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Adultery उल्टा सीधा

sunoanuj

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बहुत ही जबरदस्त अपडेट दिया है !
 

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अध्याय 20


रत्ना अपने कमरे में अकेली बैठी थी, उसका शरीर दर्द से भरा हुआ था। तीन बूढ़ों—प्यारेलाल, कुंवरपाल, और सोमपाल—की हवस का शिकार होने के बाद उसका बदन टूट रहा था।
उसकी योनि में जलन थी, और हर सांस के साथ एक अजीब सी सुन्नता उसके अंदर फैल रही थी। लेकिन आज उसकी आंखों से आंसू नहीं बहे। कल रात की तरह ग्लानि तो थी, पर कहीं न कहीं उसके मन में एक ठंडापन भी था, जैसे वो इस सबके लिए तैयार हो चुकी हो।
बहुत देर तक वो अपने बिस्तर पर बैठी उन भयानक पलों को याद करती रही—प्यारेलाल की बूढ़ी उंगलियां, कुंवरपाल का मोटा लंड, और सोमपाल की लार टपकाती हरकतें। आखिरकार, थकान और दर्द से चूर होकर उसने कपड़े पहने और बिस्तर पर लेटते ही नींद की आगोश में चली गई।

उधर, चबूतरे पर प्यारेलाल अपनी बहू को चोदने के बाद झड़ते ही पलटकर सो गया था। उसे अब भी लगता था कि उसने अपनी मरी हुई पत्नी गेंदा को प्यार किया है।
लेकिन सोमपाल और कुंवरपाल की हालत अलग थी। अपनी हवस की आग बुझाने के बाद अब उनके होश ठिकाने आ रहे थे। रत्ना की चूचियां मसलने और उसकी चूत में लंड पेलने की यादें अब उनके मन को कचोट रही थीं। दोनों चबूतरे से उठे और बिना एक शब्द बोले नदी किनारे की ओर चल पड़े।

नदी किनारे की ठंडी हवा में पानी की कल-कल ही एकमात्र आवाज थी। दोनों एक बड़े पत्थर के पास रुक गए और उससे टिककर बैठ गए।
कुंवरपाल का चेहरा लटका हुआ था। उसने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, "भेंचो, बहुत बड़ा पाप कर लिया हमने हवस में।

"सोमपाल ने भी सिर झुकाकर सहमति जताई, "हां यार, अपने आप पर काबू ही नहीं कर पाए। साला, ऐसा गंदा काम... हमसे हो गया।
दोनों कुछ देर चुप रहे, अपने किए पर पछताते हुए। फिर कुंवरपाल ने बेचैनी भरे लहजे में पूछा, "अब समझ नहीं आ रहा कि आगे क्या होगा?
सोमपाल ने सिर खुजलाया, "घर चलें वापस?

कुंवरपाल ने तुरंत मना कर दिया, "नहीं यार, मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही। ऐसा करते हैं, यहीं रुकते हैं।
सोमपाल ने सहमति में सिर हिलाया, "ठीक है।"कुछ देर तक दोनों चुपचाप नदी की ओर देखते रहे। फिर सोमपाल ने बात शुरू की, "साला ये प्यारे भी कम नहीं है। अपनी बहू और अपनी मरी हुई लुगाई में उसे कोई फर्क ही नहीं दिखता। हमसे भी पाप करवा दिया।
कुंवरपाल ने गुस्से में कहा, "हां यार, अगर वो ऐसा न करता तो हम भी तो आगे नहीं बढ़ते।
सोमपाल ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा, "पर कुंवर, मुझे लगता है कि बात इतनी सीधी नहीं है। इसमें कुछ गड़बड़ जरूर है।
कुंवरपाल ने हैरानी से उसकी ओर देखा, "कैसी गड़बड़?
सोमपाल ने गहरी सांस ली और बोला, "तुझे याद है न, कल प्यारेलाल बोल रहा था कि उसने पिछली रात भी अपनी लुगाई को चोदा था?
कुंवरपाल की आंखें फैल गईं, "हां, बोला तो था! अरे, इसका मतलब उसने कल रात भी अपनी बहू को चोदा था!
सोमपाल ने सिर हिलाया, "हां, और अगर ऐसा है तो ये रत्ना आज रात फिर चबूतरे पर क्यों आई?
जब उसे पता है कि कल भी ऐसा हुआ था, तो आज वो फिर क्यों आई? मतलब कुछ तो बात है।
कुंवरपाल ने गंभीरता से सोचा, "हां यार, कुछ गड़बड़ तो है ही।

सोमपाल ने सुझाव दिया, "देख, अभी आधी रात ही हुई है। भोर होने तक यहीं सो लेते हैं थोड़ी देर, फिर सुबह देखेंगे कि क्या करना है।
कुंवरपाल ने सहमति जताई, "ठीक है।"दोनों बूढ़े नदी किनारे पत्थर से टिककर सो गए, उनके मन में पछतावे और संदेह की लहरें अभी भी उथल-पुथल मचा रही थीं।

दूसरी ओर, जैसे ही भोर की पहली किरणें आसमान में फैलीं, प्यारेलाल झटके से अपनी चारपाई पर उठ बैठा। उसकी आंखें इधर-उधर दौड़ने लगीं, और तभी उसे अहसास हुआ कि वो पूरी तरह नंगा था। उसकी धोती एक तरफ पड़ी थी, और चारपाई पर कुछ दाग साफ दिख रहे थे। धीरे-धीरे रात की सारी घटनाएं उसकी आंखों के सामने साकार होने लगीं।

पहले उसने सोचा कि वो सपना होगा, लेकिन जैसे-जैसे उसकी नींद और ताड़ी का नशा उतरने लगा, हकीकत उसके सामने नंगी खड़ी हो गई। उसने अपनी बहू रत्ना को अपनी मरी हुई पत्नी गेंदा समझकर चोदा था—न सिर्फ एक बार, बल्कि दो रातें। और इस बार तो बात और भी भयानक थी, क्योंकि उसके दोस्तों—सोमपाल और कुंवरपाल—ने भी उसकी बहू की चुदाई की थी।

प्यारेलाल का कलेजा बैठ गया। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसकी झुर्रियों भरी आंखों में आंसुओं की एक पतली परत छा गई। "हाय राम, ये मैंने क्या कर दिया!" उसने अपने सिर पर हाथ मारते हुए कहा। उसका मन उसे धिक्कारने लगा। "महापाप कर दिया मैंने... अपनी ही बहू के साथ ऐसा घिनौना काम... मैं तो नरक में भी जगह न पाऊंगा!" उसकी आवाज कांप रही थी, और उसका चेहरा ग्लानि और पछतावे से भर गया।

लेकिन जैसे ही उसने रात की पूरी घटना को याद किया, उसका गुस्सा सोमपाल और कुंवरपाल की ओर मुड़ गया। "साले मादरचोदों को मैंने हमेशा अपना दोस्त माना... और उन्होंने मेरे साथ ये किया!" उसने गुस्से में अपने दांत पीसे। "मैं तो नशे में था, नींद में था... मुझे रोकना चाहिए था इन लोगों को! इस महापाप से मुझे बचाना चाहिए था! लेकिन ये साले खुद ही आगे बढ़ गए... मेरी बहू की इज्जत लूट ली!"
प्यारेलाल का खून खौल रहा था। उसकी आंखों में ग्लानि की जगह अब आग जलने लगी थी। "आज इन दोनों को छोड़ूंगा नहीं!"प्यारेलाल ने गुस्से में उठकर अपनी धोती पहनी। तभी उसकी नजर बगल में पड़ी साड़ी पर गई—वही साड़ी जो रत्ना ने पहनी थी। उसने उसे उठाया और अपने कंधे पर डाल लिया। फिर उसने अपनी लाठी उठाई और तेज कदमों से चल पड़ा।
सबसे पहले वो सोमपाल और कुंवरपाल के चबूतरों की ओर गया, जहां वो अक्सर सुबह बैठा करते थे। लेकिन वहां कोई नहीं था। उसने एक पल सोचा कि उनके घर जाकर आवाज लगाए, लेकिन फिर उसे ख्याल आया कि ऐसा करने से पूरा गांव जाग जाएगा और तमाशा खड़ा हो जाएगा। "नहीं, ये ठीक नहीं होगा," उसने मन ही मन कहा।
फिर उसे याद आया कि सोमपाल और कुंवरपाल और वो अक्सर सुबह-सुबह जंगल के किनारे नदी के पास बैठते थे ताज़ी हवा के लिए। "वहीं होंगे साले!" प्यारेलाल ने गुस्से में अपनी लाठी को जमीन पर ठोंका और जंगल की ओर चल दिया।

उसकी आंखों में गुस्से की चमक थी, और उसके कदमों में एक अजीब सा जोश था। नदी की ओर बढ़ते हुए वो मन ही मन सोच रहा था, "आज इन दोनों को सबक सिखाकर ही दम लूंगा। मेरे घर की इज्जत लूटने की सजा तो इन्हें मिलेगी ही!" प्यारेलाल की सांसें तेज थीं, और उसकी लाठी हर कदम के साथ जमीन पर ठक-ठक की आवाज कर रही थी। वो नदी के किनारे की ओर बढ़ता जा रहा था, जहां सोमपाल और कुंवरपाल अभी भी सो रहे थे, अनजान इस बात से कि उनके पुराने दोस्त का गुस्सा उनकी ओर बढ़ रहा था।


जंगल के किनारे पहुंचते ही प्यारेलाल ने अपने कदम धीमे कर लिए। सुबह की हल्की धुंध अभी भी हवा में तैर रही थी, और नदी की हल्की-हल्की लहरों की आवाज उसके कानों तक पहुंच रही थी। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई, सोमपाल और कुंवरपाल को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन अभी तक वो कहीं दिखाई नहीं दिए।

तभी उसकी नजर नदी की ओर गई, जहां से एक साया धीरे-धीरे बाहर निकल रहा था। प्यारेलाल की भौंहें सिकुड़ गईं। वो थोड़ा और आगे बढ़ा, अपनी आंखों को सिकोड़कर उस साए को देखने की कोशिश करने लगा।जैसे ही वो करीब पहुंचा, उसकी सांसें थम गईं। वो साया एक औरत थी—और चौंकाने वाली बात ये थी कि वो बिल्कुल नंगी थी। उसका गीला बदन सुबह की हल्की रोशनी में चमक रहा था, और वो नदी से निकलकर जंगल की ओर बढ़ रही थी। प्यारेलाल की आंखें फैल गईं। "हाय राम, ये कौन है?"

उसने मन ही मन सोचा। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। एक पल के लिए उसने सोचा कि कहीं ये फिर से उसकी मरी हुई पत्नी गेंदा तो नहीं, लेकिन फिर उसे अपनी सोच पर गुस्सा आया। "नहीं, ये मुमकिन नहीं... मैं फिर से वही गलती नहीं करूंगा," उसने खुद को समझाया।
प्यारेलाल ने अपनी सांसें थाम लीं और चुपके से उस औरत के पीछे-पीछे चलने लगा। वो नहीं चाहता था कि उसकी भनक भी उस औरत को लगे। उसके कदम धीमे और सतर्क थे, और वो पेड़ों की आड़ लेते हुए आगे बढ़ रहा था। औरत कुछ दूर जाकर एक बड़े बरगद के पेड़ के पास रुक गई। उसने इधर-उधर देखा, जैसे किसी के आने की आशंका हो।
प्यारेलाल ने तुरंत खुद को एक झाड़ी के पीछे छुपा लिया। उसकी नजरें उस औरत पर टिकी हुई थीं। जैसे ही उस औरत ने अपना चेहरा उसकी ओर किया, प्यारेलाल के होश उड़ गए। "फुलवा भौजी!"

उसने मन ही मन चौंकते हुए कहा।ये सोमपाल की पत्नी फुलवा थी। प्यारेलाल को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। फुलवा इस हालत में—बिल्कुल नंगी—जंगल में क्या कर रही थी? उसका गीला बदन सुबह की धुंध में चमक रहा था। उसके लंबे, गीले बाल उसकी पीठ पर चिपके हुए थे, और उसकी गोल-मटोल चूचियां हल्की ठंड से सख्त होकर उभरी हुई थीं। उसकी कमर से नीचे का हिस्सा मांसल और भरा हुआ था, और उसकी गोल गांड हर कदम के साथ हिल रही थी। प्यारेलाल की सांसें तेज हो गईं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि फुलवा यहां इस हालत में क्या कर रही थी।

एक पल के लिए उसका मन भटक गया। फुलवा को इस तरह नंगा देखकर उसके जवानी के दिन याद आ गए। वो हमेशा से फुलवा के बदन को आकर्षक मानता था। फुलवा का गोरा, मांसल बदन, उसकी भरी हुई चूचियां, और उसकी चौड़ी गांड—ये सब उसे हमेशा अपनी ओर खींचता था। लेकिन तब वो सिर्फ एक दूर की कल्पना थी। आज, इतने सालों बाद, उसे फिर से वही बदन नंगा देखने को मिल रहा था, और उसकी जवानी की हवस फिर से जाग उठी।
उसकी सांसें और तेज हो गईं, और उसका बूढ़ा लंड धोती के अंदर तनने लगा।

लेकिन तभी उसे रात की घटना याद आई। रत्ना की बेबसी, उसकी कराहें, और सोमपाल-कुंवरपाल की हरकतें—सब कुछ उसकी आंखों के सामने फिर से घूम गया। उसकी जवानी की हवस एक बार फिर गुस्से में बदल गई। "साला सोमपाल... मेरी बहू की इज्जत लूटी, और अब उसकी लुगाई को मैं इस हाल में देख रहा हूं," उसने मन ही मन सोचा। उसका गुस्सा अब और भड़क उठा। उसे लगा कि ये एक मौका था—सोमपाल से बदला लेने का मौका। "जैसा उसने मेरे घर की इज्जत के साथ खेला, वैसा ही मैं उसकी लुगाई के साथ करूंगा," उसने गुस्से में अपने दांत पीसे।

प्यारेलाल ने अपनी लाठी को एक तरफ रख दिया और चुपके से फुलवा की ओर बढ़ने लगा। फुलवा अब बरगद के पेड़ के पास झुक गई थी। वो एक टोटके की रस्म निभा रही थी, जैसा कि वो पिछले कई दिनों से कर रही थी। वो अपने मंत्रों को धीमी आवाज में बुदबुदा रही थी, और उसकी आंखें बंद थीं। उसे लग रहा था कि जैसे हर रात की तरह आज भी वो अनजान साया उसके पास आएगा, जो पिछले कुछ दिनों से उसे चोद रहा था।
इधर प्यारेलाल ने देखा कि फुलवा झुकी हुई थी, उसकी गोल गांड पूरी तरह से नंगी और खुली हुई थी। उसकी चूत के होंठ साफ दिख रहे थे, और वो हल्के से गीले थे। प्यारेलाल की हवस और गुस्सा दोनों एक साथ उबाल मारने लगे। उसने चुपके से अपनी धोती को कमर तक ऊपर कर लिया और अपना बूढ़ा, तना हुआ लंड बाहर निकाला। उसकी सांसें तेज थीं, और उसकी आंखों में एक अजीब सी आग जल रही थी। वो चुपके से फुलवा के पीछे पहुंच गया।

फुलवा को कुछ भनक नहीं थी। वो अपनी आंखें बंद किए मंत्र पढ़ रही थी, और उसकी कमर झुकी हुई थी। प्यारेलाल ने एक बार फिर इधर-उधर देखा, ये सुनिश्चित करने के लिए कि कोई और आसपास न हो। फिर उसने अपना लंड पकड़ा और उसे फुलवा की चूत के मुहाने पर टिका दिया। फुलवा को हल्का सा स्पर्श महसूस हुआ, और उसे लगा कि ये वही अनजान साया है जो हर रात आता है। उसने बिना पीछे मुड़े अपने मंत्र पढ़ना जारी रखा, क्योंकि उसे डर था कि अगर उसने पीछे देखा तो टोटका टूट जाएगा।

प्यारेलाल ने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका बूढ़ा लंड फुलवा की चूत में घुस गया। फुलवा की एक हल्की सी कराह निकली, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया और मंत्र पढ़ना जारी रखा। उसे लगा कि ये वही साया है। वो बिना कुछ बोले झुकी रही, अपने टोटके को पूरा करने की कोशिश करती रही। लेकिन प्यारेलाल का इरादा कुछ और ही था। वो गुस्से और हवस के मिश्रण में डूबा हुआ था। उसने फुलवा की कमर को मजबूती से पकड़ा और तेजी से धक्के मारने लगा।"आह्ह... साली... तेरे मर्द ने मेरी बहू की इज्जत लूटी... अब मैं तेरी चूत का भोसड़ा बनाऊंगा," प्यारेलाल ने मन ही मन में फुसफुसाया।
फुलवा अपने मंत्रों में डूबी हुई थी, और उसकी कराहें धीरे-धीरे तेज होने लगीं। प्यारेलाल का लंड उसकी चूत में तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ उसकी गांड हिल रही थी। फुलवा की चूत गीली हो चुकी थी, और उसकी सांसें तेज हो रही थीं।प्यारेलाल ने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। उसकी बूढ़ी कमर तेजी से हिल रही थी, और उसका लंड फुलवा की चूत की गहराई तक जा रहा था। "आह्ह... क्या चूत है तेरी, फुलवा... साला सोमपाल कितना नसीब वाला है," उसने मन ही मन सोचा। उसकी हवस अब चरम पर थी, और वो सोमपाल से बदला लेने के नशे में डूबा हुआ था। फुलवा की कराहें अब तेज हो गई थीं, लेकिन वो अभी भी मंत्र पढ़ने की कोशिश कर रही थी। उसकी आंखें बंद थीं, और उसका बदन हर धक्के के साथ कांप रहा था।

कुछ देर तक प्यारेलाल ने उसे तेजी से चोदा। उसकी सांसें हांफने लगीं, और उसका बूढ़ा लंड फुलवा की चूत में धड़कने लगा। आखिरकार, एक दबी हुई कराह के साथ उसका वीर्य फुलवा की चूत में छूट गया। फुलवा की एक हल्की सी चीख निकली, लेकिन उसने अभी भी पीछे नहीं देखा। वो जमीन पर झुकी रही, अपने टोटके को पूरा करने की कोशिश करती रही। प्यारेलाल ने अपना लंड बाहर निकाला और हांफते हुए पीछे हट गया। उसकी सांसें तेज थीं, और उसका चेहरा पसीने से तर था। उसने अपनी धोती को ठीक किया और चुपके से वहां से निकलने लगा।

वो दबे पांव जंगल के किनारे की ओर बढ़ रहा था, जब अचानक एक पेड़ के पीछे से एक साया निकला। प्यारेलाल चौंक गया। उसने अपनी आंखें सिकोड़कर उस साए को देखने की कोशिश की, लेकिन तभी एक तेज धुआं उसकी ओर बढ़ा। धुआं इतना घना था कि उसकी आंखें जलने लगीं। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं, और अगले ही पल उसे चक्कर आने लगे। उसकी सांसें रुकने लगीं, और वो जमीन पर गिर पड़ा।


सुबह की हल्की धुंध अभी भी बरहपुर गांव की गलियों में छाई हुई थी। सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे घरों की छतों पर पड़ रही थीं। भूरा, जो रात को अपनी मां रत्ना के चूतड़ों की कल्पना करते हुए मूठ मारकर सोया था, सुबह जल्दी उठ गया। उसकी आंखें अभी भी नींद से भारी थीं, लेकिन उसे अजीब सा बेचैन सा महसूस हो रहा था। उसने देखा कि उसकी मां रत्ना, जो हर सुबह सबसे पहले उठकर घर का काम शुरू कर देती थी, आज अभी तक बिस्तर पर ही थी।

भूरा को कुछ गड़बड़ लगी। वो धीरे से अपनी मां के कमरे की ओर गया। दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। उसने अंदर झांका तो देखा कि रत्ना बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसकी सांसें तेज चल रही थीं, और उसका चेहरा पसीने से तर था। भूरा ने पास जाकर देखा तो पाया कि उसकी मां को तेज बुखार था। उसकी मां की हालत देखकर उसका दिल बैठ गया। रात की सारी हरकतें—प्यारेलाल, सोमपाल, और कुंवरपाल की हवस—रत्ना के बदन पर भारी पड़ गई थीं। उसका शरीर टूट चुका था, और बुखार ने उसे जकड़ लिया था।

इस सब से अनजान भूरा घबरा गया। उसने तुरंत अपने बड़े भाई राजू को जगाया, जो बगल के कमरे में सो रहा था। "भैया, भैया! जल्दी उठो! मां को बुखार है!" भूरा की आवाज में डर साफ झलक रहा था। राजू नींद में बड़बड़ाते हुए उठा, "क्या हुआ, भूरा? सुबह-सुबह चिल्ला क्यों रहा है?" लेकिन भूरा की घबराहट देखकर वो तुरंत उठ गया। दोनों भाई अपने पिता राजकुमार के पास गए, जो बाहर आंगन में अपनी चारपाई पर लेटे हुए थे। "पापा, जल्दी चलो! मां को तेज बुखार है!" भूरा ने लगभग चीखते हुए कहा।

राजकुमार चौंक गया। वो तुरंत उठा और रत्ना के कमरे की ओर भागा। रत्ना को बुखार में तपते देखकर उसका चेहरा लटक गया। "हाय राम, ये क्या हो गया?" उसने रत्ना के माथे पर हाथ रखा, जो आग की तरह तप रहा था। "भूरा, जल्दी पानी ले आ! राजू, तू घर संभाल मैं दवाई लेकर आता हूं" राजकुमार ने जल्दी से दोनों बेटों को काम सौंप दिए और खुद भी निकल गया।

भूरा तुरंत रत्ना की सेवा में जुट गया। उसने एक गीला कपड़ा लिया और अपनी मां के माथे पर रख दिया। वो बार-बार कपड़े को ठंडे पानी से भिगोकर रत्ना के माथे पर रख रहा था, ताकि उसका बुखार कम हो सके। उसकी आंखों में अपनी मां के लिए प्यार था, लेकिन कहीं न कहीं उसकी वासना भी जाग रही थी। रत्ना की साड़ी हल्की सी खिसक गई थी, और उसकी भरी हुई चूचियां साफ दिख रही थीं। भूरा की नजरें बार-बार वहां टिक रही थीं, लेकिन उसने खुद को संभाला और अपनी मां की देखभाल में ध्यान लगाया।

इधर, राजू ने घर के सारे काम संभाल लिए। उसने झाड़ू लगाई, बर्तन मांजे, और आंगन को साफ किया। राजू भूरा से बड़ा था और ज्यादा समझदार भी। उसे अपनी मां की हालत देखकर चिंता तो हो रही थी, लेकिन वो घर की जिम्मेदारी को समझता था।कुछ ही देर में राजकुमार दवाई ले आया था और अब रत्ना के पास बैठा उसकी हालत देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि रत्ना को अचानक इतना तेज बुखार कैसे हो गया। उसे रात की घटनाओं का कोई अंदाजा नहीं था—कि उसकी पत्नी को उसके ससुर और दो बूढ़ों ने चोदा था, और उसका बदन इस कदर टूट गया था कि बुखार ने उसे जकड़ लिया।


इधर, राजू ने अपने पिता के लिए चाय बनाई। वो जानता था कि उसकी मां जैसी चाय वो नहीं बना सकता, लेकिन उसने अपनी समझ से जितना अच्छा हो सका, उतना बनाया। उसने एक मिट्टी के कुल्हड़ में चाय डाली और अपने पिता को लाकर दी। "पापा, ये लो चाय," राजू ने धीरे से कहा। राजकुमार ने कुल्हड़ ले लिया और एक घूंट पीकर अपने बेटे की ओर देखा। "अच्छी बनी है, बेटा," उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, लेकिन उसकी नजरें अभी भी रत्ना पर टिकी हुई थीं। भूरा अभी भी अपनी मां की सेवा में लगा हुआ था। वो बार-बार ठंडे पानी में कपड़ा भिगोकर रत्ना के माथे पर रख रहा था, और उसकी नजरें अपनी मां के चेहरे पर टिकी हुई थीं।

तभी अचानक घर के बाहर से तेज कदमों की आहट सुनाई दी। दरवाजा जोर से खुला, और एक आदमी हांफता हुआ अंदर घुस आया। उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी सांसें तेज चल रही थीं। "राजकुमार! राजकुमार!" उसने हांफते हुए पुकारा।

राजकुमार चौंक गया। उसने तुरंत कुल्हड़ नीचे रखा और उस आदमी की ओर देखा। "क्या हुआ, भैया?" उसने चिंता भरे लहजे में पूछा।आदमी ने एक गहरी सांस ली और हांफते हुए कहा, "अरे वो... चाचा जी...!"राजकुमार की आंखें फैल गईं। "चाचा जी? क्या हुआ सही से बोलो?"
उसकी आवाज में बेचैनी साफ झलक रही थी। लेकिन उस आदमी ने कुछ जवाब देने से पहले ही अपनी सांसें संभालीं, और फिर उसकी आंखों में उदासी छा गई। "चाचा जी... उनकी लाश नदी किनारे मिली है," उसने धीमी आवाज में कहा।

राजकुमार को जैसे सांप सूंघ गया। उसकी आंखें स्थिर हो गईं, और उसका चेहरा सफेद पड़ गया। "क्या... क्या बोल रहे हो?" उसने कांपती आवाज में पूछा, जैसे उसे अपने कानों पर यकीन ही न हो। भूरा और राजू भी ये सुनकर सन्न रह गए। भूरा का हाथ अपनी मां के माथे पर रुक गया, और राजू का कुल्हड़ हाथ से छूटकर जमीन पर गिर गया।

रत्ना, जो अभी तक बिस्तर पर लेटी अपने परिवार को देख रही थी, ये सुनते ही सिहर उठी। उसकी आंखें फैल गईं, और उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

कुछ ही देर में ये खबर जंगल की आग की तरह पूरे गांव में फैल गई। प्यारेलाल की लाश को कुछ लोग नदी किनारे से उठाकर उनके चबूतरे पर ले आए। गांव की औरतें राजकुमार के घर में जमा हो गईं, और वहां बिलख-बिलख कर रोना शुरू हो गया। "हाय राम, चाचा जी चले गए!" "क्या हो गया ऐसा?" "अभी तो कल ही उनसे बात हुई थी!" औरतों की चीखें और सिसकियां पूरे घर में गूंज रही थीं। रत्ना भी बिस्तर से उठकर औरतों के बीच पहुंच गई। उसका बुखार अभी पूरी तरह से उतरा नहीं था, लेकिन अपने ससुर की मौत की खबर सुनकर वो खुद को रोक नहीं पाई। वो भी औरतों के साथ बिलख-बिलख कर रोने लगी।

उसका मन भारी था, और उसके दिमाग में बार-बार एक ही बात कौंध रही थी—रात को उसका ससुर उसे अपनी मरी हुई पत्नी समझकर चोद रहा था, और आज वो इस दुनिया में नहीं था। रत्ना को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब कैसे हो गया। उसके अंदर ग्लानि, डर, और दुख का एक अजीब सा मिश्रण उमड़ रहा था।बाहर चबूतरे पर गांव के आदमी जमा हो गए थे। सोमपाल और कुंवरपाल भी वहां पहुंच गए। अपने पुराने दोस्त प्यारेलाल की इस तरह अचानक मौत की खबर सुनकर दोनों को गहरा दुख हुआ। सोमपाल की आंखें नम हो गईं, और कुंवरपाल का चेहरा लटक गया। दोनों एक-दूसरे को देखकर चुपचाप सिर झुकाए खड़े थे। लेकिन उनके मन में सिर्फ दुख ही नहीं था, बल्कि एक अजीब सा डर और बेचैनी भी थी। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अचानक ये सब कैसे हो गया। रात को वो तीनों प्यारेलाल की बहू रत्ना को चोद रहे थे, और अब प्यारेलाल की लाश उनके सामने पड़ी थी।


सोमपाल ने धीरे से कुंवरपाल की ओर देखा और फुसफुसाया, "कुंवर, ये सब कैसे हो गया? रात को तो वो ठीक था... फिर ये अचानक...?"कुंवरपाल ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया, "पता नहीं, सोमपाल... कुछ तो गड़बड़ है। लेकिन अब कुछ कहने से क्या फायदा? जो होना था, हो गया।" दोनों की नजरें प्यारेलाल की लाश पर टिकी थीं, और उनके मन में रात की ग्लानि और इस मौत का रहस्य एक साथ उथल-पुथल मचा रहा था।

प्यारेलाल की लाश के बगल में वो साड़ी भी पड़ी थी, जो रात को रत्ना ने पहनी थी। लेकिन गांव वालों ने उसे प्यारेलाल की स्वर्गीय पत्नी गेंदा की साड़ी समझ लिया। इस साड़ी को देखकर गांव में तरह-तरह की बातें शुरू हो गईं। कोई कह रहा था, "चाचा जी अपनी पत्नी से मिलने चले गए... देखो, उनकी साड़ी भी साथ ले गए!" कोई और बोल रहा था, "चाची जी खुद चाचा को लेने आई थीं... तभी तो ये साड़ी यहां पड़ी है!" कुछ लोग इसे भूत-प्रेत की बात मान रहे थे, तो कुछ इसे टोटके और अंधविश्वास से जोड़ रहे थे। लेकिन कुल मिलाकर कोई नहीं जानता था कि असल में क्या हुआ था।प्यारेलाल की लाश चबूतरे पर पड़ी थी, उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। लेकिन उसकी मौत का रहस्य अभी भी अनसुलझा था। रात को फुलवा को चोदने के बाद एक साए और धुएं ने उसे बेहोश कर दिया था, और अब वो इस दुनिया में नहीं था। गांव वाले अपनी-अपनी बातें बना रहे थे, लेकिन सच्चाई किसी को नहीं पता थी। राजकुमार अपने पिता की लाश के पास बैठा सिसक रहा था, भूरा और राजू अपने दादा की मौत से सदमे में थे, और रत्ना का मन ग्लानि और दुख के भंवर में डूबा हुआ था।
जारी रहेगी।।
बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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