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Incest MITHA PANI

अपनी राय बताए कहानी को लेकर

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Maine aj hi kahani ko pdna shuru Kiya hai.kahani ko pad kr maza hi aa gya faadu kahani h. Ek request h ki kahani ko complete krke hi end krna.
 
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Maniac1100

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मीठा पानी 16
इस दुनिया मे सबको नींद नही आती। बस थकावट की वजह से कुछ देर शान्त हो जाते है लोग। उनके चेहरे चिंताओ से भरे होते है, क्यूँकि कुछ न कुछ गलत करते रहते है। पर प्यार गलत नही हो सकता। प्यार तो 'सही' का दूसरा नाम है और प्यार और हवस का बड़ा गहरा नाता होता है। जिस इंसान मे बस प्यार है, वह सो नही पाता। पर जिस इंसान मे प्यार के साथ हवस भी है, वो चैन की नींद सोता है। अब शामु को ही देख लीजिए सूरज चढ़ आया है और महाराज घोड़े बेचकर सो रहे है। रात को देर से सोया था तो नींद जल्दी नही खुली। हरीश दुकान पर चला गया था।
दूसरी तरफ सीता ने सुबह सुबह का सारा काम निपटा लिया था बस शामु और अपने लिए रोटिया बनानी बाकी थी। वह बहुत खुश थी और बार बार शरमा रही थी। उसे पता था शामु उठते ही उसे घाघरे चोली मे देखना चाहेगा तो उसने सोचा नहा लिया जाए। उसने पहले शामु के लिए चाय बनाई और थरमस मे डाल कर रख दी। फिर नहाने चली गयी। नहाकर उसने बड़े प्यार से उस घाघरा चोली को पहना। गले मे मंगलसूत्र था और हाथ चूड़ियों से भरे हुए थे। माथे पर छोटी सी लाल बिन्दी लगाई।हालांकि उस चोली का बस नाम ही चोली है, उतनी छोटी नही, पर आधे मम्मे नुमाया थे। घाघरा घुटनो से उपर था और थोड़ी थोड़ी जांघे दिख रही थी। एसी चीकनी जांघे कि हाथ फिसल जाए अगर पकड़ने की कोशीश करो। सीता को इस बात से कोई समस्या नही थी। अपने बेटे कि इच्छा पूरी करनी थी तो थोड़ा बहुत तो चलता है। सूरज उगने से पहले उसने वह पायल और तगड़ी शामु के सिरहाने रख दी थी। उसे बस एक ही चिंता थी कि कोई आ ना जाए घर मे। हालांकि अगर शामु होगा तो किसी के आने पर वह छुप सकती है और शामु कोई बहाना बना सकता है। पर अभी वह उठा नही था। वह तैयार थी अपने बेटे की पसंद के अनुसार। और कुछ काम था नही तो उसने सोचा रोटिया बना ली जाए। वह रसोई मे आ गयी।
कुछ देर बाद शामु भी उठ गया। उसने देखा कि वह बहुत देर से उठा है। नित्य कर्म से निवर्त होकर मुँह धोया जब उसके जेहन मे खयाल आया की आज उसकी माँ उसकी लायी पोषाक पहनने वाली थी। सोच कर उसने अपने कमरे में नजर दोड़ाइ। पायल और तगड़ी दोनों उसके सिरहाने पड़ी थी। उसका मन खिल उठा। उसने उन्हें उठाया और अपनी जेब में डाल लिया। जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा कि सीता रसोई में खाना बना रही थी उसके द्वारा लाये गए घाघरा और चोली को पहनकर। सर पर सितारों से सजी चुनरी ओढ़ रखी थी। वह सच मे 'चोली के पिछे क्या है' गाने वाली हीरोइन जैसी लग रही थी। चुनरी पूरी तरह फेला नही रखी थी इसलिए दोनों तरफ से पीठ नुमांया थी। उसने देखा कि उसकी माँ की चिकनी कमर खाली थी। पैर भी खाली थे जो उसे कचोट कर कह रहे थे कि हमारी पायल कहां है। पहले कमर को सजा दिया जाए उसके बाद तुम्हारी बारी होगी। शामु आगे बढ़ा और अपनी माँ के पास जाकर रुका।
"उठ गया?" बिना शामु की और देखे, बेलन चलाते हुए, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए सीता बोली। उसे पता था शामु उसे निहार रहा है।
"हाँ माँ" कहने के साथ ही अपने दोनों हाथ अपनी माँ की कमर पर स्थापित कर दिये। नंगी कमर पर बेटे के हाथ लगते ही सीता का रोम रोम खिल उठा। साँसे तेज हुई। कमर को हल्का सा दबाकर शामु ने अपनी माँ के शरीर मे हो रही हलचल महसूस की। फीर आगे होकर अपने हाथ अपनी माँ के पेट पर बाँध लिए। दांये हाथ की पहली उंगली को नाभि मे जगह मिल गयी। फिर अपने होठ सीता के कान के पास लाकर कहने लगा
"माँ, तू बहुत सुंदर लग रही है" कहने के साथ ही गाल को चूम लिया।
"रहने दे, बस मेरा मन रखने के लिए बोल रहा है" सीता ने नखरा दीखाया।
"सच माँ, आज तू एक परी जैसी लग रही है" सीता के चेहरे की मुशकुराहट फैल गयी। उसे पता था उसका बेटा दिल से बोल रहा है।
"पर अभी कमी है माँ" शामु अपनी माँ का पेट सहलाने लगा।
"अब क्या कमी रह गयी। पहन तो लिया मैने तेरा ये घाघरा और चोली" सीता की मुशकुराट नटखट थी। पर शामु ने कोई जवाब देने की बजाय अपनी जेब से तगड़ी निकली। उसके मनको की आवाज घर मे फैल गयी। फिर शामु ने तगड़ी के दोनों छोर पकडे और फैलाकर अपनी माँ की कमर पर बाँध दी। दोनों छोर मिलते ही शामु ने अपनी उंगली से तगड़ी की लंबाई नापी जिसमे तगड़ी के साथ साथ उसकी उंगली सीता के पूरे पेट और कमर पर फिर गयी। सीता के शरीर मे झुरझुराहट उत्पन्न हुई। उसका मन नये नये अरमान पैदा कर रहा था। जेसे उसने अपने आपको अपने बेटे के नाम कर दिया हो। जेसे उसका बेटा ही अब उसका मालिक बन गया हो।
पर फिर भी वह रोटिया बनाती रही। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया मे उसकी रोटीयों की आकृति बिगड़ रही थी। जब शामु ने देखा कि उसकी माँ अभी भी अपने काम मे लगी हुई है तो उसने गैस बंद कर दी।
"क्या कर रहा है? बहुत काम पड़ा है"
"काम होता रहेगा माँ, तू आ मेरे साथ" और सीता का हाथ पकड़ कर अपने कमरे मे ले गया। फिर अपने कमरे मे लगे आदमकद शिशे के सामने सीता को खड़ा कर दिया और खुद सीता के पिछे उसी अवस्था मे खड़ा हो गया जेसे अभी रसोई मे खड़ा था।
"देख माँ, मैं ना कहता हुँ तू परी जैसी लग रही है" सीता लगातार मुशकुरा रही थी।
"हर बेटे को अपनी माँ खूबसूरत लगती है बावले"
"पर तू सबसे सुंदर है माँ, ये तगड़ी देख, कितनी किस्मत वाली है" शामु ने तगड़ी के मनकों को छेड़ते हुए कहा।
"वो क्यू भला?" सीता ने शामु के हाथ को थामा और अपने हाथ को शामु के हाथ के साथ मनकों पर चलाने लगी।
"तेरी कमर पर बंधी है इसलिए" सीता शर्मा गयी।
" बस कर, और कितनी तारीफ करेगा रे"
"एक कमी रह गयी है अभी माँ"
"अब क्या रह गया?" सीता को पता था शामु पायल की बात कर रहा है, पर आज वह उसके अनुसार ही चल रही थी।
"तेरे पैर सुने है माँ" बोलकर शामु ने पायल निकाली और जमीन पर एक घुटने के बल बैठा और एक घुटना अपनी माँ के सामने कर दिया। सीता फिर से मुशकुरा उठी। किसी काले जादू की तरह उसका पाँव अपने आप उठा और शामु के घुटने पर टिक गया। घाघरा, पैर उठने के कारन थोड़ा और उपर खिसक गया और आधी जांघ दिखने लगी। शामु ने कोई जल्दी नही की। सीता भी बस मुशकुरा रही थी। उसे कोई समस्या नही थी कि उसका अपना बेटा उसकी नंगी जांघ देख सकता था। शामु ने घाघरे के अंतिम छोर से अपने हाथ से अपनी माँ का पैर सहलाके देखा और फिर सीता के घुटने पर चूम लिया। सीता को हसी आयी।
"बावाला"
फिर शामु ने पायल दोनों हाथो से पकडी और पहना दी। पायल पहनाने के बाद उसने सीता के पैर के तलवे के निचे हाथ लगाकर उसे उपर उठाया और पैर चूम लिए। सीता से रहा नही गया और उसने शामु को दोनों बाजुओ से पकड़ कर उपर उठाया। फिर उसकी बांहो मे समा गयी। सीता की बांहै शामु के कंधो से होकर जा रही थी और शामु ने अपनी माँ को कमर से कस रखा था। दोनों के बीच हवा की भी दूरी नही थी। सीता का चेहरा शामु के सिने पर था और शामु के होठ अपनी माँ के सर पर टिके हुए थे। गले लगे लगे ही सीता बोली
"तू मुझे एसे ही प्यार करना हमेसा"
शामु ने दोनों हाथो से सीता का चेहरा थामा और उसकी आँखो मे देखकर बोला
"माँ, तू तो मेरा सब कुछ है, मैं तुझे हमेसा एसे ही प्यार करूँगा"
सीता ने खुशी मे शामु का चेहरा अपने हाथो मे लिया और अपने सुर्ख होठो से उसके गाल चूम लिए। फिर शामु ने भी अपनी माँ के बांये गाल पर चुंबन रशीद कीया और जब दांये गाल की बारी आयी तो उस फुले हुए गाल को अपने मुँह मे भर लिया और 'पक' की आवाज के साथ छोड़ा। कमरे मे सीता की हंसी गूंज उठी।
 

Maniac1100

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