भाग 135
बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी
“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..
माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..
मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..
नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..
क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?
उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।
अब आगे…
सभी लड़कियां कूपे में हुए घटनाक्रम का अनुभव साझा कर रही थीं। मोनी सब की बातें सुन रही थी उसे इस बात का अफसोस भी था कि उसे माधवी ने एन वक्त पर कूपे में जाने से रोक दिया था और यह निर्देश दिया था कि यदि उससे कोई कारण पूछे तो वह अपने रजस्वला होने की बात बता सकती है।
माधवी ने रतन के मातहतों से रतन की प्लानिंग को समझ लिया था और वह मोनी को रतन से मिलने से रोकना चाहती थी। उसे पता था रतन एक नितांत कामुक व्यक्ति था और वह किसी हाल में मोनी को उससे दूर रखना चाहती थी पर माधवी स्वयं वासना की गिरफ्त में आ चुकी थी। और मोनी की जगह स्वयं कूपे में चली गई थी। आश्रम में संभोग वर्जित तो नहीं था परंतु उसके मौके कम ही होते थे अक्सर लोग समूह में ही रहते थे।
कूपे में उसने रतन के साथ जो आनंद उठाया था वह रतन की दीवानी हो गई थी।
10 मिनट के साथ में ही रतन ने उसे न सिर्फ उत्तेजित किया था अपितु उसे चरम सुख भी प्रदान किया था।
माधवी जिस रुतबे और पद पर थी उसे रतन के साथ इस तरह के संबंध रखने में निश्चित ही मुश्किल होती पर वासना की आग अब माधवी के प्यासे बदन में सुलगने लगी थी।
आश्रम का कूपा एकमात्र ऐसी जगह थी जहां माधवी अपनी प्यास बुझा सकते थी…
विद्यानंद का यह आश्रम धीरे-धीरे प्रसिद्धि प्राप्त करने लगा। माधवी द्वारा ट्रेंड की गई लड़कियां उस कूपे में आती और विद्यानंद के अनुयायियों के पुत्र और रिश्तेदार नारी शरीर को समझने के लिए उन कूपों में नग्न लड़कियों के साथ कुछ वक्त बिताते..लड़कियां उनके अलग अलग स्पर्श का अनुभव करतीं कभी उत्तेजित होतीं कभी कभी स्खलित भी हों जाती। लड़कों को सभी कामुक कार्यकलापों की खुली छूट थी यहां तक कि संभोग की भी परंतु यह लड़कियों के हांथ में था आखिरकार बटन उनके पास ही था। यही शायद उन लड़कियों की परीक्षा भी थी। स्पर्श सुख से उत्तेजित होना संभोग सुख से आनंद लेना और चरम सुख प्राप्त करना यह लड़कियों की इच्छा पर था। वह जब चाहे यह खेल बंद कर सकती थी।
यदि उन्हें लड़कों की हरकते नागवार गुजरती तो वो बटन दबा कर अपनी असहमति व्यक्त करती और जबरजस्ती करने पर वो लड़के दंडित किए जाते।
समय के साथ माधवी की कई लड़कियों ने अपना कौमार्य खोया और उन्हें इस सेवा से हटा दिया जाता और उनकी जगह नई लड़कियां ले लेतीं।
महीने में एक बार लड़कियों को ट्रेनिंग दी जाती और रतन के लड़कों को इसका अवसर दिया जाता।
माधवी भी इस दिन का इंतजार करती और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में जाकर चुद जाती।
रतन इस बात से आश्चर्यचकित था कि माधवी मोनी को संभोग सुख लेने के बावजूद मौका क्यों दे रही थी। रतन की मोटी बुद्धि चूत में अटक गई थी। उसे आम खाने से मतलब था उसने गुठली गिनना छोड़ दिया ।
इन कूपो में एक विशेष दिन रतन के लड़कों को भी खड़ा किया जाता। विद्यानंद के अनुवाइयो की लड़कियां भी लड़कों के शरीर को समझने के लिए आतीं नियम समान थे पर यह प्रयोग लगभग असफल ही था। पर चालू था।
लड़कों की ट्रेनिंग के लिए माधवी की लड़कियों को लाया जाता पर मोनी को अब तक पुरुषों में कोई रुचि नहीं थी। कभी कभी माधवी इस अवसर का लाभ उठा कर अपनी और रतन की काम पिपासा मिटा लेती।
रतन और माधवी की दोस्ती धीरे धारे बढ़ रही थी। रतन अंजान था और माधवी के इशारे और इच्छानुसार कामसुख भोग रहा था…
मोनी का कौमार्य अब भी सुरक्षित था..और उसका हरण करने वाला न जाने कहां था..नियति ने भविष्य में झांकने की पर वहां भी अभी अंधेरा ही था।
आइए आपको बनारस लिए चलते हैं जहां सुगना का परिवार अपनी लाडली सोनी को याद कर रहा था जो इस समय अमेरिका में विकास के साथ अपना हनीमून बना रही थी।
तभी अचानक फोन की घंटी बजी यह टेलीफोन सोनू ने कुछ ही दिनों पहले सुगना के घर में लगवाया था। कारण स्पष्ट था। जब-जब सोनू जौनपुर में रहता उसे सुगना से बात करने का बेहद मन करता था…आखिरकार अपने पद और पैसे के बल पर उसने अपनी बहन सुगना को यह सुविधा प्रदान कर दी थी, यद्यपि उसने लाली को भी यही बात बोलकर खुश कर दिया था.
सरयू सिंह उस समय हाल में ही उपलब्ध थे उन्होंने झटपट टेलीफोन उठा लिया और अपनी रौबदार आवाज में बोला “कौन बोल रहा है? ”
सामने से कोई उत्तर न आया… सरयू सिंह ने फोन के रिसीवर को ठोका और दोबारा कहा
“ अरे बताइए ना कौन बोल रहा है ?”
तभी सामने से आवाज आई “चाचा जी प्रणाम”
सरयू सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा।
आवाज जानी पहचानी थी उन्होंने प्रश्न क्या
“के बोल रहा है? सरयू सिंह ने दोबारा पूछा।
“चाचा मैं सोनी “
सरयू सिंह का कलेजा धक-धक करने लगा अचानक ही उनकी अप्सरा और उसके मादक कूल्हे उनकी आंखों के सामने घूमने लगे दिल उछलने लगा परंतु हलक से आवाज निकालना जैसे बंद हो गया था। फिर भी उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में करते हुए कहा.
“सोनी कैसी हो कैसा लग रहा है अमेरिका में?
“ हम लोग ठीक हैं.आप कैसे हैं? सुगना दीदी कहां है?
सोनी ने बिना उनका उत्तर सुने ही अगला प्रश्न पूछ दिया…
सोनी उनसे बात करने से कतरा रही थी उसे सरयू सिंह से बात करने में झिझक महसूस होती थी।
सरयू सिंह ने आवाज लगाई
“ए सुगना, हेने आवा सोनी के फोन आइल बा बात कर ले “
सुगना भागते हुए फोन के पास आई उसके हाथ आटे से सने हुए थे शायद वह रसोई में आटा गूथ रही थी।
सरयू सिंह ने स्वयं रिसीवर सुगना के कानो पर लगा दिया और उसी अवस्था में खड़े रहे…
“अरे सोनी कैसन बाड़े” सुगना का उत्साह देखने लायक था।
“दीदी फिर भोजपुरी”
“अच्छा मेरी सोनी कैसी है” सुगना मुस्कुराते हुए बोली वो सरयू सिंह की तरफ देखते हुए उसे अपने बाबू जी के सामने हिंदी बोलने में थोड़ी हिचक थी जिसे उसने अपनी मुस्कुराहट से छुपा लिया।
सरयू सिंह के पास ही खड़े थे उन्हें सोनी की आवाज हल्की-हल्की सुनाई पड़ रही थी उन्होंने रिसीवर छोड़ना उचित न समझा और अपनी काल्पनिक माशूका की मीठी आवाज सुनते रहे।
“ठीक हूं दीदी… यहां अमेरिका की दुनिया ही अलग है”
“तुम्हें अच्छा लग रहा है ना ?”
“दीदी बहुत सुंदर जगह है, मैं आप लोगों को जरूर एक बार यहां लाऊंगी”
“चल चल ठीक है जब होगा तब देखा जाएगा विकास जी कैसे हैं ?“
“वो भी ठीक हैं दीदी पास ही खड़े हैं बात करेंगी”
“ हां हां लावो दे दो”
विकास सुगना से बात करने में सकुचा रहा था परंतु फिर भी सोनी के कहने पर वह फोन पर आ गया
“ हां दीदी प्रणाम..”
“ अरे मैं आपकी दीदी थोड़ी हूं” सुगना ने उसे छेड़ते हुए कहा। सुगना बातों में मशगूल थी उसे याद भी नहीं रहा कि सरयू सिंह पास खड़े हैं और रिसीवर उन्होंने ही पकड़ा हुआ है।
सुगना के प्रश्न पर विकास ने मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा
“ठीक है …आप मेरी साली है पर उससे पहले आप मेरे दोस्त सोनू की बड़ी दीदी है इसलिए मैं आपको शुरू से दीदी कहता आया हूं यदि आपको बुरा लगता है तो कहीये छोड़ दूं…” बिकास की आवाज फोन के रिसीवर से बाहर भी सुनाई पड़ रही थी।
सुगना मुस्कुराने लगी और कहा..
“ आप जैसा रिश्ता रखना चाहेंगे मुझे मंजूर है… सोनी का ख्याल रखिएगा”
“ ठीक है दीदी ….माफ कीजिएगा साली साहिबा” सुगना की हंसी फूट पड़ी।
सरजू सिंह को अब रिसीवर पकड़ना भारी हो रहा था। सुगना से विकास की यह छेड़छाड़ उन्हें रास नहीं आ रही थी
एक बार सोनी ने फिर फोन विकास के हाथों से ले लिया था और वह सुगना से बोली
“लाली दीदी कहां है? उनसे भी बात करा दो”
लाली भी अब तक पास आ चुकी थी.. सरयू सिंह ने फोन का रिसीवर लाली को दे दिया और अपने दिमाग में आधुनिक सोनी की तस्वीर बनाने लगे। फिल्मों में जिस तरह अंग्रेज हीरोइन चलती है सोनी में उसे जैसी ही प्रतीत हो रही थी बस एक ही अंतर था वह था सोनी के भारी नितंब जो शरीर सिंह का मन मोह चुके थे।
अपना नाम सुनते ही लाली ने फोन सुगना के कान से हटाकर अपने कानों पर लगा लिया और बेहद खुशी से उससे बात करने लगी।
“भाभी कैसी हैं?”
“ठीक बानी..तुम कैसी हो” लाली कंफ्यूज थी कि वह हिंदी में बात करें या भोजपुरी में।
“ठीक हूं दीदी..”
“ ठीक कैसे हो सकती हो तुम्हारी मुनिया की पूजाई ठीक से नहीं हुई लगता है..”
लाली ने यह देख लिया था कि सरयू सिंह वहां से हट चुके हैं। उसने सोनी को छेड़ा वैसे भी अब वह सोनी की भाभी बनने वाली थी। ननद और भाभी में छेड़छाड़ कुछ देर जारी रही। लाली चली थी सोनी को छेड़ने पर शायद वह भूल गई थी की सोनी अब आधुनिक और हाजिर जवाब हो चुकी थी…सोनी लाली को छोड़ने वाली न थी। नंद भाभी में बातचीत और नोकझोंक चालू थी। सरयू सिंह को सिर्फ लाली की हंसी सुनाई पड़ रही थी और वह यह अनुमान लगा पा रहे थे कि उनकी माशूका भी उधर ऐसे ही खिलखिला कर हंस रही होगी।
आईएसडी कॉल्स इतने सस्ते न थे। सोनी ने न चाहते हुए भी फोन वापस रख दिया पर पूरे परिवार को तरोताजा कर दिया। सुगना और लाली बेहद प्रसन्न थे और सरयूसिंह भी उतने ही खुश थे।
इसी बीच सोनू भी आ गया और सब सोफे पर बैठकर विकास और सोनी की शादी के आयोजनों और अपने-अपने अनुभवों को साझा करने लगे। सोनू ने सरयू सिंह से उस प्रभावशाली आदमी के बारे में जानना है चाहा जो विकास की शादी में आया हुआ था और उसके साथ कई बॉडीगार्ड घूम रहे थे पर उस व्यक्ति के चेहरे पर ढेर सारे दाग थे…
सरयू सिंह हिंदी पूरे आत्मविश्वास से सोनू को बताया
“अरे वो गाजीपुर के विधायक हैं. इजराइल खान.”
दाग का नाम सुनते ही लाली सचेत हो गई और उसके मन में उत्सुकता जाग उठी जिस पर वह काबू न रख पाई और अचानक सरयू सिंह से पूछ बैठी..
“ए चाचा दो-तीन साल पहले तहरा माथा पर जवन दाग होत रहे ओकर जैसन दाग कभी-कभी सोनू के गर्दन पर हो जाला तोहर दाग कैसे ठीक भई रहे?”
सभी के चेहरे फक पड़ गए। …सबको खुश रखने वाली सुगना को आज दाग लगने वाली सुगना कहा जाय वह कतई नहीं चाहती थी।
लाली ने जो प्रश्न किया था उसके बारे में कोई भी बात करना नहीं चाहता था परंतु अब जब प्रश्न आ ही गया था तो सरयू सिंह ने सोनू की तरफ देखते हुए पूछा
“अरे कइसन दाग दिखाओ तो”
यद्यपि सोनु को सुगना से संसर्ग किए कुछ दिन बीत गए थे परंतु वह इस दाग को सरयू सिंह को कतई नहीं दिखाना चाहता था। परंतु यह अवश्य जानना चाहता था की सरयू सिंह के माथे का दाग का भी कोई रहस्य था क्या?
सोनू ने अपनी गर्दन सरयू सिंह की तरफ घुमाई.. दाग लगभग गायब था.. सोनू और सुगना का मिलन वैसे भी कई दिनों से नहीं हो पाया था शादी की तैयारी में दोनों पूरी तरह व्यस्त थे कुछ छोटे-मोटे कामुक प्रकरणों के अलावा उन दोनों को अभी मिलन के लिए इंतजार ही करना था.
सरयू सिंह ने लाली को समझाते हुए कहा
“अरे कभी-कभी कीड़ा काट देला तब भी दाग हो जाला और बीच-बीच में कभी-कभी वह दाग बार-बार दिखाई देला कभी कम कभी ज्यादा । कुछ दिन बाद अपने आप पूरा ठीक भी हो जाला”
नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सरयू सिंह ने दाग का जो कारण बताया था वह लगभग समान था। दोनों ने कामुकता की पढ़ाई शायद एक ही स्कूल में की थी।
यह एक संयोग ही था कि जो सरयू सिंह ने बताया था वह सोनू पर हूबहू लागू हो रहा था।
सोनू और सुगना सुकून की सांस ले रहे थे सोनू के मन में उठा प्रश्न भी अब अपना उत्तर प्राप्त कर चुका था। कुछ देर पूरा परिवार विभिन्न मुद्दों पर और बात करता रहा। सुगना सरयू सिंह की तरफ आदर भाव से देखती अब उसके मन में उनके प्रति आदर और सम्मान जाग उठा था और अब सुगना के कामुक मन पर इस समय सोनू राज कर रहा था।
सरयू सिंह ने सुगना से कहा मुझे स्नान करने जाना है। सुगना ने सारी तैयारी कर दी उनका लंगोट उनकी तौलिया और अन्य वस्त्र यथावत रख दिया।
सोनी ने सरयू सिंह की तड़प बढ़ा दी थी। स्त्रियों के आवाज का मीठा पान भी उनकी कामुकता में चार चांद लगाता है सोनी धीरे-धीरे सरयू सिंह की आत्मा में वैसे की रच बस रही थी जैसे शुरुआती दिनों में सुगना।
परंतु एक ही अंतर था सरयू सिंह को सुगना से प्यार हो गया था और यहां सिर्फ और सिर्फ वासना और कामुकता थी वो भी सोनी के गदराए नितंबों को लेकर।
सरयू सिंह ने स्नान करते समय फिर सोनी को याद किया और एक बार फिर पूरी कामयाबी से अपने लंड का मानमर्दन कर उसे झुकाने और स्खलित करने में कामयाब रहे।
उधर अमेरिका में सोनी और विकास के दिन बेहद आनंद से बीतने लगे.. विकास और सोनी अमेरिका के खूबसूरत शहरों में विभिन्न स्थानों पर घूमते और शाम को एक दूसरे को बाहों में लिए संभोग सुख का आनंद लेते। सोनी भी पूरी तरह तृप्त हो रही थी वह भी बेचारी पिछले कई महीनो से प्यासी थी।
परंतु जब चाह मर्सिडीज़ की हो वह मारुति से कहां मिटने वाली थी। सोनी कार का आनंद ले तो रही थी पर मर्सिडीज़ अब भी उसके दिलों दिमाग पर छाई हुई थी। सरयू सिंह का वह लंड उसकी मर्सडीज थी जिसने उसे पिछले कई महीनो से बेचैन किया हुआ था। वह इस मर्सिडीज़ पर बैठ तो नहीं पाई थी पर उसने उसकी खूबसूरती बखूबी देखी थी और अपनी कल्पना में उसे महसूस भी किया था।
धीरे-धीरे विकास और सोनी दांपत्य जीवन का सुख लेने लगे उन्होंने अपनी गृहस्थी अमेरिका में पूरी तरह सेट कर ली।
समय बीतता गया। अमेरिका की आबो हवा ने सोनी को और भी ज्यादा आधुनिक बना दिया। सोनी में आ रहा बदलाव उसके व्यक्तित्व में आमूल चूल परिवर्तन कर रहा था वैसे भी सोनी बदलाव को बड़ी तेजी से आत्मसात करती थी।
बनारस आने से पहले सोनी अपने गांव सीतापुर में खेती किसानी के काम में अपनी मां पदमा की मदद करती गोबर पाथती, उकड़ू बैठकर सब्जियां काटती खेतों में काम करती। उसे देखकर यह कहना लगभग असंभव था कि आज वह जींस और टॉप पहनकर अपने गदराए हुए चूतड़ों को हिलाते हुए अमेरिका की सड़कों पर तेजी से चल रही थी। उसके बॉब कट बाल उसकी चाल से ताल से ताल मिलाते हुए हिल रहे थे और उसके पीछे चल रहे लोग उसके नितंबों पर लगातार आंख गड़ाए हुए उसकी थिरकन देख रहे थे।
जब वह बनारस में विकास के संपर्क में आई थी तब भी उस पर आधुनिकता ने बेहद तेजी से उसका हाव भाव बदला था। खड़ी हिंदी में घर के बुजुर्गों से भी बिना किसी झिझक के पूरे कॉन्फिडेंस के साथ बात करना , पारंपरिक साड़ी को छोड़ वह आधुनिक वस्त्रों को अपनाना, दोस्तों और सहेलियों के साथ शाम तक बाहर रहना यह साबित कर रहा था की सोनी आधुनिक युग की लड़की है और सुगना से निश्चित ही अलग है।
सोनी यही नहीं रुकी अमेरिका पहुंचने के बाद उसने लॉन्ग फ्रॉक और न जाने कौन-कौन से आधुनिक कपड़े पहनना शुरू किया जो विकास को तो बेहद पसंद था पर शायद उसे बनारस में पहनना मुश्किल था।
ऐसा नहीं था कि बदलाव सिर्फ सोनी के पहनावे में आया था उसका व्यक्तित्व भी तेजी से बदल रहा था वह एक आत्मविश्वास से भरी लड़की पहले भी थी और अब अमेरिका में विकास के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए उसका आत्मविश्वास और भी बढ़ गया था वह बेझिझक होकर अंग्रेज लोगों से बात करती उनसे रास्ता पूछतीऔर विभिन्न जानकारियां इकट्ठी करती। विकास सोनी को इसका आनंद लेते हुए देखता और ऐसी आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की को अपनी पत्नी रूप में पाने के लिए विधाता को धन्यवाद करता।
विकास और सोनी की सेक्स लाइफ में कुछ ही दिनों में बदलाव आने लगा। आत्मविश्वास से भरी सोनी की कामुकता का रंग भी बदल रहा था। एक तरफ सुगना का अपने प्रेमी में उत्तेजना जागृत करने का तरीका अनूठा था वहीं दूसरी तरफ सोनी में शायद यह अलग ढंग से हावी थी। उसे सेक्स में एक्सपेरिमेंट करना पसंद था। वह वासना और कामुकता से इतर सेक्स पर फोकस करती। बिस्तर पर तो विकास का भरपूर साथ देती पर अपनी कल्पनाओं में खोई रहती। विकास स्वयं अति कामुक व्यक्ति था उसे भी सोनी को भोगने में ज्यादा मजा आता था । वह बाहरी दुनिया से ज्यादा रूबरू था और उसे सेक्स की कई विधाएं मालूम थी यद्यपि वह अपने लिंग से उतना मजबूत न था पर कामपिपासा में कोई कमी न थी।
सोने की कामुकता को नया रंग देने में कुछ ना कुछ विकास का भी योगदान था। सोनी पूरे दिन भर अपनी दुनिया में खोई रहती कभी शॉपिंग करना कभी क्लब और न जाने क्या-क्या वह अमेरिका की हाई-फाई लाइफ जी लेना चाहती थी। शाम को विकास के आने के बाद दोनों बाहर डिनर का आनंद उठाते और रात में बिस्तर पर एक दूसरे से अपनी काम पिपासा शांत करते।
जब तक सेक्स में तड़का ना हो उसमें धीरे-धीरे बोरियत होने लगती है विकास और सोनी ने भी यह महसूस किया और आखिरकार विकास ने सोनी एक पायदान और ऊपर चढ़ा दिया। विकास आज एक अनोखा पैकेट लेकर घर आया था।
विकास जब भी घर आता था वह सोनी के लिए कुछ ना कुछ अवश्य लेकर आता था कभी कपड़े कभी खाने पीने का सामान कभी फूल, चॉकलेट और न जाने क्या-क्या वह हर तरीके से सोने को खुश रखना चाहता था। सोनी भी उसका इंतजार करती पर आज उसे खाली हाथ एक लिफाफा पड़े देखकर उसने विकास से कहा..
कहां देर हो गई? मैं कब से आपका इंतजार कर रही थी
“जानू इसे ढूंढते ढूंढते बहुत टाइम लग गया” विकास ने अपने हाथ में पड़ा हुआ पैकेट हवा में लहराते हुए सोनी से कहा।
“क्या है इसमें” सोनी ने कौतूहल वश पूछा और उसके हाथों से वह पैकेट छीनने का प्रयास करने लगी
“तुम्हारी खुशियों का पिटारा” विकास अब भी उसे वह पैकेट नहीं दे रहा था। सोनी अपने हाथ बढ़ाकर उसे पैकेट को पकड़ने का प्रयास करती और विकास उसकी अधीरता को और बढ़ा जाता। बीच-बीच में वह उसे चूमने की कोशिश करता पर सोनी का सारा ध्यान उसे पैकेट पर अटका था।
आखीरकार सोनी ने वह पैकेट विकास के हाथों से छीन लिया…
सोनी के गुस्से से विकास की तरफ देखा…
ये क्या है?
शेष अगले भाग में…