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अध्याय 21
बरहपुर गांव में प्यारेलाल की मौत ने हर किसी को हिला दिया था। उनके चबूतरे पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। मर्द बाहर खड़े थे, जहां प्यारेलाल की लाश पड़ी थी, और औरतें घर के आंगन में जमा होकर रो रही थीं। पुष्पा, सुधा, लता, झुमरी, रजनी—गांव की सारी औरतें रत्ना को संभालने की कोशिश कर रही थीं।
रत्ना का चेहरा पीला पड़ गया था। उसका बुखार तो हल्का हो गया था, लेकिन ससुर की मौत की खबर ने उसे तोड़ दिया था। वो औरतों के बीच बैठी थी, लेकिन उसका दिमाग कहीं और भटक रहा था। रात को प्यारेलाल, सोमपाल, और कुंवरपाल ने उसे चोदा था, और अब उसका ससुर इस दुनिया में नहीं था। उसके बदन में अभी भी उनके लंड का एहसास बाकी था, और ये सोचकर उसका मन डर और ग्लानि से भर जाता था। उसे शक हो रहा था कि कहीं रात की घटना के बाद सोमपाल और कुंवरपाल से झगड़ा तो नहीं हो गया। लेकिन अभी कुछ कह पाना संभव नहीं था।
फुलवा भी आंगन में बैठी थी, लेकिन उसका मन भी उलझन में था। रात को वो नदी किनारे टोटका कर रही थी, जहां से प्यारेलाल की लाश कुछ दूरी पर मिली थी। उसे डर था कि कहीं उस टोटके या अनजान साए का इससे कोई संबंध तो नहीं। वो चुपचाप सोचती रही, अपने डर को किसी से जाहिर न करने की कोशिश करती हुई।
इसी बीच, रत्ना और राजकुमार की बेटी रानी अपने पति और सास के साथ वहां पहुंची। रानी ने अपने दादा की लाश देखते ही बिलख-बिलख कर रोना शुरू कर दिया। "हाय बाबा! मुझे छोड़कर कहां चले गए!" उसकी चीखें आंगन में गूंज उठीं। रानी की सास ने उसे संभालने की कोशिश की, लेकिन वो बार-बार अपनी मां रत्ना की गोद में सिर रखकर रोती रही।
रिश्तेदारों के आने के बाद प्यारेलाल का अंतिम संस्कार किया गया। नदी किनारे चिता की आग ने सबको भावुक कर दिया।अगले कुछ दिनों तक गांव में शोक का माहौल रहा। राजकुमार के घर में चूल्हा नहीं जला, और गांव के बड़े-बुजुर्ग उसे सांत्वना देते रहे। एक बुजुर्ग ने कहा, "देख बेटा, अब उनका समय आ गया था। वो चले गए। तुम अब घर के बड़े हो, खुद को और परिवार को संभालो।" दूसरा बोला, "उम्र हो गई थी, एक न एक दिन तो जाना ही था। अच्छा हुआ बिना तकलीफ के चले गए।" राजकुमार चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा, लेकिन उसका मन भारी था।
रात ढल चुकी थी। पुष्पा ने खाना बनाया और रत्ना के घर ले गई। फुलवा भी उसके साथ थी। दोनों ने तय किया कि आज वो रत्ना के साथ ही सोएंगी, ताकि उसे अकेलेपन का एहसास न हो। फुलवा ने सुधा को पहले ही समझा दिया था कि वो घर पर छोटू का ध्यान रखे। उसने सुधा को कहा कि वो छोटू को पुड़िया वाली दवाई दे दे, ताकि वो उत्तेजित न हो, और आज रात छोटू के साथ सो जाए, क्योंकि पुष्पा घर पर नहीं होगी। सुधा ने घर के सारे काम निपटा लिए। उसने सबको खाना खिलाया और बाहर सो रहे लोगों को दूध पिलाया। फिर उसने छोटू के लिए दूध में पुड़िया मिलाई और कमरे में गई, जहां छोटू पहले से लेटा हुआ था।"ले लल्ला, दूध पी ले," सुधा ने प्यार भरे लहजे में कहा, एक मिट्टी का गिलास छोटू की ओर बढ़ाते हुए।
छोटू ने सिर हिलाया, "मन नहीं कर रहा चाची, मुझे भी भूरा के यहां सोना था।" उसकी आवाज में उदासी थी। प्यारेलाल की मौत और गांव का शोक उस पर भी असर छोड़ गया था।सुधा ने उसे समझाया, "अरे लल्ला, मैं समझती हूं तू अपने दोस्त के लिए दुखी है। पर वहां सब बड़े हैं ही। दूध पिएगा तभी तो ताकत आएगी, और अपने दोस्त की हर काम में मदद कर पाएगा। ले, चल पी ले।" उसकी आवाज में ममता थी, और उसने छोटू को प्यार से मनाया।छोटू ने चाची की बात मान ली। उसने गिलास लिया और एक ही सांस में सारा दूध पी गया। सुधा ने तुरंत किवाड़ बंद कर दिए और बिस्तर के पास आ गई। उसने अपनी साड़ी उतारी और एक ओर रख दी। सुधा की हमेशा से आदत थी कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में ही सोती थी। उसने अपना भरा हुआ बदन बिस्तर पर लिटाया और आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी।
लेकिन छोटू के लिए ये नजारा मुश्किल हो गया। अपनी चाची को इस तरह देखकर उसकी आंखें फैल गईं। सुधा का नंगा पेट, उसकी गहरी नाभि, और ब्लाउज में से झांकती चूचियों की दरार—ये सब देखकर छोटू के दिमाग में वो पुरानी यादें ताजा हो गईं, जब उसने चाची को चाचा के साथ चुदाई करते देखा था। उस रात की चीखें, सुधा की नंगी चूचियां, और उसकी मोटी गांड—सब कुछ उसके सामने घूमने लगा और उसका लंड धीरे-धीरे तनने लगा। वो नहीं चाहता था कि चाची को उसकी उत्तेजना का पता चले, इसलिए उसने जल्दी से करवट ले ली और दूसरी ओर मुंह करके लेट गया।
सुधा ने आंखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगी। उसे लगा कि छोटू भी सो गया होगा। लेकिन छोटू का मन उथल-पुथल मचा रहा था। एक तरफ उसका मन कह रहा था कि उसे चुपचाप सो जाना चाहिए, लेकिन दूसरी तरफ उसकी हवस उसे उकसा रही थी। उसने सोचा, "मैंने तो अपनी मां को चोद लिया है, फिर चाची से डरने की क्या बात है? चाची तो वैसे भी कितनी गरम है, मैंने उसे चाचा के साथ देखा है।" ये सोचकर उसने हिम्मत जुटाई और धीरे से सुधा की ओर करवट ले ली। उसने सोने का नाटक करते हुए अपना हाथ सुधा के नंगे पेट पर रख दिया।
सुधा ने पहले छोटू के स्पर्श को अनदेखा किया। उसे लगा कि शायद छोटू नींद में ऐसा कर रहा है। लेकिन जैसे ही छोटू का हाथ उसके पेट पर हल्के-हल्के सहलाने लगा, सुधा के बदन में एक सिहरन दौड़ गई। उसे अपनी जेठानी पुष्पा के साथ बिताए वो पल याद आने लगे, जब वो दोनों एक-दूसरे के बदन को सहलाती थीं। सुधा की सांसें तेज होने लगीं, और उसकी चूत में एक हल्की सी गीलापन महसूस होने लगा। लेकिन फिर उसे अहसास हुआ कि ये छोटू है, उसका भतीजा। उसने जल्दी से छोटू का हाथ पकड़ा और अपने पेट से हटा दिया। उसने छोटू को सीधा कर दिया और खुद भी सीधी होकर लेट गई।
छोटू डर गया। उसे लगा कि चाची को उसकी हरकत का पता चल गया है। उसने तुरंत सोने का नाटक शुरू कर दिया और चुपचाप लेट गया। सुधा ने एक बार छोटू के चेहरे की ओर देखा। उसे वो सोता हुआ नजर आया। उसने राहत की सांस ली और फिर से आंखें बंद कर सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन तभी उसकी नजर छोटू के निक्कर पर पड़ी, जहां एक तंबू साफ दिख रहा था। सुधा का मुंह हैरानी से खुल गया।
अपने भतीजे के कच्छे में इतना बड़ा तंबू देखकर सुधा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वो हैरान रह गई कि इतनी सी उम्र में छोटू का लंड इतना बड़ा कैसे हो सकता है। उसकी जिज्ञासा जाग उठी—अगर कच्छे के ऊपर से ऐसा दिख रहा है, तो सामने से कैसा होगा? उसने अपने सिर को झटककर इन विचारों को बाहर निकालने की कोशिश की। वो जानती थी कि वो एक कामुक औरत है, लेकिन आज उसे छोटू के साथ कुछ अलग ही आभास हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि उसके बदन पर उसका कोई काबू नहीं है। उसने मन ही मन सोचा, "क्या सच में छोटू के ऊपर कोई साया है? नींद में वो मेरे पेट से खेल रहा था... कुछ समझ नहीं आ रहा। ऊपर से उसका ये इतना अकड़ा हुआ है—क्या ये मेरे पास होने की वजह से है?" फिर उसने खुद को डांटा, "नहीं-नहीं, छोटू तो मेरा भतीजा है। वो मुझे देखकर उत्तेजित क्यों होगा?" सुधा के मन में सवालों का तूफान मचा था। वो दोबारा सोने की कोशिश करने लगी, लेकिन उसकी सांसें अब भी तेज थीं।
छोटू भी सोने का नाटक कर रहा था। लेकिन उसे भी ग्लानि हो रही थी। उसने सोचा, "प्यारेलाल चाचा की मौत जैसे बड़े हादसे के बाद मैं हवस के चक्कर में क्यों पड़ रहा हूं?" उसने खुद को समझाया कि उसे शांत रहना चाहिए। उसने अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश की और नींद लेने का प्रयास किया। कुछ ही देर में दोनों की नींद लग गई, और कमरे में सन्नाटा छा गया।अगली सुबह जब सूरज की किरणें कमरे में झांकने लगीं, सुधा की आंखें खुलीं। उसका मन अभी भी छोटू के साथ हुई उस घटना के विचारों से भरा था, लेकिन उसने उन्हें मन से निकालने की ठान ली। वो उठकर घर के काम में जुट गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
छोटू भी सामान्य व्यवहार करने की कोशिश कर रहा था। उसने रात की ग्लानि को पीछे छोड़ दिया और दिन की दिनचर्या में लौट आया।
अगले दो-तीन दिन गांव में शोक के माहौल में बीते। छोटू कभी सुधा के साथ, तो कभी पुष्पा के साथ सोया, लेकिन उसने अपनी हवस पर काबू रखा। उसने अच्छाई दिखाई और कुछ भी करने की कोशिश नहीं की। इन दिनों फुलवा ने भी टोटका करना बंद कर दिया था, क्योंकि प्यारेलाल की मौत ने उसे डरा दिया था। सोमपाल और कुंवरपाल भी रत्ना से आंखें मिलाने से बच रहे थे। उन्हें रात की घटना की ग्लानि सता रही थी, और वो अपने आपको दोषी महसूस कर रहे थे।
उधर, पुष्पा को हैरानी हो रही थी कि छोटू अब उसके साथ कुछ करने की कोशिश नहीं करता। उसे लगा कि प्यारेलाल की मौत ने उसे बदल दिया है। लेकिन पुष्पा की अपनी उत्तेजना दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। उसका बदन सुलग रहा था, और वो छोटू की अनुपस्थिति में खुद को संभाल नहीं पा रही थी। लता की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। उसकी उत्तेजना भी बढ़ रही थी, लेकिन वो लगातार रत्ना के घर सो रही थी, इसलिए अपने मन पर ध्यान नहीं दे पा रही थी।
नंदिनी भी खुद को शांत करने की कोशिश कर रही थी। उसने नीलम के साथ हुई घटना को भुलाने की ठानी थी, लेकिन दोनों की बोलचाल अब भी बंद थी। जब भी वो एक-दूसरे के सामने आतीं, नजरें चुरा लेतीं। इस बीच, भूरा का भाई राजू और नंदिनी थोड़ा-थोड़ा खुल गए थे। नंदिनी को राजू का शर्मीला व्यक्तित्व पसंद आ रहा था, जो उसके अपने खुले स्वभाव से बिल्कुल उलट था। साथ ही, प्यारेलाल की मौत के बाद राजू के परिवार के प्रति उसकी सहानुभूति बढ़ रही थी।
ऐसे ही तेरहवीं का दिन भी बीत गया। गांव का माहौल धीरे-धीरे सामान्य होने लगा। तेरहवीं के अगले दिन सुबह की शौच से लौटते हुए लल्लू, भूरा, और छोटू साथ-साथ थे। ताजा हवा और सुबह की ठंडक उनके चेहरों पर थोड़ी राहत ला रही थी।
लल्लू ने बात शुरू की, "अब क्या करना है आज पूरे दिन?"छोटू ने सिर खुजलाते हुए कहा, "पता नहीं यार, कुछ सूझ ही नहीं रहा। करने को कुछ है ही नहीं।
भूरा ने शरारती मुस्कान के साथ कहा, "है तो बहुत कुछ करने को, बहुत दिनों से कुछ किया ही कहां है?" उसकी आंखों में एक चमक थी, जो उसके दोस्तों को तुरंत समझ आ गई।
लल्लू और छोटू एक साथ मुस्कुरा पड़े। लल्लू ने कहा, "अरे यार, मन की बात कह दी तूने तो!
"छोटू ने जोड़ा, "सही में यार।"भूरा ने हंसते हुए कहा, "अरे मन में थी तो अब तक बाहर क्यों नहीं आई?
लल्लू ने ठहाका लगाया, "यार, इतना बड़ा कांड तेरे घर में हो गया था, इसलिए हम लोग खुद को रोक रहे थे।
भूरा ने सिर हिलाया, "अरे अब जो हो गया सो हो गया। बाबा चले गए, और अब वापस आने से रहे। पर इसका ये मतलब तो नहीं कि हम जिंदगी ही न जिएं।
छोटू ने तारीफ की, "अरे वाह भाई, क्या समझदारी वाली बात कही!
लल्लू ने उत्साह से कहा, "हां यार, वैसे अब बताओ क्या करना है। मुझसे रुका नहीं जा रहा।
छोटू ने जोड़ा, "हां यार, और हमारी योजना भी तो अधूरी रह गई।
भूरा ने सुझाव दिया, "उस पर भी काम करेंगे, बस थोड़े दिन के लिए विराम लिया था।
लल्लू ने उत्साहित होकर कहा, "तो फिर चलो खेत की तरफ। देखते हैं, कोई नजारा मिल जाए।
तीनों दोस्तों की आंखों में शरारत की चमक थी। वो तुरंत खेत की ओर दौड़ पड़े, हल्की ठंडी हवा उनके चेहरों को छू रही थी, और उनके मन में पुरानी हवस फिर से जागने लगी थी।
जारी रहेगी, आपकी प्रतिक्रिया का बहुत बेसब्री से इंतजार है, प्रतिक्रिया कम हो रही हैं तो लिखने का भी मन नहीं होता।
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