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♡ Family Introduction ♡ |
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Behtreen batala bhi aa gaya grift me but jaisay Raj ne kaha thaa iske taar bohat gheray hai aur ya sirf ek payada hai.#11.
रोमेश डिनर के बाद फ्लैट पर पहुँचा, तो उसके पास सारी बातचीत का टेप मौजूद था। फिर भी उसने विजय को कुछ नहीं बता या। अगले ही दिन समाचार पत्रों में छपा की, विजय ने वह टैक्सी बरामद कर ली है, जिसे कातिल ने प्रयोग किया था।
टैक्सी के मालिक रूप सुंदर को एक रात हवालात में रखने के बाद सुबह छोड़ दिया गया था। चालक जुम्मन गायब था। रोमेश के होंठों पर मुस्कुराहट उभर आई, इसका मतलब मायादास को पहले से पता था कि टैक्सी का सुराग पुलिस को मिल गया है, और जुम्मन कभी भी आत्मसमर्पण कर सकता है।
जुम्मन के हाथ आते ही बटाला का नकाब भी उतर जायेगा। शाम को रोमेश से विजय खुद मिला।
''तुम्हारी बात सच निकली रोमेश।''
"कुछ मिला ?"
"जुम्मन ने सब बता दिया है।"
"जुम्मन तुम्हारे हाथ आ गया, कब ?"
"वह रात ही हमारे हाथ लग गया था, लेकिन मैंने उसे हवालात में नहीं रखा। बैंडस्टैंड के एक सुनसान बंगले में है।"
"यह तुमने अक्लमंदी की।"
"मगर तुम जुम्मन को कैसे जानते हो?"
"यह छोड़ो, एक बात मैं तुम्हें बताना चाहता था, तुम्हारे थाने का तुम्हारा कोई सहयोगी अपराधियों तक लिंक में है। कौन है, यह तुम पता लगाओगे।''
"मुझे पता लग चुका है। इसलिये तो मैंने जुम्मन से हवालात में पूछताछ नहीं की। बलदेव, सब इंस्पेक्टर बलदेव!
फिलहाल मैंने उसे फील्डवर्क से भी हटा लिया है। जुम्मन ने बटाला का नाम खोल दिया है। स्टेनगन बटाला के पास है, आज रात मैं उसके अड्डे पर धावा बोल दूँगा।"
"वह घाटकोपर में देसी बार चलाता है। मेरे पास उसकी सारी डिटेल आ गई है। चाहो तो रेड पर चल सकते हो।"
''नहीं, यह तुम्हारा काम है और फिर जब तुम बटाला को धर लो, तो जरा मुझसे दूर-दूर ही रहना।"
"क्यों ? क्या उसका भी केस लड़ोगे?''
"नहीं, मैं पेशे के प्रति ईमानदार रहना चाहता हूँ। हालांकि तुम खुद बटाला तक पहुंच गये हो, लेकिन इन लोगों को अगर पता चला कि उस केस के सिलसिले में तुम वहाँ जा रहे हो, तो वे यही समझेंगे कि यह सब मेरा किया धरा है। मैंने तुम्हें लाइन सिर्फ इसलिये दी, क्यों कि तुम गलत दिशा में भटक गये थे। अब सबूत जुटाना तुम्हारा काम है।''
''लेकिन जनाब अगले हफ्ते नया साल शुरू होने वाला है और दस जनवरी को आपकी शादी की वर्षगांठ होती है, याद है।'' इतना कहकर विजय ने सौ-सौ के नोटों की छः गड्डियां रोमेश के हवाले करते हुए कहा, "तुम तो तकाजा भी भूल गये।''
''यार सचमुच तूने याद दिला दिया , मेरे को तो याद भी नहीं था। माय गॉड, सीमा वैसे भी आजकल मुझसे बहुत कम बोलती है। मैरिज एनिवर्सरी पर मैं उसे गिफ्ट दूँगा इस बार।''
घाटकोपर की एक बस्ती में। बटाला का अवैध शराब का बार चलता था । बटाला देसी बार के ऊपर वाले कमरे में बैठा था। उसकी बगल में एक पेशेवर औरत थी, जिसके साथ वह रमी खेल रहा था। पास ही एक बोतल रखी थी। तभी एक चेला अंदर आया।
"मुखबिर का खबर आयेला।''
"क्या?"
"पुलिस का रेड इधर पड़ेला।''
"आने दे कोई नया इंस्पेक्टर होगा। जब आजाये तो बोल देना, ऊपर कू आए, मेरे से बात कर लेने का क्या, अब फुट जा।
'तभी पुलिस का सायरन बजा। बटाला पर कोई असर नहीं पड़ा। वह उसी प्रकार रमी खेलता रहा। खबर देने वाला नीचे चला गया। कुछ ही देर में बार में तोड़फोड़ की आवाजें गूंजने लगी। चेला फिर हाँफता काँपता ऊपर आया।
"इंस्पेक्टर विजय है। तुमको गिरफ्तार करने आया है।'' बटाला ने उठकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ चेले के मुँह पर मारा। अपनी रिवॉल्वर हवा में घुमाई और फिर उसे जेब में डालता उठ खड़ा हुआ। उसी वक्त बटाला ने फोन मिलाने के लिए डायल पर उंगली घुमाई, लेकिन वह चौंक पड़ा, टेलीफो न डेड पड़ा था।
''हमारा काम करने का तरीका कुछ पसंद आया।'' अचानक विजय ने उसी कमरे के दरवाजे पर कदम रखा,
''अब तुम किसी नेता को फोन नहीं मारेगा, थाने चलेगा सीधा।''
''साले ! " बटाला ने रिवॉल्वर निकाली। लेकिन फायर करने से पहले विजय ने एक जोरदार ठोकर बटाला पर रसीद कर दी, बटाला लड़खड़ाया, विजय एकदम चीते की तरह उस पर झपटा और फिर विजय की रिवॉल्वर बटाला के सीने पर थी।
''पुलिस पर गोली चलाएगा साले। “
“मैं तेरे को बर्बाद कर दूँगा। अपुन को ठीक से जान लेने का, नहीं तो नौकरी से हाथ धोलेगा।"
"जनार्दन रेड्डी के कुत्ते।" विजय ने उसे एक ठोकर और जड़ दी,
''इधर पूरी बस्ती को घेरा है मैंने। कोई तेरी मदद को नहीं आएगा, मुम्बई के जितने भी तेरे जैसे लोग हैं, मेरा नाम सुनते ही सब का पेशाब निकल जाता है। सावंत का कत्ल किया तूने, चल।" विजय ने बटाला के हाथों में हथकड़ियां डाल दी।
"ऐ चल भाग यहाँ से।'' विजय ने पेशेवर युवती से कहा। बटाला को गिरफ्तार करके विजय गोरेगांव के लिए चल पड़ा। अभी बटाला से कुछ पूछताछ भी करनी थी, इसी लिये वह उसे लेकर सीधा थाने नहीं गया, बैंडस्टैंड के उसी बंगले में गया, जहाँ जुम्मन बंद था।
"यह तो थाना नहीं है।" "बटाला जी पर यह मेरा प्राइवेट थाना है, साले यहाँ भूत भी नाचने लगते हैं मेरी मार से। अभी तो तेरे से स्टेनगन बरामद करना है।" उसके बाद बटाला की ठुकाई शुरू हो गई। बटाला को अधिक देर तक प्राइवेट कस्टडी में नहीं रखा जा सकता था, विजय ने सुबह जब उसे लॉकअप में बन्द किया, तो स्टेनगन भी बरामद कर ली थी।
अब उसने पूरा मामला तैयार कर लिया था। उसे मालूम था, बटाला को गिरफ्तार करते ही हंगामा होगा और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी उससे जवाब तलबी कर सकते थे। हुआ भी यही। मामला सीधा आई.जी. के पास पहुँचा। खुद एस.एस.पी. सीधा थाने पहुंच गया।
"आज तक तुम्हारे खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई।" एस.एस.पी. ने कहा,
"इसलिये बटाला को छोड़ दो, तुमने ठाणे जिले में कैसे हाथ डाल दिया, वहाँ की पुलिस…।"
"सर। अगर मैं वहाँ की पुलिस को साथ लेता, तो बटाला हाथ नहीं आता, आखिरी वक्त तक वो यही समझता रहा कि उसी के थाने की पुलिस होगी, अगर उसे जरा भी पता चल जाता कि उसे सावंत मर्डर केस में अरेस्ट किया जा रहा है, तो वह हाथ नहीं आता।"
"सावंत मर्डर केस पहले चंदन, फिर यह बटाला। "
"मैंने स्टेनगन भी बरामद कर ली।"
"देखो इंस्पेक्टर विजय, आई.जी. का दबाव है, घाटकोपर की उस बस्ती में तुम्हारे खिलाफ नारे लगा रहे हैं, कोई ताज्जुब नहीं कि जुलूस निकलने लगे, तुम पुलिस इंस्पेक्टर हो, इसका यह मतलब नहीं कि…।"
"सर प्लीज, आप केवल रिजल्ट देखिये, ये मत देखिये कि मैंने कौन सा काम किस तरह किया है। यही शख्स सावंत का हत्यारा है। मैं इसका रिमांड लूँगा, ताकि असली हत्यारे को भी फंसाया जा सके।"
"इसकी सावंत से क्या दुश्मनी थी ?"
"इसकी नहीं, यह तो मोहरा भी नहीं है, प्यादा भर है। इसने शूट किया, शूट किसी और ने करवाया, मैं मुकदमा दायर कर चुका हूँ, अब रिमांड लूँगा और उस शख्स को गिरफ्तार करूंगा, जिसने कत्ल करवाया है।"
विजय ने एस.एस.पी. की एक न सुनी। बटाला लॉकअप में बन्द था।
"मुझे मालूम है सर, मेरी सर्विस भी जा सकती है, लेकिन इस थाने का चार्ज और सावंत मर्डर केस की तफ्तीश कर रहा हूँ मैं, जब तक मेरी वर्दी मेरे पास है, पुलिस महकमे का बड़े से बड़ा ऑफिसर भी मुझे काम करने से नहीं रोक सकता।"
"ठीक है, आई.जी . के सामने मैंने तुम्हारी बहुत तारीफ की थी, अब अपनी तारीफ खुद कर लेना, लेकिन मेरी व्यक्तिगत सलाह यही है कि…।"
"सॉरी सर।"
और एस.एस.पी. पैर पटकते हुए चला गया।
जारी रहेगा…….![]()
So to hai, wo pyada hi hai bhaiBehtreen batala bhi aa gaya grift me but jaisay Raj ne kaha thaa iske taar bohat gheray hai aur ya sirf ek payada hai.
Thanks for your wonderful review and support bhai ❣
Mayadas ne apna kaam kar diya hai lagta hai shayad sema bhi isi plan me shamil hai.. aur koi bohat badi gadbad shuru hone wali hai.#:12
बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनी खेज था।
सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था। इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा।
"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ।" रोमेश ने कहा।
"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई।" मायादास ने कहा !
"अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा।
"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, अलबत्ता उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता।"
"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो।"
"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ।"
"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे।"
"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा।"
"आई सी! नशे में न हम हैं न आप। मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं।"
"दूसरे वकील बहुत हैं।"
"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं, और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया। जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा। नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा,
"सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास।" कुछ पल बाद।
"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"
"हाँ , रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"वो केस लड़ने से इंकार करता है। वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा।"
"उसको फोन दो।" मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया।
"लो तुम खुद बात कर लो, सी .एम. बोलते हैं।"
रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया।
"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील।" मायादास उठ खड़ा हुआ,
"तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्यों कि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है।"
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"ठीक है, हम चलते हैं।" जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया।
"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश।" सीमा बोली ,
"कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी .ए. है। जनार्दन नागा रेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो।"
"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है। आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी। बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है। एम.पी. का। जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप।"
"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई। उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया।
"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी।
"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागा रेड्डी , चीफ मिनिस्टर।"
"कहिये ।"
"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालत नामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है। हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद।" इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता , दूसरी तरफ से फोन कट गया।
"गो टू हेल।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया। सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया। कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलि त नहीं हुआ था। न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी। मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी। कोर्ट में उसका मन नहीं लगा। बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की। अगले तीन दिन की तारीख लगा दी। रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था। न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा। शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ। वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई। दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा।
एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था। अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था।
"सॉरी।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "
मैंने अपना फ्लैट समझा था।"
"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये।" रोमेश सकपका गया,
"त… तुम।"
"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं।" रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था। उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा।
"म… मगर…!" रोमेश पलटा।
"बैडरूम में।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा। रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा। वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"
तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई।
"अब मत चिल्लाना।"
यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था। उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था। उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया। एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था। उसके हाथ में जाम था। वह धीरे- धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा।
"हरामी ! साले !! मायादास !!!"
बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये,
"बाँध दो इसे।"
कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे। उन्हों ने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी। रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया। मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।
"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो। हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली।"
मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा। सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था, उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।
"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी .एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्यों कि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है।"
''हरामजादे।" रोमेश चीखा। रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा।
"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है।" मायादास गुर्राया,
"अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं। जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा। तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा। तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना , होश आजायेगा।"
मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था। उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई। सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी। मायादास ने कहा और बाहर निकल गया। उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था। उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया।
"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था।"
"शटअप !"
सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "
"आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्यों कि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई।
"सीमा प्लीज।" वह बाथरूम से ही चीख रही थी,
"आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द। मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"
"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।"
रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया। बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था।
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ।"
"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया।"
"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"
"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते। सॉरी … ।"
फोन कट गया। सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी। उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी।
"मुझे एक मौका और दो प्लीज।" रोमेश गिड़गिड़ाया।
"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी,
"तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये।"
"पच्चीस लाख? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता।"
"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं।"
"क… कब तक ? "
"सिर्फ एक महीना।"
"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है। प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा।"
"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी।" रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई। फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी। रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा।
रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है। उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का। उसे होश आ गया।
"तू जा कर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"
"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"
"पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख। बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला।"
नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा। रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे? उसका होंठ सूखा हुआ था। बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम हो कर रह गई थी। फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया। विजय फोन पर मिल गया।
"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था,
"नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे। और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है?" फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है।
"मैं आ रहा हूँ।" विजय ने कहा।
''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना।"
पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे। नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था। दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी। अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना।
"पुलिस में रिपोट दर्ज करो उसकी।" विजय बोला।
"न…नहीं। नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता।"
"प्लीज, आपको क्या हो गया सर?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये।
"लीव मी अलोन।"
अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा,
"वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये।"
रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो। भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ। देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता।"
जारी रहेगा.....![]()
25 lakh ka matlab hai ki seema shamil hai is khel me aur j.n Reddy ki jagah shayad Shankar Reddy hi koi khel khel raha hai JN ko hataney ka.#.13
दो दिन बाद रोमेश बैडरूम से बाहर निकला। इस बीच उसने कुछ खाया पिया न था।
उसने पुलिस से मदद लेने से भी इन्कार कर दिया। वैशाली इन दो दिनों उसी फ्लैट पर थी और कौशिश कर रही थी कि रोमेश अपनी रूटीन की जिन्दगी में लौट आये। इस बीच रोमेश बराबर शराब पीता रहा था।
वैशाली अन्तत: अपनी कौशिश में कामयाब हुई।
रोमेश ने स्नान किया और नाश्ते की टेबिल पर आ गया।
"सीमा का कोई फोन तो नहीं आया?" रोमेश ने पूछा।
"आप धीरज रखिये, हम सीमा भाभी को मना कर ले ही आयेंगे, वह भी तो आपको बहुत चाहती हैं। दो चार दिन में गुस्सा उतर जायेगा, आ जायेंगी।"
"और किसी का फोन मैसेज वगैरा?"
"कोई शंकर नागा रेड्डी है, तीन-चार बार उसका फोन आया था। वह आपसे मुलाकात का वक्त तय करना चाहता है।"
"शंकर नागा रेड्डी, मैंने तो यह नाम पहली बार सुना, हाँ जनार्दन नागा रेड्डी का नाम जरूर जेहन से चिपक सा गया है।"
"जनार्दन नहीं शंकर नागा रेड्डी।"
"क्यों मिलना चाहता है?"
"किसी केस के सम्बन्ध में।"
"केस क्या है?"
"यह तो उसने नहीं बताया, उसका फोन फिर आयेगा। आप समय तय कर लें, तो मैं उसे बता दूँ।"
"ठीक है, आज शाम सात बजे का समय तय कर लेना। मैं घर पर ही हूँ, कहीं नहीं जाऊंगा। फिलहाल कोर्ट के मैटर तुम देख लेना।"
"वह तो मैं देख ही रही हूँ सर, उसकी तरफ से आप चिन्ता न करें।"
दोपहर एक बजे शंकर का फोन फिर आया। वैशाली ने मुलाकात का समय तय कर दिया। दिन भर रोमेश, वैशाली के साथ शतरंज खेलता रहा। विजय भी एक चक्कर लगा गया था, उसने भी एक बाजी खेली, सब सामान्य देखकर उसने वैशाली की पीठ
थपथपायी।
"पुलिस में मामला मत उठाना।" रोमेश बोला, "वैसे तो मैं खुद बाद में यह मामला उठा सकता था। मगर इससे मेरी बदनामी होगी, कैसे कहूँगा कि मेरी बीवी …।"
"ठीक है, मैं समझ गया।"
"जिनके साथ बलात्कार होता है, पता नहीं वह महिला और उसके अभिवावकों पर क्या गुजरती होगी, जब वह कानूनी प्रक्रिया से गुजरते होंगे। कल बटाला को पेश किया जाना है ना?"
"हाँ, मुझे उम्मीद है रिमाण्ड मिल जायेगा और उसकी जमानत नहीं होगी। एम.पी . सावन्त की पत्नी भी सक्रिय है, वह बटाला की किसी कीमत पर जमानत नहीं होने देंगे।
मुझे उम्मीद है जब मैं जे.एन. को __________लपेटूंगा, तो पूरी लाठी मेरे हाथ होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि कोई आन्दोलन खड़ा हो जाये।"
"तुम काम करते रहो।" रोमेश ने कहा।
सात बजे शंकर नागा रेड्डी उससे मिलने आया। रोमेश सोच रहा था कि वह शख्स अधेड़ आयु का होगा किन्तु शंकर एकदम जवान पट्ठा था। रंगत सांवली जरूर थी किन्तु व्यक्तित्व आकर्षक था। लम्बा छरहरा बदन और चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी।
"मुझे शंकर नागा रेड्डी कहते हैं।"
"हैल्लो !" रोमेश ने हाथ मिलाया और शंकर को बैठने का संकेत किया।शंकर बैठ गया।
फ्लैट का एक कमरा रोमेश का दफ्तर होता था। दायें बायें अलमारियों में कानून की किताबें भरी हुई थीं। मेज की टॉप पर इन्साफ की देवी का एक छोटा बुत रखा हुआ था, बायीं तरफ टाइपराइटर था।
"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?"
"मेरा एक केस है, मैं वह केस आपको देना चाहता हूँ ? "
"केस क्या है ?"
"कत्ल का मुकदमा।"
"ओह, क्या आप मेरे बारे में कुछ जानकारी रखते हैं ?"
"जी हाँ, कुछ नहीं काफी जानकारी रखता हूँ। मसलन आप एक ईमानदार वकील हैं। किसी अपराधी का केस नहीं लड़ते। आप पहले केस को इन्वेस्टीगेट करके खुद पता करते हैं कि जिसकी आप पैरवी करने जा रहे हैं, वह निर्दोष है या नहीं।"
"बस-बस इतनी जानकारी पर्याप्त है। अब बताइये कि किसका मर्डर हुआ और किसने किया ?"
"मर्डर अभी नहीं हुआ और जब मर्डर हुआ ही नहीं, तो हत्यारा भी अभी कोई नहीं है।"
"क्या मतलब ?"
"पहले तो आप यह जान लीजिये कि मैं आपसे केस किस तरह का लड़वाना चाहताहूँ, मुझे मर्डर से पहले इस बात की गारंटी चाहिये कि मर्डर में जो भी अरेस्ट होगा,वह बरी होगा और यह गारंटी मुझे एक ही सूरत में मिल सकती है।"
"वह सूरत क्या है ?"
"यह कि मर्डर आप खुद करें।"
"व्हाट नॉनसेंस।" रोमेश उछल पड़ा, "तुम यहाँ एक वकील से बात करने आए हो या किसी पेशेवर कातिल से।"
"मैं जानता हूँ कि जब आप खुद किसी का कत्ल करेंगे, तो दुनिया की कोई अदालत आपको सजा नहीं दे पायेगी, यही एक गारन्टी है।"
"बस अब तुम जा सकते हो।"
"रास्ता मुझे मालूम है वकील साहब, लेकिन जाने से पहले मैं दो बातें और करूंगा !!
पहली बात तो यह कि मैं उस केस की आपको कुल मिला कर जो रकम दूँगा, वह पच्चीस लाख रुपया होगा।"
"प…पच्चीस लाख ! तुम बेवकूफ हो क्या, अरे किसी पेशेवर कातिल से मिलो , हद से हद तुम्हारा काम लाख दो लाख में हो जायेगा, फिर पच्चीस लाख।"
रोमेश को एकदम ध्यान आया कि सीमा ने इतनी ही रकम मांगी थी,
"प…पच्चीस लाख ही क्यों ?
"पच्चीस लाख क्यों ? अच्छा सवाल है। बिना शक कोई पेशेवर कातिल बहुत सस्ते में यह काम कर देगा, लेकिन उस हालत में देर-सवेर फंदा मेरे गले में ही आकर गिरेगा और आपके लिए मैंने यह रकम इसलिये लगाई है, क्यों कि मैं जानता हूँ, इससे कम में आप
शायद ऐसा डिफिकल्ट केस नहीं लेंगे।"
रोमेश ने उसे घूरकर देखा।
"दूसरी बात क्या थी ?"
"आपने यह तो पूछा ही नहीं, कत्ल किसका करना है। दूसरी बात यह है, हो सकता है कि कत्ल होने वाले का नाम सुनकर आप तैयार हो जायें, उसका नाम है जनार्दन
नागा रेड्डी। "
"ज…जनार्दन…?"
"हाँ वही, चीफ मिनिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी यानि जे.एन.। मैं जानता हूँ कि जब आप यह कत्ल करोगे, तो अदालत आपको रिहा भी करेगी और मुझ तक पुलिस कभी न पहुंच सकेगी।"
"नेवर, यह नहीं होगा, यह हो ही नहीं सकता।"
"यह रहा मेरा कार्ड, इसमें मेरा फोन नम्बर लिखा है। अगर तैयार हो, तो फोन कर देना, मैं आपको दस लाख एडवांस भिजवा दूँगा। बाकी काम होने के बाद।"
"अपना विजिटिंग कार्ड टेबिल पर रखकर शंकर नागा रेड्डी गुडबाय करता हुआ बाहर निकल गया।
रोमेश ने कार्ड उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया।
"कैसे-कैसे लोग मेरे पास आने लगे हैं।"
अगले दिन रोमेश को पता चला कि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण बटाला को जमानत हो गई, विजय उसकी रिमाण्ड नहीं ले सका। उसके आधे घण्टे बाद मायादास का फोन आया।
"देखा हमारा कमाल, वह अगली तारीख तक बरी भी हो जायेगा। तुम जैसे वकीलों की औकात क्या है, तुमसे ऊपर जज होता है साले ! अब हम उस दरोगा की वर्दी उतरायेंगे।
तू उसकी वर्दी बचाने के लिए पैरवी करना, जरूर करना और तब तुझे पता चलेगा कि मुकदमा तू भी हार सकता है। क्यों कि तू उसकी वर्दी नहीं बचा पायेगा, जे.एन. से टक्कर लेने का अंजाम तो मालूम होना ही चाहिये।"
रोमेश कुछ नहीं बोला। फोन कट गया।
जारी रहेगा.....![]()
Gadbad to suru ho hi chuki hai bhai, aage padhne pe pata lagegaMayadas ne apna kaam kar diya hai lagta hai shayad sema bhi isi plan me shamil hai.. aur koi bohat badi gadbad shuru hone wali hai.

Ab ye to aage hi pata chalega ki ye locha kya hai? Thank you very much for your wonderful review and support bhai25 lakh ka matlab hai ki seema shamil hai is khel me aur j.n Reddy ki jagah shayad Shankar Reddy hi koi khel khel raha hai JN ko hataney ka.

Sahi kaha hai gadbad to abhi shuru hui hai.# 15
"मैं समझ गया साहब, अपना दूसरा वाला सेल्समैन ठीक बोलता था, आप फिल्म का आदमी है।
साहब वैसे एक्टिंग मैं भी अच्छी कर लेता हूँ, दिखाऊं।"
"नहीं , तुम गलत समझ रहे हो। मैं कोई फ़िल्मी आदमी नहीं हूँ। मुझे सचमुच इस लिबास को पहनकर किसी का कत्ल करना है और मैंने बिल में अपना नाम-पता इसलिये लिखवाया है, क्यों कि बिल की डुप्लीकेट कॉपी तुम्हारे पास रहेगी।
यह कपड़े पुलिस बरामद करेगी, इन पर खून लगा होगा, तहकीकात करते-करते पुलिस यहाँ तक पहुंचेगी, क्यों कि इन कपड़ों की खरीददारी का यह बिल उस वक्त ओवरकोट की जेब में होगा।"
सेल्समन हैरत से रोमेश को देख रहा था।
"फिर… फिर क्या होगा साहब?" उसने हकलाए स्वर में पूछा।
"पुलिस यहाँ पहुंचेगी, बिल देखने के बाद तुम्हें याद आ जायेगा कि यहाँ इन कपड़ों को मैं खरीदने आया था। तुम उन्हें बताओगे कि मैंने कपड़ों को पहनकर खून करने के लिए कहा था और इसीलिये यह कपड़े खरीदे थे।"
"ठीक है फिर।"
"फिर यह होगा कि पुलिस तुम्हें गवाह बनायेगी।" रोमेश ने उसका कंधा थपथपा कर कहा,
"अदालत में तुम्हें पेश किया जायेगा, मैं वहाँ कटघरे में मुलजिम बनकर खड़ा होऊंगा। मुझे देखते ही तुम चीख-चीखकर कहना, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो 31 दिसम्बर को हमारी दुकान पर आया और यह कपड़े जो सामने रखे हैं, इसने खून करने के लिए खरीदे थे। मुझसे कहा था।" कुछ रुककर रोमेश बोला,
"क्या कहा था ?"
"ऐं !" सेल्समैन जैसे सोते से जागा। "क्या कहा था ?"
"ख… खून करूंगा, कपड़े पहनकर।"
"शाबास।" रोमेश ने भुगतान किया और सेल्समैन को स्तब्ध छोड़कर बाहर निकल गया।
"साला क्या सस्पेंस वाली स्टोरी सुना गया।" रोमेश के जाने के बाद सेल्समैन को जैसे होश आया,
"फिल्म सुपर हिट हो के रहेगा, जब मुझको सांप सूंघ गया, तो पब्लिक का क्या होगा ? क्या स्टोरी है यार, खून करने वाला गवाह भी पहले खुद तैयार करता फिर रहाहै। पुलिस की पूरी मदद करता है।"
"अपुन को पता था, वह फिल्म का आदमी है, तेरे को काम मांगना था यार चंदूलाल।"
"मैं जरा डायलॉग ठीक से याद कर लूं।" चंदू एक्शन में आया,
"देख सामने अदालत… कुर्सी पर बैठा जज, कैमरा इधर से टर्न हो रहा है, कोर्ट का पूरा सीन दिखाता है और फिर मुझ पर ठहरता है… बोल एक्शन।"
"एक्शन!" दूसरे सेल्समैन ने कहा।
"योर ऑनर।" चन्दू ने शॉट बनाया,
"यह शख्स जो कटघरे में खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल इसी ने किया है और यह कपड़े, यह कपड़े योर ऑनर।"
"कट।" दूसरे सेल्समैन ने सीन काट दिया।
"क्या हो रहा है यह सब?" अचानक डिपार्टमेन्टल स्टोर का मालिक राउण्ड पर आगया।
दोनों सेल्समैन सकपका कर बगलें झांकने लगे। फिर उन्होंने धीरे-धीरे सारी बात मालिक को बता दी। मालिक भी जोर से हँसने लगा। साला हमारा दुकान का पब्लिसिटी होयेंगा फ्री में। सेल्समैन भी मालिक के साथ हँसने लगे। बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे। नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था। एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी। बूथ में घुस गया और जनार्दन नागा रेड्डी का फोन नम्बर डायल किया। फोन बजते ही उसने कोड बोला। कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक।" "तुमको भी मुबारक।" जे.एन. ने उत्तर दिया,
"आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।"
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला,
"मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ। जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा। अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी।" उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया। उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया। नया साल शुरू हो गया था।
रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था। सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था। रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा। जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे।
मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा। रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था। दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था। घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका।
"ले लो भई, ले लो। रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर।"
"समझा साहब।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया,
"करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना।" लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो।" रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं , एक दाम।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ। उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी। अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम।"
"बरोबर साहब।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के। कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा। मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा। मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब।"
"नहीं ।" अब राजा कागज और कार्बन ले आया। जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा , वह लिखता रहा , फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ , मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है। क्यों कि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं। लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा,
"इसी लिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा। तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया।" राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं।
"अदा लत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा। तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है।" आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है।" जमा होते लोगों में से कोई बोला। राजा के तो छक्के छूट रहे थे।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या? यह तो फिल्म की स्टोरी है।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ। दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी।"
"पर मैंने किया क्या है ?"
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा। लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो।"
राजा गिड़गिड़ाने लगा। "नहीं, इससे ही मुझे खून करना है।" रोमेश ने जोर से कहा,
"तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई।" भीड़ में से कोई बोला।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे।" रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया। शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी। रोमेश घूमता रहा।
जारी रहेगा…![]()
# 28.
"जिन लोगों के गले खुश्क हो गये हों, वह अपने लिये पानी मंगा सकते हैं, क्यों कि अब जो गवाह अदालत में पेश किया जाने वाला है, वह साबित करेगा कि मैंने पूरे दस दिन बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल में बिताये हैं। मेरा अगला गवाह है बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी।"
इंस्पेक्टर विजय के चेहरे से भी हवाइयां उड़ने लगी थीं। रोमेश का अन्तिम गवाह अदालत में पेश हो गया।
"मैं मुजरिम को इसलिये जानता हूँ, क्यों कि यह शख्स जब मेरी जेल में लाया गया, तो इसने पहली ही रात जेल में हंगामा खड़ा कर दिया।
इसके हंगामा के कारण जेल में अलार्म बजाया गया और तमाम रात हम सब परेशान रहे। मुझे जेल में दौरा करना पड़ गया।"
"क्या आप पूरी घटना का ब्यौरा सुना सकते हैं ?" न्यायाधीश ने पूछा।
"क्यों नहीं, मुझे अब भी सब याद है। यह वाक्या दस जनवरी की रात का है, सभी कैदी बैरकों में बन्द हो चुके थे। कैदियों की एक बैरक में रोमेश सक्सेना को भी बन्द किया गया था। रात के दस बजे इसने ड्यूटी देने वाले एक सिपाही को किसी बहाने दरवाजे तक बुलाया और सींखचों से बाहर हाथ निकालकर उसकी गर्दन दबोची, फिर उसकी कमर में लटकने वाला चाबियों का गुच्छा छीन लिया। ताला खोला और बाहर आ गया। उसके बाद अलार्म बज गया। उसने उन्हीं चाबियों से कई बैरकों के ताले खोल डाले। कई सिपाहियों को मारा-पीटा, सारी रात यह तमाशा चलता रहा।"
"उसके बाद तुम्हारे सिपाहियों ने मुझे मिलकर इतना मारा कि मैं कई दिन तक जेल के अन्दर ही लुंजपुंज हालत में घिसटता रहा। मुझे जेल की तन्हाई में ही बन्द रखा गया।"
"यह तो होना ही था। दस जनवरी की रात तुमने जो धमा-चौकड़ी मचाई, उसका दंड तो तुम्हें मिलना ही था।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! मैं यही साबित करना चाहता था कि दस जनवरी की रात मैं मर्डर स्पॉट पर नहीं बड़ौदा जेल में था, जेल का पूरा स्टाफ और सैकड़ों कैदी मेरा नाटक मुफ्त में देख रहे थे। वहाँ भी मेरे फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं और क़त्ल करने वाले हथियार पर भी। अब यह फैसला आपको करना है कि मैं उस समय कानून की कस्टडी में था या मौका-ए-वारदात पर था।"
अदालत में सन्नाटा छा गया।
"यह झूठ है ।" राजदान चीखा,
"तीनों गवाह इस शख्स से मिले हुए हैं, यह जेलर भी।"
"शटअप।" जेलर ने राजदान को डांट दिया,
"मेरी सर्विस बुक में बैडएंट्री करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। मैंने जो कहा है, वह अक्षरसः सत्य है और प्रमाणिक है।"
"अ… ओके… नाउ यू कैन गो।" राजदान ने कहा और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गया।
"कानून की किताब में यह फैसला और मुकदमा ऐतिहासिक है। मुलजिम रोमेश सक्सेना पर ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 का मुकदमा अदालत में चलाया गया। मकतूल जनार्दन नागा रेड्डी का क़त्ल मुल्जिम के हाथों हुआ, पुलिस ने साबित किया।“
“लेकिन रोमेश सक्सेना उस रात कानून की हिरासत में पाया गया, इसीलिये यह तथ्य साबित करता है कि दस जनवरी की रात रोमेश सक्सेना घटना स्थल पर मौजूद नहीं था। जो शख्स कानून की हिरासत में है, वह उस वक्त दूसरी जगह हो ही नहीं सकता, इसीलिये यह अदालत रोमेश सक्सेना को बाइज्जत रिहा करती है"
अदालत उठ गयी। एक हड़कम्प सा मचा, रोमेश की हथकड़ियाँ खोल दी गयीं। जब तक वह अदालत की दर्शक दीर्घा में पहुंचा, उसे वहाँ पत्रकारों ने घेर लिया। बहुत से लोग रोमेश के ऑटोग्राफ लेने उमड़ पड़े।
" नहीं, मैं ऑटोग्राफ देने वाली शख्सियत नहीं हूँ, मैं____एक मुजरिम हूँ। जिसने कानून के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है। यह अलग बात है कि जिसे मैंने मारा, वह कानून की पकड़ से सुरक्षित रहने वाला अपराधी था। उसे कोई कानून सजा नहीं दे सकता था। अब एक बड़ा सवाल उठेगा, क्यों कि मैं सरेआम क़त्ल करके बरी हुआ हूँ और यही कानून की मजबूरी है। उसके पास ऐसी ताकत नहीं है, जो हम जैसे चतुर मुजरिमों या जे.एन. जैसे पाखण्डी लोगों को सजा दे सके, मैं इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता।"
अदालत से बाहर निकलते समय रोमेश की मुलाकात विजय से हो गई।
"हेल्लो इंस्पेक्टर, जंग का नतीजा पसन्द आया ?"
"नतीजा कुछ भी हो दोस्त, मगर मैंने अभी हार नहीं कबूल की है।"
"अब क्या करोगे, मुकदमा तो खत्म हो चुका, हम छूट गये।"
"मैंने जिस अपराधी को पकड़ा है, वह अपराधी ही होता है, उसे सजा मिलती है, मैंने अपनी पुलिसिया जिन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा।"
"मुश्किल तो यही है कि मैं भी कभी नहीं हारा, तब भला अपना केस कैसे हार जाता।"
"तुम उस रात मौका-ए-वारदात पर थे।"
"क्या तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारे फ्लैट को घेर चुका था, तो तुमने मुझ पर फायर किया था, मुझे चेतावनी दी थी, क्या मैं तुम्हारी भावना नहीं पहचानता।"
"बेशक पहचानते हो।“
"तो फिर जेल में उस वक्त कैसे पहुंच गये ?"
"अगर मैंने यह सब बता दिया, तो सारा मामला जग जाहिर हो जायेगा। लोग इसी तरह क़त्ल करते रहेंगे, कानून सिर्फ एक मजाक बनकर रह जायेगा।"
"मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मालूम न कर लूं कि यह सब कैसे हुआ।"
"छोड़ो, यह बताओ शादी कब रचा रहे हो ?"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया। आगे बढ़कर जीप में सवार हो गया।
शंकर नागा रेड्डी शाम के छ: बजे रोमेश के फ्लैट पर आ पहुँचा। रोमेश उसका इन्तजार कर रहा था। रोमेश उस वक्त फ्लैट में अकेला था। डोरबेल बजते ही उसने दरवाजा खोला, शंकर नागा रेड्डी एक चौड़ा-सा ब्रीफकेस लिए दाखिल हुआ।
"बाकी की रकम।" सोफे पर बैठने के बाद शंकर ने कहा,
"एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना है। जैसे मैंने चाहा और सोचा, ठीक वैसा ही परिणाम मेरे सामने आया है। रकम गिन लीजिये।"
"ऐसे धंधों में रकम गिनने की जरुरत नहीं पड़ती।" रोमेश ने ब्रीफकेस एक तरफ रख लिया।
"आज के अखबार आपके कारनामे से रंगे पड़े हैं।" शंकर बोला।
"मेरे मन में एक सवाल अभी भी कुलबुला रहा है।"
"वो क्या ?"
"यही कि तुमने यह क़त्ल मेरे हाथों से क्यों करवाया और तुम्हें इससे क्या मिला ?"
"आपके हाथों क़त्ल तो इसलिये करवाया, क्यों कि आप ही यह नतीजा सामने ला सकते थे। आपकी जे.एन. से ठन गयी थी और लोगों को सहज ही यकीन आ जाता कि आपने जे.एन. का बदला लेने के लिए मार डाला। रहा इस बात का सवाल कि मैंने ऐसा क्यों किया, उसका जवाब देने में अब मुझे कोई आपत्ति नहीं।"
शंकर थोड़ा रूककर बोला।
"यह तो सारी दुनिया जानती है कि जे.एन. को लोग ब्रह्मचारी मानते थे। उसने शादी नहीं की, लिहाजा उसकी प्रॉपर्टी का कोई वारिस भी नहीं था। लोग समझते थे कि उसने समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित किया है। लेकिन हकीकत में वह कुछ और ही था।"
"उसके कई औरतों से नाजायज सम्बन्ध रहे होंगे, यही ना।"
"इसके अलावा उसने एक लड़की की इज्जत लूटने के लिये उससे शादी भी की थी। यह शादी उसने एक प्रपंच के तौर पर रची और उस लड़की को कई वर्षो तक इस्तेमाल करता रहा। वह अपने को जे.एन. की पत्नी ही समझती रही, फिर जब जे.एन. का उससे मन भर गया, तो वह उस लड़की को छोड़कर भाग गया।
अपनी तरफ से उसने फर्जी शादी के सारे सबूत भी नष्ट कर दिये थे, किन्तु लड़की गर्भवती थी और उसका बच्चा सबसे बड़ा सबूत था। जे.एन. उस समय आवारा गर्दी करता था।“
“लड़की माँ बन गयी, उसका एक लड़का हुआ। बाद में जब जे.एन. राजनीति में उतरकर अच्छी पॉजिशन पर पहुंच गया, तो उसकी पत्नी ने अपना हक माँगा। जे.एन. ने उसे स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे मरवा डाला। किन्तु वह उसके पुत्र को न मार पाया और पुत्र के पास उसके खिलाफ सारे सबूत थे। या यूं समझिये कि सबूत इकट्ठे करने में उसने कई साल बिता दिये और तब उसने बदला लेने की ठान ली। उसने अपना एक भरोसे का आदमी जे.एन. के दरबार तक पहुँचा दिया और जे.एन. से तुम टकरा गये और मेरा काम आसान हो गया।"
"यानि तुम जे.एन. की अवैध संतान हो ?"
"अवैध नहीं, वैध संतान ! क्यों कि अब मैं उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस हूँ।
“उसकी अरबों की जायदाद का मालिक ! मैं साबित करूंगा कि मैं उसका बेटा हूँ। उसने मेरी माँ को मार डाला था, मैंने उसे मार डाला और अब मेरे पास बेशुमार दौलत होगी । मैं जे.एन. की दौलत का वारिस हूँ।"
"यह बात अब मेरी समझ आ गयी कि तुमने जे.एन. को माया देवी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए किस तरह विवश किया होगा। तुम्हारा आदमी जो कि जे.एन. का करीबी था, यकीनन इतना करीबी है कि मर्डर की तारीख दस जनवरी को आसानी से जे.एन. को मेरे बताये स्थान पर भेजने में कामयाब हो गया।"
"हाँ , तुमने बीच में मुझे फोन किया था और बताया कि जे.एन. की सुरक्षा व्यवस्था इंस्पेक्टर विजय के हाथों में है, उससे बचकर जे.एन. का क़त्ल करना लगभग असम्भव है। तब मैंने तुमसे कहा, कि इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम जहाँ चाहोगे, जे.एन. खुद ही अपनी सुरक्षा तोड़कर पहुंच जायेगा और यही हुआ। जे.एन. उस रात वहाँ पहुँचा, जहाँ तुमने उसे क़त्ल करना था।"
"अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शख्स और कोई नहीं सिर्फ मायादास है।"
"हम दोनों इस गेम में बराबर के साझीदार हैं, अन्दर के मामलों को ठीक करना उसी का काम था। अगर मायादास हमारी मदद न करता, तो तुम हरगिज अपने काम में कामयाब नहीं हो सकते थे।"
"एक सवाल आखिरी।"
"पूछो।"
"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि पच्चीस लाख की रकम हासिल करने के लिए मैं यह सब कर गुजरूँगा।"
"यह बात मुझे पता चल गई थी कि तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़कर चली गई है और तुम उसे बहुत चाहते हो। उसे दोबारा हासिल करने के लिए तुम्हें पच्चीस लाख की जरुरत है, बस मैंने यह रकम अरेंज कर दी और कोई सवाल ?"
"नहीं, अब तुम जा सकते हो। हमारा बिजनेस यही पर खत्म होता है, दुनिया को कभी यह न मालूम होने पाये कि हमारा तुम्हारा कोई सम्बन्ध था।"
शंकर, रोमेश को रुपया देकर चलता बना। अब रोमेश सोच रहा था कि इस पूरे खेल में मायादास ने एक बड़ी भूमिका अदा की और हमेशा पर्दे के पीछे रहा। मायादास ने ही जे.एन. को मर्डर स्पॉट पर बिना किसी सुरक्षा के भेज दिया था। मायादास का ध्यान आते ही रोमेश को याद आया कि किस तरह इसी मायादास ने उसकी पत्नी सीमा को उसके फ्लैट पर नंगा कर दिया था। इसकी उसी हरकत ने सीमा को उससे जुदा कर डाला।
"सजा तो मुझे मायादास को भी देनी चाहिये।" रोमेश बड़बड़ाया,
"मगर अभी नहीं। अभी तो मुझे सिर्फ एक काम करना है, एक काम। सीमा की वापसी।"
सीमा का ध्यान आते ही वह बीती यादों में खो गया।
"अब मैं तुम्हें पच्चीस लाख भी दूँगा सीमा ! मैं आ रहा हूँ, जल्द आ रहा हूँ तुम्हारे पास। मैं जानता हूँ कि तुम भी बेकरारी से मेरा इन्तजार कर रही होगी।"
रोमेश उठ खड़े हुआ ।
जारी रहेगा...............![]()