भाग 147
(विशेष भाग)
भाग 145 में आपने पढ़ा..
सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया..
अब आगे…
जैसे-जैसे सुगना की उत्तेजना बढ़ती गई उसकी कमर रफ्तार पकड़ती गई । सोनू अपनी दोनों हथेलियां से उसके कमर को थामें हुआ था और उसकी कमर की गति को संतुलित किए हुए था। सुगना की उत्तेजना जब चरम पर पहुंच गई सोनू को इसका एहसास हो गया उसने अपने एक हाथ से सुगना को सहारा दिया और दूसरा हाथ सुगना सुगना के दाहिने नितंब को सहारा दे रहा था उंगलियां दरार में उस गुप्त द्वारा को खोज रही थी जो हर मर्द को पसंद होता है। आखिरकार सोनू ने सुगना की करिश्माई गांड को अपनी उंगलियों से छू लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा। गुलाब की कली जैसी सुगना की गांड को वह अपनी उंगलियों से धीरे-धीरे फैलाने की कोशिश करने लगा।
सुगना ने सोनू की उंगलियों का यह स्पर्श महसूस किया परंतु उत्तेजना के शिखर पर पहुंच चुकी सुगना अपनी काम यात्रा में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं चाहती थी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की पर स्वाभाविक रूप से अपनी गांड को सिकोड़ लिया। उसका ध्यान अब भी वही केंद्रित था कुछ ही देर में सोनू की उंगलियों ने उसकी गांड पर दबाव बनाना शुरू किया अब सुगना को यह स्पर्श मादक लगने लगा उसने अपने कमर की गति और बढ़ा दी और आखिरकार सुगना की बुर से रस फूट पड़ा।
सुगना की कमर अब धीरे-धीरे शांत पड़ रही थी। उसने निढाल होकर अपना सर सोनू के कंधे पर रखकर सोनू से एकाकार हो गयी । ऐसा लग रहा था जैसे सुगना एक बच्चे की भांति सोनू की गोद में थी और अपना सर उसके कंधे पर रखे हुए कुछ फलों के लिए आराम कर रही थी। सोनू ने अपनी उंगलियां उसकी गांड से हटा ली और सुगना को एक बच्चे की तरह गोद में रहने दिया वह उसकी पीठ सहलाता रहा।
कुछ पलों बाद सुगना को एहसास हुआ कि उसके इस अद्भुत स्खलन के बावजूद सोनू का लंड अब भी उसके बुर में खूंटे की तरह तना हुआ है। वह आश्चर्यचकित थी।
इतनी उत्तेजना में आज तक कोई बिना स्खलित हुए नहीं रह सकता था पर आज सोनू के लंड ने सुगना को चुनौती दे दी थी। सुगना ने बिना सोनू से नजरे मिलाए उसके कान में बोला..
“ए सोनू तोर पानी ना छूटल हा का”
सोनू के चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी उसने सुगना के चेहरे को अपनी आंखों के ठीक सामने कर लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला
“आज त तू अपने में लागल रहलु हा हमार ध्यान कहां रहल हा”
बात सच थी सुगना आज सच में वासना में डूबी हुई थी उसने एक बार फिर अपनी कमर हिलानी चाही पर उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी वह और संभोग कर पाने की स्थिति में नहीं थी। उसने अपनी कमर थोड़ा ऊपर उठाई सोनू उसका इशारा समझ गया उसने अपना लंड सुगना की झड़ी हुई बुर से बाहर निकाल लिया।
लंड पक्क ….की आवाज के साथ बाहर आ गया.। ऐसा लग रहा था जैसे किसी वैक्यूम पंप से उसके पिस्टन को खींच लिया गया हो।
सोनू का लंड सुगना के प्रेम रस से पूरी तरह नहाया हुआ था । ऐसा लग रहा था जैसे सोनू के लंड को किसी मक्खन की हांडी में डुबो दिया गया हो सुगना उस अद्भुत लंड को देख रही थी जो उसके ही काम रस में डूबा चमक रहा था। सोनू ने सुगना को अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया और अपनी हथेली से सुगना की बुर को थपथपाते हुए बोला..
“दीदी आज तो यह स्वार्थी हो गई सिर्फ अपना ध्यान रखा और अपने साथी को अकेला छोड़ दिया”
सुगना अपनी हार स्वीकार कर चुकी थी उसने अपने कोमल हाथों से सोनू के लंड को थाम लिया और होले होले उसे हिलने लगी।
सोनू अब भी सुगना की बुर को सहलाए जा रहा था उसने सुगना को छेड़ते हुए बोला…
“दीदी ठीक लागल ह नू…”
“हां सोनू सुगना ने सोनू के होठों को चूमते हुए बोला और इस बात की तस्दीक भी कर दी कि वह बेहद खुश थी।
“अब जल्दी से अपन भी कर ले “
“अब सब तहरे हाथ में बा..” सोनू ने प्रतिउत्तर में सुगना के होंठ चूमते हुए कहा।
बात सच थी सोनू का लंड सुगना के हाथ में था सुगना उसे पूरी तन्मयता से हिला रही थी वह कभी उसके सुपाड़े को बाहर करती कभी सुपाड़े के पीछे केंद्रित नसों को सहलाती कभी उसे अपनी मुट्ठी में लेकर मसल देती और कभी अपनी हथेलियों को नीचे लाकर सोनू के अंडकोसों को सहलाती। वह पूरी तन्मयता से सोनू को स्खलित करने में लगी हुई थी पर सोनू को न जाने आज कौन सी दिव्य शक्ति प्राप्त थी वह इस स्खलित होने को तैयार न था..
सुगना ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार किया और बोला…
“अपन हाथ से का सहलावत बाड़े…” सोनू को सुगना से ऐसे प्रश्न की उम्मीद ना थी पर अब जब सुगना ने पूछ ही दिया था उसने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा
“अपन सुगना दीदी के…” सोनू के शब्द रुक गए अपने होठों से सुगना की बुर कहने की हिम्मत सोनू नहीं जुटा पाया पर सुगना ने आज कुछ और ही सोच रखा था..
साफ-साफ बोल
“अपना दीदी के का?
सोनू को जैसे करंट सा लगा उसके लंड में अचानक एक कंपन हुआ सुगना ने उसे महसूस भी किया सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसका दांव कामयाब हो रहा था वह अपने भाई की इच्छा बखूबी जानती थी।
उधर सोनू सोच रहा था सुगना दीदी आज किस मूड में है.
“बोल ना अपन दीदी के का…?” सोनू जितना शर्मा रहा था सुगना अब उतना ही सोनू पर हावी हो रही थी। आखिरकार सोनू भी मैदान में आ गया और सुगना की बुर की फांकों को अपनी उंगलियों से फैलाते हुए बोला..
“बुर……” सोनू के यह शब्द बेहद उत्तेजक थे यह उत्तेजना जितना सुगना ने महसूस की सोनू ने उससे ज्यादा और उसका लंड स्खलन के कगार पर पहुंच गया.. पर सोनू स्खलित नहीं होना चाहता था वह सुगना से और भी बातें करना चाहता था। आज जब सुगना ने कामुक बातें खुद ही शुरू की थी तो सोनू मन ही मन इस अवसर का सदुपयोग कर सुगना को और भी खोलना चाह रहा था।
उधर सुगना ने लंड के उछलने को महसूस कर अपनी उंगलियों का दबाव कुछ और भी बढ़ा दिया था ताकि वह सोनू को शीघ्र स्खलित कर सके कभी सोनू बोल उठा
दीदी तनी धीरे से …दुखाता…
सोनू ने अपनी उत्तेजना कम करने के लिए बाल्टी में से लोटे से पानी निकाला और अपने लंड पर डाल दिया।
लंड पर पानी पढ़ते ही सुगना का काम रस जो अब तक एक स्नेहक का काम कर रहा था धुल गया सुगना को अब अपनी हथेली आगे पीछे करने में असुविधा हो रही थी।
तभी सोनू ने सुगना की बुर पर से अपनी उंगलियां उठाई और सुगना के होठों को उसके ही काम रस से भीगी हुई अंगुलियों से छूते हुए बोला..
“दीदी लगता तहर हांथ दुखा जाई…. लेकिन तहर होंठ में जादू बा “
सुगना को सोनू की यह हरकत अटपटी लगी परंतु उसने सोनू का रिदम नहीं तोड़ा। सोनू ने जो इशारे में कहा था कहा था वह कठिन था। इस वक्त खुली धूप में अपने ही घर के आंगन में अपने ही भाई सोनू का लंड चूसना… हे भगवान सोनू क्या चाह रहा था..
परंतु सुगना को न जाने क्या हो गया था उसे सोनू की कोई बात बुरी न लग रही थी उसने सोनू के कान में कहा अच्छा ठीक बा पहले ठीक से नहा ले तब..
सोनू ने एक बार फिर बाल्टी से पानी निकालने की कोशिश की पर बाल्टी में पानी खत्म हो चुका था लोटे और बाल्टी के टकराने की आवाज ने इस बात की तस्दीक की और अब सुगना को सोनू की गोद से उठाना ही पड़ा।
पूरी तरह नंगी सुगना खड़ी हो रही थी सुगना की जांघों के बीच चुदी हुई फूल चुकी बुर सोनू की निगाहों के सामने थी।
सोनू ने सुगना के नितंबों को पड़कर उसे अपने चेहरे से सटा लिया। सोनू की जीभ बाहर आई और सुगना की बुर से स्खलित हुए रस को छीन लाई..
सुगना तुरंत पीछे हटी और सोनू के सर को खुद से धकेलते हुए बोली
“ अरे सोनू अभी गंदा बा मत कर”
सोनू को इस बात से कोई फर्क ना पड़ता था उसे तो सुगना प्यारी थी उसका हर अंग प्यारा था और हर रूप में प्यारा था फिर भी बहस की गुंजाइश न थी। सुगना पूरी तरह नंगी थी उसने तार पर टंगा तोलिया उठाकर अपने अधोभाग को ढकने की कोशिश की पर सोनू ने रोक लिया और बोला ..
“ दीदी इतना सुंदर लगत बाड़ू मत तोलिया मत खराब कर..” सोनू ने जिस तरह से यह बात कही थी सुगना भली-भांति समझ चुकी थी कि सोनू उसे पूरी तरह नंगा देखना और रखना चाह रहा है तोलिया का खराब होना तो एक बहाना था।
नंगी सुगना हैंडपंप चलाने लगी…सोनू उसे एक टक देखे जा रहा था..भरी भरी चूचियां लटक कर कभी हैंडपंप के हैंडल को छूती भरी भरी जांघें और उसके त्रिकोण पर चमकती फूली हुई बुर…. सोनू मंत्रमुंध होकर सुगना को देख रहा था…
सुगना शर्मा रही थी..
उसने लजाते हुए कहा…
“अपना दीदी के ऐसे नंगा कर हैंडपंप चलवावत तोर लाज नइखे लागत”
सोनू को न जाने क्या सूझा वह उठकर खड़ा हो गया और सुगना की मदद के लिए उसके पास आ गया सुगना ने उसे रोकने की कोशिश की.. और बोली
“अरे हम तो ऐसे ही मजाक करत रहनी हां ते नहा ले”
पर सोनू अब कहां मानने वाला था उसने जिस अवस्था में सुगना को देखा था उसके मन में कुछ और ही चल रहा था वह सुगना के पीछे आ चुका था और अपने दोनों हाथों को सुगरा की कमर के दोनों तरफ करते हुए सुगना के साथ-साथ हैंडपंप के हैंडल को पकड़ चुका था सुगना उसकी पकड़ में थी वह अपने होंठ सुगना की पीठ से सटाए हुए था और धीरे-धीरे हैंडपंप चलाए जा रहा था। सोनू का मजबूत सीना सुगना की कमर से सटा हुआ था और सोनू की पुष्टि जांघें सुगना की जांघों से सटने लगी थी । सुगना को अंदाज़ हो गया था कि आगे क्या होने वाला है..
कुछ ही पलों में सोनू के लंड ने सुगना की बुर के मुहाने पर एक बार फिर दस्तक दे दी.. अब तक सुगना की बुर पुनः संभोग के लिए तैयार हो चुकी थी सुगना ने अपनी कमर थोड़ा पीछे की और सोनू के लंड का स्वागत किया हैंडपंप से पानी निकलना जारी था। सोनू हल्के हल्के हैंडपंप चलाए जा रहा था और अपनी बहन के बुर में अपने लंड को अंदर डाले जा रहा था।
सेक्स की यह पोजीशन अनोखी थी सुगना मन ही मन सोनू की आतुरता पर मुस्कुरा रही थी उसने सोनू का भरपूर साथ देने की सोची उसने अपनी कमर को थोड़ा और नीचे किया और नितंबों को ऊंचा कर सोनू के कार्य को सरल कर दिया सोनू अब सुगना को धीरे-धीरे चोद रहा था और हल्के-हल्के हैंड पंप चलाए जा रहा था।
धीरे-धीरे चुदाई का वेग बढ़ता गया.. सोनू और सुगना दोनों आनंद में डूबे हुए थे सुगना की उत्तेजना एक बार फिर बढ़ने लगी उसने सोनू के एक हाथ को हैंडपंप पर रहने दिया पर दूसरे हाथ को उठाकर अपनी चूचियों पर रख दिया सोनू को तो मानो दोनों जहां की खुशियां मिल गई हों।
बाल्टी में पानी भर चुका था और सोनू के अंडकोषों में भी।
सुगना की कमर अब दुखने लगी थी…बह हैंडपंप को रोकते हुए बोली ..
“ जो पानी भर गइल नहा ले “
सोनू अब भी सुगना को चोद रहा था। सुगना एक झटके से खड़ी हुई और सोनू का लैंड एक बार फिर
“पक्क…. “ की आवाज करते हुए बाहरआ गया। सुगना पलटी उसने सोनू के काम रस से सने लंड को अपने हाथों में लिया और बोला “सोनू अब नहा ले बाकी बिस्तर पर”
पर सोनू अब पूरी तरह गर्म हो चुका था उसने आंगन में किनारे रखें धान के बोरे को खींच कर आंगन के बीच में कर दिया और सुगना के लहंगे को उसके ऊपर डाल दिया…सुगना सोनू की मनोदशा समझ चुकी थी वह नंगी धीरे-धीरे सोनू के पास आ गई..
ऐसा लग रहा था जैसे सुगना सोनू के अधीन हों चुकी थी।
एक दासी की भांति वह उसके इशारे को पूरी तरह स्वीकार और अंगीकार कर रही थी।
सोनू ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे धान के बोरे पर पीठ के बल लिटा दिया…सुगना की दोनों जांघें स्वतः हवा में पैल गई.. और फूली हुई बुर आसमान की तरफ ताकने लगी जैसे विधाता से अपने हिस्से की अधूरी खुशियां मांग रहीं हो..
विधाता ने उसे निराश न किया सोनू जो एक टक सुगना की नंगी बुर को देख रहा था उस पर झुकता गया और अपने होंठ खोलकर बुर के होठों को ढंक लिया और जीभ चुदी हुई बुर की गहराइयों में उतरने लगी। सुगना ने अपनी फैली हुई जांघें सिकोड़ ली और सोनू के सर को दबाने की कोशिश की पर सुगना आज स्वयं कंफ्यूज थी वह सोनू के सर को धकेलना तो बाहर की तरफ चाहती थी पर जांघों का दबाव बुर की तरफ था।
सुगना के गोरे पैर सोनू की मांसल पीठ पर आराम कर रहे थे..
सोनू पूरी तसल्ली से कटोरी में से खीर खा रहा था जो सुगना और सोनू दोनों ने मिलकर बनाई थी। सुगना तड़प रही थी उसकी काम उत्तेजना एक बार फिर परवान चढ़ रही थी…कहां उसे सोनू को स्खलित करना था पर वह खुद एक बार फिर स्खलित होने को तैयार थी।
तभी सोनू ने अपना सर बाहर किया सुगना से बोला…
“दीदी आज मन खुश हो गइल बा…”
“ई काहे “ सुगना ने अपनी शरारती आंखे नचाते हुए बोला…
“आज मन भर चूमब और चाटब “
सुगना जान चुकी थी कि आज सोनू उसे गंदी बातें कर अपनी हदें तोड़ रहा है पर आज सुगना ने कोई आपत्ति जाहिर न कि अभी तक वह उसका खुलकर साथ देने लगी और बोली..
“का चटबे ?”
“अपना सुगना दीदी के बुर…” सोनू यह बोल तो गया परंतु उसे एहसास हो गया कि उसने कुछ ज्यादा ही बोल दिया है उसने झट अपना सर सुगना के पेडू से सटा दिया और होंठ एक बार फिर रस चूसने में लग गए..
“बदमाश ..तनी धीरे से….. दुखा……” सुगना अपनी उत्तेजना के चरम पर थी वह अपनी मादक कराह को पूरी न कर पाई…उसकी आवाज लहरा रही थी। वह स्खलित होना कतई नहीं चाहती थी वो अपने गोरे पैर सोनू की पीठ पर धीरे-धीरे पटकने लगी।
सोनू रुक गया और एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच से सर निकाल लिया। सोनू के होंठ काम रस से चमक रहे थे सुगना ने अपने हाथों से उसे आलिंगन में आने का इशारा किया और सोनू सुगना के ऊपर छाता चला गया। सुगना ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके अधरों को चूमते हुए बोली..
“ तोरा हमरा ओकरा से कभी घिन ना लागेला का…अतना गंदा चीज के भी जब चाहे चुम ले वे ले”
(आशय तुम्हें मेरी उस चीज से कभी घिन नहीं लगता है क्या? उसे कभी भी चूम लेते हो…)
“कौन चीज दीदी” सोनू सच में शैतानी कर रहा था यह बात कहते हुए उसका लंड और तन गया था और उसने सुगना के बुर के मुहाने पर दस्तक दे दी थी…जिसे सुगना ने भी महसूस कर लिया था….लंड का सुपाड़ा फूलकर कुप्पा हो गया था.. और सुगना के भगनासे पर दस्तक दे रहा था.
सुगना ने सोनू की तरफ देखा और अपनी पलके बंद करते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और कान में बोली “अपना दीदी के चोदल बुर….” सुगना की कामुक आवाज में कहे गए यह शब्द सोनू के कान में गूंजने लगे।
सोनू बेहद उत्साहित था..उसने अपने लंड को सुगना की बुर की दरार पर रगड़ते हुए कहा..
“काहे लागी.. चोदले भी त हम ही बानी…”
सुगना निरुत्तर थी…जैसे को तैसा मिला चुका था। सुगना का सिखाया सोनू उस पर ही भारी पड़ रहा था..
सुगना को चुप देखकर सोनू ने उसे उकसाते हुए कहा .
“पर तू लजालू..”
“ ना …अईसन बात नइखे ले आऊ…” सुगना ने सोनू को मुखमैथुन के लिए आमंत्रित कर दिया।
“तोहरा घिन ना लागी” सोनू अपनी खुशी को दबाते हुए बोला।
“अरे हमरा घिन काहे लागी हमार आपन ह”
सुगना सोनू को आमंत्रित कर रही थी सोनू से रहा न गया उसने सुगना के होठों को चूम लिया। सुगना को भली बात पता था कि सोनू के होठों पर उसका काम रस और सोनू के लंड से निकली वीर्य की लार लगी हुई थी।
सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे में खो गए और इसी समय सोनू ने अपना लंड एक बार फिर सुगना की बुर में गहरे तक उतार दिया। सुगना मचल उठी पर होंठ बंद थे उसने अपनी जांघों को सोनू के नितंबों पर लपेटकर अपनी उत्तेजना का प्रदर्शन किया… परंतु अगले ही पल सोनू ने अपने लंड को सुगना की बुर से पूरी तरह बाहर निकाल लिया। सोनू का लंड सुगना की बुर की चासनी से नहाया हुआ प्रतीत हो रहा था। सोनू धान के बोरे का सहारा लेकर खड़ा हो गया उसने सुगना के हाथ पकड़े और उसे भी बोरी पर बैठा दिया।
सोनू का लंड सुगना की आंखों की ठीक सामने था उसके ही कामरस से डूबा हुआ, चमकता और पूरी तरह उत्तेजित। सुगना को पता था उसका सोनू क्या चाह रहा था। उसने एक बार सोनू की तरफ देखा और अगले ही पल अपने होंठ खोलकर सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने होठों के भीतर भर लिया।
अपने दोनों हथेलियां से सोनू के लंड को पकड़े सुगना सोनू के लंड के सुपाड़े को चुभलाने लगी उसकी आंखें सोनू को देख रही थी जैसे वह सोनू को बताना चाह रही हूं कि मैं तुमसे और तुम्हारे किसी भी कृत्य से घृणा नहीं करती हूं… मुझे तुम पसंद हो .हर हाल में ..हर रूप में …हर अवस्था में …तुम्हारी चाहत ही मेरी इबादत है.. सुगना का यह समर्पण अनूठा था..
नंगी सुगना पूरी तन्मयता से अपने भाई सोनू का लंड चूस रही थी।
सोनू बेहद प्रसन्न हो गया सुगना ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे। उसने अपना लंड सुगना के मुंह से निकाला और नीचे घुटनों के बाल बैठते हुए सुगना की जांघों पर अपना सर रख दिया और बेहद संजीदा स्वर में बोला दीदी हमरा के माफ कर दिहा लेकिन लेकिन एक इच्छा मन में और बा..
“गुस्सा ना करबू तो बोलीं “
सुगना सोनू के बाल सहलाते हुए बोली “गुस्सा ना करब”
“हमरा ऊ हो चाहिंं “
(मुझे वह भी चाहिए)
सुगना को समझ नहीं आया कि सोनू क्या कहना चाह रहा है उसने प्यार से पूछा
“का चाहि साफ-साफ बोल”
सोनू ने बहुत हिम्मत जुटाई पर उसके होंठ नहीं खुले। अपनी जिस बहन के नाराज होने से कभी उसकी सिटी पिट्टी गुम हो जाती थी वह किस मुंह से कहता कि वह उसकी गुदाज गाड़ को भोगना चाह रहा है।
सोनू चुप ही रहा पर सुगना ने उसे फिर उकसाया
“जवन मन में बा साफ-साफ बोल लजो मत” सुगना सोनू से लज्जा त्याग कर अपनी बात कहने के लिए कह रही थी
आखिरकार सोनू ने हिम्मत जुटाई उसके होंठ तो अब भी ना खुले पर उसने अपनी उंगलियों से सुगना की उस जादुई गांड को छू लिया।
सुगना समझ चुकी थी आखिर सोनू भी अब पूरी तरह मर्द हो चुका था जिस तरह कभी सरयू सिंह उसकी गांड के पीछे पड़े थे अब उसका छोटा भाई सोनू भी उसी राह चल पड़ा था सुगना को पता चला चुका था यह अंग कामुक मर्दों को बेहद पसंद आता था।
सुगना ने सोनू के सर को अपनी गोद से उठाया और उसके कान पकड़ते हुए बोला..
“ते अब कुछ ज्यादा सयान हो गइल बाड़े”
सोनू ने कोई उत्तर ना दिया पर सुगना की जांघों को चूमते हुए बोला “बोल ना दीदी देबे”
सुगना चुप ही रही उसे पता था यह उसके और सोनू के बीच यह वासना की पराकाष्ठा होती उसने… सोनू के लंड को पकड़ कर उसे सहलाते पर बात को टालते हुए कहा…
“छोटका सोनू के जवन चाहि सब मिली पर आज ना.. आज मालूम बा नू केकर पुजाई करके बा?
सोनू को ध्यान आ गया कि आज सुगना की बुर की पूजा होनी थी जिसके लिए सुगना ने आज विशेष इत्र भी लगाया था।
सोनू ने और देर ना की उसने एक बार फिर सुगना को धान के बोरे पर लिटा दिया और अपने लंड को सुगना की लिस्लीसी बुर में गहरे तक उतार दिया। सुगना की दोनों चूचियों को अपने हाथों से थामे सोनू सुगना को चोदने लगा।
कभी वह उसके होठों को चूमता कभी चूचियों को और अपने प्यार का इजहार करता परंतु नीचे उसका लंड बेरहमी से सुगना की बुर को चोद रहा था.. धीरे-धीरे सोनू और सुगना का प्यार परवान चढ़ता गया.. उत्तेजना में सोनू ने एक बार सुगना की चूची को जोर से मसल दिया और उसे सुगना की वही मादक कराह सुनाई पड़ गई जिसके लिए सोनू बेचैन था.
“सोनू बाबू तनी धीरे से…दुखाता…”
सोनू ने अपनी चुदाई की रफ्तार और बढ़ा दी और उसके लंड ने सुगना की बुर के कंपन महसूस किए…सुगना एक बार और झड़ने वाली थी। अब सोनू ने भी अपनी उत्तेजना पर लगाम लगाना उचित न समझा उसने मन ही मन सुगना की उस गुदाज की गांड की कल्पना की…और सुगना को पूरी ताकत से चोदने लगा…. नतीजा स्पष्ट था सुगना हाफ रही थी और उसकी बुर कांप पर रही थी सुगना एक बार फिर झड़ रही थी..
इस अवस्था में भी सुगना को यह याद था कि उसका छोटा भाई अब तक स्खलित नहीं हुआ है उसने अपने चरमोत्कर्ष से समझौता कर मदमस्त आवाज में कहा
“सोनू और जोर से…. ह हा ऐसे ही …आ….. ईईई”
सोनू सुगना की झड़ती बुर को और ना चोद पाया.. उसके वीर्य की धार सुगना के गर्भाशय को छू गई.. सोनू ने तुरंत ही अपना लंड बाहर निकाल दिया…और अपने पंप को हाथों से पकड़ कर अपने वीर्य की धार से अपनी बहन सुगना को भिगोने लगा..
सुगना अपनी अधखुली पलकों से सोनू के लंड को स्खलित होते हुए देख रही थी… और सोनू की वीर्य वर्षा में भीगते हुए तृप्त हो रही थी..
सोनू भी निढाल होकर धीरे-धीरे नीचे घुटनों के बल बैठ गया अपने लंड को सुगना के बुर के मुहाने पर धीरे धीरे पटकने लगा… ऐसा लग रहा था कि सुगना की बुर की पूजा करते-करते सोनू का लंड अब दम तोड़ चुका था।
सोनू ने अपने भाई की मेहनत को नजरअंदाज ना किया उसने उसका सर अपनी नंगी चूची पर रख लिया जो उसके ही वीर्य से सनी हुई थी ..
सोनू पूर्ण तृप्ति के साथ अपनी बहन सुगना के आगोश में कुछ पलों के लिए बेसुध सा हो गया..
सुगना ने कुछ पलों बाद सोनू को जगाया। पहले सुगना ने स्नान किया और वह अपने कपड़े लेकर अंदर अपने कमरे में चली गई सोनू अब भी स्नान कर रहा था। सुगना को कपड़े ले जाते हुए देखकर सोनू ने कहा..
“दीदी कपड़ा मत पहनीहे एक बार और?” सुगना ने पीछे पलट कर देखा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई
सुगना अपने बिस्तर पर नंगी लेटी हुई सोनू का इंतजार कर रही थी…सोनू अब भी नहा रहा था वैसे भी उसके पास समय था लंड को दोबारा जागृत होने में समय लगना स्वाभाविक ही था।
स्नान करने के बाद सोनू सुगना के कक्ष में आया सुगना उसकी घनघोर चुदाई से तृप्त थकी हुई बिस्तर पर नग्न सो रही थी…वह अपने सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु उसकी आंख लग चुकी थी. इतनी सुंदर इतनी प्यारी और चेहरे पर गजब की संतुष्टि लिए सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। सोनू अपनी बहन की नग्नता का आनंद लेता रहा पर उसको चोदने के लिए जगाना उचित न समझा…
सोनू और सुगना का प्यार निराला था। सुगना के प्रति उसका प्यार उसकी वासना पर भारी पड़ गया था।
बिस्तर पर पड़ा सुगना का लहंगा सोनू के वीर्य की गवाही दे रहा था…जो सुगना और सोनू के मिलन के दौरान धान के बोरे पर पड़ा अपनी मल्लिका की नंगी पीठ को छिलने से बचाए हुए था।
कुछ देर यूं ही निहारने के बाद सोनू ने अपने कपड़े पहने और पिछले दरवाजे से बाहर निकाल कर एक बार फिर सामने के दरवाजे का ताला खोलकर अंदर दाखिल हो गया।
सुगना अब भी सो रही थी…बिंदास बेपरवाह क्योंकि उसकी परवाह करने वाला उसके करीब ही था…