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Adultery सज्जनपुर की कहानी

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Arthur Morgan

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Jawan ladke ka man bhatka diya karma ne.... ab sonu pata nahi kis kis k naam ki pichkari margea.....


Udhar rajni bhi rang me rangte ja rahi hai.....



Bhut shandaar update



Agle update ka wait rahega
धन्यवाद मित्र देखते हैं क्या हो सकता है
 
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Arthur Morgan

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Too good pls update

Bahut hee badhiya update hai… waiting for next update

Bahut shandar update

Next update or with dhamakedar hona chahie

pls update

GREAT START KEEP IT UP
बहुत बहुत धन्यवाद सभी को, दूसरी कहानी उल्टा सीधा में नई अपडेट दी है उसे भी पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें धन्यवाद
 

Napster

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रजनी को कुछ समझ नहीं आया, मगर सरोज की बात मानते हुए वह बोली, “ठीक है जीजी, बुलाती हूँ।” रजनी दरवाजे तक गई और बिमला को आवाज़ दी।
कुछ ही देर में बिमला आई और अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया। उसने रजनी को मुस्कुराकर देखा। सरोज बोली, “आ गई बिमला, चल अब अपनी खास वाली सेवा कर दे। और रजनी, अगर सीखना चाहे तो उसे भी सिखा दे।

बिमला ने कहा, “हाँ मालकिन, बिल्कुल,” और अपनी साड़ी उतारने लगी।

अध्याय आठ
जल्दी ही बिमला की साड़ी जमीन पर थी, रजनी एक मेले में आए खेल देखने वाले बच्चे की तरह थी और अब क्या होगा ये सोच कर हैरानी से देख रही थी, बिमला अपनी साड़ी तक ही नहीं रुकी बल्कि उसने कुछ ऐसा किया जिससे रजनी हैरान रह गई, बिमला ने साड़ी के बाद ब्लाउज उतारा और फिर पेटीकोट और एक एक करके लगभग सारे कपड़े ही उसके ज़मीन पर थे और बिमला के बदन पर बस एक कच्छी थी और वो दोनों के बीच खड़ी थी।
रजनी की आँखें तो बिमला के नंगे बदन पर जमी हुईं थीं, बिमला खुद नंगी हुई और सरोज की ओर बढ़ी,
बिमला बिस्तर के पास पहुंची
सरोज: आ गई अब दिखा अपना कमाल रजनी को।
बिमला: जी मालकिन,
बिमला ने एक बार रजनी की ओर देखा मानो कह रही हो कि देख और सीख, उसने अपने हाथ बढ़ाए और सरोज की ब्रा को उसके सीने से खोल कर अलग फेंक दिया, सरोज की मोटी चूचियां नंगी सामने आ गईं, रजनी की तो आँखें और फैल गई उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, वो सरोज की मोटी चूचियों की सुंदरता देख मन ही मन उनकी तारीफ करने लगी,
बिमला ने सरोज की नंगी चूचियों को एक दो बार मसला और फिर कटोरी से हथेली में तेल लिया और तेल भरे हाथों से सरोज की चूचियों से खेलने लगी और सरोज की आहें निकलने लगीं। बिमला सरोज की चूचियों को आटे की तरह कभी गूंथती तो कभी उन्हें पकड़ कर हिलाती।

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और बिमला की हर हरकत पर सरोज आहें भर रही थी, रजनी का तो ये खेल देख बुरा हाल था वो अपनी उत्तेजना दबाए हुए बस देखे जा रही थी, उसकी टांगों के बीच की नमी उसे महसूस हो रही थी,

बिमला: आह जीजी तुम्हारी चूचियां कितनी मुलायम है मानों माखन की पोटलियां हों।
सरोज: आह ऐसे ही कर इन पर तेरे हाथों का स्पर्श बहुत अच्छा लगता है मुझे आह तुझे पता है इनसे कैसे खेलना है एक अलग आनंद देती है तू,
बिमला: आह हां मालकिन मुझे भी तुम्हारे गुब्बारों से खेलना बहुत पसंद है,
ये कह बिमला अपना मुंह एक चूची पर लगा कर उसे चूसने लगती है और सरोज की आंखें बंद हो जाती है सिर पीछे की ओर हो जाता है,
वहीं कोने में बैठी रजनी चुपचाप सब देख रही थी। पहले वो सरोज की मालिश करने आई थी, पर अब बस देखती जा रही थी—बिमला के हाथों की लय, सरोज की मचलती साँसें, और उनके बीच का अनकहा साज़।

सरोज की आँखें खुलीं और रजनी की ओर उठीं। “क्या हुआ रजनी, ऐसे क्या देख रही है?”

रजनी सकपकाई, “कुछ नहीं जीजी… बस… देख रही थी।”

सरोज ने हँसते हुए कहा, “देख न… सीखना भी है तुझे। बिमला अच्छा पढ़ा रही है आज। ऐसी मास्टरनी नहीं मिलेगी तुझे,
रजनी को अजीब लग रहा था कि नंगी होने के बाद भी दोनों कितनी आसानी से बात कर रही हैं न कोई झिझक न कोई शर्म।

बिमला ने एक शरारती मुस्कान के साथ सरोज चूची को मुंह से निकालते हुए कहा, “सीखने के लिए पहले मन खोलना पड़ता है… और देह भी।”
रजनी और बिमला की नज़र मिली इस बात पर फिर बिमला ने सरोज की चूची को मुंह में भर लिया पर उसकी बात रजनी के मन में घूमने लगी, उधर बिमला ने सरोज की चूची को मुंह से निकाला और फिर दोनों अपनी अपनी चूचियों को एक दूसरे में घिसते हुए बच्चियों की तरह खिलखिलाने लगी,

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रजनी को ये देख लगा कि दोनों कितनी खुश लग रही हैं, क्या वो भी इतनी खुश हो सकती है कभी क्या उसके अंदर भी इतनी खुशी बाकी है रजनी ये सब सोच रही थी वहीं सरोज और बिमला एक दूसरे की चूचियों को आपस में मिला रही थी और जल्दी ही दोनों के होंठ भी मिल गए और एक दूसरे के होंठो को चूसने लगी, रजनी के लिए ये बहुत नया था वो पहली बार दो औरतों को एक दूसरे के चूमते हुए देख रही थी पर देखते हुए हर पल उसके बदन की गर्मी बढ़ती जा रही थी।
सरोज और बिमला के होंठ अलग हुए बिमला ने सरोज को बिस्तर के सामने पड़े सोफा पर बैठा दिया और उसके होंठों को एक बार फिर से चूमा। दोनों की नजरें एक बार फिर से रजनी की ओर गईं जो खड़े खड़े दोनों के इस खेल को देख रही थी,
सरोज ने रजनी की प्यासी आंखों को देखा और बोली: देख रजनी मैं तुझसे कुछ भी ऐसा नहीं करवाऊंगी जो तू न करना चाहे, अब तेरे पास दो रास्ते हैं, या तो तू कमरे से चली जा और दूसरा कोई काम कर या आगे बढ़ और हमारे साथ शामिल हो, मर्ज़ी तेरी है।
बिमला: पर रजनी जीजी हमारी बात याद है न, मन और देह दोनो खोलना पड़ेगा।
बिमला ने ये कहा और फिर सरोज ने इतने में बिमला की चूची को मुंह में भर लिया और चूसने लगी, बिमला की सिसकी और खिलखिलाहट निकली।
रजनी के लिए दुविधा हो गई थी, उसका अंतर्मन उसे बता रहा था कि ये सब गलत है और उसे सही मौका मिला है यहां से जाने का और इस महापाप से बचने का, पर उसकी नजरें तो सरोज और बिमला से हट ही नहीं रही थी, उसके कदम इतने भारी हो गए थे कि हिल ही नहीं रहे थे बिमला और सरोज का तो उस पर ध्यान ही नहीं था, सरोज सोफे पर बैठी थी और बिमला सोफे पर ही उसके बगल में घुटनों पर खड़ी होकर अपनी चूचियों को चुसा रही थी। अचानक से सरोज को अपनी चूची पर गर्म एहसास हुआ और उसने बिमला के चूचे से मुंह हटा कर देखा तो उसके दूसरी तरफ रजनी आ चुकी थी, और सरोज की चूची को पकड़ कर चूसने लगी थी, ये देख बिमला के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।
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वहीं सरोज के मुंह से आहें निकलने लगी, और वो बापिस बिमला की चूची को मुंह में भरने लगी। रजनी ने अपने मन और मस्तिष्क में से मन की बात सुनी थी और सरोज की चूचियों को चूस रही थी, उसे ऐसा लग रहा था मानो सरोज की चूचियों से रस उसके मुंह में घुल रहा है। सरोज बिमला की चूचियों को चूस रही थी और बिमला आहें भर रही थी।
बिमला: आह मालकिन ओह ऐसे ही। आह रजनी जीजी तुम भी बहुत अच्छे से चूस रही हो मालकिन की मोटी चूचियां।
रजनी ने बिना मुंह हटाए ही बिमला की ओर देखा और आंखों ही आंखों में मुस्कुराई।।
बिमला: पर ये क्या रजनी जीजी मैने कहा था न देह और मन दोनों को नंगा करना पड़ेगा।
ये सुन रजनी ने अपना मुंह हटाया सरोज कि चूचियों से और ब्लाउज़ उतारने लगी कुछ ही देर में उसकी नंगी चूचियां सामने थीं।
वहीं बिमला भी उठी और अपनी कच्छी में उंगलियां फंसा कर नीचे सरका दी और पूरी नंगी हो गई, और फिर सरोज की टांगों के बीच आ गई सरोज की कच्छी को भी नीचे सरका दिया, रजनी खुद के कपड़े निकालते हुए सकुचा कर सरोज और बिमला को देख रही थी, अभी भी उसमें शर्म बाकी थी, उसने ब्रा उतार दी बस पेटीकोट उसके बदन पर था, और वो खड़ी खड़ी शर्मा रही थी,
सरोज और बिमला ने उसकी ओर देखा और उठ कर उसके पास गई और दोनों ओर से उसे घेर लिया,
सरोज: ये हुई न बात रजनी तूने बिल्कुल सही फैसला लिया है।
बिमला: पर जीजी अभी भी थोड़ी कमी है, ये कह कर बिमला ने रजनी का पेटीकोट उठा कर उसकी कमर पर इकठ्ठा कर दिया अब रजनी की चूत भी सबके सामने थी, जिस पर लगती हुई ठंडी हवा रजनी को महसूस हो रही थी,
बिमला और सरोज दोनों ने रजनी की एक एक चूची को मुंह में भर लिया और चूसने लगीं

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दोनों के हाथ रजनी के नंगे चूतड़ों पर घूमने लगे, रजनी की आँखें बंद हो गई और उसके मुंह से आहें और सिसकियां निकलने लगीं।

रजनी: आह जीजी ओह बिमला आह अच्छा लग रहा है आह हम्मम।
रजनी को यकीन नहीं हो रहा था कि वो कभी औरतों के आमने इस अवस्था में होगी और उससे भी बड़ी बात उसे औरतों का साथ भा रहा था, उसने सोचा नहीं था कि औरतें भी एक दूसरे को इस प्रकार का सुख दे सकती हैं उसे तो यही लगता था कि संभोग से जुड़ी सब चीजें मर्द और औरत के बीच ही हो सकती हैं।

सरोज ने कुछ पल बाद उसकी चूची से मुंह हटाया और बोली: बिमला अब रजनी को अगला पाठ पढ़ा वैसे भी अब अपनी चूत की खुजली सही नहीं जा रही मुझसे।
रजनी को थोड़ी हैरानी हो रही थी सरोज के मुंह से खुले शब्द सुनकर फिर उसने कमरे का माहौल देखा तो खुद उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई,
बिमला और सरोज उसके बगल से हट गई थीं बिमला नीचे बैठ गई सोफा के सहारे और सरोज ने सोफे पर चढ़ कर अपनी टांगें फैलाकर बिमला के मुंह पर रख दिया और बिमला बिना देरी किए अपनी जीभ चलाने लगी, और सरोज के मुंह से आहें निकलने लगीं,
रजनी खड़े खड़े ये सब देख हैरान थी एक औरत को दूसरे औरत की चूत चाटते देखना ये दृश्य वो पहली बार देख रही थी पर इस बार वो सिर्फ दर्शक नहीं बनना चाहती थी वो आगे बढ़ी और फिर से सरोज के बगल में जाकर उसकी चूची को मुंह में भर लिया, सरोज तो दोहरे मजे से आहें भरने लगी।

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सरोज: आह ओह बिमला आह ऐसे ही जीभ चला अपनी ओह अह रजनी चूस ऐसे ही आह दिखा तेरे अंदर कितनी गर्मी है।
बिमला और रजनी मिलकर हवेली की मालकिन की सेवा कर रही थी और वो उस आनन्द से सिसक रही थी बदन मचल रहा था,
सरोज ये दोहरा मज़ा ज़्यादा देर तक नहीं सह पाई और उसका बदन थरथराते हुए झड़ने लगा, झड़ते हुए वो नीचे फिसलती हुई सोफे पर लेट गई और हांफने लगी।
सरोज: आह ओह अह बिमला, क्या जादू करती है ओह तू।

बिमला ने मुस्कुराते हुए अपने मुंह पर लगे रस को अपनी उंगलियों पर लिया और फिर उंगलियां भी चाटने लगी, रजनी बिमला के इस फूहड़पन को मुस्कुराते हुए देख रही थी, बिमला ने एक उंगली रजनी की ओर बढ़ाई मानो पूछ रही हो कि स्वाद लेना चाहोगी, और उसे और खुद को हैरान करते हुए रजनी ने उंगली को मुंह में लेकर चूस लिया उसे एक अलग सा स्वाद आया उंगली से पर वो बुरा नहीं लगा बल्कि उसे और उत्तेजित कर गया।

बिमला ने ये देखा तो वो जोश और उत्तेजना से भर गई और अगले ही पल उसने रजनी के होंठों से अपने होंठो को मिला दिया, रजनी इस अचानक हमले से हैरान हुई पर कुछ पल बाद वो भी ऐसे साथ देने लगी मानो हमेशा से ये करती आ रही हो, सरोज लेट कर मुस्कान के साथ दोनों को देख रही थी, और अपनी चुचियों से खेल रही थी,
बिमला और रजनी एक दूसरे को चूमते हुए सोफे पर लेट जाती हैं बिमला नीचे होती है और रजनी ऊपर दोनों की मोटी चूचियां आपस में दब जाती हैं दोनों एक दूसरे के होंठों को छोड़ नहीं रहीं, सरोज उनकी टांगों की ओर बैठती है और उसके सामने रजनी की चूत होती है, सरोज रजनी की चूत को हाथ बढ़ाकर सहलाने लगती है, सरोज की उंगलियों को अपनी चूत पर महसूस करते ही रजनी के बदन में सनसनी होती है उसका चेहरा ऊपर उठ जाता है आँखें बंद हो जाती है, सरोज एक उंगली उसकी चूत में घुसा देती है और रजनी की उत्तेजना और आनदं और बढ़ जाता है।
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बिमला नीचे से रजनी की छाती और गर्दन को चूमने लगती है, रजनी को ऐसा आनंद कभी नहीं आया था, उसके साथ दो दो औरतें थीं जो उसने बदन के साथ खेलते हुए आनंद पहुंचा रहीं थी, वो वासना और आनदं में बह रही थी, रजनी उस आनदं में डूब कर हिलोरे मार रही थी उसका बदन हर हरकत पर सिहर रहा था और फिर कुछ देर के सुख के बाद एक तीव्र सी ऊर्जा उसके बदन से निकलने लगी, उसका बंद कांपने लगा और वो झड़ने लगी

कुछ देर यूं ही कमरे में शांति रही फिर रजनी के बदन में बापिस जान सी आई,
बिमला: अरे उठो रजनी जीजी ऊपर से तुम तो सोने लगी हमारे ऊपर,
बिमला ने हंसते हुए कहा, तो रजनी उसके होंठों को चूमकर उठ गई, रजनी उठी तो बिमला बोली: क्यों जीजी कैसा लगा?
रजनी ने शर्माकर पहले उसे देखा और फिर सरोज को और फिर बोली: ऐसा तो पहले कभी महसूस नहीं किया ऐसा भी मज़ा आ सकता है सोचा भी नहीं था।
बिमला: चलो तुमने मज़ा ले लिया अब मेरी रसभरी भी बहुत देर से राह देख रही है, ले लो स्वाद इसका भी।
बिमला ने अपनी टांगें खोलते हुए अपनी चूत को दिखाते हुए कहा,
रजनी ने बिमला की चूत को देखा फिर उसके चेहरे की ओर और बोली: पर करना कैसे है मैं नहीं जानती?
बिमला: अरे बस तुम शुरू करो सब अपने आप आ जाएगा।
रजनी ने बिमला के कहे अनुसार अपने चेहरे को आगे किया और बिमला की चूत के पास ले गई, एक अजीब और अलग सी गंध उसकी नाक में घुल गई, सकुचाते हुए रजनी ने जीभ निकाली आग बिमला की गीली चूत पर रखी तो बिमला की आह निकली और साथ ही रजनी के बदन में भी सिरहन हुई। एक अलग सा स्वाद उसकी जीभ पर आया वहीं बिमला चीख पड़ी, कुछ देर तक रजनी नई नई सीखी कला का अभ्यास बिमला पर करती रही बिमला कराहती रही सरोज पास बैठे ये सब देख रही थी।
कुछ देर बाद बिमला झड़ गई और रजनी ने उसके पैरों के बीच से मुंह निकाला तो उसका मुंह गीला था और उसके चेहरे पर बड़ी मुस्कान थी।

सरोज: बहुत अच्छे रजनी तू तो बहुत जल्दी सीख रही है, अब आ मुझे भी दिखा तूने क्या सीखा, रजनी तुरंत सरक कर सरोज के पैरों के बीच आ गई और अब एक आत्मविश्वास के साथ सरोज की चूत चाटने लगी, सरोज उसकी जीभ की कला के असर से आहें भरने लगी, रजनी को अपनी जीभ के बल पर सरोज को इस तरह आहें भरवाने और उसके बदन को नचाने में मज़ा आ रहा था,

कुछ पल बाद बिमला उठी और रजनी और सरोज के बगल में बैठ गई,
बिमला: अरे वाह जीजी बहुत अच्छे से चाट रही हो बहुत अच्छे से सीख गई तुम तो,
सरोज: आह सही कह रही है बिमला, आह क्या मस्त जीभ चला रही है ये, आह इसे तो सिखाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। आह पूरी तैयार है पहले से ही।
सरोज ने रजनी का सिर पकड़ कर अपनी चूत उसके मुंह पर घुमाते हुए कहा,
रजनी दोनों की बातों को बिना अपनी जीभ हटाए सुन रही थी और उत्तेजित हो रही थी।
पूरी तैयार हैं या नहीं अभी देख लूं मालकिन?
सरोज: आह हम्मम।
रजनी को समझ नहीं आया कैसे देखने की बात हो रही है, पर तभी उसे अपने सिर पर बिमला का हाथ महसूस हुआ जिसने उसके बालों को पकड़कर उसे सरोज को चूत से थोड़ा अलग किया, रजनी की नजरें अभी भी सरोज की चूत पर थीं, सरोज ने अपनी टांगों को थोड़ा और पीछे की ओर मोड़ लिया जिससे उसके चूतड़ और खुल गए, बिमला ने फिर रजनी के चेहरे को आगे धकेला और अब उसके मुंह को सरोज की गांड के छेद के करीब कर दिया, रजनी समझ गई ये ही थी वो तैयारी वाली बात, रजनी सरोज की गांड के भूरे कसे हुए छेद को देखने लगी, ये वो छेद है जिसे बदन का सबसे गंदा हिस्सा कहा जाता है, जिससे सब घिन खाते हैं पर सरोज की गांड का छेद ऐसा कुछ नहीं था,
बल्कि उसका छेद तो उसे सुंदर लग रहा था, चूतड़ों के बीच एक बंद गोल छोटी सी खिड़की जैसा, रजनी का चेहरा अपने आप आगे हो गया और उसने अपनी जीभ सरोज के छेद पर फिराई, तो सरोज का पूरा बदन कांप गया, और बिमला और सरोज दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वहीं सरोज की गांड चाटते ही रजनी को अपने अंदर कुछ बदलता हुआ सा अहसास हुआ उसे लगा अब सब कुछ बदल रहा है, वो अपने अंदर एक नई ताकत और आज़ादी महसूस करने लगी, बस वो फिर सरोज की गांड चाटने पर पूरी लगन से लग गई, जीभ से उसके छेद को कुरेदने लगी, और सरोज पागल होने लगी,
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सरोज ने बिमला को इशारा किया तो बिमला सरोज के चेहरे पर आकर बैठ गई, सरोज उसकी चूत चाटने लगी, तीनों का ये खेल तब तक चला जब तक तीनों एक एक बार और स्खलित नहीं हो गईं। और तीनों थक कर कमरे में लेट गईं, रजनी जानती थी आज उसके अंदर कुछ बदला है, अब वो पहले वाली रजनी नहीं रह गई थी।
दूसरी ओर बाज़ार से निकल कर कर्मा ने मोटरसाइकिल सड़क के एक किनारे पर लगा दी और उस पर बैठ गया, सोनू भी उसके बगल में खड़ा हो गया,
सोनू: कर्मा भैया हम यहां क्यों रुके हैं? कोई काम है?
कर्मा: अरे काम तो नहीं हैं पर काम की चीज हैं,
कर्मा ने खेत की ओर इशारा करते हुए कहा तो सोनू ने उस ओर देखा,
खेत के किनारे तीन औरतें थीं शायद मजदूर थीं, तीनों में से एक सास और दो बहुएं थीं जो खेत में से बालियां बीन रहीं थीं।

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तीनों ही मज़दूर थीं पर तीनों के ही बदन भरे हुए और कामुक थे साथ ही उनकी साड़ी ऐसी थी जो उनका पेट और बदन दिखा रही थी।
सोनू: इनका क्या करोगे भैया?
कर्मा: थोड़ी गर्मी शांत करूंगा, तुझे करना है क्या?
सोनू को जैसे ही बात समझ आई उसने तुरंत ना में सिर हिला दिया।
कर्मा: अरे आ तू न शर्माता बहुत है,
सोनू: नहीं भैया सही में मुझे कुछ नहीं करना,
सोनू ने घबराते हुए कहा,
कर्मा: ठीक है मत कर आ मेरे साथ तो चल।
सोनू उसके साथ साथ चल दिया सिर हिलाकर।
कर्मा और वो चलकर खेत के अंदर गए जहां वो तीनों औरतें काम कर रही थीं कर्मा ने एक को इशारा किया तो जो सबसे अधिक उम्र की थी वो आगे आई, कर्मा ने अपना पर्स जेब से निकाला और उसमें से एक नोट निकाल कर उस औरत को थमा दिया,
औरत: कौन चाहिए मालिक?
कर्मा: तू,
ये सुनकर औरत थोड़ी मुस्कुराई साथ ही उसके पीछे खड़ी बहुएं भी आपस में खुसुर पुसुर कर रही थी,
औरत: और ये बाबू,
कर्मा: इसे कुछ नहीं चाहिए,
सोनू ये सब ध्यान से और हैरानी से देख रहा था,
कर्मा उस औरत को लेकर आगे बढ़ा और सोनू उसके पीछे पीछे साथ ही उसकी दोनों बहुएं भी, खेत को पार करके वो लोग एक जगह पहुंचे जहां घास थी,
औरत: मालिक यहीं सही है,
कर्मा: हां ठीक है,
कर्मा ने अपने पैंट से पर्स निकाला और सोनू को पकड़ा दिया फिर पैंटी खोलने लगा।
औरत: ए तुम दोनों खेत में काम करो तब तक जाओ,
उसने अपनी बहुओं से कहा,
फिर सोनू से बोली: बाबू तुम भी बाहर इंतजार कर लो थोड़ा,
सोनू उसकी बात सुन कर मुड़ा ही था।
कर्मा: नहीं सब यहीं रुकेंगे, तेरी बहुएं भी और ये भी।
औरत ने कर्मा की ओर देखा और फिर अपनी नजरें नीची करके साड़ी खोलने लगी, और साड़ी उतार कर नीचे बिछा दी।
और उस पर खुद लेट गई अपने पेटिकोट को कमर तक उठाकर,
औरत: आ जाओ मालिक,
कर्मा: साली ऐसे नहीं पूरे कपड़े उतार,
औरत उठ कर बैठी एक बार कर्मा को देखा फिर उसकी आंखों मे देख और समझ गई कि उससे कुछ नहीं कह सकती थी, उसने ये सोचा और फिर अपने सारे कपड़े उतारने लगी, और पूरी नंगी हो गई अपनी बहुओं के सामने।
कर्मा ने भी अपने कपड़े उतारे और सोनू के हाथ में दे दिए। सोनू इन सब को हैरानी और बहुत ध्यान से दे रहा था, औरत के नंगे बदन को देख कर उसे भी उत्तेजना हो रहीं थी।
कर्मा पूरा नंगा हो कर आगे बढ़ा और औरत को घोड़ी बनाया, और फिर उसके पीछे जगह ली और फिर पीछे से अपना मोटा कड़क लंड उसकी चूत में घुसा दिया जिससे उस औरत की आह निकल गई। कर्मा औरत की कमर थाम उसे चोदने लगा।

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औरत आह आह करके आहे भर रही थी और सोनू पहली बार चुदाई देख रहा था अपनी आंखों से उसका लंड पेंट में कड़क हो चुका था पर अभी वो झिझक और शर्म से कुछ नहीं कर पा रहा था सिवाय देखने के।
कर्मा ने औरत को काफी देर चोदा और फिर जब निकलने वाला था तो उस औरत के मुंह में लंड घुसा दिया और झड़ने लगा, औरत के पास और कोई चरा नहीं था सिवाय उसे गटकने के जिसे वो तुरंत गटक गई। कर्मा उठा अपना लंड उसके मुंह से निकाल कर सोनू से अपने कपड़े लेकर पहनने लगा। जल्दी ही दोनों मोटरसाइकिल के पास थे।
कर्मा: क्या हुआ इतनी देर से चुप क्यों है,
सोनू जैसे होश में आया उसके सामने तो बस वही दृश्य चल रहा था, जब कर्मा उस औरत को चोद रहा था,
सोनू: कुछ नहीं भैया.
कर्मा: अरे तू शर्माता बहुत है, इतनी झिझक रखेगा न तो कुछ नहीं मिल पाएगा,
सोनू: वो बात नहीं भैया बस होता है थोड़ा।
कर्मा: शर्म कर पर अपने फायदे के समय तो मत संकोच कर, अच्छा खासा मौका गंवा दिया चुदाई का,
सोनू: कोई बात नहीं भैया मौका तो मिल ही जाएगा।
सोनू ने थोड़ा हंसते हुए कहा,
कर्मा: मेरे साथ रहेगा तो बिल्कुल मिलेगा, पर तुझे मेरे सामने झिझकना छोड़ना होगा, अब तो तूने मुझे नंगा भी देख लिया है।
इस पर दोनों हंस पड़े,
सोनू: नहीं बिल्कुल नहीं झिझकूंगा अब तो, अच्छा एक बात पूछूं भैया?
कर्मा: हां पूछ ना,
सोनू: दो दो जवान बहुओं के होते हुए तुमने सास को ही क्यों चुना,
कर्मा: हां ये पूछा है तूने काम का सवाल, देख इसका जवाब है कि मुझे बड़ी उम्र की औरतें पसंद हैं, पता है क्यों?
सोनू: क्यों?
कर्मा: देख एक तो उनका बदन भरा होता है, हम लड़कों को क्या चाहिए सब कुछ बड़ा बड़ा, तो औरतों की चूचियों से लेकर गांड तक सब कुछ बड़ा बड़ा होता है।
सोनू बात को समझते हुए: हां ये तो सही बात है भाई।
कर्मा: दूसरी वजह कि वो कच्ची कलियों की तरह रोती नहीं, झटके तेज हो या लंबे सब सह जाती हैं ऊपर से कुछ न कुछ सिखा ही देती हैं, शर्माती नहीं हैं इतना,
सोनू: सही में, भैया तुमने तो पूरा पाठ सोच रखा है इस पर तो,
कर्मा: अब लौड़े को सुखी रखना है तो सोचना ही पड़ता है, यार सही में कुछ तो अलग होता है बड़ी उम्र की औरतों में भरा बदन साड़ी में से झांकता पेट, कमर में पड़ी सिलवटें ये देख मेरा तो लंड तन जाता है।
सोनू: हां सही कह रहे हो भैया,
कर्मा: अपने गांव में ही एक से एक मस्त ऐसी औरतें हैं, जिन्हें देख मेरा कड़क हो जाता है।
सोनू: अच्छा सच में कौन कौन?
कर्मा: नहीं रहने दे तू बुरा मान जाएगा।
सोनू सोचने लगा कि ऐसी कौन हैं कहीं ये मां के बारे में तो नहीं बोल रहा? ये सोच कर सोनू को जिज्ञासा होने लगी।
सोनू: अरे नहीं मानूंगा भैया बताओ ना।
कर्मा: पक्का? देख ले फिर बाद में मुंह मत बनाना।
सोनू: हां पक्का बताओ तो सही।
कर्मा: तेरे यार कम्मू की मां और ताई, हाय क्या मस्त गदराए बदन वाली हैं दोनों, कई बार हिलाया है दोनों को सोच कर।
सोनू: अपने दोस्त के परिवार के बारे में सोच कर चुप हो गया।
कर्मा: क्या हुआ तूने बोला था बुरा नहीं मानेगा, वैसे भी देख सोच पर किसका वश है, अब वो सोच में आती हैं तो क्या करूं।
सोनू: हा ये भी सोच में तो कुछ भी हो सकता है।
कर्मा: वही तो यार वैसे तो मन्नू की मां भी कम नहीं है उसका बदन भी खूब भरा है।
सोनू: हां भैया,
सोनू को समझ नहीं आ रहा था क्या बोले अब।
कर्मा: तुझे पसंद नहीं भरे बदन की औरतें?
सोनू: हां पसंद हैं पर ।
कर्मा: तो कभी इन तीनों का नहीं सोचा?
सोनू: नहीं भैया ये दोस्त की मां हैं तीनों इनके बारे में गंदा नहीं सोच सकता।
कर्मा: अच्छा दोस्त है तू पर क्या तेरे दोस्त तेरे घर की औरतों के बारे में नहीं सोचते होंगे इसका विश्वास है तुझे।
ये सुनकर सोनू सोच में पड़ गया फिर कुछ सोच कर बोला: नहीं भैया मेरे दोस्त ऐसे नहीं हैं, वो लोग अच्छे हैं।
कर्मा: चल ये तो और बढ़िया है। चल अब चलते हैं।
कर्मा मोटरसाइकिल शुरू करता है और गांव की ओर चल देते हैं,
गांव आकर कर्मा ने सोनू को उसके घर के सामने उतार दिया और बोला: आज अब तेरी छुट्टी,
सोनू ने भी सिर हिलाया तो कर्मा आगे बढ़ गया और सोनू घर की ओर मुड़ गया, कर्मा थोड़ा आगे बढ़ा तो उसकी मोटरसाइकिल धीमी हुई, बिंदिया अपने घर की दहलीज पर खड़ी थी, कर्मा उसे देखने लगा, बिंदिया की नज़रें भी कर्मा से मिलीं, और कर्मा को अपनी ओर देखता पा कर बिंदिया सकुचाई पर उसने अपनी नजरें फेर ली पर कर्मा ने नहीं हटाई, बिंदिया बार बार नज़र हटा कर देखती तो कर्मा को अपनी ओर देखता पाती, साथ ही उसके चेहरे पर वो मुस्कान थी, ये सिलसिला जब तक कर्मा गली से बाहर नहीं निकल गया तब तक चलता रहा, बिंदिया के दिल की धड़कन बढ़ गई, कर्मा स्वभाव का जैसा भी था पर देखने में सुंदर था ऊपर से उसका रुतबा हवेली का लड़का होने से और था तो गांव की लड़कियां उससे प्रभावित तो रहती थीं पर शर्म की वजह से खुद को रोकती थीं। बिंदिया को भी कर्मा देखने में भाता था पर घरवालों से उसने हमेशा से ये ही सुना था कि हवेली वालों से जितना दूर रहो उतना ही अच्छा है। वैसे भी आज उसे देखने वाले आ रहे थे तो उसके लिए तो कुछ भी सोचना व्यर्थ ही था ये सोच वो अंदर चली गई।

सोनू के घर में कुछ दिनों से शांति थी, उसका बाप उस दिन से घर नहीं लौटा था, उसकी बड़ी बहन नेहा घर संभाल रही थी वहीं नीलेश के कहने से उसके बड़े भाई की नौकरी भी लग गई थी पास के ही गांव में, सोनू घर पहुंचा तो घर पर उसकी दोनों बहने ही थीं,
नेहा: अरे आज इतनी जल्दी कैसे आ गया तू?
सोनू: दीदी वो कर्मा छोड़ गया आज काम कम था।
मनीषा: क्या वो कर्मा, सोनू तू उससे दूर ही रहा कर, तुझे पता है न वो कैसा है, वैसे तू क्या कर रहा था उसके साथ? तुझे तो माली के साथ काम मिला है ना?
सोनू: नहीं दीदी वो मुझे अपने साथ ले गया था बाज़ार, समोसे और ठंडा भी खिलाया,
नेहा: अच्छा इतनी मेहरबानी किस खुशी में?
सोनू: पता नहीं जीजी, शायद वो मेरी उम्र का ही है तो मुझे अपना दोस्त मानता है,
मनीषा: इन हवेली वालों की दोस्ती इन्हें ही मुबारक हो,
नेहा: ऐसा भी नहीं है मनीषा, हो सकता है हम उन लोगों को ज़्यादा ही बुरा मानते हो, पर आज उनकी वजह से ही हमारी कितनी मुसीबतें टली हैं ये भी नहीं भूलना चाहिए।
मनीषा: हां दीदी ये तो सही कह रही हो।

थोड़ी देर आराम और बहनों से बात करने के बाद सोनू घर से निकल गया, कई दिनों से वो अपने दोस्तों से नहीं मिला था, इसीलिए सीधा कम्मू के घर पहुंचा, आंगन में ही सुमन थी जो कपड़े धो रही थी नल के पास बैठ कर उसका ब्लाउज़ पानी से गीला हो चुका था नीचे सिर्फ एक पेटीकोट था वो भी घुटनों पर इकट्ठा था गीला होकर, मखमली पेट पर पानी की बूंदें सरक रहीं थी, गोल गहरी नाभी किसी झील की तरह लग रही थी। और सबसे बड़ी बात ब्लाउज़ गीला होकर पारदर्शी हो गया था और उसकी बड़ी बड़ी चूचियों की झलक दे रहा था।

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सोनू ने उसे देखा और उसे कर्मा की बात याद आ गई, वैसे कर्मा भी गलत नहीं कह रहा था, चाची सच में बहुत सुंदर हैं, सोनू के मन में खयाल आया उसे अपने लंड में हरकत हुई सी महसूस हुई तो उसने खुद के सिर को झटका। और आगे बढ़ बोला।
सोनू: चाची प्रणाम, कम्मू कहां है?
सुमन: अरे खुश रह मेरा बच्चा, मां कैसी है तेरी अब सब ठीक है न?
सुमन ने कपड़े धोना जारी रखते हुए कहा क्योंकि वो सोनू को बचपन से खिलाती आई थी वो उसके लिए बेटे के जैसा ही था इसलिए उसने भी कोई ध्यान नहीं दिया।
सोनू: हां चाची सब ठीक है मां भी ठीक है अभी हवेली पर ही है,
सोनू ने मुश्किल से अपनी आंखें और कहीं केंद्रित करते हुए कहा।
सुमन: चल अच्छा है, जा कम्मू कमरे में सो रहा है उठा ले जाकर।
सोनू सुमन की बात सुनकर कमरे में गया और कम्मू को उठाने लगा,

जारी रहेगी।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रजनी हवेली में चल रहें सरोज और बिमला के बीच चल रहें खेल में शामिल हो गयी है और उस खेल में उसे एक अलग ही मजा आ रहा हैं
ये कर्मा के साथ रहकर सोनू को एक अलग ही नया अनुभव देखने को मिला वो भी चुदाई का साथ में कर्मा के कहे बडी उम्र वाली औरतों की ओर आकर्षण होने की भी संभावना लगती हैं अभी सोनू ने सुमन को अर्ध नग्न अवस्था में देख भी लिया और उत्तेजना भी महसुस करी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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नौवाँ अध्याय


सज्जनपुर की दोपहर धीरे-धीरे अपनी चाल में थी। गाँव की गलियों में धूल उड़ रही थी, और खेतों से हल्की हवा के साथ फसलों की खुशबू आ रही थी। कम्मू के घर का आँगन शांत था, जहाँ सोनू अपने दोस्त को उठाने पहुँचा। कम्मू बिस्तर पर आलस में पड़ा था, आँखें मलते हुए उठा। सोनू को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। “अरे, कब आया यार?” कम्मू ने उत्साह से पूछा, बिस्तर से उठते हुए।
“अभी बस, अभी आया,” सोनू ने जवाब दिया, और दोनों कमरे की खटिया पर बैठकर बातें करने लगे।
कम्मू ने पूछा, “आज हवेली नहीं गया?
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नहीं यार, आज काम कम था। जल्दी छुट्टी मिल गई।
कम्मू: अच्छा हुआ यार बहुत दिन से तुझसे मिलना ही नहीं हो पा रहा था।
सोनू: हां यार सुबह जाता हूं और आते आते अंधेरा हो जाता है।
कम्मू: हां यार वैसे, बता, वो कर्मा और अनुज तुझे परेशान तो नहीं करते?
सोनू का मन एक पल के लिए ठिठका। उसकी आँखों के सामने वह दृश्य कौंध गया—उसकी माँ रजनी और नीलेश, नंगे, एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए। उसने जल्दी से अपने चेहरे को संभाला और बोला, “नहीं यार, सब ठीक है। हम शायद उन्हें ज़्यादा बुरा समझते हैं। कर्मा तो मुझसे अच्छे से बात करता है।

कम्मू ने भौंहें चढ़ाईं। “यकीन नहीं होता। कर्मा बड़ा कमीना लगता है मुझे। पक्का तुझे या तेरी माँ को हवेली में कोई परेशानी तो नहीं?

सोनू ने फिर से उस दृश्य को मन में दबाया और कहा, “नहीं यार, कोई परेशानी नहीं। सब ठीक है।” उसकी आवाज़ में हल्का सा काँपन था, मगर कम्मू का ध्यान उस पर नहीं गया।
कम्मू: चल अच्छा है फिर भी तू सावधान रहियो और मुझसे कुछ मत छुपाना।
अरे, ऐसा नहीं है,” सोनू ने हँसकर जवाब दिया। “वो तो मुझे आज मोटरसाइकिल पर बाज़ार ले गया था। समोसे खिलाए, ठंडा पिलाया, और फिर घर पर भी छोड़ गया।”

कम्मू ने हैरानी से कहा, “अरे वाह! इतनी मेहरबानी? कुछ तो गड़बड़ है। कर्मा ऐसा बिना मतलब के नहीं करता।
सोनू ने कर्मा और मज़दूर औरत की चुदाई का दृश्य अपने मन में दबा रखा था। वह उस बात को कम्मू से छुपाते हुए बोला, “नहीं यार, शायद वो मेरी उम्र का है, तो मुझे दोस्त मानता है।

“अच्छा, तो तेरा नया दोस्त अब कर्मा है, हवेली का लड़का! हमें तो अब तू भूल ही जाएगा,” कम्मू ने हँसते हुए तंज कसा।
सोनू: अबे तू भी न कुछ भी बोलता है, मेरे दोस्त तो तुम दोनों ही रहोगे हमेशा।
इसी बीच सुमन नहाकर कमरे में आई। उसके गीले बाल हवा में झूल रहे थे, और बदन पर सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ था। उसका बदन हल्का गीला था, और ब्लाउज़ उसके भरे हुए सीने को उभार रहा था।

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गाँव के छोटे घरों में दो कमरे होने की वजह से यह आम बात थी। सुमन को बच्चों के सामने कोई संकोच नहीं था, खासकर सोनू के सामने, जिसे वह बचपन से बेटे की तरह मानती थी।
मगर सोनू की नज़रें छुप-छुपकर सुमन के बदन पर पड़ रही थीं। कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं—सुमन चाची का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और मखमली पेट। उसने जल्दी से सिर झटका और सोचा, “नहीं यार, मेरा दोस्त साथ में है, और मैं उसकी माँ को ऐसे देख रहा हूँ। ये गलत है।

सुमन ने साड़ी पहनी और दोनों से पूछा, “चाय पियोगे?”
कम्मू ने दोनों की ओर से तपाक से हाँ बोल दिया। सुमन मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
कम्मू ने फिर सोनू से पूछा, “वैसे, कर्मा ने मेरे या मेरे परिवार के बारे में कुछ बोला? उस दिन मैदान में उससे झड़प हो गई थी न, उसके बाद कुछ तो नहीं कहा?”
सोनू को कर्मा की बात याद आई—कम्मू की माँ और ताई के भरे हुए बदन की तारीफ़, और यह कि उसने उन्हें सोचकर कई बार हिलाया था। मगर सोनू ने यह बात मन में दबाई और बोला, “नहीं यार, सच में कुछ नहीं। तू बेकार में चिंता मत कर।”
कम्मू ने राहत की साँस ली और बोला, “सही है यार। मैं नहीं चाहता कि धीरज भैया के ब्याह के समय कोई शिकायत आए। खासकर हवेली वालों के साथ कोई कांड हो, ये तो बिल्कुल नहीं।”
सोनू ने सिर हिलाया, मगर उसका मन उलझा हुआ था। कर्मा की बातें, उसकी माँ का हवेली में बदला हुआ रूप, और आज का खेत वाला दृश्य—यह सब उसके मासूम मन को भारी कर रहा था। कम्मू ने उसकी उदासी भाँप ली और बोला, “चल, चाय पीते हैं, फिर बाहर मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते हैं। कब से तूने बल्ला नहीं पकड़ा!”
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। दोनों बाहर आँगन में आए, जहाँ सुमन चाय चूल्हे से उतार रही थी
सुमन: बैठो तुम लोग अभी देती हूं,
सोनू और कम्मू दोनों ही छप्पर में पड़ी खाट पर बैठ गए, सोनू जैसे ही बैठा तो उसे पीछे से आवाज़ आई: अरे सोनू लला मां कैसी है तेरी?
उसने पीछे मूड कर देखा तो सामने कम्मू की ताई और सुमन की जेठानी कुसुम थी और अब वो भी नल के पास बैठ कपड़े धो रही थी।
सोनू: ठीक है ताई, अभी हवेली में ही हैं।
सोनू ने कुसुम के भरे बदन को देखते हुए कहा, ब्लाउज उसकी बड़ी चूचियों के उभार को छुपा नहीं पा रहा था, नीचे उसका मांसल पेट, गोल गहरी नाभी, कमर में पड़ी सिलवटें, ये सब देख सोनू को सिहरन हुई अंदर ही अंदर और उसे कर्मा की ये बात फिर से याद आ गई।

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कुसुम: चलो बढ़िया है, अब कोई परेशानी तो नहीं, और तेरे बाप की कोई खबर?
सोनू: नहीं ताई कोई परेशानी नहीं है, और उनकी खबर लेकर क्या ही करना है।
कुसुम: हां लल्ला आने से मुसीबत बढ़े तो इससे अच्छा है वो अलग ही रहे।
सुमन: सही कह रही हो जीजी, वैसे ही दुख कम थोड़े ही हैं जो उन्हें और झेले।
सुमन ने चाय देते हुए कहा,
कुसुम: हां तुम लोग अपना ध्यान रखो, उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोनू: हां ताई अभी वैसे भी न इतना समय है और न ही इतनी हिम्मत कि उनके बारे में सोचें।
चाय खत्म होने तक ऐसे ही बातें चलती रहती हैं, सोनू बीच बीच बीच में सुमन और कुसुम को छुप छुप कर देख लेता था, चाय खत्म कर दोनों घर से निकल गए ।
सोनू: मन्नू को तो बुला ले, वो नहीं खेलेगा?
कम्मू: अरे आज बिंदिया दीदी को देखने वाले आ रहे हैं तो वो नहीं आयेगा।
सोनू: चल ये तो अच्छा है, यार लड़का अच्छा हुआ तो उनका भी ब्याह हो जाए जल्दी।
कम्मू: हां बिल्कुल क्यों नहीं होगा।
दोनों बात करते हुए मैदान की ओर निकल जाते हैं।

तेजपाल के घर में आज एक खास माहौल था। बिंदिया को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। तेजपाल का घर, जो आम तौर पर सादगी और मेहनत की कहानी कहता था, आज सज-धज कर तैयार था। आँगन को गोबर और मिट्टी से लीपकर चमकाया गया था, और घर की चौखट पर रंगोली बनाई गई थी। झुमरी, तेजपाल की बहू, रसोई में मिठाई और नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी, जबकि तेजपाल और उनका बेटा रत्नाकर मेहमानों की आवभगत की तैयारियों में जुटे थे। बिंदिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी, उसका मन उत्साह और घबराहट के बीच झूल रहा था।

लड़के वाला परिवार पास के गाँव से था। परिवार में चार लोग थे: पप्पू, 42 वर्षीय किसान और परिवार का मुखिया,
उनकी पत्नी रज्जो, 38 वर्ष की, जिनका भरा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मखमली पेट, गहरी नाभि, और फैले हुए चूतड़, झुमरी से कम नहीं थे।
उनका बेटा प्यारे, 22 वर्ष का, एक आम गाँव का लड़का, मेहनती और सौम्य स्वभाव का, जिसे आज बिंदिया को देखने आना था।
उनकी बेटी चंदा, 20 वर्ष की, सुंदर और कामुक, अपने भाई के साथ आई थी, ताकि वह भी होने वाली भाभी को देख सके।

दोपहर ढलते ही पप्पू का परिवार तेजपाल के घर की दहलीज़ पर पहुँचा। पप्पू ने अपने कंधे पर गमछा डाला हुआ था, और उनके सादे कुरते-पायजामे में किसान की मेहनत की सादगी झलक रही थी। रज्जो ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भरे हुए बदन को और उभार रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, जिसे वह बार-बार संभाल रही थी। प्यारे एक साफ-सुथरे कुरते में था, उसका चेहरा सौम्य और थोड़ा शर्मीला था। चंदा ने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहना था, जो उसकी जवानी को निखार रहा थी।

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तेजपाल ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। “आइए, आइए, पप्पू भाई, घर में पधारिए,” उन्होंने कहा और आँगन में बिछी दरी पर मेहमानों को बिठाया। रत्नाकर ने तुरंत पानी के गिलास लाकर रखे, और झुमरी रसोई से जल्दी-जल्दी नाश्ते की थाली ले आई। थाली में गुझिया, समोसे, और लड्डू सजे हुए थे, साथ में चाय की केतली थी।
“क्या बात है, चाचाजी, इतना इंतज़ाम कर रखा है,” पप्पू ने हँसते हुए कहा, अपनी मूँछों को ताव देते हुए। “हम तो बस अपनी बेटी को देखने आए हैं, इतनी मेहरबानी की क्या ज़रूरत थी?”
“अरे भाई, आप लोग हमारे मेहमान हैं। बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात है, थोड़ा-बहुत तो बनता है,” तेजपाल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रज्जो ने थाली की ओर देखा और बोली, “वाह, झुमरी बहन, ये गुझिया तो देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। अपने हाथों से बनाई हैं?”
“हाँ, बहनजी, सब घर का बनाया है,” झुमरी ने शर्माते हुए कहा। “आप खाकर बताइए, कैसी बनी हैं।”
चंदा, जो अब तक चुप थी, उसने समोसा उठाया और एक छोटा सा टुकड़ा मुँह में डाला। “हम्म, बहुत स्वादिष्ट है, चाची” उसने कहा, और उसकी मुस्कान ने माहौल को और हल्का कर दिया।

बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पप्पू ने अपने खेतों और फसलों की बात की, जबकि तेजपाल ने गाँव की हाल-चाल और पड़ोस में धीरज की शादी की तैयारियों का ज़िक्र किया। रज्जो और झुमरी औरतों की बातों में मशगूल हो गईं—खाना, साड़ियाँ, और गाँव की चुगलियाँ। प्यारे और रत्नाकर चुपचाप सुन रहे थे, मगर उनकी नज़रें बार-बार एक-दूसरे से मिल रही थीं, जैसे दोनों एक-दूसरे को परख रहे हों।
थोड़ी देर बाद तेजपाल ने कहा, “चलो, अब बिंदिया को बुलाते हैं। आप लोग तो उसी को देखने आए हैं।” उन्होंने झुमरी की ओर इशारा किया, और झुमरी कमरे की ओर गई।
बिंदिया कमरे में तैयार थी। उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे रंग को और निखार रही थी। उसके बाल खुले थे, और माथे पर छोटी सी बिंदी थी। उसका चेहरा घबराहट और शर्म से लाल हो रहा था।

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झुमरी ने उसे प्यार से हाथ पकड़कर बाहर लाया। बिंदिया ने सिर झुकाकर आँगन में कदम रखा और मेहमानों के सामने खड़ी हो गई। उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, और वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू संभाल रही थी।
रज्जो ने बिंदिया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराते हुए पप्पू की ओर देखा। “वाह, बहन जी, आपकी बेटी तो एकदम चाँद का टुकड़ा है,” उसने कहा।
“हाँ, बिल्कुल। सादगी में सुंदरता है इसकी,” पप्पू ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा।
चंदा ने बिंदिया को गौर से देखा और बोली, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत सुंदर है। ये रंग आप पर बहुत जँच रहा है।”
बिंदिया ने शर्माते हुए हल्का सा सिर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा, “धन्यवाद।” उसकी आवाज़ में मिठास थी, जो सभी को भा गई।
तेजपाल ने बिंदिया से कहा, “बेटी, प्यारे को चाय दे दो।” बिंदिया ने सिर हिलाया और एक चाय का कप धीरे से प्यारे की ओर बढ़ाया। प्यारे ने चाय लेते हुए पहली बार बिंदिया को गौर से देखा। उसकी आँखों में एक सादगी थी, और बिंदिया की शर्मीली मुस्कान ने उसके मन में कुछ हलचल मचा दी। उसने चाय का प्याला थामा और धीरे से “धन्यवाद” कहा।
रत्नाकर ने माहौल को और हल्का करने के लिए कहा, “प्यारे, तुम भी कुछ बताओ। खेतों में काम करते हो न? कैसा चल रहा है सब?”
प्यारे ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “हाँ, चाचाजी, खेतों में काम अच्छा चल रहा है। इस बार धान की फसल अच्छी हुई है। बाकी, बस मेहनत करते हैं।”
बहुत मेहनती है हमारा प्यारे,” रज्जो ने गर्व से कहा। “दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। घर में भी सबकी मदद करता है।”
तेजपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो अच्छी बात है। हमारी बिंदिया भी घर के काम में माहिर है। खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सब आता है इसे।”
बातचीत के बीच दोनों परिवार एक-दूसरे को परख रहे थे। पप्पू और रज्जो को बिंदिया की सादगी और सुंदरता पसंद आई, जबकि तेजपाल, रत्नाकर और झुमरी को प्यारे का मेहनती और सौम्य स्वभाव भा गया। चंदा ने बिंदिया से कुछ छोटी-मोटी बातें कीं, जैसे साड़ी का रंग और गाँव की शादियों की रस्में, जिससे बिंदिया थोड़ा सहज हो गई।
थोड़ी देर बाद रज्जो ने पप्पू की ओर देखा और हल्का सा सिर हिलाया। पप्पू ने समझ लिया और तेजपाल से बोला, “चाचाजी, रत्नाकर भाई, हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। सादगी और संस्कार दोनों हैं इसमें। अगर आपको हमारा प्यारे पसंद हो, तो हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहेंगे।”
तेजपाल ने रत्नाकर और झुमरी की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला रहे थे। “पप्पू, हमें भी आपका बेटा बहुत पसंद आया। मेहनती और सज्जन लड़का है। हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं,” तेजपाल ने गर्मजोशी से कहा।
आँगन में खुशी की लहर दौड़ गई। झुमरी ने तुरंत मिठाई की थाली लाकर सभी को लड्डू खिलाए। रज्जो ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, अब तू हमारे घर की बहू बनेगी। हम तेरा बहुत खयाल रखेंगे।”
बिंदिया ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। प्यारे ने भी चुपके से बिंदिया की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक नया सपना जागने लगा। चंदा ने बिंदिया का हाथ पकड़कर कहा, “भाभी, अब तो हमें खूब बातें करनी हैं।”
मेहमानों की आवभगत के बाद पप्पू का परिवार विदा हुआ। तेजपाल और रत्नाकर ने उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ा। झुमरी ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, तुझे अच्छा घर मिला है। प्यारे और उसका परिवार बहुत अच्छे लोग हैं।”
बिंदिया ने सिर हिलाया, मगर उसका मन कहीं और था। कर्मा की वह शरारती मुस्कान और उसकी नज़रें बार-बार उसके दिमाग में कौंध रही थीं। हवेली की चमक और कर्मा का रुतबा उसे आकर्षित तो करता था, मगर घरवालों की हिदायतें और प्यारे की सादगी उसे एक अलग राह पर ले जा रही थी।
लड़के वालों के जाते ही बिंदिया को अनामिका, अंजू, नेहा और मनीषा ने घेर लिया और उसे चिढ़ाते हुए उसके साथ मज़ाक करते हुए उससे सब पूछने लगी, बिंदिया भी उनके साथ बात करके खुश हो रही थी और मज़ाक में साथ दे रही थी। वहीं झुमरी को सुमन और कुसुम ने घेर लिया और उससे सब पूछने लगीं। झुमरी भी खूब चाव से सब बता रही थी।




सज्जनपुर में सूरज ढल चुका था, और गाँव पर शाम की सुनहरी धुंध छा रही थी। खेतों से लौटते मज़दूरों की आवाज़ें धीमी पड़ रही थीं, और नदी के किनारे हल्की ठंडक बस रही थी। सुमन और कुसुम, कुसुम के कहने पर और थोड़ा सा बाहर की हवा खाने के लिए नदी की ओर निकल पड़ीं। दोनों देवरानी-जेठानी की जोड़ी गाँव में अपनी सादगी और मेहनत के लिए जानी जाती थी, मगर उनकी हँसी और आपसी मज़ाक गाँव की गलियों में एक अलग रंग भरता था।
नदी का किनारा शांत था, सिर्फ़ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं भटकती चिड़ियों की आवाज़ें गूँज रही थीं। सुमन और कुसुम ने अपने चप्पल किनारे पर उतारे और नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोकर किनारे की एक चट्टान पर बैठ गईं। सुमन की साड़ी का पल्लू उसकी कमर पर लिपटा था, और कुसुम की साड़ी का आँचल हल्का सा सरककर उसके मांसल कंधे को उघाड़ रहा था। दोनों के चेहरों पर थकान के साथ-साथ एक हल्की सी मुस्कान थी।
“जीजी, आज का दिन तो बड़ा भारी था,” सुमन ने अपने गीले पैरों को पानी में हिलाते हुए कहा। “धीरज के ब्याह की तैयारियाँ, घर का काम, इतने सारे कपड़े धोए आज तो मैने, ऊपर से ये गर्मी। थक गई मैं तो।”
“हाँ, सुमन, पर अब ये ठंडा पानी सारी थकान निकाल देगा,” कुसुम ने हँसते हुए कहा। उसने एक छोटा सा कंकड़ उठाया और पानी में फेंका, जिससे छोटी-छोटी लहरें उठीं। “वैसे, बिंदिया का रिश्ता पक्का हो गया, ये तो अच्छी बात है। प्यारे लड़का सज्जन और मेहनती लगता है।” जैसे झुमरी ने बताया,
“हाँ, जीजी, सही कह रही हो। बिंदिया को अच्छा घर मिलेगा। सुमन ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। “पर मुझे तो अभी भी हँसी आ रही है, जब बिंदिया शर्म से लाल हो गई जब सब लड़कियों ने उसे घेरा तो।”
दोनों हँस पड़ीं। उनकी हँसी नदी के किनारे गूँज उठी, मानो पानी भी उनके मज़ाक में शामिल हो गया हो। कुसुम ने शरारत भरे अंदाज़ में सुमन की ओर देखा और बोली, “अच्छा, तू हँस रही है? जैसे तू नहीं शरमाई थी अपनी बारी में” कहते हुए उसने मज़ाक में सुमन को हल्का सा धक्का दे दिया।
“अरे, जीजी!” सुमन का संतुलन बिगड़ा, और वह हँसते हुए नदी के उथले पानी में फिसल गई। पानी में गिरते ही उसकी साड़ी पूरी तरह गीली हो गई, और वह हँसते हुए खड़ी हो गई। “हाय, जीजी, ये क्या किया!” उसने पानी में छलांग लगाते हुए कहा, मगर उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुसुम पेट पकड़कर हँस रही थी। “अरे, तू तो पूरी भैंस की तरह पानी में कूद गई!” उसने मज़ाक उड़ाया, अपने पैरों को पानी से निकालते हुए।
“अच्छा, भैंस कहा मुझे?” सुमन ने नकली गुस्से में कहा और तेज़ी से कुसुम का हाथ पकड़कर उसे भी पानी में खींच लिया। “अब तुम भी भैंस की जेठानी बनो!” दोनों पानी में एक-दूसरे पर छींटे मारने लगीं, हँसी और चीख-पुकार से नदी का किनारा गूँज उठा। उनकी साड़ियाँ अब पूरी तरह गीली हो चुकी थीं, और कपड़े उनके भरे हुए बदनों से चिपक गए थे। सुमन का ब्लाउज़ उसके मोटे-मोटे उरोजों को उभार रहा था, और कुसुम की साड़ी उसकी गहरी नाभि और मांसल कमर को और निखार रही थी।
कुसुम: अच्छा अब नहा ही रहे हैं तो अच्छे से नहा लेते हैं
ये कह कुसुम ने अपने पल्लू को सीने से हटाया और कमर पर लपेट लिया,
सुमन: अरे जीजी ये क्या कर रही हो कोई आ गया तो,
कुसुम: अरे इधर औरतें ही कपड़े वगैरा धोती हैं मर्द इस ओर नहीं आते, चिंता मत कर।
सुमन: चलो तुम कह रही हो तो ठीक है।
ये कह सुमन भी कुसुम की तरह अपने पल्लू को नीचे ही लपेट लेती है और दोनों फिर से पानी को उछाल कर खेलने लगती हैं।

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दोनों बेखबर होकर नदी के ठंडे पानी में नहाने और मज़ाक करने में व्यस्त थीं। लेकिन नदी के किनारे की यह मासूम हँसी किसी की नज़रों से छुपी नहीं थी। दूर, एक पुराने बरगद के पेड़ की आड़ में, सोमपाल खड़ा था। वह अपनी शाम की सैर के लिए निकला था, मगर सुमन और कुसुम की हँसी ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया। उसकी नज़रें दोनों की गीली साड़ियों में लिपटे कामुक बदनों पर जमी थीं। सुमन की साड़ी उसके भरे हुए चूतड़ों से चिपकी थी, और कुसुम का गीला ब्लाउज़ उसकी चूचियों को इस तरह उभार रहा था मानो कोई मूर्तिकार ने उन्हें तराशा हो, दोनों के मखमली पेट और नाभी तो मानो जैसे मक्खन के ही नजर आ रही थीं। उन्हें देखते हुए सोमपाल की आँखों में वासना की चमक थी, और उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी।
“हाय, ये देवरानी-जेठानी तो एक से बढ़कर एक हैं,” उसने मन ही मन सोचा। उसका लंड धोती के नीचे कड़क होने लगा।

इनके रसीले बदन का स्वाद तो बड़ा मस्त होगा। सुमन की वो गहरी नाभि, और कुसुम की वो भारी चूचियाँ—हाय, क्या नज़ारा है!” उसकी नज़रें एक पल के लिए भी नहीं हटीं। वह पेड़ की आड़ में खड़ा, उनकी हर हरकत को गौर से देख रहा था।

सुमन ने कुसुम पर फिर से पानी का छींटा मारा। “जीजी, अब तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा चिपक गया है बदन से मानो पहना ही न हो” उसने हँसते हुए कहा।
“अरे, होने दे कोई नहीं देख रहा” कुसुम ने जवाब दिया। “मेंरी साड़ी तो देख अब बदन से चिपककर सब कुछ दिखा रही है!” दोनों फिर से हँस पड़ीं, और पानी में एक-दूसरे को छेड़ने लगीं। उनकी हँसी और मासूम शरारतें नदी के किनारे एक अनजाना रंग बिखेर रही थीं, मगर वे इस बात से बेखबर थीं कि उनकी यह मस्ती किसी की वासना को भड़का रही थी।
सोमपाल की साँसें गहरी हो रही थीं। उसने अपनी धोती को और कस लिया, मगर उसका उभार अब छुपाए नहीं छुप रहा था। “इन दोनों को तो हवेली में होना चाहिए दोनों को रानी बना कर रखूंगा, कुछ तो चक्कर चलाना पड़ेगा” उसने सोचा।
पर ये दोनों सती-सावित्री और संस्कारी हैं, आसानी से नहीं फँसेंगीयू ऊपर से इनका परिवार भी समृद्ध है इतनी जल्दी कुछ नहीं होगा। फिर भी, कोशिश तो बनती है।” उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी, मानो वह कोई नया जाल बुनने की सोच रहा हो।
कुसुम ने पानी से बाहर निकलते हुए कहा, “बस, सुमन, अब बहुत हुआ। चल, घर चलते हैं, वरना सर्दी लग जाएगी।” उसने अपनी साड़ी को निचोड़ा, मगर गीले कपड़े अब भी उसके बदन से चिपके थे। सुमन भी हँसते हुए बाहर आई और अपने बालों को निचोड़ने लगी। गाँव की ओर चल पड़ीं, आपस में हँसते-बातें करते हुए

सोमपाल तब तक पेड़ की आड़ में खड़ा रहा, जब तक उनकी आकृतियाँ गाँव की गलियों में ओझल नहीं हो गईं। उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी। “चलो, आज तो नज़ारा मिल गया,” उसने मन ही मन कहा। “कब इन दोनों को हवेली की राह दिखाने का वक्त आएगा।” वह धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ गया, मगर उसके मन में सुमन और कुसुम की गीली साड़ियों में लिपटी छवियाँ अब भी नाच रही थीं।
जारी रहेगी।
 

Arthur Morgan

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रजनी हवेली में चल रहें सरोज और बिमला के बीच चल रहें खेल में शामिल हो गयी है और उस खेल में उसे एक अलग ही मजा आ रहा हैं
ये कर्मा के साथ रहकर सोनू को एक अलग ही नया अनुभव देखने को मिला वो भी चुदाई का साथ में कर्मा के कहे बडी उम्र वाली औरतों की ओर आकर्षण होने की भी संभावना लगती हैं अभी सोनू ने सुमन को अर्ध नग्न अवस्था में देख भी लिया और उत्तेजना भी महसुस करी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र
 

Arthur Morgan

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Update ka intezar me guruji

Mast kamuk garam garam update guruji bahut bahut dhanyawad

Mast wala tha update

Kya mst update diya h bhai ekdm badan me garmii aa gyi aisehi update likhte rhyea

Bht khub bhai
Agla update jldi dena

Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki

शानदार अपडेट

Jawan ladke ka man bhatka diya karma ne.... ab sonu pata nahi kis kis k naam ki pichkari margea.....


Udhar rajni bhi rang me rangte ja rahi hai.....



Bhut shandaar update



Agle update ka wait rahega

Too good pls update

Bahut hee badhiya update hai… waiting for next update

Next update or with dhamakedar hona chahie

pls update

GREAT START KEEP IT UP

Next update

बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रजनी हवेली में चल रहें सरोज और बिमला के बीच चल रहें खेल में शामिल हो गयी है और उस खेल में उसे एक अलग ही मजा आ रहा हैं
ये कर्मा के साथ रहकर सोनू को एक अलग ही नया अनुभव देखने को मिला वो भी चुदाई का साथ में कर्मा के कहे बडी उम्र वाली औरतों की ओर आकर्षण होने की भी संभावना लगती हैं अभी सोनू ने सुमन को अर्ध नग्न अवस्था में देख भी लिया और उत्तेजना भी महसुस करी हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
अध्याय 9 पोस्ट कर दिया है पढ़ कर प्रतिक्रिया अवश्य दें बहुत बहुत धन्यवाद
 

TharkipoMax

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नौवाँ अध्याय


सज्जनपुर की दोपहर धीरे-धीरे अपनी चाल में थी। गाँव की गलियों में धूल उड़ रही थी, और खेतों से हल्की हवा के साथ फसलों की खुशबू आ रही थी। कम्मू के घर का आँगन शांत था, जहाँ सोनू अपने दोस्त को उठाने पहुँचा। कम्मू बिस्तर पर आलस में पड़ा था, आँखें मलते हुए उठा। सोनू को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। “अरे, कब आया यार?” कम्मू ने उत्साह से पूछा, बिस्तर से उठते हुए।
“अभी बस, अभी आया,” सोनू ने जवाब दिया, और दोनों कमरे की खटिया पर बैठकर बातें करने लगे।
कम्मू ने पूछा, “आज हवेली नहीं गया?
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “नहीं यार, आज काम कम था। जल्दी छुट्टी मिल गई।
कम्मू: अच्छा हुआ यार बहुत दिन से तुझसे मिलना ही नहीं हो पा रहा था।
सोनू: हां यार सुबह जाता हूं और आते आते अंधेरा हो जाता है।
कम्मू: हां यार वैसे, बता, वो कर्मा और अनुज तुझे परेशान तो नहीं करते?
सोनू का मन एक पल के लिए ठिठका। उसकी आँखों के सामने वह दृश्य कौंध गया—उसकी माँ रजनी और नीलेश, नंगे, एक-दूसरे की बाहों में सोए हुए। उसने जल्दी से अपने चेहरे को संभाला और बोला, “नहीं यार, सब ठीक है। हम शायद उन्हें ज़्यादा बुरा समझते हैं। कर्मा तो मुझसे अच्छे से बात करता है।

कम्मू ने भौंहें चढ़ाईं। “यकीन नहीं होता। कर्मा बड़ा कमीना लगता है मुझे। पक्का तुझे या तेरी माँ को हवेली में कोई परेशानी तो नहीं?

सोनू ने फिर से उस दृश्य को मन में दबाया और कहा, “नहीं यार, कोई परेशानी नहीं। सब ठीक है।” उसकी आवाज़ में हल्का सा काँपन था, मगर कम्मू का ध्यान उस पर नहीं गया।
कम्मू: चल अच्छा है फिर भी तू सावधान रहियो और मुझसे कुछ मत छुपाना।
अरे, ऐसा नहीं है,” सोनू ने हँसकर जवाब दिया। “वो तो मुझे आज मोटरसाइकिल पर बाज़ार ले गया था। समोसे खिलाए, ठंडा पिलाया, और फिर घर पर भी छोड़ गया।”

कम्मू ने हैरानी से कहा, “अरे वाह! इतनी मेहरबानी? कुछ तो गड़बड़ है। कर्मा ऐसा बिना मतलब के नहीं करता।
सोनू ने कर्मा और मज़दूर औरत की चुदाई का दृश्य अपने मन में दबा रखा था। वह उस बात को कम्मू से छुपाते हुए बोला, “नहीं यार, शायद वो मेरी उम्र का है, तो मुझे दोस्त मानता है।

“अच्छा, तो तेरा नया दोस्त अब कर्मा है, हवेली का लड़का! हमें तो अब तू भूल ही जाएगा,” कम्मू ने हँसते हुए तंज कसा।
सोनू: अबे तू भी न कुछ भी बोलता है, मेरे दोस्त तो तुम दोनों ही रहोगे हमेशा।
इसी बीच सुमन नहाकर कमरे में आई। उसके गीले बाल हवा में झूल रहे थे, और बदन पर सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज़ था। उसका बदन हल्का गीला था, और ब्लाउज़ उसके भरे हुए सीने को उभार रहा था।

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गाँव के छोटे घरों में दो कमरे होने की वजह से यह आम बात थी। सुमन को बच्चों के सामने कोई संकोच नहीं था, खासकर सोनू के सामने, जिसे वह बचपन से बेटे की तरह मानती थी।
मगर सोनू की नज़रें छुप-छुपकर सुमन के बदन पर पड़ रही थीं। कर्मा की बातें उसके मन में गूँज रही थीं—सुमन चाची का भरा हुआ बदन, उसकी गहरी नाभि, और मखमली पेट। उसने जल्दी से सिर झटका और सोचा, “नहीं यार, मेरा दोस्त साथ में है, और मैं उसकी माँ को ऐसे देख रहा हूँ। ये गलत है।

सुमन ने साड़ी पहनी और दोनों से पूछा, “चाय पियोगे?”
कम्मू ने दोनों की ओर से तपाक से हाँ बोल दिया। सुमन मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
कम्मू ने फिर सोनू से पूछा, “वैसे, कर्मा ने मेरे या मेरे परिवार के बारे में कुछ बोला? उस दिन मैदान में उससे झड़प हो गई थी न, उसके बाद कुछ तो नहीं कहा?”
सोनू को कर्मा की बात याद आई—कम्मू की माँ और ताई के भरे हुए बदन की तारीफ़, और यह कि उसने उन्हें सोचकर कई बार हिलाया था। मगर सोनू ने यह बात मन में दबाई और बोला, “नहीं यार, सच में कुछ नहीं। तू बेकार में चिंता मत कर।”
कम्मू ने राहत की साँस ली और बोला, “सही है यार। मैं नहीं चाहता कि धीरज भैया के ब्याह के समय कोई शिकायत आए। खासकर हवेली वालों के साथ कोई कांड हो, ये तो बिल्कुल नहीं।”
सोनू ने सिर हिलाया, मगर उसका मन उलझा हुआ था। कर्मा की बातें, उसकी माँ का हवेली में बदला हुआ रूप, और आज का खेत वाला दृश्य—यह सब उसके मासूम मन को भारी कर रहा था। कम्मू ने उसकी उदासी भाँप ली और बोला, “चल, चाय पीते हैं, फिर बाहर मैदान में जाकर क्रिकेट खेलते हैं। कब से तूने बल्ला नहीं पकड़ा!”
सोनू ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। दोनों बाहर आँगन में आए, जहाँ सुमन चाय चूल्हे से उतार रही थी
सुमन: बैठो तुम लोग अभी देती हूं,
सोनू और कम्मू दोनों ही छप्पर में पड़ी खाट पर बैठ गए, सोनू जैसे ही बैठा तो उसे पीछे से आवाज़ आई: अरे सोनू लला मां कैसी है तेरी?
उसने पीछे मूड कर देखा तो सामने कम्मू की ताई और सुमन की जेठानी कुसुम थी और अब वो भी नल के पास बैठ कपड़े धो रही थी।
सोनू: ठीक है ताई, अभी हवेली में ही हैं।
सोनू ने कुसुम के भरे बदन को देखते हुए कहा, ब्लाउज उसकी बड़ी चूचियों के उभार को छुपा नहीं पा रहा था, नीचे उसका मांसल पेट, गोल गहरी नाभी, कमर में पड़ी सिलवटें, ये सब देख सोनू को सिहरन हुई अंदर ही अंदर और उसे कर्मा की ये बात फिर से याद आ गई।

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कुसुम: चलो बढ़िया है, अब कोई परेशानी तो नहीं, और तेरे बाप की कोई खबर?
सोनू: नहीं ताई कोई परेशानी नहीं है, और उनकी खबर लेकर क्या ही करना है।
कुसुम: हां लल्ला आने से मुसीबत बढ़े तो इससे अच्छा है वो अलग ही रहे।
सुमन: सही कह रही हो जीजी, वैसे ही दुख कम थोड़े ही हैं जो उन्हें और झेले।
सुमन ने चाय देते हुए कहा,
कुसुम: हां तुम लोग अपना ध्यान रखो, उसकी फिकर करने की कोई जरूरत नहीं है।
सोनू: हां ताई अभी वैसे भी न इतना समय है और न ही इतनी हिम्मत कि उनके बारे में सोचें।
चाय खत्म होने तक ऐसे ही बातें चलती रहती हैं, सोनू बीच बीच बीच में सुमन और कुसुम को छुप छुप कर देख लेता था, चाय खत्म कर दोनों घर से निकल गए ।
सोनू: मन्नू को तो बुला ले, वो नहीं खेलेगा?
कम्मू: अरे आज बिंदिया दीदी को देखने वाले आ रहे हैं तो वो नहीं आयेगा।
सोनू: चल ये तो अच्छा है, यार लड़का अच्छा हुआ तो उनका भी ब्याह हो जाए जल्दी।
कम्मू: हां बिल्कुल क्यों नहीं होगा।
दोनों बात करते हुए मैदान की ओर निकल जाते हैं।

तेजपाल के घर में आज एक खास माहौल था। बिंदिया को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे थे। तेजपाल का घर, जो आम तौर पर सादगी और मेहनत की कहानी कहता था, आज सज-धज कर तैयार था। आँगन को गोबर और मिट्टी से लीपकर चमकाया गया था, और घर की चौखट पर रंगोली बनाई गई थी। झुमरी, तेजपाल की बहू, रसोई में मिठाई और नाश्ते की तैयारियों में व्यस्त थी, जबकि तेजपाल और उनका बेटा रत्नाकर मेहमानों की आवभगत की तैयारियों में जुटे थे। बिंदिया अपने कमरे में तैयार हो रही थी, उसका मन उत्साह और घबराहट के बीच झूल रहा था।

लड़के वाला परिवार पास के गाँव से था। परिवार में चार लोग थे: पप्पू, 42 वर्षीय किसान और परिवार का मुखिया,
उनकी पत्नी रज्जो, 38 वर्ष की, जिनका भरा हुआ बदन, बड़ी-बड़ी चूचियाँ, मखमली पेट, गहरी नाभि, और फैले हुए चूतड़, झुमरी से कम नहीं थे।
उनका बेटा प्यारे, 22 वर्ष का, एक आम गाँव का लड़का, मेहनती और सौम्य स्वभाव का, जिसे आज बिंदिया को देखने आना था।
उनकी बेटी चंदा, 20 वर्ष की, सुंदर और कामुक, अपने भाई के साथ आई थी, ताकि वह भी होने वाली भाभी को देख सके।

दोपहर ढलते ही पप्पू का परिवार तेजपाल के घर की दहलीज़ पर पहुँचा। पप्पू ने अपने कंधे पर गमछा डाला हुआ था, और उनके सादे कुरते-पायजामे में किसान की मेहनत की सादगी झलक रही थी। रज्जो ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भरे हुए बदन को और उभार रही थी। साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, जिसे वह बार-बार संभाल रही थी। प्यारे एक साफ-सुथरे कुरते में था, उसका चेहरा सौम्य और थोड़ा शर्मीला था। चंदा ने हल्के हरे रंग का सलवार सूट पहना था, जो उसकी जवानी को निखार रहा थी।

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तेजपाल ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। “आइए, आइए, पप्पू भाई, घर में पधारिए,” उन्होंने कहा और आँगन में बिछी दरी पर मेहमानों को बिठाया। रत्नाकर ने तुरंत पानी के गिलास लाकर रखे, और झुमरी रसोई से जल्दी-जल्दी नाश्ते की थाली ले आई। थाली में गुझिया, समोसे, और लड्डू सजे हुए थे, साथ में चाय की केतली थी।
“क्या बात है, चाचाजी, इतना इंतज़ाम कर रखा है,” पप्पू ने हँसते हुए कहा, अपनी मूँछों को ताव देते हुए। “हम तो बस अपनी बेटी को देखने आए हैं, इतनी मेहरबानी की क्या ज़रूरत थी?”
“अरे भाई, आप लोग हमारे मेहमान हैं। बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात है, थोड़ा-बहुत तो बनता है,” तेजपाल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
रज्जो ने थाली की ओर देखा और बोली, “वाह, झुमरी बहन, ये गुझिया तो देखकर ही मुँह में पानी आ रहा है। अपने हाथों से बनाई हैं?”
“हाँ, बहनजी, सब घर का बनाया है,” झुमरी ने शर्माते हुए कहा। “आप खाकर बताइए, कैसी बनी हैं।”
चंदा, जो अब तक चुप थी, उसने समोसा उठाया और एक छोटा सा टुकड़ा मुँह में डाला। “हम्म, बहुत स्वादिष्ट है, चाची” उसने कहा, और उसकी मुस्कान ने माहौल को और हल्का कर दिया।

बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। पप्पू ने अपने खेतों और फसलों की बात की, जबकि तेजपाल ने गाँव की हाल-चाल और पड़ोस में धीरज की शादी की तैयारियों का ज़िक्र किया। रज्जो और झुमरी औरतों की बातों में मशगूल हो गईं—खाना, साड़ियाँ, और गाँव की चुगलियाँ। प्यारे और रत्नाकर चुपचाप सुन रहे थे, मगर उनकी नज़रें बार-बार एक-दूसरे से मिल रही थीं, जैसे दोनों एक-दूसरे को परख रहे हों।
थोड़ी देर बाद तेजपाल ने कहा, “चलो, अब बिंदिया को बुलाते हैं। आप लोग तो उसी को देखने आए हैं।” उन्होंने झुमरी की ओर इशारा किया, और झुमरी कमरे की ओर गई।
बिंदिया कमरे में तैयार थी। उसने गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, जो उसके गोरे रंग को और निखार रही थी। उसके बाल खुले थे, और माथे पर छोटी सी बिंदी थी। उसका चेहरा घबराहट और शर्म से लाल हो रहा था।

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झुमरी ने उसे प्यार से हाथ पकड़कर बाहर लाया। बिंदिया ने सिर झुकाकर आँगन में कदम रखा और मेहमानों के सामने खड़ी हो गई। उसकी नज़रें ज़मीन पर थीं, और वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू संभाल रही थी।
रज्जो ने बिंदिया को ऊपर से नीचे तक देखा और मुस्कुराते हुए पप्पू की ओर देखा। “वाह, बहन जी, आपकी बेटी तो एकदम चाँद का टुकड़ा है,” उसने कहा।
“हाँ, बिल्कुल। सादगी में सुंदरता है इसकी,” पप्पू ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा।
चंदा ने बिंदिया को गौर से देखा और बोली, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत सुंदर है। ये रंग आप पर बहुत जँच रहा है।”
बिंदिया ने शर्माते हुए हल्का सा सिर उठाया और धीमी आवाज़ में कहा, “धन्यवाद।” उसकी आवाज़ में मिठास थी, जो सभी को भा गई।
तेजपाल ने बिंदिया से कहा, “बेटी, प्यारे को चाय दे दो।” बिंदिया ने सिर हिलाया और एक चाय का कप धीरे से प्यारे की ओर बढ़ाया। प्यारे ने चाय लेते हुए पहली बार बिंदिया को गौर से देखा। उसकी आँखों में एक सादगी थी, और बिंदिया की शर्मीली मुस्कान ने उसके मन में कुछ हलचल मचा दी। उसने चाय का प्याला थामा और धीरे से “धन्यवाद” कहा।
रत्नाकर ने माहौल को और हल्का करने के लिए कहा, “प्यारे, तुम भी कुछ बताओ। खेतों में काम करते हो न? कैसा चल रहा है सब?”
प्यारे ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “हाँ, चाचाजी, खेतों में काम अच्छा चल रहा है। इस बार धान की फसल अच्छी हुई है। बाकी, बस मेहनत करते हैं।”
बहुत मेहनती है हमारा प्यारे,” रज्जो ने गर्व से कहा। “दिन-रात खेतों में मेहनत करता है। घर में भी सबकी मदद करता है।”
तेजपाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “ये तो अच्छी बात है। हमारी बिंदिया भी घर के काम में माहिर है। खाना बनाना, सिलाई-कढ़ाई, सब आता है इसे।”
बातचीत के बीच दोनों परिवार एक-दूसरे को परख रहे थे। पप्पू और रज्जो को बिंदिया की सादगी और सुंदरता पसंद आई, जबकि तेजपाल, रत्नाकर और झुमरी को प्यारे का मेहनती और सौम्य स्वभाव भा गया। चंदा ने बिंदिया से कुछ छोटी-मोटी बातें कीं, जैसे साड़ी का रंग और गाँव की शादियों की रस्में, जिससे बिंदिया थोड़ा सहज हो गई।
थोड़ी देर बाद रज्जो ने पप्पू की ओर देखा और हल्का सा सिर हिलाया। पप्पू ने समझ लिया और तेजपाल से बोला, “चाचाजी, रत्नाकर भाई, हमें आपकी बेटी बहुत पसंद आई। सादगी और संस्कार दोनों हैं इसमें। अगर आपको हमारा प्यारे पसंद हो, तो हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहेंगे।”
तेजपाल ने रत्नाकर और झुमरी की ओर देखा, जो मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला रहे थे। “पप्पू, हमें भी आपका बेटा बहुत पसंद आया। मेहनती और सज्जन लड़का है। हम भी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं,” तेजपाल ने गर्मजोशी से कहा।
आँगन में खुशी की लहर दौड़ गई। झुमरी ने तुरंत मिठाई की थाली लाकर सभी को लड्डू खिलाए। रज्जो ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, अब तू हमारे घर की बहू बनेगी। हम तेरा बहुत खयाल रखेंगे।”
बिंदिया ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, मगर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। प्यारे ने भी चुपके से बिंदिया की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक नया सपना जागने लगा। चंदा ने बिंदिया का हाथ पकड़कर कहा, “भाभी, अब तो हमें खूब बातें करनी हैं।”
मेहमानों की आवभगत के बाद पप्पू का परिवार विदा हुआ। तेजपाल और रत्नाकर ने उन्हें गाँव की सीमा तक छोड़ा। झुमरी ने बिंदिया को गले लगाया और बोली, “बेटी, तुझे अच्छा घर मिला है। प्यारे और उसका परिवार बहुत अच्छे लोग हैं।”
बिंदिया ने सिर हिलाया, मगर उसका मन कहीं और था। कर्मा की वह शरारती मुस्कान और उसकी नज़रें बार-बार उसके दिमाग में कौंध रही थीं। हवेली की चमक और कर्मा का रुतबा उसे आकर्षित तो करता था, मगर घरवालों की हिदायतें और प्यारे की सादगी उसे एक अलग राह पर ले जा रही थी।
लड़के वालों के जाते ही बिंदिया को अनामिका, अंजू, नेहा और मनीषा ने घेर लिया और उसे चिढ़ाते हुए उसके साथ मज़ाक करते हुए उससे सब पूछने लगी, बिंदिया भी उनके साथ बात करके खुश हो रही थी और मज़ाक में साथ दे रही थी। वहीं झुमरी को सुमन और कुसुम ने घेर लिया और उससे सब पूछने लगीं। झुमरी भी खूब चाव से सब बता रही थी।




सज्जनपुर में सूरज ढल चुका था, और गाँव पर शाम की सुनहरी धुंध छा रही थी। खेतों से लौटते मज़दूरों की आवाज़ें धीमी पड़ रही थीं, और नदी के किनारे हल्की ठंडक बस रही थी। सुमन और कुसुम, कुसुम के कहने पर और थोड़ा सा बाहर की हवा खाने के लिए नदी की ओर निकल पड़ीं। दोनों देवरानी-जेठानी की जोड़ी गाँव में अपनी सादगी और मेहनत के लिए जानी जाती थी, मगर उनकी हँसी और आपसी मज़ाक गाँव की गलियों में एक अलग रंग भरता था।
नदी का किनारा शांत था, सिर्फ़ पानी की हल्की छलछल और दूर कहीं भटकती चिड़ियों की आवाज़ें गूँज रही थीं। सुमन और कुसुम ने अपने चप्पल किनारे पर उतारे और नदी के ठंडे पानी में पैर डुबोकर किनारे की एक चट्टान पर बैठ गईं। सुमन की साड़ी का पल्लू उसकी कमर पर लिपटा था, और कुसुम की साड़ी का आँचल हल्का सा सरककर उसके मांसल कंधे को उघाड़ रहा था। दोनों के चेहरों पर थकान के साथ-साथ एक हल्की सी मुस्कान थी।
“जीजी, आज का दिन तो बड़ा भारी था,” सुमन ने अपने गीले पैरों को पानी में हिलाते हुए कहा। “धीरज के ब्याह की तैयारियाँ, घर का काम, इतने सारे कपड़े धोए आज तो मैने, ऊपर से ये गर्मी। थक गई मैं तो।”
“हाँ, सुमन, पर अब ये ठंडा पानी सारी थकान निकाल देगा,” कुसुम ने हँसते हुए कहा। उसने एक छोटा सा कंकड़ उठाया और पानी में फेंका, जिससे छोटी-छोटी लहरें उठीं। “वैसे, बिंदिया का रिश्ता पक्का हो गया, ये तो अच्छी बात है। प्यारे लड़का सज्जन और मेहनती लगता है।” जैसे झुमरी ने बताया,
“हाँ, जीजी, सही कह रही हो। बिंदिया को अच्छा घर मिलेगा। सुमन ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा। “पर मुझे तो अभी भी हँसी आ रही है, जब बिंदिया शर्म से लाल हो गई जब सब लड़कियों ने उसे घेरा तो।”
दोनों हँस पड़ीं। उनकी हँसी नदी के किनारे गूँज उठी, मानो पानी भी उनके मज़ाक में शामिल हो गया हो। कुसुम ने शरारत भरे अंदाज़ में सुमन की ओर देखा और बोली, “अच्छा, तू हँस रही है? जैसे तू नहीं शरमाई थी अपनी बारी में” कहते हुए उसने मज़ाक में सुमन को हल्का सा धक्का दे दिया।
“अरे, जीजी!” सुमन का संतुलन बिगड़ा, और वह हँसते हुए नदी के उथले पानी में फिसल गई। पानी में गिरते ही उसकी साड़ी पूरी तरह गीली हो गई, और वह हँसते हुए खड़ी हो गई। “हाय, जीजी, ये क्या किया!” उसने पानी में छलांग लगाते हुए कहा, मगर उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
कुसुम पेट पकड़कर हँस रही थी। “अरे, तू तो पूरी भैंस की तरह पानी में कूद गई!” उसने मज़ाक उड़ाया, अपने पैरों को पानी से निकालते हुए।
“अच्छा, भैंस कहा मुझे?” सुमन ने नकली गुस्से में कहा और तेज़ी से कुसुम का हाथ पकड़कर उसे भी पानी में खींच लिया। “अब तुम भी भैंस की जेठानी बनो!” दोनों पानी में एक-दूसरे पर छींटे मारने लगीं, हँसी और चीख-पुकार से नदी का किनारा गूँज उठा। उनकी साड़ियाँ अब पूरी तरह गीली हो चुकी थीं, और कपड़े उनके भरे हुए बदनों से चिपक गए थे। सुमन का ब्लाउज़ उसके मोटे-मोटे उरोजों को उभार रहा था, और कुसुम की साड़ी उसकी गहरी नाभि और मांसल कमर को और निखार रही थी।
कुसुम: अच्छा अब नहा ही रहे हैं तो अच्छे से नहा लेते हैं
ये कह कुसुम ने अपने पल्लू को सीने से हटाया और कमर पर लपेट लिया,
सुमन: अरे जीजी ये क्या कर रही हो कोई आ गया तो,
कुसुम: अरे इधर औरतें ही कपड़े वगैरा धोती हैं मर्द इस ओर नहीं आते, चिंता मत कर।
सुमन: चलो तुम कह रही हो तो ठीक है।
ये कह सुमन भी कुसुम की तरह अपने पल्लू को नीचे ही लपेट लेती है और दोनों फिर से पानी को उछाल कर खेलने लगती हैं।

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दोनों बेखबर होकर नदी के ठंडे पानी में नहाने और मज़ाक करने में व्यस्त थीं। लेकिन नदी के किनारे की यह मासूम हँसी किसी की नज़रों से छुपी नहीं थी। दूर, एक पुराने बरगद के पेड़ की आड़ में, सोमपाल खड़ा था। वह अपनी शाम की सैर के लिए निकला था, मगर सुमन और कुसुम की हँसी ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया। उसकी नज़रें दोनों की गीली साड़ियों में लिपटे कामुक बदनों पर जमी थीं। सुमन की साड़ी उसके भरे हुए चूतड़ों से चिपकी थी, और कुसुम का गीला ब्लाउज़ उसकी चूचियों को इस तरह उभार रहा था मानो कोई मूर्तिकार ने उन्हें तराशा हो, दोनों के मखमली पेट और नाभी तो मानो जैसे मक्खन के ही नजर आ रही थीं। उन्हें देखते हुए सोमपाल की आँखों में वासना की चमक थी, और उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी।
“हाय, ये देवरानी-जेठानी तो एक से बढ़कर एक हैं,” उसने मन ही मन सोचा। उसका लंड धोती के नीचे कड़क होने लगा।

इनके रसीले बदन का स्वाद तो बड़ा मस्त होगा। सुमन की वो गहरी नाभि, और कुसुम की वो भारी चूचियाँ—हाय, क्या नज़ारा है!” उसकी नज़रें एक पल के लिए भी नहीं हटीं। वह पेड़ की आड़ में खड़ा, उनकी हर हरकत को गौर से देख रहा था।

सुमन ने कुसुम पर फिर से पानी का छींटा मारा। “जीजी, अब तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा चिपक गया है बदन से मानो पहना ही न हो” उसने हँसते हुए कहा।
“अरे, होने दे कोई नहीं देख रहा” कुसुम ने जवाब दिया। “मेंरी साड़ी तो देख अब बदन से चिपककर सब कुछ दिखा रही है!” दोनों फिर से हँस पड़ीं, और पानी में एक-दूसरे को छेड़ने लगीं। उनकी हँसी और मासूम शरारतें नदी के किनारे एक अनजाना रंग बिखेर रही थीं, मगर वे इस बात से बेखबर थीं कि उनकी यह मस्ती किसी की वासना को भड़का रही थी।
सोमपाल की साँसें गहरी हो रही थीं। उसने अपनी धोती को और कस लिया, मगर उसका उभार अब छुपाए नहीं छुप रहा था। “इन दोनों को तो हवेली में होना चाहिए दोनों को रानी बना कर रखूंगा, कुछ तो चक्कर चलाना पड़ेगा” उसने सोचा।
पर ये दोनों सती-सावित्री और संस्कारी हैं, आसानी से नहीं फँसेंगीयू ऊपर से इनका परिवार भी समृद्ध है इतनी जल्दी कुछ नहीं होगा। फिर भी, कोशिश तो बनती है।” उसकी आँखों में एक चालाक चमक थी, मानो वह कोई नया जाल बुनने की सोच रहा हो।
कुसुम ने पानी से बाहर निकलते हुए कहा, “बस, सुमन, अब बहुत हुआ। चल, घर चलते हैं, वरना सर्दी लग जाएगी।” उसने अपनी साड़ी को निचोड़ा, मगर गीले कपड़े अब भी उसके बदन से चिपके थे। सुमन भी हँसते हुए बाहर आई और अपने बालों को निचोड़ने लगी। गाँव की ओर चल पड़ीं, आपस में हँसते-बातें करते हुए

सोमपाल तब तक पेड़ की आड़ में खड़ा रहा, जब तक उनकी आकृतियाँ गाँव की गलियों में ओझल नहीं हो गईं। उसकी मुस्कान अब और गहरी हो गई थी। “चलो, आज तो नज़ारा मिल गया,” उसने मन ही मन कहा। “कब इन दोनों को हवेली की राह दिखाने का वक्त आएगा।” वह धीरे-धीरे अपने रास्ते पर बढ़ गया, मगर उसके मन में सुमन और कुसुम की गीली साड़ियों में लिपटी छवियाँ अब भी नाच रही थीं।
जारी रहेगी।
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