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सारी रात की चुदाई के कारण मेरी चूत में दर्द हो रहा था। जिस कारण मुझे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। साथ में पेंटी ना पहने के कारण मेरी चूत के अंदर भरा बीर्य भी रिसकर मेरे जाँघों से होता हुआ मेरे पैरों तर आ रहा था। जिससे मुझे काफी गंदा फील हो रहा था।
मैंने मोबाईल में समय देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। मेरा ऑफिस बस स्टेण्ड से ज्यादा दूर नहीं था। जिस कारण मैंने बस स्टेण्ड से बाहर आकर एक ऑटो किया और अपने ऑफिस का ऐड्रेश बता कर उसके आस पास ही किसी लॉज में ले जाने के लिए बोल दिया। ऑटो बाले ने मेरे ऑफिस के एकदम पास में ही एक लॉज के बाहर मुझे छोड दिया। जिसके बाद मैंने उसका पेमेंट करने के बाद अपने लिए एक रूम बुक किया और चाबियाँ लेकर सीधे कमरे में चली गई।
कमरे में आकर मैंने सबसे पहले अपने पर्स से एक पेन किलर निकाल कर खाई। उसके बाद बिना कपडे चेंज किए रूम को अंदर से लॉक करके सो गई। दोपहर करीब 12 बजे मेरी आँख खुली तो मैं तुरंत ही बाथरूम में घुस गई। फ्रेस होने के बाद मैंने अच्छे से नहाया औऱ फिर कपडे पहनने के बाद अपना लैपटॉप बैग लेकर ऑफिस के लिए निकल गई। मैंने इस वक्त टाईट फिटिंग में ब्लैक कलर की फार्मल पैंट और महरून शर्ट पहनी हुई थी साथ में सन ग्लासेस भी लगा रखे थे। देखने में मैं एकदम प्रोफेशनल लेकिन कॉफी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। ऑफिस मेरे लॉज के एकदम पास में ही था। इसलिए मैं पैदल ही उस तरफ बड गई।
ऑफिस पहुँचकर मैं पूरे स्टॉफ से मिली। उन लोगों को पहले ही बॉस का फोन आ गया था कि एक सीनियर ऑफिसर ब्रांच बिजिट के लिए कभी भी आ सकता है। जिस कारण वो पहले से ही काफी डरे हुए थे और पूरी तैयारी से बैठे थे। ऑफिस के ज्यादातर मेल स्टॉफ तिरछी नजर से मेरे सेक्सी बदन को निहार रहे थे। जिसे मैं पहले ही नोटिस कर चुकी थी। पर मैंने उनसे कुछ भी नहीं कहा और उनकी इस हरकत को इग्नोर करके सारा काम देखने लगी। मैंने काफी फ्रेंडली होकर उनसे बात की थी और उनके अच्छे कामों की तारीफ के साथ साथ कुछ कमियों को भी उन्हें बताया था।
वो सभी मेरे नेचर से काफी खुश थे। इस दौरान ऑफिस स्टॉफ ने मेरे लिए लंच भी मंगवा लिया था। मैं उस दिन शाम के 7 बजे तक ऑफिस का सारा काम देखती रही। इसके अलावा मैंने ऑफिस की कैश बुक को भी अच्छी तरह से चैक कर लिया था। जिसमें मुझे कुछ गडबड लग रही थी। जिस कारण मैंने सारे बिलस् को भी क्राश चैक करने के बाद सब कुछ अपनी रिपोर्ट में लिख लिंया था। ऑफिस से फ्री होकर मैं बापिस लॉज में चली गई। मैं काफी थक गई थी इसलिए कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं करीब 9 बजे चैक ऑऊट करके लॉज से निकल गई।
सबसे पहले मैंने पास के ही एक रेस्टोरेंट में हल्का फुल्का डिनर लिया और फिर ऑटो लेकर बस स्टैंड जा पहुँची। मेरी बस रात के 10 बजे की थी, हाँलाकि बस ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी। क्योंकि मैं उसी बस से सुबह इंदौर आई थी। बस के बाहर ही मुझे कंडक्टर मिल गया था। उसने मुझे बताया कि उसने मेरे लिए 5 कस्टमर बुक किए हैं। जो बस से भोपाल जा रहे हैं और एक कस्टमर तो अभी से मेरी सीट पर मेरा इंतजार कर रहा है। जिसके बाद कंडक्टर ने मुझे पैसे देते हुए कहा
कंडक्टर- मैडम पूरे 70 हजार हैं। 5 कस्टमर हैं और दो हम। सच कहूँ मैडम मजा आ गया आज तो आपके साथ। हमने इतनी सुंदर लड़की के साथ पहले कभी नहीं किया था और अभी तो आप और भी ज्यादा मस्त लग रही हो। बिल्कुल किसी हीरोईन की तरह।
कंडक्टर की बात सुनकर मैं थोडा हैरान होते हुए बोली
निशा- सुबह तो तुम्हारे पास पूरे पैसे नहीं थे। तो फिर अब कहाँ से इतने पैसे आ गए
मेरी बात सुनकर कंडक्टर बगलें झांकने लगा तो मैं बोली
निशा- सच सच बताओ…. मुझे झूठ बोलने बाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बैसे भी मैं इस महिने मैं 4-5 बार भोपाल से इंदौर आने बाली हूँ। अगर तुम झूठ बोलोगे तो मैं अगली बार किसी दूसरी बस से आऊंगी।
मेरी बात सुनकर वो कंडक्टर तुरंत बोला
कंडक्टर- अरे नहीं नहीं मैं बताता हूँ ना। असल में मैंने 10 हजार की जगह 15 हजार रुपये में बुकिंग की है तुम्हारी। तो तुम्हारे रेट के हिसाब से पैसे देने के बाद हमने अपने भी पैसे दे दिए, बो भी पूरे। बाकि 5 हजार बचे हैं बो भी आपको बापिस कर देंगे।
उस कंडक्टर की बात सुनकर मैं मुस्कुराते हुए बोली
निशा- नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि तुमने कितने पैसों में बुकिंग की है। मेरी बात जितने में तुमसे हुई है। मैं केबल उतने ही पैसे लूँगी। पर कई बार ज्यादा पैसे के बाद कस्टमर अलग अलग प्रकार की डिमांड भी करने लगते है। इसलिए तुम उनसे जितने पैसे लो, वो मुझे पहले ही बता दिया करो। ताकि मैं पहले से ही तैयार रहूँ।
मेरी बात सुनकर कंडक्टर खुश होते हुए बोला
कंडक्टर- हाँ हाँ मैं समझ गया। तो क्या वो 5 हजार रूपये अब तुम्हें नहीं चाहिए
निशा- नहीं वो तुम रखो। समझ लेना कि मेरा बस का किराया है।
इतना बोलकर मैंने उस कंडक्टर का मोबाईल नम्बर उससे लिया और फिर अपना नम्बर उसे बताकर मैं बस में चड गई। जब मैं अपनी केबिन में पहुँची तो वहाँ एक 50-55 साल का बूडा आदमी मेरा ही इंतजार कर रहा था। उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि इतनी कम उम्र की जवान और खूबसूरत लड़की आज उसे चोदने के लिए मिलेगी। उसकी हालत देखकर मैं मुस्कुराई और केबिन के अंदर जाकर मैंने केबिन का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जिसके बाद मैंने अपने बैग से कंबल निकला कर बैग को एक साईड कोने में ऱखा और अपने सारे कपडे उतार दिए और कंबल ओड कर लेट गई। फिर मैं उस बुड्डे से बोली
निशा- कुछ करना भी है या केवल देखना है
मेरी बात सुनकर वो आदमी जैसे होश में आया। अभी बस चलने में काफी देर थी। इसलिए उसे कोई जल्दी नहीं थी। लेकिन मेरे बोलने पर वो थोडा जोश में आ गया था, इसलिए उसने भी जल्दी से अपने कपडे उतार दिए और मेरे साथ कंबल के अंदर आकर मेरे मजे लेने लगा। मैं चुपचाप लेटी उसे अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। जब मुझे लगा कि यह आदमी कुछ ज्यादा ही समय ले रहा है। तो मैं कंबल के अंदर से ही नीचे की तरफ खिसक गई और उसका लण्ड मूँह में लेकर चूसने लगी।
उस बुड्डे को मेरी इस हरकत की उम्मीद नहीं थी। जिस कारण वो ज्यादा देर बरदास्त नहीं कर पाया और उसने मेरे मूँह के अंदर ही अपना पानी छोड दिया। जिसे मैं सारा निगल गई और चाट कर उसका लण्ड साफ कर दिया। जिसके बाद मैं बापिस अपनी जगह पर आते हुए बोली
निशा- क्या अंकल तुम तो बडी जल्दी ठण्डे पड गए
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा थोडा झेंपते हुए बोला
बुड्डा- वो वो मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम यह सब करोगी। बैसे भी किसी ने पहली बार मेरा अपने मूँह में लेकर चूसा है, तो मैं कुछ ज्यादा ही एक्साईटेड हो गया था। अब दूसरे राउण्ड में देखना तुम, मैं क्या कमाल दिखाता हूँ।
उस बुड्डे की बात सुनकर मैं हंसते हुए बोली
निशा- सॉरी अंकल दूसरे राऊंड का मौका अब नहीं मिलेगा आपको। मेरे दूसरे कस्टमर भी आने बाले होंगे। बैसे भी आपने केबल एक ही राऊंड का पेमेंट किया है।
मेरी बात सुनकर वो बुड्ढा बोला
बुड्डा- अभी बस चलने में काफी देर है। बैसे भी पूरी रात पडी है बाकी कस्टमर के लिए। मैं तो इंदौर निकलते ही बस से उतर जाऊंगा। रही बात पैसों की दो मैं दे रहा हूँ ना दूसरे राऊँड का पैसा।
इतना बोलकर उस बुड्डे ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर मुझे दे दिए। जिन्हें मैंने बिना गिने चुपचाप अपने पर्स में रख लिया और बोली
निशा- पर अंकल अभी तो आपको फिर से तैयार होने में समय लगेगा
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा बोला
बुड्डा- तुम उसकी फिक्र मत करो। मुझे दुसरे राऊंड के लिए तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। बैसे भी वियग्रा खाकर आया हूँ। तो बस 5-10 मिनट में मैं फिर से तैयार हो जाऊँगा।
इतना बोलकर वो बुड्डा फिर से मेरे शरीर से छेडछाड करने लगा, और जैसा उसने कहा था बो सच में ही 5-10 मिनट में फिर से पूरी तरह से तैयार था। इस बार मैंने उसे मनमानी करने की पूरी छूट दे दी थी। जिस कारण जैसे ही बो तैयार हुआ तो मेरे ऊपर चड कर मेरी चुदाई शुरू कर दी। मैं चुपचाप आँखें बंद किये हुए उसका पूरा साथ दे रही थी। इस दौरान बस में बाकी सबारियाँ भी चड गई थी और बस स्टार्ट होकर भोपाल हाईवे की तरफ चल पडी थी। वो बुड्डा बाकई में खिलाडी था। क्योंकि वो काफी देर से मेरी चुदाई कर रहा था। पर इस बार उसने अभी तक अपना पानी नहीं छोडा था।
जब मैंने ध्यान दिया तो समझ में आया कि जैसे ही उस बुड्डे का पानी निकलने बाला होता है, वो कुछ देर के लिए रुक जाता है और चूमने और सहलाने के कुछ देर बाद वो दोबारा चुदाई शुरू कर देता है। जिस कारण उसकी टाईमिंग काफी ज्यादा लम्बी हो गई थी। मैं उस बुड्डे की इस टैक्निक से काफी इम्प्रैस थी और दिल्ली जाकर अपने पति अमन पर भी इस टैक्निक को आजमाने का मन ही मन फैसला कर चुकी थी। लेकिन इस बार वो अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर पाया और आखिरकार अपना सारा पानी मेरी चूत में छोड दिया। कुछ देर मेरे ऊपर यूँ पडे रहने के बाद बो मुझसे अलग हुआ और अपने कपडे पहनकर केबिन से बाहर निकल गया।
उस बुड्डे के जाने के कुछ देर बाद ही। एक दूसरा आदमी मेरे केबिन के अंदर आ गया। इस दूसरे आदमी ने ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए सीधे अपने कपडे उतारे और कुछ देर मुझे चूमने और सहलाने के बाद ही मेरी चुदाई शुरू कर दी। इसी तरह एक एक करके सभी लोग मुझे चोद चुके थे। अभी भोपाल आने में समय था। इसलिए उनमें से एक आदमी दूसरे राऊँड के लिए दोबारा मेरे पास आ गया, तो मैंने उससे भी दूसरे राऊँड के अलग से पैसे ले लिए। जिसके बाद उस आदमी ने दूसरे राऊँड में मेरी गाँड मारी।
जब तक बो दूसरे राऊँड में ठण्डा हुआ। तब तक हमारी बस भोपाल पहुँच चुकी थी। जिसके बाद भोपाल बस स्टैंड पर बस खाली होने के बाद कंडक्टर और ड्रायबर ने भी इस बार मेरी जम कर गाँड मारी। उन दोनों को खुश करने के बाद मैंने अपने कपडे पहने और बस से उतर कर ऑटो लेकर अपने होटल जा पहुँची। सुबह के करीब 3 बज रहे थे। इसलिए अपने रूम में पहुँचकर मैंने कपडे चेंज किए और पेन किलर खाकर सो गई।
अगले दिन से पूरा एक हफ्ता मैंने अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने और मस्ती करने में बिता दिऐ थे। भोपाल में अपने से 4-5 साल छोटे नये बने दोस्तों के साथ मैंने बहुत मस्ती की थी। इस दौरान मेरे और रवि के बीच भी सब कुछ नॉर्मल हो गया था। क्योंकि आखिरकार मुझे भी रवि पर दया आ गई थी। मेरे और रवि के बीच सब कुछ नॉर्मल होने के बाद भी मैंने अब तक उसे अपने साथ फिजीकल नहीं हो दिया था। पता नहीं क्यों पर जब से मैंने उसके पिता के साथ रात बिताई थी। उस दिन के बाद से मुझे रवि के साथ सेक्स करना ठीक नहीं लग रहा था।
इसलिए इस पूरे हफ्ते तक मैं सारा दिन दोस्तों के साथ मस्ती करती और रात को या तो असमल के बताए कस्टमर के पास जाती या फिर रघु की बाहों में अपनी रात रंगीन करती। मुझे अपनी यह लाईफ काफी अच्छी लग रही थी। मन कर रहा था कि सारी जिंदगी यूँ ही गुजार दूँ। इन कुछ दिनों में मेरे पास करीब 22 लाख और रूपये इकट्ठे हो गए थे। जिन्हें आज ही मैं अपने नये बैंक अकॉऊंट में जमा करके अपने दोस्तों के पास मस्ती करने चली गई थी।
शाम करीब 7 बजे जब मैं अपने होटल बापिस आई तभी मेरे पास हरीश अंकल का कॉल आया। उन्होंने बताया कि गगन के पिता जेल से भाग गए हैं और उनके समान में मेरा फोटो मिला है। हरीश अंकल की यह बात सुनकर तो मेरी बुरी तरह से फट गई थी। मुझे लगा कि पक्का अब मैं किसी नई मुसीबत में पडने बाली हूँ। इसलिए मैंने तय किया कि कल ही मैं यहाँ से दिल्ली बापिस निकल जाऊँगी। बैसे भी मेरे सारे काम अब खत्म हो चुके थे। रही बात मौज मस्ती की तो वो तो मैं दिल्ली में भी कर सकती थी।
हरीश अंकल का फोन कट होने के बाद मैं इस बारे में अभी सोच ही रही थी कि तभी मेरे पास एक अंजान नम्बर से कॉल आया। जब मैंने कॉल रिसीव की तो दूसरी तरफ से एक अनजान आदमी ने मुझे एक जरूरी इनफोर्मेशन देने के लिए पास के ही एक पार्क में बुलाया। मुझे लगा कि पार्क में इस समय काफी लोग होंगे, इसलिए अगर वो कोई गलत आदमी भी हुआ तो कम से कम इतने सारे लोगों के बीच मुझे कुछ नहीं करेगा। यही सब सोचकर मैंने उस आदमी से मिलने का फैसला कर लिया। इसलिए मैं जल्दी से अपने रूम की तरफ जाने लगी। ताकि अपना सामान वहाँ रखकर पार्क में उस अनजान आदमी से मिलने जा सकूँ।
सारी रात की चुदाई के कारण मेरी चूत में दर्द हो रहा था। जिस कारण मुझे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। साथ में पेंटी ना पहने के कारण मेरी चूत के अंदर भरा बीर्य भी रिसकर मेरे जाँघों से होता हुआ मेरे पैरों तर आ रहा था। जिससे मुझे काफी गंदा फील हो रहा था।
मैंने मोबाईल में समय देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। मेरा ऑफिस बस स्टेण्ड से ज्यादा दूर नहीं था। जिस कारण मैंने बस स्टेण्ड से बाहर आकर एक ऑटो किया और अपने ऑफिस का ऐड्रेश बता कर उसके आस पास ही किसी लॉज में ले जाने के लिए बोल दिया। ऑटो बाले ने मेरे ऑफिस के एकदम पास में ही एक लॉज के बाहर मुझे छोड दिया। जिसके बाद मैंने उसका पेमेंट करने के बाद अपने लिए एक रूम बुक किया और चाबियाँ लेकर सीधे कमरे में चली गई।
कमरे में आकर मैंने सबसे पहले अपने पर्स से एक पेन किलर निकाल कर खाई। उसके बाद बिना कपडे चेंज किए रूम को अंदर से लॉक करके सो गई। दोपहर करीब 12 बजे मेरी आँख खुली तो मैं तुरंत ही बाथरूम में घुस गई। फ्रेस होने के बाद मैंने अच्छे से नहाया औऱ फिर कपडे पहनने के बाद अपना लैपटॉप बैग लेकर ऑफिस के लिए निकल गई। मैंने इस वक्त टाईट फिटिंग में ब्लैक कलर की फार्मल पैंट और महरून शर्ट पहनी हुई थी साथ में सन ग्लासेस भी लगा रखे थे। देखने में मैं एकदम प्रोफेशनल लेकिन कॉफी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। ऑफिस मेरे लॉज के एकदम पास में ही था। इसलिए मैं पैदल ही उस तरफ बड गई।
ऑफिस पहुँचकर मैं पूरे स्टॉफ से मिली। उन लोगों को पहले ही बॉस का फोन आ गया था कि एक सीनियर ऑफिसर ब्रांच बिजिट के लिए कभी भी आ सकता है। जिस कारण वो पहले से ही काफी डरे हुए थे और पूरी तैयारी से बैठे थे। ऑफिस के ज्यादातर मेल स्टॉफ तिरछी नजर से मेरे सेक्सी बदन को निहार रहे थे। जिसे मैं पहले ही नोटिस कर चुकी थी। पर मैंने उनसे कुछ भी नहीं कहा और उनकी इस हरकत को इग्नोर करके सारा काम देखने लगी। मैंने काफी फ्रेंडली होकर उनसे बात की थी और उनके अच्छे कामों की तारीफ के साथ साथ कुछ कमियों को भी उन्हें बताया था।
वो सभी मेरे नेचर से काफी खुश थे। इस दौरान ऑफिस स्टॉफ ने मेरे लिए लंच भी मंगवा लिया था। मैं उस दिन शाम के 7 बजे तक ऑफिस का सारा काम देखती रही। इसके अलावा मैंने ऑफिस की कैश बुक को भी अच्छी तरह से चैक कर लिया था। जिसमें मुझे कुछ गडबड लग रही थी। जिस कारण मैंने सारे बिलस् को भी क्राश चैक करने के बाद सब कुछ अपनी रिपोर्ट में लिख लिंया था। ऑफिस से फ्री होकर मैं बापिस लॉज में चली गई। मैं काफी थक गई थी इसलिए कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं करीब 9 बजे चैक ऑऊट करके लॉज से निकल गई।
सबसे पहले मैंने पास के ही एक रेस्टोरेंट में हल्का फुल्का डिनर लिया और फिर ऑटो लेकर बस स्टैंड जा पहुँची। मेरी बस रात के 10 बजे की थी, हाँलाकि बस ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी। क्योंकि मैं उसी बस से सुबह इंदौर आई थी। बस के बाहर ही मुझे कंडक्टर मिल गया था। उसने मुझे बताया कि उसने मेरे लिए 5 कस्टमर बुक किए हैं। जो बस से भोपाल जा रहे हैं और एक कस्टमर तो अभी से मेरी सीट पर मेरा इंतजार कर रहा है। जिसके बाद कंडक्टर ने मुझे पैसे देते हुए कहा
कंडक्टर- मैडम पूरे 70 हजार हैं। 5 कस्टमर हैं और दो हम। सच कहूँ मैडम मजा आ गया आज तो आपके साथ। हमने इतनी सुंदर लड़की के साथ पहले कभी नहीं किया था और अभी तो आप और भी ज्यादा मस्त लग रही हो। बिल्कुल किसी हीरोईन की तरह।
कंडक्टर की बात सुनकर मैं थोडा हैरान होते हुए बोली
निशा- सुबह तो तुम्हारे पास पूरे पैसे नहीं थे। तो फिर अब कहाँ से इतने पैसे आ गए
मेरी बात सुनकर कंडक्टर बगलें झांकने लगा तो मैं बोली
निशा- सच सच बताओ…. मुझे झूठ बोलने बाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बैसे भी मैं इस महिने मैं 4-5 बार भोपाल से इंदौर आने बाली हूँ। अगर तुम झूठ बोलोगे तो मैं अगली बार किसी दूसरी बस से आऊंगी।
मेरी बात सुनकर वो कंडक्टर तुरंत बोला
कंडक्टर- अरे नहीं नहीं मैं बताता हूँ ना। असल में मैंने 10 हजार की जगह 15 हजार रुपये में बुकिंग की है तुम्हारी। तो तुम्हारे रेट के हिसाब से पैसे देने के बाद हमने अपने भी पैसे दे दिए, बो भी पूरे। बाकि 5 हजार बचे हैं बो भी आपको बापिस कर देंगे।
उस कंडक्टर की बात सुनकर मैं मुस्कुराते हुए बोली
निशा- नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि तुमने कितने पैसों में बुकिंग की है। मेरी बात जितने में तुमसे हुई है। मैं केबल उतने ही पैसे लूँगी। पर कई बार ज्यादा पैसे के बाद कस्टमर अलग अलग प्रकार की डिमांड भी करने लगते है। इसलिए तुम उनसे जितने पैसे लो, वो मुझे पहले ही बता दिया करो। ताकि मैं पहले से ही तैयार रहूँ।
मेरी बात सुनकर कंडक्टर खुश होते हुए बोला
कंडक्टर- हाँ हाँ मैं समझ गया। तो क्या वो 5 हजार रूपये अब तुम्हें नहीं चाहिए
निशा- नहीं वो तुम रखो। समझ लेना कि मेरा बस का किराया है।
इतना बोलकर मैंने उस कंडक्टर का मोबाईल नम्बर उससे लिया और फिर अपना नम्बर उसे बताकर मैं बस में चड गई। जब मैं अपनी केबिन में पहुँची तो वहाँ एक 50-55 साल का बूडा आदमी मेरा ही इंतजार कर रहा था। उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि इतनी कम उम्र की जवान और खूबसूरत लड़की आज उसे चोदने के लिए मिलेगी। उसकी हालत देखकर मैं मुस्कुराई और केबिन के अंदर जाकर मैंने केबिन का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जिसके बाद मैंने अपने बैग से कंबल निकला कर बैग को एक साईड कोने में ऱखा और अपने सारे कपडे उतार दिए और कंबल ओड कर लेट गई। फिर मैं उस बुड्डे से बोली
निशा- कुछ करना भी है या केवल देखना है
मेरी बात सुनकर वो आदमी जैसे होश में आया। अभी बस चलने में काफी देर थी। इसलिए उसे कोई जल्दी नहीं थी। लेकिन मेरे बोलने पर वो थोडा जोश में आ गया था, इसलिए उसने भी जल्दी से अपने कपडे उतार दिए और मेरे साथ कंबल के अंदर आकर मेरे मजे लेने लगा। मैं चुपचाप लेटी उसे अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। जब मुझे लगा कि यह आदमी कुछ ज्यादा ही समय ले रहा है। तो मैं कंबल के अंदर से ही नीचे की तरफ खिसक गई और उसका लण्ड मूँह में लेकर चूसने लगी।
उस बुड्डे को मेरी इस हरकत की उम्मीद नहीं थी। जिस कारण वो ज्यादा देर बरदास्त नहीं कर पाया और उसने मेरे मूँह के अंदर ही अपना पानी छोड दिया। जिसे मैं सारा निगल गई और चाट कर उसका लण्ड साफ कर दिया। जिसके बाद मैं बापिस अपनी जगह पर आते हुए बोली
निशा- क्या अंकल तुम तो बडी जल्दी ठण्डे पड गए
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा थोडा झेंपते हुए बोला
बुड्डा- वो वो मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम यह सब करोगी। बैसे भी किसी ने पहली बार मेरा अपने मूँह में लेकर चूसा है, तो मैं कुछ ज्यादा ही एक्साईटेड हो गया था। अब दूसरे राउण्ड में देखना तुम, मैं क्या कमाल दिखाता हूँ।
उस बुड्डे की बात सुनकर मैं हंसते हुए बोली
निशा- सॉरी अंकल दूसरे राऊंड का मौका अब नहीं मिलेगा आपको। मेरे दूसरे कस्टमर भी आने बाले होंगे। बैसे भी आपने केबल एक ही राऊंड का पेमेंट किया है।
मेरी बात सुनकर वो बुड्ढा बोला
बुड्डा- अभी बस चलने में काफी देर है। बैसे भी पूरी रात पडी है बाकी कस्टमर के लिए। मैं तो इंदौर निकलते ही बस से उतर जाऊंगा। रही बात पैसों की दो मैं दे रहा हूँ ना दूसरे राऊँड का पैसा।
इतना बोलकर उस बुड्डे ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर मुझे दे दिए। जिन्हें मैंने बिना गिने चुपचाप अपने पर्स में रख लिया और बोली
निशा- पर अंकल अभी तो आपको फिर से तैयार होने में समय लगेगा
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा बोला
बुड्डा- तुम उसकी फिक्र मत करो। मुझे दुसरे राऊंड के लिए तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। बैसे भी वियग्रा खाकर आया हूँ। तो बस 5-10 मिनट में मैं फिर से तैयार हो जाऊँगा।
इतना बोलकर वो बुड्डा फिर से मेरे शरीर से छेडछाड करने लगा, और जैसा उसने कहा था बो सच में ही 5-10 मिनट में फिर से पूरी तरह से तैयार था। इस बार मैंने उसे मनमानी करने की पूरी छूट दे दी थी। जिस कारण जैसे ही बो तैयार हुआ तो मेरे ऊपर चड कर मेरी चुदाई शुरू कर दी। मैं चुपचाप आँखें बंद किये हुए उसका पूरा साथ दे रही थी। इस दौरान बस में बाकी सबारियाँ भी चड गई थी और बस स्टार्ट होकर भोपाल हाईवे की तरफ चल पडी थी। वो बुड्डा बाकई में खिलाडी था। क्योंकि वो काफी देर से मेरी चुदाई कर रहा था। पर इस बार उसने अभी तक अपना पानी नहीं छोडा था।
जब मैंने ध्यान दिया तो समझ में आया कि जैसे ही उस बुड्डे का पानी निकलने बाला होता है, वो कुछ देर के लिए रुक जाता है और चूमने और सहलाने के कुछ देर बाद वो दोबारा चुदाई शुरू कर देता है। जिस कारण उसकी टाईमिंग काफी ज्यादा लम्बी हो गई थी। मैं उस बुड्डे की इस टैक्निक से काफी इम्प्रैस थी और दिल्ली जाकर अपने पति अमन पर भी इस टैक्निक को आजमाने का मन ही मन फैसला कर चुकी थी। लेकिन इस बार वो अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर पाया और आखिरकार अपना सारा पानी मेरी चूत में छोड दिया। कुछ देर मेरे ऊपर यूँ पडे रहने के बाद बो मुझसे अलग हुआ और अपने कपडे पहनकर केबिन से बाहर निकल गया।
उस बुड्डे के जाने के कुछ देर बाद ही। एक दूसरा आदमी मेरे केबिन के अंदर आ गया। इस दूसरे आदमी ने ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए सीधे अपने कपडे उतारे और कुछ देर मुझे चूमने और सहलाने के बाद ही मेरी चुदाई शुरू कर दी। इसी तरह एक एक करके सभी लोग मुझे चोद चुके थे। अभी भोपाल आने में समय था। इसलिए उनमें से एक आदमी दूसरे राऊँड के लिए दोबारा मेरे पास आ गया, तो मैंने उससे भी दूसरे राऊँड के अलग से पैसे ले लिए। जिसके बाद उस आदमी ने दूसरे राऊँड में मेरी गाँड मारी।
जब तक बो दूसरे राऊँड में ठण्डा हुआ। तब तक हमारी बस भोपाल पहुँच चुकी थी। जिसके बाद भोपाल बस स्टैंड पर बस खाली होने के बाद कंडक्टर और ड्रायबर ने भी इस बार मेरी जम कर गाँड मारी। उन दोनों को खुश करने के बाद मैंने अपने कपडे पहने और बस से उतर कर ऑटो लेकर अपने होटल जा पहुँची। सुबह के करीब 3 बज रहे थे। इसलिए अपने रूम में पहुँचकर मैंने कपडे चेंज किए और पेन किलर खाकर सो गई।
अगले दिन से पूरा एक हफ्ता मैंने अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने और मस्ती करने में बिता दिऐ थे। भोपाल में अपने से 4-5 साल छोटे नये बने दोस्तों के साथ मैंने बहुत मस्ती की थी। इस दौरान मेरे और रवि के बीच भी सब कुछ नॉर्मल हो गया था। क्योंकि आखिरकार मुझे भी रवि पर दया आ गई थी। मेरे और रवि के बीच सब कुछ नॉर्मल होने के बाद भी मैंने अब तक उसे अपने साथ फिजीकल नहीं हो दिया था। पता नहीं क्यों पर जब से मैंने उसके पिता के साथ रात बिताई थी। उस दिन के बाद से मुझे रवि के साथ सेक्स करना ठीक नहीं लग रहा था।
इसलिए इस पूरे हफ्ते तक मैं सारा दिन दोस्तों के साथ मस्ती करती और रात को या तो असमल के बताए कस्टमर के पास जाती या फिर रघु की बाहों में अपनी रात रंगीन करती। मुझे अपनी यह लाईफ काफी अच्छी लग रही थी। मन कर रहा था कि सारी जिंदगी यूँ ही गुजार दूँ। इन कुछ दिनों में मेरे पास करीब 22 लाख और रूपये इकट्ठे हो गए थे। जिन्हें आज ही मैं अपने नये बैंक अकॉऊंट में जमा करके अपने दोस्तों के पास मस्ती करने चली गई थी।
शाम करीब 7 बजे जब मैं अपने होटल बापिस आई तभी मेरे पास हरीश अंकल का कॉल आया। उन्होंने बताया कि गगन के पिता जेल से भाग गए हैं और उनके समान में मेरा फोटो मिला है। हरीश अंकल की यह बात सुनकर तो मेरी बुरी तरह से फट गई थी। मुझे लगा कि पक्का अब मैं किसी नई मुसीबत में पडने बाली हूँ। इसलिए मैंने तय किया कि कल ही मैं यहाँ से दिल्ली बापिस निकल जाऊँगी। बैसे भी मेरे सारे काम अब खत्म हो चुके थे। रही बात मौज मस्ती की तो वो तो मैं दिल्ली में भी कर सकती थी।
हरीश अंकल का फोन कट होने के बाद मैं इस बारे में अभी सोच ही रही थी कि तभी मेरे पास एक अंजान नम्बर से कॉल आया। जब मैंने कॉल रिसीव की तो दूसरी तरफ से एक अनजान आदमी ने मुझे एक जरूरी इनफोर्मेशन देने के लिए पास के ही एक पार्क में बुलाया। मुझे लगा कि पार्क में इस समय काफी लोग होंगे, इसलिए अगर वो कोई गलत आदमी भी हुआ तो कम से कम इतने सारे लोगों के बीच मुझे कुछ नहीं करेगा। यही सब सोचकर मैंने उस आदमी से मिलने का फैसला कर लिया। इसलिए मैं जल्दी से अपने रूम की तरफ जाने लगी। ताकि अपना सामान वहाँ रखकर पार्क में उस अनजान आदमी से मिलने जा सकूँ।
Update 036 -
मैं अपने रूम की तरफ जा ही रही थी कि तभी रास्ते में मुझे रघु मिल गया। तो मैं अपना सारा सामान और हैण्ड बैग उसे देकर बोली
निशा- यह मेरा सामना अपने पास रखो। मैं बापिस आकर तुमसे ले लूगी।
अब मेरे पास केवल मेरा मोबाईल और करीब 2 हजार रूपये कैश रह गए थे। जो मैंने अपनी जींस की पॉकेट में रखे हुए थे। मेरा पर्सनल मोबाईल और बाकी का सारा सामन मेरे हैंड बैग में था। जो मैंने रघू को दे दिया था। अपना सामान रघु को देने के बाद मैं होटल से बाहर निकल गई और पैदल ही उस पार्क की तरफ बड गई। करीब 10 मिनट बाद ही मैं उस पार्क के अंदर थी। इस वक्त पार्क पूरी तरह से खाली था। जिसे देखकर मेरी बुरी तरह फट गई थी।
मैं वहां से बापिस जाने ही बाली थी कि तभी अचानक से एक आदमी मेरे पीछे आया और उसने मेरे मूँह पर कपड़ा रख दिया। उस कपडे में से एक अजीब सी महक आ रही थी। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा जिसके बाद मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैं किसी खण्डहर में बंधी हुई जमीन पर पडी थी। मुझे आस पास कुछ लोगों की आवाजें आ रहीं थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली तो देखा वहाँ करीब 10-15 आदमी खडे हुए थे।
जिनमें से 3 लोगों को मैं तुरंत पहचान गई। उनमें से एक एम.पी. गवर्मेंट में मिनिस्टर प्रकाश राज था, दूसरा आदमी भोपाल के ए.पी. महेश वर्मा और तीसरा आदमी भोपाल का एक बड़ा बिजनेश मैन धनराज था। इन सभी के फोटो मैंने न्यूज पेपर में कई बार देखे थे। बाकी के सभी लोग मेरे लिए एकदम अंजान थे। जैसे ही मैं होश में आई तो मैं चीखते हुए बोली
निशा- क् कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यों लाए हो।
मेरे चीखने से उन सभी की नजर मुझपर पडी, तो वे सभी लोग मेरे चारों तरफ खडे हो गए फिर उनमें से एक आदमी हंसते हुए बोला
“अच्छा तो तुम्हें होश आ गया”
इससे पहले बो कुछ और कहता खण्डहर के बाहर से तीन आदमी अंदर आये और बोले
“गनपत भाई इस लड़की के होटल रूम की अच्छी तरह से तलासी ली है। पर कुछ भी नहीं मिला“
गनपत वही आदमी था जो कुछ देर पहले मुझसे बात कर रहा था। उसका नाम सुनकर मैं उसे तुरंत पहचान गई। क्योंकि गगन के पिता का नाम भी गनपत था। इसलिए मुझे यकीन हो गया कि यह गगन के पिता गनपत ही हैं। उस आदमी की बात सुनकर गनपत गुस्से से बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहे हो तुम। अगर माल इसके पास नहीं है तो फिर गया कहाँ
गनपत की बात सुनकर उसके पास में ही खड़ा एक दूसरा आदमी बोला
“अरे शांत हो जाओ गनपत, क्यों परेशान होते हो। ये लड़की है ना हमारे पास। यही बताऐगी कि हमारा माल कहाँ छिपा रखा है इसने“
गनपत- ठीक कहा जफर तूने, ये लडकी है ना… अब यही बताऐगी सब कुछ।
इतना बोलकर गनपत ने एक जोरदार लात मेरी गाँड पर मारी, जिस कारण मुझे तेज दर्द हुआ और मेरे मूँह से चीख निकल गई
निशा- आआआआआआहहहहहह
मेरे चीखने और मेरे दर्द की परवाह किए बिना गनपत गुस्से में बोला
गनपत- बता साली राण्ड….. कहाँ छिपा रखा है मेरा माल
गनपत की बात सुनकर मैं डरते हुए बोली
निशा- म माल….. कौन सा माल
गनपत- बही माल साली…. जो तूने मेरे बेटे गगन के घर से चुराया था
गनपत की बात सुनकर मैं अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- क् कौन गगन…. मैं किसी गगन को नहीं जानती
लेकिन उन लोगों को मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए जफर गुस्से में बोला
जफर- लगता है ये साली बहनचोद ऐसे मूँह नहीं खोलेगी। ऐ एस.पी. जरा दिखा इसे अपनी पुलिस का पॉवर
जफर की बात सुनकर एस.पी. महेश वर्मा मुस्कुराते हुए मेरे पास आए और अपने हाथ में पकडी छडी से एक के बाद एक मेरी गाँड पर मारने लगे। महेश इतनी जोर से मुझे मार रहा था, जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई खौलता हुआ लवा मेरी गांड पर डाल रहा हो। दर्द के कारण मेरी हालत खराब हो गई थी और मेरी आँखों से आँशू भी निकलने लगे थे। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआहहहह बचाओ
मेरी इस हालत पर उन सभी को हंसी आ रही थी। तभी गनपत बोला
गनपत- हाँ हाँ चीख साली बहनचोद जितना चीखना है चीख, तुझे बचाने ले लिए यहाँ कोई नहीं आने बाला। इस वक्त तम भोपाल से बाहर जंगल में बने एक खण्डहर में हो। यहाँ दूर दूर तक तेरी मदद करने के लिए कोई नहीं है।
तभी एक दूसरा आदमी मेरे पास आकर बोला
“वस अब रुक जाओ महेश वर्ना, ये लडकी कुछ बोलने लायक नहीं रहेगी“
उस आदमी की बात सुनकर ए.पी. महेश बोला
महेश- अरे कुछ नहीं होगा जेलर सहाब। ये साली राण्ड है इसे तो इतना दर्द सहने की आदत होगी
तभी मंत्री प्रकाश राज बोले
प्रकाश राज- योगेश सही कह रहा है महेश, रुक जाओ शायद इतनी मार के बाद यब सब सच बताने के लिए मान जाऐ।
मंत्री जी की बात सुनकर महेश तुरंत रुक गया, जिसके बाद गनपत मेरे पास नीचे जमीन पर बैठते हुए बोला
गनपत- अब तुझे याद आया गगन कौन है
मैं दर्द के कारण रोते हुए बोली
निशा- हाँ हाँ याद आया। एक दो बार दोस्तों के साथ मिली हूँ उससे
गनपत- तू उसके घऱ भी गई थी…. है ना
निशा- हाँ। लेकिन अपनी मर्जी से नहीं गई थी। गगन ने मुझे ड्रिंक में कुछ मिलाकर पिला दिया था। जिसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा। जब होश आया तो मैं बिना कपडों के उसके साथ सो रही थी। इसलिए मैंने जल्दी से अपने कपडे पहने और वहाँ से भाग गई।
मेरी बात सुनकर गनपत बोला
गनपत- और साथ मैं मेरा माल लेकर भी भाग गई
मेरी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, मेरा दिल कह रहा था कि उन्हें सब कुछ सच सच बता दूँ। पर मैं जानती थी कि सारा सच जानने के बाद वो लोग पक्का मुझे जान से मार देंगे, इसलिए मैं अपने आप को बचाने के लिए एक बार फिर अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- म माल कैसा माल…. मैं किसी माल के बारे में नहीं जानती
गनपत- झूठ बोल रही है तू। तूने ही मेरे बेटे के घर से बो दो बाक्स चुराए हैं।
निशा- मैं सच कह रही हूँ। मैंने गगन के घर पर कोई बाक्स नहीं देखे हैं
मेरी बात सुनकर गनपत ने एक जोरदार थप्पड मेरे गाल पर मारा, जिस कारण एक बार फिर मेरी चीख निकल गई
आआआआहहहहहह
निशा- मैं सच कह रही हूँ गनपत जी…. मुझे कुछ भी नहीं पता…. प्लीज मुझे जाने दो
गनपत मेरी बात पर ध्यान दिए बिना फिर से बोला
गनपत- कितनी तारीख को गई थी गगन के घर
निशा- त तीन नबम्बर की रात को
मेरी बात सुनकर जफर तुरंत बोला
जफर- उसी दिन तो माल आया था गनपत
जफर की बात सुनने के बाद गनपत गुस्से में मुझे घूरते हुए बोला
गनपत- कितने बजे गई थी उसके साथ
निशा- रात को 8 बजे मैं और गगन एक बियरबॉर में मिले थे। जिसके बाद वो मुझे अपनी कार में ले गया था। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है। पर रात करीब 1 बजे के आस पास मुझे होश आया था। उस वक्त गगन मेरे बगल में ही सो रहा था। मैं बहुत डर गई थी। इसलिए मैं बिना उसे कुझ कहे वहां से भाग गई
मेरी बात सुनकर जफर थोडा चौंकते हुए बोला
जफर- तुम सच कह रही हो ना कि रात को 1 बजे तुम और गगन दोनों ही उसके घर पर थे
जफर की बात सुनकर मैं तुरंत बोली
निशा- हाँ मैं सच कह रही हूँ।
मेरा जबाब सुनकर जफर थोडा परेशान होते हुए बोला
जफर- तो फिर वो कौन था जो हमारा माल लेने आया था।
निशा- मुझे नहीं पता और तुम लोग किस माल की बात कर रहे हो। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
मेरी बात सुनकर धनराज गुस्से से पागल होते हुए बोला
धनराज- हमारा करोडों का सोना और हीरों की बात कर रहे हैं हम। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि हम इस लड़की से इतने प्यार से बात क्यों कर रहे हैं। साली को मारो तब जाकर सच बोलेगी
धनराज की बात सुनकर सभी लोग एक साथ मुझे लातों और डण्डों से मारने लगे। मेरे नाक से और मूँह से खून निकलने लगा था। तभी किसी ने मेरे पेट में एक लात मारी। एक दो दिन में ही मेरे पीरियड शुरू होने बाले थे। लेकिन इतनी पिटाई और दर्द के कारण उसी वक्त मेरे पीरियड शुरू हो गया। जिस कारण मेरी चूत से भी खून रिसने लगा था। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी। पर किसी पर कोई फर्क नहीं पड रहा था और ना ही किसी को मुझ पर दया आ रही थी।
कुछ ही देर तक यूँ ही मार खाते खाते दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई और जब मुझे दोबारा होश आया तो उस खण्डहर के कमरे में मेरे अलावा गनपत, जफर, मंत्री प्रकाश राज, एस.पी. महेश, जेलर योगेश और विजनेश मैन धनराज मौजूद थे। वो आपस में बातें कर रहे थे। दर्द के कारण मेरा बुरा हाल था। पर मैं अपने दर्द को किसी तरह बरदास्त कर चुपचाप उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी। क्योंकि मैं जानती थी कि अगर उन्हें पता चल गया कि मुझे होश आ गया है, तो एक बार फिर वो मुझे टार्चर करना शुरू कर देंगे।
मुझे इस वक्त समय का कोई अंदाजा नहीं था पर उस कमरे से बाहर आती रोशनी से मैंने अंदाजा लगाया की शायद दोपहर होने बाली है। इसका मतलब था कि मैं सारी से रात वहाँ बेहोश पडी हुई थी। तभी एस.पी. महेश बोला
महेश- लगता है यह लड़की सच में कुछ नहीं जानती। बर्ना इतनी मार खाने के बाद तो मुर्दे भी बोलने लगते हैं।
जफर- तो फिर हमारा माल आखिर गया कहाँ
प्रकाश राज- शायद हमारा कोई दुशमन ले गया हो
गनपत- इस शहर में हमारा ऐसा कौन सा दुशमन पैदा हो गया जो हमारे माल को उठाने की हिम्मत कर सके
योगेश- क्या पता तुम्हारा ही कोई आदमी हो, बैसे भी माल कब और कहाँ आने बाला है यह बात केवल जफर और तेरा बेटा गगन जानता था
जेलर योगेश की बात सुनकर गनपत गुस्से से चीखता हुआ बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहा है जेलर। तेरा मतलब है कि मैं और जफर तुम लोगों से झूठ बोल रहे हैं और हमने ही अपना माल कहीं गायव करवा दिया
प्रकाश राज- अरे गनपत योगेश का कहने का मतलब वो नहीं है। वो तो बस इतना बोल रहा है कि तुम्हारी गैंग में कोई गद्दार भी तो हो सकता है।
गनपत- मेरे सारे आदमी सालों से मेरे बफादार हैं। वो मेरे साथ धोखा नहीं कर सकते
प्रकाश राज- पैसा अच्छे अच्छों का ईमान खराब कर सकता है। बैसे भी तुम इतने सालों से जेल में हो और तेरा बेटा भी तेरी ही तरह अय्याशी में लगा रहता था। क्या पता गैंग के किसी आदमी को नशे की हालत में सब बक दिया हो।
मंत्री प्रकाश राज की बात सुनकर गनपत खामोश रहा। शायद उसे भी मंत्री की बात सही लग रही थी। तभी जफऱ बोला
जफर- अगर हमारे ही किसी आदमी ने गद्दारी की है तो फिर उसका जिंदा रहना हमारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि कोई नहीं जानता की हम सब पाटनर्स हैं। मेरे और गनपत के अलाबा बाकी किसी का कोई भी क्रिमनल रिकार्ड भी नहीं है। महेश और योगेश तो पहले से ही पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं। अगर उस गद्दार ने हमारा राज खोल दिया तो फिर सब खत्म समझो
गनपत- शायद तुम सही कह रहे हो। अगर कोई गद्दार है तो हम उसका पता लगा ही लेंगे।
धनराज- हाँ हाँ ठीक है पता करते रहना। पहले यह बताओ कि हमारा बाकी माल कहाँ है। कहीं इस माल की तरह वो भी तो किसी गद्दार के हाथ ना लग गया हो। अगर उसके बारे में किसी को पता चल गया, तो फिर हम सबकी हालत भिखारियों जैसी हो जाऐगी।
धनराज की बात सुनकर गनपत उसे समझाते हुए बोला
गनपत- तुम उसकी चिंता मत करो। हमारा बाकी का सारा माल पूरी तरह से सुरक्षित है।
धनराज- पर वो आखिर है कहाँ
गनपत- वो मैं किसी को नहीं बता सकता। अब मुझे किसी पर भी यकीन नहीं है। बस इतना समझ लो कि बो मेरी नजरों के सामने ही है।
योगेश- देखो गनपत अब हम लोग और लफडे में नहीं पडना चाहते। बैसे भी तुम्हारे जेल से भागने के कारण मुझ पर भी इन्क्वारी चल रही है।
गनपत- जेलर यह तेरी प्राब्लम है। बैसे भी मुझे जेल से भगाकर तूने कोई एहसान नहीं किया है। तू और एस.पी. केवल इसीलिए हमारे पार्टनर है, ताकि पुलिस बगैरह के लफडे से हमें बचा सकें और अगर हम में से कोई पकडा जाऐ तो जेल में हमारा पूरा ध्यान रखा जाऐ। बैसे भी वो सारा माल हमने इकट्ठा किया था।
गनपत की बात सुनकर जेलर योगेश गुस्से से बिफरता हुआ बोला
योगेश- तुम कहना क्या चाहते हो… तुम्हारा मतलब है कि उस माल में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।
योगेश की बात सुनकर जफर उसे समझाते हुए बोला
जफर- गनपत का ऐसा कोई मतलब नहीं है
योगेश- तो फिर हमारा हिस्सा हमें दे दो। हम अब और यह सब नहीं कर सकते
गनपत- ओह तो अब तुम्हें अपना हिस्सा याद आने लगा, जेलर मैं तेरा और एस.पी. का प्लान अच्छी तरह समझ रहा हूँ। तुम लोग अपना हिस्सा लेकर मेरा इन्काऊंटर करवाना चाहते हो। पर मैं तुम्हारा प्लान कभी कामयाब नहीं होने दूँगा। अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम सबका हिस्सा भी मेरे साथ हमेशा हमेशा के लिए चला जाऐगा। इसलिए अपना हिस्सा माँगने की जगह मुझे इस देश से बाहर निकालने के बारे में सोचो
प्रकाश राज- अरे यार तुम लोग आपस में झगड क्यों रहे हो और गनपत मैं गारंटी लेता हूँ कि कोई तुम्हारा इन्काऊंटर नहीं करेगा।
गनपत- मैं कुछ नहीं जानता। अगर अपना अपना हिस्सा चाहिए तो पहले मेरा विदेश जाने का इंतजाम करो। उसके बाद ही मैं सबको उनका हिस्सा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला
जफर- गनपत सही कह रहा है। अब हम दोनों को तुम लोगों पर कोई भरोसा नहीं है। बैसे भी दुनिया की नजर में हम दोनों की क्रिमनल हैं। अगर हमें कुछ हो गया तो किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा, उल्टा तुम लोगों को इनाम मिलेगा। इसलिए पहले हमारे विदेश जाने के लिए नये नाम और पहचान के साथ बीजा और पासपोर्ट की जुगाड करो। विदेश में सेटल होने के 1 साल बाद हम फिर से इक्ट्ठे होंगे। तब हम सारा माल आपस में बांटकर अपने अपने रास्ते अलग कर लेंगे।
धनराज- हम तुम पर कैसे यकीन कर लें कि विदेश जाने के बाद तुम हमें हमारा हिस्सा दे दोगे
गनपत- बेबकूफ आदमी, माल तो यहीं भोपाल मैं है ना। उसे लेने तो हमें यहाँ आना ही पडेगा। बैसे भी इतना सारा सोना और हीरे हम अपने साथ नहीं ले जा सकते। हमारा जो माल गायब हुआ है, वो तो बस 20 पससेंट है। वाकि का 80 परसेंट माल अब भी हमारे पास सुरक्षित है। बैसे भी तब तक हम अपने बीच छिपे उस गद्दार का पता भी लगा लेंगे।
प्रकाश राज- मुझे लगता है कि जफर और गनपत ठीक कह रहे हैं। धनराज तुम इनके नये नाम और पहचान के लिए डॉक्यूमेंट तैयार करवा दो। मैं इनके बीजा और पासपोर्ट का काम देख लूँगा। रहा यहाँ से सुरक्षित जाने और बापिस आने का मामला तो वो महेश और येगेश देख लेंगे।
मंत्री जी की बात सुनकर वहाँ कुछ देर के लिए खामोशी छा गई।
मैं अपने रूम की तरफ जा ही रही थी कि तभी रास्ते में मुझे रघु मिल गया। तो मैं अपना सारा सामान और हैण्ड बैग उसे देकर बोली
निशा- यह मेरा सामना अपने पास रखो। मैं बापिस आकर तुमसे ले लूगी।
अब मेरे पास केवल मेरा मोबाईल और करीब 2 हजार रूपये कैश रह गए थे। जो मैंने अपनी जींस की पॉकेट में रखे हुए थे। मेरा पर्सनल मोबाईल और बाकी का सारा सामन मेरे हैंड बैग में था। जो मैंने रघू को दे दिया था। अपना सामान रघु को देने के बाद मैं होटल से बाहर निकल गई और पैदल ही उस पार्क की तरफ बड गई। करीब 10 मिनट बाद ही मैं उस पार्क के अंदर थी। इस वक्त पार्क पूरी तरह से खाली था। जिसे देखकर मेरी बुरी तरह फट गई थी।
मैं वहां से बापिस जाने ही बाली थी कि तभी अचानक से एक आदमी मेरे पीछे आया और उसने मेरे मूँह पर कपड़ा रख दिया। उस कपडे में से एक अजीब सी महक आ रही थी। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा जिसके बाद मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैं किसी खण्डहर में बंधी हुई जमीन पर पडी थी। मुझे आस पास कुछ लोगों की आवाजें आ रहीं थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली तो देखा वहाँ करीब 10-15 आदमी खडे हुए थे।
जिनमें से 3 लोगों को मैं तुरंत पहचान गई। उनमें से एक एम.पी. गवर्मेंट में मिनिस्टर प्रकाश राज था, दूसरा आदमी भोपाल के ए.पी. महेश वर्मा और तीसरा आदमी भोपाल का एक बड़ा बिजनेश मैन धनराज था। इन सभी के फोटो मैंने न्यूज पेपर में कई बार देखे थे। बाकी के सभी लोग मेरे लिए एकदम अंजान थे। जैसे ही मैं होश में आई तो मैं चीखते हुए बोली
निशा- क् कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यों लाए हो।
मेरे चीखने से उन सभी की नजर मुझपर पडी, तो वे सभी लोग मेरे चारों तरफ खडे हो गए फिर उनमें से एक आदमी हंसते हुए बोला
“अच्छा तो तुम्हें होश आ गया”
इससे पहले बो कुछ और कहता खण्डहर के बाहर से तीन आदमी अंदर आये और बोले
“गनपत भाई इस लड़की के होटल रूम की अच्छी तरह से तलासी ली है। पर कुछ भी नहीं मिला“
गनपत वही आदमी था जो कुछ देर पहले मुझसे बात कर रहा था। उसका नाम सुनकर मैं उसे तुरंत पहचान गई। क्योंकि गगन के पिता का नाम भी गनपत था। इसलिए मुझे यकीन हो गया कि यह गगन के पिता गनपत ही हैं। उस आदमी की बात सुनकर गनपत गुस्से से बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहे हो तुम। अगर माल इसके पास नहीं है तो फिर गया कहाँ
गनपत की बात सुनकर उसके पास में ही खड़ा एक दूसरा आदमी बोला
“अरे शांत हो जाओ गनपत, क्यों परेशान होते हो। ये लड़की है ना हमारे पास। यही बताऐगी कि हमारा माल कहाँ छिपा रखा है इसने“
गनपत- ठीक कहा जफर तूने, ये लडकी है ना… अब यही बताऐगी सब कुछ।
इतना बोलकर गनपत ने एक जोरदार लात मेरी गाँड पर मारी, जिस कारण मुझे तेज दर्द हुआ और मेरे मूँह से चीख निकल गई
निशा- आआआआआआहहहहहह
मेरे चीखने और मेरे दर्द की परवाह किए बिना गनपत गुस्से में बोला
गनपत- बता साली राण्ड….. कहाँ छिपा रखा है मेरा माल
गनपत की बात सुनकर मैं डरते हुए बोली
निशा- म माल….. कौन सा माल
गनपत- बही माल साली…. जो तूने मेरे बेटे गगन के घर से चुराया था
गनपत की बात सुनकर मैं अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- क् कौन गगन…. मैं किसी गगन को नहीं जानती
लेकिन उन लोगों को मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए जफर गुस्से में बोला
जफर- लगता है ये साली बहनचोद ऐसे मूँह नहीं खोलेगी। ऐ एस.पी. जरा दिखा इसे अपनी पुलिस का पॉवर
जफर की बात सुनकर एस.पी. महेश वर्मा मुस्कुराते हुए मेरे पास आए और अपने हाथ में पकडी छडी से एक के बाद एक मेरी गाँड पर मारने लगे। महेश इतनी जोर से मुझे मार रहा था, जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई खौलता हुआ लवा मेरी गांड पर डाल रहा हो। दर्द के कारण मेरी हालत खराब हो गई थी और मेरी आँखों से आँशू भी निकलने लगे थे। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआहहहह बचाओ
मेरी इस हालत पर उन सभी को हंसी आ रही थी। तभी गनपत बोला
गनपत- हाँ हाँ चीख साली बहनचोद जितना चीखना है चीख, तुझे बचाने ले लिए यहाँ कोई नहीं आने बाला। इस वक्त तम भोपाल से बाहर जंगल में बने एक खण्डहर में हो। यहाँ दूर दूर तक तेरी मदद करने के लिए कोई नहीं है।
तभी एक दूसरा आदमी मेरे पास आकर बोला
“वस अब रुक जाओ महेश वर्ना, ये लडकी कुछ बोलने लायक नहीं रहेगी“
उस आदमी की बात सुनकर ए.पी. महेश बोला
महेश- अरे कुछ नहीं होगा जेलर सहाब। ये साली राण्ड है इसे तो इतना दर्द सहने की आदत होगी
तभी मंत्री प्रकाश राज बोले
प्रकाश राज- योगेश सही कह रहा है महेश, रुक जाओ शायद इतनी मार के बाद यब सब सच बताने के लिए मान जाऐ।
मंत्री जी की बात सुनकर महेश तुरंत रुक गया, जिसके बाद गनपत मेरे पास नीचे जमीन पर बैठते हुए बोला
गनपत- अब तुझे याद आया गगन कौन है
मैं दर्द के कारण रोते हुए बोली
निशा- हाँ हाँ याद आया। एक दो बार दोस्तों के साथ मिली हूँ उससे
गनपत- तू उसके घऱ भी गई थी…. है ना
निशा- हाँ। लेकिन अपनी मर्जी से नहीं गई थी। गगन ने मुझे ड्रिंक में कुछ मिलाकर पिला दिया था। जिसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा। जब होश आया तो मैं बिना कपडों के उसके साथ सो रही थी। इसलिए मैंने जल्दी से अपने कपडे पहने और वहाँ से भाग गई।
मेरी बात सुनकर गनपत बोला
गनपत- और साथ मैं मेरा माल लेकर भी भाग गई
मेरी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, मेरा दिल कह रहा था कि उन्हें सब कुछ सच सच बता दूँ। पर मैं जानती थी कि सारा सच जानने के बाद वो लोग पक्का मुझे जान से मार देंगे, इसलिए मैं अपने आप को बचाने के लिए एक बार फिर अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- म माल कैसा माल…. मैं किसी माल के बारे में नहीं जानती
गनपत- झूठ बोल रही है तू। तूने ही मेरे बेटे के घर से बो दो बाक्स चुराए हैं।
निशा- मैं सच कह रही हूँ। मैंने गगन के घर पर कोई बाक्स नहीं देखे हैं
मेरी बात सुनकर गनपत ने एक जोरदार थप्पड मेरे गाल पर मारा, जिस कारण एक बार फिर मेरी चीख निकल गई
आआआआहहहहहह
निशा- मैं सच कह रही हूँ गनपत जी…. मुझे कुछ भी नहीं पता…. प्लीज मुझे जाने दो
गनपत मेरी बात पर ध्यान दिए बिना फिर से बोला
गनपत- कितनी तारीख को गई थी गगन के घर
निशा- त तीन नबम्बर की रात को
मेरी बात सुनकर जफर तुरंत बोला
जफर- उसी दिन तो माल आया था गनपत
जफर की बात सुनने के बाद गनपत गुस्से में मुझे घूरते हुए बोला
गनपत- कितने बजे गई थी उसके साथ
निशा- रात को 8 बजे मैं और गगन एक बियरबॉर में मिले थे। जिसके बाद वो मुझे अपनी कार में ले गया था। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है। पर रात करीब 1 बजे के आस पास मुझे होश आया था। उस वक्त गगन मेरे बगल में ही सो रहा था। मैं बहुत डर गई थी। इसलिए मैं बिना उसे कुझ कहे वहां से भाग गई
मेरी बात सुनकर जफर थोडा चौंकते हुए बोला
जफर- तुम सच कह रही हो ना कि रात को 1 बजे तुम और गगन दोनों ही उसके घर पर थे
जफर की बात सुनकर मैं तुरंत बोली
निशा- हाँ मैं सच कह रही हूँ।
मेरा जबाब सुनकर जफर थोडा परेशान होते हुए बोला
जफर- तो फिर वो कौन था जो हमारा माल लेने आया था।
निशा- मुझे नहीं पता और तुम लोग किस माल की बात कर रहे हो। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
मेरी बात सुनकर धनराज गुस्से से पागल होते हुए बोला
धनराज- हमारा करोडों का सोना और हीरों की बात कर रहे हैं हम। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि हम इस लड़की से इतने प्यार से बात क्यों कर रहे हैं। साली को मारो तब जाकर सच बोलेगी
धनराज की बात सुनकर सभी लोग एक साथ मुझे लातों और डण्डों से मारने लगे। मेरे नाक से और मूँह से खून निकलने लगा था। तभी किसी ने मेरे पेट में एक लात मारी। एक दो दिन में ही मेरे पीरियड शुरू होने बाले थे। लेकिन इतनी पिटाई और दर्द के कारण उसी वक्त मेरे पीरियड शुरू हो गया। जिस कारण मेरी चूत से भी खून रिसने लगा था। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी। पर किसी पर कोई फर्क नहीं पड रहा था और ना ही किसी को मुझ पर दया आ रही थी।
कुछ ही देर तक यूँ ही मार खाते खाते दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई और जब मुझे दोबारा होश आया तो उस खण्डहर के कमरे में मेरे अलावा गनपत, जफर, मंत्री प्रकाश राज, एस.पी. महेश, जेलर योगेश और विजनेश मैन धनराज मौजूद थे। वो आपस में बातें कर रहे थे। दर्द के कारण मेरा बुरा हाल था। पर मैं अपने दर्द को किसी तरह बरदास्त कर चुपचाप उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी। क्योंकि मैं जानती थी कि अगर उन्हें पता चल गया कि मुझे होश आ गया है, तो एक बार फिर वो मुझे टार्चर करना शुरू कर देंगे।
मुझे इस वक्त समय का कोई अंदाजा नहीं था पर उस कमरे से बाहर आती रोशनी से मैंने अंदाजा लगाया की शायद दोपहर होने बाली है। इसका मतलब था कि मैं सारी से रात वहाँ बेहोश पडी हुई थी। तभी एस.पी. महेश बोला
महेश- लगता है यह लड़की सच में कुछ नहीं जानती। बर्ना इतनी मार खाने के बाद तो मुर्दे भी बोलने लगते हैं।
जफर- तो फिर हमारा माल आखिर गया कहाँ
प्रकाश राज- शायद हमारा कोई दुशमन ले गया हो
गनपत- इस शहर में हमारा ऐसा कौन सा दुशमन पैदा हो गया जो हमारे माल को उठाने की हिम्मत कर सके
योगेश- क्या पता तुम्हारा ही कोई आदमी हो, बैसे भी माल कब और कहाँ आने बाला है यह बात केवल जफर और तेरा बेटा गगन जानता था
जेलर योगेश की बात सुनकर गनपत गुस्से से चीखता हुआ बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहा है जेलर। तेरा मतलब है कि मैं और जफर तुम लोगों से झूठ बोल रहे हैं और हमने ही अपना माल कहीं गायव करवा दिया
प्रकाश राज- अरे गनपत योगेश का कहने का मतलब वो नहीं है। वो तो बस इतना बोल रहा है कि तुम्हारी गैंग में कोई गद्दार भी तो हो सकता है।
गनपत- मेरे सारे आदमी सालों से मेरे बफादार हैं। वो मेरे साथ धोखा नहीं कर सकते
प्रकाश राज- पैसा अच्छे अच्छों का ईमान खराब कर सकता है। बैसे भी तुम इतने सालों से जेल में हो और तेरा बेटा भी तेरी ही तरह अय्याशी में लगा रहता था। क्या पता गैंग के किसी आदमी को नशे की हालत में सब बक दिया हो।
मंत्री प्रकाश राज की बात सुनकर गनपत खामोश रहा। शायद उसे भी मंत्री की बात सही लग रही थी। तभी जफऱ बोला
जफर- अगर हमारे ही किसी आदमी ने गद्दारी की है तो फिर उसका जिंदा रहना हमारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि कोई नहीं जानता की हम सब पाटनर्स हैं। मेरे और गनपत के अलाबा बाकी किसी का कोई भी क्रिमनल रिकार्ड भी नहीं है। महेश और योगेश तो पहले से ही पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं। अगर उस गद्दार ने हमारा राज खोल दिया तो फिर सब खत्म समझो
गनपत- शायद तुम सही कह रहे हो। अगर कोई गद्दार है तो हम उसका पता लगा ही लेंगे।
धनराज- हाँ हाँ ठीक है पता करते रहना। पहले यह बताओ कि हमारा बाकी माल कहाँ है। कहीं इस माल की तरह वो भी तो किसी गद्दार के हाथ ना लग गया हो। अगर उसके बारे में किसी को पता चल गया, तो फिर हम सबकी हालत भिखारियों जैसी हो जाऐगी।
धनराज की बात सुनकर गनपत उसे समझाते हुए बोला
गनपत- तुम उसकी चिंता मत करो। हमारा बाकी का सारा माल पूरी तरह से सुरक्षित है।
धनराज- पर वो आखिर है कहाँ
गनपत- वो मैं किसी को नहीं बता सकता। अब मुझे किसी पर भी यकीन नहीं है। बस इतना समझ लो कि बो मेरी नजरों के सामने ही है।
योगेश- देखो गनपत अब हम लोग और लफडे में नहीं पडना चाहते। बैसे भी तुम्हारे जेल से भागने के कारण मुझ पर भी इन्क्वारी चल रही है।
गनपत- जेलर यह तेरी प्राब्लम है। बैसे भी मुझे जेल से भगाकर तूने कोई एहसान नहीं किया है। तू और एस.पी. केवल इसीलिए हमारे पार्टनर है, ताकि पुलिस बगैरह के लफडे से हमें बचा सकें और अगर हम में से कोई पकडा जाऐ तो जेल में हमारा पूरा ध्यान रखा जाऐ। बैसे भी वो सारा माल हमने इकट्ठा किया था।
गनपत की बात सुनकर जेलर योगेश गुस्से से बिफरता हुआ बोला
योगेश- तुम कहना क्या चाहते हो… तुम्हारा मतलब है कि उस माल में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।
योगेश की बात सुनकर जफर उसे समझाते हुए बोला
जफर- गनपत का ऐसा कोई मतलब नहीं है
योगेश- तो फिर हमारा हिस्सा हमें दे दो। हम अब और यह सब नहीं कर सकते
गनपत- ओह तो अब तुम्हें अपना हिस्सा याद आने लगा, जेलर मैं तेरा और एस.पी. का प्लान अच्छी तरह समझ रहा हूँ। तुम लोग अपना हिस्सा लेकर मेरा इन्काऊंटर करवाना चाहते हो। पर मैं तुम्हारा प्लान कभी कामयाब नहीं होने दूँगा। अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम सबका हिस्सा भी मेरे साथ हमेशा हमेशा के लिए चला जाऐगा। इसलिए अपना हिस्सा माँगने की जगह मुझे इस देश से बाहर निकालने के बारे में सोचो
प्रकाश राज- अरे यार तुम लोग आपस में झगड क्यों रहे हो और गनपत मैं गारंटी लेता हूँ कि कोई तुम्हारा इन्काऊंटर नहीं करेगा।
गनपत- मैं कुछ नहीं जानता। अगर अपना अपना हिस्सा चाहिए तो पहले मेरा विदेश जाने का इंतजाम करो। उसके बाद ही मैं सबको उनका हिस्सा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला
जफर- गनपत सही कह रहा है। अब हम दोनों को तुम लोगों पर कोई भरोसा नहीं है। बैसे भी दुनिया की नजर में हम दोनों की क्रिमनल हैं। अगर हमें कुछ हो गया तो किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा, उल्टा तुम लोगों को इनाम मिलेगा। इसलिए पहले हमारे विदेश जाने के लिए नये नाम और पहचान के साथ बीजा और पासपोर्ट की जुगाड करो। विदेश में सेटल होने के 1 साल बाद हम फिर से इक्ट्ठे होंगे। तब हम सारा माल आपस में बांटकर अपने अपने रास्ते अलग कर लेंगे।
धनराज- हम तुम पर कैसे यकीन कर लें कि विदेश जाने के बाद तुम हमें हमारा हिस्सा दे दोगे
गनपत- बेबकूफ आदमी, माल तो यहीं भोपाल मैं है ना। उसे लेने तो हमें यहाँ आना ही पडेगा। बैसे भी इतना सारा सोना और हीरे हम अपने साथ नहीं ले जा सकते। हमारा जो माल गायब हुआ है, वो तो बस 20 पससेंट है। वाकि का 80 परसेंट माल अब भी हमारे पास सुरक्षित है। बैसे भी तब तक हम अपने बीच छिपे उस गद्दार का पता भी लगा लेंगे।
प्रकाश राज- मुझे लगता है कि जफर और गनपत ठीक कह रहे हैं। धनराज तुम इनके नये नाम और पहचान के लिए डॉक्यूमेंट तैयार करवा दो। मैं इनके बीजा और पासपोर्ट का काम देख लूँगा। रहा यहाँ से सुरक्षित जाने और बापिस आने का मामला तो वो महेश और येगेश देख लेंगे।
मंत्री जी की बात सुनकर वहाँ कुछ देर के लिए खामोशी छा गई।
मैं अपने रूम की तरफ जा ही रही थी कि तभी रास्ते में मुझे रघु मिल गया। तो मैं अपना सारा सामान और हैण्ड बैग उसे देकर बोली
निशा- यह मेरा सामना अपने पास रखो। मैं बापिस आकर तुमसे ले लूगी।
अब मेरे पास केवल मेरा मोबाईल और करीब 2 हजार रूपये कैश रह गए थे। जो मैंने अपनी जींस की पॉकेट में रखे हुए थे। मेरा पर्सनल मोबाईल और बाकी का सारा सामन मेरे हैंड बैग में था। जो मैंने रघू को दे दिया था। अपना सामान रघु को देने के बाद मैं होटल से बाहर निकल गई और पैदल ही उस पार्क की तरफ बड गई। करीब 10 मिनट बाद ही मैं उस पार्क के अंदर थी। इस वक्त पार्क पूरी तरह से खाली था। जिसे देखकर मेरी बुरी तरह फट गई थी।
मैं वहां से बापिस जाने ही बाली थी कि तभी अचानक से एक आदमी मेरे पीछे आया और उसने मेरे मूँह पर कपड़ा रख दिया। उस कपडे में से एक अजीब सी महक आ रही थी। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा जिसके बाद मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैं किसी खण्डहर में बंधी हुई जमीन पर पडी थी। मुझे आस पास कुछ लोगों की आवाजें आ रहीं थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली तो देखा वहाँ करीब 10-15 आदमी खडे हुए थे।
जिनमें से 3 लोगों को मैं तुरंत पहचान गई। उनमें से एक एम.पी. गवर्मेंट में मिनिस्टर प्रकाश राज था, दूसरा आदमी भोपाल के ए.पी. महेश वर्मा और तीसरा आदमी भोपाल का एक बड़ा बिजनेश मैन धनराज था। इन सभी के फोटो मैंने न्यूज पेपर में कई बार देखे थे। बाकी के सभी लोग मेरे लिए एकदम अंजान थे। जैसे ही मैं होश में आई तो मैं चीखते हुए बोली
निशा- क् कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यों लाए हो।
मेरे चीखने से उन सभी की नजर मुझपर पडी, तो वे सभी लोग मेरे चारों तरफ खडे हो गए फिर उनमें से एक आदमी हंसते हुए बोला
“अच्छा तो तुम्हें होश आ गया”
इससे पहले बो कुछ और कहता खण्डहर के बाहर से तीन आदमी अंदर आये और बोले
“गनपत भाई इस लड़की के होटल रूम की अच्छी तरह से तलासी ली है। पर कुछ भी नहीं मिला“
गनपत वही आदमी था जो कुछ देर पहले मुझसे बात कर रहा था। उसका नाम सुनकर मैं उसे तुरंत पहचान गई। क्योंकि गगन के पिता का नाम भी गनपत था। इसलिए मुझे यकीन हो गया कि यह गगन के पिता गनपत ही हैं। उस आदमी की बात सुनकर गनपत गुस्से से बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहे हो तुम। अगर माल इसके पास नहीं है तो फिर गया कहाँ
गनपत की बात सुनकर उसके पास में ही खड़ा एक दूसरा आदमी बोला
“अरे शांत हो जाओ गनपत, क्यों परेशान होते हो। ये लड़की है ना हमारे पास। यही बताऐगी कि हमारा माल कहाँ छिपा रखा है इसने“
गनपत- ठीक कहा जफर तूने, ये लडकी है ना… अब यही बताऐगी सब कुछ।
इतना बोलकर गनपत ने एक जोरदार लात मेरी गाँड पर मारी, जिस कारण मुझे तेज दर्द हुआ और मेरे मूँह से चीख निकल गई
निशा- आआआआआआहहहहहह
मेरे चीखने और मेरे दर्द की परवाह किए बिना गनपत गुस्से में बोला
गनपत- बता साली राण्ड….. कहाँ छिपा रखा है मेरा माल
गनपत की बात सुनकर मैं डरते हुए बोली
निशा- म माल….. कौन सा माल
गनपत- बही माल साली…. जो तूने मेरे बेटे गगन के घर से चुराया था
गनपत की बात सुनकर मैं अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- क् कौन गगन…. मैं किसी गगन को नहीं जानती
लेकिन उन लोगों को मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए जफर गुस्से में बोला
जफर- लगता है ये साली बहनचोद ऐसे मूँह नहीं खोलेगी। ऐ एस.पी. जरा दिखा इसे अपनी पुलिस का पॉवर
जफर की बात सुनकर एस.पी. महेश वर्मा मुस्कुराते हुए मेरे पास आए और अपने हाथ में पकडी छडी से एक के बाद एक मेरी गाँड पर मारने लगे। महेश इतनी जोर से मुझे मार रहा था, जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई खौलता हुआ लवा मेरी गांड पर डाल रहा हो। दर्द के कारण मेरी हालत खराब हो गई थी और मेरी आँखों से आँशू भी निकलने लगे थे। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआहहहह बचाओ
मेरी इस हालत पर उन सभी को हंसी आ रही थी। तभी गनपत बोला
गनपत- हाँ हाँ चीख साली बहनचोद जितना चीखना है चीख, तुझे बचाने ले लिए यहाँ कोई नहीं आने बाला। इस वक्त तम भोपाल से बाहर जंगल में बने एक खण्डहर में हो। यहाँ दूर दूर तक तेरी मदद करने के लिए कोई नहीं है।
तभी एक दूसरा आदमी मेरे पास आकर बोला
“वस अब रुक जाओ महेश वर्ना, ये लडकी कुछ बोलने लायक नहीं रहेगी“
उस आदमी की बात सुनकर ए.पी. महेश बोला
महेश- अरे कुछ नहीं होगा जेलर सहाब। ये साली राण्ड है इसे तो इतना दर्द सहने की आदत होगी
तभी मंत्री प्रकाश राज बोले
प्रकाश राज- योगेश सही कह रहा है महेश, रुक जाओ शायद इतनी मार के बाद यब सब सच बताने के लिए मान जाऐ।
मंत्री जी की बात सुनकर महेश तुरंत रुक गया, जिसके बाद गनपत मेरे पास नीचे जमीन पर बैठते हुए बोला
गनपत- अब तुझे याद आया गगन कौन है
मैं दर्द के कारण रोते हुए बोली
निशा- हाँ हाँ याद आया। एक दो बार दोस्तों के साथ मिली हूँ उससे
गनपत- तू उसके घऱ भी गई थी…. है ना
निशा- हाँ। लेकिन अपनी मर्जी से नहीं गई थी। गगन ने मुझे ड्रिंक में कुछ मिलाकर पिला दिया था। जिसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा। जब होश आया तो मैं बिना कपडों के उसके साथ सो रही थी। इसलिए मैंने जल्दी से अपने कपडे पहने और वहाँ से भाग गई।
मेरी बात सुनकर गनपत बोला
गनपत- और साथ मैं मेरा माल लेकर भी भाग गई
मेरी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, मेरा दिल कह रहा था कि उन्हें सब कुछ सच सच बता दूँ। पर मैं जानती थी कि सारा सच जानने के बाद वो लोग पक्का मुझे जान से मार देंगे, इसलिए मैं अपने आप को बचाने के लिए एक बार फिर अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- म माल कैसा माल…. मैं किसी माल के बारे में नहीं जानती
गनपत- झूठ बोल रही है तू। तूने ही मेरे बेटे के घर से बो दो बाक्स चुराए हैं।
निशा- मैं सच कह रही हूँ। मैंने गगन के घर पर कोई बाक्स नहीं देखे हैं
मेरी बात सुनकर गनपत ने एक जोरदार थप्पड मेरे गाल पर मारा, जिस कारण एक बार फिर मेरी चीख निकल गई
आआआआहहहहहह
निशा- मैं सच कह रही हूँ गनपत जी…. मुझे कुछ भी नहीं पता…. प्लीज मुझे जाने दो
गनपत मेरी बात पर ध्यान दिए बिना फिर से बोला
गनपत- कितनी तारीख को गई थी गगन के घर
निशा- त तीन नबम्बर की रात को
मेरी बात सुनकर जफर तुरंत बोला
जफर- उसी दिन तो माल आया था गनपत
जफर की बात सुनने के बाद गनपत गुस्से में मुझे घूरते हुए बोला
गनपत- कितने बजे गई थी उसके साथ
निशा- रात को 8 बजे मैं और गगन एक बियरबॉर में मिले थे। जिसके बाद वो मुझे अपनी कार में ले गया था। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है। पर रात करीब 1 बजे के आस पास मुझे होश आया था। उस वक्त गगन मेरे बगल में ही सो रहा था। मैं बहुत डर गई थी। इसलिए मैं बिना उसे कुझ कहे वहां से भाग गई
मेरी बात सुनकर जफर थोडा चौंकते हुए बोला
जफर- तुम सच कह रही हो ना कि रात को 1 बजे तुम और गगन दोनों ही उसके घर पर थे
जफर की बात सुनकर मैं तुरंत बोली
निशा- हाँ मैं सच कह रही हूँ।
मेरा जबाब सुनकर जफर थोडा परेशान होते हुए बोला
जफर- तो फिर वो कौन था जो हमारा माल लेने आया था।
निशा- मुझे नहीं पता और तुम लोग किस माल की बात कर रहे हो। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
मेरी बात सुनकर धनराज गुस्से से पागल होते हुए बोला
धनराज- हमारा करोडों का सोना और हीरों की बात कर रहे हैं हम। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि हम इस लड़की से इतने प्यार से बात क्यों कर रहे हैं। साली को मारो तब जाकर सच बोलेगी
धनराज की बात सुनकर सभी लोग एक साथ मुझे लातों और डण्डों से मारने लगे। मेरे नाक से और मूँह से खून निकलने लगा था। तभी किसी ने मेरे पेट में एक लात मारी। एक दो दिन में ही मेरे पीरियड शुरू होने बाले थे। लेकिन इतनी पिटाई और दर्द के कारण उसी वक्त मेरे पीरियड शुरू हो गया। जिस कारण मेरी चूत से भी खून रिसने लगा था। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी। पर किसी पर कोई फर्क नहीं पड रहा था और ना ही किसी को मुझ पर दया आ रही थी।
कुछ ही देर तक यूँ ही मार खाते खाते दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई और जब मुझे दोबारा होश आया तो उस खण्डहर के कमरे में मेरे अलावा गनपत, जफर, मंत्री प्रकाश राज, एस.पी. महेश, जेलर योगेश और विजनेश मैन धनराज मौजूद थे। वो आपस में बातें कर रहे थे। दर्द के कारण मेरा बुरा हाल था। पर मैं अपने दर्द को किसी तरह बरदास्त कर चुपचाप उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी। क्योंकि मैं जानती थी कि अगर उन्हें पता चल गया कि मुझे होश आ गया है, तो एक बार फिर वो मुझे टार्चर करना शुरू कर देंगे।
मुझे इस वक्त समय का कोई अंदाजा नहीं था पर उस कमरे से बाहर आती रोशनी से मैंने अंदाजा लगाया की शायद दोपहर होने बाली है। इसका मतलब था कि मैं सारी से रात वहाँ बेहोश पडी हुई थी। तभी एस.पी. महेश बोला
महेश- लगता है यह लड़की सच में कुछ नहीं जानती। बर्ना इतनी मार खाने के बाद तो मुर्दे भी बोलने लगते हैं।
जफर- तो फिर हमारा माल आखिर गया कहाँ
प्रकाश राज- शायद हमारा कोई दुशमन ले गया हो
गनपत- इस शहर में हमारा ऐसा कौन सा दुशमन पैदा हो गया जो हमारे माल को उठाने की हिम्मत कर सके
योगेश- क्या पता तुम्हारा ही कोई आदमी हो, बैसे भी माल कब और कहाँ आने बाला है यह बात केवल जफर और तेरा बेटा गगन जानता था
जेलर योगेश की बात सुनकर गनपत गुस्से से चीखता हुआ बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहा है जेलर। तेरा मतलब है कि मैं और जफर तुम लोगों से झूठ बोल रहे हैं और हमने ही अपना माल कहीं गायव करवा दिया
प्रकाश राज- अरे गनपत योगेश का कहने का मतलब वो नहीं है। वो तो बस इतना बोल रहा है कि तुम्हारी गैंग में कोई गद्दार भी तो हो सकता है।
गनपत- मेरे सारे आदमी सालों से मेरे बफादार हैं। वो मेरे साथ धोखा नहीं कर सकते
प्रकाश राज- पैसा अच्छे अच्छों का ईमान खराब कर सकता है। बैसे भी तुम इतने सालों से जेल में हो और तेरा बेटा भी तेरी ही तरह अय्याशी में लगा रहता था। क्या पता गैंग के किसी आदमी को नशे की हालत में सब बक दिया हो।
मंत्री प्रकाश राज की बात सुनकर गनपत खामोश रहा। शायद उसे भी मंत्री की बात सही लग रही थी। तभी जफऱ बोला
जफर- अगर हमारे ही किसी आदमी ने गद्दारी की है तो फिर उसका जिंदा रहना हमारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि कोई नहीं जानता की हम सब पाटनर्स हैं। मेरे और गनपत के अलाबा बाकी किसी का कोई भी क्रिमनल रिकार्ड भी नहीं है। महेश और योगेश तो पहले से ही पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं। अगर उस गद्दार ने हमारा राज खोल दिया तो फिर सब खत्म समझो
गनपत- शायद तुम सही कह रहे हो। अगर कोई गद्दार है तो हम उसका पता लगा ही लेंगे।
धनराज- हाँ हाँ ठीक है पता करते रहना। पहले यह बताओ कि हमारा बाकी माल कहाँ है। कहीं इस माल की तरह वो भी तो किसी गद्दार के हाथ ना लग गया हो। अगर उसके बारे में किसी को पता चल गया, तो फिर हम सबकी हालत भिखारियों जैसी हो जाऐगी।
धनराज की बात सुनकर गनपत उसे समझाते हुए बोला
गनपत- तुम उसकी चिंता मत करो। हमारा बाकी का सारा माल पूरी तरह से सुरक्षित है।
धनराज- पर वो आखिर है कहाँ
गनपत- वो मैं किसी को नहीं बता सकता। अब मुझे किसी पर भी यकीन नहीं है। बस इतना समझ लो कि बो मेरी नजरों के सामने ही है।
योगेश- देखो गनपत अब हम लोग और लफडे में नहीं पडना चाहते। बैसे भी तुम्हारे जेल से भागने के कारण मुझ पर भी इन्क्वारी चल रही है।
गनपत- जेलर यह तेरी प्राब्लम है। बैसे भी मुझे जेल से भगाकर तूने कोई एहसान नहीं किया है। तू और एस.पी. केवल इसीलिए हमारे पार्टनर है, ताकि पुलिस बगैरह के लफडे से हमें बचा सकें और अगर हम में से कोई पकडा जाऐ तो जेल में हमारा पूरा ध्यान रखा जाऐ। बैसे भी वो सारा माल हमने इकट्ठा किया था।
गनपत की बात सुनकर जेलर योगेश गुस्से से बिफरता हुआ बोला
योगेश- तुम कहना क्या चाहते हो… तुम्हारा मतलब है कि उस माल में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।
योगेश की बात सुनकर जफर उसे समझाते हुए बोला
जफर- गनपत का ऐसा कोई मतलब नहीं है
योगेश- तो फिर हमारा हिस्सा हमें दे दो। हम अब और यह सब नहीं कर सकते
गनपत- ओह तो अब तुम्हें अपना हिस्सा याद आने लगा, जेलर मैं तेरा और एस.पी. का प्लान अच्छी तरह समझ रहा हूँ। तुम लोग अपना हिस्सा लेकर मेरा इन्काऊंटर करवाना चाहते हो। पर मैं तुम्हारा प्लान कभी कामयाब नहीं होने दूँगा। अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम सबका हिस्सा भी मेरे साथ हमेशा हमेशा के लिए चला जाऐगा। इसलिए अपना हिस्सा माँगने की जगह मुझे इस देश से बाहर निकालने के बारे में सोचो
प्रकाश राज- अरे यार तुम लोग आपस में झगड क्यों रहे हो और गनपत मैं गारंटी लेता हूँ कि कोई तुम्हारा इन्काऊंटर नहीं करेगा।
गनपत- मैं कुछ नहीं जानता। अगर अपना अपना हिस्सा चाहिए तो पहले मेरा विदेश जाने का इंतजाम करो। उसके बाद ही मैं सबको उनका हिस्सा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला
जफर- गनपत सही कह रहा है। अब हम दोनों को तुम लोगों पर कोई भरोसा नहीं है। बैसे भी दुनिया की नजर में हम दोनों की क्रिमनल हैं। अगर हमें कुछ हो गया तो किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा, उल्टा तुम लोगों को इनाम मिलेगा। इसलिए पहले हमारे विदेश जाने के लिए नये नाम और पहचान के साथ बीजा और पासपोर्ट की जुगाड करो। विदेश में सेटल होने के 1 साल बाद हम फिर से इक्ट्ठे होंगे। तब हम सारा माल आपस में बांटकर अपने अपने रास्ते अलग कर लेंगे।
धनराज- हम तुम पर कैसे यकीन कर लें कि विदेश जाने के बाद तुम हमें हमारा हिस्सा दे दोगे
गनपत- बेबकूफ आदमी, माल तो यहीं भोपाल मैं है ना। उसे लेने तो हमें यहाँ आना ही पडेगा। बैसे भी इतना सारा सोना और हीरे हम अपने साथ नहीं ले जा सकते। हमारा जो माल गायब हुआ है, वो तो बस 20 पससेंट है। वाकि का 80 परसेंट माल अब भी हमारे पास सुरक्षित है। बैसे भी तब तक हम अपने बीच छिपे उस गद्दार का पता भी लगा लेंगे।
प्रकाश राज- मुझे लगता है कि जफर और गनपत ठीक कह रहे हैं। धनराज तुम इनके नये नाम और पहचान के लिए डॉक्यूमेंट तैयार करवा दो। मैं इनके बीजा और पासपोर्ट का काम देख लूँगा। रहा यहाँ से सुरक्षित जाने और बापिस आने का मामला तो वो महेश और येगेश देख लेंगे।
मंत्री जी की बात सुनकर वहाँ कुछ देर के लिए खामोशी छा गई।
सारी रात की चुदाई के कारण मेरी चूत में दर्द हो रहा था। जिस कारण मुझे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। साथ में पेंटी ना पहने के कारण मेरी चूत के अंदर भरा बीर्य भी रिसकर मेरे जाँघों से होता हुआ मेरे पैरों तर आ रहा था। जिससे मुझे काफी गंदा फील हो रहा था।
मैंने मोबाईल में समय देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे। मेरा ऑफिस बस स्टेण्ड से ज्यादा दूर नहीं था। जिस कारण मैंने बस स्टेण्ड से बाहर आकर एक ऑटो किया और अपने ऑफिस का ऐड्रेश बता कर उसके आस पास ही किसी लॉज में ले जाने के लिए बोल दिया। ऑटो बाले ने मेरे ऑफिस के एकदम पास में ही एक लॉज के बाहर मुझे छोड दिया। जिसके बाद मैंने उसका पेमेंट करने के बाद अपने लिए एक रूम बुक किया और चाबियाँ लेकर सीधे कमरे में चली गई।
कमरे में आकर मैंने सबसे पहले अपने पर्स से एक पेन किलर निकाल कर खाई। उसके बाद बिना कपडे चेंज किए रूम को अंदर से लॉक करके सो गई। दोपहर करीब 12 बजे मेरी आँख खुली तो मैं तुरंत ही बाथरूम में घुस गई। फ्रेस होने के बाद मैंने अच्छे से नहाया औऱ फिर कपडे पहनने के बाद अपना लैपटॉप बैग लेकर ऑफिस के लिए निकल गई। मैंने इस वक्त टाईट फिटिंग में ब्लैक कलर की फार्मल पैंट और महरून शर्ट पहनी हुई थी साथ में सन ग्लासेस भी लगा रखे थे। देखने में मैं एकदम प्रोफेशनल लेकिन कॉफी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। ऑफिस मेरे लॉज के एकदम पास में ही था। इसलिए मैं पैदल ही उस तरफ बड गई।
ऑफिस पहुँचकर मैं पूरे स्टॉफ से मिली। उन लोगों को पहले ही बॉस का फोन आ गया था कि एक सीनियर ऑफिसर ब्रांच बिजिट के लिए कभी भी आ सकता है। जिस कारण वो पहले से ही काफी डरे हुए थे और पूरी तैयारी से बैठे थे। ऑफिस के ज्यादातर मेल स्टॉफ तिरछी नजर से मेरे सेक्सी बदन को निहार रहे थे। जिसे मैं पहले ही नोटिस कर चुकी थी। पर मैंने उनसे कुछ भी नहीं कहा और उनकी इस हरकत को इग्नोर करके सारा काम देखने लगी। मैंने काफी फ्रेंडली होकर उनसे बात की थी और उनके अच्छे कामों की तारीफ के साथ साथ कुछ कमियों को भी उन्हें बताया था।
वो सभी मेरे नेचर से काफी खुश थे। इस दौरान ऑफिस स्टॉफ ने मेरे लिए लंच भी मंगवा लिया था। मैं उस दिन शाम के 7 बजे तक ऑफिस का सारा काम देखती रही। इसके अलावा मैंने ऑफिस की कैश बुक को भी अच्छी तरह से चैक कर लिया था। जिसमें मुझे कुछ गडबड लग रही थी। जिस कारण मैंने सारे बिलस् को भी क्राश चैक करने के बाद सब कुछ अपनी रिपोर्ट में लिख लिंया था। ऑफिस से फ्री होकर मैं बापिस लॉज में चली गई। मैं काफी थक गई थी इसलिए कुछ देर रेस्ट करने के बाद मैं करीब 9 बजे चैक ऑऊट करके लॉज से निकल गई।
सबसे पहले मैंने पास के ही एक रेस्टोरेंट में हल्का फुल्का डिनर लिया और फिर ऑटो लेकर बस स्टैंड जा पहुँची। मेरी बस रात के 10 बजे की थी, हाँलाकि बस ढूँडने में मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पडी। क्योंकि मैं उसी बस से सुबह इंदौर आई थी। बस के बाहर ही मुझे कंडक्टर मिल गया था। उसने मुझे बताया कि उसने मेरे लिए 5 कस्टमर बुक किए हैं। जो बस से भोपाल जा रहे हैं और एक कस्टमर तो अभी से मेरी सीट पर मेरा इंतजार कर रहा है। जिसके बाद कंडक्टर ने मुझे पैसे देते हुए कहा
कंडक्टर- मैडम पूरे 70 हजार हैं। 5 कस्टमर हैं और दो हम। सच कहूँ मैडम मजा आ गया आज तो आपके साथ। हमने इतनी सुंदर लड़की के साथ पहले कभी नहीं किया था और अभी तो आप और भी ज्यादा मस्त लग रही हो। बिल्कुल किसी हीरोईन की तरह।
कंडक्टर की बात सुनकर मैं थोडा हैरान होते हुए बोली
निशा- सुबह तो तुम्हारे पास पूरे पैसे नहीं थे। तो फिर अब कहाँ से इतने पैसे आ गए
मेरी बात सुनकर कंडक्टर बगलें झांकने लगा तो मैं बोली
निशा- सच सच बताओ…. मुझे झूठ बोलने बाले लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं है। बैसे भी मैं इस महिने मैं 4-5 बार भोपाल से इंदौर आने बाली हूँ। अगर तुम झूठ बोलोगे तो मैं अगली बार किसी दूसरी बस से आऊंगी।
मेरी बात सुनकर वो कंडक्टर तुरंत बोला
कंडक्टर- अरे नहीं नहीं मैं बताता हूँ ना। असल में मैंने 10 हजार की जगह 15 हजार रुपये में बुकिंग की है तुम्हारी। तो तुम्हारे रेट के हिसाब से पैसे देने के बाद हमने अपने भी पैसे दे दिए, बो भी पूरे। बाकि 5 हजार बचे हैं बो भी आपको बापिस कर देंगे।
उस कंडक्टर की बात सुनकर मैं मुस्कुराते हुए बोली
निशा- नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि तुमने कितने पैसों में बुकिंग की है। मेरी बात जितने में तुमसे हुई है। मैं केबल उतने ही पैसे लूँगी। पर कई बार ज्यादा पैसे के बाद कस्टमर अलग अलग प्रकार की डिमांड भी करने लगते है। इसलिए तुम उनसे जितने पैसे लो, वो मुझे पहले ही बता दिया करो। ताकि मैं पहले से ही तैयार रहूँ।
मेरी बात सुनकर कंडक्टर खुश होते हुए बोला
कंडक्टर- हाँ हाँ मैं समझ गया। तो क्या वो 5 हजार रूपये अब तुम्हें नहीं चाहिए
निशा- नहीं वो तुम रखो। समझ लेना कि मेरा बस का किराया है।
इतना बोलकर मैंने उस कंडक्टर का मोबाईल नम्बर उससे लिया और फिर अपना नम्बर उसे बताकर मैं बस में चड गई। जब मैं अपनी केबिन में पहुँची तो वहाँ एक 50-55 साल का बूडा आदमी मेरा ही इंतजार कर रहा था। उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि इतनी कम उम्र की जवान और खूबसूरत लड़की आज उसे चोदने के लिए मिलेगी। उसकी हालत देखकर मैं मुस्कुराई और केबिन के अंदर जाकर मैंने केबिन का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जिसके बाद मैंने अपने बैग से कंबल निकला कर बैग को एक साईड कोने में ऱखा और अपने सारे कपडे उतार दिए और कंबल ओड कर लेट गई। फिर मैं उस बुड्डे से बोली
निशा- कुछ करना भी है या केवल देखना है
मेरी बात सुनकर वो आदमी जैसे होश में आया। अभी बस चलने में काफी देर थी। इसलिए उसे कोई जल्दी नहीं थी। लेकिन मेरे बोलने पर वो थोडा जोश में आ गया था, इसलिए उसने भी जल्दी से अपने कपडे उतार दिए और मेरे साथ कंबल के अंदर आकर मेरे मजे लेने लगा। मैं चुपचाप लेटी उसे अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। जब मुझे लगा कि यह आदमी कुछ ज्यादा ही समय ले रहा है। तो मैं कंबल के अंदर से ही नीचे की तरफ खिसक गई और उसका लण्ड मूँह में लेकर चूसने लगी।
उस बुड्डे को मेरी इस हरकत की उम्मीद नहीं थी। जिस कारण वो ज्यादा देर बरदास्त नहीं कर पाया और उसने मेरे मूँह के अंदर ही अपना पानी छोड दिया। जिसे मैं सारा निगल गई और चाट कर उसका लण्ड साफ कर दिया। जिसके बाद मैं बापिस अपनी जगह पर आते हुए बोली
निशा- क्या अंकल तुम तो बडी जल्दी ठण्डे पड गए
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा थोडा झेंपते हुए बोला
बुड्डा- वो वो मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम यह सब करोगी। बैसे भी किसी ने पहली बार मेरा अपने मूँह में लेकर चूसा है, तो मैं कुछ ज्यादा ही एक्साईटेड हो गया था। अब दूसरे राउण्ड में देखना तुम, मैं क्या कमाल दिखाता हूँ।
उस बुड्डे की बात सुनकर मैं हंसते हुए बोली
निशा- सॉरी अंकल दूसरे राऊंड का मौका अब नहीं मिलेगा आपको। मेरे दूसरे कस्टमर भी आने बाले होंगे। बैसे भी आपने केबल एक ही राऊंड का पेमेंट किया है।
मेरी बात सुनकर वो बुड्ढा बोला
बुड्डा- अभी बस चलने में काफी देर है। बैसे भी पूरी रात पडी है बाकी कस्टमर के लिए। मैं तो इंदौर निकलते ही बस से उतर जाऊंगा। रही बात पैसों की दो मैं दे रहा हूँ ना दूसरे राऊँड का पैसा।
इतना बोलकर उस बुड्डे ने अपने पर्स से पैसे निकाल कर मुझे दे दिए। जिन्हें मैंने बिना गिने चुपचाप अपने पर्स में रख लिया और बोली
निशा- पर अंकल अभी तो आपको फिर से तैयार होने में समय लगेगा
मेरी बात सुनकर वो बुड्डा बोला
बुड्डा- तुम उसकी फिक्र मत करो। मुझे दुसरे राऊंड के लिए तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। बैसे भी वियग्रा खाकर आया हूँ। तो बस 5-10 मिनट में मैं फिर से तैयार हो जाऊँगा।
इतना बोलकर वो बुड्डा फिर से मेरे शरीर से छेडछाड करने लगा, और जैसा उसने कहा था बो सच में ही 5-10 मिनट में फिर से पूरी तरह से तैयार था। इस बार मैंने उसे मनमानी करने की पूरी छूट दे दी थी। जिस कारण जैसे ही बो तैयार हुआ तो मेरे ऊपर चड कर मेरी चुदाई शुरू कर दी। मैं चुपचाप आँखें बंद किये हुए उसका पूरा साथ दे रही थी। इस दौरान बस में बाकी सबारियाँ भी चड गई थी और बस स्टार्ट होकर भोपाल हाईवे की तरफ चल पडी थी। वो बुड्डा बाकई में खिलाडी था। क्योंकि वो काफी देर से मेरी चुदाई कर रहा था। पर इस बार उसने अभी तक अपना पानी नहीं छोडा था।
जब मैंने ध्यान दिया तो समझ में आया कि जैसे ही उस बुड्डे का पानी निकलने बाला होता है, वो कुछ देर के लिए रुक जाता है और चूमने और सहलाने के कुछ देर बाद वो दोबारा चुदाई शुरू कर देता है। जिस कारण उसकी टाईमिंग काफी ज्यादा लम्बी हो गई थी। मैं उस बुड्डे की इस टैक्निक से काफी इम्प्रैस थी और दिल्ली जाकर अपने पति अमन पर भी इस टैक्निक को आजमाने का मन ही मन फैसला कर चुकी थी। लेकिन इस बार वो अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर पाया और आखिरकार अपना सारा पानी मेरी चूत में छोड दिया। कुछ देर मेरे ऊपर यूँ पडे रहने के बाद बो मुझसे अलग हुआ और अपने कपडे पहनकर केबिन से बाहर निकल गया।
उस बुड्डे के जाने के कुछ देर बाद ही। एक दूसरा आदमी मेरे केबिन के अंदर आ गया। इस दूसरे आदमी ने ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए सीधे अपने कपडे उतारे और कुछ देर मुझे चूमने और सहलाने के बाद ही मेरी चुदाई शुरू कर दी। इसी तरह एक एक करके सभी लोग मुझे चोद चुके थे। अभी भोपाल आने में समय था। इसलिए उनमें से एक आदमी दूसरे राऊँड के लिए दोबारा मेरे पास आ गया, तो मैंने उससे भी दूसरे राऊँड के अलग से पैसे ले लिए। जिसके बाद उस आदमी ने दूसरे राऊँड में मेरी गाँड मारी।
जब तक बो दूसरे राऊँड में ठण्डा हुआ। तब तक हमारी बस भोपाल पहुँच चुकी थी। जिसके बाद भोपाल बस स्टैंड पर बस खाली होने के बाद कंडक्टर और ड्रायबर ने भी इस बार मेरी जम कर गाँड मारी। उन दोनों को खुश करने के बाद मैंने अपने कपडे पहने और बस से उतर कर ऑटो लेकर अपने होटल जा पहुँची। सुबह के करीब 3 बज रहे थे। इसलिए अपने रूम में पहुँचकर मैंने कपडे चेंज किए और पेन किलर खाकर सो गई।
अगले दिन से पूरा एक हफ्ता मैंने अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने और मस्ती करने में बिता दिऐ थे। भोपाल में अपने से 4-5 साल छोटे नये बने दोस्तों के साथ मैंने बहुत मस्ती की थी। इस दौरान मेरे और रवि के बीच भी सब कुछ नॉर्मल हो गया था। क्योंकि आखिरकार मुझे भी रवि पर दया आ गई थी। मेरे और रवि के बीच सब कुछ नॉर्मल होने के बाद भी मैंने अब तक उसे अपने साथ फिजीकल नहीं हो दिया था। पता नहीं क्यों पर जब से मैंने उसके पिता के साथ रात बिताई थी। उस दिन के बाद से मुझे रवि के साथ सेक्स करना ठीक नहीं लग रहा था।
इसलिए इस पूरे हफ्ते तक मैं सारा दिन दोस्तों के साथ मस्ती करती और रात को या तो असमल के बताए कस्टमर के पास जाती या फिर रघु की बाहों में अपनी रात रंगीन करती। मुझे अपनी यह लाईफ काफी अच्छी लग रही थी। मन कर रहा था कि सारी जिंदगी यूँ ही गुजार दूँ। इन कुछ दिनों में मेरे पास करीब 22 लाख और रूपये इकट्ठे हो गए थे। जिन्हें आज ही मैं अपने नये बैंक अकॉऊंट में जमा करके अपने दोस्तों के पास मस्ती करने चली गई थी।
शाम करीब 7 बजे जब मैं अपने होटल बापिस आई तभी मेरे पास हरीश अंकल का कॉल आया। उन्होंने बताया कि गगन के पिता जेल से भाग गए हैं और उनके समान में मेरा फोटो मिला है। हरीश अंकल की यह बात सुनकर तो मेरी बुरी तरह से फट गई थी। मुझे लगा कि पक्का अब मैं किसी नई मुसीबत में पडने बाली हूँ। इसलिए मैंने तय किया कि कल ही मैं यहाँ से दिल्ली बापिस निकल जाऊँगी। बैसे भी मेरे सारे काम अब खत्म हो चुके थे। रही बात मौज मस्ती की तो वो तो मैं दिल्ली में भी कर सकती थी।
हरीश अंकल का फोन कट होने के बाद मैं इस बारे में अभी सोच ही रही थी कि तभी मेरे पास एक अंजान नम्बर से कॉल आया। जब मैंने कॉल रिसीव की तो दूसरी तरफ से एक अनजान आदमी ने मुझे एक जरूरी इनफोर्मेशन देने के लिए पास के ही एक पार्क में बुलाया। मुझे लगा कि पार्क में इस समय काफी लोग होंगे, इसलिए अगर वो कोई गलत आदमी भी हुआ तो कम से कम इतने सारे लोगों के बीच मुझे कुछ नहीं करेगा। यही सब सोचकर मैंने उस आदमी से मिलने का फैसला कर लिया। इसलिए मैं जल्दी से अपने रूम की तरफ जाने लगी। ताकि अपना सामान वहाँ रखकर पार्क में उस अनजान आदमी से मिलने जा सकूँ।
बहुत ही बढ़िया और कामुक अपडेट दिया है सपना ने पूरी तरह से एक रंडी का जीवन जिया इस ट्रिप में और लाइफ में एडवेंचर भी बहुत आ गया है अब देखते हैं पार्क में किसने बुलाया है !
मैं अपने रूम की तरफ जा ही रही थी कि तभी रास्ते में मुझे रघु मिल गया। तो मैं अपना सारा सामान और हैण्ड बैग उसे देकर बोली
निशा- यह मेरा सामना अपने पास रखो। मैं बापिस आकर तुमसे ले लूगी।
अब मेरे पास केवल मेरा मोबाईल और करीब 2 हजार रूपये कैश रह गए थे। जो मैंने अपनी जींस की पॉकेट में रखे हुए थे। मेरा पर्सनल मोबाईल और बाकी का सारा सामन मेरे हैंड बैग में था। जो मैंने रघू को दे दिया था। अपना सामान रघु को देने के बाद मैं होटल से बाहर निकल गई और पैदल ही उस पार्क की तरफ बड गई। करीब 10 मिनट बाद ही मैं उस पार्क के अंदर थी। इस वक्त पार्क पूरी तरह से खाली था। जिसे देखकर मेरी बुरी तरह फट गई थी।
मैं वहां से बापिस जाने ही बाली थी कि तभी अचानक से एक आदमी मेरे पीछे आया और उसने मेरे मूँह पर कपड़ा रख दिया। उस कपडे में से एक अजीब सी महक आ रही थी। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती मेरी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा जिसके बाद मैं गहरी नींद में चली गई। जब मेरी आँख खुली तो मैं किसी खण्डहर में बंधी हुई जमीन पर पडी थी। मुझे आस पास कुछ लोगों की आवाजें आ रहीं थी। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली तो देखा वहाँ करीब 10-15 आदमी खडे हुए थे।
जिनमें से 3 लोगों को मैं तुरंत पहचान गई। उनमें से एक एम.पी. गवर्मेंट में मिनिस्टर प्रकाश राज था, दूसरा आदमी भोपाल के ए.पी. महेश वर्मा और तीसरा आदमी भोपाल का एक बड़ा बिजनेश मैन धनराज था। इन सभी के फोटो मैंने न्यूज पेपर में कई बार देखे थे। बाकी के सभी लोग मेरे लिए एकदम अंजान थे। जैसे ही मैं होश में आई तो मैं चीखते हुए बोली
निशा- क् कौन हो तुम लोग और मुझे यहाँ क्यों लाए हो।
मेरे चीखने से उन सभी की नजर मुझपर पडी, तो वे सभी लोग मेरे चारों तरफ खडे हो गए फिर उनमें से एक आदमी हंसते हुए बोला
“अच्छा तो तुम्हें होश आ गया”
इससे पहले बो कुछ और कहता खण्डहर के बाहर से तीन आदमी अंदर आये और बोले
“गनपत भाई इस लड़की के होटल रूम की अच्छी तरह से तलासी ली है। पर कुछ भी नहीं मिला“
गनपत वही आदमी था जो कुछ देर पहले मुझसे बात कर रहा था। उसका नाम सुनकर मैं उसे तुरंत पहचान गई। क्योंकि गगन के पिता का नाम भी गनपत था। इसलिए मुझे यकीन हो गया कि यह गगन के पिता गनपत ही हैं। उस आदमी की बात सुनकर गनपत गुस्से से बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहे हो तुम। अगर माल इसके पास नहीं है तो फिर गया कहाँ
गनपत की बात सुनकर उसके पास में ही खड़ा एक दूसरा आदमी बोला
“अरे शांत हो जाओ गनपत, क्यों परेशान होते हो। ये लड़की है ना हमारे पास। यही बताऐगी कि हमारा माल कहाँ छिपा रखा है इसने“
गनपत- ठीक कहा जफर तूने, ये लडकी है ना… अब यही बताऐगी सब कुछ।
इतना बोलकर गनपत ने एक जोरदार लात मेरी गाँड पर मारी, जिस कारण मुझे तेज दर्द हुआ और मेरे मूँह से चीख निकल गई
निशा- आआआआआआहहहहहह
मेरे चीखने और मेरे दर्द की परवाह किए बिना गनपत गुस्से में बोला
गनपत- बता साली राण्ड….. कहाँ छिपा रखा है मेरा माल
गनपत की बात सुनकर मैं डरते हुए बोली
निशा- म माल….. कौन सा माल
गनपत- बही माल साली…. जो तूने मेरे बेटे गगन के घर से चुराया था
गनपत की बात सुनकर मैं अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- क् कौन गगन…. मैं किसी गगन को नहीं जानती
लेकिन उन लोगों को मेरी किसी भी बात पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए जफर गुस्से में बोला
जफर- लगता है ये साली बहनचोद ऐसे मूँह नहीं खोलेगी। ऐ एस.पी. जरा दिखा इसे अपनी पुलिस का पॉवर
जफर की बात सुनकर एस.पी. महेश वर्मा मुस्कुराते हुए मेरे पास आए और अपने हाथ में पकडी छडी से एक के बाद एक मेरी गाँड पर मारने लगे। महेश इतनी जोर से मुझे मार रहा था, जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि कोई खौलता हुआ लवा मेरी गांड पर डाल रहा हो। दर्द के कारण मेरी हालत खराब हो गई थी और मेरी आँखों से आँशू भी निकलने लगे थे। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआआआहहहहहह
आआआआहहहह बचाओ
मेरी इस हालत पर उन सभी को हंसी आ रही थी। तभी गनपत बोला
गनपत- हाँ हाँ चीख साली बहनचोद जितना चीखना है चीख, तुझे बचाने ले लिए यहाँ कोई नहीं आने बाला। इस वक्त तम भोपाल से बाहर जंगल में बने एक खण्डहर में हो। यहाँ दूर दूर तक तेरी मदद करने के लिए कोई नहीं है।
तभी एक दूसरा आदमी मेरे पास आकर बोला
“वस अब रुक जाओ महेश वर्ना, ये लडकी कुछ बोलने लायक नहीं रहेगी“
उस आदमी की बात सुनकर ए.पी. महेश बोला
महेश- अरे कुछ नहीं होगा जेलर सहाब। ये साली राण्ड है इसे तो इतना दर्द सहने की आदत होगी
तभी मंत्री प्रकाश राज बोले
प्रकाश राज- योगेश सही कह रहा है महेश, रुक जाओ शायद इतनी मार के बाद यब सब सच बताने के लिए मान जाऐ।
मंत्री जी की बात सुनकर महेश तुरंत रुक गया, जिसके बाद गनपत मेरे पास नीचे जमीन पर बैठते हुए बोला
गनपत- अब तुझे याद आया गगन कौन है
मैं दर्द के कारण रोते हुए बोली
निशा- हाँ हाँ याद आया। एक दो बार दोस्तों के साथ मिली हूँ उससे
गनपत- तू उसके घऱ भी गई थी…. है ना
निशा- हाँ। लेकिन अपनी मर्जी से नहीं गई थी। गगन ने मुझे ड्रिंक में कुछ मिलाकर पिला दिया था। जिसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा। जब होश आया तो मैं बिना कपडों के उसके साथ सो रही थी। इसलिए मैंने जल्दी से अपने कपडे पहने और वहाँ से भाग गई।
मेरी बात सुनकर गनपत बोला
गनपत- और साथ मैं मेरा माल लेकर भी भाग गई
मेरी हालत पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, मेरा दिल कह रहा था कि उन्हें सब कुछ सच सच बता दूँ। पर मैं जानती थी कि सारा सच जानने के बाद वो लोग पक्का मुझे जान से मार देंगे, इसलिए मैं अपने आप को बचाने के लिए एक बार फिर अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली
निशा- म माल कैसा माल…. मैं किसी माल के बारे में नहीं जानती
गनपत- झूठ बोल रही है तू। तूने ही मेरे बेटे के घर से बो दो बाक्स चुराए हैं।
निशा- मैं सच कह रही हूँ। मैंने गगन के घर पर कोई बाक्स नहीं देखे हैं
मेरी बात सुनकर गनपत ने एक जोरदार थप्पड मेरे गाल पर मारा, जिस कारण एक बार फिर मेरी चीख निकल गई
आआआआहहहहहह
निशा- मैं सच कह रही हूँ गनपत जी…. मुझे कुछ भी नहीं पता…. प्लीज मुझे जाने दो
गनपत मेरी बात पर ध्यान दिए बिना फिर से बोला
गनपत- कितनी तारीख को गई थी गगन के घर
निशा- त तीन नबम्बर की रात को
मेरी बात सुनकर जफर तुरंत बोला
जफर- उसी दिन तो माल आया था गनपत
जफर की बात सुनने के बाद गनपत गुस्से में मुझे घूरते हुए बोला
गनपत- कितने बजे गई थी उसके साथ
निशा- रात को 8 बजे मैं और गगन एक बियरबॉर में मिले थे। जिसके बाद वो मुझे अपनी कार में ले गया था। उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है। पर रात करीब 1 बजे के आस पास मुझे होश आया था। उस वक्त गगन मेरे बगल में ही सो रहा था। मैं बहुत डर गई थी। इसलिए मैं बिना उसे कुझ कहे वहां से भाग गई
मेरी बात सुनकर जफर थोडा चौंकते हुए बोला
जफर- तुम सच कह रही हो ना कि रात को 1 बजे तुम और गगन दोनों ही उसके घर पर थे
जफर की बात सुनकर मैं तुरंत बोली
निशा- हाँ मैं सच कह रही हूँ।
मेरा जबाब सुनकर जफर थोडा परेशान होते हुए बोला
जफर- तो फिर वो कौन था जो हमारा माल लेने आया था।
निशा- मुझे नहीं पता और तुम लोग किस माल की बात कर रहे हो। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
मेरी बात सुनकर धनराज गुस्से से पागल होते हुए बोला
धनराज- हमारा करोडों का सोना और हीरों की बात कर रहे हैं हम। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि हम इस लड़की से इतने प्यार से बात क्यों कर रहे हैं। साली को मारो तब जाकर सच बोलेगी
धनराज की बात सुनकर सभी लोग एक साथ मुझे लातों और डण्डों से मारने लगे। मेरे नाक से और मूँह से खून निकलने लगा था। तभी किसी ने मेरे पेट में एक लात मारी। एक दो दिन में ही मेरे पीरियड शुरू होने बाले थे। लेकिन इतनी पिटाई और दर्द के कारण उसी वक्त मेरे पीरियड शुरू हो गया। जिस कारण मेरी चूत से भी खून रिसने लगा था। मैं लगातार दर्द से चीख रही थी। पर किसी पर कोई फर्क नहीं पड रहा था और ना ही किसी को मुझ पर दया आ रही थी।
कुछ ही देर तक यूँ ही मार खाते खाते दर्द के कारण मैं बेहोश हो गई और जब मुझे दोबारा होश आया तो उस खण्डहर के कमरे में मेरे अलावा गनपत, जफर, मंत्री प्रकाश राज, एस.पी. महेश, जेलर योगेश और विजनेश मैन धनराज मौजूद थे। वो आपस में बातें कर रहे थे। दर्द के कारण मेरा बुरा हाल था। पर मैं अपने दर्द को किसी तरह बरदास्त कर चुपचाप उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी। क्योंकि मैं जानती थी कि अगर उन्हें पता चल गया कि मुझे होश आ गया है, तो एक बार फिर वो मुझे टार्चर करना शुरू कर देंगे।
मुझे इस वक्त समय का कोई अंदाजा नहीं था पर उस कमरे से बाहर आती रोशनी से मैंने अंदाजा लगाया की शायद दोपहर होने बाली है। इसका मतलब था कि मैं सारी से रात वहाँ बेहोश पडी हुई थी। तभी एस.पी. महेश बोला
महेश- लगता है यह लड़की सच में कुछ नहीं जानती। बर्ना इतनी मार खाने के बाद तो मुर्दे भी बोलने लगते हैं।
जफर- तो फिर हमारा माल आखिर गया कहाँ
प्रकाश राज- शायद हमारा कोई दुशमन ले गया हो
गनपत- इस शहर में हमारा ऐसा कौन सा दुशमन पैदा हो गया जो हमारे माल को उठाने की हिम्मत कर सके
योगेश- क्या पता तुम्हारा ही कोई आदमी हो, बैसे भी माल कब और कहाँ आने बाला है यह बात केवल जफर और तेरा बेटा गगन जानता था
जेलर योगेश की बात सुनकर गनपत गुस्से से चीखता हुआ बोला
गनपत- क्या बकवास कर रहा है जेलर। तेरा मतलब है कि मैं और जफर तुम लोगों से झूठ बोल रहे हैं और हमने ही अपना माल कहीं गायव करवा दिया
प्रकाश राज- अरे गनपत योगेश का कहने का मतलब वो नहीं है। वो तो बस इतना बोल रहा है कि तुम्हारी गैंग में कोई गद्दार भी तो हो सकता है।
गनपत- मेरे सारे आदमी सालों से मेरे बफादार हैं। वो मेरे साथ धोखा नहीं कर सकते
प्रकाश राज- पैसा अच्छे अच्छों का ईमान खराब कर सकता है। बैसे भी तुम इतने सालों से जेल में हो और तेरा बेटा भी तेरी ही तरह अय्याशी में लगा रहता था। क्या पता गैंग के किसी आदमी को नशे की हालत में सब बक दिया हो।
मंत्री प्रकाश राज की बात सुनकर गनपत खामोश रहा। शायद उसे भी मंत्री की बात सही लग रही थी। तभी जफऱ बोला
जफर- अगर हमारे ही किसी आदमी ने गद्दारी की है तो फिर उसका जिंदा रहना हमारे लिए ठीक नहीं है। क्योंकि कोई नहीं जानता की हम सब पाटनर्स हैं। मेरे और गनपत के अलाबा बाकी किसी का कोई भी क्रिमनल रिकार्ड भी नहीं है। महेश और योगेश तो पहले से ही पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हैं। अगर उस गद्दार ने हमारा राज खोल दिया तो फिर सब खत्म समझो
गनपत- शायद तुम सही कह रहे हो। अगर कोई गद्दार है तो हम उसका पता लगा ही लेंगे।
धनराज- हाँ हाँ ठीक है पता करते रहना। पहले यह बताओ कि हमारा बाकी माल कहाँ है। कहीं इस माल की तरह वो भी तो किसी गद्दार के हाथ ना लग गया हो। अगर उसके बारे में किसी को पता चल गया, तो फिर हम सबकी हालत भिखारियों जैसी हो जाऐगी।
धनराज की बात सुनकर गनपत उसे समझाते हुए बोला
गनपत- तुम उसकी चिंता मत करो। हमारा बाकी का सारा माल पूरी तरह से सुरक्षित है।
धनराज- पर वो आखिर है कहाँ
गनपत- वो मैं किसी को नहीं बता सकता। अब मुझे किसी पर भी यकीन नहीं है। बस इतना समझ लो कि बो मेरी नजरों के सामने ही है।
योगेश- देखो गनपत अब हम लोग और लफडे में नहीं पडना चाहते। बैसे भी तुम्हारे जेल से भागने के कारण मुझ पर भी इन्क्वारी चल रही है।
गनपत- जेलर यह तेरी प्राब्लम है। बैसे भी मुझे जेल से भगाकर तूने कोई एहसान नहीं किया है। तू और एस.पी. केवल इसीलिए हमारे पार्टनर है, ताकि पुलिस बगैरह के लफडे से हमें बचा सकें और अगर हम में से कोई पकडा जाऐ तो जेल में हमारा पूरा ध्यान रखा जाऐ। बैसे भी वो सारा माल हमने इकट्ठा किया था।
गनपत की बात सुनकर जेलर योगेश गुस्से से बिफरता हुआ बोला
योगेश- तुम कहना क्या चाहते हो… तुम्हारा मतलब है कि उस माल में मेरा कोई हिस्सा नहीं है।
योगेश की बात सुनकर जफर उसे समझाते हुए बोला
जफर- गनपत का ऐसा कोई मतलब नहीं है
योगेश- तो फिर हमारा हिस्सा हमें दे दो। हम अब और यह सब नहीं कर सकते
गनपत- ओह तो अब तुम्हें अपना हिस्सा याद आने लगा, जेलर मैं तेरा और एस.पी. का प्लान अच्छी तरह समझ रहा हूँ। तुम लोग अपना हिस्सा लेकर मेरा इन्काऊंटर करवाना चाहते हो। पर मैं तुम्हारा प्लान कभी कामयाब नहीं होने दूँगा। अगर मुझे कुछ हुआ तो तुम सबका हिस्सा भी मेरे साथ हमेशा हमेशा के लिए चला जाऐगा। इसलिए अपना हिस्सा माँगने की जगह मुझे इस देश से बाहर निकालने के बारे में सोचो
प्रकाश राज- अरे यार तुम लोग आपस में झगड क्यों रहे हो और गनपत मैं गारंटी लेता हूँ कि कोई तुम्हारा इन्काऊंटर नहीं करेगा।
गनपत- मैं कुछ नहीं जानता। अगर अपना अपना हिस्सा चाहिए तो पहले मेरा विदेश जाने का इंतजाम करो। उसके बाद ही मैं सबको उनका हिस्सा दूँगा
गनपत की बात सुनकर जफर भी उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला
जफर- गनपत सही कह रहा है। अब हम दोनों को तुम लोगों पर कोई भरोसा नहीं है। बैसे भी दुनिया की नजर में हम दोनों की क्रिमनल हैं। अगर हमें कुछ हो गया तो किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा, उल्टा तुम लोगों को इनाम मिलेगा। इसलिए पहले हमारे विदेश जाने के लिए नये नाम और पहचान के साथ बीजा और पासपोर्ट की जुगाड करो। विदेश में सेटल होने के 1 साल बाद हम फिर से इक्ट्ठे होंगे। तब हम सारा माल आपस में बांटकर अपने अपने रास्ते अलग कर लेंगे।
धनराज- हम तुम पर कैसे यकीन कर लें कि विदेश जाने के बाद तुम हमें हमारा हिस्सा दे दोगे
गनपत- बेबकूफ आदमी, माल तो यहीं भोपाल मैं है ना। उसे लेने तो हमें यहाँ आना ही पडेगा। बैसे भी इतना सारा सोना और हीरे हम अपने साथ नहीं ले जा सकते। हमारा जो माल गायब हुआ है, वो तो बस 20 पससेंट है। वाकि का 80 परसेंट माल अब भी हमारे पास सुरक्षित है। बैसे भी तब तक हम अपने बीच छिपे उस गद्दार का पता भी लगा लेंगे।
प्रकाश राज- मुझे लगता है कि जफर और गनपत ठीक कह रहे हैं। धनराज तुम इनके नये नाम और पहचान के लिए डॉक्यूमेंट तैयार करवा दो। मैं इनके बीजा और पासपोर्ट का काम देख लूँगा। रहा यहाँ से सुरक्षित जाने और बापिस आने का मामला तो वो महेश और येगेश देख लेंगे।
मंत्री जी की बात सुनकर वहाँ कुछ देर के लिए खामोशी छा गई।