दोनो वहां से वापस हॉल में चले आये। पलक आर्यमणि के कंधे पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, चुपके से उसके गाल पर किस्स करती… "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया आर्य। लेकिन ऐसा लगता है जैसे मैंने तुम्हारी वाह-वाही अपने नाम करवा ली है।"
आर्यमणि:- तुम भी तो मै ही हूं ना। तुम खुश तो मै खुश।
पलक, आर्यमणि के गाल खींचती… "लेकिन तुम तो यहां खुश नजर नहीं आ रहे आर्य। बात क्या है, किसी ने कुछ कह दिया क्या?"
आर्यमणि, पलक के ओर देखकर मुस्कुराते हुए… "चलो बैठकर कुछ बातें करते है।"
पलक:- हां अब बताओ।
आर्यमणि:- तुम्हे नहीं लगता कि मेरे मौसा जी थोड़े अजीब है। और साथ ने तुम्हारे पापा भी.. सॉरी दिल पर मत लेना..
यह सुनते पलक के चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा… "आर्य, खुलकर कहो ना क्या कहना चाहते हो।"..
आर्यमणि:- मैंने भारतीय इतिहास की खाक छान मारी। आज से 400 वर्ष पूर्व युद्ध के लिये केवल 12 तरह के हथियार इस्तमाल होते थे। अनंत कीर्ति के पुस्तक को खोलने के लिए जो शर्तें बताई गई है वो एक भ्रम है। और मै जान गया हूं उसे कैसे खोलना है। या यूं समझो की मै वो पुस्तक सभी लोगो के लिये खोल सकता हूं।
पलक, उत्सुकता से… "कैसे?"
आर्यमणि:- तुम मांसहारी हो ना। ना तो तुम्हे विधि बताई जा सकती है ना अनुष्ठान का कोई काम करवाया जा सकता है। बस यूं समझ लो कि वो एक शुद्ध पुस्तक है, जिसे शुद्ध मंत्र के द्वारा बंद किया गया है। 7 से 11 दिन के बीच छोटे से अनुष्ठान से वो पुस्तक बड़े आराम से खुल जायेगी। पुस्तक पूर्णिमा की रात को ही खुलेगी और तब जाकर लोग उस कमरे में जाएंगे, पुस्तक को नमन करके अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगे।
पलक:- और यदि नहीं खुली तो..
आर्यमणि:- दुनिया ये सवाल करे तो समझ में आता है, तुम्हारा ऐसा सवाल करना दर्द दे जाता है। खैर, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं उस पुस्तक में। मै बस सही जरिया के बारे में जब सोचा और मौसा जी का चेहरा सामने आया तो हंसी आ गयि। हंसी आयि मुझे इस बात पर की जिस युग में युद्ध के बड़ी मुश्किल से 12 हथियार मिलते हो, वहां 25 अलग-अलग तरह के हथियार बंद लोग। फनी है ना।
पलक, आर्यमणि के गाल को चूमती…. "तुम तो यहां मेरे प्राउड हो। सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन जब हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे तब इन लोगो को एक बार और हम पर प्राउड फील होगा।"
आर्यमणि, हैरानी से उसका चेहरा देखते हुए… "पर ऐसा होगा ही क्यों? मौसा जी से कल मै इस विषय में बात करूंगा और किसी सुध् साकहारी के हाथो पूरे अनुष्ठान की विधि को बता दूंगा। वो जाने और उनका काम।"… कहते हुए आर्यमणि ने पलक को बाहों में भर लिया..
पलक अपनी केवाहनी आर्यमणि के पेट में मारती… "लोग है आर्य, क्या कर रहे हो।"
आर्यमणि:- अपनी रानी के साथ रोमांस कर रहा हूं।
पलक:- कुछ बातें 2 लोगों के बीच ही हो तो ही अच्छी लगती है। वैसे भी इस वक़्त तुम्हारी रानी को इंतजार है तुम्हारे एक नए कीर्तिमान की। यूं समझो मेरे जीवन की ख्वाहिश। बचपन से उस पुस्तक के बारे में सुनती आयी हूं, एक अरमान तो दिल में है ही वो पुस्तक मैं खोलूं, इसलिए तो 25 तरह के हथियारबंद लोगो से लड़ने की कोशिश करती हूं।
आर्यमणि:- ये शर्त पूरी करना आसान है। बुलेट प्रूफ जैकेट लो और उसके ऊपर स्टील मेश फेंसिंग करवाओ सर पर भी वैसा ही नाईट वाला हेलमेट डालो। बड़ी सी भाला लेकर जय प्रहरी बोलते हुए घुस जाओ…
पलक:- कुछ तुम्हारे ही दिमाग वाले थे, उन्होंने तो एक स्टेप आगे का सोच लिया था और रोबो सूट पहन कर आये थे। काका हंसते हुए उसे ले गये पुस्तक के पास और सब के सब नाकाम रहे। क्या चाहते हो, इतनी मेहनत के बाद मै भी नाकामयाब रहूं।
आर्यमणि:- विश्वास होना चाहिए, कामयाबी खुद व खुद मिलेगी।
पलक:- विश्वास तो है मेरे किंग। पर किंग अपनी क्वीन की नहीं सुन रहे।
आर्यमणि:- हम्मम ! एक राजा जब अपने रानी के विश्वास भरी फरियाद नहीं सुन सकता तो वो प्रजा की क्या सुनेगा.. बताओ।
पलक:- सब लोग यहां है, चलो उस पुस्तक को चुरा लेंगे, और फिर 7 दिन बाद सबको सरप्राइज देंगे।
आर्यमणि:- इस से अच्छा मैं मांग ना लूं।
पलक:- काका नहीं देंगे।
आर्यमणि:- हां तो मैं नहीं लूंगा।
पलक:- तुम्हारी रानी नाराज हो जायेगी।
आर्यमणि:- रानी को अपने काबू में रखना और उसकी नजायज मांग पर उसे एक थप्पड़ लगाना एक बुद्धिमान राजा का काम होता है।
आर्यमणि अपनी बात कहते हुए धीमे से पलक को एक थप्पड़ मार दिया। कम तो आर्यमणि भी नहीं था। जब सुकेश भारद्वाज की नजर उनके ओर थी तभी वो थप्पड़ मारा। सुकेश भारद्वाज दोनो को काफी देर से देख भी रहा था, थप्पड़ परते ही वो आर्यमणि के पास पहुंचा…. "ये क्या है, तुम दोनो यहां बैठकर झगड़ा कर रहे।"..
पलक, अपने आंख से 2 बूंद आशु टपकाती…. "काका जिस काम से 10 लोगों का भला हो वो काम के लिए प्रेरित करना क्या नाजायज काम है।"..
सुकेश:- बिल्कुल नहीं, क्यों आर्य पलक के कौन से काम के लिए तुम ना कह रहे हो।
"मौसा वो"… तभी पलक उसके मुंह पर हाथ रखती… "काका इस से कहो कि मेरा काम कर दे। मेरी तो नहीं सुना, कहीं आपकी सुन ले।"..
सुकेश:- शायद मै अपनी एक ख्वाहिश के लिए आर्य से जिद नहीं कर सका, इसलिए तुम्हारे काम के लिए भी नहीं कह पाऊंगा। लेकिन, भूमि को तो यहां भेज ही सकता हूं।
आर्यमणि, अपने मुंह पर से पलक का हाथ हटाकर, अपने दोनो हाथ जोड़ते झुक गया… "किसी को भी मत बुलाओ मौसा जी, मै कर दूंगा चिंता ना करो। और हां आपने अपनी ख्वाहिश ना बता कर मुझे हर्ट किया है। मै कोई गैर नहीं था, आप मुझसे कह सकते थे, वो भी हक से और ऑर्डर देकर। चलो पलक"..
पलक के साथ वो बाहर आ गया। पलक उसके कंधे और हाथ रखती…. "इतना नहीं सोचते जिंदगी में थोड़ा स्पेस देना सीखो, ताकि लोगों को समझ सको। अभी तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, किताब के बारे में फिर कभी देखते है।"
आर्यमणि:- लोग अगर धैर्य के साथ काम लेते, तब वो पुस्तक कब का खुल चुकी होती। मेरी रानी, 7 दिन के अनुष्ठान के लिए तैयारी भी करनी होती है। 2 महीने बाद गुरु पूर्णिमा है। क्या समझी..
पलक:- लेकिन आर्य, उस दिन तो राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी है...
आर्यमणि:- हां लेकिन वह शुभ दिन है। पुस्तक खोलने के लिए देर रात का एक शानदार मुहरत मे पुस्तक खोलने की कोशिश करूंगा।
पलक:- 7 दिन बाद भी तो पूर्णिमा है..
आर्यमणि:- रानी को फिर भी 2 महीने इंतजार करना होगा। चलो अन्दर चलते है और हां एक बात और..
पलक:- क्या आर्य...
आर्यमणि:- लव यू माय क्वीन...
पलक:- लव यू टू माय किंग...
आर्यमणि, पलक के होंठ का एक छोटा सा स्पर्श लेते… "चलो चला जाए।