लंड लोई में एक अकड़ा हुआ था , उनकी उफनाती सांसों की बेचैनी साफ साफ पता चल रही थी

मै और देर रुकता लेकिन शायद बुआ भी अपने आप को बहुत देर तक कमरे में रोक नहीं पाई थी और जैसे ही उनके कमरे से बाहर आने की आहट हुई मै वहा से घूम गया बाथरूम की ओर

सच कहूं तो एकदम से फट ही गई थी

बुआ ने भी मुझे देखा और मै थोड़ा देर बाथरूम में पानी चालू करके राह देख रहा था कि क्या करु , कही बुआ कोई सवाल जवाब न करें

लेकिन शायद आज किस्मत मेहरबान थी और हाल में कुछ चहल पहल होने लगी , कुछ औरतों की खिलखिलाहट और हसने की आवाज आने लगी , जरूर मुहल्ले की औरतें रही होगी

बुआ ने मम्मी को आवाज दी और मम्मी ने वापस आवाज दी
मैने बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाहर देखा और हल्की गुलाबी साड़ी में एक रंगों से नहाई औरत को देखते ही मेरी हिक्की बंध गई और उसने भी इधर उधर देख कर मुझे ही खोजा था शायद , उसके मुस्कुराते हुए चेहरे और शरारती तेज आंखों की रडार से बचने का एक ही तरीका था कि खुद को बाथरूम में क्वारन्टिन कर लिया है

एक लंबी गहरी सांस
" उफ्फ बहिन चोद , ये तो नीतू भाभी है , ये यहां क्या कर रही है "

नीतू भाभी


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मै क्या मुहल्ले के लगभग सभी कोरे लौंडो की एक तरह से फटती थी उनसे , वजह वो नहीं बल्कि उनकी सास थी , मेरे घर के पीछे के मुहल्ले में विमला काकी की पतोह थी । पेशे और जात से विमला काकी नाउन थी , शादी ब्याह कथा वार्ता में मुहल्ले का शायद ही कोई घर उन्हें न बुलाए । एकदम फूहड़ औरत , याद है मुझे 10वीं के बोर्ड के समय जब पड़ोस के एक घर में शादी थी और तिलक लेकर लड़की वाले आए थे , विमला काकी ने जो सारे तिलकहरुओ की मां बहन की थी पूछो मत , एक एक निवाले पर सबकी मां बहनों पर 20 20 गदहे और घोड़े चढ़वाई थी वो , उसी समय पहली बार अपनी छत से आंगन में विमला काकी के पतोह नीतू भाभी की झलक देखी थी ।
पतली कमर चर्बीदार कूल्हे , गुदाज पेट और नारियल जैसे कड़क चूचे और घूंघट में झांकती मोती जैसे दांतों वाली मीठी सी मुस्कान , पहली बार अपनी सास का हाथ बटाने आई थी गांव से । सबने बड़ी तारीफ की और जब गाने बैठी तो क्या गीत गाया , विमला काकी का पर्स छोटा पड़ गया लेकिन विदाई भरपूर मिली । फिर तो आस पास के मुहल्ले के लोगों ने भी डिमांड कर दी कि बहु को जरूर ले आए
कुछ ही महीनों में फेमस हो गई और याद है जब मैने 12वीं की परीक्षा पास की थी और मेरे घर में एक पूजन का आयोजन रखा गया था । मम्मी ने भी जिद कर दी थी कि नीतू भाभी आएंगी और बिना उनके गीत गाने के कार्यक्रम शुरू नहीं होगा
विमला काकी ने मुझसे कहा कि जाऊ और उनकी पतोह को बुला लाऊ घर से ।
निकल पड़ा था मै तेजी से उनके घर की ओर , जिस रोज से उन्हें देखा था नजरे फेरने जी नहीं चाहता था , वो गोरा पेट और पल्लू के नीचे झांकती चर्बीदार नाभि , ब्लाउज में तने हुए नुकीले दूध और मीठी सी मुस्कान


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कभी कभी मै राह देखता था और उन्हें देखने के लिए बाजार जाने के उनके मुहल्ले से रास्ता बदल कर जाता था ।
झलक मिलती भी तो नजरे उठा कर देखने की हिम्मत नहीं हो पाती थी , बदलते वक्त ने उनकी कूल्हे की चौड़ाई और गोद में साल भर की बच्ची आने से रसीले मम्में तो अब फूल कर खरबूजे हो गए थे । वजन भी बढ़ गया था थोड़ा डिलेवरी के बाद से जिससे चेहरे का निखार और भी दूधिया हो गया था । कितनी दफा उनके चर्बीदार चूतड़ों की मादक थिरकन देख कर मैने आह भरी थी लेकिन कभी हिम्मत करके सामने से बात नहीं कर पाया , वो भी कम चतुर औरत नहीं थी कितनी बार मुझे अपने चौखट से गुजरते देखा और मुझसे आंखे मिली थी । मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थी वो भी ।
लेकिन उस रोज मुखातिब होने का मौका भी था और दस्तूर भी
बरामदा खाली था , मुहल्ले में भी शांति थी क्योंकि ज्यादातर औरतें मेरे घर ही जमा हुई थी । बरामदे के साइड में गलियारे से मै अंदर चला गया
अजीब सी महक थोड़ी थोड़ी तेल वाली , जैसे अभी अभी बच्चे की मालिश की गई हो
मैने एक बार आवाज लगाई भाभी कह कर और आंगन में दाखिल हो गया , सामने फर्श पर देखा तो आंखे जम गई । नीतू भाभी अपने ब्लाउज खोलकर अपनी गोद में ली हुई बच्ची को दूध पिला रही थी ।


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एकदम से चौक कर वो हड़बड़ाई और मैने भी नजरे फेरी और जल्दी से उन्हें घर आने का बोलकर निकल गया तेजी से अपने घर , रास्ते भर लंड अंगड़ाई लेता रहा उनके रसीले मम्मे को सोच , जब वो आई घर तो भी मैने उनसे कतराता और छिपता रहा लेकिन जब पूजन खत्म होने के बाद आरती लेने की बारी आई तो आमना सामना हो गया , फिर वो जो मुस्कुराई और मै खुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाया । फिर वो हल्की से अपने होठों से बुदबुदाई
" छीनरूं "
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा कि अभी अभी वो गाली देकर गई थी और फिर कुछ देर बाद मुझे देर कर फूट कर हंसी । मै चुप हो गया अच्छा नहीं लगा उस रोज ये शब्द मुझे , फिर तो कुछ हफ्ते तक मै उनके मुहल्ले में घुसा भी नहीं था ... एक रोज ऐसे ही बाजार में उनसे भेंट हो गई और उनकी सब्जी का झोला भारी था ।

" अरे सुनो रोहन बाबू , घर चल रहे हो क्या "
" जी कहिए " , नजरे मिला कर फिर नजरे चुराने लगा । कारण वो साफ जानती थी लेकिन उनकी मुस्कुराहट रुकने वाली नहीं थी
" थोड़ा हेल्प करेंगे .... अम्मा गांव गई है और मुझे अकेले आना पड़ा आज "

मैने भी झोला उठा दिया और साथ में चल दिया , बाजार से निकल कर जब हम दोनो उनके गलियारे में आए तो भरे सन्नाटे में उन्होंने सवाल कर ही लिया
" ये रास्ता भूल गए क्या अब , दिखते नहीं "
मन में गुलगुले फूटे कि चलो कम से कम आंखों के गड़ा हो हूं याद तो हूं , लेखी अगले पल वो गाली " छीनरू" याद आई और मन फीका सा हो गया ।
" अच्छा ठीक है उस रोज के लिए सॉरी "
मन पिघल गया मेरा चलो कम से कम गलती तो याद है
" अरे दादा अब क्या पैर पकड़ लूं "
" हीही नहीं भाभी वो.. "
" हंसते भी हो ! , मुझे लगा सिर्फ आंखों से ही बात करना आता है तुम्हे , आओ चलो अंदर "
" अंदर ? " , हलक सूखने लगा और वो यादें ताजा होने लगी जब फर्श पर उस रोज उन्हें अपनी बच्ची को दूध पिलाते देखा था
" हा और क्या ? नहीं तो सेठानी कहेंगी मेरे बेटे को दूह ली और एक कप चाय भी नहीं पूछा मैने , आओ अंदर "
मै मुस्कुरा कर चल दिया , आंगन में आते ही सामने नजर फर्श पर गई और उन्होंने भी मुझे उसे घूरते देखा फिर मुस्कुराई

मै शर्मा गया और उसी एक सोफे पर जगह बैठ गया
वो पानी लाई और फिर चाय रखने लगी , आंगन में अरगन पर लहराती उनकी साड़ी ब्लाउज देख कर मेरी चंचल निगाहों के पूरे घर का मुआयना कर उनकी ब्रा पैंटी खोजने लगी , तभी नजरे बाथरूम पर गई , बारिश का मौसम था पेशाब भी लगी थी
वो चाय बनाने में लगी थी और मै लपक कर बिना बोले बाथरूम में घुस गया
लंबी मोटी धार के साथ एक लंबी गहरी आह आंखे खोला तो सामने वाल हैंगर पर मैचिंग ब्रा पैंटी, रोक नहीं पाया ब्रा का लेबल पढ़ने से 36DD उफ्फ कितनी फूली हुई चुची है इनकी पैंटी भी 38 नंबर की थी ।

बाहर से आवाज आई और मैने झटके में उनकी मुलायम पैंटी को छोड़ कर लंड झाड़ कर फ्लश दबा कर बाहर आया
सामने वो चाय की ट्रे लेकर खड़ी ... और नजरे उसकी सीधे मेरे पैंट पर गई रॉड जैसा टाइट लंड पैंट में उभर आया


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" इतना अंधेरा था तो बत्ती जला लेते , इतनी बड़ी टॉर्च लेकर जाने की क्या जरूरत थी "

उनका निशाना अचूक , समझ गया कि तेज औरत है बस पर्दे का लिहाज है और मुस्कुरा कर सोफे पर बैठ गया

चाय ट्रे से उठाई और एक सीप लिया ही था कि उसने टोका
: हाय दैय्या, गलती हो गई
मैने आंखे उठा कर उन्हें देखा
: अरे वो वाली मेरी जूठी थी
मेरी हिक्की बंध गई और चाय तो अबतक गले से उतर नीचे और उसने एक शरारत भरी मुस्कुराहट पास की , मैने भी मुस्कुरा कर चाय की सीप लेने लगा । चाय खत्म कर मै उठा और जाने लगा

" अच्छा सुनो " , रोका उन्होने.
" हा कहिए "
वो थोड़ा मुस्कुराई और फिर चुप होकर आंखे मलका कर मुझे देखा , मैने भी उनकी बातों की राह देखी और फिर उन्होंने पूछ ही लिया : उस दिन जो देखा किसी को कहा तो नहीं

मेरी सांसे अटक गई कि ये सवाल क्यों ?
" नहीं तो ? "
" नहीं तुम लड़कों का क्या भरोसा , शेखी बघार लो अपने दोस्तों में"
" बक्क मै ये सब नहीं करता और उस रोज भी मै बस गलती से .... "
" अच्छा ठीक है ... कौन सा मेरे छोटे हो गए जो तुमने देख लिए हीही .... लेकिन आना जाना तो मत छोड़ो "
" क्यों ? मेरा क्या काम "
" काम रहेगा तभी आओगे क्या " वो मेरी आंखों में देखी और मेरी ओर बढ़ी , मेरी धड़कने तेज होने लगी और उनकी आंखों में गजब का जादू था बस अपनी ओर खींच रही थी , एक महक जो उनके जिस्म से आ रही थी मैने मेरे होठ भी फड़कने लगे और वो झुकने लगी मेरी ओर , मेरी सांसे गर्माने लगी
फिर एक किस उन्होंने मेरे होठों पर किया और पूरे बदन में बिजली दौड़ गई , पूरा बदन कांप उठा मेरा
बाहर बारिश शुरू हो गई थी और आंगन में भी छींटे पड़ने लगे थे क्योंकि छत की जाली से पानी की बौछार आ रही थी
पानी के छींटे से उनकी ब्लाउज भीगने लगी और दूधिया मोटे मोटे चूचे गिले होने लगे , मेरी नजर उनपर गई और उन्होंने मेरी चोरी पकड़ी
मुस्कुरा पर हौले से पल्लू को खींच कर एक दूध को दिखाया , बिना ब्रा के ब्लाउज में पूरा भरा हुआ मोटा खरबूजे जैसा , जैसे कितना रस भरा हो उनमें । मन ललचा रहा था
: लेना है ?
मैने थूक हलक से गटक कर उन्हें देखा
: वैसे आज इसी का चाय बनाई थी
उफ्फ मेरी लंड की कसावट बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने पेंट में एकदम बियर की कैन रखी हो ऐसी स्थिति थी मेरी
एक नजर उन्होंने लपक कर गलियारे में देखा और नीचे से ब्लाउज खींच कर एक चुची पूरी बाहर , निप्पल पूरे तने हुए जैसे पानी में फूल हुए मुनक्के जैसे भूरे और उनकी सतहों पर दूध की बूंदे ऊभर आई थी


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अच्छे से वो नजारा देख पाता कि उन्होंने मेरा सर अपनी चुची पर दबा दिया और मम्मी के बाद मेरे होश में शायद ये दूसरी चूची थी जिसके दूध स्वाद मैं ले रहा है , होठों से निचोड़ निचोड़ कर उनके निप्पल को सुरकने लगा और वो सिसकने लगी
: अह्ह्ह्ह सीई आराम से बहिनचोद ओह्ह्ह उम्ममम सीईईई पी लो उम्ममम अह्ह्ह्ह


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फिर से गाली लेकिन इस बार उन्होंने मेरा मुंह बंद कर रखा था , ना जवाब दे पा रहा था न गुस्सा जाहिर कर पा रहा था , मैने भी बदला लेते हुए कचकचा कर निप्पल को मुझे लेकर पूरी ताकत से निचोड़ और वो एड़ियों के बल होने लगी और शरीर ढीला करने लगा

बात आगे बढ़ती कि बाहर बरामदे में हरकत हुई , विमला काकी आई हुई थी भीगते हुए और भाभी को आवाज दे रही थी
झटपट हम अलग हुए और मैने अपना मुंह पोछा और उनके साथ बाहर आ गया , भाभी ने बात संभाल ली क्योंकि काकी की नजर में तब भी बच्चा था । मै निकल गया उस रोज और फिर हर रोज लगभग मै चक्कर काटने लगा , लेकिन बात नहीं बन पाई । वो भी एक तय समय पर दरवाजे पर खड़ी मेरी राह देखती , आंखों से इशारे होते लेकिन वो मना कर देती ।
मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी और मैं कुछ जुगाड़ कर उनका मोबाइल नंबर पता किया और मौका देख कर एक रोज मम्मी के छोटे वाले फोन से काल घुमाया
बात हुई और फिर कई रोज तक हमने सही मौके की तलाश की , मम्मी के फोन पर रात में छिप कर मै उनसे गर्म बातें करता , उनके चूतड़ों और दूध के बारे में और महीने भर बाद उनका प्लान बना, रात में आने के लिए उन्होंने सारी योजना बनाई, किसी तरह से मैने कंडोम का जुगाड़ भी कर लिया और ठीक रात 08 बजे से पहले ही मूसलाधार बारिश होने लगी और उन रोज पापा भी घर आए थे तो बाहर निकलने का सवाल ही नहीं था । बना बनाया प्लान बिगड़ गया और रात में उन्होंने मुझे बहुत कोसा ... मा बहन की गाली दी । शायद मैने उनके अरमानों पर कुछ ज्यादा ही बारिश करवा दी थी । अगले ही हफ्ते मुझे मेरे इंजीनियरिंग पढ़ाई के लिए निकलना पड़ा , फिर दुबारा से कभी उनसे बात नहीं हुई । आमना सामना हुआ भी कभी तो उनका पिनका हुआ मुंह और बुदबुदाहट वाली गाली ही मिलती ।
वो दिन था और आज का दिन मै उनसे बचता फिरता रहा हूं


तभी बाथरूम के दरवाजे पर आहट हुई , तेजी से किसी ने बाथरूम का अल्युमिनियम वाला हलका दरवाजा थपथपाया और बाहर से बत्ती भी बंद हो गई
" अरे रोहन बाबू बत्ती चली गई बाहर आ जाओ " , कोई औरत खिलखिला कर बोली , आवाज जानी पहचानी थी लेकिन चेहरा ध्यान में नहीं आ रहा था ।
" अरे रोहन बाबू के पास अपनी लंबी वाली टॉर्च है हीहीही ", ये वही थी ....नीतू भाभी

कबतक राह निहारा जाय

कबतक संघर्ष को टाला जाय
अब रण से भाग मत प्यारे
फेंक जहां तक भाला जाय


एक लंबी गहरी सांस और मैने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया ......


जारी रहेगी
( जानता हूं छोटी , लेकिन समय के अभाव में जितना किया जा सकता था किया गया ... प्रेम और स्नेह में कोई कसर नहीं छूटेगी तो अच्छा लगेगा )
वाह लेखक साहब वाह!
मजा आ गया.. ये होली तो हर अपडेट मे नऐ रंग बिखेर रही है। उमीद है कि होली का अंजाम और भी भयंकर और उतेजक हौगा l
धन्यवाद🙏🏻 ,अपने busy schedule मे से समय निकाल कर हम पाठकों खुश करने के लिए l
अगले कामुक अपडेट के इंतजज़ार मे
 
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