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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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zaroor oadunga ... bas parso se start karungaMeri doosri story supreme par kab aa rahe ho?![]()
Thanks Bhaizaroor oadunga ... bas parso se start karunga![]()
Abhi Teen Update read kiye Bas .Lekhak kon hai, sabhi words aasaan thodi honge
Poori kahani padh ke eh review
Yahi aasha thi tumse![]()
Abe 4-5 update ke baad koi chhota mota review dene se views badhte haiAbhi Teen Update read kiye Bas .
Mega Review denge Puri story ka aise complete story mein ek ek update ka Review mein sirf nice nice update milega. bolo chalega ye
Mega update last me chalegaLets review start After 4 updatesAbe 4-5 update ke baad koi chhota mota review dene se views badhte haiMega update last me chalega
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Inspector or ladki ka full ilu ilu hai, aur romesh vakeel hi hai, wo bhi koi chhota mota nahi balki aisa vakeel jiske saamne bade-2 dhurandhar na tik sakeLets review start After 4 updates
Kahani ki shuruwat Jabar Jast Rahi
Kamalnath ne somu ko fasaya iska koi clue Nahi .
Vashali aur uske dost Inspector dono premi thee . lag Raha kahani end Tak dono sath hojayenge .
Romesh Detective lag Rahe hai , update four ke End mein badi mystery kaatil ko Pakad Nahi sakte .
Overall awesome start .
aur somu ko keval vahi bacha sakta hai.
I must say dimag ghuma diya Story ne# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Rajdhan ke sath sath Reader ke bhi hawa nikal di .# 27
"रस्सी जल गई, मगर बल नहीं गया।" राजदान बोला।
"मैं वह रस्सी हूँ राजदान, जिसे कानून की आग कभी नहीं जला सकती।"
"ऑर्डर… ऑर्डर ?" न्यायाधीश ने मेज बजाई, "मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपको जो कुछ कहना है अदालत के समक्ष कहें।"
रोमेश अब अदालत से मुखातिब हुआ।
"योर ऑनर, मैं जानता था कि मेरी कानूनी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए अदालत मेरे प्रति सॉफ्ट कार्नर रखती है और वह मुझे एक आखिरी मौका देगी। मुझे भी इसी मौके
का इन्तजार था। योर ऑनर, यह तो अपनी जगह अटल सत्य है कि क़त्ल मैंने ही किया है, परन्तु यह भी अपनी जगह सत्य है कि रोमेश सक्सेना ने जिस मुकदमे को अपने हाथों में लिया, जिसकी पैरवी कि उसे कभी हारा नहीं। यह अलग बात है कि रोमेश पहली बार एक अपराधी का मुकदमा लड़ रहा है।"
अदालत में बैठे लोग कानाफूसी करने लगे, पीछे से एक शोर-सा उठा।
"शांत रहिये, शांत !" न्यायाधीश को कहना पड़ा। लोग चुप हो गये।
"आप कहना क्या चाहते हैं सक्सेना? "
"यही योर ऑनर कि अपराध के इतिहास में ऐसा विचित्र मुकदमा कभी पेश नहीं हुआ होगा कि यह साबित होने पर भी कि मुलजिम ने क़त्ल किया है, अदालत मुलजिम को सजा न देते हुए बाइज्जत रिहा करेगी।"
"व्हाट नॉनसेन्स !" राजदान चीखा, "यह अदालत का अपमान कर रहा है। कानून का मजाक उड़ा रहा है, क्या समझ रखा है इसने कानून को?"
"चुप बे कानून के सिपह सालार ! तेरी तो आज बहुत बुरी गत होने होने वाली है, ऐसे औंधे मुंह गिरने वाला है तू कि कई दिन तक होश नहीं आएगा। कानून के नाम पर हमेशा मेरा भूत तुझे सपनों में डराता रहेगा।"
"योर ऑनर यह गाली गलौज पर उतर आया है।" राजदान चीखा।
"ऑर्डर ! ऑर्डर !!"
एक बार फिर सब शांत हो गया।
"हाँ, योर ऑनर!" रोमेश अदालत से मुखातिब हुआ,
"आप मुझे बाइज्जत रिहा करेंगे। क्यों कि मैं जिन तीन गवाहों को अदालत में पेश करूंगा, वह ही इसके लिए काफी हैं, साबित हो जायेगा कि क़त्ल मैंने नहीं किया, जबकि साबित यह भी हो चुका है कि क़त्ल मैंने ही किया है।"
पीछे वाली बेंच पर ठहाके गूँज उठे।
"मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि मुझे गवाह पेश करने का अवसर दिया जाये।"
न्यायाधीश ने पानी मांग लिया था। छक्के तो सभी के छूट रहे थे। मुकदमे ने एक सनसनी खेज नाटकीय मोड़ ले लिया था।
"इजाजत है।" न्यायाधीश ने कहा।
"थैंक्यू योर ऑनर, जिन तीन सरकारी अधिकारियों को मैं बुलाना चा हता हूँ, अदालत उन्हें तलब करने का प्रबन्ध करे। नम्बर एक, रेलवे विभाग के टिकट चेकर मिस्टर
रामानुज महाचारी ! "
"नम्बर दो, बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इन्चार्ज इंस्पेक्टर बलवंत
सिन्हा !"
"नम्बर तीन, बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी ! इनके वर्तमान कार्यक्षेत्र के पते भी नोट कर लिए जायें ।"
अदालत से बाहर चंदू, राजा और कासिम डिस्कस कर रहे थे।
"यार यह तीन नये गवाह कहाँ से आ गये ?" चंदू बोला।
"अपुन को लगता है कि इसने उनको भी पहले से हमारी तरह फिट करके रखा होगा। यह तो साला लफड़े पे लफड़ा हो गया।"
"अरे यार अब तो उसे ख़ुदा भी बरी नहीं करा सकता।" कासिम बोला।
"यार मेरे को लगता है, बरी हो जायेगा।" चंदू बोला,
"अगर हो गया, तो मैं उसे मुबारकबाद दूँगा।"
"अपुन का धंधा भी चमकेगा भाई, सबको पता चल जायेगा कि राजा का खरीदा चाकू-छुरे से क़त्ल करने वाला बरी होता है।" राजा बोला।
"मगर क़त्ल तो उसने किया ही है।"
"यह तो सबको पता है, मगर अब लफड़ा हो गया।"
शाम के समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुख सुर्खियों में छपी थी।
जे० एन० मर्डर केस में एक नाटकीय मोड़!
अपराध जगत का सबसे सनसनी खेज मुकदमा!
क्या अदालत रोमेश को बरी करेगी?
तरह-तरह की सुर्खियां थीं, जो अख़बारों में छपी हुई थीं। हॉकरों की बन आई थी।
लोग अख़बार पढ़ने के लिये टूटे पड़ रहे थे। गयी रात तक चौराहों, बाजारों, नुक्कड़ो में यही एक बात चर्चा का विषय बन गई थी ।
..............अगली तारीख............
अदालत खचा-खच भरी थी। अदालत के बाहर भी लोगों का हुजूम उमड़ा था। हर कोई जे.एन. मर्डर केस में दिलचस्पी लेने लगा था।
रोमेश सक्सेना को जिस समय
अदालत में पेश किया जा रहा था, कुछ पत्रकारों के कैमरों की फ़्लैश चमकी और कुछ ने आगे बढ़कर सवाल करने चाहे, तरह तरह के प्रश्न थे।
"आप किस तरह साबित करेंगें कि क़त्ल आपने नहीं किया ?"
"मैं यह साबित नहीं करने जा रहा हूँ।" रोमेश का जवाब था,
"मैं सिर्फ अपने को बरी करवाने जा रहा हूँ।"
प्रश्न : "आपके तीनों गवाह क्या कहने जा रहे हैं ? "
उत्तर: "वक्त का इन्तजार कीजिए, अभी अदालत में सब कुछ आपके सामने आने वाला है।"
रोमेश अदालत के कटघरे में पहुँचा। अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी।
"गवाह नम्बर एक, रामानुज महाचारी पेश हों।"
अदालत ने रामानुज को तलब किया। रामानुज मद्रासी था। करीब पचास साल उम्र होगी, रंग काला तो था ही, ऊपर से काला सूट पहने हुये था। रामानुज को शपथ दिलाई गयी। उसने शपथ ली और अपने चश्मे के अन्दर से पूरी अदालत पर सरसरी निगाह दौड़ाई, फिर उसकी नजरें रोमेश पर ठहर गयी। वह चौंक पड़ा।
"उसके मुँह से निकला,"तुम, यू बास्टर्ड !"
"हाँ, मैं !" रोमेश बोला,
"मेरा पहला सवाल यही है मिस्टर रामानुज, कि क्या तुम मुझे जानते हो ? "
"अरे अपनी सर्विस लाइफ में साला ऐसा कभी नहीं हुआ, तुमने हमारा ऐसा बेइज्जती किया कि हम भूल नहीं पाता आज भी, मिस्टर बास्टर्ड एडवोकेट।"
"मिस्टर रामानुज, यह अदालत है, अपनी भाषा दुरुस्त रखें।" न्यायाधीश ने रोका।
"ठीक सर, बरोबर ठीक बोलूंगा।"
"गाली नहीं देने का।"
रोमेश बोला, "हाँ तो रामानुज, क्या तुम अदालत को बता सकते हो कि तुम मुझे कैसे जानते हो ?"
"यह आदमी नौ जनवरी को राजधानी में सफर कर रहा था। उस दिन हमारा ड्यूटी
था। मैं रेलवे का एम्प्लोई हूँ और मेरी ड्यूटी राजधानी एक्सप्रेस में रहती है। टिकट चेक करते समय मैं इसकी सीट पर पहुँचा, तो यह शख्स दारू पी रहा था। मेरे रोकने पर इसने
पहले तो दारू का पैग मेरे मुंह पर मारा और उठकर मेरे गाल पर थप्पड़ मारा जी। "
"मेरी सर्विस लाइफ में पहला थप्पड़ सर! मैंने टिकट माँगा, तो दूसरा थप्पड़ पड़ा जी। मेरी सर्विस लाइफ का दूसरा थप्पड़ जी, मैं तो रो पड़ा जी। पैसेंजर लोगों ने मुझे इस बदमाश से बचाया, यह बोला मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना हूँ, कौन मेरे को दारू पीने से रोकेगा ? कौन
मुझसे टिकट मांगेगा ? हमने यह बात अपने स्टाफ के लोगों को बताया, पुलिस का मदद लिया और बड़ौदा में इसको उतारकर रेलवे पुलिस के हवाले कर दिया।
लेकिन मेरी सर्विस लाइफ का पहला और दूसरा थप्पड़, वो मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगा माई लार्ड !"
इतना कहकर रामानुज चुप हो गया।
"योर ऑनर।" रोमेश ने कहा,
"यह बात नोट की जाये कि रामानुज ने मुझे बड़ौदा स्टेशन पर राजधानी से उतार दिया था। नौ जनवरी की रात राजधानी एक्सप्रेस बड़ौदा में नौ बजकर अठ्ठारह मिनट पर पहुंची थी। मेरे काबिल दोस्त राजदान को अगर कोई सवाल करना हो, तो पूछ सकते हैं।"
"नो क्वेश्चन।" राजदान ने रोमेश के अंदाज में कहा,
"रामानुज के बयानों से यह बात और भी साफ हो जा ती है कि रोमेश सक्सेना को बड़ौदा में उतारा गया और यह शख्स बड़ौदा से सीधा मुम्बई आ पहुंचा, जाहिर है कि इसने बड़ी आसानी से अपनी जमानत करवाली होगी या फिर पुलिस ने ही नशा उतरने पर इसे छोड़ दिया होगा।"
"अंधेरे में तीर न चलाइये राजदान साहब, मेरा दूसरा गवाह बुलाया जाये। बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर बलवंत आपके इन सब सवालों का जवाब दे देगा।“
“मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि बलवंत को अदालत में बुलाया जाये।"
अदालत ने इंस्पेक्टर बलवंत को तलब किया।
"इंस्पेक्टर बलवन्त सिन्हा हाजिर हो।"
बलवन्त सिन्हा पुलिस की वर्दी में था। लम्बा तगड़ा जवान था, कटघरे में पहुंचते ही उसने न्यायाधीश को सैल्यूट मारा। अदालती रस्में पूरे होने के बाद बलवन्त की दृष्टि रोमेश पर ठहर गयी।
"इंस्पेक्टर बलवन्त आप मुझे जानते हैं ?"
"ऑफकोर्स।” बलवन्त ने उत्तर दिया, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"
"कैसे जानते हैं ?"
"क्यों कि मैंने आपको नौ जनवरी की रात लॉकअप में बन्द किया था और रामानुज की रिपोर्ट पर आप पर मुकदमा कायम किया था। फिर अगले दिन आपको कोर्ट में पेश
किया गया, जहाँ से आपको बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में दस दिन की सजा हो गई।
यह सजा इसलिये हुई, क्यों कि आपने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया और न ही अपनी जमानत करवाई !"
"क्या आप बता सकते हैं मुझे सजा किस दिन हुई ?"
"दस जनवरी को।"
"यह बात नोट कर ली जाये योर ऑनर ! नौ जनवरी को मुझे पुलिस ने कस्टडी में लिया और दस जनवरी को मुझे दस दिन की सजा हो गयी।"
राजदान एकदम उठ खड़ा हुआ।
"हो सकता है योर ऑनर सजा होने के बाद मुलजिम के किसी आदमी ने जमानत करवाली हो और यह बात इंस्पेक्टर बलवंत की जानकारी में न हो। यह भी हो सकता है कि आज तक जुर्माना भर दिया गया हो और मुलजिम सीधा मुम्बई आ गया। अगर यह ट्रेन से आता है, तब भी छ: सात घंटे में बड़ौदा से मुम्बई पहुंच सकता है।"
"लगता है मेरे काबिल दोस्त या तो बौखला कर ऊलजलूल बातें कर रहे हैं, या फिर इन्हें कानून की जानकारी नहीं है।" रोमेश ने कहा,
"अगर मेरी जमानत होती या जुर्माने की राशि भर दी जाती, तो पुलिस स्टेशन में केस दर्ज है, वहाँ पूरी रिपोर्ट लगा दी जाती है।"
"रिपोर्ट लगने पर भी कोई जरूरी नहीं कि इंस्पेक्टर बलवन्त को इसकी जानकारी हो, यह कोई ऐसा संगीन केस था नहीं।"
"क्यों इंस्पेक्टर, इस बारे में आपका क्या कहना है ?"
"मेरी पक्की जमानत और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार ही मैंने बयान दिया है। मगर यह एक संभ्रांत फेमस एडवोकेट का मामला न होता, तो मुझे याद भी न रहता। मैं तो इनको रात को ही छोड़ देता, मगर रोमेश सक्सेना ने पुलिस स्टेशन में भी अभद्रता दिखाई,
मुझे सस्पेंड तक करा देने की धमकी दी, इसलिये मैंने इनका मामला अपनी पर्सनल डायरी में नोट कर लिया। इन्हें सजा हुई और यह पूरे दस दिन जेल में बिता कर ही बाहर निकले।"
"ऐनी क्वेश्चन मिस्टर राजदान ?"
राजदान ने इन्कार में सिर हिलाया और रूमाल से चेहरा साफ करता हुआ बैठ गया। साथ ही उसने एक गिलास पानी भी मंगा लिया।
जारी रहेगा…….......![]()