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से जाकर बंदर को पकड़ ले, पर वो ऐसा नहीं कर पाया की क्योंकि उसके वहाँ जाने से पहले ही बंदर वहां से झाड़ियों के बीचो बीच भाग चुका था. संजय ने चाहा की वो भी उन्हीं झाड़ियों में जाकर देखे पर उसे ऐसा करने में खतरा लग रहा था. एक तो इतना घना जंगल, ऊपर से उसके पास इस वक्त ट्रांक्विललाइज़र गुण ( जिससे जानवरो को बेहोश किया जाता है.) नहीं थी जिससे वो बंदर को पकड़ के बेहोश कर सके. वो फौरन लब के अंदर भागा और जाकर अरविंद को सारा घटनाक्रम बताया और उसे अपने साथ चलने को कहा….अरविंद भी संजय के साथ चलने को तैयार हो गया. इस बीच संजय ने टूल्स रूम में ट्रणक़ुल्लिसेर्ट गुण और टॉर्च लेने आ गया .फिर उन्होंने उस बंदर की तलाश में उस घनी झाड़ियों के पीछे भाग लिए
पर उन्हें क्या मालूम था की जिस बंदर की खोज में वो दोनों निकले है, जिसके ऊपर उन लोगों ने ना जाने क्या क्या टेस्ट किए है वो अब एक आम सा दिखने वाला बंदर नहीं रहा था . वो अब एक खूणकार जानवर बन चुका था. अरविंद और संजय उस बंदर को ढूंढ़ते ढूंढ़ते काफी आगे आ चुके थे और इसी वक्त उन्हें एक खूणकार, जहरीली आँखें देख रही थी. उसे अपने अंदर एक नयी शक्ति प्रतीत हो रही थी, उसे ऐसा लग रहा था की वो अब एक आम सा एक डाल से डाल पर कूदने वाला जानवर नहीं था, बल्कि उसे अपने अंदर एक वहशी दरिंदे जैसे शक्ति का आभास हो रहा था. वो देख रहा थे उन दो व्यक्तियों को जिन्हो ने उस पर ना जाने कितने अत्याचार किए थे अब उसके अंदर एक बदले की भावना के साथ साथ इंसानो का खून पीने भावना भी जगह रही थी. पूरा नरभक्षी बनने को तैयार थे वो जो कभी एक आम सा जानवर हुआ करता था.
इधर अरविंद को अचानक कुछ दिखाई देता है, कुछ लाल लाल जैसा. वो तिथक जाता है और संजय को रोक के कहता है “सर! एक मिनट रुकिये मैंने वहां कुछ देखा है अभी.” क्या? क्या देखा तूने? संजय ने कहा.
“सर मैंने कुछ लाल लाल जैसा देखा जैसे कोई लाल रोशनी हो.” अरविंद ने जवाब दिया.
“लाल रोशनी? तेरा दिमाग खराब है अभी यहां कौन रोशनी जलाएगा? संजय ने उसी तरफ जाते हुए कहा जहां अरविंद ने उसे इशारा किया था.
“सर संभाल कर जाए शायद कही कोई खतरा ना हो.” अरविंद ने फ़िक्रमंद होते हुए कहा.
“अरे देखना तो पड़ेगा ही ना की तूने वहां क्या देखा. लाल रोशनी जैसा क्या हो सकता है? शायद कोई लेज़र लाइट जलाया होगा. पर इतनी रात को और इस घने जंगल में यहां कौन आएगा? वैसे तू अपनी गुण के साथ अलर्ट रहना देखे तो सही वहां क्या है.” संजय ने कहा और उस झाड़ी के झुर्मुट में आगे बढ़ता गया. अचानक उसे कुछ आवाजें आने लगी जैसे कोई बहुत सूखे हुए पत्तो पर चल रहा हो. वो सोच में पढ़ गया की यहां कौन हो सकता है. पर जब वो उस चीज़ को अपने सामने देखता है तो उसके तो पूरे होशो हवास उड़ जाते है. वो देखता है जैसे उसके सामने कोई बालों से भरा हुआ कोई जानवर खड़ा है, दिखने में तो उसकी शक्ल बंदर जैसे ही पर उसका कद बंदारो जैसा नहीं बल्कि उसी के ही कद का या फिर उससे ही बड़ा है.
और उसकी आँखें…आँखें नहीं लग रही थी जैसे वो दहाकता हुआ लावा हो जिसे अरविंद लाल रोशनी समझ रहा था वो उसकी यह भयानक आँखें थी. उसे देख कर उन दोनों के तो होश ही उड़ गये थे फिर भी अरविंद ने हिम्मत कर के बोला “सर यह….कक्ककया…. है? इतना भयानक जीभ मैंने अपने पूरे जिंदगी में भी नहीं देखा .”
“आबे तो मैंने देखा है क्या? पर यह आया कहा से? इसकी शक्ल तो बंदर जैसी लग रही है. यह किस टाइप का बंदर है.” कहते हुए संजय ने कहा. “सर! कही यह वही बंदर तो नहीं जिसकी तलाश में हम भटक रहे है? कही विक्रम सर का एक्सपेरिमेंट की वजह से इसको तो कुछ नहीं हुआ?” डरते हुए अरविंद ने कहा.
“ ओह हां! ऐसा ही है, उसी एक्सपेरिमेंट की वजह से इस पर कुछ उल्टा रिएक्शन हुआ होगा. तू जल्दी से अपनी गुण रेडी रख हमें इसे बेहोश करना है, और जीतने भी डार्ट्स है गुण में सब इस पर झोंक डाल वरना कही लेने के देने ना पड़ जाए.” पर लेने के देने तो पहले से पड़ ही चुके थे क्योंकि उस वहशी बंदर ने उन दोनों को अपने सामने पकड़ और खूनकर हो चुका था. उन्हें गुण चलाने के नौबत ही नहीं आई क्योंकि उससे पहले ही वो दरिन्दा लंबी लंबी छलांग मारता हुआ उन पर एक झटके में झपट पड़ा और अपने छ्छूरी से भी तेज नाख़ूने से उन दोनों को चियर फाड़ डाला. जब उन दोनों का दम निकल गया तो वो उन दोनों का खून पीने लगा और खून के पीने बाद उसे बहुत सुकून मिला जैसे कितने बरसों का प्यासा था. फिर उसके बाद वो उन….