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Adultery तेरे प्यार में .....

Raj_sharma

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#9

“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा

मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न

अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .

“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .

मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .

मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.

मैं- बहन है छोटी,

मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .

मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.

मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ

हम दोनों ही हंस पड़े.

मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .

मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.

मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .

मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,

मैं- ये तो गलत किया

मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब

मैंने मंजू के सर को सहलाया.

मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे

मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.

मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.

मैं- क्या यार तू भी

मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने

मैं- भाई भाभी के घर की तरफ

मंजू- हाँ , उधर ही

मैं- कैसी है भाभी

मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले

मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.

मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,

मैं मुस्कुरा दिया .

मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.

“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो

मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.

मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .

मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.

मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर

मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.

मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.

मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.

चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.

मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है

मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है

मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .

मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में

मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.

मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.

मंजू- ऐसा ही है .

बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .

मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.

मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ

मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.

मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .

मंजू- तू चल तो सही यार.

फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.

“अन्दर आजा ” बोली वो.

मैं- तू चल मैं आया.

मैंने गली में देखते हुए कहा

मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.

मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.

मैं- अच्छा सजाया है

मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.

मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .

“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो

मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ

मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .

मैं- तू जाने या ये मन जाने


“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Ye manju uske kabeer ke bachpan ki sathi thi, per uski masuka nahi, wo sayad nisha hi hai🤔 ha jIsa ki foji bhaiya ki sabhi story me hota hai 2 per haath saaf kiya hi hoga :blush1: awesome update bhai :claps::claps::claps:
 

Raj_sharma

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#१०

धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.

“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो

मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु

मंजू- मानेगा नहीं न तू

मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.

“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .

मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.

मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.

“बनियान तो उतार ले ” बोली वो

मैं-रहने दे .

मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.

“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.

“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.

“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो

मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.

“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.

“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..

“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.

मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.

मंजू- कुछ तो हुआ होगा न

मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में

मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को

मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे

मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है

मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था

मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत

मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये

मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.

मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.

मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.

मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न

मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.

“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.

मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.

मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.

“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.

मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में

उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .


“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.
Waah ant ki chand line man ko chhu gayi. :claps: ye mznju to poori chudakkad nikali😁 aur kabeer per hamla hua hai to uske pariwaar ya aas pas walo ki hi den hai, per kon? Ye dekhne wali baat hai.:sigh: Waise kabeer bhi sakht londa hai, pel kar hi chhodega. Ek baar phir se shandaar update bhai :claps::claps:
 

Raj_sharma

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#11

मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.

बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.

पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.

“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .

मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .

लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.



सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .

“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.

“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.

“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.

“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.

मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न

“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो

मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न

“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.

मैं- तुझसे किस ने कहा ये

“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .


“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.
Nisha aur kabeer ka rola tha☺️ aur ho bhi kyu na, wo ishq hi kya jiske charche na ho :dazed:
 

SKYESH

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#1

यूँ तो बहुत राते आई गयी पर नजाने क्यों ये रात परेशान कर रही थी , बहुत बारिशे देखि थी पर आज लगता था की इस बरसात को भी किसी बात का मलाल है , कुछ गुस्सा इसके मन में भी भरा है. कोट को गले तक तो अडा लिया था पर फिर भी ठण्ड कलेजे को चीरे जा रही थी . एक निगाह मैंने काले आस्मां में डाली और उसे कोसते हुए हाथ के जाम को होंठो तक लगाया. महसूस नहीं होती थी अब इसकी कड़वाहट,सुकून बस इतना था की पी रखी है . दो घूँट और गले के निचे करके मैं आगे बढ़ा, पानी इतना बरस रहा था की मैंने छाते पर पकड़ और मजबूत कर दी. बड़ी अजीब सी बात थी आसमान बरस रहा था और ये शहर सो रहा था . मेन सड़क को पीछे छोड़ कर कालेज ग्राउंड के गेट से गुजर ही रहा था की तभी मेरे कदम रुक गए. इतनी बारिश के बावजूद भी मेरे कानो ने चीख सुनी थी . वैसे तो इस शहर में आये दिन ही कोई न कोई अपराध होते रहता था और पड़ी भी किसे थी दुसरे के फटे में टांग अड़ाने की . पव्वे की बची घूंटो को गले के निचे किया और अपने रस्ते बढ़ ही रहा था की दुबारा से मैंने वो आवाज सुनी.

“छोड़ दो मुझे , मत करो ये .” आवाज की तकलीफ कानो से होते हुए दिल तक आकर रुक गयी . दिल कहने लगा की मदद कर दे दिमाग अड़ गया की आगे चल, तेरा कोई लेना देना नहीं है . कदम बेताब थे आगे जाने को पर साले दिल को न जाने क्या हो गया था .

“मत सुन इस चूतिये दिल की मत सुन ” दिमाग लगातार इशारा कर रहा था पर फिर भी मैं ग्राउंड के गेट के अन्दर चला गया. भारी बरसात के बावजूद जलती स्टेडियम लाइट में मैंने वो देखा जो शायद नहीं देखना चाहिए था . अब किसे नहीं देखना था मुझे या फिर उन लोगो को वो सब कर रहे थे . वो चार लड़के थे कार के बोनट पर एक लड़की को नंगी किये हुए मानवता को तार तार करने की जुर्रत में लगे हुए. वो लड़की तड़प रही थी , चीख रही थी और वो चार लड़के इन्सान से जानवर बनने की तरफ बढ़ रहे थे.



“छोड़ो इस लड़की को ये ठीक नहीं है ” मैंने कार की तरफ जाते हुए कहा. एक पल को वो लड़के मुझे देख कर चौंक से गए पर जल्दी ही मुझे अहसास हो गया की ये सिर्फ मेरा वहम था .

“निकल लौड़े यहाँ से ” उनमे से एक लड़के ने मुझे देख कर कहा

मैं- हाँ, निकलते है . लड़की को छोड़ो और जाओ

“अबे साले, देख नहीं रहा क्या ,काम कर रहे है हम . भाग इधर से ” लड़के से कहा और दूसरा लड़का वापिस उस लड़की को बोनट पर लिटाने लगा.

मैं- इसकी मर्जी नहीं है तो जाने दो इसे

“रुक पहले तेरी गांड मारता हु . साला टाइम खराब कर रहा है . मौसम नहीं देख रहा हीरो बन रहा है ”लड़के ने लड़की के हाथ छोड़े और मेरी तरफ बढ़ा

“तेरा कोई लेना देना नहीं है पड़ी लकड़ी मत उठा ”दिमाग ने फिर से इशारा किया लड़के ने पास आते ही मेरे पैर पर लात मारी, मुझे उम्मीद नहीं थी घुटना जमीन से टकराया छतरी हाथ से फिसल गयी . मुझे गिरा देख वो हंसने लगे

“निकल गयी हीरो पांति अब निकल लोडे इधर से , साला न जाने किधर से आ गया मुड की माँ चोदने ” कहते हुए वो वापिस मुड़ा पर आगे बढ़ नहीं पाया. उसकी गूद्दी मेरे हाथ में थी .

“ये गलती मत कर , तू जानता भी नहीं ये कौन है ” उनमे से एक लड़के ने कहा और मारने को आगे बढ़ा और मैं जान गया था की बात अब बिगड़ ही गयी है .

“लड़की को जाने दो ,बात इसी रात खत्म हो जाएगी . तुम भी भूल जाना मैं भी याद नहीं रखूँगा ” मैंने प्रयास किया

“लड़की तो चुदेगी ही आज तेरे सामने ही चोदुंगा इसे जो बने कर ले ” लड़के ने अपनी गूद्दी मुझसे छुडाते हुए कहा

मैंने देखा दो लडको ने गाड़ी में से होकी निकाल ली थी . मैंने आसमान को देखा और अगले ही पल मैंने उस लड़के की गांड पर लात मार दी. होकी उस लड़के के हाथ से छीनी और उसके ही सर पर दे मारे .

“साले तेरी ये हिम्मत ” गुस्से से वो लड़का जो उस लड़की का रेप करना चाहता था मेरी तरफ बढ़ा मैंने उसके मुह पर मुक्का मारा पहले मुक्के में ही उसकी नाक टूट गयी चेहरे पर खून बहने लगा. तीसरे साथी के पैर पर मैंने लात मारी पास पड़ी होकी के दो तीन वार उसके पैर पर किये अब मामला दो बनाम एक का था . इस से पहले की वो अपनी नाक को संभालता मैंने उसके सर को गाडी के बोनट पर दे मारा. “आह ” चीखा वो .

“कपडे पहन ले ” मैंने उस कांपती हुई लड़की से कहा और उस लड़के के हाथ को पकड लिया .

“जिद नहीं करनी चाहिए थी तुझे, देख भारी पड़ गयी न कहना मानना चाहिए था तुझे ” मैंने उसे बोनट के सहारे पटकते हुए कहा

“तू नहीं जानता मेरा बाप कौन है ,तू नहीं जानता तूने किस से पंगा लिया है . तू नहीं जानता आगे तेरे साथ क्या होगा ” लड़के ने लम्बी सांसे लेते हुए कहा .

मैंने एक बार फिर से आसमान की तरफ देखा और बोला,”मत खेल ये खेल मेरे साथ”

“किस्मत को मानता है तू लड़के , बड़ी कुत्ती चीज होती है . पर शायद तेरी किस्मत तुझ पर मेहरबान है माफ़ी मांग इस लड़की से वादा कर की आगे कभी भी तू ऐसी नीच हरकत नहीं करेगा तो क्या पता किस्मत मेहरबान हो जाये तुझ पर ”मैंने कहा

लड़का- इस शहर की हर औरत मेरी जागीर है , जिसकी चाहे उसकी लू जिसे चाहे छोडू ये शहर हमारे नाम से कांपता है किस्मत तो तेरी रोएगी जब मेरा बाप तेरी खाल खींचेगा .

लड़के ने प्रतिकार किया और मैंने उसे मारना शुरू किया,इतना मारा की उसका चेहरा समझ नहीं आया रहा था . खून साला पानी जैसे धरती पर बह रहा था , किसी को अहमियत ही नहीं थी

“इधर आ ” डर से कांपते हुए मैंने उस चौथे लड़के को इशारा किया .

“ले जा इसे, और इसके बाप से कहना की किसी भी औरत की इज्जत कभी भी सस्ती नहीं होती, ये लड़की किसी की बेटी है बहन होगी किसी के . तेरी बहन को कोई ऐसे करे तो तू क्या करता ” मैंने कहा

“चीर देता उसे ” कांपते हुए वो बोला

“मैं भी यही करता ” मैंने कहा और उस धरती पर पड़े उस लड़के के हाथ को कंधे से उखाड़ दिया. चीख इतनी जोर की थी की आसमान तक दहल गया .

“सही किया ना ” मैंने चौथे लड़के के कंधे को थपथपाया

“इसके बाप से कहना की जिस लड़की की तरफ बुरी नजर डाली उसका एक भाई जिन्दा है इस शहर में ”

उस लड़की का हाथ पकड़ आगे बढ़ गया . डर से बुरी तरह कांप रही थी वो लड़की .

“ठीक तो है न तू ” मैंने पुछा

वो कुछ नहीं बोली बस मेरे गले लग कर रोने लगी . मैंने नजर उठा कर आसमान को देखा और उस लड़की के सर पर हाथ रख दिया..................
starting to aap ki DHAMAKEDAR hi hoti hai.....

mind blowing .................. :happy:
 

SKYESH

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नींद छीन लेते हैं जो अफसाने उन्हें कैसे भुलाओगे,
दामन थामे बैठे हैं जो दीवाने उन्हें कैसे छुड़ाओगे।
कभी तन्हाइयों में सोचोगे कभी गुनगुनाओगे,
हमारी यादों के समन्दर से क्या बचकर भाग पाओगे।।


जब जहां चलना हो, दोनों भाई साथ जाएंगे, अकेले भागने की कोशिश मत करना :nana:
tisara bhai ke bare main bhi soch lena ................................😊
 

SKYESH

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#३

करने को कुछ था नहीं तो मैं भी वापिस मुड गया . पैदल चलते हुए बरसो बाद मैंने अपने सीने में ताज़ी हवा को महसूस किया .

“कई साल से कुछ खबर नहीं कहाँ दिन गुजरा कहाँ रात की , ना जी भर के देखा ना कुछ बात की बड़ी आरजू थी मुलाकात की ” सड़क किनारे उस छोटे से चाय के अड्डे पर बजते गाने ने मेरे कदमो को रोक लिया. धुंए में लिपटी चाय की महक में एक लम्हे के लिए मैं खो सा ही तो गया था .

“चाय पिला दे यार ” मैंने दूकान वाले से कहा .

“साहब , अन्दर आ जाओ . मैं किवाड़ लगा दू बाजार बंद का हुकुम है ” उसने कहा तो मैं अन्दर बैठ गया .

उसने मुझे प्याला दिया पांच बरस बाद आज मेरे होंठो ने तपते कप को छुआ था . उस घूँट की मिठास होंठो को जलाते हुए सीधा दिल में ही तो उतर ही गयी . “माई ” मेरे होंठो रुक ना सके, ना ही मेरे आंसू .

“क्या हुआ साहब चाय ठीक नहीं लगी क्या ” दूकान वाले ने पुछा.

मैंने एक घूँट भरी और जेब के तमाम पैसे उसको दे दिए.

“चाय तो बस दस रूपये की है ”बोला वो

मैं- रख ले यारा, बरसो बाद घर की याद आई है .मेरी माँ भी ऐसी ही चा बनाती थी .

इस से पहले की मैं रो ही पड़ता, मैं हाथ में प्याले को लिए बाहर आ गया.

“ना जी भर के देखा ना कुछ बात की ” बहुत देर तक मैं इस लाइन को महसूस करते रहा . सोकर उठा तो मौसम पूरा बदल चूका था , हाथ में जाम लिए मैं छत पर गया तो देखा मकानमालकिन बारिश में नहा रही थी ,भीगे बदन पर नजर जो पड़ी तो ठहर सी ही गयी.

“ये बारिशे क्यों पसंद है तुम्हे ”

“बरिशे तो बहाना है दिल तो बस इन बूंदों को तुम्हारे गालो पर देखना चाहता है . बारिश तो बहाना तेरे भीगे आँचल को चेहरे से लगाने का बारिश तो बहाना है सरकार . यूँ तो तमाम बंदिशे है मुझ पर तुझ पर पर इस बारिश में तेरा हाथ थाम कर इस पगडण्डी पर चलने का जो सुख है बस मैं जानता हु ”

तभी बिजली की गरज हुई और मैं यादो के भंवर से बाहर आया तो देखा की मकानमालकिन मुझे ही देखे जा रही थी .



“कितनी बार कहा है तुमसे , मत पियो ये शराब कुछ नहीं देगी तुम्हे ये बर्बादी के सिवाय ” बोली वो

मैं- मैं नहीं पीता इसे , पर ये पीती है मुझे



“इधर दो इस गिलास को ” उसने मेरे हाथ से गिलास झटका , मैं कुछ कदम पीछे सरका. वो थोडा आगे बढ़ी .उसकी सुडौल छातिया मेरे सीने से आ लगी और अगले ही पल उसके गर्म होंठ मेरे होंठो से आकर जुड़ गए. भरी बरसात में उसके तपते होंठो का स्पर्श मेरे तन को महका गया पर अगले ही पल मैंने उसे अपने से दूर कर दिया.

“ये ठीक नहीं है रत्ना ” मैंने कहा

“गलत भी तो नहीं है न , ”रत्ना ने फिर से मेरे पास आते हुए कहा

मैं- तुम नहीं समझोगी

रत्ना- यही तो बार बार मैं पूछती हूँ, क्या हुआ है तू बताता भी तो नहीं. काम पर जाता है आते ही ये जाम उठा लेता है , जिदंगी की कीमत समझ तो सही .

मैं- जिदंगी जी ही तो रहा हूँ रत्ना.

रत्ना- ऐसे नहीं जी जाती जिन्दगी. नजर उठा कर तो देख तेरे आसपास लोग है , परिवार है , यार दोस्त है बस एक तू बेगाना है . ना जाने किस बात का गम लिए बैठा है तू

बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी . रत्ना के गालो से टपकती बारिश की बूंदे मेरे मन में हलचल मचा रही थी , रत्ना ३८ साल की बेहद गदराई औरत थी शानदार ठोस उभार ४२ इंच की गाद्देदार गोल मटोल गांड पांच फूट की लम्बाई के सांचे में ढली बेहद ही दिलकश औरत .

रत्ना ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी छाती पर रख दिया और बोली- मौसम बहुत अच्छा है करने दे मुझे मनमानी .

जानता था मानेगी नहीं अब ये , मैंने रचना को दिवार से लगाया और उसकी भीगी साडी को ऊपर उठाने लगा. उफ्फ्फ क्या ठोस जांघे थी उसकी. निचे बैठ कर मैंने उसकी कच्छी को निचे उतारा और उसके कुलहो को हाथो से फैलाते हुए अपने होंठो को उसकी दहकती हुई चूत से लगा लिया.

“उफ्फ्फ ” कांप सी गयी वो और अपनी गांड को और खोल दिया. बारिश में भीगी तपती चूत से बहता कामरस मेरे बदन में शोले भड़काने लगा था.

“अन्दर तक ले जा जीभ को ” उन्माद से भरी रत्ना बोली . मैं खुल कर उसकी चूत को पीने लगा. बहुत दिनों बाद रत्ना आज मेरे साथ सोने वाली थी . जब जब वो अपनी गांड को हिलाती मेरी नाक उसके गुदा द्वार से टकराती.

“चोद अब, रहा नहीं जा रहा अह्ह्ह्हह ” रत्ना मद्मास्त हो चुकी थी .

मैंने पेंट खोली और लंड को चिकनी चूत पर रख दिया. रत्ना अपना हाथ निचे ले गयी और लंड को चूत पर रगड़ने लगी.

“उफ्फ्फ, कितना गरम है तेरा लंड ” आगे वो बोल नहीं पायी क्योंकि लंड उसकी चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर जा चूका था . रत्ना को चूत पर धक्के लगाते हुए मैं उसके गालो को चूमने लगा था.

“बहुत गर्म है तू ” मैंने उसके कान को दांतों से चबाते हुए कहा

रत्ना- फिर भी तू नहीं चढ़ता मुझ पर .

मैं- आज तेरी इच्छा पूरी करूँगा, आज की रात तू कभी नहीं भूलेगी.

रत्ना- मार ले मेरी चूत


कुछ देर तक रत्ना को खड़े खड़े छोड़ने के बाद मैंने लंड को बाहर निकाला रत्ना ने तुरंत अपने कपडे उतार दिए और फर्श पर ही घोड़ी बन गयी . उफ्फ्फ रत्ना की गांड का उभार , कसम से क्या ही कहना . चौड़े कुल्हे को थामते हुए एक बार फिर से लंड उसकी चूत की सवारी करने लगा. रत्ना अड़तीस साल की गदराई विधवा औरत अपना हाथ निचे ले जाकर मेरी गोलियों को सहलाने लगी. उसकी इसी अदा का मैं कायल था .बारिश अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी थी और हमारी चुदाई भी . रत्ना की गांड बहुत जोर से हिलने लगी थी मेरे हाथ बार बार उसकी कमर से फिसल रहे थे . बदन में तरंग चढ़ने लगी थी. तभी रत्ना की चूत ने लंड पर दबाव बना दिया रत्ना सिस्कारिया भरते हुए झड़ने लगी और ठीक उसी पल मेरे वीर्य की बौछार उसकी चूत में गिरने लगी..................
:happy: :claps:
 

SKYESH

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#५

जीप में से सेठ का मेनेजर उतरा. उसके माथे का पसीना और अस्त व्यस्त हालत देख कर ही मैं समझ गया था की अच्छी खबर तो लाया नहीं होगा ये.

“तुम्हे चलना होगा मेरे साथ ” देवीलाल ने कहा

मैं- क्या हुआ

देवीलाल- सेठ को मार दिया लाला के गुंडों ने, शहर छोड़ कर भागना चाहता था था सेठ पर मुमकिन नहीं हो सका.

खबर सुनकर झटका सा लगा मुझे. सेठ के अहसान थे मुझ पर इस अजनबी शहर में काम दिया था उसने .

“और सेठानी. ” बड़ी मुस्किल से बोल सका मैं.

“मेरे साथ आओ ” देवीलाल ने कहा तो मैं जीप में बैठ गया. बहुत तेजी से गाडी चला रहा था वो और मेरा दिमाग जैसे एक जगह रुक गया था . मन जैसे सुन्न हो गया था . दिल में एक बोझ सा आ गया था , मन उचाट हो गया मैं अपने आप को गलत समझने लगा. अगर मैं लाला के गुंडों को नहीं पीटता तो शायद सेठ जिन्दा होता. आँखों के किसी कोने से आंसू बह पड़े. होश जब आया, जब गाड़ी के ब्रेक कानो से टकराए.

सेठ के घर की बस्ती थी ये , सेठ के घर के पास बहुत भीड़ जमा थी , कांपते हुए दिल को लिए मैंने कदम आगे बढ़ाये. भीड़ हटने लगी थी , घर के निचे मैंने गाड़ी के काले बोनट पर बैठे उसे देखा जो शान से सिगार का धुंआ उड़ा रहा था .

“ले आया शोएब बाबा मैं इसे, मुझे माफी दो ” दौड़ते हुए देवीलाल उसकी तरफ भागा पर पहुँच नहीं पाया क्योंकि शोएब की गोली ने उसके कदम रोक दिए.

“माफ़ी के लायक नहीं तू, धोखेबाज सिर्फ गोली खाते है.” बोनट पर बैठे बैठे ही बोला वो.

सेठ मर गया था, देवीलाल का जिस्म तडप रहा था . तभी मेरी नजर कोने में सर झुकाए सेठानी पर पड़ी जो निर्वस्त्र थी . सौ लोग तो होंगे ही वहां पर और उनके बीच में एक नारी नंगी बैठी थी . कांपती धडकन चीख कर कहने लगी थी की उस औरत की लाज नहीं बची थी.

“शोएब , ये ठीक नहीं किया तूने अंजाम भुगतेगा इसका. ” चिल्ला पड़ा मैं .

उसने बेफिक्री से सिगार का कश खींचा और उतर कर मेरे पास आया, इतने पास की सांसो का निकलना भी मुश्किल हो. उसने बन्दूक मेरे सर पर लगा दी और बोला- सिर्फ एक गोली और सब ख़तम पर ये तो आसान मौत होगी. अगर तुझे आसान मौत दी फिर खौफ क्या ही होगा शाहर के लोगो में . तुझे तड़पना होगा तेरी तड़प ही इस शहर को बता सकती है की हमारे सामने सर उठाने वालो का अंजाम क्या होता है .

“किस्मत बड़ी ख़राब है तेरी शोएब ,किस्मत सबको एक मौका देती है तूने गँवा दिया अपना मौका . सेठ की मौत के लिए तुझे शायद माफ़ी भी मिल जाती पर इस अबला औरत पर तूने जो जुल्म किया है न तू कोसेगा उस पल को जब तूने इसकी अस्मत लूटी. जिस मर्दानगी का गुमान है न तुझे, तू रोयेगा की तेरी माँ ने तुझे मर्द पैदा ही क्यों किया.कमजोरो पर वार करने वाले कभी मर्द नहीं होते,तेरी नसों में मर्द का खून बह रहा है तो आज और दिखा तेरा जोर मुझे .” कहते हुए मैंने खींच कर एक मुक्का शोएब के चेहरे पर जड़ दिया. दो कदम पीछे हुआ वो और अपने चेहरे को सहलाने लगा.

उस एक मुक्के ने जैसे आग ही तो लगा दी थी .

“अब साले ”शोएब के गुंडे मेरी तरफ आगे बढ़े पर शोएब ने अपना हाथ उठाते हुए उन्हें रोक दिया .

शोएब- दूर हो जाओ सब , जिदंगी में पहली बार कोई मिला है मजा आ गया. गोली मारी तो तौहीन होगी आ साले आया , देखे जरा , तुझे मार कर इसको फिर से चोदुंगा तेरी लाश पर लिटा कर

“जहाँगीर लाला को खबर कर दो जनाजे की तैयारी करे. उसके बेटा मरने वाला है ” मैंने जोर से बोला और हम जुट गए. शोएब हवा में उछला और मेरे कंधे पर वार किया. लगा की जैसे पत्थर ही तो दे मारा हो किसी ने . पीछे छोड़ आया था मैं ये सब पर आज नियति शायद ये ही चाहती थी की पाप का अंत हो जाये.

शोएब के कुछ वार मैंने रोके, कुछ उसने रोके. ताकत में वो कम नहीं था . उसने मेरे घुटने पर लात मारी .

“उठ , अभी से थक गया ” हँसते हुए बोला वो

मेरी नजर सेठानी पर पड़ी जिसकी मूक आँखे मुझ पर ही जमी थी . मैंने शोएब के हाथ को पकड़ा अपने कंधे को उसकी बगल से ले जाते हुए उसे उठा कर पटका वो गाड़ी के अगले हिस्से पर जाकर गिरा. “आह ” जिस तरह उसने अपनी पसलियों पर हाथ रखा मैं तभी समझ गया था की चोट गहरी लगी है , तुरंत मैंने उसी जगह पर लात जड़ दी.

“आह ” कराह पड़ा वो दोनों हाथ पसलियों पर रख लिए पर इतना आसान कहाँ था उसका निपट जाना. मेरे अगले वार को रोक कर उसने हवा में उछाल दिया मुझे उठ ही रहा था वो की मैंने उसके कुलहो पर लात मारी इस से पहले की वो संभलता मैंने पुरे जोर से उसे खिड़की पर दे मारा. शीशा तिडक गया. मैंने शोएब के हाथ को गाड़ी से लगाया और उसकी बीच वाली ऊँगली को तोड़ दिया.

“आहीईईईईई ” इस बार वो बुरी तरह चीखा जिन्दगी में पहली बार उसने दर्द महसूस किया .

“लाला को खबर हुई के नहीं, खबर करो पर अब ये कहना की जनाजे की तयारी ना करे, यही आ जाये इसकी लाश को कंधा देने जनाजे लायक कुछ बचेगा नहीं. ” चीखते हुए मैंने उसके सर को ऊपर किया और अगली ऊँगली तोड़ दी.

“गौर से देख शोएब ये गली तेरी , ये मोहल्ला तेरा, ये बाजार तेरा तेरे ही शहर में तेरी गांड तोड़ रहा हूँ मैं क्या बोला था तू मेरी लाश पर लिटा के चोदेगा सेठानी को तू . तुझे वास्ता है तेरी माँ की उस चूत का जिस से तू निकला है दम मत तोडियो . दर्द क्या होता है है आज जानेगा तू ” मैंने उसके सर को घुमाया और उसकी पीठ पर मुक्के मारने लगा.

“क्या कह रहा था तू भोसड़ी के, इस शहर को तेरा खौफ होना चाहिए, बहन के लंड मुझे गौर से देख, तेरे बेटे की गांड इसी तरह तोड़ी थी मैंने , उसकी आँखे और गांड दोनों एक साथ फट गयी थी जब मैंने उसके हाथ को उखाड़ा था . वो इतनी अकड़ में था की साला समझ ही नहीं रहा था मैंने बहुत कहा की टाल ले इस घडी को पर साले को चुल थी की शहर उसके बाप का है और देख उसके बाप की गांड भी तोड़ रहा हूँ . ” थोडा सा उसे आगे किया और फिर से एक लात मारी वो दर्द से बिलबिलाते हुए गाड़ी के दरवाजे से टकराया. मैंने उसकी बेल्ट खोल ली और उसकी गले में पहना दी.

“देख , तेरे ही शहर में कुत्ता बना दिया तुझे. कहाँ रह गया इसका बाप लाला, मर्द नहीं है क्या वो साला छुप गया क्या किसी के भोसड़े में जाकर. खबर करो उसे इस से पहले की मैं इसे मार दू लाला चाहिए मुझे यहाँ ” मैंने शोएब के हाथ को उठाया और एक झटके में तोड़ दिया.

“आअहीईईईइ ” उसकी सुलगती चीखे बहुत सकून दे रही थी . बस्ती के लोग, शोअब के गुंडे सबको जैसे लकवा मार गया था . मैंने उसे उठाया और गाड़ी में बोनट पर लिटाया. पेंट निचे सरकाई उसकी , उसके नंगे चुतड हवा में उठ गया.

“बहुत लोगो को नंगा किया तूने, आज ये दुनिया तेरी औकात और तेरी गांड देखेगी. तुझे मालूम है शोएब जब किसी औरत को जबरदस्ती चोदा जाता है तो कितना दर्द महसस करती है वो . तू अभी जान जायेगा. एक मिनट रुक बस एक मिनट तू भी देख साले गांड में कुछ जाता है तो कैसा दर्द होता है ” मैंने गाड़ी के वाईपर को उखाड़ा और शोएब की गांड में घुसा दिया.

“महसूस हुआ ” मैंने वाईपर को घुमाया शोएब के कुल्हे टाइट हो गए दर्द से ऐंठने लगा वो .

सांस अटकने लगी थी उसकी बदन झटके खा रहा था मैंने उसकी शर्ट को फाड़ दिया गाडी में मुझे नुकीली फरसी दिखी मैंने शोएब की पीठ पर कट लगाया इतना की मेरी उंगलिया उसके मांस में धंस सके.


“महसूस कर इस दर्द को , इस डर को की कोई था जो आया और तेरे सारे खौफ को तेरी गांड में घुसा के चला गया. ” चुन चुन कर मैं उसके मांस को हड्डियों से अलग करता रहा , बहुत दिनों बाद सुख महसूस किया था मैंने. और तारुफ़ देखिये इधर मैंने उसकी अंतिम हड्डी को मांस से अलग किया की ठीक तभी जहाँगीर लाला और पुलिस की गाडिया वहां आ पहुंची.......
wah............................ :adore:
 

Raj_sharma

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#12



“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए


मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
Fir se wahi purane rang me laut asye dost, aur humko bhi usi purani gaon ki galiyo ke mahol me ghuma diya ju ne :approve: ye maahol ye saadgi, jaha kuch na hokar bhi sab kuch mil jaaye, nisha aur kabeer ek doosre ke liye hi hai, per saadi nahi kar paaye??? Karan thos hona chahiye?🤔 awesome update and superb writings :claps:
 

Raj_sharma

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#13

गहनता से जांच करते हुए मुझे बहुत सी ऐसी चीजे मिली जो बताती थी की एक शांत आदमी के मन में समुन्दर हो सकता है. एक समय के बाद पिताजी से मेरा रिश्ता वैसा तो हरगिज नहीं था जैसा आमतौर पर होता है और उसका कारण थी चाची , जब से मुझे उन दोनों के अवैध संबंधो का मालूम हुआ था मैंने अलग दिशा में सोचना शुरू कर दिया था . घर की आर्थिक स्तिथि ठीक थी दो तनख्वाह आती थी , चाचा व्यापारी था अन्न खेतो से आ जाता था .घी-दूध घर का था ही. पुराने बक्से में मुझे गहने मिले जो शायद माँ के हो . एक हार था शुद्ध सोने का , कुछ चूडिया और चांदी के कड़े तथा पायजेब. मन के संगम वाली बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी आखिर क्या था ऐसा जिसको लेकर पिताजी परेशान थे, रूपये पैसे की कोई समस्या होनी नहीं चाहिए थी मेरे हिसाब से तो फिर क्या बात थी . एक बार फिर से मैंने उन चित्रों को समझने का प्रयास किया . डायरी के वो पन्ने रह रह कर जंगल की तरफ इशारा कर रहे थे . गाँव का जंगल बहुत बड़ा था मैंने विचार किया की कोशिश करने में क्या ही हर्ज है . मैं बस एक कड़ी चाहता जो मुझे रास्ता दिखा सके.



आसमान में घटाए छाने लगी थी , करने को कुछ खास था नहीं तो मैं एक बार फिर से खेतो पर पहुँच गया. अपनी जमीन की ऐसी दुर्गति देख कर मेरा मन रोता था , क्या घर में ऐसा कोई नहीं बचा था जो खेतो को संभाल सके,अपनी माँ को तो खो दिया था इस माँ की देखभाल तो कर ही सकता था , जिस जगह हमारे खेत थे बहुत ही शानदार जगह थी वो सावन के मौसम में तो क्या ही कहने थे , एक तरफ नहर फिर हमारे खेत और फिर जंगल इस से जायदा सुन्दरता और क्या ही हो. एक मिनट, खेत और फिर जंगल. क्या इनका आपस में कोई सम्बन्ध था , ऐसे ही कोई क्यों जमीनों को लावारिस छोड़ देगा जबकि फसलो से आमदनी बढ़िया होती थी.

टीनो के निचे खड़े ट्रेक्टर को थोड़ी मशक्कत के बाद मैंने चालु कर दिया और दौड़ा दिया जमीन पर छोटे मोटे पौधे, घास उसके निचे दबने लगे. पीछे लगी गोडी अपना कमाल दिखाने लगी. जहाँ तक बस चला मैं ट्रेक्टर चलाता रहा कुछ बड़े पेड़ थे उनके लिए कोई और योजना चाहिए थी. करीब बीस एकड़ की जमीन थी हमारी. आसमान किसी भी समय बरस सकता था पर परवाह किसे थी. शाम होते होते लगभग एक तिहाई हिस्से पर मैंने गोडी मार दी थी. घूमते घूमते मेरी नजर एक जगह रुक गयी, जानवर खेतो में ना घुस सके इसलिए बाड लगाई गयी थी पर जहाँ मैं देख रहा था बाड कटी हुई थी . ज्यादा तो नहीं पर एक इन्सान आराम से जंगल में जा सकता था . उत्सुकता वश मैं भी उधर ही चल पड़ा. जंगल का ये हिस्सा थोडा सा पथरीला था,चलते चलते मैं एक ऐसी जगह पर पहुंचा जो बहुत साफ़ थी , शांत थी. पास में एक हैण्ड पम्प था . आगे अच्छा खासा रास्ता था जीप तक जा सकती थी थोडा पानी पीकर मैं आगे बढ़ा. टप टप बूंदे गिरने लगी थी हवा पत्तो से टकरा रही थी जंगल जैसे झूम सा रहा था .



छोटे मोटे जानवर देखते हुए मैं आगे चला जा रहा था जंगल गहरा होते जा रहा था ऐसा नहीं था की मैं पहले जंगल में आया नहीं था पर इतना गहरा नहीं , हम तो जंगल में या तो लकडिया काटने जाते थे या मंजू की चूत मारने . थोडा आगे एक तालाब आया जो बारिश में फुल मस्ती में था. आसपस जानवरों के पैरो के निशाँ थे. बारिश रफ़्तार पकड़ने लगी थी . पर मैं आगे बढ़ रहा था . कुछ दूर एक बरगद का पेड़ था सोचा उसके निचे आश्रय ले लेता हु. पेड़ की तरफ दौड़ तो पड़ा था पर जा नहीं सका क्योंकि कुछ और देख लिया था . इतने घने जंगल में एक झोपडी थी , सरकंडो से बनी हुई झोपडी जिसके चारो तरफ पत्ते इस प्रकार लगाये गए थे की एक बार नजर चूक ही जाये.

“ये बढ़िया है ” मैंने भीगे हाथो से झोपडी के पल्ले को खोला. अन्दर एक लालटेन थी, रौशनी हुई तो आराम सा मिला. झोपडी में एक पलंग था जिस पर बिस्तर था .चाय बनाने का सामान था . हालत देख कर मैं अंदाजा नहीं लगा सकता था की कोई इधर आता था या नहीं , लालटेन पर धुल थी जबकि बिस्तर फर्स्ट क्लास था . खेतो में ऐसी झोपडिया बनाना सामान्य था पर जंगल के इतने घने हिस्से में समझ नही आ रहा था . खैर, पेट में गुडगुड होने लगी थी तो मैंने बाहर जाना मुनासिब समझा

उत्सुकता बड़ी कुत्ती चीज होती है , हो सकता था की बारिश थमने के बाद मैं वहां से चला जाता पर कहते है न की कभी कभी किस्मत गधो पर भी मेहरबान होती है और आज वो गधा मैं था, टट्टी करने के लिए संयोग से मैं जिन झाड़ियो में गया वहां पर कुछ ऐसा था जिसे मैं बंद आँखों से भी पहचान सकता था , मौसम की मार खाती वो जीप हमारी थी मेरे पिता की थी. जीप को छूते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे .जीप के बोनट पर मेरा नाम लिखा था . शीशे के ऊपर चिपकाया सन्नी देओल की फोटो जो अब नाम की ही बची थी.

अवश्य ही झोपडी का हमारे परिवार से ही लेनादेना था . पर क्या ये सोचते हुए मैंने जीप का अवलोकन करना शुरू किया अजीब सी बदबू थी उसमे . अच्छी बात ये की चाबी छोड़ रखी थी, थोड़े प्रयास के बाद चालु हो गयी वो. हालत खस्ता थी पर चल रही थी अपने आप में बात थी. अगर जीप यहाँ तक आई तो सड़क भी होगी, सोचते हुए मैंने जीप को विपरीत दिशा में मोड़ दिया. और अंदाजा बिलकुल सरल था क्योंकि थोडा ही आगे रास्ता बढ़िया था, अँधेरा घिरने लगा था. थोडा आगे जाने पर मैंने पत्थरों की खान थी जो बंद पड़ी थी, पेड़ के निचे एक बड़ा सा मार्बल का टुकड़ा पड़ा था जो शान से बता रहा था की खान में क्या था . खैर वो रास्ता अपने आप में अनोखा था कोई तीन किलोमीटर के अंदाजे के बाद अचानक से ही वो रास्ता उधर आ मिला जहाँ वो चबूतरा था जिसके पास से मेरे खेतो का रास्ता शुरू होता था . यानि की एक गोल चक्कर था . कहते है दुनिया गोल है और जो भी था इसी गोलाई में था बस उसे तलाशना बाकी था.


मंजू के घर जाने से पहले मैं अपना कोट लेना चाहता था जो टीनो के निचे छोड़ दिया था और जब मैं वहां पहुंचा तो मैं अकेला नहीं था वहां पर..........................
Jungle me mangal kiya hoga kabeer ke baapu ne😁 kuch go locha hzi bhai,aur znt me wah kon tha jo teen shades ke neeche kabeer ko dikha?🤔 dekhna hoga.
Awesome update and beautiful ✍️
 
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