• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,706
259
Last edited:

nain11ster

Prime
23,612
80,706
259
भाग:–183


महा कहीं दूर बैठी थी जब उसे आभाष हुआ की आर्यमणि की जान खतरे में है और उसके अगले ही पल महा अपने पति के नजदीक थी। हैरतअंगेज नजारा था। महा के ऊपर भी हमला होता उस से पहले ही महा अपने कलाई पर बंधे छोटे से धनुष को जैसे ही अपने हथेली में ली वह पूरा आकर में आ गया और बिना कोई वक्त गवाए महा ने धनुष को नमन कर उसके धागे को खींच दिया।

जैसे ही धागा को खींचा गया असंख्य तीर हवा में गोल–गोल चक्कर काटते हुये हर विंडिगो के सीने में घुसकर ह्रदय को चीड़ देते और वह मरकर नीचे गिर जाते। हां लेकिन जो आगे हुआ वह महा को भी अचरज में डाल गया। उस जगह में कौन सा और कैसा तिलिस्म था वह महा को भी नही पता। लेकिन विंडिगो की जितनी लाशें गिरी थी उसके दोगुना विंडिगो कोने–कोने से निकल रहे थे।

इस से पहले की वह हमला करते महा ने एक बार फिर धनुष की डोर को खींच दिया और देखते ही देखते बाहर निकले सारे विंडिगो पूर्ण रूप से निकलने से पहले ही मर चुके थे। परंतु यह जगह वाकई में जैसे जान लेने के लिये बनाई गयी थी। जितने मरे फिर से उसका 2 गुना खड़ा हो गया। यह आखरी हमला था जो महा अपने धनुष से कर सकती थी। उसने धनुष को एक बार फिर नमन किया और इस बार जब धागा खींची तब सभी विंडिगो उस जगह की दीवार से ऐसे चिपके थे मानो विंडिगो का पंडाल बना दिया हो। एक के ऊपर एक, किसी के कंधे में तीर लगा हुआ था तो किसी के पाऊं में और सभी जाकर दीवार से चिपके हुये थे।

शायद महा का दिमाग काम कर गया था। इस बार किसी भी विंडिगो को नही मारी तो उनकी जगह कोई और आया भी नही। पूरी जगह अजीब से चींखों से गूंज रही थी। कुछ देर बाद जब आर्यमणि की आंख खुली तब वह मंद–मंद मुस्कुरा रहा था।। आर्यमणि का मुस्कुराना महा के लिये किसी तेजाब से कम न था, जो पल में ही अंतरमन को जला दिया। कुछ बोली तो नही लेकिन अगले ही पल पाऊं के नीचे की बर्फ पूरी धंस गयी और दोनो पानी के अंदर थे।

पानी के अंदर जब काफी गहराइयों में दोनो पहुंचे तब आर्यमणि ने महा को ऊपर देखने के लिये कहा। जब महा ऊपर देखी तब उसके लिये आज का एक और अचंभा सामने था.... “पतिदेव ये क्या मकरजाल प्रतिबिंब पानी में दिख रहा। ऐसा लग रहा है प्रतिबिंब पानी के एक किलोमीटर अंदर तक घुसा है। ये कैसे संभव है?”

आर्यमणि:– किसकी रचना है ये। तुम जो देख रही हो वो कोई मकर जाल नही है बल्कि इंसानी दिमाग का ढांचा तुम्हे दिख रहा है। ये ढांचा कोई प्रतिबिंब नही बल्कि विपरीत दुनिया में बनी ढांचा है जिसकी रूप रेखा पानी में दिख रही है।

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं। इतना बड़ा इंसानी दिमाग किसका है? ये विपरीत दुनिया क्या है? और वो मेरे हुये शरीर वाले जीव कौन थे? आप उन जीवों के बीच फंसे थे फिर भी कहां ध्यान लगाकर गुम हो गये थे?

आर्यमणि:– अरे रुको–रुको इतने सारे सवाल एक साथ पूछ ली। ऊपर जो तुमने देखा था वो विंडिगो सुपरनैचुरल थे। और ये जो मस्तिस्क की रचना तुम देख रही हो, वह मूल दुनिया जिसमे हम रहते हैं, वह आईने का एक भाग है जिसका प्रतिबिंब विपरीत दुनिया है। उसी विपरीत दुनिया में यह मस्तिष्क बना हुआ है जिसका रूप रेखा पानी के अंदर दिख रही है। हो ना हो हम जिस जगह खड़े थे वह भी किसी मस्तिष्क संरचना में खड़े थे जहां मेरी बहुत सी सिद्धि काम न आयी।

महा:– पर ये इतनी बड़ी मस्तिष्क की रचना यहां क्यों बनाई हुई है?

आर्यमणि:– इसे बाद में समझते हैं, फिलहाल हम ऊपर सतह पर जायेंगे। और ये तुम्हे कौन सी सिद्धि मिली है कि तुम मेरे पीछे कहीं भी चली आती हो।

महा, आर्यमणि को आंखे दिखाती..... “पतिदेव ऐसे नही बात किजिए जैसे मैं आपके गले पड़ी हूं। मुझे जब–जब आभाष होगा आप खतरे में है, मैं बिना कुछ सोचे आपके पास पहुंच जाऊंगी”...

बात करते हुये दोनो सतह पर पहुंच चुके थे। पैट्रिक वहीं सीमा पर बैठा आर्यमणि का इंतजार कर रहा था। आर्यमणि के साथ महा को आते देख.... “गये थे एक आ रहे हो दो। ये कैसा चमत्कार है?”..

आर्यमणि:– इसे चमत्कार नही प्यार कहते है पैट्रिक।

पैट्रिक:– तुम्हे जिंदा देख खुशी हुई। तुम दोनो का प्यार लंबा चले। तो हो गया? जो करने गये थे उसमे कामयाबी मिल गयी?

आर्यमणि:– सोचा तो था कामयाब रहूंगा लेकिन जिन दुश्मनों से लड़ने का सोचकर गया था, वो लोग वहां नही थे, बल्कि वहां तो अलग ही रायता फैला है।

पैट्रिक:– कैसा रायता?

आर्यमणि:– फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा। अभी हमे यहां से चलना चाहिए।

इस बार जाने का सबसे तेज मध्यम लिया। तीनो ही अंतर्ध्यान होकर उसी पॉइंट पर पहुंचे जहां आर्यमणि और पैट्रिक मिले थे। यूं तो पैट्रिक विस्तार से इस अंतर्ध्यान की सिद्धि के बारे में सुनना चाहता था किंतु आर्यमणि उसे संछिप्त विवरण करने के बाद वापस से अपने 1 लाख ढाल के विषय में बात करने लगा।

पैट्रिक आर्यमणि की बात मानकर एक लाख ढाल बनाने के लिये राजी हो गया। बदले में केवल उसने अपनी कीमत में तरह–तरह के पेड़ पूरे प्रदेश में मांग लिया, जो वह बर्फ के नीचे की भूमि पर कृत्रिम तरीके से बड़ा नही कर सकते थे। आर्यमणि पहले तो न नुकुड़ किया बाद में महा के समझाने पर आर्यमणि ने बिग फूट के पूरे प्रदेश में कई दुर्लभ पेड़ एक बार में उगा दिया। पैट्रिक तो आर्यमणि को उसी वक्त नमन कर लिया।

एक लाख ढाल की डिलेवरी 8 दिन बाद की थी। हां लेकिन जब आर्यमणि, पैट्रिक से विदा ले रहा था तब पैट्रिक ने उसे एक छोटा सा यंत्र दिया। यह यंत्र पत्थर के 2 मानकों पर काम करता था। पहला कोई पत्थर यदि ग्रहों की दिशा को बदल सकता है, तब यह यंत्र सूचित कर देती। दूसरा मानक था पत्थर का नकारात्मक सूचक। आर्यमणि अपना तोहफा उठाया और महा के साथ अंतर्ध्यान हो गया।

एक बार फिर आर्यमणि लंबी सी महफिल में था, जहां उसने सबको खुशखबरी देते हुये बता दिया की एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल 8 दिन में मिल जायेगा। जब तक इन 8 दिनो में भूमि के मन मुताबिक हथियार को तैयार करना था। खैर हथियार का प्रोडक्शन शुरू करने में कोई परेशानी थी नही। उसे तो गैर कानूनी तरीके से अपने ही एम्यूनेशन फैक्ट्री में करवा लिया जाता।सबसे बड़ी चुनौती थी वैसा हथियार डिजाइन करने से लेकर तैयार करके सफल परीक्षण कर लेना।

आर्यमणि अपने हाथ खड़े कर चुका था, क्योंकि वह इसका एक्सपर्ट नही था। माधव और चित्रा ने हथियार डिजाइन करने की जिम्मेदारी उठाई। हथियार का परफेक्ट ढांचा तैयार करने की जिम्मेदारी महा ने उठा लिया।जरूरत एक आईटी प्रोफेशनल की थी, जो हथियार में मनचाहा कमांड सेट कर सके। आर्यमणि के लिये यह कोई बड़ा काम नही था, एक कमाल के आईटी प्रोफेशनल को आर्यमणि जानता था, जो इस वक्त लगभग अंडरग्राउंड थी। बिना कोई देर किये आर्यमणि उन सबके बीच अपस्यु की पत्नी ऐमी को ले आया।

हालांकि ऐमी पुराने अल्फा पैक से काफी घुली मिली थी, लेकिन अभी के माहौल में वह केवल पलक को जानती थी, जिसके साथ वह एक साल के करीब रही थी। आर्यमणि ऐमी को उन सबके बीच बिठा दिया। लगभग सारा काम बांटकर आर्यमणि एक शांत कमरे में पहुंचा और वहां से ध्यान लगाना शुरू किया।

आर्यमणि जब ध्यान लगाना शुरू किया। आज उसे पता था कि वह कहां से ध्यान लगाना शुरू करेगा। आर्यमणि पूर्ण ध्यान में खोया था। देखते–देखते वह अनंत गहराई में गया। वहां से फिर अंटार्टिका के उस मस्तिष्क संरचना में पहुंचा जहां से उसे रूही की आवाज सुनाई दी थी।

अनंत गहराइयों के नीचे काले अंधेरे सायों के बीच बसी एक दुनिया। चारो ओर का ऐसा माहौल मानो मनहुसियत ने चारो ओर अपना डेरा जमा लिया हो। खंडहर और पहाड़ों की दुनिया। चिलचिलाते धूप में बड़े–बड़े शिकारी चिड़िया आकाश में मंडराते। कुल मिलाकर विचलित करने वाली जगह। चारो ओर की पूरी झलक लेने के बाद आर्यमणि को पता था कि उसे कहां जाना है।

आर्यमणि उसी क्षण अंतर्ध्यान होकर सीधा पाताल लोक के भू–भाग पहुंचा। नभीमन अपना उत्तराधिकारी चुनने के बाद अपनी सेवा यहां के जीव जंतु को दे रहा था। आर्यमणि को एक दम से सामने प्रकट होते देख नाभिमन मुस्कुराते हुये उसका स्वागत किया.... “आओ गुरुदेव आओ। मेरी याद खींच लायी या किसी काम से आये हो?”..

आर्यमणि:– एक जरूरी काम करना था और उसी दौरान आपकी याद आ गयी।

नाभीमन:– बहुत खूब तो ऐसी क्या बात हो गयी जो हमारी याद तुम्हे इतनी दूर खींच लायी...

आर्यमणि:– मेरा पैक, जो इसी भू–भाग से कहीं खो गया था?

नाभिमन:– जहां तक मुझे पता है कि तुम्हारा पैक समाप्त हो गया था। अब ये मत कहना की इस पूरे भू–भाग पर तुमने मायाजाल फैलाया था।

आर्यमणि:– पूर्व महाराज आप जिसे मायाजाल समझ रहे है, वह एक सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार था। उसे मैने नही बल्कि इस क्षेत्र का एक प्रतिबंधित तांत्रिक ने वह मायाजाल फैलाया था।

नाभिमन:– हां उस प्रतिबंधित तांत्रिक के दादा–परदादा को मैं जानता था। उसकी तांत्रिक महासभा को मेरे पिताजी ने ही तो प्रतिबंधित किया था। जो मै नही जानता हूं वो बताओ। ये सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार क्या है?

आर्यमणि पूर्ण विस्तार से इस पर चर्चा करने के बाद अपनी मनसा जाहिर करते हुये कहने लगा.... “आपके पाताल लोक में एक बहुत बड़ा पंछी है। उसके पंख के बीच में जगह–जगह छेद है। अपने चंगुल में वह हाथी को भी दबोच ले। उन्ही पंछियों का जहां बसेरा है, वहीं मेरा पैक है। उन्हे तो खो ही चुका हूं, कम से कम उनके शरीर से दुष्ट आत्मा के मुक्त करवाकर उनका अंतिम संस्कार ही कर दूं”

नाभीमन:– “आर्य तुम विपरीत दुनिया जाने की बात कर रहे हो। पर इसमें मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। वो पंछी विपरीत दुनिया से पाताल लोक लाये जरूर गये थे, लेकिन जिन्होंने ये काम किया उन्होंने कभी किसी से इस बात की चर्चा नही की कैसे इन्हे विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था।”

“जहां तक मुझे पता है इन 2 दुनिया के बीच केवल वो महाजनिका ही थी जो टेलीपोर्ट कर सकती थी, जिसका राज भी तुमने खोल दिया। या तो तुम उसी की तरह कोई द्वार खोल लो या फिर कोई और उपाय ढूंढो। हम्म... उपाय... उपाय... उपाय”

आर्यमणि:– क्या हुआ आप यूं उपाय पर क्यों अटक गये?

नभीमन:– शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।एक काम करो जबतक तुम गुरुयन प्लेनेट से लौटो तब तक मैं विपरीत दुनिया में जाने के उपाय ढूंढता हूं?

आर्यमणि:– क्या कोई ऐसा उपाय है क्या?

नभीमन:– हां उपाय तो है, परंतु उसके लिये कुछ जरूरत के दुर्लभ समान लगेंगे, जिसे ढूंढने में काफी वक्त लगेगा। और कुछ जानकार लोगों को भी अपहरण कर यहां लाना होगा। तब कहीं जाकर उम्मीद है कि मैं तुम्हे विपरीत दुनिया में जाने का एक सरल उपाय बता सकूं।

आर्यमणि:– “जानते हो आप, अभी जितनी अमेया मुझे प्यारी है, उस से कहीं ज्यादा मुझे अलबेली और इवान प्यारे थे। दोनो ही मेरे बच्चे समान थे। कैसा लगेगा जब कोई अपने बच्चे को अपने आंखों के सामने मरते देखे। अपनी प्यारी पत्नी को अपने आंखों के सामने मरते देखे। बदले की आग में जल रहा हो पर उस से ज्यादा अभागा कौन होगा जो अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार तो नही कर पाया।”

“और कितना मैं अपनी बेबसी की कहानी बताऊं। सबसे घोर विडंबना तो यह है कि मेरी रूही, इवान और अलबेली के शरीर में किसी दुष्ट आत्मा का वाश है। जब भी मैं ये बात सोचता हूं मेरा खून खौल जाता है। मेरा बस चले तो मैं अभी अपने परिवार के शरीर से हर दुष्ट आत्मा को बाहर निकाल उनके शरीर का दाह–संस्कार करूंगा। ऐसे में एक उम्मीद की किरण दिखी और आप चाहते है कि मैं पहले सारा जहां घूम आऊं और बाद में अपने परिवार के पास पहुंचूं।”

नाभिम:– “पूरी श्रृष्टि अपने नियम अनुसार चलती है। जल्दबाजी में हम कुछ भी नही कर सकते आर्य। तुम पहले भी देख चुके हो की यदि विपरीत दुनिया का द्वार इंच इतना भी खुला रह गया तो वहां से कितनी तबाही मूल दुनिया में आ सकती है। मुझे पहले कभी विपरीत दुनिया का ख्याल तक नही आया इसलिए अब तक वहां जाने के रास्तों के विषय में कभी खोज नही किया।”

“आज तुम्हारी वजह जानकर समझ में आया की तुम्हारा वहां जाना कितना जरूरी है। इसलिए दिमाग में आये उस उपाय पर पूरे शोध करने का विचार कर रहा हूं। यदि मुझे तुम्हारी भावना का आभाष न होता तो मैं साफ मना कर चुका होता। आर्य मुझ पर दवाब न बनाओ। तुम अपना काम करके लौटो जबतक मैं उपाय पर काम करता हूं।”

आर्यमणि:– हम्मम... आप सही है। मुझे धैर्य रखना होगा। ठीक है आप उपाय पर काम कीजिए, जब तक मैं उन नलायकों पर नकेल कस आता हूं जो न जाने कितने वर्षों से पृथ्वी को मात्र अपना प्रजनन स्थान समझ रखा था और यहां पर बसने वालों को महज कीड़े–मकोड़ों से ज्यादा न कुछ समझा।

 

nain11ster

Prime
23,612
80,706
259
भाग:–184


नभीमन:– तुम यशस्वी रहो। आर्य एक मेरी भी गुजारिश है। जितनी भावना तुम्हे अपने परिवार के लिये उतनी ही भावना मुझे अपने साम्राज्य के खोए गौरव का है, जिसका दोषी मैं ही था। तुम मेरी बात समझ रहे हो ना...

आर्यमणि:– हां मैं समझ रहा हूं महाराज। मेरा वादा है आपसे की आपके साम्राज्य के गौरव को वापस लाने की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। तब तक आप भी धैर्य बनाए रखिए और देह त्याग नही कीजिएगा...

नभीमन:– तुमने बोल दिया तो अब मैं युगों तक इंतजार करता रहूंगा। बस वो मेरा आखरी दिन होगा जब मैं नाग दंश को वापस अपने साम्राज्य में आते देखूंगा।

नभीमन अपनी बात कहते भावना विभोर हो गया। आर्यमणि ने उसके आंसू पोछे। दोनो के बीच थोड़ी और औपचारिक बातें हुई। अपने पिटारे नभीमन ने आर्यमणि को कुछ और उपहार दिये। आर्यमणि उन उपहारों को देख खुश हो गया। आर्यमणि वहां से वापस न लौटकर सीधा महासागर के तल में योगियों के प्रदेश पहुंचा। एक बार फिर ध्यान पर बैठने से पहले अल्फा पैक तक सूचना पहुंचा दिया की जब चलने के लिये तैयार हो जाओ, सूचना कर देना। आर्यमणि वहां अपनी साधना पर बैठा और इधर अल्फा पैक के सदस्य गुरियन प्लेनेट पर जाने की तैयारी में जोड़ों से जुट गये।

अल्फा पैक और सहयोगी दिन रात एक करके कई तरह के हथियार पर काम कर रहे थे। महा एक कुशल रणनीतिज्ञ थी जिसने हथियारों के हिसाब से अपने सेना की सजावट की योजना बना चुकी थी। हथियार डिजाइन करने से लेकर ऑटोमेटिक कमांड सेट करने में लगभग 8 दिन लग गये। बृहत पैमाने पर उन हथियारों को बनाने में अगला 5 दिन लग गया। चौदवे दिन सभी उड़ान भरने के लिये तैयार थे।

इसी बीच महा, पैट्रिक से एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल की डिलेवरी ले चुकी थी। पैट्रिक एक कदम आगे बढ़कर अपनी दोस्ती निभाते, न सिर्फ एक करोड़ रिफ्लेक्टर ढाल दिया बल्कि लेजर तथा अन्य भीषण किरणों से बचने के लिये उसने 4 लाख बुलेट प्रूफ और लेजर प्रूफ सूट भी भेंट स्वरूप दे दिया। पूछने पर पता चला की सेना के लिये उनके पास ऐसे सूट की कोई कमी नही थी।

वहीं चैत्र मास में 11 दिन तक आर्यमणि ने देवी दुर्गा की साधना की थी। अपनी साधना से उठने के बाद उसने देवी दुर्गा की चरणों से गीली मिट्टी का विशाल भंडार उठाया और अंतर्ध्यान होकर सीधा नाग–लोक के भू–भाग पहुंचा। वहां उसने शेर माटुका और उसके परिवार से मिलकर इशारों में उसने अपनी योजना समझा दिया।

शेर माटुका सर झुकाकर पहले तो मिट्टी के सामने मानो नमन किया हो फिर ऊंची और लंबी दहाड़ के साथ उसने आर्यमणि के साथ जैसे युद्ध लड़ने की घोषणा कर दिया हो। शेर मटुका को लेकर आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर सीधा एक बड़े से अंतरिक्ष विमान में पहुंचा। आर्यमणि पहली बार किसी अंतरिक्ष विमान में था। जगह मांग के हिसाब से भी कहीं ज्यादा बड़ी थी। इतनी बड़ी की आराम से उसपर 10 हजार लाख सैनिक सवार हो जाते।

आर्यमणि साधना पर बैठने से पहले ही अपस्यु से संपर्क कर चुका था। आर्यमणि ने जैसा बताया था बिलकुल एक हिस्सा उसी हिसाब से कर दिया गया था। पूर्णतः शुद्ध, पूर्णतः अभिमंत्रित और हवन–यज्ञ के पूर्ण समान के साथ। आर्यमणि जैसे ही उस हिस्से में पहुंचा, सही दिशा और सही स्थान का चुनाव करके अपने साथ लाये मिट्टी को वहां रख दिया।

उस स्थान पर पहले से ही देवी दुर्गा की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित थी, जिसके चरणों में बैठकर आर्यमणि उन मिट्टी से छोटे–छोटे शेर का निर्माण करने लगा। 11 दिन की साधना और 2 दिन तक मिट्टी के शेर के निर्माण करने के बाद आर्यमणि भी चौदहवे दिन उड़ान भरने के लिये तैयार था।

सुबह–सुबह ही पूरा अल्फा पैक और उनके सहयोगियों को लेकर ऋषि शिवम उस विमान तक पहुंच चुके थे। आर्यमणि खुद बाहर आकर सबका स्वागत किया और सुबह के 9 बजे उनका विमान उड़ान भर चुकी थी। विमान को कैसे चलाना है उसका प्रशिक्षण पिछले 13 दिनो से चल रहा था। महा के कुशल पायलट 4 दिन में ही विमान उड़ाने की पूरी बारीकियों को एलियन से सिख चुके थे और एक साथ 21 विमान ढाई लाख सैनिक, तरह–तरह के हथियार और विस्फोटक के साथ उड़ान भर चुकी थी।

अंतरिक्ष की सीमा में घुसते ही पूरा अल्फा पैक अपने सभी सहयोगियों के साथ बड़े से राउंड टेबल पर बैठा था। सभी आपस में बात कर रहे थे। कुछ लोग पहली बार किसी युद्ध में हिस्सा ले रहे थे इसलिए उत्साहित भी उतना ज्यादा थे। सबके उत्साह और आपस के बातचीत को शांत करते हुये आर्यमणि उन सबके बीच बैठा।

आर्यमणि:– हम किस प्रकार के दुश्मन और किन हालातों का सामना करने जा रहे हैं, उसपर पहले ही चर्चा हो चुकी है। अभी हम इसलिए बैठे हैं ताकि एक जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाला उनका हथियार है, हाइबर मेटल से बने आर्मर, उन्हे कैसे भेदा जाये। उम्मीद है इस पर कोई न कोई नतीजा निकल आया होगा।

पलक:– मेरे पास कुछ हाइबर धातु थे, उन पर हर किसी ने प्रयोग करके देख लिया। यहां तक की उसे सात्त्विक आश्रम भी ले गये लेकिन वहां से भी परिणाम वही निकला, इस धातु को किसी भी विधि तोड़ा नही जा सकता।

आर्यमणि:– और मंत्रों का असर। यदि कोई व्यक्ति आर्मर पहना हो तो क्या मंत्र उन पर असर करेगी?

ओजल:– नही बॉस, यदि आर्मर के पीछे कोई छिपा है तो मंत्र उसपर असर नही करती। हां लेकिन शरीर का जो भाग हाइबर मेटल के बाहर होगा उन पर मंत्र असर तो करेगी किंतु कुछ हाइबर मेटल के कारण बेअसर हो जायेगी।

आर्यमणि:– क्या ये धातु अपने आप अभिमंत्रित हो जाती है, जिसपर किसी भी प्रकार का मंत्र का काट अपने आप मिल जाता है।

ओजल:– हां ऐसा ही कुछ समझ लीजिए। यह धातु अपने आप में अलौकिक है। महाभारत में कर्ण के कवच का उल्लेख मिलता है, जिसे सूर्यदेव ने दिया था, वह कवच इसी धातु की बनी हुई थी। यह हाइबर धातु सदियों से सूर्यदेव की अग्नि में तपकर तैयार होता है, इसलिए इसका स्वरूप ऐसा है।

महा:– क्या मैं वरुण देवता को नमन कर एक बार इस धातु को नष्ट करने की कोशिश करूं क्या?

आर्यमणि, अजीब सी नजरों से घूरते.... “हां–हां कर लो कोशिश।”

महा:– ऐ जी ऐसे हीन नजरों से घुरकर क्यों कह रहे?

आर्यमणि:– पहले तुम अपना काम तो कर लो, फिर मैं अपनी नजरों का कारण भी बताता हूं।

महा ने अपने सर के जुड़े से एक छोटा सा पिन निकाली। जैसे ही उस छोटे से पिन को अपने हथेली पर रखी वह बड़ा सा दंश में तब्दील हो गया। महा के इस कारनामे पर ओजल बिना कहे रह नही पायी..... “दीदी कितने गुप्त हथियार अपने बदन में छिपा रखी हो?”.... ओजल के इस सवाल पर महा प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे देखी और पाने काम में लग गयी।

वरुण देव को नमन करने के बाद महा ने अपना दंश चलाया। दंश हाइबर मेटल पर चला और अलार्म विमान का बजने लगा। दरअसल दंश से निकला कण हाइबर मेटल से टकराकर ऊपर के ओर विस्थापित हो गयी और सीधा जाकर विमान के छत से टकरा गयी। टकराने के साथ ही छोटा सा विस्फोट हुआ और विमान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया।

क्षति तो क्षति थी। इंजीनियर्स ने विमान का मुआयना किया और उसे ठीक करके चले गये। वहीं महा पूरी सभा से माफी मांगी। प्रयोग करने के लिये अलग से एक बड़े कमरे का निर्माण किया गया। महा एक बार फिर तैयार थी। बिना रुके फिर कोशिश चलती रही। अल्फा पैक और उनके सहायकों के लिये यह पहला मौका था जब वह महासागर के योद्धा को उसका दंश इस्तमाल करते हुये देख रहे थे।

दंश से लगातार घातक प्रहार होते रहे। ऐसे–ऐसे प्रहार जिसे देख सब आश्चर्यचकित थे। किंतु एक भी प्रहार सफलतापूर्वक उस हाइबर मेटल को भेद नहीं पायी। महा अफसोस भरी नजरों से सबके ओर देखती..... “बताए पतिदेव आपने उस वक्त मुझे औछी नजरों से क्यों देखा था?”

आर्यमणि:– यह आश्चर्य था.... किसी वस्तु पर यदि सूर्य देव का आशीर्वाद है तो उसे तुम वरुणदेव की माया से नष्ट कर सकती हो। क्या सूर्य देव और वरुण देव के बीच कोई स्पर्धा चल रही थी?

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर उस मेटल के साथ कुछ प्रयोग करना चाहा। प्रयोग करने के लिये सबसे पहले पलक को बुलाया गया। हाईवर मेटल के पीछे आर्यमणि खड़ा हो गया और पलक को मेटल के ऊपर बिजली प्रवाहित करने के लिये कहा। पलक ने नपा तुला बिजली की धारा को प्रवाह किया।

हाइबर मेटल अपना चौकाने वाले गुण दिखा रहा था। हाइबर मेटल में किसी लकड़ी की भांति गुण थे। इसपर पड़ने वाला बिजली का प्रवाह फैलता ही नही था। किसी ढीठ की तरह यह हायबर मेटल आर्यमणि के लिये सरदर्द सा बन गया था। आलम यह था की हाइबर मेटल का कोई तोड़ नही निकला और मन में कसक लिये सभी अधूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ने लगे।

खैर इस बाधा से सभी अपना ध्यान हटाकर अंतरिक्ष के सफर का लुफ्त उठाने लगे। अब यहां देखने को तो पेड़, खेत या रास्ता तो था नही, सभी लोग अंतरिक्ष में तैर रहे बड़े–बड़े पहाड़नुमा उल्का पिंड को ही देख रहे थे। तकरीबन 4 दिन के सफर के बाद सभी विमान ‘लोका एयर स्टेशन’ पर रुके। अंतरिक्ष का यह मध्य हिस्सा था, जहां से 2 दिन के सफर के बाद सफर की मंजिल थी।

लोका एयर स्टेशन पर एक दिन के विश्राम के बाद अंतरिक्ष के मध्य हिस्से से विमान पश्चिमी हिस्से में बढ़ चली, जहां नायज़ो समुदाय के 2 ग्रह गुरियन और सिलफर प्लेनेट बसे थे। अंतरिक्ष के उसी क्षेत्र में एक वीरान ग्रह भी बसता था, जिसपर नायजो का आबादी बढ़ाओ क्रायक्रम की शुरवात हुई थी। आबादी बढ़ाने वाले 4–5 ग्रहों में से एक ग्रह यह भी था।

इस ग्रह पर पिछले सकड़ों वर्षों से नयजो काम कर रहे थे। यहां उन्होंने जीवन को अनुकूल बनाया। वीरान से इस ग्रह को पूरा जंगलों से ढक दिया। जीवन बसने के अनुकूल सभी पारिस्थिक तंत्र को स्थापित करने के बाद नायजो सकडों वर्ष तक केवल प्रतीक्षा में रहे। मौसम के चक्र को पूरा विकसित होने दिया। ग्रीन हाउस गैस को खुद से विकसित होने के लिये छोड़ दिया गया। जब यह सुनिश्चित हो गया की अब यहां की प्रकृति पूर्ण रूप से जीवन संजोने योग्य हो चुकी है तब कहीं जाकर नायजो समुदाय ने अपने लोग यहां भेजे।

नई अल्फा पैक और उसके सहायक सभी वीरान से इस टापू पर रुके जिसका नाम करेभू था। करेभु ग्रह पर यूं तो कई करोड़ नायजो स्त्रियां प्रजनन के लिये पहले से पहुंच चुकी थी। ग्रह पर सुरक्षा इंतजाम भी काफी थे। किंतु वो सब इंतजाम बस उन खास हिस्सों में थे, जहां पर आबादी बसी हुई थी।

जंगल के बहुत सारे हिस्सों में भी कई अजीब तरह के दैत्य और खूंखार जानवरों से भरा पड़ा था। किंतु पूरा पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से काम करने के लिये ग्रह के एक बड़े से हिस्से में रेगिस्तान और बंजर पहाड़ियों की श्रृंखला को छोड़ दिया गया था, जहां वीरान से इस टापू पर बसने वाले खतरनाक कीड़े और जानवर, सिकुड़ी सी इस जगह में रहने के लिये विवश थे।

आर्यमणि का काफिला भी उन्ही क्षेत्रों में उतरा। हां लेकिन उनके उतरने से लेकर रहने तक का पूरा इंतजाम पहले से कर दिया गया था। इस जगह पर लैंड करने से पहले आर्यमणि इस ग्रह को एक झलक देख चुका था और इसकी एक झलक ने ही उसका मन मोह लिया था।

विमान जमीन पर उतरा। उसकी सीढियां नीचे तक आयी। आर्यमणि सबसे आगे और उनके पीछे नई अल्फा टीम और उनके सहायक कतार में उतरने के लिये खड़े हो गये। आर्यमणि जैसे ही विमान से बाहर आया दोनो बांह फैलाए एक अनजाना चेहरा उनका स्वागत कर रहा था। आर्यमणि के ठीक पीछे उसकी पत्नी और महासागर की राजकुमारी महा थी। जिसकी एक झलक मिलते ही उस अनजान शक्स के पीछे खड़े लाखो की भीड़ एक साथ आवाज लगाकर महा की जय जयकार करने लगे।

महा, आर्यमणि के पीछे खड़े रहकर ही अपने दोनो हाथ ऊपर उठाती सबको शांत होकर अपने जगह बैठने का इशारा कर दी। महा का इस गर्मजोशी से स्वागत करने वाले और कोई नही बल्कि महा के कुशल सैनिक थे, जिनकी संख्या 5 लाख थी। यूं तो महा ने सैनिकों की संख्या कुछ और रखी थी परंतु महासागर के महाराज और महा के पिता विजयदर्थ ने अपने मन मुताबिक 5 लाख सैनिक को भेज दिया था।

आर्यमणि अपना गर्दन थोड़ा पीछे घुमाकर महा को घूरते..... “सारी वाह वाही अपने लिये बटोर ली। मैं तुम्हारा पति हूं इन लोगों को पता है ना?”

महा, प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती..... “पतिदेव मेरे साथी जो मेरा सम्मान कर रहे है उसे मैने कमाया है। आपको भी वो सम्मान कामना होगा। महज मेरे पति होने से ये लोग सम्मान नही करने वाले।”..

बातें करते हुये जब तक दोनो बाहर चले आये थे। आर्यमणि और महा के ठीक पीछे ओजल और निशांत थे। बाकी सभी को एक इशारा मिला और वो लोग विमान से नीचे नही उतरे। इधर वो अनजाना चेहरे वाला शक्स महा की बातों का समर्थन करते हुये कहने लगा.... “बहुत खूब कहा है आपने।”

महा:– आप कौन...

जैसे ही महा का यह सवाल आया वह आदमी अपने चेहरे को अजीब ही तरह से बदला। ऐसा लगा जैसे चेहरे का पूरा सिस्टम ही ऊपर–नीचे हो गया और वह शक्स कोई और नही बल्कि गुरियन ग्रह का मुखौटे वाला राजा करेनाराय था। आर्यमणि उसे देखकर थोड़ा सा हैरान होते या फिर हैरान होने का नाटक करते.... “करेनाराय तुम!!!!”

करेनाराय:– हां भेड़िया राजा। मैने सोचा आप जैसे महान भेड़िया राजा के स्वागत में मैं नही खड़ा रहा फिर थू है मेरी ज़िंदगी पर।

आर्यमणि:– हां लेकिन ऐसे रूप बदल कर आने की क्या आवश्यकता थी?

करेनाराय:– गुरियन प्लेनेट का असली शासक मसेदश क्वॉस और उसका चमचा सेनापति बिरजोली चप्पे चप्पे पर नजर रखे है। उन्हे पता है कि आपलोग पहले मुझसे मिलेंगे और उसके बाद विषपर प्लेनेट पर हमला करेंगे। इसलिए आपकी रणनीतियों को समझने कर लिये उन लोगों ने चप्पे–चप्पे पर नजर बनाए हुये है।

आर्यमणि:– तो क्या मैं यहीं से सीधा विषपर प्लेनेट निकल जाऊं?

करेनाराय:– अब किसी को मरने का इतना ही शौक है तो उन्हें मैं बिलकुल नहीं रोकूंगा। लेकिन क्या आप अपने सेना के बिना ही चले जायेंगे?

आर्यमणि:– मैं क्यों सेना के बिना चला जाऊं? मैं यहां से निकलता हूं, और तुम गुरियन प्लेनेट पहुंचकर मेरे सेना को विषपर प्लेनेट के लिये रवाना कर दो।

करेनाराय:– पूरे 5 करोड़ खूंखार लोगों को जो कैदियों के प्रदेश से भेजे थे, उन्हे मैने प्रशिक्षित कर दिया है। किंतु नायजो के पास बहुत सी ऐसी कलाएं है, जिनका तोड़ मुझे आपको बताना है। उस जानकारी को अब तक मैने उन 5 कड़ोड़ सैनिकों के साथ साझा नही किया। सोचा जब सब साथ होंगे तभी बताऊंगा। उम्मीद है पलक ने बहुत सी बातें बताई होगी। पलक ने आपसे तरह–तरह के हमले का वर्णन किया होगा। किंतु उन हमलों से न सिर्फ बचने के कारगर उपाय बल्कि पलटवार, और घातक कैसे हो उसकी पूरी जानकारी मेरे पास है।

करेनाराय की बात को सुनकर आर्यमणि खामोशी से खड़े होकर उसे एक टक देखे जा जा रहा था। करेनाराय अपनी ललाट ऊपर कर सवालिया नजरों से आर्यमणि को देख भी रहा था और उसके जवाब की प्रतीक्षा भी कर रहा था। लेकिन करेनाराय की प्रतीक्षा काफी लंबी हो गयी और आर्यमणि चुप चाप उसे एक टक देखे जा रहा था। करेनाराय से रहा नही गया और जिज्ञासावश उसने पूछ लिया.... “भेड़िया राजा कुछ तो कहो?”
 
Last edited:

Devilrudra

Active Member
514
1,420
123
भाग:–183


महा कहीं दूर बैठी थी जब उसे आभाष हुआ की आर्यमणि की जान खतरे में है और उसके अगले ही पल महा अपने पति के नजदीक थी। हैरतअंगेज नजारा था। महा के ऊपर भी हमला होता उस से पहले ही महा अपने कलाई पर बंधे छोटे से धनुष को जैसे ही अपने हथेली में ली वह पूरा आकर में आ गया और बिना कोई वक्त गवाए महा ने धनुष को नमन कर उसके धागे को खींच दिया।

जैसे ही धागा को खींचा गया असंख्य तीर हवा में गोल–गोल चक्कर काटते हुये हर विंडिगो के सीने में घुसकर ह्रदय को चीड़ देते और वह मरकर नीचे गिर जाते। हां लेकिन जो आगे हुआ वह महा को भी अचरज में डाल गया। उस जगह में कौन सा और कैसा तिलिस्म था वह महा को भी नही पता। लेकिन विंडिगो की जितनी लाशें गिरी थी उसके दोगुना विंडिगो कोने–कोने से निकल रहे थे।

इस से पहले की वह हमला करते महा ने एक बार फिर धनुष की डोर को खींच दिया और देखते ही देखते बाहर निकले सारे विंडिगो पूर्ण रूप से निकलने से पहले ही मर चुके थे। परंतु यह जगह वाकई में जैसे जान लेने के लिये बनाई गयी थी। जितने मरे फिर से उसका 2 गुना खड़ा हो गया। यह आखरी हमला था जो महा अपने धनुष से कर सकती थी। उसने धनुष को एक बार फिर नमन किया और इस बार जब धागा खींची तब सभी विंडिगो उस जगह की दीवार से ऐसे चिपके थे मानो विंडिगो का पंडाल बना दिया हो। एक के ऊपर एक, किसी के कंधे में तीर लगा हुआ था तो किसी के पाऊं में और सभी जाकर दीवार से चिपके हुये थे।

शायद महा का दिमाग काम कर गया था। इस बार किसी भी विंडिगो को नही मारी तो उनकी जगह कोई और आया भी नही। पूरी जगह अजीब से चींखों से गूंज रही थी। कुछ देर बाद जब आर्यमणि की आंख खुली तब वह मंद–मंद मुस्कुरा रहा था।। आर्यमणि का मुस्कुराना महा के लिये किसी तेजाब से कम न था, जो पल में ही अंतरमन को जला दिया। कुछ बोली तो नही लेकिन अगले ही पल पाऊं के नीचे की बर्फ पूरी धंस गयी और दोनो पानी के अंदर थे।

पानी के अंदर जब काफी गहराइयों में दोनो पहुंचे तब आर्यमणि ने महा को ऊपर देखने के लिये कहा। जब महा ऊपर देखी तब उसके लिये आज का एक और अचंभा सामने था.... “पतिदेव ये क्या मकरजाल प्रतिबिंब पानी में दिख रहा। ऐसा लग रहा है प्रतिबिंब पानी के एक किलोमीटर अंदर तक घुसा है। ये कैसे संभव है?”

आर्यमणि:– किसकी रचना है ये। तुम जो देख रही हो वो कोई मकर जाल नही है बल्कि इंसानी दिमाग का ढांचा तुम्हे दिख रहा है। ये ढांचा कोई प्रतिबिंब नही बल्कि विपरीत दुनिया में बनी ढांचा है जिसकी रूप रेखा पानी में दिख रही है।

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं। इतना बड़ा इंसानी दिमाग किसका है? ये विपरीत दुनिया क्या है? और वो मेरे हुये शरीर वाले जीव कौन थे? आप उन जीवों के बीच फंसे थे फिर भी कहां ध्यान लगाकर गुम हो गये थे?

आर्यमणि:– अरे रुको–रुको इतने सारे सवाल एक साथ पूछ ली। ऊपर जो तुमने देखा था वो विंडिगो सुपरनैचुरल थे। और ये जो मस्तिस्क की रचना तुम देख रही हो, वह मूल दुनिया जिसमे हम रहते हैं, वह आईने का एक भाग है जिसका प्रतिबिंब विपरीत दुनिया है। उसी विपरीत दुनिया में यह मस्तिष्क बना हुआ है जिसका रूप रेखा पानी के अंदर दिख रही है। हो ना हो हम जिस जगह खड़े थे वह भी किसी मस्तिष्क संरचना में खड़े थे जहां मेरी बहुत सी सिद्धि काम न आयी।

महा:– पर ये इतनी बड़ी मस्तिष्क की रचना यहां क्यों बनाई हुई है?

आर्यमणि:– इसे बाद में समझते हैं, फिलहाल हम ऊपर सतह पर जायेंगे। और ये तुम्हे कौन सी सिद्धि मिली है कि तुम मेरे पीछे कहीं भी चली आती हो।

महा, आर्यमणि को आंखे दिखाती..... “पतिदेव ऐसे नही बात किजिए जैसे मैं आपके गले पड़ी हूं। मुझे जब–जब आभाष होगा आप खतरे में है, मैं बिना कुछ सोचे आपके पास पहुंच जाऊंगी”...

बात करते हुये दोनो सतह पर पहुंच चुके थे। पैट्रिक वहीं सीमा पर बैठा आर्यमणि का इंतजार कर रहा था। आर्यमणि के साथ महा को आते देख.... “गये थे एक आ रहे हो दो। ये कैसा चमत्कार है?”..

आर्यमणि:– इसे चमत्कार नही प्यार कहते है पैट्रिक।

पैट्रिक:– तुम्हे जिंदा देख खुशी हुई। तुम दोनो का प्यार लंबा चले। तो हो गया? जो करने गये थे उसमे कामयाबी मिल गयी?

आर्यमणि:– सोचा तो था कामयाब रहूंगा लेकिन जिन दुश्मनों से लड़ने का सोचकर गया था, वो लोग वहां नही थे, बल्कि वहां तो अलग ही रायता फैला है।

पैट्रिक:– कैसा रायता?

आर्यमणि:– फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा। अभी हमे यहां से चलना चाहिए।

इस बार जाने का सबसे तेज मध्यम लिया। तीनो ही अंतर्ध्यान होकर उसी पॉइंट पर पहुंचे जहां आर्यमणि और पैट्रिक मिले थे। यूं तो पैट्रिक विस्तार से इस अंतर्ध्यान की सिद्धि के बारे में सुनना चाहता था किंतु आर्यमणि उसे संछिप्त विवरण करने के बाद वापस से अपने 1 लाख ढाल के विषय में बात करने लगा।

पैट्रिक आर्यमणि की बात मानकर एक लाख ढाल बनाने के लिये राजी हो गया। बदले में केवल उसने अपनी कीमत में तरह–तरह के पेड़ पूरे प्रदेश में मांग लिया, जो वह बर्फ के नीचे की भूमि पर कृत्रिम तरीके से बड़ा नही कर सकते थे। आर्यमणि पहले तो न नुकुड़ किया बाद में महा के समझाने पर आर्यमणि ने बिग फूट के पूरे प्रदेश में कई दुर्लभ पेड़ एक बार में उगा दिया। पैट्रिक तो आर्यमणि को उसी वक्त नमन कर लिया।

एक लाख ढाल की डिलेवरी 8 दिन बाद की थी। हां लेकिन जब आर्यमणि, पैट्रिक से विदा ले रहा था तब पैट्रिक ने उसे एक छोटा सा यंत्र दिया। यह यंत्र पत्थर के 2 मानकों पर काम करता था। पहला कोई पत्थर यदि ग्रहों की दिशा को बदल सकता है, तब यह यंत्र सूचित कर देती। दूसरा मानक था पत्थर का नकारात्मक सूचक। आर्यमणि अपना तोहफा उठाया और महा के साथ अंतर्ध्यान हो गया।

एक बार फिर आर्यमणि लंबी सी महफिल में था, जहां उसने सबको खुशखबरी देते हुये बता दिया की एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल 8 दिन में मिल जायेगा। जब तक इन 8 दिनो में भूमि के मन मुताबिक हथियार को तैयार करना था। खैर हथियार का प्रोडक्शन शुरू करने में कोई परेशानी थी नही। उसे तो गैर कानूनी तरीके से अपने ही एम्यूनेशन फैक्ट्री में करवा लिया जाता।सबसे बड़ी चुनौती थी वैसा हथियार डिजाइन करने से लेकर तैयार करके सफल परीक्षण कर लेना।

आर्यमणि अपने हाथ खड़े कर चुका था, क्योंकि वह इसका एक्सपर्ट नही था। माधव और चित्रा ने हथियार डिजाइन करने की जिम्मेदारी उठाई। हथियार का परफेक्ट ढांचा तैयार करने की जिम्मेदारी महा ने उठा लिया।जरूरत एक आईटी प्रोफेशनल की थी, जो हथियार में मनचाहा कमांड सेट कर सके। आर्यमणि के लिये यह कोई बड़ा काम नही था, एक कमाल के आईटी प्रोफेशनल को आर्यमणि जानता था, जो इस वक्त लगभग अंडरग्राउंड थी। बिना कोई देर किये आर्यमणि उन सबके बीच अपस्यु की पत्नी ऐमी को ले आया।

हालांकि ऐमी पुराने अल्फा पैक से काफी घुली मिली थी, लेकिन अभी के माहौल में वह केवल पलक को जानती थी, जिसके साथ वह एक साल के करीब रही थी। आर्यमणि ऐमी को उन सबके बीच बिठा दिया। लगभग सारा काम बांटकर आर्यमणि एक शांत कमरे में पहुंचा और वहां से ध्यान लगाना शुरू किया।

आर्यमणि जब ध्यान लगाना शुरू किया। आज उसे पता था कि वह कहां से ध्यान लगाना शुरू करेगा। आर्यमणि पूर्ण ध्यान में खोया था। देखते–देखते वह अनंत गहराई में गया। वहां से फिर अंटार्टिका के उस मस्तिष्क संरचना में पहुंचा जहां से उसे रूही की आवाज सुनाई दी थी।

अनंत गहराइयों के नीचे काले अंधेरे सायों के बीच बसी एक दुनिया। चारो ओर का ऐसा माहौल मानो मनहुसियत ने चारो ओर अपना डेरा जमा लिया हो। खंडहर और पहाड़ों की दुनिया। चिलचिलाते धूप में बड़े–बड़े शिकारी चिड़िया आकाश में मंडराते। कुल मिलाकर विचलित करने वाली जगह। चारो ओर की पूरी झलक लेने के बाद आर्यमणि को पता था कि उसे कहां जाना है।

आर्यमणि उसी क्षण अंतर्ध्यान होकर सीधा पाताल लोक के भू–भाग पहुंचा। नभीमन अपना उत्तराधिकारी चुनने के बाद अपनी सेवा यहां के जीव जंतु को दे रहा था। आर्यमणि को एक दम से सामने प्रकट होते देख नाभिमन मुस्कुराते हुये उसका स्वागत किया.... “आओ गुरुदेव आओ। मेरी याद खींच लायी या किसी काम से आये हो?”..

आर्यमणि:– एक जरूरी काम करना था और उसी दौरान आपकी याद आ गयी।

नाभीमन:– बहुत खूब तो ऐसी क्या बात हो गयी जो हमारी याद तुम्हे इतनी दूर खींच लायी...

आर्यमणि:– मेरा पैक, जो इसी भू–भाग से कहीं खो गया था?

नाभिमन:– जहां तक मुझे पता है कि तुम्हारा पैक समाप्त हो गया था। अब ये मत कहना की इस पूरे भू–भाग पर तुमने मायाजाल फैलाया था।

आर्यमणि:– पूर्व महाराज आप जिसे मायाजाल समझ रहे है, वह एक सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार था। उसे मैने नही बल्कि इस क्षेत्र का एक प्रतिबंधित तांत्रिक ने वह मायाजाल फैलाया था।

नाभिमन:– हां उस प्रतिबंधित तांत्रिक के दादा–परदादा को मैं जानता था। उसकी तांत्रिक महासभा को मेरे पिताजी ने ही तो प्रतिबंधित किया था। जो मै नही जानता हूं वो बताओ। ये सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार क्या है?

आर्यमणि पूर्ण विस्तार से इस पर चर्चा करने के बाद अपनी मनसा जाहिर करते हुये कहने लगा.... “आपके पाताल लोक में एक बहुत बड़ा पंछी है। उसके पंख के बीच में जगह–जगह छेद है। अपने चंगुल में वह हाथी को भी दबोच ले। उन्ही पंछियों का जहां बसेरा है, वहीं मेरा पैक है। उन्हे तो खो ही चुका हूं, कम से कम उनके शरीर से दुष्ट आत्मा के मुक्त करवाकर उनका अंतिम संस्कार ही कर दूं”

नाभीमन:– “आर्य तुम विपरीत दुनिया जाने की बात कर रहे हो। पर इसमें मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। वो पंछी विपरीत दुनिया से पाताल लोक लाये जरूर गये थे, लेकिन जिन्होंने ये काम किया उन्होंने कभी किसी से इस बात की चर्चा नही की कैसे इन्हे विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था।”

“जहां तक मुझे पता है इन 2 दुनिया के बीच केवल वो महाजनिका ही थी जो टेलीपोर्ट कर सकती थी, जिसका राज भी तुमने खोल दिया। या तो तुम उसी की तरह कोई द्वार खोल लो या फिर कोई और उपाय ढूंढो। हम्म... उपाय... उपाय... उपाय”

आर्यमणि:– क्या हुआ आप यूं उपाय पर क्यों अटक गये?

नभीमन:– शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।एक काम करो जबतक तुम गुरुयन प्लेनेट से लौटो तब तक मैं विपरीत दुनिया में जाने के उपाय ढूंढता हूं?

आर्यमणि:– क्या कोई ऐसा उपाय है क्या?

नभीमन:– हां उपाय तो है, परंतु उसके लिये कुछ जरूरत के दुर्लभ समान लगेंगे, जिसे ढूंढने में काफी वक्त लगेगा। और कुछ जानकार लोगों को भी अपहरण कर यहां लाना होगा। तब कहीं जाकर उम्मीद है कि मैं तुम्हे विपरीत दुनिया में जाने का एक सरल उपाय बता सकूं।

आर्यमणि:– “जानते हो आप, अभी जितनी अमेया मुझे प्यारी है, उस से कहीं ज्यादा मुझे अलबेली और इवान प्यारे थे। दोनो ही मेरे बच्चे समान थे। कैसा लगेगा जब कोई अपने बच्चे को अपने आंखों के सामने मरते देखे। अपनी प्यारी पत्नी को अपने आंखों के सामने मरते देखे। बदले की आग में जल रहा हो पर उस से ज्यादा अभागा कौन होगा जो अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार तो नही कर पाया।”

“और कितना मैं अपनी बेबसी की कहानी बताऊं। सबसे घोर विडंबना तो यह है कि मेरी रूही, इवान और अलबेली के शरीर में किसी दुष्ट आत्मा का वाश है। जब भी मैं ये बात सोचता हूं मेरा खून खौल जाता है। मेरा बस चले तो मैं अभी अपने परिवार के शरीर से हर दुष्ट आत्मा को बाहर निकाल उनके शरीर का दाह–संस्कार करूंगा। ऐसे में एक उम्मीद की किरण दिखी और आप चाहते है कि मैं पहले सारा जहां घूम आऊं और बाद में अपने परिवार के पास पहुंचूं।”

नाभिम:– “पूरी श्रृष्टि अपने नियम अनुसार चलती है। जल्दबाजी में हम कुछ भी नही कर सकते आर्य। तुम पहले भी देख चुके हो की यदि विपरीत दुनिया का द्वार इंच इतना भी खुला रह गया तो वहां से कितनी तबाही मूल दुनिया में आ सकती है। मुझे पहले कभी विपरीत दुनिया का ख्याल तक नही आया इसलिए अब तक वहां जाने के रास्तों के विषय में कभी खोज नही किया।”

“आज तुम्हारी वजह जानकर समझ में आया की तुम्हारा वहां जाना कितना जरूरी है। इसलिए दिमाग में आये उस उपाय पर पूरे शोध करने का विचार कर रहा हूं। यदि मुझे तुम्हारी भावना का आभाष न होता तो मैं साफ मना कर चुका होता। आर्य मुझ पर दवाब न बनाओ। तुम अपना काम करके लौटो जबतक मैं उपाय पर काम करता हूं।”

आर्यमणि:– हम्मम... आप सही है। मुझे धैर्य रखना होगा। ठीक है आप उपाय पर काम कीजिए, जब तक मैं उन नलायकों पर नकेल कस आता हूं जो न जाने कितने वर्षों से पृथ्वी को मात्र अपना प्रजनन स्थान समझ रखा था और यहां पर बसने वालों को महज कीड़े–मकोड़ों से ज्यादा न कुछ समझा।
Mast 👍👍👍
 

Devilrudra

Active Member
514
1,420
123
भाग:–184


नभीमन:– तुम यशस्वी रहो। आर्य एक मेरी भी गुजारिश है। जितनी भावना तुम्हे अपने परिवार के लिये उतनी ही भावना मुझे अपने साम्राज्य के खोए गौरव का है, जिसका दोषी मैं ही था। तुम मेरी बात समझ रहे हो ना...

आर्यमणि:–vwdqtrgq हां मैं समझ रहा हूं महाराज। मेरा वादा है आपसे की आपके साम्राज्य के गौरव को वापस लाने की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। तब तक आप भी धैर्य बनाए रखिए और देह त्याग नही कीजिएगा...

नभीमन:– तुमने बोल दिया तो अब मैं युगों तक इंतजार करता रहूंगा। बस वो मेरा आखरी दिन होगा जब मैं नाग दंश को वापस अपने साम्राज्य में आते देखूंगा।

नभीमन अपनी बात कहते भावना विभोर हो गया। आर्यमणि ने उसके आंसू पोछे। दोनो के बीच थोड़ी और औपचारिक बातें हुई। अपने पिटारे नभीमन ने आर्यमणि को कुछ और उपहार दिये। आर्यमणि उन उपहारों को देख खुश हो गया। आर्यमणि वहां से वापस न लौटकर सीधा महासागर के तल में योगियों के प्रदेश पहुंचा। एक बार फिर ध्यान पर बैठने से पहले अल्फा पैक तक सूचना पहुंचा दिया की जब चलने के लिये तैयार हो जाओ, सूचना कर देना। आर्यमणि वहां अपनी साधना पर बैठा और इधर अल्फा पैक के सदस्य गुरियन प्लेनेट पर जाने की तैयारी में जोड़ों से जुट गये।

अल्फा पैक और सहयोगी दिन रात एक करके कई तरह के हथियार पर काम कर रहे थे। महा एक कुशल रणनीतिज्ञ थी जिसने हथियारों के हिसाब से अपने सेना की सजावट की योजना बना चुकी थी। हथियार डिजाइन करने से लेकर ऑटोमेटिक कमांड सेट करने में लगभग 8 दिन लग गये। बृहत पैमाने पर उन हथियारों को बनाने में अगला 5 दिन लग गया। चौदवे दिन सभी उड़ान भरने के लिये तैयार थे।

इसी बीच महा, पैट्रिक से एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल की डिलेवरी ले चुकी थी। पैट्रिक एक कदम आगे बढ़कर अपनी दोस्ती निभाते, न सिर्फ एक करोड़ रिफ्लेक्टर ढाल दिया बल्कि लेजर तथा अन्य भीषण किरणों से बचने के लिये उसने 4 लाख बुलेट प्रूफ और लेजर प्रूफ सूट भी भेंट स्वरूप दे दिया। पूछने पर पता चला की सेना के लिये उनके पास ऐसे सूट की कोई कमी नही थी।

वहीं चैत्र मास में 11 दिन तक आर्यमणि ने देवी दुर्गा की साधना की थी। अपनी साधना से उठने के बाद उसने देवी दुर्गा की चरणों से गीली मिट्टी का विशाल भंडार उठाया और अंतर्ध्यान होकर सीधा नाग–लोक के भू–भाग पहुंचा। वहां उसने शेर माटुका और उसके परिवार से मिलकर इशारों में उसने अपनी योजना समझा दिया।

शेर माटुका सर झुकाकर पहले तो मिट्टी के सामने मानो नमन किया हो फिर ऊंची और लंबी दहाड़ के साथ उसने आर्यमणि के साथ जैसे युद्ध लड़ने की घोषणा कर दिया हो। शेर मटुका को लेकर आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर सीधा एक बड़े से अंतरिक्ष विमान में पहुंचा। आर्यमणि पहली बार किसी अंतरिक्ष विमान में था। जगह मांग के हिसाब से भी कहीं ज्यादा बड़ी थी। इतनी बड़ी की आराम से उसपर 10 हजार लाख सैनिक सवार हो जाते।

आर्यमणि साधना पर बैठने से पहले ही अपस्यु से संपर्क कर चुका था। आर्यमणि ने जैसा बताया था बिलकुल एक हिस्सा उसी हिसाब से कर दिया गया था। पूर्णतः शुद्ध, पूर्णतः अभिमंत्रित और हवन–यज्ञ के पूर्ण समान के साथ। आर्यमणि जैसे ही उस हिस्से में पहुंचा, सही दिशा और सही स्थान का चुनाव करके अपने साथ लाये मिट्टी को वहां रख दिया।

उस स्थान पर पहले से ही देवी दुर्गा की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित थी, जिसके चरणों में बैठकर आर्यमणि उन मिट्टी से छोटे–छोटे शेर का निर्माण करने लगा। 11 दिन की साधना और 2 दिन तक मिट्टी के शेर के निर्माण करने के बाद आर्यमणि भी चौदहवे दिन उड़ान भरने के लिये तैयार था।

सुबह–सुबह ही पूरा अल्फा पैक और उनके सहयोगियों को लेकर ऋषि शिवम उस विमान तक पहुंच चुके थे। आर्यमणि खुद बाहर आकर सबका स्वागत किया और सुबह के 9 बजे उनका विमान उड़ान भर चुकी थी। विमान को कैसे चलाना है उसका प्रशिक्षण पिछले 13 दिनो से चल रहा था। महा के कुशल पायलट 4 दिन में ही विमान उड़ाने की पूरी बारीकियों को एलियन से सिख चुके थे और एक साथ 21 विमान ढाई लाख सैनिक, तरह–तरह के हथियार और विस्फोटक के साथ उड़ान भर चुकी थी।

अंतरिक्ष की सीमा में घुसते ही पूरा अल्फा पैक अपने सभी सहयोगियों के साथ बड़े से राउंड टेबल पर बैठा था। सभी आपस में बात कर रहे थे। कुछ लोग पहली बार किसी युद्ध में हिस्सा ले रहे थे इसलिए उत्साहित भी उतना ज्यादा थे। सबके उत्साह और आपस के बातचीत को शांत करते हुये आर्यमणि उन सबके बीच बैठा।

आर्यमणि:– हम किस प्रकार के दुश्मन और किन हालातों का सामना करने जा रहे हैं, उसपर पहले ही चर्चा हो चुकी है। अभी हम इसलिए बैठे हैं ताकि एक जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाला उनका हथियार है, हाइबर मेटल से बने आर्मर, उन्हे कैसे भेदा जाये। उम्मीद है इस पर कोई न कोई नतीजा निकल आया होगा।

पलक:– मेरे पास कुछ हाइबर धातु थे, उन पर हर किसी ने प्रयोग करके देख लिया। यहां तक की उसे सात्त्विक आश्रम भी ले गये लेकिन वहां से भी परिणाम वही निकला, इस धातु को किसी भी विधि तोड़ा नही जा सकता।

आर्यमणि:– और मंत्रों का असर। यदि कोई व्यक्ति आर्मर पहना हो तो क्या मंत्र उन पर असर करेगी?

ओजल:– नही बॉस, यदि आर्मर के पीछे कोई छिपा है तो मंत्र उसपर असर नही करती। हां लेकिन शरीर का जो भाग हाइबर मेटल के बाहर होगा उन पर मंत्र असर तो करेगी किंतु कुछ हाइबर मेटल के कारण बेअसर हो जायेगी।

आर्यमणि:– क्या ये धातु अपने आप अभिमंत्रित हो जाती है, जिसपर किसी भी प्रकार का मंत्र का काट अपने आप मिल जाता है।

ओजल:– हां ऐसा ही कुछ समझ लीजिए। यह धातु अपने आप में अलौकिक है। महाभारत में कर्ण के कवच का उल्लेख मिलता है, जिसे सूर्यदेव ने दिया था, वह कवच इसी धातु की बनी हुई थी। यह हाइबर धातु सदियों से सूर्यदेव की अग्नि में तपकर तैयार होता है, इसलिए इसका स्वरूप ऐसा है।

महा:– क्या मैं वरुण देवता को नमन कर एक बार इस धातु को नष्ट करने की कोशिश करूं क्या?

आर्यमणि, अजीब सी नजरों से घूरते.... “हां–हां कर लो कोशिश।”

महा:– ऐ जी ऐसे हीन नजरों से घुरकर क्यों कह रहे?

आर्यमणि:– पहले तुम अपना काम तो कर लो, फिर मैं अपनी नजरों का कारण भी बताता हूं।

महा ने अपने सर के जुड़े से एक छोटा सा पिन निकाली। जैसे ही उस छोटे से पिन को अपने हथेली पर रखी वह बड़ा सा दंश में तब्दील हो गया। महा के इस कारनामे पर ओजल बिना कहे रह नही पायी..... “दीदी कितने गुप्त हथियार अपने बदन में छिपा रखी हो?”.... ओजल के इस सवाल पर महा प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे देखी और पाने काम में लग गयी।

वरुण देव को नमन करने के बाद महा ने अपना दंश चलाया। दंश हाइबर मेटल पर चला और अलार्म विमान का बजने लगा। दरअसल दंश से निकला कण हाइबर मेटल से टकराकर ऊपर के ओर विस्थापित हो गयी और सीधा जाकर विमान के छत से टकरा गयी। टकराने के साथ ही छोटा सा विस्फोट हुआ और विमान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया।

क्षति तो क्षति थी। इंजीनियर्स ने विमान का मुआयना किया और उसे ठीक करके चले गये। वहीं महा पूरी सभा से माफी मांगी। प्रयोग करने के लिये अलग से एक बड़े कमरे का निर्माण किया गया। महा एक बार फिर तैयार थी। बिना रुके फिर कोशिश चलती रही। अल्फा पैक और उनके सहायकों के लिये यह पहला मौका था जब वह महासागर के योद्धा को उसका दंश इस्तमाल करते हुये देख रहे थे।

दंश से लगातार घातक प्रहार होते रहे। ऐसे–ऐसे प्रहार जिसे देख सब आश्चर्यचकित थे। किंतु एक भी प्रहार सफलतापूर्वक उस हाइबर मेटल को भेद नहीं पायी। महा अफसोस भरी नजरों से सबके ओर देखती..... “बताए पतिदेव आपने उस वक्त मुझे औछी नजरों से क्यों देखा था?”

आर्यमणि:– यह आश्चर्य था.... किसी वस्तु पर यदि सूर्य देव का आशीर्वाद है तो उसे तुम वरुणदेव की माया से नष्ट कर सकती हो। क्या सूर्य देव और वरुण देव के बीच कोई स्पर्धा चल रही थी?

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर उस मेटल के साथ कुछ प्रयोग करना चाहा। प्रयोग करने के लिये सबसे पहले पलक को बुलाया गया। हाईवर मेटल के पीछे आर्यमणि खड़ा हो गया और पलक को मेटल के ऊपर बिजली प्रवाहित करने के लिये कहा। पलक ने नपा तुला बिजली की धारा को प्रवाह किया।

हाइबर मेटल अपना चौकाने वाले गुण दिखा रहा था। हाइबर मेटल में किसी लकड़ी की भांति गुण थे। इसपर पड़ने वाला बिजली का प्रवाह फैलता ही नही था। किसी ढीठ की तरह यह हायबर मेटल आर्यमणि के लिये सरदर्द सा बन गया था। आलम यह था की हाइबर मेटल का कोई तोड़ नही निकला और मन में कसक लिये सभी अधूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ने लगे।

खैर इस बाधा से सभी अपना ध्यान हटाकर अंतरिक्ष के सफर का लुफ्त उठाने लगे। अब यहां देखने को तो पेड़, खेत या रास्ता तो था नही, सभी लोग अंतरिक्ष में तैर रहे बड़े–बड़े पहाड़नुमा उल्का पिंड को ही देख रहे थे। तकरीबन 4 दिन के सफर के बाद सभी विमान ‘लोका एयर स्टेशन’ पर रुके। अंतरिक्ष का यह मध्य हिस्सा था, जहां से 2 दिन के सफर के बाद सफर की मंजिल थी।

लोका एयर स्टेशन पर एक दिन के विश्राम के बाद अंतरिक्ष के मध्य हिस्से से विमान पश्चिमी हिस्से में बढ़ चली, जहां नायज़ो समुदाय के 2 ग्रह गुरियन और सिलफर प्लेनेट बसे थे। अंतरिक्ष के उसी क्षेत्र में एक वीरान ग्रह भी बसता था, जिसपर नायजो का आबादी बढ़ाओ क्रायक्रम की शुरवात हुई थी। आबादी बढ़ाने वाले 4–5 ग्रहों में से एक ग्रह यह भी था।

इस ग्रह पर पिछले सकड़ों वर्षों से नयजो काम कर रहे थे। यहां उन्होंने जीवन को अनुकूल बनाया। वीरान से इस ग्रह को पूरा जंगलों से ढक दिया। जीवन बसने के अनुकूल सभी पारिस्थिक तंत्र को स्थापित करने के बाद नायजो सकडों वर्ष तक केवल प्रतीक्षा में रहे। मौसम के चक्र को पूरा विकसित होने दिया। ग्रीन हाउस गैस को खुद से विकसित होने के लिये छोड़ दिया गया। जब यह सुनिश्चित हो गया की अब यहां की प्रकृति पूर्ण रूप से जीवन संजोने योग्य हो चुकी है तब कहीं जाकर नायजो समुदाय ने अपने लोग यहां भेजे।

नई अल्फा पैक और उसके सहायक सभी वीरान से इस टापू पर रुके जिसका नाम करेभू था। करेभु ग्रह पर यूं तो कई करोड़ नायजो स्त्रियां प्रजनन के लिये पहले से पहुंच चुकी थी। ग्रह पर सुरक्षा इंतजाम भी काफी थे। किंतु वो सब इंतजाम बस उन खास हिस्सों में थे, जहां पर आबादी बसी हुई थी।

जंगल के बहुत सारे हिस्सों में भी कई अजीब तरह के दैत्य और खूंखार जानवरों से भरा पड़ा था। किंतु पूरा पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से काम करने के लिये ग्रह के एक बड़े से हिस्से में रेगिस्तान और बंजर पहाड़ियों की श्रृंखला को छोड़ दिया गया था, जहां वीरान से इस टापू पर बसने वाले खतरनाक कीड़े और जानवर, सिकुड़ी सी इस जगह में रहने के लिये विवश थे।

आर्यमणि का काफिला भी उन्ही क्षेत्रों में उतरा। हां लेकिन उनके उतरने से लेकर रहने तक का पूरा इंतजाम पहले से कर दिया गया था। इस जगह पर लैंड करने से पहले आर्यमणि इस ग्रह को एक झलक देख चुका था और इसकी एक झलक ने ही उसका मन मोह लिया था।

विमान जमीन पर उतरा। उसकी सीढियां नीचे तक आयी। आर्यमणि सबसे आगे और उनके पीछे नई अल्फा टीम और उनके सहायक कतार में उतरने के लिये खड़े हो गये। आर्यमणि जैसे ही विमान से बाहर आया दोनो बांह फैलाए एक अनजाना चेहरा उनका स्वागत कर रहा था। आर्यमणि के ठीक पीछे उसकी पत्नी और महासागर की राजकुमारी महा थी। जिसकी एक झलक मिलते ही उस अनजान शक्स के पीछे खड़े लाखो की भीड़ एक साथ आवाज लगाकर महा की जय जयकार करने लगे।

महा, आर्यमणि के पीछे खड़े रहकर ही अपने दोनो हाथ ऊपर उठाती सबको शांत होकर अपने जगह बैठने का इशारा कर दी। महा का इस गर्मजोशी से स्वागत करने वाले और कोई नही बल्कि महा के कुशल सैनिक थे, जिनकी संख्या 5 लाख थी। यूं तो महा ने सैनिकों की संख्या कुछ और रखी थी परंतु महासागर के महाराज और महा के पिता विजयदर्थ ने अपने मन मुताबिक 5 लाख सैनिक को भेज दिया था।

आर्यमणि अपना गर्दन थोड़ा पीछे घुमाकर महा को घूरते..... “सारी वाह वाही अपने लिये बटोर ली। मैं तुम्हारा पति हूं इन लोगों को पता है ना?”

महा, प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती..... “पतिदेव मेरे साथी जो मेरा सम्मान कर रहे है उसे मैने कमाया है। आपको भी वो सम्मान कामना होगा। महज मेरे पति होने से ये लोग सम्मान नही करने वाले।”..

बातें करते हुये जब तक दोनो बाहर चले आये थे। आर्यमणि और महा के ठीक पीछे ओजल और निशांत थे। बाकी सभी को एक इशारा मिला और वो लोग विमान से नीचे नही उतरे। इधर वो अनजाना चेहरे वाला शक्स महा की बातों का समर्थन करते हुये कहने लगा.... “बहुत खूब कहा है आपने।”

महा:– आप कौन...

जैसे ही महा का यह सवाल आया वह आदमी अपने चेहरे को अजीब ही तरह से बदला। ऐसा लगा जैसे चेहरे का पूरा सिस्टम ही ऊपर–नीचे हो गया और वह शक्स कोई और नही बल्कि गुरियन ग्रह का मुखौटे वाला राजा करेनाराय था। आर्यमणि उसे देखकर थोड़ा सा हैरान होते या फिर हैरान होने का नाटक करते.... “करेनाराय तुम!!!!”

करेनाराय:– हां भेड़िया राजा। मैने सोचा आप जैसे महान भेड़िया राजा के स्वागत में मैं नही खड़ा रहा फिर थू है मेरी ज़िंदगी पर।

आर्यमणि:– हां लेकिन ऐसे रूप बदल कर आने की क्या आवश्यकता थी?

करेनाराय:– गुरियन प्लेनेट का असली शासक मसेदश क्वॉस और उसका चमचा सेनापति बिरजोली चप्पे चप्पे पर नजर रखे है। उन्हे पता है कि आपलोग पहले मुझसे मिलेंगे और उसके बाद विषपर प्लेनेट पर हमला करेंगे। इसलिए आपकी रणनीतियों को समझने कर लिये उन लोगों ने चप्पे–चप्पे पर नजर बनाए हुये है।

आर्यमणि:– तो क्या मैं यहीं से सीधा विषपर प्लेनेट निकल जाऊं?

करेनाराय:– अब किसी को मरने का इतना ही शौक है तो उन्हें मैं बिलकुल नहीं रोकूंगा। लेकिन क्या आप अपने सेना के बिना ही चले जायेंगे?

आर्यमणि:– मैं क्यों सेना के बिना चला जाऊं? मैं यहां से निकलता हूं, और तुम गुरियन प्लेनेट पहुंचकर मेरे सेना को विषपर प्लेनेट के लिये रवाना कर दो।

करेनाराय:– पूरे 5 करोड़ खूंखार लोगों को जो कैदियों के प्रदेश से भेजे थे, उन्हे मैने प्रशिक्षित कर दिया है। किंतु नायजो के पास बहुत सी ऐसी कलाएं है, जिनका तोड़ मुझे आपको बताना है। उस जानकारी को अब तक मैने उन 5 कड़ोड़ सैनिकों के साथ साझा नही किया। सोचा जब सब साथ होंगे तभी बताऊंगा। उम्मीद है पलक ने बहुत सी बातें बताई होगी। पलक ने आपसे तरह–तरह के हमले का वर्णन किया होगा। किंतु उन हमलों से न सिर्फ बचने के कारगर उपाय बल्कि पलटवार, और घातक कैसे हो उसकी पूरी जानकारी मेरे पास है।

करेनाराय की बात को सुनकर आर्यमणि खामोशी से खड़े होकर उसे एक टक देखे जा जा रहा था। करेनाराय अपनी ललाट ऊपर कर सवालिया नजरों से आर्यमणि को देख भी रहा था और उसके जवाब की प्रतीक्षा भी कर रहा था। लेकिन करेनाराय की प्रतीक्षा काफी लंबी हो गयी और आर्यमणि चुप चाप उसे एक टक देखे जा रहा था। करेनाराय से रहा नही गया और जिज्ञासावश उसने पूछ लिया.... “भेड़िया राजा कुछ तो कहो?”
Superb👍👍👍
 

monty1203

13 मेरा 7 रहें 🙏🙏🙏🙏
71
115
33
गजब अपडेट नैन भाई और अब लगता है👌👌👌👌👌👌👌 👌👌👌👌👌अगले अपडेट मे जोरदार एक्शन देखने को मिलने वाला hai👊👊👊👊👊👊👊👊👊
नैन भाई बस लय बनाये रखना 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 

king cobra

Well-Known Member
5,258
9,926
189
Mast update lagta hai bahut khatarnaak ladai hogi is baar bahut taiyariyan hui hain dusman bhi kamtar na hai bas kisi ko khona na pade is baar
 

Ek anjaan humsafar

Well-Known Member
2,901
4,003
143
Bahut hi badiya updates that, Bhai dhanyavad aapka
भाग:–184


नभीमन:– तुम यशस्वी रहो। आर्य एक मेरी भी गुजारिश है। जितनी भावना तुम्हे अपने परिवार के लिये उतनी ही भावना मुझे अपने साम्राज्य के खोए गौरव का है, जिसका दोषी मैं ही था। तुम मेरी बात समझ रहे हो ना...

आर्यमणि:– हां मैं समझ रहा हूं महाराज। मेरा वादा है आपसे की आपके साम्राज्य के गौरव को वापस लाने की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। तब तक आप भी धैर्य बनाए रखिए और देह त्याग नही कीजिएगा...

नभीमन:– तुमने बोल दिया तो अब मैं युगों तक इंतजार करता रहूंगा। बस वो मेरा आखरी दिन होगा जब मैं नाग दंश को वापस अपने साम्राज्य में आते देखूंगा।

नभीमन अपनी बात कहते भावना विभोर हो गया। आर्यमणि ने उसके आंसू पोछे। दोनो के बीच थोड़ी और औपचारिक बातें हुई। अपने पिटारे नभीमन ने आर्यमणि को कुछ और उपहार दिये। आर्यमणि उन उपहारों को देख खुश हो गया। आर्यमणि वहां से वापस न लौटकर सीधा महासागर के तल में योगियों के प्रदेश पहुंचा। एक बार फिर ध्यान पर बैठने से पहले अल्फा पैक तक सूचना पहुंचा दिया की जब चलने के लिये तैयार हो जाओ, सूचना कर देना। आर्यमणि वहां अपनी साधना पर बैठा और इधर अल्फा पैक के सदस्य गुरियन प्लेनेट पर जाने की तैयारी में जोड़ों से जुट गये।

अल्फा पैक और सहयोगी दिन रात एक करके कई तरह के हथियार पर काम कर रहे थे। महा एक कुशल रणनीतिज्ञ थी जिसने हथियारों के हिसाब से अपने सेना की सजावट की योजना बना चुकी थी। हथियार डिजाइन करने से लेकर ऑटोमेटिक कमांड सेट करने में लगभग 8 दिन लग गये। बृहत पैमाने पर उन हथियारों को बनाने में अगला 5 दिन लग गया। चौदवे दिन सभी उड़ान भरने के लिये तैयार थे।

इसी बीच महा, पैट्रिक से एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल की डिलेवरी ले चुकी थी। पैट्रिक एक कदम आगे बढ़कर अपनी दोस्ती निभाते, न सिर्फ एक करोड़ रिफ्लेक्टर ढाल दिया बल्कि लेजर तथा अन्य भीषण किरणों से बचने के लिये उसने 4 लाख बुलेट प्रूफ और लेजर प्रूफ सूट भी भेंट स्वरूप दे दिया। पूछने पर पता चला की सेना के लिये उनके पास ऐसे सूट की कोई कमी नही थी।

वहीं चैत्र मास में 11 दिन तक आर्यमणि ने देवी दुर्गा की साधना की थी। अपनी साधना से उठने के बाद उसने देवी दुर्गा की चरणों से गीली मिट्टी का विशाल भंडार उठाया और अंतर्ध्यान होकर सीधा नाग–लोक के भू–भाग पहुंचा। वहां उसने शेर माटुका और उसके परिवार से मिलकर इशारों में उसने अपनी योजना समझा दिया।

शेर माटुका सर झुकाकर पहले तो मिट्टी के सामने मानो नमन किया हो फिर ऊंची और लंबी दहाड़ के साथ उसने आर्यमणि के साथ जैसे युद्ध लड़ने की घोषणा कर दिया हो। शेर मटुका को लेकर आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर सीधा एक बड़े से अंतरिक्ष विमान में पहुंचा। आर्यमणि पहली बार किसी अंतरिक्ष विमान में था। जगह मांग के हिसाब से भी कहीं ज्यादा बड़ी थी। इतनी बड़ी की आराम से उसपर 10 हजार लाख सैनिक सवार हो जाते।

आर्यमणि साधना पर बैठने से पहले ही अपस्यु से संपर्क कर चुका था। आर्यमणि ने जैसा बताया था बिलकुल एक हिस्सा उसी हिसाब से कर दिया गया था। पूर्णतः शुद्ध, पूर्णतः अभिमंत्रित और हवन–यज्ञ के पूर्ण समान के साथ। आर्यमणि जैसे ही उस हिस्से में पहुंचा, सही दिशा और सही स्थान का चुनाव करके अपने साथ लाये मिट्टी को वहां रख दिया।

उस स्थान पर पहले से ही देवी दुर्गा की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित थी, जिसके चरणों में बैठकर आर्यमणि उन मिट्टी से छोटे–छोटे शेर का निर्माण करने लगा। 11 दिन की साधना और 2 दिन तक मिट्टी के शेर के निर्माण करने के बाद आर्यमणि भी चौदहवे दिन उड़ान भरने के लिये तैयार था।

सुबह–सुबह ही पूरा अल्फा पैक और उनके सहयोगियों को लेकर ऋषि शिवम उस विमान तक पहुंच चुके थे। आर्यमणि खुद बाहर आकर सबका स्वागत किया और सुबह के 9 बजे उनका विमान उड़ान भर चुकी थी। विमान को कैसे चलाना है उसका प्रशिक्षण पिछले 13 दिनो से चल रहा था। महा के कुशल पायलट 4 दिन में ही विमान उड़ाने की पूरी बारीकियों को एलियन से सिख चुके थे और एक साथ 21 विमान ढाई लाख सैनिक, तरह–तरह के हथियार और विस्फोटक के साथ उड़ान भर चुकी थी।

अंतरिक्ष की सीमा में घुसते ही पूरा अल्फा पैक अपने सभी सहयोगियों के साथ बड़े से राउंड टेबल पर बैठा था। सभी आपस में बात कर रहे थे। कुछ लोग पहली बार किसी युद्ध में हिस्सा ले रहे थे इसलिए उत्साहित भी उतना ज्यादा थे। सबके उत्साह और आपस के बातचीत को शांत करते हुये आर्यमणि उन सबके बीच बैठा।

आर्यमणि:– हम किस प्रकार के दुश्मन और किन हालातों का सामना करने जा रहे हैं, उसपर पहले ही चर्चा हो चुकी है। अभी हम इसलिए बैठे हैं ताकि एक जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाला उनका हथियार है, हाइबर मेटल से बने आर्मर, उन्हे कैसे भेदा जाये। उम्मीद है इस पर कोई न कोई नतीजा निकल आया होगा।

पलक:– मेरे पास कुछ हाइबर धातु थे, उन पर हर किसी ने प्रयोग करके देख लिया। यहां तक की उसे सात्त्विक आश्रम भी ले गये लेकिन वहां से भी परिणाम वही निकला, इस धातु को किसी भी विधि तोड़ा नही जा सकता।

आर्यमणि:– और मंत्रों का असर। यदि कोई व्यक्ति आर्मर पहना हो तो क्या मंत्र उन पर असर करेगी?

ओजल:– नही बॉस, यदि आर्मर के पीछे कोई छिपा है तो मंत्र उसपर असर नही करती। हां लेकिन शरीर का जो भाग हाइबर मेटल के बाहर होगा उन पर मंत्र असर तो करेगी किंतु कुछ हाइबर मेटल के कारण बेअसर हो जायेगी।

आर्यमणि:– क्या ये धातु अपने आप अभिमंत्रित हो जाती है, जिसपर किसी भी प्रकार का मंत्र का काट अपने आप मिल जाता है।

ओजल:– हां ऐसा ही कुछ समझ लीजिए। यह धातु अपने आप में अलौकिक है। महाभारत में कर्ण के कवच का उल्लेख मिलता है, जिसे सूर्यदेव ने दिया था, वह कवच इसी धातु की बनी हुई थी। यह हाइबर धातु सदियों से सूर्यदेव की अग्नि में तपकर तैयार होता है, इसलिए इसका स्वरूप ऐसा है।

महा:– क्या मैं वरुण देवता को नमन कर एक बार इस धातु को नष्ट करने की कोशिश करूं क्या?

आर्यमणि, अजीब सी नजरों से घूरते.... “हां–हां कर लो कोशिश।”

महा:– ऐ जी ऐसे हीन नजरों से घुरकर क्यों कह रहे?

आर्यमणि:– पहले तुम अपना काम तो कर लो, फिर मैं अपनी नजरों का कारण भी बताता हूं।

महा ने अपने सर के जुड़े से एक छोटा सा पिन निकाली। जैसे ही उस छोटे से पिन को अपने हथेली पर रखी वह बड़ा सा दंश में तब्दील हो गया। महा के इस कारनामे पर ओजल बिना कहे रह नही पायी..... “दीदी कितने गुप्त हथियार अपने बदन में छिपा रखी हो?”.... ओजल के इस सवाल पर महा प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे देखी और पाने काम में लग गयी।

वरुण देव को नमन करने के बाद महा ने अपना दंश चलाया। दंश हाइबर मेटल पर चला और अलार्म विमान का बजने लगा। दरअसल दंश से निकला कण हाइबर मेटल से टकराकर ऊपर के ओर विस्थापित हो गयी और सीधा जाकर विमान के छत से टकरा गयी। टकराने के साथ ही छोटा सा विस्फोट हुआ और विमान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया।

क्षति तो क्षति थी। इंजीनियर्स ने विमान का मुआयना किया और उसे ठीक करके चले गये। वहीं महा पूरी सभा से माफी मांगी। प्रयोग करने के लिये अलग से एक बड़े कमरे का निर्माण किया गया। महा एक बार फिर तैयार थी। बिना रुके फिर कोशिश चलती रही। अल्फा पैक और उनके सहायकों के लिये यह पहला मौका था जब वह महासागर के योद्धा को उसका दंश इस्तमाल करते हुये देख रहे थे।

दंश से लगातार घातक प्रहार होते रहे। ऐसे–ऐसे प्रहार जिसे देख सब आश्चर्यचकित थे। किंतु एक भी प्रहार सफलतापूर्वक उस हाइबर मेटल को भेद नहीं पायी। महा अफसोस भरी नजरों से सबके ओर देखती..... “बताए पतिदेव आपने उस वक्त मुझे औछी नजरों से क्यों देखा था?”

आर्यमणि:– यह आश्चर्य था.... किसी वस्तु पर यदि सूर्य देव का आशीर्वाद है तो उसे तुम वरुणदेव की माया से नष्ट कर सकती हो। क्या सूर्य देव और वरुण देव के बीच कोई स्पर्धा चल रही थी?

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर उस मेटल के साथ कुछ प्रयोग करना चाहा। प्रयोग करने के लिये सबसे पहले पलक को बुलाया गया। हाईवर मेटल के पीछे आर्यमणि खड़ा हो गया और पलक को मेटल के ऊपर बिजली प्रवाहित करने के लिये कहा। पलक ने नपा तुला बिजली की धारा को प्रवाह किया।

हाइबर मेटल अपना चौकाने वाले गुण दिखा रहा था। हाइबर मेटल में किसी लकड़ी की भांति गुण थे। इसपर पड़ने वाला बिजली का प्रवाह फैलता ही नही था। किसी ढीठ की तरह यह हायबर मेटल आर्यमणि के लिये सरदर्द सा बन गया था। आलम यह था की हाइबर मेटल का कोई तोड़ नही निकला और मन में कसक लिये सभी अधूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ने लगे।

खैर इस बाधा से सभी अपना ध्यान हटाकर अंतरिक्ष के सफर का लुफ्त उठाने लगे। अब यहां देखने को तो पेड़, खेत या रास्ता तो था नही, सभी लोग अंतरिक्ष में तैर रहे बड़े–बड़े पहाड़नुमा उल्का पिंड को ही देख रहे थे। तकरीबन 4 दिन के सफर के बाद सभी विमान ‘लोका एयर स्टेशन’ पर रुके। अंतरिक्ष का यह मध्य हिस्सा था, जहां से 2 दिन के सफर के बाद सफर की मंजिल थी।

लोका एयर स्टेशन पर एक दिन के विश्राम के बाद अंतरिक्ष के मध्य हिस्से से विमान पश्चिमी हिस्से में बढ़ चली, जहां नायज़ो समुदाय के 2 ग्रह गुरियन और सिलफर प्लेनेट बसे थे। अंतरिक्ष के उसी क्षेत्र में एक वीरान ग्रह भी बसता था, जिसपर नायजो का आबादी बढ़ाओ क्रायक्रम की शुरवात हुई थी। आबादी बढ़ाने वाले 4–5 ग्रहों में से एक ग्रह यह भी था।

इस ग्रह पर पिछले सकड़ों वर्षों से नयजो काम कर रहे थे। यहां उन्होंने जीवन को अनुकूल बनाया। वीरान से इस ग्रह को पूरा जंगलों से ढक दिया। जीवन बसने के अनुकूल सभी पारिस्थिक तंत्र को स्थापित करने के बाद नायजो सकडों वर्ष तक केवल प्रतीक्षा में रहे। मौसम के चक्र को पूरा विकसित होने दिया। ग्रीन हाउस गैस को खुद से विकसित होने के लिये छोड़ दिया गया। जब यह सुनिश्चित हो गया की अब यहां की प्रकृति पूर्ण रूप से जीवन संजोने योग्य हो चुकी है तब कहीं जाकर नायजो समुदाय ने अपने लोग यहां भेजे।

नई अल्फा पैक और उसके सहायक सभी वीरान से इस टापू पर रुके जिसका नाम करेभू था। करेभु ग्रह पर यूं तो कई करोड़ नायजो स्त्रियां प्रजनन के लिये पहले से पहुंच चुकी थी। ग्रह पर सुरक्षा इंतजाम भी काफी थे। किंतु वो सब इंतजाम बस उन खास हिस्सों में थे, जहां पर आबादी बसी हुई थी।

जंगल के बहुत सारे हिस्सों में भी कई अजीब तरह के दैत्य और खूंखार जानवरों से भरा पड़ा था। किंतु पूरा पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से काम करने के लिये ग्रह के एक बड़े से हिस्से में रेगिस्तान और बंजर पहाड़ियों की श्रृंखला को छोड़ दिया गया था, जहां वीरान से इस टापू पर बसने वाले खतरनाक कीड़े और जानवर, सिकुड़ी सी इस जगह में रहने के लिये विवश थे।

आर्यमणि का काफिला भी उन्ही क्षेत्रों में उतरा। हां लेकिन उनके उतरने से लेकर रहने तक का पूरा इंतजाम पहले से कर दिया गया था। इस जगह पर लैंड करने से पहले आर्यमणि इस ग्रह को एक झलक देख चुका था और इसकी एक झलक ने ही उसका मन मोह लिया था।

विमान जमीन पर उतरा। उसकी सीढियां नीचे तक आयी। आर्यमणि सबसे आगे और उनके पीछे नई अल्फा टीम और उनके सहायक कतार में उतरने के लिये खड़े हो गये। आर्यमणि जैसे ही विमान से बाहर आया दोनो बांह फैलाए एक अनजाना चेहरा उनका स्वागत कर रहा था। आर्यमणि के ठीक पीछे उसकी पत्नी और महासागर की राजकुमारी महा थी। जिसकी एक झलक मिलते ही उस अनजान शक्स के पीछे खड़े लाखो की भीड़ एक साथ आवाज लगाकर महा की जय जयकार करने लगे।

महा, आर्यमणि के पीछे खड़े रहकर ही अपने दोनो हाथ ऊपर उठाती सबको शांत होकर अपने जगह बैठने का इशारा कर दी। महा का इस गर्मजोशी से स्वागत करने वाले और कोई नही बल्कि महा के कुशल सैनिक थे, जिनकी संख्या 5 लाख थी। यूं तो महा ने सैनिकों की संख्या कुछ और रखी थी परंतु महासागर के महाराज और महा के पिता विजयदर्थ ने अपने मन मुताबिक 5 लाख सैनिक को भेज दिया था।

आर्यमणि अपना गर्दन थोड़ा पीछे घुमाकर महा को घूरते..... “सारी वाह वाही अपने लिये बटोर ली। मैं तुम्हारा पति हूं इन लोगों को पता है ना?”

महा, प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती..... “पतिदेव मेरे साथी जो मेरा सम्मान कर रहे है उसे मैने कमाया है। आपको भी वो सम्मान कामना होगा। महज मेरे पति होने से ये लोग सम्मान नही करने वाले।”..

बातें करते हुये जब तक दोनो बाहर चले आये थे। आर्यमणि और महा के ठीक पीछे ओजल और निशांत थे। बाकी सभी को एक इशारा मिला और वो लोग विमान से नीचे नही उतरे। इधर वो अनजाना चेहरे वाला शक्स महा की बातों का समर्थन करते हुये कहने लगा.... “बहुत खूब कहा है आपने।”

महा:– आप कौन...

जैसे ही महा का यह सवाल आया वह आदमी अपने चेहरे को अजीब ही तरह से बदला। ऐसा लगा जैसे चेहरे का पूरा सिस्टम ही ऊपर–नीचे हो गया और वह शक्स कोई और नही बल्कि गुरियन ग्रह का मुखौटे वाला राजा करेनाराय था। आर्यमणि उसे देखकर थोड़ा सा हैरान होते या फिर हैरान होने का नाटक करते.... “करेनाराय तुम!!!!”

करेनाराय:– हां भेड़िया राजा। मैने सोचा आप जैसे महान भेड़िया राजा के स्वागत में मैं नही खड़ा रहा फिर थू है मेरी ज़िंदगी पर।

आर्यमणि:– हां लेकिन ऐसे रूप बदल कर आने की क्या आवश्यकता थी?

करेनाराय:– गुरियन प्लेनेट का असली शासक मसेदश क्वॉस और उसका चमचा सेनापति बिरजोली चप्पे चप्पे पर नजर रखे है। उन्हे पता है कि आपलोग पहले मुझसे मिलेंगे और उसके बाद विषपर प्लेनेट पर हमला करेंगे। इसलिए आपकी रणनीतियों को समझने कर लिये उन लोगों ने चप्पे–चप्पे पर नजर बनाए हुये है।

आर्यमणि:– तो क्या मैं यहीं से सीधा विषपर प्लेनेट निकल जाऊं?

करेनाराय:– अब किसी को मरने का इतना ही शौक है तो उन्हें मैं बिलकुल नहीं रोकूंगा। लेकिन क्या आप अपने सेना के बिना ही चले जायेंगे?

आर्यमणि:– मैं क्यों सेना के बिना चला जाऊं? मैं यहां से निकलता हूं, और तुम गुरियन प्लेनेट पहुंचकर मेरे सेना को विषपर प्लेनेट के लिये रवाना कर दो।

करेनाराय:– पूरे 5 करोड़ खूंखार लोगों को जो कैदियों के प्रदेश से भेजे थे, उन्हे मैने प्रशिक्षित कर दिया है। किंतु नायजो के पास बहुत सी ऐसी कलाएं है, जिनका तोड़ मुझे आपको बताना है। उस जानकारी को अब तक मैने उन 5 कड़ोड़ सैनिकों के साथ साझा नही किया। सोचा जब सब साथ होंगे तभी बताऊंगा। उम्मीद है पलक ने बहुत सी बातें बताई होगी। पलक ने आपसे तरह–तरह के हमले का वर्णन किया होगा। किंतु उन हमलों से न सिर्फ बचने के कारगर उपाय बल्कि पलटवार, और घातक कैसे हो उसकी पूरी जानकारी मेरे पास है।

करेनाराय की बात को सुनकर आर्यमणि खामोशी से खड़े होकर उसे एक टक देखे जा जा रहा था। करेनाराय अपनी ललाट ऊपर कर सवालिया नजरों से आर्यमणि को देख भी रहा था और उसके जवाब की प्रतीक्षा भी कर रहा था। लेकिन करेनाराय की प्रतीक्षा काफी लंबी हो गयी और आर्यमणि चुप चाप उसे एक टक देखे जा रहा था। करेनाराय से रहा नही गया और जिज्ञासावश उसने पूछ लिया.... “भेड़िया राजा कुछ तो कहो?”
 
  • Like
Reactions: Tiger 786
Top