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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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एक नया किरदार -- शंकर नागा रेड्डी, और उसकी भी वही समस्या! भाई, ये रोमेश साइकोपैथिक खूनियों का “चुम्बक” बन गया है!
इस बार तो वो रोमेश को ही खून करने को कह रहा है। और पच्चीस लाख की पेशकश भी है! सीमा को जो चाहिए, तो ये शख़्श दे रहा है।
और खून करना है, जनार्दन नागा रेड्डी का! दोनों भाई हैं क्या?
फिजिकल खून करना है या पोलिटिकल?
Bhai abhi tak to yahi lag raha hai ki political murder karwa raha hai wo,
Or rakam bhi utni de raha hai jo seema ko chahiye, dekhte hai aage kya ho sakta hai? Thank you so much for your wonderful review and support avsji ❣️ bhai :dost:
 

Napster

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#11.

रोमेश डिनर के बाद फ्लैट पर पहुँचा, तो उसके पास सारी बातचीत का टेप मौजूद था। फिर भी उसने विजय को कुछ नहीं बता या। अगले ही दिन समाचार पत्रों में छपा की, विजय ने वह टैक्सी बरामद कर ली है, जिसे कातिल ने प्रयोग किया था।

टैक्सी के मालिक रूप सुंदर को एक रात हवालात में रखने के बाद सुबह छोड़ दिया गया था। चालक जुम्मन गायब था। रोमेश के होंठों पर मुस्कुराहट उभर आई, इसका मतलब मायादास को पहले से पता था कि टैक्सी का सुराग पुलिस को मिल गया है, और जुम्मन कभी भी आत्मसमर्पण कर सकता है।
जुम्मन के हाथ आते ही बटाला का नकाब भी उतर जायेगा। शाम को रोमेश से विजय खुद मिला।

''तुम्हारी बात सच निकली रोमेश।''

"कुछ मिला ?"

"जुम्मन ने सब बता दिया है।"

"जुम्मन तुम्हारे हाथ आ गया, कब ?"

"वह रात ही हमारे हाथ लग गया था, लेकिन मैंने उसे हवालात में नहीं रखा। बैंडस्टैंड के एक सुनसान बंगले में है।"

"यह तुमने अक्लमंदी की।"

"मगर तुम जुम्मन को कैसे जानते हो?"

"यह छोड़ो, एक बात मैं तुम्हें बताना चाहता था, तुम्हारे थाने का तुम्हारा कोई सहयोगी अपराधियों तक लिंक में है। कौन है, यह तुम पता लगाओगे।''

"मुझे पता लग चुका है। इसलिये तो मैंने जुम्मन से हवालात में पूछताछ नहीं की। बलदेव, सब इंस्पेक्टर बलदेव!

फिलहाल मैंने उसे फील्डवर्क से भी हटा लिया है। जुम्मन ने बटाला का नाम खोल दिया है। स्टेनगन बटाला के पास है, आज रात मैं उसके अड्डे पर धावा बोल दूँगा।"

"वह घाटकोपर में देसी बार चलाता है। मेरे पास उसकी सारी डिटेल आ गई है। चाहो तो रेड पर चल सकते हो।"

''नहीं, यह तुम्हारा काम है और फिर जब तुम बटाला को धर लो, तो जरा मुझसे दूर-दूर ही रहना।"

"क्यों ? क्या उसका भी केस लड़ोगे?''

"नहीं, मैं पेशे के प्रति ईमानदार रहना चाहता हूँ। हालांकि तुम खुद बटाला तक पहुंच गये हो, लेकिन इन लोगों को अगर पता चला कि उस केस के सिलसिले में तुम वहाँ जा रहे हो, तो वे यही समझेंगे कि यह सब मेरा किया धरा है। मैंने तुम्हें लाइन सिर्फ इसलिये दी, क्यों कि तुम गलत दिशा में भटक गये थे। अब सबूत जुटाना तुम्हारा काम है।''

''लेकिन जनाब अगले हफ्ते नया साल शुरू होने वाला है और दस जनवरी को आपकी शादी की वर्षगांठ होती है, याद है।'' इतना कहकर विजय ने सौ-सौ के नोटों की छः गड्डियां रोमेश के हवाले करते हुए कहा, "तुम तो तकाजा भी भूल गये।''

''यार सचमुच तूने याद दिला दिया , मेरे को तो याद भी नहीं था। माय गॉड, सीमा वैसे भी आजकल मुझसे बहुत कम बोलती है। मैरिज एनिवर्सरी पर मैं उसे गिफ्ट दूँगा इस बार।''

घाटकोपर की एक बस्ती में। बटाला का अवैध शराब का बार चलता था । बटाला देसी बार के ऊपर वाले कमरे में बैठा था। उसकी बगल में एक पेशेवर औरत थी, जिसके साथ वह रमी खेल रहा था। पास ही एक बोतल रखी थी। तभी एक चेला अंदर आया।

"मुखबिर का खबर आयेला।''

"क्या?"

"पुलिस का रेड इधर पड़ेला।''

"आने दे कोई नया इंस्पेक्टर होगा। जब आजाये तो बोल देना, ऊपर कू आए, मेरे से बात कर लेने का क्या, अब फुट जा।

'तभी पुलिस का सायरन बजा। बटाला पर कोई असर नहीं पड़ा। वह उसी प्रकार रमी खेलता रहा। खबर देने वाला नीचे चला गया। कुछ ही देर में बार में तोड़फोड़ की आवाजें गूंजने लगी। चेला फिर हाँफता काँपता ऊपर आया।


"इंस्पेक्टर विजय है। तुमको गिरफ्तार करने आया है।'' बटाला ने उठकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ चेले के मुँह पर मारा। अपनी रिवॉल्वर हवा में घुमाई और फिर उसे जेब में डालता उठ खड़ा हुआ। उसी वक्त बटाला ने फोन मिलाने के लिए डायल पर उंगली घुमाई, लेकिन वह चौंक पड़ा, टेलीफो न डेड पड़ा था।

''हमारा काम करने का तरीका कुछ पसंद आया।'' अचानक विजय ने उसी कमरे के दरवाजे पर कदम रखा,

''अब तुम किसी नेता को फोन नहीं मारेगा, थाने चलेगा सीधा।''

''साले ! " बटाला ने रिवॉल्वर निकाली। लेकिन फायर करने से पहले विजय ने एक जोरदार ठोकर बटाला पर रसीद कर दी, बटाला लड़खड़ाया, विजय एकदम चीते की तरह उस पर झपटा और फिर विजय की रिवॉल्वर बटाला के सीने पर थी।

''पुलिस पर गोली चलाएगा साले। “

“मैं तेरे को बर्बाद कर दूँगा। अपुन को ठीक से जान लेने का, नहीं तो नौकरी से हाथ धोलेगा।"

"जनार्दन रेड्डी के कुत्ते।" विजय ने उसे एक ठोकर और जड़ दी,

''इधर पूरी बस्ती को घेरा है मैंने। कोई तेरी मदद को नहीं आएगा, मुम्बई के जितने भी तेरे जैसे लोग हैं, मेरा नाम सुनते ही सब का पेशाब निकल जाता है। सावंत का कत्ल किया तूने, चल।" विजय ने बटाला के हाथों में हथकड़ियां डाल दी।

"ऐ चल भाग यहाँ से।'' विजय ने पेशेवर युवती से कहा। बटाला को गिरफ्तार करके विजय गोरेगांव के लिए चल पड़ा। अभी बटाला से कुछ पूछताछ भी करनी थी, इसी लिये वह उसे लेकर सीधा थाने नहीं गया, बैंडस्टैंड के उसी बंगले में गया, जहाँ जुम्मन बंद था।

"यह तो थाना नहीं है।" "बटाला जी पर यह मेरा प्राइवेट थाना है, साले यहाँ भूत भी नाचने लगते हैं मेरी मार से। अभी तो तेरे से स्टेनगन बरामद करना है।" उसके बाद बटाला की ठुकाई शुरू हो गई। बटाला को अधिक देर तक प्राइवेट कस्टडी में नहीं रखा जा सकता था, विजय ने सुबह जब उसे लॉकअप में बन्द किया, तो स्टेनगन भी बरामद कर ली थी।

अब उसने पूरा मामला तैयार कर लिया था। उसे मालूम था, बटाला को गिरफ्तार करते ही हंगामा होगा और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी उससे जवाब तलबी कर सकते थे। हुआ भी यही। मामला सीधा आई.जी. के पास पहुँचा। खुद एस.एस.पी. सीधा थाने पहुंच गया।

"आज तक तुम्हारे खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई।" एस.एस.पी. ने कहा,

"इसलिये बटाला को छोड़ दो, तुमने ठाणे जिले में कैसे हाथ डाल दिया, वहाँ की पुलिस…।"

"सर। अगर मैं वहाँ की पुलिस को साथ लेता, तो बटाला हाथ नहीं आता, आखिरी वक्त तक वो यही समझता रहा कि उसी के थाने की पुलिस होगी, अगर उसे जरा भी पता चल जाता कि उसे सावंत मर्डर केस में अरेस्ट किया जा रहा है, तो वह हाथ नहीं आता।"

"सावंत मर्डर केस पहले चंदन, फिर यह बटाला। "

"मैंने स्टेनगन भी बरामद कर ली।"

"देखो इंस्पेक्टर विजय, आई.जी. का दबाव है, घाटकोपर की उस बस्ती में तुम्हारे खिलाफ नारे लगा रहे हैं, कोई ताज्जुब नहीं कि जुलूस निकलने लगे, तुम पुलिस इंस्पेक्टर हो, इसका यह मतलब नहीं कि…।"

"सर प्लीज, आप केवल रिजल्ट देखिये, ये मत देखिये कि मैंने कौन सा काम किस तरह किया है। यही शख्स सावंत का हत्यारा है। मैं इसका रिमांड लूँगा, ताकि असली हत्यारे को भी फंसाया जा सके।"

"इसकी सावंत से क्या दुश्मनी थी ?"

"इसकी नहीं, यह तो मोहरा भी नहीं है, प्यादा भर है। इसने शूट किया, शूट किसी और ने करवाया, मैं मुकदमा दायर कर चुका हूँ, अब रिमांड लूँगा और उस शख्स को गिरफ्तार करूंगा, जिसने कत्ल करवाया है।"

विजय ने एस.एस.पी. की एक न सुनी। बटाला लॉकअप में बन्द था।

"मुझे मालूम है सर, मेरी सर्विस भी जा सकती है, लेकिन इस थाने का चार्ज और सावंत मर्डर केस की तफ्तीश कर रहा हूँ मैं, जब तक मेरी वर्दी मेरे पास है, पुलिस महकमे का बड़े से बड़ा ऑफिसर भी मुझे काम करने से नहीं रोक सकता।"

"ठीक है, आई.जी . के सामने मैंने तुम्हारी बहुत तारीफ की थी, अब अपनी तारीफ खुद कर लेना, लेकिन मेरी व्यक्तिगत सलाह यही है कि…।"

"सॉरी सर।"

और एस.एस.पी. पैर पटकते हुए चला गया।


जारी रहेगा…….✍️✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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#:12

बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनी खेज था।
सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था। इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा।


"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ।" रोमेश ने कहा।

"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई।" मायादास ने कहा !

"अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा।


"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, अलबत्ता उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता।"


"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो।"

"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ।"

"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे।"

"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा।"

"आई सी! नशे में न हम हैं न आप। मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं।"

"दूसरे वकील बहुत हैं।"

"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं, और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया। जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा। नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा,

"सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास।" कुछ पल बाद।

"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"

"हाँ , रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"वो केस लड़ने से इंकार करता है। वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा।"

"उसको फोन दो।" मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया।

"लो तुम खुद बात कर लो, सी .एम. बोलते हैं।"


रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया।

"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील।" मायादास उठ खड़ा हुआ,

"तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्यों कि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है।"

"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"

"ठीक है, हम चलते हैं।" जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया।

"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश।" सीमा बोली ,

"कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी .ए. है। जनार्दन नागा रेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो।"

"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है। आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी। बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है। एम.पी. का। जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप।"


"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई। उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया।


"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी।

"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागा रेड्डी , चीफ मिनिस्टर।"

"कहिये ।"

"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालत नामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है। हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद।" इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता , दूसरी तरफ से फोन कट गया।

"गो टू हेल।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया। सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया। कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलि त नहीं हुआ था। न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी। मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी। कोर्ट में उसका मन नहीं लगा। बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की। अगले तीन दिन की तारीख लगा दी। रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था। न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा। शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ। वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई। दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा।

एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था। अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था।

"सॉरी।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "

मैंने अपना फ्लैट समझा था।"

"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये।" रोमेश सकपका गया,

"त… तुम।"

"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं।" रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था। उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा।

"म… मगर…!" रोमेश पलटा।

"बैडरूम में।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा। रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा। वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"

तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई।

"अब मत चिल्लाना।"

यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था। उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था। उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया। एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था। उसके हाथ में जाम था। वह धीरे- धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा।

"हरामी ! साले !! मायादास !!!"
बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये,

"बाँध दो इसे।"

कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे। उन्हों ने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी। रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया। मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।

"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो। हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली।"

मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा। सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था, उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।

"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी .एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्यों कि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है।"

''हरामजादे।" रोमेश चीखा। रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा।

"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है।" मायादास गुर्राया,

"अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं। जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा। तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा। तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना , होश आजायेगा।"

मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था। उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई। सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी। मायादास ने कहा और बाहर निकल गया। उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था। उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया।

"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था।"

"शटअप !"

सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "

"आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्यों कि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।"

सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई।

"सीमा प्लीज।" वह बाथरूम से ही चीख रही थी,

"आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द। मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"

"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।"

रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया। बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था।

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ।"

"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया।"

"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"

"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते। सॉरी … ।"

फोन कट गया। सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी। उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी।

"मुझे एक मौका और दो प्लीज।" रोमेश गिड़गिड़ाया।

"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी,

"तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये।"

"पच्चीस लाख? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता।"


"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं।"

"क… कब तक ? "

"सिर्फ एक महीना।"

"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है। प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा।"

"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी।" रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई। फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी। रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा।

रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है। उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का। उसे होश आ गया।

"तू जा कर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"

"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"

"पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख। बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला।"

नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा। रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे? उसका होंठ सूखा हुआ था। बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम हो कर रह गई थी। फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया। विजय फोन पर मिल गया।


"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था,

"नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे। और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है?" फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है।

"मैं आ रहा हूँ।" विजय ने कहा।

''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना।"

पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे। नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था। दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी। अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना।

"पुलिस में रिपोट दर्ज करो उसकी।" विजय बोला।

"न…नहीं। नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता।"

"प्लीज, आपको क्या हो गया सर?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये।

"लीव मी अलोन।"
अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा,

"वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये।"

रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।

"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो। भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ। देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता।"


जारी रहेगा.....✍️✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
मुख्यमंत्री और उसके सेक्रेटरी से इतनी बेइज्जती होने के बाद इन्स्पेक्टर विजय और वकील रोमेश सक्सेना बहुत बडा कांड करने की संभावना लगती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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#.13

दो दिन बाद रोमेश बैडरूम से बाहर निकला। इस बीच उसने कुछ खाया पिया न था।
उसने पुलिस से मदद लेने से भी इन्कार कर दिया। वैशाली इन दो दिनों उसी फ्लैट पर थी और कौशिश कर रही थी कि रोमेश अपनी रूटीन की जिन्दगी में लौट आये। इस बीच रोमेश बराबर शराब पीता रहा था।
वैशाली अन्तत: अपनी कौशिश में कामयाब हुई।
रोमेश ने स्नान किया और नाश्ते की टेबिल पर आ गया।

"सीमा का कोई फोन तो नहीं आया?" रोमेश ने पूछा।

"आप धीरज रखिये, हम सीमा भाभी को मना कर ले ही आयेंगे, वह भी तो आपको बहुत चाहती हैं। दो चार दिन में गुस्सा उतर जायेगा, आ जायेंगी।"

"और किसी का फोन मैसेज वगैरा?"

"कोई शंकर नागा रेड्डी है, तीन-चार बार उसका फोन आया था। वह आपसे मुलाकात का वक्त तय करना चाहता है।"

"शंकर नागा रेड्डी, मैंने तो यह नाम पहली बार सुना, हाँ जनार्दन नागा रेड्डी का नाम जरूर जेहन से चिपक सा गया है।"

"जनार्दन नहीं शंकर नागा रेड्डी।"

"क्यों मिलना चाहता है?"

"किसी केस के सम्बन्ध में।"

"केस क्या है?"

"यह तो उसने नहीं बताया, उसका फोन फिर आयेगा। आप समय तय कर लें, तो मैं उसे बता दूँ।"

"ठीक है, आज शाम सात बजे का समय तय कर लेना। मैं घर पर ही हूँ, कहीं नहीं जाऊंगा। फिलहाल कोर्ट के मैटर तुम देख लेना।"

"वह तो मैं देख ही रही हूँ सर, उसकी तरफ से आप चिन्ता न करें।"

दोपहर एक बजे शंकर का फोन फिर आया। वैशाली ने मुलाकात का समय तय कर दिया। दिन भर रोमेश, वैशाली के साथ शतरंज खेलता रहा। विजय भी एक चक्कर लगा गया था, उसने भी एक बाजी खेली, सब सामान्य देखकर उसने वैशाली की पीठ
थपथपायी।

"पुलिस में मामला मत उठाना।" रोमेश बोला, "वैसे तो मैं खुद बाद में यह मामला उठा सकता था। मगर इससे मेरी बदनामी होगी, कैसे कहूँगा कि मेरी बीवी …।"

"ठीक है, मैं समझ गया।"

"जिनके साथ बलात्कार होता है, पता नहीं वह महिला और उसके अभिवावकों पर क्या गुजरती होगी, जब वह कानूनी प्रक्रिया से गुजरते होंगे। कल बटाला को पेश किया जाना है ना?"

"हाँ, मुझे उम्मीद है रिमाण्ड मिल जायेगा और उसकी जमानत नहीं होगी। एम.पी . सावन्त की पत्नी भी सक्रिय है, वह बटाला की किसी कीमत पर जमानत नहीं होने देंगे।

मुझे उम्मीद है जब मैं जे.एन. को __________लपेटूंगा, तो पूरी लाठी मेरे हाथ होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि कोई आन्दोलन खड़ा हो जाये।"

"तुम काम करते रहो।" रोमेश ने कहा।

सात बजे शंकर नागा रेड्डी उससे मिलने आया। रोमेश सोच रहा था कि वह शख्स अधेड़ आयु का होगा किन्तु शंकर एकदम जवान पट्ठा था। रंगत सांवली जरूर थी किन्तु व्यक्तित्व आकर्षक था। लम्बा छरहरा बदन और चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी।

"मुझे शंकर नागा रेड्डी कहते हैं।"

"हैल्लो !" रोमेश ने हाथ मिलाया और शंकर को बैठने का संकेत किया।शंकर बैठ गया।

फ्लैट का एक कमरा रोमेश का दफ्तर होता था। दायें बायें अलमारियों में कानून की किताबें भरी हुई थीं। मेज की टॉप पर इन्साफ की देवी का एक छोटा बुत रखा हुआ था, बायीं तरफ टाइपराइटर था।

"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?"

"मेरा एक केस है, मैं वह केस आपको देना चाहता हूँ ? "

"केस क्या है ?"

"कत्ल का मुकदमा।"

"ओह, क्या आप मेरे बारे में कुछ जानकारी रखते हैं ?"

"जी हाँ, कुछ नहीं काफी जानकारी रखता हूँ। मसलन आप एक ईमानदार वकील हैं। किसी अपराधी का केस नहीं लड़ते। आप पहले केस को इन्वेस्टीगेट करके खुद पता करते हैं कि जिसकी आप पैरवी करने जा रहे हैं, वह निर्दोष है या नहीं।"

"बस-बस इतनी जानकारी पर्याप्त है। अब बताइये कि किसका मर्डर हुआ और किसने किया ?"

"मर्डर अभी नहीं हुआ और जब मर्डर हुआ ही नहीं, तो हत्यारा भी अभी कोई नहीं है।"

"क्या मतलब ?"

"पहले तो आप यह जान लीजिये कि मैं आपसे केस किस तरह का लड़वाना चाहताहूँ, मुझे मर्डर से पहले इस बात की गारंटी चाहिये कि मर्डर में जो भी अरेस्ट होगा,वह बरी होगा और यह गारंटी मुझे एक ही सूरत में मिल सकती है।"

"वह सूरत क्या है ?"

"यह कि मर्डर आप खुद करें।"

"व्हाट नॉनसेंस।" रोमेश उछल पड़ा, "तुम यहाँ एक वकील से बात करने आए हो या किसी पेशेवर कातिल से।"

"मैं जानता हूँ कि जब आप खुद किसी का कत्ल करेंगे, तो दुनिया की कोई अदालत आपको सजा नहीं दे पायेगी, यही एक गारन्टी है।"

"बस अब तुम जा सकते हो।"

"रास्ता मुझे मालूम है वकील साहब, लेकिन जाने से पहले मैं दो बातें और करूंगा !!

पहली बात तो यह कि मैं उस केस की आपको कुल मिला कर जो रकम दूँगा, वह पच्चीस लाख रुपया होगा।"

"प…पच्चीस लाख ! तुम बेवकूफ हो क्या, अरे किसी पेशेवर कातिल से मिलो , हद से हद तुम्हारा काम लाख दो लाख में हो जायेगा, फिर पच्चीस लाख।"

रोमेश को एकदम ध्यान आया कि सीमा ने इतनी ही रकम मांगी थी,

"प…पच्चीस लाख ही क्यों ?

"पच्चीस लाख क्यों ? अच्छा सवाल है। बिना शक कोई पेशेवर कातिल बहुत सस्ते में यह काम कर देगा, लेकिन उस हालत में देर-सवेर फंदा मेरे गले में ही आकर गिरेगा और आपके लिए मैंने यह रकम इसलिये लगाई है, क्यों कि मैं जानता हूँ, इससे कम में आप
शायद ऐसा डिफिकल्ट केस नहीं लेंगे।"

रोमेश ने उसे घूरकर देखा।

"दूसरी बात क्या थी ?"

"आपने यह तो पूछा ही नहीं, कत्ल किसका करना है। दूसरी बात यह है, हो सकता है कि कत्ल होने वाले का नाम सुनकर आप तैयार हो जायें, उसका नाम है जनार्दन
नागा रेड्डी। "

"ज…जनार्दन…?"

"हाँ वही, चीफ मिनिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी यानि जे.एन.। मैं जानता हूँ कि जब आप यह कत्ल करोगे, तो अदालत आपको रिहा भी करेगी और मुझ तक पुलिस कभी न पहुंच सकेगी।"

"नेवर, यह नहीं होगा, यह हो ही नहीं सकता।"

"यह रहा मेरा कार्ड, इसमें मेरा फोन नम्बर लिखा है। अगर तैयार हो, तो फोन कर देना, मैं आपको दस लाख एडवांस भिजवा दूँगा। बाकी काम होने के बाद।"

"अपना विजिटिंग कार्ड टेबिल पर रखकर शंकर नागा रेड्डी गुडबाय करता हुआ बाहर निकल गया।
रोमेश ने कार्ड उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया।

"कैसे-कैसे लोग मेरे पास आने लगे हैं।"

अगले दिन रोमेश को पता चला कि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण बटाला को जमानत हो गई, विजय उसकी रिमाण्ड नहीं ले सका। उसके आधे घण्टे बाद मायादास का फोन आया।


"देखा हमारा कमाल, वह अगली तारीख तक बरी भी हो जायेगा। तुम जैसे वकीलों की औकात क्या है, तुमसे ऊपर जज होता है साले ! अब हम उस दरोगा की वर्दी उतरायेंगे।
तू उसकी वर्दी बचाने के लिए पैरवी करना, जरूर करना और तब तुझे पता चलेगा कि मुकदमा तू भी हार सकता है। क्यों कि तू उसकी वर्दी नहीं बचा पायेगा, जे.एन. से टक्कर लेने का अंजाम तो मालूम होना ही चाहिये।"

रोमेश कुछ नहीं बोला। फोन कट गया।





जारी रहेगा.....✍️✍️
बहुत ही गजब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
अब कहानी में एक नया मोड आने वाला हैं
एक ओर मायादास से धमकी तो वही दुसरी ओर जे एन का कत्ल वो भी रोमेश के हाथों से उसके लिये पच्चीस लाख रुपये मिलेगे जो सीमा की डिमांड हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही गजब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
अब कहानी में एक नया मोड आने वाला हैं
एक ओर मायादास से धमकी तो वही दुसरी ओर जे एन का कत्ल वो भी रोमेश के हाथों से उसके लिये पच्चीस लाख रुपये मिलेगे जो सीमा की डिमांड हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Kahani or bhi uljhegi bhai,
Thank you very much bhai ❣️ for your wonderful review and support ❣️ Napster
 

Raj_sharma

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
मुख्यमंत्री और उसके सेक्रेटरी से इतनी बेइज्जती होने के बाद इन्स्पेक्टर विजय और वकील रोमेश सक्सेना बहुत बडा कांड करने की संभावना लगती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thank you very much for your wonderful review and support Napster :dost:
 

Raj_sharma

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
Napster bhai Thank you so much for your valuable review ❣️
 
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