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साथ बने रहिए भाईManishbhai..............
sare update eksath padh liye .............................. maza aa gaya sarkar ...........................
lajawab...............................
excellent................
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साथ बने रहिए भाईManishbhai..............
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Hamesha ki tarah shandaar update.... haweli par kon aa gya kabja karne ....#27
ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.
“आप यहाँ ” मैंने कहा
माँ- मिलना चाहती थी
मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.
माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.
हम दोनों पास में ही बैठ गए.
“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा
माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है
मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी
माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.
मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.
माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर
मैं- जरुर .
कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.
“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.
गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........
होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.
“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .
“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.
“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं- क्या हुआ मुझे,
दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.
“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने
दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में
दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई
मैं- तो
दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .
मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम
दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.
मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .
दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.
मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है
दरोगा- ये भी सही है दोस्त
मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे
दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई
दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.
मैं- तुम कब आई
ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे
मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे
मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता
ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो
मैं- कुछ भी तो नहीं
मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को
ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.
मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है
मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .
कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .
मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है
मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था
मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू
मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को
मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.
मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .
तभी ताई अन्दर आ गयी.
ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.
मैं- पता नहीं
ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है
मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.
दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........
“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....#27
ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.
“आप यहाँ ” मैंने कहा
माँ- मिलना चाहती थी
मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.
माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.
हम दोनों पास में ही बैठ गए.
“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा
माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है
मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी
माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.
मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.
माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर
मैं- जरुर .
कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.
“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.
गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........
होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.
“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .
“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.
“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं- क्या हुआ मुझे,
दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.
“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने
दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में
दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई
मैं- तो
दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .
मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम
दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.
मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .
दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.
मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है
दरोगा- ये भी सही है दोस्त
मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे
दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई
दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.
मैं- तुम कब आई
ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे
मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे
मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता
ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो
मैं- कुछ भी तो नहीं
मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को
ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.
मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है
मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .
कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .
मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है
मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था
मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू
मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को
मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.
मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .
तभी ताई अन्दर आ गयी.
ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.
मैं- पता नहीं
ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है
मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.
दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........
“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
har baar ki tarah badiya update#27
ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.
“आप यहाँ ” मैंने कहा
माँ- मिलना चाहती थी
मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.
माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.
हम दोनों पास में ही बैठ गए.
“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा
माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है
मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी
माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.
मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.
माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर
मैं- जरुर .
कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.
“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.
गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........
होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.
“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .
“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.
“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं- क्या हुआ मुझे,
दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.
“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने
दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में
दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई
मैं- तो
दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .
मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम
दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.
मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .
दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.
मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है
दरोगा- ये भी सही है दोस्त
मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे
दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई
दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.
मैं- तुम कब आई
ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे
मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे
मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता
ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो
मैं- कुछ भी तो नहीं
मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को
ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.
मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है
मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .
कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .
मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है
मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था
मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू
मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को
मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.
मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .
तभी ताई अन्दर आ गयी.
ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.
मैं- पता नहीं
ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है
मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.
दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........
“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
Nice update....#27
ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.
“आप यहाँ ” मैंने कहा
माँ- मिलना चाहती थी
मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.
माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.
हम दोनों पास में ही बैठ गए.
“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा
माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है
मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी
माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.
मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.
माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर
मैं- जरुर .
कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.
“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.
गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........
होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.
“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .
“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.
“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं- क्या हुआ मुझे,
दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.
“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने
दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में
दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई
मैं- तो
दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .
मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम
दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.
मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .
दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.
मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है
दरोगा- ये भी सही है दोस्त
मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे
दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई
दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.
मैं- तुम कब आई
ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे
मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे
मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता
ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो
मैं- कुछ भी तो नहीं
मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को
ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.
मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है
मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .
कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .
मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है
मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था
मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू
मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को
मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.
मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .
तभी ताई अन्दर आ गयी.
ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.
मैं- पता नहीं
ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है
मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.
दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........
“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
Lazwaab update#27
ताई के घर जाने के लिए मैं चला तो था पर पहुँच नहीं सका, रस्ते में मुझे निशा की माँ मिल गयी.
“आप यहाँ ” मैंने कहा
माँ- मिलना चाहती थी
मैं- संदेसा भेज देते मैं आ जाता.
माँ- इधर कुछ काम था तो सोचा वो भी हो जायेगा और तुम से भी मिल लुंगी.
हम दोनों पास में ही बैठ गए.
“क्या बात है माँ जी” मैंने कहा
माँ- इतने दिनों से मैं गुमान में थी की बेटी ने चाहे अपनी पसंद से शादी कर ली पर खुश तो है
मैं- मैं जानता हु क्या कहना चाहती हो. पर वो भी अपने पिता के जैसी जिद्दी है , कहती है की दुल्हन तो उसी चोखट से बन कर विदा होउंगी
माँ- कबीर , तुम समझाओ उसे . वो मानेंगे नहीं तुम्हारी शादी हो नहीं पायेगी. जीवन में कब तक ये सब चलेगा. वैसे भी ज़माने को लगता तो है तो तुम लोग सच में ही शादी कर लो ना.
मैं- बरसो पहले आपने मुझसे कहा था की भगा ले जा निशा को . मैंने तब भी कहा था आज भी कहता हूँ जब भी हमारा ब्याह होगा धूमधाम से होगा. और फिर मेरे अकेले की तो हसरत नहीं निशा हाँ कहे तो भी कुछ विचार हो.
माँ-न जाने क्या लिखा है तुम दोनों के भाग्य में . मैं फिर भी यही कहूँगी की बसा लो अपना घर
मैं- जरुर .
कहना तो निशा की माँ बहुत कुछ चाहती थी और मैं उसके मन को समझ रहा था किसी भी माँ के लिए बहुत मुश्किल होता है ये सब पर क्या किया जाये नियति की परीक्षा न जाने अभी कितना समय और लेने वाली थी.. माँ से विदा लेकर मैं ताई के घर जा ही रहा था की अचानक से मेरे सीने में दर्द की लहर उठी, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ था. सांस अटकने से लगी, आंसू निकल पड़े. हाँफते हुए मैं दूकान के बाहर रखी मेज पर बैठ गया.
“पानी दे ” खांसते हुए मैंने कहा.
गिलास हाथ में पकड़ तो लिया था पर मुह तक नहीं ले जा पा रहा था . दर्द से सीना फट न जाए सोचते हुए मैंने उस लड़के से कहा -डॉक्टर , डॉक्टर को बुला दौड़ के . चक्कर आने लगे , कुछ ही देर में न जाने ऐसा क्या हो गया की तबियत इतनी ज्यादा बिगड़ गयी. सब धुंधला धुंधला होने लगा था गिलास हाथ से छूटा फिर कुछ याद नहीं रहा..........
होश आया तो मेरे आसपास लोग थे, मैं किसी होस्पिटल के बेड पर पड़ा था. आँखे जलन महसूस कर रही थी .उठने की कोशिश की तो उठ नहीं सका. सीने पर पट्टिया बंधी थी.
“होश आ गया तुम्हे , मैं बताती हु तुम्हारे घर वालो को ” हॉस्पिटल में काम करने वाली ने कहा .
“रुको ” मैंने कहा पर शायद उसे सुना नहीं . थोड़ी देर बाद दरोगा मेरे पास आया और स्टूल पर बैठ गया.
“क्या किरदार हो तुम यार, तुम्हे समझ ही नहीं पा रहा मैं ” उसने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं- क्या हुआ मुझे,
दरोगा- शांत रहो, अभी हालत ठीक नहीं है तुम्हारी.
“क्या हुआ मुझे ” कहा मैंने
दरोगा- कुछ फंसा था तुम्हारे सीने में
दरोगा ने मुझे एक बुलेट दिखाई
मैं- तो
दरोगा- कभी कभी बरसो तक कुछ नहीं होता कभी कभी एक मिनट भी बहुत भारी, ये न जाने कब से तुम्हारे सीने में थी , फिर इसके मन में आ गयी बाहर निकलने की .
मैं- बहुत बढ़िया बाते करते हो तुम
दरोगा- चलो किसी को तो मेरी बाते पसंद आई. किस्मत थी तुम्हारी मैं उधर से ही गुजर रहा था तुम्हे दूकान पर अस्त व्यस्त देखा तो ले आया.
मैं- अहसान रहेगा तुम्हारा .
दरोगा -अहसान कैसा कबीर, मैं तो हु ही मदद के लिए. वैसे मेरी दिलचस्पी है की ये गोली तुम्हारे सीने में आई कैसे.
मैं- कुछ राज़ राज़ ही रहे तो सबके लिए बेहतर होता है
दरोगा- ये भी सही है दोस्त
मैं- दोस्त मत कहो, तुम निभा नहीं पाओगे
दरोगा- अब तो कह दिया . फिलहाल मुझे थाने जाना होगा नौकरी भी करनी है भाई
दरोगा के जाने के कुछ देर बाद ताई और मंजू अन्दर आई.
मैं- तुम कब आई
ताई- खबर मिलते ही आ गये, अब जान में जान आई है मेरे
मंजू-कबीर ये सब ठीक नहीं है कितना छुपायेगा तू हमसे
मैं- मुझे तो खुद दरोगा ने बताया. पता होता तो पहले ही न इलाज करवा लेता
ताई- कबीर, तुम क्या छिपा रहे हो
मैं- कुछ भी तो नहीं
मंजू- इसको मालूम है की इसको गोली किसने मारी मैं जानती हु ये छुपा रहा है इस बात को
ताई- नाम बता फिर उसका, जिसने भी ये किया वो कल का सूरज नहीं देखेगा.
मैं- शांत हो जाओ. ये बताओ की घर कब चलना है
मंजू- जब डॉक्टर कहेगा तब .
कुछ देर बाद ताई बाहर चली गयी .
मंजू- कमीने , तुझे मरना है तो एक बार में मर जा . हमें भी क्यों तडपा रहा है
मैं- तेरी कसम मुझे नहीं पता था
मंजू- एक बात कहनी थी सिमरन भाभी मिली थी , बहुत बदतमीजी से बात की कह रही थी की तुझसे दूर रहू
मैं- उसकी गांड में एक कीड़ा कुलबुला रहा है पता नहीं क्या समझ रही है खुद को
मंजू- कबीर मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से तू अपने घरवालो से कलेश करे.
मैं- तू भी परिवार ही है, ये बात दोहराने की जरुरत नहीं मुझे. भाभी की जिद मैं पूरी करूँगा .
तभी ताई अन्दर आ गयी.
ताई- मैं उलझन में हु कबीर, ऐसा क्या हुआ की छोटे को हार्ट अटैक आ गया. ऐसा ही तेरे ताऊ के साथ हुआ. कहीं इनमे कुछ समानता तो नहीं.
मैं- पता नहीं
ताई- परिवार में इतना कुछ चल रहा है की अब तो कुछ भी कहना बेमानी है
मैं- घर पर करेंगे ये सब बाते.
दरसल मैं ताई से जो कहना चाहता था वो मंजू के आगे नहीं कहना चाहता था. कुछ दिन बाद छुट्टी मिली तो हम लोग वापिस घर को चल दिए. और जब हवेली पहुंचे तो एक नया ही चुतियापा इंतज़ार कर रहा था जिसे देख कर मेरा सर घूम गया और गुस्से से मेरी भुजाये फड़क उठी..........
“मरोगे तुम सालो अभी मरोगे ” मैं आगे बढ़ा..........
मेरी हमेशा कोशिस रही है कि मेरी कहानिया पढ़ी ना जाए वो महसूस की जाएFauji bhai me story me sex nahi dhundhta, bs ek aisi story dhundhta hu jo dil ko chhu Jaye mene apki har story padhi hai or mein apki har story dil dimagh hila deti hai, hat's off to you and your story bhai, bus kya kahu, sabd hi nhi hai, bhai mera dil se aapko prnam hai