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Nahi, aur hum uske khilaaf haiKya koi mujhe btayaga iss story m interfaith hai ya nahi

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intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....Update no. 127 Aaj shaam tak aayega![]()
Avasya parkash bhaiintezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....
Kamaal ka update tha brother.#126.
चैपटर-8, बर्फ का ड्रैगन:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 16:10, मायावन)
जैसे-जैसे सभी आगे की ओर बढते जा रहे थे, बर्फ की घाटी की सुंदरता बढ़ती जा रही थी।
चारो ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी, पर उस बर्फ में ज्यादा ठंडक नहीं थी।
तभी चलती हुई शैफाली ने जेनिथ की ओर देखा, जेनिथ शून्य में देखकर मुस्कुरा रही थी।
शैफाली को यह बात थोड़ी विचित्र सी लगी। इसलिये वह चलती-चलती सुयश के पास आ गयी और धीरे से फुसफुसा कर बोली-
“कैप्टेन अंकल, मुझे आपसे कुछ कहना है?”
“हां-हां बोलो शैफाली।” सुयश ने शैफाली पर एक नजर डाली और फिर रास्ते पर चलने लगा।
“कैप्टेन अंकल, मैं जेनिथ दीदी के व्यवहार में कुछ दिनों से परिवर्तन देख रहीं हूं।” शैफाली ने कहा।
“परिवर्तन! कैसा परिवर्तन?” सुयश ने आगे जा रही जेनिथ की ओर देखकर कहा।
“पिछले कुछ दिनों से वह तौफीक अंकल से बात नहीं कर रही है और मैंने यह भी ध्यान दिया है कि वह बिना किसी से बात किये ही अचानक मुस्कुरा उठती हैं। मुझे लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति उनके साथ है, पर वह यह बात हम लोगों से बता नहीं रहीं हैं।” शैफाली ने जेनिथ पर अपना शक जाहिर करते हुए कहा।
“यह भी तो हो सकता है कि तौफीक से उसकी लड़ाई हो गयी हो, जो हम लोगों की जानकारी में ना हो और रही बात बिना किसी से बात किये मुस्कुराने की, तो वह तो कोई भी पुरानी यादों को सोचते हुए ऐसा ही करता है” सुयश ने जेनिथ की ओर से सफाई देते हुए कहा।
“पर कैप्टेन अंकल, आप स्पाइनो सोरस के समय की बात भी ध्यान करिये। अचानक से जेनिथ दीदी ने उस स्पाइनोसोरस के ऊपर हमला कर दिया था।”शैफाली ने पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।
“ठीक है, मैंने अभी तक तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया था, पर अब अगर तुम कह रही हो तो मैं भी ध्यान देकर देखता हूं। अगर मुझे भी जेनिथ पर कोई संदेह हुआ? तो हम उससे अकेले में बात करेंगे।
"तब तक तुम यह ध्यान रखना कि यह बात तुम्हें अभी और किसी से नहीं करनी है? नहीं तो हम आपस में ही एक दूसरे पर संदेह करते हुए, अपनी एकता खो देंगे।” सुयश ने शैफाली को समझाते हुए कहा।
“ठीक है कैप्टेन अंकल मैं यह बात ध्यान रखूंगी।”
यह कहकर शैफाली ने अपनी स्पीड थोड़ी और बढ़ाई और आगे चल रहे जेनिथ, तौफीक और क्रिस्टी के पास पहुंच गयी।
लगभग 1 घंटे तक चलते रहने के बाद, सभी घाटी के किनारे के एक पहाड़ के नीचे पहुंच गये।
उन्हें उस पहाड़ के नीचे एक बहुत खूबसूरत सा पार्क दिखाई दिया। जहां पर किसी बूढ़े व्यक्ति की लकड़ी से निर्मित 7 मूर्तियां, एक गोलाकार दायरे में लगी दिखाई दीं।
वहां पर एक बोर्ड पर किसी दूसरी भाषा में ‘कलाट उद्यान’ लिखा था, जिसे शैफाली ने पढ़कर सभी को बता दिया।
“शायद इस बूढ़े व्यक्ति का नाम ही कलाट है।” जेनिथ ने बूढ़े व्यक्ति की मूर्तियों का ध्यान से देखते हुए कहा।
जेनिथ की बात सुन सुयश ने भी सहमति में अपना सिर हिलाया।
अब सभी ध्यान से उन मूर्तियों को देखने लगे। पहली मूर्ति में कलाट किसी ज्यामिति विद् की तरह जमीन पर बैठकर कुछ आकृतियां बनाता दिख रहा था।
वह आकृतियां गोलाकार, त्रिभुजाकार, शंकु आकार और पिरामिड आकार की थीं।
दूसरी मूर्ति में कलाट किसी खगोलशास्त्री की भांति हाथ में दूरबीन लिये आसमान में विचरते ग्रहों को निहार रहा था।
तीसरी मूर्ति में कलाट किसी रसायन शास्त्री की भांति कुछ अजीब से बर्तनों में रसायन मिला रहा था।
चौथी मूर्ति में कलाट लकड़ी की नाव में बैठकर समुद्र में जाता दिख रहा था।
पांचवी मूर्ति में कलाट एक जगह बैठकर किसी पुस्तक को लिख रहा था।
छठी मूर्ति में कलाट एक हाथ में तलवार और एक हाथ में कुल्हाड़ा लेकर किसी ड्रैगन से युद्ध कर रहा था।
सातवीं मूर्ति में कलाट हाथ जोड़कर देवी शलाका की वंदना कर रहा था। वंदना कर रहे कलाट के सामने एक लकड़ी का यंत्र रखा हुआ था। जिस पर आग फेंकते हुए गोल सूर्य की आकृति बनी थी।
यह वही आकृति थी, जो सुयश की पीठ पर टैटू के रुप में बनी थी।
सुयश ने आगे बढ़कर उस लकड़ी के विचित्र यंत्र को उठा लिया।
तभी क्रिस्टी बोल उठी- “मुझे लगता है कि यह बूढ़ा व्यक्ति इस द्वीप का कोई योद्धा है, जिसने इस द्वीप के लिये बहुत कुछ किया है। उसी की याद में ये उद्यान एक प्रतीक के रुप में बनवाया गया होगा। क्यों कैप्टेन मैं सही कह रही हूं ना?”
मगर सुयश तो जैसे क्रिस्टी की बात सुन ही नहीं रहा था, वह अभी भी उस विचित्र यंत्र को हाथ में लिये उस पर बनी सूर्य की आकृति को निहार रहा था।
कुछ सोचने के बाद सुयश ने धीरे से उस यंत्र पर बनी सूर्य की आकृति को अंदर की ओर दबा दिया।
सूर्य की आकृति के अंदर दबते ही उस यंत्र से तितली की तरह दोनों ओर लकड़ी के पंख निकल आये।
बांये पंख पर नीले और हरें रंग के 2 बटन लगे थे और दाहिने पंख पर पीले व लाल रंग के 2 बटन लगे थे।
“अब यह क्या है?” तौफीक ने झुंझलाते हुए कहा- “इस द्वीप पर कोई भी चीज सिम्पल नहीं है क्या? हर चीज अपने अंदर कोई ना कोई मुसीबत छिपा कर रखे है?”
“इन्हीं मुसीबतों के बीच में कुछ अच्छी चीजें भी तो छिपी हैं।” जेनिथ ने कहा- “अगर हम हर वस्तु को मुसीबत समझ उसे नहीं छुयेंगे, तो उन अच्छी चीजों को कैसे प्राप्त कर पायेंगे, यह भी तो सोचो।”
“अब क्या करना है कैप्टेन अंकल?” शैफाली ने उस यंत्र को देखते हुए पूछा- “क्या इस पर लगे बटनों को दबा कर देखा जाये? या फिर इसे यहीं छोड़कर आगे की ओर बढ़ा जाये?”
“रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।” सुयश ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा- “बिना रिस्क लिये हम इस जंगल से बाहर नहीं निकल पायेंगे।”
यह कहकर सुयश ने उस यंत्र के ऊपर लगा नीले रंग का बटन दबा दिया।
नीले रंग का बटन दबाते ही उस उद्यान के बीच में, जमीन से एक लगभग 15 फुट ऊंचा पाइप निकला।
पूरी तरह से निकलने के बाद उस पाइप के बीच से असंख्य पाइप निकलने लगे।
थोड़ी देर के बाद, वह पाइप से बना एक वृक्ष सा प्रतीत होने लगा।
“यह सब क्या है कैप्टन?” क्रिस्टी ने घबराते हुए कहा- “क्या इस पाइप से फिर कोई नयी मुसीबत निकलने वाली है?”
सभी अब पाइप से थोड़ा दूर हट गये थे।
तभी प्रत्येक पाइप से पानी की एक पतली धार फूट पड़ी और उस उद्यान के चारो ओर बारिश की बूंदों की तरह बरसने लगी।
पहले तो सभी खूनी बारिश को याद कर थोड़ा डर गये, पर जब कुछ बूंदें उनके ऊपर पड़ने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो सभी खुश हो गये।
हल्की बारिश की बूंदों से मौसम बहुत सुहाना हो गया था।
यह देख सुयश ने उस विचित्र यंत्र पर लगा हरा बटन भी दबा दिया।
हरे बटन के दबाते ही उद्यान के अंदर हर ओर, सुंदर हरे रंगीन फूलों से लदे वृक्ष, बर्फ से निकलने लगे।
कुछ ही देर में बर्फ से ढका वह उद्यान पूरा का पूरा सुंदर फूलों से ढक गया। इन फूलों की खुशबू भी बहुत अच्छी थी।
“वाह! यह यंत्र तो कमाल का है।” जेनिथ ने खुश होते हुए कहा- “एक मिनट में ही पूरे उद्यान का हुलिया ही बदल दिया।
अब तो सभी को बाकी के 2 बटनों को दबाने की जल्दी होने लगी। यह देख सुयश ने यंत्र पर लगे पीले बटन को दबा दिया।
पीले बटन को दबाते ही पार्क के 2 ओर से, जमीन से 2 विशाल गिटार निकल आये और स्वतः ही बजकर वातावरण में मधुर स्वरलहरी घोलने लगे।
“वाह! कितने दिनों के बाद आज कुछ अच्छा प्रतीत हो रहा है।” जेनिथ ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “कुछ लोग तो इस यंत्र का प्रयोग ही नहीं करने देना चाहते थे?”
तौफीक जेनिथ के कटाक्ष को समझ तो गया, पर उसने कुछ कहा नहीं।
अब सुयश ने यंत्र पर लगे लाल रंग के बटन को दबा दिया।
लाल रंग के बटन को दबाते ही सामने मौजूद पहाड़ का एक हिस्सा, अपने आप ही एक ओर खिसकने लगा।
पहाड़ के खिसकने से जोर की गर्जना हो रही थी।
तभी पहाड़ के खाली स्थान से मुंह से बर्फ छोड़ता एक विशाल ड्रैगन बाहर आ गया।
“ले लो मजा... दबालो और बटन को....।” तौफीक ने गुस्से से जेनिथ को घूरते हुए कहा- “अब झेलो इस नन्हीं सी मुसीबत को।”
लग रहा था कि ड्रैगन बहुत दिनों बाद पहाड़ से निकला था। वह पूरे शक्ति प्रदर्शन पर लगा हुआ था।
वह मुंह आसमान की ओर उठा कर जोर से हुंकार भरते हुए, अपने मुंह से बर्फ फेंक रहा था।
बर्फ के टुकड़े आसमान की ओर जा कर पूरी घाटी में बरस रहे थे। भला यही था कि वह बर्फ के टुकड़े उद्यान पर नहीं बरस रहे थे।
तभी हुंकार भरते ड्रैगन की निगाह उन सभी पर पड़ गयी और वह आसमान में एक उड़ान भरकर उद्यान की ओर आने लगा।
“सब लोग अलग-अलग दिशा में भागो। इतने बड़े ड्रैगन से हम लोग नहीं निपट पायेंगे।” सुयश ने चीखकर सभी से कहा।
सुयश की बात सुनकर सभी अलग-अलग दिशाओ में भागने लगे।
हवा में उड़ते ड्रैगन ने सबको अलग-अलग दिशाओं में भागते हुए देखा और सुयश के पीछे उड़ चला।
ड्रैगन ने भागते हुए सुयश के पीछे से हमला किया। उसने अपने मुंह से ढेर सारी बर्फ सुयश के ऊपर छोड़ दी। सुयश पूरी तरह से बर्फ से ढक गया।
तभी सुयश की पीठ पर बने टैटू से गर्म आग की लपटें निकलने लगीं। उन आग की लपटों ने पूरी बर्फ को पिघला दिया।
आश्चर्यजनक ढंग से निकली वह आग सुयश के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही थी।
जैसे ही सुयश के शरीर की पूरी बर्फ पिघली, वह रहस्यमय आग ड्रैगन की ओर झपटी।
ड्रैगन उस आग से घबरा गया और सुयश को छोड़ शैफाली की ओर लपका।
इस बार ड्रैगन ने शैफाली पर बर्फ की बौछार कर दी, पर इससे पहले कि शैफाली को एक भी बर्फ का टुकड़ा छू पाता, शैफाली के शरीर को एक रबर के पारदर्शी बुलबुले ने अपनी सुरक्षा में ले लिया। जिसकी वजह से बर्फ का एक भी टुकड़ा शैफाली को छू भी नहीं पाया।
तभी शैफाली ने अपनी ड्रेस में लगे डॉल्फिन के बटन को दबा दिया। शैफाली की ड्रेस से तेज अल्ट्रासोनिक तरंगें निकलकर ड्रैगन के शरीर से टकरायीं।
तरंगों ने ड्रैगन को कई जगह से घायल कर दिया।
ड्रैगन उन तरंगों से बहुत ज्यादा डर गया। इसलिये वह आसमान में उड़कर उद्यान के चक्कर काटने लगा।
तभी तौफीक की नजर उद्यान में मौजूद मूर्तियों की ओर गयी। उद्यान में अब 6 ही मूर्तियां दिखाई दे रहीं थीं।
यह देख तौफीक ने सुयश से चिल्ला कर कहा- “कैप्टेन, उद्यान से कलाट की ड्रैगन से लड़ने वाली मूर्ति गायब है। कहीं इसमें कोई राज तो नहीं?”
यह सुन सुयश का ध्यान भी ड्रैगन से हटकर मूर्तियों वाली दिशा में गया।
तभी सुयश को उन मूर्तियों वाले स्थान पर एक तलवार पड़ी हुई दिखाई दी, जो सूर्य की रोशनी में तेज चमक रही थी।
सुयश ने आगे बढ़कर उस तलवार को उठा लिया।
“मुझे लगता है कि इस ड्रैगन का अंत इसी तलवार से ही होगा?” तौफीक ने तलवार को देखते हुए कहा।
“नहीं...मुझे ऐसा नहीं लगता कि इतना बड़ा ड्रैगन इस छोटी तलवार से मरेगा।” सुयश ने अपनी शंका जाहिर की- “हो ना हो यह सिर्फ हमें भ्रमित करने के लिये रखी गयी है।”
यह कहकर सुयश ने वह तलवार तौफीक को थमाते हुए कहा- “देख लो तौफीक, जब तक इस तलवार से अपना बचाव कर पाओ, तब तक
करो। मैं इस डैगन से बचने का कोई दूसरा उपाय सोचता हूं।”
तभी क्रिस्टी के चीखने की आवाज सुनाई दी- “वह ड्रैगन फिर से नीचे आ रहा है।”
क्रिस्टी की आवाज सुन शैफाली, फिर से ड्रैगन पर तरंगों का वार करने के लिये तैयार हो गयी।
पर इस बार ड्रैगन क्रिस्टी पर झपटा। ड्रैगन ने अपने तेज पंजे क्रिस्टी की ओर बढ़ाये।
क्रिस्टी के पास बचने के लिये बिल्कुल समय नहीं था।
तभी क्रिस्टी अपनी जगह से गायब होकर दूसरी जगह पहुंच गयी। ड्रैगन का वार खाली गया।
क्रिस्टी ये देखकर स्वयं भी हैरान रह गयी।
इस बार ड्रैगन ने पलटकर क्रिस्टी पर बर्फ की बौछार कर दी।
तभी क्रिस्टी फिर गायब हो कर दूसरी जगह पहुंच गयी।
पर इस बार शैफाली की तेज आँखों ने जेनिथ को क्रिस्टी को हटाते देख लिया, पर उसने सुयश की बात याद कर अभी कुछ बोलना उचित नहीं समझा।
जब ड्रैगन के द्वारा क्रिस्टी पर किया गया, हर वार खाली जाने लगा, तो झुंझला कर ड्रैगन तौफीक की ओर लपका।
पर तौफीक पहले से ही सावधान था। उसने पास आते ड्रैगन की आँख का निशाना ले तलवार जोर से फेंक कर मार दी।
निशाना बिल्कुल सही था। तौफीक की फेंकी हुई तलवार ड्रैगन की आँख में जा कर घुस गयी।
ड्रैगन बहुत तेज चिंघाड़ा और बर्फ पर अपनी पूंछ जोर-जोर से पटकने लगा।
ड्रैगन के पूंछ पटकते ही ड्रैगन के पैर के नीचे मौजूद झील की, बर्फ की पर्त टूट गयी और ड्रैगन उस झील मंं समा गया।
यह देख सुयश को छोड़ सबने राहत की साँस ली।
“अभी इतना खुश होने की जरुरत नहीं है। वह बर्फ का ही ड्रैगन है, वह झील से जल्दी ही बाहर आ जायेगा। तब तक हमें उसको मारने के बारे में कुछ और सोचना होगा।”
सुयश के शब्द सुन सब फिर से परेशान हो उठे।
अब सभी एकठ्ठे हो कर उस ड्रैगन से बचने का कोई उपाय सोचने लगे।
तभी शैफाली के चेहरे के पास कोई छोटी सी चीज उड़ती हुई बहुत तेजी से निकली। जिसे सुयश सहित सभी लोगों ने महसूस किया।
पर उस चीज की स्पीड इतनी तेज थी कि कोई यह भी नहीं देख पाया कि वह चीज आखिर है क्या?
“ये क्या हो सकता है कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश से पूछा।
तभी सुयश को कुछ याद आया- “कहीं यह वही विचित्र यंत्र तो नहीं? जिसके तितली की तरह से पंख निकल आये थे….अरे उसी के लाल बटन को दबाने पर तो वह ड्रैगन निकला था।
तभी वह चीज फिर से उनके चेहरे के सामने से बहुत तेजी से निकली, पर इस बार उसे सबने देख लिया। वह उड़ती हुई चीज, वही विचित्र यंत्र थी।
“यह यंत्र ही है। इसका मतलब ड्रैगन की मौत का राज इसी में छिपा है।” क्रिस्टी ने कहा- “पर इसकी स्पीड तो इतनी तेज है कि हम इसे छू भी नहीं सकते।”
तभी जेनिथ ने सुयश के हाथों में वह यंत्र पकड़ाते हुए कहा- “ये लीजिये वह यंत्र और जल्दी से उस ड्रैगन को खत्म करने का कोई उपाय कीजिये।”
सभी जेनिथ का यह कारनामा देख हक्का-बक्का रह गये।
“यह तुमने कैसे किया? तुम तो यहां से हिली भी नहीं।” सुयश ने आश्चर्य भरे स्वर में जेनिथ से पूछा।
“मैं आप लोगों को सब बता दूंगी, पर पहले उस ड्रैगन से निपटने का तरीका ढूंढिये।” जेनिथ ने कहा।
तभी ड्रैगन एक भयानक हुंकार भरता हुआ झील के पानी से बाहर आ गया।
तलवार अभी भी उसके एक आँख में चुभी हुई थी।
ड्रैगन के पंख भीगे होने की वजह से, वह जमीन पर चलकर उनकी ओर बढ़ने लगा।
सुयश ने तौफीक के हाथ में पकड़े चाकू से उस यंत्र को नष्ट करने की कोशिश की। पर चाकू के प्रहार से उस यंत्र पर खरोंच भी नहीं आयी।
“वह तलवार... वह तलवार उस ड्रैगन को मारने के लिये नहीं बल्कि इस यंत्र को नष्ट करने के लिये प्रकट हुई थी।“ सुयश ने चीख कर कहा।
“पर वह तो ड्रैगन की आँख में घुसी हुई है, उसे वहां से निकालेंगे कैसे?” शैफाली ने कहा।
“ये लो तलवार।” जेनिथ ने सुयश को तलवार पकड़ाते हुए कहा। सभी ने तलवार जेनिथ के हाथ में देख ड्रैगन की ओर देखा।
ड्रैगन जमीन पर गिरा हुआ था और जेनिथ के हाथ में तौफीक का चाकू थमा था, जिस पर ड्रैगन का थोड़ा सा खून लगा था।
सुयश ने तुरंत यंत्र को अपने हाथ में पकड़ा और तलवार तौफीक को देते हुए उस पर वार करने को कहा।
तौफीक ने बिना समय व्यर्थ किये तलवार से उस यंत्र के 2 टुकड़े कर दिये।
तलवार के टुकड़े करते ही ड्रैगन सहित, उस उद्यान की सारी चमत्कारी चीजें गायब हो गयीं।
अब उद्यान की सातों मूर्तियां पुनः दिखने लगीं थीं, पर अब वो यंत्र वहां पर नहीं था।
सभी परेशानियों को समाप्त होते देख सभी जेनिथ की ओर घूम गये।
जेनिथ समझ गयी कि अब उनसे कुछ छिपाने का कोई फायदा नहीं है। इसलिये वह बोल पड़ी-
“जिस पार्क में हमें मेडूसा की मूर्ति मिली थी, उस पार्क से एक अदृश्य शक्ति भी मेरे साथ है, जिसका नाम नक्षत्रा है, जो पूरे दिन भर में कुछ क्षणों के लिये मेरे शरीर को स्पीड दे सकता है। उसने ही आप लोगों को यह सब बताने से मना किया था, जिसकी वजह से मैंने आप लोगों को कुछ नहीं बताया था। स्पाइनोसोरस को मैंने उसी की सहायता से मारा था।”
जेनिथ ने जानबूझकर नक्षत्रा की सारी सच्चाई सबको नहीं बतायी।
“यह कैसे सम्भव है, कोई भला इतनी स्पीड कैसे जेनरेट कर सकता है?” तौफीक ने कहा।
“इस द्वीप पर कुछ भी हो सकता है।” सुयश ने कहा- “ब्रह्मांड की हर चीज की एक स्पीड होती है। जैसे कि ध्वनि 1 सेकेण्ड में 332 मीटर तक ही चल सकता है, जबकि प्र्काश 1 सेकेण्ड में 30 लाख किलोमीटर चल सकता है। हो सकता है वह प्रकाश की गति को नियंत्रित करके ऐसा करता हो।.... पर जेनिथ... अब तो हम उसके बारे में जान चुके हैं, फिर वह हमारे सामने प्रकट क्यों नहीं हो रहा?”
“उसका शरीर किसी दुर्घटना में जल चुका है, अब वह बस एक ऊर्जा मात्र है और वह सिर्फ मुझसे ही बात कर सकता है।” जेनिथ ने सबको सफाई देते हुए कहा।
“वाह...वाह जेनिथ।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा-“क्या कहने तुम्हारे.. एक के बाद एक झूठ बोले चली जा रही हो। वाह मेरी फेंकूचंद।”
नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ मुस्कुरा दी।
जेनिथ ने इतने सटीक तरीके से झूठ बोला था कि किसी को उस पर
शक नहीं हुआ। इसलिये सभी फिर से आगे की ओर बढ़ चले।
“इस बार कितने नम्बर दिये तुमने मुझे नक्षत्रा?” जेनिथ ने नक्षत्रा से मजा लेते हुए पूछा।
“समय का इस्तेमाल करने के 10 में से 9 और झूठ बोल कर एक्टिंग करने के 10 में से 10 पूरे।”
जेनिथ जोर से हंस पड़ी, पर इस बार उसकी हंसी किसी को अजीब नहीं लगी।
सब समझ गये थे कि वह नक्षत्रा से बात कर रही है।
जारी रहेगा______![]()
Bilkul aisa ji hai dost, Shefali na kewal samajhdaar apitu ati buddhimaan ladki haiKamaal ka update tha brother.
Taufiq ko shayad kuchh kuchh samajh jana chahiye ki Jenith ko uss par doubt ho gaya hai aise usse baat na karne ka koi dusra reason nahi hai.
Isse inkar nahi kiya ja sakta hai ki Shefali sabhi chizo ko bahut hi carefully observe karti hai.
Nice update....#126.
चैपटर-8, बर्फ का ड्रैगन:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 16:10, मायावन)
जैसे-जैसे सभी आगे की ओर बढते जा रहे थे, बर्फ की घाटी की सुंदरता बढ़ती जा रही थी।
चारो ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी, पर उस बर्फ में ज्यादा ठंडक नहीं थी।
तभी चलती हुई शैफाली ने जेनिथ की ओर देखा, जेनिथ शून्य में देखकर मुस्कुरा रही थी।
शैफाली को यह बात थोड़ी विचित्र सी लगी। इसलिये वह चलती-चलती सुयश के पास आ गयी और धीरे से फुसफुसा कर बोली-
“कैप्टेन अंकल, मुझे आपसे कुछ कहना है?”
“हां-हां बोलो शैफाली।” सुयश ने शैफाली पर एक नजर डाली और फिर रास्ते पर चलने लगा।
“कैप्टेन अंकल, मैं जेनिथ दीदी के व्यवहार में कुछ दिनों से परिवर्तन देख रहीं हूं।” शैफाली ने कहा।
“परिवर्तन! कैसा परिवर्तन?” सुयश ने आगे जा रही जेनिथ की ओर देखकर कहा।
“पिछले कुछ दिनों से वह तौफीक अंकल से बात नहीं कर रही है और मैंने यह भी ध्यान दिया है कि वह बिना किसी से बात किये ही अचानक मुस्कुरा उठती हैं। मुझे लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति उनके साथ है, पर वह यह बात हम लोगों से बता नहीं रहीं हैं।” शैफाली ने जेनिथ पर अपना शक जाहिर करते हुए कहा।
“यह भी तो हो सकता है कि तौफीक से उसकी लड़ाई हो गयी हो, जो हम लोगों की जानकारी में ना हो और रही बात बिना किसी से बात किये मुस्कुराने की, तो वह तो कोई भी पुरानी यादों को सोचते हुए ऐसा ही करता है” सुयश ने जेनिथ की ओर से सफाई देते हुए कहा।
“पर कैप्टेन अंकल, आप स्पाइनो सोरस के समय की बात भी ध्यान करिये। अचानक से जेनिथ दीदी ने उस स्पाइनोसोरस के ऊपर हमला कर दिया था।”शैफाली ने पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।
“ठीक है, मैंने अभी तक तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया था, पर अब अगर तुम कह रही हो तो मैं भी ध्यान देकर देखता हूं। अगर मुझे भी जेनिथ पर कोई संदेह हुआ? तो हम उससे अकेले में बात करेंगे।
"तब तक तुम यह ध्यान रखना कि यह बात तुम्हें अभी और किसी से नहीं करनी है? नहीं तो हम आपस में ही एक दूसरे पर संदेह करते हुए, अपनी एकता खो देंगे।” सुयश ने शैफाली को समझाते हुए कहा।
“ठीक है कैप्टेन अंकल मैं यह बात ध्यान रखूंगी।”
यह कहकर शैफाली ने अपनी स्पीड थोड़ी और बढ़ाई और आगे चल रहे जेनिथ, तौफीक और क्रिस्टी के पास पहुंच गयी।
लगभग 1 घंटे तक चलते रहने के बाद, सभी घाटी के किनारे के एक पहाड़ के नीचे पहुंच गये।
उन्हें उस पहाड़ के नीचे एक बहुत खूबसूरत सा पार्क दिखाई दिया। जहां पर किसी बूढ़े व्यक्ति की लकड़ी से निर्मित 7 मूर्तियां, एक गोलाकार दायरे में लगी दिखाई दीं।
वहां पर एक बोर्ड पर किसी दूसरी भाषा में ‘कलाट उद्यान’ लिखा था, जिसे शैफाली ने पढ़कर सभी को बता दिया।
“शायद इस बूढ़े व्यक्ति का नाम ही कलाट है।” जेनिथ ने बूढ़े व्यक्ति की मूर्तियों का ध्यान से देखते हुए कहा।
जेनिथ की बात सुन सुयश ने भी सहमति में अपना सिर हिलाया।
अब सभी ध्यान से उन मूर्तियों को देखने लगे। पहली मूर्ति में कलाट किसी ज्यामिति विद् की तरह जमीन पर बैठकर कुछ आकृतियां बनाता दिख रहा था।
वह आकृतियां गोलाकार, त्रिभुजाकार, शंकु आकार और पिरामिड आकार की थीं।
दूसरी मूर्ति में कलाट किसी खगोलशास्त्री की भांति हाथ में दूरबीन लिये आसमान में विचरते ग्रहों को निहार रहा था।
तीसरी मूर्ति में कलाट किसी रसायन शास्त्री की भांति कुछ अजीब से बर्तनों में रसायन मिला रहा था।
चौथी मूर्ति में कलाट लकड़ी की नाव में बैठकर समुद्र में जाता दिख रहा था।
पांचवी मूर्ति में कलाट एक जगह बैठकर किसी पुस्तक को लिख रहा था।
छठी मूर्ति में कलाट एक हाथ में तलवार और एक हाथ में कुल्हाड़ा लेकर किसी ड्रैगन से युद्ध कर रहा था।
सातवीं मूर्ति में कलाट हाथ जोड़कर देवी शलाका की वंदना कर रहा था। वंदना कर रहे कलाट के सामने एक लकड़ी का यंत्र रखा हुआ था। जिस पर आग फेंकते हुए गोल सूर्य की आकृति बनी थी।
यह वही आकृति थी, जो सुयश की पीठ पर टैटू के रुप में बनी थी।
सुयश ने आगे बढ़कर उस लकड़ी के विचित्र यंत्र को उठा लिया।
तभी क्रिस्टी बोल उठी- “मुझे लगता है कि यह बूढ़ा व्यक्ति इस द्वीप का कोई योद्धा है, जिसने इस द्वीप के लिये बहुत कुछ किया है। उसी की याद में ये उद्यान एक प्रतीक के रुप में बनवाया गया होगा। क्यों कैप्टेन मैं सही कह रही हूं ना?”
मगर सुयश तो जैसे क्रिस्टी की बात सुन ही नहीं रहा था, वह अभी भी उस विचित्र यंत्र को हाथ में लिये उस पर बनी सूर्य की आकृति को निहार रहा था।
कुछ सोचने के बाद सुयश ने धीरे से उस यंत्र पर बनी सूर्य की आकृति को अंदर की ओर दबा दिया।
सूर्य की आकृति के अंदर दबते ही उस यंत्र से तितली की तरह दोनों ओर लकड़ी के पंख निकल आये।
बांये पंख पर नीले और हरें रंग के 2 बटन लगे थे और दाहिने पंख पर पीले व लाल रंग के 2 बटन लगे थे।
“अब यह क्या है?” तौफीक ने झुंझलाते हुए कहा- “इस द्वीप पर कोई भी चीज सिम्पल नहीं है क्या? हर चीज अपने अंदर कोई ना कोई मुसीबत छिपा कर रखे है?”
“इन्हीं मुसीबतों के बीच में कुछ अच्छी चीजें भी तो छिपी हैं।” जेनिथ ने कहा- “अगर हम हर वस्तु को मुसीबत समझ उसे नहीं छुयेंगे, तो उन अच्छी चीजों को कैसे प्राप्त कर पायेंगे, यह भी तो सोचो।”
“अब क्या करना है कैप्टेन अंकल?” शैफाली ने उस यंत्र को देखते हुए पूछा- “क्या इस पर लगे बटनों को दबा कर देखा जाये? या फिर इसे यहीं छोड़कर आगे की ओर बढ़ा जाये?”
“रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।” सुयश ने एक गहरी साँस भरते हुए कहा- “बिना रिस्क लिये हम इस जंगल से बाहर नहीं निकल पायेंगे।”
यह कहकर सुयश ने उस यंत्र के ऊपर लगा नीले रंग का बटन दबा दिया।
नीले रंग का बटन दबाते ही उस उद्यान के बीच में, जमीन से एक लगभग 15 फुट ऊंचा पाइप निकला।
पूरी तरह से निकलने के बाद उस पाइप के बीच से असंख्य पाइप निकलने लगे।
थोड़ी देर के बाद, वह पाइप से बना एक वृक्ष सा प्रतीत होने लगा।
“यह सब क्या है कैप्टन?” क्रिस्टी ने घबराते हुए कहा- “क्या इस पाइप से फिर कोई नयी मुसीबत निकलने वाली है?”
सभी अब पाइप से थोड़ा दूर हट गये थे।
तभी प्रत्येक पाइप से पानी की एक पतली धार फूट पड़ी और उस उद्यान के चारो ओर बारिश की बूंदों की तरह बरसने लगी।
पहले तो सभी खूनी बारिश को याद कर थोड़ा डर गये, पर जब कुछ बूंदें उनके ऊपर पड़ने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हुआ, तो सभी खुश हो गये।
हल्की बारिश की बूंदों से मौसम बहुत सुहाना हो गया था।
यह देख सुयश ने उस विचित्र यंत्र पर लगा हरा बटन भी दबा दिया।
हरे बटन के दबाते ही उद्यान के अंदर हर ओर, सुंदर हरे रंगीन फूलों से लदे वृक्ष, बर्फ से निकलने लगे।
कुछ ही देर में बर्फ से ढका वह उद्यान पूरा का पूरा सुंदर फूलों से ढक गया। इन फूलों की खुशबू भी बहुत अच्छी थी।
“वाह! यह यंत्र तो कमाल का है।” जेनिथ ने खुश होते हुए कहा- “एक मिनट में ही पूरे उद्यान का हुलिया ही बदल दिया।
अब तो सभी को बाकी के 2 बटनों को दबाने की जल्दी होने लगी। यह देख सुयश ने यंत्र पर लगे पीले बटन को दबा दिया।
पीले बटन को दबाते ही पार्क के 2 ओर से, जमीन से 2 विशाल गिटार निकल आये और स्वतः ही बजकर वातावरण में मधुर स्वरलहरी घोलने लगे।
“वाह! कितने दिनों के बाद आज कुछ अच्छा प्रतीत हो रहा है।” जेनिथ ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “कुछ लोग तो इस यंत्र का प्रयोग ही नहीं करने देना चाहते थे?”
तौफीक जेनिथ के कटाक्ष को समझ तो गया, पर उसने कुछ कहा नहीं।
अब सुयश ने यंत्र पर लगे लाल रंग के बटन को दबा दिया।
लाल रंग के बटन को दबाते ही सामने मौजूद पहाड़ का एक हिस्सा, अपने आप ही एक ओर खिसकने लगा।
पहाड़ के खिसकने से जोर की गर्जना हो रही थी।
तभी पहाड़ के खाली स्थान से मुंह से बर्फ छोड़ता एक विशाल ड्रैगन बाहर आ गया।
“ले लो मजा... दबालो और बटन को....।” तौफीक ने गुस्से से जेनिथ को घूरते हुए कहा- “अब झेलो इस नन्हीं सी मुसीबत को।”
लग रहा था कि ड्रैगन बहुत दिनों बाद पहाड़ से निकला था। वह पूरे शक्ति प्रदर्शन पर लगा हुआ था।
वह मुंह आसमान की ओर उठा कर जोर से हुंकार भरते हुए, अपने मुंह से बर्फ फेंक रहा था।
बर्फ के टुकड़े आसमान की ओर जा कर पूरी घाटी में बरस रहे थे। भला यही था कि वह बर्फ के टुकड़े उद्यान पर नहीं बरस रहे थे।
तभी हुंकार भरते ड्रैगन की निगाह उन सभी पर पड़ गयी और वह आसमान में एक उड़ान भरकर उद्यान की ओर आने लगा।
“सब लोग अलग-अलग दिशा में भागो। इतने बड़े ड्रैगन से हम लोग नहीं निपट पायेंगे।” सुयश ने चीखकर सभी से कहा।
सुयश की बात सुनकर सभी अलग-अलग दिशाओ में भागने लगे।
हवा में उड़ते ड्रैगन ने सबको अलग-अलग दिशाओं में भागते हुए देखा और सुयश के पीछे उड़ चला।
ड्रैगन ने भागते हुए सुयश के पीछे से हमला किया। उसने अपने मुंह से ढेर सारी बर्फ सुयश के ऊपर छोड़ दी। सुयश पूरी तरह से बर्फ से ढक गया।
तभी सुयश की पीठ पर बने टैटू से गर्म आग की लपटें निकलने लगीं। उन आग की लपटों ने पूरी बर्फ को पिघला दिया।
आश्चर्यजनक ढंग से निकली वह आग सुयश के शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रही थी।
जैसे ही सुयश के शरीर की पूरी बर्फ पिघली, वह रहस्यमय आग ड्रैगन की ओर झपटी।
ड्रैगन उस आग से घबरा गया और सुयश को छोड़ शैफाली की ओर लपका।
इस बार ड्रैगन ने शैफाली पर बर्फ की बौछार कर दी, पर इससे पहले कि शैफाली को एक भी बर्फ का टुकड़ा छू पाता, शैफाली के शरीर को एक रबर के पारदर्शी बुलबुले ने अपनी सुरक्षा में ले लिया। जिसकी वजह से बर्फ का एक भी टुकड़ा शैफाली को छू भी नहीं पाया।
तभी शैफाली ने अपनी ड्रेस में लगे डॉल्फिन के बटन को दबा दिया। शैफाली की ड्रेस से तेज अल्ट्रासोनिक तरंगें निकलकर ड्रैगन के शरीर से टकरायीं।
तरंगों ने ड्रैगन को कई जगह से घायल कर दिया।
ड्रैगन उन तरंगों से बहुत ज्यादा डर गया। इसलिये वह आसमान में उड़कर उद्यान के चक्कर काटने लगा।
तभी तौफीक की नजर उद्यान में मौजूद मूर्तियों की ओर गयी। उद्यान में अब 6 ही मूर्तियां दिखाई दे रहीं थीं।
यह देख तौफीक ने सुयश से चिल्ला कर कहा- “कैप्टेन, उद्यान से कलाट की ड्रैगन से लड़ने वाली मूर्ति गायब है। कहीं इसमें कोई राज तो नहीं?”
यह सुन सुयश का ध्यान भी ड्रैगन से हटकर मूर्तियों वाली दिशा में गया।
तभी सुयश को उन मूर्तियों वाले स्थान पर एक तलवार पड़ी हुई दिखाई दी, जो सूर्य की रोशनी में तेज चमक रही थी।
सुयश ने आगे बढ़कर उस तलवार को उठा लिया।
“मुझे लगता है कि इस ड्रैगन का अंत इसी तलवार से ही होगा?” तौफीक ने तलवार को देखते हुए कहा।
“नहीं...मुझे ऐसा नहीं लगता कि इतना बड़ा ड्रैगन इस छोटी तलवार से मरेगा।” सुयश ने अपनी शंका जाहिर की- “हो ना हो यह सिर्फ हमें भ्रमित करने के लिये रखी गयी है।”
यह कहकर सुयश ने वह तलवार तौफीक को थमाते हुए कहा- “देख लो तौफीक, जब तक इस तलवार से अपना बचाव कर पाओ, तब तक
करो। मैं इस डैगन से बचने का कोई दूसरा उपाय सोचता हूं।”
तभी क्रिस्टी के चीखने की आवाज सुनाई दी- “वह ड्रैगन फिर से नीचे आ रहा है।”
क्रिस्टी की आवाज सुन शैफाली, फिर से ड्रैगन पर तरंगों का वार करने के लिये तैयार हो गयी।
पर इस बार ड्रैगन क्रिस्टी पर झपटा। ड्रैगन ने अपने तेज पंजे क्रिस्टी की ओर बढ़ाये।
क्रिस्टी के पास बचने के लिये बिल्कुल समय नहीं था।
तभी क्रिस्टी अपनी जगह से गायब होकर दूसरी जगह पहुंच गयी। ड्रैगन का वार खाली गया।
क्रिस्टी ये देखकर स्वयं भी हैरान रह गयी।
इस बार ड्रैगन ने पलटकर क्रिस्टी पर बर्फ की बौछार कर दी।
तभी क्रिस्टी फिर गायब हो कर दूसरी जगह पहुंच गयी।
पर इस बार शैफाली की तेज आँखों ने जेनिथ को क्रिस्टी को हटाते देख लिया, पर उसने सुयश की बात याद कर अभी कुछ बोलना उचित नहीं समझा।
जब ड्रैगन के द्वारा क्रिस्टी पर किया गया, हर वार खाली जाने लगा, तो झुंझला कर ड्रैगन तौफीक की ओर लपका।
पर तौफीक पहले से ही सावधान था। उसने पास आते ड्रैगन की आँख का निशाना ले तलवार जोर से फेंक कर मार दी।
निशाना बिल्कुल सही था। तौफीक की फेंकी हुई तलवार ड्रैगन की आँख में जा कर घुस गयी।
ड्रैगन बहुत तेज चिंघाड़ा और बर्फ पर अपनी पूंछ जोर-जोर से पटकने लगा।
ड्रैगन के पूंछ पटकते ही ड्रैगन के पैर के नीचे मौजूद झील की, बर्फ की पर्त टूट गयी और ड्रैगन उस झील मंं समा गया।
यह देख सुयश को छोड़ सबने राहत की साँस ली।
“अभी इतना खुश होने की जरुरत नहीं है। वह बर्फ का ही ड्रैगन है, वह झील से जल्दी ही बाहर आ जायेगा। तब तक हमें उसको मारने के बारे में कुछ और सोचना होगा।”
सुयश के शब्द सुन सब फिर से परेशान हो उठे।
अब सभी एकठ्ठे हो कर उस ड्रैगन से बचने का कोई उपाय सोचने लगे।
तभी शैफाली के चेहरे के पास कोई छोटी सी चीज उड़ती हुई बहुत तेजी से निकली। जिसे सुयश सहित सभी लोगों ने महसूस किया।
पर उस चीज की स्पीड इतनी तेज थी कि कोई यह भी नहीं देख पाया कि वह चीज आखिर है क्या?
“ये क्या हो सकता है कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश से पूछा।
तभी सुयश को कुछ याद आया- “कहीं यह वही विचित्र यंत्र तो नहीं? जिसके तितली की तरह से पंख निकल आये थे….अरे उसी के लाल बटन को दबाने पर तो वह ड्रैगन निकला था।
तभी वह चीज फिर से उनके चेहरे के सामने से बहुत तेजी से निकली, पर इस बार उसे सबने देख लिया। वह उड़ती हुई चीज, वही विचित्र यंत्र थी।
“यह यंत्र ही है। इसका मतलब ड्रैगन की मौत का राज इसी में छिपा है।” क्रिस्टी ने कहा- “पर इसकी स्पीड तो इतनी तेज है कि हम इसे छू भी नहीं सकते।”
तभी जेनिथ ने सुयश के हाथों में वह यंत्र पकड़ाते हुए कहा- “ये लीजिये वह यंत्र और जल्दी से उस ड्रैगन को खत्म करने का कोई उपाय कीजिये।”
सभी जेनिथ का यह कारनामा देख हक्का-बक्का रह गये।
“यह तुमने कैसे किया? तुम तो यहां से हिली भी नहीं।” सुयश ने आश्चर्य भरे स्वर में जेनिथ से पूछा।
“मैं आप लोगों को सब बता दूंगी, पर पहले उस ड्रैगन से निपटने का तरीका ढूंढिये।” जेनिथ ने कहा।
तभी ड्रैगन एक भयानक हुंकार भरता हुआ झील के पानी से बाहर आ गया।
तलवार अभी भी उसके एक आँख में चुभी हुई थी।
ड्रैगन के पंख भीगे होने की वजह से, वह जमीन पर चलकर उनकी ओर बढ़ने लगा।
सुयश ने तौफीक के हाथ में पकड़े चाकू से उस यंत्र को नष्ट करने की कोशिश की। पर चाकू के प्रहार से उस यंत्र पर खरोंच भी नहीं आयी।
“वह तलवार... वह तलवार उस ड्रैगन को मारने के लिये नहीं बल्कि इस यंत्र को नष्ट करने के लिये प्रकट हुई थी।“ सुयश ने चीख कर कहा।
“पर वह तो ड्रैगन की आँख में घुसी हुई है, उसे वहां से निकालेंगे कैसे?” शैफाली ने कहा।
“ये लो तलवार।” जेनिथ ने सुयश को तलवार पकड़ाते हुए कहा। सभी ने तलवार जेनिथ के हाथ में देख ड्रैगन की ओर देखा।
ड्रैगन जमीन पर गिरा हुआ था और जेनिथ के हाथ में तौफीक का चाकू थमा था, जिस पर ड्रैगन का थोड़ा सा खून लगा था।
सुयश ने तुरंत यंत्र को अपने हाथ में पकड़ा और तलवार तौफीक को देते हुए उस पर वार करने को कहा।
तौफीक ने बिना समय व्यर्थ किये तलवार से उस यंत्र के 2 टुकड़े कर दिये।
तलवार के टुकड़े करते ही ड्रैगन सहित, उस उद्यान की सारी चमत्कारी चीजें गायब हो गयीं।
अब उद्यान की सातों मूर्तियां पुनः दिखने लगीं थीं, पर अब वो यंत्र वहां पर नहीं था।
सभी परेशानियों को समाप्त होते देख सभी जेनिथ की ओर घूम गये।
जेनिथ समझ गयी कि अब उनसे कुछ छिपाने का कोई फायदा नहीं है। इसलिये वह बोल पड़ी-
“जिस पार्क में हमें मेडूसा की मूर्ति मिली थी, उस पार्क से एक अदृश्य शक्ति भी मेरे साथ है, जिसका नाम नक्षत्रा है, जो पूरे दिन भर में कुछ क्षणों के लिये मेरे शरीर को स्पीड दे सकता है। उसने ही आप लोगों को यह सब बताने से मना किया था, जिसकी वजह से मैंने आप लोगों को कुछ नहीं बताया था। स्पाइनोसोरस को मैंने उसी की सहायता से मारा था।”
जेनिथ ने जानबूझकर नक्षत्रा की सारी सच्चाई सबको नहीं बतायी।
“यह कैसे सम्भव है, कोई भला इतनी स्पीड कैसे जेनरेट कर सकता है?” तौफीक ने कहा।
“इस द्वीप पर कुछ भी हो सकता है।” सुयश ने कहा- “ब्रह्मांड की हर चीज की एक स्पीड होती है। जैसे कि ध्वनि 1 सेकेण्ड में 332 मीटर तक ही चल सकता है, जबकि प्र्काश 1 सेकेण्ड में 30 लाख किलोमीटर चल सकता है। हो सकता है वह प्रकाश की गति को नियंत्रित करके ऐसा करता हो।.... पर जेनिथ... अब तो हम उसके बारे में जान चुके हैं, फिर वह हमारे सामने प्रकट क्यों नहीं हो रहा?”
“उसका शरीर किसी दुर्घटना में जल चुका है, अब वह बस एक ऊर्जा मात्र है और वह सिर्फ मुझसे ही बात कर सकता है।” जेनिथ ने सबको सफाई देते हुए कहा।
“वाह...वाह जेनिथ।” नक्षत्रा ने जेनिथ से कहा-“क्या कहने तुम्हारे.. एक के बाद एक झूठ बोले चली जा रही हो। वाह मेरी फेंकूचंद।”
नक्षत्रा की बात सुन जेनिथ मुस्कुरा दी।
जेनिथ ने इतने सटीक तरीके से झूठ बोला था कि किसी को उस पर
शक नहीं हुआ। इसलिये सभी फिर से आगे की ओर बढ़ चले।
“इस बार कितने नम्बर दिये तुमने मुझे नक्षत्रा?” जेनिथ ने नक्षत्रा से मजा लेते हुए पूछा।
“समय का इस्तेमाल करने के 10 में से 9 और झूठ बोल कर एक्टिंग करने के 10 में से 10 पूरे।”
जेनिथ जोर से हंस पड़ी, पर इस बार उसकी हंसी किसी को अजीब नहीं लगी।
सब समझ गये थे कि वह नक्षत्रा से बात कर रही है।
जारी रहेगा______![]()
Awesome update and nice story#127.
ध्वनि शक्ति: (14 वर्ष पहले.......04 जनवरी 1988, सोमवार, 10:30, मानसरोवर झील, हिमालय)
त्रिशाल मानसरोवर झील के पास खड़े होकर उसे निहार रहा था।
झील का स्वच्छ नीला जल, सूर्य के प्रकाश में एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।
कुछ देर तक उस पवित्र नीले रंग के पानी को देखते रहने के बाद, त्रिशाल ने अपना सिर घुमाकर चारो ओर नजर डाली। इस समय दूर-दूर तक उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था।
यह देख त्रिशाल ने अपने बैग से एक छोटी सी गोली और एक डिबिया निकाल ली।
त्रिशाल ने गोली को खा लिया और डिबिया खोलकर उसमें रखे नीले रंग के द्रव को अपनी आँखों पर मल लिया।
यह दोनों वस्तुएं उसे ऋषि विश्वाकु ने दीं थीं।
गोली के प्रभाव से अब वह पानी में भी साँस ले सकता था और नीले द्रव के प्रभाव से अब वह किसी भी अदृश्य चीज को देख सकता था।
अब त्रिशाल मानसरोवर की ओर ध्यान से देखने लगा। नीले द्रव के प्रभाव से त्रिशाल को मानसरोवर के अंदर सीढ़ियां बनीं दिखाईं दीं।
त्रिशाल उन सीढ़ियों के पास पहुंच गया और इधर-उधर नजर घुमाने के बाद त्रिशाल ने सीढ़ियां उतरना शुरु कर दिया।
7-8 सीढ़ियां उतरते ही त्रिशाल पूरा का पूरा पानी में समा गया फिर भी वह इस स्वच्छ जल में लगातार सीढ़ियां उतर रहा था।
लगभग 100 सीढ़ियां उतरने के बाद त्रिशाल झील की तली तक पहुंच गया।
जिस जगह पर सीढियां समाप्त हो रहीं थीं, त्रिशाल को पानी में आर्क की आकृति में एक सोने का दरवाजा बना दिखाई दिया, जिस पर संस्कृत भाषा में शक्ति लोक लिखा था।
त्रिशाल उस द्वार से अंदर की ओर प्रवेश कर गया। अंदर किसी भी जगह पानी नहीं दिखाई दे रहा था।
झील का पूरा पानी द्वार पर ही रुका हुआ था। चारो ओर निस्तब्ध सन्नाटा छाया हुआ था।
तभी कुछ दूरी पर त्रिशाल को हवा में लहराता हुआ, एक बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं थीं।
त्रिशाल उस बोर्ड वाली जगह पर पहुंच गया और बोर्ड पर बनी उन आकृतियों को ध्यान से देखने लगा।
बोर्ड पर सबसे ऊपर संस्कृत भाषा में एक श्लोक लिखा था- “ऊँ नमो भगवते……य नमः” और उस श्लोक के नीचे वि.. के अलग-अलग अस्त्रों को दर्शाया गया था।
“इस गोले में दर्शाये गये भगवान अस्त्रों का क्या मतलब है?” त्रिशाल बोर्ड को देखकर लगातार सोच रहा था- “कहीं ध्वनि शक्ति इन अस्त्रों से बने मायाजाल के अंदर तो नहीं है। लगता है आगे बढ़ना होगा। उसके बाद स्वयमेव सब कुछ पता चल जायेगा।”
यह सोच त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।
लगभग 1 घंटे चलने के बाद त्रिशाल को एक ऊंचा सा पर्वत दिखाई दिया, त्रिशाल उस दिशा की ओर चल पड़ा।
पास जाने पर पता चला कि वह एक पर्वत नहीं है, बल्कि पर्वतों की एक पूरी श्रृंखला है।
त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच से होकर गुजरता हुआ, एक पक्का रास्ता दिखाई दिया। त्रिशाल उस रास्ते से पर्वत के दूसरी ओर चल दिया।
कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को रास्ते में रखी एक 50 फुट लंबी गदा दिखाई दी।
“यह प्रभू की कौमोदकी गदा है, पर इसे इस प्रकार बीच रास्तें में क्यों रखा है?”
त्रिशाल ने गदा को उठाने की बहुत कोशिश की, पर गदा उठना तो दूर हिली तक नहीं।
थक-हार कर त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।
पर कुछ आगे चलते ही त्रिशाल को रास्ता रोके एक विशाल चट्टान दिखाई दी, शायद वह किसी पहाड़ी से लुढ़ककर बीच रास्तें में आ गिरी थी।
वह चट्टान इस प्रकार रास्ते में गिरी थी कि अब एक भी व्यक्ति का बिना चट्टान हटाए, दूसरी ओर जा पाना सम्भव नहीं था।
पर इतनी बड़ी चट्टान को हटा पाना किसी मनुष्य के बस की बात नहीं थी।
त्रिशाल बहुत देर तक पर्वत के उस पार जाने की सोचता रहा, पर उसे कोई रास्ता समझ नहीं आया।
“यह पर्वत भी काफी सपाट और चिकना है, इस वजह से इस पर भी चढ़ा नहीं जा सकता....फिर उस पार कैसे जाऊं? मुझे नहीं लगता कि बिना दूसरी ओर गये, मुझे ध्वनि शक्ति मिलेगी?...कहीं यह चट्टान इस कौमोदकी गदा से तो नहीं टूटेगी? पर कैसे?...मैं तो इस गदा को हिला भी नहीं पा रहा।”
कुछ सोचकर त्रिशाल फिर एक बार गदा के पास आ गया और उसे ध्यान से देखने लगा, पर उस गदा में त्रिशाल को कुछ भी अनोखा नहीं दिखा।
तभी अचानक त्रिशाल को बोर्ड पर लिखा, वह मंत्र याद आ गया। अब त्रिशाल ने कौमोदकी गदा को हाथ लगाकर वह मंत्र पढ़ा- “ऊँ नमो भग..वते वा….य नमः”
मंत्र के पूरा होते ही गदा अपने आप हवा में उठी और तेजी से जा कर उस चट्टान से जा टकराई।
एक भयानक धमाका हुआ, और गदा के भीषण प्रहार से चट्टान पूरी तरह से चूर-चूर हो गयी।
अपना कार्य पूरा करते ही कौमोदकी गदा स्वतः ही हवा में विलीन हो गई। त्रिशाल अब आगे बढ़ गया।
उस पर्वत के आगे एक मैदान था, उस मैदान के एक किनारे एक बड़ा सा धनुष रखा दिखाई दे रहा था।
त्रिशाल चलते-चलते उस धनुष के पास पहुंच गया। धनुष का आकार भी 50 फिट के आसपास था, पर आसपास कहीं कोई तीर दिखाई नहीं दे रहा था।
“यह उन्हीं का दूसरा अस्त्र ‘शारंग धनुष’ है, अब इस का क्या काम हो सकता है यहां?....और यहां पर तो कोई तीर भी नहीं है, फिर इससे कौन से लक्ष्य का संधान करना है?” त्रिशाल ने धनुष से थोड़ा और आगे बढ़कर देखा।
आगे एक 400 फुट गहरी खांई थी और उस खांई में ज्वालामुखी का लावा बहता हुआ दिखाई दे रहा था।
उस खांई पर कोई भी पुल नहीं बना था। यह देख त्रिशाल थोड़ा घबरा गया।
“हे ईश्वर अब तुम ही मुझे इस खांई को पार करने में मदद करो।”
त्रिशाल काफी देर तक सोचता रहा और फिर थककर वहीं जमीन पर बैठ गया।
तभी उसे कौमोदकी गदा वाला दृश्य याद आ गया कि किस प्रकार मंत्र पढ़ने से उसके सामने की चट्टान गदा ने तोड़ दी थी।
यह सोच वह जमीन से उठा और अपने कपड़ों को झाड़कर फिर से धनुष के पास आ गया।
धनुष को छूकर त्रिशाल ने फिर वही मंत्र दोहराया, मंत्र के बोलते ही पता नहीं कहां से धनुष पर एक तीर नजर आने लगा।
तीर के धनुष पर चढ़ते ही, धनुष की प्रत्यंचा अपने आप खिंच गई और धनुष ने उस भारी-भरकम तीर को खांई के दूसरी ओर वाली जमीन पर फेंक दिया।
अब धनुष पर दूसरातीर नजर आने लगा था। यह देख त्रिशाल के दिमाग में एक विचार आया। वह धीरे-धीरे सहारा लेकर धनुष के ऊपर चढ़ गया।
तभी धनुष ने वो दूसरा तीर भी खांई के दूसरी ओर फेंक दिया और धनुष पर एक बार फिर नया तीर नजर आने लगा।
इस बार नये तीर के नजर आते ही त्रिशाल उस तीर की नोक को पकड़कर हवा में लटक गया।
कुछ ही क्षणों में धनुष ने इस तीर को भी खांई की ओर उछाल दिया, पर इस बार यह तीर अकेला नहीं था, उसके साथ था, उस तीर को पकड़कर लटका हुआ 'त्रिशाल' भी।
जैसे ही वह तीर खांई के दूसरी ओर पहुंचा, त्रिशाल छलांग लगा कर दूसरी ओर की जमीन पर कूद गया।
त्रिशाल के दूसरी ओर पहुंचते ही धनुष और तीर दोनों ही हवा में विलीन हो गये।
त्रिशाल फिर आगे बढ़ना शुरु हो गया। कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी किताब जमीन पर खड़ी हुई दिखाई दी।
उस किताब की जिल्द का कवर नारंगी रंग का था, जिस पर नीचे की ओर एक तलवार की खोखली आकृति बनी थी।
उस आकृति को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे इस किताब पर कोई तलवार जड़ी हुई थी जिसे उससे निकाल लिया गया हो।
किताब के ऊपर संस्कृत भाषा के बड़े अक्षरों में ‘ध्वनिका’ लिखा हुआ था।
किताब से कुछ दूरी पर एक 6 फुट का सोने का खंभा जमीन में गड़ा हुआ दिखाई दिया।
खंभे के ऊपरी सिरे पर एक त्रिशूल जैसी आकृति बनी थी।
त्रिशाल ने उस किताब को खोलने की बहुत कोशिश की, परंतु वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया।
“ये क्या ? यहां पर तो और कोई चीज है ही नहीं, फिर भला इस किताब को कैसे खोला जा सकता है।? और मुझे नहीं लगता कि बिना इस किताब को खोले मैं इस जगह से आगे बढ़ पाऊंगा।
त्रिशाल ने हर दिशा में देखते हुए सोचा। अगर मैं उस बोर्ड के हिसाब से चलूं तो मुझे इस भाग में भगवान की ‘नंदक तलवार’ दिखनी चाहिये थी। इस किताब पर भी तलवार की आकृति के समान ही, खाली जगह है। इसका मतलब तलवार मिलने के बाद ही यह किताब खुलनी चाहिये। पर तलवार यहां पर कहां.......?”
अभी त्रिशाल इतना ही सोच पाया था कि उसकी निगाह सोने के खंभे पर पड़ी- “कहीं यह खंभा तलवार की मूठ तो नहीं और तलवार जमीन में घुसी हुई हो? पर अगर यह तलवार की मूठ हुई तो तलवार का
आकार काफी बड़ा होगा और इतनी बड़ी तलवार इस किताब में नहीं लगेगी।”
त्रिशाल चलता हुआ उस खंभे के पास आ गया और उसे छूकर ध्यान से देखने लगा।
तभी त्रिशाल को जाने क्या सूझा कि उसने तलवार को पकड़ कर फिर से ...ष्णु के उस मंत्र का उच्चारण किया- ऊँ….नमः”
मंत्र का जाप करते ही वह सोने का खंभा जोर-जोर से हिलकर ऊपर की ओर उठने लगा।
त्रिशाल का सोचना बिल्कुल सही था। वह नंदक तलवार ही थी।
जब वह तलवार पूरी तरह से जमीन के बाहर आ गयी, तो उसका आकार किताब के खोखले स्थान के जैसा हो गया और वह तलवार स्वतः ही जाकर ध्वनिका के जिल्द पर फिट हो गयी।
तलवार के वहां लगते ही ध्वनिका का प्रथम पृष्ठ अपने आप खुल गया।
प्रथम पृष्ठ के खुलते ही ध्वनिका से एक जोर की ‘ऊँ’ की ध्वनि निकली, जो कि वहां के पूरे वातावरण में गूंज गयी।
तभी ध्वनिका का सफेद पृष्ठ एक चलचित्र के रुप में चलने लगा।
इस चलचित्र में एक बलशाली योद्धा कुछ राक्षसों से लड़ रहा था। वह योद्धा अपनी शक्ति से बड़ी-बड़ी चट्टानों को किसी खिलौने की तरह हाथ में उठाकर राक्षसों पर फेंक रहा था।
युद्ध अपने चरम पर था, परंतु उस योद्धा का पराक्रम देख त्रिशाल की पलकें भी नहीं झपक रहीं थीं।
तभी उस योद्धा के हाथ में एक सोने के समान चमकता हुआ पंचशूल दिखाई दिया, जिसमें से तेज बिजली निकल रही थी।
योद्धा ने ‘ऊँ’ का जाप किया और वह पंचशूल लेकर हवा में उड़ गया। इतना दिखाकर वह चलचित्र बंद हो गया और इसी के साथ बंद हो गया ध्वनिका का वह पृष्ठ भी।
“वाह! कितना बलशाली योद्धा था, काश मेरी पुत्री का विवाह इस योद्धा से हो पाता।” त्रिशाल ने जैसे ही यह सोचा, ध्वनिका से तेज प्रकाश निकलकर, एक दिशा की ओर चल दिया।
उस प्रकाश की गति बहुत तेज थी। कुछ ही देर में वह प्रकाश सामरा राज्य में स्थित अटलांटिस वृक्ष में
समा गया।
त्रिशाल को कुछ समझ नहीं आया कि यह किताब क्या है? वह योद्धा कौन था? और ध्वनिका ने जो दृश्य त्रिशाल को दिखाया, उसका औचित्य क्या था?
अभी त्रिशाल आगे के बारे में सोच ही रहा था कि तभी नंदक तलवार अपने आप कहीं गायब हो गई, जो इस बात का द्योतक थी कि यह भाग पूर्ण हो चुका है। त्रिशाल यह देखकर आगे की ओर बढ़ गया।
आगे जाने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी दीवार में एक दरवाजा दिखाई दिया। त्रिशाल उस दरवाजे में प्रवेश कर गया।
त्रिशाल के उस दरवाजें में प्रवेश करते ही वह दरवाजा कही गायब हो गया।
अब त्रिशाल ने स्वयं को एक बड़े से कमरे में पाया, परंतु उस कमरे से निकलने का कोई भी मार्ग नहीं था।
कमरे के बीचो बीच भगवान का सुदर्शन चक्र रखा हुआ था, जिसका आकार एक रथ के पहिये के बराबर था।
चक्र पूर्णतया रुका हुआ था। कमरे में और कुछ भी नहीं था। त्रिशाल को इस बार ज्यादा नहीं सोचना पड़ा।
त्रिशाल ने चक्र का हाथों से छूकर फिर से भगवान विष्णु के उसी मंत्र का उच्चारण किया- “ऊँ नमो……नमः”
मंत्र का उच्चारण करते ही सुदर्शन चक्र बहुत तेजी से नाचने लगा।
चक्र को नाचता देख त्रिशाल उससे थोड़ा दूर हट गया और चक्र से होने वाले किसी चमत्कार का इंतजार करने लगा।
चक्र धीरे-धीरे नाचता हुआ अपना आकार बढ़ाता जा रहा था। यह देख त्रिशाल कमरे के एक किनारे पर आ गया, पर चक्र के नाचने और बढ़ने की गति देखकर त्रिशाल समझ गया कि वह चक्र कुछ ही देर मे त्रिशाल के पास पहुंच जायेगा।
यह देख त्रिशाल घबरा गया और तेजी से उस चक्र से बचने का उपाय सोचने लगा।
पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्यों कि ना तो उसके पास उस चक्र को रोकने का कोई उपाय था और ना ही उस कमरे में रहकर चक्र से बचा जा सकता था।
चक्र धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाते हुए, उसकी ओर बढ़ता जा रहा था।
त्रिशाल, चक्र का आकार बढ़ता देख यह तो समझ गया कि कुछ ही देर में चक्र उस कमरे की दीवारों को काट देगा, पर उससे पहले ही वह स्वयं चक्र का शिकार हो जायेगा।
त्रिशाल ने उस मंत्र का भी जाप किया, पर वह चक्र नहीं रुका। चक्र अब त्रिशाल से मात्र एक फुट की दूरी पर ही बचा था।
यह देख त्रिशाल ईश्वर से प्रार्थना करने लगा- “हे ईश्वर मुझे बचा लीजिये, मैं अपने कुल का आखिरी दीपक हूं, अगर मैं मर गया तो मेरे कुल का दीपक बुझ जायेगा।”
तभी दीपक शब्द को याद कर एकाएक त्रिशाल के दिमाग की बत्ती जल गयी- “दीपक...दीपक के नीचे तो अंधेरा रहता है। यानि जो दीपक सबको उजाला देता है, वह स्वयं के नीचे उजाला नहीं कर सकता।
यह सोच त्रिशाल की आँखें, उस नाच रहे सुदर्शन चक्र के नीचे की ओर गयी। चक्र के नीचे लगभग 1 फुट की जगह थी।
यह सोच त्रिशाल तेजी से जमीन पर लेट गया और चक्र के केन्द्र की ओर जाने लगा।
बाल-बाल बचा था त्रिशाल। अगर उसे यह विचार आने में एक पल की भी और देरी हो जाती, तो उसकी मृत्यु निश्चित थी।
चक्र ने अब कमरे की दीवारों को काटना शुरु कर दिया। दीवारों का मलबा तेजी से कमरे के अंदर गिरने लगा, पर त्रिशाल को ये पता था, इसलिये वह पहले ही लेटे-लेटे चक्र के केंद्र के पास पहुंच गया था।
दीवारों के कटने से कमरे में जोरदार आवाज उत्पन्न होने लगी। कुछ ही देर में चक्र ने कमरे की सारी दीवारों को काट दिया।
कमरे की दीवारों के कटते ही चक्र अपनी जगह से गायब हो गया।
त्रिशाल ने यह देख अब राहत की साँस ली और उठकर खड़ा हो गया ओर अपने वस्त्रों पर लगी धूल को साफ कर दीवारों के मलबे पर चढ़कर बाहर आ गया।
बाहर एक 200 फुट से भी ऊंचा सोने का कलश रखा था, जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां भी बनीं थीं। उस कलश के अलावा वहां कुछ भी नहीं था।
वह कलश इतना विशाल था कि उसमें पानी भरकर एक राज्य की प्यास बुझाई जा सकती थी।
त्रिशाल धीरे-धीरे उस कलश की सीढ़ियां चढ़ने लगा।
आखिरी सीढ़ी पर एक छोटा सा प्लेटफार्म बना था। प्लेटफार्म पर खड़े हो कर त्रिशाल ने कलश के अंदर ओर झांका, अंदर उसे पानी की झलक मिली, मगर अंदर धुप्प अंधेरा था।
त्रिशाल बिना भयभीत हुए उस सोने के कलश में कूद गया।
‘छपाक’ की आवाज के साथ उसका शरीर पानी से टकराया।
तभी त्रिशाल को पानी की तली में एक रोशनी सी दिखी। त्रिशाल एक डुबकी लगा कर उस रोशनी के पीछे चल पड़ा।
कुछ ही देर में त्रिशाल उस रोशनी के पास था। कलश की तली में ‘पाञचजन्य शंख’ रखा था।
वह रोशनी उसी से प्रस्फुटित हो रही थी। वह शंख भी आकार में विशाल था।
त्रिशाल उस शंख के पास पहुंचकर उसे ध्यान से देखने लगा।
जिस ओर से शंख को बजाया जाता है, त्रिशाल को उस ओर एक मनुष्य के घुसने बराबर एक छेद दिखाई दिया। त्रिशाल उस छेद में प्रवेश कर गया।
अंदर से शंख की दीवारें बहुत चिकनी दिख रहीं थीं, इसलिये त्रिशाल अपने पैरों को जमा-जमा कर शंख में चलने की कोशिश कर रहा था।
तभी त्रिशाल को ‘ऊँ’ की एक धीमी आवाज शंख में गूंजती हुई सुनाई दी।
“शंख में यह आवाज कहां से आ रही है? कहीं यही तो ध्वनि शक्ति नहीं?” यह सोच त्रिशाल उस ध्वनि की दिशा में चल पड़ा।
कुछ आगे जाने पर एक बहुत गहरी और चिकनी ढलान दिखाई दी। इस ढलान का अंत कहीं नहीं दिख रहा था।
यह देख त्रिशाल थोड़ा भयभीत हो गया।
तभी त्रिशाल का पैर चिकनी सतह पर फिसल गया और वह ढलान पर बहुत तेजी से फिसलने लगा।
त्रिशाल के मुंह से चीख की आवाज निकल गई।
त्रिशाल लगातार फिसलता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे उस फिसलन का कहीं अंत ही नहीं है।
लगभग 10 मिनट तक इसी तरह फिसलने के बाद त्रिशाल एक कोमल सी वस्तु पर गिरा, पर उस जगह इतना अंधेरा था कि त्रिशाल को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था कि वह कहां पर आकर गिरा है?
तभी त्रिशाल को कहीं पानी में एक बूंद के गिरने की आवाज सुनाई दी। इस बूंद की आवाज के साथ चारो ओर प्रकाश फैल गया।
प्रकाश के फैलते ही त्रिशाल को नजर आया कि वह एक विशाल कमल के फूल पर गिरा पड़ा है। तभी ‘ऊँ’ की आवाज पुनः आने लगी।
इस बार वह आवाज कमल के फूल के अंदर से आती हुई प्रतीत हुई।
तभी कमल के फूल की पंखंड़ियों ने स्वतः बंद हो कर त्रिशाल को अपने अंदर समा लिया।
अब तेज रोशनी और ‘ऊँ’ की आवाज त्रिशाल को अपने शरीर में समाहित होती हुई सी प्रतीत हुई।
त्रिशाल ने अपनी आँखें जोर से बंद कर लीं।
कुछ देर बाद जब हर ओर से आवाज आनी बंद हो गयी, तो त्रिशाल ने अपनी आँखें खोलीं। उसने अपने आप को मानसरोवर झील के किनारे पड़ा हुआ पाया।
तभी उसे अपने शरीर के अंदर किसी विचित्र शक्ति का अहसास हुआ। यह विचित्र अनुभव ये समझने के लिये पर्याप्त था कि त्रिशाल को ध्वनि शक्ति प्राप्त हो गई है।
यह महसूस कर त्रिशाल के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी और वह योग गुफा की ओर चल दिया।
Jaari Rahega……
Ab start krunga
115:
भाई चाहे कुछ कहो - कई तीर्थों में मैंने भव्य आरतियाँ होती देखी हैं। सच में, शंख, घंटे, ढोल, मृदंग इत्यादि की ध्वनियाँ जब गूंजती हैं, तो ऐसा माहौल बनता है कि क्या कहें! एकदम दिव्य! मन कहीं और ही चला जाता है। आपने उतना बड़ा लिखा नहीं - कहानी का वो उद्देश्य ही नहीं है - लेकिन अगर लिखते, तो आनंद आ जाता!
गुरुत्व शक्ति व्योम को मिली, उधर उस डिबिया में वापस भी आ गई। यह रोचक बात है। जैसा कि आपने एक्सप्लेन किया है, कि अगर गुरुत्व शक्ति किसी सुयोग्य व्यक्ति को मिलती है - हमारे केस में ‘व्योम’ को - तो वो उसका रिप्लेसमेंट भी वापस अपने सही स्थान पर चला जाता है। बढ़िया। पॉजिटिव मल्टिप्लिकेशन!
चिकनी अंडाकार चट्टानें - यह सुनते ही मुझको पहला शब्द जो चमका वो था “अंडे”! हा हा!
टेरोसौर (Pterosaur) उड़ने वाले डायनासौर की एक प्रजाति थी। शायद कुछ पाठकों को न मालूम हो, लेकिन वैज्ञानिक ये मानते हैं कि आधुनिक चिड़ियें, दरअसल, डायनासौर से ही विकसित हुई हैं। ऑस्ट्रेलिया की कुछ चिड़ियाँ, जैसे, ऐमू, कैसोवरी, या फिर अफ्रीका के ऑस्ट्रिच (शुतुरमुर्ग) देखने में डायनासौर जैसे ही प्रतीत होते हैं।
ख़ैर…
वर्णन थोड़ा अतिशय लगा - स्पीलबर्ग की जुरैसिक पार्क फिल्मों जैसा! छोटे चूज़े बहुत निर्बल होते हैं, ख़ास कर बड़ी प्रजाति के चिड़ियों के। वो पूरी तरह से अपनी माँ / पिता पर आश्रित होते हैं खाने पीने के लिए। उनके लिए ऐसे शिकार कर पाना... अगर असंभव नहीं है, तो देखा नहीं गया है। बेहतर होता आगर आप बड़े टेरोसौर को यह करते दिखाते।
कहाँ सोचा था कि तौफ़ीक़ नपेगा, लेकिन यहाँ तो अल्बर्ट ही चला गया।
अल्बर्ट के जाने से अब इस ग्रुप को वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि देने वाला कोई नहीं बचा। शेफ़ाली तार्किक रूप से संपन्न है, लेकिन उसका अलग महत्त्व है।
116:
यार वो मछली गायब कैसे और किधर हो गई? पहले और दूसरे वार से वेगा को जोडिएक घड़ी ने बहुत हद तक बचा लिया। लेकिन प्रश्न ये है कि इतने कम समय में इतनी बार हमला! वेगा को मार कर किसको क्या हासिल होने वाला है? जिस तरह से मछली और नाग गायब हुए हैं, यह बहुत ही रहस्यमय है।
लेकिन सांड़ नहीं गायब हुआ? वो कैसे? छुट्टा सांड़ अमेरिका की सड़कों पर यूँ नहीं घूमते।
लेकिन… अब दोहरी मुसीबत एक साथ ही वेगा के सर पर मँडरा रही है।
117:
एलेक्स ज़िंदा है? हम्म्म!
एक तो अनगिनत पात्र हैं और थोक के भाव मर रहे हैं; ऐसे में किस किस का ब्यौरा रखा जाए भला!
एलेक्स की हरकत समझ नहीं आई - पहले तो भाई का पृष्ठभाग मेडुसा को देख कर फ़ट गया, फिर वो उसका पीछा भी करने लगा। अरे यार - कोई मुसीबत के पीछे जान-बूझ कर क्यों जाना चाहेगा? इस समय उसकी हालत आसमान से गिरे, खजूर पर अटके जैसी ही है।
फिर भी उंगली करने की गज़ब की खुजली है उसमें।
विषधर ने सही कहा - एलेक्स सौ फ़ीसदी मूर्ख है। घंटा कोई अच्छाई है उसमें - पहले बार-बार बार-बार उंगली करना, फिर बोलने वाले सर्प की बात मानना (ओल्ड टेस्टामेंट और कृष्ण लीला की कहानियों से भी कुछ नहीं सीखा इसने)! लेकिन विषधर के बचने से क्या प्रभाव होगा? देखने वाली बात रहेगी।
118:
क्रिस्टी की हिम्मत और हौसले, तेजी और बुद्धिमत्ता की दाद देनी ही पड़ेगी। सच में - यही सब तो मनुष्य के हथियार हैं। इन्ही के बल बूते पर उसने इस आधुनिक संसार की रचना करी है।
वाह भाई!
119:
यार ये बात समझ में नहीं आई कि इतना खतरा होने पर भी राजकुमारी त्रिकाली महादेवी की पूजा करने क्यों निकले?
“व्योम की हिम्मत और उसके बलिष्ठ शरीर की मसल्स देख त्रिकाली व्योम पर मोहित हो गई।” -- हो सकता है, होना भी चाहिए -- लेकिन जिस समय आपने यह लिखा, उस समय असंभव है। जब गाँ* फटती है, तो किसी पर मोहित होने वाला विचार सबसे अंत में आता है। इस समय त्रिकाली को व्योम की मदद करने का विचार आना चाहिए था। इसलिए थोड़ा अटपटा लगा यहाँ।
हाँ - गोंजालो की पराजय के बाद वो व्योम पर मोहित होती, तो सब समझ में आता।
“तुम भी देवी के सामने हाथ जोड़ लो।” त्रिकाली ने व्योम से कहा- “देवी सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं।” -- चल गया तीर, लग गया निशाना! हा हा हा हा हा!!!
त्रिकाली ने बिना बताये व्योम भाई से बियाह कर लिया है, और महादेवी उसकी साक्षी भी बन गई हैं। धोखेबाज़ त्रिकाली!! हा हा हा!
120:
सुयश को भी पाने बुद्धि कौशल को आजमाने का मौका मिला।
121:
आपने रूपकुण्ड झील के बारे में लिखा - मैंने वहाँ दो बार ट्रेक किया है (करीब बीस साल पहले)। क़रीब साढ़े सोलह हज़ार फ़ीट ऊँचाई पर है यह और त्रिशूल और नंदा-घुंटी पीक्स के बीच है। बहुत बड़ी नहीं है - कोई 38-40 मीटर ही होगा इसका डायमीटर। गोल नहीं है, अंडाकार है। लेकिन एक छोटी झील के लिए इसकी गहराई में बहुत अंतर रहता है - शायद 3 से 50 मीटर तक! ट्रेकिंग करते समय बेदनी बुग्याल (बहुत ही सुन्दर जगह… यहाँ पर ब्रह्म कमल मिलते हैं), भगवाबासा, कालु विनायक स्टॉप्स आते हैं। कालु विनायक में भगवन गणेश की काले रंग की मूर्ति है। इसलिए उसका नाम यह है।
जिन नर कंकालों का आपने ज़िक्र किया है, उनके दो समय काल बताए जाते हैं। नौवीं (राजजात यात्रा उसी समय शुरू हुई थी, इसलिए यह इंडिकेशन होता है ये लोग धार्मिक यात्रा पर आए हुए थे) और उन्नीसवीं शताब्दी (इनका डीएनए टेस्ट बताता है कि ये लोग ईस्टर्न मेडिटेरेनियन से रहे होंगे)। यह एक बेहद महत्वपूर्ण झील है, जिसका समुचित संरक्षण होना चाहिए। लेकिन ढीली ढाली सरकारों और लम्पट ट्रेकर्स, टूरिस्ट्स, और धर्म-यात्रियों के चलते, झील को बहुत नुक़सान हो रहा है। झील क्या, हर चीज़ को। बीस साल पहले जब गया था वहाँ, तो बेदनी बुग्याल में ढेरों ब्रह्म कमल मिलते थे, लेकिन तीन साल पहले एक मित्र वहाँ गए, उनको एक नहीं दिखा।
कलिका --- अनंत किरदारों की फ़ेहरिस्त में एक और!!
कलिका का द्वार चुनाव और तर्क बहुत बढ़िया लगा। मेरा भी यही तर्क था।
मेरे हिसाब से उस स्त्री को “पति के सर और भाई के धड़” वाले व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए। व्यक्ति की पहचान उसकी चेतना, स्मृतियों, और व्यक्तित्व से बनती है, जो उसके मस्तिष्क में निहित होती हैं। पति के सर वाला व्यक्ति उस स्त्री का वैवाहिक साथी है, जिसके साथ उसका भावनात्मक और सामाजिक बंधन है। विवाह में संतान आवश्यक हैं, लेकिन कहानी में स्त्री के संतानों के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए यह कह नहीं सकते कि उसकी कोई संतान है या नहीं। अतः, यह भी मान सकते हैं कि स्त्री और उसके पति की संतान हो चुकी हों और उन्होंने अपना ऋण उतार दिया है।
122:
कलिका के तर्क वितर्क के लिए, “अहो,” “अहो,”! देवि, तुम धन्य हो!
मैं भी महर्षि व्यास को चुनता, क्योंकि गुरु ही “प्रकाश” का अर्थ समझाते हैं… प्रकाश (ज्ञान) और अन्धकार (जड़ता) के भेद को बताते हैं।
Raj_sharma राज भाई - यह कहानी न केवल मनोरंजन ही करती है, बल्कि नीति, दर्शन, और संस्कृति से परिचय भी कराती है। सच में - फ़ोरम तो क्या, बाहर बड़े बड़े नामचीन लेखकों की लिखी कहानियों/उपन्यासों में से भी कोई भी इसके निकट नहीं फ़टकती दिखती। यह एक कालजयी रचना है भाई!
अति उत्तम! वाह! वाह!
आपने इसके लिए न जाने कितना शोध किया होगा! और फिर उनको अपनी कल्पना के तार से पिरोया! अत्यंत कठिन कार्य है।
रचना को निःशुल्क हमारे संग साझा कर रहे हैं, हमको आपका धन्यवाद करना चाहिए!
वैसे, इस बार भी मैंने फिर से फ़ूफागिरी (जबरदस्ती का ज्ञान बघारू) दिखा दी।![]()
चौदह वर्ष पूर्व कलिका - जो दिल्ली के एक मैग्जीन की संपादक थी - ने यक्षलोक के प्रहरी युवान के कठिन सवालों का जो जवाब दिया वह बिल्कुल महाभारत के एक प्रसंग ( युधिष्ठिर और यक्ष संवाद ) की तरह था ।
क्या ही कठिन सवाल थे और क्या ही अद्भुत जवाब थे ! यह सब कैसे कर लेते है आप शर्मा जी ! पहले तो दिमाग मे कठिन सवाल लाना और फिर उस सवाल का जवाब ढूंढना , यह कैसे कर लेते है आप !
यह वाकई मे अद्भुत था । इस अपडेट के लिए आप की जितनी तारीफ की जाए कम है ।
शायद सम्राट शिप से चौदह साल पहले जो शिप बरमूडा ट्राइंगल मे डुब गया था , उस शिप मे ही कलिका की बेटी सफर कर रही होगी । वह लड़की आकृति हो सकती है । वह आकृति जो शलाका का क्लोन धारण कर रखी है ।
दूसरी तरफ सामरा प्रदेश मे व्योम साहब पर कुदरत बहुत ही अधिक मेहरबान हो रखा है । वगैर मांगे छप्पर फाड़ कर कृपा बरसा रहा है । पहले अमृत की प्राप्ति हुई और अब राजकुमारी त्रिकाली का दिल उनपर धड़क गया है ।
मंदिर मे जिस तरह दोनो ने एक दूसरे को रक्षा सूत्र पहनाया , उससे लगता है यह रक्षा सूत्र नही विवाह सूत्र की प्रक्रिया थी ।
इन दो घटनाक्रम के बाद तीसरी तरफ कैस्पर का दिल भी मैग्ना पर मचल उठा है और खास यह है कि यह धड़कन हजारों वर्ष बाद हुआ है । लेकिन सवाल यह है कि मैग्ना है कहां !
कहीं शैफाली ही मैग्ना तो नही ! शैफाली कहीं मैग्ना का पुनर्जन्म तो नही !
कुकुरमुत्ता को छाते की तरह इस्तेमाल करते हुए सुयश साहब और उनकी टीम का तेजाबी बारिश से खुद को रक्षा करना एक और खुबसूरत अपडेट था । पांच लोग बचे हुए हैं और एलेक्स को मिला दिया जाए तो छ लोग । तौफिक साहब की जान जाते जाते बची , लेकिन लगता नही है यह साहब अधिक दिन तक जीवित रह पायेंगे ।
कुछ मिलाकर पांच प्राणी ही सम्राट शिप के जीवित बचेंगे , बशर्ते राइटर साहब ने कुछ खुराफाती न सोच रखा हो ।
ये मिश्रित पांडव जीवित रहने चाहिए पंडित जी !
सभी अपडेट बेहद खुबसूरत थे ।
रोमांच से भरपूर ।
एक अलग तरह की कहानी , एक अद्भुत कहानी ।
और आउटस्टैंडिंग राइटिंग ।
Shandar update bro
Bahut hi adhbhut update he Raj_sharma Bhai,
Itne serious chapters ke baad kuch pyaar to nazar aaya is update me.............
Keep rocking Bhai
Nice update....
Let's review begins
So vega chhupa rustom nikala dhara aur mayur ke baare mein bhi sab Pata thaa .
Then yaha viraj ka bhi discussion aaya
Kya viraj ki bhi back story hai .
Then yaha vikram vironi couple nahi iss logic se chale toh dhara mayur aur shivanya rudransh bhi couple nahi hoge.
Then yaha capsure ke bache ka bhi jikar aaya .
Kya ye sambhav hai megna ka Putra bhi jeevit ho.
Yaha putra ka Jekar mention huwa, lekin ek samay ek Thought aaya ki kahi wo bacha shaffali toh nahi lekin yaha clear gender mention hai.
Overall update shandar .
Waiting for more
Nice update and awesome story
शुयश ,शैफाली ,जैनिथ तीनों को शक्तियां मिल गयी है
बचे है तौरिफ और किर्ष्टी उन्हें भी कोई शक्ति मिलेगी या
शानदार प्रस्तुति
Bahut hi shandar update
Jenith nakshtra ke baare mei kyo nhi btaya
Kahi nakshtra koi gadbad na kr de baad mei
majedar update..shefali ko shak ho gaya aur usne suyash ko ye baat bata di jenith ki ,suyash ka kehna bhi sahi hai ki agar sawal pucchte rahe to unme ekta nahi rahegi ..
kalat udyan to chamatkari nikla ,suyash aur shefali to apni power ki wajah se bach gaye par christi ke paas koi power nahi thi ,sahi waqt pe uski madad ki jenith ne aur barf dragon ko harane me bhi uska aham yogdan raha ..
aakhir jenith ne nakshatra ke baare me bata diya sabko par jyadatar jhooth hi .
nakshatra ne 10 me se 10 number diye jenith ko jhooth bolne ke liye..
ye kalat naam pehle bhi aa chuka hai kahani me shayad par yaad nahi![]()
nice update
Ye ulka pind ka kya locha hai guru ji??? Waise fir se ek baar gajab ka Update diya hai![]()
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक साथ में खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये ड्रेंगन लढते वक्त जेनिथ की शक्ति सभी के सामने आ गयी पर पुरी तरहा से नहीं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Both updates are awesome![]()
Shaandar Update
intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....
Kamaal ka update tha brother.
Taufiq ko shayad kuchh kuchh samajh jana chahiye ki Jenith ko uss par doubt ho gaya hai aise usse baat na karne ka koi dusra reason nahi hai.
Isse inkar nahi kiya ja sakta hai ki Shefali sabhi chizo ko bahut hi carefully observe karti hai.
Nice update....