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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Sahi kaha unke comments, reviews and replies ka to me bhi fan hu is bar bhi nainu bhaiya story likh to rahe lekin jo maja Naina ji ke saath arguement karne me ata hai alga hi level ka hai .......ek alag hi mahaul ban jata hai ........aur nainu bhaiya to khud bhi miss kr rahe honge.. ab dekho sayad wo aa jaye nahi to bolo to andolan chalu kare vapis se id unban karne ke liye
Id unban sayad ho gyi hai pr usne contact to Nainu bhaya ka hi hai, ek baar naina ji ne btaya tha ki call karke bulai hai vo Nainu bhaya ko idhar story post karne...
 

Tiger 786

Well-Known Member
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भाग:–47






आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।


उनमें ना केवल पलक थी बल्कि कुछ लोगों को छोड़कर सभी एक जैसे थे। आर्यमणि आश्चर्य से उन सभी के चेहरे देख रहा था तभी पीछे से पलक ने उसके कंधे पर हाथ रखी। काले और लाल धारियों वाली ड्रेस जो उसके बदन से बिल्कुल चिपकी हुई थी, ओपन शोल्डर और चेहरे का लगा मेकअप, आर्यमणि देखते ही अपना छाती पकड़ लिया… "क्या हुआ आर्य"..


आर्यमणि:- श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो रही है, यहां से चलो।


पलक, कंधे का सहारा देती, हड़बड़ी में उसके साथ निकली। दोनो चल रहे थे तभी आर्य को एक पैसेज दिखा और उसने पलक का हाथ खींचकर पैसेज की दीवार से चिपका दिया, और अपने होंठ आगे ही बढ़ाया ही था… "क्या कर रहे हो आर्य, यहां कोई आ जाएगा।"..


आर्यमणि उसके बदन की खुशबू लेते…. "आह्हहह ! तुम मुझे दीवाना बना रही हो पलक।"..


पलक:- हीहीहीहीही… कंट्रोल किंग, आप तो अपनी रानी को देखकर उतावले हो गये।


आर्यमणि आगे कोई बात ना करके अपने होंठ आगे बढ़ा दिया, पलक भी अपने बदन को ढीला छोड़ती, उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी। दोनो एक दूसरे के होंठ का स्पर्श पाकर एक अलग ही दुनिया में थे। तभी गले की खराश से दोनो का ध्यान टूटा…. "इतना प्रोग्रेस, लगता है तुम दोनो की एंगेजमेंट भी जल्द करवानी होगी।"..


आर्यमणि का ध्यान टूटा। दोनो ने जब सामने नम्रता को देखा तब झटके के साथ अलग हो गए। आर्यमणि, नम्रता के इमोशंस को साफ पढ़ सकता था, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वो गौर से उसे देखने लगा… नम्रता हंसती हुई उसके बाल बिखेरते…. "पलकी संभाल इसे, ये तो मुझे ही घूरने लगा।"


पलक:- दीदी आप लग ही इतनी खूबसूरत रही हो। किसी की नजर थम जाए।


नम्रता:- और तुम दोनो जो ये सब कर रहे थे हां.. ये सब क्या है?


पलक:- इंसानी इमोशन है दीदी अपने पार्टनर को देखकर नहीं निकलेगा तो किसे देखकर निकलेगा।


आर्यमणि:- हमे चलना चाहिए।


दोनो वहां से वापस हॉल में चले आये। पलक आर्यमणि के कंधे पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, चुपके से उसके गाल पर किस्स करती… "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया आर्य। लेकिन ऐसा लगता है जैसे मैंने तुम्हारी वाह-वाही अपने नाम करवा ली है।"


आर्यमणि:- तुम भी तो मै ही हूं ना। तुम खुश तो मै खुश।


पलक, आर्यमणि के गाल खींचती… "लेकिन तुम तो यहां खुश नजर नहीं आ रहे आर्य। बात क्या है, किसी ने कुछ कह दिया क्या?"


आर्यमणि, पलक के ओर देखकर मुस्कुराते हुए… "चलो बैठकर कुछ बातें करते है।"


पलक:- हां अब बताओ।


आर्यमणि:- तुम्हे नहीं लगता कि मेरे मौसा जी थोड़े अजीब है। और साथ ने तुम्हारे पापा भी.. सॉरी दिल पर मत लेना..


यह सुनते पलक के चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा… "आर्य, खुलकर कहो ना क्या कहना चाहते हो।"..


आर्यमणि:- मैंने भारतीय इतिहास की खाक छान मारी। आज से 400 वर्ष पूर्व युद्ध के लिये केवल 12 तरह के हथियार इस्तमाल होते थे। अनंत कीर्ति के पुस्तक को खोलने के लिए जो शर्तें बताई गई है वो एक भ्रम है। और मै जान गया हूं उसे कैसे खोलना है। या यूं समझो की मै वो पुस्तक सभी लोगो के लिये खोल सकता हूं।


पलक, उत्सुकता से… "कैसे?"


आर्यमणि:- तुम मांसहारी हो ना। ना तो तुम्हे विधि बताई जा सकती है ना अनुष्ठान का कोई काम करवाया जा सकता है। बस यूं समझ लो कि वो एक शुद्ध पुस्तक है, जिसे शुद्ध मंत्र के द्वारा बंद किया गया है। 7 से 11 दिन के बीच छोटे से अनुष्ठान से वो पुस्तक बड़े आराम से खुल जायेगी। पुस्तक पूर्णिमा की रात को ही खुलेगी और तब जाकर लोग उस कमरे में जाएंगे, पुस्तक को नमन करके अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगे।


पलक:- और यदि नहीं खुली तो..


आर्यमणि:- दुनिया ये सवाल करे तो समझ में आता है, तुम्हारा ऐसा सवाल करना दर्द दे जाता है। खैर, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं उस पुस्तक में। मै बस सही जरिया के बारे में जब सोचा और मौसा जी का चेहरा सामने आया तो हंसी आ गयि। हंसी आयि मुझे इस बात पर की जिस युग में युद्ध के बड़ी मुश्किल से 12 हथियार मिलते हो, वहां 25 अलग-अलग तरह के हथियार बंद लोग। फनी है ना।


पलक, आर्यमणि के गाल को चूमती…. "तुम तो यहां मेरे प्राउड हो। सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन जब हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे तब इन लोगो को एक बार और हम पर प्राउड फील होगा।"


आर्यमणि, हैरानी से उसका चेहरा देखते हुए… "पर ऐसा होगा ही क्यों? मौसा जी से कल मै इस विषय में बात करूंगा और किसी सुध् साकहारी के हाथो पूरे अनुष्ठान की विधि को बता दूंगा। वो जाने और उनका काम।"… कहते हुए आर्यमणि ने पलक को बाहों में भर लिया..


पलक अपनी केवाहनी आर्यमणि के पेट में मारती… "लोग है आर्य, क्या कर रहे हो।"


आर्यमणि:- अपनी रानी के साथ रोमांस कर रहा हूं।


पलक:- कुछ बातें 2 लोगों के बीच ही हो तो ही अच्छी लगती है। वैसे भी इस वक़्त तुम्हारी रानी को इंतजार है तुम्हारे एक नए कीर्तिमान की। यूं समझो मेरे जीवन की ख्वाहिश। बचपन से उस पुस्तक के बारे में सुनती आयी हूं, एक अरमान तो दिल में है ही वो पुस्तक मैं खोलूं, इसलिए तो 25 तरह के हथियारबंद लोगो से लड़ने की कोशिश करती हूं।


आर्यमणि:- ये शर्त पूरी करना आसान है। बुलेट प्रूफ जैकेट लो और उसके ऊपर स्टील मेश फेंसिंग करवाओ सर पर भी वैसा ही नाईट वाला हेलमेट डालो। बड़ी सी भाला लेकर जय प्रहरी बोलते हुए घुस जाओ…


पलक:- कुछ तुम्हारे ही दिमाग वाले थे, उन्होंने तो एक स्टेप आगे का सोच लिया था और रोबो सूट पहन कर आये थे। काका हंसते हुए उसे ले गये पुस्तक के पास और सब के सब नाकाम रहे। क्या चाहते हो, इतनी मेहनत के बाद मै भी नाकामयाब रहूं।


आर्यमणि:- विश्वास होना चाहिए, कामयाबी खुद व खुद मिलेगी।


पलक:- विश्वास तो है मेरे किंग। पर किंग अपनी क्वीन की नहीं सुन रहे।


आर्यमणि:- हम्मम ! एक राजा जब अपने रानी के विश्वास भरी फरियाद नहीं सुन सकता तो वो प्रजा की क्या सुनेगा.. बताओ।


पलक:- सब लोग यहां है, चलो उस पुस्तक को चुरा लेंगे, और फिर 7 दिन बाद सबको सरप्राइज देंगे।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मैं मांग ना लूं।


पलक:- काका नहीं देंगे।


आर्यमणि:- हां तो मैं नहीं लूंगा।


पलक:- तुम्हारी रानी नाराज हो जायेगी।


आर्यमणि:- रानी को अपने काबू में रखना और उसकी नजायज मांग पर उसे एक थप्पड़ लगाना एक बुद्धिमान राजा का काम होता है।


आर्यमणि अपनी बात कहते हुए धीमे से पलक को एक थप्पड़ मार दिया। कम तो आर्यमणि भी नहीं था। जब सुकेश भारद्वाज की नजर उनके ओर थी तभी वो थप्पड़ मारा। सुकेश भारद्वाज दोनो को काफी देर से देख भी रहा था, थप्पड़ परते ही वो आर्यमणि के पास पहुंचा…. "ये क्या है, तुम दोनो यहां बैठकर झगड़ा कर रहे।"..


पलक, अपने आंख से 2 बूंद आशु टपकाती…. "काका जिस काम से 10 लोगों का भला हो वो काम के लिए प्रेरित करना क्या नाजायज काम है।"..


सुकेश:- बिल्कुल नहीं, क्यों आर्य पलक के कौन से काम के लिए तुम ना कह रहे हो।


"मौसा वो"… तभी पलक उसके मुंह पर हाथ रखती… "काका इस से कहो कि मेरा काम कर दे। मेरी तो नहीं सुना, कहीं आपकी सुन ले।"..


सुकेश:- शायद मै अपनी एक ख्वाहिश के लिए आर्य से जिद नहीं कर सका, इसलिए तुम्हारे काम के लिए भी नहीं कह पाऊंगा। लेकिन, भूमि को तो यहां भेज ही सकता हूं।


आर्यमणि, अपने मुंह पर से पलक का हाथ हटाकर, अपने दोनो हाथ जोड़ते झुक गया… "किसी को भी मत बुलाओ मौसा जी, मै कर दूंगा चिंता ना करो। और हां आपने अपनी ख्वाहिश ना बता कर मुझे हर्ट किया है। मै कोई गैर नहीं था, आप मुझसे कह सकते थे, वो भी हक से और ऑर्डर देकर। चलो पलक"..


पलक के साथ वो बाहर आ गया। पलक उसके कंधे और हाथ रखती…. "इतना नहीं सोचते जिंदगी में थोड़ा स्पेस देना सीखो, ताकि लोगों को समझ सको। अभी तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, किताब के बारे में फिर कभी देखते है।"


आर्यमणि:- लोग अगर धैर्य के साथ काम लेते, तब वो पुस्तक कब का खुल चुकी होती। मेरी रानी, 7 दिन के अनुष्ठान के लिए तैयारी भी करनी होती है। 2 महीने बाद गुरु पूर्णिमा है। क्या समझी..


पलक:- लेकिन आर्य, उस दिन तो राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी है...


आर्यमणि:- हां लेकिन वह शुभ दिन है। पुस्तक खोलने के लिए देर रात का एक शानदार मुहरत मे पुस्तक खोलने की कोशिश करूंगा।


पलक:- 7 दिन बाद भी तो पूर्णिमा है..


आर्यमणि:- रानी को फिर भी 2 महीने इंतजार करना होगा। चलो अन्दर चलते है और हां एक बात और..


पलक:- क्या आर्य...


आर्यमणि:- लव यू माय क्वीन...


पलक:- लव यू टू माय किंग...


आर्यमणि, पलक के होंठ का एक छोटा सा स्पर्श लेते… "चलो चला जाए।


आर्यमणि रात के इस पार्टी के बाद सीधा ट्विंस के जंगल में पहुंचा, जहां चारों उनका इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि चारो को सब से खुशखबरी देते हुए बताया.… "2 महीने तक कोई प्रहरी उन्हे परेशान नहीं करने वाला। वो इस वक्त नहीं चाहेंगे कि आर्यमणि अपने पैक के सोक मे रहे, इसलिए यहां तुम सब प्रहरी से मेहफूज हो।"


फिर बात आगे बढ़ाते हुए आर्यमणि उन्हे चेतावनी देने लगा... "प्रहरी कुछ नहीं करेंगे इसका ये मतलब नहीं कि हम सुस्त पड़ जाएं। मानता हूं, तुम सब ने बहुत कुछ झेला है। लेकिन मेरे लिए बस 2 महीने और कष्ट कर लो। अगले 2 महीने तक शरीर को बीमार कर देने वाली ट्रेनिंग, खून जला देने वाली ट्रेनिंग। बिना रुके और बेहोशी में भी केवल ट्रेनिंग। एक बात और, एक शिकारी भी आयेगी तुम सब को प्रशिक्षित करने, कोई काट मत लेना उसे। रूही, मै रहूं की ना रहूं, तुम्हे सब पर नजर बनाए रखनी है"…


रूही:- बॉस 3 टीन वूल्फ की जिम्मेदारी.…. इतने हॉट फिगर वाली लड़की को इतने बड़े बच्चों की मां बना दिये।


आर्यमणि उसे घूरते हुए वहां से निकल गया। आर्यमणि ने अब तो जैसे यहां से दूर जाने की ठान ली हो। मुंबई प्रहरी समूह का नया चेहरा स्वामी भी गुप्त रूप से जांच करने नागपुर पहुंच चुका था। दरअसल वो यहां कुछ पता करने नहीं आया था, बल्कि अपने और भूमि के बीच के रिश्ते को नया रूप देने आया था, ताकि आगे की राह आसान हो जाए।


इसी संदर्व मे जब वो भूमि से मिला और आर्यमणि के महत्वकांछी प्रोजेक्ट, "आर्म्स डेवलपमेंट यूनिट" के बारे में सुना, उसने तुरंत प्रहरी की मीटिंग में उसे "प्रहरी समुदाय महत्वकांछी प्रोजेक्ट" का नाम दिया, जिसे एक गैर प्रहरी, आर्यमणि अपनी देख रेख मे चलाता और उसके साथ प्रहरी की उसमे भागीदारी रहती। पैसों कि तो इस समुदाय के पास कोई कमी थी नहीं। आर्यमणि ने जो छोटा प्रारूप के मॉडल को इन सबके सामने पेश किया। उस छोटे प्रारूप को कई गुना ज्यादा बढ़ाकर एक पूरे क्षमता वाले प्रोजेक्ट के रूप में गवर्नमेंट के पास एप्रोवल के लिए भेज दिया गया था।


शायद एप्रोवाल मे वक्त लगता, लेकिन गवर्नमेंट को सेक्योरिटीज अमाउंट दिखाने के लिए आर्यमणि के पास कई बिलियन व्हाइट मनी उसके कंपनी अकाउंट में जमा हो चुके थे। देवगिरी भाऊ अलग से अपनी कुल संपत्ति का 40% हिस्सा आर्यमणि को देने का एनाउंस कर चुके थे।


हालांकि इस घोसना के बाद मुंबई की लॉबी में एक बार और फुट पड़ने लगी थी। लेकिन अमृत पाठक सबको धैर्य बनाए रखने और धीरेन पर विश्वास करने की सलाह दिया। उसने सबको केवल इतना ही समझाते हुए अपना पक्ष रखा.… "स्वामी, प्रहरी के मुख्यालय, नागपुर में है। इतना घन कुछ भी नहीं यदि वो प्रहरी भारद्वाज को पूरे समुदाय से साफ कर दे। एक बार वो लोग चले गये फिर हम सोच भी नहीं सकते उस से कहीं ज्यादा पैसा हमारे पास होगा"…


मूर्ख लोग छोटी साजिशों से बस भूमि की मुश्किलें बढ़ाने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे। लेकिन इन सब को दरकिनार कर भूमि और आर्यमणि दोनो जितना वक्त मिलता उतने मे एक दूसरे के करीब रहते। आर्यमणि भूमि के पेट की चूमकर, मुस्कुराते हुए अक्सर कहता... "हीरो तेरे जन्म के वक्त मै नहीं रहूंगा लेकिन तू जब आये तो मेरी भूमि दीदी को फिर मेरी याद ना आये"…


भूमि लेटी हुई बस आर्यमणि की प्यारी बातों को सुन रही होती और उसके सर पर हाथ फेर रही होती। कई बार आर्यमणि कई तरह की कथाएं कहता, जिसे भूमि भी बड़े इत्मीनान से सुना करती थी। कब दोनो को सुकून भरी नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता था।


आर्यमणि कॉलेज जाना छोड़ चुका था और सुबह से लेकर कॉलेज के वक्त तक अपने पैक के साथ होता। उन्हे प्रशिक्षित करता। अलग ही लगाव था, जिसे आर्यमणि उनसे कभी जता तो नहीं पता लेकिन दिल जलता, जब उसे यह ख्याल आता की शिकारी कितनी बेरहमी से एक वूल्फ पैक को आधा खत्म करते और आधा को सरदार खान के किले में भटकने छोड़ देते।


उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।
Palak or aaraya ka rishta alag hi mukaam pe hai jise samajna abi mushkil hai.par bhumi ke sath aaryaa ka payar ek bhai behan ke payaar ko bohot ache se darsha rahe ho mitr
Kaya kahu kehne ke liya shabd hi nai
NISHABD💯💯💯💯💯💯💯💯💯
अपडेट का अंतिम पैराग्राफ एक बार फिर से हमें भ्रम में डाल रहा है । " आर्य मणी को पलक के साथ भी कुछ लगाव हो गया था । " इसका मतलब क्या था ! क्या आर्य , पलक के राज फाश के बावजूद भी उससे सहानुभूति रखता है ? और अगर रखता है तो क्यों ?
सतपुड़ा के जंगलों में हुए नरसंहार की वजह थी वो । सैकड़ों निर्दोष लोगों के मृत्यु की कारण थी वह । फिर कैसे आर्य को उसमें लगाव जैसी चीजें दिखाई दी ?
आर्य ने अब तक एक बार भी रिचा के लिए दो सहानुभूति भरा शब्द नहीं कहा .... यहां तक कि भूमि ने उसके मौत पर कोई खास संवेदना नहीं दिखाई । भूमि दुखी थी लेकिन इसलिए कि उसके दो प्रमुख सिपाहसलार निर्दोष होने के बावजूद कत्ल कर दिए गए । अपनी ही ननद की मृत्यु पर वैसा शोक व्यक्त नहीं किया जैसा कि अक्सर होता है ।

रिचा निर्दोष होकर एवं वीरगति को प्राप्त कर वो सहानुभूति नहीं बटोर पाई जो पलक गुनाहगार होने के बावजूद भी बटोर ली ।

इससे तो यही लगता है कि कहानी में अभी भी बहुत बड़ा झोल है । हो सकता है रिचा सच में ही दोषी हो और पलक निर्दोष ।


पार्टी के दरम्यान आर्य का प्रहरियों का इमोशन्स कैच करना और ना कर पाना प्रहरियों के गुणदोष की विवेचना करता है... शायद । नम्रता के इमोशन्स कैच कर लिया था आर्य ने । इसका तात्पर्य शायद वो एक आम इंसान ही है ।

किताब अब तक इस पुरे कहानी का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट बन गया है । आखिर है क्या इस किताब में जिसे सैकड़ों सालों से प्रहरी खोल ही नहीं पा रहे हैं ? इस किताब के अन्दर ऐसा कौन सा कारू का खजाना छुपा हुआ है जिसके लिए सभी व्याकुल हो रखे हैं ? आखिर यह किताब एक खास दिन और खास मौके पर ही क्यों खुल सकती है ?

अपडेट निःसंदेह बहुत बेहतरीन था लेकिन हर बार की तरह एक बार फिर से कुछ सवाल छोड़ गया ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट नैन भाई ।
और जगमग जगमग भी ।
Sanju Bhai aap se acha vishleshak koi nai lazwaab 👏👏👏👏👏🙏🙏🙏🙏
Hahahaha... Bus ye aakhri chalkar tha iske baad koi jhatka nahi tiger bro...
Pagal na bano nainu bhai,aap kahani mai hum jitne bi readers hai vo becharye kaya hoga kya nahi kyaas hi lagate rahenge or aap hame hi surprise dete jayoge janta hu apko❤️❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🐯🐯🐯🐯
 
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Lib am

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
अब आर्य को भी कन्फर्म हो ही गया की पलक भी इस साजिश की हिस्सेदार है वर्ना इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी कोई कैसे खोल सकता है। बुरा लगा की एक अच्छी प्रेम कहानी थी मगर झूठी निकली।

दो महीने खतम होने वाले है और शादी के दिन आर्य पर हमला होना है इसका मतलब हमला सरदार खान करेगा और फिर उस हमले में कुत्तागती को प्राप्त होगा। फिर शुरू होगा ताकत का खेल की किसके पास कितनी ताकत है।

माधव चित्रा की कहानी सही जा रही है मगर ऐसा तो हो नहीं सकता की घर में इतने पोलिस वाले हो और किसी को पता ही ना हो तो कहीं यहां भी तो कोई गेम नही है आर्य को इमोशनल ब्लैकमेल का और उस पर नजर रखने का क्योंकि चित्रा आर्य और निशांत दोनो की कमजोरी है। शानदार अपडेट।
 

Tiger 786

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
Yaaro dosto ke sath masti bhare pal bi kyaa baat hai yaar hamara ghuzra jamana yaad dilya diya
Atti uttam update
 

andyking302

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भाग:–34





रविवार का दिन। छुट्टी कि सुबह लेकिन आपातकालिक बैठक प्रहरी की। उच्च सदस्यी बैठक में पलक बोर ना हो इसलिए अपने सहायक तौड़ पर वो आर्यमणि को ले जाना चाहती थी। लेकिन वुल्फ पैक के मसले को देखते हुए पलक निशांत को ले गयी।


निशांत के पापा राकेश और मां निलांजना भी इस सभा के लिए पहुंचे और घर में चित्रा हो गई अकेली। अकेले उसे बोर लगने लगा इसलिए वो माधव को कॉल लगा दी… "क्या हो रहा है बेबी।"


माधव:- तुम यकीन नहीं करोगी चित्रा दिमाग में एक दम धांसू कॉन्सेप्ट आया है। मै उस इंजिनियरिंग पर दिमाग लगा रहा था जिसने बिना हैवी मैकेनिकल प्रोसेस के समुद्र में पुल बांध दिया। रामायण का वो तैरता पत्थर का पुल।


चित्रा, थोड़ी उखड़ी आवाज़ में… "ठीक है पुल बनाकर मुझे कॉल करना।"..


माधव:- सॉरी सॉरी, अब क्या करे हमरा रूममेट भी बात नहीं करना चाहता और इतना बढ़िया कॉन्सेप्ट था कि तुम्हे बताए बिना रह नहीं पाए। सॉरी, लगता है फिर से तुम्हे बोर कर दिया।


चित्रा:- वो सब छोड़ो और जल्दी से मेरे घर आ जाओ।



माधव:- पगला गई हो क्या? तुम्हारे बाबूजी को पता चला तो हमको जेल में डाल देंगे। फिर हम सरकारी नौकरी नहीं कर पाएंगे और जब सरकारी नौकरी नहीं रहेगी तो फिर हम तुम्हारा हाथ मांगने किस मुंह से आएंगे?


चित्रा:- फट्टू 2 मिनट में तैयार होकर 10 मिनट में आओ। वरना मै उस वर्मा को हां बोल दूंगी और उसमे इतनी डेरिंग तो होगी ही।


माधव:- अब ऐसे बोलकर मेरे दिल में चाकू मत घोपो। आ रहे है। बाबूजी कहते थे..


चित्रा:- इतनी ही अच्छी-अच्छी बातें करते थे तुम्हारे बाबूजी तो तुम कहां से पैदा हो गये? ये नहीं बताते थे कि रोमांस भी किया करते थे।


माधव:- देखो तुम ऐसे बात मत करो वरना झगड़ा हो जाएगा।


चित्रा:- यहां आकर झगड़ा करो…


चित्रा का फोन डिस्कनेक्ट होते ही माधव जल्दी से तैयार हो गया। बाइक स्टार्ट करके… "लगता है आज कहीं पिटवाने का ना प्लान बनाई हो। माता रानी बचा लेना।"..


कुछ ही देर में माधव चित्रा के घर था। बाहर खड़ा सुरक्षाकर्मी उसे रोकते हुए… "क्या काम है।"..


माधव:- चित्रा के हम क्लासमेट है, उसे कुछ टॉपिक पर डिस्कस करना था। अब उ तो बॉयज हॉस्टल आ नहीं सकती इसलिए मुझे बुला लिया। अब आप रास्ता देंगे तो हम जाए।


सुरक्षाकर्मी:- रुको यहां..


कुछ देर बाद चित्रा खुद ही बाहर आयी और सुरक्षाकर्मी को उसका परिचय देती हुई बताने लगी कि ये मेरा दोस्त है। दोनो अंदर आए। माधव कुछ घबराया सा लग रहा था। चारो ओर देख भी रहा था कहीं घर पर इसकी मम्मी तो नहीं।… "बाहर तो बड़ा तनकर बात कर रहे थे, घर के अंदर इतनी फटी क्यों है?"


माधव:- अरे एक लड़की के घर कोई लड़का आ जाए तो तुम जानती नहीं की कितनी बड़ी बात हो जाती है।


चित्रा मुख्य द्वार लॉक करती… "हां बताओ कितनी बड़ी बात हो जाती है।"..


माधव ने एक नजर चित्रा को देखा और अगले ही पल उसके कमर में हाथ डालकर अपने पास खिंचते हुए… "घर में मम्मी डैडी कोई नहीं है ऐसा कहो ना।"


चित्रा:- क्या कर रहे हो, ऐसे खुले में कौन पकड़ता है।


माधव:- आज तो खुले में साथ नहाएंगे भी… डैडी मम्मी हैं नै घर पे, पिछले कमरे में घुस के, कुछ तो करेंगे छुप के, मिल ज़रा..


चित्रा:- हीहिहिही… उल्लू गाने में भी "छुप के मिल ज़रा" कह रहे है।


माधव:- गलत गाना गा दिया.. यहां गाना चाहिए "खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों।"..

चित्रा:- ठीक है फिर किसके पप्पा को लगा दू फोन, तुम्हारे या मेरे…


माधव, चित्रा से अलग होते… "देखो बाबूजी के नाम पर डराया ना करो।"


चित्रा माधव के पेट में गुदगुदी करती हुई… "तो किसके नाम से डराऊं हां। बताओ ना, हां बताओ बताओ।"..


माधव चित्रा का हांथ खिंचते, अपने ऊपर लिया और उसके खुले बाल को चेहरे से किनारे करते हुए, उंगली उसके चेहरे पर फिराते… "तुम्हारी आखें ही काफी है मुझे डराने के लिए। पहले ये डर था कि सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी तो मै क्या करूंगा, अब ये डर लगा रहता है कि तुम ना मिलेगी तो क्या करूंगा।"


चित्रा, अपने होंठ आगे बढ़ती… "फिलहाल तो हम किस्स करेंगे।"…


दोनो एक दूसरे को होंठ से होंठ लगाते हुए चूमने लगे। चूमते हुए माधव अपने हाथ चित्रा के बदन पर चलने लगा और चित्रा अपने हाथ माधव के बदन पर। एक दूसरे के होंठ में होंठ दबाकर किस्स कर रहे थे और किस्स के साथ माधव ने स्मूच करते हुए, उसके टॉप के ऊपर से उसके स्तन को भींच लिया।


"आह्हह" की कामुक मधुर आवाज के साथ चित्रा ने दबी सी सिसकी ली, और उखड़ती सी आवाज में कहने लगी… "यहां नहीं, रूम में चलते है।"..


दोनो तेजी से रूम में आए, चित्रा ने आते ही दरवाजा बंद कर लिया और एक दूसरे के होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगे। चूमते हुए एक दूसरे के कपड़े भी उतार दिए। दोनो इनरवेयर में खड़े एक दूसरे को चूम रहे थे और एक दूसरे के बदन पर हाथ चला रहे थे।


माधव अपने दोनो हाथ चित्रा के स्तन से टिकाते हुए, ऊपर की ओर धकेलते स्तन पर हल्का-हल्का मसाज देने लगा… "आह, माधव प्लीज मेरे बूब्स छोड़ दो, पहले से ज्यादा बढ़ गए है।"…. "और पहले से ज्यादा सेक्सी भी हो गए है।".. कहते हुए माधव ने ब्रा के कप को हटाया और निप्पल को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा और दूसरे हाथ को पैंटी के अंदर डालकर उसके योनि को मसलने लगा।


चित्रा की गरदन जैसे अकड़ कर टाईट हो गई हो। वो बेकाबू होकर अपने मुट्ठी से उसके सर के बाल को पकड़ कर भींचने लगी और मादक श्वांस लेने लगी। माधव ने चित्रा को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके पाऊं से पैंटी को खोलकर बाहर निकालते हुए चित्रा के पाऊं को फैला दिया… "नहीं माधव, वहां मुंह मत… आह्हुह .. क्या कर रहे हो… उफ्फ … नहीं माधव प्लीज… आहह"… चित्रा बिस्तर पे लेट कर छटपटाने लगी और अपने कमर को हिलाती हुई, माधव के बाल को पकड़ कर उसे अपने ऊपर ले ली… उसकी आखों में देखती हुई कहने लगी… "तुम्हारे होंठ मेरे होंठ को चूमने के लिए है, अगर दोबारा ऐसा किया ना"… "उम्ममममममम"… माधव होंठ से होंठ लगाकर पूरे होंठ का रसपान करने लगा।


चित्रा अपने पाऊं को हलक मोड़कर कमर को ऊपर के ओर उभार ली। अपने हाथ से माधव का लिंग पकड़कर अपने योनि पर घीसने लगी। लिंग और योनि के घिसने के साथ दोनो के बदन मचले हो जैसे। माधव ने कमर को स्मूथली झटका दिया और चित्रा भी अपने कमर को धीरे से ऊपर करती, योनि में लिंग का मादक स्वागत करने लगी।


माधव अपने दोनो हाथ बिस्तर से टिका कर बदन को चित्रा के ऊपर किया और चित्रा की आखों में देखकर उसे लगातार प्यार से धक्के मारने लगा। चित्रा योनि के अंदर लिंग के झटके को उतने ही प्यार और कामुकता से मेहसूस कर रही थी। चित्रा कामुकता में अपने आगे के बदन को ऊपर उठाकर माधव के निप्पल पर अपना जीभ फेर रही थीं।

दोनो के बदन पसीने से लथपथ थे। हर धक्का मज़ा का नया अनुभव करवाता। उत्तेजना अपने चरम पर पहुंच रही थी और माधव के झटको की रफ्तार बढ़ने लगी। धक्कों की रफ्तार बढ़ते ही चित्रा का शरीर अकड़ कर जोड़ का झटका लिया और चित्रा अपने कमर को पीछे करती उठकर बैठ गयी। बैठने के साथ ही लिंग को हाथ में लेकर 2 बार जोर हिलाई ही थी कि उसका पुरा पिचकारी नीचे बिस्तर पर।


हांफते हुए माधव बिस्तर पर आकर लेट गया। और चित्रा उसके सीने से लिपट गई। माधव उसके कमर पर रखे अपने हाथ को देखकर हंसते हुए कहने लगा… "तुम्हारा बदन बिल्कुल दूध की तरह है और मेरा सवाल। तुम्हारे बदन पर मेरा हाथ तो अजीब सा काला दिखने लगा।


चित्रा अपने आंख खोलकर घूरती हुई… "बाज नहीं आओगे इन सबसे ना। चलो उठो और जाकर मेरे बेडशीट को वाशिंग मशीन में धोकर आओ।"..


माधव:- पागल हो क्या, इतना सुकून मिल रहा है, मै तो तुम्हारे बदन को देखकर सेकंड राउंड की तैयारी में हूं। अभी थोड़ा बहुत ठीक भी हुए है, सेकंड राउंड करते रहे ना तो आम का गुठली हो जाओगे। चलो उठो जल्दी से। वैसे भी बहुत सारे स्टाफ आते-जाते रहते है। मुझे तुम्हारे साथ पढ़ना भी है।


दोनो ने कपड़े पहन लिए। चित्रा अपने बाल बनाकर बाहर आयी और "माधव के साथ पढ़ाई कर रही हूं" ऐसा संदेश भेजने के लिए मोबाइल हाथ में ली ही थी, की मुह से निकल गया... "ओह नो।".. और ठीक उसी वक्त... "चित्रा मैंने बेडशीट साफ कर दिया। कहां सूखने दूं।"


चित्रा:- मेरे सर पर..


माधव:- रुमाल तो सूखा भी लोगी, ई बेडशीट कैसे शुखेगा..


चित्रा:- डफर बाहर आर्य आया है। एसएमएस किया है मुझे, माधव की गाड़ी बाहर खड़ा देखा, जब फ्री होना तो कॉल कर देना।


माधव:- हां तो इसमें इतना ओवर रिएक्ट काहे कर रही हो। छोड़ो रिस्पॉन्ड ना करो। 2-3 घंटे पढ़ते है फिर उसके बाद कॉल लगाकर उल्टा डांट देना आया तो कॉल करता या स्टाफ के हाथ से खबर भिजवा देता।


चित्रा:- पागल है क्या? एक तो वो वैसे भी कम आता है ऊपर से इंतजार करवाऊं। मै मेरे बाप को इंतजार करवा सकती हूं उसे नहीं। इतना डरना क्यों वैसे भी मेरा दोस्त है, और वो हमारे बारे में जानता है। लाइव देखता तो उसे अजीब लगता, बाकी पता तो उसको भी होगा कि हमारे बीच क्या होता होगा।


माधव:- तो जाओ ना बुला लाओ। इतना सोच क्यों रही हो।


चित्रा:- हां जा रही हूं बस तुम कोई छीछोड़ी हरकत मत करना और कम बोलना। हो सके तो बोलना ही नहीं। ठीक है।


माधव:- हा ठीक है समझ गया।


चित्रा एक बार और खुद को आइने में देखी और दरवाजा खोलकर बाहर निकाल गई। सामने आर्यमणि सुरक्षाकर्मी के पास बैठकर कुछ बातें कर रहा था।… "सर आप बता तो देते की आर्य आया है।"..


सुरक्षाकर्मी:- चित्रा मैंने इनसे कहा मै चित्रा को इनफॉर्म कर देता हूं, यही कहने लगे नहीं मै एसएमएस कर देता हूं, वो जब मेरा संदेश देखेगी आ जाएगी।


चित्रा आर्य को आखें दिखाने लगी। आर्य मुसकुराते हुए उसे सॉरी कहा और उसके गले लगते हुए… "कैसी है।"..


चित्रा:- गुस्सा हूं तुझ पर। मै और निशांत तो तेरे लिए भूली कहानी हो गए ना।


आर्यमणि:- हां दूर हो सकता हूं, बात नहीं हुई ये भी मान सकता हूं, लेकिन तुम दोनो को जब ऐसा लगे कि मै भुल गया और तुम्हारे बुलाने पर भी नहीं आया तो समझ लेना की या तो मै मर गया या मर रहा हूं।


चित्रा, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाकर उसके गले लग गई और उसके गर्दन पर चूमती… "पागल यहां क्या रुलाने आया है।"..


आर्यमणि, चित्रा के पीठ पर हाथ ठोकते…. "गला छोड़ तेरा मजनू जल भुन रहा है।"


चित्रा:- अभी-अभी उसे पूरा मज़ा देकर आ रही हूं, इसके बाद भी जलेगा तो अपने घर जाएगा। लेकिन तू ऐसी बात करेगा तो तू भी सजा पाएगा, मै तुमसे बात ही करना बंद कर दूंगी। ना बात होगी ना ऐसे बोलेगा।


आर्यमणि उसके सर पर एक हाथ मारते… "झल्ली कहीं की, चल जारा मिलवाओ आज अच्छे से। ठीक से मिल नही पाया मै माधव से।"


चित्रा उसे लेकर अंदर आयी और दरवाजा वापस से बंद करती… "माधव ये है मेरा बेस्ट फ्रेंड और मेरा सबसे क्लोज आर्यमणि। आर्य ये है माधव, मेरा लवर और मेरे होने वाला जीवन साथी।"


माधव:- जानता हूं.… इतना गौर से मुझे क्यों देख रहे हो आर्य, मै सांवला ये बिल्कुल गोरी, और हमारी बेकार सी जोड़ी। चित्रा जैसी लड़की मुझे अपना जीवनसाथी कैसे चुन सकती है?


आर्यमणि:- बकवास हो गई। चित्रा जाओ तैयार होकर आओ, हम घूमने जा रहे है।


माधव:- हम कहां जा रहे है?


चित्रा:- सुना नहीं घूमने।


कुछ देर माधव और आर्यमणि के बीच खामोशी रही… "उ चित्रा को हम फिजिक्स और मैथमेटिक्स पढ़ाने आए थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम !


माधव फिर कुछ देर ख़ामोश रहकर टेबल पर उंगलियां चलाते… "पलक और मै दोनो अच्छे दोस्त है। तुम तो देखे ही हो।"


"चलो चलते है।"… चित्रा आ गई और सब चल दिए। आर्यमणि चित्रा से कार की चाभी लेकर गराज की ओर गया और ये दोनो खुसुर-फुसुर करते दरवाजे तक जा रहें थे। माधव, चलते-चलते … "सुनो चित्रा"..


चित्रा:- ऐसे दबे गले से क्या बोल रहे हो। साफ साफ कहो ना..


माधव:- अरे धीमे बोलो। मुझे लगता है आर्य को हमारे बारे में शक हो गया है, और उ हमसे नफरत कर रहा है। बड़ा ही डराने वाला हाव भाव था वो भी बिना नजर मिलाए। घुर कर देखता फिर क्या होता मेरा?


चित्रा:- पागल हो क्या कुछ भी सोच रहे हो।


माधव:- अरे सही सोच रहे हैं। वो एक में 2 मिलाकर हमारी कहानी और लंबी कर देगा।


चित्रा:-1 में 2 मिलाकर मतलब, हम दोनों के बीच सेक्स हुआ इसे लंबा करके कहेगा हम थ्री सम कर रहे थे। और जब हम दोनों गले लगे हुए थे तब तुम इतना जेलस फील क्यों करते हो। हम दोनों पूल में न्यूड होकर नहाया करते थे, उस उम्र से साथ है बेवकूफ, और तुम शक्की नजर से देख रहे थे माधव।


माधव:- अरे अर्थ का अनर्थ काहे कर रही हो। मुझे डर लग रहा है हमरे बाबूजी को जब पता चलेगा हम शादी से पहले इ सब किए है, हमरी खाल खींच लेंगे।


तभी हॉर्न बजने लगी। चित्रा उसकी हालत पर हंसती हुई… "जाओ उसके साथ आगे बैठ जाओ और थोड़ी जान पहचान बढ़ाओ।"..


माधव चुपचाप जाकर पीछे बैठ गया, और चित्रा को आगे बैठना पड़ा। गाड़ी उन्हीं पहाड़ियों पर चल दी जहां आर्यमणि रूही और अलबेली को ट्रेनिंग देता था। गाड़ी जैसे ही थोड़ी दूर चली… "तू माधव से अच्छे से बात क्यों नहीं करता?"..


आर्यमणि:- मैंने कब बुरे तरीके से बात किया है। मै बैठा था और ऐसे बेवकूफों की तरह बात कर रहा था मानो पहली या दूसरी मुलाकात हो।


माधव:- सॉरी वो हम थोड़ा घबरा गए थे। वैसे हम कहां जा रहे है।


चित्रा और आर्यमणि एक साथ… "घूमने"


कुछ ही समय में तीनों जंगल के उस हिस्से में थे जहां रूही और अलबेली को आना था। माधव वहां पर चारो ओर देखते… "यहां कोई शेर, चीता या भालू तो नहीं रहता ना।"


आर्यमणि:- नहीं यहां भेड़िया पाए जाते है।


माधव:- काहे मज़ाक कर रहे हो। यहां कहां से भेड़िया आ गए। यें अपने कॉलेज की लड़की रूही है, अपनी बहिन के साथ आ रही।


रूही तो बड़े आराम से चल रही थी लेकिन अलबेली किसी इंसान की खुशबू पाकर खींची चली आ रही थी। … "अलबेली तुम इधर आओ। रूही इनसे मिलो ये है माधव, चित्रा का लवर। अभी के लिए इसे तुम अपना बॉयफ्रेंड मान सकती हो जाओ इसे जंगल घुमा लाओ।"


अलबेली:- रूही का चेहरा देखो उसे मज़ा नहीं आएगा, मै जाती हूं, घुमा कर ला देती हूं।


आर्यमणि:- जी नहीं, तुम बैठकर चित्रा से बातें करोगी।


अलबेली, चित्रा की खुशबू अपने जहन में उतारती…. "हम्मम ! बड़ी प्यारी खुशबू है।"



रूही:- चलिए बॉयफ्रेंड जी, आपको घूमाकर लाया जाए..


चित्रा, आर्यमणि की बांह थामती… "सेफ तो है ना।"


आर्यमणि:- मै हूं ना तुम चिंता क्यों करती हो। लेशन 1 याद रहे अलबेली, मुझे फिर दोबारा ना कहना परे।


अलबेली, अपने अंदर शवंस खींचती… "सॉरी भईया थोड़ी भटक गई थी".. फिर चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लाती…. "हेल्लो चित्रा, मेरा नाम अलबेली है। मुझसे दोस्ती करोगे।"..


चित्रा उसके प्यारे से दोनो गाल खिंचते…. "तुम तो काफी प्यारी हो अलबेली, थोड़ी बड़ी हो जाओगी तो लड़को की लाइन लगेगी।"


अलबेली पहली बार किसी इंसान से मिल रही थी। शुरवात को एडजस्ट करने के बाद धीरे-धीरे वो भी माहौल में रमती चली गई। बात करना उसे इतना पसंद आया कि वो लगातार बात करती चली गई। इधर रूही भी माधव के साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल रही थी। वो भी पहली बार किसी इंसान के साथ इस कदर अकेली थी, लेकिन बहुत प्यारा अनुभव था। ऊपर से माधव की फनी बातें, उसे हंसने पर मजबूर कर देती। आर्यमणि अपने इतने दिनो की ट्रेनिंग को सफल होते हुए देख रहा था। रूही तो पहले भी सामान्य लोगों के साथ रह चुकी थी, लेकिन अलबेली के लिए पहला अनुभव था और काफी संतोषजनक था।

Khubhsurat update bhai
 

andyking302

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भाग:–35






प्रहरी की इमरजेंसी मीटिंग…


सुबह-सुबह ही हर कोई मीटिंग एरिया में पहुंच चुका था। पिछली मीटिंग की तरह ही इस मीटिंग में भी दिग्गज पहुंचे हुए थे। तकरीबन 40 उच्च सदस्य और 20 रिटायर्ड सदस्य के साथ कुल 120 लोग पहुंचे हुए थे। 40 उच्च सदस्यों में से 30 उच्च सदस्य 3 मजबूत परिवारों से थे, पाठक, शुक्ल और महाजन। तत्काल समय में प्रहरी के रीढ़ की हड्डी और आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे सुदृढ़।


पिछली मीटिंग में इन्होंने ही पलक की रीछ स्त्री की कहानी को बेबुनियाद बताया था, हां लेकिन उसकी खोज को पूर्ण रूप से सराहा भी था। उच्च सदस्यों कि अध्यक्षता देवगिरी पाठक किया करते थे, जिन्हें भाऊ के नाम से सभी संबोधित करते थे। इनका प्रमुख काम राजनीतिक पार्टियों को फाइनेंस करना तथा अरबों के टेंडर को उसके बदले में अपने नाम करवाना।


आज का मीटिंग कॉर्डिनेटर भाऊ के मित्र अप्पा शुक्ल के बेटे हंस शुक्ल था जो भाव का दामाद और इस संगठन का सबसे स्वार्थी व्यक्ति कहा जाता था। भूमि और इसकी आपसी मतभेद के किस्से पूरे संगठन में प्रचलित थे, जहां हंस स्थाई और अस्थाई सदस्यों के बीच भूमि की बढ़ती लोकप्रियता से काफी जला भूना सा रहता था।


मीटिंग की शुरवात करते हुए…. "हमारे गढ़ नागपुर इकाई को हम कमजोर होते देख रहे है। ऐसा लग रहा है एक गौरवशाली इतिहास का अंत हो रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सुकेश भारद्वाज और उज्जवल भारद्वाज इस खंड के स्वांस नली है जिसके बिना खंड अधूरा है। लेकिन उनके जाने के बाद हमे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि तेजस भारद्वाज ने वो उत्तरदायित्व नहीं निभाया जो उन्हें निभाना चाहिए। मै तेजस से इस विषय में विचार रखने के लिए कहूंगा।"..


तेजस:- आप सबका धन्यवाद लेकिन मुझे जब विषय कि जानकारी ही नहीं होगी तो मै किस विषय में बात करूंगा मुझे समझ में नहीं आ रहा। जिस प्रकार से हंस शुक्ल ने अपनी बात रखी है, ऐसे में मुंबई इकाई, नाशिक इकाई और उन इकाइयों में पड़ने वाले जितने भी डिविजनल इकाई है इनपर सवाल उठा सकता हूं। ये प्रहरी का गढ़ है जिसे ना तो छल से और ना ही बल से कमजोर किया जा सकता है। उच्च सदस्य के मेंबर कॉर्निनेटर की ये पहली भुल समझकर मै माफ़ करता हूं, आइंदा अपने कहे शब्दो पर पहले 2 बार विचार करे फिर अपनी बात रखें।

उच्च सदस्य के अध्यक्ष देवगिरी पाठक… "तेजस लगता है वैदेही से झगड़ा करके आया है, इसलिए हंस की बातों से चिढ़ गया, और हंस अगली बार बोलने से पहले अपने कहे शब्दों पर वाकई तुम्हे विचार करना चाहिए। पहली बात तो ये की हम अंग्रजी कल्चर नहीं फॉलो करते इसलिए हम एक दूसरे को इज्जत देने के लिए सर नहीं बल्कि काका, दादा, भाऊ कहते है। तुम अपनी बात रखो की नागपुर इकाई तुम्हारे हिसाब से कमजोर क्यों लग रहा है और मीटिंग की बातें सुनो। और ये भूमि किधर गई। आह वो रही मेरी बच्ची। अरे कॉर्डिनेशन वाला पुरा जिम्मा इसे ही दिया करो। ये जब बोलती है तो लगता है हां बोल रही है। सुकेश दादा आपने अपने जीवन काल में ऐसा मीटिंग और मेंबर कॉर्डिनेटर देखा था क्या कभी?"


सुकेश:- एक जाता है दूसरा आता है। और मुझे ऐसा क्यों लगता है भूमि ने जिस हिसाब का अपना सब ऑर्डिनेट लेकर आयी है वो भूमि से भी ज्यादा बेहतर होगा। मै चाहूंगा देव तुम राजदीप को कहो आज कि मीटिंग कॉर्डिनेटर करने।


देवगिरी:- दादा ने कह दिया समझो हो गया। राजदीप आजा भाई लेले मीटिंग..


राजदीप:- अब क्या ही बताऊं... मेमेबर कॉर्डिनेटर और मीटिंग कॉर्डिनेटर की पोस्ट को भूमि दीदी इस ऊंचाई पर ले गई की मुझे लगता है मै खड़ा ना उतरा तो मुझे उसी ऊंचाई से कूदकर जान देनी होगी। खैर मै हंस दादा से कहूंगा, अपनी बात को थोड़ा पुष्टि करते हुए बताए की उनकी बात का आधार क्या है?



हंस अपनी फजीहत देखकर उठा नहीं, उसके बदले महाजन परिवार का सदस्य रवि महाजन खड़ा होकर कहने लगा… "एक 20 साल की लड़की को बिना किसी बैठक के उच्च सदस्य बना देना ये एक गैर जिम्मेदाराना कदम था। उज्जवल काका ने वो किया यहां तक कि इस बात की खबर सुकेश काका को भी नहीं थी। जबकि दोनो एक ही शहर में थे। विष मोक्ष श्राप से किसी को भी बंधा जा सकता है लेकिन पलक भारद्वाज ने ऐसी प्रजाति का उदय करवा दिया जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं।"

"भूमि बहिनी का उस चहेते भाई का किस्सा भी हमने सुना था जो गंगटोक में एक वेयरवुल्फ के मोह में था। पहले उसका घर से भाग जाने। बाद में भूमि बहीन अपने सबसे बेस्ट शिकारी को लेकर 75 दिनों तक विदेश कि खाक छान रही थी। उस लड़के आर्यमणि ने 2 वुल्फ बीटा के पाऊं तोड़ दिए और उसका वीडियो हमारे सदस्यों को दिखाया जा रहा है। इससे कई ज्यादा हैरतअंगेज कारनामे हमारे शिकारी कर चुके है जिसकी लिस्ट लंबी है सुनाने लगुं तो रात हो जाएगी।"

"एक प्रतिबंधित परिवार के बच्चे को अपने पास रखी। मै रिश्ते और रिश्तेदारों के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन पहले अपने ओहदे को देखना था। भूमि एक आइकन है। हमारा लगभग जितने भी अस्थाई सदस्य है और नए बन रहे स्थाई सदस्य, सब भूमि को फॉलो करते हैं। उसे इस बात का ख्याल होना चाहिए था। उच्च सदस्यों के कार्यकारणी में कई आम सदस्यों के ख़त पहुंच रहे है कि आखिर वर्धमान कुलकर्णी को इतनी बड़ी सजा क्यों हुई?"

"सदस्य मांग कर रहे है उच्च सदस्य माफी मांगे और जाकर उसके पोते को इस सभा में लेकर आए, जबकि इसमें कोई दो राय नहीं कि वो भी अपने दादा की तरह उतना की खतरनाक है। एक चिंता का विषय क्योंकि उसने भी वही किया। वुल्फ के साथ दोस्ती, उसके साथ पैक बनाना, शायद दादा से एक कदम आगे है। इतना होने के बावजूद भी हमारे उच्च सदस्य उस लड़के से रिश्तेदारी निभा रहे है और ऐसे भटके लड़के से हमारे के उच्च सदस्य का लगन भी करवा रहे। नागपुर इकाई में कोई कुछ कहने वाला नहीं है क्या, या फिर वैधायन वंसज ने कुछ विटो जैसा पॉवर अपने पास रखा है, जो यूनिट नेशनल काउंसिल में होता है।"


राजदीप:- काफी तैयारी से आए है रवि भाऊ। मुझे ऐसा क्यों लगा रहा है कि इस इकाई में हमने सारा कार्यभार भूमि दीदी और तेजस दादा को दे रखा है। नाह जवाब के लिए मै भूमि दीदी को नहीं बुलाने वाला बल्कि पलक को बुलाना चाहूंगा। हमारे बीच की सबसे कम उम्र की उच्च सदस्य।


पलक:- काफी सारी बातें और काफी सारे सवाल और हर सवाल का मुख्य केंद्र जैसे भारद्वाज परिवार ही हो। खैर मै इसपर भी आऊंगी जब मै अपनी पूरी बात रखूंगी। पहले तो मै एक बात बताना चाहूंगी आर्य का लगन मेरे घरवालों ने करवाया। मेरा पूरा खानदान वहां बैठा था। उससे पहले मै आर्य को कॉलेज से जानती थी लेकिन किन्हीं कारणों की वजह से हमारी कभी 2 लाइन से ज्यादा बात नहीं हुई। वो भी 2 लाइन की बात मेरे मौसेरे भाई बहन चित्रा और निशांत के कारण हो जाती थी। अब प्वाइंट पर आती हूं। घरवालों ने लड़का दिखाया और मैंने हां कहा। उसके बाद भी मै मुश्किल से 1 घंटे के लिए उससे मिली होऊंगी। लेकिन जबसे, "वो मेरा है" इस ख्याल से उसे मैंने जितना जाना है उसके बाद मै भरी सभा में कहती हूं अब ये रिश्ता मेरे घरवाले ही क्यों ना तोड़ दे, मै अपना लगन उसी से करूंगी फिर चाहे जो हो जाए। मेरे दिल ने उसे स्वीकार लिया है। रही बात उसके खतरनाक होने की तो इसपर मै अपने सहायक को बुलाना चाहूंगी.. शायद उसकी बातों से आपको अंदाजा हो की वो कितना ख़तरनाक है। मैं निशांत को यहां बुलाना चाहूंगी जो आर्य के विषय में कुछ घटनाएं बताए...


निशांत:- यहां किसके कलेजे में दम था जो 9th क्लास में पढ़ते हुए, शेर और उसके शिकार के बीच में खड़ा हो जाए। इतना खतरनाक है वो। यहां किसके कलेजे में दम है कि अपने दोस्त के भरोसे वो 6000 फिट की गहरी खाई में कूद जाए, जबकि उसे भी पता था कि रस्सी का दूसरा सिरा खुल जाएगा। दोस्त के भरोसे कूद गया और उसका दोस्त रस्सी का दूसरा सिरा जल्दी-जल्दी में बांधना शुरू किया हो। यहां किसके कलेजे में इतना दम है कि 300-400 किलो के वजन वाला अजगर ऐसी पेड़ की साखा पर हो जिसके नीचे हजार फिट की खाई हो, फिर भी आप रस्सी छोड़कर उस पेड़ के साखा पर चढ़ रहे। जबकि कुछ भी गड़बड़ हुई तो आप सीधा हजार फुट ऐसी खाई में गिरेंगे, जहां यदि किसी चमत्कार से बच भी गए तो जंगली जानवरो का शिकार हो जाएंगे। और विश्वास मानिए हिमालय के जंगलों में आपको वेयरवुल्फ से भी खतरनाक हालातों का सामना हो जायेगा। आर्यमणि आपके सोच से कहीं ज्यादा खतरनाक है क्योंकि उसने केवल जान बचना ही सीखा है। विषम से विषम परिस्थिति में भी उसने ना तो किसी जानवर की जान ली और ना ही किसी इंसान की जान जाने दी, वो इतना खतरनाक है। आपसे ज्यादा खतरनाक तो होगा ही क्योंकि शायद उसे उन वुल्फ में जानवर नहीं इंसान नजर आना शुरू हो गया होगा और वो उसकी जान बचाने के लिए चल दिया होगा। उसकी डिक्शनरी में अच्छा या बुरा जैसा कोई शब्द नहीं होता। वो बस एक ही बात दिमाग में लिए रहता है, किसी भी कानून के मुताबिक वो गलत नहीं कर रहा फिर अपनी मर्जी का वो जो करे, किसी के बाप के जिगरा में उतनी ताकत नहीं की उसे रोक ले। और कोई रोक कर तो दिखाए क्या वो रुक जाएगा। यदि ज्यादा बोल गया हूं तो माफ कीजिएगा, लेकिन जिसने भी उसे खतरनाक माना है, वो बहुत ही धूर्त इंसान होगा, जिसे किसी को अच्छाई नहीं दिख रही, बस किसी तरह किसी भी मुद्दे को पकड़ कर भारद्वाज खानदान को बदनाम कर दे, इसलिए बिना होम वर्क किए आ गए।


पलक:- "धन्यवाद निशांत। हमारे बीच का अस्थाई सदस्य है और थोड़ा भावुक भी, इसलिए कुछ ज्यादा बोल दिया हो तो मै माफी चाहती हूं। अब मै आती हूं सबसे पहले इस बात पर की विष मोक्ष श्राप में वो नई प्रजाति कौन थी।"

"मुझे सोच कर है हंसी आ रही है, क्योंकि जिन्हे आपने नहीं देखा क्या वो प्रजाति नहीं होती या फिर डर अभी से लग रहा की जिसके बारे में जानते नहीं उसे से लड़ेंगे कैसे, इसलिए मनगढ़ंत कहानी बता दो। रीछ इतिहास पढ़िए। वो मानव इतिहास के सबसे विकसित और ऊपर के दर्जे के कुल थे, सिद्ध पुरुष (साधुओं) के बाद।"

"उनके इतिहास में वर्णित है एक रीछ जब विकृत होता है तो अपने स्पर्श मात्र से वो शरीर में बहने वाले रक्त को कण में बदल देता है और अपने श्वांस द्वारा खींचकर उसकी ऊर्जा लेता है। ऐसे ही घटना के गवाह बने थे वहां के कुछ स्थानीय लोग। लेकिन आप अपनी बुद्धि की परिभाषा उस कुएं की मेंढ़क की तरह दे रहे है, जिसको लगता है वो समुद्र में तैर रहा और इससे बड़ी कोई दुनिया हो ही नहीं सकती। उच्च सदस्य बैठक करे या ना करे, मै अपने साखा की अध्यक्ष हूं और इस बात में कोई सच्चाई ना भी हुई की कोई रीछ स्त्री वहां के कैद से छूटी है, तो भी मै एक टीम का गठन करके उसका पता लगाने निकलूंगी। प्रहरी को करने के लिए रखा गया है ना कि ये कहकर पल्ला झाड़ लेने के लिए की केवल वेयरवुल्फ ही यहां के सुपरनेचुरल है।"

"इसी के साथ मै विशिष्ठ सखा की अध्यक्ष पलक भारद्वाज, ये भी पारित करती हूं कि हर इकाई में बसे सुपरनेचुरल की जांच उसके शेप शिफ्ट करवाकर की जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने अहम में कुछ भुल कर गए। जिसे हम शांति मानकर चल रहे है वो इस पृथ्वी पर मातम के काले बादल लेकर चले आए।"

"मैं ऐसा क्यों कह रही हूं उसकी सम्पूर्ण वजह बताती हूं। हमारे नागपुर इकाई में एक फर्स्ट अल्फा है सरदार खान। वो सरदार खान पिछले कितने सालों से हमारे संरक्षण में है, किसी को याद भी नहीं शायद। ना तो उसके उम्र का लेखा है और ना ही उस क्षेत्र में कितने वुल्फ पैक हमने संरक्षित किए उसका सर्वे समय-समय पर लिया है। हमे सिखाया जाता है कि हम 2 दुनिया के बीच में पहरा देते है और उनके बीच में शांति रहे ये देखना हमारा काम है। भटको को मारने कि तैयारी में हम सबको सबसे पहले शिकारी बनना पड़ता है।"

"कोई भटका वुल्फ पैक इंसानों का शिकार करे तो हम उस वुल्फ पैक को मार देते हैं। उसके टीन वुल्फ को किसी पैक के साथ जोड़कर उन्हें संरक्षित करते है और कहते है उन्हें प्रशिक्षित करने। लेकिन क्या कभी जाकर देखा है कि वहां उन वुल्फ के बीच क्या चल रहा है। सरदार खान जैसे वुल्फ बाहर से आए अल्फा और उसके पैक का शिकार कर लेते है और फिर अपनी शक्तियां बढाते है।"

"मैंने जबसे अपना कार्य भार संभाला है तब से समुदाय के इस अनदेखी पर बहुत गौर किया और मैंने बहुत गड़बड़ी पाई। मेरे ही कहने पर आर्य वहां उनके बीच गया। कमाल के परिणाम सामने आये। उसने पहली दोस्ती एक लड़की के साथ की जिसका नाम रूही है। उसकी मां को अल्फा हिलर कहा जाता था। उसने ना जाने कितने इंसान और जानवर को हिल किया था अपने जीवन काल में। वैसे अल्फा को हमने वहां बसाया और सरदार खान ने अपनी शक्ति बढ़ा ली।"

"18 वुल्फ अल्फा पिछले 50 साल में उस क्षेत्र में गए तत्काल सर्वे से पता चला, उसके पीछे की बात जाने दीजिए। अभी वहां कितने अल्फा बचे हैं किसी ने पाया किया? किसी को पता हो की नही लेकिन वहां अब केवल 5 अल्फा बचे हैं। आर्य ने पैक नही बनाया था, बल्कि एक अल्फा हिलर की बेटी रूही से दोस्ती हुई। रूही जो कई वेयरवोल्फ पैक के साथ रहती थी। जिसे सबने नोचा लेकिन किसी ने अपने पैक में कोई दर्जा नहीं दिया, ऐसे वुल्फ की दोस्ती हुई थी। दूसरी लड़की अलबेली है। जो बल्य्य अवस्था से किशोर अवस्था में कदम ही रखी थी, उसे 18 वुल्फ के पैक ने बलात्कार करने की कोशिश किया। आर्य उनके साथ भावनात्मक तरीके से जुड़ा। अपने इंसान होने का परिचय दिया। रूही और अलबेली ने इसे पैक का नाम दिए जिस से आर्य को कोई ऐतराज नहीं था। है तो वो बहादुर इसमें कोई २ राय नहीं। सिना तानकर आर्यमणि, सरदार खान के चौपाल में गया, अपने पैक के अस्तित्व को वहां रखा और दोषी को चैलेंज किया।"

"आर्य के उकसवे में जब सरदार खान ने शेप शिफ्ट किया तब पता चला कि हम एक बीस्ट वुल्फ पाल रहे है जिसकी चमरी लगभग 1 फिट मोटे हीरे की दीवार है, किस हथियार से भेदकर उसे प्रहरी समुदाय मारेगा पहले इस बात का जवाब ढूंढकर लाए कोई। जिसे यकीन नहीं मेरे बातो पर वो जाकर सरदार खान का शेप शिफ्ट करवाए और जाकर हथियार आजमाकर आए पहले। जो एक प्रहरी का कर्तव्य है वो आर्य कर रहा है।"

"सबसे आखरी में, जबसे मुझे प्रभार मिला है मै अंदर के अनदेखी और लोगो के करप्ट होने की बू सी नजर आने लगी हैं। मै उन सदस्यों कि सदस्यता, जांच पूरी होने तक खारिज करती हूं जिन्होंने आर्य के ऊपर मीटिंग बुलाई है। क्योंकि ऐसा लगता है सरदार खान से केवल एक पक्षीय जानकारी जुटाई गई है और आर्य से नहीं पूछा गया जबकि मामला दो पक्षों का था। कामकाज की अनदेखी, उत्तरदायित्व की अनदेखी और अनैतिक संरक्षण पर भी स्टे लगेगा।"

"सरदार खान एक खतरा है जिसे और अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसलिए उच्च सदस्य जल्दी से निर्णय करे कि सरदार खान का क्या करना है? जांच तक बर्खास्त हुए सदस्यों कि सूची आम की जाएगी, ताकि उच्च सदस्यों को उनके कर्तव्य का पता हो। यह प्रहरी समूह काम करने के लिए है, ना की प्रहरी के काम को अनदेखा करके आर्थिक लाभ कमाना। इसलिए धन की इस होड़ को देखते हुए सदस्यों के बीच समानता प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी, और सबकुछ रीसेट करके धन को बराबर बांटा जाए। धन के विषय में कही गयी बातें मात्र एक प्रस्ताव है, जिसपर विचार होंगे। उसके अलावा कही गई मेरी जितनी भी बातें है वो मेरा कार्य क्षेत्र के अधीन है। मैंने पूरा फैसला पूर्ण आकलन और सबूतों को देखने के बाद पेश किए है, इसलिए किसी भी उच्च सदस्य बीच ये चर्चा और विचार का विषय नहीं बनेगा। धन्यवाद।


देवगिरी पाठक:- बातो में संतुलन, काम काज में अग्नि, दिल जीत लिया पलक ने। खारिज सदस्य कुछ इस प्रकार है…


तकरीबन 22 नाम लिए गए जिन्होंने इस मीटिंग का मुद्दा रखा था जिसमें 2 प्रमुख नाम हंस शुक्ल और और रवि महाजन था। धन के समानता के विषय में देवगिरी पाठक ने निजी राय के बाद एक और मीटिंग का प्रस्ताव रखा जो दिसंबर में होना था। इसी के साथ देवगिरी ने अपनी बात समाप्त की।


सुकेश:- "शायद अब लोगो को उज्जवल के फैसले पर यकीन हो गया होगा की उसने पलक में अपनी बेटी नहीं बल्कि एक योग्य प्रहरी को देखा है। देवगिरी का दिल जीत लिया मेरा दिल जीत लिया। मीटिंग जब आम होगी तो ऐसा लगता है आम सदस्यों का दिल भी जीत ही लेगी। एक योग्य सदस्य ने एक योग्य सदस्य को आगे बढ़ाया, फिर भी उसपर वंशवाद का इल्ज़ाम लगा।"

"उस योग्य सदस्य उज्जवल से ये सभा माफी मांगती है। जांच के बाद यदि रवि महाजन और हंस शुक्ल दोषी ना भी हुए तो भी अगले 10 साल तक उन्हें आम सदस्य घोषित किया जाता है। यही उसकी सजा है। इसी के साथ मै हंस का कार्यभार पलक को देता हूं जो कि आज से विशिष्ठ जीव सखा के अध्यक्ष के साथ-साथ योग्य सदस्य को तरक्की देकर उनके सही साखा तथा उन्हें उच्च सदस्य की श्रेणी में लाए।"

"देवगिरी के ऊपर अतरिक्त प्रभार रहेगा उच्च सदस्य मेंबर कॉर्डिनेटर और मीटिंग कॉर्डिनेटर पद के लियेप जबतक वो योग्य सदस्य नहीं ढूंढ़ लेते।"


देवगिरी:- दादा ये एक्स्ट्रा प्रभार ना डालो मै मनोनीत सदस्य में से आरती मुले को इसका भार शौपता हूं, जो अक्सर यहां चुप ही रहती है। कम से कम इसी बहाने बोलेगी भी।


आरती:- "धन्यवाद बाबा, आज की मीटिंग वाकई कमाल की थी। मैं 8 उच्च सदस्य मीटिंग आटेंड की हूं, लेकिन काम के प्रति पलक का जज्बा बिल्कुल अलग ही लेवल का है। मैंने यहां धीरेन स्वामी को देखा है, जो किसी निजी कारणवश प्रहरी समुदाय छोड़ गए। फिर मैंने भूमि को देखा, मुझे लगता था ये दोनो कमाल के है। आम सदस्यों के बीच तक तो ठीक है लेकिन उच्च सदस्य में वही पुराने साखा अध्यक्ष और वही अपने-अपने इलाके को मजबूत करना। ना तो काम करने के लिए कुछ था और ना ही अगली मीटिंग जल्दी हो उसका कोई मुद्दा।"

"एक छोटा से साखा के अध्यक्ष पद का भार एक नई युवा को मिला और हमारे पुराने काम में इतनी अनदेखी मिली। अनुभव के साथ जोश भी चाहिए ये बात पलक ने साबित कर दी है। इसलिए मै उच्च सदस्य की मेंबर कॉर्डिनेटर होने के नाते पलक से ये अनुरोध करूंगी की ज्यादा से ज्यादा जोशीले सदस्य को उच्च सदस्यता दे, ताकि हर साखा मे उनके जैसे जोशीले सदस्य हों। इसी के साथ मै अपनी बात समाप्त करती हूं।"


कुछ ही देर में पूरी सभा समाप्त हो गई। हाई टेबल की हाई बैठक में आज तो पलक ने सबकी बोलती बंद कर दी। इतने बड़े फैसले उसने इतने आसानी से सुना दिए जिसका अंदाज़ा तो भारद्वाज परिवार में भी किसी को नहीं था।


शानदार जबरदस्त update bhai jann
 

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भाग:–36






कुछ ही देर में पूरी सभा समाप्त हो गई। हाई टेबल की हाई बैठक में आज तो पलक ने सबकी बोलती बंद कर दी। इतने बड़े फैसले उसने इतने आसानी से सुना दिए जिसका अंदाज़ा तो भारद्वाज परिवार में भी किसी को नहीं था।


शुक्ला, महाजन और पाठक ये तीनों परिवार भी वैधायन के साथ शुरू से जुड़े थे। भारद्वाज खानदान के उलट इनका जब वंश आगे बढ़ा तो उनके वंश का हर सदस्य तरक्की की ऊंचाई पर था। लगभग 6 पीढ़ियों का इतिहास तो सबका है, जिसमें इन तीनों की बढ़ती पीढ़ी इतनी विस्तार कर गई की इनका पूरे प्रहरी समुदाय पर लगभग कब्जा था।


हां लेकिन एक बात जो सत्य थी। जबतक सुकेश भारद्वाज सत्ता में था तब भी इनकी नहीं चली। जब उज्जवल भारद्वाज सत्ता में रहा तब इनकी नहीं चली और जब भूमि भारद्वाज थी पहले, बाद मे देसाई बनी, वो जब अस्तित्व मे आयी तब इनकी जड़ें खोद डाली। और आज पलक ने तो अविश्वसनिय काम कर दिया था। प्रहरी के 40 में से 30 हाई टेबल इन्हीं परिवारों के पास थी और पलक ने उनमें से 22 टेबल एक मीटिंग में खाली करवा दी।


शुरू से इन तीनों परिवार, शुक्ल, महाजन और पाठक, के कुछ लोग लॉबी करते थे। अंदरुनी साजिश और प्रहरी समुदाय में भारद्वाज का दबदबा समाप्त करने की इनकी कोशिश लंबे समय से जारी थी। इन्हीं के पूर्वजों कि कोशिश की वजह से कभी भारद्वाज खानदान विकसित होकर अपना वंश वृक्ष मजबूती से आगे नहीं बढ़ा पाया।


इन्हीं लोगों के कोशिशों का नतीजा था कि भारद्वाज के साथ उनके करीबियों को भी समय समय पर लपेट लिया जाता था, जिसकी एक कड़ी वर्धराज़ कुलकर्णी भी थे। जबसे इन लोगों को पता चला था कि कुलकर्णी खानदान का एक लड़का काफी क्षमतावान है जिसका प्रारंभिक जीवन अपने दादा की गोद में, उसके ज्ञान तले बढ़ा, तब से इन लोगों का मुख्य निशाना आर्यमणि ही था।


हालांकि शुक्ल, महाजन और पाठक के वंश वृक्ष की हर साखा पर धूर्त नहीं थे। उनमें से बहुत ऐसे पूर्वजों की पीढ़ी भी आगे बढ़ी थी जो प्रहरी के प्रति पूर्ण समर्पित और संस्था को पहली प्राथमिकता देते थे।


प्रहरी हाई टेबल मीटिंग के समापन के तुरंत बाद ही इन परिवारों के एक लीग कि अपनी एक मीटिंग, उसी दिन मुंबई में हुई। जिसमे हंस शुक्ल, रवि महाजन और भाऊ की बेटी आरती मुले सामिल थी। इनके साथ प्रहरी के कई उच्च सदस्य भी थे।


हंस:- मेरा ससुर (भाऊ, देवगिरी पाठक) पागल हो गया है वो तो इन भारद्वाज के तलवे ही चाटेगा।


आरती:- कास बाबा इस लीग का हिस्सा होते जो भारद्वाज को गिरता देखना चाहते है और पुरा प्रहरी समुदाय अपने नाम करना चाहते है। लेकिन वैधायन के पाठक दोस्तों के 4 बेटे में से, बाबा को पुष्पक पाठक का ही वंसज होना था।


अमृत पाठक, भाऊ का भतीजा, और उसकी संपत्ति पर अपनी चचेरी बहन और भाऊ की बेटी आरती के साथ नजर गड़ाए। क्योंकि भाऊ की मनसा सम्पत्ति को लेकर साफ थी, उनकी सम्पत्ति का वारिस एक योग्य प्रहरी होगा जो इस संपत्ति को आगे बढ़ाए और प्रहरी के काम में पूर्ण आर्थिक मदद करे। इसलिए उसने कभी बेटे की ख्वाहिश नहीं किया। उनकी 2 बेटियां ही थी, बड़ी सुप्रिया शुक्ल जिसकी शादी हंस शुक्ल से हुई थी। छोटी भारती, जिसकी शादी धीरेन स्वामी से हुई थी। एक मुंह बोली बेटी भी थी, जिसकी शादी प्रहरी के बाहर मुले समुदाय में हुई थी, और वह आरती मुले थी।


अमृत पाठक:- जो लॉबिंग महाजन, शुक्ल और पाठक के वंशज करते आ रहे थे, वह सभी भारद्वाज के दिमाग के धूल के बराबर भी नहीं। नई लड़की के सामने एक ही मीटिंग मे 22 हाई टेबल खाली करवा आए। शर्म नहीं आती तुम सबको। जाओ पहले कोई दिमाग वाला ढूंढो और धीरेन स्वामी को मानने की कोशिश करो। क्योंकि वाकई तुम लोगो पर भारद्वाज का काल मंडरा रहा है।


आरती:- अमृत मेरे बाबा कहीं अपनी प्रॉपर्टी बिल ना बनवा रहे हो पलक भारद्वाज के नाम। मुझे तो यही चिंता खाए जा रही है।


अमृत:- बड़े काका जो भी बिल बनवा ले, बस उनको मरने दो, फिर आराम से ये सम्पत्ति 2 भागो में विभाजित होगी। मै इसलिए नहीं काका का काम देखता की उनकी सम्पत्ति भिखारियों में दान दे दी जाए। …


तभी उस महफिल में एंट्री हो गई एक ऐसे शक्स की जिसकी ओर सबका ध्यान गया… प्रहरी के इस भटके समूह का दिमाग, यानी धीरेन स्वामी पर। धीरेन स्वामी का कोई बैकग्राउंड नहीं था। एक बार शिकारियों के बीच धीरेन फसा था, जहां उसने अपनी आखों से सुपरनैचुरल को देखा था।


खैर, उसे कभी फोर्स नहीं किया गया कि वो प्रहरी बने। उसे कुछ पैसे दे दिए गए, ताकि वो खुश रहे और बात को राज रखे। छोटा सा लड़का फिर देवगिरी पाठक के पास पहुंचा और उनके जैसा काम सिखन की मनसा जाहिर किया। देवगिरी ने कुछ दिनों तक उसे अपने पास रखकर प्रशिक्षित किया। उसके सीखने की लगन और काम के प्रति मेहनत को देखकर देवगिरी उसे प्रहरी समुदाय में लेकर आया।


भूमि और धीरेन की सीक्षा लगभग एक साथ ही शुरू हुई थी। दोनो जैसे-जैसे आगे बढ़े प्रहरी समुदाय मे काफी नाम कमाया। दोनो दूर-दूर तक शिकार के लिए जाते थे और निर्भीक इतने की कहीं भी घुसकर आतंक मचा सकते थे। दोनो ही लगभग एक जैसे थे दिमाग के बेहद शातिर और टेढ़े तरीके से काम निकालने में माहिर। बस एक चीज में भूमि मात खा गई, धीरेन टेढ़े दिमाग के साथ टेढ़ी मनसा भी पाल रहा था, इस बात की भनक उसे कभी नहीं हुई।


दोनो के बीच प्रेम भी पनपा और जश्मानी रिश्ते भी कायम हुए, लेकिन धीरेन केवल भूमि की सोच को समझने के लिए और प्रहरी का पुरा इतिहास जानने के लिए उसके साथ हुआ करता था। उसे इस बात की भनक थी, यदि भूमि उसके साथ हुई, तो वो अपनी मनसा में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा, और यहां उसकी मनसा कोई पैसे कमाने का नहीं थी, बल्कि उससे भी ज्यादा खतरनाक थी। ताकत का इतना बड़ा समुद्र उसे दिख चुका था कि वो सभी ताकतों का अधिपति बनना चाहता था।


इसी बीच धीरेन भूमि की मनसा पूरा भांप चुका था। भूमि प्रहरी समुदाय में चल रहे करप्शन की जड़ तक पहुंचने की मनसा रखती थी। भूमि जिस-जिस पॉइंट को लेकर शुक्ल, महाजन और पाठक के कुछ लेग को घसीटने वाली होती, समय रहते धीरेन ने उन्हें आगाह कर दिया करता और वो इस खेमे मे सबसे चहेता बन गया।


भूमि से नजदीकियों को दूर करने के लिए धीरेन की शादी भारती से करवाई गई, ताकि ये मुंबई आ जाए और भूमि से दूर हो जाए। धीरेन को भी कोई आपत्ति नहीं थी। भूमि से केवल भावनात्मक दिखावा किया था धीरेन ने और भाऊ का कर्ज उतारने के लिए यह शादी कर रहा, भूमि से जताया। भूमि खून का घूंट पीकर रह गई। कुछ दिनों के लिए भूमि सब कुछ भूलकर विरह में भी जी थी। तब भूमि को जयदेव का सहारा मिला। जयदेव हालांकि भूमि के गुप्त रिश्ते के बारे में नहीं जानता था, उसे केवल इतना पता था कि भूमि धीरेन के साथ छोड़ने से हताश है।


जयदेव बहुत ही शांत प्रवृत्ति का प्रहरी था, जो चुप चाप अपना काम किया करता था। भूमि के अंतर्मन को ये बात झकझोर गई की अपने अटूट रिश्ते के टूटने कि कहानी बताये बिना यदि वो जयदेव से शादी कर ली, तो गलत होगा। इसलिए शादी के पूर्व ही उसने जयदेव को सारी बातें बता दी। जयदेव, भूमि के गम को सहारा देते हुए अपनी कहानी भी बयान कर गया जो कॉलेज में एक लड़की के साथ घटा था और वो बीमारी के कारण मर गई थी।


शायद दोनो ही एक दूसरे के दर्द को समझते थे इसलिए एक दूसरे से शादी के बाद उतने ही खुश थे। आज ना तो भूमि और ना ही जयदेव को अपनी पिछली जिंदगी से कोई मलाल था क्योंकि दोनो ने एक दूसरे के जीवन में जैसे रंग भर दिए हो। इधर धीरेन अपनी शादी के बाद मुंबई सैटल हो गया। एक जिम्मेदार प्रहरी और भाऊ का वो उत्तराधिकारी था। इसलिए अरबों का बिजनेस उसे सौगात में मिली थी, जिसे उसकी पत्नी भारती देखती थी। धीरेन सबकी मनसा जानता था लेकिन धीरेन की मनसा कोई नहीं। समुदाय में भटके परिवार को यही लगता रहा की धीरेन स्वामी धन के लिए ही काम कर रहा था। जब उसे भाऊ की सम्पत्ति का एक हिस्सा मिला, तब अपने दिमाग और भारती की कुशलता की मदद से, उसने इतनी लंबी रेखा खींच दी, कि बाकियों के नजर में धीरेन स्वामी अब खटकने लगा। जिसका परिणाम हुआ, मुंबई के प्रहरी इकाई ने धीरेन को प्रहरी समुदाय छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। धीरेन के समुदाय छोड़ने ही, उसे अपनी 70% सम्पत्ति प्रहरी समुदाय को लौटानी पड़ी थी और इन लोगो के सीने में बर्णोल लग गया था।


बीते दौड़ में भूमि नामक तूफान से धीरेन ने उन सबको निकाल लिया था। उसके बाद तो सभी लोग यही सोचते रहे की भारद्वाज का अब कौन है, जो भूमि के बराबर दिमाग रखता हो और हमारी जड़े हिलाए। बस इस एक सोच ने उन्हें आज ऐसा औंधे मुंह गिराया की धीरेन के पाऊं पकड़कर मीटिंग में आने के लिए राजी किया गया था।


धीरेन स्वामी जैसे ही अंदर पहुंचा, आरती उसे बिठती हुई… "कैसे है छोटे जमाई।"


धीरेन, हंसते हुए… "सब वक़्त का खेल है। कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव।"..


अमृत:- धीरेन भाऊ अब गुस्सा थूक भी दो, और इनकी डूबती नय्या को पार लगा दो।


धीरेन:- अमृत, मुझे केवल अपने परिवार के लोग से बात करनी है। बाकी सब यहां से जा सकते है।


अमृत, आरती और हंस उसके पास बैठ गए और बाकी सभी बाहर चले गए।… "दीदी मै सिर्फ आप दोनो को बचा सकता हूं, बाकी मामला अब हाथ से निकल गया है। वो भी आपको इसलिए बचना मै जरूरी समझता हूं क्योंकि आपके बारे में जानकर मेरी पत्नी को दर्द होगा, और उसे मै दर्द में नहीं देख सकता। वो परिवार ही क्या जो बुरे वक़्त में अपने परिवार के साथ खड़ा ना हो, भले ही उस परिवार ने मुझसे मेरी सबसे प्यारी चीज छीन ली हो।"..


हंस:- हम बहकावे में आ गए थे स्वामी, आज भी आरती ने भरी सभा में तुम्हारा नाम लिया था।


धीरेन:- और आप.… आपको मै याद नहीं आया जो आपके बाबा को और यहां बैठे ना जाने कितने प्रहरी को मुसीबत से निकाला था। मै केवल और केवल आरती के साथ मीटिंग करूंगा, इसके अलावा कोई और दिखा तो मै कोई मदद नहीं करने वाला।


आरती:- मुझे मंजूर है।


स्वामी उस सभा से उठते हुए… "मेरे कॉल का इंतजार करना आप, और आगे से ध्यान रखिएगा पैसे की चाहत अक्सर ले डूबती है।"..


स्वामी के वहां से जाते ही…. "हंस 2 टॉप क्लास मॉडल का इंतजाम करो, नई शुरवात के नाम।"..


हंस:- हम्मम ! समझ गया…


स्वामी उस दरवाजे से बाहर निकलते ही अंदर ही अंदर हंसा…. "एक बार गलत लोगों पर भरोसा करके मैं अपने लक्ष्य से कोसों दूर चला गया था, तुमने क्या सोचा इस बार भी वही होगा। बस अब तमाशा देखते जाओ।"..


स्वामी कुछ दूर चलते ही उसने अपना फोन निकला, कॉल लगा ही रहा था कि उसे ध्यान आया…. "भूमि ने अब तक तो सरदार खान पर सर्विलेंस लगा दिया होगा। सरदार खान को फोन करने का मतलब होगा फसना। सॉरी सरदार तुझे नहीं बचा पाया, लेकिन तू खुद बच जाएगा मुझे यकीन है।"


देवगिरी पाठक का बंगलो…


मीटिंग की शाम देवगिरी पाठक और विश्वा देसाई की बैठक हो रही थी। दोनो शाम की बैठक में स्कॉच का छोटा पेग उठाकर खिंचते हुए…


देवगिरी:- विश्वा दादा आज तो उस पलक ने दिल जीत लिया।


विश्व:- देव तुम शुरू से बहुत भोले रहे हो। जानते हो मै यहां क्यों आया हूं?


देवगिरी:- क्यों दादा..


विश्वा:- आज की मीटिंग में जब आर्यमणि का पैक बनाना, वुल्फ से दोस्ती और उनके क्षेत्र कि जांच हो ऐसी मांग उठी, तो मुझे वर्धराज गुरु की याद आ गई। किसी ने उस समय जो साजिश रची थी, इस बार भी पूरी साजिश रचे थे। लेकिन भारद्वाज की नई पीढ़ी अपने दादाओं कि तरह बेवकूफ नहीं है। शायद हमने वर्धराज गुरु के साथ गलत किया था...


देवगिरी:- दादा आपने बहुत सही प्वाइंट पकड़ा है। अरे करप्शन कि जड़ है ये शुक्ल, महाजन और मेरा पाठक परिवार। हमेशा इन लोगो ने पैसों को तबोज्जो दिया है।


विश्वा:- मुझे पलक की बात जायज लगी। सबको रीसेट करते है और धन का बंटवारा बराबर कर देते है। किसी के पास अरबों तो किसी के पास कुछ नहीं...


देवगिरी:- कैसे करेंगे दादा? अब जैसे स्वामी को ही ले लो। उसे मैंने 400 करोड़ का सेटअप दिया था। 4 साल में उसने 1200 करोड़ बनाया और प्रहरी छोड़ते वक़्त उसने 840 करोड़ समुदाय को दे दिया। 360 करोड़ से उसने धंधा चलाया। 6 साल में वो कुल 1600 करोड़ पर खड़ा है। क्या कहूं फिर 70% दे दो।


"हां फिर 70% ले लो। बुराई क्या है।"… धीरेन स्वामी अंदर आते ही दोनो के पाऊं छुए।


देवगिरी:- दादा इसको पूछो ये यहां क्या करने आया है?


धीरेन स्वामी:- अपने ससुर का ये 6 साल से इन-डायरेक्ट बात करने का सिलसिला तोड़ने। मुझे गुप्त रूप से नियुक्त कीजिए और जांच का प्रभार सौंप दीजिए। काम खत्म होने के बाद मुझे स्थाई सदस्य बनाना ना बनना आप सब की मर्जी है, लेकिन मै वापस आना चाहता हूं। बोर हो गया हूं मै ऑफिस जाते-जाते।


देवगिरी:- क्या मै सच सुन रहा हूं या तुझे आज फिर से भारती ने डांटा है?


धीरेन:- भाऊ हे काय आहे, मै सच कह रहा हूं।


विश्वा:- देवगिरी मैंने दे दिया प्रभार, तुम भी दो।


देवगिरी, अपने दोनो हाथ स्वामी के गाल को थामते… "मेरा बेटा लौट आया।" इतना कहकर देवगिरी ने बेल बजाई, उधर से एक अत्यंत खूबसूरत 28 साल की एक लेडी एक्सक्यूटिव की पोशाक में वहां पहुंची…. "सैफीना सभी एम्प्लॉयज में 2 महीने की सैलरी बोनस डलवा दो।"


धीरेन:- हेल्लो सैफीना..


सैफीना:- हेल्लो सर..


धीरेन:- 2 मंथ नहीं 3 मंथ की सैलरी बोनस के तौर पर दो और मै जब जाने लगूं तो एक मंथ का बोनस चेक मुझसे कलेक्ट कर लेना।


सैफीना "येस सर" कहती हुई वहां से चली गई। उसके जाते ही… "भाऊ आप कहते थे ना मै अपनी सारी संपत्ति किसी ऐसे के नाम करूंगा जो इस धन को आगे बढ़ाए और प्रहरी समुदाय में किसी को आर्थिक परेशानी ना होने दे तो वैसा कोई मिल गया है।"


देवगिरी:- हां मै भी उसी के बारे में सोच रहा था, पलक भारद्वाज।


धीरेन:- नहीं गलत। आर्यमणि कुलकर्णी।


देवगिरी:- लेकिन वो तो प्रहरी नहीं है और जहां तक खबर लगी है कि वो बनेगा भी नहीं।


धीरेन:- हा भाऊ, लेकिन उसकी सोच पूरे प्रहरी समुदाय से मिलती है, या फिर उससे भी कहीं ज्यादा ऊंची। ना तो वो आपके पैसे को कभी डूबने देगा और ना ही किसी गलत मकसद मे लगाएगा। उल्टा वर्षों से जो हम अनदेखी करते आएं है वो उसकी भरपाई कर रहा है। देखा जाए तो प्रहरी के गलती का निराकरण, वुल्फ को सही ढंग से बसाकर। मेरे हिसाब से तो आपको उसी को उत्तरदायित्व देना चाहिए।


देवगिरी:- मेरा दिल पिघल गया तेरी बातों से। कल ही बिल बनवाता हूं। 42% में ३ बेटी का हिस्सा। 18% अमृत को और बचा 40% आर्यमणि को। जबतक रिटायरमेंट नहीं लेता, सब मेरे कंट्रोल में और सबको जल्दी धन चाहिए तो मेरा कत्ल करके ले लेना।


धीरेन:- 100% की बात करो तो सोचूं भी कत्ल करने का ये 14% के लिए कौन टेंशन ले। इतना तो मै 4 साल में अपने धंधे से अर्जित कर लूंगा।


देवगिरी:- ले ले तू ही 100%। कल से आ जा यहां, मै घूमने चला जाऊंगा।


धीरेन:- भाऊ आपकी बेटी मुझे चप्पल से मारेगी और सारा पैसा अनाथालय को दान कर देगी। रहने दो आप, गृह कलेश करवा दोगे। मैंने अपने दोनो बेटे के लिए पर्याप्त घन छोड़ा है। पहले से सोच लिया है, 2000 करोड़ अपने दोनो बेटे मे, उसके आगे का आधा घन प्रहरी समुदाय को और आधा अनाथालय को।


देवगिरी:- ये है मेरा बच्चा। आज तो नाचने का मन कर रहा है।..


धीरेन:- आप दोनो नाचो मै जबतक यहां के काम काज को देखता चलूं।


धीरेन जैसे ही बाहर निकला। साइड में रिसेप्शन पर बैठा एक लड़का… "सर सैफीना मैम ने वो चेक के बारे में कहा था याद दिला देने।"


स्वामी:- ओह हां। कहां है वो अभी। बोलो यहां आकर कलेक्ट कर ले।


रिसेप्शनिस्ट, कॉल लगाकर बात करने के बाद… सर वो अपने चेंबर में है। आपको ही बुला रही है। बोली एक फाइल को आप जारा चेक करते चले जाइए।


ठीक है कहता हुए वो ऑफिस में घुसा… "कौन सी फाइल चेक करनी है मैडम।"..


सैफीना अपने कुर्सी से उतरकर आगे अपने डेस्क कर टांग लटकाकर बैठ गई और अपने शर्ट के बटन खोलते… "फाइल मै ओपन करके दूं, या खुद ओपन करोगे।"..


"तुम बस सिग्नेचर करने वाली पेन का ख्याल रखो, बाकी सब मै अपने आप कर लूंगा।"…


बदन से पूरे कपड़े उतर गए और दोनो अपने काम लीला में मस्त। एक घंटे में मज़ा के साथ-साथ सारी इंफॉर्मेशन बटोरते हुए धीरेन ने सैफीना को उसके पसंदीदा ऑडी की चाभी थमाई और वहां से चलता बाना।


अगले दिन कि मीटिंग में, जान हलख में फसे लोग बाहर इंतजार करते रहे और स्वामी, आरती के साथ मीटिंग में व्यस्त था। इसी बीच 2 हॉट क्लास मॉडल उसकी सेवा में पहुंच गई। स्वामी का मन उनको देखकर हराभरा तो हुआ, लेकिन धीरेन इस वक़्त इनके झांसे में नहीं ही फंस सकता था। धीरेन स्वामी, आरती के माध्यम से सबको आश्वाशन दिया और सबको आराम से 2 महीने शांत बैठने के लिए कहने लगा।


लाजवाब update bhai jann
 

andyking302

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भाग:–37






नागपुर शहर.... मीटिंग खत्म होने के ठीक एक दिन बाद…..


सुकेश की बुलावे पर बड़ी सी महफिल सजी हुई थी। जहां प्रहरी और आर्यमणि दोनो साथ बैठे थे। जिस गरज के साथ पलक प्रहरी सभा में बरसी थी, उसपर पुरा घर रह-रह कर गर्व महसूस कर रहा था। लेकिन बोलने के बाद अब करने का वक्त था और जरूरी था पलक खुद को साबित करके दिखाये। पलक की अगुवाई में चल रही रीछ स्त्री की खोज भी पूरी हो चुकी थी, और उसे धर–दबोचने की तैयारी में यह सभा रखी गयि थी।


सुकेश:– बहुत ज्यादा वक्त न लेते हुये मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। वाकी वुड्स में क्या हुआ था इस बात से सभी भली भांति परिचित होंगे। पलक जब विशेष जीव साखा की अध्यक्ष बनी, तभी उसने मुझे रीछ स्त्री को दूंढने का काम सौंपा। मैने इस काम में अपने कुछ खास सहयोगियों को लगाया था और अब हमारे पास रीछ स्त्री की पक्की खबर है...


पूरी सभा लगभग एक साथ... "कहां है वह अभी"…


सुकेश:– खबरों की माने तो वह रीछ स्त्री सतपुरा के घने जंगलों के बीच, वहां स्थित पर्वत श्रृंखला के एक मांद में छिपी है। आसपास के लगभग 5 किलोमीटर का दायरा उसका विचरण क्षेत्र है, जिसके अंदर कोई नही जा सकता।


भूमि:– कोई नही जा सकता, यह कैसे पता चला? क्या अंदर घुसने की कोशिश में किसी पर हमला हुआ या जान से मार दिया गया?


सुकेश:– पूरी जानकारी तो मुझे भी नही। खबरियों द्वारा जो खबर मिली उसे बता रहा हूं। जबतक वहां छानबीन के लिये नही जायेंगे, पूरी बात पता नही चल सकती। हां पर खबर पक्की है कि रीछ स्त्री वहीं है।


भूमि:– हां तो देर किस बात की है। हम कुछ टुकड़ी के साथ चलते हैं और उस रीछ स्त्री को पकड़ कर ले आते हैं।


पलक:– भूमि दीदी जाने से पहले थोड़ा यह जान ले की हम किसके पीछे जा रहे। यह कोई साधारण सुपरनेचुरल नही बल्कि काफी खरनाक और दीर्घायु सुपरनैचुरल है। सोचो कितना उत्पात मचाया होगा, जो इसे विष मोक्ष श्राप से बंधा गया था। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि उस दौड़ में विकृत रीछ स्त्री को मार नही पाये होंगे इसलिए मजबूरी में कैद करना पड़ गया होगा।


भूमि:– ठीक है तुम इंचार्ज हो, तुम्ही फैसला करो...


पलक:– पैट्रिक और रिचा की टीम तेजस दादा के नेतृत्व में काम करेगी। सुकेश काका, बंगाल की मशहूर जादूगरनी ताड़का और उसके कुछ चेलों के साथ अपनी एक टुकड़ी लेकर जायेंगे। आर्यमणि के अल्फा पैक के साथ मैं एक टुकड़ी लेकर जाऊंगी। आज शाम ही हम सब सतपुरा जंगल के लिये निकलेंगे। हम सबसे पहले सतपुरा के पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचेंगे और वहां से अलग–अलग दिशाओं से जांच करते हुये, ठीक 7 दिन बाद, चंद्र ग्रहण से ठीक एक दिन पूर्व, रीछ स्त्री के उस 5 किलोमीटर वाले दायरे के पास एकत्रित होंगे। वहां हम पूरी रणनीति बनायेंगे और चंद्र ग्रहण की रात उस रीछ स्त्री को बांधकर नागपुर प्रहरी कार्यालय में कैद करेंगे।


भूमि:– मेरी नेतृत्व वाली सभी टुकड़ी को ले जा रहे और मुझे ही अगुवाई का मौका नहीं मिल रहा...


पलक:– दीदी आप यहां आराम करें और आपकी टुकड़ी में जो बेहतरीन शिकारी है उसे भी ऊपर आने का मौका दें।


भूमि, पलक के इस जवाब पर केवल मुस्कुरा कर अपनी प्रतिक्रिया दी। सभा में सभी फैसले लेने के बाद सभा स्थगित हो गया और सब शाम में निकलने की तैयारी करने लगे। तैयारी में तो आर्यमणि भी लग गया। जहां एक ओर लोगों को शिकारी होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, वहीं आर्यमणि और निशांत २ ऐसे नाम थे जो पैदा ही शिकारियों के गुण के साथ हुये थे। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण तो लोपचे का खंडहर था, जहां कई माहिर शिकारी को दोनो चकमा देकर सुहोत्र को ले उड़े। आर्यमणि भला जंगल के इस मिशन में निशांत को साथ क्यों नही लेता। बाकी सब अपनी रणनीति में और दोनो दोस्त अपनी...


निशांत:– मजा आयेगा आर्य, लेकिन ये तो बता की हमे वहां करना क्या होगा?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नही। शायद जंगल के अंदर कुछ छानबीन और उस विकृत रीछ स्त्री को पकड़े कैसे?



निशांत, थोड़ा आश्चर्य में... "यानी जिसे पकड़ने जा रहे उसके विषय में कोई ज्ञान नहीं?"


आर्यमणि:– इतना चौंक क्यों रहा है?


निशांत:– यार ये तो आत्महत्या करने जैसा है। इतिहास के सबसे शक्तिशाली मानव प्रजाति जो हजारों वर्ष तक जिंदा रह सकते थे। जिनके शक्तियों का विस्तृत उल्लेख रामायण से लेकर महाभारत तक है। जिसका एक योद्धा जम्बत जी का उल्लेख सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक मिलता है। और यदि इस रीछ स्त्री की बात करे तो वह गवाह होगी द्वापर युग की। जो स्त्री महाभारत के समकालीन है और कलयुग में आज तक जिंदा है। उसे बस ऐसे हवा–हवाई रणनीति से पकड़ने जा रहे। उसे पकड़ने भी जा रहे हो या उसके पैरों में गिड़कर उसका चेला बनना है? क्योंकि ऐसी रणनीति का तो यही निष्कर्ष निकलता है कि किसी तरह पता करो की वह शक्तिशाली रीछ स्त्री कहां है ताकि उसके पैरों में गिरकर उसे अपने ओर मिला ले और अपनी भी मनचाही मनोकामना पूर्ण हो जाए...


आर्यमणि:– तो क्या करे, न जाएं...


निशांत:– हम जायेंगे लेकिन इन फालतू प्रहरी के भरोसे नहीं जायेंगे... हमे अपने जंगल (गंगटोक के जंगल) के बारे में पता था कि वहां हमारा सामना किस जानवर और किन–किन विषम परिस्थितियों से हो सकता था। इसलिए संकट कितना भी अचानक क्यों न आये हमे समस्या नहीं होती। हम यहां भी ठीक वैसा ही करेंगे...


आर्यमणि:– हम्मम.. ठीक है हम खरीदारी करते हुये डिस्कस कर लेंगे, लेकिन सबसे पहले मैं तुम्हे कुछ दिखाना चाहता हूं...


इतना कहकर आर्यमणि अपने कमरे का दरवाजा बंद किया। बिस्तर के नीचे पड़ा अपना बैग निकाला। यह लाइफ सपोर्टिंग बैग था। ऐसा ही एक बैग निशांत के पास भी हमेशा रहता है। आर्यमणि उसके अंदर से सभी समान बाहर निकलने के बाद आखरी में सबसे नीचे से एक पोटली निकाला... पोटली को देखते ही निशांत की आंखें बड़ी हो गई... "लोपचे का भटकता मुसाफिर। आर्य, इसे साथ लेकर घूम रहे"…


आर्यमणि:– ऐडियाना का मकबरा कहां है...


निशांत:– मध्य भारत के जंगल में..


आर्यमणि:– मैप में देखकर बताओ की मध्य भारत का जंगल कहां है?


निशांत:– बताना क्या है... वही सतपुरा का जंगल.. लेकिन तुम दोनो बातों में क्या समानता ढूंढ रहे हो?..


आर्यमणि:– लोपचे के भटकते मुसाफिर की माने तो एडियाना के मकबरे में 3 चीजों का उल्लेख है, जो हर किसी को पता है... पुर्नस्थापित अंगूठी (restoring ring), बिजली की खंजर और...


निशांत उसे बीच में ही रोकते.… "और बहरूपिया चोगा... यानी वो रीछ स्त्री मध्य भारत के जंगल में इन्हे ही ढूंढने निकली है।"..


आर्यमणि:– दोनो ही बातें है, हो भी सकता है और नही भी। रीछ स्त्री अपने कैद से बाहर निकलने के बाद जो भी अपना लक्ष्य रखे, उसके लिए सबसे पहले उसे खुद के अंदर क्षमता विकसित करनी होगी। जिसके लिए उसे कम से कम 500–600 दिन तो चाहिए। यदि उसे ये सब जल्दी निपटाना हो तब...


निशांत:– तब तो उसे कोई जादू ही चाहिए। और ऐसा ही एक जादू वहां के जंगल में भी है... पुर्नस्थापित अंगूठी... हाहाहाहाहा..


आर्यमणि:– हाहाहाहाहा.. और उस गधी को पता नही होगा की वहां तो लोपचे के भटकते मुसाफिर ने लोचा कर दिया था...


लोपचे के भटकते मुसाफिर यानी की पारीयन लोपचे, सुपरनैचुरल के बीच काफी प्रसिद्ध नाम है। इसे खोजी वुल्फ भी कहा जाता है। पहला ऐसा लोन वुल्फ, जो अपनी मर्जी से ओमेगा था। कई साधु, संत, महात्मा, और न जाने कितने ही दैत्य दानव से वह मिला था। उस दौड़ के योगियों का चहेता था और किसी भी प्रकार के खोज में, खोजी टुकड़ी के अगुवाई पारीयान लोपचे ही करता था। उसके इसी गुण के कारण से पारीयान लोपचे को लोपचे का भटकता मुसाफिर कहा जाता था। अपने खोज के क्रम में वह साधु, योगियों और आचार्य का इतना चहेता हो चुका था कि गुरुओं ने उसे सिद्ध की हुई भ्रमित अंगूठी (illiusion ring) दिया था।


सुनने में भले ही यह जादू कला की छोटी सी वस्तु लगे लेकिन यह वस्तु उस चींटी के भांति थी, जो किसी हांथी के सूंड़ में घुसकर उसे धाराशाही कर सकती थी। कहने का अर्थ है, बड़े से बड़ा दैत्य, काला जादूगर, शिकारी, वीर, फौज की बड़ी टुकड़ी, कोई भी हो.… उन्हे किसी को मारने के लिए सबसे जरूरी क्या होता है, उसका लक्ष्य। सामने लक्ष्य दिखेगा तभी उसको भेद सकते हैं। यह भ्रमित अंगूठी लक्ष्य को ही भटका देती थी। यदि सामने दिख रहे पारीयान पर कोई तीर चलता तो पता चलता की वह तीर जैसे किसी होलोग्राफिक इमेज पर चली। कोई काला जादूगर यदि उसके बाल को लेकर, किसी छोटे से प्रतिमा में डालकर, उसका जादुई स्वरूप तैयार करके मारने की कोशिश करता, तब पता चलता की यह काला जादू भी बेअसर। क्योंकि भ्रमित अंगूठी पारीयान के अस्तित्व तक को भ्रमित कर देती थी।


उसी दौड़ में कुख्यात जादूगर महाकाश्वर और एडियाना की जोड़ी काफी प्रचलित हुई थी। इन्होंने अपने तंत्र–मंत्र और शातिर दिमाग से सबको परेशान कर रखा था। लेकिन कहते हैं ना आस्तीन का सांप सबसे पहले अपने को ही डस्ता है। जादूगर महाकाश्वर ने भी एडियाना के साथ वही किया। पहले छला... फिर उसकी ताकत हासिल की और एडियाना की ताकत हासिल करने के बाद, उसकी तीन इच्छाओं के साथ उसके मकबरे में दफन कर दिया। ये वही तीन इच्छा थी जिसके छलावे में एडियाना फंसी थी। एडियाना बर्फीले रेगिस्तान (रूस के बर्फीला इलाका) की खौफनाक शैतान कही जाती थी, जो अपने लाखों सेवक विंडीगो सुपरनेचुरल के साथ राज करती थी। ऐडियाना एक कुशल जादूगर तो थी लेकिन मध्य भारत के जादूगर महाकाश्वर की उतनी ही बड़ी प्रशंसक भी।


अभी के वक्त में जो तात्कालिक मंगोलिया है, उस जगह पर जादूगर की एक सभा लगी थी। उसी सभा मे महाकाश्वर की मुलाकात एडियाना से हुई थी। यूं तो जादूगरों की यह सभा साथ मिलकर काम करने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन जहां एक ओर एडियाना अपनी बहन तायफा से मिलने पहुंची थी। वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसी तायफ़ा को मारने पहुंचा था। जीन–जिन को भ्रम था कि वह दिग्गज जादूगर है, वह सभी २ पाटन के बीच में पिस गए। एक ओर एडियाना अपनी बहन को बचा रही थी, वहीं दूसरी ओर महाकाश्वर उसे मारने का प्रयास कर रहा था।


जादूगरों का गुट २ विभाग में विभाजित हो गया, जहां मेजोरिटी लेडीज के पास ही थी। लेकिन महाकाश्वर के लिए तो भाड़ में गए सब और ठीक वैसा ही हाल एडियाना का भी था। दोनो लगातार लड़ते रहे। उस लड़ाई में वहां मौजूद सभी जादूगर मारे गए फिर भी लड़ते रहे। जिसके लिए लड़ाई शुरू हुई, तायफा, वो भी कब की मर गई। लेकिन इनका लड़ाई जारी रहा। एडियाना बर्फ की रानी थी, तो महाकाश्वर आग का राजा। एडियाना भंवर बनाती तो महाकाश्वर पहाड़ बन जाता। कांटे की टक्कर थी। मंत्र से मंत्र भीड़ रहे थे और आपसी टकराव से वहां के चारो ओर विस्फोट हो रहा था, लेकिन दोनो पर कोई असर नहीं हो रहा था।


एडियाना ने फिर एक लंबा दाव खेल दिया। अपने सुपरनैचुरल विंडिगो की पूरी फौज खड़ी कर दी। लाखों विंडिगों एक साथ महाकाश्वर पर हमला करने चल दिए। किसी भी भीड़ को साफ करना महाकाश्वर के लिए चुटकी बजाने जितना आसान था। लेकिन एडियाना के अगले दाव ने महाकाश्वर के होश ही उड़ा दिए। महाकाश्वर ने विंडिगो की भीड़ को साफ करने के लिए जितने भी मंत्र को उनपर छोड़ा, विंडिगो उन मंत्रो के काट के साथ आगे बढ़ रहे थे। महाकाश्वर को ऐसा लगा जैसे एडियाना एक साथ सभी विंडिगो में समा गई है, जो मंत्र काटते आगे बढ़ रहे। कमाल की जादूगरी जिसके बारे में महाकाश्वर को पता भी नही था। हां लेकिन वो विंडिगो से खुद की जान तो बचा ही सकता था। महाकाश्वर ने तुरंत पहना बहरूपिया चोगा और अब हैरान होने की बारी एडियाना की थी।


बहरूपिया चोगा से भेष बदलना हो या फिर किसी रूप बदल मंत्र से, लेकिन जो महाकाश्वर ने किया वह अद्भुत था। जादू से किसी का रूप तो ले सकते थे लेकिन जिसका रूप लिया हो, खुद को उसकी आत्मा से ही जोड़ लेना, यह असंभव था। और यह असंभव होते एडियाना देख रही थी। एडियाना पहले तो बहुत ही आशस्वत थी, और रूप बदलने जैसे छल पर हंस रही थी। लेकिन जैसे ही पहले विंडिगो का निशान महाकाश्वर के शरीर पर बना, ठीक वैसा ही निशान, उसी जगह पर एडियाना के शरीर पर भी बना। अगले ही पल दोनो की लड़ाई रुक गई और दोस्ती का नया दौड़ चालू हो गया।


अब इच्छाएं किसकी नही होती। ठीक वैसी ही इच्छाएं एडियाना की भी थी। उसे एक चीज की बड़ी लालसा थी... बिजली का खंजर। महाकाश्वर भी यह पहली बार सुन रहा था, लेकिन जब उसने सुना की यह खंजर किसी भी चीज को चीड़ सकती है, तब वह अचरज में पड़ गया।


थोड़े विस्तार से यदि समझा जाए तो कुछ ऐसा था.… सबसे मजबूत धातु जिसे तोड़ा न जा सकता हो, उसका एक अलमीरा बना लिया जाए। अलमीरा के दीवार की मोटाई फिर चाहे कितनी भी क्यों न हो, 20 फिट, 40 फिट... और उस अलमीरा के अंदर किसी इंसान को रखकर उसे चिड़ने कहा जाए। तब इंसान को चिड़ने के लिए अलमीरा खोलकर उस आदमी को निकालने की जरूरत नहीं, क्योंकि बिजली की यह खंजर उस पूरे अलमीरा को ऐसे चीड़ देगी जैसे किसी ब्लेड से कागज के 1 पन्ने को चीड़ दिया जाता है। अलमीरा तो एक दिखने वाला उधारहन था। लेकिन अलमीरा की जगह यदि मंत्र को रख दे, तब भी परिणाम एक से ही होंगे। कितना भी मजबूत मंत्र से बचाया क्यों न जा रहा हो, यह खंजर इंसान को मंत्र सहित चीड़ देगी।


एडियाना की दूसरी सबसे बड़ी ख्वाइश थी कि यदि कोई ऐसा विस्फोट हो, जिसमे उसके चिथरे भी उड़ जाए तो भी वह जीवित हो जाय। जबकि दोनो को ही पता था कि एक बार मरने के बाद कोई भी मंत्र शरीर में वापस प्राण नही डाल सकती। और एक नई ख्वाइश तो एडियाना को महाकाश्वर से मिलने के बाद हुई, वह था बहरूपिया चोगा।

महाकाश्वर कुछ दिन साथ रहकर एडियाना की इच्छाएं जान चुका था। और उसकी जितनी भी इच्छाएं थी, कमाल की थी। महाकाश्वर ने एडियाना से कमाल के शस्त्र, "बिजली का खंजर" के बारे पूछा, "की अब तक वह इस शस्त्र को हासिल क्यों नही कर पायि"। जवाब में यही आया की इस शस्त्र के बारे में तो पता है, लेकिन वह कहां मिलेगा पता नही। महाकाश्वर ने एडियाना से सारे सुराग लिए और बड़ी ही चतुराई से पूरी सूचना लोपचे के भटकते मुसाफिर तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, कुछ सिद्ध पुरुष और क्षत्रिय के साथ पारीयान निकल गया खोज पर। महाकाश्वर और एडियाना को तो छिपकर बस इनका पिछा करना था।


लगभग ३ वर्ष की खोज के पश्चात लोपचे के भटकते मुसाफिर की खोज समाप्त हुई। वह खंजर यांग्त्जी नदी के तट पर मिली जो वर्तमान समय में संघाई, चीन में है। जैसे ही यह खंजर मिली, एडियाना के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। महाकाश्वर ने अपने छल से वह खंजर तो हासिल कर लिया, लेकिन इस चक्कर में एडियाना और महाकाश्वर दोनो घायल हो गए। घायल होने के बाद तो जैसे एडियाना पागल ही हो गई थी। वह तो सबको मारने पर उतारू थी, लेकिन महाकाश्वर उसे लेकर निकल गया। लोपचे के भटकते मुसाफिर से लड़ाई करना व्यर्थ था, यह बात महाकाश्वर जनता था। बस उसे डर था कि कहीं एडियाना भ्रमित अंगूठी के बारे में जान जाती, तो उसे अपनी तीव्र इच्छाओं में न सामिल कर लेती। यदि ऐसा होता फिर तो इन दोनों की जान जानी ही थी। क्योंकि पारीयान इन दोनो (महाकाश्वर और एडियाना) के अस्त्र और शस्त्र से मरता नही, उल्टा योगी और सिद्ध पुरुष के साथ मिलकर इनके प्राण निकाल लेता।


एडियाना की दूसरी इच्छा का उपाय तो महाकाश्वर पहले से जानता था। उसे हासिल कैसे करना है वह भी जनता था। लेकिन उसे हासिल करने के लिए महाकाश्वर को अपने जैसा ही एक कुशल जादूगर चाहिए था। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र में एक अलौकिक और दिव्य गांव बसा था। हालांकि उस गांव को तो किसी ने पहले ही पूरा ही उजाड़ दिया था, लेकिन उस गांव के गर्भ में एक पुर्नस्थापित अंगूठी थी, जो उस पूरे गांव के ढांचे की शक्ति संरचना थी। इसके विषय में खुद गांव के कुछ लोगों को ही पता था। ऊपर से इतनी सिद्धियों के साथ उसके गर्भ में स्थापित किया गया था कि २ सिद्ध जादूगर मिलकर भी कोशिश करते तो भी एक चूक दोनो की जान ले लेती।


लेकिन महाकाश्वर आश्श्वत था। इसलिए खतरों को बताए बिना वह एडियाना के साथ उस गांव में घुसा और कड़ी मेहनत के बाद दोनो पुर्नस्थापित अंगूठी को हासिल कर चुके। सबसे पहला प्रयोग तो महाकाश्वर ने खुदपर किया। एडियाना ने अपने मंत्र से महाकाश्वर के चिथरे उड़ा दिए, लेकिन अगले ही पल एक हैरतअंगेज कारनामे आंखों के सामने था। महाकाश्वर के शरीर का एक–एक कण देखते ही देखते जुड़ गया।


तीनों इच्छाओं को तो महाकाश्वर मूर्त रूप दे चुका था। अब बारी थी एक बहुत बड़े चाल कि। इसके लिए स्थान पहले से तय था, जरूरी सारे काम किए जा चुके थे। एडियाना भी पूरे झांसे में आ चुकी थी। पहले तो कुछ दिनों तक उसे आतंक मचाने के लिए छोड़ दिया गया। कुछ ही वक्त में सकल जगत को महाकाश्वर और एडियाना का नाम पता चल चुका था। हर कोई जानता था कि महाकाश्वर और एडियाना कौन सी शक्तियां हासिल कर चुके। मंत्रों से कोई भी योगी अथवा सिद्ध पुरुष संरक्षित हो नही रहे थे। उसे बिजली की खंजर का स्वाद मिल ही जाता। कितना भी दोनो को मंत्र से बेजान करने की कोशिश क्यों न करो, उनका शरीर पहले जैसा ही हो जाता। उल्टा बहरूपिया चोगा के प्रयोग से एडियाना पर प्राणघाती हमला उल्टा चलाने वाले पर भी हो जाता। एडियाना पुर्नस्थापित अंगूठी से तो बच जाती लेकिन उनके प्राण अपने ही मंत्र ले चुके होते।


एडियाना, महाकाश्वर के पूरे झांसे में आ चुकी थी और अब वक्त था आखरी खेल का। महाकाश्वर, एडियाना के साथ सतपुरा के जंगल में चला आया। थोड़े भावनात्मक पल उत्पन्न किए गए। एडियाना के हाथ को थाम नजरों से नजरें चार हुई। महाकाश्वर के बातों में छल और बातों के दौरान ही उसने एडियाना के मुंह से उगलवाया उसकी इच्छाएं, जिसे महाकाश्वर ने पूरे किये थे। एडियाना ने अपनी इच्छाएं बताकर जैसे ही स्वीकार कर ली कि उसकी सारी इच्छाएं महाकाश्वर ने पूरी कि है, ठीक उसी पल एडियाना का शरीर बेजान हो गया और उसकी सारी सिद्धियां महाकाश्वर के पास पहुंच गई। अब या तो महाकाश्वर, एडियाना को उसकी इच्छाओं के साथ दफना दे या फिर 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाओं को उस से अलग कर दे। अपनी पूरी शक्ति और साथ में जान खोने के बाद, एडियाना अपने मकबरे में दफन हो गई। और उसे दफनाने वाला महाकाश्वर ने उसके तीन इच्छाएं, पुर्नस्थापित अंगूठी, बिजली की खंजर और बेहरूपिया चोगा के साथ एडियाना को दफना दिया।


जादूगर महाकाश्वर अपने 8 दिन के अनुष्ठान के बाद एडियाना की इच्छाएं वापिस हासिल कर लेता। लेकिन अनुष्ठान पूर्ण होने के पहले ही लोपचे का भटकता मुसाफिर जादूगर महाकाश्वर तक पहुंच चुका था। उस जगह भीषण युद्ध का आवाहन हुआ। एक लड़ाई जादूगर महाकाश्वर और योगियों के बीच। एक लड़ाई एक लाख की सैन्य की टुकड़ी के साथ अगुवाई कर रहे सुपरनैचुरल वेयरवोल्फ पारीयान और विंडिगो सुपरनेचुरल के बीच। 2 किलोमीटर के क्षेत्र को बांध दिया गया था। केवल जितने वाला ही बाहर जा सकता था और सामने महायुद्ध। बिना खाये–पिये, बिना रुके और बिना थके 4 दिनो के तक युद्ध होता रहा। 4 दिन बाद ऐडियाना के मकबरे से पुर्नस्थापित अंगूठी लेकर केवल एक शक्स बाहर निकला, वो था लोपचे का भटकता मुसाफिर।


पारीयान ने पूरे संवाद भेजे। युद्ध की हर छोटी बड़ी घटना की सूचना कबूतरों द्वारा पहुंचाई गई। एडियाना का मकबरा और वहां दफन उसकी 3 इच्छाओं का ज्ञान सबको हो चुका था। पारीयान के लौटने की खबर भी आयि लेकिन फिर दोबारा कभी किसी को पारीयान नही मिला। न ही कभी किसी को एडियाना का मकबरा मिला। न जाने कितने खोजी उन्हे मध्य भारत से लेकर हिमालय के पूर्वी जंगलों में तलासते रहे, किंतु एक निशानी तक नही मिली। खोजने वालों में एक नाम सरदार खान का भी था जिसे सबसे ज्यादा रुचि बिजली के खंजर और पुर्नस्थापित अंगूठी में थी।


किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।
जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere
 

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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–47






आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।


उनमें ना केवल पलक थी बल्कि कुछ लोगों को छोड़कर सभी एक जैसे थे। आर्यमणि आश्चर्य से उन सभी के चेहरे देख रहा था तभी पीछे से पलक ने उसके कंधे पर हाथ रखी। काले और लाल धारियों वाली ड्रेस जो उसके बदन से बिल्कुल चिपकी हुई थी, ओपन शोल्डर और चेहरे का लगा मेकअप, आर्यमणि देखते ही अपना छाती पकड़ लिया… "क्या हुआ आर्य"..


आर्यमणि:- श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो रही है, यहां से चलो।


पलक, कंधे का सहारा देती, हड़बड़ी में उसके साथ निकली। दोनो चल रहे थे तभी आर्य को एक पैसेज दिखा और उसने पलक का हाथ खींचकर पैसेज की दीवार से चिपका दिया, और अपने होंठ आगे ही बढ़ाया ही था… "क्या कर रहे हो आर्य, यहां कोई आ जाएगा।"..


आर्यमणि उसके बदन की खुशबू लेते…. "आह्हहह ! तुम मुझे दीवाना बना रही हो पलक।"..


पलक:- हीहीहीहीही… कंट्रोल किंग, आप तो अपनी रानी को देखकर उतावले हो गये।


आर्यमणि आगे कोई बात ना करके अपने होंठ आगे बढ़ा दिया, पलक भी अपने बदन को ढीला छोड़ती, उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी। दोनो एक दूसरे के होंठ का स्पर्श पाकर एक अलग ही दुनिया में थे। तभी गले की खराश से दोनो का ध्यान टूटा…. "इतना प्रोग्रेस, लगता है तुम दोनो की एंगेजमेंट भी जल्द करवानी होगी।"..


आर्यमणि का ध्यान टूटा। दोनो ने जब सामने नम्रता को देखा तब झटके के साथ अलग हो गए। आर्यमणि, नम्रता के इमोशंस को साफ पढ़ सकता था, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वो गौर से उसे देखने लगा… नम्रता हंसती हुई उसके बाल बिखेरते…. "पलकी संभाल इसे, ये तो मुझे ही घूरने लगा।"


पलक:- दीदी आप लग ही इतनी खूबसूरत रही हो। किसी की नजर थम जाए।


नम्रता:- और तुम दोनो जो ये सब कर रहे थे हां.. ये सब क्या है?


पलक:- इंसानी इमोशन है दीदी अपने पार्टनर को देखकर नहीं निकलेगा तो किसे देखकर निकलेगा।


आर्यमणि:- हमे चलना चाहिए।


दोनो वहां से वापस हॉल में चले आये। पलक आर्यमणि के कंधे पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, चुपके से उसके गाल पर किस्स करती… "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया आर्य। लेकिन ऐसा लगता है जैसे मैंने तुम्हारी वाह-वाही अपने नाम करवा ली है।"


आर्यमणि:- तुम भी तो मै ही हूं ना। तुम खुश तो मै खुश।


पलक, आर्यमणि के गाल खींचती… "लेकिन तुम तो यहां खुश नजर नहीं आ रहे आर्य। बात क्या है, किसी ने कुछ कह दिया क्या?"


आर्यमणि, पलक के ओर देखकर मुस्कुराते हुए… "चलो बैठकर कुछ बातें करते है।"


पलक:- हां अब बताओ।


आर्यमणि:- तुम्हे नहीं लगता कि मेरे मौसा जी थोड़े अजीब है। और साथ ने तुम्हारे पापा भी.. सॉरी दिल पर मत लेना..


यह सुनते पलक के चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा… "आर्य, खुलकर कहो ना क्या कहना चाहते हो।"..


आर्यमणि:- मैंने भारतीय इतिहास की खाक छान मारी। आज से 400 वर्ष पूर्व युद्ध के लिये केवल 12 तरह के हथियार इस्तमाल होते थे। अनंत कीर्ति के पुस्तक को खोलने के लिए जो शर्तें बताई गई है वो एक भ्रम है। और मै जान गया हूं उसे कैसे खोलना है। या यूं समझो की मै वो पुस्तक सभी लोगो के लिये खोल सकता हूं।


पलक, उत्सुकता से… "कैसे?"


आर्यमणि:- तुम मांसहारी हो ना। ना तो तुम्हे विधि बताई जा सकती है ना अनुष्ठान का कोई काम करवाया जा सकता है। बस यूं समझ लो कि वो एक शुद्ध पुस्तक है, जिसे शुद्ध मंत्र के द्वारा बंद किया गया है। 7 से 11 दिन के बीच छोटे से अनुष्ठान से वो पुस्तक बड़े आराम से खुल जायेगी। पुस्तक पूर्णिमा की रात को ही खुलेगी और तब जाकर लोग उस कमरे में जाएंगे, पुस्तक को नमन करके अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगे।


पलक:- और यदि नहीं खुली तो..


आर्यमणि:- दुनिया ये सवाल करे तो समझ में आता है, तुम्हारा ऐसा सवाल करना दर्द दे जाता है। खैर, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं उस पुस्तक में। मै बस सही जरिया के बारे में जब सोचा और मौसा जी का चेहरा सामने आया तो हंसी आ गयि। हंसी आयि मुझे इस बात पर की जिस युग में युद्ध के बड़ी मुश्किल से 12 हथियार मिलते हो, वहां 25 अलग-अलग तरह के हथियार बंद लोग। फनी है ना।


पलक, आर्यमणि के गाल को चूमती…. "तुम तो यहां मेरे प्राउड हो। सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन जब हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे तब इन लोगो को एक बार और हम पर प्राउड फील होगा।"


आर्यमणि, हैरानी से उसका चेहरा देखते हुए… "पर ऐसा होगा ही क्यों? मौसा जी से कल मै इस विषय में बात करूंगा और किसी सुध् साकहारी के हाथो पूरे अनुष्ठान की विधि को बता दूंगा। वो जाने और उनका काम।"… कहते हुए आर्यमणि ने पलक को बाहों में भर लिया..


पलक अपनी केवाहनी आर्यमणि के पेट में मारती… "लोग है आर्य, क्या कर रहे हो।"


आर्यमणि:- अपनी रानी के साथ रोमांस कर रहा हूं।


पलक:- कुछ बातें 2 लोगों के बीच ही हो तो ही अच्छी लगती है। वैसे भी इस वक़्त तुम्हारी रानी को इंतजार है तुम्हारे एक नए कीर्तिमान की। यूं समझो मेरे जीवन की ख्वाहिश। बचपन से उस पुस्तक के बारे में सुनती आयी हूं, एक अरमान तो दिल में है ही वो पुस्तक मैं खोलूं, इसलिए तो 25 तरह के हथियारबंद लोगो से लड़ने की कोशिश करती हूं।


आर्यमणि:- ये शर्त पूरी करना आसान है। बुलेट प्रूफ जैकेट लो और उसके ऊपर स्टील मेश फेंसिंग करवाओ सर पर भी वैसा ही नाईट वाला हेलमेट डालो। बड़ी सी भाला लेकर जय प्रहरी बोलते हुए घुस जाओ…


पलक:- कुछ तुम्हारे ही दिमाग वाले थे, उन्होंने तो एक स्टेप आगे का सोच लिया था और रोबो सूट पहन कर आये थे। काका हंसते हुए उसे ले गये पुस्तक के पास और सब के सब नाकाम रहे। क्या चाहते हो, इतनी मेहनत के बाद मै भी नाकामयाब रहूं।


आर्यमणि:- विश्वास होना चाहिए, कामयाबी खुद व खुद मिलेगी।


पलक:- विश्वास तो है मेरे किंग। पर किंग अपनी क्वीन की नहीं सुन रहे।


आर्यमणि:- हम्मम ! एक राजा जब अपने रानी के विश्वास भरी फरियाद नहीं सुन सकता तो वो प्रजा की क्या सुनेगा.. बताओ।


पलक:- सब लोग यहां है, चलो उस पुस्तक को चुरा लेंगे, और फिर 7 दिन बाद सबको सरप्राइज देंगे।


आर्यमणि:- इस से अच्छा मैं मांग ना लूं।


पलक:- काका नहीं देंगे।


आर्यमणि:- हां तो मैं नहीं लूंगा।


पलक:- तुम्हारी रानी नाराज हो जायेगी।


आर्यमणि:- रानी को अपने काबू में रखना और उसकी नजायज मांग पर उसे एक थप्पड़ लगाना एक बुद्धिमान राजा का काम होता है।


आर्यमणि अपनी बात कहते हुए धीमे से पलक को एक थप्पड़ मार दिया। कम तो आर्यमणि भी नहीं था। जब सुकेश भारद्वाज की नजर उनके ओर थी तभी वो थप्पड़ मारा। सुकेश भारद्वाज दोनो को काफी देर से देख भी रहा था, थप्पड़ परते ही वो आर्यमणि के पास पहुंचा…. "ये क्या है, तुम दोनो यहां बैठकर झगड़ा कर रहे।"..


पलक, अपने आंख से 2 बूंद आशु टपकाती…. "काका जिस काम से 10 लोगों का भला हो वो काम के लिए प्रेरित करना क्या नाजायज काम है।"..


सुकेश:- बिल्कुल नहीं, क्यों आर्य पलक के कौन से काम के लिए तुम ना कह रहे हो।


"मौसा वो"… तभी पलक उसके मुंह पर हाथ रखती… "काका इस से कहो कि मेरा काम कर दे। मेरी तो नहीं सुना, कहीं आपकी सुन ले।"..


सुकेश:- शायद मै अपनी एक ख्वाहिश के लिए आर्य से जिद नहीं कर सका, इसलिए तुम्हारे काम के लिए भी नहीं कह पाऊंगा। लेकिन, भूमि को तो यहां भेज ही सकता हूं।


आर्यमणि, अपने मुंह पर से पलक का हाथ हटाकर, अपने दोनो हाथ जोड़ते झुक गया… "किसी को भी मत बुलाओ मौसा जी, मै कर दूंगा चिंता ना करो। और हां आपने अपनी ख्वाहिश ना बता कर मुझे हर्ट किया है। मै कोई गैर नहीं था, आप मुझसे कह सकते थे, वो भी हक से और ऑर्डर देकर। चलो पलक"..


पलक के साथ वो बाहर आ गया। पलक उसके कंधे और हाथ रखती…. "इतना नहीं सोचते जिंदगी में थोड़ा स्पेस देना सीखो, ताकि लोगों को समझ सको। अभी तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, किताब के बारे में फिर कभी देखते है।"


आर्यमणि:- लोग अगर धैर्य के साथ काम लेते, तब वो पुस्तक कब का खुल चुकी होती। मेरी रानी, 7 दिन के अनुष्ठान के लिए तैयारी भी करनी होती है। 2 महीने बाद गुरु पूर्णिमा है। क्या समझी..


पलक:- लेकिन आर्य, उस दिन तो राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी है...


आर्यमणि:- हां लेकिन वह शुभ दिन है। पुस्तक खोलने के लिए देर रात का एक शानदार मुहरत मे पुस्तक खोलने की कोशिश करूंगा।


पलक:- 7 दिन बाद भी तो पूर्णिमा है..


आर्यमणि:- रानी को फिर भी 2 महीने इंतजार करना होगा। चलो अन्दर चलते है और हां एक बात और..


पलक:- क्या आर्य...


आर्यमणि:- लव यू माय क्वीन...


पलक:- लव यू टू माय किंग...


आर्यमणि, पलक के होंठ का एक छोटा सा स्पर्श लेते… "चलो चला जाए।


आर्यमणि रात के इस पार्टी के बाद सीधा ट्विंस के जंगल में पहुंचा, जहां चारों उनका इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि चारो को सब से खुशखबरी देते हुए बताया.… "2 महीने तक कोई प्रहरी उन्हे परेशान नहीं करने वाला। वो इस वक्त नहीं चाहेंगे कि आर्यमणि अपने पैक के सोक मे रहे, इसलिए यहां तुम सब प्रहरी से मेहफूज हो।"


फिर बात आगे बढ़ाते हुए आर्यमणि उन्हे चेतावनी देने लगा... "प्रहरी कुछ नहीं करेंगे इसका ये मतलब नहीं कि हम सुस्त पड़ जाएं। मानता हूं, तुम सब ने बहुत कुछ झेला है। लेकिन मेरे लिए बस 2 महीने और कष्ट कर लो। अगले 2 महीने तक शरीर को बीमार कर देने वाली ट्रेनिंग, खून जला देने वाली ट्रेनिंग। बिना रुके और बेहोशी में भी केवल ट्रेनिंग। एक बात और, एक शिकारी भी आयेगी तुम सब को प्रशिक्षित करने, कोई काट मत लेना उसे। रूही, मै रहूं की ना रहूं, तुम्हे सब पर नजर बनाए रखनी है"…


रूही:- बॉस 3 टीन वूल्फ की जिम्मेदारी.…. इतने हॉट फिगर वाली लड़की को इतने बड़े बच्चों की मां बना दिये।


आर्यमणि उसे घूरते हुए वहां से निकल गया। आर्यमणि ने अब तो जैसे यहां से दूर जाने की ठान ली हो। मुंबई प्रहरी समूह का नया चेहरा स्वामी भी गुप्त रूप से जांच करने नागपुर पहुंच चुका था। दरअसल वो यहां कुछ पता करने नहीं आया था, बल्कि अपने और भूमि के बीच के रिश्ते को नया रूप देने आया था, ताकि आगे की राह आसान हो जाए।


इसी संदर्व मे जब वो भूमि से मिला और आर्यमणि के महत्वकांछी प्रोजेक्ट, "आर्म्स डेवलपमेंट यूनिट" के बारे में सुना, उसने तुरंत प्रहरी की मीटिंग में उसे "प्रहरी समुदाय महत्वकांछी प्रोजेक्ट" का नाम दिया, जिसे एक गैर प्रहरी, आर्यमणि अपनी देख रेख मे चलाता और उसके साथ प्रहरी की उसमे भागीदारी रहती। पैसों कि तो इस समुदाय के पास कोई कमी थी नहीं। आर्यमणि ने जो छोटा प्रारूप के मॉडल को इन सबके सामने पेश किया। उस छोटे प्रारूप को कई गुना ज्यादा बढ़ाकर एक पूरे क्षमता वाले प्रोजेक्ट के रूप में गवर्नमेंट के पास एप्रोवल के लिए भेज दिया गया था।


शायद एप्रोवाल मे वक्त लगता, लेकिन गवर्नमेंट को सेक्योरिटीज अमाउंट दिखाने के लिए आर्यमणि के पास कई बिलियन व्हाइट मनी उसके कंपनी अकाउंट में जमा हो चुके थे। देवगिरी भाऊ अलग से अपनी कुल संपत्ति का 40% हिस्सा आर्यमणि को देने का एनाउंस कर चुके थे।


हालांकि इस घोसना के बाद मुंबई की लॉबी में एक बार और फुट पड़ने लगी थी। लेकिन अमृत पाठक सबको धैर्य बनाए रखने और धीरेन पर विश्वास करने की सलाह दिया। उसने सबको केवल इतना ही समझाते हुए अपना पक्ष रखा.… "स्वामी, प्रहरी के मुख्यालय, नागपुर में है। इतना घन कुछ भी नहीं यदि वो प्रहरी भारद्वाज को पूरे समुदाय से साफ कर दे। एक बार वो लोग चले गये फिर हम सोच भी नहीं सकते उस से कहीं ज्यादा पैसा हमारे पास होगा"…


मूर्ख लोग छोटी साजिशों से बस भूमि की मुश्किलें बढ़ाने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे। लेकिन इन सब को दरकिनार कर भूमि और आर्यमणि दोनो जितना वक्त मिलता उतने मे एक दूसरे के करीब रहते। आर्यमणि भूमि के पेट की चूमकर, मुस्कुराते हुए अक्सर कहता... "हीरो तेरे जन्म के वक्त मै नहीं रहूंगा लेकिन तू जब आये तो मेरी भूमि दीदी को फिर मेरी याद ना आये"…


भूमि लेटी हुई बस आर्यमणि की प्यारी बातों को सुन रही होती और उसके सर पर हाथ फेर रही होती। कई बार आर्यमणि कई तरह की कथाएं कहता, जिसे भूमि भी बड़े इत्मीनान से सुना करती थी। कब दोनो को सुकून भरी नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता था।


आर्यमणि कॉलेज जाना छोड़ चुका था और सुबह से लेकर कॉलेज के वक्त तक अपने पैक के साथ होता। उन्हे प्रशिक्षित करता। अलग ही लगाव था, जिसे आर्यमणि उनसे कभी जता तो नहीं पता लेकिन दिल जलता, जब उसे यह ख्याल आता की शिकारी कितनी बेरहमी से एक वूल्फ पैक को आधा खत्म करते और आधा को सरदार खान के किले में भटकने छोड़ देते।


उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।
Nice updates🎉👍
 

andyking302

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भाग:–38







किस–किस ने एडियाना का मकबरा नही तलाशा। जब वहां से हारे फिर लोपचे के भटकते मुसाफिर की तलाश शुरू हुई, क्योंकि वह पहला और आखरी खोजी था जो एडियाना के मकबरे तक पहुंचा था। लेकिन वहां भी सभी को निराशा हाथ लगी। दुनिया में केवल 2 लोग, आर्यमणि और निशांत ही ऐसा था, जिसे पता था कि ऐडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित अंगूठी नही है। बाकी दुनिया को अब भी यही पता था कि एडियाना के मकबरे में पुर्नस्थापित पत्थर, बिजली का खंजर और बहरूपिया चोगा है, जिस तक पहुंचने का राज लोपचे का भटकता मुसाफिर है। अब एडियाना से पहले लोपचे के भटकते मुसाफिर को तलाश किया जाने लगा।


कइयों ने कोशिश किया और सबके हाथ सिर्फ नाकामी लगी। और जो किसी को नही मिला वह भटकते हुये 2 अबोध बालक आर्यमणि और निशांत को गंगटोक के घने जंगलों से मिल गया।


बात शायद 12-13 साल पुरानी होगी। एक के बाद एक कई सारे कांड हो चुके थे। पहले आर्यमणि और उसकी पहली चाहत मैत्री लोपचे का बड़ा भाई सुहोत्र से लड़ाई। लड़ाई के कुछ दिनों बाद ही शिकारियों द्वारा लोपचे के कॉटेज को ही पूरा जला देना। कुछ लोग जो किसी तरह अपनी जान बचा सके, वह गंगटोक से भागकर जर्मनी पहुंच गये, जिनमे से एक मैत्री भी थी। और उसके कुछ वक्त बाद ही वर्धराज कुलकर्णी यानी की आर्यमणि के दादा जी का निधन।


मैत्री और वर्धराज कुलकर्णी, दोनो ही आर्यमणि के काफी करीबी थे। इन सारी घटनाओं ने आर्यमणि को ऐसा तोड़ा था कि उसका ज्यादातर वक्त अकेले में ही कटता था। वो तो निशांत और चित्रा थी, जिनकी वजह से आर्यमणि कुछ–कुछ आगे बढ़ना सिखा था। उन्ही दिनों निशांत की जिद पर सुरक्षा कर्मचारी उन्हे (निशांत और आर्यमणि) घने जंगलों में घुमाने ले जाते थे। आर्यमणि जब भी घायल जानवरों को दर्द से बिलखते देखता, उसकी भावना कहीं न कहीं आर्यमणि से जुड़ जाती। कोई भी घायल जानवर के पास से आर्यमणि तबतक नही हटता था, जबतक रेंजर की बचाव टुकड़ी वहां नही पहुंच जाती।


कुछ वक्त बाद तो जबतक घायल जानवरों का इलाज पूरा नही हो जाता, तबतक आर्यमणि और निशांत पशु चिकित्सालय से घर नही जाते थे। और उसके थोड़े वक्त बाद तो दोनो घायल जानवरों की सेवा करने में भी जुट गये। लगभग १२ वर्ष की आयु जब हुई होगी, तबसे तो दोनो अकेले ही जंगल भाग जाते। उन्ही दिनों इनका सामना एक शेर से हो गया था और आस–पास कोई भी नही। दोनो अपनी जान बचाने के लिये लोपचे के खंडहर में छिप गए। उस दिन जब जान पर बनी, फिर दोनो दोस्त की हिम्मत नही हुई कि जंगल की ओर देखे भी।


लेकिन वक्त जैसे हर मरहम की दवा हो। कुछ दिन बीते तो फिर से इनका जंगल घूमना शुरू हो गया। कई बार कोई रेंजर मिल जाता तो उसके साथ घूमता, तो कई बार सैलानियों के साथ। अब इसमें कोई २ राय नहीं की इन्हे घर पर डांट ना पड़ती हो, वो सब बदस्तूर जारी था, लेकिन इनका अकेले जंगल जाना कभी बंद नहीं हुआ। कुछ रेंजर्स द्वारा सिखाये गए तकनीक, कुछ खुद के अनुभव के आधार पर दोनो जंगल के विषम परिस्थितियों का सामना करना अच्छे से सिख रहे थे।


कुछ और वर्ष बीता। दोनो (आर्यमणि और निशांत) की आयु १४ वर्ष की हो चुकी थी। जंगल के विषम परिस्थिति से निकलने में दोनो ने डॉक्टोरियट डिग्री ले चुके थे। अब तो दोनो किसी खोजकर्ता की तरह कार्य करते थे। उन्ही दिनों एक घटना हुई। यह घटना जंगल के एक प्रतिबंधित क्षेत्र की थी, जहां रेंजर भी जाने से डरते थे। दोनो एक छोटी सी घाटी के नीचे पहुंचे थे और जंगल में कुछ दूर आगे बढ़े ही होंगे, कि आंखों के सामने एक शेर। शेर किसी हिरण पर घात लगाये था और जैसे उसके हाव–भाव थे, वह किसी भी वक्त हिरण पर हमला कर सकता था। आर्यमणि ने जैसे ही यह देखा, पास पड़े पत्थर को हिरण के ऊपर चलाकर हिरण को वहां से भाग दिया। पत्थर के चलते ही हिरण तो भाग गया लेकिन शेर की खौफनाक आवाज वहां गूंजने लगी।


शेर की खौफनाक आवाज सुनकर आर्यमणि और निशांत दोनो सचेत हो गये। निशांत तुरंत ही अपना बैग उठाकर भागा और सबसे नजदीकी पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद निशांत अपने हाथ में स्टन रोड (एक प्रकार का रॉड जिससे हाई वोल्टेज करेंट निकलता हो) लेकर शेर को करेंट खिलाने के लिए तैयार हो गया। निशांत तो पूरा तैयार था, लेकिन आर्यमणि, वह तो जैसे अपनी जगह पर जम गया था।


शेर दहाड़ के साथ ही दौड़ लगा चुका था और निशांत पेड़ पर तैयार होकर जैसे ही अपनी नजरे आर्यमणि के ओर किया, उसके होश उड़ गये। गला फाड़कर कयी बार निशांत चिल्लाया, लेकिन आर्यमणि अपनी जगह से हिला नही। निशांत पेड़ से नीचे उतरकर भी कुछ कर नही सकता था, क्योंकि शेर दौड़ते हुये छलांग लगा चुका था। एक पल के लिए निशांत की आंखें बंद और अगले ही पल उतनी हैरानी से बड़ी हो गयि। आर्यमणि अब भी अपने जगह पर खड़ा था।


पहला हमला विफल होने के बाद बौखलाए शेर ने दोबारा हमला किया। शेर दहाड़ता हुआ दौड़ा और छलांग लगाकर जैसे ही आर्यमणि पर हमला किया, आर्यमणि अपनी जगह ही खड़ा है और शेर आगे निकल गया। जी तोड़ कोशिशों के बाद भी जब वही सब बार–बार दोहराता रहा, तब अंत में शेर वहां से चला गया। निशांत बड़ी हैरानी से पूछा.… "अरे यहां हो क्या रहा है?"


आर्यमणि:– मुझे भी नही पता निशांत। जब शेर दहाड़ रहा था तब मैंने भी भागा। लेकिन मुड़कर जब शेर को दौड़ लगाते देखा तो हैरान हो गया...


निशांत:– अबे और गोल–गोल चक्कर न खिला... मैं तुझे देखकर हैरान हूं, तू शेर को देखकर हैरान है।


आर्यमणि:– अबे तूने भी तो देखा न। शेर मुझ पर हमला करने के बदले इधर–उधर उछलकर चला गया।


निशांत:– अबे चुतिया तो नही समझ रहा। शेर तेरे ऊपर से होकर गया और तू अपनी जगह से हिला भी नही।


आर्यमणि:– अबे ए पागल शेर का शिकार होने के लिए अपनी जगह खड़ा रहूंगा क्या? मैं तेरे साथ ही भागा था। बस तू सीधा पेड़ पर चढ़ा और मैं पीछे मुड़कर शेर को देखा, तो रुक गया...


निशांत:– अबे ये कन्फ्यूजिंग कहानी लग रही। यहां हो क्या रहा है...


उस दिन दोनो ने बहुत मंथन किया लेकिन कहीं कोई नतीजा नही निकला। दोनो को यह एहसास था की कुछ तो हो रहा था। लेकिन क्या हो रहा था पता नही। न जाने इस घटना को बीते कितने दिन हो गए थे। शेर वाली घटना भी अब जेहन में नही थी। जंगल की तफरी तो रोज ही हुआ करती थी। अजी काहे का प्रतिबंधित क्षेत्र, दोनो की घुसपैठ हर क्षेत्र में हुआ करती थी।


दोनो ही जंगल के प्रतिबंधित क्षेत्र में घुमा करते थे। शेर, चीते, भालुओं के पास से ऐसे गुजरते मानो कह रहे हो... "और भाई कैसे हो, यहां रहने में कोई परेशानी तो नहीं".. वो जानवर भी जम्हाई लेकर बस अपनी नजरें दोनो से हटाकर दूसरी ओर देखने लगते, मानो कह रहे हो... "बोर मत कर, चल आगे बढ़".. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे।


एक दिन की बात है, दोनो घूमते हुए फिर से उसी जगह पर थे, जहां कांड हुआ था। आज भी मामला उसी दिन की तरह मिलता जुलता था। बस फर्क सिर्फ इतना था कि उस दिन शेर घात लगाए हमले की फिराक में था और आज हमला करने के लिए दौड़ लगा चुका था। वक्त कम था और आंखों के सामने हिरण को मरने तो नही दिया जा सकता था। आर्यमणि जितना तेज दौड़ सकता था, दौड़ा। बैग से स्टन रोड निकलते भागा। इधर शेर की छलांग और उधर आर्यमणि हाथों में रॉड लिए शेर और हिरण के बीच।


अब एक कदम के आगे–पीछे आर्यमणि और निशांत चल रहे थे। ऐसा तो था नही की निशांत को कुछ दिखा ही न हो। अब सीन को यदि फ्रेम करे तो। शेर किसी दिशा से हिरण के ओर दौड़ा, आर्यमणि ठीक उसके विपरीत दिशा से दौड़ा, और उसके पीछे से निशांत दौड़ा। फ्रेम में तीनों दौड़ रहे। शेर ने छलांग लगाया। आर्यमणि शेर और हिरण के बीच आया, और इधर शेर के हमले से बचाने के लिए निशांत भी आर्यमणि पर कूद गया। मतलब शेर जबतक अपने पंजे मारकर आर्यमणि को गंजा करता, उस से पहले ही निशांत उसे जमीन पर गिरा देता।


लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ। शेर छलांग लगाकर अपने पंजे चलाया और आर्यमणि के आर–पार कूद गया। शेर तो चौपाया जानवर था, लेकिन निशांत... वो तो आर्यमणि के ऊपर उसे गिराने के इरादे से कूदा, किंतु वह भी आर–पार हो गया। निशांत तो २ पाऊं वाला जानवर ठहरा। ऊपर से उसने तो केवल कूदने का प्लान किया था, आर्यमणि के आर–पार होने के बाद खुद को नियंत्रण कैसे करे इसका तो ख्याल भी नही था। वैसे इतने टाइट सिचुएशन में कोई ख्याल भी नही आते वह अलग बात है। और इसी चक्कर में निशांत ऐसा गिरा की उसका नाक टूट गयी।


इधर आर्यमणि की नजरें जो देख रही थी वह कुछ ऐसा था... शेर उस से २ फिट किनारे हवा में हमला करने के लिए छलांग लगाया और वही निशांत भी कर रहा था। निशांत की हालत देख आर्यमणि जोड़–जोड़ से हसने लगा। निशांत चिढ़कर अपने रोड को आर्यमणि के ऊपर खींचकर मारा.… आर्यमणि दोबारा हंसते हुए... "जाहिल निशाना तो सही लगा, मैं यहां हूं और तू रॉड किसपर मार रहा।"

निशांत जोर से चिल्लाते... "आर्य यहां फिर से उस दिन की तरह हो रहा है। तुझे लग रहा है हम तेरे दाएं–बाएं कूद रहे या निशाना लगा रहे और मुझे लग रहा है कि जैसे तेरी जगह तेरी आत्म खड़ी है, और हम उसके आड़–पाड़ निकल रहे।


आर्यमणि:– ये कैसा तिलिस्म है यहां का...


निशांत:– चल जरा चेक करते है कि ये तिलिस्म केवल तेरे साथ हो रहा है या सबके साथ।


आर्यमणि:– ठीक है तू मेरी जगह खड़ा हो जा..


निशांत:– मैं पहले से ही उसी जगह खड़ा हूं, जहां तू दौड़ते हुए रुका था।


आर्यमणि:– तू तैयार है, स्टन रॉड से झटका दूं..


निशांत:– ओ गोबर, यदि तिलिस्म काम नही किया तो मेरे लग जाने है। ढेला फेंककर मार


आर्यमणि ३–४ पत्थर के छोटे टुकड़े बटोरा। अतिहतन पहला धीमा चलाया। पत्थर चलाते ही आर्यमणि की आंखें बड़ी हो गयि। फिर दूसरा पूरा जोड़ लगाकर। उसके बाद तो १०–१२ ढेला फेंक दिया मगर हर बार आर्यमणि को यही लगता ढेला निशांत के पार चली गयि।


आर्यमणि:– तू सही कह रहा था, यहां कोई तिलिस्म है। अच्छा क्या यह तिलिस्म हम दोनो के ऊपर काम करता है या सभी पर?


निशांत:– कुछ कह नहीं सकते। सभी पर काम करता तो फिर शेर यहां घात लगाकर शिकार न कर रहा होता।


आर्यमणि:– मैं भी यही सोच रहा था। एक ख्याल यह भी आ रहा की शायद जानवरों पर यह तिलिस्म काम न करता हो...


निशांत:– कुछ भी पक्का नहीं है... चल इसकी टेस्टिंग करते हैं...


दोनो दोस्त वहां से चल दिए। अगले दिन एक रेंजर को झांसे में फसाया और दोनो उसे लेकर छोटी घाटी से नीचे उतर गए। छोटी घाटी से नीचे तो उतरे, लेकिन चारो ओर का नजारा देखकर स्तब्ध। इसी जगह को जब पहले देखा था और आज जब रेंजर के साथ देख रहे, जमीन आसमान का अंतर था। उस जगह पर पेड़ों की संख्या उतनी ही होगी लेकिन उनकी पूरी जगह बदली हुई लग रही थी। घाटी से नीचे उतरने के बाद जहां पहले दोनो को कुछ दूर खाली घास का मैदान दिखा था, आज वहां भी बड़े–बड़े वृक्ष थे। निशांत ने जांचने के लिए आर्यमणि को एक ढेला दे मारा, और वह ढेला आर्यमणि को लगा भी।


दोनो चुप रहे और जिस तरह रेंजर को झांसा देकर बुलाए थे, ठीक उसी प्रकार से वापस भेज दिया। रेंजर जब चला गया, निशांत उस जगह को देखते.… "कुछ तो है जो ये जगह केवल हम दोनो को समझाना चाहती है।"..


आर्यमणि:– हम्म.. आखिर इतना मजबूत तिलिस्म आया कहां से?


निशांत:– क्या हम एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने वाले हैं, जहां तंत्र–मंत्र और काला जादू होगा।


आर्यमणि:– ये सब तो आदि काल से अस्तित्व में है, बस इन्हे जनता कोई–कोई है। समझते तो और भी कम लोग है। और इन्हें करने वाले तो गिने चुने बचे होंगे जो खुद की सच्चाई छिपाकर हमारे बीच रहते होंगे। जैसे प्रहरी और उनके वेयरवोल्फ..


निशांत:– साला लोपचे को भी वेयरवोल्फ कहते है लेकिन इतने वर्षों में हमने देखा ही नहीं की ये वेयरवोल्फ कैसे होते है?


आर्यमणि:– छोड़ उन प्रहरियों को, अभी पर फोकस कर..


निशांत:– तिलिस्म को हम कैसे समझ सकते है?


आर्यमणि:– यदि इसे साइंस की तरह प्रोजेक्ट करे तो..


निशांत:– ठीक है करता हूं... एक ऐसा मशीन है जो यहां के भू–भाग संरचना को बदल सकता है। बायोमेट्रिक टाइप कुछ लगा है, जो केवल हम दोनो को ही स्कैन कर सकता है, उसमे भी शर्तों के साथ, यदि वहां केवल हम २ इंसान हुए तब...


आर्यमणि:– मतलब..

निशांत:– मतलब कैसे समझाऊं...

आर्यमणि:– कोशिश तो कर..


निशांत:– अब यदि यहां पहले शेर और हिरण थे, और हम बाद में पहुंचे। हम जब पहुंचे तब यह पूरा इलाका दूसरे स्वरूप में था, लेकिन जो पहले से यहां होंगे उन्हें अभी वाला स्वरूप दिखेगा, जैसा हम अभी देख रहें। अभी वाला स्वरूप इस जगह की वास्तविक स्थिति है, और हम जो देखते है वो तिलिस्मी स्वरूप।


आर्यमणि:– इसका मतलब यदि वह रेंजर हमसे पहले आया होता तो उसे यह जगह वास्तविक स्थिति में दिखती। और हम दोनो बाद में पहुंचे होते तो हमे इस जगह की तिलिस्मी तस्वीर दिखती...


निशांत:– हां...


आर्यमणि:– साइंस की भाषा में कहे तो बायोमेट्रिक स्कैन तभी होगा, जब केवल हम दोनो में से कोई हो। तीसरा यदि साथ हुआ तो बायोमेट्रिक स्कैन नही होगा और यह जगह हम दोनो को भी अपने वास्तविक रूप में दिखेगी...


निशांत:– एक्जेक्टली..


आर्यमणि:– ठीक है फिर एक काम करते हैं पहले यह समझते हैं कि यह तिलिस्मी इलाका है कितने दूर का..


निशांत:– और इस कैसे समझेंगे..


आर्यमणि:– हम चार कदम चलेंगे और तुम चार कदम वापस जाकर फिर से मेरे पास आओगे…


निशांत:– इसका फायदा...


आर्यमणि:– इसका फायदा दिख जायेगा... कर तो पहले...


दोनो ने किया और वाकई फायदा दिख गया। तकरीबन 1000 मीटर आगे जाने के बाद जब निशांत चार कदम लेकर वापस आया, जगह पूरी तरह से बदल गई थी। दोनो ने इस मशीन की क्रयप्रणाली को समझने के लिए बहुत से प्रयोग किये। हर बार जब दायरे से बाहर होकर अंदर आते, तब यही समझने की कोशिश करते की आखिर इसका कोई तो केंद्र बिंदु होगा, जहां से जांच शुरू होगी। चारो ओर किनारे से देख चुके थे, लेकिन दोनो को कोई सुराग नहीं मिला। फिर अंत में दोनो ने कुछ सोचा। निशांत नीचे बॉर्डर के पास खड़ा हो गया और आर्यमणि घाटी के ऊपर।


आर्यमणि का इशारा हुआ और निशांत उस तिलिस्म के सीमा क्षेत्र में घुस गया। कोई नतीजा नही। तिलस्मी क्षेत्र बदला तो, लेकिन कोई ऐसा केंद्र न मिला जहां से जांच शुरू की जाय। जहां से पता चल सके कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा? नतीजा भले न मिल रहा हो लेकिन इनकी कोशिश जारी रही। लगभग २० दिनो से यही काम हो रहा था। आर्यमणि ऊपर पहाड़ पर, और नीचे निशांत बॉर्डर के पास से उस तिलिस्मी क्षेत्र में घुसता। आर्यमणि ऊपर से हर बारीकी पर ध्यान रखता, लेकिन नतीजा कोई नही।


50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
Nice update bhai
 
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